फिरौती में पति : भाग 1

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

शाम 7 बजे शिवानी बाजार से घर आई. उस ने सामान वाला थैला कमरे में रखा फिर चारों ओर नजर दौड़ाई. जब उसे छोटा बेटा मृत्युंजय दिखाई नहीं पड़ा, तब उस ने बड़े बेटे से पूछा, ‘‘गोलू, मृत्युंजय कहां है? नजर नहीं आ रहा है. जब मैं बाजार गई थी, तब तुझ से कह कर गई थी कि उस का खयाल रखना. पर तुझे खेलने से फुरसत मिले तब न.’’

गोलू सहम कर बोला, ‘‘मम्मी, तुम्हारे जाने के कुछ देर बाद मृत्युंजय सो गया था. तब मैं दोस्तों के साथ गली में खेलने चला गया था. उस के बाद वह कहां गया, मुझे पता नहीं.’’

3 वर्षीय मासूम मृत्युंजय शिवानी का छोटा बेटा था. उसे घर से नदारद पा कर शिवानी घबरा गई. वह घर से बाहर निकली और गली में बेटे को खोजने लगी.

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जब वह गली में कहीं नहीं दिखा, तब शिवानी ने आसपड़ोस के घरों में उस की खोजबीन की, पर उस का कुछ भी पता नहीं चला. उस ने गली के कई दुकानदारों से भी पूछा, पर सभी ने ‘न’ में गरदन हिलाई.

कानपुर के बर्रा क्षेत्र की जिस गली में शिवानी रहती थी, उसी गली के आखिरी मोड़ पर शिवानी की ननद श्यामा रहती थी. शिवानी ने सोचा कि कहीं वह बुआ के घर न चला गया हो. वह तुरंत ननद के घर पहुंची, लेकिन मृत्युंजय वहां भी नहीं था.

फिर ननदभौजाई ने मिल कर कई गलियां छान मारीं, लेकिन मृत्युंजय का पता न चला. शिवानी के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं, मन घबराने लगा था.

शिवानी का पति दुर्गेश सोनी एक स्वीट हाउस में काम करता था. उस समय वह ड्यूटी पर था. शिवानी ने उसे मृत्युंजय के गायब होने की जानकारी देने के लिए अपना फोन ढूंढा, पर उस का मोबाइल गायब था. शिवानी समझ गई कि घर में कोई आया था, जो मृत्युंजय के साथसाथ उस का मोबाइल भी साथ ले गया है.

अब शिवानी की धड़कनें और भी तेज हो गई थीं. उस ने अपने दूसरे मोबाइल फोन से उस फोन नंबर पर काल की जो गायब था, तो वह स्विच्ड औफ था. घबराई शिवानी ने पति को सारी जानकारी दी और तुरंत घर आने को कहा.

अपने मासूम बेटे मृत्युंजय के गायब होने की जानकारी पा कर दुर्गेश घबरा गया. वह तुरंत घर आ गया. उस ने आसपास पूछताछ की लेकिन किसी से उसे कोई सुराग न मिला. उस की चिंता बढ़ गई. उस ने स्कूटर से आसपास की सड़कों और गलियों के चक्कर लगाए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. आखिरकार निराश हो कर वह घर लौट आया.

उस के मन में बारबार सवाल उठ रहा था कि 3 साल का नन्हा सा बच्चा कहां चला जाएगा. यदि वह भटक भी गया होता, तो वह उसे ढूंढ लेते. उस के मन में विचार आया, कहीं किसी ने उस के बेटे का अपहरण तो नहीं कर लिया.

दुर्गेश कुमार सोनी और शिवानी का विवाह करीब 10 साल पहले हुआ था. शिवानी के 2 बच्चे थे. पहला 8 साल का गोलू और दूसरा 3 साल का मृत्युंजय.

मृत्युंजय चंचल स्वभाव का था, दुर्गेश और शिवानी भी उसे भरपूर प्यार देते थे. शिवानी के लिए मृत्युंजय जिगर के टुकड़े जैसा था.

दुर्गेश कुमार सोनी ने जब घर आ कर बताया कि मृत्युंजय का कहीं पता नहीं लग रहा है. तब घर में रोनाधोना शुरू हो गया. आसपड़ोस के लोग भी आ गए. मृत्युंजय के गायब होने से सभी चिंतित थे. शिवानी का तो रोरो कर बुरा हाल था. वह बारबार पति से अनुरोध कर रही थी कि जैसे भी संभव हो, उस के जिगर के टुकड़े को वापस लाओ. दुर्गेश शिवानी को धैर्य बंधा रहा था. यह बात 28 जुलाई, 2020 की है.

शिवानी और दुर्गेश ने पूरी रात आंखों आंखों में बिताई. सवेरा होते ही पूरे बर्रा क्षेत्र में मासूम मृत्युंजय के गायब होने की खबर फैल गई. लोग दुर्गेश के घर पर जुटने शुरू हो गए.

दुर्गेश अपने बेटे के गायब होने के संबंध में पड़ोसियों से विचारविमर्श कर ही रहा था कि उस के मोबाइल पर काल आई. काल पत्नी के उसी नंबर से आई थी, जो घर से गायब था.

दुर्गेश ने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘दुर्गेश, जरा अपनी रंगीली बीवी को फोन दो. मैं उसी से बात करूंगी.’’

फोन करने वाली युवती की बात सुन कर दुर्गेश चौंका. उसे यी आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी. जिज्ञासावश उस ने फोन शिवानी को पकड़ा दिया, ‘‘हां, हैलो, मैं

शिवानी बोल रही हूं. आप कौन?’’ शिवानी बोली.

युवती खिलखिला कर हंसी फिर बोली, ‘‘मैं मंशा गुप्ता बोल रही हूं. कैसी हो शिवानी, आजकल तो खूब मौज कर रही होगी.’’

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‘‘मंशा, मैं बहुत परेशानी में हूं. बीती शाम से मेरा बेटा गायब है. उस का कुछ भी पता नहीं चल रहा है.’’ कहते हुए शिवानी सुबकने लगी.

मंशा गुस्से से बोली, ‘‘शिवानी, तुम ने भी तो मेरे पति प्रह्लाद को अपने पल्लू से बांध रखा है. क्या तुम्हें मेरी परेशानी का अंदाजा नहीं है?’’

‘‘यह कैसी बातें कर रही हो मंशा, मुझ पर झूठा इलजाम मत लगाओ. मैं वैसे ही परेशान हूं.’’ शिवानी ने कहा.

‘‘झूठ मत बोलो शिवानी, वह जब भी मुझ से झगड़ता है, तुम्हारे पहलू में ही आता है. कल भी वह झगड़ा कर के तुम्हारे पास ही आया होगा. खैर, मैं तुम से एक सौदा करना चाहती हूं.’’ मंशा बोली.

‘‘ कैसा सौदा मंशा?’’ शिवानी ने अटकते हुए पूछा.

‘‘यही कि तुम मेरे पति को अपने पल्लू से छोड़ दो, मैं तुम्हारे जिगर के टुकड़े को तुम्हें वापस कर दूंगी. मुझे मृत्युंजय की फिरौती में रुपया नहीं पति चाहिए.’’ मंशा ने सीधे कहा.

‘‘तुम्हारा पति प्रह्लाद मेरे घर नहीं आया. वह कहीं और गया होगा. मंशा, मेरे बेटे को मुझे वापस कर दो. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, पैर पड़ती हूं.’’ शिवानी गिड़गिड़ाई.

‘‘शिवानी झूठ मत बोल. मेरी बात कान खोल कर सुन ले, मेरे पति को जिंदा या मुर्दा भेज या मैं तेरे बेटे की मुंडी काट कर भेजूं.’’ कहते हुए मंशा ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

मंशा गुप्ता प्रह्लाद की पत्नी थी. वह विवेकानंद स्कूल के पास वाली बस्ती में रहती थी. शिवानी की जानपहचान प्रह्लाद से थी. उस का शिवानी के घर आनाजाना था. मंशा को शक था कि उस के पति प्रह्लाद का शिवानी से नाजायज रिश्ता है. वह उस से जलन की भावना रखती थी और उस से झगड़ती रहती थी.

जब यह बात पता चल गई कि मासूम मृत्युंजय का अपहरण मंशा ने किया है तो शिवानी अपने पति दुर्गेश के साथ थाना बर्रा पहुंच गई. उस समय सुबह के 10 बज रहे थे और थानाप्रभारी हरमीत सिंह थाने में मौजूद थे.

दुर्गेश ने थानाप्रभारी को अपनी व्यथा बताई और मंशा गुप्ता के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर बेटे को सहीसलामत बरामद करने की गुहार लगाई.

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मासूम बालक के अपहरण की बात सुन कर थानाप्रभारी हरमीत सिंह सतर्क हो गए. दरअसल, बर्रा क्षेत्र के संजीत अपहरण कांड में बर्रा पुलिस की घोर लापरवाही सामने आई थी, जिस के कारण संजीत की हत्या हो गई थी और फिरौती के 30 लाख रुपए भी अपहर्त्ता ले गए थे. इस लापरवाही में थानेदार से ले कर एसपी व सीओ तक पर शासन की गाज गिरी थी और उन्हें निलंबित कर दिया गया था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

फिरौती में पति

वरदी वाले की बीवी : भाग 3

(सत्यकथा-सौजन्य)

भले ही रेखा ने अपने त्रियाचरित्र से पति की आंखों पर परदा डाल दिया था, लेकिन बलवीर को यकीन हो चुका था कि पत्नी का किसी गैरपुरुष से नाजायज रिश्ता है. इस बात को ले कर अकसर दोनों के बीच विवाद होता रहता था.

रेखा जान चुकी थी कि पति को उस पर शक हो गया है. लेकिन पति नाम के कांटे को वह अपने जीवन से कैसे निकाले, समझ नहीं पा रही थी.

बात पिछले साल दिसंबर 2019 की है. बलवीर अपने जानकारों से जान चुके थे कि पत्नी का नाजायज रिश्ता उस के पुराने आशिक रवि कुमार पनिका से बन गया है.

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इसे ले कर दोनों के बीच खूब लड़ाई हुई. घर में शांति और सुकून जैसे गायब हो गया था. जब देखो पतिपत्नी के बीच विवाद होता रहता था. मांबाप के झगड़ों से बच्चे भी परेशान हो चुके थे. लेकिन वे कर भी क्या सकते थे, चुप रहने के अलावा.

पति से नाराज हो कर रेखा प्रेमी रवि के पास रायपुर चली गई. अगले 25 दिनों तक वह उसी के साथ रही. इस दौरान दोनों ने जबलपुर, कटनी, मंडसला और रायपुर के अलगअलग होटलों में रातें रंगीन कीं.

इसी दौरान दोनों ने बलवीर सिंह चौहान को रास्ते से हटाने की खतरनाक योजना बनाई. योजना ऐसी कि बलवीर की मौत स्वाभाविक लगे और दोनों का लाखों का फायदा हो.

रवि ने रेखा को बताया कि बलवीर का एक बड़ी रकम का जीवन बीमा करा दिया जाए. उस की मौत के बाद वह रकम उस की पत्नी यानी तुम्हें मिल जाएगी.

उस रकम को हम दोनों आधाआधा बांट लेंगे. किसी को हम पर शक भी नहीं होगा और हमारा काम भी हो जाएगा. इस तरह साला बूढ़ा तेरे जीवन से भी निकल जाएगा. फिर हमें मौजमस्ती करने से कोई नहीं रोक सकेगा.

पूरी योजना बन जाने के बाद रेखा घर लौट आई और घडि़याली आंसू बहाते हुए पति के पैरों में गिर कर अपनी गलती की माफी मांग ली. बलवीर ने उसे माफ कर दिया लेकिन उसे अपना नहीं सके. सामाजिक मानप्रतिष्ठा के चलते बलवीर ने समझदारी से काम लिया. उन्होंने बच्चों को देखते हुए रेखा को घर में पनाह तो दे दी, लेकिन दोनों के बीच गहरी खाई खुद चुकी थी, जो पट नहीं सकती थी.

रेखा को पति की भावनाओं से कोई लेनादेना नहीं था. बच्चों से भी उस का कोई वास्ता नहीं था. वह तो योजना बना कर अपने रास्ते के कांटे को सदा के लिए हटाने के लिए आई थी.

योजना के अनुसार, रवि और रेखा ने मिल कर 54 साल के बलवीर का 40 लाख रुपए का जीवन बीमा करा दिया, जिस की किस्त 45 हजार रुपए वार्षिक बनी. पहली किस्त के रूप में रवि ने 25 हजार और रेखा ने 20 हजार यानी 45 हजार रुपए फरवरी महीने में जमा करा दिए और निश्चिंत हो गए.

अब बारी थी बलवीर को रास्ते से हटाने की. दोनों बेकरार थे कि उन्हें कब सुनहरा मौका मिलेगा. आखिरकार उन्हें वह अवसर मिल ही गया.

मई, 2020 के आखिरी सप्ताह में बलवीर कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर आए. रेखा यह सुनहरा अवसर अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहती थी. 29 मई को फोन कर के उस ने रवि को बता दिया कि शिकार हलाल होने के लिए तैयार है, आ जाओ. प्रेमिका की ओर से हरी झंडी मिलते ही रवि तैयार हो गया.

रवि उन दिनों अपने घर शहडोल आया हुआ था. शहडोल से उज्जैन की दूरी 738 किलोमीटर थी. सड़क मार्ग से ये दूरी करीब 18 घंटे में तय की जा सकती थी. रेखा के हां करते ही रवि 30 मई, 2020 को अपनी मोटरसाइकिल से शहडोल से उज्जैन रवाना हो गया.

अगले दिन 31 मई को वह उज्जैन पहुंच गया और एक होटल में ठहरा. फिर फोन कर के रेखा को बता दिया कि वह उज्जैन पहुंच चुका है. आगे की योजना बताओ. रेखा ने रात ढलने तक होटल में ही रुके रहने को कहा. साथ ही यह भी कि जब वह फोन करे तो घर आ जाए.

होटल से रेखा का घर कुछ ही दूरी पर था. रेखा ने रात साढ़े 11 बजे फोन कर के रवि को घर बुला लिया. साथ ही बता भी दिया कि घर का मुख्यद्वार खुला रहेगा. चुपके से घर में आ जाए.

उस समय बलवीर नीचे अपने कमरे में सोए हुए थे और तीनों बच्चे दूसरे कमरे में सो रहे थे. बेचैन रेखा बिस्तर पर करवटें बदल रही थी. ठीक साढ़े 11 बजे रवि रेखा के घर पहुंच गया और दबेपांव घर में घुस आया. वैसे भी वह घर के कोनेकोने से वाकिफ था.

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रवि को आया देख वह खुशी से उछल पड़ी और उस की बांहों में समा गई. थोड़ी देर बाद रेखा जब होश में आई तो बिस्तर पर पति को सोता देख उस ने नफरत भरी नजर डाली और रवि को इशारा किया. फिर इशारा मिलते ही रवि ने अपने हाथों से बलवीर का गला तब तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत हुई.

बलवीर की मौत हो चुकी थी. हत्या की घटना को दोनों स्वाभाविक मौत दिखाना चाहते थे. इसलिए दोनों ने योजना बनाई. रेखा छत पर बिस्तर लगा आई. फिर दोनों बलवीर की लाश उठा कर छत पर ले गए और बिस्तर पर ऐसे लिटा दिया जैसे वह खुद वहां आ कर सो गए हों.

रेखा और रवि के रास्ते का कांटा हट गया था. सुबह होते ही जब रवि जाने लगा तो रेखा ने उस से कहा कि वह उसे कमरे में बंद कर दरवाजे पर बाहर से सिटकनी चढ़ा दे. रवि ने वही किया, जैसा रेखा ने करने को कहा था.

सुबह जब बच्चे उठे तो मां का कमरा बाहर से बंद देख चौंके. उन्होंने कमरे की सिटकनी खोल दी. बच्चों ने देखा उन के पिता कमरे में नहीं थे. पापा के बारे में मां से पूछा तो उस ने बच्चों से झूठ बोलते हुए कहा कि तुम्हारे पापा देर रात लौटे थे और छत पर सो गए. वहीं सो रहे होंगे. उस के बाद रेखा समय का इंतजार करने लगी ताकि अपना ड्रामा शुरू करे.

रेखा और रवि ने बलवीर की हत्या को इस तरह अंजाम दिया था कि उस की मौत स्वाभाविक लगे, लेकिन पुलिस तहकीकात ने उन के सारे राज से परदा उठा दिया. उन के 40 लाख के सपने धरे के धरे रह गए.

रेखा तो गिरफ्तार कर ली गई, लेकिन रवि कुमार पनिका फरार था. रवि को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने कई जगह दबिश दी लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आ सका.

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72 घंटे के भीतर घटना का खुलासा करने पर आईजी राकेश गुप्ता ने पुलिस टीम को 25 हजार रुपए नकद देने की घोषणा की. कथा लिखे जाने तक रेखा जेल में थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

वरदी वाले की बीवी : भाग 2

(सत्यकथा-सौजन्य)

सूचना मिलते ही एएसपी अमरेंद्र सिंह उस से पूछताछ करने के लिए थाने पहुंच गए. यह 20 जून, 2020 की बात है.

‘‘रेखा, मैं जो सवाल करूंगा, उस का जवाब ठीक से देना, तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा.’’ समझाते हुए एएसपी अमरेंद्र ने रेखा से सख्त लहजे में कहा.

रेखा बुत बनी बैठी रही तो उन्होंने सवाल किया, ‘‘यह बताओ कि तुम ने बलवीर की हत्या क्यों की?’’

‘‘मैं ने उन की हत्या नहीं की, मैं निर्दोष हूं.’’ रेखा ने सपाट लहजे में जवाब दिया.

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‘‘तो तुम ऐसे नहीं बताओगी. ठीक है, मत बताओ. यह तो बता सकती हो कि रवि कौन है और उसे तुम कैसे जानती हो?’’ एएसपी अमरेंद्र ने रेखा की आंखों में झांक कर सवाल किया. सवाल सुन कर रेखा सन्न रह गई.

‘‘क..क..क…कौन रवि.’’ वह हकलाती हुई बोली, ‘‘मैं किसी रवि को नहीं जानती.’’

‘‘वही रवि, जिस से घटना वाले दिन फोन पर तुम्हारी कई बार बात हुई थी.’’

सिर पर एक महिला सिपाही खड़ी थी. एएसपी ने उसे इशारा कर के कहा, ‘‘अगर ये झूठ बोले तो बिना कहे शुरू हो जाना.’’

इस पर रेखा हाथ जोड़ते हुए बोली, ‘‘सर, पति की हत्या मैं ने ही अपने प्रेमी रवि के साथ मिल कर की थी, मुझे माफ कर दीजिए. प्यार में अंधी हो कर मैं ने ही अपने हाथों अपना घर उजाड़ दिया.’’

इस के बाद रेखा पति की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बताती चली गई.

हेडकांस्टेबल बलवीर सिंह चौहान की हत्या के मामले से पुलिस ने 72 घंटे के भीतर परदा उठा दिया था.

रेखा का प्रेमी रवि भी सीआरपीएफ का जवान था. वह शहडोल में तैनात था. पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने शहडोल पहुंची तब तक वह फरार हो गया था.

अगले दिन एएसपी अमरेंद्र सिंह और एसपी रवींद्र वर्मा ने मिल कर प्रैसवार्ता की. पत्रकारों के सामने भी रेखा ने अपना जुर्म कबूल लिया.

उस ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, चौंकाने वाली थी—

54 वर्षीय बलवीर सिंह चौहान मूलरूप से उज्जैन में माधवनगर के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी रेखा के अलावा 2 बेटे रमेश और चंदन और एक बेटी शालिनी थी. कहने को तो बलवीर का दांपत्य जीवन खुशहाल था लेकिन हकीकत में वह अपनी पत्नी रेखा से खुश नहीं रहते थे.

रेखा ने जब बलवीर के जीवन में कदम रखा, तब से उन के जीवन में खुशियां ही खुशियां थीं. रेखा उन की तीसरी पत्नी थी.

बलवीर सिंह चौहान की 2 शादियां पहले भी हुई थीं. बलवीर की पहली पत्नी किरन थी. जब वह ब्याह कर ससुराल आई थी, बलवीर की किस्मत का ताला खुल गया था. शादी के बाद उन की सीआरपीएफ में नौकरी पक्की हुई थी.

बलवीर की नईनई शादी हुई थी. घर में नई दुलहन आई थी. अभी किरन के हाथों की मेहंदी का रंग फीका भी नहीं पड़ा था कि उसे अकेले घर पर छोड़ बलवीर नौकरी चले गए. रात में पत्नी जब बिस्तर पर होती तो पति के बिना बिस्तर काटने को दौड़ता था. वह बेचैन हो जाती थी.

पति की दूरियां उस से बरदाश्त नहीं हो रही थीं. जब सब कुछ बरदाश्त के बाहर हो गया तो किरन ने कमरे के पंखे से झूल कर आत्महत्या कर कर ली.

पत्नी की आत्महत्या से बलवीर बुरी तरह टूट गए. वह बेपनाह मोहब्बत करते थे. लेकिन नौकरी के फर्ज और घर की जिम्मेदारी के बीच पिस कर उन्होंने 28 साल की उम्र में पत्नी को गंवा दिया था.

पत्नी की मौत के बाद से बलवीर गुमसुम रहने लगे. पूरी जिंदगी सामने थी. अकेले काटना मुश्किल था. इसी नजरिए से मांबाप उन की दूसरी शादी की सोचने लगे. बलवीर सरकारी नौकरी में थे, इसलिए उन की दूसरी शादी के लिए कई प्रस्ताव आए. काफी सोचने के बाद मांबाप ने उस की दूसरी शादी आभा से करवा दी.

जब आभा बलवीर की जिंदगी में पत्नी बन कर आई, तो धीरेधीरे बलवीर के जीवन में बदलाव आने लगा. लेकिन बलवीर की ये खुशी भी ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं रही. एक सड़क हादसे ने बलवीर से आभा को भी छीन लिया. एक बार फिर अकेले पड़ गए. 2-2 पत्नियों की मौत से बलवीर जीवन से निराश होने लगे.

कुछ दिनों बाद बलवीर की जिंदगी में रेखा तीसरी पत्नी बन कर आई. वह दोनों की यह शादी साल 2003 में मंदिर में हुई थी. दोनों की उम्र में करीब 20 साल का फासला था. रेखा के आने से बलवीर की जिंदगी फिर से संवर गई.

पहले की दोनों बीवियों से बलवीर की कोई संतान नहीं थी, लेकिन रेखा से बलवीर के यहां 3 बच्चे पैदा हुए. 2 बेटे रमेश व चंदन और एक बेटी शालिनी.

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रेखा भले ही बलवीर के 3 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन वह पति के प्यार से संतुष्ट नहीं थी. इसी के चलते रेखा के पांव बहक गए.

शहडोल जिले के उमरिया की रहने वाली रेखा को अपना पुराना प्यार याद आ गया. उस का नाम था रवि कुमार पनिका. रवि और रेखा कालेज के जमाने से एकदूसरे को जानते थे. उन्हीं दिनों दोनों में प्यार हुआ था. लेकिन दोनों के सपने पूरे नहीं हुए थे. रेखा बलवीर की जिंदगी की डोर से बंध गई थी.

यह बात घटना से करीब 4 साल पहले की है. रेखा का वही प्यार एक बार फिर से जवां हो गया. उस के तीनों बच्चे 10-12 साल के हो चुके थे. पति अकसर ड्यूटी पर घर से बाहर रहते थे. इस बीच रेखा घर पर अकेली रहती थी. इस अकेलेपन के दौरान वह रवि के साथ फोन पर चिपकी रहती थी.

कभीकभार बलवीर जब बच्चों का हालचाल लेने के लिए पत्नी को फोन लगाता तो वह अकसर व्यस्त मिलता था. यह देख कर बलवीर की त्यौरी चढ़ जाती थी कि आखिर दिन भर वह फोन पर किस से चिपकी रहती है.

35 वर्षीय रवि कुमार पनिका सीआरपीएफ का जवान था. वह रायपुर के जगदलपुर में तैनात था, शादीशुदा. उस के भी बालबच्चे थे. उस का परिवार उमरिया में रहता था. बीचबीच में छुट्टी मिलने पर वह घर जाता था.

रेखा रवि की पुरानी प्रेमिका थी. कालेज के दिनों में दोनों एकदूसरे से जुनूनी हद तक प्यार करते थे. उस समय तो दोनों एक नहीं हो सके थे लेकिन अब दोनों एक होने को लालायित थे.

जब से रेखा ने प्रेमी रवि को दिल से पुकारा था, रवि का दीवानापन हद से ज्यादा बढ़ गया था. रायपुर से नौकरी से छुट्टी ले कर रवि रेखा से मिलने उज्जैन स्थित उस के घर पहुंच जाता था. दोनों अपनी जिस्मानी आग ठंडी करते और फिर रवि रायपुर लौट जाता. रेखा प्रेमी रवि को घर तभी बुलाती थी जब उस के तीनों बच्चे स्कूल में होते थे और पति नौकरी पर.

रेखा की इस आशनाई का खेल सालों तक चलता रहा. अब रेखा पति को देख कर वैसा आनंदित नहीं होती थी, जैसे पहले हुआ करती थी. पहले की अपेक्षा रेखा के तेवर और रूपरंग में भी बदलाव आ गया था. उस के बदलेबदले तेवर और रूपरंग को देख कर बलवीर को उस पर शक गया.

ऊपर से हर समय उस के फोन का बिजी आना. ये उस के शक को और बढ़ावा दे रहा था. वह ठहरा एक पुलिस वाला, जिन की एक आंख में शक तो दूसरी आंख में यकीन होता है. ऐसे में रेखा पति की नजरों से कहां बचने वाली थी. एक दिन बलवीर ने पत्नी से पूछ ही लिया, ‘‘तुम्हारा फोन अक्सर बिजी क्यों रहता है. जब भी फोन लगाओ तुम किसी से बात करती मिलती हो, किस से बात करती रहती हो? कौन है वो?’’

पति का इतना पूछना था कि रेखा बिदक गई, ‘‘आप मुझ पर शक करते हो. मैं ऐसीवैसी औरत नहीं हूं जो पति की गैरमौजूदगी में यहांवहां मुंह मारती फिरूं.’’

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रेखा ने पति की आंखों के सामने ज्यामिति की ऐसी टेढ़ीमेढ़ी रेखा खींची कि उस की बोलती बंद कर दी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

वरदी वाले की बीवी : भाग 1

(सत्यकथा-सौजन्य)

सूरज सिर पर चढ़ जाने के बावजूद बलवीर सिंह चौहान सो कर नहीं उठे तो उन की पत्नी रेखा को चिंता हुई. दीवार पर टंगी घड़ी में उस समय सुबह के 9 बज चुके थे. अपनी दिनचर्या के मुताबिक, वह सुबह 6 बजते ही उठ जाते थे. 54 वर्षीय बलवीर सिंह चौहान सीआरपीएफ में हेडकांस्टेबल थे.

रेखा ने छत के फर्श पर दरी बिछा कर सो रहे पति को पहले तो आवाज दे कर जगाने की कोशिश की. लेकिन जब वह नहीं उठे तो उस ने पति को हिलाडुला कर उठाने की कोशिश की.

लेकिन बलवीर के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो रेखा समझ गई कि अब वह दुनिया में नहीं रहे. उन की मौत हो चुकी थी.

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पति के शव के पास बैठी रेखा जोरजोर से रोने लगी. मां के रोने की आवाज सुन कर उस के तीनों बच्चे दौडे़भागे छत पर पहुंचे. मां को रोते देख वे भी हकीकत समझ गए, इसलिए वे भी पिता की मौत पर रोने लगे.

अचानक बलवीर के घर में रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी उन के घर पहुंचने लगे. लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि चौहान साहब की अचानक मृत्यु कैसे हो गई.

जिस ने भी बलवीर सिंह की मौत की खबर सुनी, हैरान रह गया. रेखा ने फोन कर के पति की मौत की सूचना सीआरपीएफ के अधिकारियों को दे दी थी. हेडकांस्टेबल बलवीर की अचानक मौत की सूचना पा कर अधिकारी भी चकित रह गए. मामला संदिग्ध था, अधिकारियों ने स्थानीय पुलिस को सूचना दी.

बलवीर की मौत की सूचना मिलने के कुछ देर बाद माधवनगर थाने के इंसपेक्टर रघुवीर सिंह, एएसपी अमरेंद्र सिंह और एसपी (सिटी) रविंद्र वर्मा बलवीर के घर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने सब से पहले छत का मुआयना किया, जहां बलवीर सिंह चौहान का शव बिस्तर पर पड़ा हुआ था.

पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से लाश का मुआयना किया. लाश देख कर ऐसा नहीं लग रहा था कि बलवीर की मौत स्वाभाविक रूप से हुई है. क्योंकि खून कान से निकल कर नाक की ओर बहा था, जो पतली रेखा के रूप में जम कर सूख गया था. गले पर दाहिनी ओर चोट जैसा निशान दिख रहा था.

कुल मिला कर बलवीर की मौत रहस्यमई लग रही थी, जबकि मृतक की पत्नी रेखा पुलिस अधिकारियों के सामने चीखचीख कर बारबार यही कह रही थी कि ड्यूटी से देर रात घर लौट कर इन्होंने कपड़े बदले, फ्रैश होने के बाद खाना खाया. फिर ज्यादा गरमी की वजह से कमरे में न सो कर छत पर सोने चले आए थे, जबकि वह बेटी के साथ कमरे में सो गई थी. दोनों बेटे रमेश और चंदन दूसरे कमरे में सो रहे थे.

आदत के मुताबिक वह रोज सुबह 6 बजे उठ जाते थे. जब सुबह के 9 बजे भी वह छत से नीचे नहीं आए तो चिंता हुई. उन्हें जगाने छत पर पहुंची तो देखा वह बिस्तर पर मरे पड़े थे.

कहतेकहते रेखा फिर से रोने लगी.

खैर, पुलिस ने कागजी काररवाई पूरी कर के मृतक बलवीर की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही बलवीर की मौत की सही मिल सकती थी. यह 18 जून, 2020 की बात है.

हेडकांस्टेबल बलवीर सिंह चौहान की रहस्यमय मौत से पूरी बटालियन में शोक था.खुशमिजाज और अपनी बातों से सभी को गुदगुदाने वाले चौहान साहब सदा के लिए खामोश हो चुके थे.

पुलिस अधिकारियों को जिस बात की आशंका थी, वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सच साबित हुई. बलवीर की मौत स्वाभाविक नहीं थी, बल्कि उन की गला दबा कर हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफतौर पर बताया गया था बलवीर की मौत गले की हड्डी टूट कर सांस रुकने से हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाने के बाद आईजी राकेश गुप्त ने एसपी (सिटी) रवींद्र वर्मा को घटना का जल्द से जल्द परदाफाश करने का आदेश दिया.

आईजी का आदेश मिलने के बाद एसपी (सिटी) रवींद्र वर्मा ने उसी दिन अपने औफिस में मीटिंग बुलाई. मीटिंग में एएसपी अमरेंद्र सिंह और माधवनगर थाने के इंसपेक्टर रघुवीर सिंह भी शामिल थे. रवींद्र वर्मा ने एएसपी अमरेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर दिया. घटना की मौनिटरिंग एएसपी अमरेंद्र सिंह को करनी थी.

थाना प्रभारी रघुवीर सिंह के साथसाथ अमरेंद्र सिंह खुद भी घटना के एकएक पहलू पर नजर गड़ाए हुए थे. इधर रिपोर्ट में हत्या की बात सामने आने के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी रेखा की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर रघुवीर सिंह को सौंपी गई.

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रघुवीर सिंह ने फूंकफूंक कर एकएक कदम आगे बढ़ाते हुए जांच शुरू की. उन के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि बलवीर की हत्या किस ने और क्यों की? उन की मौत से सब से ज्यादा फायदा किसे होने वाला था? इन सवालों का जवाब बलवीर के घर से ही मिल सकता था. इसलिए उन्होंने चौहान की मौत की वजह उन के घर से ही खोजनी शुरू की.

विवेचना के दौरान मृतक की पत्नी रेखा का चरित्र संदिग्ध लगा तो पुलिस की नजर उस के क्रियाकलापों पर जम गई.

पुलिस ने रेखा का मोबाइल नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया. साथ ही उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर उस के अध्ययन में जुट गई. इसी बीच पुलिस को एक खास जानकारी मिली. पता चला कि रेखा से पहले बलवीर की 2 शादियां हुई थीं. उन की पहली पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी, जबकि दूसरी पत्नी की एक हादसे में मौत हो चुकी थी.

सन 2003 में बलवीर ने रेखा से शादी की थी. बलवीर के तीनों बच्चे रेखा से ही जन्मे थे. बलवीर और रेखा की उम्र में करीब 20 साल का अंतर था. इस से भी बड़ी बात यह थी कि पतिपत्नी दोनों के रिश्ते खराब थे. दोनों के बीच झगड़े होते रहते थे.

पुलिस ने रेखा के फोन की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि घटना वाली रात रेखा की एक ही नंबर पर कई बार बातचीत हुई थी. आखिरी बार दोनों के बीच उसी नंबर पर करीब साढ़े 11 बजे बात हुई थी.

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तमाम सबूत रेखा के खिलाफ थे. वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर पुलिस यह मान चुकी थी कि बलवीर की हत्या में उस की पत्नी रेखा का ही हाथ है. शक के आधार पर पुलिस रेखा को हिरासत में ले कर थाने ले आई. थानाप्रभारी रघुवीर सिंह ने इस की सूचना एएसपी अमरेंद्र सिंह को दे दी थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

वरदी वाले की बीवी

वकील साहब के खतरनाक शौक : भाग 3

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

लेखक- निखिल अग्रवाल

बिलाड़ा से करीब 10 किलोमीटर दूर अटबड़ा के पास सड़क पर सुनसान जगह देख कर कार में पीछे बैठे प्रभु और अर्जुन ने गमछे से वकील साहब का गला दबा दिया. आगे ड्राइविंग सीट पर बैठे उमेश ने उन के दोनों हाथ पकड़ लिए. गमछे से दबा होने के कारण वकील साहब के मुंह से आवाज भी नहीं निकल सकी. कुछ देर छटपटाने के बाद उन के प्राण निकल गए. यह दोपहर करीब साढ़े 3-4 बजे के बीच की बात थी.

जब तीनों को विश्वास हो गया कि वकील साहब जीवित नहीं हैं, तब उन्होंने उन के गले में पहना हार और साफे पर लगी कलंगी सहित सोने का पट्टा उतार कर अपने पास रख लिए.

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अभी दिन का समय था, इसलिए लाश को ठिकाने लगाना भी मुश्किल था. इसलिए तीनों दोस्त वकील साहब की कार में उन की लाश को ले कर सड़क के किनारे पेड़ों की ओट में छिप कर खड़े रहे. शाम को जब अंधेरा होने लगा, तब कार में पड़ी वकील साहब की लाश की निगरानी के लिए अर्जुन को छोड़ कर उमेश और प्रभु किसी वाहन से बिलाड़ा आ गए. वजह यह थी कि नैनो कार में पैट्रोल कम था.

बिलाड़ा से उमेश ने अपनी इंडिका कार ली. साथ ही एक जरीकेन में 5 लीटर पैट्रोल भी रख लिया. लौट कर उमेश और प्रभु वापस वहां पहुंच गए, जहां अर्जुन को छोड़ा था. तब तक शाम के करीब साढ़े 7 बज गए थे. इन लोगों ने जरीकेन से वकील साहब की कार में पैट्रोल भरा.

लाश ठिकाने लगा कर कार भी फूंकी

अब उन के पास वकील साहब की कार के अलावा उमेश की कार भी थी. एक कार उमेश ने चलाई और दूसरी प्रभु ने. तीनों लोग 2 कारों से छितरिया गांव के पास बावड़ी पर पहुंचे. वहां उन्होंने वकील साहब की लाश कार से निकाल कर बावड़ी में फेंक दी.

इस के बाद वे वकील साहब की कार साथ ले कर चांवडि़या-अगेवा सरहद में मेगा हाइवे पर पहुंचे. हाइवे पर सुनसान जगह देख कर उन्होंने वकील साहब की कार एक साइड रोकी और जरीकेन से पैट्रोल छिड़क कर उस में आग लगा दी. पैट्रोल की तेज लपटों से अर्जुन देवासी का मुंह और एक हाथ भी जल गया. यह बात रात करीब साढ़े 8-9 बजे की है. वकील साहब की लाश ठिकाने लगाने और उन की कार जलाने के बाद उमेश, प्रभु और अर्जुन अपने घरों के लिए चल दिए. रास्ते में तीनों ने तय किया कि फिलहाल प्रभु इन आभूषणों को अपने घर पर रख लेगा. एकदो दिन बाद बंटवारा कर लेंगे.

सारी बातें तय कर के उमेश और प्रभु ने अर्जुन को उस के गांव के बाहर छोड़ दिया. उमेश को बिलाड़ा में छोड़ कर प्रभु पटेल ने सोने के आभूषण अपने फार्म पर बने कमरे के रोशनदान में छिपा कर रख दिए.

प्रभु पटेल ने दूसरे दिन सुबह उमेश सोनी की मदद से वकील साहब से लूटे 140 ग्राम वजनी सोने के पट्टे में से एक टुकड़ा तोड़ कर गला दिया. सोने का यह 46 ग्राम का टुकड़ा उस ने 29 मई को जोधपुर में एक ज्वैलर को सवा लाख रुपए में बेच दिया.

पाली के सोजत सिटी थाने में वकील साहब की हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की, तो काल डिटेल्स के आधार पर सब से पहले उमेश सोनी को पकड़ कर पूछताछ की. सख्ती से पूछताछ में उमेश ने सारा राज उगल दिया. बाद में उसी दिन प्रभु पटेल और अर्जुन देवासी को भी पकड़ लिया गया.

पुलिस ने बाद में इन से पूछताछ के आधार पर वकील साहब से लूटे गए सारे आभूषण और उमेश सोनी की इंडिका कार बरामद कर ली. इस के अलावा प्रभु पटेल से सोना खरीदने वाले जोधपुर के बनाड़ इलाके के लक्ष्मण नगर निवासी ज्वैलर धर्मेश सोनी को भी गिरफ्तार किया गया.

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आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उन के कोरोना जांच सैंपल दिलवाए. दूसरे दिन 30 मई को जांच रिपोर्ट मिली. इस में एक आरोपी उमेश सोनी पौजिटिव निकला. उस के पौजिटिव निकलने से जोधपुर के बिलाड़ा और पाली की जैतारण व सोजत सिटी थाना पुलिस सहित अधिकारियों में हड़कंप मच गया. इस का कारण यह था कि आरोपियों को पकड़ने में तीनों ही थानों की पुलिस ने आपस में समन्वय बनाए रखा था. अधिकारियों ने भी इन से पूछताछ की थी.

डाक्टरों की सलाह पर जैतारण और सोजत सिटी के डीएसपी सहित दोनों थानों के प्रभारी और करीब 20 पुलिसकर्मियों को होम क्वारेंटाइन कर दिया गया. सतर्कता के तौर पर बिलाड़ा में 49 लोगों के सैंपल लिए गए. मृतक वकील नारायण सिंह के परिवार सहित हत्या के तीनों आरोपियों के परिवारजनों को भी होम आइसोलेट कर दिया गया.

बहरहाल, वकील के कातिल पकड़े गए. उन की निशानदेही पर आभूषणों की बरामदगी भी हो गई. खास बात यह रही कि वकील के बेटे ने पुलिस में दर्ज कराई रिपोर्ट में एक किलो 330 ग्राम सोने के आभूषण लूटे जाने की बात कही थी, लेकिन बरामद हुए आभूषणों का वजन करीब डेढ़ किलो निकला. इस का कारण यह था कि वकील के बेटे को भी पिता के पहने आभूषणों का सही वजन पता नहीं था.

आमतौर पर जेवर, नकदी की लूट में सारे माल की बरामदगी पुलिस के लिए टेड़ी खीर होती है, क्योंकि मुलजिम सब से पहले लूटी हुई कीमती चीजों को खुदबुर्द करते हैं. इस मामले में आरोपी 24 घंटे में ही पकड़े गए. इसलिए उन को आभूषण ठिकाने लगाने का समय नहीं मिल सका. इसी कारण सारी ज्वैलरी बरामद हो गई. सोने का जो टुकड़ा ज्वैलर को बेचा था, वह भी बरामद हो गया.

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सोने के आभूषणों के लालच में उमेश, प्रभु और अर्जुन ने वकील की हत्या का जो जघन्य अपराध किया, उस की सजा उन्हें कानून देगा. गोल्डनमैन की हत्या दिखावा करने वालों के लिए एक सबक है.

वकील साहब के खतरनाक शौक : भाग 2

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

लेखक- निखिल अग्रवाल

पुलिस ने सतपाल सिंह से उन के पिता की हत्या में किसी पर शक के बारे में पूछा. चूंकि सतपाल सिंह को यह पता ही नहीं था कि उन के पिता किस के बुलावे पर फोटो खिंचवाने गए थे, इसलिए उन्होंने किसी पर सीधा शक नहीं जताया, लेकिन यह जरूर बताया कि उन के पिता ने एक व्यक्ति के खिलाफ जोधपुर के बिलाड़ा थाने में जमीन को ले कर धोखाधड़ी के 2 मामले दर्ज कराए थे.

सोजत पुलिस ने सतपाल सिंह से वकील साहब के बारे में और जरूरी बातें पूछीं. इस के बाद अस्पताल में शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद उन को सौंप दिया.

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दोनों जगह मौके के हालात और सतपाल सिंह की ओर से सोजत थाने में दर्ज कराई गई रिपोर्ट के आधार पर यह बात साफ हो गई कि वकील साहब की हत्या उन के कीमती आभूषण लूटने के लिए की गई है.

परिचित ने ही फंसाया जाल में

लूटपाट के लिए वकील की हत्या का मामला गंभीर था. इसलिए पाली के एसपी राहुल कोटोकी ने एडिशनल एसपी तेजपाल, सोजत सिटी डीएसपी डा. हेमंत जाखड़ और जैतारण डीएसपी सुरेश कुमार के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में सोजत सिटी थानाप्रभारी रामेश्वर लाल भाटी, जैतारण थानाप्रभारी सुरेश चौधरी, सायबर तथा स्पैशल टीम के साथसाथ 25 पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

पाली पुलिस को वकील साहब का मोबाइल न तो लाश के साथ मिला और न ही जली हुई कार में. उन के मोबाइल से हत्या का खुलासा हो सकता था. पुलिस ने सब से पहले वकील नारायण सिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स के आधार पर पता लगाया गया कि 27 मई को वकील साहब की किनकिन लोगों से बात हुई थी.

पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा जोधपुर के बिलाड़ा में वकील साहब के परिचितों से भी कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां जुटाई गईं.

लोगों से की गई पूछताछ और तकनीकी सहायता से पुलिस ने दूसरे ही दिन यानी 29 मई को 3 लोगों उमेश सोनी, प्रभु पटेल और अर्जुन देवासी को गिरफ्तार कर लिया. इन में उमेश सोनी बिलाड़ा का ही रहने वाला था, जबकि प्रभु पटेल बिलाड़ा के पास हांगरों की ढीमड़ी का और अर्जुन देवासी बिलाड़ा के पास हर्ष गांव का रहने वाला था. ये तीनों दोस्त थे.

इन तीनों से पुलिस की पूछताछ के बाद गोल्डनमैन वकील की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इन के लालच के साथ विश्वासघात की भी कहानी थी.

बिलाड़ा का रहने वाला उमेश सोनी वकील नारायण सिंह का अच्छा परिचित था. अदालतों में उमेश के कुछ मुकदमे चल रहे थे, नारायण सिंह ही उस के मुकदमों की पैरवी करते थे. उमेश को वकील साहब के सोने के आभूषण पहनने के शौक से ले कर घरपरिवार की तमाम बातों की जानकारी थी.

उसे यह भी पता था कि वकील साहब 4-5 हजार रुपए ले कर सोने के आभूषण पहन कर फोटो खिंचवाते हैं. ऐसे फोटो सेशन करवाने के लिए एकदो बार वह भी वकील साहब के साथ गया था.

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वकील साहब को सवा-डेढ़ किलो सोने के आभूषण पहने देख कर उस के मन में लालच आ गया था. सोने के उन आभूषणों की कीमत करीब 60 लाख रुपए थी. वकील साहब को सोने के आभूषण पहने देख कर उमेश भी सपने में खुद आभूषण पहने हुए देखने लगा.

अपने सपनों को पूरा करने के लिए उमेश ने अपने दोस्त प्रभु पटेल को वकील साहब के सोने के आभूषण के शौक के बारे में बताया. बिलाड़ा के पास के ही रहने वाले प्रभु पटेल को पहले से ही वकील साहब के इस शौक का पता था.

टैक्सी चलाने वाला प्रभु भी वकील साहब के सोने के आभूषणों के सपने में खोया रहता था. अर्जुन इन दोनों का दोस्त था और इन के साथ ही रहता था.

तीनों दोस्तों ने मिल कर वकील साहब के सोने के आभूषण हथियाने की योजना बनाई. लेकिन आभूषण हथियाना आसान काम नहीं था. कई दिन विचार करने के बाद तीनों दोस्तों ने वकील साहब को फोटो खिंचवाने के बहाने बुलाने और उन की हत्या कर सोने के आभूषण हथियाने का फैसला किया.

योजना के अनुसार, 27 मई को दोपहर में उमेश सोनी ने नारायण सिंह को फोन किया. उस ने वकील साहब से कहा कि एक आदमी उन के साथ सोना पहन कर सेल्फी लेना चाहता है. इस के बदले में वह ढाई हजार रुपए देगा.

पहले से अच्छी तरह परिचित उमेश की बात पर भरोसा कर वकील नारायण सिंह ने घर से निकलवा कर 940 ग्राम सोने का बड़ा हार, 250 ग्राम वजनी सोने का दूसरा हार और 140 ग्राम वजनी सोने का पट्टा पहना. सोने के ये आभूषण पहन कर वे दोपहर करीब पौने 3 बजे घर से अपनी नैनो कार में निकले. उमेश ने फोन पर कहा था कि वह उन के घर से कुछ दूर रास्ते में मिल जाएगा. फिर साथ चलेंगे.

वकील साहब के घर से निकलने के बाद कुछ ही दूरी पर उमेश सोनी मिल गया. उस के साथ प्रभु पटेल के अलावा एक युवक और था. प्रभु पटेल को भी वकील साहब पहले से जानते थे. उमेश ने तीसरे युवक का परिचय कराते हुए वकील साहब को बताया कि यह अर्जुन देवासी है.

अर्जुन का एक जानकार आदमी आप के साथ सेल्फी लेना चाहता है. परिचय कराने के बाद उमेश, प्रभु और अर्जुन वकील साहब की ही कार में बैठ गए.

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उमेश ने बिलाड़ा से अटबड़ा सड़क मार्ग पर रास्ते में बीयर की बोतलें खरीद ली. वकील साहब सहित चारों ने कार में बैठ कर बीयर पी. इस के बाद उमेश ने नशा होने की बात कह कर वकील साहब को कार की ड्राइविंग सीट से उठाया और खुद कार चलाने लगा. उस ने वकील साहब को आगे की सीट पर अपने पास बैठा लिया. पीछे की सीट पर प्रभु पटेल और अर्जुन देवासी बैठे थे.

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वकील साहब के खतरनाक शौक : भाग 1

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

लेखक- निखिल अग्रवाल

इसी साल मई की बात है. तारीख थी 28. जगह राजस्थान के पाली जिले का सोजत सिटी. सोजत सिटी की मेहंदी पूरे देश में प्रसिद्ध है. इसी सोजत सिटी थाना क्षेत्र में चंडावल के पास एक गांव है छितरिया. इस गांव की सरहद में मुख्य सड़क मार्ग से सटी हुई एक बावड़ी है.

गरमी का मौसम होने के कारण आसपास के गांवों के लोग सुबह इस बावड़ी की तरफ टहलने चले जाते हैं. उस दिन टहलने आए लोगों ने बावड़ी के पानी में एक इंसान की लाश तैरती देखी. लोगों ने लाश को पहचानने की कोशिश की, लेकिन आसपास के गांवों का कोई भी व्यक्ति उस की शिनाख्त नहीं कर सका. लोगों ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

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सूचना मिलने पर सोजत सिटी थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने गांव वालों की मदद से बावड़ी से लाश निकलवाई. मृतक के सिर और गले में चोटों के गंभीर घाव थे.

पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाश के बारे में पूछा. कुछ पता नहीं चलने पर आसपास के गांवों के लोगों को बुला कर लाश की शिनाख्त कराने का प्रयास किया गया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. इस पर सोजत सिटी थानाप्रभारी रामेश्वरलाल भाटी ने उच्चाधिकारियों को इस घटना की सूचना दे दी. इस से पहले 27 मई की रात को करीब 9-साढ़े 9 बजे पाली जिले में ही जैतारण थाना इलाके के चांवडिया कलां, अगेवा के पास मेगा हाइवे पर एक जलती हुई कार मिली थी. इस जलती हुई कार का वीडियो रात को ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था.

पुलिस को सूचना मिली, तो मौके पर पहुंची. वहां पुलिस ने आसपास पता करने का प्रयास किया, लेकिन न तो यह पता चला कि कार किस की है और न ही इस बात की जानकारी मिली कि कार में किस ने आग लगाई थी. पुलिस को कार के आसपास कोई आदमी भी नहीं मिला. रात ज्यादा हो गई थी. इसलिए एक कांस्टेबल को मौके पर छोड़ कर जैतारण थाना पुलिस थाने लौट गई थी.

जलती हुई कार मिलने के दूसरे दिन सुबह ही बावड़ी में लाश मिलने की सूचना पर सोजत सिटी डीएसपी डां. हेमंत जाखड़ और एसपी राहुल कोटोकी मौके पर पहुंचे. उन्होंने भी मौकामुआयना किया, लोगों से पूछताछ की. लाश के कपड़ों की तलाशी ली गई, लेकिन ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस शख्स की पहचान हो पाती. अंतत: पुलिस ने लाश को सोजत अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारियों को संदेह हुआ कि जलती हुई मिली कार और बावड़ी में मिली लाश का आपस में कोई संबंध हो सकता है. हालांकि इन दोनों जगहों के बीच करीब 15 किलोमीटर का फासला था. फिर भी संदेह की अपनी वजह थी.

पाली जिले के पुलिस अफसर दोनों मामलों की कडि़यां जोड़ने के प्रयास में जुटे थे, इसी बीच सूचना मिली कि जोधपुर जिले के बिलाड़ा में रहने वाले वकील नारायण सिंह राठौड़ 27 मई की दोपहर से लापता हैं. इस सूचना से पुलिस को संदेह हुआ कि लाश कहीं वकील साहब की ही तो नहीं है. पाली जिले की पुलिस ने जोधपुर जिले की पुलिस को इत्तला कर वकील नारायणसिंह के परिवार वालों को सोजत सिटी बुलवाया.

दोपहर में वकील साहब के परिवार वाले सोजत सिटी पहुंच गए. पुलिस ने उन्हें सुबह चंडावल के पास छितरिया गांव की सरहद में बावड़ी में मिली लाश दिखाई. लाश देखते ही परिवार वालों ने रोनापीटना शुरू कर दिया. लाश वकील साहब की ही थी.

लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने वकील साहब के परिवार वालों को जैतारण ले जा कर वह कार दिखाई, जो एक दिन पहले रात को चांवडि़या कलां की अगेवा सरहद में मेगा हाइवे पर जलती हुई हालत में मिली थी. कार वकील साहब की ही निकली.

पाली पुलिस ने जोधपुर के बिलाड़ा से आए वकील साहब के बेटे सतपाल सिंह राठौड़ से वकील साहब के लापता होने के बारे में सारा किस्सा पूछा.

सतपाल सिंह राठौड़ ने रोतेबिलखते बताया कि उन के 68 वर्षीय पिता नारायण सिंह बिलाड़ा के जानेमाने वकील रहे हैं. वकील साहब सोने का हार और अन्य भारीभरकम आभूषण पहनने के शौकीन थे. वे करीब सवा, डेढ़ किलो सोने के आभूषण पहनते थे. इसलिए उन्हें बिलाड़ा और आसपास ही नहीं जोधपुर तक के लोग ‘गोल्डन मैन’ के नाम से जानते थे.  सोने के आभूषण पहन कर वे लोगों के साथ फोटो सेशन भी कराते थे. वे फोटो सेशन का 2-4 हजार रुपया भी लेते थे.

कहां गए, वकील साहब

बेटे सतपाल सिंह ने पुलिस को बताया कि उन के पिता नारायण सिंह 27 मई को दोपहर करीब एक बजे किसी पार्टी में जाने की बात कह कर घर से गए थे. वे दोपहर ढाई बजे वापस घर लौट आए थे. इस के कुछ ही देर बाद उन के पास किसी का फोन आया था.

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फोन आने के बाद वकील नारायण सिंह ने घर पर करीब एक किलो वजनी सोने का हार, साफे पर लगने वाली सोने की कलंगी सहित सोने के अन्य आभूषण पहने. इस के बाद दोपहर करीब 3-पौने 3 बजे वह परिवार वालों को यह कह कर घर से निकले कि किसी ने फोटो खिंचवाने के लिए बुलाया है. फोटो खिंचवा कर वापस लौट आऊंगा. वे घर से अपनी नैनो कार में गए थे.

दोपहर करीब 3 बजे घर से निकले वकील साहब जब रात तक वापस घर नहीं पहुंचे, तो परिवार वालों को चिंता हुई. चिंता होना स्वाभाविक था. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि वकील साहब बिना बताए घर से बाहर रहे हों. अगर उन्हें बाहर रहना भी पड़ता था, तो परिवार वालों को इस की सूचना जरूर देते थे.

उस दिन न तो वकील साहब ने कोई सूचना दी और न ही यह बता कर गए कि कहां जा रहे हैं. परिवार वालों ने उन के मोबाइल पर बात करने का प्रयास किया, लेकिन काफी प्रयासों के बाद भी बात नहीं हो सकी. वकील साहब की चिंता में परिवार वालों ने पूरी रात सोतेजागते गुजारी. चिंता इस बात की थी कि वकील साहब ने सवा-डेढ़ किलो सोने के आभूषण पहने हुए थे.

रात तो जैसेतैसे निकल गई. दूसरे दिन 28 मई को सुबह भी घर वालों को वकील साहब की कोई खैरखबर नहीं मिली. न ही उन से मोबाइल पर बात हुई. थकहार कर परिवार वालों ने सुबह ही बिलाड़ा पुलिस थाने में वकील साहब की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस बीच, पाली जिले से पुलिस की सूचना मिलने के बाद वकील साहब के परिवार वाले सोजत आ गए थे.

लाश और कार की पहचान होने के बाद वकील साहब के बेटे सतपाल सिंह राठौड़ ने उसी दिन सोजत सिटी थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी. उन्होंने रिपोर्ट में कहा कि उन के पिता नारायण सिंह की हत्या लूट के मकसद से की गई थी. वे करीब सवा किलो सोने के आभूषण पहने हुए थे.

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वकील साहब के खतरनाक शौक

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