खजाने के चक्कर में खोदे जा रहे किले

लेखक- रामकिशोर पंवार

गोंड राजाओं, मुगलों और मराठों के राज के इन किलों में सब से ज्यादा मशहूर खेड़ला राजवंश का किला है, जिस के बारे में पारस पत्थर से जुड़ी हुई कई कहानियां भी सुनाई जाती हैं.

मध्य प्रदेश के बनने से पहले बैतूल सीपी ऐंड बरार स्टेट का हिस्सा था. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा की निशानदेही करती सतपुड़ा की हरीभरी वादियों व महाराष्ट्र के मेलघाट क्षेत्र से लगा सतपुड़ामेलघाट टाइगर का रिजर्व्ड कौरिडोर इस में शामिल है. धारूल की अंबा देवी की पहाडि़यों में मौजूद गुफाओं के राज की खोजबीन व उन को बचाए रखने की आ पड़ी जरूरत ने सब को चौंका दिया है.

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आदिमानव की कला

धारूल की इन पहाडि़यों में अनेक राज दबे होने के बारे में कहा जाता है कि अंबा देवी क्षेत्र में अजंता, एलोरा, भीमबेठिका की तरह पाषाणकालीन आदिमानव द्वारा बनाए गए शैलचित्र, भित्तिचित्र और अजीबोगरीब आकृतियां देखने को मिलती हैं. इस पूरी पहाड़ी में साल 2007 से 2012 में 100 से ज्यादा प्राचीन गुफाओं की खोज की गई. अब तक की खोज में पाया गया है कि 35 गुफाओं में पेड़पौधों के रंगों से अनेक तरह की आकृति बनाई गई हैं.

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर बनी इन गुफाओं पर बाकायदा लघु फिल्में बनी हैं और कई किताबें भी लिखी जा चुकी हैं. बैतूल जिले में इस समय 5 किले होने के सुबूत मिलते हैं. 4 किले पहाड़ी पर बने हैं, जिन में सब से प्राचीन खेड़ला राजवंश का खेड़ला किला है. उस के बाद असीरगढ़, भंवरगढ़, सांवलीगढ़ के किले हैं, जो गवासेन के पास एक पहाड़ी पर मौजूद हैं. खेड़ला किले में 35 परगना शामिल थे.

खेड़ला राज्य की राजधानी वर्तमान महाराष्ट्र का शहर अचलपुर है, जो उस समय राजा ईल-एल के नाम पर एलिजपुर के रूप में पहचाना जाता था. इस राजा के बारे में यहां पर यह किस्सा मशहूर है कि राजा के पास सोने का इतना भंडार था कि वह खेड़ला से एलिजपुर तक सोने की सड़क बनवा सकता था.

खेड़ला राज्य का सोने का भंडार और राजा के पास पारस पत्थर का होना ही खेड़ला राजवंश के खत्म होने की वजह बना. मुगल शासक ने अपने सेनापति रहमान शाह दुल्हा को उसी पारस पत्थर को हासिल करने के लिए हजारों सैनिकों के साथ इस किले पर हमला करने के लिए भेजा था. उस के बाद यह किला मुगलों के कब्जे में आ गया और खेड़ला महमूदाबाद के रूप में अपनी पहचान को सामने लाया. मराठों ने इस किले को मुगलों से छीन कर एक बार फिर यहां पर राजा जैतपाल को राजा बना कर भेजा.

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खेड़ला के राज खजाने की खोज में खेड़ला से एलिजपुर तक बनी सुरंगों को अनेक बार खोदा जा चुका है. पूरा किला बेइंतिहा खुदाई के चलते खंडहर बन चुका है. पारस पत्थर को किले से रावण बाड़ी के तालाब में फेंके जाने की कहानी के बाद हाथियों के पैरों में लोहे की चेन बांध कर उन्हें तालाब के चारों ओर घुमाया गया. आज भी पारस पत्थर की तलाश में तालाब के पानी के सूखते ही उस की खुदाई शुरू हो जाती है.

मुलताई नगर से 8 किलोमीटर दूर गांव शेरगढ़ के पास वर्धा नदी के तट पर शेरगढ़ किला बना हुआ है. यह बैतूल जिले का एकमात्र मैदानी किला है, जिस का वजूद पूरी तरह खत्म होने की कगार पर आ गया है. समय के साथ इस किले की दीवारें ढहने लगी हैं. पूरे किले में झाडि़यां उग आई हैं. यहां पर भी खजाने की खोज में सोने के सिक्कों की अफवाह के चलते चोरों द्वारा की गई जगहजगह खुदाई से किले की बुनियाद को नुकसान हो रहा है.

बेरहम वक्त की मार ने भले ही इस किले को आज खंडहर में बदल दिया हो, पर किले का भीमकाय दरवाजा आज भी आसमान को चुनौतियां देता लगता है. बहुत ही सुंदर क्षेत्र में बने इस किले का मेन दरवाजा व परकोटा पत्थरों को काट कर बनाया गया है.

किले के भीतर पानी की एक बावड़ी भी बनी हुई है, जो ठीकठाक हालात में दिखाई देती है. इस के साथ ही इस की लंबी सुरंग का मुहाना भी दिखाई देता है. माना जाता है कि इस सुरंग का इस्तेमाल बाहर निकलने के लिए भी किया जाता था.

खस्ताहाल होने के बावजूद भी इस किले की बनावट और कुदरती छटा मन को मोह लेती है. एक ही पत्थर को काट कर मेहराब की शक्ल में बनाए गए दरवाजे कारीगरी के बेहतरीन नमूने से रूबरू कराते हैं. हालांकि दीवारें टूटने के बाद ये पत्थरों की बनी चौखट जैसे ही दिखाई देते हैं, पर फिर भी इस की खूबसूरती देखते ही बनती है.

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