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सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

सन 2002 में बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच कोयले की ठेकेदारी को ले कर भयानक गोलीबारी और लड़ाई हुई, जिस में मुख्तार गैंग के 3 लोग मारे गए और खुद बृजेश सिंह भी जख्मी हो गया. इस लड़ाई के बाद बृजेश सिंह के मरने की अफवाह फैल गई. इस खबर को लोगों ने सच भी मान लिया, क्योंकि महीनों तक किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई और ब्रजेश को किसी ने नहीं देखा.

बृजेश के मरने की खबर ने मुख्तार गैंग को और ज्यादा ताकतवर बना दिया और फिर से चौतरफा उस का वर्चस्व हो गया.

2002 में अचानक कई महीनों बाद बृजेश तब सामने आया जब उत्तर प्रदेश में चले रहे चुनाव में गाजीपुर से बीजेपी के उम्मीदवार कृष्णानंद राय मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी के खिलाफ जबरदस्त तरीके से ताल ठोंक रहे थे.

बृजेश को मिला राजनैतिक संरक्षण

बृजेश सिंह एकाएक सामने आया और कृष्णानंद राय को समर्थन दे कर लोगों से उन के पक्ष में मतदान की अपील की. वास्तविकता तो यह थी कि बृजेश को राजनीतिक संरक्षण की जरूरत थी. कृष्णानंद राय यूपी से ले कर केंद्र की सियासत तक में जबरदस्त रसूख रखने वाले नेता थे.

इसी राजनीतिक संरक्षण के लिए बृजेश ने कृष्णानंद राय से हाथ मिला कर उन्हें चुनाव में अपना समर्थन दिया था. फलस्वरूप बृजेश की अपील पर इलाके की ठाकुर लौबी राय के पक्ष में खड़ी हो गई.

इस चुनाव में कृष्णानंद राय ने मुख्तार के भाई को हरा दिया. इस के बाद तो हालात ये हो गए कि अब गाजीपुर-मऊ इलाके में पूरी राजनीति हिंदू-मुसलिम के बीच बंट गई. जिस कारण इलाके में सांप्रदायिक लड़ाइयां होने लगीं. ऐसे ही एक मामले में मुख्तार गिरफ्तार हो गया.

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