संस्कारी बहू : रघुवीर गुरुजी और पूर्णिमा की अय्याशी

पूर्णिमा को लोग रोज दुत्कारते थे. कोई भी उसे अपने दरवाजे पर नहीं ठहरने देता था. फिर भी वह जैसेतैसे इन झोंपडि़यों की बस्ती में एक कोने में जिंदा थी.

एक एनजीओ में काम करने की वजह से वह मेरी नजर में आई थी. मेरे लिए किसी को भूखे रहते देखना गवारा नहीं था. मैं ने बैग से रोटियों का एक पैकेट निकाल कर दिया कि तभी पड़ोस की एक झोंपड़ी से एक औरत ने मेरा हाथ रोक दिया और मुझे अंदर आने को कहा.

मैं ने उसे रोटियां पकड़ाईं और फिर उस औरत की झुग्गी में घुस गई. वहां एक पंडितनुमा जना भी बैठा था. वह बोला, ‘‘व्यभिचारात्तु भर्तु: स्री लोके प्रापोन्ति निन्द्यताम्, श्रृगालयोनिं प्रापोन्ति पापरोगैश्च पीडयते.

‘‘‘मनुस्मृति’ में ऐसा कहा गया है. तुम शहरी लड़कियों को क्या मालूम सनातन धर्म क्या होता है. इस का मतलब है कि जो औरत अपने पति को छोड़ कर किसी दूसरे मर्द के साथ रिश्ता बनाती है, वह श्रृंगाल यानी गीदड़ का जन्म पाती है. उसे पाप रोग यानी कोढ़ हो जाता है.’’

इस बस्ती के लोगों पर उस पंडित का बहुत असर दिख रहा था. ‘मनुस्मृति’ के ही आधार पर उस औरत के संबंध में जो कहानी बताई जा रही थी वह यह थी कि किसी औरत का मर्द कितना भी बदचलन क्यों न हो, औरत को उस की खिलाफत करने का हक नहीं है.

औरत तो गंवार, अनपढ़ और पशु की तरह पीटने लायक ही है. और जब कोई औरत मर्दों के इस अहम की खिलाफत में उतर आती है तो उस का मुकाबला इंद्र के समान कपटी भी नहीं कर सकता.

मैं अपनी एनजीओ का काम बंद नहीं कराना चाहती थी वरना क्या मुझे मालूम नहीं था. भारत में मठाधीशों, गुरुओं और साधुमहात्माओं की करतूतें जगजाहिर हैं.

ये धर्मगुरु अपने शिष्यों को त्याग, बलिदान और मोक्ष के प्रवचन देते हैं और खुद रंगीन जिंदगी बिताते हैं. ये महाशय भी पक्का इसी तरह की जिंदगी जी रहे हैं और इसीलिए पागल की बगल में झोंपड़ी में बैठे हैं.

इस झुग्गीझोंपड़ी के लोग भी निपट बेवकूफ हैं. वे गुरुओं की फौर्चुनर, मर्सिडीज गाड़ी, सोने के सिंहासन और चांदी के बरतनों की ओर खिंचते हैं और अपनी जिंदगीभर की सारी कमाई इन के चरणों में धर देते हैं.

कुछ साल पहले इस बस्ती के ज्यादातर परिवार रघुवीर गुरुजी के भक्त थे. हां, यही नाम बताया था उन त्रिपुंडधारी महाशय ने. रघुवीर गुरुजी ने बस्ती के तालाब के किनारे शिवालय बना कर जमीन पर कब्जा कर के एक विशाल आश्रम बना लिया था.

यह आश्रम नशे, हथियार और ऐयाशी का अड्डा था. बाद में मुझे पता चल गया कि उस पंडित ने नकली चमत्कार दिखा कर बस्ती की भोलीभाली जनता को अपना अंधभक्त बना लिया था. धीरेधीरे मुझे पूरी कहानी पता चली थी.

उस समय रघुवीर गुरुजी के इस आश्रम में हर 2-3 महीने में धर्म की आड़ में नशे और सैक्स के लिए पार्टियों का आयोजन किया जाता था, जिस में इस बस्ती की गरीब कमसिन लड़कियों को बुला कर परोसा जाता था. यह काम पिछले बहुत सालों से चल रहा था.

शहर के अमीर, ताकतवर और सरकारी अफसर रघुवीर गुरुजी के इस कारोबार के मुनाफे में साझेदार थे. रघुवीर गुरुजी के खिलाफ बोलने वाले लोग अकसर एक्सिडैंटों में मारे जाते थे और उन्हें ट्रैफिक तोड़ने वालों की लापरवाही का नाम दे दिया जाता था.

बस्ती की भोलीभाली औरतें अपनी बहूबेटियों को आश्रम की सेवा में भेज देती थीं. कुछ तो रघुवीर गुरुजी का स्वाद खुद भी चख आई थीं और वह उन्हें ब्लैकमेल कर उन की बेटियों को भी बुलाता था.

रघुवीर गुरुजी के शिष्यों द्वारा देवताओं के नाम पर शारीरिक शोषण मनमरजी से किया जाता था और ऊपर से उन की पैसे से मदद की जाती थी.

एक समय यहां एक आश्रम था, जिस का नाम बहुत दूरदूर तक था. रघुवीर गुरु के आश्रम में देशी शराब, अफीम और गांजे के लालच में आसपास का बस्तियों के दर्जनों गुंडे पलते थे. वे गुरुजी के गैरकानूनी साम्राज्य के सैनिक थे. इस तरह रघुवीर गुरुजी के जितने विरोधी थे, उस से ज्यादा उन के पाखंडी समर्थक थे.

पुरुषोत्तम मास में कृष्ण की सखियां बनाने के नाम पर एक महीने तक औरतों को सूरज उगने से पहले आश्रम में बुला कर बिना कपड़ों के स्नान और ध्यान के लिए मजबूर किया जाता था.

लोग कहते थे कि गुरुजी के पास सम्मोहन की कला थी, पर असलियत में औरतों को प्रसाद और धुएं से नशा दिया जाता था. नशे में मदहोश औरतों के पोर्नोग्राफिक वीडियो बना कर औनलाइन बेचे जाते थे.

जिन औरतों ने रघुवीर गुरुजी के जोरजुल्म के खिलाफ बोलने की हिम्मत की थी, उन्हें बदनाम कर दिया जाता था. ऐसी औरतों को अपनी जान या इज्जत गंवाने का खमियाजा भुगतना पड़ता था.

यही वजह थी कि ज्यादातर औरतों ने उस समय आश्रम की रंगीन दुनिया को अपना लिया था. गुरुजी का समर्थन कर के वे न सिर्फ अपने शौक पूरे कर सकती थीं, बल्कि पैसे भी मिलते थे. बदले में उन्हें सिर्फ शर्म छोड़नी होती थी.

जिन औरतों ने गुरुजी के खिलाफ बोलने की हिम्मत की, उन्हें न तो बस्ती के लोग और न उन के ही परिवार वालों ने स्वीकार किया. मतलब पूरी बस्ती ने ही गुरुभक्ति की आड़ में अपने परिवार की इज्जत को ताक पर रख दिया था.

रघुवीर गुरुजी के एक प्रकांड भक्त पांडेयजी, जो मोक्ष, वेद और उपनिषद के ज्ञाता थे, ने अपने लड़के की शादी में भरपूर दहेज लिया था, पर फिर भी वे और ज्यादा दहेज के लिए अपनी बहू पूर्णिमा को सताते थे.

पांडेयजी को अपनी खूबसूरत और पढ़ीलिखी बहू की कोई कद्र नहीं थी. परंपरा के मुताबिक पांडेयजी की बहू को भी शादी के बाद अपना कुंआरापन खोने से पहले 3 दिनों तक आश्रम में देवताओं की उपासना के लिए जाना पड़ा था.

शहर के स्कूल में पलीबढ़ी पांडेयजी की बहू पूर्णिमा ने तुरंत ही आश्रम में पल रहे गिद्धों को पहचान लिया. उस ने अपनी ससुराल और बस्ती के लोगों को रघुवीर गुरुजी के ढोंग से बचाने की भरसक कोशिश की, लेकिन उस की एक न सुनी गई.

पूर्णिमा ने साइंस के प्रयोगों द्वारा रघुवीर गुरुजी के चमत्कारों को समझाने की कोशिश की, लेकिन उसे झुठला दिया गया. इतना ही नहीं, उसे ही आवारा और बदचलन कहते हुए उस के मायके के लोगों को भलाबुरा कहा जाने लगा.

पूर्णिमा की इस करतूत पर गुस्सा हो कर एक दिन पूर्णिमा की सास और पति ने लातघूंसों से पिटाई कर दी, तब जा कर उस का समाज सुधार का भूत उतरा. तब हार कर उसे रघुवीर गुरुजी की बुराई करने के लिए कान पकड़ कर माफी मांगनी पड़ी, पर मन ही मन बदला लेने के लिए वह नागिन की तरह तड़प उठी.

एक बार सालाना जलसे के लिए बस्ती में रघुवीर गुरुजी ने पूर्णिमा के घर का चुनाव किया था. पूर्णिमा के पति और सास खुशी से फूले न समा रहे थे. पूर्णिमा को उन्होंने खातिरदारी में कोई कमी न रखने की सख्त हिदायत दी.

पूर्णिमा यह अच्छी तरह जान चुकी थी कि अगर घर से अपनी इस बेइज्जती का बदला चुकाना है तो इस ढोंगी गुरुजी की कृपा हासिल करनी ही होगी.

पूर्णिमा ने गुरुजी के चरण गोद में रख कर पानी से साफ किए. चरणों को अपने उभारों का सहारा देते हुए तौलिया से सुखाया और फिर माथे से लगा लिया. पूर्णिमा के इस बदले हुए मिजाज से सब बहुत खुश हुए.

रघुवीर गुरुजी ने पूर्णिमा की सेवा से गदगद होते हुए अपने चरणों की गंदगी से गंदे हुए चरणामृत को ग्रहण करने और पूरे घर में उस गंदे पानी छिड़काव करने का आदेश दिया.

रघुवीर गुरुजी ने पूर्णिमा के हाथों से स्वादिष्ट भोजन और प्रसाद ग्रहण किया. वह भी अब तन व मन से उन की खुशामद में लगी हुई थी. अपने साथ दहेज में आए सुहागरात के बिस्तर को उस ने गुरुजी के आराम के लिए तैयार कर दिया.

पति को बाहर के कमरे में सुला कर पूर्णिमा देर रात तक गुरुजी की सेवा करती रही. पहली ही रात में गुरुजी को अपने काबू में लेने के लिए उस ने कामशास्त्र का इस्तेमाल किया.

रघुवीर गुरुजी को सपने में भी अंदाजा नहीं था कि यह शहरी लड़की इतनी धार्मिक हो चुकी हैं. गुरुजी से उम्र में आधी पूर्णिमा ने रात के 12 बजे तक उन्हें स्वर्ग की अप्सरा के जैसा आनंद दिया. उस ने सारे कपड़े उतार कर रख कर दिए, पर उन कपड़ों में मोबाइल छिपा था और उस का वीडियो औन था. 2 घंटे की रिकौर्डिंग हुई.

दोपहर को आराम के समय पूर्णिमा गुरुजी के लिए आम का शरबत ले कर हाजिर हुई तो काम के जोश में गुरुजी ने उसे जबरदस्ती अपनी गोद में बैठा लिया और उस के कपड़ों को हटा कर उस

के शरीर को अपनी प्रेमिका की तरह दुलारना शुरू कर दिया. अगले ही दिन गुरुदीक्षा और समाधि के नाम पर पूर्णिमा को अपने साथ कमरे में बंद कर उन्होंने उस का पूरी तरह फिर उपभोग किया.

इस के बाद तो पूर्णिमा महीनों गुरुजी के आश्रम पर रह कर उन की सेवाभक्ति कर लाभ लेने लगी. अब उसे अपनी ससुराल के कामकाज से भरी हुई जिंदगी अच्छी नहीं लगती थी, बल्कि उसे तो गुरुजी की सखी की तरह रहने में मजा आता था, जहां कोई काम नहीं. सास और पति की दखलअंदाजी भी नहीं. पैसे की कमी नहीं. लेकिन वह लगातार मोबाइल पर वीडियो पर वीडियो बनाए जा रही थी.

पूर्णिमा की इस गुरुभक्ति के चलते पांडेयजी के पूरे परिवार को आश्रम में सब से ज्यादा इज्जत मिलने लगी थी. गुरुजी के आशीर्वाद से पूर्णिमा के बेरोजगार पति को एक फैक्टरी में नौकरी मिल गई थी. पूर्णिमा के धार्मिक संस्कारों की अब हर जगह तारीफ होने लगी थी.

यही वजह थी कि रघुवीर गुरुजी की सभी शिष्याएं अपनीअपनी बहुओं को पूर्णिमा की तरह बनने के लिए उकसाती थीं. पूर्णिमा भी बेवकूफ औरतों का

पूरा फायदा उठाने लगी, पर उन में से उस ने 3-4 जवान बहुओं को अपने साथ मिला लिया.

जैसजैसे युवतियां बढ़ने लगीं, वैसेवैसे रघुवीर गुरुजी के आश्रम पर भौतिक सुखसुविधाओं का अंबार लगने लगा. उन के सोने के कमरे में ऐशोआराम की सभी सुविधाएं आ गई थीं. हमेशा जवान बनाए रखने के लिए चीन से लाई गई मसाज मशीनें खरीद ली गई थीं. अमेरिका से लाया गया एक करोड़ का सोना बाथ आ गया था.

उन के कमरे में सोने और चांदी के गहनों और बरतनों की भरमार थी. चढ़ावे के नोट गिनने की मशीन, सोने को तौलने और गलाने की मशीन लगी हुई थी. रेशम के कालीन और सोने की नक्काशी के परदे टंगे हुए थे. चांदी के रत्नजडि़त अनेक पात्रों में शराब भरी रहती थी.

गुरुजी की गाडि़यों का काफिला, पर्सनल जिम, खेल के सामान, स्विमिंग पूल और दूसरे तमाम ऐशोआराम का इंतजाम पूर्णिमा के हाथों में आने लगा था. उस

की योजना तो अपनी ससुराल वालों को सबक सिखाने की थी, लेकिन यहां तो भोग की अलग ही दुनिया उस का इंतजार कर रही थी.

आश्रम के गर्भगृह में गुरुजी को खुश रखने के लिए भाड़े की कालगर्ल लड़कियों को बुलाया जाता था. पर पूर्णिमा से मिलने के बाद वे पूरी तरह उस पर लट्टू हो चुके थे. उन्होंने पूर्णिमा को आश्रम के गर्भगृह की मल्लिका बना दिया था. आश्रम के सभी सेवकों को उस की आज्ञा के पालन के लिए खड़ा कर दिया था.

एक खास तरह के गुरुजी पर्व के आयोजन की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. आयोजन का सारा इंतजाम गुरुजी के जिन सेवादारों द्वारा किया जा रहा था. वे सभी रघुवीर गुरुजी की तरह ही गोरे, चिकने, लंबी कदकाठी के अमीर और ताकतवर मर्द थे. ऐसे लोग सेवादार बनने के लिए गुरुजी को चढ़ावा चढ़ाते थे.

देवदासियों के नाम पर शहर से कालगर्ल्स को लाया जाता था, जो चुने गए भक्तों को खुश करती थीं, जिन में अफसर और सेठ होते थे. पढ़ीलिखी पूर्णिमा को तुरंत समझ आ गया था कि प्रसाद और अगरबत्तियों के बहाने भांग, गांजे और शराब का नशा कराने के लिए यह आयोजन एक तरह की ‘रेव पार्टी’ थी, जिसे पुलिस से बचने के लिए धार्मिक आयोजन का नाम दे दिया गया था.

पूर्णिमा ने रघुवीर गुरुजी को इस गुरुजी पर्व में अपनी 4 साथियों को साथ रखने के लिए चुटकियों में मना लिया. घर वाले तो इस बात से फूले नहीं समा रहे थे कि उन की पूर्णिमा को मुख्य शिष्या बनाया गया है.

पूर्णिमा के पति को तो इस मामले में उसे रोकने की हिम्मत ही नहीं थी. वह जब भी पूर्णिमा के पास रात को आता, तो वह उसे कपड़ों के बिना धकेल देती थी. उसे कितनी ही रातें बिस्तर के नीचे नंगधड़ंग गुजारनी पड़ी थीं.

गुरुजी पर्व आयोजन के दौरान आश्रम के गर्भगृह में रघुवीर गुरुजी अपने प्रमुख शिष्य और शिष्याओं के साथ पूरी तरह अज्ञातवास में थे. गर्भगृह में सभी दूसरी भक्तनों को केवल एक साड़ी में दाखिल होने की इजाजत थी.

गुरुजी पर्व के दौरान गर्भगृह में देवताओं के राजा इंद्र की सभा की तरह नृत्य, गायन, मद्यपान, सुरा और संभोग का नाटक किया जाता था. पूर्णिमा की साथी, जो वैसे सैक्स वर्कर थीं, गुरुजी के शिष्यों का भरपूर मनोरंजन करती थीं.

अब तक अपने पति के साथ पूर्णिमा की ठीक से सुहागरात भी नहीं हुई थी, जबकि गुरुजी के साथ वह हर रोज 2-4 बार हमबिस्तर होती थी. पूर्णिमा के दूध के समान सफेद और संगमरमर जैसे चिकने बदन को रेशम और सोने के गहनों से ढक दिया गया था. अब वह अपनी ससुराल लौटना ही नहीं चाहती थी. गुरुजी ने उसे अपना उत्तराधिकारी बना कर देवी का दर्जा दे दिया था.

आम जनता के बीच, धार्मिक प्रतीकों और कपड़ों के साथ माला जपते हुए पिता और पुत्री का रिश्ता निभाने वाले रघुवीर गुरुजी और पूर्णिमा भोगविलास के आदी हो चुके थे.

पर जल्द ही उन के बारे लोग कानाफूसी करने लगे थे. गुरु और शिष्या के संबंधों से परेशान पूर्णिमा की ससुराल वाले बाधा पैदा करने लगे थे.

इस बात से गुस्साए गुरुजी ने पूर्णिमा के पति को आश्रम में बंधक बना लिया और पूर्णिमा ने अपने पति के सामने ही गुरुजी के साथ संबंध बनाते हुए अपने पति के सीने में मौत का खंजर उतार दिया. अपने ससुर और सास को आश्रम के तहखाने में भोजन और पानी के लिए तरसाते हुए मार डाला. ससुराल की जायदाद उन की विधवा ‘संस्कारी बहू’ पूर्णिमा के नाम हो गई.

इस के बाद पूर्णिमा ने अपनी ससुराल की पहचान को मिटाते हुए धार्मिक आवरण ओड़ लिया, अपने केश त्याग दिए. पूर्णिमा का आश्रम की गद्दी पर अभिषेक हो गया.

पूर्णिमा अब पूर्णिमा देवी हो गई थी, जिस के मठाधीश बनने के बाद हर महीने पूर्णमासी की रात को आयोजित होने वाले गुरुजी पर्व कार्यक्रम में अलग ही जोश आ गया था. कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए पूर्णिमा देवी ने आसपास के इलाके की कुंआरी लड़कियों और शादीशुदा औरतों को फंसा कर गुरुदीक्षा देना शुरू कर दिया. उस का साथ वे

4 भक्तनें देती थीं. पूर्णिमा का डर उन पहलवान सेवादारों से था, जो गुरुजी से ज्यादा प्यार करते थे. उन सभी के गुरुजी से समलैंगिक संबंध थे.

पूर्णिमा ने बस्ती की और अंधविश्वासी लड़कियों को सबक सिखाने के लिए बहलाफुसला कर गुरुजी पर्व में शामिल होने के लिए सहमत कर लिया.

पूर्णिमा सेवा में हाजिर होने के लिए तैयार सेविकाओं के रूप में तैयार करने का काम बहुत ही दिलचस्पी से कर रही थी. शहर से लाई गई ब्यूटीशियन ने सभी सेविकाओं को 2 दिनों तक रोमरहित करने के बाद हलदी, बेसन और शहद के पानी से स्नान करा कर उन्हें आइसोलेट कर दिया. सेविकाओं की माहवारी रोकने के लिए उन्हें रोजाना दूध के साथ दवाएं दी जा रही थीं.

गुरुजी पर्व की रात को नृत्य और गायन के दौरान बहुत सी लड़कियों को प्रसाद के रूप में भांग पिला दी गई. आश्रम की इस हाईप्रोफाइल पार्टी में इस साल बड़ेबड़े अफसर, तिलकधारी सांसद और मंत्री, अमीर कारोबारी आए हुए थे.

बस्ती की भोलीभाली लड़कियों के आने के बाद नशे और जिस्म की इन पार्टियां में रहस्य और रोमांच और ज्यादा बढ़ गया था.

पूर्णिमा के निर्देश पर शिष्याओं ने आरती के बाद गर्भगृह में मेहमानों का मनोरंजन करना शुरू किया. खुद पूर्णिमा देवी ने जोश में आ कर अपने कपड़े उतार दिए. गुरुजी को अपने पैर, छातियों, जांघों से छूते हुए वह पूजन की ऐक्टिंग करने लगी. गुरुजी और उन के सेवादारों के कपड़े भी धीरेधीरे उतार दिए गए.

रघुवीर ने अपनी पूर्णिमा को चूमने की कोशिश की, लेकिन नशे में चूर पूर्णिमा देवी ने गुरुजी को पहचानने के बजाय उन के सब से खास एक मेहमान के साथ संबंध बनाना शुरू कर दिया और फिर देखते ही देखते नशे में चूर सभी मेहमान गिद्धों के की तरह, देवताओं के मुखौटे में, बस्ती की भोलीभाली अंधविश्वासी लड़कियों की इज्जत को लूटने के लिए टूट पड़े. रघुवीर गुरुजी अपनी इस बेइज्जती पर तिलमिला उठे. यह पूर्णिमा का पहला बदला था.

देवताओं का अभिनय करते हुए रघुवीर गुरुजी और सेवादारों ने दासियों के साथ कामलीला शुरू कर दी. नशे में चूर बस्ती की अनपढ़, भोलीभाली लड़कियों को लग रहा था कि गुरुजी की कृपा से स्वर्ग के देवता धरती पर उतर कर उन के साथ संबंध बना रहे हैं.

लेकिन रघुवीर गुरुजी को नहीं मालूम था कि पूर्णिमा ने उसी समय हाईकोर्ट में एक एप्लीकेशन डलवा रखी थी, जिस में लोकल जजों पर निर्भर रहने की वजह बताते हुए एसपी के नेतृत्व में छापा मारने की रिक्वैस्ट की गई थी.

यह याचिका शाम 6 बजे हाईकोर्ट के एक जज के पास पहुंची. साथ में वीडियो भी थे. जज उदार और सख्त थे. उन्होंने तुरंत और्डर टाइप कराया और जिला जज, जिला मजिस्ट्रेट और एसपी के साथ छापा मारने का हुक्म दिया.

तकरीबन 500 पुलिस वालों ने आश्रम घेर लिया. सेवादार भाग भी नहीं सके थे, क्योंकि पूर्णिमा की साथियों ने सारे कपड़े उठा कर नाले में फेंक दिए थे.

पूर्णिमा के परिवार के गायब होने की खोज पहले से चल रही थी. गुरुजी को पुख्ता सुबूतों के साथ पकड़ लिया गया. उस के बाद पूर्णिमा कहां गई किसी को पता नहीं लगा, पर उस की 4 साथियों ने मुकदमा लड़ा और गुरुजी को आजीवन कारावास की सजा मिली.

आश्रम से मिले कंकालों की गितनी इतनी थी कि डीएनए टैस्ट करने वालों को महीनों लगे.

उम्रकैद के दौरान रघुवीर गुरुजी की मौत हो गई, लेकिन पूर्णिमा कोढ़ की बीमारी से पीडि़त होने के बरसों बाद बस्ती में लौट आई. यह कोढ़ उसे एक सेवादार से लगा था. पूर्णिमा को अपने पर गर्व था, पर शायद ही कोई जानता था कि रघुवीर को जेल उसी ने पहुंचाया था.

उस पागल औरत ने धीधीरे मुझे यह सारी कहानी सुनाई थी, क्योंकि मैं रोज उसे खाना देने लगी थी, जबकि गांव वालों को भी बुरा लगता था और रघुवीर गुरुजी के उजड़े आश्रम के एक कोने को दबोचे था वह पंडितनुमा जना जो मुझे रोक रहा था.

पूर्णिमा ने बताया कि उस लड़के को 10 साल की उम्र में कहीं से पकड़ कर लाया गया था. पर वह सालों ड्रग्स लेने के चलते बहुत सी बातों को आज भी याद नहीं कर पा रहा.

पुल : ईमानदारी की सजा

‘‘शुक्रिया जनाब, लेकिन मैं शराब नहीं पीता,’’ मुस्ताक ने अपनी जगह से थोड़ा पीछे हटते हुए जवाब दिया.

‘‘कमाल की बात करते हो मुस्ताक भाई, आजकल तो हर कारीगर और मजदूर शराब पीता है. शराब पिए बिना उस की थकान ही नहीं मिटती है और न ही खाना पचता है.

‘‘कभीकभार मन की खुशी के लिए तुम्हें भी थोड़ा सा नशा तो कर ही लेना चाहिए,’’ ऐसा कहते हुए ठेकेदार ने वह पैग अपने गले में उड़ेल लिया.

‘‘गरीब आदमी के लिए तो पेटभर दालरोटी ही सब से बड़ा नशा और सब से बड़ी खुशी होती है. शराब का नशा करूंगा तो मैं अपना और अपने बच्चों का पेट कैसे भरूंगा?’’

‘‘खैर, जैसी तुम्हारी मरजी. मैं ने तो तुम्हें एक जरूरी काम के लिए बुलाया था. तुम्हें तो मालूम ही है कि इस पुल के बनने में सीमेंट के हजारों बैग लगेंगे. ऐसा करना, 2 बैग बढि़या सीमेंट के साथ 2 बैग नकली सीमेंट के भी खपा देना. नकली सीमेंट बढि़या सीमेंट के साथ मिल कर बढि़या वाला ही काम करेगी.

‘‘इसी तरह 6 सूत के सरिए के साथ 5 सूत के सरिए भी बीचबीच में खपा देना. पास खड़े लोगों को भी पता नहीं चलेगा कि हम ऐसा कर रहे हैं,’’ ठेकेदार ने उसे अपने मन की बात खोल कर बताई.

रात का समय था. पुल बनने वाली जगह के पास खुद के लिए लगाए गए एक साफसुथरे तंबू में ठेकेदार अपने बिस्तर पर बैठा था. नजदीक के एक ट्यूबवैल से बिजली मांग कर रोशनी का इंतजाम किया गया था.

ठेकेदार के सामने एक छोटी सी मेज रखी हुई थी. मेज पर रम की खुली बोतल सजी हुई थी. पास में ही एक बड़ी प्लेट में शहर के होटल से मंगाया गया लजीज चिकन परोसा हुआ था.

‘‘ठेकेदार साहब, यह काम मुझ से तो नहीं हो सकेगा,’’ मुस्ताक ने दोटूक जवाब दिया.

‘‘क्या…?’’ हैरत से ठेकेदार का मुंह खुला का खुला रह गया. हाथ की उंगलियां, जो चिकन के टुकड़े को नजाकत के साथ होंठों के भीतर पहुंचाने ही वाली थीं, एक   झटके के साथ वापस प्लेट के ऊपर जा टिकीं.

ठेकेदार को मुस्ताक से ऐसे जवाब की जरा भी उम्मीद नहीं थी. एक लंबे अरसे से वह ठेकेदारी का काम करता आ रहा था, पर इस तरह का जवाब तो उसे कभी भी नहीं मिला था.

‘‘क्यों नहीं हो सकेगा तुम से यह काम?’’ गुस्से से ठेकेदार की आंखें उबल कर बाहर आने को हो गई थीं.

‘‘साहब, आप को भी मालूम है और मुझे भी कि इस पुल से रेलगाडि़यां गुजरा करेंगी. अगर कभी पुल टूट गया तो हजारों लोग बेमौत मारे जाएंगे. मैं तो उन के दुख से डरता हूं. मुझे माफ कर दें,’’ मुस्ताक ने हाथ जोड़ कर अपनी लाचारी जाहिर कर दी.

खुद का मनोबल बनाए रखने के लिए ठेकेदार ने रम का एक और पैग डकारते हुए कहा, ‘‘अरे भले आदमी, तुम खुद मेरे पास यह काम मांगने के लिए आए थे… मैं तो तुम्हें इस के लिए बुलाने नहीं गया था. तब तुम ने खुद ही कहा था कि तुम अपने काम से मुझे खुश कर दोगे.

‘‘पहले जो कारीगर मेरे साथ काम करता था, उसे जब यह पता चला कि मैं ने तुम्हें इस काम के लिए रख लिया है, तो वह दौड़ता हुआ मेरे पास आया और मुझे सावधान करते हुए कहने लगा कि यह विधर्मी तुम्हें धोखा देगा…

‘‘पर, मैं ने उस की एक न सुनी… वह नाराज हो कर चला गया… तुम्हारे लिए अपने धर्मभाइयों को मैं ने नाराज किया और तुम हो कि ईमानदारी का ठेकेदार बनने का नाटक कर रहे हो.’’

‘‘मैं कोई नाटक नहीं कर रहा साहब. यह ठीक है कि मैं आप के पास खुद काम मांगने के लिए आया था… आप ने मेहरबानी कर के मुझे यह काम दिया… मैं इस का बदला चुकाऊंगा, पर दूसरी तरह से…

‘‘मैं वादा करता हूं कि मैं और मेरे साथी कारीगर हर रोज एक घंटा ज्यादा काम करेंगे. इस के लिए हम आप से फालतू पैसा नहीं लेंगे… इस तरह आप को फायदा ही फायदा होगा,’’ मुस्ताक ने यह कह कर ठेकेदार को यकीन दिलाना चाहा.

‘‘अच्छा, इस का मतलब यह कि तू चाहता है कि मैं लुट जाऊं… बरबाद हो जाऊं और तू तमाशा देखे… क्यों?’’ ठेकेदार खा जाने वाली नजरों से मुस्ताक को घूर रहा था.

कारीगर मुस्ताक यह देख कर डर गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘नहीं… मेरा मतलब यह नहीं था कि…’’

‘‘और क्या मतलब है तुम्हारा? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि ईमानदारी के रास्ते पर चल कर पेट तो भरा जा सकता है, पर दौलत नहीं कमाई जा सकती. जिस तरह तू काम करने की बात कर रहा है, वह तो सचाई और ईमानदारी का रास्ता है. उस से हमें क्या मिलेगा?

‘‘तुम्हें मालूम होना चाहिए कि इंजीनियर साहब पहले ही मुझ से रिश्वत के हजारों रुपए ले चुके हैं. ‘वर्क कंप्लीशन सर्टिफिकेट’ देने से पहले न जाने कितने और रुपए लेंगे. कहां से आएंगे वे रुपए? क्या तुम दोगे? नहीं न? तब क्या मैं तुम्हारी ईमानदारी को चाटूंगा? बोलो, क्या काम आएगी ऐसी वह ईमानदारी?

‘‘मुस्ताक मियां, मुझे ईमानदारी बन कर बरबाद नहीं होना है. मुझे तो हर हाल में पैसा कमाना है. याद रखना, ऐसा करने से तुम्हें भी कोई फायदा नहीं होने वाला है.’’

मुस्ताक ने जवाब देने के बजाय चुप रहना ही बेहतर समझा. ठेकेदार ने मन ही मन सोचा कि मुस्ताक को उस के तर्कों के सामने हार माननी ही पड़ेगी. आखिर कब तक नहीं मानेगा? उसे भूखा थोड़े ही मरना है.

अपने लिए एक पैग और तैयार करते हुए ठेकेदार ने मुस्ताक से कहा, ‘‘तुम ने जवाब नहीं दिया.’’

‘‘मैं मजबूर हूं साहब,’’ मुस्ताक ने धीरे से कहा.

‘‘मुस्ताक मियां, मजबूरी की बात कर के मुझे बेवकूफ मत बनाओ. मैं जानता हूं कि तुम जैसे गरीब तबके के लोगों की नीयत बहुत गंदी होती है. तुम्हें हर चीज में अपना हिस्सा चाहिए. ठीक है, वह भी तुम्हें दूंगा और पूरा दूंगा.

‘‘इसीलिए तो तुम लोग सच्चे और ईमानदार बनने का नाटक करते हो. घबराओ मत, मैं भी जबान का पक्का हूं, जो कह दिया, सो कह दिया.’’

ठेकेदार अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ. उस ने अपना दायां हाथ मुस्ताक के कंधे पर रख दिया. इस तरह वह उस का यकीन जीतना चाहता था.

मुस्ताक को चुप देख कर ठेकेदार ने कहा, ‘‘पुल के गिरने वाली बात को अपने मन से निकाल दो. अगर यह पुल गिर भी गया, तब भी न तो मेरा कुछ बिगड़ेगा और न ही तुम्हारा.

‘‘मेरे पास तो अपनी 2 कारें हैं, इसलिए मैं कभी भी रेलगाड़ी में नहीं बैठूंगा. रही बात तुम्हारी, तो तुम्हारे पास इतना पैसा ही नहीं होता कि तुम रेल में बैठ कर सफर करो.’’

ठेकेदार को अचानक महसूस हुआ कि वह मुस्ताक के सामने कुछ ज्यादा ही झुक गया है. मुस्ताक इस बात को उस की कमजोरी मान कर उस पर हावी होने की कोशिश जरूर करेगा, इसलिए उस ने अपना हाथ मुस्ताक के कंधे से दूर किया. फिर अपने लहजे को कुछ कठोर बनाते हुए ठेकेदार ने कहा, ‘‘और अगर अब भी तुम यह काम नहीं करना चाहते, तो कल से तुम्हारी छुट्टी. और कोई आ जाएगा यह काम करने के लिए. कोई कमी नहीं है यहां कारीगरों की. अब जाओ, मेरा सिर मत खाओ.’’

ऐसा कहते हुए ठेकेदार बेफिक्र हो कर फिर से अपने बिस्तर पर जा बैठा और प्लेट से चिकन का टुकड़ा उठा कर आंखें बंद कर के चबाने लगा.

‘‘तो ठीक है साहब, कल से आप किसी और कारीगर को बुला लें.’’

अचानक मुस्ताक मियां के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर ठेकेदार को ऐसा लगा, मानो उस के गालों पर कोई तड़ातड़ तमाचे जड़ रहा हो. उस की आंखें अपनेआप खुल गईं. उस ने देखा कि मुस्ताक वहां नहीं था. उस के लौटते कदमों की दूर होती आवाज साफ सुनाई पड़ रही थी.

पुराने नोट : कालेधन की मार

‘‘यह बुढ़िया भी बड़ी अजीब थी. जाने कहांकहां का… जाने क्यों ये चिथड़ेगुदड़े संभाल कर रखे हुए थी,’’ भुनभुनाते हुए सुमन अपनी मर चुकी सास के पुराने बक्से की सफाई कर रही थी.

तभी सुमन की नजर बक्से के एक कोने में मुड़ेतुड़े एक तकिए पर पड़ी जिस के किनारे की उखड़ी सिलाई से 500 का एक पुराना नोट बत्तीसी दिखाता सा झांक रहा था.

सुमन ने बड़ी हैरत से उस तकिए को उठाया, हिलायाडुलाया, फिर किसी अनहोनी के डर से जल्दीजल्दी उस तकिए की सिलाई उधेड़ने लगी.

अब सुमन के सामने 1000-500 के पुराने नोटों का ढेर था. वह फटी आंखों से उसे हैरानी से देखे जा रही थी. थोड़ी देर तक उस का दिमाग शून्य पर अटक गया, फिर उस की चेतना लौटी.

सुमन ने फौरन आवाज लगाई, ‘‘अरे भोलू के पापा, जल्दी आओ… जरा सुनो तो…’’

‘‘क्या आफत आ गई. अभी खाना दे कर गई है और पुकारने लगी है. यह औरत जरा भी सुकून से खाना नहीं खाने देती है,’’ पति  झुंझलाया.

‘‘अरे, जल्दी आओ,’’ सुमन ने दोबारा कहा.

‘‘पता नहीं, कोई सांपबिच्छू तो नहीं है…’’ बड़बड़ाता हुआ पति वहां पहुंचा. सुमन सिर पर हाथ रखे अपने सामने 1000-500 के पुराने नोटों के ढेर को बड़ी हैरानी से देख रही थी.

पति ने यह नजारा देखा तो उस के भी होश उड़ गए. सारा गुस्सा ठंडा हो गया. फिर अटकतेअटकते वह बोला, ‘‘यह सब क्या है सुमन…’’

‘‘तुम्हारी मां ने बड़े अरमान से हमारी गरीबी दूर करने के लिए ये पैसे जोड़जोड़ कर अपने तकिए में रखे थे. लेकिन 2 साल पहले बेचारी मरते समय यह राज हमें न बता पाई. दिल में यही अरमान रहे होंगे कि बहू, बेटे और उन के बच्चों की इन रुपयों से गरीबी दूर हो जाएगी. पर हाय रे नोटबंदी का दानव मेरी सासू मां के सारे अरमानों को खा गया.’’

यह देख पति भारी मन से बोला, ‘‘अम्मां को मैं ही दवादारू के लिए थोड़ेबहुत पैसे देता रहता था, पर मुझे क्या पता था कि वे हमारी गरीबी दूर के लिए पैसे जोड़ रही थीं.’’

सुमन डबडबाई आंखों से बोली, ‘‘सचमुच अम्मां का दिल बहुत बड़ा था.’’

पति ने कहा, ‘‘हां, शायद हम लोगों से भी ज्यादा बड़ा…’’

सुमन बोली, ‘‘आप सही कहते हो.’’

अब वहां वे दोनों फूटफूट कर रोने लगे, जिसे सिर्फ घर की दीवारें ही सुन पा रही थीं.

नरेंद्र मोदी की सरकार ने सोचा था कि वह नोटबंदी से अमीरों का काला धन निकालेगी, पर यहां तो गोराचिट्टा धन एक रात में काला हो गया था.

बदरंग जिंदगी : दामोदर की अपनी जिंदगी कैसी थी

दामोदर को अहसास हुआ कि उसे फिर से पेशाब लग गया है. पता नहीं, उस का गुरदा खराब हो गया है या शायद कोई और बात है.

ऐसा नहीं है कि दामोदर ने डाक्टर को नहीं दिखाया. उस ने कई डाक्टरों को दिखाया, लेकिन समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है. उसे लगातार पेशाब आना बंद ही नहीं होता है. वह आखिर करे भी तो क्या करे? अब उस का डाक्टरों पर से जैसे विश्वास ही उठ गया है. उसे लगता है कि उस के मर्ज की दवा शायद अब किसी भी डाक्टर के पास नहीं है.

कभीकभी दामोदर को ऐसा भी लगता है कि वह एक ऐसे जंगल में पहुंच गया है, जहां से उसे बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं सूझ रहा है और वह उसी जंगल में जिंदगीभर भटकता रह कर कहीं मरखप जाएगा.

दामोदर को अपनी जिंदगी में सबकुछ अच्छा लगता है, लेकिन यह अच्छा नहीं लगता कि उसे बारबार पेशाब आए. ज्यादा पेशाब आने से उसे बारबार काम छोड़ कर जाना पड़ता है. उस के कारखाने के मालिक इस हरकत पर बड़ी बारीक नजर रखते हैं और वह तब मन ही मन भीतर से कट कर रह जाता है. महीने की 6,000 रुपए तनख्वाह पाने वाला दामोदर पिछले एक साल से ढंग से काम नहीं कर पा रहा है, तभी तो मालिक उस पर गुर्राते हैं.

कभीकभी तो दामोदर को खुद भी लगता है कि वह काम छोड़ दे और अपने घर पर ही रहे, लेकिन अगर वह इस काम को छोड़ देगा, तो खाएगा क्या?

दामोदर के बेटे अमन की उम्र भी महज 19 साल है. इतनी कम उम्र में ही उस ने पूरे घर की जिम्मेदारी संभाल ली है. ऐसी उम्र में दूसरे बच्चे जब बाप के पैसे पर कहीं किसी कालेज में मौज कर रहे होते हैं, उस समय अमन सारे घर को देखने लगा है. आखिर क्या होता है आजकल 6,000 रुपए में? आज अगर अमन को 15,000 रुपए नहीं मिल रहे होते, तो क्या दामोदर घर चला पाता? बिलकुल भी नहीं.

अमन हर महीने याद कर के दामोदर की दवा औनलाइन खरीद कर भेज देता है, नहीं तो अपनी तनख्वाह में तो दामोदर दवा तक नहीं खरीद पाता.

बाजार से दवा खरीदने जाओ तो बड़ी महंगी मिलती है. आजकल डाक्टर के केबिन के बाहर मरीजों से ज्यादा मैडिकल कंपनी के लड़के ही दिखाई देते हैं. मरीजों को ठेलतेठालते अंदर घुसने को बेताब दिखाई पड़ते हैं.

जो थोड़ीबहुत भी नैतिकता डाक्टरों में बची थी, वह इन कमबख्त दवा कंपनियों ने खत्म कर रखी है. रोज एक दवा कंपनी बाजार में उतर जाती है और उस के ऊपर दबाव होता है अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग का. लिहाजा, डाक्टर भी हथियार डाल ही देते हैं.

रोज एक नया चेहरा डाक्टर के केबिन में दाखिल हो जाता है और न चाहते हुए भी वह उन की दवा मरीजों को लिख देता है. दवाओं पर मनमाना दाम कंपनी लगाती है और कंपनी के टारगेट और मुनाफे के बीच फंस जाते हैं दामोदर जैसे लोग.

दामोदर को लगा कि वह कुछ देर और रुका, तो उस का पेशाब पैंट में ही निकल जाएगा. लोग उस की इस बीमारी पर बुरा मुंह बनाते हैं खासकर उस के साथ काम करने वाले.

दामोदर ने अपनी बहुत देर से दबी हुई इच्छा आखिरकार दिनेश को बताई. दिनेश उस का साथी है. रोज काम करने बैरकपुर से रघुनाथपुर वह दिनेश की मोटरसाइकिल से ही आताजाता है. उस के पास अपनी मोटरसाइकिल नहीं है. उस का घर दिनेश के घर के बगल में ही है.

‘‘दिनेश, मैं आता हूं पेशाब कर के,’’ इतना कह कर दामोदर निबटने के लिए जाने लगा.

‘‘अगर तुम्हें  पेशाब करने जाना ही था, तो कारखाना बंद होने से पहले ही चले जाते. और हां, अभी तुम थोड़ी देर पहले भी तो पेशाब करने

गए थे. पता नहीं, तुम को कितनी बार पेशाब लगता है…

‘‘एक हम लोग हैं, जो कारखाने में घुसने के बाद बहुत मुश्किल से 2 या ज्यादा से ज्यादा 3 बार जाते होंगे, लेकिन तुम को तो दिनभर में न जाने कितनी बार पेशाब लगता है. पता नहीं क्या हो गया है तुम्हें. किसी अच्छे डाक्टर को क्यों नहीं दिखाते?’’

दामोदर के चेहरे पर जमानेभर की उदासी उभर आई. उस के सूखे हुए बदरंग चेहरे पर नजर पड़ते ही दिनेश का दिल भी डूबने लगा और वह उस की परेशानी को सम?ाते हुए बोला, ‘‘ठीक है जाओ, लेकिन जरा जल्दी आना. आज मुझे अपने बेटे को पार्क ले कर जाना है. वह पिछले कई हफ्तों से कह रहा है.

‘‘अखिर इन मालिक लोगों के लिए सुबह 9 बजे से रात को 9 बजे तक काम करतेकरते अपने बालबच्चों को कहीं घुमाने का समय ही नहीं मिल पाता.’’

‘‘हां, आता हूं,’’ कह कर दामोदर जल्दी से पान मसाले की एक पुडि़या फाड़ कर अपने मुंह में डालता हुआ पेशाब करने चला गया.

दामोदर सेठ घनश्याम दास के यहां पिछले 20 सालों से काम कर रहा था. दिनेश अभी नयानया है. दोनों मोटरसाइकिल पर बैठे और अपने घर की ओर चल पड़े.

बात के छोर को दिनेश ने पकड़ा, ‘‘तुम्हें यह बीमारी कब से हुई है? तुम इस का इलाज क्यों नहीं कराते हो?’’

दामोदर बोला, ‘‘अरे भाई, इलाज की मत पूछो. कुछ दिन पहले मैं अपनी सोसाइटी के गेट पर खड़ाखड़ा ही बेहोश हो कर गिर पड़ा था. वह तो बगल के एक दुकानदार ने देख लिया और सोसाइटी के गार्ड की मदद से मुझे मेरठ के एक हौस्पिटल में भिजवाया.

‘‘7 दिनों तक हौस्पिटल में रहा. एक दिन का 15,000 रुपए चार्ज था वहां का. केवल 7 दिनों में ही एक लाख रुपए से ज्यादा उड़ गए. फिर मेरे लड़के ने दूसरे हौस्पिटल में मुझे भरती कराया, तब जा कर अभी मेरी हालत में कुछ सुधार आया. अगर वह दुकानदार और गार्ड़ न होते, तो आज मैं तुम्हारे सामने जिंदा न खड़ा होता.’’

‘‘और सारा खर्चा कहां से आया? सेठजी ने कुछ मदद की या नहीं?’’ दिनेश ने पूछा.

‘‘अरे, मुझे कहां होश था. लड़का बता रहा था कि उस ने मालिक को फोन कर के पैसे मांगे थे, लेकिन मालिक की सूई 2,000 रुपए पर अटकी हुई थी. बड़ी हीलहुज्जत के बाद उन्होंने 5,000 रुपए दिए थे.’’

‘‘बाकी के पैसों का इंतजाम कैसे हुआ?’’

‘‘कुछ अगलबगल से कर्ज लिया और बाकी मेरे ससुरजी ने तकरीबन 4 लाख रुपए दे कर मेरी मदद की. तब जा कर मेरी जान बची.’’

मोटरसाइकिल एक मैडिकल स्टोर के बगल से गुजरी. दामोदर ने दिनेश को गाड़ी रोकने के लिए कहा और वह लपकता हुआ मैडिकल स्टोर की तरफ बढ़ गया. उस की दवा खत्म हो गई थी.

दामोदर ने दुकानदार को परची दिखाई. दुकानदार ने परची को बड़े गौर से देखा और दवा निकाल कर उस ने काउंटर पर रख दिया और दामोदर से बोला, ‘‘इस बार भी कंपनी ने दवा का दाम बढ़ा दिया है. पिछली बार यह 250 रुपए की थी, अब 270 रुपए लगेंगे.’’

दामोदर ने जेब में हाथ डाला और पैसे गिने. उस के पास 200 रुपए थे. उसी में उसे रास्ते में घर के लिए एक लिटर दूध भी लेना था. पैसा नहीं बचेगा.

दामोदर ने दुकानदार से कहा, ‘‘फिलहाल तो मुझे 2 दिन की 2 गोली दे दो, बाकी जब तनख्वाह मिलेगी, तब आ कर ले जाऊंगा.’’

दवा ले कर बाकी पैसे दामोदर ने जेब के हवाले किए और वापस आ कर मोटरसाइकिल पर बैठ गया. रास्ते में उस ने एक लिटर दूध भी लिया.

घर पहुंच कर दामोदर ने हाथमुंह धोए और पलंग पर लेट गया. तब तक उस की पत्नी रुचि चाय बना कर ले आई. एक प्याली उस ने दामोदर को दी और दूसरी प्याली खुद ले कर चाय पीने लगी.

चाय पीतेपीते रुचि बोली, ‘‘आज मकान मालिक आया था और घर का किराया मांग रहा था. कह रहा था कि 2 महीने का किराया तो पूरा हो ही गया है और अब तीसरा महीना भी लगने वाला है. आप लोग जल्दी से जल्दी किराया दीजिए, नहीं तो घर को खाली कर दीजिए.’’

‘‘यह हरीश भी अजीब आदमी है. वह जानता है कि हम लोग दानेदाने को तरस रहे हैं. एक तो राशन की परेशानी, उस पर हर महीने का किराया.

‘‘इन ढाई महीनों में मैं पहले ही अपने जानपहचान के सभी लोगों से कर्ज ले चुका हूं. उस को भी सोचना चाहिए. दुकान बंद है. जब मालिक से पैसा मिलेगा, तब उस को किराया भी मिल ही जाएगा. हम कौन सा भागे जा रहे हैं?’’

दामोदर को लगा जैसे उस के सीने पर किसी ने बहुत भारी पत्थर रख दिया हो, जैसे उस की सांस फूलने लगी हो और उस का दम घुट जाएगा, वह वहीं पलंग पर खत्म हो जाएगा. लिहाजा, वह उठ कर पलंग पर बैठ गया.

‘‘आज मां का फोन भी आया था. कह रही थीं कि एक बार में न सही, किस्तों में ही 4 लाख रुपए थोड़ेथोड़े कर के लौटा दे. मेरी छोटी बहन निम्मो की शादी तय हो गई है. अगले साल कोई अच्छा सा लगन देख कर पिताजी निम्मो की शादी कर देना चाहते हैं. तुम से सीधेसीधे कहते नहीं बना तो उन्होंने मां से फोन कर के कहलवाया है,’’ रुचि ने डरतेडरते धीरे से कहा.

‘‘ठीक है, उन का भी कर्ज हम लोग चुका देंगे, लेकिन थोड़ा समय चाहिए,’’ दामोदर छत को घूरते हुए बोला.

रात काफी गहरा चुकी थी. रुचि कब की सो गई थी, लेकिन दामोदर को नींद नहीं आ रही थी. रहरह कर वह बदरंग हो चुकी दीवार और छत को घूरता जा रहा था. उसे कभीकभी यह भी लगता है कि दीवार और छत की तरह ही उस की जिंदगी भी बदरंग हो गई है. एकदम बेकार पपड़ी छोड़ती और सीलन से भरी हुई.

क्या पाया आज दामोदर ने 55 साल की उम्र में? कुछ भी तो नहीं. ताउम्र खटता रहा, लेकिन उस के हाथ क्या लगा? जीरो. एक ऐसी जिंदगी, जो खुशी से ज्यादा उसे दुख ही देती रही.

अचानक दामोदर को लगा कि उसे फिर से पेशाब लग गया है, तो वह उठ कर फारिग होने चला गया. आ कर वापस लेटा तो रुचि की नींद खुल गई.

रुचि ने उबासी लेते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ? नींद नहीं आ रही है क्या?’’

‘‘नहीं. लगता है कि पलंग में खटमल हो गए हैं और मुझे काट रहे हैं,’’ दामोदर बिछौना ठीक करता हुआ बोला.

रुचि ने ‘अच्छा’ कहा और उबासी लेते हुए फिर सो गई. दामोदर के बगल वाला कमरा उस की बेटी प्रीति का है. पापा के आने की आहट पा कर उस ने जल्दी से अपने कमरे की बत्ती बंद कर ली, लेकिन दामोदर के दिमाग में एक नई चिंता ने घर करना शुरू कर दिया.

आखिर इस साल प्रीति का 25वां लगने वाला है. आखिर कब तक जवान लड़की को कोई घर में रखेगा. कल को कुछ ऊंचनीच हो गई तो…

तमाम चिंताओं के बीच दामोदर रातभर करवटें बदलता रहा, लेकिन उसे नींद नहीं आई.

 बसंती: शातिर भोला के चंगुल में एक अंधविश्वासी

गांव का एकलौता पुरोहित भोला इस बात से पूरी तरह वाकिफ था कि मरने से पहले बसंती की मां बेटी के पास कुछ चांदी के सिक्के व जेवरात छोड़ गई है, जिसे किसी बहाने से हासिल कर के वह कुछ दिनों के लिए अपनी बदहाली तो दूर कर ही सकता है.

थोड़ी देर में ही पूजा का काम खत्म कर उस ने एक गहरी नजर से बीमार सुमन की ओर देखा. फिर बसंती की ओर मुखातिब हो कर बोला, ‘‘तेरी बेटी को कोई प्रेतात्मा परेशान कर रही है. अब इसे बचाना बड़ा मुश्किल है. अच्छा होगा कि तू इस मनहूस बच्ची का मोह छोड़ कर फिर से गोद भरने की कोशिश करे.’’

पुरोहित से ऐसा जवाब सुन कर बसंती दुखी आवाज में बोली, ‘‘बाबा, अगर मेरी एकलौती बेटी मर गई, तो फिर मैं अपनी सूनी गोद ले कर यह पहाड़ सी जिंदगी कैसे काट पाऊंगी?’’

बसंती की इस कमजोरी से पुरोहित को अपने अंधविश्वास का तीर सही निशाने पर लगने का एहसास हुआ. उस ने सहज ही यह जान लिया कि अब देरसवेर वह उस की ?ोली में जरूर आ गिरेगी.

पुरोहित भोला मन ही मन मुसकराते हुए मीठी आवाज में बोला, ‘‘तेरी मां अपने मन में धनदौलत का मोह लिए ही मर गई, इसलिए उस की आत्मा प्रेतलोक में बेचैन भटक रही है. अब वही बेचैन आत्मा प्रेतलोक से लौट कर इस घर में आ बैठी है, जिस के असर से तेरी गोद और सुमन की जिंदगी दोनों खतरे में है.’’

‘‘तो फिर इस प्रेतात्मा से पीछा छुड़ाने का कोई उपाय बताइए बाबा?’’ बसंती ने सहमते हुए पूछा.

‘‘तुम फौरन अपनी मां के सारे जेवरात और चांदी के सिक्के अपने हाथ से छू कर किसी ब्राह्मण को दान कर दो. उसी दान की बदौलत सुमन को एक नई जिंदगी मिलेगी और तुम्हें मां बनने का सुनहरा मौका.’’

पुरोहित की कही बात पर गंवार बसंती ने पूरी तरह यकीन कर लिया. फिर भी वह अपनी लाचारी जाहिर करते हुए बोली, ‘‘लेकिन बाबा, मैं तो बेटी की बीमारी दूर होने की उम्मीद पर पहले से ही अपने सारे जेवर बेच चुकी हूं, अब इस हाल में मां के जेवर भी दान में दे दूंगी, तो फिर वक्त पड़ने पर किस के आगे हाथ पसारने जाऊंगी? कौन सहारा देगा मु?ो?’’

बसंती की मजबूरी को सुन कर पुरोहित को अपना खेल बिगड़ता नजर आया. लेकिन तुरंत ही लोभ का दूसरा पासा फेंकते हुए वह बोला, ‘‘क्या तेरे मन में बेटा पाने की तनिक भी लालसा नहीं है?’’

‘‘लालसा तो कब से लगी है…’’ बसंती ?ोंपती हुई बोली, ‘‘सिर्फ एक बेटे की कमी से मेरी पूरी जिंदगी बो?ा जैसी बन गई है. एक बेटा पाने के लिए मैं कब से तरस रही हूं.’’

‘‘तो ठीक है, कल सुबह तुम अपनी मां के सारे जेवर मुझे दान में दे देना.

फिर देखना, मैं तेरे अंधेरे घर में कितनी जल्दी उजाला कर देता हूं,’’ इतना कहते हुए भोला की नजर बसंती की देह से फिसलती हुई वहां जा कर ठहर गई, जहां लोहे की पुरानी संदूकची पड़ी हुई थी.

अब बसंती को पुरोहित की नीयत सम?ाने में जरा भी देर नहीं हुई, पर घर में अकेली और देह से कमजोर बसंती मन मसोस कर रह गई.

‘‘अब क्या सोचने लगी?’’ भोला ने उसे टोका, ‘‘क्या मेरा सु?ाव ठीक नहीं लगा?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ बसंती ने ऊंची आवाज में नफरत से कहा, ‘‘अपनी गोद दोबारा भरने के लिए मां के कीमती जेवर किसी और के हाथ में देने की हिम्मत मु?ा में नहीं है.’’ बसंती के इस रूखे बरताव ने पुरोहित के लहलहाते अरमानों पर ओले बरसा दिए.

फिर भी पुरोहित ने हार नहीं मानी और धीमी आवाज में बोला, ‘‘जब बेटी की बीमारी दूर होने की उम्मीद पर तुम ने अपने जेवर बेच दिए, तो दोबारा मां बनने की उम्मीद में तुम अपनी मां के पुराने गहने पुरोहित को दान में नहीं दे सकतीं? जानती नहीं, पुरोहित को दिया हुआ दान लोकपरलोक दोनों को सुधारता है?’’

पुरोहित ने एक बार फिर उस संदूकची की ओर देखा, तो बसंती का रोमरोम एक अनजाने खौफ से सिहर उठा.

अभी वह खामोश खड़ी थी कि पुरोहित की पत्नी कमला पति को तलाशती हुई वहां आ पहुंची और तेज आवाज में बोली, ‘‘क्योंजी, यजमानी के इस काम से जो आमदनी होती है, उसे आप शराब और गांजा पीने में उड़ा देते हैं, फिर यह धंधा सिर पर ढोने से क्या फायदा, जब घर में बीवीबच्चे रोटी के लिए तरस रहे हों?’’

‘‘ठीक है, आज का ‘सीधा’ बसंती बहू से ले लो और घर जा कर भोजन बनाओ,’’ पुरोहित ने पत्नी को टालने की नीयत से कहा और जल्दी से पोथीपतरा समेट कर दूसरे यजमान के घर कथा बांचने चला गया. भोला के जाते ही ‘सीधा’ लेने के लिए ठहरी कमला बसंती को उदास देख कर संजीदगी से पूछ बैठी,

‘‘इस पूजापाठ के पीछे तेरी क्या मुराद है बहू?’’

‘‘मासूम बेटी की सलामती, जो अब मुमकिन नहीं लगती.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’ कमला उतावली हो कर पूछ बैठी, ‘‘क्या इस पूजापाठ पर तु?ो बिलकुल भरोसा नहीं?’’

‘‘भरोसा तो है चाची, लेकिन आज के पुरोहित पूजापाठ की ओट में अपने यजमान को उलटा पाठ पढ़ाना शुरू कर दिए हैं. धर्मकर्म के नाम पर अब ये ढोंगी अपने यजमान का धन और धर्म दोनों लूट लेना चाहते हैं.’’

‘‘यह तुम क्या बकने लगी बहू?’’ कमला हैरत से बोली, ‘‘मैं ने क्या पूछा और तू जवाब क्या देने लगी?’’

‘‘सच कहती हूं चाची…’’ बसंती का गला भर आया, ‘‘बेटी की लंबी बीमारी ने मु?ो बुरी तरह से ?ाक?ोर दिया है और इसी आफत में पुरोहितजी दोबारा गोद भरने का लालच दे कर मेरा सबकुछ ठग लेना चाहते हैं.’’

बसंती की पीड़ा सुन कर कमला का दिमाग ?ान?ाना उठा. उस के हाल पर तरस खा कर वह बोली, ‘‘ठीक है बहू, इस समय मैं खाना बनाने जा रही हूं. लेकिन शाम को इस बारे में तुम से फिर बात करूंगी.’’

शाम को कमला बसंती से मिल कर उस की आपबीती से पूरी तरह वाकिफ हो चुकी थी.

दूसरे दिन सुबह पुरोहित जैसे ही कथा बांचने के लिए बसंती के घर पहुंचा, तो उस के पीछेपीछे कमला भी आ गई.

पत्नी को इस तरह आया देख पुरोहित अपनी लाल आंखों से उसे घूरते हुए रूखे स्वर में बोला, ‘‘आज सुबह से ही तुम मेरे पीछे क्यों पड़ी हो? क्या चाहती हो तुम?’’

‘‘बस यही कि अब आप यह यजमानी का पेशा छोड़ दीजिए.’’

‘‘वह क्यों?’’ भोला ने हैरत से पूछा.

‘‘क्योंकि अब यह पेशा शरीफ ब्राह्मणों का सुकर्म नहीं, बल्कि खातेपीते ब्राह्मणों का कुकर्म बन गया है. अब यह पेशा पुरोहित और यजमान के पाक रिश्ते के बीच एक ऐसी दरार पैदा करता जा रहा है, जो आने वाले दिनों में दोनों की शराफत पर एक सवालिया निशान लगा सकता है,’’ कमला ने पति की ओर देख कर संजीदगी से कहा.

पुरोहित ने जोर से चीख कर कमला को एक जबरदस्त धक्का दिया, जिस से वह सामने की दीवार से जा टकराई और उस का सिर लहूलुहान हो गया.

कमला फूटफूट कर रो पड़ी, लेकिन भोला पर इस का कोई असर नहीं हुआ. वह गुस्से में अपनी पत्नी को और भी भलाबुरा कहने लगा.

पति की घुड़की से बेअसर कमला बरसती आंखों से उसे देखती हुई बोली, ‘‘आज मु?ो भी पता चल गया है कि पुरोहित कितना नीच और घटिया इनसान होता है, जो अपने यजमान की मजबूरी पर तरस खाने के बजाय उस की दौलत व इज्जत लूटने को तैयार हो जाता है.

‘‘अब मेरे लिए विधवा की जिंदगी जी लेना आसान है, मगर किसी ढोंगी, लोभी, पाखंडी, ठग और धर्मकर्म का पेशा करने वाले पुरोहित की सुहागन बन कर जी लेना आसान नहीं.’’

इतना कह कर कमला जैसे ही वहां से चलने को हुई कि अचानक पुरोहित के भीतर का इनसान जाग उठा और कमला के सिर पर हाथ रखते हुए भरे गले से बोला, ‘‘तेरी कसम, यह पूजापाठ, हवन, जाप, लोकपरलोक व पुरोहितयजमान सब बनावटी बातें हैं.

‘‘अब इस गलत काम को मैं कभी नहीं दोहराऊंगा. ऐसे दकियानूसी विचारों में कोरे अंधविश्वास व दिमागी वहम के सिवा कुछ और नहीं है. तुम आखिरी बार मु?ो माफ कर दो.’’ फिर कमला बिना पति की ओर देखे बसंती की बीमार बेटी सुमन को गोद में उठा कर तेज कदमों से डाक्टर के पास चल पड़ी.

औक्टोपस कैद में : कैसे थे मंत्री के कारनामे

सुभांगी जब मंत्री के कमरे से जल्दी बाहर निकल कर आई, तो उस का चेहरा तमतमाया हुआ था. उस की आंखें अंगारे बरसा रही थीं और बदहवास सी वह वंदना को ढूंढ़ रही थी.

ज्यों ही वंदना से उस का सामना हुआ, वह अपना आपा खो बैठी. उस ने वंदना को धिक्कारते हुए कहा, ‘‘तुम ने तो अपनी इमेज खराब कर ली, लेकिन तुम ने मेरे बारे में यह कैसे सोच लिया कि मैं भी तुम्हारे रास्ते चल पडूंगी.’’

‘‘क्यों… क्या हो गया?’’ वंदना ने ऐसे पूछा, जैसे वह कुछ जानती ही न हो.

‘‘वही हुआ, जो तुम ने सोचा था. मैं भी तुम्हारी तरह लालची और डरपोक होती तो शायद बच कर नहीं निकल पाती…’’ सुभांगी ने अपनी उफनती सांसों पर काबू पाते हुए कहा.

वंदना समझ गई कि सुभांगी उस की सचाई को जान गई है. उस ने पैतरा बदलते हुए कहा, ‘‘देखो सुभांगी, अगर तुम को आगे बढ़ना है, तो कई जगह समझौते करने पड़ेंगे. फिर क्या हर्ज है कि किसी एक पहुंच वाले आदमी के आगे झुक लिया जाए. मुझे देखो, आज मैं मंत्रीजी की वजह से ही इस मुकाम तक पहुंची हूं…’’

वंदना मंत्री से अपने संबंधों के चलते ही ब्लौक प्रमुख बनी थी. पहली बार जब वह आंगनबाड़ी में नौकरी करने की गरज से मंत्री के पास गई थी, तो उस का सामना एक भयंकर दुर्घटना से हुआ था.

उस की मजबूरी को भुनाते हुए मंत्री ने भरी दोपहरी में उस की इज्जत लूटी थी. एक बार तो उस को ऐसा सदमा लगा कि खुदकुशी का विचार उस के मन में आ गया था, लेकिन मंत्री ने उस के गालों को सहलाते हुए कहा था, ‘नौकरी कर के क्या करोगी… मुझे कभीकभार यों ही खुश कर दिया करो. बदले में मैं तुम्हें वह पहचान और पैसा दिलवा दूंगा, जिस की तुम ने कभी कल्पना भी न की हो.’

उस समय वंदना भी मंत्री के मुंह पर थूक कर भाग आई थी, लेकिन घर पहुंचने पर उस के मन में कई तरह के खयाल आए थे. कभी उस को लगता था कि फौरन जा कर पुलिस को सूचित करे और मंत्री के खिलाफ जंग का बिगुल बजा दे, लेकिन अगले ही पल उसे लगा कि मंत्री के खिलाफ लड़ने का अंजाम आखिरकार उस को ही भुगतना पड़ेगा.

जिन दिनों वंदना मंत्री के कारनामे से आहत हो कर घर में गुमसुम बैठी थी, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात अर्चना से हुई थी. अर्चना कहने को तो टीचर थी, लेकिन उस के कारनामे बस्ती में काफी मशहूर थे.

अर्चना ने वंदना को समझाया था, ‘औरत को तो हर जगह झुकना ही होता है बहन. कुछ लोग मजे ले कर चले जाते हैं और कुछ एहसान का बदला चुकाते हैं. मंत्रीजी ने जो किया, वह बेशक गलत था, लेकिन अब वे अपने किए का मुआवजा भी तो तुम को दे रहे हैं. झगड़ा मोल लोगी तो पछताओगी और अगर समझोता करोगी, तो आगे बढ़ती चली जाओगी.’

अर्चना ने वंदना को इतने हसीन सपने दिखाए थे कि उस से मना करते हुए नहीं बना. उस के साथ वह राजधानी पहुंची और कई दिनों तक मंत्री के लिए  मनोरंजन का साधन बनी रही.

अब वंदना को पता चला कि मंत्री की एक रखैल अर्चना भी है. अर्चना की सेवा से खुश हो कर मंत्री ने उसे उसी स्कूल का प्रिंसिपल बना दिया, जिस में कभी मंत्री की मेहरबानी से वह टीचर बनी थी.

वंदना सत्ता के सपनीले गलियारों में कुछ यों उलझ कि उस को अपने पति से खिलाफत करते हुए भी झिझक नहीं हुई.

मंत्री के कारनामों से उस के पति अनजान नहीं थे. नौकरी के सिलसिले में वे अकसर घर से बाहर ही रहते थे, लेकिन अपनी बीवी की हर चाल से वे वाकिफ थे. पानी जब सिर से ऊपर गुजरने लगा, तो उन्होंने वंदना को रोकने की कोशिश की.

बच्चों का हवाला देते हुए उन्होंने वंदना से कहा था, ‘तुम 2 बच्चों की मां हो. बच्चों की पढ़ाई और परवरिश के लिए मैं जो कमाता हूं, वह काफी है. इज्जत की कमाई थोड़ी ही सही, लेकिन अच्छी लगती है.

‘‘ईमान और इज्जत बेच कर कोई लाखों रुपए भी कमा ले, तो दुनिया की थूथू से बच नहीं सकता. अभी देर नहीं हुई, मैं तुम्हारे अब तक के सारे गुनाह माफ करने को तैयार हूं, बशर्ते तुम इस गलत रास्ते से वापस लौट आओ…’

वंदना अब इतनी आगे बढ़ चुकी थी कि उस का किसी से कोई वास्ता नहीं रहा था. उस ने पति को दोटूक शब्दों में कह दिया था, ‘मैं जिंदगीभर तुम्हारी दासी बन कर नहीं रह सकती. अब तक मैं ने जो चुपचाप सहा, वह मेरी भूल थी. अब मुझे अपने रास्ते चलने दो.’

यह सुन कर वंदना का पति चुप हो गया था. उस को लगा कि वंदना को रोकना अब खतरनाक हो सकता है. उस की वजह से घर में क्लेश बढ़ सकता था. उस ने दोनों बच्चों को अपने साथ ले जाने का फैसला किया और वंदना को उसी के हाल पर छोड़ दिया.

वंदना ने भी पति के फैसले में कोई दखल नहीं दिया. अब उस के ऊपर बच्चों की देखरेख करने का जिम्मा भी नहीं रहा.

तमाम जिम्मेदारियों से छूट कर वंदना अब मंत्री की सेवा में खुद को पूरी तरह सौंप चुकी थी. बाहुबली मंत्री ने पंचायत चुनावों में अपने आपराधिक संपर्कों का इस्तेमाल कर वंदना को ब्लौक प्रमुख बना दिया. मंत्री से अपने संबंधों को उस ने जम कर भुनाया.

वंदना अपने दबदबे का इस्तेमाल जनता की भलाई के लिए करती तो लोगों का समर्थन हासिल करती, लेकिन लालच में अंधी हो कर उस ने मंत्री के दलाल की भूमिका निभानी शुरू कर दी.

अफसरों से पैसा वसूलना और अपने गुरगों को ठेके दिलवाने के अलावा अब वह आसपास के गांवों की भोलीभाली लड़कियों को नौकरी का लालच दे कर अपने आका के बैडरूम तक पहुंचाने लगी थी.

सुभांगी उस इलाके में अपनी स्वयंसेवी संस्था चलाती थी. वह पढ़ीलिखी और जरूर थी. अपनी संस्था के जरीए वह औरतों और बच्चों को पढ़ाने की मुहिम चला रही थी.

वंदना और सुभांगी की मुलाकात एक सरकारी कार्यक्रम में हुई. शातिर वंदना की नजर सुभांगी पर लग चुकी थी. उस ने सुभांगी से दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी.

एक दिन मौका पा कर वंदना ने सुभांगी से पूछा, ‘तुम इतनी मेहनत करती हो. चंदा जुटा कर औरतों और बच्चों को पढ़ाती हो. ऐसे कामों के लिए सरकार अनुदान देती है. तुम खुद क्यों नहीं इस दिशा में कोशिश करती?’

‘सरकारी मदद लेने के लिए तो आंकड़े चाहिए और मेरी समस्या यह है कि मैं जमीन पर रह कर यह काम करती हूं, लेकिन फर्जी आंकड़े नहीं जुटा सकती…’ सुभांगी ने जवाब दिया.

‘तुम को फर्जी आंकड़े जुटाने की क्या जरूरत है? तुम्हारे पास तो ढेर सारे आंकड़े पहले से ही मौजूद हैं. तुम कहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं. इस इलाके के विधायक सरकार में मंत्री हैं और उन से मेरे अच्छे ताल्लुकात हैं,’ वंदना ने अपना जाल बिछाते हुए कहा.

सुभांगी को वंदना के असली कारनामों की जानकारी नहीं थी. वह उस की बातों में आ गई. उस ने सोचा कि चंदा वसूल कर अगर वह इतनी बड़ी मुहिम चला सकती है, तो सरकारी मदद मिलने पर इस को और भी सही ढंग से चला सकेगी.

उस शाम वंदना सुभांगी को ले कर मंत्री के घर पहुंची. उस का परिचय कराने के बाद वह तो कमरे से बाहर आ गई, लेकिन सुभांगी को वहीं छोड़ गई.

सुभांगी ने मंत्री की तरफ अपनी फाइल बढ़ाते हुए कहा, ‘इस में मेरे अब तक के काम का पूरा ब्योरा है. काम तो मैं यों भी कर ही रही हूं, लेकिन सरकार मदद दे दे तो मैं और भी बेहतर काम कर पाऊंगी.’

‘चिंता न करो, हम तुम को अच्छा अनुदान देंगे…’ मंत्री के मुंह से शराब की बदबू का भभका आया, तो सुभांगी के कान खड़े हो गए. वह फौरन कुरसी से उठी और बोली, ‘आप मेरी फाइल देख लीजिए… अभी मैं चलती हूं.’

सुभांगी दरवाजे की ओर मुड़ी ही थी कि नशे में धुत्त मंत्री ने उस को पीछे से दबोचते हुए कहा, ‘फाइल से पहले मैं तुम को तो देख लूं मेरी रानी…’

मंत्री ने सुभांगी को अपनी बांहों में मजबूती से जकड़ लिया. सुभांगी उस की गिरफ्त से बचने के लिए ऐसे छटपटाने लगी, जैसे कोई मजबूर मछली औक्टोपस की कैद से निकलने के लिए छटपटाती है.

देर तक सुभांगी मंत्री के चंगुल से निकलने के लिए छटपटाती रही और जब उस की ताकत जवाब दे गई, तो वह निढाल हो कर फर्श पर गिर पड़ी.

इस से पहले कि वह खूंख्वार शैतान उस की देह पर बिछता, उस ने चालाकी से अपने जूड़े में फंसी पिन मंत्री के मोटे गाल में घोंप दी. मंत्री की चीख निकल गई और वह एक किनारे हो गया. इस बीच सुभांगी बच कर भाग निकली.

मंत्री के कमरे से निकलते ही सुभांगी का सामना वंदना से हुआ. वह वंदना की सचाई सम?ा चुकी थी. उस को डपट कर वह पुलिस थाने पहुंची.

एक जवान लड़की को यों बदहवास भागते देख कर लोग सकते में आ गए. मीडिया को भी खबर लग गई. देखते ही देखते थाने में भीड़ जुट गई. दबाव में आ कर पुलिस ने न चाहते हुए भी रिपोर्ट दर्ज कर ली.

अगले दिन मंत्री के कारनामों की खबरें अखबारों में हैडलाइन बन कर छपीं. विपक्षी पार्टियों के दबाव में आ कर मंत्री को गिरफ्तार किया गया.

पुलिस जांच में पता चला कि सुभांगी के अलावा मंत्री ने कई मजबूर लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाया और इस की सूत्रधार थी वंदना. वंदना को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

आज वंदना जेल की कोठरी में कैद है. उस की सारी इच्छाएं खत्म हो चुकी हैं. अब उस को अपना अतीत याद आता है, जब उस के पति ने उस को बारबार समझाया था कि गलत रास्ता छोड़ दे, लेकिन उस समय उस की आंखों पर पट्टी बंधी थी. वह खुद को सबकुछ समझ बैठी थी. सुभांगी की तरह उस ने भी हिम्मत कर मंत्री को सबक सिखाया होता, तो आज यह दिन न देखना पड़ता.

वंदना अब घुटघुट कर जी रही है. उस के पास अपनी करनी पर पछतावा करने के अलावा कोई और चारा नहीं है. उस को अब अपने बच्चों की याद सताती है. पति से अपने गुनाहों के लिए माफी मांगने के लिए वह छटपटाती रहती है, लेकिन उस का कोई अपना उस से मिलने को तैयार नहीं है.

दूसरी तरफ सुभांगी के हिम्मत की चारों ओर तारीफ हो रही है. राजधानी के नागरिक सुरक्षा मंच ने उस को सम्मानित ही नहीं किया, बल्कि अपनी महिला शाखा का प्रधान भी बना दिया.

आज सुभांगी को तमाम सम्मानों से उतनी खुशी नहीं मिलती, जितनी कि इस बात से कि उस के एक हिम्मती कारनामे ने उस दुष्ट औक्टोपस को कैद करवा दिया, जो सालों से मजबूर लड़कियों को जकड़ता चला आ रहा था.

उस को खुशी है तो इस बात कि न तो उस ने वंदना और अर्चना की तरह समझौता किया और न ही उस ने हार मानी. उस ने हिम्मत से उस भयंकर औक्टोपस का सामना किया, जो तमाम मछलियों पर घात लगाए बैठा था.

मुझ से दूर रहो : कैसा था मूलक का जीवन

तकरीबन 10 साल गांव से दूर रहने के बाद मूलक दोबारा लौटा था. जब वह यहां से गया था, तब यह गांव 20-30 झोंपड़ियों वाला एक छोटा सा डेरा था.

गांव के ज्यादातर मर्द कोयले और लोहे की खदानों में काम करते थे. दिनभर बदनतोड़ मेहनत के बाद कोई ताड़ी तो कोई कच्ची शराब पी कर नमकभात खा कर पड़ जाते थे. किसीकिसी परिवार की औरतें भी खदानों में काम करती थीं.

यह गांव मध्य प्रदेश के उस इलाके में था, जो अब छत्तीसगढ़ में आता है. जब मूलक गांव वापस लौटा, तब छत्तीसगढ़ बन चुका था. ज्यादातर गांव अभी भी मुख्य शहरों से बस कच्ची सड़कों से ही जुड़े थे. चारों ओर वही जंगली घास और बीहड़ थे.

गांव के कच्चे रास्तों पर सवारी के साधनों की अभी भी पूरी तरह कमी थी. संचार के साधन भी अभी तक केवल अमीरों को ही सुलभ थे. गरीब तो आज भी चिट्ठीपत्री के ही भरोसे पर थे.

भिलाई से गांव पहुंचतेपहुंचते मूलक को अच्छीखासी रात हो चुकी थी. दीए बुझ चुके थे और चारों तरफ घनघोर अंधेरा पसरा हुआ था. कहींकहीं एकाध जुगनू झिलमिल कर के मूलक को यहां की पगडंडी दिखा देता था.

यह पगडंडी बिलकुल भी नहीं बदली थी. एकदम वैसी ही एकडेढ़ गज चौड़ी, दोनों ओर जंगली बेर की कंटीली झाडि़यां और भुलावा की बेल…

‘अरे, यहां तो भुलना की बेल होती हैं. अगर उन पर मेरा पैर पड़ गया, तो मैं सब भूल जाऊंगा,’ अचानक चलतेचलते मूलक को बचपन में सुनी हुई बात याद आई और उस के कदम ठिठक गए.

‘‘भुलना की बेल… भला बेल भी किसी को रास्ता भुला सकती है?’’ मूलक ने खुद से कहा और तेजी से चलने लगा. अब सामने घना जंगल था और उस जंगल के उस पार नदी किनारे पर उस का गांव.

अभी मूलक मुश्किल से 20-30 कदम ही चला होगा कि अचानक उसे किसी चीज से ठोकर लगी और वह मुंह के बल झाडि़यों के ऊपर गिर पड़ा. उस के गिरते ही जंगली घास की उस झाड़ी से किसी औरत के चीखने की बहुत तेज आवाज आई, ‘‘आह… दूर रहो मुझ से.’’

औरत की आवाज सुन कर मूलक की जैसे सांस अटक गई. वह डर से सूखे गले को थूक निगल कर तर करने की कोशिश करते हुए मिमिया कर बोला, ‘‘कौन…? कौन हो तुम…?’’

 

‘‘चुड़ैल हूं मैं. दूर रहो मुझ से, नहीं तो तुम्हारा भी खून पी जाऊंगी,’’ वह औरत उसे डराने की कोशिश करतेहुए चीखी.

अब तक मूलक उठ कर खड़ा हो चुका था और गिरने और उठने के बीच वह यह जान चुका था कि यह कोई जवान औरत है. उस के हाथ उस जिस्म को महसूस कर चुके थे, लेकिन ऐसे अचानक इस अंधकार में इस झाड़ी में औरत के होने की कल्पना तो कोई सपने में भी नहीं कर सकता था, ऊपर से उस ने कहा था. ‘चुड़ैल…’

मूलक डर से कांप उठा, लेकिन फिर भी वह हिम्मत जुटा कर खड़ा हुआ.‘‘उठो यहां से, यहां झाड़ी में छिपी क्या कर रही हो तुम?’’ मूलक उसे पकड़ कर झकझोरते हुए बोला.‘‘भाग जा यहां से, कह तो दिया चुड़ैल हूं. जा, चला जा इस से पहले कि तुझ पर मेरा साया पड़ जाए, जान बचा ले अपनी,’’ वह औरत उसे डराने की कोशिश करते हुए बोली, पर उस की इस धमकी के बीच उस औरत की आवाजमें दर्दभरी सिसकी मूलक ने साफ सुन ली थी.

इस सिसकी ने न जाने क्यों मूलक के दिल की धड़कन बढ़ा दी थी. उसे न जाने क्यों इस सिसकी में किसी अपने का दर्द महसूस हुआ

मूलक ने उस औरत का हाथ पकड़ कर ऊपर उठाया और खींचते हुए उसे उठाने लगा, ‘‘चलो, उठो यहां से और उधर चल कर बताओ कि कौन हो तुम और तुम्हारे साथ क्या हुआ है?’’

वह गांव के बाहर एक उजाड़ ढाबे की ओर इशारा करते हुए बोला, जो इस जंगल के अंदर ही नदी के इस पार बना हुआ था.

‘‘आह… छोड़ो मुझे. तुम्हें समझ नहीं आता, दूर रहो तुम मुझ से. उधर ले जा कर तुम भी सब की तरह मुझे चुड़ैल होने की सजा दोगे.

‘‘तुम भी सब की तरह मुझ पर जुल्म करोगे. मेरी इज्जत से खेलोगे… अब मेरे पैरों में खड़े होने की ताकत नहीं बची और न ही जिस्म में किसी से जिस्मानी होने की ताकत.

‘‘जाओ, छोड़ दो मुझे. मैं मान तो रही हूं कि मैं चुड़ैल हूं. चले जाओ यहां से,’’ वह औरत घबरा कर हाथ जोड़ते हुए बोली.

उस औरत के उठने और हाथ जोड़ने के बीच मूलक यह जान चुका था कि उस के पैर घायल हैं और वह बहुत घबराई हुई है.

मूलक ने न जाने किस प्रेरणा से आगे बढ़ कर उसे उठा कर अपने कंधे पर डाल लिया और उसे ले कर ढाबे की ओर चल दिया. वह औरत निढाल हो कर उस के कंधे पर ऐसे लुढ़की हुई थी, मानो कोई बेजान लाश हो.

उस के मुंह से बारबार बस यही निकल रहा था, ‘‘दूर रहो मुझ से, मैं चुड़ैल हूं. मुझे सजा मत दो, मैं अब किसी का खून नहीं पीऊंगी. मेरे जिस्म से मत खेलो, मेरी इज्जत मत लूटो.’’

मूलक उस औरत को ले कर ढाबे में आ गया. वहां उस ने इधरउधर से कुछ लकडि़यां जमा कीं और फिर अपनी जेब से माचिस निकाल कर आग जला दी.

आग जलने से वहां उजाला फैल चुका था. अब मूलक ने उस औरत को ध्यान से देखा. वह बहुत कमजोर, काली सी, बिलकुल हड्डियों का ढांचा भर थी. उस के शरीर पर कपड़े के नाम पर थोड़े से पुराने चिथड़े थे, जिन से बड़ी मुश्किल से उस का एकचौथाई बदन ढक पा रहा था. उस के शरीर पर धूलमिट्टी की ऐसी मोटी परत चढ़ी हुई थी, मानो कई साल से वह नहाई न हो.

मूलक उसे देख कर दया से भर गया और बोला, ‘‘डरो मत तुम. मुझे बताओ कि तुम कौन हो और तुम्हारे साथ क्या हुआ है? तुम्हें कोई सजा नहीं देगा. डरो मत.’’

‘‘मैं चुड़ैल हूं, मुझ से दूर रहो. मैं तुम्हें लग जाऊंगी. तुम्हारा खून पी जाऊंगी, फिर तुम मर जाओगे. मैं चुड़ैल हूं, मुझ से दूर रहो,’’ उस औरत ने रटारटाया रिकौर्ड सा बजाया.

‘‘भूख लगी है तुम्हें? तुम कुछ खाओगी?’’ मूलक ने अपने थैले से केले निकाल कर उस की ओर बढ़ाते हुए धीरे से प्यारभरी आवाज में कहा.‘‘मैं चुड़ैल हूं, खून पीती हूं, मुझ से दूर रहो, मैं चुड़ैल हूं,’’ वह औरत सहमी सी बस यही दोहराती रही.

‘‘अच्छा, डरो मत. ये केले खाओ, मैं पानी ले कर आता हूं,’’ मूलक ने केले उस औरत के हाथ में पकड़ाते हुए कहा और ढाबे से एक पुरानी बालटी उठा कर नदी की ओर पानी लेने के लिए बढ़ गया.

जब मूलक पानी ले कर लौटा तो देखा कि वह औरत 2 केले खा कर आग के पास बैठी थी.

‘‘इधर आओ… लो, मुंह धो लो. इस से तुम्हें अच्छा लगेगा,’’ मूलक ने बालटी ढाबे के चबूतरे पर रखते हुए कहा.

लेकिन, वह औरत अपनी जगह से जरा भी नहीं हिली.

मूलक ने फिर उसे सहारा दे कर उठाया, लेकिन उस औरत के पैरों में तो जैसे जान ही नहीं थी. मूलक ने ध्यान से देखा कि उस औरत के दोनों पैर नीचे से ऊपर तक बुरी तरह घायल थे. पैर ही क्या उस के सारे बदन पर चोटों के नएपुराने न जाने कितने ही घाव थे.

मूलक ने उसे चबूतरे के पास बिठा कर उस के बदन से उस के चिथड़े हटाए और हाथ से पानी डाल कर उसे नहलाने लगा.

‘‘रहने दो मुझे सड़ा. मैं चुड़ैल हूं, मुझ से दूर रहो,’’ चिथड़े हटते ही वह औरत फिर से कांप उठी और सिसकने लगी.

मूलक ने जैसे ही उस औरत के मुंह को धोया, उस का काला रंग उतरने लगा. दूर जल रही आग के उजाले में उस का लाल गेहुंआ रंग दमकने लगा.

जैसेजैसे उस औरत का असली चेहरा नजर आ रहा था, मूलक के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी.

जैसे ही पूरा मुंह धुलने के बाद मूलक ने आग के उजाले में उस का चेहरा देखा, उस के मुंह से तेज चीख निकल गई, ‘‘मनका… यह तुम हो मनका… क्या हो गया?’’ वह आंसुओं से रोने लगा, ‘‘मनका, इधर देख… मैं मूलक… तेरा अपना मूलक… देख मुझे मनका… पहचान मुझे.’’

‘‘मुझ से दूर रहो, मुझे छोड़ दो, मैं चुड़ैल हूं.’’ वह अभी भी यही शब्द दोहरा रही थी.‘‘होश में आ मनका और बता मुझे कि क्या हुआ तेरे साथ?’’ कहते हुए मूलक ने बालटी का सारा पानी उस के ऊपर डाल दिया और जल्दी से और पानी भर लाया.

मूलक ने कुछ देर अच्छे से मलमल कर मनका को नहलाया और फिर अपने थैले में से निकाल कर उसे अपना कुरता पहनाया. अपनी जींस भी दी. उसे उठा कर फिर आग के पास ले आया और उसे घास पर लिटा कर उस का सिर अपनी गोद में रख कर उस के बाल सहलाते हुए प्यार से बोला, ‘‘मनका, पहचान मुझे. और बता कि क्या हुआ तेरे साथ? कैसे हुई तेरी यह हालत? अरे भूल गई तू, ब्याह हुआ था हमारा 10 साल पहले.

‘‘और जब हमारा मुन्ना हुआ, तो खर्चे की फिक्र और मुन्ने को अच्छी जिंदगी देने की लालसा में मैं रुपए कमाने शहर चला गया था…

‘‘और मुन्ना…? अरे, मुन्ना कहां है मनका? बोल मनका, मुन्ना कहां है हमारा?’’ मूलक उसे झकझोरते हुए बोला.

‘‘मुन्ना… चुड़ैल खा गई. उसे, मैं उस का खून पी गई. मैं चुड़ैल हूं न, मुझ से दूर रहो. मैं अपने मुन्ना को खा गई, खून पी गई उस का,’’ मनका खोखली हंसी हंसने की कोशिश करतेकरते रोने लगी.

‘‘होश में आ मनका. बता मुझे यहां यह सब क्या हुआ है? क्या हुआ हमारे मुन्ना को? उन सारे रुपयों का क्या हुआ, जो मैं ने तुम्हें भेजे थे? और मेरी चिट्ठी? कहां हैं सब मनका?’’ मूलक रोते हुए मनका को झकझोर रहा था.

‘‘मैं चुड़ैल हूं, मुझे छोड़ दो, मैं सब को खा गई,’’ मनका जैसे इस के अलावा कुछ बोलना जानती ही नहीं थी.

‘‘होश में आओ मनका. मैं मूलक हूं तुम्हारा पति, तुम्हारे मुन्ना का पिता. बताओ क्या हुआ है यहां?’’ मूलक ने एक जोरदार तमाचा अपनी मनका के गाल पर मारा, जिस से उसे जोर का झटका लगा और वह रोने लगी.

मूलक ने उसे गले लगा लिया और प्यार से सहलाते हुए बोला, ‘‘होश में आजा मनका, देख मैं तेरा मूलक हूं.’’न्ना के बापू… कहां चले गए थे तुम… तुम्हारे पीछे तुम्हारे बड़े भाई और भाभी ने मुझ पर बहुत जुल्म किए, मेरा खानापानी बंद कर दिया और हमारे मुन्ना को न जाने क्या खिला कर मार डाला. उन्होंने लोगों से कहा कि मैं चुड़ैल हूं और अपने बेटे को खा गई.

‘‘उन्होंने मुझे तुम्हारा भेजा कोई पैसा कभी नहीं दिया. जब मैं ने उन से मनीऔर्डर के बारे में पूछा, तो उन्होंने पंचायत बुला कर मुझे चुड़ैल कह कर मारपीट कर गांव से निकाल दिया.

‘‘अब तो 2-3 साल हो गए मुन्ना के बापू, मैं यहीं जंगल में अपने दिन पूरे कर रही हूं. दिन में मैं जंगली झाडि़यों में छिपी रहती हूं और रात को निकल कर जंगली फलों से अपना पेट भरती हूं.

‘‘रात में जब कभी कोई मर्द मुझे पकड़ लेता है, तो चुड़ैल की सजा के नाम पर मेरे साथ…’’ मनका अब मूलक के गले लग कर रो रही थी.

‘‘ओह… यह सब क्या हो गया. अच्छा मनका, तुम ये बिसकुट खाओ और पानी पी कर आराम करो. हमें आधी रात के बाद बहुत दूर निकलना है,’’ इतना कह कर मूलक नदी की ओर बढ़ गया.

इधर मनका बदले की आग में सुलग रही थी. उसे रहरह कर अपने मुन्ना की याद आ रही थी. तभी अचानक वह उठी और एक जलती हुई लकड़ी उठा कर गांव की तरफ चल दी.

जब तक मूलक वापस आया, तब तक मनका भी लौट आई थी. मूलक को जरा भी अंदाजा नहीं था कि उस के पीछे से मनका ने क्या कांड कर दिया है. मूलक तो बस अपनी मनका को कंधे पर उठा कर बड़ी सड़क की ओर बढ़ गया.

अगले दिन अखबारों में छपा था, ‘एक चुड़ैल ने रात को एक पूरे परिवार समेत 20 लोगों को जला कर मार डाला. यह चुड़ैल बहुत दिन से गांव के बाहर जंगल में रह रही थी. घटना के बाद से चुड़ैल को किसी ने नहीं देखा. सरकार ने जंगल को खतरनाक मानते हुए लोगों को दूसरी जगह बसाने का फैसला लिया है और यह रास्ता बंद कर दिया है’

चिनम्मा: कौन कर रहा था चिन्नू का इंतजार ?

एक सीमित सी दुनिया थी चिनम्मा की. गरीबी में पलीबढ़ी वह, फिर भी पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी लेकिन उस के अप्पा की मंशा तो कुछ और ही थी…

पढ़तेपढ़ते बीच में ही चिनम्मा दीवार पर टंगे छोटे से आईने के सामने खड़े हो ढिबरी की मद्धिम रोशनी में अपना चेहरा फिर से बड़े गौर से देखने लगी. आज उस का दिल पढ़ाई में बिलकुल नहीं लग रहा था. शाम से ले कर अब तक न जाने कितनी बार आईने के सामने खड़ी हो वह खुद को निहार चुकी थी. बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, खड़ी नाक, सांवला पर दमकता रंग और मासूमियतभरा अंडाकार चेहरा. तभी हवा का एक ?ोंका आया और काली घुंघराली लटों ने उस के आधे चेहरे को ढक कर उस की खूबसूरती में चारचांद लगा दिए. एक मधुर, मंद मुसकान उस 18 वर्षीया नवयुवती के चेहरे पर फैल गई. उसे अपनेआप पर नाज हो रहा था. हो भी क्यों न. किसी ने आज उस की तारीफ करते हुए कहा था, ‘चिनम्मा ही है न तू, क्या चंदा के माफिक चमकने लगी इन 3 सालों में, पहचान में ही नहीं आ रही तू तो.’

तभी अप्पा की कर्कश आवाज आई, ‘‘अरे चिन्नू, रातभर ढिबरी जलाए रखेगी क्या? क्या तेल खर्च नहीं हो रहा है?’’ तेल क्या तेरा मामा भरवाएगा. चल ढिबरी बुझा और सो जा चुपचाप. अप्पा की आवाज सुन कर वह डर गई और ?ाट से ढिबरी बु?ा कर जमीन पर बिछी नारियल की चटाई पर लेट गई. अप्पा शराब के नशे में टुन्न था. चिनम्मा को पता था कि ढिबरी बु?ाने में जरा सी भी देर हो जाती तो वह मारकूट कर उस की हालत खराब कर देता. अगर अम्मा बीचबचाव करने आती, तो उसे भी चुनचुन कर ऐसी गालियां देता कि गिनना मुश्किल हो जाता. पर आज उसे नींद भी नहीं आ रही थी. रहरह कर साई की आवाज उस के कानों को ?ांकृत कर रही थी.

चिनम्मा एक गरीब मछुआरे की इकलौती बेटी है. उस के आगेपीछे कई भाईबहन आए, पर जिंदा नहीं बच पाए. अम्मा व अप्पा और गांववालों को विश्वास है कि ऐसा समुद्र देवता के कोप के कारण हुआ है. चूंकि समुद्र के साथ मछुआरों का नाता अटूट होता है, इसलिए अपनी जिंदगी में घटित होने वाले सारे सुखोंदुखों को वे समुद्र से जोड़ कर ही देखते हैं. अप्पा चिनम्मा को प्यार करता है पर जब ज्यादा पी लेता है तो बेटा नहीं होने की भड़ास भी कभीकभी मांबेटी पर निकालता रहता है.

लंबेलंबे नारियल और ताड़ के वृक्षों से आच्छादित चिनम्मा का छोटा सा गांव यारडा, विशाखापट्टनम के डौल्फिन पहाड़ी की तलहटी में स्थित है, जिस का दूसरा हिस्सा बंगाल की खाड़ी की ऊंची हिलोरें मारती लहरों से जुड़ा हुआ है. आसपास का दृश्य काफी लुभावना है. लोग दूरदूर से यारडा बीच (समुद्र तट) घूमने आते हैं. प्राकृतिक सौंदर्य से यह गांव व इस के आसपास का इलाका जितना संपन्न है आर्थिक रूप से उतना ही विपन्न.

गांव के अधिकांश निवासी गरीब मछुआरे हैं. मछली पकड़ कर जीवननिर्वाह करना ही उन का मुख्य व्यवसाय है. 30-35 घरों वाले इस गांव में 5-6 पक्के मकान हैं जो बड़े और संपन्न मछुआरों के हैं. बाकी सब ?ोंपडि़यां ईटपत्थर और मिट्टी की बनी हैं, जिन पर टीन और नारियल के छप्पर हैं. गांव में 2 सरकारी नल हैं, जहां सुबहशाम पानी लेने वालों की भीड़ लगी रहती है. नजर बचा कर एकदूसरे के मटके को आगेपीछे करने के चक्कर में लगभग रोज वहां महाभारत छिड़ा रहता है. कभीकभी तो हाथापाई की नौबत भी आ जाती है.

गांव से करीब एक किलोमीटर पर 12वीं कक्षा तक का सरकारी विद्यालय है जहां आसपास के कई गांव के बच्चे पढ़ने जाते हैं. कहने को तो वे बच्चे विद्यालय जाते हैं पढ़ने, पर पढ़ने वाले इक्कादुक्का ही हैं, बाकी सब टीवी, सिनेमा, फैशन, फिल्मी गाने और सैक्स आदि की बातें ही करते हैं. उन्हें पता है कि बड़े हो कर मछली पकड़ने का अपना पुश्तैनी धंधा ही करना है तो फिर इन पुस्तकों को पढ़ने से क्या फायदा?

पर चिनम्मा इन से थोड़ी अलग है. वह बहुत ध्यान से पढ़ाई करती है. उसे बिलकुल पसंद नहीं है मछुआरों की अभावभरी जिंदगी, जहां लगभग रोज ही मर्र्द शराब के नशे में औरतों, बच्चों से गालीगलौज और मारपीट करते हैं. ये औरतें भी कुछ कम नहीं. जब मर्द अकेला पीता है तो उन्हें बरदाश्त नहीं होता, अगर हाथ में कुछ पैसे आ जाएं तो ये भी पी कर मदहोश हो जाती हैं.

गांव में सरकारी बिजली की सुविधा भी है. फलस्वरूप हर ?ोंपड़ी में चाहे खाने को कुछ न भी हो पर सैकंडहैंड टीवी जरूर है. हां, यह बात अलग है कि समुद्री चक्रवात आने या तेज समुद्री हवा चलने के कारण अकसर इस इलाके में बिजली 8-10 दिनों के लिए गुल हो जाती है. अभी 3 दिनों पहले आए समुद्री हवा के तेज ?ोंके से बिजली फिर गुल हो गई है गांव में. शायद 2-4 दिन और लगें टूटे तारों को ठीक होने और बिजली आने में. तब तक तो ढिबरी से ही काम चलाना पड़ेगा पूरे गांव वालों को.

आज अम्मा जब काम से लौटी तो शाम होने वाली थी, ज्यादा थकी होने के कारण उस ने चिन्नू (चिनम्मा) को रामुलु अन्ना से उधार में केरोसिन तेल लाने भेजा था. अन्ना ने उधार के नाम पर तेल देने से मना कर दिया क्योंकि पहले का ही काफी पैसा बाकी था उस का. पर चिन्नु कहां मानने वाली थी, मिन्नतें करने लगी, ‘‘अन्ना तेल दे दो वरना अंधेरे में खाना कैसे बनाऊंगी आज मैं? अम्मा ने कहा है, अभी अप्पा पैसे ले कर आने वाला है. अप्पा जैसे ही पैसे ले कर आएगा, मैं दौड़ कर तुम्हें दे जाऊंगी.’’

अन्ना और चिनम्मा का वार्त्तालाप जारी था. इसी बीच किसी ने 100 रुपए का एक नया नोट अन्ना को पकड़ाते हुए चिनम्मा के पीछे खड़े हो कर कहा, ‘‘अन्ना, एक ठंडी पैप्सी देना, बहुत प्यास लग रही है,’’ आवाज कुछ पहचानी सी लगी. पलट कर चिन्नू ने देखा तो उस से 3 कक्षा आगे पढ़ने वाला उस के स्कूल का सब से शैतान बच्चा साई खड़ा है. वह एकटक उसे देख कर सोचने लगी, यह यहां कैसे? स्कूल में सब कहते थे कि इसे तो इस की शैतानी से परेशान हो कर इस की विधवा अम्मा ने 3 साल पहले ही कहीं भेज दिया था किसी रिश्तेदार के घर.

उसे लगातार अपनी तरफ देख कर साई ने हंसते हुए कहा, ‘‘चिनम्मा ही है न तू, क्या चंदा के माफिक चमकने लगी इन 3 सालों में, पहचान में ही नहीं आ रही तू तो.’’

एकदम से सकपका सी गई वह साई की इस बात को सुन कर. कहना तो वह भी चाहती थी, ‘तू भी तो बिलकुल पवन तेजा (तेलुगू फिल्मी हीरो) की माफिक स्मार्ट और सयाना बन गया है. पर पता नहीं क्यों बोलने में शर्म आई उसे. वह तेल ले, नजर ?ाका, घर भाग आई तेजी से.

अप्पा के आने का समय हो रहा था. ढिबरी जला कर जल्दीजल्दी सूखी मछली का शोरबा और चावल बनाया तथा थोड़ी लालमिर्च भी भून कर रख दी अलग से. अप्पा को भुनी मिर्च बहुत पसंद है. घर का सारा काम निबटा कर पढ़ने बैठ गई. पर पता नहीं क्यों सामने किताब खुली होने पर भी वह पढ़ नहीं पा रही थी आज.

इसी बीच, अप्पा के तेज खर्राटों की आवाज आनी शुरू हो गई. चिनम्मा ने करवट बदली. अम्मा भी बेसुध सो रही थी. खर्राटों की आवाज से उस का सोना मुश्किल हो रहा था. आज ढंग से पढ़ाई न कर पाने के कारण अपनेआप से खफा भी थी वह. चिनम्मा को तो बहुत सारी पढ़ाई करनी है, उसे वरलक्ष्मी मैडम की तरह टीचर बनना है जो उस के स्कूल में पढ़ाती हैं.

रोज साफसुथरी और सुंदरसुंदर साडि़यां पहन कर कंधे पर बड़ा सा बैग लटकाए जब मैडम स्कूल आती हैं तो उन्हें देखते ही बनता है. क्या ठाट हैं उन के? पढ़ाई के संबंध में अम्मा तो उसे कुछ ज्यादा नहीं कहती पर जब किताब खरीदने या स्कूल के मामूली खर्चे की भी बात आती तो अप्पा नाराज हो कर अम्मा से कहने लगता है, ‘देखो, लड़की बिगड़ न जाए ज्यादा पढ़ कर. ज्यादा पढ़ लेगी, तो हमारे मछुआरे समाज में कोई अच्छा लड़का शादी को भी तैयार नहीं होगा. फिर उसे पढ़ा कर फायदा भी क्या? कौन सा हम लोगों के बुढ़ापे का सहारा बनेगी, चली जाएगी दूसरे का घर भरने.’

काफी करवटें बदलने के बाद भी जब उसे नींद नहीं आई तो वह उठ कर ?ोंपड़ी की छोटी सी खिड़की से बाहर देखने लगी. रात के लगभग 10 बजे होंगे. पूरा गांव सो रहा था. बस, बीचबीच में कुत्तों के भूंकने की आवाज आ रही थी. चांद की दूधिया रोशनी से सारा समुद्र बहुत शांत और गंभीर लग रहा था. समुद्रतट पर रखी छोटीछोटी नावों को देख कर ऐसा महसूस हो रहा था मानो वे भी आराम कर रही हों.

मुंहअंधेरे (ढाई से 3 बजे के लगभग) गांव के अधिकांश मर्द अपना जाल समेटे, लालटेन लिए तीनचार समूह बना कर एकएक नाव में बैठ जाएंगे और निकल पड़ेंगे अथाह समुद्र में दूर तक मछलियां पकड़ने. दोचार मछुआरों के पास अपनी नावें हैं, नहीं तो ज्यादातर किराए की नावों का ही प्रयोग करते हैं. समुद्र में जाल डाल कर घंटों इंतजार करना पड़ता है उन्हें. कभी तो ढेर सारी मछलियां हाथ लग जाती हैं एकसाथ, पर कभीकभी खाली हाथ भी आना पड़ता है. वापस आतेआते 9-10 बज जाते हैं. औरतें खाना बना कर पति का इंतजार करती रहती हैं. जैसे ही नाव आनी शुरू हो जाती, शहर से आए थोक व्यापारी मोलभाव कर के सस्ते में मछलियां खरीद कर ले जाते हैं.

बची हुई पारा, सुरमई, पाम्फ्रेड, बांगडा, प्रौन आदि मिश्रित मछलियों को ले कर औरतें तुरंत निकल जाती हैं घरघर बेचने. मर्द खाना खा कर सो जाते हैं. जब तक मर्दों की नींद पूरी होती, तब तक औरतें मछलियां बेच कर मिले पैसों से घर का जरूरी सामान खरीद वापस आ जाती हैं. फिर शाम का खानापीना, शहर की लंबीलंबी बातें, फिल्मों की गपशप, हंसीमजाक और अकसर गालीगलौज भी.

मछुआरों में मुख्यतया हिंदू या ईसाई धर्मावलंबी हैं. पर उन सब का पहला धर्म यह है कि वे मछुआरे हैं. मछली पकड़ने भी रोज नहीं जाया जा सकता, मछुआरे समाज की मान्यता है कि ऐसा करने से समुद्र जल्दी ही खाली हो जाएगा और फिर देवता के कोप से उन्हें कोई बचा नहीं सकता. साल के लगभग 3 महीने जब मछलियों के ब्रीडिंग का समय होता है, मछुआरे समुद्र में मछली मारने नहीं जाते. यह उन का उसूल है. ऐसे समय छोटे मछुआरों के घरों की हालत और खराब हो जाती है. तब इन में से ज्यादातर मजदूरी करने विशाखापट्टनम या हैदराबाद जैसे शहरों में चले जाते हैं.

चिनम्मा का परिवार पहले हिंदू था. पर आर्थिक सहायता मिलने की आशा में अप्पा ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है. और हर रविवार को चर्च जरूर जाता है. घर में चाहे कितनी भी आर्थिक तंगी हो, चिनम्मा का अप्पा तो गांव छोड़ कर कभी कहीं नहीं जाता कमाने. उसे कमाने से ज्यादा पीने से मतलब है. जिस दिन कमाई के पैसे नहीं हों, तो घर का कोई बरतन ही बेच कर अपना काम चला लेता है. अम्मा बेचारी करे भी तो क्या करे? लड़ती?ागड़ती और अपने समय को कोसती हुई अप्पा को गालियां देती रहती है. उस ने तो गृहस्थी चलाने और पेट भरने के लिए डौल्फिन पहाड़ी पर बसी नेवी कालोनी में नौकरानी का काम शुरू कर दिया है.

अप्पा के खांसने की आवाज से चिनम्मा का ध्यान भंग हुआ, वह वापस आ कर लेट गई. सोचतेसोचते पता नहीं कब नींद ने उसे अपनी आगोश में ले लिया. सुबह अम्मा की तेज आवाज से नींद खुली. साढ़े 6 बज गए. आज बिस्तर पर ही पड़ी रहेगी क्या चिन्नू? कौफी बना कर रख दी है, पी लेना. मैं काम पर जा रही हूं.

हड़बड़ा कर उठी तो देखा, अप्पा आज भी मछली पकड़ने नहीं गया. वह रोज कोई न कोई बहाना बना कर घर में ही पड़ा रहता है. कौफी पी कर चिन्नू जल्दीजल्दी घर का सारा काम निबटाने लगी. उसे 9 बजे स्कूल पहुंचना होता है. स्कूल पहुंची, तो देखा स्कूल गेट के पास खड़ा साई उसे तिरछी नजर से देख रहा है. अपना सिर नीचे ?ाका लिया, पर न जाने क्यों दिल को अच्छा लगा.

3 बजे स्कूल की छुट्टी हुई. स्कूल के अधिकांश बच्चे घर चले गए. पर चिनम्मा और उस की कक्षा के कुछ बच्चे स्कूल के राव सर से ट्यूशन पढ़ने के लिए रुक गए. ट्यूशन खत्म होने के बाद सभी अपनेअपने गांव की ओर चल दिए. चिनम्मा भी तेज कदमों से घर की ओर चल पड़ी. तभी उसे लगा कि किसी ने पुकारा ‘चिन्नू’. बढ़ते कदम एकाएक थम गए. पीछे मुड़ कर देखा, साई उस के पीछेपीछे चला आ रहा है.

वह घबरा गई कि कहीं अप्पा ने देख लिया तो? उस की घबराहट देख कर साई ने हंसते हुए कहा, ‘मैं कोई भूत हूं क्या, जो तु?ो खा जाऊंगा?’

चिनम्मा के मुंह से निकला ‘लेकिन अप्पा?’

‘अरे अप्पा की चिंता मत कर तू, दुकान पर बैठ मस्त हो कर दारू पी रहा है. उसे देख कर इस बात की गारंटी है कि अभी कम से कम 2 घंटे तक घर पहुंचने वाला नहीं है वह. और तेरी अम्मा तो इस समय काम पर गई हुई है.’

‘तु?ो ये सारी बातें कैसे पता?’ चिनम्मा ने आश्चर्य से पूछा.

मैं सब चैक कर के आया हूं, साई ने अपनी शरारतभरी आवाज में इस ढंग से कहा कि चिनम्मा को हंसी आ गई. दोनों ही एकसाथ खिलखिला कर हंस पड़े.

चिनम्मा ने कहा, ‘तू इस जन्म में कभी नहीं सुधरेगा साई.’

फिर दोनों साथसाथ चलने लगे. कुछ कदम चलने पर जब चिनम्मा थोड़ी आश्वस्त सी हुई, तो धीरे से बोली, ‘‘एक बात पूछूं, पिछले 3 सालों से कहां था रे तू?’’ मु?ो तो लगा कि अब तो तू लौट कर आएगा ही नहीं अपने गांव.’’

साई बताने लगा, ‘‘मेरी शरारतों और शिकायतों से तंग आ कर अम्मा अचानक मु?ो मामा के पास हैदराबाद ले कर चली गई थी. मेरा मामा वहां मछली की दुकान चलाता है. अच्छा कमाताखाता है. अम्मा ने अपने भाई से कहा कि तू इस की पढ़ाई करवा दे और बदले में यह सुबहशाम तुम्हारी दुकान पर काम कर दिया करेगा मुफ्त में. जब लायक बन जाए तो भाई तेरी बेटी को मैं अपनी बहू बना लूंगी बिना दहेज के. (यहां पाठकों को यह बताना आवश्यक है कि दक्षिण भारत के कुछ राज्यों के सभी धर्मों में सगे ममेरेफुफेरे भाईबहनों की शादी को समाज द्वारा स्वीकृति है).

‘‘मामा खुश हो गया यह सुन कर. उस ने मेरा नाम टीवी रिपेयरिंग डिप्लोमा कोर्स’ में लिखवा दिया. मैं भी खुशीखुशी जाने लगा. खूब बड़ा शहर है हैदराबाद, चारों तरफ मोटरगाडि़यां और चकाचौंध करने वाली भीड़. जब तक अम्मा हैदराबाद रही, सबकुछ ठीकठाक चलता रहा. पर जैसे ही वह मु?ो छोड़ कर गांव चली आई, मामी का व्यवहार मेरे लिए बदल गया. वह रोज किसी न किसी बहाने मु?ो पढ़ने जाने से रोकने की कोशिश करती. वह मामा और मु?ा से लड़ाई भी करती रहती. उसे और उस की बेटी को मेरा वहां रहना, खाना और मामा द्वारा मेरी फीस भरना बिलकुल नहीं भाता था. कारण, मामी अपने सगे भाई के बेटे से अपनी बेटी की शादी करना चाहती थी. मैं उसे गंवार और निकम्मा लगता था.

‘‘उन दिनों मु?ो पहली बार अपने अम्माअप्पा और गांव की बहुत याद आई. जब मामा के घर में रहना मुश्किल हो गया तो एक दिन चुपचाप मैं घर से भाग गया किसी अनजान महल्ले में. एक संकल्प के साथ कि जीवन में कुछ बन कर मामी और उस की बेटी को दिखा दूंगा. उस के बाद से अपना खर्चा चलाने के लिए मैं सुबह क्लास करता और शाम के समय दुकान में नौकरी करता. इसी तरह मैं ने टीवी रिपेयरिंग डिप्लोमा कोर्स के बाद धीरेधीरे मोबाइल और कंप्यूटर रिपेयरिंग कोर्स भी कर लिया और पिछले एक साल से हैदराबाद की एक बड़ी दुकान में काम कर रहा हूं. छुट्टी ले कर अम्मा को देखने आया हूं.’’

चिनम्मा ने साई को छेड़ते हुए कहा, ‘‘तेरी बातें सुन कर लगता है कि अब तो बड़ा सयाना और सम?ादार हो गया है रे तू तो. अच्छा बता, इतने दिनों बाद गांव आ कर तु?ो कैसा लग रहा है, कहीं वापस तो नहीं चला जाएगा शहर फिर से?’’

साई उस के जरा नजदीक आ कर बोला, ‘‘सच कहूं, तो ज्यादा कुछ अच्छा नहीं लगा यहां आ कर. कहीं कुछ भी तो नहीं बदला है इस इलाके में. मेरा अप्पा देशी शराब पीपी कर बेमौत मर गया और तेरे अप्पा जैसे लोग मरने की तैयारी में हैं. मैं तो वापस जाने की सोच रहा था पर समय की कृपा से तभी कल तू दिख गई रामुलु अन्ना की दुकान पर. और तब से अब सबकुछ अच्छा लगने लगा है मु?ो.’’ यह कह कर साई ने प्यार से चिनम्मा का हाथ पकड़ लिया.

‘‘धत,’’ कह कर चिनम्मा ने अपना हाथ छुड़ाया और शरमा कर घर भाग आई.

फिर कई दिनों तक दोनों स्कूल से लौटते वक्त किसी न किसी बहाने मिलते रहे. एकदूसरे के साथ रहना अच्छा लगने लगा था उन्हें. शायद प्यार का अंकुर फूट चुका था दोनों के दिलों में.

बातों ही बातों में साई ने बताया कि वह गांव की अपनी ?ोंपड़ी बेच कर शहर में दुकान खोलने जा रहा है टीवी, मोबाइल और कंप्यूटर रिपेयरिंग की, क्योंकि अब उसे अच्छा अनुभव हो गया है अपने काम का.

चिनम्मा ने भी जब भविष्य में अपने टीचर बनने की बात बताई साई को तो साई ने पूछा, ‘‘लेकिन तू टीचर बनेगी कैसे? तु?ो तो शहर जाना पड़ेगा टीचर बनने का कोर्स (टीचर्स ट्रेनिंग) करने, और तेरा अप्पा तो पक्का नहीं भेजेगा तु?ो.’’

‘‘हां, यह बात तो मैं भी जानती हूं, पर मैं कर भी क्या सकती हूं?’’ निराशाभरे स्वर में चिनम्मा ने कहा.

‘‘एक उपाय है,’’ साई ने कहा.

‘‘वह कौन सा है, बता तो जरा?’’ चिनम्मा ने उत्सकुता से पूछा.

‘‘तू मु?ा से शादी कर ले और चल शहर मेरे साथ आगे की पढ़ाई करने,’’ पता नहीं कैसे साई अपने मन की बात बोल गया अचानक.

‘‘बुद्धू, यह कैसे हो सकता है भला? हम दोनों 2 धर्म के हैं, तू हिंदू और मैं ईसाई. अगर दोनों के घरवालों और समाज को पता चल गया तो तेरीमेरी खैर नहीं, मार कर फेंक देंगे हमें,’’ कह कर चिनम्मा चुप हो गई.

‘‘2 धर्म के हुए तो क्या हुआ, दिल तो मिलता है न अपना. शादी के बाद तू अपना धर्म मानेगी और मैं अपना. हम चर्च और मंदिर दोनों जगह जाया करेंगे, क्या फर्क पड़ता है इन बेबुनियादी बातों से. अगर हिम्मत और हौसला हो तो कोई परिवार और समाज नहीं रोक सकता हम दोनों को,’’ फिल्मी हीरो की तरह बोला साई.

‘‘पर ऐसा करने से तो अप्पा की इज्जत चली जाएगी. मेरे साथ मेरी अम्मा को भी मार डालेगा वह. मु?ो नहीं जाना अपने अम्माअप्पा को छोड़ कर किसी अनजान शहर में कहीं दूर तेरे साथ,’’ चिनम्मा ने छोटे बच्चे की तरह कहा.

उस का डरना स्वाभाविक ही था. असल जिंदगी में वह अपने गांव, चर्च और आसपास के इलाके को छोड़ कर कहीं नहीं गई थी अभी तक.

साई हंसने लगा. फिर गंभीर स्वर में बोला, ‘‘तू बेवकूफ और डरपोक है चिन्नू, जिंदगी में कुछ बनना तो चाहती है पर हिम्मत करने से डरती है. अगर मैं भी तेरी तरह मामी की गालियों और जुल्मों से डर जाता तो कभी भी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाता. बस, मामा की दुकान का एक नौकर बन कर रह जाता.’’

कुछ दिनों बाद साई चला गया, पर जातेजाते अपना, फोन नंबर दे गया अपनी चिन्नू को. यह कह कर, ‘‘जब दिल करे फोन कर लेना दोस्त सम?ा कर.’’ एकदो बार उस का दिल किया साई को फोन करने का, पर अप्पा का खयाल कर वह डर गई.

3 महीने बीत गए. 12वीं की परीक्षा के फौर्म भरने के लिए चिनम्मा को रुपयों की जरूरत थी. अप्पा से तो मांगने का प्रश्न ही नहीं था. बदले में उसे इतनी गालियां मिलतीं, इस का अनुमान कर के ही कांप जाती. पर वह अपना एक साल बरबाद भी नहीं करना चाहती थी. वह रुपए लाए कहां से. बड़ी हिम्मत कर के दबी जबान से अम्मा को बता रही थी, तभी पता नहीं कहां से अप्पा आ गया. आते ही बोला, ‘‘क्या बातें कर रही हो दोनों मांबेटी?’’ अम्मा के बताने पर उस ने तुरंत पूछा, ‘‘कितने रुपए चाहिए तु?ो 12वीं पास करने के लिए?’’

चिनम्मा अवाक रह गई जब अप्पा ने 100-100 के 4 नोट उस के हाथ पर रख दिए. ‘अप्पा के पास इतने रुपए आए कहां से,’ सोचते हुए उस ने पैसे ले लिए. अगले दिन स्कूल जा कर परीक्षा का फौर्म भर दिया चिनम्मा ने. पर उस ने यह भी महसूस किया कि आजकल अप्पा बहुत खुश रहता है और उसे डांटतामारता भी नहीं. तो उस का मन शंका से भर उठा.

12वीं की फाइनल परीक्षा शुरू हो चुकी थी. अंतिम परीक्षा दे कर स्कूल से आने के बाद चिनम्मा ने देखा अम्माअप्पा बड़े मेलमिलाप से धीरेधीरे कुछ बातें कर रहे हैं. उत्सुकता हुई तो दवेपांव अंदर आ कर वह उन की बातें सुनने लगी.

अप्पा अम्मा से कह रहा था कि परसों सोमवार को तू छुट्टी ले ले अपने काम से. शहर जाना है.

अम्मा बोली, ‘‘मगर क्यों?’’

अप्पा ने कहा, ‘‘चिन्नू का पासपोर्ट बनवाना है.’’

‘‘12वीं परीक्षा पास करने के लिए पासपोर्ट बनवाना पड़ता है क्या?’’ अम्मा ने भोलेपन से पूछा.

‘‘अरे नहीं रे, बिलकुल पागल है तू तो,’’ अम्मा को ?िड़कते हुए अप्पा ने कहा, ‘‘मैं ने चिन्नू की शादी तय कर दी है, अपनी मुंहबोली बहन पद्मा अक्का के बेटे नागन्ना से.’’

‘‘वही नागन्ना जो पुलिस के डर से अपनी बीवी और दुधमुंहे बच्चे को छोड़ कर कहीं गायब हो गया था कुछ सालों पहले,’’ अम्मा ने घबरा कर कहा.

‘‘अरे, अब वह पुराना वाला नागन्ना कहां रहा. दुबई में काम करता है. अच्छा कमाताखाता है. पुलिस भी उस का कुछ नहीं कर सकती अब तो. अक्का बता रही थी कि जब वह देश आएगा तो पैसे खर्च कर सारा मामला दबा देगा,’’ अप्पा ने जवाब दिया.

‘‘नहीं करना मु?ो अपनी चिन्नू की शादी ऐसे मवाली से, फिर तेरी पद्मा अक्का कौन सी भली औरत है,’’ यह कह कर अम्मा सुबकने लगी.

‘‘बहुत पैसा है नागन्ना के पास, अपनी चिन्नू राज करेगी वहां. फिर सोच, इस जमाने में बिना दहेज के कौन शादी करेगा हमारी बेटी से. नागन्ना ने दहेज मांगने के बजाय उलटे कहा है कि अगर शादी हो गई तो वह हमें भी हर महीने कुछ पैसे भेजा करेगा अपनी कमाई के. सोच, फिर तु?ो कहीं काम पर भी जाना नहीं पड़ेगा, घर पर आराम से रहेगी तू मेरी रानी बन कर,’’ अप्पा लाड़ से बोला.

‘‘शादी कब होगी?’’ अम्मा के पूछने पर अप्पा बोला, ‘‘12वीं के बाद अपनी चिन्नू दुबई चली जाएगी पद्मा अक्का के साथ. जहां नागन्ना काम करता है. शादी भी वहीं जा कर होगी दोनों की. इसलिए पासपोर्ट बनवाना जरूरी है.’’

यह सुन कर अम्मा शांत हो गई भविष्य में मिलने वाले सुख की कल्पना कर के. गरीबी और अभावभरी जिंदगी होती ही ऐसी है कि जरा सी सुख की चाहत इंसान से हर तरह के सम?ौते करवा लेती है.

यह सब सुन कर सन्न रह गई चिनम्मा. अब उसे सम?ा आ गया कि अप्पा ने पैसे क्यों दिए थे फौर्म भरने के लिए, क्यों खुश रहता है वह आजकल? यह सोच कर कि अप्पा ने उस का सौदा किया है अपने पीने के वास्ते, रातभर रोती रही तकिए में मुंह छिपा कर वह. मन फट गया था उस का अप्पाअम्मा की तरफ से. नहीं माननी है उसे अप्पा की कोई बात, नहीं करनी है उसे उस आपराधिक प्रवृत्ति वाले नागन्ना से शादी, चाहे कितने भी पैसे हों उस के पास या अपने ही धर्म का हो. यह सब सोच कर उस की आंखों से बहने वाले आंसुओं की धार तेज हो गई और उन आंसुओं के साथ धीरेधीरे उस की भय, चिंता और परेशानी सब बह गए.

सुबह उठी, तो दिल और दिमाग थोड़ा शांत था. उसे बारबार साई की कही बात याद आने लगी थी, ‘तू बेवकूफ और डरपोक है चिन्नू, जिंदगी में कुछ बनना तो चाहती है पर हिम्मत करने से डरती है,’ ठीक ही तो कह रहा था साई. मु?ा में हिम्मत की कमी थी अब तक. पर अब नहीं. अब वह किसी से भी नहीं डरेगी, अपने अप्पा से तो बिलकुल नहीं.

ऐसा निश्चय कर पूर्ण आत्मविश्वास के साथ चिनम्मा चुपचाप निकल पड़ी साई को फोन करने.

पता नहीं, क्या बात हुई दोनों में, 2 दिनों बाद पासपोर्ट बनवाने विशाखापट्टनम गई चिनम्मा अचानक गायब हो गई. अम्माअप्पा ने बहुत ढूंढ़ा, पर कुछ पता नहीं चला. रोतेबिलखते दोनों गांव वापस आ गए. कुछ दिनों तक उस के गायब होने की चर्चा होती रही, फिर सबकुछ शांत हो गया. 6 वर्षों बाद वह लौटी अपने साई के साथ उसी स्कूल की मैडम बन कर, जहां वह पढ़ती थी. उस की गोद में एक नन्ही सी गुडि़या भी थी.

पोस्टमार्टम: देख रहा है विनोद

ब्रह्मांड का एकलौता ‘गड़े मुरदे उखाड़ने वाला’ चैनल ‘विक्की मीडिया’ में आप का स्वागत है. हमारे संवाददाता नारद बेखबर, कैमरामैन धृतराष्ट्र और व्यंग्य की समझ से पैदल व्यंग्याचार्य श्री सवा एक सौ आठ विनोद ‘विक्की’ के साथ आइए कुछ खास घटनाओं का मजाकिया अंदाज में पोस्टमार्टम करते हैं, जो साल 2022 के ऐतिहासिक कलैंडर में दर्ज और दफन हो चुकी हैं.

इस साल एक ओर जहां सदी के महानायक ने कमला पसंद के जरीए नौजवानों को पौष्टिक गुणों से भरपूर गुटका के सेवन का आह्वान किया, तो वहीं दूसरी ओर सभी हिंदी फिल्मों की शुरुआत में हाथों में सैनेटरी पैड ले कर नंदू के पास पहुंच कर धूम्रपान न करने की नसीहत देने वाले देशभक्त हीरो खिलाड़ी कुमार जुबां केसरी के प्रणेता सिंघम और बादशाह के साथ गुटका बेचते नजर आए. बौलीवुड में ‘बाजीराव मस्तानी’ की जोड़ी भी इस साल खासा चर्चा में रही.

पति परमेश्वर के नंगधड़ंग फोटो शूट से प्रेरणा पा कर धर्मपत्नीजी जब पठान के साथ अधनंगी अवस्था में नजर आई, तो नयनसुख दर्शकों में गजब का जोश देखने को मिला. उन्हें इस बात की उम्मीद है कि कम हो रही जीडीपी, रोजगार और आमदनी की तरह शायद साल 2023 में उर्फी और पादुकोण के कपड़ों की मात्रा में और ज्यादा कमी नजर आए.

दर्शकों द्वारा टौलीवुड को दुलार और बौलीवुड को दुत्कार का ट्रैंड परवान चढ़ता देख कर सलमान खान, ऐश्वर्या राय जैसे हिंदी सितारे साउथ की फिल्मों में गौडफादर तलाशते दिखे, तो दक्षिण के ऐक्टर हिंदी फिल्मों पर राज करते नजर आए. बिंगो टेढ़ेमेढे़ की तरह देश की राजनीति भी इस साल टेढ़ीमेढ़ी रही. देश के सब से प्राचीन राजनीतिक संस्थान में महाबदलाव देखने को मिला.

हो रही किरकिरी और नाकामी से थकहार कर परंपरागत पारिवारिक अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी किसी गैरपारिवारिक सदस्य को दे दी गई. साथ ही, इस पार्टी के तथाकथित युवा नेता लंबी दाढ़ी और राजनीतिक फैविकोल ले कर भारत को जोड़ने निकल पड़े. कम सीट के बावजूद जोड़जुगाड़ से सरकार बनाने वाली बहुचर्चित राष्ट्रीय पार्टी को बुद्ध और चाणक्य की धरती पर अपने ही सहयोगी का तीर चुभ गया. गठबंधन की गांठ खोल कर चाचा भतीजा के साथ हो लिए.

सांसारिक मोहमाया त्याग चुके संत दूसरी बार उत्तर प्रदेश चुनाव में सत्ता सुख के लिए निर्वाचित हुए. पंजाब में सब से ज्यादा हंसाने वाले को सीएम की कुरसी, तो फेफड़ा बाहर निकाल हंसने वाले ठोको मंत्र के जन्मदाता को कारावास का योग बना. भारतीय मूल के ऋषि सुनक का ब्रिटेन पीएम बनने पर भारत के वैसे लोगों में भी आस और उम्मीद की किरण जगी, जिन की अपने पड़ोसियों से कभी नहीं बनी.

हफ्ते में कम से कम 2 दिन अपने पड़ोसियों से जबानी जंग या लाठी भांजने वाला भी सुनक से उम्मीदें पाल चुका है. आप ने दोस्तों की संगति में लोगों को बिगड़ते देखा और सुना होगा. कुछ इसी तरह के हालात इस साल इंटरनैशनल लैवल पर देखने को मिले, जब आपसी सुलह के बजाय मित्र राष्ट्रों के बहकावा में ‘मैं झुकेगा नहीं… पुष्पा’ टाइप यूक्रेन ने रूस से पंगा ले लिया और जनधन के नुकसान का तांडव शुरू हो गया. नैशनल लैवल पर गजब की हिम्मत का परिचय देते हुए भारत सरकार की अग्निपथ योजना के विरोध में बिहार और उत्तर प्रदेश के अग्निवीरों ने लुकाठी ले कर राष्ट्रीय संपत्ति को फूंकने में अपनी भरपूर ताकत का इस्तेमाल किया.

चलतेचलते अगर सहिष्णुता और धार्मिक कामयाबियों की बात न हो, तो साल का कलैंडर अधूरा ही माना जाएगा. इस साल के आखिरी महीने में देश की सब से बड़ी शैक्षणिक संस्था के अमनपसंद शिक्षित शांतिदूतों द्वारा बनियों और ब्राह्मणों को देश से बाहर निकाल कर विकसित भारत की सोच की नुमाइश दीवारों पर की गई.

ज्ञानवापी की लहक मथुरा में देखने को मिली. दक्षिण भारत में बुरका बैन का स्यापा हो या दिल्ली से झारखंड का लव जिहाद आदि मामलों ने संक्रमित हो चुकी इनसानी इम्यूनिटी के लिए धार्मिक बूस्टर डोज का काम किया. अंबुजा सीमेंट जैसी सहनशक्ति के चलते बेरोजगारी, प्राइवेटाइजेशन के दौरान इस साल भी भारतीय नागरिक काफी संयम में दिखे. महंगाई, बेरोजगारी आदि की चिंता छोड़ मीम्स, रील्स, वैब सीरीज देखने और बनाने में बिजी रहे. इन सारी बातों को ‘देख रहा है विनोद…’ की तर्ज पर सारा देश बखूबी देखता रहा. बहरहाल, उम्मीद पर दुनिया टिकी है. साल 2023 की मंगलमय कामनाओं के साथ हम अपनी टीम के साथ ऐसे ही धांसू खबरों के साथ जल्द ही हाजिर होंगे आप के चहेते चैनल ‘विक्की मीडिया’ पर, तब तक के लिए हैप्पी न्यू ईयर.

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