कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

लाख के इनामी माफिया डौन अखिलेश  सिंह को झारखंड और बिहार की पुलिस सालों से तलाश रही थी. वह जमशेदपुर के अदालत परिसर में की गई झारखंड मुक्ति मोर्चा के कद्दावर नेता और रीयल एस्टेट कारोबारी उपेंद्र सिंह की हत्या में जेल से पैरोल पर बाहर आने के बाद से फरार चल रहा था. जेलर उमाशंकर पांडेय हत्याकांड में भी उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा चुकी थी.

दोनों मामलों में उसे न्यायालय में पेश होने का आदेश दिया जा चुका था, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल रहा था. जमशेदपुर के जिला जज (पंचम) सुभाष ने पुलिस को आदेश दिया था कि अखिलेश सिंह को किसी भी तरह ढूंढ कर 11 दिसंबर, 2017 को अदालत में पेश किया जाए. पुलिस को यह आदेश अगस्त, 2017 में दिया गया था.

जिला न्यायालय से आदेश आने के बाद जमशेदपुर पुलिस ऊहापोह की स्थिति में थी. हार्डकोर क्रिमिनल अखिलेश सिंह झारखंड और बिहार पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था. 36 मुकदमों में वांछित डौन अखिलेश सिंह पर प्रदेश के बड़े पुलिस अधिकारियों और राजनेताओं का वरदहस्त था, इसलिए पुलिस उस के गिरेबान पर हाथ डालने से कतराती थी. डौन सालों से कहां छिपा था, किसी को पता नहीं था. झारखंड पुलिस कई महीनों से उस की तलाश में जुटी थी.

ये भी पढ़ें- कालाधन रोकने के लिए नोटबंदी कानून

आखिर जमशेदपुर पुलिस की मेहनत रंग लाई. सर्विलांस के जरिए जमशेदपुर (झारखंड) पुलिस को माफिया डौन अखिलेश सिंह की लोकेशन हरियाणा के गुरुग्राम की मिली. पुलिस ने सूचना की पुष्टि की तो वह पक्की निकली. अखिलेश सिंह महीनों से अपनी पत्नी गरिमा सिंह के साथ गुरुग्राम के सुशांत लोक स्थित एक गेस्टहाउस में छिपा बैठा था और किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की योजना बना रहा था.

आखिर निशाने पर आ ही गया डौन अखिलेश

जमशेदपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनूप टी. मैथ्यू ने गुरुग्राम के पुलिस आयुक्त संदीप खिरवार से संपर्क कर के 5 लाख के इनामी डौन अखिलेश सिंह को गिरफ्तार कराने में सहयोग मांगा. संदीप खिरवार इस के लिए तैयार हो गए. इस के बाद 8 सितंबर, 2017 को झारखंड पुलिस गुरुग्राम पहुंच गई.

दोनों प्रदेशों के पुलिस अधिकारियों ने डौन अखिलेश सिंह को जिंदा पकड़ने का एक ब्लूप्रिंट तैयार किया. पुलिस जानती थी कि अखिलेश सिंह के पास आधुनिक हथियार हो सकते हैं, इसलिए इस योजना को बड़े ही गोपनीय ढंग से तैयार किया गया.

इस औपरेशन में जमशेदपुर पुलिस के एसपी (ग्रामीण) प्रभात कुमार, एसएसपी अनूप टी. मैथ्यू, गुरुग्राम के पुलिस आयुक्त संदीप खिरवार, डीसीपी (क्राइम) सुमित कुमार और सीआईए यूनिट-9 के इंचार्ज इंसपेक्टर राजकुमार सहित चुनिंदा पुलिसकर्मी शामिल हुए.

डौन की पहचान के लिए एसएसपी मैथ्यू के पास उस की युवावस्था की एक पुरानी तसवीर थी, जिस में वह काफी खूबसूरत दिख रहा था. गोपनीय तरीके से बनाई गई योजना पूरी हुई तो 9 अक्तूबर, 2017 को पुलिस ने गुरुग्राम के सुशांत लोक स्थित उस गेस्टहाउस को चारों ओर से घेर लिया, जिस में अखिलेश रह रहा था.

एसपी प्रभात कुमार, डीसीपी सुमित कुमार और इंसपेक्टर राजकुमार ने रिसैप्शन पर अखिलेश सिंह नाम के गेस्ट का पता किया तो एंट्री रजिस्टर में उस नाम से कोई कस्टमर नहीं मिला. गेस्टहाउस के कमरा नंबर 102 में अजय कुमार नाम का एक कस्टमर अपनी पत्नी के साथ ठहरा था.

पुलिस कमरा नंबर 102 पर पहुंची. एसपी प्रभात कुमार ने दरवाजे की झिर्री से भीतर झांक कर देखा तो बैड पर एक युवक बैठा था. उस के चेहरे पर काली और घनी दाढ़ी थी. देखते ही वह पहचान गए कि अजय

कुमार नाम से ठहरा गेस्ट अखिलेश सिंह ही है. कमरे के सामने पहुंच कर सुमित कुमार ने जैसे ही दरवाजा खटखटाया तो भीतर से गोलियां चलने लगीं. मौके पर पोजीशन लिए पुलिस अधिकारी सतर्क हो कर साइड हो गए. उस के बाद आधा दरवाजा तोड़ कर पुलिस की ओर से कई राउंड गोलियां चलाई गईं.

भीतर से गोलियां चलनी बंद हो चुकी थीं. जब अंदर कोई हलचल नहीं हुई तो पोजीशन ले कर पुलिस टीम पूरा दरवाजा तोड़ कर भीतर घुसी. कमरे में कसरती बदन वाला एक युवक और एक महिला मौजूद थी. युवक के चेहरे पर घनी दाढ़ी थी और उस के दोनों पैरों के घुटने के ऊपर गोली लगी थी. गोली लगने से घायल हो कर बिस्तर पर पड़ा तड़प रहा था.

पूछताछ में पता चला कि वही माफिया डौन अखिलेश सिंह है और महिला उस की पत्नी गरिमा सिंह. जब पुलिस अखिलेश को वहां से ले जाने लगी तो गरिमा सिंह इंसपेक्टर राजकुमार की सर्विस रिवौल्वर छीनने की कोशिश करने लगी. इस से पहले कि कोई अप्रिय घटना घटती, महिला पुलिस ने उसे दबोच लिया.

मुठभेड़ के बाद 5 लाख के इनामी डौन अखिलेश सिंह और उस की पत्नी गरिमा सिंह के गिरफ्तार होने की सूचना जैसे ही पत्रकारों को मिली, वे गुरुग्राम के थाना सुशांत लोक पहुंच गए. इस बीच पुलिस ने अखिलेश सिंह के विरुद्ध गुरुग्राम के थाना सेक्टर-29 में भादंवि की धारा 307, 353, 436 और शस्त्र अधिनियम का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

अखिलेश के दोनों पैरों में घुटनों के ऊपर गोलियां लगी थीं. इलाज के लिए उसे गुरुग्राम के जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने संयुक्त प्रैसवार्ता कर मुठभेड़ की पूरी कहानी विस्तार से बताई.

बिजनैस से कैरियर की शुरुआत की अखिलेश ने

अखिलेश सिंह मामूली हैसियत वाला आदमी नहीं था. वह सेवानिवृत्त सबइंसपेक्टर और आजसू पार्टी (औल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन पार्टी) के नेता चंद्रगुप्त सिंह का बेटा था. अखिलेश ने ट्रांसपोर्ट का धंधा शुरू किया था, लेकिन वह ऐसी बुरी संगत में पड़ गया कि एक मामूली ट्रांसपोर्टर से झारखंड राज्य का 5 लाख का सब से बड़ा मोस्टवांटेड डौन बन गया, जिस की एक बोली पर बड़ेबड़े व्यापारियों की तिजोरियां खुल जाती थीं.

ये भी पढ़ें- लापता क्रिप्टोकरेंसी की लुटेरी महारानी

अखिलेश सिंह मूलत: जमशेदपुर जिले के थाना बिष्टुपुर क्षेत्र के बिष्टुपुर इलाके का रहने वाला था. वह चंद्रगुप्त सिंह का बड़ा बेटा था. उन का दूसरा बेटा अमलेश सिंह है.

चंद्रगुप्त सिंह ने पुलिस में सिपाही के पद से नौकरी शुरू की थी. अपनी ईमानदारी, लगन और मेहनत से वह सबंइसपेक्टर के ओहदे तक पहुंचे. अतिमहत्त्वाकांक्षी और तेजदिमाग का अखिलेश सिंह पढ़लिख कर पिता की तरह काबिल अफसर बनना चाहता था. इस के लिए उस ने पोस्टग्रैजुएशन भी किया. लेकिन वह पिता जैसे मुकाम को छू तक नहीं पाया.

व्यवसाय के रूप में अखिलेश सिंह ने पार्टनरशिप में ट्रांसपोर्ट का काम शुरू किया था. उस ने और अशोक शर्मा ने गुलशन रोडलाइंस की शुरुआत की थी. अखिलेश और अशोक का यह व्यवसाय चल निकला. वैसे भी अशोक शर्मा इस धंधे का पुराना मास्टर था. उस का ट्रांसपोर्ट का धंधा सालों से मजे में चल रहा था. अखिलेश के आने से उस का काम और भी अच्छा चलने लगा था.

अशोक ने अखिलेश को इसलिए पार्टनर बनाया था, क्योंकि वह एक ताकतवर आदमी का बेटा था. उस के पिता चंद्रग्रप्त सिंह की पुलिस और सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुंच थी. कोई परेशानी आने पर वह काम आ सकता था. वैसे भी अखिलेश व्यवसाय के प्रति काफी ईमानदार था.

ट्रांसपोर्ट की कमाई से अशोक शर्मा ने करोड़ों की प्रौपर्टी अर्जित की थी. उस के खास दोस्तों में एक था हरीश अरोड़ा. वह उस से अपने दिल की हर बात शेयर करता था. हरीश को उस की यही बात सब से अच्छी लगती थी.

हरीश जानता था कि अशोक के पास किसी चीज की कमी नहीं है. अगर किसी चीज की कमी थी तो वह थी बीवीबच्चों की. हरीश ने सन 1997 में अपनी परिचित मधु शर्मा उर्फ पिंकी नाम की युवती के साथ उस की शादी करा दी. इस के बाद अशोक हरीश को पहले से ज्यादा मानने लगा.

शादी के करीब 1 साल बाद की बात है. उस दिन तारीख थी 18 सितंबर, 1998 और समय दिन. अशोक शर्मा किसी काम से घर से बाहर जा रहे थे. बिष्टुपुर थानाक्षेत्र में हिलव्यू रोड स्थित सेक्रेड हार्ट कौन्वेंट स्कूल के पास कुछ अज्ञात बंदूकधारियों ने दिनदहाड़े गोली मार कर उन की हत्या कर दी.

अपराध की राह खुद उतर आई अखिलेश की जिंदगी में

ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा की हत्या से जमशेदपुर में सनसनी फैल गई. व्यवसाई एकजुट हो कर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करते हुए आंदोलन के लिए सड़कों पर उतर आए. वैसे भी दिन पर दिन जिले की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जा रही थी और अपराधियों के हौसले बुलंद थे. हरीश अरोड़ा ने थाना बिष्टुपुर में अशोक के व्यावसायिक पार्टनर अखिलेश सिंह के साथ 3 अन्य लोगों बालाजी बालकृष्णन, विक्रम शर्मा और विजय कुमार सिंह उर्फ मंटू के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

अशोक शर्मा हत्याकांड में नामजद होते ही अखिलेश सिंह जमशेदपुर छोड़ कर फरार हो गया. विक्रम शर्मा और विजय कुमार गिरफ्तार कर लिए गए. अखिलेश सिंह के खिलाफ पहली बार हत्या जैसे संगीन मामले में मुकदमा दर्ज हुआ. इस के बाद वह चर्चाओं में आ गया.

3 साल तक बिष्टुपुर पुलिस हत्या के कारणों की जांच करती रही, लेकिन उसे कुछ हासिल नहीं हुआ. इस घटना की जांच सबइंसपेक्टर विश्वेश्वरनाथ पांडेय कर रहे थे. जांच के दौरान पता चला कि अशोक शर्मा को शूटर रवि चौरसिया ने गोली मार कर हत्या की थी. पुलिस ने रवि चौरसिया को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. 28 जनवरी, 2000 को रवि चौरसिया के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर के न्यायालय को सौंप दिया गया.

बिष्टुपुर पुलिस द्वारा मामले की लीपापोती के बाद सन 2001 में अशोक हत्याकांड की जांच सीआईडी को सौंप दी गई. सीआईडी इंसपेक्टर कन्हैया उपाध्याय ने अशोक हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. जांच में घटना का असल सूत्रधार हरीश अरोड़ा ही निकला. उसी ने दोस्त की संपत्ति हथियाने और उस की पत्नी को पाने के लिए यह दांव खेला था.

ये भी पढ़ें- दिल में अरमान, आंखों में आंसू : सुहागरात के बजाय दूल्हे जेल में बदलते रहे करवटें

घटना का खुलासा उस समय हुआ, जब सन 2001 में जमशेदपुर के एक बड़े मोबाइल व्यापारी ओमप्रकाश काबरा का अपहरण कर लिया गया. काबरा के अपहरण में एक बार फिर अखिलेश सिंह का नाम उछला तो पुलिस की पेशानी पर बल पड़ गए. अब तक अखिलेश सिंह गैंगस्टर बन चुका था.

खैर, पुलिस ने ओमप्रकाश काबरा अपहरण की जांच शुरू की तो ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा हत्याकांड में एक चौंकाने वाले राज का खुलासा हुआ. इस मामले की जांच करते हुए पुलिस को पता चला कि अशोक शर्मा की हत्या की साजिश हरीश अरोड़ा ने रची थी.

यह लालच, विश्वासघात और प्रेम का मामला था. दरअसल, पुलिस जांच में पता चला कि मधु शर्मा उर्फ पिंकी और हरीश अरोड़ा आपस में एकदूसरे से प्रेम करते थे. हरीश अरोड़ा ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा का जिगरी यार था. करोड़पति अशोक शर्मा की शादी नहीं हुई थी.

हरीश अरोड़ा की नीयत अपने दोस्त अशोक की संपत्ति पर थी. वह एक झटके में उस की संपत्ति हासिल कर लेना चाहता था. इस के लिए उस ने एक बड़ी साजिश रची.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...