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सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

7 जुलाई, 2021 की रात को दीपक ने पूजा को फोन कर के मिलने की जिद कर डाली. उस का मन प्रेमिका से मिलने के लिए बेचैन हो रहा था.

‘‘पूजा मेरी जान, नींद नहीं आ रही है. बताओ मैं क्या करूं?’’ दीपक ने अपनी बेचैनी का इजहार किया.

‘‘क्या करूं, मैं भी मिलना चाहती हूं, लेकिन ये मोहल्ले वाले हमारी मोहब्बत के दुश्मन बने बैठे हैं.’’ पूजा मायूसी से बोली.

‘‘क्या आज रात को मुलाकात हो सकती है? अभी तो मोहल्ले वाले सो रहे होंगे.’’ दीपक ने कहा.

‘‘कोशिश करती हूं, अभी रात के 10 बजे हैं. ’’ पूजा बोली.

‘‘अभी आ जाऊं?’’ दीपक ने कहा.

‘‘अभी नहीं, डेढ़ बजे आना. तब तक गली में सन्नाटा हो जाता है. पापा भी सोए होंगे.’’ इतना कह कर पूजा ने काल डिस्कनेक्ट कर दी.

यह सुन दीपक खुश हो गया. पूजा द्वारा डेढ़ बजे बुलाने से उस के मन में खुशियों की लहर दौड़ पड़ी. वह तुरंत कमरे से बाहर निकला. सीधा मैडिकल स्टोर गया. कंडोम का पैकेट खरीदा. किराने की दुकान से गली के कुत्तों को चुप कराने के लिए बिसकुट का एक पैकेट भी खरीद लिया.

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फिर कमरे पर वापस आ कर रात के डेढ़ बजने का इंतजार करने लगा. क्योंकि यह रात उस के जीवन की सब से अनोखी रातों में से एक होने वाली थी. जिसे बारबार सोच कर ही वह पागल हुए जा रहा था.

दीपक और पूजा के घर में करीब 5 मिनट के पैदल की दूरी थी. दीपक के मन में वासना की इतनी बेताबी थी कि उसे डेढ़ बजे तक का इंतजार बड़ा लंबा लग रहा था. इसलिए वह रात को एक बजे ही अपने घर से पूजा से मिलने निकल पड़ा.

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