मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले सीधी का एक गांव है नौगवां दर्शन सिंह, जिस में ज्यादातर आदिवासी या फिर पिछड़ी और दलित जातियों के लोग रहते हैं. शहरों की चकाचौंध से दूर बसे इस शांत गांव में एक वारदात ऐसी भी हुई, जिस ने सुनने वालों को हिला कर रख दिया और यह सोचने पर भी मजबूर कर दिया कि राजो (बदला नाम) ने जो किया, वैसा न पहले कभी सुना था और न ही किसी ने सोचा था.
इस गांव का एक 20 साला नौजवान संजय केवट अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था. भरेपूरे घर में पैदा हुए संजय को किसी बात की चिंता नहीं थी. पिता की भी अच्छीखासी कमाई थी और खेतीबारी से इतनी आमदनी हो जाती थी कि घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती थी.बचपन की मासूमियत संजय और राजो दोनों बचपन के दोस्त थे.
अगलबगल में होने के चलते दोनों पर एकदूसरे के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी. 8-10 साल की उम्र तक दोनों साथसाफ बेफिक्र हो कर बचपन के खेल खेलते थे.चूंकि चौबीसों घंटे का साथ था, इसलिए दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं और उम्र बढ़ने लगी, तो दोनों में जवान होने के लक्षण भी दिखने लगे. संजय और राजो एकदूसरे में आ रहे इन बदलावों को हैरानी से देख रहे थे.
अब उन्हें बजाय सारे दोस्तों के साथ खेलने के अकेले में खेलने में मजा आने लगा था. जवानी केवल मन में ही नहीं, बल्कि उन के तन में भी पसर रही थी. संजय राजो को छूता था, तो वह सिहर उठती थी. वह कोई एतराज नहीं जताती थी और न ही घर में किसी से इस की बात करती थी.धीरेधीरे दोनों को इस नए खेल में एक अलग किस्म का मजा आने लगा था, जिसे खेलने के लिए वे तनहाई ढूंढ़ ही लेते थे.