कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

11अगस्त, 2019 को सुबह करीब साढ़े 5 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के बसंतपुर तिगेला गांव के लोग खेतों की तरफ जा रहे थे, तभी उन्हें गांव के कच्चे रोड पर किसी व्यक्ति की डैडबौडी पड़ी दिखी. किसी ने इस की सूचना फोन द्वारा चंदला थाने को दे दी.

सुबहसुबह लाश मिलने की सूचना मिलते ही टीआई वीरेंद्र बहादुर सिंह घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. जब वह घटनास्थल पर पहुंचे तो कच्ची सड़क पर एक आदमी का खून से लथपथ शव पड़ा था. इस की सूचना टीआई ने एसपी (छतरपुर) तिलक सिंह को दे दी. टीआई वीरेंद्र बहादुर सिंह ने लाश का मुआयना किया तो उस के शरीर पर गोलियों के घाव दिखे. मृतक की उम्र 40-45 साल के बीच रही होगी.

चूंकि वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका, इसलिए लगा कि उसे कहीं दूसरी जगह से ला कर यहां मारा गया था. पहनावे से वह मुसलमान लग रहा था. पुलिस ने इस की पुष्टि के लिए उस के कपड़े हटा कर देखे तो साफ हो गया कि मृतक मुसलिम ही है.

ये भी पढ़ें- मौत की छाया: भाग 1

तलाशी लेने पर मृतक की जेब में एक मोबाइल फोन मिला. उस मोबाइल की काल हिस्ट्री देखी गई तो पता चला कि 10 अगस्त को उस ने एक नंबर पर आखिरी बार बात की थी. जिस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी, टीआई वीरेंद्र सिंह ने उस नंबर पर बात की.

वह नंबर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के बसेला गांव में रहने वाले ताहिर खान का निकला. ताहिर खान ने टीआई को बताया कि यह नंबर उस के पिता आशिक अली का है, जो इन दिनोें पन्ना जिले के धरमपुर में रहते हैं.

यह जानने के बाद टीआई सिंह ने बरामद शव का फोटो खींच कर ताहिर के वाट्सऐप पर भेजा. फोटो देखते ही ताहिर ने शव की पहचान अपने पिता आशिक अली के रूप में कर दी. टीआई ने ताहिर को चंदला थाने पहुंचने को कहा और जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

अगले दिन ताहिर अपने रिश्तेदारों के साथ मध्य प्रदेश के चंदला थाने पहुंच गया. पुलिस ने मोर्चरी में रखी लाश ताहिर और उस के घर वालों को दिखाई तो वे सभी लाश देखते ही रोने लगे. उन्होंने उस की शिनाख्त आशिक अली के रूप में की.

इस के बाद टीआई ने ताहिर खान से उस के पिता और परिवार के बारे में विस्तार से बात की तो कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं.

पता चला कि मरने वाला आशिक अली दूध का धुला नहीं था. वह हमीरपुर का तड़ीपार बदमाश था, जो जिलाबदर होने के बाद पन्ना जिले के धरमपुर कस्बे में आ कर रहने लगा था. कहावत है कि चोर चोरी करना भले ही छोड़ दे लेकिन हेराफेरी से बाज नहीं आता.

साफ था कि आशिक अली ने धरमपुर आ कर अपने पुराने कामों से पूरी तरह संन्यास नहीं लिया होगा, धरमपुर में भी उस की कुछ तो आपराधिक गतिविधियां जरूर रही होंगी. इसलिए एसपी छतरपुर को मृतक के संबंध में पूरी जानकारी देने के बाद उन के निर्देश पर टीआई वीरेंद्र सिंह मामले की जांच करने के लिए पुलिस टीम ले कर धरमपुर पहुंच गए.

धरमपुर पन्ना जिले का छोटा सा मुसलिम बाहुल्य कस्बा है. कुछ समय पहले वीरेंद्र सिंह इस जिले में तैनात रह चुके थे, इसलिए उन्हें उस क्षेत्र की अच्छी जानकारी थी. धरमपुर पहुंच कर उन्होंने अपने तरीके से आशिक अली के बारे में जानकारी जुटाई तो जल्दी ही उस की पूरी जन्मकुंडली उन के सामने आ गई.

हमीरपुर से जिलाबदर कर दिए जाने के बाद अपने समाज के लोगों की बहुतायत देख कर आशिक अली धरमपुर आ कर बस गया था, जहां उसी के समाज के कुछ लोगों ने उस की मदद की.

दोनों बदमाशों की मिली कुंडली

वहां पैर जमने के बाद आशिक अली ठेके और बंटाई पर जमीन ले कर खेतीकिसानी करने लगा. उस ने कुछ घोड़े भी पाल लिए थे, जिन का उपयोग वह शादीविवाह में करता था. फिर वह घोड़ों की खरीदबिक्री का काम भी करने लगा था. यहां आ कर वह सीधे तौर पर तो किसी अपराध से नहीं जुड़ा था, लेकिन पुराना अपराधी होने की ठसक उस के अंदर से पूरी तरह से गई नहीं थी. जिले के अलावा आसपास के दूसरे कई बदमाशों से उस की दोस्ती हो गई थी.

ये भी पढ़ें- मकड़जाल में फंसी जुलेखा: भाग 1

लोगों ने बताया कि लगभग 3-4 महीने से आशिक अली ने अपने घर पर छतरपुर जिले के लवकुश नगर निवासी बफाती पहलवान को पनाह दी हुई थी. दोनों की कुंडली मिलने का बड़ा कारण यह था कि बफाती भी आशिक अली की तरह छतरपुर का जिलाबदर बदमाश था. इसलिए बफाती के आ जाने के बाद दोनों मिल कर बदमाशी के क्षेत्र में उठापटक करने लगे थे.

बफाती अपने साथ लगभग 14 साल की निहायत ही खूबसूरत लड़की सलमा खातून को ले कर आया था. पहले तो लोगों का अनुमान यही था कि सलमा खातून बफाती की बेटी होगी, लेकिन ऐसा नहीं था. सलमा बफाती की बेटी की उम्र की थी. वह सलमा को भगा कर लाया था. यह बात वहां के लोगों को अच्छी नहीं लगी, पर बफाती का विरोध करने की हिम्मत कोई नहीं कर सका. अलबत्ता कुछ लोगों ने आशिक अली से जरूर इस बारे में समाज की नापसंद जाहिर कर दी.

इतनी जानकारी टीआई वीरेंद्र सिंह को यह समझने के लिए काफी थी कि आशिक की हत्या की कहानी इसी प्रेम कहानी में कहीं छिपी हो सकती है. लेकिन इस के लिए यह जानना जरूरी था कि बफाती के साथ आई किशोर उम्र की सलमा खातून आखिर कौन थी और वह बफाती के हाथ कैसे लगी. इस बारे में जानकारी जुटाने पर पता चला कि आशिक, बफाती और सलमा खातून के गांव से एक साथ गायब होने से कुछ दिन पहले महोबा थाने का एक सिपाही सलमा खातून के बारे में पूछताछ करता हुआ धरमपुर आया था.

इस पर टीआई वीरेंद्र सिंह ने महोबा पुलिस से संपर्क किया, जिस में पता चला कि छतरपुर से जिलाबदर होने के बाद बफाती महोबा की कांशीराम कालोनी में बिच्छू पहाड़ी के पास किराए के मकान में रह रहा था.

सलमा खातून उस के पड़ोसी परिवार की बेटी थी. बफाती ने सलमा खातून को अपने जाल में फांस लिया था, जिस के बाद जून महीने में वह उसे महोबा से ले कर लापता होने के बाद धरमपुर में आशिक अली के साथ रह रहा था.

टीआई सिंह ने सलमा खातून की मां मुबीन और पिता मकबूल हुसैन से भी पूछताछ की, जिस में उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले एक अज्ञात आदमी ने उन्हें फोन कर हमारी बेटी के धरमपुर में होने की खबर दी थी. यह जानकारी हम ने महोबा पुलिस को दे दी थी.

कहीं वह अज्ञात व्यक्ति आशिक अली ही तो नहीं था, जिस ने सलमा के मातापिता को खबर दी थी? क्योंकि बफाती और सलमा को ले कर गांव के लोग आशिक अली से अपना विरोध जता चुके थे.

अब पुलिस को बफाती पर शक होने लगा. गांव के कुछ लोगों ने बताया कि घटना वाले दिन 11 अगस्त को सुबह 4-5 बजे बफाती, आशिक और सलमा एक ही बाइक से कहीं जाते हुए देखे गए थे. इस से बफाती पर शक और गहरा गया. टीआई वीरेंद्र सिंह अपनी टीम के साथ बफाती की तलाश में जुट गए.

इस के लिए उन्होंने बफाती के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि आशिक अली की लाश मिलने के बाद बफाती ने अपने नंबर से सलमा खातून की मां और उस के बाप को फोन किया था. इस के बाद उस का मोबाइल बंद हो गया था. टीआई ने इन दोनों से पूछताछ की, जिस में उन्होंने चौंका देने वाली बात बताई.

ये भी पढ़ें- कुंवारा था, कुंवारा ही रह गया: भाग 1

सलमा खातून की मां मुबीन और बाप मकबूल हुसैन ने बताया कि उन्हें बफाती ने फोन पर बताया था कि आशिक अली ने हमारी मुखबिरी कर के अपनी मौत को बुलावा दिया है. इसलिए मैं ने उस का कत्ल कर दिया है. अब तुम भी अपनी बेटी सलमा को भूल जाओ वरना तुम्हें भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा.

बफाती छंटा हुआ पुराना बदमाश था. पुलिस से बचने के लिए उस ने अपना मोबाइल बंद कर रखा था, इसलिए टीआई उस तक पहुंचने के दूसरे रास्तों की निगरानी करने लगे. जिस के चलते पुलिस को जल्द ही बफाती द्वारा एटीएम से पैसे निकालने की जानकारी मिली. यह छोटा सा सुराग बड़ी सफलता का साधन बन सकता था.

पुलिस को पता कि बफाती ने जिस एटीएम से पैसे निकाले हैं, वह पन्ना जिले में छानी गांव के पास है. टीम छानी पहुंच गई. वहां के लोगों को पुलिस ने बफाती का फोटो दिखा कर पूछताछ की तो वहां के एक दुकानदार ने बताया कि यह आदमी कुछ दिन पहले उस की दुकान पर आया था. लोगों से उस की मोटरसाइकिल का नंबर भी मिल गया. आरटीओ से जानकारी ली गई तो पता चल गया कि मोटरसाइकिल बफाती खान के नाम से रजिस्टर्ड है.

पुलिस को देख कर डरा नहीं बफाती

बफाती छानी में था, इसलिए टीआई वीरेंद्र सिंह भी वहां पहुंच गए. जिस के बाद एकएक कदम बढ़ाते हुए वह गांव के बाहर खेत में बने अल्ताफ के टपरे तक जा पहुंचे, जहां एक कोने में बफाती बेसुध सो रहा था. आहट होने पर उस की आंखें खुल गईं.

ये भी पढ़ें- कहानी एक शिवानी की: भाग 1

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...