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सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

गिरफ्तारी के बाद बृजेश जब वाराणसी जेल पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात गाजीपुर के मुडियार गांव के त्रिभुवन सिंह से हुई. त्रिभुवन सिंह हिस्ट्रीशीटर अपराधी था. बृजेश के हौसलों को देखते हुए त्रिभुवन ने उस से दोस्ती कर ली.

त्रिभुवन सिंह भी अपने भाई व पिता की हत्या का बदला लेने के लिए जरायम की दुनिया में उतरा था. इसीलिए दोनों की दोस्ती हो गई और दोस्ती का एक कारण यह भी था कि दोनों ही ठाकुर समुदाय से थे. कुछ लोग बृजेश के साथ थे तो कुछ त्रिभुवन के साथ. दोनों ने हाथ मिलाया तो जेल से निकलने के बाद साथ मिल कर काम करने लगे.

त्रिभुवन की मंजिल जहां पैसा और शोहरत कमाना था तो बृजेश ने समूचे पूर्वांचल में अपना सिक्का जमा कर अकूत दौलत कमाने का ख्वाब पाल लिया था.

अपराध की दुनिया में एक कहावत यह भी है कि इस दुनिया में ख्वाब उन्हीं के पूरे होते हैं जिन के हौसले और हिम्मत बुलंद होते हैं. बृजेश और त्रिभुवन सिंह की दोस्ती जल्द ही रंग लाने लगी, क्योंकि दोनों के ही हौसले और हिम्मत बुलंद थे. धीरेधीरे इन का गैंग पूर्वांचल में सक्रिय होने लगा.

दोनों ने मिल कर यूपी में शराब, रेशम और कोयले के धंधे में अपने पांव जमाने शुरू कर दिए. दोनों ने अपने बाहुबल से पहले छोटेमोटे काम शुरू किए फिर बड़ेबड़े काम करने लगे.

बृजेश का मुख्तार अंसारी से हुआ सामना

इसी बीच, 1990 के दशक में बृजेश सिंह ने धनबाद के पास झरिया का रुख किया. वह धनबाद के बाहुबली विधायक और कोयला माफिया सूर्यदेव सिंह के कारोबार की देखभाल करने के लिए उन के शूटर की तरह काम करने लगा. सूर्यदेव सिंह के इशारे पर बृजेश सिंह ने हत्या की 6 वारदातों को अंजाम दिया.

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