कहते समय सुधि की आंखों में आंसुओं की बाढ़ सी आ गई थी और वह सुधीर के पलंग के पास बैठ कर उन्हें निहारने लगी…फिर डाक्टर की बातें सुनने लगी.
‘‘सुधिजी, जब यह हमारे पास आए थे तब बहुत ही कमजोर थे. हमेशा थकेथके से रहते थे…बुखार भी रहता था. सांस भी मुश्किल से लेते थे. पहले हम लोगों ने इन की बौडी देखी जिस पर लाललाल चकत्ते से पडे़ थे. इन का टी.एल.सी., डी.एल.सी. करवाया, एक्सरे करवाया और बोनमैरो टेस्ट करवाया, हां, लंबर पंक्चर भी करवाया है…स्पाईनल कार्ड में से फ्ल्यूड निकाला था.’’
‘‘इतने सारे टेस्ट हुए हैं सुधीर के और इन्होंने मुझे हवा भी नहीं लगने दी?’’
ये भी पढ़ें- लावारिस : प्रमोद का दिल बहलाती थी सुनयना
‘‘मैडम सुधि, आप के पति बडे़ साहसी हैं. जब हम ने इन्हें बताया कि आप को माईलाइट एक्यूट ब्लड कैंसर यानी कि एक्यूट ल्यूकीमिया है तब रत्ती भर भी इन के चेहरे पर शिकन नहीं पड़ी और न ही चिंतित हुए बल्कि यह कहने लगे कि अब मुझे बहुत कुछ करना है अपनी पत्नी और बेटों के लिए. कमाल का स्वभाव है आप के पति का,’’ कहते समय डा. वर्मा की निगाहें भी सुधीर के चेहरे पर टिकी हुई थीं.
सुधीर की आंखों की दोनों कोर गीली हो रही थीं और लग रहा था कि आंखें हजारहजार बातें कहना चाह रही हों लेकिन जिंदगी हाथों की मुट्ठी से रेत की तरह खिसक रही थी. शायद जीवन काल के कुछ ही घंटे बचे थे. बीचबीच में आई.सी.यू. के दरवाजे की ओर भी देख रहे थे. सुधीर का पीला जर्द चेहरा देखने का साहस सुधि की आंखें नहीं जुटा पा रही थीं.
आंखों से बहते आंसुओं को पोंछते हुए जब सुधि ने सुधीर का हाथ पकड़ा तो उन्होंने आक्सीजन ट्यूब हटा कर धीमे से कहा, ‘‘सुधि, आई लव यू.’’
सुधि बच्चों की तरह फफक पड़ी. मुंह से निकला, ‘‘सुधीर, आई लव यू टू,’’ और सुधीर के हाथों को सहलाती रही. उसे लगा उस की भंवर में फंसी नाव जो कुछ घड़ी, कुछ लम्हे आराम से बह रही थी अब ठीक किनारे पर आ कर डूब गई है.
उस अस्पताल में जब सुधीर ने उसे कस कर पकड़ा और कहा, ‘प्लीज, मुझे छोड़ कर अभी मत जाना,’ एकाएक उसे अस्पताल की वह उमस भरी, घुटन भरी रात याद आ गई जब अगम की डिलीवरी होने वाली थी, वह दर्द से तड़प रही थी, कराह रही थी, प्रसव वेदना तीव्र थी. सुधि ने रोते हुए सुधीर से कहा था, ‘प्लीज, तुम आज रात अस्पताल में रुक जाओ, घर मत जाओ.’
लेकिन सुधीर ने स्पष्ट रूखे स्वर में कहा था, ‘मैं…मैं अस्पताल में नहीं रुक सकता. हैं तो मम्मीपापा और सर्वेंट…जब जरूरत पड़ेगी ये लोग मुझे बुला लेंगे.’
उस दिन के बाद से सुधि ने अपनी पीड़ा, अपना दर्द अपनी परछाईं तक को व्यक्त नहीं किया, सुधीर तो दूर की बात थे.
अभी 2 माह पहले तक सुधि को लगता था कि यह पति का घर, पति का आंगन उस के लिए अनजाना है, बेगाना है, इसे घर कहना बेईमानी है. लेकिन इधर 2 माह से यह आंगन, यह मकान घर का रूप ले बैठा है.
और वह भी प्यार, त्याग की सुगंध से सुवासित हो गए हैं. एक समझौते वाले जीवन को अभी उस ने आदर्श जीवन की तरह जीना शुरू ही किया है, लेकिन इस महके आंगन में वीरानियां, सन्नाटों ने बंजारों की भांति डेरा डाल लिया. हाय, क्या लाभ है मेरी इतनी योग्यताओं का, इतनी अधिक सुंदरता का, इतनी उच्च शिक्षा का जब मेरी तकदीर में ही सदाबहार वन के स्थान पर कीचड़ ही कीचड़ है.
सुधीर की दशा पलपल बिगड़ रही थी. खून की बोतलें लगातार चढ़ रही थीं. आक्सीजन भी दी जा रही थी. सब को पता था कि काले बादल अब मौत ही ले कर आएंगे फिर भी डाक्टर लोग बचाने का प्रयास कर रहे थे, दोनों बेटे पिता के बेड के पास खडे़ हुए कभी अपने पिता को, कभी अपनी मां सुधि को देख रहे थे जिस ने रोरो कर आंखें सुजा ली थीं और अस्तव्यस्त दशा में बैठी थी. बीचबीच में साहस के, हिम्मत के दो शब्द बोल भी रही थी :
‘‘न…न…सुधीर, तुम रोओ मत. तुम ठीक हो जाओगे. लेकिन सचसच बताओ, तुम ने मुझे क्यों नहीं बताया? यह पहाड़ जैसा दुख तुम अकेले ही झेलते रहे और तुम्हारे इन बेटों ने भी मुझे कानोंकान खबर नहीं लगने दी.
ये भी पढ़ें- कोई अपना : शालिनी के जीवन में बहार आने को थी
‘‘यह बहुत गलत किया है तुम लोगों ने. मैं जीवन भर इस बात से तड़पती रहूंगी. सुधीर, औरत के लिए सब से बड़ा पुण्य है अपने पति की सेवा करना और आप ने मुझे उस सेवा से वंचित रखा. यह…यह अच्छा नहीं किया.’’
सुधि फिर फूटफूट कर रोने लगी. ब्लड की बोतल चढ़ रही थी. आक्सीजन दी जा रही थी लेकिन सुधीर मुंह से आक्सीजन कैप हटा कर धीरे से बोले, ‘‘मैं अपने पापों का प्रायश्चित कर रहा था क्योंकि तुम्हारे जैसी नेक पत्नी को मैं ने बहुत दुख दिए, बहुत प्रताड़ित किया,’’ और फिर कैप लगा ली. बच्चों ने पापा को खूब प्यार किया, सुधि ने सुधीर के माथे पर हाथ फेरा, फिर उन के सीने पर सिर रख कर बोली, ‘‘लेकिन सुधीर, तुम ने ऐसा प्रायश्चित किया कि मुझे 2 महीनों में इतना सुख, इतना प्यार दे दिया जो पति अपनी पत्नी को 20 सालों में भी नहीं देते हैं.’’
एकाएक सुधीर की सांसें रुक सी गईं. डाक्टर ने चेस्ट दबा कर सांस दिलवानी शुरू की, लेकिन सब बेकार.
आकाश में हजारों मौत की काली घटाएं पंख फैलाए डराने लगीं…
मरने से पहले सुधीर को एक बार फिर खून की उलटी आई, नाक से भी निरंतर खून बहने लगा…फिर सांस आनी बंद हो गई.
असहाय, बेबस, बेचारी पत्नी और दोनों बेटे सुधीर की जिंदगी नहीं बचा पाए. खैर, सुधीर की आंखों में लिखा हुआ शब्द आसानी से पढ़ा जा रहा था : प्रायश्चित…प्रायश्चित…प्रायश्चित.