Social News: धारा 498ए के खौफ में जीते नौजवान

Social News: सैंट्रल एडमिनिस्ट्रल ट्रिब्यूनल ने हाल ही में घरेलू विवाद के चलते एक नौजवान की लगी सरकारी नौकरी पर रोक लगाने वाले फैसले पर केंद्र सरकार और स्टाफ सिलैक्शन कमीशन को निर्देश दिया कि इस नौजवान की उम्मीदवारी को कामयाब कैंडिडेट के तौर पर लिया जाए और 3 महीने में इस के अपौइंटमैंट प्रोसैस को पूरा किया जाए.

इस कैंडिडेट का नाम है जतिन कुमार, जिस ने स्टाफ सिलैक्शन कमीशन के तहत केंद्रीय सचिवालय सेवा में असिस्टैंट सैक्शन औफिसर के पद पर नौकरी पाई थी.

लेकिन इसी बीच उस के भाई और भाभी के बीच पारिवारिक विवाद हो गया और भाभी ने अपनी ससुराल
के तमाम लोगों के खिलाफ दहेज को ले कर सताने का मामला दर्ज करा दिया था.

यही वजह थी कि अपौइंटमैंट लैटर जारी होने के बाद भी जतिन की नौकरी पर रोक लगा दी गई थी. हालांकि, 1 मार्च, 2025 को सैशन कोर्ट ने जतिन पर लगे आरोपों को बेबुनियाद पाते हुए उसे बरी कर दिया था.

सैंट्रल एडमिनिस्ट्रल ट्रिब्यूनल ने संबंधित महकमों से कहा कि यह नौजवान पहले ही बहुत दुखदर्द ?ोल चुका है. पारिवारिक विवाद के चलते कैंडिडेट की नौकरी पर रोक लगाना सताने जैसा ही बरताव है. अब बगैर देरी किए उस की बहाली पर 3 महीने में प्रोसैस पूरा करें.

एक और मामले पर नजर डालते हैं. मध्य प्रदेश के नीमच जिले के अठाना गांव के रहने वाले कृष्ण कुमार धाकड़ नाम के एक नौजवान ने अपनी ससुराल अंता, जिला बारां, राजस्थान में ही एक चाय की दुकान खोल दी है.

इस दुकान का नाम उस ने ‘498ए टी कैफे’ रखा है. वहां वह हथकड़ी पहन कर चाय बनाता है. इतना ही नहीं, दुकान पर उस ने दूल्हे का एक सेहरा और वरमाला भी सजा रखी है.

कृष्ण कुमार धाकड़ ने अपनी दुकान के बाहर अलगअलग पोस्टर और होर्डिंग लगाए हुए हैं, जिन में बड़े ही संजीदा स्लोगन लिखे गए हैं. एक पोस्टर पर लिखा है कि ‘जब तक नहीं मिलता न्याय, तब तक उबलती रहेगी चाय’. दूसरे पोस्टर पर लिखा है कि ‘आओ चाय पर करें चर्चा, 125 में कितना देना पड़ेगा खर्चा’.

ऐसा करने की वजह बताते हुए कृष्ण कुमार धाकड़ का कहना है कि उस के खिलाफ दहेज के नाम पर सताने के झूठे आरोप लगाए गए हैं और यह कदम उस ने अपने हालात को समाज के सामने रखने के लिए उठाया है.

कृष्ण कुमार धाकड़ ने भी बताया कि वह पहले यूपीएससी की तैयारी कर रहा था. 6 जुलाई, 2018 को उस की शादी अंता की रहने वाली एक लड़की से हुई थी.

इस के बाद साल 2019 में उस ने और उस की पत्नी ने साथ मिल कर मधुमक्खीपालन का कारोबार शुरू किया था. इस काम को राज्य लैवल पर भी पहचान मिली और उस की पत्नी को 8 अप्रैल, 2021 को मध्य प्रदेश के तब के मुख्यमंत्री द्वारा अवार्ड दिया गया था.

कृष्ण कुमार धाकड़ ने आरोप लगाया कि साल 2022 में उस की पत्नी अपने मायके लौट गई और शहद का कारोबार ठप हो गया. इस के बाद पत्नी ने कृष्ण कुमार धाकड़ पर आईपीसी की धारा 498ए (दहेज प्रताड़ना) और धारा 125 (भरणपोषण) के तहत केस दर्ज कराया.

कृष्ण कुमार धाकड़ का कहना है कि इन धाराओं के तहत चल रहे ज्यादातर मुकदमे ?ाठे होते हैं. उस का यह भी कहना है कि उसे तकरीबन 250 किलोमीटर दूर से पेशी पर आना पड़ता था. घर में केवल उस की बूढ़ी मां ही उस के साथ हैं.

कृष्ण कुमार धाकड़ ने यह भी आरोप लगाया कि उस की पत्नी ने पूरी योजना के तहत कारोबार और जायदाद पर कब्जा किया और अब उसे तलाक देने के बदले 25 लाख रुपए की मांग की जा रही है.

इन दोनों मामलों में 2 नौजवान दहेज के नाम पर सताए जाने का दर्द झेल रहे हैं. जतिन देवर है तो कृष्ण कुमार धाकड़ पति है. एक को सरकारी नौकरी मिलने में दिक्कत हो रही है, तो दूसरा अपनी ससुराल में चाय की दुकान लगा कर बैठा है और हथकड़ी पहन कर चाय बना रहा है. पत्नी से यह मामला सुलटाने के लिए उसे 25 लाख रुपए चाहिए, ताकि तलाक मिल सके.

जतिन केस से बरी हो चुका है, तो कृष्ण कुमार धाकड़ ने ऐसे ज्यादातर मुकदमों को झूठा बताया है यानी वह खुद को बेकुसूर बता रहा है. अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई ऐसे ज्यादातर मामले ?ाठे और फर्जी होते हैं?

सब से पहले जानते हैं कि इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की धारा 498ए क्या है? आईपीसी की धारा 498ए के कानून मुताबिक, अगर किसी औरत का पति या उस के पति का कोई भी रिश्तेदार उस औरत के साथ क्रूरता (मारपीट करना, परेशान करना) करता है या मानसिक रूप से व किसी भी दूसरी तरह से परेशान करता है, उस शख्स पर आईपीसी की धारा 498ए के तहत मुकदमा दर्ज कर ऐक्शन लिया जाता है.

आईपीसी की धारा 498ए किनकिन मामलों पर लगती है :

* अगर किसी औरत का पति अपनी पत्नी को खुदकुशी करने के लिए उकसाता है, तो वह इस धारा के तहत कुसूरवार होगा.

* अगर किसी औरत का पति या उस के पति का कोई भी नातेदार (परिवार का सदस्य) उस औरत से दहेज की मांग करता है और दहेज न देने के चलते उसे परेशान करता है, तो उस शख्स पर धारा 498ए के तहत मुकदमा दर्ज कर ऐक्शन लिया जाता है.

* अगर किसी शादीशुदा औरत के औलाद नहीं हो रही है और उसे औलाद न होने के चलते ताने मारे जा रहे है या उस के साथ किसी भी तरह का गलत बरताव कर मानसिक रूप से परेशान किया जाता है.

* रोजाना गृहकलेश के चलते किसी औरत के साथ मारपीट किए जाने पर.

क्यों दर्ज होते हैं झूठे केस

झूठे दहेज केस ऐसे मामले होते हैं, जिन में किसी औरत द्वारा अपने पति या ससुराल वालों पर दहेज मांगने, सताने या मारपीट करने का झूठा आरोप लगाया जाता है. ऐसे मामलों में औरत या उस का परिवार जानबूझ कर लड़के और उस के परिवार पर गलत आरोप लगाता है, ताकि उन पर कानूनी और मानसिक दबाव बनाया जा सके.

इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी तीखी बात कही है. 10 दिसंबर, 2024 को जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन. कोटिस्वर सिंह की बैंच ने कहा कि अगर बिना खास आरोप के अगर केस में पारिवारिक सदस्यों का नाम जोड़ा जाता है, तो इस पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि बेबुनियाद और आम आरोपों से कानूनी प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल होगा. अदालत ने यह भी बताया कि कई बार पति और उस के परिवार के खिलाफ इस धारा (धारा 498ए) का सहारा लिया जाता है, ताकि पत्नी की गैरजरूरी मांगों को पूरा कराया जा सके.

इस से पहले भी साल 2022 के फरवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आजकल दहेज प्रताड़ना यानी आईपीसी की धारा 498ए के प्रावधान का पति के रिश्तेदारों के खिलाफ अपना स्कोर सैटल करने के लिए टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के क्रिमिनल केस जिस में बरी होना संभावित भी क्यों न हो, फिर भी आरोपी के लिए यह गंभीर दाग छोड़ जाता है. इस तरह के किसी भी प्रयोग को हतोत्साहित करने की जरूरत है.

ऐसा नहीं है कि देश में शादीशुदा औरतों के दहेज मांगने के नाम पर सताया, मारापीटा या जान तक से मारा नहीं जाता है और ऐसे लोगों पर कड़े से कड़े कदम उठाने चाहिए, पर उन औरतों पर भी लगाम लगनी चाहिए जो आईपीसी की धारा 498ए का गलत इस्तेमाल करती हैं.

कानून ने आप को यह धारा अपने बचाव के लिए दी है, पर इस का मतलब यह नहीं है कि इस की आड़ में आप अपनी ससुराल वालों का जीना हराम कर दो.

जतिन और कृष्ण कुमार धाकड़ तो महज 2 उदाहरण हैं, जबकि अदालतों में ऐसे झूठे केसों में बहुत से मासूम नरक जैसी जिंदगी भोगने को मजबूर हैं. वे एक ऐसे अपराध के लिए अदालत में जूते घिस रहे हैं, जो उन्होंने किया ही नहीं है. Social News

राह से भटकते नौजवान

बेरोजगारी से तंग आकर अक्षत ने खुदकुशी करने की कोशिश की. यह बात जब अक्षत के दोस्त समीर को पता चली, तो वह हैरान रह गया, क्योंकि दोनों साथ में ही सरकारी नौकरी के इम्तिहान की तैयारी कर रहे थे.

समय रहते समीर ने अपना रास्ता बदल लिया और अपने पापा के बिजनैस में लग गया. लेकिन अक्षत सरकारी नौकरी के पीछे पागल था, क्योंकि सरकारी नौकरी का मतलब परमानैंट नौकरी, अच्छी तनख्वाह वगैरह, इसलिए वह जीतोड़ मेहनत भी कर रहा था, मगर हर बार वह कुछ नंबरों से रह जाता था.

33 साल के हो चुके अक्षत को लगने लगा कि अब उस के पास कोई रास्ता नहीं बचा, सिवा खुदकुशी करने के.

बढ़ती बेरोजगारी से न सिर्फ देशभर के नौजवान परेशान हैं, बल्कि विदेशों में पढ़ेलिखे नौजवान भी इस की चपेट में हैं. बेरोजगारी से जुड़ा एक काफी पेचीदा मामला है. औक्सफोर्ड जैसी एक नामचीन यूनिवर्सिटी से पढ़े एक 41 साल के शख्स ने बेरोजगारी से तंग आ कर अपने मातापिता पर ही केस ठोंक दिया. यह बेरोजगार शख्स जिंदगीभर के लिए हर्जाने की मांग कर बैठा.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, आतिश (बदला हुआ नाम) ने औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है. साथ ही, वह वकालत की ट्रेनिंग ले चुका है. इस के बावजूद वह बेरोजगार है.

आतिश का कहना है कि अगर उस के मांबाप उस की मदद नहीं करेंगे, तो उस के मानवाधिकार का उल्लंघन होगा.

आतिश के पिता की उम्र 71 साल है और उस की मां 69 साल की हैं. इतने उम्रदराज होने के बावजूद वे अपने बेटे को हर महीने 1,000 पाउंड भेजते हैं. इतना ही नहीं, वे अपने बेटे के दूसरे कई खर्च भी उठा रहे हैं यानी वह अपने सभी खर्चों के लिए अपने मातापिता पर ही निर्भर है.

लेकिन, अब मांबाप अपने बेटे की मांगों से तंग आ चुके हैं और छुटकारा चाहते हैं, पर कैसे? यह उन्हें समझ नहीं आ रहा है.

अच्छी पढ़ाईलिखाई होने के बावजूद भी कई नौजवान बेरोजगार हैं, तो यह बड़े हैरत की बात है. हाल ही में इंस्टीट्यूट फौर ह्यूमन डवलपमैंट ऐंड इंटरनैशनल लेबर और्गनाइजेशन ने इंडिया इंप्लायमैंट रिपोर्ट, 2024 जारी की है. यह रिपोर्ट भी भारत में रोजगार के हालात को बहुत गंभीर रूप में पेश करती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जो बेरोजगार कार्यबल में हैं, उन में तकरीबन 83 फीसदी नौजवान हैं.

यह कहना गलत नहीं होगा कि आज की नौजवान पीढ़ी बेरोजगारी से जू?ा रही है. कई नौजवान नौकरियों के लिए मौके तलाश रहे हैं. 15-20 हजार रुपए महीने की नौकरी पाने के लिए हजारोंलाखों बेरोजगार नौजवान अर्जी देते हैं और जब इस में भी उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाती है, तो वे बुरी तरह हताश और निराश हो जाते हैं.

सरकारी नौकरी नहीं लग पा रही है, तो इस का यह मतलब नहीं है कि आप कोई गलत कदम उठा लें या फिर अपने मांबाप पर बो?ा बन जाएं और उन से अपने खर्चे उठवाएं और उन्हें परेशान करें, तब, जब उन की उम्र हो चुकी है और वे खुद अपनी पैंशन पर गुजरबसर कर रहे हैं.

टैक्नोलौजी के इस जमाने में नौजवान पीढ़ी को अब अपनी सोच बदलनी होगी. उसे अब नौकरी ढूंढ़ने के बजाय नौकरी देने वाला बनने पर ध्यान देना चाहिए.

नौजवानों को अपने रोजगार और आजीविका के लिए अपने मातापिता का मुंह देखने के बजाय अपने रास्ते खुद तलाशने होंगे. इस में कोई दोराय नहीं है कि नौजवानों के पास भरपूर क्षमता और कौशल है और इसे साबित करने के लिए मौके भी खूब हैं. उन्हें केवल अपने टारगेट को पहचानने की जरूरत है.

मौडर्न टैक्नोलौजी इस काम में बहुत मददगार साबित हो सकती है. इस की वजह से न केवल नौजवान पीढ़ी रोजगार पा सकती है, बल्कि कइयों को रोजगार दे भी सकती है.

नौजवानों के पास आगे बढ़ने के कई मौके हैं. लेकिन मुद्दा यह है कि सही दिशा में कदम किस तरह उठाया जाए, जिस से कि परिवार, समाज और देश को फायदा पहुंचे?

इस के लिए नौजवानों के साथसाथ सरकार को भी आगे आना होगा. यह कहना भी गलत नहीं होगा कि आज बुनियादी जरूरतों की कमी के चलते कई नौजवान टैलेंटेड होते हुए भी पीछे रह जाते हैं.

24 साल के एक नौजवान का कहना है कि वह अच्छा क्रिकेट खेलता है. लेकिन उस के पास क्रिकेट खेल को बेहतर बनाने के लिए कोई सुविधाएं नहीं हैं. अगर उसे सुविधाएं मुहैया कराई जाएं, तो वह क्रिकेट में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है.

भारत में नौजवानों (15-29 साल की उम्र) में बेरोजगारी की दर सामान्य आबादी की तुलना में काफी ज्यादा है. साल 2022 में शहरी नौजवानों के लिए बेरोजगारी की दर 17.2 फीसदी थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर तकरीबन 10.6 फीसदी थी.

देश में बढ़ती बेरोजगारी के और भी कई कारण हैं, जैसे बढ़ती आबादी, उचित पढ़ाईलिखाई की कमी, कौशल विकास की कमी, नौकरियों के मौकों की कमी वगैरह.

सरकार की जिम्मेदारी केवल टैक्स कलैक्शन तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि देश का पूरा विकास हो, नौजवानों को रोजगार मिले, यह भी सरकार की ही जिम्मेदारी है.

Love Crime : प्रेमिका के पापा ने कहा मर कर दिखाओ तो होगी शादी

अतुल लोखंडे और प्रीति 13 सालों से एकदूसरे को जानते थे. नजदीकियों ने उन्हें प्यार की सौगात दी, लेकिन एक की कामयाबी और दूसरे की नाकामी ने प्यार में बैरन का काम किया. फलस्वरूप जो हुआ, वह बहुत धमाकेदार और हैरतंगेज था…  

हांमैं अत्तू को 7 साल से जानती थी और उस के साथ रिलेशनशिप में थीलेकिन 7 साल में वह कुछ नहीं कर पाया. वह अपने कैरियर के प्रति लापरवाह था. मैं ने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह स्टेबल नहीं हो पाया. इस वजह से एक साल से मैं ने उस से दूरियां बनानी शुरू कर दी थीं. मैं एक ऐसे आदमी से शादी नहीं करना चाहती थी, जो मेरी या परिवार की जिम्मेदारी निभा पाए.’

बीती 4 जुलाई को प्रीति जब मीडिया से रूबरू हुई, तब उस का चेहरा हालांकि उतरा और निचुड़ा हुआ था, लेकिन इस के बावजूद वह यह जताने की कोशिश करती नजर आई कि अतुल लोखंडे उर्फ अत्तू की आत्महत्या में उस का या उस के पिता का कोई हाथ नहीं हैमतलब उसे खुदकुशी के लिए उकसाया नहीं गया था. यह खुद अतुल का फैसला था, लेकिन जबरन उस के पिता का नाम बीच में घसीटा जा रहा है कि उन के कहने पर उस ने प्यार का सबूत देने के लिए आत्महत्या करने की कोशिश की. प्यार की यह दुखद कहानी भोपाल के शिवाजी नगर इलाके की है, जिसे शहर की सब से शांत और खूबसूरत जगहों में शुमार किया जाता है

हबीबगंज रेलवे स्टेशन और व्यवसायिक इलाके एम.पी. नगर से महज डेढ़ किलोमीटर की दूर स्थित शिवाजी नगर में सरकारी आवासों की भरमार है. यह जगह शहर के वीआईपी इलाके चार इमली से भी सटी हुई है, जहां प्रदेश भर की दिग्गज हस्तियां रहती हैं. शिवाजी नगर में रहने वाले नाम से कम अपने क्वार्टरों के टाइप और नंबरों से ज्यादा जाने जाते हैं. अगर आप अतुल लोखंडे के घर जाना चाहते हैं तो आप को 121 की लाइन ढूंढनी पड़ेगी. लेकिन अतुल लोखंडे को लोग नाम से भी जानते थे, क्योंकि वह भाजपा अरेरा मंडल के युवा मोर्चे का उपाध्यक्ष था

नेतागिरी में सक्रिय युवाओं को बरबस ही लोग जानने लगते हैं. ऐसे आवासों में अकसर पार्टी कार्यकर्ताओं की आवाजाही लगी रहती है. कभीकभार कोई बड़ा नेता या मंत्री भी उन के घर जाता है. ऐसे में बैठेबिठाए मुफ्त का प्रचार मिल जाता है. 30 वर्षीय अतुल हंसमुख और जिंदादिल नवयुवक था, लेकिन बीती 3 जुलाई को उस ने निहायत ही नाटकीय अंदाज में खुदकुशी कर ली. ऐसे में भोपाल में सनाका खिंचना स्वाभाविक सी बात थी. प्रेम में जिंदगी हारा आशिक जब अतुल अपने घर से महज 2 सौ मीटर दूर रहने वाली प्रीति के घर पहुंचा, तब रात के लगभग साढ़े 9 बजे का वक्त था. प्रीति की इसी साल बैंक में नौकरी लगी थी और वह विदिशा से रोजाना हबीबगंज स्टेशन से अपडाउन करती थी. रोजाना की ही तरह उस के पिता उस दिन भी अपनी आई10 कार से उसे लेने स्टेशन पहुंचे थे.

दोनों अभी घर लौटे ही थे कि अतुल भी वहां पहुंच गया. प्रीति के पिता जल संसाधन विभाग में अधिकारी हैं. पहुंचते ही बगैर किसी भूमिका के, जिस की जरूरत भी नहीं थी, अतुल ने कहा कि वह प्रीति से शादी करना चाहता है. जवाब उम्मीद के मुताबिक नहीं मिला तो अतुल ने बिना किसी हिचकिचाहट या घबराहट के अपनी कमर में खोंसा हुआ देसी कट्टा निकाला और माथे पर लगा कर उस का ट्रिगर दबा दिया. गोली उस के भेजे में जा कर धंस गई. धांय की आवाज के साथ ही अतुल कटे पेड़ की तरह धड़ाम से जमीन पर गिर गया तो प्रीति और उस के पिता को माजरा समझ में आया. स्थिति देख कर वे घबरा गए. शोरशराबा शुरू हुआ तो आसपास के लोग दौड़े चले आए. भीड़ ने अतुल को उठा कर नजदीक के पारूल अस्पताल में भरती करा दिया. थोड़ी देर में उस के घर वाले भी अस्पताल पहुंच गए.

खबर तेजी से फैली कि भाजपा युवा मोर्चे के एक पदाधिकारी अतुल लोखंडे ने प्रेम प्रसंग के चलते खुद को गोली मार ली. अस्पताल के सामने भाजपा युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं की भीड़ लगनी शुरू हो गई. वारदात की खबर मिलते ही पुलिस टीम भी अस्पताल पहुंच गई. सुरक्षा के लिहाज से अस्पताल के सामने पुलिस बल तैनात कर दिया गया. एकत्र भीड़ में मौजूद अधिकांश लोगों को नहीं मालूम था कि आखिर माजरा क्या है, लेकिन एक घंटे की बातचीत और चर्चा के बाद अतुल और प्रीति की लव स्टोरी सामने आई तो कोहरा छंटता नजर आया. अब हर कोई यह दुआ मांगने लगा था कि अतुल बच जाए. पुलिस अपनी काररवाई में लग गई थी और डाक्टर अतुल के इलाज में जुट गए थे. अतुल के कुछ नजदीकी दोस्त गुट सा बना कर चर्चा कर रहे थे कि अतुल तो यह कहा करता था कि कुछ भी हो जाए, कभी खुदकुशी जैसा बुजदिली भरा कदम नहीं उठाएगा और आज वही

ब्लू व्हेल सा चैलेंज इसी चर्चा से सामने आई अतुल और प्रीति की प्रेमकथा, जिसे कई लोग पहले से ही जानते थे. अतुल और प्रीति करीब 13 साल से एकदूसरे को जानते थे और जल्द ही शादी करने वाले थे. कुछ लोग तो यह तक मानते थे कि दोनों शादी कर चुके थे, बस उन्हें पारिवारिक स्वीकृति और सामाजिक मान्यता का इंतजार था. फिर ऐसा क्या हो गया कि अतुल को यह आत्मघाती कदम उठाना पड़ा. इस सवाल का जवाब मिला अतुल की फेसबुक वाल से, जिसे उस ने प्रीति के घर आने के पहले ही अपडेट करते हुए किसी ज्योतिषी की तरह अपनी मौत की सटीक भविष्यवाणी कर दी थी.

अतुल ने प्रीति के घर रवाना होने से चंद मिनटों पहले फेसबुक पर लिखा था

उस के पापा ने कहा कि आज शाम घर आओ, अपनी प्रेमिका के लिए मर के दिखाओअगर उस से प्यार करते हो तो. बच गए तो तुम दोनों की शादी पक्की, मर गए तो सात जन्म हैं हीफिर पैदा हो कर कर लेना शादी

मैं प्रीति के घर पर ही हूं, मुझे यहां से ले जाना. जिंदा रहा तो खुद जाऊंगा, उस से भी वादा किया था. एक वादा तो पूरा नहीं कर पाया दूसरा वादा, मैं तेरे बिना नहीं जी सकता, इसलिए मर रहा हूं

सब यही कहेंगे कि लड़की के चक्कर में चला गया, घर वालों के बारे में नहीं सोचा. सब के बारे में सोचसमझ कर ही यह कदम उठाया है. इस के अलावा कहीं कुछ नहीं दिख रहा, बहुत कोशिश कर ली पर भूल ही नहीं पा रहा. वैसे भी भुलाया तो पराए को जाता है अपने को नहीं.’

सहजता से समझा जा सकता है कि यह सब लिखते वक्त प्यार में असफल होने वाले एक आशिक की मनोदशा क्या रही होगी. एक आशिक दुनिया से लड़ सकता है लेकिन अपनी माशूका से नहीं लड़ पाता. उसे घर वालों की चिंता भी थी पर प्रीति के पिता की यह चुनौती उसे मजबूर कर रही थी कि वह अपने प्यार की सच्चाई साबित करे, भले ही इस के लिए उसे जान ही क्यों देनी पड़े. अस्पताल में भरती अतुल 4 जुलाई को जब जिंदगी से भी हार रहा था, तब प्रीति मीडियाकर्मियों के सामने यह साबित करने की कोशिश कर रही थी कि उस के पिता ने ऐसा कोई चैलेंज उसे नहीं दिया था, बल्कि यह एक नाकाम आशिक के खुराफाती दिमाग की उपज है.

अपनी बात में दम लाने के लिए प्रीति ने बताया कि हादसे के दिन वह अपनी ड्यूटी पूरी कर के रात लगभग 9.25 बजे घर पहुंची थी. उस के पिता भी साथ थे. घर के बाहर आल्टो कार में अत्तू बैठा था. हमें देखते ही वह भी घर के गेट तक गया. उस ने कहा कि एक मिनट पापा से बात करनी है. इस पर प्रीति ने कहा कि कोई बात नहीं होगी, तुम जाओ. उस ने जिद की तो पापा मान गए. तब तक गेट पर प्रीति की मां और बड़ी बहन भी गई थीं. गेट पर ही अतुल ने प्रीति से पूछा, ‘‘क्या मैं तुम्हें परेशान करता हूं?’’

जवाब में प्रीति ने कहा, ‘‘अब इन बातों का कोई मतलब नहीं, मैं शादी नहीं करूंगी.’’

उस का जवाब सुनते ही अतुल ने जेब से देशी कट्टा निकाला और कनपटी पर लगा कर गोली चला दी. बकौल प्रीति, फेसबुक पर अतुल ने जो लिखा है वह गलत है. हमारी कोई शादी नहीं हुई है और ही मेरे पिता ने उसे घर पर बात करने के लिए बुलाया था. प्रीति ने यह भी बताया कि अतुल ने कुछ दिन पहले उस के साथ सरेराह मारपीट भी की थी. उस की स्कूटी का मिरर, मोबाइल और हेलमेट तोड़ दिए थेप्रीति उस से दूर रहना चाहती थी पर एक महीने से अतुल के सिर पर पागलपन सवार था. उस के बडे़ भाई मुकुल ने भी उस के पिता को भलाबुरा कहा था. इसी दौरान अतुल ने उस के औफिस जा कर भी बात करने की कोशिश की थी. इस पर प्रीति ने उसे समझाया था कि अब हमारा कुछ नहीं हो सकता, तुम अपना कैरियर बनाओ.

मीडिया से रूबरू होते समय प्रीति के पिता का कहना था कि उन्होंने कुछ दिनों पहले ही अतुल के घर वालों से उस की शिकायत की थी, लेकिन उन्होंने कहा कि उन का बेटा मरता है तो मर जाए, आप यहां से चले जाएं. चूंकि अतुल उन के घर के चक्कर लगाता रहता था, इसलिए वे प्रीति को लेने स्टेशन जाने लगे थे, जिस से किसी तरह का फसाद खड़ा हो. अतुल ने खुदकुशी कर के जो फसाद खड़ा किया, वह शायद ही लोग आसानी से भूल पाएं. इस मामले में फसाद की जड़ माशूका की बेरुखी थी, जो साफ दिखती है. जबकि यह बात अतुल की समझ में नहीं रही थी कि ऐसा क्या हो गया जो नौकरी लगते ही प्रीति का दिमाग फिर गया और वह उस से रूठीरूठी रहने लगी. मुमकिन है इस दौरान उसे अपने निकम्मे होने का खयाल भी आया हो, जिस का अहसास खुद प्रीति भी उसे करा चुकी थी.

4 जुलाई को जब अतुल जिंदगी की जंग में हार रहा था, तब केवल प्रीति और उस के घर वाले अतुल पर आरोप लगा रहे थे, बल्कि अतुल के घर वाले भी खामोश नहीं बैठे थे. सच के इर्दगिर्द अतुल की मां सुनंदा का कहना था कि प्रीति का 12-13 सालों से उन के घर आनाजाना था. वह उन के घर के हर कार्यक्रम में हिस्सा लेती थी और हर मामले में घर के सदस्य जैसा ही अधिकार जमाती थी. उन्होंने स्वीकारा कि अतुल और प्रीति दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. लेकिन बैंक में नौकरी लगने के बाद प्रीति के तेवर बदल गए थे. उस की ख्वाहिशें बढ़ गई थीं. उसे रहने के लिए बंगला और घूमने के लिए गाडि़यां चाहिए थीं. 15 दिन में मेरा बेटा यह सब कहां से अरेंज करता, प्रीति शर्तों पर जीना चाहती थी, लेकिन प्यार में शर्तें कहां होती हैं?

अतुल की मां भी सरकारी कर्मचारी हैं और उस के पिता मधुकर लोखंडे जेल विभाग में कार्यरत हैं जो कुछ नामालूम वजहों के चलते घर से अलग रहते हैं. इन बातों का प्रीति और अतुल के प्यार की गहराई से कोई संबंध नहीं लगता, जो किशोरावस्था में ही पनप चुका था और इतना परिपक्व हो चुका था कि पूरा शिवाजी नगर इस प्रेम प्रसंग को जानता था. दूसरे प्रेमियों की तरह उन्हें चोरीछिपे नहीं मिलना पड़ता थालाख टके और मुद्दे की बात अतुल का खुदकुशी का फैसला है, जिस की वजह यही समझ आती है कि वाकई नौकरी लगने के बाद प्रीति बदल गई थी. यह बात दूसरे शब्दों में वह खुद भी स्वीकार कर रही है और अतुल की मां का भी यही कहना है.

हंसमुख अतुल मौत के 15 मिनट पहले तक दोस्तों को हंसा रहा था, पर तब कोई नहीं समझ पाया था कि इस नाकाम आशिक के दिलोदिमाग में कौन सा तूफान उमड़ रहा हैप्रीति की यह नसीहत अपनी जगह ठीक थी कि अतुल को कैरियर पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन उस की बेरुखी अतुल बरदाश्त नहीं कर पाया तो खुद की चलाई गोली उस के भेजे में उतरी और 5 जुलाई को उस ने अपने घर के ठीक सामने बने पारूल अस्पताल में दम तोड़ दिया. लगता है कि अतुल नफरत और प्यार के द्वंद में फंस गया था. फेसबुक पर उस ने यह लिखा भी था कि प्रीति को कोई कुछ कहे, सारी गलती खुद उसी की है. सब कुछ मेरी वजह से ही बिगड़ा. प्रीति के लिए उस ने लिखा कि मैं 13 साल उस के साथ रहा, लेकिन उस के सपने पूरे नहीं कर पाया.

तू भी हमारे 13 साल के रिश्ते को कैसे भूल गई. अपने पापा के सामने डर क्यों गई? एक बार हिम्मत दिखाती तो आज जिंदगी कुछ और होती. अपनी मां को संबोधित करते हुए उस ने बड़े भावुक अंदाज में इच्छा जताई थी कि अगर यह सच है कि 7 जन्म होते हैं तो हर जन्म में वह अपनी मां का बेटा बनना चाहेगा, उस की मां जैसी कोई मां दुनिया में नहीं है.

Yogi Government : यूपी सरकार का बुलडोजर न्याय और आम आदमी

 

Buldozer Sarkar : इन दोनों देश भर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार की तर्ज पर बुलडोजर न्याय चल पड़ा है. देश के अनेक राज्यों में बुलडोजर चला करके आनन-फानन में विकास और न्याय करने का ढोंग किया जा रहा है.

यह बुलडोजर न्याय उत्तर प्रदेश से प्रारंभ हुआ है जहां एक वर्ग विशेष के लोग अगर किसी अपराध में पाए जाते हैं तो उनके घर मकान को जमीदोज कर दिया जाता है. ऐसा लगता है कि अब सरकार सत्ता के साथ न्यायाधीश भी बन गई है जैसे कभी राजा महाराजा हुआ करते थे इस शैली में न्याय करने का प्रयास किया जा रहा है जिसकी कम से कम लोकतंत्र में कहीं भी जगह नहीं है.

यही कारण है कि उच्चतम न्यायालय ने 6 नवंबर 2024 दिन बुधवार को 2019 में अवैध तरीके से ढांचों को गिराने को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार से नाखुशी जताई और कहा, आप ऐसा नहीं कर सकते कि बुलडोजर लेकर आएं और रातों रात भवनों को गिरा दें…! कोर्ट ने साथ ही सड़कें चौड़ी करने एवं अतिक्रमण हटाने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश जारी किए. देश के सबसे बड़े अदालत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने उत्तर प्रदेश को निर्देश दिया -” उस व्यक्ति को 25 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए जिसका घर 2019 में सड़क चौड़ी करने की एक परियोजना के लिए गिरा दिया गया था.”

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील से कहा, -” आप ऐसा नहीं कर सकते कि बुलडोजर लेकर आएं और रातों रात भवनों को गिरा दें. आप परिवार को घर खाली करने के लिए समय नहीं देते. घर में रखे घरेलू सामान का क्या ? शीर्ष अदालत की पीठ ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से कहा कि महाराजगंज जिले में मकान गिराने से संबंधित मामले में जांच कराई जाए और उचित कार्रवाई की जाए.

बिना सूचना ढहा दी हास्पिटल

देश में इन दिनों फोर लेन और सिक्स लेन का काम बड़े जोरों से चल रहा है, समयबद्ध तरीके से सड़के बनाने के निर्देश और दबाव के बीच कई तरह की घटनाएं सामने आ रही है. ऐसे में ही एक घटना छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा में घटित हुई जहां कोरबा चांपा मार्ग के सरगबुंदिया गांव में प्रतिष्ठित डॉक्टर देवनाथ एम डी के अक्षय हॉस्पिटल को बिना किसी सूचना दिए रातोंरात ढहा दिया गया. जबकि डॉक्टर के पास जमीन के सभी दस्तावेज मौजूद है इसके बावजूद ना कोई मुआवजा दिया गया है और ना ही कुछ सुनवाई हो रही है. डॉक्टर देवनाथ मामले को लेकर के उच्च न्यायालय बिलासपुर पहुंचे हैं. ऐसी ही कुछ और घटनाएं भी देश में घटित हुई है. इस परिपेक्ष में कहा जा सकता है कि उच्चतम अदालत ने राज्यों से कहा – अभिलेखों या मानचित्रों के आधार पर सड़क की मौजूदा चौड़ाई का पता लगाएं तथा सर्वेक्षण करें, जिससे सड़क पर यदि कोई अतिक्रमण है तो उसका पता चल सके.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि सड़क पर अतिक्रमण का पता चलता है तो राज्य को इसे हटाने से पहले अतिक्रमण करने वाले को नोटिस जारी करना होगा और यदि नोटिस की सत्यता और वैधता पर आपत्ति जताई जाती है तो राज्य प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ (कारण सहित 1 आदेश) जारी करेगा।

पीठ ने कहा कि यदि आपत्ति को खारिज कर दिया जाता है तो संबंधित व्यक्ति को अतिक्रमण हटाने के लिए एक तर्कसंगत नोटिस दिया जाएगा.पीठ ने कहा कि यदि संबंधित व्यक्ति इसका अनुपालन – नहीं करता, तो सक्षम प्राधिकारी अतिक्रमण हटाने के लिए कदम उठाएंगे, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी या अदालत के आदेश से रोक न लगाई जाए.

पीठ ने कहा – ऐसे मामले में जहां सड़क की मौजूदा चौड़ाई, जिसमें उससे सटी राज्य की भूमि भी शामिल है, सड़क चौड़ीकरण के लिए पर्याप्त नहीं है, तो राज्य इस कार्रवाई को शुरू करने से पहले कानून के अनुसार अपनी भूमि का अधिग्रहण करने के लिए कदम उठाएगा. इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर और अधिवक्ता शुभम कुलश्रेष्ठ पक्ष रख रहे थे।

अदालत ने उनका पक्ष सुनते हुए कहा, यह स्पष्ट है कि मकान गिराने की प्रक्रिया पूरी तरह मनमानी थी और कानून का पालन किए बिना इसे अंजाम दिया गया. सुनवाई के दौरान पीठ को संबंधित क्षेत्र में 123 ढांचों को गिराए जाने के बारे में सूचित किया गया. पीठ ने कहा अदालत के रेकार्ड के अनुसार मकान को गिराने से पहले कोई नोटिस जारी नहीं किया गया.

आप कह रहे हैं कि आपने केवल मुनादी की थी. शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के वकील से यह भी पूछा कि किस आधार पर निर्माण कार्य को अनधिकृत बताया गया है. जब राज्य के वकील ने पीठ को सड़क चौड़ी करने की परियोजना के बारे में बताया तो उन्होंने कहा, सड़क चौड़ी करना बस एक बहाना है। यह पूरी कवायद के लिए उचित कारण नहीं लगता.

पीठ ने निर्देश दिया, उत्तर प्रदेश राज्य याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपए का मुआवजा देगा. पीठ ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया कि वह उसके आदेश की एक प्रति सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजें ताकि सड़क चौड़ीकरण के उद्देश्य से प्रक्रिया पर जारी निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके. जिस तरह उच्चतम न्यायालय ने इस संदर्भ में संज्ञान लिया है और राज्य सरकार को 25 लाख रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया है वह एक सकारात्मक संदेश है कि देश में अन्याय नहीं हो सकता.

वहशी प्रेमी से बचें

पूर्वी अफ्रीका का देश केन्या अपनी जंगल सफारी के लिए जाना जाता है. यहां के मशहूर केन्या पर्वत पर ही इस देश का नाम पड़ा है, पर हालिया कुछ घटनाओं ने इस देश को शर्मसार कर दिया है. दरअसल, यहां पर पिछले कुछ समय से लड़कियों और औरतों के प्रति जिस तरह से हिंसा के मामले बढ़े हैं, वे चिंता की बात है.

केन्या के ब्यूरो औफ नैशनल स्टैटिस्टिक्स में साल 2023 के जनवरी महीने में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि केन्या में लड़कियों और औरतों के खिलाफ हिंसा बहुत ज्यादा बढ़ी है. 15 साल की उम्र से ही वे शारीरिक हिंसा की शिकार होती हैं.

हाल में एक और दर्दनाक मामला इस काली लिस्ट में शामिल हो गया है. हैवानियत की शिकार कोई और नहीं, बल्कि पैरिस ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेने वाली एथलीट रेबेका चेपटेगई थीं, जिन्हें उन के बौयफ्रैंड ने आग लगा कर जला दिया था.

वैसे तो रेबेका चेपटेगई मूल रूप से युगांडा की थीं, पर फिलहाल वे केन्या में रहती थीं.

रेबेका चेपटेगई वैस्टर्न नजोए काउंटी इलाके में रहती थीं और वारदात के समय अपने घर में थीं. आसपास के लोगों ने बताया कि रविवार, 1 सितंबर, 2024 को उन का अपने बौयफ्रैंड डिकसन डिमा के बीच ?ागड़ा हो रहा था. जिस जमीन पर वह घर बना है, उसी को ले कर बहस

हो रही थी. दोनों का ?ागड़ा इतना गंभीर था कि उन की आवाजें घर से बाहर आ रही थीं.

इसी बीच गुस्साए प्रेमी ने रेबेका पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी, जिस से वे बुरी तरह झूलस गई. इस वारदात के 3 दिन बाद इलाज के दौरान रेबेका की मौत हो गई.

अब जरा भारत के आशिकों का वहशीपन भी देख लें. मामला उत्तर प्रदेश के उन्नाव का है. बेहटा मुजावर थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली 20 साल की एक लड़की की शादी 19 मार्च, 2024 को होनी थी. पर उस लड़की का प्रेम संबंध अपने ही गांव के रहने वाले एक लड़के से चल रहा था.

पुलिस के मुताबिक, प्रेमिका की शादी तय होने से प्रेमी बेहद नाराज था. उस ने अपनी प्रेमिका को मिलने के

लिए खेत पर बुलाया. प्रेमिका खेत पर पहुंची, जहां उन दोनों में झगड़ा हो गया. गुस्साए प्रेमी ने अपनी प्रेमिका का हाथ (पंजा) धारदार खुरपी से काट कर अलग कर दिया.

इसी तरह उत्तर प्रदेश के अयोध्या के गोसाईंगंज इलाके के रेलवे स्टेशन के पास एक खंडहर में प्रेमी ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर उस की लाश पर कैमिकल डाल कर जला दिया था.

यह मामला अगस्त, 2024 का है. पुलिस ने प्रेमी को पकड़ लिया था. आरोपी प्रेमी ने पूछताछ में बताया कि वह और उस की प्रेमिका दोनों एकसाथ मुंबई गए थे. बाद में लड़की किसी और लड़के से बात करने लगी थी, जो आरोपी को पसंद नहीं आ रहा था. इसी वजह से उन दोनों का झगड़ा होता था.

आरोपी ने पुलिस को आगे बताया कि उस ने अपनी प्रेमिका को पहले पत्थर से सिर कुचल कर मार डाला, फिर उस की लाश को कैमिकल डाल कर जलाने की कोशिश की, ताकि लाश जल्दी गल जाए और हत्या का सुबूत मिट जाए.

साल 2022 के मई महीने में हुआ श्रद्धा हत्याकांड ऐसा ही एक और मामला था, जिस ने पूरे देश को झकझोर दिया था. शादी का दबाव बनाने के लिए और प्रेमिका पर शक होने के चलते आफताब पूनावाला ने दिल्ली में श्रद्धा वालकर की हत्या कर दी थी. हत्या के बाद उस ने श्रद्धा की लाश के 35 टुकड़े किए थे और उन्हें फ्रिज में रख दिया था. फिर इन टुकड़ों को वह धीरेधीरे अगले कुछ महीनों में महरौली के जंगलों में फेंकता रहा था.

दिल्ली में ही साहिल नाम के एक प्रेमी (बाद में खुलासा हुआ कि पति था) ने अपनी प्रेमिका निक्की की कार के अंदर हत्या कर दी थी और फिर उस  की लाश अपने रैस्टोरैंट के फ्रिज में रख दी थी.

दरअसल, साहिल ने किसी दूसरी लड़की के साथ सगाई कर ली थी और  फिर वह निक्की से मिलने उस के फ्लैट पर गया था. इस दौरान उस की शादी को ले कर कहासुनी हुई, जिस के बाद उसे गुस्सा आ गया और उस ने मोबाइल के केबल से पीडि़ता का गला घोंट दिया था.

पूरी दुनिया में ऐसे मामलों की भरमार है, जहां गुस्साए किसी प्रेमी ने अपनी प्रेमिका पर जानलेवा हमला किया और अपने प्यार को ही शर्मसार कर दिया.

भारत में तो हमेशा से लड़की को दोयम दर्जे का समझ जाता है. वे घर के बाहर ही क्या, भीतर भी खुद को महफूज नहीं मानती हैं और जब उन का प्रेमी ही वहशीपन पर उतर आए तो फिर वे किस से गुहार लगाएं, क्योंकि प्रेमी के साथ

तो वे अच्छी जिंदगी बिताने के सपने देखती हैं.

पर गुस्सैल प्रेमी का क्या किया जाए और उसे कैसे कंट्रोल में रखा जाए, यह बहुत बड़ा सवाल बन जाता है, जबकि गुस्से का जवाब गुस्सा तो बिलकुल नहीं होता है और यहीं से हर मुसीबत की शुरुआत होती है.

अमूमन तो यही कहा जाता है कि अगर प्यार में तकरार न हो तो फिर कैसा प्यार, पर यही तकरार जब गुस्से में बदल जाता है, तो प्रेमी का असली रूप सामने आ जाता है और फिर केन्या हो या भारत, वह वही वहशीपन दिखाता है, जो किसी मासूम लड़की की जान आफत में डाल देता है.

फिर भी कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन पर अमल करने से प्रेमीप्रेमिका के बीच की तल्खी को कम किया जा सकता है, जैसे :

* जब भी लड़की को यह लगे कि उस का प्रेमी अब गुस्से में फट पड़ने वाला है, तो वह सब्र से काम ले. उस की बात का तुरंत जवाब न दे और कड़वे शब्द तो बिलकुल न कहें.

* अगर आप का प्रेमी सच में आप से प्यार करता है, लेकिन गुस्सैल भी है, तो उस की दुखती रग पर हाथ न रखें और माहौल को हलका बनाने के लिए बात को नया रुख दे दें.

* अगर आप को शक है कि प्रेमी किसी तरह की बेवफाई कर रहा है, तो बिना किसी ठोस वजह के नतीजे पर न पहुंचें. अपनी बात को उस के सामने रखें और उस के नजरिए को भी समझे.

* अगर आप को यह डर लगता है कि प्रेमी गुस्से में कुछ भी कर सकता है, तो अकेले में मिलने से बचें और धीरेधीरे उस से दूरी बना लें.

* अगर बात बहुत ज्यादा बिगड़ रही है, तो किसी अपने से मन की बात कहें. ज्यादा ही गंभीर मसला है, तो पुलिस की मदद लेने से भी न झिझकें.

डाक्टर साहब, आप क्यों ठगी का शिकार हो रहे हैं

आम आदमी ठगी का शिकार हो जाए तो कहा जाता है कि यह तो पोंगा पंडित है, दुनियादारी नहीं जानता, मगर आज बड़ीबड़ी हस्तियां ठगी का शिकार हो रही हैं. जब डाक्टर भी लालच में आ कर ठगी का शिकार हो रहे हैं, तो फिर आम आदमी की बिसात ही क्या. दरअसल, देश का ऐसा कोई शहर नहीं है, जहां लोग ठगी का शिकार नहीं हो रहे हैं. इस की सिर्फ एक ही वजह है इनसान का लालच. अगर हम इसे कंट्रोल कर लें तो हमें कोई नहीं ठग सकता.

छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में एक डाक्टर के साथ औनलाइन ठगी का मामला सामने आया है, जिस में आरोपियों ने डाक्टर से 89 लाख रुपए की ठगी की है. यह ठगी गेमिंग कंपनी में इन्वैस्ट करने के नाम पर की गई है, जहां आरोपियों ने 40 फीसदी मुनाफा देने का झांसा दिया था.

डाक्टर अशित कुमार ने बताया कि वे टैलीग्राम चैनल के जरीए आरोपियों के संपर्क में आए थे, जिन्होंने औनलाइन रौयल गेमिंग कंपनी में पैसा लगाने पर बड़ा मुनाफा देने की बात कही थी. आरोपियों ने कम इन्वैस्टमैंट करने पर ज्यादा मुनाफा दिलाने का लालच दिया था, जिस पर डाक्टर ने उन के बताए खातों में पैसे ट्रांसफर कर दिए.
आरोपियों ने 40 से ज्यादा किस्तों में डाक्टर से पैसे लिए और फिर उस की मूल रकम भी नहीं लौटाई.

जब डाक्टर ने पैसे मांगे, तो आरोपियों ने और इन्वैस्टमैंट करने के लिए कहा. डाक्टर ने आरोपियों की बात नहीं मानी, तो आरोपियों ने उन का फोन उठाना बंद कर दिया.

इस मामले में डाक्टर ने खम्हारडीह थाने में शिकायत दर्ज कराई है, जिस में पुलिस आरोपियों की तलाश कर रही है. यह मामला औनलाइन ठगी का एक और मामला है, जिस में लोगों को बड़े मुनाफे के लालच में ठगा जा रहा है.

इससे पहले भी रायपुर में मई, 2024 में एक डाक्टर के साथ 2 करोड़, 92 लाख रुपए की औनलाइन ठगी हुई थी, जिस में डाक्टर ने फेसबुक पर विज्ञापन देख कर बड़े मुनाफे के लालच में एप के जरीए इन्वैस्ट किया था. शातिर ठगों ने वर्चुअली मोटी रकम दिखा कर कमीशन के नाम पर 25 से 30 बार में रुपए वसूल लिए थे.

औनलाइन ठगी के मामले में लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए और किसी भी अनजान आदमी या कंपनी में पैसा लगाने से पहले पूरी जांचपड़ताल करनी चाहिए.

औनलाइन ठगी के मामले में पुलिस और साइबर सैल को भी सख्त ऐक्शन लेना चाहिए और आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करना चाहिए. साथ ही, लोगों को जागरूक करना चाहिए कि वे औनलाइन ठगी के मामले में सावधानी बरतें और किसी भी अनजान आदमी के पास या कंपनी में पैसा लगाने से पहले पूरी जांचपड़ताल करें.

देश में औनलाइन ठगी की कई वारदातें हुई हैं, जिन में लोगों को बड़े पैमाने पर ठगा गया है. कुछ प्रमुख घटनाएं इस तरह हैं :

-पंजाब में एक आदमी को औनलाइन ठगी का शिकार होने के बाद डेढ़ करोड़ रुपए का नुकसान हुआ.

-मुंबई में एक आदमी को औनलाइन ठगी का शिकार होने के बाद 50 लाख रुपए का नुकसान हुआ.

-दिल्ली में एक आदमी को औनलाइन ठगी का शिकार होने के बाद 20 लाख रुपए का नुकसान हुआ.

-बैंगलुरु में एक आदमी को औनलाइन ठगी का शिकार होने के बाद 10 लाख रुपए का नुकसान हुआ.

-हैदराबाद में एक आदमी को औनलाइन ठगी का शिकार होने के बाद 5 लाख रुपए का नुकसान हुआ.

औनलाइन ठगी से ऐसे बचें

-दरअसल, जो जागरूक नहीं हैं, अपढ़ हैं, उन के साथसाथ पढ़ेलिखे और जागरूक लोगों को भी अनजान लिंक्स पर क्लिक नहीं करना चाहिए.

-अज्ञात स्रोतों से आए हुए लिंक्स पर क्लिक न करें, क्योंकि वे आप के डिवाइस में मेलवेयर डाउनलोड कर सकते हैं. साथ ही, अपनी निजी जानकारी जैसे पासवर्ड, क्रेडिट कार्ड नंबर और अन्य संवेदनशील जानकारी किसी भी अज्ञात आदमी या वैबसाइट के साथ साझा न करें.

-सुनिश्चित करें कि आप जिस वैबसाइट पर जा रहे हैं, वह सुरक्षित है. इस के लिए वैबसाइट के ‘URL’ में ‘https’ देखें और एक लौक का चिह्न देखें.

-अपने औनलाइन अकाउंट्स के लिए मजबूत और अनोखे पासवर्ड का उपयोग करें और उन्हें नियमित रूप से बदलें.

-अपने औपरेटिंग सिस्टम, ब्राउजर, और अन्य सौफ्टवेयर को नियमित रूप से अपडेट रखें, ताकि सुरक्षा में सुधार हो सके.

-अज्ञात ईमेल्स को सावधानी से खोलें और अज्ञात अटैचमैंट्स या लिंक्स पर क्लिक न करें. साथ ही, औनलाइन लेनदेन करते समय सावधानी बरतें और सुनिश्चित करें कि आप एक सुरक्षित और विश्वसनीय वैबसाइट पर हैं.

कामवालियों पर मालिक की ललचाई नजरें

आज के समय में ज्यादातर शहरी पतिपत्नी कामकाजी होते हैं. ऐसे में घरों में काम करने वाली बाई का रोल अहम हो जाता है. अगर एक दिन भी वह नहीं आती है, तो पूरा घर अस्तव्यस्त हो जाता है. एक ताजा सर्वे के मुताबिक, मुंबई शहर में कामकाजी लोगों के घर उन की कामवाली बाई के भरोसे ही चलते हैं और अगर एक दिन भी वह छुट्टी ले लेती है, तो घर में मानो तूफान आ जाता है. सवाल यह है कि जो इनसान हमारे घर के लिए इतना अहम है, क्या हमारे समाज में उसे वह इज्जत मिल पाती है, जिस का वह हकदार है?

आमतौर पर घरों में काम करने वाली बाइयों के प्रति समाज का नजरिया अच्छा नहीं रहता, क्योंकि अगर घर में से कुछ इधरउधर हो गया, तो इस का सब से पहला शक बाई पर ही जाता है. इस के अलावा घर के मर्दों की भी कामुक निगाहें उन्हें ताड़ती रहती हैं और अगर बाई कम उम्र की है, तो उस की मुसीबतें और ज्यादा बढ़ जाती हैं.

सीमा 34 साल की है. 4 साल पहले उस का पति एक हादसे में मारा गया था. उस की एक 14 साल की बेटी और 10 साल का बेटा है.

एक घर का जिक्र करते हुए सीमा बताती है, ‘‘जिस घर में मैं काम करती थी, उन की बेटी मुझ से एक साल बड़ी थी. एक दिन आंटी बाहर गई थीं. घर में सिर्फ अंकलजी, उन की बीमार मां और बेटी थी. मैं रसोइघर में जा कर बरतन धोने लगी. अंकलजी ने अपनी बेटी को किसी काम से बाहर भेज दिया.

‘‘मैं बरतन धो रही थी और वे अंकल कब मेरे पीछे आ कर खड़े हो गए, मुझे पता ही नहीं चला. जैसे ही मैं बरतन धो कर मुड़ी, तो उन का मुंह मेरे सिर से टकरा गया. मैं घबरा गई और चिल्लाते हुए घर से बाहर आ गई.

‘‘इस के बाद 2 दिन तक मैं उन के यहां काम करने नहीं गई. तीसरे दिन वे अंकल खुद मेरे घर आए और हाथ जोड़ कर बोले, ‘मुझे माफ कर दो. मुझ से गलती हो गई. मेरे घर में किसी को मत बताना और काम भी मत छोड़ना. आज के बाद मैं कभी तुम्हारे सामने नहीं आऊंगा.’

‘‘आप बताइए, उन की बेटी मुझ से बड़ी है और वे मेरे ऊपर गंदी नजर डाल रहे थे. क्या हमारी कोई इज्जत नहीं है?’’ कहते हुए वह रो पड़ी.

नीता 28 साल की है. पति ने उसे छोड़ दिया है. वह बताती है, ‘‘मैं जिस घर में काम करती थी, वहां मालकिन ज्यादातर अपने कमरे में ही रहती थीं. जब मैं काम करती थी, तो मालिक मेरे पीछेपीछे ही घूमता रहता था. मुझे गंदी निगाहों से घूरता रहता था.

‘‘फिर एक दिन हिम्मत कर के मैं ने उस से कहा, ‘बाबूजी, यह पीछेपीछे घूमने का क्या मतलब है, जो कहना है खुल कर कहो? मैडमजी को भी बुला लो. मैं गांव की रहने वाली हूं. मेरी इज्जत जाएगी तो ठीक है, पर आप की भी बचनी नहीं है.’

‘‘मेरे इतना कहते ही वह सकपका गया और उस दिन से उस ने मेरे सामने आना ही बंद कर दिया.’’

इसी तरह 35 साल की कांता बताती है, ‘‘मैं जिस घर में काम करती थी, उन साहब के घर में पत्नी, 2 बेटे और बहुएं थीं. उन के यहां सीढि़यों पर प्याज के छिलके पड़े रहते थे. हर रोज मैं जब भी झाड़ू लगाती, मालिक रोज सीढि़यों पर बैठ कर प्याज छीलना शुरू कर देता और फिर सीढि़यों से ही मुझे आवाज लगाता, ‘कांता, यहां कचरा रह गया है.’

‘‘जब मैं झाड़ती तो मेरे ऊपर के हिस्से को ऐसे देखता, मानो मुझे खा जाएगा. एक महीने तक देखने के बाद मैं ने उस घर का काम ही छोड़ दिया.’’

30 साल की शबनम बताती है, ‘‘पिछले साल मैं जिस घर में काम करती थी, वहां दोनों पतिपत्नी काम पर जाते थे. उन का एक छोटा बेटा था. मैं पूरे दिन उन के घर पर रह कर बेटे को संभालती थी.

‘‘एक दिन मैडम दफ्तर गई थीं और साहब घर पर थे. मैं काम कर रही थी, तभी साहब आए और बोले, ‘शबनम, 2 कप चाय बना लो.’

‘‘मैं जब चाय बना कर उन के पास ले गई, तो वे सोफे पर बैठने का इशारा कर के बोले, ‘आ जाओ, 2 मिनट बैठ कर चाय पी लो, फिर काम कर लेना.’

‘‘मैं उन के गंदे इरादे को भांप गई और न जाने कहां से मुझ में इतनी ताकत आ गई कि मैं ने उन के गाल पर एक चांटा जड़ दिया और अपने घर आ गई. उस दिन के बाद से मैं उन के घर काम पर नहीं गई.’’

इन उदाहरणों से कामवाली बाइयों के प्रति समाज का नजरिया दिखता है. ऐसे घरों में इन्हें एक औरत के रूप में तो इज्जत मिलती ही नहीं है, साथ ही जिस घर को संवारने में ये अपना पूरा समय देती हैं, वहीं मर्द इन्हें गंदी नजरों से देखते हैं.

क्या करें ऐसे समय में

 ऐसे हालात में आमतौर पर ज्यादातर कामवाली बाई चुप रह जाती हैं या काम छोड़ देती हैं. इस के पीछे उन की सोच यही होती है कि चाहे घर का मर्द कितना ही गलत क्यों न हो, कुसूरवार कामवाली बाई को ही ठहराया जाता है. वे अगर  मुंह खोलेंगी तो और भी लोग उन से काम कराना बंद कर देंगे, इस से उन की रोजीरोटी के लाले पड़ जाएंगे.

कई मामलों में तो कामवाली बाई को पैसे दे कर उस का मुंह भी बंद कर दिया जाता है. पर ऐसा करना मर्दों की गंदी सोच को बढ़ावा देना है, इसलिए अगर ऐसा होता है, तो चुप रहने के बजाय अपनी आवाज उठानी चाहिए.

आजकल तकनीक का जमाना है. अगर मुमकिन हो सके, तो ऐसी छिछोरी बातों को रेकौर्ड करें या वीडियो क्लिप बना लें, ताकि बात खुलने पर सुबूत के तौर पर उसे पेश किया जा सके.

क्या करें पत्नियां

 ऐसे मनचलों की पत्नियां भले ही अपने पति की हरकत को जगजाहिर न करें, पर वे खुद इस से अच्छी तरह परिचित होती हैं.

अच्छी बात यह रहेगी कि बाई के साथ अकेलेपन का माहौल न बनने दें. वे खुद बाई से काम कराएं. अगर पति मनचला है, तो ज्यादा उम्र की बाई को घर पर रखें.

कई बार कामवालियां भी मनचली होती हैं. उन्हें घर की मालकिन के बजाय घर के मालिक से ज्यादा वास्ता रहता है. ऐसे में उन्हें उन की सीमाएं पार न करने की हिदायत दें.

इन्फ्लुएंसर्स करते पौयजनस फूड का प्रचार लोग होते बीमार

कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब वायरल हुआ. वायरल वीडियो में दिखाया गया कि एक बच्चा जिस की उम्र लगभग 11-12 साल है, कुछ खा रहा है और खाते समय उस के मुंह से धुआं निकल रहा है. सामने ही एक स्टौल है जिस पर स्मोक्ड बिस्कुट लिखा हुआ है. बच्चा वहीं से बिस्कुट ले कर खा रहा है. असल में वह स्मोक्ड बिस्कुट खा रहा है.

दरअसल, स्मोक्ड बिस्कुट कोई अलग बिस्कुट नहीं है. नौर्मल बिस्कुट को ही लिक्विड नाइट्रोजन के साथ परोस दिया जाता है और इसे ही स्मोक्ड बिस्कुट कहा जाता है. असल में बच्चा वही स्मोक्ड बिस्कुट खा रहा है और बिस्कुट खाते ही बच्चे की तबीयत अचानक खराब हो जाती है. आननफानन बच्चे को हौस्पिटल ले जाया जाता है. जहां इलाज के बाद उसे घर भेज दिया जाता है. यह वीडियो कर्नाटक के दावणगेरे से आया है.

गुरुग्राम मामले में क्या हुआ

लेकिन यह कोई पहला केस नहीं है जहां कैमिकल का इस्तेमाल ठेलों, दुकानों, रैस्टोरैंटों में मिलने वाले फूड में किया जा रहा हो. इस से पहले भी खाने में कस्टमर को कैमिकल यूज्ड फूड दिया गया. अभी कुछ महीने पहले ही गुरुग्राम में एक केस आया था. जहां एक रैस्टोरैंट में डिनर करने गई फैमिली को माउथफ्रैशनर के नाम पर ड्राई आइस सर्व कर दी गई. ड्राई आइस खाते ही फैमिली के 5 लोग नेहा सबरवाल, मनिका गोयनका, प्रितिका रुस्तगी, दीपक अरोड़ा और हिमानी के मुंह से खून आने लगा. उन्हें उलटियां होने लगीं. वे दर्द से तड़पने लगे. जल्दबाजी में उन्हें हौस्पिटल ले जाया गया. जहां इलाज के बाद उन्हें घर भेज दिया गया.

जब डाक्टर से ड्राई आइस के बारे में बात की गई तो डाक्टर ने आशुतोष शुक्ला को बताया, ‘जब इन 5 लोगों ने ड्राई आइस के टुकड़े खाए तो ठंड के कारण उन के मुंह में अल्सर हो गया और उस से खून आना शुरू हो गया. इसी वजह से उन की हालत खराब हुई.’

इन दोनों घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि स्वाद के चक्कर में सेहत के साथ खिलवाड़ करना कितना महंगा साबित हो सकता है.

क्या है ड्राई आइस

बात करें अगर ड्राई आइस की तो ड्राई आइस जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि इसे सूखी बर्फ कहते हैं. जिस का टैंपरेचर 80 डिग्री तक होता है. यह सौलिड कार्बन डाइऔक्साइड से बना होता है. इसे आप आसान भाषा में ऐसे समझ सकते हैं कि नौर्मल बर्फ को जब आप मुंह में रखते हैं तो वह पिघलने लगती है. जब नौर्मल बर्फ पिघलती है तो पानी में बदलने लगती है. वहीं ड्राई आइस पिघलती है तो वह सीधी कार्बन डाइऔक्साइड गैस में बदल जाती है. यह अकसर मैडिकल स्टोर, किराने के सामान को स्टोर करने के लिए किया जाता है. इस का इस्तेमाल फोटोशूट और थिएटर के दौरान भी किया जाता है.

ड्राई आइस इतनी खतरनाक है कि पेट में जाते ही वहां छेद बना देती है, जो काफी जानलेवा साबित हो सकता है. जब यह कार्बन डाइऔक्साइड गैस में बदल जाती है तो मुंह के आसपास के टिश्यूज और सेल्स को नुकसान पहुंचाती है.

लिक्विड नाइट्रोजन कितना खतरनाक

लिक्विड नाइट्रोजन कितना खतरनाक है, इस का अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है.  2017 में दिल्ली में एक व्यक्ति ने गलती से ऐसी ड्रिंक पी ली थी जिस में लिक्विड नाइट्रोजन था. व्यक्ति को ड्रिंक से निकल रहे धुएं को हटाने के बाद उसे पीना था लेकिन उस ने धुएं हटने का इंतजार नहीं किया और उसे ऐसे ही पी लिया. इस के बाद उस व्यक्ति के पेट में दर्द हुआ और बाद में सर्जरी में पता चला कि उस के पेट में एक बड़ा छेद हो चुका है.

लिक्विड नाइट्रोजन और ड्राई आइस दोनों पदार्थों के नाम से ही सम?ा आता है कि लिक्विड नाइट्रोजन तरल होता है और ड्राई आइस ठोस. ड्राई आइस का तापमान -78.5 डिग्री सैल्सियस तक होता है. वहीं लिक्विड नाइट्रोजन इस से भी ज्यादा ठंडी होती है और इस का तापमान -196 डिग्री सैल्सियस तक हो सकता है. दोनों पदार्थों का इस्तेमाल खानेपीने की चीजों में स्मोक इफैक्ट देने के काम में किया जाता है.

कितने खतनाक हैं ये

2018 में अमेरिकी सरकार के फूड एंड ड्रग विभाग ने खानपान में लिक्विड नाइट्रोजन और ड्राई आइस के इस्तेमाल को ले कर एक रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक, अगर ड्राई आइस या लिक्विड नाइट्रोजन का इस्तेमाल सावधानी से न किया जाए तो अत्यधिक कम तापमान की वजह से यह घातक हो सकता है. इन्हें सीधेतौर पर खाना नहीं चाहिए. इस से स्किन और हमारे इंटरनल और्गन को नुकसान पहुंच सकता है.

लेकिन फिर भी दिनबदिन रासायनिक पदार्थों का खानपान में इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है और इन को बढ़ावा देने वाला और कोई नहीं, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों का ग्रुप है, जो खुद को फूड व्लौगर कहते हैं. ज्यादा व्यूज बटोरने के लिए ये दुकानदारों को उकसाते भी हैं कि अलग और बेढंगी चीजें बनाएं, उस के लिए ऊटपटांग फ्यूजन किए जाते हैं. दुकानदार भी ज्यादा वायरल होने के चक्कर में कुछ भी चीजें खाने में इस्तेमाल करते हैं, ताकि लोगों का ध्यान अनोखेपन पर जाए.

एक्सपैरिमैंटल फूड

सोशल मीडिया पर ये इन्फ्लुएंसर्स आएदिन ऐसे फूड स्टौल और रैस्टोरैंट को कवर करते हैं जो फ्यूजन के नाम पर कुछ भी बना रहे हैं, जैसे फेंटा मैगी, दही मैगी, चौकलेट पकोड़ा, पेस्टी मैगी, कौफी आइसक्रीम, गुलाबजामुन के पकौड़े, चुकंदर से बनी चाय, चौकलेट मोमोस, चौकलेट डोसा और न जाने क्याक्या. ये शरीर में जा कर कैसा प्रभाव छोड़ रहे हैं, इस पर कोई बात नहीं करता. इन क्या दिक्कतें हो रही हैं. इस पर कोई बात नहीं करता.

बहुत जगह दुकानदार वायरल होने के चक्कर में भरभर कर बटर, तेल, घी डाल कर दिखाता है. कोई आम इंसान जो नौर्मल या कहें घर का सिंपल खाना खाने वाला हो, इसे खा ले तो उस का सिर चकरा जाए, पैसे अलग उस के कुएं में जाएं.

मूक क्यों खाद्य विभाग

क्या फूड सेफ्टी एंड स्टेटैंडर्ड अथौरिटी औफ इंडिया (एफएसएसएआई) को इस ओर ध्यान नहीं देना चाहिए? क्यों यह विभाग इस पर चुप है? जिस तरह सोशल मीडिया पर खाने से संबंधित ऊटपटांग चीजें वायरल होती रहती हैं, घटिया चीजें परोसी जाती हैं, क्या यह फूड सिक्योरिटी औफिसर की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह ध्यान दे कि मैगी के साथ कोल्डड्रिंक का छौंका हैल्थ के लिए नुकसानदेह तो नहीं?

दरअसल, ये फूड औफिसर भी चीजों को चलता करने के मूड में रहते हैं या दुकानदारों से लेदे कर मामला रफादफा करते हैं. उन्हें नागरिकों की हैल्थ की परवा नहीं होती. सड़क के किनारे एक व्यक्ति ठेला खोल कर गरीबों को सस्ते में स्वाद वाला खाना तो दे रहा है पर साथ में बीमारियां भी दे रहा है. आम लोग कुछ कहते नहीं क्योंकि हर नुक्कड़, चौराहे पर यही कचरा परोसा जा रहा है.

फूड व्लौगर का साथ

फूड एक्सपैरिमैंट करने वाले दुकानदारों को फूड इन्फ्लुएंसर्स ने आसमान पर बैठा लिया है. जहां कहीं भी देखो, ये व्लौगर अपना कैमरा उठा कर चालू हो जाते हैं. न तो इन्होंने खाने की क्वालिटी चैक करने का कोर्स कर रखा है, न ही ये फूड की वैराइटीज के बारे में ज्यादा जानकारी रखते हैं. अब इन को क्या पता कि स्मोक्ड बिस्कुट किस एज ग्रुप के लिए है. इन्हें क्या पता कि स्मोक्ड बिस्कुट को कितनी देर बाद खाना चाहिए? इन्हें क्या पता कि इसे खाने के बाद ठंडा पानी पीना चाहिए या नहीं?

सच बात तो यह है कि इन्फ्लुएंसर को एक्सपैरिमैंटल फूड की सिर्फ वीडियो नहीं बनानी चाहिए बल्कि उस के फायदे और नुकसान भी बताने चाहिए. तभी वह एक अच्छा जानकारी देने वाला मार्गदर्शक कहलाएगा.

अपने ही “मासूम” की बलि….

अगर आज ऐसा होता है तो इसका मतलब यह है कि आज भी हम सैकड़ो साल पीछे की जिंदगी जी रहे हैं. जहां अपने अंधविश्वास में आकर बलि चढ़ा दी जाती थी, अपने बच्चों को या किसी मासूम को. बलि चढ़ाना तो अंधविश्वास की पराकाष्ठा ही है.

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में शख्स ने अपने चार वर्षीय बेटे की बेरहमी से गला रेंतकर हत्या कर दी. घटना की वजह अंधविश्वास बताया गया है. शख्स की मानसिक स्थिति कुछ दिनों से ठीक नहीं थी. एक रात उसने परिवारजनों से कहा – “सुनो सुनो! मै किसी की बलि दे दूंगा.”

उसकी बात पर किसी ने तवज्जो नहीं दिया लगा कि यह मानसिक सन्निपात में कुछ का कुछ बोल रहा है.
एक रात उसने चाकू से एक मुर्गे को काटा फिर अपने मासूम बेटे का गला काट दिया. यह उद्वेलित करने वाला मामला शंकरगढ़ थानाक्षेत्र का है. हमारे संवाददाता को पुलिस ने बताया -शंकरगढ़ थानाक्षेत्र अंतर्गत ग्राम महुआडीह निवासी कमलेश नगेशिया (26 वर्ष) दो दिनों से पागलों की तरह हरकत कर रहा था. उसने परिवारजनों के बीच कहा – उसके कानों में अजीब सी आवाज सुनाई दे रही है, उसे किसी की बलि चढ़ाने के लिए कोई बोल रहा है.

एक दिन वह कमलेश चाकू लेकर घूम रहा था एवं उसने परिवारजनों से कहा कि आज वह किसी की बलि लेगा. उसकी मानसिक स्थिति को देखते हुए परिवारजनों ने उसे नजरअंदाज कर दिया था . मगर रात को खाना खाने के बाद कमलेश नगेशिया की पत्नी अपने दोनों बच्चों को लेकर कमरे में सोने चली गई. कमलेश के भाईयों के परिवार बगल के घर में रहते हैं, वे भी रात को सोने चले गए.

देर रात कमलेश ने घर के आंगन में एक मुर्गे का गला काट दिया. फिर कमरे में जाकर वह अपने बड़े बेटे अविनाश (4) को उठाकर आंगन में ले आया. उसने बेरहमी से अपने बेटे अविनाश का चाकू से गला काट दिया. अविनाश की मौके पर ही मौत हो गई. सुबह करीब चार बजे जब कमलेश की पत्नी की नींद खुली तो अविनाश बगल में नहीं मिला. उसने कमलेश से बेटे अविनाश के बारे में पूछा तो उसने पत्नी को बताया कि उसने अविनाश की बलि चढ़ा दी है.

घटना की जानकारी मिलने पर घर में कोहराम मच गया. सूचना पर शंकरगढ़ थाना प्रभारी जितेंद्र सोनी के नेतृत्व में पुलिस टीम मौके पर पहुंची. पुलिस ने आरोपी को हिरासत में ले लिया . बच्चे के शव को पंचनामा पश्चात् पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया . थाना प्रभारी जितेंद्र सोनी ने बताया – परिजनों से पूछताछ कर उनका बयान दर्ज किया गया है. आरोपी दो दिनों से ही अजीब हरकत कर रहा था. पहले वह ठीक था. एक शाम परिवारजनों के सामने उसने किसी की बलि चढ़ाने की बात कही थी, लेकिन परिवारजनों ने उसे गंभीरता से नहीं लिया. मामले में पुलिस ने धारा 302, 201 का अपराध दर्ज किया है. मामले की जांच की जा रही है.

इस घटनाक्रम में परिजनों ने समझदारी से काम लिया होता और इसकी शिकायत पहले ही पुलिस में की होती या फिर उस व्यक्ति को मानसिक चिकित्सालय भेज दिया गया होता तो मासूम बच्चे की जिंदगी बच सकती थी. मासूम की बाली के इस मामले में सबसे अधिक दोषी मां का वह चेहरा भी है जो दोनों बच्चों को लेकर कमरे में सो रही होती है और पति एक बच्चे को उठाकर ले जाता है.

एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक गांव देहात में इस तरह की घटनाएं घटित हो जाती है, इसका दोषी जहां परिवार होता है वही आसपास के रहवासी भी दोषी हैं मगर पुलिस सिर्फ एक हत्यारे पर कार्रवाई करके मामले को बंद कर देती है.

कुल मिलाकर के ऐसे घटनाक्रम सिर्फ एक खबर के रूप में समाज के सामने आते है और फिर समाज सुधारक भूल जाते है कुल मिला करके आगे पाठ पीछे सपाट की स्थिति .यह एक बड़ी ही सोचनीय स्थिति है. इस दिशा में अब सरकार के पीछे-पीछे दौड़ने या यह सोचने से की सरकार कुछ करेगी यह अपेक्षा छोड़ कर हमें स्वयं आगे आना होगा ताकि फिर आगे कोई ऐसी घटना घटित ना हो.

फूटती जवानी के डर और खुदकुशी की कसमसाहट

इसे जागरूकता की कमी कहें या फिर अनपढ़ता, लड़के हों या लड़कियां, एक उम्र आने पर उन के शरीर में कुछ बदलाव होते हैं और अगर ऐसे समय में सम?ादारी और सब्र का परिचय नहीं दिया जाए, तो जिंदगी में कुछ अनहोनी भी हो सकती है. ऐसे ही एक वाकिए में एक लड़की जब अपनी माहवारी के दर्द को सहन नहीं कर पाई और न ही अपनी मां को कुछ बता पाई, तो उस ने खुदकुशी का रास्ता चुन कर लिया.

यह घटना बताती है कि जवानी के आगाज का समय कितना ध्यान बरतने वाला होता है. ऐसे समय में कोई भी नौजवान भटक सकता है और मौत को गले लगा सकता है या फिर कोई ऐसी अनहोनी भी कर सकता है, जिस का खमियाजा उसे जिंदगीभर भुगतना पड़ सकता है. सबसे बड़ी बात यह है कि उस के बाद परिवार वाले अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाएंगे.

आज हम इस रिपोर्ट में ऐसे ही कुछ मामलों के साथ आप को और समाज को अलर्ट मोड पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. एक बानगी :

* 14 साल की उम्र आतेआते जब सुधीर की मूंछें निकलने लगीं, तो वह चिंतित हो गया. उसे यह अच्छा नहीं लग रहा था कि उस के चेहरे पर ठीक नाक के नीचे मूंछें उगें और वह परेशान हो गया.

* 12 साल की उम्र में जब सोनाली को पहली दफा माहवारी हुई, तो वह घबरा गई. वह बड़ी परेशान हो रही थी. ऐसे में एक सहेली ने जब उसे इस के बारे में अच्छी तरह से बताया, तो उस के बाद ही वह सामान्य हो पाई.

* राजेश की जिंदगी में जैसे ही जवानी ने दस्तक दी, तो उसे ऐसेवैसे सपने आने लगे. वह सोच में पड़ गया कि यह क्या हो रहा है. बाद में एक वीडियो देख कर उसे सबकुछ सम?ा में आता चला गया.

* दरअसल, जिंदगी का यही सच है और सभी के साथ ऐसा समय या पल आते ही हैं. ऐसे में अगर कोई सब्र और सम?ादारी से काम न ले, तो वह मुसीबत में भी पड़ सकता है. लिहाजा, ऐसे

समय में आप को कतई शर्म नहीं करनी चाहिए और घबराना नहीं चाहिए, बल्कि इस दिशा में जागरूक होने की कोशिश करनी चाहिए.

आज सोशल मीडिया का जमाना है. आप दुनिया की हर एक बात को सम?ा सकते हैं और अपनी जिंदगी को सुंदर और सुखद बना सकते हैं. बस, आप को कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए, जो आप को नुकसान पहुंचा सकता हो.

डरी हुई लड़की की कहानी दरअसल, मुंबई से एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है. वहां के मालवणी इलाके में रहने वाली

14 साल की लड़की रजनी (बदला हुआ नाम) ने अपनी पहली माहवारी के दौरान दर्दनाक अनुभव के बाद कथिततौर पर खुदकुशी कर ली थी. जब तक परिवार वालों ने यह देखा और सम?ा, तब तक बड़ी देर हो चुकी थी. उस की लाश घर में लटकी हुई मिली थी.

यह हैरानपरेशान करने वाला मामला मलाड (पश्चिम) के मालवणी इलाके में हुआ था, जहां रहने वाली 14 साल की एक लड़की रजनी की लाश रात में अपने घर के अंदर लोहे के एक एंगल से लटकी हुई पाई गई थी.

पुलिस के मुताबिक, वह नाबालिग लड़की अपने परिवार के साथ गावदेवी मंदिर के पास लक्ष्मी चाल में रहती थी. कथिततौर पर वह किशोरी माहवारी के बारे में गलत जानकारी होने के चलते तनाव में रहती थी. ऐसा लगता है कि उसे सही समय पर सटीक जानकारी नहीं मिल पाई होगी, तभी तो माना जा रहा है कि उस ने यह कठोर कदम उठा लिया होगा.

पुलिस के मुताबिक, देर शाम को जब घर में कोई नहीं था, तो उस लड़की ने खुदकुशी कर ली. जब परिवार वालों और पड़ोसियों को इस कांड के बारे में पता चला, तो वे उसे कांदिवली के सरकारी अस्पताल में ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे मरा हुआ बता दिया.

मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अफसर ने कहा, ‘‘शुरुआती पूछताछ के दौरान लड़की के रिश्तेदारों ने बताया कि लड़की को हाल ही में पहली बार माहवारी आने के बाद दर्दनाक अनुभव हुआ था. इसे ले कर वह काफी परेशान थी और मानसिक तनाव में थी, इसलिए हो सकता है कि उस ने इस वजह से अपनी जान दे दी हो.’’

कुलमिला कर कह सकते हैं कि अगर उस लड़की को सही समय पर सही सलाह मिल जाती तो पक्का है कि वह खुदकुशी करने जैसा कड़ा कदम कभी नहीं उठाती. मांबाप को भी चाहिए कि ऐसे समय में वे बच्चों को सही सलाह दें या फिर उन्हें किसी माहिर डाक्टर के पास ले जाएं.

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