पटना के बांकीपुर स्कूल की लड़कियां सुबह से जोश में थीं और बारबार उन की निगाहें दरवाजे की ओर उठ जाती थीं. दोपहर के सवा एक बजे एक शख्स क्लासरूम में दाखिल हुए, जो किसी भी तरह से स्कूल के मास्टर नहीं लग रहे थे. दरअसल, वे शख्स थे पटना के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट संजय कुमार अग्रवाल. उन्होंने एक छात्रा खुशबू कुमारी की कौपी उठा कर पढ़ाईलिखाई के बारे में पूछा, तो उस ने कहा कि स्कूल में पढ़ाई नहीं होती है. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट संजय कुमार अग्रवाल ने जब इस बारे में स्कूल प्रशासन से पूछा, तो पता चला कि वहां पर भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, भूगोल, हिंदी, उर्दू, टाइपिंग और संगीत के टीचर ही नहीं हैं. जब उन्होंने छात्राओं से पूछा कि वे कोचिंग क्यों जाती हैं, तो मासूम बच्चियों ने यह कह कर एक झटके में ऐजूकेशन सिस्टम की कलई खोल दी कि स्कूल में तो पढ़ाई होती ही नहीं है. सभी छात्राओं का यही दर्द था कि अगर वे कोचिंग नहीं करेंगी, तो कोर्स पूरा नहीं होगा.

बिहार की शिक्षा व्यवस्था से रूबरू होने के लिए पटना के कलक्टर संजय कुमार अग्रवाल 27 जनवरी, 2017 को एक सरकारी स्कूल में छात्राओं को पढ़ाने पहुंचे. उन्होंने पटना के तमाम सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए अफसरों की एक टीम बनाई है.

शिक्षा विभाग के सूत्र बताते हैं कि अफसर अपना काम तो ठीक से करते नहीं हैं, ऐक्स्ट्रा काम वे क्या खाक करेंगे. मास्टरों का काम अफसरों से करा कर एजूकेशन सिस्टम को ठीक करने की बात सोचना खुली आंखों से सपना देखने की ही तरह है. सरकारी स्कूलों की बदहाली के लिए अफसरशाही ही जिम्मेदार है.

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