इस स्कूल में लगती है ‘डीएम अंकल’ की पाठशाला

पटना के बांकीपुर स्कूल की लड़कियां सुबह से जोश में थीं और बारबार उन की निगाहें दरवाजे की ओर उठ जाती थीं. दोपहर के सवा एक बजे एक शख्स क्लासरूम में दाखिल हुए, जो किसी भी तरह से स्कूल के मास्टर नहीं लग रहे थे. दरअसल, वे शख्स थे पटना के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट संजय कुमार अग्रवाल. उन्होंने एक छात्रा खुशबू कुमारी की कौपी उठा कर पढ़ाईलिखाई के बारे में पूछा, तो उस ने कहा कि स्कूल में पढ़ाई नहीं होती है. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट संजय कुमार अग्रवाल ने जब इस बारे में स्कूल प्रशासन से पूछा, तो पता चला कि वहां पर भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, भूगोल, हिंदी, उर्दू, टाइपिंग और संगीत के टीचर ही नहीं हैं. जब उन्होंने छात्राओं से पूछा कि वे कोचिंग क्यों जाती हैं, तो मासूम बच्चियों ने यह कह कर एक झटके में ऐजूकेशन सिस्टम की कलई खोल दी कि स्कूल में तो पढ़ाई होती ही नहीं है. सभी छात्राओं का यही दर्द था कि अगर वे कोचिंग नहीं करेंगी, तो कोर्स पूरा नहीं होगा.

बिहार की शिक्षा व्यवस्था से रूबरू होने के लिए पटना के कलक्टर संजय कुमार अग्रवाल 27 जनवरी, 2017 को एक सरकारी स्कूल में छात्राओं को पढ़ाने पहुंचे. उन्होंने पटना के तमाम सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए अफसरों की एक टीम बनाई है.

शिक्षा विभाग के सूत्र बताते हैं कि अफसर अपना काम तो ठीक से करते नहीं हैं, ऐक्स्ट्रा काम वे क्या खाक करेंगे. मास्टरों का काम अफसरों से करा कर एजूकेशन सिस्टम को ठीक करने की बात सोचना खुली आंखों से सपना देखने की ही तरह है. सरकारी स्कूलों की बदहाली के लिए अफसरशाही ही जिम्मेदार है.

कुछ भी हो, सरकारी स्कूलों को दुरुस्त करने के लिए पटना के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट संजय कुमार अग्रवाल ने अनोखी पहल की है. उन्होंने 2 सौ अफसरों की एक टीम तैयार की है, जो हर हफ्ते स्कूलों में जा कर एक घंटे तक बच्चों के बीच गुजारेंगे और स्कूल की कमियों को दूर करने की कोशिश करेंगे. हर दिन अफसरों को सामान्य काम में रुकावट नहीं आए, इस के लिए रोस्टर तैयार किया गया है.

डीएम, एसडीएम, एडीएम, डीएसपी, बीडीओ, सीओ, थानेदार, सीडीपीओ और शिक्षा विभाग के तमाम बड़े अफसरों को सरकारी स्कूलों में हो रही पढ़ाई की क्वालिटी को सुधारने की मुहिम में लगाया गया है.

डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट संजय कुमार अग्रवाल ने बताया कि आमतौर पर जब कोई अफसर किसी स्कूल का दौरा करता है, तो उस के पहुंचने से पहले ही स्कूल प्रशासन वहां की तमाम व्यवस्था आननफानन दुरुस्त कर लेता है. अफसर के लौटने के बाद स्कूल की हालत फिर से बदतर हो जाती है. अब अफसर जब रोज स्कूल जाएंगे, तो वहां की हालत हमेशा दुरुस्त रहेगी. अफसर भी स्कूल की कमियों को दूर करने का काम करेंगे.

अफसर जिस किसी स्कूल में जाएंगे, वहां केवल बच्चों को किताबी या नैतिक बातें ही नहीं पढ़ाएंगे, बल्कि वहां की कमियों को भी देखेंगे और उन्हें दूर करने के उपाय करेंगे. हर अफसर स्कूल

के रजिस्टर पर अपनी हाजिरी भी लगाएगा. अफसरों के इस काम की मौनीटरिंग भी होगी.

डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट संजय कुमार अग्रवाल की पहल तो अच्छी है, पर वे अब अफसरों की मौनीटरिंग के ठोस इंतजाम करने की बात कर रहे हैं, तो मास्टरों की मौनीटरिंग के ठोस इंतजाम क्यों नहीं किए जा रहे हैं?

महिला इंजीनियर की मौत, गुत्थी में उलझी पुलिस

बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के थाना अहियापुर की कोल्हुआ बजरंग विहार कालोनी के एक  निर्माणाधीन मकान में 23 अक्तूबर, 2016 की रात मुरौल प्रखंड में तैनात मनरेगा की जूनियर इंजीनियर सरिता देवी को कुरसी से बांध कर आग के हवाले कर दिया गया था. 24 अक्तूबर, 2016 की सुबह मकान मालिक और मोहल्ले वालों की सूचना पर पुलिस वहां पहुंची तो उसे एक जोड़ी लेडीज चप्पलें, अधजले कपड़े, पर्स, रूमाल, 4 गिलास, मिट्टी के तेल का डिब्बा और हड्डियों के अवशेष मिले. सरिता की मां कुसुम ने अधजली चप्पलें देख कर उस की पहचान की थी. सरिता सीतामढ़ी के सोनबरसा की रहने वाली थी. उस का विवाह नेपाल बौर्डर पर स्थित गांव कन्हौली फूलकाहां के रहने वाले विजय कुमार नायक से हुआ था, जिस से 2 बेटे हैं. पति से संबंध अच्छे  न होने की वजह से सरिता अलग रहती थी. पति गांव में रह कर खेती करता था और सरिता नौकरी कर रही थी. पति को उस का नौकरी करना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वह उसे नौकरी छोड़ कर गांव में रहने के लिए कहता, लेकिन सरिता को नौकरी छोड़ कर गांव में रहना ठीक नहीं लगता था. वह बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए नौकरी करना चाहती थी. उस का बड़ा बेटा ध्रुव दरभंगा में पौलिटैक्निक कर रहा है तो छोटा बेटा आर्यन उस के साथ रह कर पढ़ रहा था. सरिता पिछले 3 सालों से मुरौल प्रखंड में जूनियर इंजीनियर थी. बजरंग विहार कालोनी में वह विजय गुप्ता के मकान में किराए पर रहती थी. विजय मनरेगा की योजनाओं का एस्टीमेट बनाता था.

उसी मोहल्ले में विजय एक और मकान बनवा रहा था. उसी मकान में एक कमरा किराए पर ले रखा था, जिस में सरिता ने अपना औफिस बना रखा था. वह देर रात तक वहां बैठ कर औफिस के काम निपटाती थी. 24 अक्तूबर, 2016 की सुबह जब लोग उठे तो उन्हें विजय गुप्ता के निर्माणाधीन मकान से धुआं निकलता दिखाई दिया. उन्हें लगा कि शौर्ट सर्किट से मकान में आग लग गई है. उन्होंने शोर मचाया तो तमाम लोग इकटठे हो गए. विजय वहां मौजूद था. वह किसी को अंदर नहीं जाने दे रहा था. उस का कहना था कि किसी ने उस के घर में आग लगा दी है. विजय की इस हरकत से लोगों को दाल में कुछ काला नजर आया तो कुछ लोग उसे किनारे कर के जबरदस्ती मकान में घुस गए. कमरे के अंदर की हालत देख कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. कमरे में राख और हड्डियों के टुकड़े पड़े थे. जली हुई लकडि़यों से अभी भी धुआं निकल रहा था. पूरे मकान में मांस जलने की बदबू फैली हुई थी.

पड़ोसियों ने जब विजय से कहा कि लगता है यहां किसी आदमी को जलाया गया है? उस ने इस की खबर पुलिस को दी या नहीं तो उस ने सफाई देते हुए कहा कि उसे कुछ नहीं पता. सुबह जब वह यहां आया तो उस ने देखा कि उस के घर से धुआं उठ रहा है. लेकिन अभी उस ने कुछ किया नहीं है. वहां जमा लोग विजय से ही तरहतरह के सवाल करने लगे. जबकि उस का कहना था कि यह सब कैसे हुआ? उसे कुछ पता नहीं है. वह खुद ही घर में आग लगने से परेशान है. विजय ने तो पुलिस को इस घटना की जानकारी दी ही, मोहल्ले के भी कुछ अन्य लोगों ने भी पुलिस को फोन कर कर के विजय के घर में घटी घटना की सूचना दी. कुछ ही देर में पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई और विजय तथा मोहल्ले वालों से पूछताछ करने लगी. घटनास्थल के निरीक्षण के बाद पुलिस को लगा कि किसी को कुरसी से बांध कर जिंदा जलाया गया है. उस के बाद हड्डियों पर कैमिकल डाल कर गलाने की कोशिश की गई है, ताकि हत्या का कोई सबूत ही न रह जाए.

पुलिस ने जब सरिता के बारे में पूछताछ की तो मोहल्ले वालों से पता चला कि वह 23 अक्तूबर की शाम को वह अपने घर के पास नजर आई थी. उस के बाद वह दिखाई नहीं दी. मनरेगा से जुड़े लोगों से पूछताछ की गई तो वे उस के बारे में कुछ नहीं बता सके. इस से पुलिस को लगा कि सरिता को ही जला कर मारा गया है. पुलिस को केवल पैरों की हड्डियां मिली थीं, बाकी हड्डियों को कैमिकल से गला दिया गया था. अधजली चप्पलों से लाश की पहचान की गई थी. बेटी की इस हालत को देख कर वह दहाड़े मार कर रो रही थी. उन का कहना था कि उस की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी, वह दिनरात मन लगा कर काम करती थी, फिर उसे किस ने इस तरह बेरहमी से मार दिया.

कुसुम के बताए अनुसार सरिता की पति से नहीं पटती थी, इसलिए वह उस से अलग रहती थी. उस का पति कोई काम नहीं करता था. इस बात को ले कर दोनों में अकसर विवाद होता रहता था. पति के विवाद को भुला कर वह अपने बच्चों की बेहतर परवरिश और बेहतर कैरियर बनाने में लगी थी. वह अपने बच्चों को भी अपनी तरह इंजीनियर बनाने का सपना देख रही थी. उन्होंने बेटी की हत्या की आशंका तो जताई है, पर किसी पर शक नहीं जताया है. पुलिस ने सरिता के मकानमालिक विजय गुप्ता से पूछताछ की तो उस ने बताया कि सरिता से उस की पुरानी जानपहचान थी. वह उस के लिए मनरेगा की योजनाओं का स्टीमेट तैयार करता था. उसी के नए बन रहे मकान में वह विभागीय फाइलों का निपटारा करती थी. उस के पास मकान की एक चाबी भी रहती थी. वह उस के साथ मुरौल प्रखंड के अपने औफिस भी जाती थी. शुरुआती जांच में पुलिस को लगा कि सरिता की हत्या कहीं और कर के लाश को औफिस में ला कर जलाया गया था. जिस से हत्या का कोई सबूत न मिले. लेकिन जब सरिता के बेटे ध्रुव से पूछताछ की गई तो उस ने कुछ और ही बातें बताई थीं. हत्या की सूचना मिलने के बाद भी उस का पति सीतामढ़ी से अहियापुर नहीं आया था.

एक सवाल यह भी है कि हत्या करते समय या जब उसे कुरसी से बांध कर जिंदा जलाया जाने लगा था तो क्या वह चीखीचिल्लाई नहीं थी? अगर वह चीखीचिल्लाई तो आसपास के लोगों को उस की चीख सुनाई क्यों नहीं दी? कहीं ऐसा तो नहीं कि आसपड़ोस के लोग पुलिस के झमेले से बचने के लिए मुंह बंद किए बैठे हों? लाश को पूरी तरह से जलने में 3 से 4 घंटे लगते हैं. इस के अलावा मांस जलने की बदबू भी आती है. डीएसपी आशीप आनंद के अनुसार, मामले की जांच की जा रही है. पुलिस सरिता और उस के पति के बीच के विवाद, विजय गुप्ता के साथ उस के रिश्तों और मनरेगा के किसी ठेकेदार से विवाद की जांच कर रही है. मनरेगा के कामों को ले कर इंजीनियर, मुखिया और ठेकेदारों के बीच अकसर विवाद होते रहते हैं. विजय गुप्ता ने पुलिस को बताया था कि रोज की तरह वह सुबह मकान पर पहुंचा तो मकान के मेन गेट का ताला टूटा हुआ था. धक्का देते ही वह खुल गया तो अंदर से मांस के जलने की बदबू आई और धुआं उठता दिखाई दिया. इस के बाद उस ने तुरंत पुलिस को सूचना दे दी थी.

सरिता को जिंदा जलाने के मामले की जांच कर रही पुलिस का सिर तब चकरा गया, जब उसे सरिता के सुसाइड करने के संकेत मिले. सरिता की हत्या की गुत्थी सुलझाने में पुलिस के पसीने छूट रहे हैं. पुलिस और फोरैंसिक साइंस लैबोरेटरी की टीम कई बार राख में सुराग ढूंढ चुकी है, पर कुछ हाथ नहीं लगा है. घटनास्थल पर पुलिस को 4 गिलास मिले थे, जिस से अंदाजा लगाया गया था कि कत्ल वाली रात कुछ लोग सरिता से मिलने आए थे. अगले दिन कमरे की तलाशी में पुलिस को एक लिफाफा मिला था, जिसे लोगों ने सरिता का सुसाइड नोट समझा. लेकिन लिफाफे में क्या था, पुलिस यह बताने से बच रही है.

गोपनीय सूत्रों से पता चला है कि उस में सुसाइड नोट ही था, जिस में उस ने बेटे को इंजीनियर बनाने का जिक्र किया है. उस में किसी मुखिया का भी जिक्र है. विजय के बारे में लिखा है कि वह इंसान नहीं, भेडि़या है. उस ने मुखिया पर जिंदगी तबाह करने का आरोप लगाया है. इस के बाद से पुलिस के शक की सुई मुखिया की ओर घूम गई है, पर उस में किसी का नाम और पता नहीं लिखा है, इसलिए पुलिस अभी तक उस तक पहुंच नहीं पाई है. लेकिन पता लगा रही है कि कहीं मुखिया ने सरिता की हत्या कर उसे इस तरह जला कर खुदकुशी का रूप देने की कोशिश तो नहीं की. पुलिस सुसाइड नोट की हैंडराइटिंग और सरिता की हैंडराइटिंग का मिलान करा रही है. पुलिस सुसाइड नोट में उलझी थी कि अगले दिन यानी 25 अक्तूबर, 2016 को सरिता के एक पड़ोसी ने पुलिस को एक लिफाफा दिया, जिसे पुलिस ने खोला तो उस में 3 पन्ने मिले. उन में लाखों रुपए के लेनदेन की बातें लिखी थीं. उस के कई लोगों के पास लाखों रुपए बकाया थे. लेकिन किसी का नाम नहीं लिखा था. नाम की जगह कोड वर्ड का इस्तेमाल किया गया था.

पुलिस नाम पता करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि यह भी हो सकता है कि रुपयों के विवाद में उस की हत्या की गई हो? मनरेगा की योजनाओं में फैले भ्रष्टाचार की वजह से इस में शामिल अफसरों, ठेकेदारों और मुखियाओं के बीच अकसर विवाद होता रहता है. सरिता की मौत से कुछ दिनों पहले ही जिला गोपालगंज के कलेक्ट्रेट में एसडीओ आशुतोष ठाकुर और विजयपुरी प्रखंड के जेई विवेक मिश्र के बीच जम कर मारपीट हुई थी. कलेक्ट्रेट के कौशल विकास केंद्र भवन में तकनीकी पदाधिकारियों की बैठक चल रही थी. उसी दौरान दोनों में पहले तूतू मैंमैं हुई, उस के बाद मारपीट होने लगी.

हंगामा होने के बाद सारे इंजीनियर बाहर आ गए और एसडीओ पर गलत व्यवहार का आरोप लगाने लगे. एसडीओ ने जेई से कहा था कि वह सभी योजनाओं के बिल सुपर चेक नहीं कराता है. इस पर जेई ने कहा था कि 5 लाख रुपए तक के बिल को सुपर चेक करने का अधिकार उस का है. यह सुन कर एसडीओ आगबबूला हो गए और गालीगलौज करने लगे थे. गाली देने पर जेई को भी गुस्सा आ गया था और वह मारपीट करने लगा था. मारपीट का यह मामला भी थाना और अदालत तक पहुंच चुका है. जूनियर इंजीनियर सरिता की हत्या हुई या उस ने खुदकुशी की? इस बात का खुलासा करने में पुलिस को अभी तक कामयाबी नहीं मिल सकी है. उस की मां ने न किसी पर हत्या का आरोप लगाया है और न ही किसी से विवाद की पुष्टि की है. इस की वजह से पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लग रहा है. सरिता के जले जिस्म की राख की तरह इस केस से उठता धुआं अब धीरेधीरे ठंडा पड़ने लगा है.

सोशल मीडिया बना गु्स्सा निकालने का साधन

आजकल इंटरनैट का साधन आम आदमियों का अपना गुस्सा निकालने का सहज साधन बन गया है. दिल्ली, मुंबई एयरपोर्टों पर अब बहुत अधिक भीड़ होने लगी है और लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह वायदा खूब याद आ रहा है कि वे देश के रेलवे स्टेशनों के एयरपार्टों जैसा थानेदार क्या देंगे. लीग वह रहे हैं कि एयरपोर्टों और स्टेशनों में बराबर की भीड़, पीक ने निर्माण, बाहर गाडिय़ों की अफरातफरी, धक्कामुक्की बराबर है. स्टेशन तो एयरपोर्ट नहीं बन सके पर एयरपोर्ट भारतीय स्टेशन जरूर बन गए है.

नरेंद्र मोदी सरकार को बधाई.

आम हवाई चप्पल पहनने वाला हवार्ई यात्रा तो आज भी नहीं कर रहा पर हवाई चप्पल ही ऐसी मंहगी और फैशेनबेल हो गई है कि गोवा, चैन्नै, बंगलौर में कितने ही रबड़ की ब्राडेंट चप्पलें पहने भी दिख जाएंगे. वह वादा भी भी उन्होंने पूरा कर दिया.

सोयासिटों के लिए सुविधा के नाम पर कुछ स्टेशन ठीकठाक हुए है, वंदे मातरम नाम की कुछ ट्रेनें चली हैं पर आज अब किराए इतने बढ़ा दिए गए हैं कि एक  बार ट्रेन में जा कर 4 दिन खराब करना और 4 दिन की मजूरी खराब करना से हवाई यात्रा करना ज्यादा सस्ता है. रेलों के बढ़ते दाम, हवाई यात्रा के घटते दामों ने यह वादा भी पूरा कर लिया.

वैसे भी देश की जनता हमेशा वादों को सच होता ऐसे ही मानती रही जैसी वे मूॢत के आगे मन्नत को पूरी आगे मानते रहे हैं, 4 में से 1 काम तो हरेक का अपनी मर्जी का अपनेआप हो ही जाता है बीमार ठीक हो जाते हैं, देरसबेर छोटीमोटी नौकरी लग ही जाती है, लडक़ी को काला अनपढ़ा सा पति भी मिल जाता है, 10-20 साल बाद अपना मकान बन ही जाता है, 10 में से 2-3 के धंधे भी चल निकलते हैं और इन सब को मूॢत की दया समझ कर सिर झुकाने वाले, अंटी खाली करने वालों, चुनावी में से कुछ को भी सही होता देख कर वोट डाल ही आते हैं.

जहां तक हवाई यात्रा का सवाल है, यह देश के लिए जरूरी है, जैसे आज बिजली और उस से चलने वाली चीजें जैसे फ्रिज, कूलर, पंखा, बत्ती, एसी, टीवी मोबाइल, लैटपटौप आज हरेक के लिए जरूरी है, वैसे ही हवाई यात्रा हरेक के लिए जरूरी है. पहले जो शान हवाई यात्रा में रहती थी, जब टिकट आज के रुपए की कीमत के हिसाब से मंहगे थे, वह अब कहां. उस के रुपए की कीमत वे हिसाब से मंहगे थे, वह अब कहां. उस के लिए अमीरों ने प्राईवेट जेट रखने शुरू कर दिए है. नरेंद्र मोदी भी या तो 8000 करोड़ के प्राईवेट जेट में सफर करते हैं या 20-25 किलोमीटर की यात्रा हो तो हैलीकौप्टर में आतेजाते हैं. हवाई चप्पल पहनने वाली जनता इस शान की बात भूल जाए.

हवाई यात्रा जरूरी इसलिए है कि देश बहुत बड़ा है और लोग गांवों से शहरों की ओर जा रहे हैं. उन्हें जब भी गांव वापिस जाना होता है तो उन के पास 7-8 दिन रेल के सफर के नहीं होते. वे यह काम हवाई यात्रा से घंटों में कर सकते हैं.

दुनिया भर में हवाई यात्रा अब रेल यात्रा की तरह हो गई है. ट्रेनें और पानी के जहाज तो अब खास लोगों के लिए रह जाएंगी जिन में होटलों जैसी सुविधाए होंगी. लोग चलते या तैरते होटलों का मजा लेंगे और हवाई यात्रा बस काम के लिए करेंगे.

चलन: जाति के बंधन तोड़ रहा है प्यार

गांवकसबे हों या शहर, आज नौजवान पीढ़ी अपने मनचाहे साथी के लिए जाति, धर्म और दूसरे सामाजिक बंधन तोड़ रही है. जरूरत पड़ने पर ऐसे प्रेमी जोड़े घरपरिवार छोड़ कर भाग भी रहे हैं. जाति हो या धर्म हो या फिर रुतबा, सभी पारंपरिक बेडि़यों को तोड़ते हुए आज नौजवानों का प्यार परवान चढ़ रहा है.

19 साल के विकास और 16 साल की स्नेहा की दोस्ती 2 साल पहले स्कूल में शुरू हुई थी. स्नेहा बताती है, ‘‘हमारी पहली मुलाकात स्कूल के रास्ते में हुई थी. यह पहली नजर का प्यार नहीं था. शुरुआत दोस्ती से हुई थी, फिर नंबर ऐक्सचेंज हुए और हमारी बातें होने लगीं.

‘‘मैं ने विकास से 3 वादे कराए थे. पहला, ये मुझे अपने परिवार से मिलाएंगे. दूसरा, मुझ से शादी करेंगे और तीसरा, अपना कैरियर बनाएंगे,’’ यह बताती हुई स्नेहा का चेहरा सुर्ख हो गया.

एक तरफ इन का इश्क परवान चढ़ रहा था, वहीं दूसरी तरफ स्नेहा के मातापिता का पारा. उस के पिता ने उसे फोन पर विकास से बात करते हुए सुन लिया था. अगले ही पल स्नेहा का फोन तोड़ कर फेंका जा चुका था और वह पिटाई के बाद रोते हुए एक कोने में दुबक गई थी.

विकास को जब इस सब का पता चला, तो उस ने स्नेहा को कुछ औरदिन बरदाश्त करने की बात कही. उन दोनों को यकीन था कि वे जल्द ही शादी कर लेंगे.दिसंबर की सर्दियों में दोपहर के तकरीबन 2 बजे होंगे. विकास एक कंपनी में नाइट ड्यूटी के बाद घर वापस आया था. उस की मां उस के लिए खाना गरम कर रही थीं कि तभी स्नेहा अचानक उन के घर चली आई. कड़कड़ाती सर्दी में उस के शरीर पर सिर्फ एक ढीला टौप और जींस थी.स्नेहा ने विकास की बांह पकड़ कर रोते हुए कहा, ‘‘यहां से चलो, अभी चलो. मेरे घर वाले तुम्हें मार डालेंगे…’’ और विकास उस के साथ निकल गया.

विकास के माबाप को लगा कि वे आसपास ही कहीं जा रहे होंगे, इसलिए उन्होंने दोनों को रोकने की कोशिश भी नहीं की.विकास ने उस दिन के बारे में बताया, ‘‘हम पैदल चल कर जयपुर पहुंचे और वहां हम ने रात बसअड्डे पर बिताई. हम पूरी रात जागते रहे. फिर हम ने जयपुर के पास ही एक गांव में किराए पर छोटा सा कमरा ले लिया और साथ रहने लगे.’’

स्नेहा बताती है कि वे दोनों वहां खुश थे, लेकिन विकास के परिवार को धमकियां मिल रही थीं. उस के मातापिता ने थाने में उन के लापता होने की शिकायत दर्ज कराई थी और स्नेहा के मातापिता जयपुर महिला आयोग जा चुके थे, इसलिए विकास ने अपने घर में फोन कर के अपना ठिकाना बताया.

इस बीच मैडिकल रिपोर्ट भी आगई थी, जिस में विकास और स्नेहा के बीच जिस्मानी संबंध होने की बात कही गई थी.पुलिस ने विकास को पोक्सो ऐक्ट यानी प्रोटैक्शन औफ चिल्ड्रेन फ्रोम सैक्सुअल औफैंस और रेप के आरोप में जेल में डाल दिया. उस ने जेल में 6 महीने बिताए. वहां रोज स्नेहा को याद कर के वह रोता था.क्या इस दौरान उन दोनों का भरोसा नहीं डगमगाया? एकदूसरे के पलटने का डर नहीं लगा? विकास के मन में थोड़ा डर जरूर था, लेकिन स्नेहा ने न में सिर हिलाया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने सब समय पर छोड़ दिया था.’’

मामला अदालत में पहुंचा. स्नेहा ने जज के सामने अपने परिवार के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया. उस ने बताया, ‘‘मैं ने कोर्ट में सचसच बता दिया कि मैं इन्हें ले कर घर से निकली थी, ये मुझे नहीं. हम दोनों अपनी मरजी से साथ हैं. इस पूरे मामले में इन की कोई गलती नहीं है.’’

जज ने फैसला सुनाया, ‘‘दोनों याचिकाकर्ता अपनी मरजी से साथ हैं. यह भी नहीं कहा जा सकता कि लड़की समझदार नहीं है. लेकिन चूंकि अभी दोनों नाबालिग हैं, इन्हें साथ रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती.’’

जज ने विकास पर लगे पोक्सो ऐक्ट और रेप के आरोपों को भी खारिज कर दिया.राजस्थान के कोटा जिले के 28 साल के मनराज गुर्जर ने पिछले साल 30 दिसंबर को बांरा जिले की सीमा शर्मा से शादी कर ली. शादी में दोनों के परिवार खुशीखुशी शामिल हुए. राजस्थान यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान दोनों में प्यार हुआ. मनराज राजस्थान पुलिस में सबइंस्पैक्टर हैं, तो सीमा स्कूल में टीचर. पर हर किसी की कहानी इन दोनों की तरह नहीं है. जयपुर की रहने वाली दलित समाज की पूनम बैरवा को ओबीसी समुदाय के सचिन से शादी के लिए न सिर्फ सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, बल्कि उन के परिवार ने भी उन से नाता तोड़ लिया. ऐसा भी नहीं है कि यह हौसला बड़े शहरों की ओर रुख करने वाले ज्यादा पढ़ेलिखे नौजवानों में ही देखा जा रहा है, छोटे कसबों की कहानी तो और भी हैरानी भरी है.

अलवर जिले के तिजारा थाना इलाके के एक गांव की बलाई (वर्मा) जाति की खुशबू ने घर से भाग कर यादव जाति के किशन के साथ शादी रचा ली. जयपुर के महिला एवं बाल विकास संस्थान की सहायक निदेशक तारा बेनीवाल बताती हैं, ‘‘पिछले 2 साल में जयपुर में तकरीबन 30 लड़कियों ने अंतर्जातीय विवाह प्रोत्साहन राशि के लिए आवेदन किया है.’’ अजमेर के सरवाड़ इलाके के विजय कुमार ने जब सुनीता से अंतर्जातीय शादी की, तो उन्हें न केवल परिवार से अलग होना पड़ा, बल्कि पानी, बिजली और शौचालय जैसी सुविधाओं से भी वंचित कर दिया गया. समाज ने उन का बहिष्कार कर दिया. इस दर्द को विजय कुमार कुछ यों बयान करते हैं, ‘‘लोग कहते हैं कि मैं आवारा निकल गया, बिरादरी की नाक कटा दी. आखिरी समय तक शादी तोड़ने की कोशिश की गई.’’ यहां तक कि बेटियों की आजादी पर भी बंदिश लगाई जाती है. 26 सितंबर, 2020 को अंतर्जातीय शादी करने वाली ज्योति बताती हैं, ‘‘मेरे परिवार वाले समाज के तानों से दुखी हैं. लोग कहते हैं कि बेटी को ज्यादा छूट देने की वजह से उस ने नीच जाति के लड़के से शादी कर ली. मांबाबूजी को तो यह भी फिक्र है कि दूसरे बेटेबेटियों की शादी कैसे होगी?’’

विजय कुमार अपने प्यार का राज खोलते हैं, ‘‘हम दोनों का संपर्क मोबाइल फोन के जरीए हुआ और उसी के जरीए परवान भी चढ़ा.’’जाहिर है कि मोबाइल और दूसरी तकनीकों और पढ़ाईलिखाई ने दूरियां मिटा दी हैं. जयपुर के महारानी कालेज में इतिहास की प्रोफैसर नेहा वर्मा इसी ओर इशारा करती हैं, ‘‘मर्दऔरत के बीच समाज ने जो अलगाव गढ़े थे, वे खत्म हो रहे हैं. दोनों के बीच आपसी मेल बढ़ा है, खासकर औरतें घर की दहलीज लांघ रही हैं.’’ अंतर्जातीय प्यार या शादी करने वालों को थोड़ीबहुत रियायत तो मिल भी जाती है, लेकिन अंतर्धार्मिक रिश्तों के लिए परिवार और समाज कतई तैयार नहीं होता.

अजमेर जिले के किशनगढ़ की 20 साला सकीना बानो ने जब घर से भाग कर 22 साल के अमित जाट से शादी की, तो उन्हें न केवल सामाजिक बुराई सहनी पड़ी, बल्कि उन के परिवार वालों ने अमित और उस की मां को जान से मारने और घर जलाने की धमकी तक दी.

मजबूरन उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा और सकीना को पुनर्वास केंद्र भेज दिया गया. लेकिन अब अदालत के आदेश के बाद नवंबर, 2020 से दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे हैं. सकीना अब एक बेटे की मां बन गई है. उस के पिता अब बेहद बीमार हैं, पर बेटी से मिलना तक नहीं चाहते. अमित की मां भी सकीना को ले कर सहज नहीं हैं वहीं टोंक जिले की ही मनीषा की कहानी लव जिहाद की थ्योरी गढ़ने वाले संघी समूहों के मुंह पर करारा तमाचा है. 16 अप्रैल, 2022 को वह अपने प्रेमी मोहम्मद इकबाल के साथ घर से भाग गई.

भला समाज और परिवार को यह कैसे मंजूर होता. मनीषा के पिता जयनारायण ने इकबाल और उस के पिता हसन के खिलाफ अपहरण की प्राथमिकी दर्ज कराई. इस से बचने के लिए मनीषा और इकबाल ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. समाज और परिवार का अडि़यल रुख ही है कि ऐसे ज्यादातर प्रेमी जोड़ों को प्यार या शादी के लिए घर से भागना पड़ रहा है. लेकिन वे उन से पीछा नहीं छुड़ा पाते, क्योंकि परिवार वाले उन के खिलाफ अपहरण और बहलाफुसला कर शादी करने का मामला दर्ज करा देते हैं. लेकिन इस से नौजवानों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा.

इस सिलसिले में राजस्थान पुलिस के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. प्यार के मामलों में घर छोड़ कर भागने वाले नौजवानों की  तादाद में तकरीबन 6 गुना की बढ़ोतरी हुई है. पुलिस ने राज्य में अपहरण के दर्ज मामलों की जांच के बाद खुलासा किया है कि साल 2013 में जहां प्यार की खातिर घर से भागने वालों की तादाद सिर्फ 172 थी, वहीं साल 2021 में 763 हो गई और यह तादाद सिर्फ अपहरण के दर्ज मामलों की है.ब्राह्मण जाति की अंकिता और बहुत पिछड़ी जाति से आने वाले उन के पति के परिवारों में रिश्ते सामान्य होने में 3 साल लग गए. इस के लिए अंकिता के भाई ने ही पहल की. दोनों के 2 बच्चे भी हो गए हैं, तो वहीं कई लड़कियां पुनर्वास केंद्र में अपने प्रेमी से मिलने के इंतजार में दिन काट रही हैं. तमाम दुखों के बावजूद उन का हौसला नहीं टूटा है.

बेडि़यां तोड़ते इस प्यार को मनीषा के इस हौसले में देखा जा सकता है, ‘‘हमारे रिश्ते को जाति और धर्म के बंधन में नहीं बांधा जा सकता. कोई भी मुश्किल हमें डिगा नहीं सकती.’’प्रोफैसर नेहा वर्मा कहती हैं, ‘‘समाज में जहां एक तरफ धर्म और जाति का राजनीतिकरण बढ़ा है, वहीं दूसरी तरफ इन में दरारें भी पैदा हो रही हैं. नौजवान उन को चुनौती भी दे रहे हैं. लिहाजा, बांटने वाली ताकतों की प्रतिक्रिया भी बढ़ी है. लव जिहाद का झूठा मिथक इस की मिसाल है.’’

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