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सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

दिल्ली के करावल नगर की घटना एक ऐसे ही प्रेमी युगल की दास्तान है, जो वासना की भेंट चढ गया. करीब डेढ़ साल पहले दीपक दिल्ली में अपने चाचा रमेश के पास रहने गया था. वहां रह कर

वह कोई काम सीखना चाहता था, लेकिन इसी बीच मार्च 2020 में लौकडाउन लगने पर वह वापस अपने घर बागपत लौट आया था. इस साल मार्च में दोबारा दिल्ली जाने वाला ही था कि तभी दोबारा लौकडाउन लग गया.

अब वह यही सोच रहा था कि जितनी जल्द हो सके यह लौकडाउन खुले, जिस से वह दिल्ली जाए. जून में जब दिल्ली का लौकडाउन खुल गया तो वह दिल्ली जाने के लिए मां से जिद करने लगा, ‘‘मम्मी मैं दिल्ली जाऊंगा.’’

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‘‘क्यों बेटा अभी कोरोना खत्म नहीं हुआ है.’’ मां बोली.

‘‘लेकिन मम्मी, लौकाडाउन तो खत्म हो गया है.’’

‘‘वहां जा कर करेगा क्या?’’ मां ने पूछा.

‘‘कोई काम करूंगा. पैसे कमा कर लाऊंगा. वैसे भी यहां भी तो खाली हूं.’’

‘‘ठीक है, इस बारे में पहले मैं तेरे पापा से बात करूंगी,’’ मां बोली.

बागपत का रहने वाला दीपक अपनी मां से दिल्ली जाने की जिद पर अड़ा था. इस बारे में उस की मां ने अपने पति से बात की तो पहले तो उन्होंने मना किया, लेकिन मिन्नत करने पर वह  मान गए.

अपने मातापिता को मना कर दीपक 2 जुलाई, 2021 को दिल्ली के करावल नगर में रह रहे अपने चाचा रमेश के पास आ गया. उस के मातापिता भले ही समझ रहे थे कि उन का बेटा दिल्ली काम करने के लिए गया है, लेकिन उस के दिल्ली आने की वजह कुछ और ही थी.

रमेश करावल नगर में किराए के कमरे में अकेले रहते थे. उन के पास दीपक दिन में ही आ गया था. उस दिन वह अपने काम पर नहीं गए थे. क्योंकि उन की शिफ्ट बदल गई थी. अचानक दीपक को आया देख वह चौंक गए. परिवार में सब का हालचाल लिया, फिर सुबह जो कुछ खाना पकाया था, वह उसे खाने को दिया.

दीपक खाना खा कर अपने पुराने दोस्त से मिलने को कह कर निकल गया. उस के चाचा भी खानेपीने का सामान लाने बाजार चले गए.

दीपक सीधा अपनी प्रेमिका पूजा के पास गया. पूजा भी उसे अचानक आया देख चौंक गई. लंबे समय बाद दीपक को देख वह उस के गले लिपट गई. कुछ पलों बाद वह अलग हुई और अपना नया मोबाइल नंबर दीपक को देते हुए बोली, ‘‘दीपक, तुम अभी चले जाओ, अब शाम को मिलना. मैं फोन करूंगी. क्योंकि अभी पापा आने  वाले हैं.’’

‘‘ सब ठीक है न?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘ हांहां, मैं ठीक हूं. ये मास्क लो, लगा लेना नहीं तो फाइन भरना पड़ेगा.’’ पूजा ने मास्क दिया.

‘ पापा अभी भी नाराज हैं?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘ हां, लेकिन मैं उन्हें मना लूंगी. ये मोहल्ले वाले ही उन को हमेशा भड़काते रहते हैं.’’

‘‘ कोई बात नहीं, मैं अभी चलता हूं. फोन करूंगा. आज ही नया नंबर ले लूंगा.’’

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उस समय पूजा के पिता सत्यवीर सिंह घर पर नहीं थे. गलीमोहल्ले वाले दीपक को अच्छी तरह से पहचानते थे. वह उस के और पूजा के संबंधों के बारे में जानते थे. उन्हें यह भी पता था कि उस की वजह से पिछले साल गली में कितना हंगामा खड़ा हो गया था.

उस रोज भी दीपक का पूजा के घर जाना गली के अधिकतर लोगों ने देखा. उन्हीं में से एक ने सत्यवीर को दीपक के आने की जानकारी दे दी.

यह भी हिदायत दी कि उस की बेटी पूजा की करतूत अभी भी ठीक नहीं है. उसे संभालें, अच्छे से समझाएं. उस की हरकतों का असर उन के बच्चों पर भी पड़ेगा.

यह जान कर सत्यवीर अपनी बेटी पर आगबबूला हो गया था. उस ने पूजा को काफी डांटफटकार लगाई.

हालांकि सत्यवीर की डांट और चेतावनी का असर पूजा पर कुछ भी नहीं हुआ. इस का कारण भी था, वह दीपक से बेइंतहा प्यार करती थी. काफी समय से उस से मिलने को बेचैन थी. उस के मन में दीपक के लिए प्यार दबा हुआ था. उस के प्यार का उफान पिता की डांट से कहां थमने वाला था.

दीपक की हालत उस से कहीं अधिक बेचैनी वाली थी. अब जा कर उसे मिलने का मौका मिला था. उस ने तुरंत एक सैकंडहैंड स्मार्टफोन खरीदा और अपने चाचा की आईडी से नया सिम कार्ड ले लिया.

उस के एक्टिवेट होते ही सब से पहली काल उस ने प्रेमिका पूजा को कर के अपना नया नंबर सेव करने के लिए कहा.

उन की बातें फोन पर लगातार होने लगीं. पूजा ने फिलहाल उसे घर आने से मना किया था. इसी तरह 4-5 दिन निकल गए. दीपक पूजा से फिर मिलने को बेचैन हो गया था.

उसे लग रहा था कि पास आ कर भी वह पूजा से दूर क्यों है? दीपक के मन में पूजा के लिए दबी कुंठाएं अब दबने का नाम ही नहीं ले रही थीं. ऐसा ही हाल पूजा का भी था.

अगले भाग में पढ़ें-  दीपक को जरा भी आभास नहीं था कि वह इस बार पकड़ा जाएगा

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