विरासत: आकर्षण को मिला विरासत का तोहफा

 

‘‘दादाजी, आप का पाकिस्तान से फोन है,’’ आश्चर्य भरे स्वर में आकर्षण ने अपने दादा नंद शर्मा से कहा.

‘‘पाकिस्तान से, पर अब तो हमारा वहां कोई नहीं है. फिर अचानक…फोन,’’ नंद शर्मा ने तुरंत फोन पकड़ा.

दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘अस्सलामअलैकुम, मैं पाकिस्तान, जडांवाला से जहीर अहमद बोल रहा हूं. मैं ने आप का साक्षात्कार यहां के अखबार में पढ़ा था. मुझे यह जान कर बहुत खुशी हुई कि मेरे शहर जड़ांवाला के रहने वाले एक नागरिक ने हिंदुस्तान में खूब तरक्की पाई है. मैं ने यह भी पढ़ा है कि आप के मन में अपनी जन्मभूमि को देखने की बड़ी तमन्ना है. मैं आप के लिए कुछ उपहार भेज रहा हूं जो चंद दिनों में आप को मिल जाएगा, शेष बातें मैं ने पत्र में लिख दी हैं जो मेरे उपहार के साथ आप को मिल जाएगा.’’

फोन पर जहीर की बातें सुन कर नंद शर्मा भावुक हो उठे. फिर बोले, ‘‘भाई, आज बरसों बाद मैं ने अपने जन्मस्थान से किसी की आवाज सुनी है. आज आप से बात कर के 55 साल पहले का बीता समय आंखों के आगे घूम रहा है. मैं क्या कहूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. बस, आप की समृद्धि और उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं.’’

इतना कहतेकहते नंद शर्मा की आंखें डबडबा गईं. वह आगे कुछ न कह सके और फोन रख दिया.

14 साल का आकर्षण अपने दादाजी के पास ही खड़ा था. उस ने दादाजी को इतना भावुक होते कभी नहीं देखा था.

कुछ समय तक नंद शर्मा की आंखें नम रहीं. उन्हें ऐसा लगा था मानो वह वहां केवल शरीर से मौजूद थे, उन का मन 55 साल पहले के जड़ांवाला में था.

आकर्षण कुछ देर वहां बैठा और उन के सामान्य होने का इंतजार करता रहा. फिर बोला, ‘‘दादाजी, आप को अपने पुराने घर की याद आ रही है?’’

‘‘हां बेटा, बंटवारे के समय मैं 17 साल का था. आज भी मुझे वह दिन याद है जब जड़ांवाला में कत्लेआम शुरू हुआ और दंगाइयों ने चुनचुन कर हिंदुओं को गाजरमूली की तरह काटा था. हमारे पड़ोसी मुसलमान परिवार ने हमें शरण दी और फिर मौका पा कर एकएक कर के मेरे परिवार के लोगों को सेना के पास पहुंचा दिया था. मेरे परिवार में केवल मैं ही पाकिस्तान में बचा था. मैं भी मौका देख कर निकलने की ताक में था कि किसी ने दंगाइयों को खबर कर दी कि नंद शर्मा को उस के पड़ोसियों ने पनाह दे रखी है.

‘‘खबर पा कर दंगाई पागलों की तरह उस घर की ओर झपटे. इस से पहले कि वे मेरी ओर पहुंच पाते मुझे छत के रास्ते से उन्होंने भगा दिया.

‘‘मैं एक छत से दूसरी छत को फांदता हुआ जैसे ही सड़क पर पहुंचा कि तभी सेना का ट्रक आ गया और सेना को देख कर दंगाई भाग खड़े हुए. फिर उसी ट्रक से सेना ने मुझे अमृतसर के लिए रवाना कर दिया.

‘‘उस वक्त तक मैं यही समझता था कि यह अशांति कुछ समय की है… धीरधीरे सब ठीक हो जाएगा, मैं फिर अपने परिवार के साथ वापस जड़ांवाला जा पाऊंगा पर यह मेरा भ्रम था. पिछले 55 सालों में कभी ऐसा मौका नहीं आया. मेरा शहर, मेरी जन्मभूमि, मेरी विरासत हमेशा के लिए मुझ से छीन ली गई.’’

इतना कह कर नंद शर्मा खामोश हो गए. आकर्षण का मन अभी और भी बहुत कुछ जानने को इच्छुक था पर उस समय दादा को परेशान करना उचित नहीं समझा.

नंद शर्मा हरियाणा के अंबाला शहर में एक प्रतिष्ठित पत्रकार थे. उन की गिनती वहां के वरिष्ठ पत्रकारों में होती थी. कुछ समय पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री ने एक पत्रकार सम्मेलन में उन्हें सम्मानित किया था. उस सम्मेलन में पाकिस्तान से भी पत्रकारों का प्रतिनिधिमंडल आया हुआ था. उस समारोह में नंद शर्मा ने इस बात का जिक्र किया था कि वह विभाजन के बाद जड़ांवाला से भारत कैसे आए थे और साथ ही वहां से जुड़ी यादों को भी ताजा किया.

समारोह समाप्त होने के बाद एक पाकिस्तानी पत्रकार ने उन का साक्षात्कार लिया और पाकिस्तान आ कर अपने अखबार में उसे छाप भी दिया. वह साक्षात्कार जड़ांवाला के वकील जहीर अहमद ने पढ़ा तो उन्हें यह जान कर बहुत दुख हुआ कि कोई व्यक्ति इस कदर अपनी जन्मभूमि को देखने के लिए तड़प रहा है.

जहीर एक नेकदिल इनसान था. उस ने नंद शर्मा के लिए फौरन कुछ करने का फैसला लिया और समाचारपत्र में प्रकाशित नंबर पर उन से संपर्क किया.

नंद शर्मा एक भरेपूरे परिवार के मुखिया थे. उन के 4 बेटे और 1 बेटी थी. सभी विवाहित और बालबच्चों वाले थे. आज के इस भौतिकवादी युग में भी सभी मिलजुल कर एक ही छत के नीचे रहते थे.

आकर्षण ने जब सब को पाकिस्तान से आए फोन के  बारे में बताया तो सब विस्मित रह गए. फिर नंद शर्मा के बड़े बेटे मोहन शर्मा ने पिता के पास जा कर कहा, ‘‘बाबूजी, यदि आप कहें तो हम सब जड़ांवाला जा सकते हैं और अब तो बस सेवा भी शुरू हो चुकी है. इसी बहाने हम भी अपने पुरखों की जमीन को देख आएंगे.’’

‘‘मन तो मेरा भी करता है कि एक बार जड़ांवाला देख आऊं पर देखो कब जाना होता है,’’ इतना कह कर नंद शर्मा खामोश हो गए.

एक दिन नंद शर्मा के नाम एक पार्सल आया. वह पार्सल देखते ही आकर्षण जोर से चिल्लाया, ‘‘दादाजी, आप के लिए पाकिस्तान से पार्सल आया है,’’ और इसी के साथ परिवार के सारे सदस्य उसे देखने के लिए जमा हो गए.

नंद शर्मा आंगन में कुरसी डाल कर बैठ गए. आकर्षण ने उस पैकेट को खोला. उस में 100 से भी अधिक तसवीरें थीं. हर तसवीर के पीछे उर्दू में उस का पूरा विवरण लिखा हुआ था.

नंद शर्मा के चेहरे पर उमड़ते खुशी के भावों को आसानी से पढ़ा जा सकता था. उन्होंने ही नहीं, उन का पूरा परिवार उन तसवीरों को देख कर भावविभोर हो उठा.

एक तसवीर उठाते हुए नंद शर्मा ने कहा, ‘‘यह देखो, हमारा घर, हमारी पुश्तैनी हवेली और यहां अब बैंक आफ पाकिस्तान बन गया है.’’

नंद शर्मा के पोतेपोतियां बहुत हैरान हो उन तसवीरों को देख रहे थे. उन के छोटे पोते मानू और शानू बोले, ‘‘दादाजी, क्या इन में आप का स्कूल भी है?’’

‘‘हां बेटा, अभी दिखाता हूं,’’ कह कर उन्होंने तसवीरों को उलटापलटा तो उन्हें स्कूल की तसवीर नजर आई. अपने स्कूल की तसवीर देख कर उन का चेहरा खिल उठा और वह खुशी से चिल्ला उठे, ‘‘यह देखो बच्चों, मेरा स्कूल और यह रही मेरी कक्षा. यहां मैं टाट पर बैठ कर बच्चों के साथ पढ़ता था.’’

धीरेधीरे जड़ांवाला के बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, खेल के मैदान, सिनेमाघर, वहां की गलियां, पड़ोसियों के घर, गोलगप्पे, चाट वालों की दुकान और वहां की छोटी से छोटी जानकारी भी तसवीरों के माध्यम से सामने आने लगी. अंत में एक छोटी सी कपड़े की थैली को खोला गया. उस में कुछ मिट्टी थी और साथ में एक छोटा सा पत्र था. पत्र जहीर अहमद का था जिस में उस ने लिखा था :

‘नमस्ते, आज यह तसवीरें आप के पास पहुंचाते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है. आप भी सोचते होंगे कि मुझे क्या जरूरत पड़ी थी यह सब करने की. भाईजान, मेरे वालिद बंटवारे से पहले पंजाब के बटाला शहर में रहते थे. अपने जीतेजी वह कभी अपने शहर वापस न आ सके. उन के मन में यह आरजू ही रह गई कि वह अपनी जन्मभूमि को एक बार देख सकें. इसलिए जब मैं ने आप के बारे में पढ़ा तो फैसला किया कि आप की खुशी के लिए जो बन पड़ेगा, जरूर करूंगा.

‘भाईजान, इस पोटली में आप के पुश्तैनी मकान की मिट्टी है जो मेरे खयाल से आप के लिए बहुत कीमती होगी. इस के साथ ही मैं अपने परिवार की ओर से भी आप को पाकिस्तान आने की दावत देता हूं. आप जब चाहें यहां तशरीफ ला सकते हैं. आप अपने बच्चों, पोतेपोतियों के साथ यहां आएं. हम आप की खातिरदारी में कोई कमी नहीं रखेंगे.

‘आप का, जहीर अहमद.’

पत्र पढ़तेपढ़ते नंद शर्मा भावुक हो उठे. उन्होंने फौरन घर की पुश्तैनी मिट्टी को अपने माथे से लगाया और अपने पोते आकर्षण को बुला कर उस मिट्टी से सब के माथे पर तिलक करने को कहा.

‘‘दादाजी, पाकिस्तानी तो बहुत अच्छे हैं,’’ आकर्षण बोला, ‘‘फिर क्यों हम उस देश को नफरत की दृष्टि से देखते हैं. आज जहीर अहमद के कारण ही घरबैठे आप को अपनी विरासत के दर्शन हुए हैं.’’

‘‘ठीक कहते हो बेटा,’’ नंद शर्मा बोले, ‘‘घृणा और नफरत की दीवार तो चंद नेताओं और संकीर्ण विचारधारा वाले तथाकथित लोगों ने बनाई है. आम हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी के दिलों में कोई मैल नहीं है. आज अगर मैं तुम्हारे सामने जिंदा हूं तो अपने उस मुसलिम पड़ोसी परिवार के कारण जिन्होंने समय रहते मुझे व मेरे परिवार को वहां से बाहर निकाला.’’

नंद शर्मा अगले कुछ दिनों तक घर आनेजाने वालों को जड़ांवाला की तसवीरें दिखाते रहे. एक दिन शाम को जब वह पत्रकार सम्मेलन से वापस आए तो ‘हैप्पी बर्थ डे टू दादाजी’ की ध्वनि से वातावरण गूंज उठा. उस दिन उन के जन्मदिन पर बच्चों ने उन्हें पार्टी देने का मन बनाया था.

नंद शर्मा को उन के पोतेपोतियों ने घेर लिया और फिर उन्हें उस कमरे की ओर ले गए जहां केक रखा था. वहां जा कर उन्होंने केक काटा और फिर सब ने खूब मस्ती की. फोटोग्राफर को बुलवा कर तसवीरें भी खिंचवाई गईं. बाद में उन में से एक तसवीर जो पूरे परिवार के साथ थी, वह जड़ांवाला भेज दी गई.

वक्त गुजरता रहा. धीरधीरे पत्राचार और फोन के माध्यम से दोनों परिवारों की नजदीकियां बढ़ने लगीं. देखते ही देखते 1 साल बीत गया. एक दिन जहीर अहमद का फोन आया, ‘‘भाईजान, ठीक 1 माह बाद मेरे बड़े बेटे की शादी है. आप सपरिवार आमंत्रित हैं. और हां, कोई बहाना बनाने की जरूरत नहीं है. मैं ने सारा इंतजाम कर दिया है. आप के पुरखों की विरासत आप का इंतजार कर रही है.’’

नंद शर्मा तो मानो इसी पल का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘ऐसा कभी हो सकता है कि मेरे भतीजे की शादी हो और मैं न आऊं. आप इंतजार कीजिए, मैं सपरिवार आ रहा हूं.’’

रात के खाने पर जब सारा परिवार जमा हुआ तो नंद शर्मा ने रहस्योद्घाटन किया, ‘‘ध्यान से सुनो, हम सब लोग अगले माह जड़ांवाला जहीर के बेटे की शादी में जा रहे हैं. अपनीअपनी तैयारियां कर लो.’’

‘‘हुर्रे,’’ सब बच्चे खुशी से नाच उठे.

‘‘सच है, अपनी जमीन, अपनी मिट्टी और अपनी विरासत, इन की खुशबू ही कुछ और है,’’ कह कर नंद शर्मा आंखें बंद कर मानो किसी अलौकिक सुख में खो गए.

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चित्तशुद्धि- भाग 3: क्यों सुकून की तलाश कर रही थी आभा

वह मौन हो कर सुन रही थी. पर मैं सम झ रही थी कि उसे यह अच्छा नहीं लग रहा था. मैं ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘तुम्हारी मां भी तुम्हारे पिता के वर्ण से ब्राह्मण हैं, और दादी भी तुम्हारे दादा के वर्ण से ब्राह्मण थीं. इस से पहले की पीढि़यों के बारे में भी जहां तक तुम्हें याद है, वहीं तक बता सकती हो. उस के बाद वह भी नहीं.’’

मैं ने आगे कहा, ‘‘तू ऋतु को तो जानती होगी. अभी पिछले महीने उस की किन्हीं प्रोफैसर शर्मा से शादी हुई है.’’

‘‘इस में अचरज क्या है?’’ अब उस ने पूछा.

‘‘सरला, अचरज यह है कि ऋतु की मां ब्राह्मण नहीं थीं. रस्तोगी जाति की थीं, जिसे शायद सुनार कहते हैं. फिर वह एक शूद्रा की बेटी हुई कि नहीं? पर चूंकि उस के पिता भट्ट थे, इसलिए वह भी ब्राह्मण है. अब उस के बच्चे भी भट्ट ब्राह्मण कहलाएंगे, क्योंकि दूसरी पीढ़ी में वह ब्राह्मण हो गई. इसलिए सरला, यह ब्राह्मण का भूत दिमाग से निकाल दे.’’

पर हार कर भी सरला हार मानने को तैयार नहीं थी. उस ने गुण का सवाल खड़ा कर दिया, ‘‘तो क्या ब्राह्मण का कोई गुण नहीं होता?’’

अनजाने में यह उस ने एक अच्छा प्रश्न उठा दिया था. मु झे उसे निरुत्तर करने का एक और अवसर मिल गया. मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब है, तू ने यह मान लिया कि ब्राह्मण गुण से होता है?’’

‘‘बिलकुल, इस में क्या शक है?’’

‘‘गुड, अब यह बता, ब्राह्मण के गुण क्या हैं?’’

‘‘ब्राह्मण के गुण?’’

‘‘हां, ब्राह्मण के गुण?’’

‘‘क्या तू नहीं जानती?’’

‘‘हां, मैं नहीं जानती. तू बता?’’ फिर मैं ने कहा, ‘‘अच्छा छोड़, यह बता, ब्राह्मण के कर्म क्या हैं.’’

‘‘वेदों का पठनपाठन और दान लेना.’’

‘‘गुड, और ब्राह्मणी के?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि यह कर्म जो तू ने बताए हैं, वे तो ब्राह्मण के कर्म हैं. ब्राह्मणी के कर्म क्या हैं?’’

‘‘ब्राह्मण और ब्राह्मणी एक ही बात है.’’

‘‘एक ही बात नहीं है, सरला. स्त्री के रूप में ब्राह्मणी वेदों का पठनपाठन नहीं कर सकती. उस का कोई संस्कार भी नहीं होता. वह यज्ञ भी नहीं कर सकती. एक ब्राह्मणी के नाते क्या तू यह सब कर्म करती है?’’

‘‘नहीं, मेरी इस में कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘वैरी गुड. अब तू ने सही बात कही. यार, तबीयत खुश कर दी. अब मैं तु झे बताती हूं कि शास्त्रों में ब्राह्मण का गुण भिक्षाटन कर के जीविका कमाना है. तू नौकरी क्यों कर रही है? यह तो ब्राह्मण का गुण नहीं है.’’

‘‘यार, तेरी बातें तो अब मु झे सोचने पर मजबूर कर रही हैं. मैं इतनी पढ़ीलिखी, क्यों भीख मांगूंगी? यह तो व्यक्ति की क्षमताओं का तिरस्कार है.’’

‘‘व्यक्ति की क्षमताओं का ही नहीं, गुणों का भी.

‘‘हर व्यक्ति में ब्राह्मण है, क्षत्रिय है, वैश्य है और शूद्र है. गुण के आधार पर वह स्त्री ब्राह्मण है, जिसे तू ने शूद्रा मान कर मारपीट कर निकाल दिया. उसे अगर पढ़नेलिखने का अवसर मिलता और बौस बन कर तेरे ऊपर बैठी होती, तो क्या तू तब भी उस से नफरत करती? लेकिन मैं जानती हूं, तू तब भी करती. तेरे जैसे अशुद्ध चित्त वाले जातीय अभिमानी लोग ही समाज को रुढि़वादी बनाए हुए हैं.’’

वह गुमसुम बैठी थी. मैं ने कहा, ‘‘यार, तू ने तो चाय भी नहीं पिलाई. चल, आज मैं ही तु झे चाय बना कर पिलाती हूं.’’ यह कह कर मैं उस के किचन में चली जाती हूं.

चित्तशुद्धि- भाग 2: क्यों सुकून की तलाश कर रही थी आभा

‘‘यह सुन कर मेरे तो बदन में आग लग गई. इतना बड़ा  झूठ मेरे साथ, यह घोर अनर्र्थ था. मैं 6 महीने से एक शूद्रा के हाथों का बना खाना खा रही थी. मेरे नवरात्र के व्रत तक भ्रष्ट कर गई. मेरा सारा धर्म भ्रष्ट कर गई.’’

मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब है कि तु झे दूसरी औरत ने बताया कि वह कुक यादव है, तब तु झे पता चला.’’

‘‘हां, वरना मैं ब्राह्मण ही सम झती रहती.’’

‘‘और भ्रष्ट होती रहती?’’

‘‘और क्या? मु झे उस ने बचा लिया.’’

‘‘अच्छा, उस पहले व्यक्ति ने उसे ब्राह्मण बताया था.’’

‘‘हां.’’

‘‘मतलब यह कि एक ने कहा, वह ब्राह्मण है, तो तू ने उसे ब्राह्मण मान लिया, दूसरे ने कहा, वह यादव है, तो तू ने उसे यादव मान लिया. कोई तीसरा उसे चमार बताता, तो उसे मान लेती.’’

‘‘तू कहना क्या चाहती है?’’

‘‘मैं यह कहना चाहती हूं कि औरत की जाति को पहचानने का तेरे पास कोई मापदंड नहीं है. जो भी जाति औरत अपनी बताएगी, या दूसरा व्यक्ति बताएगा, तू उसी पर विश्वास करेगी.’’

अब वह घूम गई, क्योंकि कोई जवाब उस के पास नहीं है. मैं ने कहा, ‘‘सरला, औरत के वर्ग की कोई पहचान नहीं है.’’

‘‘क्यों नहीं है?’’ उस ने बहस में अपने अज्ञान को निरर्थक छिपाने का प्रयास किया.

‘‘बता क्या पहचान है? किस चीज से पहचानेगी – चेहरे से? भाषा से? पहनावे से?’’

वह मौन रही.

‘‘अच्छा, तू बता, तेरी क्या पहचान है? तू कैसे साबित करेगी कि तू ब्राह्मण है?’’ मैं ने तर्क किया, ‘‘पुरुष तो अपना जनेऊ दिखा कर साबित कर देगा, पर औरत क्या दिखा कर साबित करेगी कि वह ब्राह्मण है?’’

वह सोच में पड़ गई थी. गरम लोहा देख कर मैं ने फिर तर्क का प्रहार किया, ‘‘क्या तेरा जनेऊ हुआ है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘मेरा भी नहीं हुआ है,’’ मैं ने कहा, ‘‘तू धर्म को ज्यादा सम झती है. जिस का जनेऊ नहीं होता, उसे क्या कहते हैं?’’

वह चुप.

मैं ने कहा, ‘‘उसे शूद्र कहते हैं. तब बिना जनेऊ के तू भी शूद्रा हुई कि नहीं? मैं भी शूद्रा हुई कि नहीं?’’

उस का ब्राह्मण अहं आहत हो गया, तुरंत बोली, ‘‘एक ब्राह्मणी शूद्रा कैसे हो सकती है?’’

‘‘नहीं हो सकती न, फिर सम झा तू, किस तरह ब्राह्मण है?’’

‘‘मेरे पिता ब्राह्मण हैं, दादा ब्राह्मण थे, मेरी मां ब्राह्मण हैं,’’ उस ने तर्क दिया.

मैं ने कहा, ‘‘यह कोई तर्कनहीं है. तेरे पिता और दादा ब्राह्मण हो सकते हैं, पर तेरी मां भी ब्राह्मण हैं, इस का दावा तू कैसे कर सकती है? खुद तेरी मां भी ब्राह्मण होने का दावा नहीं कर सकती.’’

‘‘तू कैसी अजीब बातें कर रही है, क्यों नहीं कर सकती मेरी मां ब्राह्मण होने का दावा?’’ उस ने क्रोध में जोर दे कर कहा.

‘‘क्योंकि वे औरत हैं, इसलिए.’’

‘‘मतलब?’’

मतलब यह है कि औरत उस तरल पदार्थ की तरह है, जो जिस बरतन में रखा जाता है, वह उसी का रूप धारण कर लेता है. औरत अपने पिता या पति के वर्ग से जानी जाती है, उस का अपना कोई वर्ण नहीं होता है. वह ब्राह्मण से विवाह करने पर ब्राह्मणी, ठाकुर से विवाह करने पर ठकुरानी, लाला से विवाह करने पर लालानी होगी, और शूद्र वर्ण में जिस जाति से विवाह करेगी, उस की भी वही जाति मानी जाएगी. सरला, मैं फिर कह रही हूं कि औरत का अपना कोई वर्ण नहीं होता है.’’

चित्तशुद्धि- भाग 1: क्यों सुकून की तलाश कर रही थी आभा

इस शहर में मेरा पहली बार आना हुआ है. यह मेरे लिए अनजाना है. 5 साल तक एक ही शहर में रहने के बाद मेरा ट्रांसफर इस शहर में हुआ है. हुआ क्या है, किसी तरह कराया है. जहां से मैं आई हूं वहां एक मंत्री का इतना दबदबा था कि उस के गुंडे औफिस आ कर मेज पर चढ़ कर बैठ जाते थे, और मंत्री के नाम पर गलत काम कराने का दबाव बनाते थे. गालियां उन की जबान पर हर वक्त धरी रहती थीं. औरत तक का कोई लिहाज उन की नजरों में नहीं था.

मैं स्टेशन से बाहर निकलती हूं. बहुत सारे रिकशे खड़े हैं. मैं हाथ के संकेत से एक रिकशे वाले को बुलाती हूं. मैं उस से कुछ कहे बिना ही रिकशे में बैठ जाती हूं. रिकशे वाला पूछ रहा है, ‘‘बहनजी, कहां जाइएगा?’’ मैं उस से विकास भवन चलने को कहती हूं. नए शहर में रिकशे में बैठ कर घूमना मु झे अच्छा लगता है. सड़कें, बाजार और दिशाएं अच्छी तरह दिखाई देती हैं.

रिकशे वाला स्टेशन से बाहर निकल कर सीधे रोड पर चल रहा है. यह स्टेशन रोड है. कुछ दूर चल कर सड़क पर ढेर सी सब्जियों की दुकानें देख रही हूं. मैं अनुमान लगाती हूं, शायद यह यहां की सब्जी मंडी है. मैं रिकशे वाले से कन्फर्म करती हूं. वह बता रहा है, ‘‘बहनजी, यह अनाज मंडी है. सब्जियां भी यहां बिकती हैं.’’

मैं देख रही हूं, सड़क के दोनों ओर सब्जियों के ढेर से सड़क काफी संकरी हो गई है. गाय और सांड़ खुले घूम रहे हैं. इस भीड़ वाले संकरे रास्ते से निकल कर आगे दाहिने हाथ पर राजकीय चिकित्सालय की इमारत दिख रही है. फिर चौक आता है. रिकशे वाला कह रहा है, ‘‘यहां बाईं तरफ घंटाघर है, यह सामने नगरपालिका है.’’

रिकशा चौक से आगे जा कर बाएं मुड़ जाता है. इस रोड की सजीधजी दुकानें बता रही हैं कि यह यहां का मुख्य बाजार है. मैं दोनों ओर गौर से देखती जा रही हूं. किराने, वस्त्रों, साडि़यों, रेडीमेड गारमैंट्स, बरतन, स्टेशनरी आदि की काफी सारी दुकानें नजर आ रही हैं. साडि़यों के एक शोरूम पर नजर पड़ती है. बहुत ही भव्य शोरूम लग रहा है. अब तो इस शहर में रहना ही है. सो, मैं निश्चित कर रही हूं, इस शोरूम पर जरूर आना है.

कुछ दूर चल कर एक संकरा पुल आता है. इस पुल पर काफी जाम है. रिकशे वाला धीरेधीरे रास्ता बनाते हुए चल रहा है. पुल के नीचे नदी है, पर उस में पानी ज्यादा नहीं दिख रहा है. रिकशे वाला पुल और नदी का नाम बता रहा है, पर मेरा ध्यान उस की तरफ नहीं है. इसलिए मैं उसे सुन नहीं पाई. पुल पार करते ही बाईं ओर एक बड़ी सी मिठाई की दुकान नजर आई. रिकशे वाला बता रहा है, ‘‘बहनजी, इस दुकान की इमरती दूरदूर तक मशहूर है.’’

इमरती मुझे बहुत अच्छी लगती है. पर अब डायबिटीज की पेशेंट हूं, इसलिए परहेज करती हूं. इसी वक्त चमेली की खुशबू नथुनों में भर जाती है. देखती हूं कि सड़क के दोनों ओर इत्र की दुकानें हैं. यहां से आगे चल कर फिर एक बाजार आया है. दुकानों के बोर्ड पढ़ती हूं, कोई गंज बाजार है.

रिकशा अब बाएं मुड़ रहा है. आगे एक देशी शराब का ठेका बाईं तरफ दिखाई दे रहा है.

रिकशा वाला कह रहा है, ‘‘यहां शाम को मछली बाजार लगता है.’’ पर मैं उस की बात अनसुनी कर देती हूं. यहां से कोई 20 मिनट बाद कलैक्ट्रेट का गेट दिखाई देने लगा है. रिकशा इसी गेट के अंदर प्रवेश कर रहा है. मैं बाईं ओर जिला कोषागार का औफिस देख रही हूं. उस के थोड़ा ही आगे विकास भवन की बिल्डिंग दिखाई देने लगी है. रिकशा वहीं पर रुक जाता है.

मैं रिकशे से उतरती हूं. मैं उस से किराया पूछती हूं, वह 10 रुपए मांग रहा है. यहां इतना कम किराया. मु झे यह ठीक नहीं लग रहा है. मैं मन में सोच रही हूं, यह तो इस के श्रम के साथ न्याय नहीं है. पर मैं कर भी क्या सकती हूं. मैं ने उसे 10 रुपए दिए. बाद में सौ रुपए का नोट अलग से दिया कि वह मेरी तरफ से तुम्हारे बच्चों के लिए मिठाई है. आज इस शहर में मेरा पहला दिन है. जाओ, उसी दुकान से इमरती ले कर घर जाना.

रिकशे वाले की आंखों में खुशी देख कर मैं अपने बचपन की यादों में खो जाती हूं. पिताजी चीनी मिल में मजदूर थे. एक दिन जब वे रात में ड्यूटी से घर आए, तो उन के हाथों में मिठाई का डब्बा था. उस में इमरतियां थीं. मां ने पूछा था ‘मिठाई कहां से लाए,’ तो पिताजी ने बताया था, ‘एक नए अफसर आए हैं. उन के साथ मिल के विभागों में घूमा था. उन्होंने मु झ से घरगृहस्थी की बातें पूछी थीं. जब चलने को हुआ, तो उन्होंने 50 रुपए दे कर कहा था कि बच्चों के लिए मिठाई ले जाना.’ उस दिन मैं ने पहली बार इमरती खाई थी. ओह, मैं भी कहां खो गई. वर्तमान में लौटती हूं.

मैं सूटकेस ले कर विकास भवन में प्रवेश करती हूं. अपने विभाग में जा कर अपना जौइनिंग लैटर बनवाती हूं. बाबू बताता है, डीएम साहब अवकाश पर हैं, उन का चार्ज सीडीओ के पास है. मैं बाबू के साथ सीडीओ से मिलने जाती हूं. मैं उन्हें जिला समाज कल्याण अधिकारी के पद पर अपना जौइनिंग लैटर सौंपती हूं.

आज का दिन ऐसे ही बीत जाता है. सीडीओ से मिल कर अच्छा लग रहा है. रोबदाब वाली अफसरी उन में नहीं दिखी. वे मु झे मिलनसार और सहयोगी स्वभाव के लगे. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या इस शहर में कोई संबंधी है?’’ मेरे मना करने पर उन्होंने तुरंत ही मेरे आवास की समस्या भी हल कर दी है.

डीआरडीए के परियोजना निदेशक का ट्रांसफर हो गया था, और उन का आवास खाली पड़ा था. वे मु झे उस की चाबी दिलवा देते हैं. मैं उन का आभार व्यक्त करती हूं.

बाबू ने आवास की साफसफाई करवा दी है. कुछ जरूरी सामान भी उस ने उपलब्ध करा दिया है. अकसर नई जगह पर नींद थोड़ी मुश्किल से आती है. पर 12 घंटे की रेलयात्रा की थकान थी, इसलिए लेटते ही नींद ने आगोश में ले लिया था. सुबह 6 बजे आंख खुली. आदत के अनुसार अखबार के लिए बाहर आई. पर अखबार कहां से होता. किसी हौकर से डालने को कहा भी नहीं गया था.

संयोग से साइकिल पर एक हौकर आता दिखाई दिया. मैं उस से एक हिंदी और एक इंग्लिश का अखबार लेती हूं, और यही 2 अखबार उस से रोज डालने को कहती हूं. ब्रश कर के चाय बनाती हूं. मैं दूध का इस्तेमाल नहीं करती हूं. बाकी सारा सामान इलैक्ट्रिक केतली, शुगरफ्री के पाउच और टीबैग्स घर से साथ ले कर आईर् हूं. चाय पीने के साथ अखबार पढ़ती हूं.

एक खबर पढ़ कर चौंक जाती हूं. क्या सरला इसी शहर में है? क्या यह वही सरला है, जो मेरी क्लासपार्टनर थी या यह कोई और है? नाम तो उस का भी सरला था. बहुत छुआछूत करती थी. मगर यह वही सरला है, तब तो यह बिलकुल नहीं बदली. वैसी की वैसी ही कूपमंडूक है अभी तक. सच में कुछ लोग कभी नहीं बदलते. घुट्टी में दिए गए संस्कार उन में ऐसे रचबस जाते हैं कि उन की पूरी दिनचर्या संस्कारों की गुलाम हो जाती है. अच्छाबुरा, और सहीगलत में वे कोई अंतर ही नहीं कर पाते. बस, उन के लिए उन की मान्यताएं, आस्थाएं और संस्कार ही उन का परम धर्म होते हैं. मु झे याद है, एक बार मैं ने कहा था, चल सरला, आज बाहर किसी रैस्तरां में कुछ खापी कर आते हैं.

वह तुरंत बोली थी, ‘तुम जाओ, मु झे अपना धर्म नहीं भ्रष्ट करना.’

मैं ने कहा, ‘क्या रैस्तरां में खाने से धर्म भ्रष्ट हो जाता है?’

‘और क्या?’

‘तु झ से किस ने कहा?’

‘किसी ने नहीं कहा, पर क्या तु झे पक्का पता है कि वहां जातकुजात के लोग नहीं होते हैं? ब्राह्मण ही खाना बनाते और परोसते हैं?’

‘तू जातपांत को मानती है?’

‘हां, मैं तो मानती हूं.’

उस का रिऐक्शन इतना खराब होगा, मु झे नहीं पता था. मैं तो सुन कर अवाक रह गई थी.

अगर यह वही सरला है, तब तो उस की नौकरानी ने उस के खिलाफ केस कर के ठीक ही किया है. बताइए, यह कोई बात हुई कि जो नौकरानी 6 महीने से चायनाश्ता और खाना बना रही थी, उसे इस वजह से मारपीट कर के नौकरी से निकाल दिया कि वह उसे ब्राह्मण सम झ रही थी जबकि वह यादव निकली. इस ब्राह्मणदंभी को यह नहीं पता कि जो आटा वह बाजार से लाती है, वह किस जाति या धर्म के खेत के गेहूं का आटा है- ब्राह्मण के, यादव के, चमार के या मुसलमान के?

पर ऐसे लोग यहां भी तर्क जमा लेते हैं, कहते हैं, अग्नि में तप कर सब शुद्ध हो जाता है. अन्न अग्नि में शुद्ध हो जाता है, लेकिन उसे बनाने वाला शुद्ध नहीं होता है. वह अगर ब्राह्मण है तो ब्राह्मण ही रहता है, और यादव है तो यादव ही रहता है. मैं तो यह खबर पढ़ कर ही परेशान हुई जा रही हूं, यह कितनी अवैज्ञानिक सोच है, कह रही है, नौकरानी ने मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया. इतने दिनों से मैं एक शूद्रा के हाथ का बना खाना खा रही थी.

मैं सरला से मिलने की सोचने लगी हूं. पर पहले तो यह पता करना होगा कि वह रहती कहां है. पर इस से भी पहले उस का फोन नंबर मिलना जरूरी है. यहां भी सीडीओ साहब काम आते हैं. और मु झे उस के आवास का पता व फोन नंबर मिल जाता है. मैं तुरंत नंबर मिलाती हूं. फोन स्विचऔफ जा रहा है. हो सकता है ऐसी परिस्थिति में उसे अनेक लोगों के फोन आ रहे होंगे. उसी से बचने के लिए उस ने फोन स्विचऔफ कर दिया होगा. पर उस से मिलना जरूरी है. इसलिए मैं उस से मिलने उस के आवास की ओर चल देती हूं.

ट्रांजिट होस्टल में सैकंड फ्लोर पर जा कर मैं एक दरवाजे की घंटी बजाती हूं. दरवाजा सरला ही खोलती है. मैं इतने सालों के बाद भी उसे पहचान लेती हूं. पर वह मु झे देख कर अवाक सी है, …..पहचानने का भाव उस की आंखों में मु झे दिख रहा है. फिर पूछती है, ‘‘जी कहिए?’’

मेरे जवाब देने से पहले ही वह फिर बोल पड़ती है, ‘‘बोलिए, किस से मिलना है?’’

‘‘अरे सरला, मु झे पहचाना नहीं? मैं आभा हूं, कानपुर वाली तेरी क्लासफैलो.’’

फिर वह थोड़ा चौंक कर बोली, ‘‘अरे आभा तू? तू यहां कैसे? माफ करना यार, कोई 10 साल के बाद मिल रही हो, इसलिए पहचान नहीं पाई. आओ, अंदर आओ.’’

मैं उस के साथ अंदर प्रवेश करती हूं. ड्राइंगरूम एकदम साफसुथरा लग रहा है, करीने से सजा हुआ. मैं सोफे पर बैठ जाती हूं. वह फ्रिज में से पानी की बोतल निकाल कर गिलास में डालती है और मु झे दे कर मेरे पास ही बैठ जाती है. फिर ढेर सारे सवाल करती है, ‘‘और बता, तू इतनी मोटी जो हो गई, पहचानती कैसे? और तू इस शहर में क्या कर रही है? किसी रिलेटिव के पास आई है क्या? और तु झे मेरा पता कैसे मिला?’’

‘‘अरे रुक यार, कितने सवाल पूछेगी एकसाथ?’’

वह हंसने लगती है. पर मैं देख रही हूं कि उस की हंसी में स्वाभाविकता नहीं है. एकदम फीकी सी हंसी. मैं सम झ रही हूं, वह खुश नहीं है, अंदर से परेशान है.

मैं उसे बताती हूं, ‘‘मैं ने यहां कल ही समाज कल्याण अधिकारी के पद पर जौइन किया है. आज ही सुबह अखबार में तेरी खबर पढ़ी, और बेचैन हो गई. इतनी चिंतित हुई कि किसी तरह तेरा नंबर और पता लिया. पहले फोन किया, वह स्विचऔफ जा रहा था. फिर मिलने चली आई.’’

‘‘किस से मिला मेरा फोन नंबर और पता?’’

‘‘अब यह सब छोड़. वैसे सीडीओ साहब से ही मिला.’’

‘‘क्या बात है, एक ही दिन में काफी मेहरबान हो गए सीडीओ साहब?’’ उस ने व्यंग्यात्मक मजाक किया.

‘‘हां, तो क्या हुआ? भले व्यक्ति हैं. मिलनसार हैं.’’

‘‘और मोहब्बत वाले हैं,’’ यह कह कर वह फिर हंसी.

‘‘हां, हैं मोहब्बत वाले. अब तो खुश. अब तू बता, तू ने यह क्या कांड कर डाला?’’

‘‘कैसा कांड?’’

‘‘अरे, तेरी कुक ने तु झ पर मारपीट का मामला दर्ज कराया है. यह कांड नहीं है.’’

‘‘अरे, वह कुछ नहीं है, उस से मैं निबट लूंगी.’’

‘‘कैसे? यह कहेगी कि वह  झूठ बोल रही है?’’

‘‘हां, तो क्या हुआ?’’

‘‘तेरे लिए गरीब औरत के लिए कोई इज्जत नहीं है?’’

‘‘काहे की गरीब और काहे की इज्जत? क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है? मेरा धर्म भ्रष्ट कर के चली गई?’’ उस ने क्रोध से भर कर कहा.

‘‘कैसा धर्म भ्रष्ट? क्या किया उस ने?’’

तब उस ने बताया, ‘‘मु झे एक ब्राह्मण कुक की जरूरत थी. एक व्यक्ति ने एक औरत को मेरे यहां भेजा कि यह बहुत अच्छा खाना बनाती है और ब्राह्मण भी है. उस व्यक्ति के विश्वास पर मैं ने उसे रख लिया. वह काम करने लगी. सुबह में वह नाश्ता बनाती और दोनों समय का खाना बना कर, खिला कर चली जाती थी. अचानक 6 महीने बाद उस की कालोनी की एक औरत उस से मिलने आई. मैं ने उस से पूछा, ‘तुम इसे कैसे जानती हो?’ उस ने बताया, ‘यह हमारी ही कालोनी में रहती है.’

‘‘मैं ने पूछा, ‘कौन है यह,’ तो वह बोली, ‘यादव है.’

 

डौलर का लालच : मसाज के नाम पर हुई ठगी

सेवकराम फैक्टरी में मजदूर था. वह 12वीं जमात पास था. घर की खस्ता हालत के चलते वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सका था, लेकिन उस का सपना ज्यादा पैसा कमा कर बड़ा आदमी बनने का था.

फैक्टरी में लंच टाइम हो गया था. सेवकराम सड़क के किनारे बने ढाबे पर खाना खा रहा था. उस के सामने अखबार रखा था. उस के एक पन्ने पर छपे एक इश्तिहार पर उस की निगाह टिक गई.

इश्तिहार बड़ा मजेदार था. उस में नए नौजवानों को मौजमस्ती वाले काम करने के एवज में 20-25 हजार रुपए हर महीने की कमाई लिखी गई थी.

सेवकराम मन ही मन हिसाब लगाने लगा. इस तरह तो वह 5 साल तक भी दिल लगा कर काम करेगा, तो 8-10 लाख रुपए आराम से कमा लेगा.

इश्तिहार में लिखा था कि भारत के मशहूर मसाज पार्लर को जवान लड़कों की जरूरत है, जो विदेशी व भारतीय रईस औरतों की मसाज कर सकें. अच्छा काम करने वाले को विदेशों के लिए भी बुक किया जा सकता है.

इतना पढ़ते ही सेवकराम की आंखों के सामने रेशमी जुल्फें लहराती गोरे गुलाबी तराशे बदन वाली गोरीगोरी विदेशी औरतें उभर आईं, जिन्हें कभी पत्रिकाओं में, फोटो में या फिल्मों में देखा था. अगर उसे काम मिल गया, तो ऐसी खूबसूरत हसीनाओं के तराशे गए बदन उस की बांहों में होंगे.

ऐसे में तो उस की जिंदगी संवर जाएगी. फैक्टरी में सारा दिन जान खपाने के बाद उसे 3 हजार रुपए से ज्यादा नहीं मिल पाते. मिल मालिक हर समय काम कम होने का रोना रोता रहता है.

सेवकराम ने उसी समय इश्तिहार के नीचे लिखा मोबाइल नंबर नोट किया और तुरंत फैक्टरी की नौकरी छोड़ने का मन बना लिया.

सेवकराम सीधा दफ्तर गया और बुखार होने का बहाना बना कर 3 दिन की छुट्टी ले ली. इस के बाद वह बाजार गया. वहां पर उस ने 2 जोड़ी नए कपडे़ और जूते खरीदे. वह जब बड़े घरानों की औरतों के सामने जाएगा, तो उस के कपड़े भी अच्छे होने चाहिए.

सेवकराम शाम तक सपनों में डूबा बाजार में घूमता रहा. उस का कमरे पर जाने को मन नहीं हो रहा था. रात का खाना भी उस ने बाहर ढाबे पर ही खाया. वह देर रात कमरे पर गया.

कमरे में 4-5 आदमी एकसाथ रहते थे. उस के तमाम साथी सो गए थे. वह भी अपनी चारपाई पर लेट गया. उस ने अपने साथ वाले लोगों का जायजा लिया कि गहरी नींद में सो गए हैं या नहीं. जब उसे तसल्ली हो गई, तो उस ने इश्तिहार वाला फोन नंबर मिलाया और बात की.

दूसरी तरफ से किसी लड़की की उखड़े हुए लहजे में आवाज गूंजी, ‘इतनी रात गुजरे कौन बेवकूफ बोल रहा है? तुम्हें जरा भी अक्ल नहीं है क्या? सुबह तो होने दी होती… क्या परेशानी है?’

‘‘मैडमजी, माफ करना. मैं एक परदेशी हूं. हम एक कमरे में 4-5 लोग रहते हैं. मैं आप से चोरीछिपे बात करना चाहता था, इसलिए उन के सोने का इंतजार करता रहा. मैं ने आप का इश्तिहार अखबार में पढ़ा था. मैं आप के मसाज पार्लर में काम करना चाहता हूं. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’

सेवकराम ने बेहद नरम लहजे में कहा था. इस से दूसरी तरफ से बोल रही लड़की की आवाज में भी मिठास आ गई थी.

‘ठीक है, तुम ने हमारा इश्तिहार पढ़ा होगा. हमारे मसाज पार्लर की कई जवान औरतें, लड़कियां हमारी ग्राहक हैं, जिन की मसाज के लिए हमें जवान लड़कों की जरूरत रहती है. तुम बताओ कि

मर्दों की मसाज करोगे या जवान औरतों की?’

यह सुनते ही सेवकराम रोमांचित हो उठा. उसे तो ऐसा महूसस हुआ, जैसे उसे नौकरी मिल गई है. उस की आवाज में जोश भर उठा. वह शरमाते हुए बोला, ‘‘मैडमजी, मेरी उम्र 30 साल है. मुझे जवान औरतों की मसाज करना अच्छा लगता है. मैं अपना काम मेहनत और ईमानदारी से करूंगा.’’

‘ठीक है, तुम्हें काम मिल जाएगा. बस, इतना ध्यान रखना होगा कि उस समय कोई शरारत नहीं होनी चाहिए, वरना नौकरी से निकाल दिए जाओगे,’ दूसरी तरफ से बेहद सैक्सी अंदाज में जानबूझ कर चेतावनी दी गई, तो सेवकराम रोमांटिक होते हुए बोला, ‘‘जी, मैं अपना काम समझ कर करूंगा. मेरे मन में उन के लिए कोई गलत भावना नहीं आएगी.’’

‘ठीक है, तुम्हारा नाम मैं रजिस्टर में लिख लेती हूं. कल दिन में तुम करिश्मा बैंक में 10 हजार रुपए हमारे खाते में जमा करा दो. रुपए जमा होते ही तुम्हारा एक पहचानपत्र भी बनाया जाएगा. जिसे दिखा कर तुम देश के किसी भी शहर में काम के लिए जा सकते हो,’ उधर से निर्देश दिया गया.

यह सुन कर सेवकराम कुछ परेशान हो गया और बोला, ‘‘मैडमजी, 10 हजार रुपए तो कुछ ज्यादा हैं.’’

‘ठीक है, फिर हम तुम्हारा पहचानपत्र नहीं बनाएंगे. अगर तुम्हें पुलिस ने पकड़ लिया, तो क्या जेल जाना पसंद करोगे?’

‘‘क्या ऐसा भी हो जाता है मैडमजी?’’ सेवकराम ने थोड़ा घबराते हुए पूछा.

‘ऐसा हो जाता है सेवकरामजी. ये परदे में करने वाले काम हैं. पुलिस पकड़ लेती है. बोलो, क्या तुम पुलिस के चक्कर में फंसना चाहते हो?’

‘‘ठीक है मैडमजी, मैं कल ही 10 हजार रुपए जमा करा दूंगा. बस, आप मेरा पहचानपत्र बनवा कर तुरंत काम पर बुलाइए. मैं ज्यादा दिन बेरोजगार नहीं रह सकता,’’ सेवकराम ने कहा, तो फोन कट गया.

उस रात सेवकराम सो नहीं सका. उस के दिलोदिमाग में खूबसूरत, जवान औरतों के दिल घायल करते हुए जिस्मों के सपने छाए रहे. सारी रात ऐसे ही गुजर गई.

अगले दिन सेवकराम सीधे बैंक पहुंचा और अपनी पासबुक से 20 हजार रुपए निकाले. 10 हजार रुपए तो उस ने रात फोन पर बताए गए खाते में जमा करा दिए और बाकी के 10 हजार रुपए अपने खर्चे के लिए रख लिए. अब वह लाखों रुपए कमाएगा.

सेवकराम को तो अब मसाज पार्लर के दफ्तर से फोन आने का इंतजार था. इसी इंतजार में 4-5 दिन गुजर गए, मगर उस औरत का फोन नहीं आया.

सेवकराम को अब बेचैनी होना शुरू हो गई. उस ने 10 हजार नकद खाते में जमा कराए थे. इंतजार की घडि़यां काटनी मुश्किल होती हैं, फिर भी उस ने 7 दिनों तक इंतजार किया.

आखिर में सेवकराम ने ही फोन कर के पूछा, तो दूसरी तरफ से किसी औरत की आवाज गूंजी, मगर वह आवाज पहले वाली नहीं थी. उस के बात करने का लहजा जरा कड़क और गंभीर था.

‘‘क्या बात है मैडमजी, मुझे 10 हजार रुपए आप के खाते में जमा कराए 7-8 दिन गुजर गए हैं. अभी मेरा परिचयपत्र भी नहीं मिला है. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’

‘आप बेफिक्र रहें. आप का परिचयपत्र तैयार है. हमारी मसाज पार्लर कमेटी ने एक टीम बनाई है, जिस में आप का नाम भी शामिल है. इस टीम को विदेशों में भेजा जाएगा.’

सेवकराम खुशी से उछल पड़ा. वह चहकते हुए बोला, ‘‘मैडमजी, जल्दी से टीम को काम दिलाओ. विदेश में तो काम करने के डौलर मिलेंगे न?’’

‘हां, वहां से तो तुम लोगों की पेमेंट डौलरों में होगी,’ औरत ने बताया, तो थोड़ी देर के लिए सेवकराम सीने पर हाथ रख कर हिसाब लगाता रहा. आंखों के सामने नोटों के बंडल चमकते रहे. अपनी बेताबी जाहिर करते हुए उस ने पूछा, ‘‘अब देर क्यों की जा रही है?

हम तो काम के लिए कहीं भी जाने को तैयार हैं.’’

‘आप सब के परिचयपत्र मंजूरी के लिए विदेश मंत्रालय भेजे जाने हैं. अगर भारत सरकार से मंजूरी मिल गई, तो तुम लोग किसी भी देश में बेधड़क हो कर काम कर सकते हो, मगर भारत सरकार की मंजूरी दिलाने के लिए 20 हजार रुपए का खर्चा आएगा. आप को 20 हजार रुपए उसी खाते में जमा कराने होंगे.’

‘‘मैडमजी, इतनी बड़ी रकम तो बहुत ज्यादा है. हम तो गरीब आदमी हैं,’’ सेवकराम की तो मानो हवा निकल गई थी. उस का जोश ढीला पड़ने लगा था.

‘हम मानते हैं कि 20 हजार रुपए ज्यादा हैं, मगर यह सोचो कि जब तुम अलगअलग देशों में जाओगे, वहां से वापस आने पर लाखों रुपए ले कर आओगे. सोच लो, अगर विदेश नहीं जाना चाहते हो, तो रहने दो,’ औरत ने दूसरी तरफ से कहा, तो सेवकराम पलभर के लिए खामोश रहा, फिर जल्दी ही वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं 20 हजार रुपए आप के खाते में जमा करा दूंगा. बस, मेरा काम सही होना चाहिए.’’

सेवकराम ने ठंडे दिमाग से सोचा, तो उसे यह काम फायदे का लगा. बेशक, 20 हजार रुपए उस के पास नहीं थे, फिर भी अगर उधार उठा कर लगा देगा, तो बाहर के पहले टूर में लाखों रुपए वारेन्यारे कर देगा, इसलिए 20 हजार रुपए उन के खाते में जमा कराना ही फायदे में रहेगा.

सेवकराम ने इधरउधर से रुपए उधार लिए और उसी खाते में जमा करा दिए. अब वह इंतजार करने लगा. उसे यकीन था कि उसे बुलाया जाएगा.

सेवकराम को इंतजार करतेकरते 10 दिन गुजर गए. सेवकराम के मन में तमाम तरह के खयाल आ रहे थे. वह इस मुगालते में था कि दफ्तर वाले खुद फोन करेंगे. वह महीने भर से काम छोड़ कर बैठा था. जमापूंजी खर्च हो चुकी थी. ऊपर से 20 हजार रुपए का कर्जदार और हो गया था.

काफी इंतजार करने के बाद सेवकराम ने उसी फोन नंबर पर फोन किया, तो मोबाइल बंद मिला. काफी कोशिश करने के बाद भी उस नंबर पर बात नहीं हुई. उस के पैरों तले जमीन खिसक गई.

वह उसी पल उस बैंक में गया, जहां अजनबी खाते में उस ने 30 हजार रुपए जमा कराए थे. वहां से पता चला कि वह खाता वहां से 5 सौ किलोमीटर दूर किसी शहर में किसी बैंक का था. अब उस खाते में महज 4 रुपए कुछ पैसे बाकी थे.

सेवकराम थाने में गया, लेकिन पुलिस ने उस की शिकायत लिखने की जरूरत नहीं समझी. थकहार कर वह कमरे पर लौट आया.

विदेशों में जा कर खूबसूरत औरतों की मसाज करने के एवज में लाखों डौलर कमाने के चक्कर में सेवकराम ने अपनी जमापूंजी गंवा दी, साथ ही 20 हजार रुपए का कर्जदार भी हो गया. लालच में वह न तो घर का रहा और न घाट का.

तुम ही चाहिए ममू : राजेश ने किसके लिए कविता लिखी थी

कुछ अपने मिजाज और कुछ हालात की वजह से राजेश बचपन से ही गंभीर और शर्मीला था. कालेज के दिनों में जब उस के दोस्त कैंटीन में बैठ कर लड़कियों को पटाने के लिए तरहतरह के पापड़ बेलते थे, तब वह लाइब्रेरी में बैठ कर किताबें खंगालता रहता था.

ऐसा नहीं था कि राजेश के अंदर जवानी की लहरें हिलोरें नहीं लेती थीं. ख्वाब वह भी देखा करता था. छिपछिप कर लड़कियों को देखने और उन से रसीली बातें करने की ख्वाहिश उसे भी होती थी, मगर वह कभी खुल कर सामने नहीं आया.

कई लड़कियों की खूबसूरती का कायल हो कर राजेश ने प्यारभरी कविताएं लिख डालीं, मगर जब उन्हीं में से कोई सामने आती तो वह सिर झुका कर आगे बढ़ जाता था. शर्मीले मिजाज की वजह से कालेज की दबंग लड़कियों ने उसे ‘ब्रह्मचारी’ नाम दे दिया था.

कालेज से निकलने के बाद जब राजेश नौकरी करने लगा तो वहां भी लड़कियों के बीच काम करने का मौका मिला. उन के लिए भी उस के मन में प्यार पनपता था, लेकिन अपनी चाहत को जाहिर करने के बजाय वह उसे डायरी में दर्ज कर देता था. औफिस में भी राजेश की इमेज कालेज के दिनों वाली ही बनी रही.

शायद औरत से राजेश का सीधा सामना कभी न हो पाता, अगर ममता उस की जिंदगी में न आती. उसे वह प्यार से ममू बुलाता था.

जब से राजेश को नौकरी मिली थी, तब से मां उस की शादी के लिए लगातार कोशिशें कर रही थीं. मां की कोशिश आखिरकार ममू के मिलने के साथ खत्म हो गई. राजेश की शादी हो गई. उस की ममू घर में आ गई.

पहली रात को जब आसपड़ोस की भाभियां चुहल करते हुए ममू को राजेश के कमरे तक लाईं तो वह बेहद शरमाई हुई थी. पलंग के एक कोने पर बैठ कर उस ने राजेश को तिरछी नजरों से देखा, लेकिन उस की तीखी नजर का सामना किए बगैर ही राजेश ने अपनी पलकें झुका लीं.

ममू समझ गई कि उस का पति उस से भी ज्यादा नर्वस है. पलंग के कोने से उचक कर वह राजेश के करीब आ गई और उस के सिर को अपनी कोमल हथेली से सहलाते हुए बोली, ‘‘लगता है, हमारी जोड़ी जमेगी नहीं…’’

‘‘क्यों…?’’ राजेश ने भी घबराते हुए पूछा.

‘‘हिसाब उलटा हो गया…’’ उस ने कहा तो राजेश के पैरों तले जमीन खिसक गई. उस ने बेचैन हो कर पूछा, ‘‘ऐसा क्यों कह रही हो ममू… क्या गड़बड़ हो गई?’’

‘‘यह गड़बड़ नहीं तो और क्या है? कुदरत ने तुम्हारे अंदर लड़कियों वाली शर्म भर दी और मेरे अंदर लड़कों वाली बेशर्मी…’’ कहते हुए ममू ने राजेश का माथा चूम लिया.

ममू के इस मजाक पर राजेश ने उसे अपनी बांहों में भर कर सीने से लगा लिया.

ख्वाबों में राजेश ने औरत को जिस रूप में देखा था, ममू उस से कई गुना बेहतर निकली. अब वह एक पल के लिए भी ममू को अपनी नजरों से ओझल होते नहीं देख सकता था.

हनीमून मना कर जब वे दोनों नैनीताल से घर लौटे तो ममू ने सुझाव दे डाला, ‘‘प्यारमनुहार बहुत हो चुका… अब औफिस जाना शुरू कर दो.’’

उस समय राजेश को ममू की बात हजम नहीं हुई. उस ने ममू की पीठ सहलाते हुए कहा, ‘‘नौकरी तो हमेशा करनी है ममू… ये दिन फिर लौट कर नहीं आएंगे. मैं छुट्टियां बढ़वा रहा हूं.’’

‘‘छुट्टियां बढ़ा कर क्या करोगे? हफ्तेभर बाद तो प्रमोशन के लिए तुम्हारा इंटरव्यू होना है,’’ ममू ने त्योरियां चढ़ा कर कहा.

ममू को सचाई बताते हुए राजेश ने कहा, ‘‘इंटरव्यू तो नाम का है डार्लिंग. मुझ से सीनियर कई लोग अभी प्रमोशन की लाइन में खड़े हैं… ऐसे में मेरा नंबर कहां आ पाएगा?’’

‘‘तुम सुधरोगे नहीं…’’ कह कर ममू राजेश का हाथ झिड़क कर चली गई.

अगली सुबह मां ने राजेश को एक अजीब सा फैसला सुना डाला, ‘‘ममता को यहां 20 दिन हो चुके हैं. नई बहू को पहली बार ससुराल में इतने दिन नहीं रखा करते. तू कल ही इसे मायके छोड़ कर आ.’’

मां से तो राजेश कुछ नहीं कह सका, लेकिन ममू को उस ने अपनी हालत बता दी, ‘‘मैं अब एक पल भी तुम से दूर नहीं रह सकता ममू. मेरे लिए कुछ दिन रुक जाओ, प्लीज…’’

‘‘जिस घर में मैं 23 साल बिता चुकी हूं, उस घर को इतनी जल्दी कैसे भूल जाऊं?’’ कहते हुए ममू की आंखें भर आईं.

राजेश को इस बात का काफी दुख हुआ कि ममू ने उस के दिल में उमड़ते प्यार को दरकिनार कर अपने मायके को ज्यादा तरजीह दी, लेकिन मजबूरी में उसे ममू की बात माननी पड़ी और वह उसे उस के मायके छोड़ आया.

ममू के जाते ही राजेश के दिन उदास और रातें सूनी हो गईं. घर में फालतू बैठ कर राजेश क्या करता, इसलिए वह औफिस जाने लगा.

कुछ ही दिन बाद प्रमोशन के लिए राजेश का इंटरव्यू हुआ. वह जानता था कि यह सब नाम का है, फिर भी अपनी तरफ से उस ने इंटरव्यू बोर्ड को खुश करने की पूरी कोशिश की.

2 हफ्ते बाद ममू मायके से लौट आई और तभी नतीजा भी आ गया.

लिस्ट में अपना नाम देख कर राजेश खुशी से उछल पड़ा. दफ्तर में उस के सीनियर भी परेशान हो उठे कि उन को छोड़ कर राजेश का प्रमोशन कैसे हो गया.

उन्होंने तहकीकात कराई तो पता चला कि इंटरव्यू में राजेश के नंबर उस के सीनियर सहकर्मियों के बराबर थे. इस हिसाब से राजेश के बजाय उन्हीं में से किसी एक का प्रमोशन होना था, मगर जब छुट्टियों के पैमाने पर परख की गई तो उन्होंने राजेश से ज्यादा छुट्टियां ली थीं. इंटरव्यू में राजेश को इसी बात का फायदा मिला था.

अगर ममू 2 हफ्ते पहले मायके न गई होती तो राजेश छुट्टी पर ही चल रहा होता और इंटरव्यू के लिए तैयारी भी न कर पाता. अचानक मिला यह प्रमोशन राजेश के कैरियर की एक अहम कामयाबी थी. इस बात को ले कर वह बहुत खुश था.

उस शाम घर पहुंच कर राजेश को ममू की गहरी समझ का ठोस सुबूत मिला.

मां ने बताया कि मायके की याद तो ममू का बहाना था. उस ने जानबूझ कर मां से मशवरा कर के मायके जाने का मन बनाया था ताकि वह इंटरव्यू के लिए तैयारी कर सके.

सचाई जान कर राजेश ममू से मिलने को बेताब हो उठा. अपने कमरे में दाखिल होते ही वह हैरान रह गया. ममू दुलहन की तरह सजधज कर बिस्तर पर बैठी थी. राजेश ने लपक कर उसे अपने सीने से लगा लिया. उस की हथेलियां ममू की कोमल पीठ को सहला रही थीं.

ममू कह रही थी, ‘‘माफ करना… मैं ने तुम्हें बहुत तड़पाया. मगर यह जरूरी था, तुम्हारी और मेरी तरक्की के लिए. क्या तुम से दूर रह कर मैं खुश रही? मायके में चौबीसों घंटे मैं तुम्हारी यादों में खोई रही. मैं भी तड़पती रही, लेकिन इस तड़प में भी एक मजा था. मुझे पता था कि अगर मैं तुम्हारे साथ रहती तो तुम जरूर छुट्टी लेते और कभी भी मन लगा कर इंटरव्यू की तैयारी नहीं करते.’’

राजेश कुछ नहीं बोला बस एकटक अपनी ममू को देखता रहा.

ममू ने राजेश को अपनी बांहों में लेते हुए चुहल की, ‘‘अब बोलो, मुझ जैसी कठोर बीवी पा कर तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’’

‘‘तुम को पा कर तो मैं निहाल हो गया हूं ममू…’’ राजेश अभी बोल ही रहा था कि ममू ने ट्यूबलाइट का स्विच औफ करते हुए कहा, ‘‘बहुत हो चुकी तारीफ… अब कुछ और…’’

ममू शरारत पर उतर आई. कमरा नाइट लैंप की हलकी रोशनी से भर उठा और ममू राजेश की बांहों में खो गई, एक नई सुबह आने तक.

रिश्ते का सम्मान : क्या हुआ था राशि और दौलत के साथ

दौलत और राशि को आदर्श पतिपत्नी का खिताब महल्ले में ही नहीं, उस के रिश्तेदारों और मित्रों से भी प्राप्त है. 3 साल पहले रुचि के पैदा होने पर डाक्टर ने साफ शब्दों में बता दिया था कि आगे राशि मां तो बन सकती है पर उसे और उस के गर्भस्थ शिशु दोनों को जीवन का खतरा रहेगा, इसलिए अच्छा हो कि वे अब संतान की इच्छा त्याग दें.

माहवारी समय से न आने पर कहीं गर्भ न ठहर जाए यह सोच कर राशि सशंकित हो चली कि आदर्श पतिपत्नी से आखिर चूक हो ही गई. अपनी शंका राशि ने दौलत के सामने रखी तो वह भी सशंकित हुए बिना नहीं रहा. झट से राशि को डाक्टर के पास ले जा कर दौलत ने अपना भय बता दिया, ‘‘डाक्टर साहब, आप तो जानते ही हैं कि राशि के गर्भवती होने से मांबच्चा दोनों को खतरा है, आप की सलाह के खिलाफ हम से चूक हो गई. इस खतरे को अभी क्यों न खत्म कर दिया जाए?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं? 10 दिन बाद आ जाना,’’ डाक्टर ने समझाते हुए कहा.

रास्ते में राशि ने दौलत से कहा, ‘‘सुनो, यह बेटा भी तो हो सकता है…तो क्यों न खतरे भरे इस जुए में एक पांसा फेंक कर देखा जाए? संभव है कि दैहिक परिवर्तनों के चलते शारीरिक कमियों की भरपाई हो जाए और हम खतरे से बच जाएं.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो,’’ दौलत बोला, ‘‘सोचो कि…एक लालच में कितना बड़ा खतरा उठाना पड़ सकता है. नहीं, मैं तुम्हारी बात नहीं मान सकता. इतना बड़ा जोखिम…नहीं, तुम्हें खो कर मैं अधूरा जीवन नहीं जी सकता.’’

राशि चुप रह गई. वह नहीं चाहती थी कि पति की बात को ठुकरा कर उसे नाराज करे या कोई जोखिम ले कर पति को दुख पहुंचाए.

10 दिन बाद दौलत ने राशि को डाक्टर के पास चलने को कहा तो उस ने अपनी असहमति के साथ कहा, ‘‘गर्भपात तो 3 माह तक भी हो जाता है. 3 माह तक हम यह तो समझ सकते हैं कि कोई परेशानी होती है या नहीं. जरा सी भी परेशानी होगी तो मैं तुम्हारी बात नहीं टालूंगी.’’

‘‘जाने दो, मैं भी छोटी सी बात भूल गया था कि यह गर्भ और खतरे तुम्हारी देह में हैं, तुम्हारे लिए हैं. मैं कौन होता हूं तुम्हारी देह के भीतर के फैसलों में हस्तक्षेप करने वाला?’’ निराश मन से कहता हुआ वह कार्यालय चला गया.

शाम को कार्यालय से दौलत घर जल्दी पहुंच गया और बिना कुछ बोले सोफे में धंस कर बैठ गया. यह देख राशि बगल में बैठती हुई बोली, ‘‘तुम्हारा मन ठीक नहीं है. नाहक परेशान हो. अभी डेढ़दो माह तुम्हें गंवारा नहीं है तो चलो, सफाई करवा लेती हूं. बस…अब तो खुश हो जाओ प्यारे…यह तुच्छ बात क्या, मैं तो आप के एक इशारे पर जान देने को तैयार हूं,’’ कहते हुए राशि ने दौलत की गोदी में सिर औंधा कर उस की कमर में बांहें डाल कर उसे कस लिया.

दौलत को लगा कि राशि उसे अनमना नहीं देख सकती, इसीलिए वह उस के फैसले को महत्त्व दे रही है. वह आपादमस्तक न्योछावर है तो उस के प्रति कुछ अहम दायित्व उस के भी बनते हैं और ऐसे दायित्वों की राशि सस्नेह उस से उम्मीद भी करती होगी. कहते भी हैं कि एक कदम पत्नी चले तो पति को दो कदम चलना चाहिए. मतलब यह कि राशि की सहमति पर अपनी ‘हां’ का ठप्पा लगा कर खतरे की प्रतीक्षा करे. पर वह किस विश्वास पर एक डाक्टर की जांच को हाशिए में डाल कर भाग्यवादी बन जाए? मस्तिष्क में एक के बाद एक सवाल पानी के बुलबुले की तरह बनते व बिगड़ते रहे. अंत में विचारों के मंथन के बाद दौलत ने पत्नी की प्रार्थना मान ली और दोनों एकदूसरे में सिमट गए.

आखिर डाक्टर की देखरेख में गर्भस्थ शिशु का 9वां महीना चल रहा था. राशि को किसी की मदद की आवश्यकता महसूस हुई तो उस ने अपनी मौसेरी बहन माला को बुलवाने के लिए कहा. फोन पर बात की, मौसी मान ही नहीं गईं, माला को राशि के हाथ सौंप कर वापस भी चली गईं.

दिन करीब आते देख राशि और दौलत एकदेह नहीं हो सकते थे. देहाग्नि दौलत को जैसे राख किए जा रही थी. बारबार ‘जीजाजी’ कह कर दौलत से सट कर माला का उठनाबैठना राशि को इस बात का संकेत दे रहा था कि कहीं वह नादान लड़की बहक गई तो? या फिर दौलत बहक गया तो?

राशि का संदेह तब मजबूत हो चला जब अगली सुबह माला न तो समय से उठी, न ही उस ने चायनाश्ते का ध्यान रखा. राशि ने दौलत को अपने बिस्तर पर नहीं देखा तो वह माला के कमरे में गई जो अकेली सो रही थी. रसोई में देखा तो दौलत टोस्ट और चाय तैयार कर रहा था.

आहट पा कर दौलत अधबुझी राशि को देख चौंक कर बोला, ‘‘अरे, तुम ने ब्रश किया कि नहीं?’’ उस के गाल पर चुंबन की छाप छोड़ते हुए फिर बोला, ‘‘मैं ने सोचा, आज मैं ही कुछ बना कर देखूं. पहले हम दोनों मिल कर सबकुछ बना लेते थे पर अब मेरी आदत छूट गई है. तुम्हारी वजह से मैं पक्का आलसी हो गया हूं. जाओ, कुल्ला करो और मैं चाय ले कर आता हूं.’’

‘‘मैं तो यह देख रही थी कि रुचि स्कूल के लिए लेट हो रही है और घर में आज सभी घोड़े बेच कर सो रहे हैं. आज रुचि को जगाया नहीं गया,’’ मन का वहम छिपा कर राशि रुचि के स्कूल की बात कह बैठी.

‘‘कल रात को तो बताया था कि आज उस की छुट्टी है, मेरी भुलक्कड़ रानी. कहीं मुझे न भूल जाना. वैसे भी आजकल मुझे बहुत तड़पा रही हो,’’ कहते हुए दौलत राशि को अपनी बांहों में भींच कर लिपट गया.

प्यार करने के लिए लिपटे पतिपत्नी को पता नहीं था कि रसोई में आती माला ने उन्हें लिपटे हुए देख लिया है…वह बाधा डालते हुए बोली थी, ‘‘दीदी, तुम क्यों रसोई में आ गईं? मैं छुट्टी की वजह से आज लेट हो गई.’’

चौंक कर दौलत राशि से अलग छिटक गया और खौल रही चाय में व्यस्त हो कर बोला, ‘‘साली साहिबा, मैं ने सोचा कि आज सभी को बढि़या सी चाय पिलाऊं. चाय तैयार हो तब तक आप रुचि को जगा कर नाश्ते के लिए तैयार कीजिए.’’

माला रुचि को जगाने में लग गई.

सब से पहले चाय माला ने पी और पहली चुस्की के साथ ही ताली बजा कर हंस पड़ी…दौलत झेंप गया. उसे लगा कि कहीं चाय में चीनी की जगह नमक तो नहीं पड़ गया? उस को हंसते देख कर राशि ने चाय का प्याला उठाया और मुंह से लगा कर टेबल पर रखते हुए हंस कर बोली, ‘‘बहुत अच्छी चाय बनी है. रुचि… जरा देख तो चाय पी कर.’’

रुचि ने चाय का स्वाद लिया और वह भी मौसी से चिपट कर हंस पड़ी. बरबस दौलत ने चाय का स्वाद लिया तो बोल पड़ा, ‘‘धत् तेरे की, यह दौलत का बच्चा भी किसी काम का नहीं. इतनी मीठी चाय…’’ उस ने सभी कप उठाए और रसोई की ओर चल दिया.

पीछे से माला रसोई में पहुंची, ‘‘हटिए, जीजाजी, आप जैसी हरीभरी चाय मैं तो फिलहाल नहीं बना पाऊंगी, पर नीरस चाय ही सही, मैं ही बनाती हूं,’’ कह कर माला हंस पड़ी.

दौलत ने सोचा था कि सभी को नाश्ता तैयार कर के सरप्राइज दे. पर पांसे उलटे ही पड़ गए लेकिन जो हुआ अच्छा हुआ. काफी दिनों बाद शक में जी रही राशि आज जी भर कर हंसी तो…

पेट में दर्द के चलते दौलत ने राशि को अस्पताल में भरती करवाया और माला को अस्पताल में रातदिन रुकना पड़ा. दूसरे दिन मौसी आ गई थीं, सो यह काम उन्होंने ले लिया और माला को घर भेज दिया. घर में भोजन की व्यवस्था करतेकरते माला को दौलत के करीब आने व बहकने के मौके मिले. जवान लड़की घर में हो…संगसाथ, एकदूसरे को कुछकुछ छूना और छूने की हद पार कर जाना, फिर अच्छेबुरे से बेपरवाह एक कदम और…बस…एक और कदम ही दौलत और माला के करीब लाया.

दौलत ने और करीब आ कर माला को अपनी बांहों में भींच कर गाल पर चुंबन जड़ दिया. माला लाज से सिहर उठी साथ ही भीतर से दहक गई. दौलत ने भी माला की सिहरन व दहक महसूस की.

दौलत एक बार तो तड़प उठा पर… ‘‘सौरी, मालाजी,’’ कह कर झटके से दूर हो चुका था और कान पकड़ कर माफी मांगने लगा, ‘‘सौरी, अब कभी नहीं. किसी हालत में नहीं. मैं भूल गया था कि हमारे बीच में क्या रिश्ता है,’’ और फिर नजर झुका कर वह बाहर चला गया था.

मर्द का स्पर्श पा कर देह के भीतर स्वर्गिक एहसास से माला तड़प गई थी, शायद कुछ अधूरा रह गया था जो अब पूरा न हुआ तो वह बराबर छटपटाती रहेगी. काश, यह अधूरापन समाप्त हो जाए. काश, एक कदम और…

उस एक कदम और…के परिणाम अब माला की सोच के बाहर थे. उस को दुनियादारी की चिंता नहीं रही. उसे सुधबुध थी तो सिर्फ यह कि यह अधूरापन अब वह नहीं सह पाएगी. अब उसे हर कीमत पर दौलत का स्पर्श चाहिए. भले ही उसे कई मौत मरना पड़े. वह तकिए को वक्ष के नीचे भींच कर पलंग पर औंधी पड़ी छटपटाती रही.

अस्पताल की कैंटीन में मौसी को लंच करवा कर दौलत काफी देर रुका. डाक्टर ने तो सब सामान्य बताया, इसलिए उस की खुशी का ठिकाना न था. अगले दिन आपरेशन की तारीख थी. आपरेशन को ले कर दौलत व राशि संदेहजनक स्थिति से गुजर रहे थे.

रात को घर आ कर दौलत रुचि और माला के साथ खाना खा कर अपने कमरे में सोने की कोशिश कर रहा था और माला अपने कमरे में. दौलत सोच रहा था कि माला ने आपत्ति नहीं जताई तो क्या…पर अब वह उस के लिए सम्माननीय व्यक्ति नहीं रहा. अपने ही घर में उसे माला जैसी मेहमान की इज्जत के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए थी. हर अगले कदम के भलेबुरे के बारे में उसे अवश्य सोच लेना चाहिए.

मुश्किल से दौलत को उनींदी हालत में रात काटनी पड़ी. पुरुष हो कर इतना भलाबुरा सोच ले तो वह वाकई पुरुष है. बहक कर संभल चुके पुरुष को चट्टान समझ कर उलटे पांव वापस लौट जाए वही समझदार स्त्री है. जमीर सभी का सच बोलता है, परंतु उस जमीर के सच को सुनने वाले दौलत जैसे पुरुष विरले ही होते हैं.

माला तो करवटें बदलबदल कर अपने गदराए यौवन को दौलत के हाथ सौंपना चाहती थी पर कैसे? क्या यह संभव था? दौलत माफी मांग कर माला से नजदीकी समाप्त कर चुका है. परंतु माला में एक ही चाहत पल रही थी कि वह अपना सबकुछ दौलत को सौंप दे.

माला अब अपनी देह की दास थी. छटपटा कर वह कब उठ कर कमरे से निकली और कब दौलत की चादर में धीरे से घुस कर लेट गई, उसे पता ही नहीं चला. पर आहट पाते ही दौलत उठ कर बैड के नीचे उतर कर धीमे स्वर में बोल पड़ा, ‘‘माला, मैं ने तुम से माफी मांगी है. इस माफी का सम्मान करो. मैं तुम्हारे, राशि, रुचि, इस घरौंदे के भविष्य को धोखा नहीं दे सकता. देखो, भूल जब समझ में आ जाए, त्याग देनी चाहिए. तुम जानती हो कि जिस इच्छापूर्ति के लिए तुम पहल कर रही हो, इस से कितनी जिंदगियां बरबाद हो सकती हैं…जिन में एक जिंदगी तुम्हारी भी है? मौसीजी जानेंगी, तब क्या होगा? और राशि जानेगी तो पता है?…वह मर जाएगी जिस की जिम्मेदार तुम भी बनोगी. चलो, अब अपने कमरे में जाओ और मेरी साली साहिबा की तरह बरताव करो. तुम अपनी इस देह को और अपने स्त्रीत्व को अपनी सुहागरात के लिए बचा कर रखो. ऐसी जल्दी न करो कि अपने पति के लिए यह तोहफा गंवा कर अंतिम सांस तक आत्मग्लानि के बोझ से दब कर आनंद न पा सको और न ही पति को दे सको.

‘‘हमारे बीच जीजासाली का रिश्ता है, इस रिश्ते का सम्मान करो. मैं गलत हूं, मैं ने अपना कदम पीछे हटाया तो तुम भी अपने को गलत मान कर अपने कदम पीछे हटा लो. सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहा जाता. मैं भूल कर लौट आया. इसी तरह तुम भी लौट जाओ और अपनी जिंदगी के साथ तमाम जिंदगियों को तबाह होने से बचाओ.’’

माला चुप नहीं रह सकी, वह बोल पड़ी, ‘‘जीजाजी, रिश्तों का मैं क्या करूं? अहम बात तो यह है कि मेरे शरीर में आग आप ने लगाई है, इसे बुझाने के लिए कहां जाऊं? किस घाटी में कूद जाऊं?’’

दौलत ने माला की मंशा को स्पष्ट किया, ‘‘तुम गलत हो, माला.’’

माला जिद कर बोली, ‘‘मैं गलतसही की बात नहीं करती. मैं तो सिर्फ जानती हूं कि आप मुझे मेरी ही देहाग्नि से जला कर राख कर देना चाहते हो. मैं अपनी इस देहाग्नि को बरबाद नहीं होने दूंगी और न ही इसे और ज्यादा छटपटाने दूंगी.’’

‘‘मुझे पता नहीं था कि तुम इतनी जिद्दी और महत्त्वाकांक्षी हो कि अपना तो अपना, सारे परिवार, समाज की हदें पार करने पर तुल जाओगी. क्या तुम्हें समझ में नहीं आ रहा है कि जो तुम करने वाली हो वह कितना बुरा है?’’ दौलत ने समझाने की कोशिश की और उस की बांह पकड़ कर बच्चों की तरह खींच कर उस के कमरे में ले गया और बोला, ‘‘कुछ लाज हो तो यह नादानी छोड़ दो और अच्छी औरत की तरह पेश आओ. जो तुम चाहती हो वह पति के साथ किया जाता है.’’

बात टल गई…पर माला रात भर नहीं सोई. आंखें सूज कर लाल हो गईं और उस के चेहरे पर रंगत की जगह अधूरेपन की बेचैनी झलक रही थी जैसे वह कुछ भी कर सकती है.

अगले दिन आपरेशन की वजह से दौलत अस्पताल में रहा और दोपहर बाद माला भी पहुंच गई. आपरेशन सफलतापूर्वक हो गया और बेहोश राशि बाहर आ गई. कुछ घंटों बाद दौलत बेटे को देख कर खुशी से उछल पड़ा था. इस अवसर पर माला भी नवजात बहनौते को गोदी में ले कर राशि के चेहरे पर तब तक नजर गड़ाए रही जब तक कि उसे यह समझ में नहीं आ गया कि राशि और उस के नवजात शिशु का मासूम चेहरा उस से किस तरह प्यार के हकदार हैं. कुछ पल सोचने के बाद पिछली रात तक उस के मन पर पला ज्वार आंखों के रास्ते बह चला. आंखों में रोशनी लौटी तो माला ने अपने आंसू पोंछ कर नवजात बहनौते को इस प्रकार से चूमा जैसे कह रही हो कि अरे, फूल की पंखुड़ी से बच्चे आज तुझे देख कर मेरा मन भी फूल सा हलका हो गया है.

निर्णय : अफरोज ने क्या माना बड़ों का फैसला

जब से अफरोज ने वक्तव्य दिया था, पूरे महल्ले और बिरादरी में बस, उसी की चर्चा थी. एक ऐसा तूफान था, जो मजहब और शरीअत को बहा ले जाने वाला था. वह जाकिर मियां की चौथे नंबर की संतान थी. 2 लड़के और उस से बड़ी राबिया अपनेअपने घरपरिवार को संभाले हुए थे. हर जिम्मेदारी को उन्होंने अपने अंजाम तक पहुंचा दिया था और अब अफरोज की विदाई के बारे में सोच रहे थे.

लेकिन अचानक उन की पुरसुकून सत्ता का तख्ता हिल उठा था और उस के पहले संबंधी की जमीन पर उन्होंने अपनी नेकनीयती और अक्लमंदी का सुबूत देते हुए वह बीज बोया था, जो अब पेड़ बन कर वक्त की आंधी के थपेड़े झेल रहा था. उन के बड़े भाई एहसान मियां उसी शहर में रहते थे. हिंदुस्तानपाकिस्तान बनने के वक्त हुए दंगों में उन का इंतकाल हो गया था. वह अपने पीछे अपनी बेवा और 1 लड़के को छोड़ गए थे. उस वक्त हारून 8 साल का था. तभी पति के गम ने एहसान मियां की बेवा को चारपाई पकड़ा दी थी.

उन की हालत दिनोंदिन बिगड़ती जा रही थी. उस हालत में भी उन्हें अपनी चिंता नहीं थी. चिंता थी तो हारून की, जो उन के बाद अनाथ हो जाने वाला था. कितनी तमन्नाएं थीं हारून को ले कर उन के दिल में. सब दम तोड़ रही थीं.

उन की बीमारी की खबर पा कर जाकिर मियां खानदान के साथ पहुंच गए थे. उन्हें अपने भाई की असमय मृत्यु का बहुत दुख था. उस दुख से उबर भी नहीं पाए थे कि अब भाभीजान भी साथ छोड़ती नजर आ रही थीं. उन के पलंग के निकट बैठे वह यही सोच रहे थे. तभी उन्हें लगा जैसे भाभीजान कुछ कहना चाह रही हैं. भाभीजान देर तक उन का चेहरा देखती रहीं. वह अपने शरीर की डूबती शक्ति को एकत्र कर के बोलीं, ‘वक्त से पहले सबकुछ खत्म हो गया,’ इतना कहतेकहते वह हांफने लगी थीं. कुछ पल अपनी सांसों पर नियंत्रण करती रहीं, ‘मैं ने कितने सुनहरे सपने देखे थे हारून के भविष्य के, खूब धूमधाम से शादी करूंगी…बच्चे…लेकिन…’

‘आप दिल छोटा क्यों करती हैं. यह सब आप अपने ही हाथों से करेंगी,’ जाकिर मियां ने हिम्मत बढ़ाने की कोशिश की थी. ‘नहीं, अब शायद आखिरी वक्त आ गया है…’ भाभीजान चुप हो कर शून्य में देखती रहीं. फिर वहां मौजूद लोगों में से हर एक के चेहरे पर कुछ ढूंढ़ने का प्रयास करने लगीं.

‘सायरा,’ वह जाकिर मियां की बीवी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली थीं, ‘तुम लोग चाहो तो

मेरे दिल का बोझ हलका कर सकते हो…’ ‘कैसे भाभीजान?’ सायरा ने जल्दी से पूछा था.

‘मेरे हारून का निकाह मेरे सामने अपनी अफरोज से कर सको तो…’ भाभीजान ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया था और आशाभरी नजरों से सायरा को देखने लगी थीं.

सायरा ने जाकिर मियां की तरफ देखा. जैसे पूछ रही हों, तुम्हारी क्या राय है? आखिर आप का भी तो कोई फर्ज है. वैसे भी अफरोज की शादी तो आप को ही करनी होगी. अच्छा है, आसानी से यह काम निबट रहा है. लड़का देखो, खानदान देखो, इन सब झंझटों से नजात भी मिल रही है. ‘इस में सोचने की क्या बात है? हमें तो खुशी है कि आप ने यह रिश्ता मांगा है,’ जाकिर मियां ने सायरा की तरफ देखा, ‘मैं आज ही निकाह की तैयारी करता हूं,’ यह कहते हुए जाकिर मियां उठ खड़े हुए.

वक्त की कमी और भाभीजान की नाजुक हालत देखते हुए अगले दिन ही अफरोज का निकाह हारून से कर दिया गया था. उसी के साथ वक्त ने तेजी से करवट ली थी और भाभीजान धीरेधीरे स्वस्थ होने लगी थीं. वह घटना भी अपने- आप में अनहोनी ही थी.

तब की 6 साल की अफरोज अब समझदार हो चुकी थी. उस ने बी.ए. तक शिक्षा भी पा ली थी. इसी बीच जब उस ने यह जाना था कि बचपन में उस का निकाह अपने ही चचाजाद भाई हारून से कर दिया गया था तो वह उसे सहजता से नहीं ले पाई थी. ‘‘यह भी कोई गुड्डेगुडि़यों का खेल हुआ कि चाहे जैसे और जिस के साथ ब्याह रचा दिया. दोचार दिन की बात नहीं, आखिर पूरी जिंदगी का साथ होता है पतिपत्नी का. मैं जानबूझ कर खुदकुशी नहीं करूंगी. बालिग हूं, मेरी अपनी भी कुछ इच्छाएं हैं, कुछ अरमान हैं,’’ अफरोज ने बारबार सोचा था और विद्रोह कर दिया था.

जब अफरोज के उस विद्रोह की बात उस के अम्मीअब्बा ने जानी थी तो बहुत क्रोधित हुए थे. ‘‘हम से जनमी बेटी हमें ही भलाबुरा समझाने चली है,’’ सायरा ने मां के अधिकार का प्रयोग करते हुए कहा था, ‘‘तुझे ससुराल जाना ही होगा. तू वह निकाह नहीं तोड़ सकती.’’

‘‘क्यों नहीं तोड़ सकती? जब आप लोगों ने मेरा निकाह किया था, तब मैं दूध पीती बच्ची थी. फिर यह निकाह कैसे हुआ?’’ अफरोज ने तत्परता से बोलते हुए अपना पक्ष रखा था. ‘‘शायद तेरी बात सही हो लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि शरीअत के मुताबिक औरत निकाह नहीं तोड़ सकती. हम ने तुझे इसलिए नहीं पढ़ायालिखाया कि तू अपने फैसले खुद करने लगे. आखिर मांबाप किस लिए हैं?’’ सायरा किसी तरह भी हथियार डालने वाली नहीं थी.

‘‘मैं किसी शरीअतवरीअत को नहीं मानती. आप को आज के माहौल में सोचना चाहिए. कैसी मां हैं आप? जानबूझ कर मुझे अंधे कुएं में धकेल रही हैं. लेकिन मैं हरगिज खुदकुशी नहीं करूंगी. चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े. यह मेरा आखिरी फैसला है,’’ अफरोज पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई थी. अफरोज के खुले विद्रोह के आगे मांबाप की एक नहीं चली थी. आखिर उन्हें इस बात पर समझौता करना पड़ा था कि शहर काजी या मुफ्ती से उस निकाह पर फतवा ले लिया जाए.

शाम को उन के घर बिरादरी भर के लोग जमा हो गए थे. हर शख्स मुफ्ती साहब का इंतजार बेचैनी से कर रहा था.

उन्हें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा. कुछ ही देर बाद मुफ्ती साहब के आने की खबर जनानखाने में जा पहुंची थी. इशारे में जाकिर मियां ने कुछ कहा और अफरोज को परदे के पास बैठा दिया गया. दूसरी ओर मरदों के साथ मुफ्ती साहब बैठे थे. मुफ्ती साहब ने खंखारते हुए गला साफ किया. फिर बोले, ‘‘अफरोज वल्द जाकिर हुसैन, यह सही है कि हर लड़की को निकाह कुबूल करने और न करने का हक है, लेकिन उस के लिए कोई पुख्ता वजह होनी चाहिए. तुम बेखौफ हो कर बताओ कि तुम यह निकाह क्यों तोड़ना चाहती हो?’’

वह चुप हो कर अफरोज के जवाब का इंतजार करने लगे. ‘‘मुफ्ती साहब, मुझे यह कहते हुए जरा भी झिझक नहीं महसूस हो रही है कि मेरी अपनी मालूमात

और इला के मुताबिक हारून एक काबिल शौहर बनने लायक आदमी नहीं है. ‘‘उस की कारगुजारियां गलत हैं और बदनामी का बाइस है,’’ वह कुछ पल रुकी फिर बोली, ‘‘बचपन में हुआ यह निकाह मेरे अम्मीअब्बा की नासमझी है. इसे मान कर मैं अपनी जिंदगी में जहर नहीं घोल सकती. बस, मुझे इतना ही कहना है.’’

दोनों तरफ खामोशी छा गई. तभी मुफ्ती साहब बुलंद आवाज में बोले, ‘‘अफरोज के इनकार की वजह काबिलेगौर है. मांबाप की मरजी से किया गया निकाह इस पर जबरन नहीं थोपा जा सकता. निकाह वही जायज है जो पूरे होशहवास में कुबूल किया गया हो. इसलिए यह अपने निकाह को नहीं मानने की हकदार है और अपनी मरजी से दूसरी जगह निकाह करने को आजाद है.’’ मुफ्ती साहब के फतवा देते ही चारों ओर सन्नाटा छा गया था. अपने हक में निर्णय सुन कर, जाने क्यों, अफरोज की आंखों में आंसू आ गए थे.

प्रेम की इबारत : भाग 3

‘‘बडे़ कठोर प्रेमी हैं ये लोग, जिस बेदर्दी से दीवारों पर लिखते हैं, इस से क्या इन का प्रेम अमर हो गया?’’ दीवार के स्वर में अब गुस्सा था.

‘‘ये क्या जानें प्रेम के बारे में?’’ झरोखे ने कहा, ‘‘प्रेम था रानी रूपमती का. गायन व संगीत मिलन, सबकुछ अलौकिक…’’

नर्मदा की पवित्रता की मुसकान उभरी, ‘‘मेरे दर्शनों के बाद रूपमती अपना काम शुरू करती थीं, संगीत की पूजा करती थीं.’’

बिलकुल, या फिर प्रेम का बावलापन देखा है तो मैं ने उस लड़की की काली आंखों में, उस के मुसकराते हुए होंठों में’’, हवा बोली, ‘‘मैं ने कई बार उस के चंदन से शीतल, सांवले शरीर का स्पर्श किया है. मेरे स्पर्श से वह उसी तरह सिहर उठती है जिस तरह पराग के छूने से.’’

चांदनी की किरणों में हलचल होती देख कर हवा ने पूछा, ‘‘कुछ कहोगी?’’

‘‘नहीं, मैं सिर्फ महसूस कर रही हूं उस लड़की व पराग के प्रेम को,’’ किरणों ने कहा.

‘‘मैं ने छेड़ा है पराग के कत्थई रेशमी बालों को,’’ हवा ने कहा, ‘‘उस के कत्थई बालों मेें मैं ने मदहोश करने वाली खुशबू भी महसूस की है. कितनी खुशनसीब है वह लड़की, जिसे पराग स्पर्श करता है, उस से बातें करता है धीमेधीमे कही गई उस की बातों को मैं ने सुना है…देखती रहती हूं घंटों तक उन का मिलन. कभी छेड़ने का मन हुआ तो अपनी गति को बढ़ा कर उन दोनों को परेशान कर देती हूं.’’

‘‘सितार के उस के रियाज को मैं भी सुनता रहता हूं. कभी घंटों तक वह खोया रहेगा रियाज में, तो कभी डूबने लगेगा उस लड़की की काली आंखों के जाल में,’’ झरोखा चुप कब रहने वाला था, बोल पड़ा.

ताड़ के पेड़ों की हिलती परछाइयों से इन की बातचीत को विराम मिला. एक पल के लिए वे खामोश हुए फिर शुरू हो गए, लेकिन अब सोया हुआ जीवन धीरे से जागने लगा था. पक्षियों ने अंगड़ाई लेने की तैयारी शुरू कर दी थी.

दीवार, झरोखा, पर्यटकों के कदमों की आहटों को सुन कर खामोश हो चले थे.

दिन का उजाला अब रात के सूनेपन की ओर बढ़ रहा था. दीवार, झरोखा, हवा, किरण आदि वह सब सुनने को उत्सुक थे, जो नर्मदा की पवित्रता उन से कहने वाली थी पर उस रात कह नहीं पाई थी. वे इंतजार कर रहे थे कि कहीं से एक अलग तरह की खुशबू उन्हें आती लगी. सभी समझ गए कि नर्मदा की पवित्रता आ गई है. कुछ पल में ही नर्मदा की पवित्रता अपने धवल वेश में मौजूद थी. उस के आने भर से ही एक आभा सी चारों तरफ बिखर गई.

‘‘मेरा आप सब इंतजार कर रहे थे न,’’ पवित्रता की उज्ज्वल मुसकान उभरी.

‘‘हां, बिलकुल सही कहा तुम ने,’’ दीवार की मधुर आवाज गूंजी.

उन की जिज्ञासा को शांत करने के लिए पवित्रता ने धीमे स्वर में कहा.

‘‘क्या तुम सब को नहीं लगता कि महल के इस हिस्से में अभी कहीं से पायल की आवाज गूंज उठेगी, कहीं से कोई धीमे स्वर में राग बसंत गा उठेगा. कहीं से तबले की थाप की आवाज सुनाई दे जाएगी.’’

‘‘हां, लगता है,’’ हवा ने अपनी गति को धीमा कर कहा.

‘‘यहां, इसी महल में गूंजती थी रानी रूपमती की पायलों की आवाज, उस के घुंघरुओं की मधुर ध्वनि, उस की चूडि़यों की खनक, उस के कपड़ों की सरसराहट,’’ नर्मदा की पवित्रता के शब्दों ने जैसे सब को बांध लिया.

‘‘महल के हर कोने में बसती थी वीणा की झंकार, उस के साथ कोकिलकंठी  रानी के गायन की सम्मोहित कर देने वाली स्वर लहरियां… जब कभी बाजबहादुर और रानी रूपमती के गायन और संगीत का समय होता था तो वह पल वाकई अद्भुत होते थे. ऐसा लगता था कि प्रकृति स्वयं इस मिलन को देखने के लिए थम सी गई हो.

‘‘रूपमती की आंखों की निर्मलता और उस के चेहरे का वह भोलापन कम ही देखने को मिलता है. बाजबहादुर के प्रेम का वह सुरूर, जिस में रानी अंतर तक भीगी हुई थी, बिरलों को ही नसीब होता है ऐसा प्रेम…’’

‘‘उन की छेड़छाड़, उन का मिलन, संगीत के स्वरों में उन का खो जाना, वाकई एक अनुभूति थी और मैं ने उसे महसूस किया था.

‘‘मुझे आज भी ऐसा लगता है कि झील में कोई छाया दिख जाएगी और एहसास दिला जाएगी अपने होने का कि प्रेम कभी मरता नहीं. रूप बदल लेता है समय के साथ…’’

‘‘हां, बिलकुल यही सब देखा है मैं ने पराग के मतवाले प्रेम में, उस की रियाज करती उंगलियों में, उस के तराशे हुए अधरों में,’’ झरोखे ने चुप्पी तोड़ी.

‘‘गूंजती है जब सितार की आवाज तो मांडव की हवाओं में तैरने लगते हैं उस सांवली लड़की के प्रेम स्वर, वह देखती रहती है अपलक उस मासूम और भोले चेहरे को, जो डूबा रहता है अपने सितार के रियाज में,’’ दीवार की मधुर आवाज गूंजी.

‘‘कितना सुंदर लगता था बाजबहादुर, जब वह वीणा ले कर हाथों में बैठता था और रानी रूपमती उसे निहारती थी. कितना अलौकिक दृश्य होता था,’’ नर्मदा की पवित्रता ने बात आगे बढ़ाई.

इस महान प्रेमी को युद्ध और उस के नगाड़ों, तलवारों की आवाजों से कोई मतलब नहीं था, मतलब था तो प्रेम से, संगीत से. बाज बहादुर ने युद्ध कौशल में जरा भी रुचि नहीं ली, खोया रहा वह रानी रूपमती के प्रेम की निर्मल छांह में, वीणा की झंकार में, संगीत के सातों सुरों में.

‘‘ऐसे कलाकार और महान प्रेमी से आदम खान ने मांडव बड़ी आसानी से जीत लिया, फिर शुरू हुई आदम खान की बर्बरता इन 2 महान प्रेमियों के प्रति…’’

‘‘कितने कठोर होंगे वे दिल जिन्होंने इन 2 संगीत प्रेमियों को भी नहीं छोड़ा,’’ हवा ने अपनी गति को बिलकुल रोक लिया.

‘‘हां, वह समय कितना भारी गुजरा होगा रानी पर, बाज बहादुर पर. कितनी पीड़ा हुई होगी रानी को,’’ नर्मदा की पवित्रता बोली, ‘‘रानी इसी महल के कक्ष में फूटफूट कर रोई थीं.’’

‘‘आदम खान रानी के प्रस्ताव से सहमत नहीं हुआ. रानी का कहना था कि वह एक राजपूत हिंदू कन्या है. उस की इज्जत बख्शी जाए…आदम खान ने मांडव जीता पर नहीं जीत पाया रानी के हृदय को, जिस में बसा था संगीत के सुरों का मेल और बाज बहादुर का पे्रम.

‘‘जब आदम खान नियत समय पर रानी से मिलने गया तो उस ने रूपमती को मृत पाया. रानी ने जहर खा कर अमर कर दिया अपने को, अपने प्रेम को, अपने संगीत को.’’

‘‘हां, केवल शरीर ही तो नष्ट होता है, पर प्रेम कभी मरा है क्या?’’ झरोखा अपनी धीमी आवाज में बोला.

तभी दीवार की धीमी आवाज ने वहां छाने लगी खामोशी को भंग किया, ‘‘हर जगह मुझे महसूस होती है रानी की मौजूदगी, कितना कठोर होता है यह समय, जो गुजरता रहता है अपनी रफ्तार से.’’

‘‘पराग, वह लंबा लड़का, जो रियाज करने आता है और उस के साथ आती है वह सुंदर आंखों वाली लड़की. मैं ने उस की बोलती आंखों के भीतर एक मूक दर्द को देखा है. वह कहती कुछ नहीं, न ही उस लड़के से कुछ मांगती है. बस, अपने प्रेम को फलते हुए देखना चाहती है,’’ झरोखा बोला.

‘‘हां, बिलकुल सही कह रहे हो. प्रेम की तड़प और इंतजार की कसक जो उस के अंदर समाई है वह मैं ने महसूस की है,’’ हवा ने अपने पंख फैलाए और अपनी गति को बढ़ाते हुए कहा, ‘‘उस के घंटों रियाज में डूबे रहने पर भी लड़की के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती. वह अपलक उसे निहारती है. मैं जब भी पराग के कोमल बालों को बिखेर देती हूं, वह अपनी पतलीपतली उंगलियों से उन को संवार कर उस के रियाज को निरंतर चलने देती है.’’

‘‘सच, कितनी सुंदर जोड़ी है. मेरे दामन में कभी इस जोड़ी ने बेदर्दी से अपना नाम नहीं खुरचा. अपनी उदासियों को ले कर जब कभी वह पराग के विशाल सीने में खो जाती है तो दिलासा देता है पराग उस बच्ची सी मासूम सांवली लड़की को कि ऐसे उदास नहीं होते प्रीत…’’ दीवार ने कहा.

‘‘यों ही प्रेम अमर होता है, एक अनोखे और अनजाने आकर्षण से बंधा हुआ अलौकिक प्रेम खामोशी से सफर तय करता है,’’ झरोखा बोला.

हवा ने अपनी गति अधिक तेज की. बोली, ‘‘मैं उसे देखने फिर आऊंगी, समझाऊंगी कि ऐ सुंदर लड़की, उदास मत हो, प्रेम इसी को कहते हैं.’’

खामोशी का साम्राज्य अब थोड़ा मंद पड़ने लगा था, सुबह की किरणों ने दस्तक देनी शुरू जो कर दी थी.

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