सैटेलाइट शंकर: और बेहतर हो सकती थी फिल्म

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः मुराद खेतानी और अश्विन वर्दे

निर्देशकः इरफान कमल

कलाकारः सूरज पंचोली,मेघा आकाश, उपेंद्र लिमये,अनिल के रेजी,पालोमी घोष,राज अर्जुन व अन्य.

अवधिः दो घंटे बीस मिनट

फिल्मकार इरफान कमल फिल्म‘‘सेटेलाइट’’शंकर में भारतीय सेना के एक जवान की जिंदगी की व उसकी प्रेम कथा लेकर आए हैं, जो कि एक बेहतरीन रोमांचक और रोमांटिक फिल्म बन सकती थी, मगर  फिल्मकार ने उसे देशभक्त और हर मुसीबत के समय लोगों की मदद के लिए कूद पड़ने वाले हीरो के रूप में पेश करने के चक्कर में फिल्म को चैपट कर डाला.

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कहानीः

कहानी के केंद्र में केरला निवासी भारतीय सेना का जवान शंकर (सूरज पंचोली) है, जो कि कश्मीर सीमा पर कार्यरत है. उसकी बटालियन से जुड़े लोग उसे सैटेलाइट के नाम से जानते हैं, क्योकि उसके पास बचपन में उसके पिता द्वारा दिया गया एक उपकरण है, जिसकी मदद से वह किसी की भी मिमिक्री करके लोगों का मनोरंजन भी करता रहता है.

वह केरला का रहने वाला है मगर उसे हिंदी सहित कई दूसरे राज्यों की भाषाओं में भी महारत हासिल है. सैटेलाइट शंकर दूसरों की वाजें निकालकर कई बार विषम परिस्थिति को भी अनुकूल बनाकर लोगों के बीच खुशियों की बहार ले आता है.

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सीमा पर गोलीबारी में घायल होने के बाद जब आर्मी अस्पताल के डाक्टर शंकर को आठ दिन अस्पताल में आराम करने की हिदायत देते हैं, तो वह अपने वरिष्ठ से बात कर आठ दिन अस्पताल में बिताने की बजाय अपने घर जाकर अपनी मां की आंख का आपरेशन कराकर वापस आने की आठ दिन की छुट्टी ले लेता है. उसके वरिष्ठ उसे सैनिक की शपथ दिलवाते हैं कि आठवें दिन वह अपने बेसकैंप सुबह मौजूद रहेगा.

जब शंकर अपने शहर पोलाची के लिए रवाना होता है, तो उसकी बटालियन के साथी उसे अपने घरों के लिए संदेश और तोहफे उसके हाथ से भिजवाते हैं. घर जाते हुए ट्रेन में वह अपनी मां के कहने पर नर्स प्रमिला (मेघा आकाश) से बात कर उसे अपने दोस्त श्रीधर से बात करने के लिए कहता है. क्योंकि उसे प्रमिला की तस्वीर पसंद नहीं आयी थी. पर श्रीधर की बातें सुनकर शंकर को अपनी गलती का अहसास होता है. आगे चलकर रास्ते में वह पुनः प्रमिला से बात करते हैं.

कश्मीर से पोलाची जाते समय उसका एक सैनिक की तरह मददगार और निस्वार्थ स्वभाव उसके लिए मुसीबतें खड़ी कर देता है. एक बंगाली बुजुर्ग दंपति को उनकी सही ट्रेन में बैठाने के चक्कर में उसकी अपनी ट्रेन छूट जाती है. अब उसे पठानकोट टैक्सी  से जाकर उसी ट्रेन को पकड़ना है.

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टैक्सी वाला दो हजार रूपए मांगता है. पर उसकी मुलाकात एक विडियो ब्लौगर मीरा (पालोमी घोष) से होती है, जिसके साथ मिलकर वह टैक्सी माफिया का पर्दाफाश करता है. वहां भी उसकी ट्रेन छूट जाती है. वह सड़क के रास्ते चलकर पंजाब में अपने साथी के घर उसका समान पहुंचाता है. वह अपने दोस्त की आवाज में बातें करके उसकी कोमा में जा चुकी मां को होश में लाता है, फिर वह आगरा फोर्ट पहुंचाता है, पर उसे एक बार फिर ट्रेन छोड़नी पड़ती है, क्योंकि वह दुर्घटनाग्रस्त बस में फंसे लोगों को मौत के मुंह से बचाने लग जाता है.

फिर ग्वालियर के नजदीक के एक शहर में अपनी बटालियन के साथी अनवर के घर जाकर भाइयों के आपसी मनमुटाव को दूर करता है. फिर महाराष्ट् में वह टेंपो ड्राइवर को गुंडों से बचाता है. इस समाज सेवा के चक्कर में अब सैटेलाइट शंकर के पास अपने बेस कैंप में पहुंचने में सिर्फ दो दिन बचे हैं. इसलिए अब वह अपनी मां के पास जाने की बजाय वापस लौटना चाहता है. पर एक शहीद महाड़िक की पत्नी के कहने पर मां के पास जाने का मन बना लेता है.

उसी वक्त प्रमिला से उसकी बात होती है. वह अपनी समस्या बताता है. तब मेघा, शंकर को न केवल उसकी मां से मिलने की तरकीब बताती है, बल्कि उसके वापस कश्मीर लौटने का रास्ता भी सुझाती है. मेघा व शंकर की मुलाकात हो जाती है. शंकर, मेघा को दिल दे बैठता है. शंकर अपनी मां से मिलकर, उनकी आंखों का आपरेशन करवाकर किस तरह आर्मी बेस में हाजिर होता है, वह अपने आप में रोचक है.

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निर्देशनः

फिल्मकार इरफान कमल ने यदि थोड़ी सावधानी के साथ इस फिल्म का निर्माण किया होता,तो यह एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. क्योंकि वर्तमान समय में हमारे देश को जिस तरह के नायक की जरुरत है, फिल्म में उसी तरह देश को अखंड करने वाले नायक की कहानी बयां की गयी है. मगर फिल्म की शुरूआत से ही फिल्मकार इशारा कर देते है कि वह विषयवस्तु के साथ गंभीर नहीं है.

पहले दृश्य में गोलीबार के दृश्य को जिस तरह से मजाकिया अंदाज में पेश किया गया,उसे सही नही ठहराया जा सकता. फिल्मकार ने अतिशयोक्ति अलंकार का उपयोग करते हुए एक सैनिक को निजी जीवन में भी नायक बताने के चक्कर में फिल्म का गुड़गोबर कर डाला. फिल्म की पटकथा कई जगह मैलोड्रामैटिक हो गयी है. इंटरवल से पहले फिल्म बेवजह लंबी कर दी गयी है, इसे एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी.

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एक ही फिल्म में आपसी भाईचारा, भ्रष्टाचार को दूर करने सहित तमाम सामाजिक मुद्दे रखकर फिल्म को चूंचूं का मुरब्बा बना दिया गया. इंटरवल के बाद फिल्म कुछ ठीक हो जाती है,जब सैटेलाइट शंकर के रोमांस व सोशल मीडिया द्वारा शंकर की मदद के दृश्य रोचक बने हैं. फिल्मकार ने यदि एक सैनिक की प्रेम कहानी को कुछ ज्यादा तवज्जो दी होती, तो भी फिल्म रोचक बन सकती थी.

वीडियो ब्लागर के किरदार को भी अतशयोक्तिपूर्ण और कई जगह अति बचकाना बना दिया गया है. फिल्म में जितने भी मुद्दे उठाए गए हैं,वह अपना प्रभाव डालने में असफल रहे हैं.  फिल्म की लंबाई हर हाल में कम की जानी चाहिए थी.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है,तो चार साल बाद सूरज पंचोली ने इस फिल्म से वापसी की है. 2015 में वह असफल फिल्म ‘हीरो’ में नजर आए थे. सूरज पंचोली ने एक्शन व नृत्य के दृश्यों में अच्छा काम किया है, मगर संवाद अदायगी सहित इमोशनल दृश्यों के लिए उन्हे अभी और मशक्कत करने की जरुरत है.

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प्रमिला के किरदार में दक्षिण भारत की अदाकारा मेघा आकाश सुंदर व प्यारी लगी हैं.  उनकी संवाद अदायगी आपको अपना बना लेती है. सूरज पंचोली और मेघ आका की औन स्क्रीन केमिस्ट्री बहुत क्यूट है. वीडियो ब्लागर के किरदार में पालोमी घोष ने ठीक ठाक अभिनय किया है,मगर कई जगह उन्होने ओवर एक्टिंग की है.

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