Hindi Kahani: शाप बना वरदान – क्या नालायक निकला ठाकुर निहाल सिंह

Hindi Kahani: ठाकुर निहाल सिंह सुजानपुर नामक गांव के बड़े ठाकुर का बेटा था, जो विदेश से पढ़ कर लौटा था. वह कोई बड़ीबड़ी मूंछों और लाललाल आंखों वाला मुस्टंडा ठाकुर नहीं था, बल्कि दरमियाने शरीर का एक 30 साल का नौजवान था.

गांव वापस आ कर ठाकुर निहाल सिंह ने बहुत जल्दी ही बड़े ठाकुर का कामधाम समझ लिया था. बड़े ठाकुर की आमदनी का जरीया खेतों में उगने वाली फसलें और चीनी बनाने वाला एक क्रशर था.

क्रशर पर काम करने वाली मजदूर औरतों से निहाल सिंह बड़े अदब से पेश आता था और उन की सुखसुविधाओं का भी ध्यान रखता था.

निहाल सिंह के खास गुरगे दिलावर ने दबी जबान से मजदूरों पर इस मेहरबानी की वजह पूछी, तो बदले में निहाल सिंह सिर्फ मुसकरा कर रह गया था.

‘‘कुछ भी हो, ये जो यहां काम करने वाली औरतें हैं न… इन के साथ सैक्स करने में बहुत मजा आएगा,’’ निहाल सिंह ने क्रशर पर काम करती हुई एक मजदूरन के खुले पेट और उस की छाती को घूरते हुए कहा. उस की आंखों में हवस छाई हुई थी.

‘‘क्या ठाकुर साहब, ये तो सब नीच जाति की औरतें हैं… आप भला इन के साथ क्यों खुद को गंदा करेंगे?’’ दिलावर ने कहा.

निहाल सिंह ने बताया कि वे लोग पैदाइशी ठाकुर हैं और दलित का शारीरिक शोषण करना उन का पुश्तैनी काम है. वैसे भी इन दलित औरतों का शरीर मेहनत कर के कसावट से भर जाता है और जब इन के साथ जबरदस्ती की जाती है न, तब बड़ा मजा आता है.

आज दिलावर ठाकुर निहाल सिंह का यह नया रूप देख रहा था. विदेश जा कर पढ़ाई कर लेने के बाद भी निहाल सिंह गांव की दलित औरतों में सैक्स तलाश रहा था.

निहाल सिंह जब विदेश में था, तब भी वह धंधा करने वालियों पर पैसे उड़ाने में बिलकुल भी हिचकता नहीं था. उस का रंगीन स्वभाव जान कर बड़े ठाकुर ने भी उसे समझाया कि आज समय बदल गया है, गांव के लोग इतने सीधेसाधे नहीं रह गए हैं कि उन्हें आसानी से बेवकूफ बनाया जा सके.

आज गांव में भी मोबाइल फोन पहुंच गया है, जिस के चलते जागरूकता आ गई है, इसलिए बहुत जरूरी है कि गांव की जनता को दबा कर नहीं, बल्कि उन्हें अपनेपन के दिखावे से जीता जाए.

बड़े ठाकुर की बात निहाल सिंह को समझ में आ गई थी, इसलिए उस ने इस गांव के लोगों के दिलों में अपनी जगह बनानी शुरू कर दी और इस काम के लिए सोशल मीडिया को हथियार बनाया.

ठाकुर निहाल सिंह गांव के बड़ेबुजुर्गों को जरूरत की चीजें दान में देता और सोशल मीडिया पर अपनी दानवीरता के फोटो डाल कर प्रचारप्रसार करता था.

सर्दियों के दिन थे. निहाल सिंह अपनी गाड़ी में बैठ कर शहर की ओर जा रहा था. इतने में उस की नजर गांव की एक लड़की छबीली पर पड़ी, जो अपनी बकरी के पीछेपीछे दौड़ी जा रही थी.

छबीली की छाती पर कोई भी दुपट्टा नहीं था. उस का कुरता भी उस के सीने से चिपक गया था, जिस से उस की गोलाइयां साफ दिख रही थीं.

निहाल सिंह की गंदी नजर छबीली की छाती पर अटक कर रह गई. उस की आंखों में हवस के लाल डोरे तैरने लगे.

दिलावर निहाल सिंह की मंशा को समझ गया और बोला, ‘हुजूर, माल पसंद आ गया हो तो बताएं…’

निहाल सिंह दिलावर की तरफ देख कर कुटिलता से मुसकराने लगा. फिर क्या था, गाड़ी चलाते हुए दिलावर ने छबीली की तरफ बढ़ा दी और उस के पास पहुंचते ही गाड़ी रोक कर दिलावर ने छबीली को गाड़ी के अंदर घसीट लिया.

छबीली घबरा गई थी, पर बलशाली दिलावर के आगे सिर्फ हाथपैर पटक कर ही रह गई. दिलावर ने उसे कार की पिछली सीट पर पटक दिया, जहां पर निहाल सिंह उसे ललचाई नजरों से घूर रहा था.

निहाल सिंह छबीली के भीगे बदन को अपने होंठों से चाटने लगा और उस के कपड़ों को फाड़ने की कोशिश करने लगा. छबीली ने बचने की बहुत कोशिश की, पर ताकतवर निहाल सिंह उस के शरीर में प्रवेश कर चुका था.

छबीली की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे, पर निहाल सिंह तो अपनी हवस मिटाने में लगा हुआ था और उस का पालतू दिलावर सिंह आगे सीट पर बैठा हुआ गाड़ी चला रहा था और बीचबीच में नजर उठा कर सामने लगे आईने में रेप का नजारा देख भी लेता था.

छबीली की इज्जत लूटी जा चुकी थी. लस्तपस्त हालत में निहाल सिंह ने छबीली को गाड़ी से नीचे फेंक दिया.

छबीली के शरीर से खून रिस रहा था. थोड़ी देर बाद वह उठी और गांव के बाहर उफनती नदी में कूद कर उस ने अपनी जान दे दी.

छबीली की खुदकुशी कुछ दिन तक आसपास के गांवों में चर्चा की बात बनी रही. निहाल सिंह पहले तो इस खबर से थोड़ा घबराया, पर फिर उस ने इस मौके का फायदा उठाया और गांव में यह बात फैला दी कि छबीली की मौत एक हादसा थी, जो उफनती नदी में डूब कर हुई.

इस के बाद ठाकुर निहाल सिंह ने अपने पास से 30,000 रुपए पीडि़त परिवार को दिए और सोशल मीडिया पर इस के फोटो भी अपलोड कर दिए.

अब तो निहाल सिंह तानाशाह हो चुका था. गांव में किसी की भी इज्जत पर हाथ डालना उस के लिए बाएं हाथ का खेल बन गया था.

एक दिन की बात है. ठाकुर निहाल सिंह शहर जाने की तैयारी कर रहा था कि तभी उस से मिलने 45 साल की रमा नाम की एक औरत आई. उस की 20 साल की बहन भी साथ में थी.

ठाकुर ने उन दोनों का हाथ जोड़ कर स्वागत किया और ड्राइंगरूम में बिठा कर आने की वजह पूछी, तो रमा ने बताया कि वह कमजोर और बेरोजगार औरतों को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाती है. इस के लिए वह उन्हें अचारपापड़ बनाने की ट्रेनिंग भी देती है और उस के बाद अगर 8-10 औरतें मिल कर इस काम को उद्योग की शक्ल देना चाहें, तो रमा उन्हें सरकार से लोन भी दिलवाने में मदद करती है.

निहाल सिंह के कान तो रमा की बातें सुन रहे थे, पर उस की आंखें लगातार रमा के जिस्म पर घूम रही थीं और बीचबीच में वह उस की कमसिन बहन की जवानी को भी तोल रहा था.

‘‘हमारे गांव में तो सभी औरतें अपने घरों में ठीक से रह रही हैं,’’ निहाल सिंह ने रूखापन दिखाते हुए कहा, तो रमा ने अपने बारे में थोड़ा और बताया कि उस ने इस से पहले शहर में भी जिस्मफरोशी का धंधा करने वाली औरतों को वह गंदा काम छोड़ कर मसाला और अचार बनाना सिखा कर उन्हें अच्छी तरह से जीना सिखाया है.

निहाल सिंह के कान ‘जिस्मफरोशी’ शब्द सुन कर खड़े हो गए और वह सोचने लगा कि यह रमा तो काम की औरत है. उस ने रमा को अपने गांव की औरतों को काम सिखाने की रजामंदी दे दी और उन के रहने का इंतजाम अपनी हवेली के गैस्ट रूम में करा दिया.

अगले दिन से ही रमा ने गांव की औरतों से मिलना और उन्हें काम के बारे में बताना शुरू किया. बाहर से आई रमा के समझाने का अंदाज गांव की औरतों को बहुत पसंद आया और वे उन्हें सहयोग करने के लिए राजी हो गईं.

अब उन औरतों को अपनी ‘रमा दीदी’ द्वारा अचार बनाना सीखना था और उस बने प्रोडक्ट को बाजार में ले जा कर बेचने का काम रमा और उन के स्टाफ का था.

रमा काम के साथसाथ उन औरतों को यह भी बताती थीं कि कैसे उन्होंने शहर में जिस्मफरोशी करने वाली औरतों को कोठे से निकाल कर एक नई जिंदगी दी और उन्हें यह काम सिखा कर अपना खर्चा चलाना सिखाया.

‘‘पर बेचारी गीता के लिए मैं ज्यादा कुछ नहीं कर पाई…’’ एक दिन सब औरतों के सामने अचानक रमा के मुंह से निकल गया.

औरतों के पूछने पर रमा ने बताया कि गीता भी एक देह धंधे वाली लड़की थी. महज 20 साल की उम्र में ही उसे इस घटिया धंधे में धकेल दिया गया और फिर उसे एड्स हो गया. अब इलाज तो हो रहा है, पर पैसों की कमी के चलते वह पूरी तरह से ठीक नहीं हो पा रही है. यह सब बताते हुए रमा की आंखें छलक आई थीं.

निहाल सिंह को इस अचार और पापड़ के काम के चलने या न चलने से कोई मतलब नहीं था, बल्कि उस की हवस भरी नजर तो रमा की छोटी बहन रीति पर थी.

रीति में अभी अल्हड़पन था और उस की उम्र के बाकी लड़केलड़कियों की तरह उसे भी अपना मोबाइल फोन बहुत प्यारा था. वह गांव में मोबाइल के कैमरे से फोटो और वीडियो बनाया करती थी.

एक दिन निहाल सिंह रीति के पास पहुंचा और मोबाइल फोन से वीडियो बनाने का राज पूछा, तो रीति ने बताया, ‘‘मैं अच्छी लोकेशन की रील्स बनाती हूं, जिन्हें बाद में अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर अपलोड करती हूं.’’

‘‘सोशल मीडिया तो मैं भी इस्तेमाल करता हूं और मैं यह भी जानता हूं कि ये रील्स बनाने के लिए तुम्हें अच्छी लोकेशन चाहिए,’’ निहाल सिंह ने रीति के लिए जाल बिछाना शुरू कर दिया था और रीति उस में फंस भी गई थी.

अगले दिन रमा जब औरतों को अचारपापड़ बनाने की क्लास दे रही थी, तब निहाल सिंह रीति को लोकेशन दिखाने के बहाने अपनी गाड़ी में शहर की ओर जाने वाली रोड पर ले चला. रीति भी रमा को बताए बिना ही उस के साथ चल दी थी.

जैसे ही गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी, निहाल सिंह ने रीति की छाती पर हाथ रख दिया. रीति चौंक गई और उस ने दूर होना चाहा, पर निहाल सिंह ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया और फिर उस के कपड़े तन से जुदा कर दिए, गाड़ी की पिछली सीट पर ही रीति का रेप कर दिया.

रीति किसी तरह रमा के पास पहुंची और अपने साथ हुए जुल्म के बारे में सबकुछ कह सुनाया और यह भी कहा कि रमा उसे जहर दे कर मार दे, क्योंकि अब वह जिंदा नहीं रहना चाहती.

रमा ने रीति को हिम्मत बंधाई और कांपते हाथों से मोबाइल फोन से पुलिस का नंबर डायल कर दिया, पर तुरंत ही उसे काट भी दिया. वजह, रमा पूरे गांव में निहाल सिंह का दबदबा अच्छी तरह देख चुकी थी और फिर वह अच्छी तरह जानती भी थी कि पैसे वाले द्वारा रेप किए जाने के बाद ज्यादा कुछ होता नहीं है, पीडि़ता से बेकार की पूछताछ और मीडिया में आने वाली खबरों के अलावा रमा ने रीति को समझाया कि मरने की जरूरत उस को नहीं, बल्कि निहाल सिंह को है, क्योंकि गलत तो निहाल सिंह ने किया है.

रमा ने अपने मोबाइल फोन से गीता का नंबर डायल कर दिया और बोली, ‘‘तू हमेशा कहती थी न कि तू मेरे किसी भी काम कैसे आ सकती है, तो आज समय आ गया है तुझे मेरे काम आने का…’’ फिर रमा ने गीता को अपने इस गांव आने तक की कहानी बताने के साथसाथ उसे यहां आने का न्योता भी दे दिया.

एक दिन निहाल सिंह और उस की गाड़ी का ड्राइवर दिलावर शराब पी रहे थे कि तभी दिलावर ने उस से शिकायत भरे लहजे में कहा, ‘‘मालिक, हर बार आप ही गाड़ी में अकेले मजे मार लेते हैं, जबकि मैं मन मसोस कर रह जाता हूं.’’

‘‘चल ठीक है, इस बार माल फंसने दे, फिर मैं तुझे भी चलती गाड़ी में मजे लेने का मौका दे दूंगा.’’

अगले दिन रमा के साथ एक लड़की निहाल सिंह की कोठी में दाखिल हुई. उस लड़की की उम्र

25 साल के आसपास थी. सफेद टीशर्ट और नीली जींस में उस के शरीर के सभी उभार और भी सैक्सी लग रहे थे.

निहाल सिंह ने रमा के साथ एक नई लड़की को देखा तो फौरन आगे पहुंच कर उन की आवभगत में लग गया.

रमा ने उस लड़की का नाम सुहानी बताया और यह भी बताया कि सुहानी को उस की कंपनी ने रमा की मदद के लिए भेजा है.

सुहानी बला की खूबसूरत लग रही थी. निहाल सिंह मन ही मन अपने अगले शिकार के तौर पर सुहानी को देख रहा था.

सुहानी हवेली में आतेजाते निहाल सिंह को नजर भर देखती तो वह मचल उठता. अब उस से रुका नहीं जा रहा था. उस ने दिलावर से भी अपनी बेचैनी साझा की, तो दिलावर भी मुसकराने लगा.

‘‘पास वाले गांव में ही हमारे पुरखों की हवेली है. आप दोनों चाहें तो हमारे साथ घूमने चल सकती हैं,’’ निहाल सिंह ने रमा और सुहानी को कहा.

रमा ने तबीयत खराब होने का बहाना बनाया और सिर्फ सुहानी को अपने साथ ले जाने को कहा.

सुहानी का भरा जिस्म देख कर दिलावर भी खुशी से फूला नहीं समा रहा था, क्योंकि वह जानता था कि आज तो निहाल सिंह के बाद उसे भी जवानी लूटने का मौका मिलेगा.

गाड़ी चल दी थी और ठाकुर निहाल सिंह ने सुहानी को कोल्ड ड्रिंक औफर की, तो सुहानी ने मुसकरा कर उसे बच्चों की ड्रिंक बता कर पीने से मना कर दिया.

सुहानी का ऐसा खुलापन निहाल सिंह को बहुत अच्छा लगा, तो उस ने अपने बैग में बंद शराब की बोतल निकाल ली और चलती गाड़ी में ही पीनेपिलाने का दौर शुरू हो गया.

निहाल सिंह ने सुहानी को भी शराब औफर की, जिसे उस ने मुसकरा कर स्वीकार कर लिया.

तकरीबन आधे घंटे की ड्राइविंग के बाद ही निहाल सिंह ने सुहानी की जांघों को सहलाना और उस की छाती को मसलना शुरू कर दिया.

सुहानी को अच्छी तरह पता था कि उसे आसानी से हाथ नहीं आना है और कितने नाजनखरे दिखाने हैं. उस के ये नखरे निहाल सिंह की हवस को और बढ़ा रहे थे. दिलावर के सब्र की भी हद हो चली थी.

और आखिरकार चलती गाड़ी में ही हवस का खेल शुरू हो गया, पर इस बार निहाल सिंह को कुछ नहीं करना पड़ रहा था, बल्कि सारा काम खुद सुहानी ही कर रही थी. वह निहाल सिंह के ऊपर थी.

‘‘वाह… अंगरेजी स्टाइल भी अच्छा लगता है मुझे,’’ निहाल सिंह ने कहा. वैसे भी उस पर शराब का नशा हावी हो रहा था.

कुछ देर में ही निहाल सिंह निढाल हो गया, तो दिलावर ने अपनी दावेदारी पेश कर दी. सुहानी मुसकरा उठी थी. दिलावर ने भी सुहानी के हुस्न से अपनी प्यास बुझानी शुरू कर दी थी.

अगले दिन सुबह ठाकुर निहाल सिंह के मोबाइल पर रमा का एक मैसेज आया, ‘एक वीडियो भेज रही हूं. इसे देखते ही तेरे सारे पुरखों की अंतडि़यां भी फट जाएंगी.’

निहाल सिंह को कुछ समझ नहीं आया. उस ने मोबाइल फोन पर रिसीव हुआ मैसेज देखना शुरू किया. यह उस की गाड़ी में बना हुआ वीडियो था, जिस में वह नंगी हालत में कार की सीट पर लेटा हुआ था और उस के ऊपर सुहानी सवार थी.

वीडियो देखते ही निहाल सिंह का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पंहुचा, ‘‘तेरी इतनी हिम्मत कि तू मेरा वीडियो बनाए… रुक, अभी आ कर तुझे बताता हूं…’’

रमा ने ठंडे स्वर में उसे बताया कि इस सब से कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि वह अपनी बहन रीति और सुहानी के साथ गांव छोड़ चुकी है और अगर वह 10 लाख रुपए उस के खाते में जमा नहीं करेगा, तो यह वीडियो बहुत जल्दी ही सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया जाएगा.

निहाल सिंह को इस वीडियो से बचने का कोई रास्ता समझ नहीं आया, इसलिए उस ने पैसे दे कर जान छुड़ाने की बात ही ठीक समझ और रमा द्वारा दिए गए खाते के नंबर पर पैसे ट्रांसफर कर दिए और रमा को ताकीद की कि अब वह ईमानदारी से वीडियो को डिलीट कर दे.

‘‘ठीक है, वीडियो तो मैं डिलीट कर दूंगी, पर अभी तेरे लिए एक सरप्राइज और है, जिसे तू ताउम्र याद रखेगा,’’ रमा ने मुसकराते हुए कहा, तो निहाल सिंह बेचैन हो उठा.

रमा ने भी अपना खाता चैक किया. 10 लाख रुपए आ चुके थे. उस ने मुसकराते हुए ठाकुर निहाल सिंह को बताया, ‘‘तू कमजोर लड़कियों के साथ रेप कर के शैतान बन चुका था और आगे भी न जाने कितनी मासूमों के साथ गलत काम करेगा, इसीलिए तुझे सजा देना जरूरी था.

‘‘तू ने गाड़ी में सुहानी नाम की जिस खूबसूरत बला के साथ मजे लिए थे, उस का असली नाम गीता है, जो पहले देह धंधा करती थी और अब उसे भयंकर बीमारी एड्स है.’’

रमा की बात सुन कर ठाकुर निहाल सिंह निढाल हो गया. पास खड़े दिलावर ने भी रमा की कही बात सुन ली थी. उस के माथे पर भी पसीना चुहचुहा गया.

अब रमा इन 10 लाख रुपयों से गीता का इलाज कराएगी. गीता और रीति दोनों रमा के गले लग गईं.

बेशक गीता को कोई ग्राहक एड्स नामक जानलेवा बीमारी दे कर गया था, जो एक शाप है, पर रमा की थोड़ी से समझदारी ने रीति का बदला ले लिया और गीता का यह शाप भी वरदान में बदल गया. Hindi Kahani

Story In Hindi: शरणार्थी – इंसानियत बनी हैवानियत

Story in Hindi: वह हांफते हुए जैसे ही खुले दरवाजे में घुसी कि तुरंत दरवाजा बंद कर लिया. अपने ड्राइंगरूम में अविनाश और उन का बेटा किशन इस तरह एक अनजान लड़की को देख कर सन्न रह गए. अविनाश गुस्से से बोले, ‘‘ऐ लड़की, कौन है तू? इस तरह हमारे घर में क्यों घुस आई है?’’ ‘‘बताती हूं साहब, सब बताती हूं. अभी मुझे यहां शरण दे दो,’’ वह हांफते हुए बोली, ‘‘वह गुंडा फिर मुझे मेरी सौतेली मां के पास ले जाएगा. मैं वहां नहीं जाना चाहती हूं.’’ ‘‘गुंडा… कौन गुंडा…? और तुम सौतेली मां के पास क्यों नहीं जाना चाहती हो?’’ अविनाश ने जब सख्ती से पूछा, तब वह लड़की बोली, ‘‘मेरी सौतेली मां मुझ से देह धंधा कराना चाहती है. उदय प्रकाश एक गुंडे के साथ मुझे कोठे पर बेचने जा रहा था, मगर मैं उस से पीछा छुड़ा कर भाग आई हूं.’’

‘‘तू झूठ तो नहीं बोल रही है?’’

‘‘नहीं साहब, मैं झूठ नहीं बोल रही हूं. सच कह रही हूं,’’ वह लड़की इतना डरी हुई थी कि बारबार बंद दरवाजे की तरफ देख रही थी.

अविनाश ने पूछा, ‘‘ठीक है, पर तेरा नाम क्या है?’’

‘‘मीना है साहब,’’ वह लड़की बोली.

अविनाश ने कहा, ‘‘घबराओ मत मीना. मैं तुम्हें नहीं जानता, फिर भी तुम्हें शरण दे रहा हूं.’’

‘‘शुक्रिया साहब,’’ मीना के मुंह से निकल गया.

‘‘एक बात बताओ…’’ अविनाश कुछ सोच कर बोले, ‘‘तुम्हारी मां तुम से धंधा क्यों कराना चाहती है?’’

मीना ने कहा, ‘‘जन्म देते ही मेरी मां गुजर गई थीं. पिता दूसरी शादी नहीं करना चाहते थे, मगर रिश्तेदारों ने जबरदस्ती उन की शादी करा दी.

‘‘मगर शादी होते ही पिता एक हादसे में गुजर गए. मेरी सौतेली मां विधवा हो गई. तब से ही रिश्तेदार मेरी सौतेली मां पर आरोप लगाने लगे कि वह पिता को खा गई. तब से मेरी सौतेली मां अपना सारा गुस्सा मुझ पर उतारने लगी.

‘‘इस तरह तानेउलाहने सुन कर मैं ने बचपन से कब जवानी में कदम रख दिए, पता ही नहीं चला. मेरी सौतेली मां को चाहने वाले उदय प्रकाश ने उस के कान भर दिए कि मेरी शादी करने के बजाय किसी कोठे पर बिठा दे, क्योंकि उस के लिए वह कमाऊ जो थी.

‘‘मां का चहेता उदय प्रकाश मुझे कोठे पर बिठाने जा रहा था. मैं उस की आंखों में धूल झोंक कर भाग गई और आप का मकान खुला मिला, इसी में घुस गई.’’

अविनाश ने पूछा, ‘‘कहां रहती हो?’’

‘‘शहर की झुग्गी बस्ती में.’’

‘‘तुम अगर मां के पास जाना चाहती हो, तो मैं अभी भिजवा सकता हूं.’’

‘‘मत लो उस का नाम…’’ मीना जरा गुस्से से बोली.

‘‘फिर कहां जाओगी?’’ अविनाश ने पूछा.

‘‘साहब, दुनिया बहुत बड़ी है, मैं कहीं भी चली जाऊंगी?’’

‘‘तुम इस भेड़िए समाज में जिंदा रह सकोगी.’’

‘‘फिर क्या करूं साहब?’’ पलभर सोच कर मीना बोली, ‘‘साहब, एक बात कहूं?’’

‘‘कहो?’’

‘‘कुछ दिनों तक आप मुझे अपने यहां नहीं रख सकते हैं?’’ मीना ने जब यह सवाल उठाया, तब अविनाश सोचते रहे. वे कोई जवाब नहीं दे पाए.

मीना ही बोली, ‘‘क्या सोच रहे हैं आप? मैं वैसी लड़की नहीं हूं, जैसी आप सोच रहे हैं.’’

‘‘तुम्हारे कहने से मैं कैसे यकीन कर लूं?’’ अविनाश बोले, ‘‘और फिर तुम्हारी मां का वह आदमी ढूंढ़ता हुआ यहां आ जाएगा, तब मैं क्या करूंगा?’’

‘‘आप उसे भगा देना. इतनी ही आप से विनती है,’’ यह कहते समय मीना की सांस फूल गई थी.

मीना आगे कुछ कहती, तभी दरवाजे के जोर से खटखटाने की आवाज आई. कमरे में तीनों ही चुप हो गए. इस वक्त कौन हो सकता है?

मीना डरते हुए बोली, ‘‘बाबूजी, वही गुंडा होगा. मैं नहीं जाऊंगी उस के साथ.’’

‘‘मत जाना. मैं जा कर देखता हूं.’’

‘‘वही होगा बाबूजी. मेरी सौतेली मां का चहेता. आप मत खोलो दरवाजा,’’ डरते हुए मीना बोली.

एक बार फिर जोर से दरवाजा पीटने की आवाज आई.

अविनाश बोले, ‘‘मीना, तुम भीतर जाओ. मैं दरवाजा खोलता हूं.’’

मीना भीतर चली गई. अविनाश ने दरवाजा खोला. एक गुंडेटाइप आदमी ने उसे देख कर रोबीली आवाज में कहा, ‘‘उस मीना को बाहर भेजो.’’

‘‘कौन मीना?’’ गुस्से से अविनाश बोले.

‘‘जो तुम्हारे घर में घुसी है, मैं उस मीना की बात कर रहा हूं…’’ वह आदमी आंखें दिखाते हुए बोला, ‘‘निकालते हो कि नहीं… वरना मैं अंदर जा कर उसे ले आऊंगा.’’

‘‘बिना वजह गले क्यों पड़ रहे हो भाई? जब मैं कह रहा हूं कि मेरे यहां कोई लड़की नहीं आई है,’’ अविनाश तैश में बोले.

‘‘झूठ मत बोलो साहब. मैं ने अपनी आंखों से देखा है उसे आप के घर में घुसते हुए. आप मुझ से झूठ बोल रहे हैं. मेरे हवाले करो उसे.’’

‘‘अजीब आदमी हो… जब मैं ने कह दिया कि कोई लड़की नहीं आई है, तब भी मुझ पर इलजाम लगा रहे हो? जाते हो कि पुलिस को बुलाऊं.’’

‘‘मेरी आंखें कभी धोखा नहीं खा सकतीं. मैं ने मीना को इस घर में घुसते हुए देखा है. मैं उसे लिए बिना नहीं जाऊंगा…’’ अपनी बात पर कायम रहते हुए उस आदमी ने कहा.

अविनाश बोले, ‘‘मेरे घर में आ कर मुझ पर ही तुम आधी रात को दादागीरी कर रहे हो?’’

‘‘साहब, मैं आप का लिहाज कर रहा हूं और आप से सीधी तरह से कह रहा हूं, फिर भी आप समझ नहीं रहे हैं,’’ एक बार फिर वह आदमी बोला.

‘‘कोई भी लड़की मेरे घर में नहीं घुसी है,’’ एक बार फिर इनकार करते हुए अविनाश उस आदमी से बोले.

‘‘लगता है, अब तो मुझे भीतर ही घुसना पड़ेगा,’’ उस आदमी ने खुली चुनौती देते हुए कहा.

तब एक पल के लिए अविनाश ने सोचा कि मीना कौन है, वे नहीं जानते हैं, मगर उस की बात सुन कर उन्हें उस पर दया आ गई. फिर ऐसी खूबसूरत लड़की को वे कोठे पर भिजवाना भी नहीं चाहते थे.

वह आदमी गुस्से से बोला, ‘‘आखिरी बार कह रहा हूं कि मीना को मेरे हवाले कर दो या मैं भीतर जाऊं?’’

‘‘भाई, तुम्हें यकीन न हो, तो भीतर जा कर देख लो,’’ कह कर अविनाश ने भीतर जाने की इजाजत दे दी. वह आदमी तुरंत भीतर चला गया.

किशन पास आ कर अविनाश से बोला, ‘‘यह क्या किया बाबूजी, एक अनजान आदमी को घर के भीतर क्यों घुसने दिया?’’

‘‘ताकि वह मीना को ले जाए,’’ छोटा सा जवाब दे कर अविनाश बोले, ‘‘और यह बला टल जाए.’’

‘‘तो फिर इतना नाटक करने की क्या जरूरत थी. उसे सीधेसीधे ही सौंप देते,’’ किशन ने कहा, ‘‘आप ने झूठ बोला, यह उसे पता चल जाएगा.’’

‘‘मगर, मुझे मीना को बचाना था. मैं उसे कोठे पर नहीं भेजना चाहता था, इसलिए मैं इनकार करता रहा.’’

‘‘अगर मीना खुद जाना चाहेगी, तब आप उसे कैसे रोक सकेंगे?’’ अभी किशन यह बात कह रहा था कि तभी वह आदमी आ कर बोला, ‘‘आप सही कहते हैं. मीना मुझे अंदर नहीं मिली.’’

‘‘अब तो हो गई तसल्ली तुम्हें?’’ अविनाश खुश हो कर बोले.

वह आदमी बिना कुछ बोले बाहर निकल गया.

अविनाश ने दरवाजा बंद कर लिया और हैरान हो कर किशन से बोले, ‘‘इस आदमी को मीना क्यों नहीं मिली, जबकि वह अंदर ही छिपी थी?’’

‘‘हां बाबूजी, मैं अगर अलमारी में नहीं छिपती, तो यह गुंडा मुझे कोठे पर ले जाता. आप ने मुझे बचा लिया. आप का यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी,’’ बाहर निकलते हुए मीना बोली.

‘‘हां बेटी, चाहता तो मैं भी उस को पुलिस के हवाले करा सकता था, मगर तुम्हारे लिए मैं ने पुलिस को नहीं बुलाया,’’ समझते हुए अविनाश बोले, ‘‘अब तुम्हारा इरादा क्या है?’’

‘‘किस बारे में बाबूजी?’’

‘‘अब इतनी रात को तुम कहां जाओगी?’’

‘‘आप मुझे कुछ दिनों तक अपने यहां शरणार्थी बन कर रहने दो.’’

‘‘मैं तुम को नहीं रख सकता मीना.’’

‘‘क्यों बाबूजी, अभी तो आप ने कहा था.’’

‘‘वह मेरी भूल थी.’’

‘‘तो मुझे आप एक रात के लिए अपने यहां रख लीजिए. सुबह मैं खुद चली जाऊंगी,’’ मीना बोली.

‘‘मगर, कहां जाओगी?’’

‘‘पता नहीं.’’

‘‘नहीं बाबूजी, इसे अभी निकाल दो,’’ किशन विरोध जताते हुए बोला.

‘‘किशन, मजबूर लड़की की मदद करना हमारा फर्ज है.’’

‘‘वह तो ठीक है, पर कहीं इसी इनसानियत में हैवानियत न छिपी हो बाबूजी.’’

‘‘आप आपस में लड़ो मत. मैं तो एक रात के लिए शरणार्थी बन कर रहना चाहती थी. मगर आप लोगों की इच्छा नहीं है, तो…’’ कह कर मीना चलने लगी.

‘‘रुको मीना,’’ अविनाश ने उसे रोकते हुए कहा. मीना वहीं रुक गई.

अविनाश बोले, ‘‘तुम कौन हो, मैं नहीं जानता, मगर एक अनजान लड़की को घर में रखना खतरे से खाली नहीं है. और यह खतरा मैं मोल नहीं ले सकता. तुम जो कह रही हो, उस पर मैं कैसे यकीन कर लूं?’’

‘‘आप को कैसे यकीन दिलाऊं,’’ निराश हो कर मीना बोली, ‘‘मैं उस सौतेली मां के पास भी नहीं जाना चाहती.’’

‘‘जब तुम सौतेली मां के पास नहीं जाना चाहती हो, तो फिर कहां जाओगी?’’

‘‘नहीं जानती. मैं रहने के लिए एक रात मांग रही थी, मगर आप को एतराज है. आप का एतराज भी जायज है. आप मुझे जानते नहीं. ठीक है, मैं चलती हूं.’’

अविनाश उसे रोकते हुए बोले, ‘‘रुको, तुम कोई भी हो, मगर एक पीड़ित लड़की हो. मैं तुम्हारे लिए जुआ खेल रहा हूं. तुम यहां रह सकती हो, मगर कल सुबह चली जाना.’’

‘‘ठीक है बाबूजी,’’ कहते हुए मीना के चेहरे पर मुसकान फैल गई… ‘‘आप ने डूबते को तिनके का सहारा दिया है.’’

‘‘मगर, सुबह तुम कहां जाओगी?’’ अविनाश ने फिर पूछा.

‘‘सुबह मौसी के यहां उज्जैन चली जाऊंगी?’’

अविनाश ने यकीन कर लिया और बोले, ‘‘तुम मेरे कमरे में सो जाना.’’

‘‘आप कहां साएंगे बाबूजी?’’ मीना ने पूछा.

‘‘मैं यहां सोफे पर सो जाऊंगा,’’ अविनाश ने अपना फैसला सुना दिया और आगे बोले, ‘‘जाओ किशन, इसे मेरे कमरे में छोड़ आओ.’’

काफी रात हो गई थी. अविनाश और किशन को जल्दी नींद आ गई. सुबह जब देर से नींद खुली. मीना नहीं थी. सामान बिखरा हुआ था. अलमारियां खुली हुई थीं. उन में रखे गहनेनकदी सब साफ हो चुके थे.

अविनाश और किशन यह देख कर हैरान रह गए. उम्रभर की कमाई मीना ले गई. उन का अनजान लड़की पर किया गया भरोसा उन्हें बरबाद कर गया. जो आदमी रात को आया था, वह उसी गैंग का एक सदस्य था, तभी तो वह मीना को नहीं ले गया. चोरी करने का जो तरीका उन्होंने अपनाया, उस तरीके पर कोई यकीन नहीं करेगा.

मीना ने जो कुछ कहा था, वह झूठ था. वह चोर गैंग की सदस्य थी. शरणार्थी बन कर अच्छा चूना लगा गई. Story In Hindi

Best Hindi Kahani: टिकट चोर – महेश क्यों ट्रेन में बेटिकट चढ़ा

Best Hindi Kahani: काफी देर सोचने के बाद महेश ने फैसला किया कि उसे बिना टिकट खरीदे ही रेल में बैठ जाना चाहिए, बाद में जोकुछ होगा देखा जाएगा, क्योंकि रेल कुछ ही देर में प्लेटफार्म पर आने वाली है. महेश रेल में बिना टिकट के बैठना नहीं चाहता था. जब वह घर से चला था, तब उस की जेब में 2 हजार के 2 कड़क नोट थे, जिन्हें वह कल ही बैंक से लाया था. घर से निकलते समय सौसौ के 2 नोट जरूर जेब में रख लिए थे कि 2 हजार के नोट को कोई खुला नहीं करेगा. जैसे ही महेश घर से बाहर निकला कि सड़क पर उस का दोस्त दीनानाथ मिल गया, जो उस से बोला था, ‘कहां जा रहे हो महेश?’

महेश ने कहा था, ‘उदयपुर.’

दीनानाथ बोला था, ‘जरा 2 सौ रुपए दे दे.’

‘क्यों भला?’ महेश ने चौंकते हुए सवाल किया था.

‘अरे, कपड़े बदलते समय पैसे उसी में रह गए…’ अपनी मजबूरी बताते हुए दीनानाथ बोला था, ‘अब घर जाऊंगा, तो देर हो जाएगी. मिठाई और नमकीन खरीदना है. थोड़ी देर में मेहमान आ रहे हैं.’

‘मगर, मेरे पास तो 2 सौ रुपए ही हैं. मुझे भी खुले पैसे चाहिए और बाकी 2 हजार के नोट हैं,’ महेश ने भी मजबूरी बता दी थी.

‘देख, रेलवे वाले खुले पैसे कर देंगे. ला, जल्दी कर,’ दीनानाथ ने ऐसे कहा, जैसे वह अपना कर्ज मांग रहा है.

महेश ने सोचा, ‘अगर इसे 2 सौ रुपए दे दिए, तो पैसे रहते हुए भी मेरी जेब खाली रहेगी. अगर टिकट बनाने वाले ने खुले पैसे मांग लिए, तब तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी. कोई दुकानदार भी कम पैसे का सामान लेने पर नहीं तोड़ेगा.’

दीनानाथ दबाव बनाते हुए बोला था, ‘क्या सोच रहे हो? मत सोचो भाई, मेरी मदद करो.’

‘मगर, टिकट बाबू मेरी मदद नहीं करेगा,’ महेश ने कहा, पर न चाहते हुए भी उस का मन पिघल गया और जेब से निकाल कर उस की हथेली पर 2 सौ रुपए धर दिए.

दीनानाथ तो धन्यवाद दे कर चला गया.

जब टिकट खिड़की पर महेश का नंबर आया, तो उस ने 2 हजार का नोट पकड़ाया.

टिकट बाबू बोला, ‘खुले पैसे लाओ.’

महेश ने कहा कि खुले पैसे नहीं हैं, पर वह खुले पैसों के लिए अड़ा रहा. उस की एक न सुनी.

इसी बीच गाड़ी का समय हो चुका था. खुले पैसे न होने के चलते महेश को टिकट नहीं मिला, इसलिए वह प्लेटफार्म पर आ गया.

प्लेटफार्म पर बैठ कर महेश ने काफी विचार किया कि उदयपुर जाए या वापस घर लौट जाए. उस का मन बिना टिकट के रेल में जाने की इजाजत नहीं दे रहा था, फिर मानो कह रहा था कि चला जा, जो होगा देखा जाएगा. अगर टिकट चैकर नहीं आया, तो उदयपुर तक मुफ्त में चला जाएगा.

इंदौरउदयपुर ऐक्सप्रैस रेल आउटर पर आ चुकी थी. धीरेधीरे प्लेटफार्म की ओर बढ़ रही थी. महेश ने मन में सोचा कि बिना टिकट नहीं चढ़ना चाहिए, मगर जाना भी जरूरी है. वहां वह एक नजदीकी रिश्तेदार की शादी में जा रहा है. अगर वह नहीं जाएगा, तो संबंधों में दरार आ जाएगी.

जैसे ही इंजन ने सीटी बजाई, महेश यह सोच कर फौरन रेल में चढ़ गया कि जब ओखली में सिर दे ही दिया, तो मूसल से क्या डरना?

रेल अब चल पड़ी. महेश उचित जगह देख कर बैठ गया. 6 घंटे का सफर बिना टिकट के काटना था. एक डर उस के भीतर समाया हुआ था. ऐसे हालात में टिकट चैकर जरूर आता है.

भारतीय रेल में यों तो न जाने कितने मुसाफिर बेटिकट सफर करते हैं. आज वह भी उन में शामिल है. रास्ते में अगर वह पकड़ा गया, तो उस की कितनी किरकिरी होगी.

जो मुसाफिर महेश के आसपास बैठे हुए थे, वे सब उदयपुर जा रहे थे. उन की बातें धर्म और राजनीति से निकल कर नोटबंदी पर चल रही थीं. नोटबंदी को ले कर सब के अपनेअपने मत थे. इस पर कोई विरोधी था, तो कोई पक्ष में भी था. मगर उन में विरोध करने वाले ज्यादा थे.

सब अपनेअपने तर्क दे कर अपने को हीरो साबित करने पर तुले हुए थे. मगर इन बातों में उस का मन नहीं लग रहा था. एकएक पल उस के लिए घंटेभर का लग रहा था. उस के पास टिकट नहीं है, इस डर से उस का सफर मुश्किल लग रहा था.

नोटबंदी के मुद्दे पर सभी मुसाफिर इस बात से सहमत जरूर थे कि नोटबंदी के चलते बचत खातों से हफ्तेभर के लिए 24 हजार रुपए निकालने की छूट दे रखी है, मगर यह समस्या उन लोगों की है, जिन्हें पैसों की जरूरत है.

महेश की तो अपनी ही अलग समस्या थी. गाड़ी में वह बैठ तो गया, मगर टिकट चैकर का भूत उस की आंखों के सामने घूम रहा था. अगर उसे इन लोगों के सामने पकड़ लिया, तो वह नंगा हो जाएगा. उस का समय काटे नहीं कट रहा था.

फिर उन लोगों की बात रेलवे के ऊपर हो गई. एक आदमी बोला, ‘‘आजादी के बाद रेलवे ने बहुत तरक्की की है. रेलों का जाल बिछा दिया है.’’

दूसरा आदमी समर्थन करते हुए बोला, ‘‘हां, रेल व्यवस्था अब आधुनिक तकनीक पर हो गई है. इक्कादुक्का हादसा छोड़ कर सारी रेल व्यवस्था चाकचौबंद है.’’

‘‘हां, यह बात तो है. काम भी खूब हो रहा है.’’

‘‘इस के बावजूद किराया सस्ता है.’’

‘‘हां, बसों के मुकाबले आधे से भी कम है.’’

‘‘फिर भी रेलों में लोग मुफ्त में चलते हैं.’’

‘‘मुफ्त चल कर ऐसे लोग रेलवे का नुकसान कर रहे हैं.’’

‘‘नुकसान तो कर रहे हैं. ऐसे लोग समझते हैं कि क्यों टिकट खरीदें, जैसे रेल उन के बाप की है.’’

‘‘हां, सो तो है. जब टिकट चैकर पकड़ लेता है, तो लेदे कर मामला रफादफा कर लेते हैं.’’

‘‘टिकट चैकर की यही ऊपरी आमदनी का जरीया है.’’

‘‘इस रेल में भी बिना टिकट के लोग जरूर बैठे हुए मिलेंगे.’’

‘हां, मिलेंगे,’ कईर् लोगों ने इस बात का समर्थन किया.

महेश को लगा कि ये सारी बातें उसे ही इशारा कर के कही जा रही हैं. वह बिना टिकट लिए जरूर बैठ गया, मगर भीतर से उस का चोर मन चिल्ला कर कह रहा है कि बिना टिकट ले कर रेल में बैठ कर उस ने रेलवे की चोरी की है. सरकार का नुकसान किया है.

रेल अब भी अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी. मगर रेल की रफ्तार से तेज महेश के विचार दौड़ रहे थे. उसे लग रहा था कि रेल अब भी धीमी रफ्तार से चल रही है. उस का समय काटे नहीं कट रहा था. भीतरी मन कह रहा था कि उदयपुर तक कोई टिकट चैकर न आए.

अभी रेल चित्तौड़गढ़ स्टेशन से चली थी. वही हो गया, जिस का डर था. टिकट चैकर आ रहा था. महेश के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. अब वह भी इन लोगों के सामने नंगा हो जाएगा. सब मिल कर उस की खिल्ली उड़ाएंगे, मगर उस के पास तो पैसे थे. टिकट खिड़की बाबू ने खुले पैसे न होने के चलते टिकट नहीं दिया था. इस में उस का क्या कुसूर? मगर उस की बात पर कौन यकीन करेगा? सारा कुसूर उस पर मढ़ कर उसे टिकट चोर साबित कर देंगे और इस डब्बे में बैठे हुए लोग उस का मजाक उड़ाएंगे.

टिकट चैकर ने पास आ कर टिकट मांगी. उस का हाथ जेब में गया. उस ने 2 हजार का नोट आगे बढ़ा दिया.

टिकट चैकर गुस्से से बाला, ‘मैं ने टिकट मांगा है, पैसे नहीं.’’

‘‘मुझे 2 हजार के नोट के चलते टिकट नहीं मिला. कहा कि खुले पैसे दीजिए. आप अपना जुर्माना वसूल कर के उदयपुर का टिकट काट दीजिए,’’ कह कर महेश ने अपना गुनाह कबूल कर लिया.

मगर टिकट चैकर कहां मानने वाला था. वह उसी गुस्से से बोला, ‘‘सब टिकट चोर पकड़े जाने के बाद यही बोलते हैं… निकालो साढ़े 5 सौ रुपए खुले.’’

‘‘खुले पैसे होते तो मैं टिकट लेकर नहीं बैठता,’’ एक बार फिर महेश आग्रह कर के बोला, ‘‘टिकट के लिए

मैं उस बाबू के सामने गिड़गिड़ाया, मगर उसे खुले पैसे चाहिए थे. मेरा उदयपुर जाना जरूरी था, इसलिए बिना टिकट लिए बैठ गया. आप मेरी मजबूरी क्यों नहीं समझते हैं.’’

‘‘आप मेरी मजबूरी को भी क्यों नहीं समझते हैं?’’ टिकट चैकर बोला, ‘‘हर कोई 2 हजार का नोट पकड़ाता रहा, तो मैं कहां से लाऊंगा खुले पैसे. अगर आप नहीं दे सकते हो, तो अगले स्टेशन पर उतर जाना,’’ कह कर टिकट चैकर आगे बढ़ने लगा, तभी पास बैठे एक मुसाफिर ने कहा, ‘‘रुकिए.’’

उस मुसाफिर ने महेश से 2 हजार का नोट ले कर सौसौ के 20 नोट गिन कर दे दिए.

उस टिकट चैकर ने जुर्माना सहित टिकट काट कर दे दिया.

टिकट चैकर तो आगे बढ़ गया, मगर उन लोगों को नोटबंदी पर चर्चा का मुद्दा मिल गया.

अब महेश के भीतर का डर खत्म हो चुका था. उस के पास टिकट था. उसे अब कोई टिकट चोर नहीं कहेगा. उस ने उस मुसाफिर को धन्यवाद दिया कि उस ने खुले पैसे दे कर उस की मदद की. रेल अब भी अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी.

वह सरकार की मनमानी की वजह से टिकट चोर बन जाता. गनीमत है कि कुछ लोग सरकार और प्रधानमंत्री से ज्यादा समझदार थे और इस बेमतलब की आंधी में अपनी मुसीबतों की फिक्र करे बिना ही दूसरों की मदद करने वाले थे. Best Hindi Kahani

Romantic Story In Hindi: दलदल – सूर्या की ब्लाइंड डेट

Romantic Story In Hindi: सूर्या ने परफ्यूम की बोतल को ही तकरीबन खाली कर दिया. अगर वह किसी लड़की से मिलने जा रहा हो, तब तो कहने ही क्या. उसे ब्लाइंड डेट का रिवाज बेहद भाता है. आजकल कितनी ही औनलाइन साइटें हैं, जो इस तरह की डेट सैट करने में काफी मदद कर देती हैं.

सूर्या आज पहली बार ब्लाइंड डेट पर नहीं जा रहा है. हां, लेकिन आज की डेट का नाम उसे बहुत लुभा रहा है… चेरी. होटल के बेसमैंट में रैस्टोरैंट था. एक कोने की टेबल पहले ही रिजर्व थी. एक लड़की वहां पहले से ही बैठी थी.

‘‘माफ कीजिए चेरी, मुझे देर हो गई क्या? या फिर आप को मुझ से भी ज्यादा जल्दी थी?’’ तिरछी मुसकान लिए सूर्या फ्लर्ट करने में माहिर था.

‘‘नहीं, मैं ही कुछ जल्दी आ गई. वह नया फ्लाईओवर खुल गया है न, सो आने में समय ही नहीं लगा,’’ चेरी भी बातचीत करने लगी.

शाम का रंग बढ़ने लगा और अपना परिचय देने के बाद वे दोनों एकदूसरे की पसंदनापसंद पर बात करने लगे.

सूर्या एक प्राइवेट हवाईजहाज कंपनी में पायलट था और चेरी एक मैनेजमैंट इंस्टीट्यूट में बिजनैस मैनेजमैंट पढ़ाती थी.

‘‘तुम्हारा इतना लजीज नाम किस ने रखा वैसे, चेरी मेरा पसंदीदा फल है. देखते ही जी चाहता है कि गप से मुंह में रख लूं,’’ सूर्या अपनी आदत के मुताबिक फ्लर्ट किए जा हा था.

चेरी भी शरमाने के बजाय आग में घी डाल रही थी. वह बोली, ‘‘अपने मन को ज्यादा नहीं तरसाना चाहिए. लेकिन यहां सब के सामने नहीं. कहो तो होटल में चलते हैं. वहां जितना जी चाहे, उतनी ‘चेरी’ खा लेना.’’

सूर्या फटी आंखों से चेरी को ताकता रह गया, फिर आननफानन उठा और बोला, ‘‘तो चलो.’’

दोनों होटल में गए. सूर्या रिसैप्शन पर जाने लगा, तो चेरी ने हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया और बोली, ‘‘मेरे नाम पर एक कमरा बुक है.’’

‘‘ओह, वैरी फास्ट,’’ जुमला कस कर सूर्या चेरी के पीछेपीछे हो लिया.

अब वे दोनों चेरी के कमरे में थे.

‘‘तुम बैठो, मैं हाथमुंह धो कर आई,’’ कहते हुए चेरी बाथरूम में चली गई.

सूर्या आया तो था सिर्फ एक दोस्ती भरी गपशप के लिए, लेकिन उस की अचानक लौटरी लग गई. लड़की खुद न्योता देते हुए उसे अपने कमरे तक ले आई थी.

सूर्या ने कमरे की खिड़की पर परदे डाल दिए और बत्तियां बंद कर दीं. अब कमरा हलकी पीली रोशनी से जगमगा रहा था.

तभी बाथरूम का दरवाजा खुला. चेरी एक छोटी सी लाल पोशाक में खड़ी इतराने लगी. सूर्या ने बांहें पसार दीं. चेरी मटकते हुए उन बांहों में समा गई. दोनों धप से बिस्तर पर गिरे.

सूर्या चेरी को बेतहाशा चूमने लगा. उस के हाथ चेरी के बदन पर दौड़ने लगे.

चेरी सूर्या की कमीज उतारने लगी. कुछ ही देर में सूर्या की कमीज और पैंट कमरे की कुरसी पर पड़े थे.

अब सूर्या की बारी थी. उस ने चेरी की पोशाक की जिप पर अपनी उंगली फिराई ही थी कि कमरे का दरवाजा खड़का.

उन दोनों के बिना खोले ही दरवाजा खुला और पुलिस की वरदी में एक आदमी सामने खड़ा था.

यह देख सूर्या हैरान रह गया. उस ने चेरी की ओर देखा. वह शांति से बिस्तर पर बैठी रही.

उस पुलिस वाले ने सूर्या के गाल पर एक तमाचा जड़ पर दिया. सूर्या का चेहरा झन्ना उठा.

‘‘हर जगह को बाजार समझ रखा है क्या? अच्छे घरों के लोगों का यह हाल है. बताओ, पढ़ेलिखे होते हुए भी…’’ कहते हुए वह पुलिस वाला कमरे की छानबीन करने लगा.

‘‘नहीं सर, आप गलत समझ रहे हैं. हम दोनों तो फ्रैंड हैं. वह तो बस यों ही थोड़ा भावनाओं में बह गए थे.

‘‘सौरी सर, गलती हो गई. आइंदा ऐसा नहीं होगा,’’ सूर्या बिना सांस लिए कहने लगा. वह इस मामले को रफादफा करना चाह रहा था.

पुलिस वाले ने चेरी के बालों को पकड़ कर उस का चेहरा ऊपर किया और अपना फोन निकाल कर वीडियो बनाने लगा, ‘‘कहां से पकड़ लाया इस छम्मकछल्लो को लड़की तो कम उम्र की लग रही है या…?’’ फिर उस ने अपने मोबाइल फोन का कैमरा सूर्या की ओर घुमा दिया.

‘‘अरे सर, क्या कर रहे हैं आप? मेरी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी. बदनामी होगी सो अलग,’’ सूर्या उस पुलिस वाले के हाथपैर जोड़ने लगा.

‘‘यह बात ठीक कही तू ने. जो होना था, हो लिया. अब तेरी नौकरी छीन कर मुझे क्या मिलेगा. देख भाई, तू ने अपने मजे ले लिए, अब मुझे भी कुछ मिल जाता तो…’’ पुलिस वाला लेनदेन पर उतर आया.

‘‘बोलिए सर, क्या कर सकता हूं मैं आप के लिए?’’ कहते हुए सूर्या ने अपना पर्स निकाला और उस में जितने रुपए थे, सब उस को थमाने लगा.

‘‘यह क्या चिल्लर दे रहा है मुझे? एटीएम कार्ड थमा,’’ पुलिस वाले की नीयत का खोट अब सामने था.

सूर्या सकपका गया. एटीएम या क्रेडिट कार्ड का मतलब था बेहिसाब नुकसान. पर मरता क्या ना करता.

चेरी को वहीं छोड़ वे दोनों पास के एटीएम चल दिए. वहां पुलिस वाले ने एटीएम से 25 हजार रुपए निकाल कर अपनी जेब में रख लिए, फिर वह अपने रास्ते चलता बना.

सूर्या ने चैन की सांस ली. वह फौरन होटल के उसी कमरे में जा पहुंचा. कमरे में घुसा तो पाया कि चेरी कपड़े बदल कर कुरसी पर अपना सिर पकड़ कर बैठी थी.

चेरी के चेहरे की हवाइयां उड़ी देख सूर्या बोला, ‘‘गया वह पुलिस वाला. आई एम सो सौरी. मेरी वजह से आप… चलिए, जो हुआ उस पर तो अब कोई जोर नहीं. अब यहां से निकलना ही बेहतर होगा. चलिए, मैं आप को छोड़ देता हूं. बताएं, कहां जाना है आप को?’’

‘‘आप जाइए यहां से. मैं… मैं…’’ चेरी अभी भी घबराई हुई?थी.

‘‘घबराइए मत. मैं आप की मरजी के खिलाफ कुछ नहीं करूंगा. मुझ पर यकीन कीजिए. मैं तो बस आप को यहां से निकालना चाहता हूं.’’

‘‘मैं खुद चली जाऊंगी. आप जाइए यहां से, प्लीज,’’ चेरी के कहने पर सूर्या ने वहां से चले जाना ही ठीक समझा.

घर पहुंच कर सूर्या ने चैन की सांस ली. उस ने एक गिलास ठंडा पानी लिया और चुपचाप अपने बिस्तर पर निढाल पड़ गया. दिमाग थक चुका था और इसी वजह से शरीर भी थकावट महसूस कर रहा था. कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला.

जब आंख खुली, तब रात के 3 बज रहे थे. पेट में भूख के मारे गुड़गुड़ाहट हो रही थी. रसोई में जा कर फ्रिज से ब्रैड निकाल वह उस पर मक्खन लगाने लगा.

‘उफ, कहां फंस गया था आज. कम पैसों में ही जान छूट गई, वरना वह पुलिस वाला…’ मन अब भी उसी परेशानी में उलझा था. पर दिमाग खुद ही सारी घटना दोहरा कर सुलझाने की कोशिश में था.

चेरी के नाम पर उस होटल में कमरा रिजर्व क्यों था और उस के कपड़े भी थे उस कमरे में. उस ने तो बताया था कि वह किसी मैनेजमैंट इंस्टीट्यूट में टीचर है, तो फिर होटल में क्यों रहती है?

पुलिस वाले ने उसे इतनी आसानी से कैसे और क्यों छोड़ दिया और वह भी केवल यही जोर दे रही थी कि सूर्या वहां से चला जाए. तो क्या चेरी और उस पुलिस वाले की कोई मिलीभगत थी? कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सब एक जाल हो पैसा ऐंठने के लिए?

‘खैर, जान बची और लाखों पाए. अब ब्लाइंड डेटिंग के बारे में सोचूंगा भी नहीं,’ यह सोच कर सूर्या एक बार फिर अपने रोजाना के कामों में मसरूफ हो गया था. पर अगले 2 दिन बाद ही सूर्या को उस पुलिस वाले का फिर फोन आया.

इस बार वह अपना मुंह बंद रखने के लिए 10 लाख रुपए की मांग कर रहा?था और कह रहा था, ‘और 2 लाख उस बेचारी लड़की के लिए भी लेते आना. उस बेचारी को तो तू ने कुछ भी न दिया.’

अब सूर्या को 2 दिन के अंदर ही 12 लाख रुपए का इंतजाम करना था. इंतजाम हो जाने पर सूर्या ने तथाकथित जगह पर एक थैले में रुपए छोड़ दिए.

कुछ दिन बाद एक सुबह सूर्या अपने काम के लिए हवाईअड्डे के लिए निकल रहा था कि टैक्सी की खिड़की से उसे चेरी दिखाई दी. उस के घर के पास के बाजार में कुछ खरीद रही थी.

सूर्या ने फौरन टैक्सी वहीं छोड़ी और चेरी का पीछा करने लगा. एक सुनसान सी गली में पहुंच कर उस ने आवाज दी, ‘‘चेरी.’’

चेरी ने अचकचा कर मुड़ कर देखा, तो उस के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं, ‘‘तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?’’

‘‘नहीं चेरी, मैं तो यहीं पास में ही रहता हूं. तुम्हें यहां देखा तो… खैर, क्या उस पुलिस वाले से तुम्हारा कोई सरोकार है? कौन हो तुम? क्या है तुम्हारी सचाई?’’ सूर्या के अंदर उबलते सवाल बाहर उफनने लगे.

चेरी चुप रही. सूर्या ने उस का रास्ता रोक लिया. गली में किसी और को न पा कर चेरी अचानक रो पड़ी, ‘‘तुम्हारी तरह मैं भी इस दलदल का शिकार हूं…’’

चेरी आगे कुछ बताती, इस से पहले गली में कुछ लोग आते दिखाई दिए. सूर्या ने जल्दी से अपना फोन नंबर चेरी को बताया और वहां से चलता बना.

शाम ढलने से पहले चेरी का फोन आ गया. उस का असली नाम दीप्ति था.

एक गरीब घर की दीप्ति बड़े शहरों की चकाचौंध में अंधी हो कर एक लड़के के साथ अपने कसबे से मुंबई भाग आई थी. उस समय वह महज 15 साल की थी.

फिर जो होता है, वही हुआ. उस लड़के ने दीप्ति को बेच दिया. कई हाथों में से घूमती हुई वह आखिरकार इस पुलिस वाले के हत्थे चढ़ गई.

जिस्म के बाजार में अनगिनत बार बिकी दीप्ति का तनमन सब बदल चुका था, यहां तक कि नाम भी.

वक्त की ठोकरें खाखा कर वह एक सख्त जान बन गई थी. पुलिस वाला उसे अपने लिए, अपने दोस्तोंयारों के लिए, अपना काम निकालने के लिए और अनजान लड़कों को बेवकूफ बना कर लूटने के लिए इस्तेमाल करता था. लेकिन सूर्या को लूट कर दीप्ति को बिलकुल अच्छा नहीं लगा था.

‘‘क्यों?’’ सूर्या के सवाल पर वह बोली, ‘‘क्योंकि तुम ने मेरे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की. और फिर तुम खुद धोखा खाने के बाद भी मुझे मेरे घर छोड़ने के लिए होटल आए.’’

‘‘तो क्या तुम मेरी मदद कर सकती हो?’’ सूर्या ने पूछा.

सूर्या इस दलदल से निकलना चाहता था, वरना वह पुलिस वाला जबतब उसे ब्लैकमेल करता रहेगा.

दीप्ति राजी हो गई. शायद उसे सूर्या से प्यार हो गया था. तन के साथ मन का घायल होना जरूरी नहीं. किसी ने पहली बार उसे एक लड़की के तौर पर इज्जत दी थी.

अगले कुछ दिनों में उस पुलिस वाले का फोन ही आ गया, ‘ओ भाई, जरा पैसे की सख्त जरूरत है. फटाफट 8 लाख रुपए का इंतजाम कर. जगह और दिन मैं फोन कर के बता दूंगा.’’

पैसे देने के लिए इस बार जो जगह और दिन बताया गया, उस की जानकारी सूर्या ने पूरी हिम्मत कर पुलिस स्टेशन जा कर एफआईआर में दर्ज कराई.

पुलिस ने उस की पूरी मदद की. उन का अपना साथी ऐसी हरकत कर रहा है, इस बात को जान कर उन्होंने ऐसी गंदी मछली को तालाब से निकाल फेंकने की योजना बनाई.

तथाकथित जगह और समय पर न केवल सूर्या पहुंचा, बल्कि पुलिस वाले भी पहुंचे और उस भ्रष्ट पुलिस वाले को धरदबोचा गया. पूछताछ करने पर दीप्ति के ठिकाने का भी पता चला और उसे नारी निकेतन भिजवा दिया गया.

दीप्ति की तृष्णा, पुलिस वाले के लालच और सूर्या की कामुकता ने उन तीनों को परेशानी के कीचड़ में उतार दिया था. आखिर में सचाई ही काम आई. Romantic Story In Hindi

Story In Hindi: धंधा बना लिया – लक्ष्मी ने ललचाया चंपा को

Story In Hindi: ‘‘सुनती हो चंपा?’’

‘‘क्या बात है? दारू पीने के लिए पैसे चाहिए?’’ चंपा ने जब यह बात कही, तब विनोद हैरानी से उस का मुंह ताकता रह गया.

विनोद को इस तरह ताकते देख चंपा फिर बोली, ‘‘इस तरह क्या देख रहा है? मु झे पहले कभी नहीं देखा क्या?’’

‘‘मतलब, तुम से बात करना भी गुनाह है. मैं कोई भी बात करूं, तो तुम्हें लगता है कि मैं दारू के लिए ही पैसा मांगता हूं.’’

‘‘हां, तू ने अपना बरताव ही ऐसा कर लिया है. बोल, क्या कहना चाहता है?’’

‘‘लक्ष्मी होटल में धंधा करते हुए पकड़ी गई.’’

‘‘हां, मु झे मालूम है. एक दिन यही होना था. वही क्या, पूरी 10 औरतें पकड़ी गई हैं. क्या करें, आजकल औरतों ने अपने खर्चे पूरे करने के लिए यह धंधा बना लिया है. लक्ष्मी खूब बनठन कर रहती थी. वह धंधा करती है, यह बात तो मुझे पहले से मालूम थी.’’

‘‘तु झे मालूम थी?’’ विनोद हैरानी से बोला.

‘‘हां, बल्कि वह तो मुझ से भी यह धंधा करवाना चाहती थी.’’

‘‘तुम ने क्या जवाब दिया?’’

‘‘उस के मुंह पर थूक दिया,’’ गुस्से से चंपा बोली.

‘‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया?’’

‘‘मतलब, तुम भी चाहते थे कि मैं भी उस के साथ धंधा करूं?’’

‘‘बहुत से मरद अपनी जोरू से यह धंधा करा रहे हैं. जितनी भी पकड़ी गईं, उन में से ज्यादातर को धंधेवाली बनाने में उन के मरदों का ही हाथ था,’’ विनोद बोला.

‘‘वे सब निकम्मे मरद थे, जो अपनी जोरू की कमाई खाते हैं. आग लगे ऐसी औरतों को…’’ कह कर चंपा झोंपड़ी से बाहर निकल गई.

चंपा जा जरूर रही थी, मगर उस का मन कहीं और भटका हुआ था.

चंपा घरों में बरतन मांजने का काम करती थी. जिन घरों में वह काम करती है, वहां से उसे बंधाबंधाया पैसा मिल जाता था. इस से वह अपनी गृहस्थी चला रही थी.

चंपा की 4 बेटियां और एक बेटा है. उस का मरद निठल्ला है. मरजी होती है, उस दिन वह मजदूरी करता है, वरना बस्ती के आवारा मर्दों के साथ ताश खेलता रहता है. उसे शराब पीने के लिए पैसा देना पड़ता है.

चंपा उसे कितनी बार कह चुकी है कि तू दारू नहीं जहर पी रहा है. मगर उस की बात को वह एक कान से सुनता है, दूसरे कान से निकाल देता है. उस की चमड़ी इतनी मोटी हो गई है कि चंपा की कड़वी बातों का उस पर कोई असर नहीं पड़ता है.

जो 10 औरतें रैस्टहाउस के पकड़ी गई थीं, उन में से लक्ष्मी चंपा की बस्ती के मांगीलाल की जोरू है.

पुरानी बात है. एक दिन चंपा काम पर जा रही थी. कुछ देरी होने के चलते उस के पैर तेजी से चल रहे थे. तभी सामने से लक्ष्मी आ गई थी. वह बोली थी, ‘कहां जा रही हो?’

‘काम पर,’ चंपा ने कहा था.

‘कौन सा काम करती हो?’ लक्ष्मी ने ताना सा मारते हुए ऊपर से नीचे तक उसे घूरा था.

तब चंपा भी लापरवाही से बोली थी, ‘5-7 घरों में बरतन मांजने का काम करती हूं.’

‘महीने में कितना कमा लेती हो?’ जब लक्ष्मी ने अगला सवाल पूछा, तो चंपा सोच में पड़ गई थी. उस ने लापरवाही से जवाब दिया था, ‘यही कोई 4-5 हजार रुपए महीना.’

‘बस इतने से…’ लक्ष्मी ने हैरान हो कर कहा था.

‘तू सम झ रही है कि घरों में बरतन मांज कर 10-20 हजार रुपए महीना कमा लूंगी क्या?’ चंपा थोड़ी नाराजगी से बोली थी.

‘कभी देर से पहुंचती होगी, तब बातें भी सुननी पड़ती होंगी,’ जब लक्ष्मी ने यह सवाल पूछा, तब चंपा भीतर ही भीतर तिलमिला उठी थी. वह गुस्से से बोली थी, ‘जब तू सब जानती है, तब क्यों पूछ रही है?’

‘‘तू तो नाराज हो गई चंपा…’’ लक्ष्मी नरम पड़ते हुए बोली थी, ‘इतने कम पैसे में तेरा गुजारा चल जाता है?’

‘चल तो नहीं पाता है, मगर चलाना पड़ता है,’ चंपा ने जब यह बात कही, तब वह भीतर ही भीतर खुश हो गई थी.

‘अगर मेरा कहना मानेगी तो…’ लक्ष्मी ने इतना कहा, तो चंपा ने पूछा था, ‘मतलब?’

‘तू मालामाल हो सकती है,’ लक्ष्मी ने जब यह बात कही, तब चंपा बोली थी, ‘कैसे?’

‘अरे, औरत के पास ऐसी चीज है कि उसे कहीं हाथपैर जोड़ने की जरूरत नहीं पड़े. बस, थोड़ी मर्यादा तोड़नी पड़ेगी,’ चंपा की जवानी को ऊपर से नीचे देख कर जब लक्ष्मी मुसकराई, तो चंपा ने पूछा था, ‘क्या कहना चाहती है.’

‘नहीं सम झी मेरा इशारा…’ फिर लक्ष्मी ने बात को और साफ करते हुए कहा था, ‘अभी तेरे पास जवानी है. इन मर्दों से मनचाहा पैसा हड़प सकती है. ये मरद तो जवानी के भूखे होते हैं.’

‘तू मुझ से धंधा करवाना चाहती है?’ चंपा नाराज होते हुए बोली थी.

‘‘क्या बुराई है इस में? हम जैसी कितनी औरतें धंधा कर रही हैं और हजारों रुपए कमा रही हैं. फिर आजकल तो बड़े घरों की लड़कियां भी अपना खर्च निकालने के लिए यह धंधा कर रही हैं,’’ लक्ष्मी ने यह कहा, तो चंपा आगबबूला हो उठी और गुस्से से बोली थी, ‘एक औरत हो कर ऐसी बातें करते हुए तु झे शर्म नहीं आती?’

‘शर्म गई भाड़ में. अगर औरत इस तरह शर्म रखने लगी है, तो हमारे मरद हम को खा जाएं. एक बार यह धंधा अपना लेगी न, तब देखना तेरा मरद तेरे आगेपीछे घूमेगा,’ लक्ष्मी ने जब चंपा को यह लालच दिया, तब वह गुस्से से बोली थी, ‘ऐसी सीख मु झे दे रही है, खुद क्यों नहीं करती है यह धंधा?’

‘तू तो नाराज हो गई. ठीक है, अपने मरद के सामने सतीसावित्री बन. जब पैसे की बहुत जरूरत पड़ेगी न, तब मेरी यह बात याद आएगी,’ कह कर लक्ष्मी चली गई थी.

आज लक्ष्मी धंधा करती पकड़ी गई. धंधा तो वह बहुत पहले से ही कर रही थी. सारी बस्ती में यह चर्चा थी.

जब चंपा मिश्राइन के बंगले पर पहुंची, तब मिश्राइन और उस के पति ड्राइंगरूम में बैठे बातें कर रहे थे.

चंपा के पहुंचते ही मिश्राइन जरा गुस्से से बोली, ‘‘चंपा, आज तो तुम ने बहुत देर कर दी. क्या हुआ?’’

चंपा चुप रही. मिश्राइन फिर बोली, ‘‘तू ने जवाब नहीं दिया चंपा?’’

‘‘क्या करूं मेम साहब, आज हमारी बस्ती की लक्ष्मी धंधा करते हुए पकड़ी गई.’’

‘‘उस का अफसोस मनाने लगी थी?’’ मिश्राइन बोली.

‘‘अफसोस मनाए मेरी जूती…’’ गुस्से से चंपा बोली, ‘‘सारी बस्ती वाले उस पर थूथू कर रहे हैं. अच्छा हुआ कि वह पकड़ी गई.

‘‘तेरे आने के पहले उसी पर चर्चा चल रही थी…’’ मिश्राजी बोले, ‘‘लक्ष्मी भी क्या करे? पैसों की खातिर ऐसी झुग्गी झोंपड़ी वाली औरतों ने यह धंधा बना लिया है.’’

मिश्राजी ने जब यह बात कही, तब चंपा की इच्छा हुई कि कह दे, ‘आप जैसे अमीर घरों की औरतें भी गुपचुप तरीके से यह धंधा करती हैं,’ मगर वह यह बात कह नहीं सकी.

वह बोली, ‘‘क्या करें बाबूजी, हमारी बस्ती में एक औरत बदनाम होती है, यह धंधा करती है, मगर उस के पकड़े जाने पर सारी बस्ती की औरतें बदनाम होती हैं.’’ इतना कह कर चंपा बरतन मांजने रसोईघर में चली गई. Story In Hindi

Family Story In Hindi: वारिस – नकारा सेठ की मदमाती सेठानी

Family Story In Hindi: अकसर शाम को मैं ने उसे गांव के अंदर से बाहर शौच को जाते समय देखा था. सिंदूर की बड़ी सी सुर्ख बिंदी लगाए हुए. उस के नीचे हमेशा चंदन का टीका लगा रहता था. यही कोई होगी साढ़े 5 फुट लंबी. गांव में औरतें इतनी लंबी कम ही होती हैं.

वैसे तो उसे बहुत खूबसूरत नहीं कहा जा सकता, पर गोरी होने के चलते मोटे नैननक्श भी ज्यादा बुरे नहीं लगते थे. बड़ी सी सिंदूर वाली बिंदी उस पर खूब फबती है. शायद इसलिए ही उस की ओर ध्यान खिंच जाता है सब का खासकर मर्द तो एक बार पलट कर देखता जरूर था, फिर चाहे कोई जवान हो या बुजुर्ग. इतनी खूबसूरत न होने पर भी कशिश तो थी, ऊपर से हंस कर बोल जाती तो थोड़ी खुरदरी जबान भी फूल ही बिखेरती आदमी जात पर.

एक बात और यह कि अपनेआप को ज्यादा खूबसूरत दिखाने के लिए वह शायद काली प्रिंट की साड़ियां ज्यादा ही पहनती है, पर वे उस पर जमती भी हैं. अरे, एक खासीयत और रह गई न उस की बाकी, वह अपने पैर बहुत ही साफसुथरे रखती है.

गांव में अकसर औरतों के पैर गंदे और एड़ियां फटी ही देखी हैं, पर लगता है कि वह दिन में कई बार रगड़ती होगी, इसलिए ही तो कांच सी चमकदार हुई रहती हैं उस की एड़ियां ऊपर से, जिन में चांदी की बड़ीबड़ी पाजेब पहने रहती है. झनकझनक चलती तो दूर से पहचान हो जाती और ऊपर से इठलाइठला कर चलना तो लगता कहर ही है.

हां, यही सही में सेठजी की घरवाली है. सेठ धनपत लाल की शादी के तकरीबन 10 बरस बाद भी उस का मूंग भी मैला नहीं हुआ. जैसी आई थी, अब भी वैसी ही है. न मोटी हुई, न पतली.

इतनी धनदौलत है कि चाहे तो धन के कुल्ले करे धनपत लाल. उस के पास बस कमी है तो आंगन में खेलने वाले की, नन्ही किलकारी के गुंजन की. अरे मतलब, अब तक सेठानी की गोद खाली है. शुरू के 5-6 साल तो खेलतेखाते निकल ही गए, मगर अब सेठजी की मां आएदिन ताने देती रहती है.

लोग भी बीच रास्ते में कानाफूसी करते हैं कि सेठ दूसरी औरत लाने के जुगाड़ में है. आतेजाते लोग सेठजी की तारीफ में चुटकी लेले कर कह ही देते हैं कि धनपत लाल तो तराजू पर ध्यान देते हैं, घरवाली पर नहीं.

कुछ लोग बोलते कि गढ़ी के दरवाजे के पास सट्टे हवेली से सुबह अंधेरे एक औरत को निकलते देखा. साफसाफ तो नहीं दिख रही थी, कदकाठी से धनपत लाल की ही घरवाली लग रही थी.

किसी ने सवाल किया कि वह तो लखन सिंह का घर है, वहां क्या करने जाएगी सेठ धनपत की घरवाली? इसी तरह बात आईगई हो गई, पर जब भी मैं उसे देखती, मुझे लगता कि वह अपना दर्द शायद बड़ी सी बिंदी के पीछे छिपाए घूम रही थी.

सुनने में आ रहा था कि अकसर धनपत लाल और उस की घरवाली के बीच कुछ महीनों से झगड़े बढ़ रहे हैं. आए 2-4 दिन में वह देर रात झगड़ा कर कहीं चली जाती है. सास अपनी बहू को ढूंढ़ती रहती है और भोर होते ही वह वापस आ जाती है.

कुछ महीनों तक तो वही सब चलता रहा, अचानक एक दिन सुनने में आया कि इतने बरसों के बाद धनपत लाल की घरवाली के पैर भारी हैं. पूरे गांव में खुशी की लहर है. जहां देखो, वहां वही चर्चा. दुकान पर तो जो भी गया, मिठाई खाए बगैर कैसे आ जाता भला.

अब लड़ाईझगड़े खत्म हो गए थे. रूठ कर जानाआना तो शायद बरसों पहले की बात हो गई. सुना है कि सास तो बहू की सेवा में हाजिर ही खड़ी रहती है. बढ़ते पेट के साथ खुशी में देखतेदेखते कब 9 महीने निकल गए, पता ही नहीं चला.

आज जब गांव में पटाखे चले, बंदूकें चलीं तो पता चला कि सेठ धनपत के बेटा हुआ है.

समय पंख लगा कर उड़ गया. मैं ने आज अचानक देखा, वही बड़ी सी बिंदी लगाए नीचे चंदन का तिलक लगा कर वही की वही शाम को काले फ्लौवर वाली प्रिंट की साड़ी पहने आ रही थी धीरेधीरे.

पल्लू पकड़े एक गोराचिट्टा गोलमटोल सिर पर जूड़ा बांधे आंखों में काजल लगाया हुआ बालक. काजल इतना बड़ा शायद इसलिए कि किसी की नजर न लग जाए उस के अनमोल लाल को.

वह मस्त मदमाती हथिनी सी चल रही थी. उसे देख कर लग रहा था कि जो भी चमक आज उस की बिंदिया में है, वह मां बन कर आ गई या फिर सेठ धनपत लाल को वारिस दे कर. Family Story In Hindi

Hindi Kahani: कणकण का हिसाब – महंगा पड़ा मुखिया का लालच

Hindi Kahani: ‘‘कुदरत किसी के साथ बेइंसाफी नहीं होने देती. लेकिन हम उस की बारीकियों को समझ नहीं पाते. हमारे नजरिए में ही खोट होती है, तभी हम उस के कानून की खिल्ली उड़ाते हैं. अगर आप का जिस्म ताकतवर है, तो जोरदार ठोकर का भी कोई असर नहीं होता… पर अगर कमजोर है तो मामूली सा झटका भी बहुत बड़ा भूचाल लगता है.

‘‘इसी तरह वह जब साथ देता है, तब मिट्टी छुओ तो सोना बन जाती है. लेकिन, जब हालात ठीक नहीं होते, तो जोकुछ भी दांव पर लगाओ, वह भस्म हो जाता है. केवल मेहनत से कमाया हुआ पैसा, यश ही जिंदगी में साथ देता है.’’

‘‘चोर, डाकू, ठग तो लाखों का हाथ मारते हैं, लेकिन फिर भी कलपते रहते हैं और रातदिन बेचैन रहते हैं. वहीं दूसरी ओर एक मजदूर दिनभर मिट्टी, कूड़ा, ईंट, गारा का काम कर के जब सोता है, तो उसे सूरज की किरणें ही जगाती हैं,’’ इतना कह कर मास्टर रामप्रकाश ने जीत सिंह से विदा मांगी.

जीत सिंह ने मास्टरजी की बात काटते हुए कहा, ‘‘मेहनत से पैदा की हुई दौलत तो आदमी के पास रहनी ही चाहिए. बड़ेबड़े राजाओं ने दूसरों के देश, सूबे जीते और भोगे, उन का क्या हुआ?’’

‘‘मुखियाजी, यह सिर्फ दिल का भरम और थोड़ी देर का संतोष होता है. महाराजा अशोक को इस से वैराग भी तो उपजा था?’’ इतना जवाब दे कर मास्टरजी चले गए.

जीत सिंह बमरौली गांव के मुखिया थे. गांव में उन का अच्छाखासा रोब था. उन की पत्नी गीता कुछ घमंडी थी. वे 2 बेटियों की शादी कर चुके थे. एक बेटा कमलेश सिंह अभी कुंआरा था. घर का कामकाज वही चलाता था. मुखियाजी सूद पर रुपया उठाते थे. उन्होंने 2-3 गुंडे पाल रखे थे जो उन का बिगड़ा काम बनाते थे.

बमरौली गांव से 5-6 किलोमीटर दूर झुमरी अपने 2 बैलों को जानवरों की मंडी में बेचने आया था. रात काफी हो चुकी थी. जिन्होंने कुछ बेचा था, उन के पास रुपए थे. जिन्होंने खरीदा था, वे खाली थे. जिन के पास धन था, वे थोड़े परेशान थे कि उन्हें कोई लूट सकता है.

झुमरी भी उन्हीं परेशान लोगों में से एक था. सोचा, कुछ जलेबी खा कर पेट भर लिया जाए और फिर घर जाने की सोचे. पावभर जलेबी ले कर वह वहीं दुकान पर खाने लगा. फिर पास रखी पानी की टंकी से पानी पी कर जेब से बीड़ी निकाली और उसी हलवाई की दुकान पर जलती भट्ठी से बीड़ी को सुलगाया. 2-4 बार निगाहें चारों तरफ फेंकी.

फिर झुमरी धीरेधीरे अपने गांव की ओर बढ़ा. रास्ते में उस ने सोचा, ‘क्यों न आज बमरौली गांव के मुखिया के यहां रात काटी जाए और सुबह 4 बजे उठ कर बस पकड़ कर घर पहुंचा जाए.’

मुखिया के घर पहुंच कर वह चौपाल पर पड़े तख्त पर बैठ गया. कमलेश ने पिता को जा कर कहा, ‘‘कोई आदमी आया है और तख्त पर बैठा है.’’

जीत सिंह बाहर आए और पूछा, ‘‘क्या काम है? किस से मिलना है? कहां से आए हो?’’

झुमरी ने बताया, ‘‘मालिक, मैं विलमंडे का रहने वाला हूं. बैल बेचने आया था, सो बिक गए. रात काफी हो गई… सुबह 4 बजे वाली बस से चला जाऊंगा. आज रात यहां ठहरना चाहता हूं.’’

‘‘इस में क्या मुश्किल है… यहीं तख्त पर सो जाओ. यहां कोई खतरा नहीं,’’ जीत सिंह ने इतना कह कर अपनी मंजूरी दे दी, फिर पूछा, ‘‘कुछ खाओगे?’’

‘‘नहीं मालिक, मंडी से खा कर आया हूं,’’ झुमरी ने जवाब दिया.

जीत सिंह ने एक दरी और एक चादर ला कर झुमरी को दी और कहा, ‘‘इसे बिछा लो.’’

‘‘अच्छा मालिक,’’ कह कर झुमरी ने दोनों चीजें ले लीं और धोती के फेंटे से रुपए निकाल कर बोला, ‘‘यह रुपए रख लीजिए, सुबह चलते समय ले लूंगा.’’

‘‘कितने हैं?’’ जीत सिंह ने पूछा.

‘‘10,000 में 20 कम,’’ झुमरी ने कहा.

जीत सिंह रुपए ले कर गीता के पास गए और कहा, ‘‘रुपए संदूक में रख दो, सुबह देने हैं.’’

गीता ललचाई नजरों से उन नोटों को ले कर काफी समय तक देखती ही रही. गीता कभी चौके में जाती, तो कभी कमरे में, जैसे कोई लालच उसे डगमगा रहा हो. आखिर उस ने जीत सिंह को बुलाया और कहा, ‘‘घर आई ‘लक्ष्मी’ जाने न पाए.’’

‘‘क्या कहती हो, बड़प्पन कमाया है. सब मिट्टी में मिल जाएगा,’’ जीत सिंह ने गुस्से से कहा.

‘‘अपने घर में कुछ करना ही नहीं,’’ गीता ने समझाया, ‘‘दूसरों को इतनी अक्ल देते हो, खुद के लिए इतना सा काम भी नहीं कर सकते.’’

जीत सिंह काफी देर तक सोचते रहे कि काम इस तरह करना चाहिए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. थोड़ी देर बाद वह उठे और भीतर से बंदूक उठा कर घर से निकल पड़े.

रात के अंधेरे में केवल पीपल के पत्ते ही कुछ बोल रहे थे और जुगनू रोशनी दे रहे थे. तकरीबन 2 फर्लांग पर हलकी सी रोशनी थी. वह भीखू का घर था, जहां मिट्टी का दीया जल रहा था. जीत सिंह जल्दी से भीखू के घर के पास पहुंच गए. भीखू खाट पर पड़ापड़ा बीड़ी के कश खींच रहा था.

‘‘भीखू, क्या कर रहे हो?’’ जीत सिंह ने आवाज दी.

‘‘जी मालिक, क्या हुक्म है?’’ भीखू ने बीड़ी को पैर से कुचलते हुए हाथ जोड़ कर पूछा.

‘‘थोड़ा बाहर आओ… कुछ बात करनी है,’’ जीत सिंह घर से थोड़ी दूर अंधेरे में भीखू को ले गए और कुछ बात की. फिर खुद खाली हाथ घर वापस आ गए.

गीता और जीत सिंह को रातभर नींद नहीं आई. घड़ी का हर घंटा कई घंटों के बराबर लग रहा था. जैसेतैसे कर के रात के 2 बजे जीत सिंह ने झुमरी को जगाया और कहा, ‘‘उठो, तुम्हारे जाने का समय हो गया, नहीं तो बस छूट जाएगी.’’

झुमरी ने दरी समेट कर तख्त पर रख दी. इतने में जीत सिंह नोटों का बंडल ले आए और दे कर कहने लगे, ‘‘लो, गिन लो इन्हें.’’

‘‘अरे मालिक, आप के पास क्या कमी है… आप हमें शर्मिंदा कर रहे हैं,’’ झुमरी नोटों की गड्डी ले कर बाहर निकला. बाहर सन्नाटे में उस ने चारों ओर नजरें घुमाईं. फिर आगे बढ़ा. वह 5-6 कदम ही बढ़ा होगा कि एक आदमी ने उस को रोका और कहा, ‘‘अभी केवल 3 बजे हैं… बहुत रात बाकी है. मेरे घर चलो.’’

झुमरी का खून सूख गया. अंधेरा और बढ़ गया. मुंह का बोल रुक गया. सिर्फ आंखें ही बोल और कह रही थीं. पूरे जिस्म को जैसे लकवा मार गया था. झुमरी ने उस से कुछ सवाल ही नहीं किया कि तुम कौन हो? तुम्हारा क्या इरादा है?

उस आदमी ने कहा, ‘‘मैं न कोई चोर हूं, न डाकू और न तुम्हारा दुश्मन. मुझे अपना हमदर्द समझो… मुझ पर यकीन करो.’’

झुमरी डर से कांप रहा था. लगभग 10 मिनट बाद उस आदमी का घर आ गया. दोनों भीतर घुसे और दरवाजा बंद कर लिया. दोनों ही डरे हुए थे. इस कारण दीया भी न जलाया. दोनों नीचे ही बैठ गए.

‘‘देखो, मेरा नाम हरिनाथ है. मैं यहां मेहनत कर के अपना गुजारा करता हूं. कभी किसी खेत पर तो कभी किसी खेत पर. मेरे आगेपीछे कोई रोने वाला नहीं, मर जाऊंगा तो गांव वाले मुझे गांव से बाहर फूंक देंगे.’’

‘‘रात से ही मेरा पेट खराब था. मुझे शौच के लिए बाहर जाना पड़ा. मैं गड्ढे में बैठा था कि मुखिया जीत सिंह भीखू के घर से निकल कर अंधेरे में बैठ गया. उस ने तुम्हें मारने की योजना बनाई है और भीखू को बंदकू दी है… जैसे ही तुम पगडंडी पर पहुंचते, तुम्हें गोली मार दी जाती और पैसा छीन लिया जाता. यह सच मैं ने सुन लिया और मैं जल्दी ही घर भागा. मैं सोया नहीं. अब तुम दिन निकले, तभी जाना,’’ इतना कह कर वह चुप हो गया.

झुमरी ने हरिनाथ से पानी मांग, तो उस ने उसे पानी का गिलास दिया. पानी पीते ही झुमरी का जैसे नया जन्म हो गया. उस का चेहरा खिल उठा.

इसी वक्त बंदूक के छूटने की आवाज आई और झुमरी व हरिनाथ फिर डर गए.

‘‘यह क्या हो रहा है?’’ यह सवाल दोनों के दिमाग पर हथौड़े चला रहा था. गांव वालों ने सोचा, ‘शायद डाकू आ गए हैं…’ सब ओर सन्नाटा था.

जीत सिंह समझ गए कि अपना काम हो गया. सोचा, ‘भीखू को 500 रुपए देंगे और बाकी सब अपने हो गए.’

जब काफी देर हो गई, तब जीत सिंह ने सोचा, ‘इतनी देर क्यों हो रही है? न तो कमलेश वापस आया और न भीखू. चलता हूं, हरामखोर को गरम करूंगा.’

‘2 बजे मैं ने झुमरी को भेजा. केवल पगडंडी तक 5 मिनट का रास्ता है.

4 बजे कमलेश को… दोनों ही फरार हो गए होंगे.’

जीत सिंह तेज कदमों से भीखू के घर पहुंचे.

‘‘भीखू, भीखू… आए क्यों नहीं?’’ जीत सिंह ने गुस्से से पूछा.

‘‘मालिक, उस के पास कुछ निकला ही नहीं,’’ भीखू ने जवाब दिया.

‘‘तुम झूठ बकते हो. तुम्हें अभी गोली से उड़ा दूंगा,’’ जीत सिंह ने धमकाते हुए कहा.

‘‘नहीं मालिक, आप से झूठ बोल कर कहां जाऊंगा?’’ भीखू ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘चल मेरे साथ, देखता हूं क्या गड़बड़ है,’’ जीत सिंह ने इतना कह कर भीखू को साथ ले लिया.

दोनों ही तेज चाल से चले जा रहे थे. दोनों की सांसें फूल रही थीं. 3-4 मिनट के बाद वे उस जगह पहुंच गए, तब तक कुछ उजाला होने लगा था. नजदीक पहुंच कर देखा. एकदम से यकीन नहीं हुआ. आंखें पथरा गईं.

जीत सिंह ने जोर से चीख मारी, ‘‘अरे, यह तो मेरा कमलेश है… तू ने किसे मार डाला बैरी.’’

‘‘मालिक, अंधेरे में मुंह तो दिखा नहीं,’’ भीखू ने कांपती आवाज में कहा.

सवेरा हुआ तो गांव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई.

उधर झुमरी हरिनाथ को अपने साथ ले गया. उम्रभर साथ निभाने का पीपल के नीचे खड़े हो कर प्रण किया.

जीत सिंह सिसकियां भरतेभरते बेटे की लाश के पास बैठ गए. सुबह शौच के लिए जाते हुए लोग रुकरुक कर यह सब देख कर हैरान थे. कुछ पूछते नहीं बनता था.

जीत सिंह को उस बूढ़े रामप्रकाश मास्टर की बात याद आ रही थी. उन्होंने ठीक ही कहा था, ‘कुदरत कणकण का हिसाब रखती है, लेकिन आदमी उस को समझ नहीं पाता.’

जीत सिंह ने फिर सोचा, ‘अगर मैं उस बात को समझ जाता, तो यह बरबादी न होती… मेरे लालच ने ही मेरे बेटे की जान ले ली.’ Hindi Kahani

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