प्यार की सजा : भाग 3

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

समय बीतता रहा. धीरेधीरे दोनों के प्यार की खुशबू स्कूलकालेज के साथसाथ गांव की गलियों में फैलने लगी. एक कान से दूसरे कान होती हुई यह बात रामप्रसाद के कानों तक पहुंची तो वह सन्न रह गया.

उस ने बेटी को डांटने के बजाए प्यार से समझाया, ‘‘सुलेखा, जब तक तेरा बचपन रहा, मैं ने तुझ पर कोई पाबंदी नहीं लगाई. लेकिन अब तू सयानी हो गई है, इसलिए अंकित के साथ चोरीछिपे बतियाना छोड़ दे. तुझे और अंकित को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. इसलिए मेरी इज्जत की खातिर तू उस का साथ छोड़ दे. इसी में हम सब की भलाई है.’’

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‘‘पापा, लोग यूं ही बातें बनाते हैं. हमारे बीच कोई गलत संबंध नहीं हैं. मैं अंकित से पढ़ाई के बारे में बातचीत कर लेती हूं.’’ सुलेखा ने झूठ बोला.

रामप्रसाद ने सुलेखा की बातों पर विश्वास कर लिया. इस के बाद कुछ रोज सुलेखा अंकित से कटी रही. हालांकि चोरीछिपे दोनों मोबाइल पर बतिया लेते थे. उस के बाद वह पुराने ढर्रे पर आ गई.

एक दिन सुलेखा घर में अकेली थी, तभी अंकित आ गया. उसे देखते ही सुलेखा चहक उठी. सूना घर देख कर अंकित ने उसे अपने आगोश में भर लिया, ‘‘लगता है, तुझे मेरा ही इंतजार था.’’

‘‘क्यों, तुम्हें मेरा इंतजार नहीं रहता क्या?’’ सुलेखा ने आंखें नचाते हुए कहा, ‘‘छोड़ो मुझे, दरवाजा खुला है.’’

अंकित को लगा मौका अच्छा है. सुलेखा भी मूड में थी. उस ने फौरन दरवाजा बंद किया और लौट कर जैसे ही सुलेखा का हाथ पकड़ा, वह अमरबेल की तरह उस से लिपट गई. फिर दोनों सुधबुध खो बैठे.

अवैध संबंधों का सिलसिला इसी तरह चलता रहा. लेकिन यह रिश्ता कब तक छिपा रहता. एक दिन सुलेखा की मां सीता अपनी बड़ी बेटी बरखा के साथ पड़ोसी के घर गई थी. कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम था. एकांत मिलते ही दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उसी समय अचानक सीता आ गई.

सुलेखा और अंकित को आलिंगनबद्ध देख कर सीता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. अंकित को खरीखोटी सुनाते हुए वह उसे थप्पड़ जड़ कर बोली, ‘‘आस्तीन के सांप, मैं ने तुझे बेटा समझा था. तुझ पर भरोसा किया था, लेकिन तूने मेरी ही इज्जत पर डाका डाल दिया.’’

अंकित सिर झुकाए वहां से चला गया तो सीता सुलेखा पर टूट पड़ी. उसे लातघूंसों से मारते हुए बोली, ‘‘आज के बाद अगर तू कभी अंकित से मिली तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

सीता देवी ने सुलेखा के गलत राह पर जाने की जानकारी पति रामप्रसाद व बेटे सनी कुमार को दी तो उन दोनों ने सुलेखा को मारापीटा तथा घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी.

जब पाबंदियां सुलेखा को बेचैन करने लगीं तब उस ने अंकित की चचेरी बहन आरती का सहारा लिया. चूंकि आरती सुलेखा की सहेली थी, सो वह उस की मदद को राजी हो गई. आरती अपने फोन पर अंकित और सुलेखा की बात कराने लगी. मां या बहन बरखा जब कभी सुलेखा का फोन चैक करतीं तो पता चलता कि फोन पर आरती से बात हुई थी.

सुलेखा का चाचा राजीव उर्फ राजी गांव का दबंग आदमी था. जब उसे पता चला कि उस की भतीजी सुलेखा गैरजाति के लड़के अंकित के प्यार में दीवानी है तो उसे बहुत बुरा लगा. उस ने अंकित और उस के घर वालों से मारपीट की. साथ ही हिदायत दी कि वह सुलेखा से दूर रहे वरना अंजाम ठीक नहीं होगा. राजीव ने सुलेखा को भी प्रताडि़त किया तथा उस पर पाबंदी बढ़ा दी.

अंकित और सुलेखा प्यार के उस मुकाम पर पहुंच चुके थे, जहां से वापस लौटना नामुमकिन था. पाबंदी के बावजूद वे एकदूसरे से मिल लेते थे. ऐसे ही एक रोज जब अंकित की मुलाकात सुलेखा से हुई तो वह बोला, ‘‘सुलेखा, तुम्हारी जुदाई मुझ से बरदाश्त नहीं होती और घर वाले मिलने में बाधक बने हुए हैं. इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम मेरे साथ भाग चलो. हम दोनों कहीं दूर जा कर अपना आशियाना बना लेंगे.’’

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अंकित की बात सुन कर सुलेखा गंभीर हो गई, ‘‘तुम्हारे साथ भागने से मेरे परिवार की बदनामी होगी. मेरी एक गलती चाचा, पापा और परिवार पर भारी पड़ेगी. मेरी सगी बहन बरखा व चचेरी बहनें भी कुंवारी रह जाएंगी. इस के लिए मजबूर मत करो.’’

‘‘सोच लो सुलेखा, यह हमारी जिंदगी का सवाल है. मैं तुम्हें कुछ वक्त देता हूं. इतना जान लो कि तुम मुझे नहीं मिली तो मैं कुछ भी कर गुजरूंगा.’’ अंकित ने कहा और चला गया.

पर इस के पहले कि सुलेखा कुछ निर्णय कर पाती, मार्च के अंतिम सप्ताह में देश में लौकडाउन की घोषणा हो गई. ऐसी स्थिति में घर से भागना खतरे से खाली न था, अत: अंकित ने इंतजार करना ही उचित समझा.

इधर न जाने कैसे सुलेखा के चाचा राजीव उर्फ राजी को यह पता चल गया कि अंकित और सुलेखा घर से भागने की फिराक में हैं.

इस के पहले कि सुलेखा घर से भागे और उस के परिवार पर दाग लगे, राजीव ने दोनों को ही मिटाने की ठान ली. इस के बाद उस ने अपने भाई रामप्रसाद, बेटे सौरभ कुमार और भतीजे सनी के साथ एक योजना बनाई.

योजना के तहत सौरभ ने 30 मार्च, 2020 की शाम 7 बजे सुलेखा के प्रेमी अंकित को फोन कर के अपनी दुकान पर बुलाया. जब अंकित दुकान पर पहुंचा तो वह दुकान बंद कर रहा था.

सौरभ अंकित को सुलेखा के संबंध में कुछ जरूरी बात करने के बहाने गांव के बाहर अपने गेहूं के खेत पर ले गया. वहां राजीव, रामप्रसाद और सनी पहले से घात लगाए बैठे थे. अंकित के पहुंचते ही उन सब ने मिल कर उसे दबोच लिया और मुंह दबा कर मार डाला.

अंकित को मौत की नींद सुलाने के बाद राजीव अपने भतीजे सनी के साथ घर पहुंचा. सुलेखा उस समय अपनी बहन बरखा के साथ बतिया रही थी. उन दोनों ने सुलेखा से बात की और फिर अंकित और सुलेखा को आमनेसामने बैठा कर बात करने और कोई ठोस निर्णय लेने की बात कही.

सुलेखा इस के लिए राजी हो गई. इस के बाद वे उसे बहला कर गेहूं के खेत पर ले आए. सुलेखा ने पूछा, ‘‘अंकित कहां है?’’

‘‘वह वहां पड़ा सो रहा है. उसे जगा कर बात करो.’’ राजीव के होठों पर कुटिल मुसकान तैर रही थी.

चंद कदम चल कर सुलेखा अंकित के पास पहुंची और उसे हिलायाडुलाया, पर वह तो मर चुका था. सुलेखा को समझते देर नहीं लगी कि घर वालों ने उस के प्रेमी अंकित को मार डाला है. अब वे उसे भी नहीं छोडेंगे.

वह बदहवास हालत में घर की ओर भागी. लेकिन अभी वह खेत की मेड़ भी पार नहीं कर पाई थी कि रामप्रसाद और सौरभ ने उसे सामने से घेर लिया, ‘‘भागती कहां है कुलच्छिनी. अब तुझे भी नहीं छोडेंगे.’’

इसी के साथ रामप्रसाद, राजीव, सनी और सौरभ ने मिल कर सुलेखा को जमीन पर पटक दिया. फिर रामप्रसाद ने मुंह दबा कर बेटी की सांसें बंद कर दीं. हत्या करने के बाद उन लोगों ने बारीबारी से दोनों के शव अंकित के ही कुएं में डाल दिए. ऐसा उन्होंने इसलिए किया ताकि लोगों को लगे कि दोनों ने आत्महत्या की है.

इधर जब अंकित देर रात तक घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों ने उस की खोज शुरू की. अंकित को खोजते हुए उस की मां दिलीप कुमारी रामप्रसाद के घर गई तो उस ने इलजाम लगाया कि अंकित उस की बेटी को भगा ले गया है.

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दिलीप कुमारी ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही तो रामप्रसाद अपने बेटे सनी कुमार, भाई राजीव व भतीजे सौरभ के साथ घर से गायब हो गया.

दिलीप कुमारी रिपोर्ट लिखाने गई थी, पर पुलिस ने उस की रिपोर्ट दर्ज नहीं की. 2 अप्रैल, 2020 को घटना का खुलासा तब हुआ जब सुदामा नाम का मजदूर पानी लेने कुएं पर गया. पुलिस ने 8 अप्रैल, 2020 को अभियुक्त राजीव उर्फ राजी, सौरभ कुमार, रामप्रसाद तथा सनी से पूछताछ के बाद इटावा कोर्ट में पेश किया, जहां से चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार की सजा : भाग 2

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

थाने में पुलिस ने आरती को प्रताडि़त कर पूछताछ शुरू की. दरअसल पुलिस चाहती थी कि आरती यह स्वीकार कर ले कि प्रेमी युगल की हत्या अंकित के घर वालों ने की है. इस बीच आरती के पिता और भाई थाने पहुंच गए तो उन दोनों को भी जम कर पीटा गया. जब आरती नहीं टूटी तो पुलिस उसे उस के घर छोड़ गई.

आरती एवं उस के घर वालों ने एसएसपी आकाश तोमर से प्रताड़ना की शिकायत की. इस पर एसएसपी ने थानाप्रभारी बलिराज शाही को फटकार लगाई, साथ ही सीओ से भी बात की. उन्होंने कहा कि वह केस को वर्कआउट करें, लेकिन किसी को अनावश्यक प्रताडि़त न करें.

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एसएसपी की हिदायत के बाद पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाते हुए मृतका सुलेखा के पिता, भाई, चाचा और चचेरे भाई पर शिकंजा कस दिया. पुलिस टीम ने उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही उन की टोह के लिए मुखबिरों को भी लगा दिया. यही नहीं, पुलिस ने घर जा कर मृतका सुलेखा की बहन बरखा से भी मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की.

बरखा ने बताया कि पिता, चाचा व भाई सुलेखा को बहलाफुसला कर गेहूं के खेत पर ले गए थे. उस के बाद वह घर वापस नहीं आई.

बरखा के बयान से स्पष्ट हो गया कि सुलेखा व उस के प्रेमी अंकित की हत्या उस के घर वालों ने ही की थी, अत: पुलिस ने सुलेखा के पिता रामप्रसाद, भाई सनी कुमार, चाचा राजीव उर्फ राजी तथा चचेरे भाई सौरभ को गिरफ्तार करने के लिए कई जगह ताबड़तोड़ दबिश डालीं, लेकिन वे लोग पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े. हालांकि उन की लोकेशन भरथना के आसपास के गांवों की मिल रही थी.

7 अप्रैल की सुबह करीब 6 बजे पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि इटावा कन्नौज हाइवे पर स्थित झिझुआ मोड़ गेट के पास रामप्रसाद अपने भाई राजीव, बेटे सनी और भतीजे सौरभ के साथ मौजूद है.

यह सूचना मिलते ही पुलिस टीम झिझुआ मोड़ गेट के पास पहुंच गई और घेराबंदी कर चारों को गिरफ्तार कर लिया. उन सभी को थाना भरथना लाया गया.

थाने में उन से सुलेखा और अंकित की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो वे टूट गए. उन चारों से गहन पूछताछ के बाद पता चला कि प्रेमी युगल की हत्या का मास्टरमाइंड सुलेखा का चाचा राजीव उर्फ राजी था. उस ने ही पूरा षडयंत्र रचा था और घर के अन्य लोगों को उकसाया था.

चूंकि हत्यारोपियों ने जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी बलिराज शाही ने मृतका के पिता प्रदीप शाक्य की ओर से भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत रामप्रसाद, राजीव उर्फ राजी, सनी कुमार तथा सौरभ कुमार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस जांच में नादान प्रेमियों की हत्या की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के थाना भरथना क्षेत्र में एक गांव है दिवरासई. इसी गांव में रामप्रसाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सीता के अलावा 2 बेटे सनी और मनी तथा 4 बेटियां थीं. जिन में सुलेखा तीसरे नंबर की थी. रामप्रसाद के पास 10 बीघा जमीन थी.

रामप्रसाद का एक अन्य भाई राजीव प्रसाद था, जिसे गांव के लोग राजी कहते थे. दोनों भाइयों के बीच जमीन व मकान का बंटवारा हो चुका था. राजीव दबंग था, पढ़ालिखा भी. किसानी के साथ वह किराने की दुकान भी चलाता था. दुकान पर उस का बेटा सौरभ बैठता था. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

सुलेखा और बरखा के अलावा सभी बहनों की शादी हो चुकी थी. बरखा 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. घर के कामों के साथसाथ वह पढ़ती भी थी.

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रामप्रसाद के पड़ोस में प्रदीप कुमार शाक्य का मकान था. उस के परिवार में पत्नी दिलीप कुमारी के अलावा 2 बेटे अमन और अंकित थे. प्रदीप कुमार शाक्य खेतीकिसानी के अलावा गल्ले का व्यवसाय भी करता था. इस से उसे अच्छी कमाई हो जाती थी. उन का 17 वर्षीय बेटा अंकित 11वीं में पढ़ रहा था. पढ़ाई के साथसाथ वह पिता के गल्ले के काम में हाथ बंटाता था.

रामप्रसाद व प्रदीप कुमार हालांकि अलगअलग जातिबिरादरी के थे, लेकिन पड़ोसी होने के नाते दोनों परिवारों में मधुर संबंध थे. एकदूसरे के सुखदुख में बराबर शरीक होते थे. सुलेखा और अंकित हमउम्र थे. बचपन से ही दोनों साथ खेलेबढ़े थे. उन में खूब पटती थी.

दोनों अब जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे. इसलिए वे साथसाथ खेल तो नहीं पाते थे पर आंखों से एकदूसरे को मूक संदेश देने लगे थे. अंकित की शरारत पर सुलेखा शरमा जाती तो अंकित उसे छूते ही मदहोशी के आलम में पहुंच जाता था. हकीकत यह थी कि सुलेखा उस के दिल की गहराइयों तक समा चुकी थी. वह रातदिन उसी के ख्वाब देखता था.

सुलेखा और अंकित एक ही कालेज में पढ़ते थे. सुलेखा अंकित की चचेरी बहन आरती के साथ कालेज जाती थी. वह उस की प्रिय सहेली थी और उसी की कक्षा में पढ़ती थी. एक दिन सुलेखा कालेज जा रही थी तभी अंकित उसे रास्ते में मिल गया.

अंकित ने इशारे से उसे पेड़ की ओट में बुलाया. दोनों की आंखें चार हुईं और दिल धड़कने लगे. अंकित ने अनायास ही सुलेखा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘सुलेखा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारा खूबसूरत चेहरा हर समय मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है.’’

सुलेखा नजरें नीची कर के मंदमंद मुसकराती हुई पैर के अंगूठे से मिट्टी खुरचती रही. उस की खामोशी से अंकित को उस के दिल की बात पता चल गई. वह समझ गया कि जो हाल उस का है, वही सुलेखा का भी है.

अंकित ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘कुछ तो बोलो, मैं तुम्हारा जवाब सुनने को बेचैन हूं. अगर तुम्हें मेरी बात अच्छी नहीं लगी तो मुझे डांट दो. लेकिन एक बात जान लो सुलेखा कि अगर तुम ने इनकार किया तो तुम्हारी कसम मैं जान दे दूंगा. तुम्हारे बिना अब मैं जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता.’’

सुलेखा ने आंखें फाड़ कर अंकित को देखा और मुसकराते हुए बोली, ‘‘अंकित, मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं जितना तुम मुझे करते हो. मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी कि तुम मुझ से यह बात कहो, लेकिन तुम तो निरे बुद्धू हो.’’ अपनी बात कह कर वह घर की तरफ चल दी.

जवाब में अंकित ने कहा, ‘‘सुलेखा, सचमुच मैं बुद्धू हूं, डरपोक हूं. तभी तो सब कुछ जानते हुए भी तुम्हारे सामने नहीं आ पाता था.’’

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इस के बाद अंकित और सुलेखा का प्यार परवान चढ़ने लगा. सुलेखा और अंकित घर से कालेज जाने को निकलते लेकिन वे कालेज न जा कर बागबगीचे में बैठ कर प्यारभरी बातें करते. एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ा तो दोनों शारीरिक मिलन के लिए लालायित रहने लगे. और एक दिन उन की यह हसरत भी पूरी हो गई.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

प्यार की सजा : भाग 1

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

इटावा जिले के दिवरासई गांव का रहने वाला मेवाराम यादव अपनी गेहूं की पकी फसल काट रहा था. साथ में कई मजदूर भी कटाई कर रहे थे. दोपहर करीब 12 बजे प्यास लगी तो मेवाराम ने मजदूर सुदामा को पानी लाने प्रदीप कुमार के कुएं पर भेजा.

सुदामा कुएं पर पहुंचा तो उसे कुएं से बदबू आती महसूस हुई. जिज्ञासावश उस ने कुएं में झांका तो उस के मुंह से चीख निकल गई. कुएं में लाश पड़ी थी.

सुदामा की चीख सुन कर मेवाराम और मजदूर भी कुएं के पास पहुंच गए. इस के बाद तो पूरे गांव में शोर मच गया. यह बात 2 अप्रैल, 2020 की है.

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अपने कुएं में लाश पड़ी होने की जानकारी प्रदीप कुमार शाक्य को हुई तो उस का माथा ठनका. क्योंकि उस का 17 वर्षीय बेटा अंकित 30 मार्च की शाम 7 बजे घर से निकला था और वापस नहीं लौटा था. उस ने घर वालों के साथ गांव का कोनाकोना छान मारा था, लेकिन अंकित का कुछ भी पता नहीं चला. वह बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराने पुलिस के पास भी गया था लेकिन पुलिस ने उसे टरका दिया था.

प्रदीप के मन में तमाम आशंकाओं के बादल उमड़ने लगे. इन्हीं आशंकाओं के बीच उस ने पत्नी दिलीप कुमारी तथा घर के अन्य लोगों को साथ लिया और खेत पर स्थित अपने कुएं पर जा पहुंचा.

उस समय वहां दरजनों लोग थे, जो कुएं में झांकझांक कर लाश को देख रहे थे. प्रदीप कुमार और उस के घर के अन्य लोगों ने भी कुएं में झांक कर लाश देखी, पर यह सुनिश्चित कर पाना मुश्किल था कि लाश किस की है. इस बीच गांव के चौकीदार ने भरथना थाने में फोन कर यह जानकारी दे दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी बलिराज शाही पुलिस टीम के साथ दिवरासई गांव स्थित उस कुएं पर पहुंच गए, जहां लाश पड़ी थी. गांव के 2 युवकों सूरज और राजू को कुएं में उतारा गया. दोनों अच्छे तैराक थे. कुएं में उतरते ही सूरज चिल्लाया, ‘‘सर, कुएं में एक नहीं 2 लाशें हैं.’’ यह सुन कर पुलिस के साथसाथ गांव वालों की भी सांसें अटक गईं.

उन युवकों के सहयोग से पुलिस ने रस्सी के सहारे खींच कर दोनों शव कुएं से बाहर निकलवाए. शवों को देख कर वहां मौजूद लोगों ने उन की शिनाख्त कर ली. एक शव प्रदीप कुमार शाक्य के बेटे अंकित का था और दूसरा 16 वर्षीया सुलेखा का, जो गांव के ही रामप्रसाद की बेटी थी.

रामप्रसाद तथा उस के घर का कोई सदस्य वहां मौजूद नहीं था. थानाप्रभारी ने उस के घर सूचना भिजवाई. पर सूचना के बाद भी उस के घर से कोई नहीं आया.

घटनास्थल पर मौजूद प्रदीप कुमार व उस की पत्नी दिलीप कुमारी अपने 17 वर्षीय बेटे अंकित के शव को देख कर दहाड़ें मार कर रो रहे थे. परिवार के अन्य लोगों का भी रोरो कर बुरा हाल था. इसी बीच थानाप्रभारी बलिराज शाही ने कुएं से युवकयुवती के शव मिलने की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में एसएसपी आकाश तोमर तथा सीओ (भरथना) आलोक प्रसाद आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर मृतक के घर वालों तथा अन्य लोगों से घटना के संबंध में जानकारी जुटाई. जिस से पता चला कि अंकित और सुलेखा एक ही कालेज में पढ़ते थे, दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. दोनों के घर वाले इस का विरोध करते थे. 2 दिन पहले ही दोनों देर शाम घर से निकले थे.

जामातलाशी में उन के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. पुलिस अधिकारियों को यह जान कर आश्चर्य हुआ कि सुलेखा के घर वाले वहां नहीं आए थे. लोगों ने बताया कि मृतका के घर पर केवल महिलाएं हैं. पुरुष फरार हैं. सूचना के बावजूद घर की महिलाएं भी मृतका का शव देखने नहीं आईं, यह बात पुलिस की समझ से बाहर थी.

इस से पुलिस अधिकारियों को लगा कि यह मामला औनर किलिंग का हो सकता है. अंकित की मां दिलीप कुमारी भी चीखचीख कर कह रही थी कि उस के बेटे की हत्या सुलेखा के घर वालों ने की है. हत्या कर के शव कुएं में फेंक दिया ताकि लोग समझें कि दोनों ने आत्महत्या की है.

मामला हत्या का था या आत्महत्या का, यह बात तो पोस्टमार्टम के बाद ही पता चल सकती थी. पुलिस ने अंकित व सुलेखा के शव पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल इटावा भिजवा दिए.

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3 अप्रैल, 2020 को 3 डाक्टरों के पैनल ने दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया. थानाप्रभारी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ी तो चौंके. क्योंकि मामला आत्महत्या का नहीं, हत्या का था. उन की मौत पानी में डूबने से नहीं बल्कि दम घुटने से हुई थी. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसएसपी आकाश तोमर को दे दी.

एसएसपी ने प्रेमी युगल हत्याकांड को गंभीरता से लिया और कातिलों को पकड़ने के लिए सीओ आलोक प्रसाद की निगरानी में एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में थानाप्रभारी बलिराज शाही, एसआई अनिल कुमार, महिला सिपाही सरिता सिंह, एसओजी प्रभारी सत्येंद्र सिंह तथा सर्विलांस प्रभारी बेचैन सिंह को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक अंकित के घर वालों से पूछताछ की. मृतक की मां दिलीप कुमारी ने बताया कि 30 मार्च को 7 बजे अंकित के मोबाइल पर एक काल आई थी. उस ने काल रिसीव कर बात की फिर घर से चला गया. उस के बाद वापस नहीं लौटा. 2 दिन बाद उस की लाश मिली. उस ने अंकित की हत्या का आरोप सुलेखा के घर वालों पर लगाया.

अंकित का मोबाइल घर पर ही था, जिसे वह चार्जिंग पर लगा गया था. पुलिस टीम ने मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस ने जब उस का मोबाइल खंगाला तो पता चला कि उस के मोबाइल पर अंतिम काल 30 मार्च की शाम 7 बजे आई थी. पुलिस ने उस नंबर की जानकारी जुटाई तो पता चला वह नंबर सुलेखा के चचेरे भाई सौरभ का है. पर सौरभ सहित घर के अन्य सदस्य फरार थे.

पुलिस टीम सुलेखा के घर पहुंची तो उस की मां सीता देवी और बहनें फूटफूट कर रोने लगीं. उन्होंने बताया कि सुलेखा की हत्या अंकित के घर वालों ने की है. घर के पुरुष बदनामी और पुलिस के डर से फरार हो गए हैं.

सीता देवी ने यह बात स्वीकार की कि सुलेखा अंकित से प्यार करती थी और परिवार के लोग विरोध करते थे. सुलेखा का मोबाइल फोन भी घर पर ही था. पुलिस ने उस का मोबाइल अपने पास सुरक्षित रख लिया.

प्रेमी युगल की हत्या का इलजाम दोनों परिवार एकदूसरे पर लगा रहे थे. पुलिस परेशान थी कि आखिर अंकित और सुलेखा का कातिल कौन सा परिवार है. इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने सुलेखा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि सुलेखा 2 नंबरों पर दिन में कईकई बार बात करती थी. इन में एक नंबर अंकित का था और दूसरा अंकित की चचेरी बहन आरती का था, जो उस की सहेली थी और उस के साथ ही पढ़ती थी. पुलिस को लगा कि आरती से सच्चाई पता चल सकती है.

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4 अप्रैल की रात 11 बजे पुलिस टीम अंकित के चाचा रामकुमार के घर पहुंची और पूछताछ के बहाने उस की बेटी आरती को जीप में बिठा लिया. घर वालों ने रात में बेटी को थाने ले जाने का विरोध किया तो पुलिस ने कहा कि उस से कुछ पूछताछ करनी है.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

घर में दफ्न 4 लाशें

घर में दफ्न 4 लाशें : भाग 3

नरेंद्र ने विजय के सामने ससुर की सारी संपत्ति की पोल खोल दी, जिस से उस के मन में भी लालच पैदा हो गया. नरेंद्र के इशारे पर उस ने हीरालाल की मंझली बेटी पार्वती पर निगाहें गड़ा दीं. लेकिन पार्वती समझदार थी. विजय के लाख कोशिश करने के बाद भी वह उस के प्रेम जाल में नहीं फंसी. यह बात नरेंद्र को पता चली तो उस के मन में हीरालाल की पूरी संपत्ति हड़पने का लालच आ गया.

संपत्ति के लालच में वह ससुर के साथसाथ बाकी लोगों को भी मौत के घाट उतारने के लिए षडयंत्र रचने लगा. लेकिन वह अपनी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. उसे पता लग गया था कि विजय पार्वती को पटाने में असफल रहा. इस पर उस ने विजय से कहा कि पार्वती ने यह बात अपने पापा को बता दी तो वह मोहल्ले में नहीं रह पाएगा.

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नरेंद्र की बात सुन विजय घबरा गया. इस के बाद विजय नरेंद्र की हां में हां मिलाने लगा. अपना अगला दांव चलते हुए नरेंद्र अपने घर पर विजय की दावत करने लगा. खातेपीते एक दिन नरेंद्र ने लालच दे कर विजय को अपनी योजना बता दी.

नरेंद्र ने विजय के साथ मिल कर 17 अप्रैल, 2019 को अपने ससुराल वालों की हत्या की योजना को अंतिम रूप दे दिया. योजना बन गई तो नरेंद्र बीवीबच्चों को अपने फूफा के घर देवरनियां, बरेली में छोड़ आया ताकि उन्हें उस की साजिश का पता न चल सके.

बीवीबच्चों को बरेली भेजने के बाद नरेंद्र अपनी योजना को अंजाम देने के लिए मौके की तलाश में लग गया. लेकिन उसे मौका नहीं मिल पा रहा था. नरेंद्र और विजय को यह भी डर था कि अगर किसी वजह से वह इस योजना में फेल हो गए तो न घर के रहेंगे न घाट के.

नरेंद्र को पता था कि उस की सास सुबहसुबह दूध लेने जाती है. उस वक्त ससुर और दोनों सालियां सोई रहती हैं. घर का गेट खुला रहता है. पड़ोसी भी सोए होते हैं. घटना को अंजाम देने के लिए नरेंद्र को यह समय ठीक लगा.

20 अप्रैल, 2019 को नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार सुबह जल्दी उठ गए और हेमवती के जाने का इंतजार करने लगे. उस दिन हेमवती सुबह के साढ़े 5 बजे बेटी पार्वती को साथ ले कर दूध लेने के लिए निकली. उन के घर से निकलते ही नरेंद्र विजय को साथ ले कर हीरालाल के घर में घुस गया.

लेकिन तब तक हीरालाल सो कर उठ चुके थे. सुबहसुबह उन दोनों को अपने घर में देख हीरालाल ने आने का कारण पूछा तो नरेंद्र ने कहा कि आज मैं आखिरी बार आप से पूछने आया हूं कि मेरे हिस्से की संपत्ति मुझे देते हो या नहीं.

सुबहसुबह दामाद के मुंह से ऐसी बात सुन कर हीरालाल का पारा चढ़ गया. दोनों के बीच विवाद बढ़ा तो योजनानुसार नरेंद्र ने वहीं रखी लकड़ी की फंटी से पीटपीट कर हीरालाल की हत्या कर दी. पिता के चीखने की आवाज सुन कर बेटी दुर्गा उन के बचाव में आई तो दोनों ने उसे भी फंटी से पीटपीट कर मार डाला.

दोनों को मौत की नींद सुलाने के बाद नरेंद्र और विजय हेमवती और पार्वती के आने का इंतजार करने लगे. जैसे ही उन दोनों ने घर में प्रवेश किया, दरवाजे के पीछे खड़े नरेंद्र और विजय ने उन्हें भी पीटपीट कर मार डाला.

सासससुर और दोनों सालियों की हत्या करने के बाद नरेंद्र और विजय ने चारों को घसीट कर एक कमरे में ले जा कर डाल दिया. कहीं कोई जिंदा तो नहीं रह गया, जानने के लिए दोनों ने एकएक कर सब की नब्ज चैक की.

जब उन्हें पूरा यकीन हो गया कि चारों की मौत हो चुकी है, तो दोनों ने मकान में फैले खून को धो कर साफ किया और घर के बाहर ताला डाल कर घर लौट आए. नरेंद्र और विजय ने चारों की हत्या तो कर दी, लेकिन समस्या थी लाशों को ठिकाने लगाने की. नरेंद्र जानता था कि लाशों को घर से बाहर ले जाना खतरे से खाली नहीं है.

सोचविचार कर दोनों ने तय किया कि बाजार से प्लास्टिक बैग ला कर लाशों को उस में लपेटा जाए और घर में गड्ढा खोद कर दफना दिया जाए. संभावना थी कि पौलीथिन में लिपटी होने से लाशों के सड़ने की बदबू बाहर नहीं आ पाएगी.

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20 अप्रैल, 2019 को ही नरेंद्र बाजार से पौलीथिन खरीद कर लाया. उसी रात दोनों ने हीरालाल के मकान में जा कर चारों लाशों को पैक कर दिया. अगले दिन 21 अप्रैल, 2019 को सुबह नरेंद्र विजय को साथ ले कर ससुर के घर गया. फिर अपनी योजना के मुताबिक दोनों ने जीने के नीचे गड्ढा खोदना शुरू किया.

कुछ पड़ोसियों ने नरेंद्र से हीरालाल के घर में अचानक काम कराने के बारे में पूछा तो नरेंद्र ने कहा कि ससुर मकान बेच कर कहीं दूसरी जगह चले गए. घर में रिपेयरिंग का काम चल रहा है. वैसे उस मोहल्ले में नरेंद्र से कोई ज्यादा मतलब नहीं रखता था.

नरेंद्र ने विजय के साथ मिल कर लगभग 6 घंटे में गहरा गड्ढा खोदा. उस के बाद दोनों ने प्लास्टिक की शीट में पैक चारों लाशें गड्ढे में डाल दीं. लाशों को गड्ढे में दफन कर दोनों ने वहां पर पक्का फर्श बना दिया. नरेंद्र ने हीरालाल के घर के मुख्य दरवाजे पर ताला डाल दिया.

हीरालाल के घर पर अचानक ताला पड़ा देख लोगों को हैरत जरूर हुई. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि हीरालाल रात ही रात में अपने परिवार को ले कर अचानक कहां गायब हो गए. लेकिन नरेंद्र से किसी ने भी पूछने की हिम्मत नहीं की थी.

अपने सासससुर और सालियों को ठिकाने लगा कर नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को भी घर ले आया. घर आते ही लीलावती की नजर पिता के मकान की ओर गई, जहां पर ताला पड़ा था. लीलावती ने नरेंद्र से उन के बारे में पूछा, तो उस ने बताया कि उस के पिता अपना मकान बेच कर हल्द्वानी चले गए हैं. उन्होंने वहां पर अपना प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया है.

यह सुन कर लीलावती चुप हो गई. मातापिता के बारे में नरेंद्र से ज्यादा पूछने की हिम्मत उस में नहीं थी. अगर नरेंद्र संपत्ति हड़पने के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने में जल्दबाजी न करता तो यह राज शायद राज ही बन कर रह जाता.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने आरोपी नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार को भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया था.

चारों शव पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने उन के रिश्तेदार दुर्गा प्रसाद को सौंप दिए. उन का दाह संस्कार बरेली के गांव पैगानगरी के पास भाखड़ा नदी किनारे किया गया.

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नरेंद्र गंगवार इतना शातिर दिमाग इंसान था कि इस केस में उस ने दुर्गा प्रसाद को भी फंसाने की कोशिश की. लेकिन सच्चाई सामने आते ही पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया. हालांकि इस केस की रिपोर्ट दुर्गा प्रसाद की ओर से ही दर्ज कराई गई थी. पुलिस ने लीलावती से पूछताछ करने के बाद उसे छोड़ दिया. वह नरेंद्र के फूफा के साथ बहेड़ी चली गई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

घर में दफ्न 4 लाशें : भाग 2

हीरालाल जिला बरेली के गांव पैगानगरी के रहने वाले थे. उन का परिवार सुखीसंपन्न था. गांव में उन की करीब 60 बीघा जुतासे की जमीन थी. उन की 3 बेटियां थीं.

लीलावती उर्फ लवली, पार्वती और सब से छोटी दुर्गा. पत्नी हेमवती सहित घर में कुल 5 सदस्य थे. हीरालाल की एक ही परेशानी थी कि उन का कोई बेटा नहीं था.

हीरालाल ने बेटे की चाह में काफी हाथपांव मारे. वह कई डाक्टरों और तांत्रिकों से मिले, लेकिन उन की बेटा पाने की इच्छा पूरी न हो सकी.

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अंतत: उन्होंने अपना पूरा ध्यान बेटियों की परवरिश में लगा दिया. बेटियां समझदार हुईं तो हीरालाल ने सोचा कि उन्हें अच्छी शिक्षा दिलानी चाहिए. लेकिन गांव में रहते यह संभव नहीं था.

सोचविचार के बाद हीरालाल ने सन 2007 में अपनी खेती की जमीन में से 44 बीघा जमीन बेच दी. उस पैसे को ले कर वह अपने परिवार के साथ रुद्रपुर की राजा कालोनी में आ बसे. वहीं उन्होेंने अपना मकान बना लिया.

रुद्रपुर आ कर हीरालाल ने अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए तीनों बेटियों का अच्छे स्कूल में दाखिला करा दिया था.

बेटियों की तरफ से निश्चिंत हो कर हीरालाल ने बाकी बचे पैसों से प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया. जमीन के पैसों से उन्होंने घर के आसपास कई प्लौट खरीद कर डाल दिए. उसी दौरान हीरालाल की मुलाकात नरेंद्र गंगवार से हुई.

नरेंद्र रामपुर जिले के गांव खेड़ासराय का रहने वाला था. वह उसी मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था और सिडकुल की एक फैक्ट्री में काम करता था. उस ने हीरालाल से एक प्लौट खरीदने की इच्छा जाहिर की.

हीरालाल ने उसे अपने घर के सामने पड़ा प्लौट दिखाया तो वह नरेंद्र को पसंद आ गया. नरेंद्र ने वह प्लौट खरीद लिया. प्लौट लेने के बाद नरेंद्र की हीरालाल से जानपहचान हो गई. वह उन के संपर्क में रहने लगा. इसी बहाने वह हीरालाल के घर भी आनेजाने लगा.

इसी बीच नरेंद्र की नजर हीरालाल के बड़ी बेटी लीलावती पर पड़ी. लीला देखनेभालने में सुंदर थी और उस समय पढ़ रही थी. वह जब भी हीरालाल के घर जाता तो उस की निगाहें लीला पर टिकी रहती थीं.

लीला नरेंद्र के बारे में पहले ही सब कुछ जान चुकी थी. जब उस ने नरेंद्र को अपनी ओर आकर्षित होते देखा तो उस के दिल में भी चाहत पैदा हो गई. जल्दी ही दोनों प्रेम की राह पर चल निकले.

लीला स्कूल जाती तो नरेंद्र घंटों उस की राह तकता रहता. उस के स्कूल जाने का फायदा उठा कर वह घर के बाहर ही मिलने लगा. प्रेम बेल फलीफूली तो मोहल्ले वालों की नजरों में किरकरी बन कर चुभने लगी.

दोनों की प्रेम कहानी हीरालाल के सामने जा पहुंची तो बेटी की करतूत सुन कर उन्हें बहुत दुख हुआ. हीरालाल ने लीला को समझाया और नरेंद्र के घर आने पर पाबंदी लगा दी. लेकिन मोबाइल फोन के होते नरेंद्र और लीला के मिलने में किसी तरह की अड़चन नहीं आई. दोनों चोरीछिपे मिलते रहे.

प्रेम कहानी के चलते लीला ने सन 2008 में घर वालों को बिना बताए नरेंद्र से लव मैरिज कर ली. नरेंद्र के साथ शादी करने के बाद लीला उस के साथ किराए के मकान में रहने लगी.

बेटी की इस करतूत से हीरालाल और उन की पत्नी हेमवती दोनों को ही आघात पहुंचा था. उन्होंने बेटी लीला से संबंध खत्म कर दिए.

लेकिन हेमवती मां थी. बच्चों के लिए मां का दिल कोमल होता है. लीलावती ने नरेंद्र से शादी कर भले ही अपनी दुनिया बसा ली थी, लेकिन मां होने के नाते हेमवती उस के लिए परेशान रहने लगी थी. जब उस से बेटी के बिना नहीं रहा गया तो वह पति को बिना बताए उस से मिलने लगी.

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जब कभी वह घर में कुछ अच्छा बनाती, तो चुपके से लीला को दे आती थी. साथ ही वह उस की आर्थिक मदद भी करने लगी थी. यह बात हीरालाल को भी पता चल गई थी. शुरूशुरू में तो इस बात को ले कर मियांबीवी में विवाद होने लगा. लेकिन हीरालाल भी दिल के कमजोर थे. बेटी की परेशानी को देखते हुए उन का दिल भी पसीज गया.

शादी के कुछ समय बाद ही हीरालाल ने नरेंद्र को अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया. हीरालाल और हेमवती दोनों को अपने घर ले आए. इस के बाद नरेंद्र और लीला हीरालाल के मकान में रहने लगे.

उसी दौरान नरेंद्र कई बार हीरालाल के साथ उन के गांव पैगानगरी भी गया था. गांव में हीरालाल का मकान था. साथ ही उन की 16 बीघा जमीन भी थी, जिसे उन्होंने बंटाई पर दे रखा था. उस जमीन से उन्हें हर साल इतना रुपया मिल जाता था कि उन के परिवार की जरूरतें पूरी हो जाती थीं, प्रौपर्टी खरीदबेच कर जो कमाते थे वह अलग था.

ससुर के साथ रहते हुए नरेंद्र उन की एकएक बात अपने दिमाग में बैठा लेता था. मातापिता के घर पर रहते हुए लीलावती 2 बेटियों और 2 बेटों की मां बनी.

हीरालाल के घर पर रहते हुए नरेंद्र नौकरी के साथसाथ उन के काम में भी हाथ बंटाने लगा था. हालांकि नरेंद्र के चारों बच्चों का खर्च हीरालाल ही उठाते थे. इस के बावजूद वह अपने खर्च के लिए हीरालाल से पैसे ऐंठता रहता था.

अभी हीरालाल की 2 बेटियां शादी के लिए बाकी थीं. वह चाहते थे कि दोनों बेटियां बड़ी की तरह कोई कदम न उठाएं. यही सोच कर वह टाइम से उन की शादी कर देना चाहते थे.

लेकिन जब से नरेंद्र दामाद बन कर घर में आया था, सालियों को फूटी आंख नहीं देखना चाहता था. वह तेजतर्रार और चालाक था. लीला से शादी कर के उस की निगाह हीरालाल की संपत्ति पर जम गई थी.

उसी दौरान उस ने हीरालाल पर दबाव बनाना शुरू किया कि उस के हिस्से की संपत्ति उस के नाम करा दें. लेकिन हीरालाल ने साफ कह दिया कि जब तक दोनों बेटियां विदा नहीं हो जातीं, वह अपनी संपत्ति का बंटवारा नहीं करेंगे.

हीरालाल जब नरेंद्र की हरकतों से परेशान हो गए तो उन्होंने नरेंद्र के प्लौट पर मकान बनवा दिया. इस के बाद नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को साथ ले कर नए मकान में चला गया.

हीरालाल ने सोचा था कि नरेंद्र अपने घर जाने के बाद सुधर जाएगा. लेकिन घर आमनेसामने होने की वजह से उस के बीवीबच्चे तो हीरालाल के घर पर पड़े ही रहते थे, वह भी आ कर बदतमीजी पर उतर आता था. लेकिन ससुर होने के नाते हीरालाल सब कुछ सहन करते रहे.

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उसी दौरान नरेंद्र ने अपने मकान में विजय नाम का एक किराएदार रख लिया. विजय गंगवार जिला बरेली के गांव दमखोदा का रहने वाला था. नरेंद्र विजय गंगवार से पहले से ही परिचित था. सो दोनों में खूब पटने लगी. विजय गंगवार कुंवारा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

घर में दफ्न 4 लाशें : भाग 1

25 अगस्त, 2020 को नरेंद्र गंगवार अपने ससुर हीरालाल के पैतृक गांव पैगानगरी पहुंचा. यह गांव बरेली जिले की तहसील मीरगंज में आता है. गांव के दुर्गाप्रसाद नरेंद्र को जानते थे, इसलिए वह उन्हीं से मिला. नरेंद्र के ससुर हीरालाल दुर्गाप्रसाद के नाना थे.

पैगानगरी में हीरालाल की 16 बीघा जमीन थी जो उन्होंने बटाई पर दे रखी थी. वह खेती की पैदावार का हिस्सा लेने गांव आते रहते थे. नरेंद्र बटाई का हिस्सा लेने आया था. साथ ही उसे इस से भी बड़ा एक और काम था. दुर्गा प्रसाद नरेंद्र को जानते थे. वह कई बार अपने ससुर के साथ गांव आया था.

इस पर नरेंद्र ने कहा, ‘‘दुर्गा प्रसादजी, बहुत दुखद खबर है. आप के नाना हीरालालजी अब इस दुनिया में नहीं रहे. 22 अप्रैल, 2020 को हीरालालजी और उन की मंझली बेटी दुर्गा ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लौकडाउन के चलते हम किसी को उन की मृत्यु की खबर नहीं दे पाए.

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कोरोना महामारी के चलते मैं ने अपनी बीवी लीलावती, किराएदार विजय व अन्य लोगों के सहयोग से उन का दाहसंस्कार करा दिया था.

बाद में पति के वियोग में उन की पत्नी हेमवती भी बेटी पार्वती को ले कर कहीं चली गईं. मैं ने और लीलावती ने उन्हें सब जगह ढूंढा, लेकिन उन का कहीं पता न चल सका.’’

हीरालाल की मृत्यु की खबर सुन कर दुर्गा प्रसाद को झटका लगा.

दुर्गाप्रसाद के पास गांव के कई लोग बैठे थे. यह खबर सुन कर सब हैरत में रह गए. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि जो इंसान अपनी औलादों के सुनहरे भविष्य के लिए गांव छोड़ शहर जा बसा था, वह कायरों की तरह आत्महत्या कर लेगा.

हीरालाल की मृत्यु की खबर सुन कर गांव के लोग तरहतरह की बातें करने लगे. दुर्गाप्रसाद और गांव वालों की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि जब पति और बेटी खत्म हो गई तो हेमवती को छोटी बेटी को ले कर कहीं जाने की क्या जरूरत थी? गांव में उस के पति की 16 बीघा जमीन थी, जिस के सहारे आराम से दोनों की जिंदगी चल जाती. गांव में उन का अपना मकान भी था.

नरेंद्र ने अपने आने का मकसद बताते हुए कहा, ‘‘ससुर के घर के पास ही मेरा भी मकान है. उन के मकान पर एकमात्र बची उन की बेटी लीलावती का मालिकाना हक है. मैं उस मकान को लीलावती के नाम कराना चाहता हूं, लेकिन इस के लिए मुझे हीरालालजी के मृत्यु प्रमाण पत्र की जरूरत है. आप लोग उन के परिवार के लोग हो, आप यह काम करा सकते हैं.’’

नरेंद्र की बात सुन कर दुर्गा प्रसाद का दिमाग घूम गया. उन्हें नरेंद्र की बात में कुछ झोल नजर आया. दुर्गा प्रसाद ने उसी समय हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन के घर जा कर उन्हें सारी बात बताई और नरेंद्र की बातों पर शक जाहिर किया.

कुंवर सैन ने उसे बटाई का हिस्सा देने से साफ मना कर दिया. साथ ही दुर्गा प्रसाद ने लिखित में कुछ देने से भी इनकार कर दिया. नरेंद्र खाली हाथ लौट गया.

नरेंद्र की बातों पर शक हुआ तो दुर्गा प्रसाद हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन को साथ ले कर 27 अगस्त, 2020 को उन की मौत की सच्चाई जानने के लिए रुद्रपुरट्रांजिट कैंप पहुंचे. वहां हीरालाल के घर पर ताला लगा मिला.

उन्होंने पड़ोसियों से उन के बारे में जानकारी लेनी चाही तो पता चला कि हीरालाल के घर पर पिछले 15 महीने से ताला लटका हुआ है. इस दौरान उन्होंने कभी भी हीरालाल और उन के परिवार वालों को आतेजाते नहीं देखा.

यह जान कर दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन को हैरानी हुई, क्योंकि नरेंद्र ने उन्हें बताया था कि हीरालाल ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लेकिन उस के पड़ोसियों को इस की जानकारी नहीं थी.

नरेंद्र का झूठ सामने आया तो दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन समझ गए कि हीरालाल की संपत्ति हड़पने की मंशा के चलते नरेंद्र ने ही कोई चक्रव्यूह रच कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया होगा.

हीरालाल के परिवार के साथ किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन उसी दिन ट्रांजिट कैंप थाने पहुंच गए. उन्होंने यह बात थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी को बताई.

मामला एक ही परिवार के 4 लोगों के लापता होने का था, इसलिए जोशीजी ने इसे गंभीरता से लिया. दुर्गाप्रसाद और कुंवर सैन से जरूरी जानकारी ले कर जोशी ने उन्हें घर भेज दिया. फिर थानाप्रभारी जोशी ने इस मामले की सच्चाई जानने के लिए गुप्तरूप से जांचपड़ताल करानी शुरू की. सादे कपड़ों में जा कर उन्होंने नरेंद्र गंगवार को कब्जे में लिया, ताकि वह फरार न हो सके.

थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी ने नरेंद्र से हीरालाल और उन के परिवार के सदस्यों के बारे में कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में नरेंद्र शुरूशुरू में इधरउधर की कहानी गढ़ता रहा. लेकिन जब पुलिस की सख्ती बढ़ी तो उस का धैर्य जवाब दे गया. उस के बाद उस ने अपनी ससुराल वालों की हत्या की बात स्वीकार कर ली. उस ने यह काम अपने किराएदार विजय की मदद से किया था.

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नरेंद्र गंगवार ने बताया कि 20 अप्रैल, 2019 को सुबह साढ़े 5 बजे उस ने विजय के साथ मिल कर सासससुर और 2 सालियों को डंडे से मार कर मौत के घाट उतारा था. फिर गड्ढा खोद कर उन की लाशों को उन्हीं के मकान में दफन कर दिया था.

नरेंद्र द्वारा 4 लोगों की हत्या कर घर में ही दफनाने वाली बात सामने आई तो थानाप्रभारी भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने इस की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. साथ ही तत्परता दिखाते हुए थानाप्रभारी ने नरेंद्र के सहयोगी उस के किराएदार विजय को अपनी हिरासत में ले लिया.

अधिकारियों ने थाना ट्रांजिट कैंप के साथसाथ थाना पंतनगर, थाना रुद्रपुर और थाना किच्छा से भी पुलिस टीम बुला ली. देखतेदेखते आजादनगर की मुख्य सड़क पुलिस छावनी में तब्दील हो गई.

आजादनगर के आसपास के लोग इतनी पुलिस को देख हैरत में पड़ गए. एसएसपी दिलीप सिंह व आईजी (कुमाऊं) अजय कुमार रौतेला भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

पुलिस ने नरेंद्र की निशानदेही पर मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में 4 मजदूरों को लगा कर खुदाई शुरू कराई. लगभग 2 घंटे बाद पुलिस लाश तक पहुंची. साढ़े 4 फीट की गहराई में एक के ऊपर एक 4 लाशें पड़ी मिलीं, जो प्लास्टिक बैग में पैक थीं.

इस हृदयविदारक दृश्य को देख लोगों के होश उड़ गए. किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि जो उन के सामने है वह सच है. पुलिस ने प्लास्टिक बैग को खोल कर लाशों की जांचपड़ताल की. लाशों को देख कर पुलिस हैरान थी, क्योंकि सभी लाशें अच्छी हालत में थीं.

पुलिस को उम्मीद थी कि 15 महीनों के लंबे अंतराल के दौरान लाशें कंकाल में बदल गई होंगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं था. उसी गड्ढे से पुलिस ने लकड़ी के डंडे के आकार की एक फंटी बरामद की. नरेंद्र ने उसी फंटी से चारों को मारने की बात स्वीकार की.

घटनास्थल पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने सैंपल एकत्र किए, जिन्हें जांच के लिए सुरक्षित रख लिया गया.

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पुलिस ने चारों लाशें कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. मामले की गंभीरता को देखते हुए 4 डाक्टरों के पैनल से लाशों का पोस्टमार्टम कराया गया. साथ ही वीडियोग्राफी भी कराई गई. यह कुमाऊं का पहला ऐसा सनसनीखेज  मामला था, जिस ने पूरे प्रदेश में तहलका मचा दिया था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

फिरौती में पति : भाग 3

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

उस दिन से प्रह्लाद के प्रति मंशा की सोच बदल गई. वह उसे लालच की नजरों से देखने लगी. प्रह्लाद को मंशा की नीयत समझते देर नहीं लगी. वह भी उसे चाहत की नजरों से देखने लगा.

चूंकि चाहत दोनों ओर से थी, सो उन के बीच नाजायज रिश्ता बनने में ज्यादा समय न लगा. फिर तो अकसर दोनों का मिलन होने लगा. प्रह्लाद और मंशा ज्यादा से ज्यादा एकदूसरे के निकट रहने का प्रयास करने लगे.

जब भी मौका मिलता, दोनों एकाकार हो जाते. परिणाम यह हुआ कि जल्द ही दोनों बदनाम हो गए.  लेकिन इस बदनामी की चिंता न मंशा को थी और न ही प्रह्लाद को. दोनों शादी करने के मंसूबे बना रहे थे.

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सूरज को जब प्रह्लाद व मंशा के नाजायज रिश्तों की बात पता चली तो उस ने पत्नी को समझाया, बच्चों का वास्ता दिया पर प्रेम दीवानी मंशा नहीं मानी. उस ने एक रोज पति से साफ कह दिया, ‘‘अब न तुम जोशीले रहे, न रसीले, तुम्हारे साथ जवानी जलाते रहने से क्या फायदा? मैं तो प्रह्लाद के साथ रहूंगी.’’

मंशा ने जो कहा, कर दिखाया. एक रोज वह प्रह्लाद के साथ गोविंद नगर स्थित दुर्गा मंदिर पहुंची और प्रह्लाद के गले में माला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. फिर विवेकानंद स्कूल के पास कच्ची बस्ती बर्रा में प्रह्लाद के साथ रहने लगी.

उस के पूर्वपति सूरज ने अपमान और ग्लानि से कानपुर शहर छोड़ दिया और अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर घर शाहजहांपुर आ कर रहने लगा. परिवार की मदद से वह बच्चों का भरणपोषण करने लगा.

दूसरी ओर मंशा गुप्ता प्रह्लाद से प्रेम विवाह करने के बाद 3 साल तक हंसीखुशी से रही. उस के बाद दोनों के बीच नोंकझोंक होने लगी. दरअसल मंशा फैशनपरस्त थी. वह प्रह्लाद की आधी से अधिक कमाई अपने फैशन और मौजमस्ती में खर्च कर देती थी, जिस से प्रह्लाद को घर चलाना मुश्किल हो जाता था. पैसों को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा था.

प्रह्लाद फैक्ट्री में काम करता था. उसे मासिक वेतन ही मिलता था. प्रह्लाद का एक दोस्त था रामू. वह बर्रा थाने के कर्रही मोहल्ले में किराए पर रहता था. जब भी प्रह्लाद का पत्नी से झगड़ा होता था, वह दोस्त के घर आ जाता था और अपनी व्यथा साझा कर मन हल्का कर लेता था.

इसी मकान में शिवानी अपने पति दुर्गेश के साथ किराए पर रहती थी. दुर्गेश गोविंद नगर की एक मिठाई की दुकान पर कारीगर था. उस के बेटे थे गोलू और मृत्युंजय थे.

एक रोज प्रह्लाद दोस्त रामू के घर पहुंचा तो शिवानी और मकान मालिक में किराए को ले कर झगड़ा हो रहा था. शिवानी कह रही थी कि पति को वेतन मिलेगा तब किराया चुकता करेगी जबकि मकान मालिक को तुरंत किराया चाहिए था. मकान मालिक ने शिवानी को इतना जलील किया कि वह रोने लगी थी.

प्रह्लाद से देखा नहीं गया तो वह शिवानी के आंसू पोंछने पहुंच गया. प्रह्लाद ने उस रोज शिवानी के आंसू ही नहीं पोंछे, बल्कि 2 हजार का नोट मकान मालिक को थमा कर किराया भी चुकता कर दिया.

इस सहानुभूति के बाद प्रह्लाद का शिवानी के घर आनाजाना शुरू हो गया. शिवानी भी उसे भाव देने लगी. धीरेधीरे दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए. प्रह्लाद बच्चों के बहाने शिवानी को भी उपहार लाने लगा. जिन्हें वह नानुकुर के बाद स्वीकार कर लेती.

प्रह्लाद के शिवानी से मधुर संबंध बने तो वह मंशा की उपेक्षा करने लगा. उस से बातबेबात झगड़ने लगा. वह उसे एकएक पैसे को भी तरसाने लगा. घर कभी आता, कभी नहीं भी आता. कभीकभी तो 2-2 दिन गायब हो जाता था. मंशा पूछती तो कोई न कोई नया बहाना बना देता. मंशा उस की बातों पर सहज ही विश्वास कर लेती.

लेकिन विश्वास की भी एक सीमा होती है. मंशा का विश्वास डगमगाया तो उस ने पति की निगरानी शुरू कर दी. तब उसे पता चला कि उस के पति प्रह्लाद के शिवानी से नाजायज संबंध हैं. वह अपनी कमाई उसी पर खर्च करता है और उसे पाईपाई को तरसाता है.

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शिवानी को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा. लड़झगड़ कर प्रह्लाद शिवानी के घर पहुंच जाता और वहीं पड़ा रहता. कई बार मंशा ने प्रह्लाद को शिवानी के घर पकड़ा भी. तब उस ने शिवानी और पति को जलील किया. किंतु वे दोनों नहीं माने.

28 जुलाई, 2020 की दोपहर भी शिवानी को ले कर मंशा का पति से झगड़ा हुआ. गुस्से में प्रह्लाद ने मंशा को पीटा और उस का मोबाइल ले कर घर से चला गया. मंशा घंटों तक आंसू बहाती रही और अपने भाग्य को कोसती रही. उसे पति से ज्यादा शिवानी पर गुस्सा आ रहा था.

मंशा को शक था कि उस का पति प्रह्लाद शिवानी के घर ही पड़ा होगा. अत: वह उस की खोज में शाम 6 बजे शिवानी के घर पहुंची. शिवानी उस समय घर पर न थी. उस का 3 साल का बेटा मृत्युंजय पलंग पर पड़ा सो रहा था.

मंशा ने सोचा कि शिवानी उस के पति के साथ ऐश करने गई होगी. उस ने पलक झपकते ही शिवानी को सबक सिखाने की ठानी. उस ने सामने अलमारी में रखा शिवानी का मोबाइल फोन कब्जे में किया फिर मृत्युंजय को गोद में उठा कर चुपके से फरार हो गई.

शिवानी घरेलू सामान खरीदने कर्रही बाजार गई थी. वह शाम 7 बजे घर वापस आई तो मृत्युंजय गायब था. उस ने पहले बेटे की हर संभव खोज की, नहीं मिला तो पति दुर्गेश को फोन कर घर बुलाया.

दुर्गेश शिवानी रात भर बेटे की खोज में जुटे रहे. अगली सुबह जब मंशा ने दुर्गेश को फोन किया तब मृत्युंजय के अपहरण की जानकारी हुई.

उस के बाद दुर्गेश पत्नी शिवानी के साथ थाना बर्रा पहुंचा और मंशा गुप्ता के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. थाना बर्रा पुलिस ने 36 घंटे में मृत्युंजय को सहीसलामत बरामद कर अपहर्त्ता मंशा गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया.

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31 जुलाई, 2020 को थाना बर्रा पुलिस ने अभियुक्ता मंशा गुप्ता को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मंशा गुप्ता का पति प्रह्लाद पुलिस के डर से फरार था. उसे डर था कि कहीं पुलिस उसे भी दोषी न ठहरा दें.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फिरौती में पति : भाग 2

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

इसी किरकिरी से बचने के लिए थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने मासूम बालक मृत्युंजय के अपहरण को बेहद गंभीरता से लिया और पुलिस अधिकारियों को अवगत कराते हुए आननफानन में दुर्गेश कुमार की तहरीर पर भादंवि की धारा 364 के तहत मंशा पत्नी प्रह्लाद, निवासी बस्ती, बर्रा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

चूंकि मामला मासूम बच्चे के अपहरण का था, अत: रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा सीओ विकास पांडेय बर्रा आ गए. उन्होंने बच्चे के मातापिता से जानकारी हासिल की फिर बच्चे को बरामद करने के लिए पुलिस टीम का गठन किया.

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इस टीम में थानाप्रभारी हरमीत सिंह, एसआई सतीश कुमार, आदेश कुमार, महिला एसआई छवि, महिला सिपाही संगीता यादव, कांस्टेबल कृष्णकांत, देवेंद्र सिंह, विनोद गर्ग तथा सर्विलांस टीम को सम्मिलित किया गया. टीम की कमान सीओ विकास पांडेय को सौंपी गई.

गठित विशेष पुलिस टीम ने मृत्युंजय की खोज शुरू की. टीम ने सब से पहले मृत्युंजय की मां शिवानी तथा पिता दुर्गेश से अपहरण के संबंध में पूरी जानकारी हासिल की. शिवानी ने बताया कि मंशा उस का मोबाइल फोन भी अपने साथ ले गई है. उसी नंबर से उस ने दुर्गेश के फोन पर बच्चे के अपहरण की जानकारी दी थी. फिर उस ने मोबाइल स्विच्ड औफ कर लिया था.

यह जानकारी मिलते ही टीम ने शिवानी का मोबाइल फोन नंबर जो मंशा के पास था, सर्विलांस पर लगा दिया. उस की लोकेशन उन्नाव बाईपास की मिली. पता चला उन्नाव में मंशा का मायका है.

मंशा को पकड़ने तथा मासूम मृत्युंजय को सहीसलामत बरामद करने के मकसद से पुलिस टीम उन्नाव पहुंच गई. पर मंशा को पकड़ नहीं पाई. कारण मंशा ने फोन बंद कर दिया था, जिस से पुलिस भटक गई थी.

शाम 5 बजे पुलिस टीम वापस कानपुर रवाना लौटने वाली थी, तभी सर्विलांस टीम से जानकारी मिली कि मंशा की लोकेशन रायबरेली शहर की मिल रही है.

इस सूचना पर पुलिस टीम रायबरेली पहुंच गई. लेकिन रायबरेली पहुंचने पर पुलिस टीम को पता चला कि मंशा कानपुर की ओर लौट रही है और उस की लोकेशन जायस व तकिया के बीच की मिल रही है. लोकेशन का पीछा करते हुए पुलिस टीम भी मंशा के पीछे लगी रही.

कानपुर गंगापुल तक मंशा की लोकेशन मिलती रही, उस के बाद बंद हो गई. शायद उस ने मोबाइल फोन बंद कर लिया था. लेकिन इतना तय था कि मंशा कानपुर शहर में ही है.

30 जुलाई, 2020 की सुबह बर्रा थानाप्रभारी हरमीत सिंह को किसी ने फोन पर सूचना दी कि एक महिला दामोदर नगर नहरिया पर मौजूद है. उस के साथ एक मासूम बच्चा भी है, जो रो रहा है. महिला हावभाव से संदिग्ध लग रही है.

सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, थानाप्रभारी हरमीत सिंह पुलिस टीम के साथ दामोदर नगर नहरिया पहुंचे और उस महिला को हिरासत में ले कर थाना बर्रा लौट आए.

थाने में जब उस महिला से पूछताछ की गई तो उस ने अपना नाम मंशा गुप्ता पति का नाम प्रह्लाद निवासी बस्ती बर्रा बताया. उस ने यह भी बताया कि उस के साथ जो बच्चा है, वह शिवानी का है. शिवानी कर्रही में रहती है. उस ने ही बच्चे का अपहरण किया था. वह शिवानी को सबक सिखाना चाहती थी.

थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने मासूम मृत्युंजय को सहीसलामत बरामद करने तथा अपहर्त्ता मंशा गुप्ता को गिरफ्तार करने की सूचना अधिकारियों तथा बच्चे के मातापिता को दे दी.

सूचना पाते ही एसपी (साउथ) दीपक भूकर, सीओ विकास पांडेय तथा बच्चे के मातापिता थाना बर्रा आ गए. महिला एसआई छवि कुमारी ने जब मासूम मृत्युंजय को उस की मां की गोद में दिया तो शिवानी की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े.

पुलिस अधिकारियों ने अपहर्त्ता मंशा गुप्ता से बच्चे के अपहरण के संबंध में विस्तृत पूछताछ की. साथ ही अपहरण का मकसद भी पूछा. जवाब में मंशा गुप्ता ने बताया कि मृत्युंजय के अपहरण का उद्देश्य फिरौती नहीं था, बल्कि वह अपने पति की रिहाई चाहती थी. जिसे शिवानी ने अपने प्यार के जाल में फंसा लिया था. वह शिवानी को सबक सिखाना चाहती थी कि किसी का प्यार छीनने का दर्द कितना गहरा होता है.

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चूंकि मंशा ने बच्चे के अपहरण करने का जुर्म स्वीकार लिया था और उस के खिलाफ पहले से अपहरण की रिपोर्ट भी दर्ज थी, अत: थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने उसे विधिसम्मत गिरफ्तरी की लिया. पुलिस पूछताछ में मंशा गुप्ता ने दिल को झकझोर देने वाली अपहरण की कहानी बताई.

मंशा गुप्ता मूलरूप से उन्नाव की रहने वाली थी. उस के पिता रामऔतार गुप्ता उन्नाव स्थिति टेनरी में काम करते थे और उन्नाव बाईपास पर किराए के मकान में रहते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं, जिस में मंशा गुप्ता सब से बड़ी थी. टेनरी में मिलने वाले वेतन से ही वह घर खर्च चलाते थे.

लगभग 10 साल पहले रामऔतार ने मंशा का विवाह सूरज के साथ किया था. सूरज उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर का रहने वाला था और भाईबहनों में सब से बड़ा था. कानपुर शहर में वह संजय नगर में रहता था और दादा नगर स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करता था.

शादी के बाद कुछ दिनों तक सूरज ने मंशा को शाहजहापुर में रखा फिर अपने साथ कानपुर ले आया. विवाह के साल भर बाद ही मंशा गुप्ता ने बेटे मोहित को जन्म दिया और उस के 3 साल बाद वह बेटी मोहिनी की मां बन गई. 2 बच्चों के जन्म के बाद सूरज ने अपने पतिधर्म की इतिश्री मान ली.

उस का विचार था कि पत्नी को जब मातृत्व की प्राप्ति हो जाती है, तब उस का पूरा ध्यान बच्चों पर रहता है. संजनेसंवरने और पति की संगत की लालसा नहीं रह जाती. मंशा का मन भी भोगविलास में नहीं रह गया होगा.

सूरज का ऐसा सोचना गलत था. पति की उपेक्षा मंशा का जी जलाती थी वह मन मसोस कर दिन गुजारती रही. पति से थोड़ाबहुत प्यार मिलता था, उस से ही वह संतोष करती रही.

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मंशा गुप्ता संजय नगर स्थित जिस मकान में किराए पर रहती थी. हाल ही में वहां एक नया किराएदार रहने आया. उस का नाम था प्रह्लाद. मंशा गुप्ता ने प्रह्लाद को देखा तो देखती ही रह गई.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

फिरौती में पति : भाग 1

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

शाम 7 बजे शिवानी बाजार से घर आई. उस ने सामान वाला थैला कमरे में रखा फिर चारों ओर नजर दौड़ाई. जब उसे छोटा बेटा मृत्युंजय दिखाई नहीं पड़ा, तब उस ने बड़े बेटे से पूछा, ‘‘गोलू, मृत्युंजय कहां है? नजर नहीं आ रहा है. जब मैं बाजार गई थी, तब तुझ से कह कर गई थी कि उस का खयाल रखना. पर तुझे खेलने से फुरसत मिले तब न.’’

गोलू सहम कर बोला, ‘‘मम्मी, तुम्हारे जाने के कुछ देर बाद मृत्युंजय सो गया था. तब मैं दोस्तों के साथ गली में खेलने चला गया था. उस के बाद वह कहां गया, मुझे पता नहीं.’’

3 वर्षीय मासूम मृत्युंजय शिवानी का छोटा बेटा था. उसे घर से नदारद पा कर शिवानी घबरा गई. वह घर से बाहर निकली और गली में बेटे को खोजने लगी.

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जब वह गली में कहीं नहीं दिखा, तब शिवानी ने आसपड़ोस के घरों में उस की खोजबीन की, पर उस का कुछ भी पता नहीं चला. उस ने गली के कई दुकानदारों से भी पूछा, पर सभी ने ‘न’ में गरदन हिलाई.

कानपुर के बर्रा क्षेत्र की जिस गली में शिवानी रहती थी, उसी गली के आखिरी मोड़ पर शिवानी की ननद श्यामा रहती थी. शिवानी ने सोचा कि कहीं वह बुआ के घर न चला गया हो. वह तुरंत ननद के घर पहुंची, लेकिन मृत्युंजय वहां भी नहीं था.

फिर ननदभौजाई ने मिल कर कई गलियां छान मारीं, लेकिन मृत्युंजय का पता न चला. शिवानी के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं, मन घबराने लगा था.

शिवानी का पति दुर्गेश सोनी एक स्वीट हाउस में काम करता था. उस समय वह ड्यूटी पर था. शिवानी ने उसे मृत्युंजय के गायब होने की जानकारी देने के लिए अपना फोन ढूंढा, पर उस का मोबाइल गायब था. शिवानी समझ गई कि घर में कोई आया था, जो मृत्युंजय के साथसाथ उस का मोबाइल भी साथ ले गया है.

अब शिवानी की धड़कनें और भी तेज हो गई थीं. उस ने अपने दूसरे मोबाइल फोन से उस फोन नंबर पर काल की जो गायब था, तो वह स्विच्ड औफ था. घबराई शिवानी ने पति को सारी जानकारी दी और तुरंत घर आने को कहा.

अपने मासूम बेटे मृत्युंजय के गायब होने की जानकारी पा कर दुर्गेश घबरा गया. वह तुरंत घर आ गया. उस ने आसपास पूछताछ की लेकिन किसी से उसे कोई सुराग न मिला. उस की चिंता बढ़ गई. उस ने स्कूटर से आसपास की सड़कों और गलियों के चक्कर लगाए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. आखिरकार निराश हो कर वह घर लौट आया.

उस के मन में बारबार सवाल उठ रहा था कि 3 साल का नन्हा सा बच्चा कहां चला जाएगा. यदि वह भटक भी गया होता, तो वह उसे ढूंढ लेते. उस के मन में विचार आया, कहीं किसी ने उस के बेटे का अपहरण तो नहीं कर लिया.

दुर्गेश कुमार सोनी और शिवानी का विवाह करीब 10 साल पहले हुआ था. शिवानी के 2 बच्चे थे. पहला 8 साल का गोलू और दूसरा 3 साल का मृत्युंजय.

मृत्युंजय चंचल स्वभाव का था, दुर्गेश और शिवानी भी उसे भरपूर प्यार देते थे. शिवानी के लिए मृत्युंजय जिगर के टुकड़े जैसा था.

दुर्गेश कुमार सोनी ने जब घर आ कर बताया कि मृत्युंजय का कहीं पता नहीं लग रहा है. तब घर में रोनाधोना शुरू हो गया. आसपड़ोस के लोग भी आ गए. मृत्युंजय के गायब होने से सभी चिंतित थे. शिवानी का तो रोरो कर बुरा हाल था. वह बारबार पति से अनुरोध कर रही थी कि जैसे भी संभव हो, उस के जिगर के टुकड़े को वापस लाओ. दुर्गेश शिवानी को धैर्य बंधा रहा था. यह बात 28 जुलाई, 2020 की है.

शिवानी और दुर्गेश ने पूरी रात आंखों आंखों में बिताई. सवेरा होते ही पूरे बर्रा क्षेत्र में मासूम मृत्युंजय के गायब होने की खबर फैल गई. लोग दुर्गेश के घर पर जुटने शुरू हो गए.

दुर्गेश अपने बेटे के गायब होने के संबंध में पड़ोसियों से विचारविमर्श कर ही रहा था कि उस के मोबाइल पर काल आई. काल पत्नी के उसी नंबर से आई थी, जो घर से गायब था.

दुर्गेश ने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘दुर्गेश, जरा अपनी रंगीली बीवी को फोन दो. मैं उसी से बात करूंगी.’’

फोन करने वाली युवती की बात सुन कर दुर्गेश चौंका. उसे यी आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी. जिज्ञासावश उस ने फोन शिवानी को पकड़ा दिया, ‘‘हां, हैलो, मैं

शिवानी बोल रही हूं. आप कौन?’’ शिवानी बोली.

युवती खिलखिला कर हंसी फिर बोली, ‘‘मैं मंशा गुप्ता बोल रही हूं. कैसी हो शिवानी, आजकल तो खूब मौज कर रही होगी.’’

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‘‘मंशा, मैं बहुत परेशानी में हूं. बीती शाम से मेरा बेटा गायब है. उस का कुछ भी पता नहीं चल रहा है.’’ कहते हुए शिवानी सुबकने लगी.

मंशा गुस्से से बोली, ‘‘शिवानी, तुम ने भी तो मेरे पति प्रह्लाद को अपने पल्लू से बांध रखा है. क्या तुम्हें मेरी परेशानी का अंदाजा नहीं है?’’

‘‘यह कैसी बातें कर रही हो मंशा, मुझ पर झूठा इलजाम मत लगाओ. मैं वैसे ही परेशान हूं.’’ शिवानी ने कहा.

‘‘झूठ मत बोलो शिवानी, वह जब भी मुझ से झगड़ता है, तुम्हारे पहलू में ही आता है. कल भी वह झगड़ा कर के तुम्हारे पास ही आया होगा. खैर, मैं तुम से एक सौदा करना चाहती हूं.’’ मंशा बोली.

‘‘ कैसा सौदा मंशा?’’ शिवानी ने अटकते हुए पूछा.

‘‘यही कि तुम मेरे पति को अपने पल्लू से छोड़ दो, मैं तुम्हारे जिगर के टुकड़े को तुम्हें वापस कर दूंगी. मुझे मृत्युंजय की फिरौती में रुपया नहीं पति चाहिए.’’ मंशा ने सीधे कहा.

‘‘तुम्हारा पति प्रह्लाद मेरे घर नहीं आया. वह कहीं और गया होगा. मंशा, मेरे बेटे को मुझे वापस कर दो. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, पैर पड़ती हूं.’’ शिवानी गिड़गिड़ाई.

‘‘शिवानी झूठ मत बोल. मेरी बात कान खोल कर सुन ले, मेरे पति को जिंदा या मुर्दा भेज या मैं तेरे बेटे की मुंडी काट कर भेजूं.’’ कहते हुए मंशा ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

मंशा गुप्ता प्रह्लाद की पत्नी थी. वह विवेकानंद स्कूल के पास वाली बस्ती में रहती थी. शिवानी की जानपहचान प्रह्लाद से थी. उस का शिवानी के घर आनाजाना था. मंशा को शक था कि उस के पति प्रह्लाद का शिवानी से नाजायज रिश्ता है. वह उस से जलन की भावना रखती थी और उस से झगड़ती रहती थी.

जब यह बात पता चल गई कि मासूम मृत्युंजय का अपहरण मंशा ने किया है तो शिवानी अपने पति दुर्गेश के साथ थाना बर्रा पहुंच गई. उस समय सुबह के 10 बज रहे थे और थानाप्रभारी हरमीत सिंह थाने में मौजूद थे.

दुर्गेश ने थानाप्रभारी को अपनी व्यथा बताई और मंशा गुप्ता के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर बेटे को सहीसलामत बरामद करने की गुहार लगाई.

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मासूम बालक के अपहरण की बात सुन कर थानाप्रभारी हरमीत सिंह सतर्क हो गए. दरअसल, बर्रा क्षेत्र के संजीत अपहरण कांड में बर्रा पुलिस की घोर लापरवाही सामने आई थी, जिस के कारण संजीत की हत्या हो गई थी और फिरौती के 30 लाख रुपए भी अपहर्त्ता ले गए थे. इस लापरवाही में थानेदार से ले कर एसपी व सीओ तक पर शासन की गाज गिरी थी और उन्हें निलंबित कर दिया गया था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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