सस्ती या मुफ्त बिजलीपानीपढ़ाईखाने को ले कर प्रधानमंत्री ने रेवड़ी बांटो कल्चर कह कर बदनाम करना शुरू किया है. ये सस्ती चीजें देश के उन गरीबों को मिलती हैं जिन को समाज आज भी इतना कमाने का मौका नहीं दे रहा है कि वे अपने लिए जिंदगी जीने के लिए इन पहली चीजों का इंतजाम कर सकें. भारतीय जनता पार्टी ने चूंकि सरकारों का खजाना खाली कर दिया है और वह बेतहाशा पैसा अमीरों के लिए खर्च कर रही हैचुनावों में ये सस्ती चीजें देने की बात से उसे चिढ़ होने लगी है. भारतीय जनता पार्टी की कल्चर तो यह है कि सस्ता सिर्फ मंदिरों को मिले जो न बिजली का बिल देते हैं चाहे जितनी बिजली खर्च करेंन पानी का बिल देते हैं चाहे कितना बहाएंन नगरनिगम को टैक्स देते हैं चाहे जितना बनाएं. भारतीय जनता पार्टी के लिए सस्ती चीजें पाने वाले असल में पापी हैं जिन्होंने पिछले जन्मों में पुण्य नहीं किएदान नहीं दिया और अब उस की सजा भुगत रहे हैं. हमारे धर्मग्रंथ इन किस्सों से भरे हैं और प्रधानमंत्री व अन्य भाजपा नेताओं के मुंह से ये बातें निकलतीफिसलती रहती हैं.

गरीब जनता को सस्ती बिजलीपानी व खाना असल में अमीरों के फायदे के लिए होता है. जैसे ही एक गरीब घर को सस्ती बिजली व घर में मुफ्त पानी मिलने लगता हैउस की सेहत सुधर जाती हैउस के काम के घंटे बढ़ जाते हैं और वह कम तनख्वाह पर काम करने को तैयार होने लगता है.

दुनिया के कई देशों ने सस्ते घर भी अपने गरीब और मध्यम वर्गों को दिए और वहां वेतन काफी कम हो गए और लोग ज्यादा मेहनत करने लगे क्योंकि उन्हें छत के लिए दरदर नहीं भटकना पड़ता. दिल्लीमुंबईलखनऊ या किसी भी बड़े शहर की गरीब बस्ती को देख लें. वहां लोग घंटों पीने के पानीराशन की दुकानों और यहां तक कि शौच की जगह के लिए बरबाद करते हैं. उन घरों में एक आफत नौकरी होती है तो दूसरी यह कि चूल्हा कैसे जलेगापकेगा कैसेलोग नहाएंगे कैसेपीएंगे क्यादेश के व्यापारकारखानेखेत इतना पैसा नहीं दे पाते कि लोग पूरे दामों में कोई चीज खरीद सकें.

और फिर यह पूरा दाम क्या हैज्यादातर रोजमर्रा की चीजों में दाम असल में टैक्स से भरे होते हैं. हर चीज को बनानेपैदा करने में जितना पैसा लगता है उस का तीनचौथाई तक टैक्स होता है. तरहतरह के टैक्स जीएसटी के बावजूद मौजूद हैं. अगर ईमानदारी से टैक्स दिया जाए तो जीएसटी छोटे से दुकानदार के बड़े होलसेल दुकानदार से सिर पर सामान लाद कर अपनी 10×10 फुट की दुकान पर बेचता है तो उस की मेहनत पर भी टैक्स लग जाता है. वह अगर कोई चीज 100 रुपए में लाता है120 में बेचता है तो 20 रुपए पर टैक्स देना पड़ता है वह भी 12 से 18 फीसदी. गरीब को टैक्स से चूसने वाली सरकार को यह बुरा लग रहा है कि कोई इस गरीब को मुफ्त सामान दे कर उस को टैक्स की मार से फ्री कर रहा है. भारतीय जनता पार्टी के लिए जीएसटी तो जनता से जबरन वसूला गया दानपुण्य है और जो कहे कि यह सामान ही मुफ्त है वह इस दानपुण्य की महान हिंदू संस्कृति पर हमला कर रहा है. उसे रेवड़ी बांटना नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए. हमारे धर्मग्रंथ तो कहते हैं कि रेवड़ी बांटो नहींशूद्र के पास जो भी संपत्ति हो वह राजा जब्त कर ले.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...