सुखबीर व उस की पत्नी इतने बड़े मकान में अकेले रहते थे. उन के घर तथा महंगी गाड़ी को देख कर किसी को भी उन की हैसियत का अंदाजा लग सकता था. इसलिए पहली नजर में लग रहा था कि लूटपाट करने वाले बदमाशों ने ही वारदात को अंजाम दिया होगा.
वैसे भी घर में जिस तरह से सारी अलमारियां खुली हुई थीं, घर के कीमती जेवरात लापता थे, उस से भी यही लगता था. जहां तक सुखबीर की किसी से रंजिश की बात थी तो परिवार वालों ने साफ कर दिया था कि सुखबीर की किसी से भी आज तक कोई रंजिश नहीं रही.
बस एक बात ऐसी थी, जिस ने पुलिस को उलझा कर रख दिया था. वह यह कि अगर बदमाशों ने घर में घुसने के बाद सुखबीर तथा मोनिका को काबू में कर के उन के हाथपांव और मुंह सर्जिकल टेप से बांध दिए थे तो वे लूटपाट करने के बाद आराम से भाग सकते थे.
बदमाश और लुटेरे आमतौर पर किसी की हत्या तभी करते हैं, जब उन का विरोध होता है. लेकिन यहां तो सुखबीर तथा मोनिका के बंधे होने के कारण विरोध की संभावना ही नहीं थी. इस का मतलब साफ था कि बदमाशों को पता था कि अगर वे उन्हें जिंदा छोड़ कर गए तो पकड़े जा सकते हैं. ऐसा भी तभी होता है जब बदमाश पीडि़त का कोई जानकार होता है.
एक दूसरी बात यह भी थी कि बदमाश वारदात को अंजाम देने के बाद घर में लगे सीसीटीवी कैमरे का डीवीआर उखाड़ कर ले गए थे. ऐसा तभी होता है जब बदमाश पहचान वाला हो और सीसीटीवी की फुटेज से आसानी से पहचाने जाने के डर से आशंकित हो.
मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों को इस बात का पूरा यकीन हो गया कि हो न हो इस वारदात के पीछे सुखबीर या मोनिका के किसी जानकार का ही हाथ है. सुखबीर व मोनिका की हत्या सिर में गोली मार कर की गई थी.
कई घंटे की जांचपड़ताल तथा परिवार वालों से की गई पूछताछ के बाद तिगांव थाना पुलिस ने सुखबीर व मोनिका के शवों को पोस्टमार्टम के लिए बी.के. अस्पताल भिजवा दिया और अज्ञात बदमाशों के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 395 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.
पुलिस कमिश्नर ओ.पी. सिंह ने उसी रात इस केस को सुलझाने का जिम्मा क्राइम ब्रांच को सौंप दिया और एक विशेष टीम का गठन भी कर दिया. विशेष टीम में सीआईए सेक्टर-30 के इंचार्ज विमल कुमार, सेक्टर-85 सीआईए प्रभारी सुमेर सिंह, डीएलएफ प्रभारी सुरेंद्र व एनआईटी क्राइम ब्रांच प्रभारी को शामिल किया गया.
डीसीपी (क्राइम) मकसूद अहमद ने खुद इस केस की मौनिटरिंग का काम संभाला और एसीपी (क्राइम) अनिल कुमार तथा एसीपी (तिगांव) को विशेष टीमों की अगुवाई करने का जिम्मा सौंपा गया. एसीपी धारणा यादव को भी विशेष टीम की अगुवाई करने का जिम्मा दिया गया था.
मामला चूंकि सीधे पुलिस कमिश्नर की दिलचस्पी का केंद्र बन गया था, इसलिए अगली सुबह से विशेष टीम ने अलगअलग बिंदुओं को आधार बना कर जांचपड़ताल करने का काम तेजी से शुरू कर दिया.
बदमाश घर से कितनी नकदी व जेवरात लूट कर ले गए गए थे, यह तो पुलिस को कोई नहीं बता सका लेकिन ये साफ था कि घर में लूटपाट जरूर हुई थी. इतना ही नहीं, बदमाश सुखबीर व मोनिका के मोबाइल भी लूट ले गए थे, क्योंकि पुलिस को काफी तलाश करने पर भी मोबाइल घर में नहीं मिले थे. दोनों मोबाइल स्विच्ड औफ आ रहे थे. घर से सुखबीर का लैपटाप भी गायब था.
इधर, बदमाशों ने घर के सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिए और डीवीआर उखाड़ कर ले गए थे. लेकिन पुलिस को यकीन था कि आसपास के किसी मकान में सीसीटीवी जरूर लगा होगा, जिस से बदमाशों तक पहुंचने में मदद मिल सकती है.
पुलिस ने जब सीसीटीवी की जानकारी हासिल कर उन्हें खंगालने का काम शुरू किया तो सुखबीर के मकान से 2 मकान छोड़ कर एक दुकान के बाहर लगे सीसीटीवी की फुटेज में पुलिस को वह फुटेज मिल गई, जिस में बदमाश आतेजाते दिख रहे थे.
इस फुटेज से पता चला कि 11 अगस्त, 2020 की दोपहर 1 बज कर 37 मिनट पर 4 युवक 2 बाइकों से मकान के पास गली में आए. उन्होंने बाइकों को मकान से कुछ दूर खड़ा किया. वे घर के भीतर करीब 42 मिनट तक रहे, जिस के बाद वे 2 बज कर 18 मिनट पर वापस जाते दिखे.
2 युवक पहले घर से निकले, जिन्होंने बाइक स्टार्ट की और मकान के पास आ कर खड़े हो गए. कुछ ही देर बाद 2 युवक मकान में से भागते हुए आए और बाइकों पर बैठ गए. जिस के बाद वे फरार हो गए.
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वारदात की फुटेज और बदमाशों के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो जाना पुलिस के लिए संजीवनी की तरह काम आया. पुलिस ने इन सीसीटीवी फुटेज को अपने कब्जे में ले लिया. हालांकि इन फुटेज में किसी भी मोटरसाइकिल का नंबर तो साफ नहीं दिख रहा था. लेकिन चेहरे रूमाल से ढके होने के बावजूद उन्हें पहचानने में कोई परेशानी नहीं थी.
मोनिका व सुखबीर दोनों के घर वालों को बुला कर पुलिस ने वह फुटेज दिखाई तो मनीष ने देखते ही साफ कर दिया कि उन चारों बदमाशों में से एक बदमाश का हुलिया उस के बड़े भाई ब्रह्मजीत की पत्नी उषा (परिवर्तित नाम) के भाई विष्णु से काफी मिलताजुलता है.
जब पुलिस ने उषा व ब्रह्मजीत को वह फुटेज दिखाई तो वे घबरा गए. उन्होंने बताया कि हुलिया विष्णु से मिलताजुलता जरूर है, लेकिन वह अपने ही जीजा की बहन के घर पर ऐसी वारदात क्यों करेगा.
विष्णु के वारदात में शामिल होने की पुष्टि करने के लिए पुलिस ने मोनिका के घर वालों से विष्णु का फोन नंबर तथा घर का पता सब हासिल कर लिया. पुलिस ने विष्णु को दबोचने की तैयारी शुरू कर दी, लेकिन इस से पहले पुलिस ने विष्णु के फोन की काल डिटेल्स निकलवा ली. क्योंकि पुलिस यह विश्वास कर लेना चाहती थी कि जिस बदमाश के विष्णु होने की शंका जताई जा रही है वो असल में विष्णु है भी या नहीं.
काल डिटेल्स सामने आई तो पता चला कि सीसीटीवी फुटेज में जिस वक्त 4 बदमाश सुखबीर के घर में वारदात करने के लिए घुसे थे, उस वक्त विष्णु के मोबाइल की लोकेशन सुखबीर के घर पर ही थी. इस से साफ हो गया कि इस वारदात में विष्णु शामिल था.
पुलिस के लिए इस वारदात का खुलासा करने के लिए यह एक बड़ी लीड थी. पुलिस की एक टीम ने दिल्ली का रुख किया. विष्णु दिल्ली के भजनपुरा में रहता था. पुलिस की टीम ने उसे रात के वक्त सोते हुए उस के घर से ही दबोच लिया.
विष्णु को फरीदाबाद के तिगांव थाने में ला कर जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने कुबूल कर लिया कि सुखबीर व मोनिका की हत्या उस ने मेरठ के किला परीक्षितगढ़ के रहने वाले अपने 3 साथियों के साथ मिल कर की थी. इस वारदात को उस ने अपने जीजा यानी बहन उषा के पति ब्रह्मजीत के कहने पर अंजाम दिया.
एक भाई आखिर अपनी बहन और उस के पति की हत्या क्यों करवाएगा? पुलिस को यह बात थोड़ी अटपटी लगी. लेकिन जब विष्णु से गहराई से पूछताछ हुई और उस ने कारण बताया तो पुलिस भी चौंकी. पुलिस को यकीन हो गया कि ब्रह्मजीत ही इस हत्याकांड का असली मास्टरमाइंड है. लिहाजा पुलिस ने उसी रात ब्रह्मजीत को भी हिरासत में ले लिया.
इस के बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ छापेमारी शुरू की और जल्द ही विष्णु के तीनों साथी सोनू, यतिन उर्फ छोटू और कुलदीप कुमार उर्फ कैलाश सिंह को भी मेरठ से गिरफ्तार कर लिया.
सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद सुखबीर व मोनिका हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई.