नाले पर बना Ravi Kishan का घर? CM योगी का बड़ा खुलासा

Ravi Kishan: जानेमाने एक्टर और पौलिटिशियन रवि किशन इन दिनों काफी सुर्खियों में बने हुए हैं. जहां एक तरफ उनकी फिल्म सन औफ सरदार 2 रिलीज होने वाली है वहीं दूसरी तरफ वे एक बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं. दरअसल, इस बार उनके सुर्खियों में बने रहने का कारण उनकी फिल्म नहीं बल्कि उनका घर है. जैसा कि आप सब जानते हैं कि रवि किशन गोरखपुर से भाजपा सांसद हैं और ऐसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में 177 विकास परियोजनाओं के उद्घाटन समारोह के दौरान रवि किशन के घर को लेकर एक बड़ा खुलासा किया जिसे सुन उनके फैंस काफी हैरान हो गए हैं.

नाले के ऊपर बनवाया मकान

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बताया कि रवि किशन ने रामगढ़ ताल क्षेत्र में नाले के ऊपर मकान बनवाया है. योगी ने साफ तौर पर कहा कि उन्होंने पहले ही सभी को चेतावनी दी थी कि जल निकासी के रास्तों पर निर्माण न करें, वरना दिक्कतें होंगी. इसी के साथ ही योगी आदित्यनाथ ने यह भी कहा कि अब मशीनों की मदद से यह आसानी से पता चल जाता है कि नाले के ऊपर कहां-कहां निर्माण हुआ है. योगी के इस बयान से रवि किशन के फैंस के दिलों में हलचल होने लगी है. हालांकि अभी तक रवि किशन ने इस मुद्दे पर कोई रिएक्शन नहीं दिया है लेकिन ऐसा हो सकता है कि इसके चलते उन्हें किसी कानूनी या राजनीतिक संकट का सामना करना पड़े.

शानदार एक्टर हैं रवि किशन

आपको बता दें, रवि किशन एक बेहतरीन एक्टर हैं जिन्होनें भोजपुरी फिल्मों के साथ साथ कई हिंदी फिल्मों में भी काम किया है और तो और वे टेलिविजन के कई रिएलिटी शोज में भी दिखाई दिए हैं. इसी के साथ ही उन्होनें वेब सीरिज में भी अभिनय कर फैंस का दिल जीता है. रवि किशन भोजपुरी सिनेमा के जानेमाने कलाकार हैं और उन्होनें बहुत सारी भोजपुरी फिल्मों में कमाल की भुमिका निभाई है. यही वजह है कि उन्हें भोजपुरी सिनेमा का सुपरस्टार भी बोला जाता है.

रवि किशन की पौलिटिक्स में एंट्री

रवि किशन ने अपनी पौलिटिकल जर्नी साल 2014 में कांग्रेस पार्टी के साथ जौनपुर से शुरू की थी जहां वे जीत हासिल नहीं कर पाए. इसके बाद उन्होनें साल 2017 में कांग्रेस पार्टी को छोड़ कर भाजपा का साथ पकड़ लिया और 2019 में वे उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से सांसद बन गए.

पर्सनल लाइफ औफ रवि किशन

बात करें अगर रवि किशन की पर्सनल लाइफ की तो रवि किशन ने 10 दिसंबर 1993 में प्रीति शुक्ला नाम की लड़की से शादी की और अब उनके 4 बच्चे हैं जिनमें से एक बेटा और तीन बेटियां है. रवि किशन की एक बेटी जिसका नाम रीवा किशन है, ने तो साल 2020 में आई फिल्म ‘सब कुशल मंगल’ से अपने फिल्मी करियर की भी शुरुआत कर ली है.

मुंबई की रहने वाली अपर्णा सोनी, जिन्हें अपर्णा ठाकुर के नाम से भी जाना जाता है, ने एक बार बड़ा दावा करते हुए कहा था कि उनकी 25 साल की बेटी शिनोवा सोनी, बीजेपी सांसद और अभिनेता रवि किशन की बेटी है. अपर्णा का आरोप था कि रवि किशन अपनी बेटी को उसका हक नहीं दे रहे हैं. यह मामला उस वक्त और तूल पकड़ गया जब चुनावी माहौल के बीच गोरखपुर से भाजपा प्रत्याशी रवि किशन पर यह आरोप लगाया गया. हालांकि, बाद में पुलिस ने इस पूरे मामले में शामिल सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया था. Ravi Kishan

Bahujan Samaj Party में दरार

Bahujan Samaj Party को नई दिशा देने की कोशिश में जुटे आकाश आनंद को मायावती ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है. एक बार फिर सवाल उठ गया है कि क्या मायावती का मकसद बसपा को पूरी तरह तबाह कर देना है?

दरअसल, आकाश आनंद ने अपने एक संबोधन में मायावती के कुछ करीबियों पर पार्टी के हित का ध्यान न रखने का आरोप लगाया था. यह बात बसपा सुप्रीमो मायावती को पसंद नहीं आई और पाटी को लगातार मिल रही हार की बौखलाहट भी आकाश आनंद के बाहर होने की अहम वजह बन गई.

परिवारवाद के खिलाफ बोलने वाली मायावती आखिरकार खुद भी उसी राह पर चल पड़ी थीं. यह उन की सब से बड़ी गलती थी. अगर कांशीराम चाहते तो वे भी अपने किसी भाईभतीजे को बसपा सौंप सकते थे, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया और भारतीय राजनीति में ऐसा काम किया, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता.

लेकिन कुछ समय पहले मायावती ने पहले तो अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर खांटी बसपाइयों को भीतर ही भीतर नाराज कर दिया, फिर हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली सरीखे राज्यों में हुए चुनाव की सारी जिम्मेदारी आकाश आनंद को सौंपी.

आकाश आनंद इन राज्यों में बसपा को दोबारा मुख्यधारा में लाने के लिए खासी मेहनत करते दिखाई दिए और एक दफा उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था, ‘हमारे कुछ पदाधिकारी पाटी को फायदा पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुंचा रहे हैं. गलत लोग गलत जगह पर बैठे हैं, जिस से पार्टी को नुकसान हो रहा है. यह चीज मैं ने भी महसूस की. मु?ो भी काम करने में बहुत दिक्कत आ रही है.

‘कुछ लोग हमें भी काम नहीं करने दे रहे हैं. कुछ लोग ऐसे बैठे हैं, जिन को अभी हम छेड़ नहीं सकते. जिन को हम हिला नहीं सकते. जिस तरह से पार्टी चल रही है, उस में काफी कमियां हैं.’

दरअसल, आकाश आनंद ने जिस तरह खुल कर पार्टी की खामियों के बारे में कार्यकर्ताओं से मंच से बात की, वह बड़ेबड़े नेताओं को पसंद नहीं आ रही थी. इस से पार्टी के बीच आकाश आनंद को ले कर विरोध के स्वर उठने लगे.

नतीजतन, मायावती ने वही किया, जो उन के आसपास बैठे लोगों ने उन्हें बताया और मजबूर कर दिया.

बसपा सुप्रीमो मायावती ने आकाश आनंद को जिम्मेदारी सौंपी थी कि वे नौजवानों को बसपा के साथ जोड़ें, पर लगता है कि मायावती को अपने भतीजे के काम करने का तरीका पसंद नहीं आया.

अगर मायावती को बहुजन समाज पार्टी को सचमुच कांशीराम के पदचिह्नों पर आगे ले जाना है, तो आकाश आनंद जैसे लोगों को अहमियत देनी ही पड़ेगी. यह नहीं भूलना चाहिए कि बसपा का जो असर बहुजन समाज पर था, आज वह धीरेधीरे कमजोर होता जा रहा है, तो उस की एक अहम वजह मायावती के काम करने के तरीके हैं.

अखिलेश भइया की इमेज दूसरे नेताओं से क्‍यों है बढ़िया ?

कुर्ता पजामा के साथ सिर पर लाल टोपी अखिलेश यादव की पहचान बन चुकी है. यह राजनीतिज्ञ उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इससे पूर्व वे लगातार तीन बार सांसद भी रह चुके हैं. समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश ने 2012 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में अपनी पार्टी का नेतृत्व किया था. इन दिनों अखिलेश की छवि बीजेपी को यूपी में चुनौती देने वाले राजनेता के रूप में उभरी है. इतना ही नहीं, उनकी इमेज एक अच्‍छे फैमिली मैन की भी है. अकसर अपनी पत्‍नी डिंपल यादव और बच्‍चों के साथ नजर आते हैं. ऐसी ही कई खास बातें अखिलेश यादव को दूसरे राजनेताओं से डिफरैंट बनाती है.

 

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सामाजिक तौर पर देखा जाए, तो अखिलेश यादव महिलाओं की इज्जत करते नजर आते हैं, उनके भाषणों में कभी भी महिलाओं के चरित्र, शरीर को लेक‍र टिप्‍पणी नहीं होती है जब‍क‍ि इनके पिता समाजवादी सुप्रीमो महिला और रेप पर भी विवादित बाते कर चुके है. अखिलेश की यही खास बातें उन्हे सबसे अलग बनाती है. बात उनकी एजुकेशन की करें तो, उन्होंने विदेश जाकर पढाई की है. वे स्‍टडी के ल‍िए औस्ट्रेलिया गए. वहां उन्होंने सिडनी यूनिवर्सिटी से एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की. यही से उनके प्यार की भी शुरुआत हुई.

जी हां, जब अखिलेश यादव इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे तो एक कौमन फ्रेंड के जरिए उनकी मुलाकात डिंपल से हुई थी. इसके बाद दोनों दोस्त बन गए और धीरे-धीरे ये दोस्ती प्यार में बदल गई. अखिलेश पढ़ाई के लिए आस्ट्रेलिया चले गए लेकिन उनका प्यार परवान चढ़ने लग गया. जब वह वापस भारत लौटे तो उन्होंने अपनी दादी को डिंपल से शादी के लिए मना लिया.अपने प्यार को पाने के लिए उन्हें अपने पिता मुलायम सिंह यादव को मनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी.

जब उनके पिता राजी हो गए तो 24 नवंबर 1999 को अखिलेश और डिंपल शादी के बंधन में बंध गए. दोनों की 2 बेटियां और एक बेटा है. एक अच्छे पति होने के साथ-साथ वे एक अच्छे पिता भी हैं हालांकि पब्लिक प्लेस में वे बेटे के साथ कम नजर आते हैं, रैलियों में वह अपनी पत्‍नी डिंपल के साथ कैंपेनिंग करते खूब नजर आते हैं. अखि‍लेश को अपने शहर के लोगों के साथ घूमते देखा जाता है, पार्टियों में कम ही नजर आते हैं. कई नेताओं के शादी के बाहर भी प्रेम संबंध देखे गए हैं लेकिन इस मामले में भी अ‍खिलेश यादव की छवि काफी साफसुथरी है. आज के महत्‍वकांक्षी युवा अपनी छवि को बेहतर बनाने के लिए अखिलेश से सीख ले सकते हैं

71,000 को नियुक्तिपत्र : नरेंद्र मोदी का ‘चुनावी बाण’

आज जब देश के 2 राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में हाल ही में विधानसभा चुनाव हुए हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा लोगों को नौकरी का नियुक्तिपत्र दिया जाना एक ऐसा मसला बन कर सामने है, जो सीधेसीधे निष्पक्ष चुनाव को पलीता लगाने वाला कहा जा सकता है.

इस बारे में देश की जनता से एक ही सवाल है कि अगर आज टीएन शेषन मुख्य चुनाव अधिकारी होते तो क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 71,000 लोगों को तो क्या किसी एक को भी सरकारी नौकरी का नियुक्तिपत्र दे सकते थे?  इस का सीधा सा जवाब यही है कि बिलकुल नहीं.

देश का विपक्ष आज चुप है. देश की संवैधानिक संस्थाएं आज चुप हैं. इस आसान से लगने वाले एक मामले के आधार पर हम कह सकते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार और वे खुद लगातार कुछ न कुछ ऐसा कर रहे हैं, जिस से नियमकायदों और नैतिकता की धज्जियां उड़ रही हैं.

जैसा कि हम सब जानते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 लाख कर्मियों के लिए भरती अभियान वाले ‘रोजगार मेला’ के तहत तकरीबन 71,000 नौजवानों को नियुक्तिपत्र सौंपे थे. प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक बयान में यह जानकारी दी थी.

कहा गया था कि ‘रोजगार मेला’ नौजवानों को रोजगार के मौके देने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की दिशा में प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता को पूरा करने में एक बड़ा कदम है.

सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात और हिमाचल प्रदेश  लगातार जा रहे थे और लोगों को संबोधित कर रहे थे. ऐसे में चुनाव के वक्त नियुक्तियों का यह झुनझुना सीधेसीधे मतदान को प्रभावित करने वाला था, इसलिए इस पर निर्वाचन आयोग को खुद संज्ञान ले कर रोक लगानी चाहिए. सरकारी नौकरियों का लौलीपौप

लाख टके का सवाल यही है कि आज जब गुजरात, जो नरेंद्र मोदी का गृह प्रदेश है और जहां से उन्होंने अपनी राजनीति का सफर शुरू किया था और प्रधानमंत्री पद पर पहुंचे हैं, सारा देश जानता है कि गुजरात प्रदेश का विधानसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के लिए कितनी अहम जगह रखता है, क्योंकि गुजरात की जीत सीधेसीधे नरेंद्र मोदी की जीत और गुजरात की हार उन की हार कही जाएगी.

ऐसे में नियुक्तिपत्र का यह लौलीपौप संविधान के निष्पक्ष चुनाव के विरुद्ध है और हम नरेंद्र मोदी से पूछना चाहते हैं कि अगर वे खुद विपक्ष में होते और अगर सत्ताधारी पार्टी ऐसे करती तो क्या वे चुप रहते?

जैसा कि प्रधानमंत्री कार्यालय के बयान में कहा गया कि ‘यह’ रोजगार मेला रोजगार सृजन में उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा और युवाओं को उन के सशक्तीकरण और राष्ट्रीय विकास में सीधी भागीदारी के लिए सार्थक अवसर प्रदान करेगा.

हम कह सकते हैं कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव के वक्त यह सब करना सीधेसीधे निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करने वाला था. आप को याद होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस से पहले अक्तूबर महीने में ‘रोजगार मेला’ की शुरुआत

की थी. उन्होंने एक समारोह में 71,000 नवनियुक्त कर्मियों को नियुक्तिपत्र सौंपे थे. हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश को छोड़ कर देश की 45 जगहों पर नियुक्त कर्मियों को नियुक्तिपत्र सौंपे जाएंगे. ऐसा कहना भी यह साबित करता है कि यह चुनाव वोटरों को प्रभावित करने का ही एक खेल था.

दरअसल, नियुक्तिपत्र बांटने का काम कर के यह बताया जा रहा है कि आने वाले समय में हम ऐसा काम करेंगे, जिस से साफ है कि यह वोटरों को प्रभावित करने की ही एक कोशिश है. पिछली बार जिन श्रेणियों में नौजवानों को नियुक्ति दी गई थी, उन के अलावा इस बार शिक्षक, व्याख्याता, नर्स, नर्सिंग अधिकारी, चिकित्सक, फार्मासिस्ट, रेडियोग्राफर और अन्य तकनीकी और पैरामैडिकल पदों पर भी नियुक्ति की जाएगी. प्रधानमंत्री कार्यालय ने बताया कि इस बार अच्छीखासी तादाद में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा विभिन्न केंद्रीय बलों में भी नौजवानों को नियुक्ति दी गई है. प्रधानमंत्री नवनियुक्त कर्मियों के लिए आयोजित किए जाने वाले औनलाइन ओरिएंटेशन कोर्स ‘कर्मयोगी प्रारंभ’ की भी शुरुआत करेंगे.

इस में सरकारी कर्मचारियों के लिए आचार संहिता, कार्यस्थल, नैतिकता और ईमानदारी, मानव संसाधन नीतियां और अन्य लाभ व भत्ते से संबंधित जानकारियां शामिल होंगी, जो उन्हें नीतियों के अनुकूल और नवीन भूमिका में आसानी से ढल जाने में मदद करेंगी. इस सब के बावजूद हम तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यही सवाल करते हैं कि क्या नियुक्तिपत्र देने का काम प्रधानमंत्री कार्यालय का है और यह कब से हो गया? नियमानुसार तो नियुक्तिपत्र वह विभाग देता है, जिस के अधीनस्थ कर्मचारी काम करता है. प्रधानमंत्री कार्यालय या प्रधानमंत्री का यह काम नहीं है और यह बात देश का हर नागरिक जानता है.

टैक्स: क्या थी सरकार की नीति

सस्ती या मुफ्त बिजलीपानीपढ़ाईखाने को ले कर प्रधानमंत्री ने रेवड़ी बांटो कल्चर कह कर बदनाम करना शुरू किया है. ये सस्ती चीजें देश के उन गरीबों को मिलती हैं जिन को समाज आज भी इतना कमाने का मौका नहीं दे रहा है कि वे अपने लिए जिंदगी जीने के लिए इन पहली चीजों का इंतजाम कर सकें. भारतीय जनता पार्टी ने चूंकि सरकारों का खजाना खाली कर दिया है और वह बेतहाशा पैसा अमीरों के लिए खर्च कर रही हैचुनावों में ये सस्ती चीजें देने की बात से उसे चिढ़ होने लगी है. भारतीय जनता पार्टी की कल्चर तो यह है कि सस्ता सिर्फ मंदिरों को मिले जो न बिजली का बिल देते हैं चाहे जितनी बिजली खर्च करेंन पानी का बिल देते हैं चाहे कितना बहाएंन नगरनिगम को टैक्स देते हैं चाहे जितना बनाएं. भारतीय जनता पार्टी के लिए सस्ती चीजें पाने वाले असल में पापी हैं जिन्होंने पिछले जन्मों में पुण्य नहीं किएदान नहीं दिया और अब उस की सजा भुगत रहे हैं. हमारे धर्मग्रंथ इन किस्सों से भरे हैं और प्रधानमंत्री व अन्य भाजपा नेताओं के मुंह से ये बातें निकलतीफिसलती रहती हैं.

गरीब जनता को सस्ती बिजलीपानी व खाना असल में अमीरों के फायदे के लिए होता है. जैसे ही एक गरीब घर को सस्ती बिजली व घर में मुफ्त पानी मिलने लगता हैउस की सेहत सुधर जाती हैउस के काम के घंटे बढ़ जाते हैं और वह कम तनख्वाह पर काम करने को तैयार होने लगता है.

दुनिया के कई देशों ने सस्ते घर भी अपने गरीब और मध्यम वर्गों को दिए और वहां वेतन काफी कम हो गए और लोग ज्यादा मेहनत करने लगे क्योंकि उन्हें छत के लिए दरदर नहीं भटकना पड़ता. दिल्लीमुंबईलखनऊ या किसी भी बड़े शहर की गरीब बस्ती को देख लें. वहां लोग घंटों पीने के पानीराशन की दुकानों और यहां तक कि शौच की जगह के लिए बरबाद करते हैं. उन घरों में एक आफत नौकरी होती है तो दूसरी यह कि चूल्हा कैसे जलेगापकेगा कैसेलोग नहाएंगे कैसेपीएंगे क्यादेश के व्यापारकारखानेखेत इतना पैसा नहीं दे पाते कि लोग पूरे दामों में कोई चीज खरीद सकें.

और फिर यह पूरा दाम क्या हैज्यादातर रोजमर्रा की चीजों में दाम असल में टैक्स से भरे होते हैं. हर चीज को बनानेपैदा करने में जितना पैसा लगता है उस का तीनचौथाई तक टैक्स होता है. तरहतरह के टैक्स जीएसटी के बावजूद मौजूद हैं. अगर ईमानदारी से टैक्स दिया जाए तो जीएसटी छोटे से दुकानदार के बड़े होलसेल दुकानदार से सिर पर सामान लाद कर अपनी 10×10 फुट की दुकान पर बेचता है तो उस की मेहनत पर भी टैक्स लग जाता है. वह अगर कोई चीज 100 रुपए में लाता है120 में बेचता है तो 20 रुपए पर टैक्स देना पड़ता है वह भी 12 से 18 फीसदी. गरीब को टैक्स से चूसने वाली सरकार को यह बुरा लग रहा है कि कोई इस गरीब को मुफ्त सामान दे कर उस को टैक्स की मार से फ्री कर रहा है. भारतीय जनता पार्टी के लिए जीएसटी तो जनता से जबरन वसूला गया दानपुण्य है और जो कहे कि यह सामान ही मुफ्त है वह इस दानपुण्य की महान हिंदू संस्कृति पर हमला कर रहा है. उसे रेवड़ी बांटना नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए. हमारे धर्मग्रंथ तो कहते हैं कि रेवड़ी बांटो नहींशूद्र के पास जो भी संपत्ति हो वह राजा जब्त कर ले.

हेमंत सोरेन की चुनौती और भाजपा

आजकल देश में एक तरह से राजनीतिक गृह युद्ध के हालात हैं. एक तरफ है केंद्र की सरकार, जिस का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ है देश के अनेक प्रदेशों के मुख्यमंत्री और क्षेत्रीय राजनीतिक दल, साथ में कांग्रेस. भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाने के बाद यह टारगेट तय कर लिया है कि देशभर में भाजपा की सरकार ही होनी चाहिए और यह कोई दबीछिपी बात भी नहीं है. इस की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई दफा कर चुके हैं. अब जो सीन दिखाई दे रहा है, उस में प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा लगातार विपक्ष की सरकारों, मुख्यमंत्रियों और उन की गुड लिस्ट में शामिल लोगों को निशाने पर लेने की घटनाएं आम हैं.

यह देश देख चुका है कि किस तरह सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत प्रियंका गांधी और अनेक बड़े नेताओं पर प्रवर्तन निदेशालय का शिकंजा कसा गया और माहौल यह बना दिया है कि यही लोग सब से बड़े अपराधी हैं. हां, यह हो सकता है कि गलतियां हुई हों, अपराध भी हुए हों, मगर इन सब हालात से जो माहौल देश का बन रहा है, वह खतरनाक साबित हो सकता है. आज देशभर में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का एक बयान चर्चा में है कि अगर मैं अपराधी हूं, तो मुझे गिरफ्तार कर लिया जाए.  उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय के नोटिस को एक तरह से नजरअंदाज किया है. यह घटना देश के इतिहास में एक ऐसा टर्निंग पौइंट बन सकती है, जहां से देश का एक नया राजनीतिक राजमार्ग बन सकता है.  दरअसल, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ईडी के समन के बाद तेवर कड़े कर के एक संदेश दिया है. वे चुनौती की मुद्रा में हैं और उसी अंदाज में विरोधियों पर पलटवार की भी तैयारी है. झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोरचा ने साफतौर पर ऐलान किया है कि अगर सरकार के साथ साजिश हुई, तो छोड़ेंगे नहीं.

4 नवंबर, 2022 को रांची में झारखंड मुक्ति मोरचा समर्थकों की जुटी भीड़ का भी अंदाज तल्ख था. झामुमो के निशाने पर प्रवर्तन निदेशालय, राज्यपाल और भाजपा है. समर्थकों को आंदोलन के आगाज का निर्देश दिया गया है. झारखंड मुक्ति मोरचा के कार्यकर्ता सभी जिला मुख्यालयों में सरकार को अस्थिर करने की कोशिशों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और प्रदेशभर में यह संदेश दिया जा रहा है कि हेमंत सोरेन की सरकार को भारतीय जनता पार्टी कमजोर करने का काम कर रही है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने सभी जिला इकाइयों को निर्देश जारी किया है कि कार्यकर्ता पूरी मजबूती के साथ प्रदर्शन में शामिल हों. अब जैसा कि सारा देश जानता है कि भारतीय जनता पार्टी के तेवर हमेशा आक्रामक रहते हैं. जब से देश में नरेंद्र मोदी की सरकार आई है और गृह मंत्री के रूप में अमित शाह हैं, भाजपा हर मौके पर वार करने की हालत में रहती है.  यहां भी भाजपा के तेवर यह बता  रहे हैं कि हेमंत सोरेन से सत्ता हासिल करने के लिए और उन की छवि को खराब करने की कोशिश में भाजपा पीछे नहीं रहेगी. इधर भाजपा ने प्रखंड मुख्यालयों से आंदोलन शुरू करने की घोषणा की है.

शक्ति प्रदर्शन की इस कवायद से राजनीतिक टकराव की बैकग्राउंड तैयार हो रही है.  हालात की गंभीरता को देखते हुए राजधानी में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यालय में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं. ईडी के क्षेत्रीय कार्यालय और राजभवन की सुरक्षा व्यवस्था भी बढ़ाई गई है. उठ खड़ा होगा  संवैधानिक संकट जैसे हालात झारखंड समेत देश के कुछ राज्यों में बन रहे हैं, इस सिलसिले में कहा जा सकता है कि आने वाले समय में संवैधानिक संकट खड़े होने का डर है.  सच तो यह है कि चाहे केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो हो या प्रवर्तन निदेशालय, उन का इस्तेमाल नैतिक रूप से ईमानदारी से किया जाना चाहिए, ताकि कोई भी यह न कह सके कि उन का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है.  ऐसा पहले कई दफा हुआ है, जिस का सब से बड़ा उदाहरण लालू प्रसाद यादव हैं, जिन्होंने हमेशा कानून पर आस्था जाहिर की है और हर एक कार्यवाही को सम्मान के साथ स्वीकार किया है. यह भी सच है, जिस से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज की कई सरकारें भ्रष्टतम आचरण कर रही हैं, अनेक बड़े घोटाले का खेल जारी है. ऐसे में अगर केंद्रीय एजेंसियां शिकंजा कस रही हैं, तो नैतिकता के नाम पर आप विरोध कैसे कर सकते हैं? नतीजतन, आंदोलन के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष के अपनेअपने मुद्दे हैं.

भाजपा, ईडी और राजभवन के खिलाफ आंदोलन का आह्वान कर विरोधी दल शक्ति प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं. उधर भाजपा ने राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए घेराबंदी तेज की है.  देश और प्रदेश की जनता आज दुविधा में है कि वह राज्य सरकार के पक्ष में खड़ी हो या केंद्र सरकार के पक्ष में. आवाम प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो के खिलाफ झारखंड मुक्ति मोरचा के हेमंत सोरेन के पक्ष में खड़ी हो या केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्यवाही के पक्ष में. ऐसे में आने वाला समय संवैधानिक संकट का आगाज कर रहा है.

तेजस्वी यादव: भाजपा के लिए खतरा

राज्य के मोकामा और गोपालगंज विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव राष्ट्रीय जनता दल के लिए बेहद खास थे. जनता दल (यूनाइटेड) और भाजपा के अलग होने के बाद ये पहले चुनाव थे. भारतीय जनता पार्टी चाहती थी कि राजद एक भी सीट न जीते, जिस से उस की साख पर बट्टा लग सके. इस के लिए भाजपा ने राजद नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के मामा साधु यादव और मामी इंदिरा यादव को अपनी तरफ मिला लिया था. वह भाजपा की बी टीम की तरह से काम कर रहे थे. इस के बाद भी राजद ने उपचुनाव में मोकामा सीट पर जीत हासिल कर ली. तेजस्वी यादव कहते हैं, ‘‘गोपालगंज सीट पर भी हम ने भाजपा के वोटों में सेंधमारी की है. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में हमें 40,000 वोटों से हार मिली थी, जबकि उपचुनाव में सहानुभूति वोट के बाद भी केवल 1,700 वोटों से हारे हैं.

‘‘इस से इस बात का प्रमाण भी मिल गया है कि तेजस्वी यादव ने अब अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. अब बिहार में राजद ही भाजपा को रोकने का काम कर सकती है.’’

33 साल के तेजस्वी यादव को 2 बार बिहार का उपमुख्यमंत्री बनने का मौका मिल चुका है. राजनीतिक जानकार तेजस्वी यादव को बिहार के भविष्य का नेता मान रहे हैं. बिहार में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी अपना वजूद खो बैठी है. नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) में नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी कोई बन नहीं पाया है. नीतीश कुमार अब बिहार की राजनीति में हाशिए पर जा रहे हैं. कांग्रेस बिहार में अपने को मजबूत नहीं कर पा रही और भाजपा भी अपने बलबूते कुछ चमत्कार नहीं कर पा रही है. ऐसे में बिहार में सब से मजबूत पार्टी राजद के रूप में सामने है. ट्वैंटी20 क्रिकेट सा धमाल जिस तरह से 20 ओवर के क्रिकेट मैच में दमदार खिलाड़ी आखिरी ओवर तक रोमांच बना कर रखता है, कभी हिम्मत नहीं हारता है, ठीक वैसे ही तेजस्वी यादव भी हिम्मत नहीं हारते हैं और हारी बाजी अपने नाम कर लेते हैं. जिस भाजपा और जद (यू) गठबंधन ने तेजस्वी यादव को सत्ता से बाहर किया था, मौका मिलते ही तेजस्वी यादव ने उस बाजी को पलट कर वापस सत्ता में हिस्सेदारी कर ली.

तेजस्वी प्रसाद यादव का जन्म 10 नवंबर, 1989 को हुआ था. वे राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के बेटे हैं. तेजस्वी यादव क्रिकेट खेलना भी जानते हैं. उन्होंने दिल्ली डेयरडेविल्स के लिए आईपीएल भी खेला है. दिसंबर, 2021 में दिल्ली की एलेक्सिस से उन की शादी हुई थी. तेजस्वी और एलेक्सिस दोनों एकदूसरे को 6 साल से जानते थे और पुराने दोस्त थे. तेजस्वी यादव को महज 26 साल की उम्र में बिहार का उपमुख्यमंत्री बनने का मौका मिला था. तब वे डेढ़ साल तक नीतीश कुमार की 2015 वाली सरकार में बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे थे.

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने अपनी पार्टी राजद को मजबूत किया. वे कांग्रेस गठबंधन में चुनाव लड़े. राजद सब से बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई. किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिलने के चलते नीतीश कुमार और भाजपा ने मिल कर सरकार बनाई. उस समय तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बने. 10 अगस्त, 2022 को नीतीश कुमार और भाजपा में अलगाव हो गया. इस के बाद नीतीश कुमार और राजद का तालमेल हुआ, जिस के बाद तेजस्वी यादव को दोबारा बिहार का उपमुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. वे बिहार विधानसभा में राघोपुर से विधायक हैं.

तेजस्वी से डरती है भाजपा जिस तरह से लालू प्रसाद यादव ने 1990 के दशक में भाजपा के बढ़ते रथ को बिहार में रोका था और उसे अपने बल पर सत्ता में नहीं आने दिया था, वही काम अब तेजस्वी यादव कर रहे हैं. लालू प्रसाद यादव की राजनीति को खत्म करने के लिए भाजपा ने उन्हें चारा घोटाले में फंसाया था, वैसे ही अब तेजस्वी यादव को आईआरसीटी घोटाला मामले में फंसाने का काम हो रहा है. भाजपा समझ रही है कि अगर तेजस्वी यादव को रोका नहीं गया, तो उसे बिहार में सत्ता नहीं मिलेगी.

आईआरसीटी घोटाला मामले में तेजस्वी यादव के वकीलों ने केंद्र सरकार पर विपक्ष के खिलाफ सीबीआई व ईडी का गलत इस्तेमाल का आरोप लगाया. आईआरसीटी घोटाला मामले में सुनवाई के दौरान तेजस्वी यादव के वकीलों ने कहा कि विपक्ष के नेता होने के नाते केंद्र सरकार के गलत कामों का विरोध करना उन का फर्ज है. कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद बिहार के डिप्टी सीएम को फटकारते हुए कहा कि वे सार्वजनिक रूप से बोलते वक्त जिम्मेदाराना बरताव करें और उचित शब्दों का इस्तेमाल करें. आईआरसीटी घोटाला साल 2004 में संप्रग सरकार में लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री रहने के दौरान का है. रेलवे बोर्ड ने उस वक्त रेलवे की कैटरिंग और रेलवे होटलों की सेवा को पूरी तरह निजी क्षेत्र को सौंप दी थी. इस दौरान झारखंड के रांची और ओडिशा के पुरी के बीएनआर होटल के रखरखाव, संचालन और विकास को ले कर जारी टैंडर में अनियमितताएं किए जाने की बातें सामने आई थीं.

यह टैंडर साल 2006 में एक प्राइवेट होटल सुजाता होटल को मिला था. आरोप है कि सुजाता होटल के मालिकों ने इस के बदले लालू प्रसाद यादव के परिवार को पटना में 3 एकड़ जमीन दी थी, जो बेनामी संपत्ति थी. इस मामले में भी लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव समेत 11 लोग आरोपी हैं. सीबीआई ने जुलाई, 2017 में लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव समेत 11 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था. इस के बाद सीबीआई की एक विशेष अदालत ने जुलाई, 2018 में लालू प्रसाद यादव और अन्य के खिलाफ दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लिया था. मामा का लिया सहारा तेजस्वी यादव को घेरने के लिए भाजपा उन के मामा साधु यादव का प्रयोग भी कर रही है. साधु यादव और उन की पत्नी इंदिरा यादव तेजस्वी का विरोध कर रहे हैं. परिवार का होने के कारण तेजस्वी यादव उन के खिलाफ खुल कर बोलने से बचते हैं.

साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में 75 विधायकों के साथ राजद सब से बड़ी पार्टी बनी थी. उपचुनाव में एक सीट पर जीत मिलने के बाद उस के विधायकों की संख्या 76 हो गई है. दूसरी तरफ भाजपा ने वीआईपी पार्टी के 3 विधायकों को अपने खेमे में शामिल कर लिया था. इस के बाद भाजपा 77 विधायकों के साथ बिहार की पहले नंबर की पार्टी बन गई थी. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के 4 विधायकों के पाला बदलते ही बिहार में राजद के पास विधानसभा में विधायकों की संख्या 80 हो गई है.

आने वाले दिनों में भाजपा और राजद के बीच सीटों को ले कर सांपसीढ़ी का यह खेल चलता रहेगा. लेकिन इस में तेजस्वी यादव भारी न पड़ जाएं, इस के लिए भाजपा उन की मजबूत घेराबंदी कर रही है. साधु यादव और उन की पत्नी इंदिरा यादव इस में सब से बड़ा मोहरा बन रहे हैं. आने वाले दिनो में बिहार में बड़ा उलटफेर हो सकता है, जिस के बाद बिहार में सरकार चलाने के लिए तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार की जरूरत खत्म हो सकती है. राजद के साथ कुल

80 विधायक हैं. कांग्रेस और वाम दल तो पहले से ही महागठबंधन में हैं. इस से संख्या कुलमिला कर 114 है. अगर तेजस्वी यादव कहीं जीतनराम मांझी के 4 विधायक और कुछ निर्दलीय विधायकों को अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब रहे, तो उन के साथ विधायकों की कुल संख्या 121 हो जाएगी, जो नीतीश कुमार के लिए खतरनाक हो जाएगा. आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव सब से बड़े नेता के रूप में उभर रहे हैं. यह भाजपा के लिए खतरा है. वह तेजस्वी यादव में मंडल युग का लालू प्रसाद यादव वाला असर देख रही है.

महाराष्ट्र: संजय राउत जेल से लौटे- अदालत का इंसाफ और नरेंद्र मोदी

अब तो देश के सामने सबकुछ खुला खेल फर्रुखाबादी की तरह साफसाफ है. महाराष्ट्र में शिव सेना नेता संजय राउत की गिरफ्तारी और तकरीबन 100 दिन की जेल और अदालत से रिहाई. सब से बड़ी बात अदालत की टिप्पणी से साफ है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार और अमित शाह का गृह मंत्रालय किस तरह काम कर रहा है. अगर हम लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की बात करें, तो आज का समय एक काले अंधेरे की तरह है और देश की जनता अगर इस का अपने मतदान के माध्यम से रास्ता नहीं निकालेगी, तो आखिर में डंडा देश की आम जनता की पीठ पर ही पड़ने वाला है.

शिव सेना सांसद संजय राउत 100 दिन बिता कर एक विजेता की भूमिका में जेल से आ गए हैं. उन की वापसी पर शिव सेना समर्थकों ने जगहजगह ‘टाइगर इज बैक’, ‘शिव सेना का बाघ आया’ जैसे पोस्टर लगाए और यह संदेश दे दिया है कि चाहे कोई कितना जुल्म कर ले, शिव सेना और संजय राउत झुकने वाले नहीं हैं. दरअसल, शिव सेना नेता संजय राउत को प्रवर्तन निदेशालय ने पात्रा चाल घोटाले में मनी लौंड्रिंग से जुड़े मामले में इस साल जुलाई महीने में गिरफ्तार किया था. जेल से बाहर आने के बाद संजय राउत ने अपने घर के बाहर मीडिया से चर्चा की. उन्होंने कहा कि उन की सेहत ठीक नहीं है. अपनी कलाई की ओर इशारा करते हुए संजय राउत ने कहा, ‘‘3 महीने बाद यह घड़ी पहनी है. यह भी कलाई पर ठीक से नहीं आ रही है.’’

जेल में बिताए दिनों को इस से बेहतर दर्दभरे शब्दों में जाहिर नहीं किया जा सकता. इस से पहले संजय राउत ने बाला साहब ठाकरे की समाधि शिवाजी पार्क पहुंच कर उन्हें नमन किया और यह संदेश दे दिया कि आने वाले समय में उन की दिशा क्या होगी. दूसरी तरफ उन्होंने शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से भी मुलाकात की. इस मौके पर उद्धव ठाकरे ने साफसाफ कहा कि केंद्र की जांच एजेंसियां किसी पालतू की तरह काम कर रही हैं. संजय राउत नजीर बन गए नरेंद्र मोदी और अमित शाह की खुल कर आलोचना करने वाले संजय राउत ने जेल से बाहर आते ही अपने तेवर दिखा दिए और कहा, ‘वे नहीं जानते हैं कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती मुझे गिरफ्तार कर के की है. यह उन के राजनीतिक जीवन की सब से बड़ी गलती साबित होगी.’

दरअसल, आज देश के हर नागरिक के लिए सोचने वाली बात है कि क्या हम तानाशाही की ओर बढ़ रहे हैं? अगर हम महाराष्ट्र की राजनीति पर नजर डालें तो यह साफ है कि जो भी घट रहा है, मानो उस की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी है. उद्धव ठाकरे का शरद पवार और कांग्रेस के साथ हाथ मिला कर सत्तासीन होना केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को रास नहीं आया और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विधायकों को तोड़ दिया गया. यह सच सारे देश ने देखा है और यह लोकतंत्र की हत्या से कम नहीं कहा जा सकता.

मगर एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद महाराष्ट्र की सत्ता और शिव सेना का नाम और निशान खोने वाले उद्धव ठाकरे के लिए यह राहत का सबब है. पहले अंधेरी पूर्व उपचुनाव में जीत और अब संजय राउत की रिहाई ने उन्हें बड़ी राहत दी है. दशहरे की रैली में बड़ी तादाद में लोगों को जुटाने के बाद से ही उद्धव ठाकरे गुट आक्रामक अंदाज में नजर आ रहा है. शायद आज की नरेंद्र मोदी सरकार की विचारधारा यह मानती है कि जो विरोधी हैं, उन्हें खत्म कर दिया जाए. चाहे बिहार हो या फिर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र हो या फिर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड हर प्रदेश में भाजपा आक्रामक है और उस के नेता चाहते हैं कि विरोधी खत्म हो जाएं, मगर वे भूल जाते हैं कि लोकतंत्र की खूबसूरती विपक्ष से ही होती है.

सब से बड़ी बात यह कि भाजपा भी कभी विपक्ष में थी. अगर जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी या कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता चाहते तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी कहां होती, यह शायद अंदाजा लगाया जा सकता है. अब चूंकि संजय राउत जेल से निकल आए हैं, लिहाजा वे चुप तो बैठेंगे नहीं. उन का हर वार नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार पर ज्यादा होगा, ताकि भविष्य की राजनीति में खलबली मची रहे.

नीतीश कुमार: प्रधानमंत्री पद की ‘पदयात्रा’

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने के लिए एक तरह से मानो तलवार खींच ली है. वे लगातार राहुल गांधी से ले कर अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं से मिल रहे हैं. उन की इस भेंटमुलाकात का सिलसिला एक तरह से ‘प्रधानमंत्री पद’ हासिल करने के लिए पदयात्रा के समान है.

नीतीश कुमार के पास 17 साल के मुख्यमंत्री पद का गौरवशाली इतिहास है और देशभर में उन की अलग पहचान भी है. मगर यह भी सच है कि बीच में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर के अपनी छवि और भविष्य पर सवालिया निशान भी लगा लिया है.

इस ‘पदयात्रा’ के पड़ाव यह सच है कि नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग हो कर कांग्रेसी और राष्ट्रीय जनता दल के साथ तालमेल कर के भाजपा को और सब से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को धोखा दिया है.

घटनाक्रम बता रहा है कि आज के सत्तासीन केंद्र के ये नेता विपक्ष और दूसरी पार्टियों को एक तरह से खत्म कर देना चाहते हैं. ऐसे में नीतीश कुमार का एक बड़ा चेहरा देश के सामने आया है और वे लगातार देश के बड़े नेताओं से मिल रहे हैं और सब को एकजुट कर रहे हैं.

मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी यानी माकपा के दफ्तर में पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा से मुलाकात करने के बाद नीतीश कुमार ने पत्रकारों से कहा कि यह समय वाम दलों, कांग्रेस और सभी क्षेत्रीय दलों को एकजुट कर के एक मजबूत विपक्ष बनाने का है.

6 सितंबर, 2022 को नीतीश कुमार अरविंद केजरीवाल से मुलाकात के लिए उन के आवास पर पहुंचे. इस मौके पर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और जनता दल (यू) के नेता संजय झा भी मौजूद थे.

अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर के बताया कि मेरे घर पधारने के लिए नीतीश कुमार का शुक्रिया.

नीतीश कुमार ने उन के साथ देश के कई गंभीर विषयों पर चर्चा की. उन्होंने अपने ट्वीट में बताया कि उन के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, आपरेशन लोटस, खुलेआम विधायकों की खरीदफरोख्त कर चुनी सरकारों को गिराना, भाजपा सरकार में बढ़ता निरंकुश भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई.

वहीं नीतीश कुमार ने कहा कि हमारी कोशिश क्षेत्रीय पार्टियों को एकजुट करने की है. अगर सभी क्षेत्रीय पार्टियां मिल जाएं, तो यह बहुत बड़ी बात होगी और हम मिल कर देश के लिए एक मौडल तैयार करने पर काम कर रहे हैं.

इस से पहले नीतीश कुमार ने कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी से भी मुलाकात की थी और यह संदेश दे दिया कि वे एक ऐसी पदयात्रा पर निकल पड़े हैं, जो आने वाले समय में उन्हें प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा सकती है.

हर पटवारी बेईमान होता है!

हमारे देश के कितने ही गांव, शहर, कसबे, जाति के लोग बेईमान माने जाते हैं. इन लोगों को बारबार जन्मजात बेईमान बताया जाता है. गालियां देते समय इन की जाति, शहर या राज्य का नाम ले कर कहा जाना आम है कि तुम तो वहां के हो, इसलिए बेईमान होगे ही.

भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपने खिलाफ राजनीति में जुड़े हर जने पर ईडी, सीबीआई, पीएमएलए, एनआईए, पुलिस को लगा कर अपना उल्लू तो सीधा कर रही है पर इस चक्कर में खुदको भी गहरा काला पोत रही है. यह सोच हरेक के मन में पक्की होती जा रही है कि जिस के पास सत्ता है, पावर है, कुछ कर सकता है, वह ऊपर की भरपूर कमाई कर रहा है, उस के यहां तो कमरे भरे पड़े हैं.

अगर वह भारतीय जनता पार्टी में है तो उस पर रेड न होने की वजह से जनता उसे शरीफ मान लेगी, यह नामुमकिन है. जब बहुत से मंत्री, मुख्यमंत्री, अफसर, उद्योगपति, ठेकेदार चपेट में आ चुके हों तो कुछ बचे होंगे, यह भी पक्का माना जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी का हर मंत्री भी बेईमान होगा.

कोई ऐसे ही केवल दिल बदलने से वर्षों पुरानी पार्टी से नाता नहीं तोड़ता. उसे मंत्री पद का लालच भी तभी दिया जा सकता है जब वह मंत्री न हो. यहां तो भाजपा दूसरी पार्टी के मंत्रियों को अपने में मिला कर मंत्री बना रही है तो मतलब साफ है कि उन्हें मंत्री बनने के साथसाथ कुछ और मिला होगा. यह वही कुछ और जिसे ढूंढ़ने के अवसर भाजपा सरकार अपने विरोधियों की पार्टी वालों को भेज रही है.

जनमानस में यह तो हमेशा से था कि हरेक पार्टी बेईमान है पर कांग्रेस महाबेईमान है, यह 2014 तक विनोद राय जैसे कंपट्रोलर जनरल ने नकली, झूठी, विश्वासघात करने वाली साजिशों भरी रिपोर्टें दे कर साबित कर दिया था. जिस तरह 2014 में जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने उसे हाथोंहाथ लिया, साबित हो गया कि वह नितांत बेईमानी वाली रिपोर्ट थी और आज जिस तरह वे ऊंचे पद पर बैठे हैं उस से भी साबित है कि इनाम भी मिला.

हमारे देश में शराफत को भाव कभी अच्छा नहीं मिला. धर्म हमेशा कहता रहा कि हर जजमान तो पाप करता ही रहता है और जब तक दानदक्षिणा न दो इस पाप से मुक्ति नहीं मिलेगी. गोदान इसी पाप से मरने के बाद पिंड को यमराज के प्रेतों के जुल्मों से बचाने के लिए किया जाता है. गरुड़ पुराण भरा है उन कष्टों के बखानों से जो यम के दूत देते हैं और उन तरीकों से भी जो दान की वजह से मिलते हैं, पर इस से क्या दान लेने वाला बेईमान नहीं हो जाता?

जो लोग पापी से दान लेते हैं वे पापी के पार्टनर हुए न. अगर 20 नेताओं के यहां रेड पड़ती है, 2-3 के यहां करोड़ों मिलते हैं, 18 के मामले बरसों चलते रहते हैं तो क्या साबित नहीं होता कि सभी नेता चाहे किसी पार्टी के हैं, बेईमान हैं? आज सत्ता में सब से ज्यादा नेता भाजपा के हैं, सब से ज्यादा सरपंच भाजपा के हैं, सब से ज्यादा जिला अध्यक्ष भाजपा के हैं, सब से ज्यादा विधायक भाजपा के हैं, सब से ज्यादा सांसद भाजपा के हैं, सब से ज्यादा मंत्री भाजपा के हैं. वे शराफत के पुतले होंगे जबकि उन के जैसे दूसरी हर पार्टी के विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री काले हैं, यह तो सोचना ही गलत है. भाजपा अपना नुकसान ज्यादा कर रही है. भाजपा हर सुबह बता देती है कि किसी विधायक, मंत्री, सांसद पर भरोसा न करो, उस ने जनता का पैसा खाया होगा.

हर नेता पटवारी की तरह का है क्योंकि यह मान लिया गया है कि हर पटवारी बेईमान होता है.

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