एक तरफ बेटी का प्यार. वहीं दूसरी तरफ उन का स्वयं का दिया पठान को वचन. वह रात भर सोच कर भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके.
सुबह उन्होंने अपनी बेगम और बेटी रेशमा को एकांत कक्ष में बुला कर बात की. महबूब खान ने रेशमा से कहा, ‘‘बेटी, मेरे कई बार प्राण जातेजाते बचे थे. जानती हो, प्राण मेरे अंगरक्षक सैनिक पठान ने अपनी जान पर खेल कर बचाए.
‘‘मैं ने उस के इन वीरता भरे कदमों से खुश हो कर उसे वचन दिया है कि रेशमा से उस का विवाह करूंगा. अब मेरी इज्जत तुम्हारे हाथ में है. तुम चाहो तो मेरा वचन कायम रह सकता है. अगर मैं वचन नहीं निभा सका तो मैं प्राण दे दूंगा?’’ कहतेकहते महबूब खान की आंखें भर आईं.
रेशमा कहे भी तो क्या. वह तो मन से विजय सिंह को अपना सर्वस्व मान चुकी थी. ऐसे में वह अपने पिता के वचन का मान कैसे रखती. अगर पिता के वचन का मान रखती तो उस का प्यार विजय सिंह उसे धोखेबाज ही कहता. रेशमा ने विजय सिंह के सामने उन की प्रशंसा सुन कर प्रेम प्रस्ताव रखा था. उस के प्रेम प्रस्ताव को विजय सिंह ने स्वीकार भी कर लिया था और उस से शादी का वादा किया था.
अब यदि वह पिता के वचन को निभाते हुए पठान से ब्याह करती है तो विजय सिंह के दिल पर क्या गुजरेगी. वह गुमसुम बैठी सोचती रही. वह कुछ नहीं बोली. तब महबूब खान ने कहा, ‘‘कुछ तो बोल बेटी. इस धर्मसंकट से निकलना ही पड़ेगा.’’
‘‘मैं विजय सिंह को अपने मन से पति मान चुकी हूं. वह भी मुझ से प्रेम करते हैं और मुझ से विवाह करना चाहते हैं. विजय सिंह के अलावा इस धरती पर जितने मनुष्य हैं वह सब मेरे भाईबंधु हैं. अब आप ही फैसला करें कि बेटी की विजय से शादी करेंगे या उस का मरा मुंह देखेंगे?’’ रोते हुए रेशमा एक ही सांस में कह गई.
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महबूब खान अपनी पुत्री रेशमा की जिद से भलीभांति वाकिफ थे. वह समझ गए कि रेशमा ने जो मन में ठान लिया, वही करेगी. वह किसी की नहीं सुनेगी. ऐसे में महबूब खान ने बेटी से कहा, ‘‘बेटी, विजय सिंह और पठान में मल्लयुद्ध और अस्त्रशस्त्र से लड़ाई होगी. इस में जो जीतेगा उस से तुझे विवाह करना पड़ेगा.’’
‘‘अब्बू, मैं आप से कह चुकी हूं कि मैं ने अपना प्रियतम चुन लिया है. ऐसे में अब आप क्यों शर्त रख रहे हैं कि मल्लयुद्ध और तलवार से लड़ाई में जो जीतेगा उस से विवाह करना होगा. मैं मन से ठाकुर सा को पति मान चुकी हूं. इस जन्म में तो वहीं मेरे पति होंगे.’’
बेटी की बात सुन कर महबूब खान के तनबदन में आग लग गई. वह गुस्से से आंखें निकालते हुए बोले, ‘‘तेरी बकवास बहुत सुन चुका. तू जानती नहीं कि तू एक खान की बेटी है और अपने इसलाम धर्म में ही शादी कर सकती है. मेरे लाड़प्यार ने तुझे बिगाड़ दिया है. इसलिए तू एक राजपूत से शादी करने पर अड़ी है. अगर तेरा प्रियतम ठाकुर मेरे सैनिक पठान से जीतेगा तभी उस से शादी करूंगा. वरना कभी नहीं…समझी.’’
रेशमा ने अपने अब्बा का गुस्सा आज पहली बार देखा था. वह समझ गई कि अब तो अपनी सच्ची चाहत के बूते ही वह अपने प्रियतम को पा सकती है.
महबूब खान ने ऊंट सवार हमीरगढ़ भेज कर ठाकुर विजय सिंह को समाचार भिजवाया कि अगर रेशमा को चाहते हो और शादी करनी है तो अस्त्रशस्त्र ले कर कजली तीज के रोज शाहगढ़ पहुंच जाना. खुले मैदान में पठान खान से मल्लयुद्ध व तलवारबाजी का युद्ध करना होगा.
इस युद्ध में अगर तुम जीते तो रेशमा तुम्हारी और अगर पठान जीता तो रेशमा उस की होगी. समय पर शाहगढ़ पहुंच जाना. अगर नहीं आए तो रेशमा का पठान से विवाह कर दिया जाएगा.
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विजय सिंह समाचार मिलते ही अस्त्रशस्त्र से लैस हो कर अपने 2 राजपूत साथियों के साथ शाहगढ़ के लिए रवाना हो गए. कजली तीज में 4 दिन का समय बाकी था. ठाकुर सा घोड़े पर सवार हो कर अपने साथियों के साथ शाहगढ़ की राह चल पड़े. कजली तीज से एक रोज पहले ही वह शाहगढ़ पहुंच गए.
महबूब खान ने उन्हें एक तंबू में रोका. पठान भी शाहगढ़ आ गया था. महबूब खान ने विजय सिंह और पठान को मिलाया. दोनों एकदूसरे से इक्कीस थे. रेशमा को जैसे ही पता चला कि ठाकुर सा विजय सिंह आ गए हैं, तो उस ने अम्मी से कहा कि वह एक बार ठाकुर सा से मिलना चाहती है.
रेशमा को उस की अम्मी ने ठाकुरसा से एकांत में मिलवाया. विजय सिंह को देखते ही रेशमा उन के सीने से जा लिपटी और कस कर बांहों में भर कर सुबकते हुए बोली, ‘‘अब्बा हमारे प्यार की यह कैसी परीक्षा ले रहे हैं. अब क्या होगा?’’
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‘‘तुम चिंता मत करो रेशमा. अगर हमारा प्यार सच्चा है तो जीत हमारी ही होगी. प्रेमियों को हमेशा से ऐसी परीक्षा से गुजरना पड़ा है?’’ विजय सिंह ने रेशमा को दिलासा दी.
रेशमा बोली, ‘‘आप नहीं मिले तो मैं मर जाऊंगी?’’
‘‘रेशमा, ऐसा न कहो. सब ठीक होगा. मुझ पर विश्वास रखो.’’ ठाकुरसा ने कहा. इस के बाद थोड़ी देर तक दोनों प्रेमालाप करते रहे, फिर अलग हो गए.