तितली: मांबाप के झगड़े में पिसती सियाली

रविवार के दिन की शुरुआत भी मम्मीपापा के  झगड़े की कड़वी आवाजों से हुई. सियाली अभी अपने कमरे में सो ही रही थी कि चिकचिक सुन कर उस ने चादर सिर तक ओढ़ ली, इस से आवाज पहले से कम तो हुई, पर अब भी उस के कानों से टकरा रही थी.

सियाली मन ही मन कुढ़ कर रह गई. पास पड़े मोबाइल को टटोल कर उस में ईयरफोन लगा कर उन्हें कानों में कस कर ठूंस लिया और आवाज को बहुत तेज कर दिया.

18 साल की सियाली के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. उस के मांबाप आएदिन ही झगड़ते रहते थे, जिस की सीधी वजह थी उन दोनों के संबंधों में खटास का होना… ऐसी खटास, जो एक बार जिंदगी में आ जाए, तो आपसी रिश्तों का खात्मा ही कर देती है.

सियाली के मांबाप प्रकाश और निहारिका के संबंधों में यह खटास कोई एक दिन में नहीं आई, बल्कि यह तो  एक मिडिल क्लास परिवार के कामकाजी जोड़े के आपसी तालमेल बिगड़ने के चलते धीरेधीरे आई एक आम समस्या थी.

सियाली के पिता प्रकाश अपनी पत्नी निहारिका पर शक करते थे. उन का शक करना भी एकदम जायज था, क्योंकि निहारिका का अपने औफिस के एक साथी के साथ संबंध चल रहा था. जितना शक गहरा हुआ, उतना ही प्रकाश की नाराजगी बढ़ती गई और निहारिका का नाजायज रिश्ता भी उसी हिसाब से  बढ़ता गया.

‘‘जब दोनों साथ नहीं रह सकते, तो तलाक क्यों नहीं दे देते… एकदूसरे को,’’ सियाली बिस्तर से उठते हुए  झुं झलाते  हुए बोली.

सियाली जब तक अपने कमरे से बाहर आई, तब तक वे दोनों काफी हद तक शांत हो चुके थे. शायद वे किसी फैसले तक पहुंच गए थे.

‘‘तो ठीक है, मैं कल ही वकील से बात कर लेता हूं, पर सियाली को अपने साथ कौन रखेगा?’’ प्रकाश ने निहारिका की ओर घूरते हुए पूछा.

‘‘मैं समझती हूं… सियाली को तुम मुझ से बेहतर संभाल सकते हो,’’ निहारिका ने कहा, तो उस की इस बात पर प्रकाश भड़क सा गया, ‘‘हां, तुम तो सियाली को मेरे पल्ले बांधना ही चाहती हो, ताकि तुम अपने उस औफिस वाले के साथ गुलछर्रे उड़ा सको और मैं एक जवान लड़की के चारों तरफ एक गार्ड बन कर घूमता रहूं.’’

प्रकाश की इस बात पर निहारिका ने भी तेवर दिखाते हुए कहा, ‘‘मर्दों के समाज में क्या सारी जिम्मेदारी एक मां की ही होती है?’’

निहारिका ने गहरी सांस ली और कुछ देर रुक कर बोली, ‘‘हां, वैसे सियाली कभीकभी मेरे पास भी आ सकती है…  1-2 दिन मेरे साथ रहेगी तो मु झे भी एतराज नहीं होगा,’’ निहारिका ने मानो फैसला सुना दिया था.

सियाली कभी मां की तरफ देख रही थी, तो कभी पिता की तरफ, उस से कुछ कहते न बना, पर वह इतना सम झ गई थी कि मांबाप ने अपनाअपना रास्ता अलग कर लिया है और उस का वजूद एक पैंडुलम से ज्यादा नहीं है जो उन दोनों के बीच एक सिरे से दूसरे सिरे तक डोल रही है.

शाम को जब सियाली कालेज से लौटी, तो घर में एक अलग सी शांति थी. पापा सोफे में धंसे हुए चाय पी रहे थे, जो उन्होंने खुद ही बनाई थी. उन के चेहरे पर कई महीनों से बनी रहने वाली तनाव की शिकन गायब थी.

सियाली को देख कर उन्होंने मुसकराने की कोशिश की और बोले, ‘‘देख ले… तेरे लिए चाय बची होगी… लेले और मेरे पास बैठ कर पी.’’

सियाली पापा के पास आ कर बैठी, तो पापा ने अपनी सफाई में काफीकुछ कहना शुरू किया, ‘‘मैं बुरा आदमी नहीं हूं, पर तेरी मम्मी ने भी तो गलत किया था. उस के काम ही ऐसे थे कि मु झे उसे देख कर गुस्सा आ ही जाता था और फिर तेरी मां ने भी तो रिश्तों को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.’’

पापा की बातें सुन कर सियाली से भी नहीं रहा गया और वह बोली, ‘‘मैं नहीं जानती कि आप दोनों में से कौन सही है और कौन गलत है, पर इतना जरूर जानती हूं कि शरीर में अगर नासूर हो जाए, तो आपरेशन ही सही रास्ता और ठीक इलाज होता है.’’

बापबेटी ने कई दिनों के बाद आज खुल कर बात की थी. पापा की बातों में मां के प्रति नफरत और गुस्सा ही छलक रहा था, जिसे सियाली चुपचाप सुनती रही थी.

अगले दिन ही सियाली के मोबाइल पर मां का फोन आया और उन्होंने सियाली को अपना पता देते हुए शाम को उसे अपने फ्लैट पर आने को कहा, जिसे सियाली ने खुशीखुशी मान भी लिया था और शाम को मां के पास जाने की सूचना भी उस ने अपने पापा को दे दी, जिस पर पापा को भी कोई एतराज नहीं हुआ.

शाम को सियाली मां के दिए पते पर पहुंच गई. पता नहीं क्या सोच कर उस ने लाल गुलाब का एक बुके खरीद लिया था और वह फ्लैट नंबर 111 में पहुंच गई.

सियाली ने डोरबैल बजाई. दरवाजा मां ने ही खोला था. अब चौंकने की बारी सियाली की थी. मां गहरे लाल रंग की साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थीं. उन की मांग में भरा हुआ सिंदूर और माथे पर बिंदी… सियाली को याद नहीं कि उस ने मां को कब इतनी अच्छी तरह से सिंगार किए हुए देखा था. हमेशा सादा वेश में ही रहती थीं मां और टोकने पर दलील देती थीं, ‘अरे, हम कोई ब्राह्मणठाकुर तो हैं नहीं, जो हमेशा सिंगार ओढ़े रहें… हम पिछड़ी जाति वालों के लिए साधारण रहना ही अच्छा है.’

तो फिर आज मां को ये क्या हो गया? बहरहाल, सियाली ने मां को बुके दे दिया. मां ने बड़े प्यार से कोने में रखी एक मेज पर उसे सजा दिया.

‘‘अरे, अंदर आने को नहीं कहोगी सियाली से,’’ मां के पीछे से आवाज आई.

सियाली ने आवाज की दिशा में नजर उठाई, तो देखा कि सफेद कुरतापाजामा पहने हुए एक आदमी खड़ा हुआ मुसकरा रहा था.

सियाली उसे पहचान गई. वह मां का औफिस का साथी देशवीर था. मां उसे पहले भी घर ला चुकी थीं.

मां ने बहुत खुशीखुशी देशवीर से सियाली का परिचय कराया, जिस  पर सियाली ने कहा, ‘‘जानती हूं मां… पहले भी आप इन से मुझ को मिलवा चुकी हो.’’

‘‘पर, पहले जब मिलवाया था तब ये सिर्फ मेरे अच्छे दोस्त थे, लेकिन आज मेरे सबकुछ हैं. हम लोग फिलहाल तो लिवइन में रह रहे हैं और तलाक का फैसला होते ही शादी भी कर लेंगे.’’

सियाली मुसकरा कर रह गई थी. सब ने एकसाथ खाना खाया. डाइनिंग टेबल पर भी माहौल सुखद ही था. मां के चेहरे की चमक देखते ही बनती थी.

सियाली रात को मां के साथ ही सो गई और सुबह वहीं से कालेज के लिए निकल गई. चलते समय मां ने उसे 2,000 रुपए देते हुए कहा, ‘‘रख ले, घर जा कर पिज्जा और्डर कर देना.’’

कल से ले कर आज तक मां ने सियाली के सामने एक आदर्श मां होने के कई उदाहरण पेश किए थे, पर सियाली को यह सब नहीं भा रहा था. फिलहाल तो वह अपनी जिंदगी खुल कर जीना चाहती थी, इसलिए मां के दिए गए पैसों से वह उसी दिन अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने चली गई.

‘‘सियाली, आज तू यह किस खुशी में पार्टी दे रही है?’’ महक ने पूछा.

‘‘बस यों समझो कि आजादी की पार्टी है,’’ कह कर सियाली मुसकरा दी थी.

सच तो यह था कि मांबाप के अलगाव के बाद सियाली भी बहुत रिलैक्स महसूस कर रही थी. रोजरोज की टोकाटाकी से अब उसे छुटकारा मिल चुका था और वह अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती थी, इसीलिए उस ने अपने दोस्तों से अपनी एक इच्छा बताई, ‘‘यार, मैं एक डांस ग्रुप जौइन करना चाहती हूं, ताकि मैं अपने

जज्बातों को डांस द्वारा दुनिया के सामने पेश कर सकूं.’’

इस पर उस के दोस्तों ने उसे और भी कई रास्ते बताए, जिन से वह अपनेआप को दुनिया के सामने पेश कर सकती थी, जैसे ड्राइंग, सिंगिंग, मिट्टी के बरतन बनाना, पर सियाली तो मौजमस्ती के लिए डांस ग्रुप जौइन करना चाहती थी, इसलिए उसे बाकी के औप्शन अच्छे  नहीं लगे.

सियाली ने अपने शहर के डांस ग्रुप इंटरनैट पर खंगाले, तो ‘डिवाइन डांसर’ नामक एक डांस ग्रुप ठीक लगा, जिस में 4 मैंबर लड़के थे और एक लड़की थी.

सियाली ने तुरंत ही वह ग्रुप जौइन कर लिया और अगले दिन से ही डांस प्रैक्टिस के लिए जाने लगी और इस नई चीज का मजा भी लेने लगी.

इस समय सियाली से ज्यादा खुश कोई नहीं था. वह तानाशाह हो चुकी थी. न मांबाप का डर और न ही कोई टोकने वाला. वह जब चाहती घर जाती और अगर नहीं भी जाती तो भी कोई पूछने वाला नहीं था. उस के मांबाप का तलाक क्या हुआ, सियाली तो एक ऐसी चिडि़या हो गई, जो कहीं भी उड़ान भरने के लिए आजाद थी.

एक दिन सियाली का फोन बज उठा. यह पापा का फोन था, ‘सियाली, तुम कई दिन से घर नहीं आई, क्या बात है? कहां हो तुम?’

‘‘पापा, मैं ठीक हूं और डांस सीख रही हूं.’’

‘पर तुम ने बताया नहीं कि तुम डांस सीख रही हो…’

‘‘जरूरी नहीं कि मैं आप लोगों को सब बातें बताऊं… आप लोग अपनी जिंदगी अपने ढंग से जी रहे हैं, इसलिए मैं भी अब अपने हिसाब से ही  जिऊंगी,’’ इतना कह कर सियाली ने फोन काट दिया था, पर उस का मन एक अजीब सी खटास से भर गया था.

डांस ग्रुप के सभी सदस्यों से सियाली की अच्छी दोस्ती हो गई थी, पर पराग नाम के लड़के से उस की कुछ ज्यादा ही पटने लगी थी.

पराग स्मार्ट था और पैसे वाला भी. वह सियाली को गाड़ी में घुमाता और खिलातापिलाता. उस की संगत में सियाली को भी सिक्योरिटी का अहसास होता था.

एक दिन पराग और सियाली एक रैस्टोरैंट में गए. पराग ने अपने लिए एक बीयर मंगवाई और सियाली से पूछा, ‘‘तुम तो कोल्ड ड्रिंक लोगी न सियाली?’’

‘‘खुद तो बीयर पीओगे और मु झे बच्चों वाली ड्रिंक… मैं भी बीयर पीऊंगी,’’ कहते हुए सियाली के चेहरे पर  एक अजीब सी शोखी उतर आई थी.

सियाली की इस अदा पर पराग भी मुसकराए बिना न रह सका और उस ने एक और बीयर और्डर कर दी.

सियाली ने बीयर से शुरुआत जरूर की थी, पर उस का यह शौक धीरेधीरे ह्विस्की तक पहुंच गया था.

अगले दिन डांस क्लास में जब वे दोनों मिले, तो पराग ने एक सुर्ख गुलाब सियाली की ओर बढ़ा दिया और बोला, ‘‘सियाली, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

यह सुन कर ग्रुप के सभी लड़केलड़कियां तालियां बजाने लगे.

सियाली ने भी मुसकरा कर पराग के हाथ से गुलाब ले लिया और कुछ सोचने के बाद बोली, ‘‘लेकिन, मैं शादी जैसी किसी बेहूदा चीज के बंधन में नहीं बंधना चाहती. शादी एक सामाजिक तरीका है 2 लोगों को एकदूसरे के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए जिंदगी बिताने का, पर क्या हम ईमानदार रह पाते हैं?’’ सियाली के मुंह से ऐसी बड़ीबड़ी बातें सुन कर डांस ग्रुप के लड़केलड़कियां शांत से हो गए थे.

सियाली ने थोड़ा रुक कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं ने अपने मांबाप को उन की शादीशुदा जिंदगी में हमेशा लड़ते ही देखा है, जिस का खात्मा तलाक के रूप में हुआ और अब मेरी मां अपने प्रेमी के साथ लिवइन में रह रही हैं और पहले से कहीं ज्यादा खुश हैं.’’

पराग यह बात सुन कर तपाक से बोला, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ लिवइन में रहने को तैयार हूं,’’ तो सियाली ने इसे झट से स्वीकार कर लिया.

कुछ दिन बाद ही पराग और सियाली लिवइन में रहने लगे, जहां वे जी भर कर जिंदगी का मजा ले रहे थे. पराग के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी.

कुछ दिनों के बाद उन के डांस ग्रुप की गायत्री नाम की एक लड़की ने सियाली से एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘सियाली, तुम्हारी तो अभी उम्र बहुत कम है… और इतनी जल्दी किसी के साथ लिवइन में रहना… कुछ अजीब सा नहीं लगता तुम्हें…’’

सियाली के चेहरे पर एक मीठी सी मुसकराहट आई और चेहरे पर कई रंग आतेजाते गए, फिर उस ने अपनेआप को संभालते हुए कहा, ‘‘जब मेरे मांबाप ने सिर्फ अपनी जिंदगी के बारे में सोचा और मेरी परवाह नहीं की, तो मैं अपने बारे में क्यों न सोचूं… और गायत्री, जिंदगी मस्ती करने के लिए बनी है, इसे न किसी रिश्ते में बांधने की जरूरत है और न ही रोरो कर गुजारने की…

‘‘मैं आज पराग के साथ लिवइन में हूं, और कल मन भरने के बाद किसी और के साथ रहूंगी और परसों किसी और के साथ, उम्र का तो सोचो ही मत… बस मस्ती करो.’’

सियाली यह कहते हुए वहां से चली गई, जबकि गायत्री अवाक सी खड़ी रह गई.

तितली कभी किसी एक फूल पर नहीं बैठती… वह कभी एक फूल पर, तो कभी दूसरे फूल पर, और तभी तो  इतनी चंचल होती है और इतनी खुश रहती है… रंगबिरंगी तितली, जिंदगी से भरपूर तितली.

और हीरो मर गया : कहानी स्ट्रगल के साथी की

जुनून इतना पुरजोर था कि उसे मुंबई खींच कर ले गया, पर यह तो उसे मुंबई पहुंच कर ही पता चला कि हर दिन मुंबई पहुंचने वाले लोगों में फिल्मी हीरोहीरोइन बनने की ख्वाहिश रखने वाले लड़केलड़कियों की भी बड़ी भारी तादाद होती है.

रोजरोज मुंबई आने वाले ये लोग फिल्म स्टार बनने की ख्वाहिश रखने वाले स्ट्रगलरों की भीड़ में इजाफा करते जाते हैं. विनय भी इस भीड़ का हिस्सा बन गया. इसी भीड़ की धक्कामुक्की और रेलमपेल ने एक दिन उसे एक फिल्म ऐक्टिंग इंस्टीट्यूट के दरवाजे पर पहुंचा दिया.

विनय ने घर से लाए अपने रुपएपैसों की गिनती की, फिर उस ने एक ऐक्टिंग इंस्टीट्यूट के एक साल के कोर्स में दाखिला ले लिया. वहां विनय की मुलाकात उदय नाम के एक लड़के से हुई. लंबाचौड़ा उदय बहुत हैंडसम था, पर महीनेभर में विनय अपनी ऐक्टिंग के दम पर सब के आकर्षण का केंद्र बन गया. विनय और उदय की दोस्ती धीरेधीरे इतनी गहरी हो गई कि वे रूम पार्टनर बन कर साथसाथ रहने लगे.

कोर्स पूरा हो जाने के बाद आत्मविश्वास से भरे इन दोनों नौजवानों की मेहनत रंग लाई. दोनों को ही 1-1 फिल्म मिल गई. मगर विनय की फिल्म 2 रील की शूटिंग के बाद ही अटक गई. उसे 2 और फिल्मों का भी औफर मिला, मगर वे दोनों फिल्में भी किसी न किसी वजह से बीच में ही दम तोड़ गईं. उधर, उदय की फिल्म न केवल पूरी हुई, साथ ही सुपरहिट भी हुई.

उदय की धूम मच गई. नतीजतन, उस के सामने बड़ेबड़े बजट की फिल्मों के प्रस्ताव वालों की कतार लगी थी, तो विनय स्ट्रगल करने वाले कलाकारों की कतार में धक्के खातेखाते पीछे होता जा रहा था.

उदय एक बड़े फिल्मकार द्वारा गिफ्ट किए गए शानदार फ्लैट में शिफ्ट हो गया. विनय अपने रूम में अकेला रह गया, तो उस ने अपना नया रूम पार्टनर बना लिया.

विनय को हार तो स्वीकार थी, मगर घुटने टेकना स्वीकार नहीं था. नाकामी का अंधेरा जितना ज्यादा गहराता जाता, उतना ही कामयाबी के उजालोें के लिए उस की जद्दोजेहद और मजबूती से बढ़ती जाती. हिम्मत की इसी चट्टान से उस के दिल का दर्द कविता और कहानी बन कर फूटने लगा.

मशहूर टैलीविजन की हस्ती और सीरियल बनाने वाली प्रीता नूरी की नजर विनय के लेखन पर पड़ी, तो उन्होंने उसे सीरियल लिखने वाले लेखकों की अपनी टीम में शामिल कर लिया.

प्रीता नूरी के लेखकों की टीम में लेखन करने के अलावा विनय एक फिल्म पत्रिका में पार्टटाइम न्यूज रिपोर्टर भी हो गया था. इस तरह उसे इतनी आमदनी होने लगी थी कि वह फिल्मी दुनिया में अपने बूते अपनी जद्दोजेहद जारी रख सकता था.

एक दिन एक पत्रिका में विनय ने पढ़ा, ‘फिल्म स्टार उदय अब सुपरस्टार के पायदान के नजदीक.’

विनय को खुशी हुई. इस बात का संतोष हुआ कि कम से कम उस के साथी कलाकार को तो कामयाबी मिली.

एक दूसरी फिल्म पत्रिका ने लिखा, ‘उदय एक दिन फिल्मी दुनिया का ध्रुव तारा साबित होगा,’ तीसरी पत्रिका ने लिखा, ‘सुपरस्टार उदय :

द हैंडसम हीरो: आंखें रोमांटिक और मुसकराहट जानलेवा.’

विनय जिस फिल्म पत्रिका में न्यूज रिपोर्टर था, उस के संपादक को जब पता चला कि फिल्म स्टार उदय कभी विनय का रूम पार्टनर रहा है, तो वह विनय के पीछे ही पड़ गया कि वह उदय का कोई धांसू इंटरव्यू तैयार करे. साथ ही, पत्रिका को चाहिए थे फिल्म स्टार उदय के रोमांस के किस्से. स्टार बनने से पहले और बाद के इश्क की रंगरंगीली दास्तान.

विनय उदय से मिलने शूटिंग पर गया, तो उदय ने बिजी कह कर मिलने में आनाकानी की.

कई बार तो विनय को लगा कि उदय उसे देख कर भी अनदेखा कर आगे बढ़ जाता है.

यह देख विनय हैरान था. क्या उदय वाकई इतना बिजी है कि उस के पास स्ट्रगल के दिनों के अपने दोस्त से बात करने की फुरसत भी नहीं थी? वह क्या इतना बड़ा स्टार बन गया है कि मुझ जैसे मामूली आदमी से मिलने में उसे अपनी तौहीन महसूस होती है? पर वह तो पत्रकार की हैसियत से मिलना चाहता है. तो क्या अब उदय इतना बड़ा हो गया है कि उसे मीडिया की दरकार भी नहीं रही?

विनय ने दूसरे दिन फिर से उदय से मिलने की कोशिश की, पर वह नाकाम रहा. तीसरे दिन फिर कोशिश की, फिर नाकाम रहा. आखिर एक दिन उस ने उदय के घर पर फोन किया, तो पीए ने जवाब दिया, ‘साहब के पास अभी बिलकुल भी टाइम नहीं है.’

उधर दूसरी ओर फिल्म पत्रिकाओं में उदय के चटपटे इंटरव्यू छप रहे थे.

विनय ने सिर थाम लिया. उस का संपादक उस के बारे में क्या सोच रहा होगा. दूसरी पत्रिकाओं में चटपटी खबर को पढ़ कर विनय ने उदय के पीए को मन ही मन कोसा, ‘देखो तो इसे… बोलता है कि साहब के पास अभी टाइम नहीं है. अच्छा, तो साहब के पास आजकल रोमांस के लिए टाइम है, दोस्तों से मिलने के लिए नहीं है’, विनय ने अपनेआप को भी कोसा, ‘तेरी तो किस्मत ही खराब है. फिल्मों में ऐक्टिंग करना तो दूर रहा, फिल्म पत्रकारिता भी तेरे बस की नहीं. छोड़ दे यह फिल्मी दुनिया…’

‘नहीं छोड़ूंगा,’ विनय के भीतर से आवाज आती रही और वह अपनी जिद पर डटा रहा कि वह फिल्मी दुनिया नहीं छोड़ेगा. वह इसी फिल्मी दुनिया में कामयाबी की अपनी एक अलग राह खोज कर रहेगा.

उधर, प्रीता नूरी विनय की काबिलीयत से काफी प्रभावित हो चुकी थीं. उन्होंने विनय को एक फिल्म की कहानी और पटकथा पर आयोजित एक मीटिंग में बतौर सलाहकार अपने साथ बिठाया. फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर लेखक प्रवीण तन्मय कहानी और पटकथा पेश कर रहे थे. उस मीटिंग में फिल्म के हीरो और हीरोइन भी शामिल थे.

वहां विनय ने महसूस किया कि फिल्म इंडस्ट्री में पहले की तुलना में लेखकों की इज्जत काफी बढ़ चुकी है. उस ने देखा कि केवल डायरैक्टर और फिल्मकार ही नहीं, बल्कि फिल्म के हीरोहीरोइन भी लेखक प्रवीण तन्मय को काफी इज्जत दे रहे थे.

विनय को लगा कि वह भी एक कामयाब फिल्म लेखक बन सकता है.

इधर लेखक प्रवीण तन्मय की कहानी से प्रीता नूरी इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उस का डायरैक्शन भी उन्हें ही सौंप दिया. प्रवीण तन्मय ने जब इस फिल्म के डायरैक्शन की बागडोर संभाली, तो विनय को अपना चीफ असिस्टैंट बनाया. कामयाबी के पायदान की तरफ विनय का यह पहला ठोस कदम था. उस का खोया हुआ आत्मविश्वास फिर से लौट आया था. भीतर के उजाले से उस की बाहर की दुनिया भी बदलनी शुरू हो गई थी.

एक दिन अचानक विनय के भीतर एक कहानी का आइडिया कौंध गया और कुछ समय चुरा कर उस ने कहानी पूरी कर ली, जिस का नाम था ‘और हीरो मर गया’.

इस कहानी ने खुद विनय को इतना रोमांचित कर दिया कि आननफानन उस ने उसे पटकथा और संवादों में भी ढाल दिया. फिल्म राइटर्स एसोसिएशन में रजिस्ट्रेशन कराने के बाद उस ने अपनी यह कहानी प्रवीण तन्मय को दिखाई. प्रवीण तन्मय खुशी से उछल पड़े. कहानी प्रीता नूरी को भी सुनाई गई, तो वे भी मुग्ध हो गईं.

इसी बीच लेखक प्रवीण तन्मय के डायरैक्शन में बनी फिल्म ‘युद्ध जारी है’ हिट हो चुकी थी. प्रवीण तन्मय को कुछ दूसरे प्रोड्यूसरों से भी लेखन और डायरैक्शन के प्रस्ताव मिल रहे थे, लिहाजा, वे काफी बिजी हो गए थे. इधर प्रीता नूरी ने विनय की कहानी ‘और हीरो मर गया’ के डायरैक्शन का भार विनय को ही सौंप दिया. कामयाबी के पायदान पर विनय का यह दूसरा ठोस कदम था.

फिल्म कम समय और कम लागत में बन कर तैयार हो गई. फिल्म में कोई बड़ा स्टार नहीं था. कहानी के मुताबिक, नए और छोटे कलाकारों को फिल्म में लिया गया था और तकरीबन सभी कलाकारों ने गजब की ऐक्टिंग की थी.

फिल्म ने लागत से कई गुना ज्यादा आमदनी की और इस तरह विनय का नाम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक जानामाना नाम बन गया. कामयाबी के पायदान पर विनय का यह तीसरा ठोस कदम था.

विनय की तीसरी फिल्म ने तो इतनी कमाई कर डाली कि खुश हो कर फिल्मकार ने विनय को एक शानदार फ्लैट गिफ्ट कर दिया. अब विनय से कहानी लिखवाने व डायरैक्शन के लिए फिल्मकारों की लंबी कतार लग गई. उधर, उदय की 5 फिल्में लगातार पिट गई थीं. उस की फिल्मों के शूटिंग शैड्यूल ही कैंसिल हो गए.

एक दिन विनय तब सुखद आश्चर्य से भर गया, जब उदय को अपने सामने खड़ा पाया. यह वही सुपरस्टार उदय था, जिस के पास स्ट्रगल के दिनों के अपने साथी को पहचानने और बात करने का समय नहीं था.

विनय ने हैरानी से उदय से पूछा, ‘‘सुपरस्टारजी, आप तो धांसू डायलौग डिलीवरी के लिए मशहूर हैं और मेरी कहानियों के डायलौग बहुत साधारण होते हैं. कहानी भी सीधेसादे पात्रों को ले कर होती है.

‘‘हर फिल्म में आप की ड्रैसें महंगे फैशन डिजाइनरों द्वारा तैयार की जाती हैं और मेरी कहानी के पात्र तो आम होते हैं, इसलिए उन्हें साधारण पोशाक ही सूट करती हैं.

‘‘आप तो जोखिम भरे स्टंट करने के लिए मशहूर हैं. फिल्म में एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग पर छलांग लगाते हुए आप को देख कर दर्शक रोमांचित हो जाते हैं, जबकि मेरी कहानियों के पात्र हवा में नहीं उड़ते, जमीन पर चलते हैं.

‘‘आप की अभी तक की रिकौर्डतोड़ फिल्मों की कामयाबी का क्रेडिट परदे पर आप के द्वारा गाए गए सुपरहिट गीतों को दिया जाता है, डांस को दिया जाता है, जबकि मेरी कहानी के किरदार तो जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराते हैं. भला आप ऐसे साधारण किरदारों को परदे पर करना क्यों पसंद करोगे?’’

सवाल का खुद जवाब न देते हुए उदय ने विनय से ही पूछ लिया, ‘‘हां, मैं जानता हूं कि आप की कहानियों के पात्र आम आदमी होते हैं, साधारण होते हैं. तो आप ही बताइए कि फिर दर्शक उन्हें पसंद क्यों कर रहे हैं?’’

उदय की बात सुन कर विनय बोला, ‘‘क्योंकि मेरी कहानियां मौलिक और असली होती हैं.’’

उदय ने विनय का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मैं उन उंगलियों को चूमना चाहता हूं, जो ऐसी कहानियों को लिख रही हैं. कामयाबी के घमंड ने मुझे अंधा बना दिया था, पर स्ट्रगल से मिली आप की कामयाबी के उजालों ने मेरी आंखें खोल दी हैं. मेरी पतंग तो हवा में उड़ रही थी. कामयाबी तो यह है, जो आप ने अपने खूनपसीने से हासिल की है. फिल्म इंडस्ट्री में आप ने अपना पैर अंगद के पैर की तरफ जमा दिया है. मैं आप को बधाई देता हूं. हो सके, तो मुझे माफ कर दो.’’

विनय ने उदय को अपनी छाती से लगा लिया. उदय बोला, ‘‘भाग्य के भरोसे पर टिकी बेतुकी फिल्मों की अपनी कामयाबी से मेरा मन ऊब गया है. मैं जमीन पर पैर रख कर अपनी मेहनत से अपने हुनर को तौलना चाहता हूं.

‘‘दोस्त, तुम तो स्ट्रगल के दिनों के मेरे साथी हो. मेरे लिए कोई ऐसी ही कहानी लिखो न, जिस का किरदार विलक्षण हो, पर धरती के आम इनसान की तरह हो.’’

विनय ने उदय के सादगी से दमकते चेहरे की ओर देखा तो देखता ही रह गया. अब वह फिर वही पहले जैसा कलाकार उदय हो गया था. उस के भीतर का हीरो मर चुका था.

नायर साहब : सेना के सीक्रेट मिशन का अनोखा कोडवर्ड

टारगेट प्रैक्टिस कर रहे कमांडो सन्नी की गन से लगातार निकल रही गोलियां अचूक निशाने पर लग रही थीं. हर गोली कुछ एमएम इधरउधर हो रही थीं. रैपिड फायरिंग हो या लौंग रेंज या शौर्ट रेंज. गोलियों की आवाज कुछ देर के लिए रुकी. सामने लाल बत्ती जलबुझ रही थी. यह इमर्जैंसी का सिगनल था.

‘‘इमर्जैंसी?‘‘

इस के लिए ये कोई नई बात नहीं थी, चौबीसों घंटे वरदी पहने रहता था. पर बेस्ट कमांडो को प्रैक्टिस रोक कर बुलाने का मतलब…?

‘‘कोई हाईजैकिंग, टैररिस्ट अटैक हुआ क्या…?‘‘ सन्नी ने बाहर निकल कर घंटी बजाने वाले जवान से पूछा.

‘‘सर कुछ पता नहीं न्यूज चैनल में तो कुछ भी खास नहीं. वैसे तो वो लोग सभी न्यूज को ब्रेकिंग न्यूज बताते हैं. आप सर बेस्ट कमांडो अफसर हैं, वे लोग आप को बताएंगे, आप का मोबाइल नौनस्टौप बज रहा था, इसलिए आप को सिगनल दिया.‘‘

‘‘इडियट, जोकर है तुम… मोबाइल बज रहा था तो क्या…?‘‘ नाराज हो कर सन्नी लौटने वाला था.

तभी डरतेडरते जवान ने कहा, ‘‘सरजी, आप का स्पैशल मोबाइल बज रहा था और हैडक्वार्टर से आप का हालचाल कोई नायर साहब पूछ रहे थे कि आप की तबीयत कैसी है…?‘‘

‘‘ओह नायर साहब, वे तो मेरे दोस्त हैं…‘‘ सन्नी के तेवर नरम पड़े. प्रैक्टिस बीच में छोड़ना उसे पसंद नहीं था, पर बात जरूर खास थी.

‘‘मेरा प्रैक्टिस चैंबर बंद कर दो. अब मूड नहीं है,‘‘ सन्नी अपना सामान कप बोर्ड में रखता हुआ बोला.

सन्नी अपना बैग ले कर तुरंत गाड़ी में बैठा. ‘नायर साहब‘ कोड था कि कोई सीक्रेट मिशन है, जिस की चर्चा तक नहीं करनी है. स्पैशल हैक न होने वाले मोबाइल पर टैक्स्ट मैसेज था – आप का दिन शुभ हो, नायर साहब औफिस में आप का इंतजार कर रहे हैं.

औफिस पहुंच कर उस ने पूरे मिशन – ‘मिशन ग्रीन‘ की बारीकी से स्टडी की. 85 सीआरपीएफ जवानों की हत्या हुई थी और तमाम उपायों के बाद भी माओवादी हिंसा रुक नहीं रही थी. सन्नी जानता था कि उस का चयन बहुत ही सोचसमझ कर किया गया था. वह भी गांव का रहने वाला था और वहां की हर तरह के हालात को बेहतर तरीके से हैंडल कर सकता था.

सन्नी दूर तक फैले जंगल और ऊंची पहाड़ियों की ओर मुड़मुड़ कर देखता. आसपास के गांव की तलाश में आगे बढ़ा. जंगल अब खत्म हो गए थे और जंगल किनारे के खेत नजर आने लगे थे.

‘आपरेशन ग्रीन‘ सफल रहा था और उस ने उन के सुप्रीम कमांडर को मार गिराया था. किसी को पता नहीं था कि 2 गुटों की दबदबे की लड़ाई की आड़ में दोनों ओर के मारे गए लोग उस की अचूक निशानेबाजी के शिकार हुए थे. यह उस के पहले इंस्ट्रक्टर बुद्धन गुरु की सिखाई रणनीति थी, जो इसी इलाके के थे और अब रिटायर हो चुके थे.

अपनी सफलता की कहानी वह कमांडो ट्रेनिंग हैडक्वार्टर तक पहुंचा भी नहीं पाया था, क्योंकि कोई भी संचार उपकरण रखना खतरे से खाली नहीं था. अब वह निहत्था भी था. हथियार पहाड़ी झरने में फेंक आया था, ताकि कोई उसे पहचान न पाए.

पर उसे भी 2 गोलियां लगी थीं. वह बैस्ट कमांडो था और हर हालात में अपने को बचाने और जीवित रखने के तरीके जानता था, पर सीक्रेट मिशन के कारण वह ग्रामीण वेशभूषा में था और भयंकर गोलीबारी में अपने छापामार युद्ध के बाद बहुत खून बहने के कारण बुरी तरह थक चुका था. अब आपरेशन कर गोली निकालने में किसी अस्पताल या सरकारी एजेंसी की मदद भी नहीं ले सकता था.

नजदीकी थाना 20 किलोमीटर दूर था. दूसरे किसी और का मोबाइल इस्तेमाल करना बहुत हद तक खतरनाक था, क्योंकि वहां मोबाइल उन के ही लोगों के पास थे और कोई ऐसा समर्थक भी नहीं था तो किसी डाक्टर के आने पर उस से माओवादियों को शक हो जाता. अब उस के पास एक ही रास्ता था किसी रिटायर्ड फौजी या पुलिस वाले से मदद ले कर गोली बाहर निकलवाना.

‘‘पर, ऐसा फौजी इस जंगल के बीच मिलेगा कहां? अगर मिल भी गया तो इन माओवादियों के डर से उस की मदद कौन करेगा?‘‘

गांव में उस के खून सने कपड़े देख कर कोई मदद के लिए तैयार नहीं था. एक दयालु बुढ़िया ने उसे एक फौजी का घर दिखाया. दरवाजे की सांकल बजाते ही वह बुखार और कमजोरी से बेहोश हो कर गिर गया.

कई दिनों के बाद होश में आने पर उस ने अपने पहले इंस्ट्रक्टर हवलदार बुद्धन को देखा, जिस ने आज से 10 साल पहले उसे छापामार युद्ध की बारीकियां सिखाई थीं. वह अपने बारे में बताना चाह रहा था, पर गले में कांटे चुभ रहे थे और बोलना संभव नहीं था. वह अपने जमाने के बेस्ट इंस्ट्रक्टर के घर में था, इसलिए बच गया था. उसे हवलदार बुद्धन की दूर से आती आवाज सुनाई दी. वह स्थानीय भाषा में उस से उस का परिचय पूछ रहा था. फिर उस की आंखें मुंद गई थीं.

वह समझ गया था कि बुद्धन ने उसे नहीं पहचाना था. उस के जैसे सैकड़ों कमांडो को उस ने ट्रेनिंग दी होगी, कितनों को पहचानेगा? दूसरे, यहां एनएसजी के बेस्ट कमांडो का पाया जाना कल्पना से परे था. यहां तो पुलिस या पैरामिलिट्री फोर्स के जवान आते थे जो बाहरी होते थे और हावभाव, बोलीभाषा से पहचान लिए जाते थे.

पर, ये बात बुद्धन से छिपी नहीं रह सकती थी कि बहुत ही सफाई से दो खूंख्वार माओवादी गुटों को समाप्त करना किसी कमांडो के अलावा किसी से संभव नहीं था और वो भी जो यहां की भाषा, संस्कृति के साथ भूगोल से अच्छी तरह वाकिफ हो. ऐसे में अपने पुराने शिष्य को पहचान लेना मुश्किल नहीं था.

सन्नी ने अपना परिचय और उद्देश्य बता देना उचित समझा, क्योंकि वह जानता था कि बुद्धन एक देशभक्त फौजी रह चुका था और सच जानने के बाद यहां से सुरक्षित निकालने में उस की मदद कर सकता था.

एक दिन अकेले में जब बुद्धन उस की मरहमपट्टी कर रहा था, तो उस ने बुद्धन से पूछा, ‘‘सर, आप मिलिट्री में कहां थे?‘‘

बुद्धन चुप रहा और उसी दिन उसे अपने खेत के पास वाले घर में ले गया, जहां गांव वालों का आनाजाना नहीं था. वहां उस ने उसे उस के नाम से संबोधित कर कहा, ‘‘सन्नी, जब तक मैं न आऊं, किसी भी हाल में बाहर झांकना तक नहीं.‘‘

यह सुन कर सन्नी सन्न रह गया. उस का अनुमान सही था, तभी उसे याद आया कि उस की कोहनी के भीतरी तरफ दो निशान थे, जो हर बेस्ट कमांडो के हाथों में होते हैं. आम आदमी न समझ पाए, पर बुद्धन गुरु के लिए ये बहुत आसान था कि साधारण से दिखने वाले इस जवान के हाथ में ये निशान 2 छेद करने पर बने थे, जो खुद का खून पी कर जिंदा रहने की अंतिम ट्रेनिंग होती है. सन्नी किसी भी हालात के लिए तैयार था, जो उस की आदत थी.

उस सुनसान से घर में दिन में कुछ लोगों की आवाजें सुनाई पड़ती थीं, जो खेतों में काम करते थे. उन की बातें सुन कर उसे पता चला कि एक मारा गया सुप्रीम कमांडर उसी गांव का था और उस के बचेखुचे साथी दूसरे गुट और उस के सुप्रीमो से बहुत नाराज थे, जिस ने उस की हत्या की थी और खुद भी मारा गया था. अभी तक दूसरा गुट इस सदमे से उबर नहीं पाया था.

एक दिन एकदम मुंहअंधेरे बुद्धन गुरु उस के पास आया और बोला, ‘‘सन्नी, अब तुम बिलकुल ठीक हो. कुछ दिन मिलिट्री हौस्पिटल में रहोगे तो ड्यूटी के लिए फिट हो जाओगे. मैं ने पास के पुलिस कैंप से आगे जाने की व्यवस्था कर दी है. अभी चलो मेरे साथ…‘‘

सन्नी ने इतने दिनों तक रोज उसे दिनरात खिलानेपिलाने सेवा करने वाली बुद्धन की पत्नी से मिल कर आभार प्रकट करने की इच्छा व्यक्त की, ‘‘सर, मैं चाचीजी से मिल कर उन के पैर छूना चाहता हूं…‘‘

‘‘अभी उस की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उस को परेशान करना उचित नहीं,‘‘ बुद्धन ने कहा. दोनों तेजी से आगे बढ़ ही रहे थे कि बुद्धन की पत्नी सामने राइफल लिए खड़ी थी, ‘‘चलिए, मैं भी इसे छोड़ने चलती हूं और आप राइफल के बिना जंगल में निकलते कैसे हैं?‘‘

सन्नी ने 1-2 बार उन का आभार व्यक्त करने की कोशिश की, पर उन्होंने बात बदल दी, ‘‘यह जंगल है. यहां हर पल सावधान रहना पड़ता है, आगे देखो…” उन के उखड़े हुए स्वर से लगा कि वह अनचाहा मेहमान था. बुद्धन गुरु पहले की तरह भावहीन थे. सुबह होतेहोते तीनों जंगल के छोर पर पहुंच गए थे.

बुद्धन ने कहा, ‘‘यह रास्ता सीधा पुलिस कैंप तक जाएगा, कोई अगर पूछे तो बताना कि मेरे मेहमान हो, शहर जाना है.‘‘

सन्नी ने दोनों के पैर छुए, पर दोनों ने कुछ कहा नहीं. दो कदम आगे बढ़ते ही बुद्धन की पत्नी ने चिल्ला कर कहा, ‘‘अब हमारी सीमा समाप्त हो गई है और इसलिए ये हमारा मेहमान नहीं है. गोली मारो मेरे एकलौते बेटे के हत्यारे को…‘‘

सन्नी समझ गया था कि सुप्रीम कमांडर, जिस की उस ने हत्या की थी, बुद्धन सर का ही भटका हुआ बेटा था. राइफल कौक हुआ… सन्नी समझ चुका था कि अब एक बेटे का बाप उस के हत्यारे को सजा देने के लिए तैयार था, ठीक उस की तरह बुद्धन सर का निशाना कभी नहीं चूकता…

कुछ पल और बाकी थे और पीछे से गोली का एक धक्का उस के सिर के टुकड़े करने वाला था. उस ने अंतिम बार अपनी मां को याद किया…

गोली चली, पर यह हवाई फायर था. गोली पेड़ के ऊपर टहनियों से टकरा कर आगे निकल गई थी… वह समझ गया था कि एक रिटायर्ड फौजी भी फौजी ही होता है, जिस के लिए देश सब से पहले होता है. सन्नी ने उस दंपती को खड़े हो कर सैल्यूट किया और तेजी से आगे बढ़ गया.

हेलीकौप्टर के पायलट की बात सुन कर उस का पत्थरदिल भी पसीज गया, ‘‘सर, बुद्धन सर नहीं आए, उन्होंने ही हेडक्वार्टर फोन कर आप के लिए हेलीकौप्टर मंगवाया था.

‘‘सर, सच है, ‘‘वंस ए सोल्जर आल्वेज ए सोल्जर.‘‘

छोटे शहर की लड़की : जब पूजा ने दी दस्तक- भाग 4

‘‘आसमान से भी ऊंचे सपने व्यक्ति देख सकता है, परंतु न तो वह आसमान में उड़ सकता है, न आसमान में घर बना कर रहना उस के लिए संभव है. तो क्या तुम इस छोटे शहर से अलग हो गए?’’ ‘‘नहीं, परंतु यहां मेरे सपनों के लिए कोई जगह नहीं है,’’ उस ने साफ किया.

‘‘क्या प्यार के लिए भी नहीं…’’ ‘‘प्यार तो समय और परिस्थिति के अनुसार बदलता रहता है.’’

‘‘तुम बहुत कठोर हो.’’ ‘‘हो सकता है.’’

‘‘पहले तो ऐसे नहीं थे.’’ ‘‘पहले मैं छोटे शहर में रहता था और यहां की लड़कियां मुझे डराती थीं.’’

‘‘तो तुम ने डर कर मुझ से प्यार किया था? लेकिन अब तुम बड़े शहर में रहते हो. वहां की लड़कियां तो छोटे शहर की लड़कियों से भी अधिक तेज होती हैं. क्या वहां की लड़कियों से तुम्हें डर नहीं लगता?’’ ‘‘लड़कियों से मुझे डर नहीं लगता, बस उन के प्यार से डर लगता है.’’

‘‘तो तुम मुझे प्यार नहीं करते?’’ ‘‘शायद… मुझे संदेह है,’’ उस ने पूजा की भावनाओं की परवा न करते हुए स्पष्ट रूप से कहा.

‘‘तो क्या तुम मुझे छोड़ दोगे?’’ वह लगभग रोंआसी हो गई थी. ‘‘मुझे मेरा सपना पूरा करने दो. उस के बाद ही मैं कुछ कह पाऊंगा. अभी मेरे और मेरे सपनों के बीच में और कुछ नहीं है.’’

‘‘पूजा का दिल टूट गया. उसे लगा कि सबकुछ समाप्त हो गया है.’’ छुट्टियां भी एक दिन समाप्त होनी थीं. पूजा हताश और निराश हो गई थी. उस ने विनोद के घर आना बंद कर दिया था. उस से फोन पर भी बात नहीं करती थी और न उस से बाहर मिलने के लिए जिद करती थी.

दिल्ली जाने से एक दिन पहले विनोद ने पूजा को फोन किया, ‘‘क्या कर रही हो?’’ ‘‘कुछ नहीं… मेरे पास करने के लिए है भी क्या?’’

‘‘तो फिर वहीं आ जाओ. जहां हम मिलते हैं.’’ ‘‘क्या जरूरी है, मेरा मन नहीं कर रहा है,’’ उस ने उपेक्षा जाहिर की.

‘‘बहुत जरूरी है, नहीं आओगी तो जीवनभर पछताओगी.’’ ‘पता नहीं क्या बात है‘, सोच कर पूजा मिलने के लिए आ गई. वह उदास थी, अपने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए वह उसे देखने लगी. विनोद मुसकरा रहा था. पूजा को उस की मुसकराहट का भेद समझ में नहीं आया. विनोद ने बेझिझक उस के कंधों पर हाथ रख दिया और उसे लगभग अपनी तरफ खींचता हुआ बोला, ‘‘तुम बहुत दुखी हो.’’

वह कुछ नहीं बोली. उस ने अपना एक हाथ उस के सिर के पीछे रख उस का सिर अपने सीने पर दबा लिया और उस के बालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘स्वाभाविक है, मेरी तरफ से तुम्हारा मन उचट गया हो, परंतु मैं भी क्या करता? एक डरपोक लड़के को तुम ने प्यार किया. मैं तुम्हारे लायक नहीं था. मैं एक किताबी कीड़ा था और समझता था इन्हीं में मेरा जीवन है.

जीवन में सपने देखने के सिवा मैं ने और कुछ नहीं किया. जब तुम ने मुझे प्यार किया तो मैं इतना डर गया था कि समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं. तुम्हारे प्यार में पड़ कर कहीं मेरे सपने चकनाचूर न हो जाएं. इसी असमंजस में दिन गुजर रहे थे. दिल्ली गया तो लगा कि मेरा सपना मेरी पकड़ से बहुत दूर नहीं है, परंतु तुम्हारी यादें बीच में बाधा उत्पन्न कर रही थीं,’’ वह चुप हो कर अपनी सांसों को संयत करने लगा.

पूजा ने अपना सिर उठा कर उस के चेहरे की तरफ देखा. ‘‘परंतु इन छुट्टियों में मेरे प्रति तुम्हारी दीवानगी और प्यार ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. मैं नहीं समझता कि जीवन में बिना प्यार के कोई भी सपना पूरा हो सकता है. मैं अपने चाहे जितने सपने पूरे कर लूं, वे सभी अधूरे रहेंगे, अगर मेरे जीवन में किसी का प्यार नहीं है. तुम्हारा अपने प्रति अटूट प्यार देख कर मेरा आत्मबल और विश्वास दोगुना हो गया है. मुझे लगता है कि तुम्हारा प्यार पा कर मैं अपना सपना जल्दी ही पूरा कर लूंगा. इस में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे.’’

अब पूजा उस से अलग हो कर उस की तरफ तीखी नजरों से देखने लगी थी. विनोद की आंखों में प्रेम का गहरा समुद्र हिलोरें मार रहा था. पूजा का हृदय अनायास धड़क उठा, बिलकुल उसी तरह जिस प्रकार पहली बार विनोद के लिए धड़का था. ‘‘मैं ने तुम्हें बहुत सताया है,’’ उस ने भावुक हो कर कहा.

उस का सिर नीचे झुक गया. वह सुबकने लगी. ‘‘आशा है, तुम मेरी बात का मतलब समझ गई होगी. मैं अधिक कुछ नहीं कह सकता. बस, एक बात पूछना चाहता हूं, क्या मेरा सपना पूरा होने तक तुम मेरा इंतजार कर सकती हो?’’

पूजा ने अपना मुंह उस के सीने में छिपा लिया और उस की पीठ पर अपनी बांहें कसती हुई बोली, ‘‘आज तुम ने मुझे पूरी तरह से जीत लिया. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. मैं छोटे शहर की लड़की हूं और सच्चे मन से तुम्हें प्यार करती हूं, तुम अपना सपना पूरा कर के आओ, फिर हम दोनों घर वालों की सहमति से विवाह कर के अपना घर बसा लेंगे.’’ विनोद ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया, ‘‘ऐसा मत कहो कि तुम छोटे शहर की लड़की हो. तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है.’’

‘‘तुम ने एक दिन कहा था कि छोटे शहर की लड़कियों की सोच ऐसी ही होती है. यह तुम्हारी बात का जवाब था.’’ ‘‘लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल छोटे शहर की लड़कियां ही सच्चा प्यार करती हैं. बड़े शहर की लड़कियां भी अपने प्रेमियों का इंतजार करती हैं. प्रेम सच्चा हो, तो सब कुछ संभव है. हां, जीवन का बड़ा सपना केवल बड़े शहरों में ही पूरा होता है, परंतु प्यार का सपना तो कहीं भी, किसी भी जगह पूरा हो सकता है.’’

‘‘सचमुच… आज मैं इस बात को समझ गई हूं. तुम ने मेरे सारे भ्रम दूर कर दिए.’’ ‘‘और मेरे मन से भी सारी दुविधाएं दूर हो गई हैं. मुझे पूरी आशा है कि मेरे दोनों सपने… आईएएस बनने का और तुम से शादी करने का… जल्दी ही पूरे हो जाएंगे. फिर तुम्हें ज्यादा दिन तक विरह के आंसू नहीं बहाने होंगे.’’

…और उन के मन में हजारों दीपक जल कर मुसकराने लगे, जिन का प्रकाश चारों तरफ फैल गया.

पवित्र पापी: अमृता बाबा के गलत इरादों को क्यों बढ़ावा देती थी?

अमृता इसी आश्रम में ब्याह कर आई थी. आश्रम बहुत बड़ी जमीन पर फैला हुआ था. आश्रम के नाम पर बहुत बड़ी जमींदारी थी. गांवों में जमीनें थीं. खूब चढ़ावा आता था. कई जगह मंदिर थे जिन में पुजारियों को तनख्वाह मिलती थी. अमृता का ससुर पंडित मोहनराम आश्रम की जमींदारी संभालता था. यहीं पर ही वह रहता था. उस का अलग से मकान इसी आश्रम के पिछवाडे़ में बना हुआ था.

बडे़ महाराज का नाम दूरदूर के गांवों में था. उन्होंने कई किताबें लिखी थीं. बहुत बडे़बडे़ कार्यक्रम यहीं होते थे. तब स्वरूपानंदजी काशी से पढ़ कर आए थे. पहले वह ब्रह्मचारी ही रहे, बाद में बडे़ महाराज ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया था और मरने के  बाद स्वरूपानंद ने जब गद्दी संभाली तो आश्रम को नया होना ही था.

तब अमृता बाबा स्वरूपानंद की महिला शाखा की  कर्ताधर्ता थी. उसी ने हर बार स्वरूपानंद की शोभायात्रा भी निकाली थी. वसंत पंचमी पर जो फूल- डोल का कार्यक्रम होता था उस में अमृता सैकड़ों महिलाओं के साथ वसंती कपडे़ पहन कर बाबा स्वरूपानंद के साथ गुलाल उछलवाती थी. बाबा की गाड़ी हमेशा इत्र की खुशबू से महकती रहती.

अमृता का पति रामस्वरूप हमेशा या तो भांग पिए रहता या बाबा की जमींदारी में गया होता और अमृता मानो खुद ही आश्रम की हो कर रह गई हो. कभी मंदिर में कभी भंडार में, कभी अतिथिशाला में, भागतेदौड़ते अमृता को देख यही लगता था मानो आश्रम का सारा भार उसी पर हो.

कब बेटा हुआ, कब बड़ा हुआ, उसे पता नहीं. हां, बेटा होने पर बाबा ने उसे 20 तोला सोना दिया था. मकान पक्का कराया, फ्रिज दिया, उसे वह सबकुछ याद है.

उस रात जब वह मंदिर के पट बंद कर नीचे आ रही थी तब बाबा स्वरूपानंद ने अचानक उस का हाथ पकड़ा और उसे बांहों में भींच लिया. उसे तब लगा कि जैसे उस का रोमरोम जल रहा हो. बाबा की उंगलियां उस की पीठ पर रेंग रही थीं. उस की आंखें बंद होने लगीं. फिर क्या उसे याद नहीं. वह तो बाबा की बांहों में एक नशे में थी.

सुबह जब इत्र से भीगी बाबा की गद्दी पर उस की आंखें खुलीं तो वह खुद अपनी देह को देख कर लजा गई थी. लगा, पंखडि़यां अब खिल गई हैं. उस की आस पूरी हुई. पूरी औरत हो गई है वह. उस ने देखा स्वरूपानंद की धोती खुली पड़ी थी. उस ने ठीक की तो बाबा को मुसकराते देखा और चुपचाप नीचे उतर गई.

बाबा का अंश उस के गर्भ में था. वह अपनी साधना यात्रा पर गतिशील रही. उस का परिवार फलताफूलता रहा. रामस्वरूप अस्वस्थ हो गया. अधिक भांग का नशा और अस्तव्यस्त जीवन के चलते रोगों ने उसे जकड़ लिया था. बाबा ने उस का इलाज करवाया, अस्पताल में भरती भी कराया पर बिगड़ी तबीयत सुधरी ही नहीं और एक दिन वह भी चल बसा. तब उस का काम धर्मस्वरूप ने संभाला. बाबा ने उसे एक मोटरसाइकिल भी दिला दी थी. वह पढ़ालिखा था. उस का विवाह भी कर दिया.

बाबा ने जब से मंगला को अमृता के साथ देखा तभी से उन्हें लग रहा था मानो आंखों के सामने हजार बिजलियां कौंध गई हों. जब मंगला ब्याह कर आई थी तब पतलीदुबली थी. चेहरा भी मलीन हुआ रहता था पर अमृता का प्यार और उस की देखभाल तथा आश्रम के तर भोजन से उस की देह भर आई थी. जब उस के बेटा हुआ तो अमृता ने पूरे आश्रम वालों को भोजन पर बुलाया था.

उस रात बाबा ने अमृता का हाथ पकड़ कर कहा था, ‘‘मंगला तो गदरा गई है.’’

‘‘चुप, चुप करो, तुम्हारी बहू है.’’

‘‘मेरी,’’ बाबा हंसा, ‘‘जोगीअवधूत किसी के नहीं होते.’’

‘‘तुम यह किस से कह रहे हो?’’

‘‘तुझ से, तू ने मेरा बहुत माल खाया है.’’

‘‘मैं ने तुझे अपना शरीर भी तो दिया है. मुफ्त में कोई किसी को कुछ नहीं देता.’’

‘‘बहुत बोलने लग गई है.’’

‘‘याद रखना, मंगला मेरी ही नहीं तेरी भी बहू है. उस पर निगाह डाली तो आंखें नोच लूंगी.’’

‘‘यह तू कह रही है.’’

‘‘हांहां,’’ उस ने अपनी साड़ी को ठीक करते हुए कहा, ‘‘तेरा मुझ से मन भर गया है यह तो मुझे तभी पता लग गया था जब उस सेठ की लुगाई को मैं ने यहां देखा था, पर मैं तुझे यह बता देना चाहती हूं कि मेरा मुंह मत खुलवाना. सब धरा रह जाएगा…यह नाम, यह इज्जत, यह शोहरत. कइयों का बाप है तू, यह मैं जानती हूं,’’ इतना कह कर अमृता जोरों से हंसी. उस की उस हंसी में भय नहीं था एक उद्दाम अट्टहास था.

बाबा स्वरूपानंद अवाक्रह गया, फिर धीरे से बोला, ‘‘चुप कर, तेरा मुंह बंद कर दूंगा. बोल, क्या चाहिए तुझे? इतना दिया है पर तेरा मन नहीं भरा है.’’

‘‘सवाल मन का नहीं, मेरे घर का है. मंगला मेरी बहू है. शर्म कर…’’

उस रात जो तनातनी हुई थी वह बढ़ती ही जा रही थी. अमृता आश्रम में आती, अपना काम करती, मंदिर की पहले की तरह सफाई का पूरा ध्यान रखती और अपना सारा काम कर घर चली जाती.

अब फूलडोल का महोत्सव आ गया था. कई दिन से तैयारियां हो रही थीं. ठाकुरजी का शृंगार होता था. महात्मा लोग प्रवचन करने आते थे. भास्करानंद भी तभी वहां आए हुए थे. बडे़ महाराज के ये प्रिय शिष्य थे. बाद में जब स्वरूपानंदजी गद्दी पर बैठे तो वह उनियारा चले गए थे. वहां भी आश्रम था. वह वहां की गद्दी संभालते थे.

उन दिनों स्वामी मृगयानंद के आश्रम से 2 छोटे बालक भी आश्रम में आए हुए थे. कम उम्र में ही दोनों ने आश्रम में प्रवेश ले लिया था. भास्करानंद उन्हें धर्मशास्त्र पढ़ाया करते थे. उन की देखभाल अमृता के जिम्मे थी.

उस दिन जब वह रात को भंडारगृह में ताला लगवा कर लौट रही थी कि तभी रसोइया नानकचंद दूध का गिलास ले कर आ गया.

‘‘अरे, तू कहां जा रहा है?’’ वह बोली.

‘‘भास्करानंदजी ने दूध मंगवाया है.’’

‘‘वे दोनों छोटे महाराज कहां हैं?’’

‘‘एक तो कमरे में है, दूसरे को महाराज ने पढ़ने के लिए बुलाया था.’’

वह नानकचंद के साथ भास्करानंद के कक्ष की तरफ बढ़ गई.

उधर कक्ष में भास्करानंद ने बालक दीर्घायु को अपने बहुत पास बैठा लिया था और रजिस्टर पर कुछ संस्कृत में लिख कर उसे पढ़ने को दे रहे थे.

‘‘इधर देखो,’’ और उन्होंने बालक दीर्घायु का हाथ पकड़ कर अपनी दोनों जांघों के बीच खींच लिया था. वह लड़खड़ाया और तेजी से उस का मुंह उन की गोदी में आ गिरा था. जब तक बालक दीर्घायु संभलता उन्होंने उसे भींचते हुए चूमना शुरू कर दिया था.

उस के गले से निकली हलकी सी चीख को सुन कर अमृता उधर ही दौड़ी. पीछेपीछे नानकचंद भी दूध को संभालता हुआ दौड़ रहा था. अमृता दौड़ती हुई उस कक्ष के दरवाजे तक पहुंच गई और जोर का धक्का दे कर दरवाजा खोल दिया.

दरवाजा खुलने के साथ ही भास्करानंद सकपका कर दूर सरक गया था और बालक दीर्घायु घबराया हुआ अमृता के पास आ गया.

‘‘क्या कर रहा था नीच? अरे अधर्मी, तुझे शर्म नहीं आती. तेरा पुराना चिट््ठा सब को याद है. यहां ज्ञान चर्चा करने आया है…’’

‘‘तू चुप रह, तू कौन सी दूध की धुली है. यहां तुझे कौन नहीं जानता कि तू स्वरूपानंद की रखैल है.’’

‘‘चुप कर वरना मुंह नोच लूंगी.’’

तब तक स्वरूपानंद भी वहां पहुंच गया. उस ने भास्करानंद को चुप रहने का आदेश दिया और बालक दीर्घायु को ले कर वह उस के कक्ष की तरफ चला गया.

नानकचंद रसोई की तरफ और अमृता जीने से नीचे उतर कर अपने घर की तरफ बढ़ गई.

रास्ते में बाबा ने उस के कदमों की आवाज पहचान कर खंखारा. वह ठिठकी.

‘‘क्या है?’’

‘‘बहुत नाराज हो?’’

वह चुप रही.

‘‘धर्मस्वरूप को एक एसटीडी, पीसीओ खुलवा देते हैं. बाहर सड़क पर उस की दुकान बनवा देंगे.’’

सुन कर अमृता सकपकाई.

‘‘और बहू तो अपनी है, कुछ सोना उस के लिए खरीदा है, ले जाना.’’

अमृता ने सुना और आगे बढ़ गई.

धर्मस्वरूप खाना खा कर अपने कमरे में चला गया था. मंगला भी रसोई का काम पूरा कर सोने चली गई. अमृता नीचे के कमरे में पलंग पर लेटी रही पर आंखों में नींद नहीं थी. घंटे भर बाद जब अंधेरा और बढ़ गया तो वह पलंग से उठी तथा आंगन से होती हुई पीछे की गली में चल कर जीने से होती हुई सीधी आश्रम के पिछवाडे़ में पहुंच गई.

बाबा स्वरूपानंद के कमरे में हलकी रोशनी थी. यहीं पर मोगरे की टोकरी भी रखी हुई थी. चारों ओर खुशबू फैल रही थी.

‘‘आओ…’’ बाबा ने मुसकरा कर अमृता का स्वागत किया क्योंकि आज उस ने कुछ और ही सोच रखा था. बड़ा बोरा मंगवा रखा था. बंद गाड़ी की चाबी आज उसी के पास थी. तालाब के किनारे बडे़ पत्थर भी रखवा लिए थे. यानी अमृता की जल समाधि का पूरा इंतजाम हो चुका था. बाबा सोच रहा था कि अमृता बहुत बोलने लगी है, इस को भी मुक्ति मिल जाएगी.

‘‘तू तो अब पूरी पराई हो चली है,’’ बाबा ने उसे बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘ले, यह सोने का बड़ा सा हार बहू के लिए है.’’

‘‘बहू? यह तुम कह रहे हो?’’

‘‘हां,’’ बाबा का स्वर धीमा था.

बाबा उठे, बाहर का दरवाजा बंद कर दिया. हलकी सी रोशनी थी. अमृता उन के साथ बिस्तर पर थी. साड़ी मेज पर पड़ी थी. अचानक बाबा मुडे़ और तकिया उठा कर उस की गर्दन के ऊपर रख दिया.

अमृता का गला भिंच गया था. सांस नहीं ले पा रही थी. बाबा लगातार तकिए पर दबाव डालता रहा. वह उस के ऊपर आ कर बैठ गया.

वह निढाल हो गई थी. कुछ ही देर में उस की सांसें उखड़ जातीं, पर उस के पहले ही उस ने पूरी ताकत से बाबा को एक धक्का दिया. बाबा संभलता इस के पहले उस ने पास में रखा चिमटा पूरी ताकत से स्वरूपानंद के सिर पर दे मारा. वह तेजी से उठी और पास टंगी बाबा की तलवार उतार कर पूरी ताकत से बाबा की गरदन पर दे मारी. बाबा खून से लथपथ चीख रहा था.

शोर मच गया. वह तेजी से पिछवाडे़ के जीने से होती हुई नीचे उतर गई.

पुलिस आई. बाबा के बयान लिए गए. वह बोला, ‘‘मैं सो रहा था, तब किसी ने मुझ पर हमला किया. मेरे चीखने पर वह भाग गया.’’

अमृता के लिए वह कुछ नहीं बोला था. जानता था, एक शब्द भी बोला तो बदनामी उसी की होगी.

अमृता उस रात के बाद वहां नहीं दिखी. जब तक बाबा स्वरूपानंद अस्पताल से आश्रम लौटते वह उस के पहले बहुत दूर अपने परिवार के साथ जा चुकी थी. उस के घर के दरवाजे पर बहुत बड़ा ताला लटका हुआ था.

शोर करती चुप्पी : कैसा थी मानसी की ससुराल- भाग 4

वह पहले से जल्दी उठता. दोनों भागदौड़ कर तैयार होते. बैडरूम ठीक करते. अपनेअपने कपड़े प्रैस करते, उन्हें अलमारियों में लगाते. नाश्ते के लिए एक टोस्ट सेंकता तो दूसरा कोल्ड कौफी बनाता. एक कौर्नफ्लैक्स बाउल में डालता तो दूसरा दूध गिलास में. एक औमलेट बनाता तो दूसरा टोस्ट पर बटर लगाता. सुजाता खुद कामकाजी थीं. इसलिए उन की बहुत अधिक मदद नहीं कर सकती थीं. बस, घर की व्यवस्था उन्हें ठीकठाक मिल रही थी. राशनपानी, सब्जी कब कहां से आएगा, कामवाली कब काम करेगी, खाना कब बनेगा, इस का सिरदर्द न होना भी बहुत बड़ी मदद थी. इसलिए व्यक्तिगत स्तर पर मदद को ले कर वे चुप ही रहती थीं.

लेकिन परिमल को हर कदम पर अवनी का साथ व स्वतंत्रता देते देख, सुजाता को अपना जीवन व्यर्थ जाया जाने जैसा लगता. वे खुद तो कभी नौकरी व घर के बीच पूरी ही नहीं पड़ीं. ऊपर से सारे रिश्तेनाते. अवनी को तो रिश्तेनाते निभाने की कोई फिक्र ही नहीं थी. यहां तक तो उस की न तो सोच जाती न ही समय था. उस पर भी अब परिवार छोटे. एक टाइम की चाय भी नहीं पिलानी है. और फिर व्हाट्सऐप…चाय की प्याली भी गुडमौर्निंग के साथ व्हाट्सऐप पर भेज दो, और जरूरत पड़ने पर बर्थडे केक भी, यह सब सोच कर सुजाता मन ही मन मुसकराईं.

अवनी की पीढ़ी की लड़कियों ने जैसे एक युद्ध छेड़ रखा है. वर्षों से आ रही नारी की पारंपरिक छवि के विरुद्ध सुजाता सोचतीं, भले ही कितना कोस लो आजकल की लड़कियों को, सच तो यह है कि सही मानो में वे अपना जीवन जी रही हैं. मुखरित हो चुकी हैं, यह पीढ़ी ऐसा ही जीवन शायद उन की पीढ़ी या उन से पहले और उन से पहले की भी पीढ़ी की लड़कियों ने चाहा होगा पर कायदे और रीतिरिवाजों में बंध कर रह गईं. पुरुषों के बराबर समानता स्त्रियों को किसी ने नहीं दी. लेकिन यह पीढ़ी अपना वह अधिकार छीन कर ले रही है.

फिर विकास तो अपने साथ कुछ विनाश तो ले कर आता ही है. गेहूं के साथ घुन तो पिस ही जाता है. अवनी और परिमल दोनों आजकल अत्यधिक व्यस्त थे. रात में भी देर से लौट रहे थे. वर्कलोड बहुत था. दोनों के रिव्यू होने वाले थे. घर आ कर दोनों जैसातैसा खा कर दोचार बातें कर के औंधे मुंह सो जाते. छुट्टी के दिन भी दोनों लैपटौप पर आंखें गड़ाए रहते.

मानसी की बेचैनी सीमा पार कर रही थी. उस में सुजाता जैसा धैर्य नहीं था. न ही वह सुजाता की तरह व्यस्त थी. इसलिए नई पीढ़ी की अपनी बहू के क्रियाकलापों को भी सहजता से नहीं ले पाती और अपनी भड़ास निकालने के लिए बेटी के कान भी उपलब्ध नहीं थे. मां के दुखदर्द सुनना अवनी की पीढ़ी की लड़कियों की न आदत है न फुरसत. पर बेटी से मोह कम कर बहू से मोह बढ़ाना मानसी जैसी महिलाओं को भी नहीं आता.

यदि अवनी ससुराल में न रह कर कहीं अलग रह रही होती तो मानसी अब तक आ धमकती. पर नएनए समधियाने में जा कर रहने में पुराने संस्कार थोड़े आड़े आ ही जाते थे. बेटी तो 2-4 बातें कर के फोन रख देती पर जबतब सुजाता से बात कर वह अपनी भड़ास निकाल लेती.

उन का इस कदर पुत्रीमोह देख कर सुजाता को अजीब तरह का अपराधबोध सालने लगता. जैसे उन की बेटी को उन से अलग कर के उन्होंने कोई गुनाह कर दिया हो. उन्हें कभी मानसी की फोन पर कही अजीबोगरीब बातों से चिड़चिड़ाहट होती तो कभी खुद भी एक बेटी की मां होने के नाते द्रवित हो जातीं.

बेटी से प्यार तो सुजाता को भी बहुत था. पर उस की व्यस्तता उन्हें प्यार जताने तक का समय नहीं देती, मोह की कौन कहे. पर मानसी की हालत देख कर उन्हें लगता कि सच ही कहते हैं, ‘खाली दिमाग शैतान का घर.’ हर इंसान को कहीं न कहीं व्यस्त रहना चाहिए. नौकरी ही जरूरी नहीं है और भी कई तरीके हैं व्यस्त रहने के. उस का दिल करता किसी दिन इतमीनान से समझाए मानसी को कि बच्चों से मोह अब कुछ कम करे और खुद की जिंदगी से प्यार करे.

अभी 55-56 वर्ष की उम्र होगी उन की. बहुत कुछ है जिंदगी में करने के लिए अभी. हर समय बेटीबेटी कर के, उस के मोह में फंस कर, वह खुद की भी जिंदगी बोझ बना रही है और बेटी की जिंदगी में भी उलझन पैदा कर रही है. अवनी की पीढ़ी की लड़कियों की जिंदगी व्यस्तताभरी है. इस पीढ़ी को कहां फुरसत है कि वह मातापिता, सासससुर के भावनात्मक पक्ष को अंदर तक महसूस करे. लेकिन समझा न पाती, रिश्ता ही ऐसा था.

इसी बीच, कंपनी ने अवनी को 15 दिन की ट्रेनिंग के लिए चेन्नई भेज दिया. अवनी जाने की तैयारी करने लगी. घर में किसी के मन में दूसरा विचार ही न आया. एक आत्मनिर्भर लड़की को औफिस के काम से जाना है, तो बस जाना है. लेकिन अवनी की मम्मी बेचैन हो गई.

‘‘कैसे रहेगी तू वहां अकेली इतने दिन. कभी अकेली रही नहीं तू. दिल्ली में भी तू अपनी फ्रैंड के साथ रहती थी,’’ मानसी कह रही थी. सुजाता को भी मोबाइल की आवाज सुनाई दे रही थी.

‘‘अकेले का क्या मतलब मम्मी. नौकरी में तो यह सब चलता रहता है. कंपनी मुझे भेज रही है. आप हर समय चिंता में क्यों डूबी रहती हैं. ऐसा करो आप और पापा कुछ दिनों के लिए कहीं घूम आओ या ऐसा करो गरीब बच्चों को इकट्ठा कर के आप पढ़ाना शुरू कर दो,’’ अवनी भन्नाती हुई बोली. अवनी की बात सुन कर सुजाता की हंसी छूटने को हुई.

‘‘तू हर समय बात टाल देती है. मैं तुझे अकेले नहीं जाने दे सकती. मैं चलती हूं तेरे साथ.’’

‘‘ओफ्फो मम्मी, आप का वश चले तो मुझे वाशरूम भी अकेले न जाने दो. मेरी शादी हो गई है अब. जब यहां किसी को एतराज नहीं तो आप क्यों परेशान हो रही हैं. मेरे साथ जाने की कोई जरूरत नहीं.’’

‘‘मां की चिंता तू क्या जाने. जब मां बनेगी तब समझेगी,’’ मानसी की आवाज भर्रा गई.

‘‘मां, अगर इतनी चिंता करती हैं तो मुझे मां ही नहीं बनना. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. मैं फोन औफ कर रही हूं. मुझे औफिस का जरूरी काम खत्म करना है.’’

‘‘अच्छा, फोन औफ मत कर. जरा मम्मी से बात करा अपनी.’’

अवनी ने फोन सुजाता को पकड़ा दिया. आज मानसी की बातें सुन कर सुजाता का दिल किया कि बुरा ही मान जाए मानसी पर वे अब चुप नहीं रहेंगी, अपनी बात बोल कर रहेंगी. वे फोन पर बात करतेकरते अपने कमरे में आ कर बैठ गईं.

‘‘देख रही हैं आप. कैसे रहेगी वहां अकेली. मुझे भी मना कर रही है. आप परिमल से कहिए न कि छुट्टी ले कर उस के साथ जाए.’’ उस की बेसिरपैर की बात पर झुंझलाहट हो गई सुजाता को.

‘‘परिमल के पास इतनी छुट्टी कहां है मानसीजी. और फिर यह तो शुरुआत है. जैसेजैसे नौकरी में समय होता जाएगा, ऐसे मौके तो आते रहेंगे. आप चिंता क्यों कर रही हैं. आप ने उच्च शिक्षा दी है बेटी को तो कुछ अच्छा करने के लिए ही न. घर बैठने के लिए तो नहीं. समझदार व आत्मविश्वासी लड़कियां हैं आजकल की. इतनी चिंता करनी छोड़ दीजिए आप भी.’’

‘‘कैसी बात कर रही हैं आप. कैसे छोड़ दूं चिंता. आप नहीं करतीं अपनी बेटी की चिंता?’’

‘‘मैं चिंता करती हूं मानसीजी, पर अपनी चिंता बच्चों पर लादती नहीं हूं.’’ सुजाता का दिल किया, अगला वाक्य बोले, ‘और न बेटी की सास को जबतब कुछ ऐसावैसा बोल कर परेशान करती हूं,’ पर स्वर को संभाल कर बोलीं, ‘‘बच्चों की अपनी जिंदगी है. यदि बच्चे अपनी जिंदगी में खुश हैं तो बस मातापिता को चाहिए कि दर्शक बन कर उन की खुशी को निहारें और खुद को व्यस्त रखें. आज की पीढ़ी बहुत व्यस्त है, इन की तुलना अपनी पीढ़ी से मत कीजिए. इस का मतलब यह नहीं कि बच्चों को हम से प्यार नहीं, पर उन की दिनचर्या ही ऐसी है कि कई छोटीछोटी खुशियों के लिए उन के पास समय ही नहीं है या कहना चाहिए खुशियों के मापदंड ही बदल गए हैं उन की जिंदगी के.’’

मानसी एकाएक रो पड़ी फोन पर. सुजाता का दिल पसीज गया. लेकिन सोचा, आखिर बेटी से मोह भंग तो होना ही चाहिए मानसी का.

‘‘मानसीजी, क्यों दिल छोटा कर रही हैं. अवनी आप की बेटी है और जिंदगीभर आप की बेटी रहेगी. लेकिन एक बच्ची आप के पास भी है. उसे भी अवनी के नजरिए से देखेंगी तो वह भी उतनी ही अपनी लगेगी. प्यार कीजिए बच्चों से, पर अपना प्यार, अपना रिश्ता लाद कर उन की जिंदगी नियंत्रित मत कीजिए. बल्कि, अपनी जिंदगी खुशी से जीने के तरीके ढूंढि़ए. अभी हमारी ऐसी उम्र नहीं हुई है. खूबसूरत उम्र है यह तो. सब जिम्मेदारियों से अब जा कर फारिग हुए हैं. अपने छूटे हुए शौक पूरे कीजिए. अब वे दिन लद गए कि बच्चों की शादी की और बुढ़ापा आ गया. अब तो समय आया है एक नई शुरुआत करने का.’’

मानसी चुप हो गई. सुजाता को समझ नहीं आ रहा था कि मानसी उन की बात कितनी समझी, कितनी नहीं. उसे अच्छा लगा या बुरा. ‘‘आप सुन रही हैं न,’’ वे धीरे से बोलीं.

‘‘हूं…’’

‘‘मैं आप का दिल नहीं दुखाना चाहती, बल्कि बड़ी बहन की तरह आप का साथ देना चाहती हूं. अवनी खुश है अपनी जिंदगी में. व्यस्त है अपनी नौकरी में. आप के पास कम आ पाती है, कम बात कर पाती है तो क्या आप सोचती हैं कि वह हमारे पास रहती है, तो हमारी बहुत बातें हो जाती हैं. आप दूर हैं, फिर भी फोन पर बात कर लेती हैं, लेकिन मैं तो जब उसे अपने सामने थका हुआ देखती हूं तो खुद ही बातों में उलझाने का मन नहीं करता. छुट्टी के दिन बच्चे काफी देर से सो कर उठते हैं. फिर उन के हफ्ते में करने वाले कई काम होते हैं. शाम को थोड़ाबहुत इधरउधर घूमने या मूवी देखने चले जाते हैं.

‘‘यदि इस तरह से हम हर समय अपनी खुशियों के लिए बच्चों का मुंह देखते रहेंगे तो हमारी खुशियां रेत की तरह फिसल जाएंगी मुट्ठी से और हथेली में कुछ भी न बचेगा. इसीलिए कहा इतना कुछ. अगर मेरी बात का बुरा लगा हो तो क्षमा चाहती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, आप की बात का बुरा नहीं लगा मुझे. बल्कि आप की बात पर सोच रही हूं. बहुत सही कह रही हैं. अवनी भी जबतब कुछ ऐसा ही समझाती है मगर झल्ला कर. मैं भी कोई नई राह ढूंढ़ती हूं. आप नौकरी में व्यस्त हैं, इसीलिए जिंदगी को सही तरीके से समझ पा रही हैं शायद.’’

‘‘नौकरी के अलावा भी बहुत से रास्ते हैं जिंदगी में व्यस्त रहने के. मैं भी रिटायरमैंट के बाद कोई नया रास्ता ढूंढ़ूंगी. आप भी सोच कर ढूंढि़ए और ढूंढ़ कर सोचिए,’’ कह कर सुजाता हंस दी.

‘‘हां जी, आप बिलकुल ठीक कह रही हैं. कब जा रही है अवनी?’’

‘‘परसों सुबह की फ्लाइट से.’’

‘‘ठीक है. कल रात उसे ‘गुड विशेज’ का मैसेज कर दूंगी,’’ कह कर मानसी खिलखिला कर हंस पड़ी और साथ ही सुजाता भी.

रिश्तेदार: अकेली सौम्या, अनजान शहर और अनदेखे चेहरे- भाग 4

अगले ही दिन नितिन की मां नेहा को देखने सौम्या के घर आ गईं. नेहा पहले से ही वहां तैयार हो कर पहुंच चुकी थी. नेहा का बातव्यवहार, उस की पढ़ाईलिखाई और खूबसूरती नितिन की मां को काफी पसंद आई. हर तरह से नेहा को परखने के बाद उन्होंने सौम्या से इस रिश्ते की सहमति देते हुए जल्द सगाई करने का वादा भी किया. एक बार वे नेहा को अपने पति और नितिन से भी मिलाना चाहती थीं.

सौम्या ने तुरंत बाजी अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं समधनजी. एकदो दिनों में मैं खुद ही अपनी बच्ची को आप के यहां भेज दूंगी. अब तो यह आप की बच्ची भी है. नितिन से मिलवा दीजिएगा. आप चाहें तो नितिन और उस के पापा यहां आ कर भी बच्ची को देख सकते हैं.’’

‘‘जी जरूर,’’ खुश होते हुए नितिन की मां ने कहा. इस बीच नितिन की मां ने यह कह कर नितिन को सौम्या के यहां भेजा कि अपनी आंखों से लड़की देख ले. नितिन और नेहा उस दिन सुबह से शाम तक सौम्या के यहां ही थे और जी भर कर इस बात का मजा ले रहे थे.

घर जा कर नितिन ने औपचारिक रूप से लड़की के लिए अपनी सहमति दे दी. अब तो नेहा 4-6 दिन में एक बार नितिन के यहां हो ही आती थी. इधर उन की सगाई का दिन एक महीने बाद का तय कर दिया गया था. नितिन चाहता था कि सगाई से पहले वह मां को हर बात सचसच बता दे. पर सौम्या ने उसे फिलहाल खामोश रहने की सलाह दी.

इस घटना के करीब 20-22 दिन बाद की बात है. उस दिन नितिन औफिस के काम से शहर के बाहर था. अचानक शाम के समय औफिस से लौटते ही नितिन के पिता के सीने में तेज दर्द होने लगा. नितिन की मां के हाथपैर फूल गए. उन्हें सम झ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. वे बहुत घबरा गई थीं. रोतेरोते उन्होंने नितिन को फोन किया. नितिन ने तुरंत नेहा से अपने घर पहुंचने की गुजारिश की. नेहा दौड़ीदौड़ी नितिन के घर पहुंची. रास्ते में ही उस ने एंबुलैंस वाले को फोन कर दिया था.

घर पहुंच कर उस ने एक तरफ नितिन की मां को संभाला तो दूसरी तरफ पिता को. उस ने पिता के टाइट कपड़े ढीले कर उन्हें आराम से बिस्तर पर लिटा दिया. पैर नीचे की तरफ और सिर थोड़ा ऊपर की ओर उठा कर रखा ताकि ब्लड की सप्लाई हार्ट तक होती रहे.

तब तक एंबुलैंस पहुंच गई. वह तुरंत उन्हें एंबुलैंस में ले कर अस्पताल पहुंची और आईसीयू में ऐडमिट करवाया. उन्हें हार्टअटैक आया था. नेहा सब से सीनियर डाक्टर से रिक्वैस्ट करने लगी कि वे ही इस केस को हैंडल करें. आननफानन  सारे इंतजाम हो गए. नितिन की मां एक कोने में बैठी नेहा की दौड़भाग देखती रहीं. नेहा नितिन के पिता की केयर अपने पिता जैसी कर रही थी. यह सब देख कर नितिन की मां की आंखें भर आई थीं.

नेहा रातभर जाग कर पिता का ध्यान रखती रही. हर तरह की दौड़भाग करती रही. अगले दिन उन की सर्जरी की बात उठी. नेहा ने रुपयों का इंतजाम किया. कुछ नितिन की मां से लिया और कुछ अपनी तरफ से मिला कर फटाफट रुपए जमा करा दिए. औपरेशन कामयाब रहा. शाम तक नितिन भी आ गया.

2 दिनों बाद जब नितिन के पिता थोड़े नौर्मल हुए तो उन्होंने रुंधे गले से नेहा की तारीफ की. उसे बेटी कह कर गले लगा लिया. 4-6  दिन में उन्हें छुट्टी दे दी गई. वे घर आ गए. अब तक सगाई का दिन भी नजदीक आ गया था. सगाई से 2 दिन पहले नितिन ने अपने पेरैंट्स को सचाई बताने की सोची.

नितिन ने कांपती जबान से कहा, ‘‘पापा, मां, मैं आप लोगों से  झूठ बोल कर शादी नहीं कर सकता. दरअसल,  नेहा हमारी जाति की नहीं है और वह सौम्या दीदी की बेटी भी नहीं है. नेहा तो वही लड़की है जिसे मैं… प्यार करता था.’’

नितिन ने सच बता कर निगाहें झुका लीं. वह डर रहा था कि शायद अब उस के पेरैंट्स नाराज हो उठेंगे. पर ऐसा नहीं हुआ. दोनों मुसकरा रहे थे.

नितिन के पिता ने कहा, ‘‘बेटा, इस बात का एहसास हमें हो गया था. जिस प्यार और अपनेपन से नेहा हमारी देखभाल कर रही थी और फिक्रमंद थी, उसी से पता चल रहा था कि वह तुम से कितना प्यार करती है. तुम दोनों के इस प्यार के बीच हम कतई नहीं आ सकते. वैसे भी, नेहा किसी भी जाति की हो, उसे हम ने बेटी तो मान ही लिया है न.’’

नितिन की आंखें खुशी से भर उठीं. उस की मां ने स्नेह के साथ कहा, ‘‘बेटे, तुम दोनों की जोड़ी बहुत खूबसूरत है और इस खूबसूरत रिश्ते को जोड़ने में मदद करने वाली सौम्याजी भी हमारी रिश्तेदार हैं. कल हम सब उन के घर मिठाई ले कर चलेंगे.’’

अगले दिन सौम्या का घर हंसी और ठहाकों से गूंज रहा था. खिलेखिले चेहरों के बीच बैठी सौम्या के पास अब रिश्तेदारों की कमी नहीं थी.

छोटे शहर की लड़की : जब पूजा ने दी दस्तक- भाग 3

विनोद दिल्ली चला गया. समय का पहिया दूसरी तरफ घूम गया. पूजा को विनोद से बिछुड़ने पर बहुत दुख हुआ, परंतु वह कर भी क्या सकती थी. उस ने विनोद से वचन लिया था कि वह नियमित रूप से उसे फोन करता रहेगा. कुछ दिन तक उस ने यह वादा निभाया भी, परंतु धीरेधीरे उस के फोन करने में अंतराल आता गया.

इस का कारण उस ने बताया था दिन में कालेज अटैंड करना, शाम को कोचिंग क्लास और फिर रात में पढ़ाई… ऐसे में उसे वक्त ही नहीं मिलता. यूपीएससी की परीक्षा पास करना कोई आसान काम नहीं था. रातदिन की मेहनत से ही इस में सफलता प्राप्त हो सकती थी. प्यार के चक्कर में वह अपने लक्ष्य से भटक सकता था. पूजा ने कहा था, ‘‘प्यार मनुष्य को अपना लक्ष्य प्राप्त करने की ताकत देता है, उसे भटकाता नहीं है.’’

‘‘मैं मानता हूं, परंतु केवल प्यार के बारे में सोच कर किसी परीक्षा में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती. इस के लिए आंखें फोड़नी पड़ती हैं.’’

‘‘तुम मुझ से दूर जाने के लिए बहाना तो नहीं बना रहे?’’ उस के मन में शंका के बादल उमड़ आए. ‘‘नहीं, परंतु तुम मेरी तैयारी में बाधा न उत्पन्न करो, यह तुम्हारा मुझ पर एहसान होगा,’’ उस ने सख्त स्वर में कहा था. पूजा का दिल विनोद की बात से बैठने लगा था. पूजा समझती थी कि उस से दूर जाने के बाद विनोद उस के दिल से भी दूर हो गया था.

दिल्ली जा कर किसी और लड़की के चक्कर में पड़ गया होगा, इसीलिए उस की उपेक्षा कर रहा था और उस से संबंध तोड़ने के लिए इस तरह के बहाने बना रहा था. ऐसी स्थिति में हर लड़की अपने प्रेमी के बारे में इसी तरह की सोच रखती है. इस में पूजा का कोई दोष नहीं था.

वह रोज दीप्ति के पास आती, उस के साथ विनोद की बातें करती और अपने मन को सांत्वना देने का प्रयास करती कि एक दिन जब विनोद लौट कर आएगा तो इतने दिनों की दूरियों का सारा हिसाब चुकता कर लेगी. उसे इतना प्यार करेगी कि वह दोबारा दिल्ली जाने का नाम नहीं लेगा. ‘‘क्या वह रोज घर में फोन करता है?’’ उस ने दीप्ति से पूछा था.

‘‘नहीं, रोज नहीं करता. हम ही फोन कर के उस का हालचाल पूछ लेते हैं,’’ दीप्ति ने सहज भाव से बताया. ‘‘मुझे भी फोन नहीं करता. कहीं वह किसी और को प्यार तो नहीं करने लगा?’’

‘‘क्या पता?’’ दीप्ति ने मुंह बिचका कर कहा. पूजा दीप्ति का मुंह ताकती ही रह गई. दीप्ति को अभी किसी से प्यार नहीं हुआ था न, इसलिए वह पूजा के दिल का दर्द नहीं समझ पा रही थी. दीप्ति पूजा के मन को समझती थी, परंतु उस के हाथ में था भी क्या? वह नहीं जानती थी कि किस तरह से पूजा के मन को तसल्ली दे. इस बारे में उस की भैया से कोई बात नहीं होती थी.

उस से जब भी बात होती थी, मम्मीपापा पास में होते थे. फिर भी एक दिन चोरी से उस ने पूजा की विनोद से बात कराई थी. उस ने बात तो की, परंतु बाद में कह दिया कि फोन कर के उसे डिस्टर्ब मत किया करे, पढ़ाई का हर्ज होता है और पूजा मन मसोस कर रह गई.

विनोद दीवाली में घर आया था, परंतु पूजा से एकांत में मुलाकात नहीं हो सकी. दीप्ति ने भैया से कहा, ‘‘भैया, एक बार पूजा से मिल तो लो.’’ उस ने दीप्ति को अर्थपूर्ण निगाहों से देखते हुए कहा, ‘‘मिल लूंगा, परंतु तुम उस के लिए परेशान न हो,’’ और बात आईगई हो गई.

फिर वह होली पर घर आया और उसी प्रकार पूजा से बिना मिले ही चला गया. पूजा उस के घर आती थी, परंतु दोनों एकांत में नहीं मिल पाते थे. विनोद कोई न कोई बहाना बना कर उस से दूर रहता था. पूजा ने उसे घेरने की कोशिश की तो उस ने निरपेक्ष भाव से कहा, ‘‘पूजा, मैं जब गरमी की छुट्टियों में आऊंगा तो तुम से रोज मिला करूंगा. अभी मुझे अकेला छोड़ दो.’’ उस ने मान लिया.

गरमी की छुट्टियों में मिलते ही पूजा ने पहला सवाल किया, ‘‘तुम बदल गए हो?’’ ‘‘नहीं तो…’’ उस ने बात को टालने वाले अंदाज में कहा.

‘‘नहीं, क्या… मैं देख नहीं रही? तुम अब पहले जैसे भोले नहीं रहे. इधर मैं तुम्हारे प्यार में संजीदा हो गईर् हूं. अपनी सारी चंचलता मैं ने खो दी, परंतु तुम दिल्ली जा कर मुखर ही नहीं चंचल भी हो गए हो. यह तुम्हारे हावभाव से ही दिख रहा है.’’ ‘‘आदमी समय के अनुसार बदल जाता है. इस में आश्चर्य की कोई बात नहीं है.’’

‘‘मुझे आश्चर्य नहीं है, परंतु आश्चर्य तब होगा, जब तुम मेरे प्यार को भुला दोगे. यह भी भुला दोगे कि मैं ने तुम्हें प्यार करना सिखाया था वरना कोई लड़की तुम्हें घास न डालती और अगर तुम कोशिश भी करते तो भी कोई लड़की तुम्हारे फंदे में नहीं फंसती,’’ उस ने कुछ चिढ़ कर कहा. ‘‘तुम छोटे शहर की लड़कियों की यही गंदी सोच है. इस के आगे तुम कुछ सोच ही नहीं सकती.

सभी लड़कों को तुम बुद्धू और भोंदू समझती हो. तुम सोचती हो कि लड़कों से प्यार कर के तुम उन के ऊपर एहसान कर रही हो, क्योंकि लड़के इस लायक ही नहीं होते कि वे किसी लड़की को प्यार कर सकें या कोई लड़की उन के ऊपर अपना प्यार लुटा सके. तुम्हें अपने रूप पर घमंड जो होता है.’’

पूजा विनोद की बातों से आहत हो गई, ‘‘मैं ऐसा नहीं सोचती, परंतु तुम से सच कहती हूं. एक दिन इसी बात को ले कर मेरी सहेलियों से शर्त लगी थी.’’ ‘‘क्या शर्त लगी थी?’’ उस ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘महल्ले की सारी लड़कियां तुम्हें भोंदू और बुद्धू कहती थीं. वे तुम्हें ले कर मजाक करती रहती थीं कि यह मिट्टी का माधो कभी किसी लड़की को प्यार नहीं कर सकेगा. पहली बात तो यह कि कोई लड़की ही तुम्हें प्यार नहीं करेगी और किसी का मन तुम पर आ भी गया तो भी तुम लड़की को अपने प्यार में बांध नहीं पाओगे.’’ ‘‘तो फिर.’’

‘‘मैं ने इस चुनौती को स्वीकार किया था, क्योंकि मैं मन ही मन तुम्हें प्यार करने लगी थी. मुझे तुम्हारी सादगी और भोलापन पसंद था. अन्य लड़कों की तरह तुम में कोई छिछोरापन नहीं था और तुम उन की तरह लड़कियों के पीछे नहीं भागतेफिरते थे, इसलिए मैं ने तय किया कि मैं तुम्हारा प्यार पा कर रहूंगी. मैं ने उन से कहा था कि विनोद एक दिन मेरे प्यार में पागल हो जाएगा, परंतु अब मुझे ऐसा नहीं लगता. जब तक तुम दिल्ली नहीं गए थे, मुझे लगता था कि तुम भी मुझ से प्यार करने लगे हो और सहेलियों से मैं ने बड़े फख्र से कहा था कि मैं ने तुम्हारा प्यार हासिल कर लिया है.

परंतु लगता है, मैं अपनी शर्त हार गई हूं,’’ उस की आवाज भीग गई थी. विनोद हतप्रभ रह गया. उस की समझ में नहीं आया कि वह पूजा से क्या कहे, उसे किस प्रकार सांत्वना दे और कैसे बताए कि वह उसे प्यार करता है, क्योंकि इस बारे में उसे स्वयं पर संदेह था. जबलपुर में रहते हुए विनोद पूजा को डरतेडरते प्यार करता था, जैसे कोई पूजा से जबरदस्ती प्यार करने के लिए कह रहा था. दिल्ली में एक साल रहने के बाद वह आजाद पंछी की तरह हो गया था और पूजा की गिरफ्त से उसे छुटकारा मिल गया था.

वह एक किताबी कीड़ा था और किताबों में ही उस का मन लगता था. लड़कियां उसे लुभाती थीं और वह उन्हें पसंद भी करता था. चोर निगाहों से उन की सुंदरता की प्रशंसा भी करता था, परंतु खुल कर किसी लड़की को पटाने का साहस उस के पास नहीं था. यही कारण था कि जबलपुर में भी पूजा ने ही पहल की थी और चूंकि उस के जीवन में आने वाली वह पहली लड़की थी, वह भी डरतेडरते उसे प्यार करने लगा था, परंतु एक बार दूर जाते ही उस के मन से पूजा का प्यार फूटे गुब्बारे की तरह हवा हो गया था.

फिर भी उन दोनों का मिलना जारी रहा. गरमी की लंबी छुट्टियां थीं. उस की एक साल की कोचिंग समाप्त हो गई थी, परंतु एमए का फाइनल ईयर था. उस ने यूपीएससी की सिविल सर्विसेज का फार्म भी भर रखा था, जिस की प्रारंभिक परीक्षा जुलाई में ही होनी थी. एमए की क्लासेज भी जुलाई में प्रारंभ होनी थीं, अत: उन दोनों के पास मिलने के लिए गरमी के ढेर सारे लंबेलंबे दिन थे और सोचने के लिए ढेरों छोटीछोटी रातें. कहना बड़ा मुश्किल था कि विनोद के मन में क्या था, परंतु पूजा को डर लगने लगा था.

बरसात आने में अभी देर थी, परंतु उन के घरों के पीछे खेतों में किसानों ने मकई बो दी थी. उन के पौधे अब काफी बड़े हो गए थे. उन में भुट्टे भी आने लगे थे, परंतु उन के पकने में अभी देर थी. खेतों के बीच की कच्ची सड़क पर घूमना पूजा को अच्छा लगता था. वह जिद कर के विनोद को उधर ले जाती थी. खेतों के बीच का वह पेड़ जिस के नीचे बैठ कर वे दोनों चोरी से भुट्टे तोड़ कर खाते थे, उन के मिलन के प्रारंभिक दिनों का गवाह था.

वह अपनी जगह पर निश्चल खड़ा था. वे लड़कियां भी जो उन्हें प्यार से भुट्टे भून कर खाने के लिए देती थीं, अपनेअपने खेतों की रखवाली के लिए आने लगी थीं और उन दोनों को देख कर मंदमंद मुसकराती थीं.

अभी भुट्टे पके नहीं थे और पूजा को लगने लगा था कि अभी उन के प्यार में भी परिपक्वता नहीं आई. सुस्ताने के लिए वे पेड़ की छाया तले बैठे तो पूजा ने कहा, ‘‘तुम्हारे सपने बड़े हो गए हैं.’’ ‘‘फिलहाल तो मेरा एक ही सपना है, आईएएस बनना और जब तक यह सपना पूरा नहीं हो जाता, मेरे लिए बाकी सभी सपने बहुत छोटे हैं.’’

रिश्तेदार: अकेली सौम्या, अनजान शहर और अनदेखे चेहरे- भाग 3

‘‘जी दीदी, मैं अभी चलती हूं.’’ नेहा चली गई और सौम्या आरुषि की देखभाल में लग गई.

अगले 3-4 दिनों तक सौम्या आरुषि में ही लगी रही क्योंकि उसे तेज बुखार था. चौथे दिन जब वह थोड़ी ठीक हुई तो उसे नेहा का ध्यान आया. उस ने नेहा को फोन किया तो उस ने उठाया नहीं. घबरा कर सौम्या ने नितिन को फोन लगाया और नितिन से नेहा के बारे में पूछा.

नितिन ने उदास स्वर में कहा, ‘‘हमारा ब्रेकअप हो गया है दीदी. 3 दिन हो गए मेरी नेहा से कोई बात नहीं हुई.’’

‘‘पर ऐसा क्यों?’’

‘‘दीदी, नेहा बहुत शक्की लड़की है. अजीब तरह से रिऐक्ट करती है. मैं अब उस से कभी बात नहीं करूंगा.’’

‘‘पागल हो क्या? ऐसे नहीं करते. कल मेरे पास आओ. मुझे मिलना है तुम से.’’

‘‘ठीक है दीदी. कल 3 बजे आता हूं.’’

अगले दिन सौम्या ने नेहा को फिर से फोन लगाया. उस ने उदास स्वर में  ‘हैलो’ कहा तो सौम्या ने उसे 3 बजे घर आने को कहा.

फिर 3 बजे के करीब नितिन और नेहा दोनों ही सौम्या के घर पहुंचे. एकदूसरे को देखते ही उन्होंने मुंह बनाया और खामोशी से बैठ गए. सौम्या ने कमान संभाली और नेहा से पूछा, ‘‘नेहा, तुम्हारी क्या शिकायत है?’’

नेहा ने ठंडा सा जवाब दिया, ‘‘यह दूसरी लड़कियों के साथ घूमता है.’’

नितिन ने घूर कर नेहा को देखा और नजरें फेर लीं. सौम्या ने अब नितिन से पूछा, ‘‘तुम्हें क्या कहना है इस बारे में नितिन?’’

‘‘दीदी, इस ने मुझ से इतने रूखे तरीके से बात की जो मैं आप को बता नहीं सकता. 2 दिन तो मेमसाहब मुझ से मिलीं नहीं और न ही फोन उठाया. जब तीसरे दिन जबरदस्ती मैं ने बात करनी चाही और इस रवैये का कारण पूछा तो मुझ पर सीधा इलजाम लगाती हुई बोली कि तुम्हें दूसरी लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाना पसंद है न, तो ठीक है, करो जो करना है. पर मुझ से बात मत करना. अब बताइए दीदी, मुझे कैसा लगेगा?’’ नितिन फूट पड़ा था.

सौम्या ने उसे शांत करते हुए पूछा, ‘‘नितिन, वह लड़की कौन थी?’’

‘‘दीदी, वह मेरे शहर की थी और उस के विषय भी सेम मेरे वाले थे. वह हमारी बिंदु मैडम की भतीजी थी. उन्होंने ही मुझे उस का ध्यान रखने और गाइड करने को कहा था. बस, वही कर रहा था और इस ने पता नहीं क्याक्या समझ लिया.’’

सौम्या ने हंस कर कहा, ‘‘नेहा, मुझे नहीं लगता कि नितिन की कोई गलती है. तुम्हें इस तरह रिऐक्ट नहीं करना चाहिए था. जिस से आप प्यार करते हैं उस पर पूरा भरोसा रखना चाहिए. नितिन, तुम्हें भी नेहा की बात का बुरा नहीं मानना चाहिए था. जहां प्यार होता है वहां जलन और शक होना स्वाभाविक है. नेहा ने जलन की वजह से ही ऐसा बरताव किया. अब तुम दोनों एकदूसरे को सौरी कहो और मेरे आगे एकदूसरे के गले लगो.’’

नेहा और नितिन मुसकरा पड़े. एकदूसरे को सौरी बोलते हुए वे सौम्या के गले लग गए. सौम्या का दिल खिल उठा था. नितिन और नेहा में उसे अपने बच्चे नजर आने लगे थे. सब ने मिल कर शाम तक बातें कीं और साथ मिल कर चायनाश्ते का आनंद लिया.

दिन इसी तरह बीतने लगे. समय के साथ सौम्या नितिन और नेहा के और भी करीब आती गई. इस बीच नितिन को जौब मिल गई थी और नेहा एक ट्रेनिंग में बिजी हो गई.

इधर नितिन और नेहा के घर में उन की शादी की बातें भी चलने लगी थीं. सौम्या के कहने पर उन्होंने अपने घरवालों से एकदूसरे के बारे में बताया और अपने प्यार की जानकारी दी. नेहा के घरवाले तो थोड़े नानुकुर के बाद तैयार हो गए मगर नितिन के पेरैंट्स ने गैरजाति की लड़की को बहू बनाने से साफ इनकार कर दिया.

नितिन ने नेहा को सारी बात बताते हुए भाग कर शादी करने का औप्शन दिया. तब नेहा ने एक बार सौम्या से सलाह लेने की बात की. नितिन तैयार हो गया और दोनों एक बार फिर सौम्या के पास पहुंचे. सौम्या ने सारी बातें सुनीं और थोड़ी देर सोचती रही. भाग कर शादी करने की बात सिरे से नकारते हुए सौम्या ने मन ही मन एक प्लान बनाया. सौम्या ने नितिन से अपनी मां का नंबर देने को कहा और उस के रिश्तेदारों के बारे में भी जानकारी ली.

नंबर ले कर सौम्या ने नितिन की मां को फोन लगाया. उधर से ‘हैलो’ की आवाज सुनते ही सौम्या बोली, ‘‘बहनजी, मैं सौम्या बोल रही हूं. आप का नंबर मुझे अपने पति से मिला है. मेरे पति आप के एक रिश्तेदार के साथ औफिस में काम करते हैं. असल में बहनजी, हम भी आप की ही बिरादरी के हैं. आप के रिश्तेदार ने बताया कि आप का बेटा शादी लायक है. बहुत जहीन और प्यारा बच्चा है. तो  मु झे लगा मैं अपनी बिटिया की शादी की बात चलाऊं. हम भी राजपूत हैं और हमारी बिटिया बहुत संस्कारशील व खूबसूरत है. आप को जरूर पसंद आएगी.’’

‘‘हां जी, आप मिल लीजिए हम से.’’

‘‘मैं तो कहती हूं बहनजी, आप आ जाओ हमारे घर. बिटिया को तबीयत से देख लेना आप. मैं एड्रैस भेजती हूं.’’

शोर करती चुप्पी : कैसा थी मानसी की ससुराल- भाग 2

परिमल दुविधा में सोफे पर बैठा ही रहा और साथ में अवनी भी. थकान के मारे आंखें मुंद रही थीं. मायके की बात होती तो सारा तामझाम उतार कर, शौर्ट्स और टीशर्ट पहन कर, फुल एसी पंखा खोल कर चित्त सो जाती, लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं कर सकती थी. इसलिए चुप बैठी रही.

‘‘जाओ परिमल, ड्राइवर इंतजार कर रहा है.’’

‘‘चलो अवनी,’’ थकेमांदे अवनी व परिमल, थके शरीर को धकेल कर कार में बैठ गए. अवनी का दिल कर रहा था पीछे सिर टिकाए और सो जाए.

शादी से पहले उस के पापा ने उस की मम्मी से कहा था कि अवनी व परिमल का दिल्ली से देहरादून की फ्लाइट का टिकट करवा देते हैं. रोड की 7-8 घंटे की जर्नी इन्हें थका देगी. लेकिन भारतीय संस्कार आड़े आ गए. इसलिए मानसी बोलीं, ‘शादी के बाद अवनी उन की बहू है. वे उसे ट्रेन से ले जाएं, कार से ले जाएं, बैलगाड़ी से ले जाएं या फिर फ्लाइट से, हमें बोलने का कोई हक नहीं.’

सुन कर अवनी मन ही मन मुसकरा दी थी, ‘वाह भई, भारतीय परंपरा… सड़क  मार्ग से यात्रा करने में मेरी तबीयत खराब होती है, इसलिए मुझे उलटी की दवाई खा कर जाना पड़ेगा. लेकिन बेटी को चाहे कितनी भी ऊंची शिक्षा दे दो और वह कितने ही बड़े पद पर कार्यरत क्यों न हो, एक ही रात में उस के मालिकों की अदलाबदली कैसे हो जाती है? उस पर अधिकार कैसे बदल जाते हैं? उस की खुद की भी कोई मरजी है? खुद की भी कोई तकलीफ है? खुद का भी कोई निर्णय है? इस विषय में कोई भी जानना नहीं चाह रहा.’

लेकिन उस की शादी होने जा रही थी. वह बमुश्किल एक महीने की छुट्टी ले पाई थी. 20 दिन विवाह से पहले और 10 दिन बाद के. लेकिन उन 10 दिनों की भी कशमकश थी. उसे ससुराल में शादी के बाद की कुछ जरूरी रस्मों में भी शामिल होना था और हनीमून ट्रिप पर भी जाना था. बहुत टाइट शैड्यूल था. शादी से पहले की छुट्टियां भी जरूरी थीं. उसे शादी की तैयारियों के लिए भी समय नहीं मिल पाया था. ऐसा लग रहा था,

शादी भी औफिस के जरूरी कार्यों की तरह ही निबट रही है. शायद वे दोनों एक महीने के किसी प्रोजैक्ट को पूरा करने आए हैं. ऊपर से मम्मी के उपदेश सुनतेसुनते वह तंग आ गई थी. ‘बहू को ऐसा नहीं करना चाहिए, बहू को वैसा नहीं करना चाहिए, ऐसे रहना, वैसे रहना, चिल्ला कर बात नहीं करना, सुबह उठना, औफिस से आ कर थोड़ी देर सासससुर के पास बैठना, किचन में जितनी बन पाए मदद जरूर करना…’

एक दिन सुनतेसुनते वह भन्ना गई, ‘मम्मी, जब भैया की शादी हुई थी, तब भैया को भी यही सब समझाया था? स्त्रीपुरुष की समानता का जमाना है. भाभी भी नौकरी करती हैं. भैया को भी सबकुछ वही करना चाहिए, जो भाभी करती हैं. मसलन, उन के मातापिता, भाईबहन, रिश्तेदारों से अच्छे संबंध रखना, किचन में मदद करना, भाभी से ऊंचे स्वर में बात न करना, औफिस से आ कर हफ्ते में भाभी के मम्मीपापा से  2-3 बार बात करना और सुबह उठ कर भाभी के साथ मिलजुल कर काम करना आदि…लड़की को ही यह सब क्यों सिखाया जाता है?’

उस के बाद मम्मी के निर्देश कुछ बंद हुए थे. अवनी को मन ही मन मम्मी पर दया आ गई. गलती मम्मी की नहीं, मम्मी की पीढ़ी की है जो नईपुरानी पीढ़ी के बीच झूल रही है. उच्च शिक्षित है लेकिन अधिकतर आत्मनिर्भर नहीं रही. इसलिए कई तरह के अधिकारों से वंचित भी रही. उच्च शिक्षा के कारण गलतसही भले ही समझी हो, नए विचारों को अपनाने का माद्दा भले ही रखती हो, लेकिन गलत को गलत बोलती नहीं है. नए विचारों को अपने आचरण में लाने की हिम्मत नहीं करती.

यहां तक कि मम्मी की पीढ़ी की आत्मनिर्भर महिलाएं भी नईपुरानी विचारधारा के बीच झूलती, नईपुरानी परंपराओं के बीच पिसती रहती हैं. फुल होममेकर्स की शायद आखिरी पीढ़ी है, जो अब समाप्त होने की कगार पर है.

कार होटल पहुंच गई और अवनी व परिमल को कमरे तक पहुंचा कर परिमल के दोस्त चले गए. रात के 12 बज रहे थे. कमरे में पहुंच कर दोनों ने चैन की सांस ली.

2 प्रेमी पिछले 4 सालों से इस रात का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. लेकिन थके शरीर नींद की आगोश में जाना चाहते थे. दोनों इतने थके थे कि बात करने के मूड में भी नहीं थे. शादी की 3 दिनों तक चली परंपरावादी प्रक्रिया ने उन्हें बुरी तरह थका दिया था. ऊपर से देहरादूनदिल्ली का भीड़ के कारण 8-9 घंटे का सफर. दोनों उलटेसीधे कपड़े बदल कर औंधेमुंह सो गए.

सुबह देहरादून व दिल्ली के दोनों घरों में सभी देर से उठे. लेकिन 10 बजतेबजते सभी उठ गए. बेटी को विदा कर बेटी की मां आज भी चैन से कहां रह पाती है, चाहे वह लड़के को बचपन से ही क्यों न जानती हो. 12 बज गए मानसी से रहा न गया. उन्होंने अवनी को फोन मिला दिया. गहरी नींद के सागर में गोते लगा रही अवनी, फोन की घंटी सुन कर बमुश्किल जगी. परिमल भी झुंझला गया. स्क्रीन पर मम्मी का नाम देख कर मोबाइल औन कर कानों से लगा लिया.

‘‘कैसी है मेरी अनी?’’

‘‘सो रही है, मरी नहीं है,’’ अवनी झुंझला कर बोली, ‘‘इतनी सुबह क्यों फोन किया?’’ मम्मी को बुरा तो लगा पर बोली, ‘‘सुबह कहां है, 12 बज रहे हैं, कैसी है?’’

‘‘अरे कैसी है मतलब…कल 12 बजे तो आई हूं देहरादून से. आज 12 बजे तक क्या हो जाएगा मुझे. हमेशा ही तो आती हूं नौकरी पर छुट्टियों के बाद, तब तो आप फोन नहीं करतीं. आज ऐसी क्या खास बात हो गई? कल मैसेज कर तो दिया था पहुंचने का.’’

मानसी निरुत्तर हो, चुप हो गई. ‘‘अभी मैं सो रही हूं, फोन रखो आप. जब उठ जाऊंगी तो खुद ही मिला दूंगी,’’ कह कर अवनी ने फोन रख दिया.

मानसी की आंखें भर आईं. आज की पीढ़ी की बहू की तटस्थता तो दुख देती ही है, पर बेटी की तटस्थता तो दिल चीर कर रख देती है. यह असंवेदनहीन मशीनी पीढ़ी तो किसी से प्यार करना जैसे जानती ही नहीं. जब मां को ऐसे जवाब दे रही है तो सास को कैसे जवाब देगी.

मानसी एक शिक्षित गृहिणी थी और सास सुजाता एक उच्चशिक्षित कामकाजी महिला. वे केंद्रीय विद्यालय में विज्ञान की अध्यापिका थीं. सुबह पौने 8 बजे घर से निकलतीं और साढ़े 4 बजे तक घर पहुंचतीं. सरस रिटायर हो चुके थे. लेकिन सुजाता के रिटायरमैंट में अभी 3 साल बाकी थे. सुजाता आधुनिक जमाने की उच्चशिक्षित सास थीं. कभी कार, कभी स्कूटी चला कर स्कूल जातीं, लैपटौप पर उंगलियां चलातीं. और जब किचन में हर तरह का खाना बनातीं, कामवाली के न आने पर बरतन धोतीं, झाड़ूपोंछा करतीं तो उन के ये सब गुण पता भी न चलते. सरस एक पीढ़ी पहले के पति, पत्नी के कामकाजी होने के बावजूद, गृहकार्य में मदद करने में अपनी हेठी समझते और पत्नी से सबकुछ हाथ में मिल जाने की उम्मीद करते.

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