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सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- सुनील वर्मा  सोनू

कुछ समय बाद गीता ने निक्कू से कुछ पैसा ले कर गीता कालोनी में ही अपना खुद का ब्यूटीपार्लर खोल लिया और इस की आड़ में खुद तो जिस्मफरोशी का धंधा करती ही थी, साथ में उस ने नौकरी दे कर कुछ लड़कियों को भी पार्लर में जोड़ लिया.

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन एक बार फिर उस की खुशियों को ग्रहण लग गया. साल 2000 में एक दिन ऐसा आया जब यूपी पुलिस ने निक्कू त्यागी को हापुड़ के पास मुठभेड़ में मार गिराया.

एक बार फिर गीता के सिर से उस के सरपरस्त का साया उठ गया और वह उदास हो गई. लेकिन तब तक वह जिस्मफरोशी की दुनिया के जिस धंधे में वह उतर चुकी थी, उस ने गम की परछाई को ज्यादा दिन गीता के ऊपर रहने नहीं दिया.

गीता धीरेधीरे यमुनापार के गरीब परिवार की खूबसूरत लड़कियों को अपने साथ जोड़ कर उन से धंधा कराने लगी.

एक दिन गीता की मुलाकात दीपक जाट से हुई. दीपक उस के पास आया तो था अपने जिस्म की प्यास बुझाने के लिए, लेकिन वह गीता की अदाओं और हुस्न के जाल में इस तरह उलझा कि तन ही नहीं, मन से भी उस से प्यार करने लगा. इस के बाद तो दीपक अकसर गीता से मिलनेजुलने लगा.

ऐसा लगता था कि तकदीर ने गीता की जिंदगी में आने वाले हर मर्द के हाथों में अपराध की लकीरें बना कर भेजी थीं. नजफगढ़ इलाके का रहने वाला दीपक भी विजय और निक्कू की तरह अपराधी ही था. उस की गिनती दिल्ली के नामी वाहन चोरों में होती थी.

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