Story In Hindi: छूतखोर – एक बाबा की करामात

Story In Hindi: सुमन लाल की बेटी दामिनी अब तक 18 वसंत देख चुकी थी. वह उम्र के जिस पड़ाव पर थी, उस पड़ाव पर अकसर मन मचल ही जाता है. पर वह एक समझदार लड़की थी. इस बात को सुमन लाल अच्छी तरह से जानता था, फिर भी उस को अपनी बेटी की शादी की चिंता सताने लगी थी.

एक दिन सुमन लाल ने इस बात का जिक्र अपनी पत्नी शीला से किया, तो उस ने भी सहमति जताई.

अब तो सुमन लाल दामिनी के लिए एक पढ़ालिखा वर ढूंढ़ने की कोशिश करने लगा. आखिरकार एक दिन सुमन लाल की तलाश खत्म हुई.

लड़का पढ़ालिखा था और अच्छे खानदान से ताल्लुक रखता था. सुमन लाल को यह रिश्ता जम गया. बात भी पक्की हो गई.

एक दिन लड़के वालों ने लड़की को देखने की इच्छा जताई. सुमन लाल खुशीखुशी राजी हो गया.

लड़के वाले सुमन लाल के गांव पहुंचे. कुछ देर तक इधरउधर की बात करने के बाद किसी ने कहा, ‘‘क्यों

न इन दोनों को बाहर टहलने के लिए भेज दिया जाए. इस से दोनों एकदूसरे को जानसमझ लेंगे.’’

सभी लोगों की सहमति से वे दोनों झल के किनारे चले गए, जो गांव के बाहर थी.

?ाल बहुत खूबसूरत और बड़ी थी. उसे पार करने के लिए लकड़ी का एक पतला सा पुल बना हुआ था.

लड़के ने दामिनी से बातें करते हुए उसी पुल पर जाने की इच्छा जताई. दोनों पुल पर चलने लगे.

थोड़ी देर बाद अचानक एक घटना घट गई. हुआ यों कि गांव का ही एक दबंग लड़का, जो कई दिनों से दामिनी के पीछे पड़ा था, वहां पर आ धमका. उस के एक हाथ में चाकू था.

बातों में खोई दामिनी को उस वक्त पता चला, जब उस दबंग लड़के ने उस का हाथ पकड़ लिया.

दामिनी के होने वाले पति ने कुछ कहना चाहा, पर इस से पहले ही वह चाकू लहराता हुआ बोला, ‘‘अबे, चल निकल… नहीं तो तेरी आंखें बाहर निकाल कर रख दूंगा.’’

दामिनी का होने वाला पति डर के मारे वहां से भाग निकला. दामिनी चिल्लाती रह गई, पर उस की लौटने की हिम्मत न हुई.

वह दबंग लड़का दामिनी के साथ मनमानी करने लगा. दामिनी ने बचाव का कोई रास्ता न देखते हुए उसी पुल से ?ाल में छलांग लगा दी.

धीरेधीरे दामिनी डूबने लगी. यह देख कर वह दबंग लड़का भी वहां से रफूचक्कर हो गया.

इसी दौरान उसी गांव का एक लड़का वहां से गुजर रहा था. जब उस ने दामिनी को पानी में डूबते हुए देखा, तो वह झल में कूद पड़ा.

उस लड़के ने तैर कर डूबती हुई दामिनी को बचा लिया.

थोड़ी देर बाद जब दामिनी को होश आया, तो वह लड़का उसे ले कर उस के घर आ गया.

घर पर जब दामिनी ने सब लोगों को आपबीती सुनाई, तो वे दंग रह गए.

सब लोगों ने उस लड़के से पूछा, तो उस ने अपना नाम सुमित बताया. वह इसी गांव के पश्चिम टोले में रहता था.

तभी अचानक सुमन लाल की भौंहें तन गईं. उस की सारी खुशियां पलभर में छू हो गईं.

सुमन लाल हैरानी से बोला, ‘‘पश्चिम टोला तो केवल अछूतों का टोला है. क्या तुम अछूत हो?’’

सुमित ने ‘हां’ में सिर हिलाया. फिर क्या था. सुमन लाल अब तक जिस लड़के के कारनामे पर फूला नहीं समा रहा था, अब उसी को बुराभला कह रहा था.

पास में खड़ी दामिनी सारा तमाशा देख रही थी. सुमित अपना सिर झकाए चुपचाप सबकुछ सुन रहा था.

फिर अचानक वह बिना कुछ बोले एक बार दामिनी की तरफ देख कर वहां से चला गया.

सुमित के देखने के अंदाज से दामिनी को लगा कि जैसे वह उस से कह रहा हो कि तुम्हें बचाने का क्या इनाम दिया है तुम्हारे पिता ने.

अब तो सब दामिनी को बुरी नजर से देखने लगे थे. गांव में खुसुरफुसुर होने लगी थी.

एक दिन दामिनी ने फैसला किया कि उस की यह जिंदगी सुमित की ही देन है, तो क्यों न वह सारे रिश्ते तोड़ कर सुमित से ही रिश्ता जोड़ ले.

एक दिन दामिनी सारे रिश्ते तोड़ कर सुमित के घर चली गई. वहां पहुंच कर उस ने देखा कि सुमित का छोटा भाई बेइज्जती का बदला लेने की बात कर रहा था.

सुमित उसे समझ रहा था, तभी दामिनी बोली, ‘‘तुम्हारा भाई ठीक ही तो कह रहा है. उन जाति के ठेकेदारों को सबक सिखाना ही चाहिए.’’

दामिनी को अचानक अपने घर आया देख कर सुमित चौंका और हड़बड़ा कर बोला, ‘‘अरे दामिनीजी, आप यहां? आप को यहां नहीं आना चाहिए. आप घर जाइए, नहीं तो आप के मांबाप परेशान होंगे. मुझे आप लोगों से कोई शिकायत नहीं है.’’

दामिनी बोली, ‘‘कौन से मांबाप… मैं तो उन के लिए उसी दिन मर गई थी, जिस दिन तुम ने मुझे नई जिंदगी दी थी. अब मैं यह नई जिंदगी तुम्हारे साथ जीना चाहती हूं. अगर तुम ने मुझे अपनाने से मना किया, तो मैं अपनी जान दे दूंगी.’’

दामिनी की जिद के आगे सुमित को झकना पड़ा. उस ने दामिनी के साथ कोर्ट मैरिज कर ली.

धीरेधीरे समय बीतने लगा. सुमित ने शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी. आखिरकार एक दिन उस की मेहनत रंग लाई और वह लेखपाल के पद पर लग गया.

एक दिन सुमित गांव के किनारे की जमीन की नापजोख का काम देख रहा था, तभी वहां पर सुमन लाल आ गया.

सुमित ने तो सुमन लाल को एक ही नजर में पहचान लिया था, मगर सुमन लाल की आंखें उसे नहीं पहचान सकीं.

सुमन लाल पास आ कर बोला, ‘‘नमस्कार लेखपाल साहब.’’

जवाब में सुमित ने अपना सिर हिला दिया.

सुमन लाल बोला, ‘‘साहब, यह बगल वाला चक हमारा ही है. इस पर जरा ध्यान दीजिएगा.’’

सुमित ने जवाब में फिर सिर हिला दिया.

सुमन लाल समझ गया कि साहब बड़े कड़क मिजाज के हैं. अब तो वह उन की खुशामत करने में लग गया, ‘‘अरे ओ भोलाराम, साहब के लिए कुछ शरबत बनवा लाओ. देखते नहीं कि साहब को गरमी लग रही है.

‘‘आइए साहब, इधर बगीचे में बैठिए. कुछ शरबतपानी हो जाए, काम तो होता ही रहेगा.’’

सुमित सुमन लाल की चाल को समझ गया था. उस ने सोचा कि सबक सिखाने का यही अच्छा मौका है.

सुमित जा कर चारपाई पर बैठ गया. थोड़ी ही देर बाद शरबत आ गया. सुमित ने शरबत पी लिया, फिर बोला, ‘‘आप का चक मापने का नंबर तो कल ही आएगा.’’

सुमन लाल बोला, ‘‘ठीक है साहब, कल ही सही. सोचता हूं कि क्यों न आज आप हमारे घर ठहर जाएं. एक तो हमें आप की खिदमत करने का मौका भी मिल जाएगा और आप को भी पुण्य कमाने का मौका.’’

‘‘पुण्य कमाने का मौका, पर वह कैसे?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘अरे साहब, हमारे घर पर कई दिनों से एक साधु बाबा पधारे हैं. वे काशी से आए हैं.’’

सुमित बोला, ‘‘ठीक है, पर यह पुण्य का काम तो मेरी पत्नी को ही ज्यादा भाता है. मैं उन्हीं को ले कर आऊंगा बाबाजी के दर्शन के लिए.’’

सुमन लाल बोला, ‘‘बहुत अच्छा रहेगा साहब, जरूर ले आइएगा.’’

घर पहुंच कर सुमित ने दामिनी को सारी घटना कह सुनाई. दामिनी साथ में जाने के लिए मना करने लगी.

सुमित ने उसे प्यार से समझाया कि यही तो मौका है उन जाति के ठेकेदारों को सबक सिखाने का.

दामिनी जाने के लिए राजी हो गई, तो सुमित ने पूछा, ‘‘अरे दामिनी, तुम्हारा देवर कहीं नहीं दिख रहा है.’’

दामिनी बोली, ‘‘मैं तो बताना ही भूल गई कि वह कुछ दिनों के लिए मामा के यहां गया है.’’

अगले दिन शाम होतेहोते सुमित कार ले कर सुमन लाल के घर पहुंच गया.

सुमन लाल ने बताया, ‘‘साहब, यही हैं काशी से आए हुए बाबाजी.’’

सुमित ने अनमने ढंग से बाबा को हाथ जोड़े, तो उस बाबा ने आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘‘खुश रहो बच्चा.’’

सुमित ने देखा कि सुमन लाल की पत्नी बाबाजी के पैर दबा रही थी और बाबाजी बड़े ठाट से पैर दबवाने का मजा ले रहे थे.

धीरेधीरे सुमन लाल के घर के बाहर भीड़ लगनी शुरू हो गई थी. कुछ लोग अपने खेतों का मसला ले कर सुमित के पास आ रहे थे, तो कुछ बाबाजी के दर्शन करने के लिए.

सुमन लाल ने पूछा, ‘‘साहब, क्या आप की पत्नी नहीं आईं?’’

सुमित बोला, ‘‘हां, आई हैं. वे कार में बैठी हैं.’’

सुमन लाल ने अपनी पत्नी शीला से कहा, ‘‘अरे सुनती हो, जाओ जा कर साहब की पत्नी को ले आओ. बेचारी कब से कार में बैठी हैं.’’

शीला जैसे ही उठ कर चली, सुमन लाल तुरंत बाबाजी के पैर दबाने लगा.

थोड़ी ही देर में कार के पास से रोने की आवाजें आने लगीं. सुमन लाल ने गौर किया, तो पता चला कि शीला और लेखपाल की पत्नी एकदूसरे से लिपट कर रो रही थीं.

सुमन लाल ने जब पास आ कर देखा, तो हैरान रह गया. लेखपाल की पत्नी तो उस की बेटी दामिनी थी.

सुमित बोला, ‘‘सुमन लालजी, मैं वही सुमित हं, जिसे आप ने बेइज्जत कर के अपने घर से भगा दिया था.’’

सारे गांव वाले चुप थे. किसी के पास कोई जवाब नहीं था.

अभी यह सब हो ही रहा था कि तभी बाबाजी की आवाज सुन कर सभी गांव वालों का ध्यान उन की तरफ गया. पर यह क्या… बाबाजी तो एकएक कर के अपनी नकली दाढ़ीमूंछें उतारने लगे और बोले ‘‘मैं सुमित का छोटा भाई हूं.’’

फिर वह सुमन लाल से बोला, ‘‘मेरे भाई ने तो अपनी जान पर खेल कर आप की बेटी की जान बचाई थी, पर एहसान मानने के बजाय आप ने कहा कि उस के छूने से आप की बेटी नापाक हो गई.

‘‘आज सभी गांव वाले डूब मरिए कहीं चुल्लू भर पानी में, क्योंकि आज तो आप का सारा गांव ही नापाक हो गया है. आज तो आप सभी लोगों ने एक अछूत को छुआ है, इसीलिए यह सारा गांव ही ‘छूतखोर’ हो गया है.

‘‘अब मैं यहां पर एक पल भी नहीं रुकना चाहता,’’ सुमित के छोटे भाई का इतना कहना था कि वे तीनों गाड़ी में बैठ गए.

सुमन लाल ने उन लोगों को रोकना चाहा, पर उस की आवाज हलक के बाहर ही नहीं निकली. धीरेधीरे कार सब की आंखों से ओझल होती चली गई. Story In Hindi

Hindi Family Story: अनकही पीड़ा – बिट्टी कैसे खुश रहेगी

Hindi Family Story: आज अजीत कितना खुश था. मां व बिट्टी ने भी बहुत दिनों बाद घर में हंसीखुशी का माहौल देखा.

अजीत ने मेरे पैर छू कर कहा, ‘‘दीदी, अगर आप 4 हजार रुपए का इंतजाम न करतीं, तो यह नौकरी भी हाथ से निकल जाती. आप का यह उपकार मैं जिंदगीभर नहीं भुला सकूंगा.’’

भाई की बातों को सुन कर मुझे कुछ अंदर तक महसूस हुआ. बड़ी हूं न, खुद को हर हाल में सामान्य रखना है.

मैं भाई का गाल स्नेह से थपथपा कर बोली, ‘‘पगले, बड़ी बहन हमेशा छोटे भाई के प्रति फर्ज का पालन करती?है. मैं ने कोई एहसान नहीं किया है.’’

वह भावुक हो उठा, ‘‘दीदी, आप ने इस घर के लिए बहुत सी तकलीफें उठाई हैं. पिताजी की मौत के बाद कड़ा संघर्ष किया है. अपने लिए कभी कुछ नहीं सोचा. अब आप चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा.’’

मेरे भीतर कुछ कसकता चला गया. अगर इसे पता लग जाए कि कितना कुछ गंवाने के बाद मैं 4 हजार की रकम हासिल कर सकी हूं, तो इस की खुशी पलभर में ही काफूर हो जाएगी और यह भी पक्की बात?है कि उस हालत में यह चोपड़ा का खून कर देने से नहीं हिचकेगा. लेकिन इसे वह सब बताने की जरूरत ही क्या है?

थोड़ी देर पहले बिट्टी चाय ले आई थी. मैं ने उसे लौटा दिया. मैं ने 2 दिन से कुछ नहीं खाया. मां से झूठ बोला कि उपवास चल रहा है.

बिट्टी इस साल इंटर का इम्तिहान दे रही?है. वह ज्यादा भावुक लड़की है. घरपरिवार के विचार मेरे दिमाग को घेरे हुए हैं. गुजरा हुआ सबकुछ नए सिरे से याद आ रहा है.

3 साल पहले जब पिताजी बीमारी से लड़तेलड़ते हार गए थे, तब कैसी घुटती हुई पीड़ा भरी आवाज में कहा था, ‘रेखा बेटी, मौत मेरे बिलकुल पास खड़ी है. मैं जीतेजी तेरे हाथ पीले न कर सका. मुझे माफ कर देना.

‘जिंदगी की राहों में बहुत रोड़े और कांटे मिलेंगे, मगर मुझे यकीन है कि तू घबराएगी नहीं, उन का डट कर मुकाबला करेगी.’

लेकिन क्या सच में मैं मुकाबला कर सकी? पिताजी की मौत के बाद जब अपनों ने साथ छोड़ दिया, तब केवल एक गोपाल अंकल ही थे, जिन्होंने अपनी तमाम घरेलू दिक्कतों के बावजूद हमारी मदद की थी. हमेशा हिम्मत बढ़ाते रहे, एक बाप की तरह.

मैं स्नातक थी. उन्हीं की भागदौड़ और कोशिशों से एक कंपनी में सैक्रेटरी के पद पर मेरी नियुक्ति हो सकी थी.

फार्म का अधेड़ मैनेजर चोपड़ा मुझ से हमदर्दी रखने लगा?था. वह कार में घर आ कर मां से मिल कर हालचाल पूछ लेता. मां खुश हो जातीं. वे सोचतीं कुछ और हड़बड़ी में मुंह से कुछ और ही निकल जाता.

गोपाल अंकल का तबादला आगरा हो गया. इधर अजीत नौकरी के लिए जीजान से कोशिश कर रहा था. वह सुबह घरघर अखबार डालने का काम करता.

अजीत ने अनेक जगहों पर जा कर इंटरव्यू दिया, पर नतीजा जीरो ही रहा. कभीकभी वह बेहद मायूस हो जाता, तब मैं यह कह कर उस का हौसला बढ़ाती कि उसे सब्र नहीं खोना चाहिए. कभी न कभी तो उसे नौकरी जरूर मिलेगी.

एक हफ्ता पहले अजीत ने?घर आ कर बताया था कि किसी फर्म में एक जगह खाली है, पर वह नौकरी 4 हजार रुपए की रिश्वत एक अफसर को देने पर ही मिल सकती?है.

मेरे बैंक के खाते में महज 9 सौ रुपए पड़े थे. मां के जेवर पिताजी की बीमारी में ही बिक गए थे. इतनी बड़ी रकम बगैर ब्याज के कोई महाजन देने को तैयार न था. घर में सब पैसे को ले कर चिंता में थे.

चूंकि मैं रुपयों को ले कर तनाव में?थी, इसलिए काम में गलतियां भी कर गई. पर चोपड़ा ने डांटा नहीं, बल्कि प्यार से मेरी परेशानी का सबब पूछा. उस की हमदर्दी पा कर मैं ने अपनी समस्या बता दी. उस ने मेरी मदद करने का भरोसा दिया.

फिर एक दिन चोपड़ा ने मुझे अपने शानदार बंगले में बुलाया और कहा कि उस की बीवी रीमा मुझ से मिलने को बेताब है. वह मुझे कुछ उपहार देना चाहती?है.

शाम को 7 बजे के आसपास मैं वहां पहुंची, तो बंगला सुनसान पड़ा था.

चोपड़ा ने अपनी फैं्रचकट दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए हंस कर कहा था, ‘रेखा, मेरी बीवी को अचानक एक मीटिंग में जाना पड़ गया. वह तुम से न मिल पाने के लिए माफी मांग गई है और तुम्हारे लिए यह लिफाफा दे गई है.’

मैं ने लिफाफा खोला. अंदर 4 हजार रुपए थे. मैं चकरा कर रह गई थी.

मैं हकला कर बोली, ‘सर, ये रुपए…उन्हीं ने…?’

तब चोपड़ा के चेहरे पर शैतानी मुसकान खेलने लगी. उस धूर्त ने झट दरवाजे की सिटकिनी लगा दी और मुझे ऊपर से नीचे तक ललचाई नजरों से घूरता हुआ बोला, ‘इन्हें रख लो, रेखा डार्लिंग. तुम्हें इन रुपयों की सख्त जरूरत है और मैं ये रुपए दे कर तुम पर मेहरबानी नहीं कर रहा हूं. यह तो एक हाथ ले दूसरे हाथ दे का मामला है. तुम नादानी मत करना. अपनेआप को तुम खुशीखुशी मेरे हवाले कर दो.’

एक घंटे बाद मैं वहां से अपना सबकुछ गंवा कर बदहवास निकली और लड़खड़ाते कदमों से नदी के पुल पर जा पहुंची थी. मुझे खुद से नफरत हो गई थी. मैं जान देने को तैयार थी. मुझे अपनी जिंदगी बोझ सी लग रही थी. ऊपर से नीचे तक मैं पसीने में डूबी थी.

लेकिन उसी समय दिमाग में अजीत, बिट्टी और सूनी मांग वाली मां के चेहरे घूमने लगे थे. मैं सोचने लगी, मेरी मौत के बाद उन का क्या होगा?

मैं ने खुद को संभाला और घर लौट आई.

अजीत को रुपए दे कर मैं तबीयत खराब होने का बहना बना कर लेट गई.

‘‘यह तू क्या सोचे जा रही है, बेटी?’’ अचानक मां की अपनापन लिए प्यार भरी आवाज सुन कर मेरे सोचने का सिलसिला टूट गया.

मैं ने चौंक कर उन की तरफ देखा. मां ने मेरा सिर छाती में छिपा कर चूम लिया. मुझे एक अजीब तरह का सुकून मिला.

अचानक मां ने भर्राई हुई आवाज में कहा, ‘‘मेरी बच्ची, चल उठ और खाना खा ले. हिम्मत से काम ले. हौसला रख. अपने पिता की नसीहत याद कर. निराश होने से काम नहीं चलता बेटी. तू नाखुश व भूखी रहेगी, तो अजीत और बिट्टी भला किस तरह खुश रहेंगे. समझदारी से काम ले, जो बीत गया उसे भूल जा.’’

मेरे कांपते होंठों से निकला, ‘‘मां…’’

‘‘तू मेरी बेटी नहीं, बेटा है,’’ मां ने इतना कहा, तो मैं उन से लिपट गई.

अचानक मेरे दिमाग में खयाल आया कि क्या मां मेरी अनकही पीड़ा को जान गई हैं? Hindi Family Story

Family Story In Hindi: अमीर – बड़े दिलवाला लालू

Family Story In Hindi: ‘‘उठो… आंगनबाड़ी जाना है न?’’ मां लालू को जगाने की कोशिश कर रही थी.

‘थोड़ी देर और…’’ लालू ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.

‘‘मुझे और तेरे बापू को काम पर जाने में रोज देरी होती है. चलो, तैयार हो जाओ,’’ मां झंझला कर बोली, तो लालू को उठना पड़ा.

मां ने बासी और कड़क रोटी चायनुमा पानी में डुबो कर नरम की थी. टिन की थाली में वही रोटी परोस कर लालू के सामने सरका दी.

लालू वही नरम और बासी रोटी बड़े चाव से खाने लगा.

‘‘ढंग से खाओ, कपड़ों पर मत गिराना,’’ मां बोली.

‘‘क्यों डांटती हो? बच्चा ही तो है,’’ बापू लालू की तरफ से बोला.

‘‘कल ही कपड़े धोए हैं,’’ मां के मन में साबुन का हिसाबकिताब चल रहा था.

इस के बाद मां और बापू चाय का पानी पी कर काम पर चले गए.

‘‘तुम ने रोटी नहीं खाई?’’ लालू ने पूछा, ‘‘ठकुराइन के घर की रोटी बहुत अच्छी होती है.’’

‘तुम्हारे उठने से पहले ही खा ली थी बेटा,’ मां और बापू दोनों सफाई से झठ बोल गए.

मां गांव के प्रधान के घर पर झाड़ू, बरतन, सफाई करती थी और बापू उन

के खेतों में मजदूर था. इन के घर में चूल्हा जलता था, तो सिर्फ चाय बनाने के लिए, वह भी गुड़ वाली चाय. वरना जो जूठा, बचा हुआ खाना मिलता, उसी पर वे लोग अपना गुजारा कर लेते थे.

मां और बापू दोनों दिनरात मजदूरी में जुटे रहते. बापू को कभी काम मिलता, तो कभी नहीं. मां को पुराने कपड़े, सामान, बचा हुआ खाना मिलता था.

प्रधान के घर में खाना खा कर मां अपना गुजारा कर लेती और अच्छा खाना मिले भले बासी ही सही, अपने बेटे लालू के लिए बांध कर घर ले आती.     5 साल का लालू इसी साल से आंगनबाड़ी में जाने लगा था.

बापू ने उस को इस जिद से भरती करवाया था कि वे दोनों तो अनपढ़ हैं. अगर वे लिखनापढ़ना जानते, तो वे मजदूर नहीं होते. लेकिन उन का बेटा पढ़ेगा. आगे चल कर वे उसे शहर भेजेंगे. वह पढ़लिख कर बड़ा आदमी बनेगा, उस के लिए भले ही उन दोनों को सारी जिंदगी भूखे पेट क्यों न रहना पड़े.

लालू को आंगनबाड़ी भेजने की एक और भी वजह थी. सरकारी नियमों के मुताबिक वहां से कौपीकिताबें मुफ्त में मिलती थीं. साल में एक बार 2 जोड़ी कपड़े मिलते थे. अगर छुट्टी न करो, तो हर रोज दोपहर का खाना मिलता था.

देशभर में 15 अगस्त बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा था. आंगनबाड़ी में भी खास समारोह होना था.

आंगनबाड़ी को झाड़ू लगा कर साफ कराया गया. फूलों की माला से झंडे का स्तंभ सजाया गया. उस के चारों ओर रंगोली से नक्काशी बनाई गई.

थोड़ी ही देर में गांव के सरपंचजी आए. उन्होंने झंडा फहराया. सभी ने राष्ट्रगान गाया. उस के बाद ‘भारत माता की जय’ का जयघोष हुआ. फिर सरपंचजी ने भाषण किया.

समारोह खत्म होने के बाद सभी बच्चों को एकएक डब्बा दिया गया, जिस में 2 समोसे, 2 लड्डू और कुछ नमकीन थी. सभी बच्चे अपनाअपना डब्बा खोल कर समोसेलड्डू पर टूट पड़े.

लालू ने भी अपना डब्बा खोला. समोसे की बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी. लालू ने नाक के पास ले जा कर वह खुशबू सूंघी. गांव के रतन हलवाई की दुकान के आसपास ऐसी ही खुशबू फैली रहती है.

लालू ने समोसे और लड्डू को प्यार भरी नजरों से देखा, फिर एक बार सूंघा और डब्बा बंद कर दिया.

आज 15 अगस्त होने की वजह से आंगनबाड़ी में छुट्टी थी. नतीजतन, दोपहर का खाना नहीं मिलने वाला था.

सारे बच्चे लड्डूसमोसा खा कर के घर जाने लगे. कुछ बच्चों ने नमकीन अपनी निकर की जेबों में भर ली और खाली डब्बे वहीं फेंक दिए.

लालू के हाथ में अभी भी डब्बा था, भरा हुआ डब्बा. लालू बड़े ध्यान से संभाल कर डब्बा ले कर अपने घर जा रहा था.

दूर खेतों में खड़े अपने झोंपड़े में आ कर लालू ने वह डब्बा ठंडे चूल्हे के पास रख दिया. थोड़ी देर के लिए वह झोंपडे़ में इधरउधर घूमा, फिर डब्बा चूल्हे के पास से उठाया. उसे डर था कि कहीं कोई चूहा या बिल्ली इसे खा न जाए. उस ने वह डब्बा चूल्हे के ऊपर जो तवा था, उस पर रख दिया. अब वह निश्चिंत हो गया और खेलने के लिए झोंपड़े के बाहर चला गया.

वह खेल में मस्त हो गया कि तभी अचानक उसे कुछ याद आया और दौड़ कर झोंपड़े के अंदर चला आया. डब्बा तो तवे पर सहीसलामत था, मगर चींटियों की कतारें उस के अंदरबाहर आजा रही थीं. उस ने झट से डब्बा खोला. अभी ज्यादा चींटियां अंदर नहीं घुसी थीं. उस ने फूंक मारमार कर चींटियों को भगाया.

इस हड़बड़ी में उस के हाथों पर कुछ चींटियां चिपक कर मर गई थीं. लालू ने अपने कपड़ों से लड्डू पोंछ कर साफ किए. वह खुश हुआ, लड्डू सहीसलामत थे.

पर अब क्या करे? उसे एक तरकीब सूझ. उन के पास एक ही खटिया थी, जो झोंपड़े के बाहर पड़ी रहती थी, जिस पर उस का बापू सोता था. खटिया के पाए ढीले हो गए थे, डोरियां ढीली पड़ गई थीं, उन में अच्छाखासा झोल आ गया था. लालू ने उस पर वह डब्बा रख दिया. अब उसे तसल्ली हो गई कि डब्बा एकदम महफूज है.

वह फिर से खेलने लगा. घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था. आज वह खेल में ही अपना ध्यान लगा रहा था, पर खटिया पर रखे डब्बे पर भी नजर रख रहा था कि कहीं कुत्ता मुंह न मारे.

4-5 साल का छोटा भूखा, थका हुआ बच्चा कितनी देर खाने का डब्बा संभालता? आखिरकार डब्बा गोद में लिए वह खटिया पर लुढ़क गया.

शाम ढलतेढलते मांबापू दोनों काम से वापस आ गए. मां ने लालू को जगाया. आंख मलतेमलते वह जाग गया. मांबापू ने देखा कि उस की गोद में एक डब्बा है.

मां ने पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘आज आंगनबाड़ी में हमें यह दिया गया है,’’ लालू ने डब्बा मां के हाथों में देते हुए कहा.

मां ने डब्बा खोल कर देखा. उस में 2 लड्डू, 2 समोसे और नमकीन थी.

‘‘तुम ने खाया क्यों नहीं बेटा? आज तो तुम्हें वहां खाना भी नहीं मिला होगा,’’ बापू कह रहा था. उस की आवाज में नाराजगी थी.

यह नाराजगी लालू के खाना न खाने पर थी या एक वक्त का खाना न मिलने पर थी, यह तो वही जाने.

‘‘क्यों नहीं खाया?’’ मां गुस्से से बोली. उस की आवाज में गुस्से के साथसाथ तड़प भी थी कि उस का बच्चा दिनभर का भूखा है.

मांबापू सोचने लगे, ‘इस ने खाना क्यों नहीं खाया? डब्बा गोद में लिए लेटा रहा… तबीयत तो ठीक है न इस की? क्या हो गया है इसे?’

मांबापू दोनों ने नाराजगी और तड़प भरे दिल से लालू को डांट लगाई, ‘चलो, पहले लड्डू, समोसा खा लो. खाना गोद में लिए कोई सोता है भला?’

लालू बोला, ‘‘मां, मैं ने इसे तवे पर रखा था, तो इस में चींटियां घुस गईं. पर मैं ने लड्डू को पोंछपोंछ कर साफ कर दिया. चूहा, बिल्ली, कुत्ता कोई इसे मुंह न लगाए, इसलिए गोद में ले कर दिनभर संभालता रहा, तुम दोनों के लिए.’’

थकी हुई मां के जिस्म में न जाने कहां से ताकत आ गई. वह ?ाट से उठ गई. दो कदम की दौड़ लगा कर वह अपने बच्चे के पास आ गई. उस ने लालू का चेहरा कई बार चूमा.

झोंपड़े से पीठ टिकाए बैठा बापू मांबेटे का यह प्यारदुलार देख रहा था. उस ने सिर पर बांधा हुआ कपड़ा अपने हाथों से हलके से उतार कर अपनी आंखें पोंछीं. वह अपनी जगह से उठ गया और प्यार से बेटे के पास खटिया पर जा बैठा. उस ने लालू को सीने से लगाया और उस के माथे को चूमा. उस के उन नन्हे हाथों को चूमा, जो खाना खाने के बजाय खाने की हिफाजत कर रहे थे.

लालू ने अपनी मां से वह डब्बा लिया और बड़े प्यार से उस में से एक समोसा उठाया.

‘‘एक कौर मेरी रानी मां का,’’ कहते हुए लालू ने समोसा मां को खिलाया.

मां ने समोसे का छोटा सा टुकड़ा काट लिया. वही जूठा समोसा बापू के मुंह के पास ले जा कर कहा, ‘‘एक कौर मेरे राजा बापू का.’’

बाप ने भी समोसे खा लिया.

मां के गले से सिसकी निकली. बापू का गला रुंध गया. बापू ने समोसे के साथ सिसकी निगल ली.

मांबापू को समोसा खाते देख कर लालू खिलखिला कर हंस पड़ा. मां ने बचा हुआ समोसा बड़े प्यार से अपने लालू को खिलाया.

लालू बोला, ‘‘अब मेरी मां लड्डू खाएंगी, मेरा बापू लड्डू खाएगा. फिर लालू लड्डू खाएगा.’’

तेल में बने उस लड्डू का स्वाद क्या बताएं कि असली देशी घी के लड्डू का स्वाद भी फीका पड़ जाए.

खुले आसमान के नीचे चांदनी की चादर ओढ़े, झलाती हुई खटिया पर रानी मां, राजा बापू और उन का नन्हा राजदुलारा लालू एकदूसरे को टुकड़टुकड़ा खाना खिला रहे थे. तीनों के मुंह समोसे, लड्डू से और दिल खुशी से भरे थे. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: गरीब का डर – बेटी को ले कर परेशान पिता

Hindi Family Story: टैलीविजन और सोशल मीडिया पर जैसे आग लगी हुई है, जब से श्रद्धा और आफताब वाला केस चला है. 35 टुकड़े फ्रिज में रखे गए थे. एकएक कर के वह जंगल में फेंक रहा था.‘‘नराधम, राक्षस, पापी, कुत्ता, नरक में भी जगह नहीं मिलेगी, कीड़े पड़ेंगे बदन में, मर जाए नासपिटा, न जाने कैसी कोख से जन्म लिया है, मांबाप के नाम को कलंक लगा दिया है, ऐसे कपूत से तो बेऔलाद भले…’’ रामआसरे अपनी सब्जी की पोटलियां खोलतेखोलते जोरजोर से बड़बड़ा रहा था.

प्लास्टिक की छोटी बालटी में पानी भरभर कर रामआसरे की पत्नी शारदा प्लास्टिक के छोटे मग से सब्जियों पर पानी छिड़कती जा रही थी. वह जानती थी कि पिछले कई दिनों से आफताब वाले केस को ले कर रामआसरे बड़ा दुखी है. रोज बड़बड़ करता है. घर में भी बेचैन सा रहता है. रोटी भी बेमन से खाता है. वह क्या करे? उस के बस में कुछ नहीं है.

रामआसरे देश का गरीब आदमी है, जिस तक सरकार की कोई योजना का लाभ नहीं जाता है, न ही मिल पाता है. पटरियों पर सब्जी की दुकानें लगाने वाले गरीबों की सुनता कौन है? स्मार्ट सिटी बनाने में सड़कें चौड़ी करने के लिए उन को हर बार लात मार कर भगा दिया जाता है. कभी भी जगह बदल देते हैं, यहां से खाली करो वहां दूसरी जगह दुकान लगाओ.

बेचारे दरबदर होते रहते हैं सब्जी वाले. सड़कें चौड़ी करने के चक्कर में इन की पुरानी ग्राहकी टूट जाती है. बड़ी मुश्किल होती है दुकान जमने में. अब यह परेशानी कौन सुने?सुबह से शाम तक काम ही काम. 2 बच्चों का भरणपोषण, बीमार मां की सेवा… गरीब आदमी है मां को आश्रम में नहीं डालेगा. ये अमीरों के चोंचले हैं.मां चाहे बीमार हो, लेकिन मां तो मां है.

मां के भरोसे ही जवान छोरी को छोड़ कर सब्जी की दुकान में शारदा के साथ बैठ कर शांति से सब्जी बेच पाता है.दोपहर में शारदा घर चली जाती है, तो वह अपनी बेटी की चिंता भी भूल जाता है. मां और पत्नी के घर रहने से बेटी की देखभाल भी हो जाती है.

शारदा 5 बजे शाम को पैट्रोल पंप वाले साहब लोगों के घर खाना बनाने जाती है और 7 बजे वापस भी आ जाती है. बनिया परिवार है. 5 जने हैं घर में. सभी की पसंद का खाना अलगअलग बनता है. कई सारे नौकरचाकर हैं.

शाम का खाना बनाने के लिए शारदा जाती है. सुबह और दोपहर के खाने के लिए दूसरे नौकर रखे हैं. बड़े लोगों की बड़ी बातें.3,000 रुपए महीना मिलते हैं इस बनिया परिवार से. इस के अलावा उन की जवान छोरी के कपड़े भी मिल जाते हैं, जो रामआसरे की जवान छोरी कजरी के काम आ जाते हैं.

होलीदीवाली पर मिठाई का डब्बा, शारदा को नई साड़ी और 1,000 रुपए इनाम में देते हैं. 4 साल से शारदा वहां खाना बना रही है. तब कजरी 15 साल की थी. आज 19 साल की हो गई है.मां की बीमारी की दवा वगैरह भी बनिया परिवार दिला देता है.

एक बार मां ज्यादा बीमार पड़ी थी. साहब ने पहचान के डाक्टर को फोन लगा कर जांच करने को कहा था. इतना अच्छा घर कैसे छोड़े? कितनी मदद मिल जाती है. गरीब आदमी का जीवन चल जाता है.उस दिन तो रामआसरे ने हद कर दी.

जैसे ही टीवी पर श्रद्धा और आफताब की खबर देखी, तो कजरी को डांटने लगा, ‘‘बता तेरा कोई लफड़ावफड़ा तो नहीं है किसी के साथ?’’कजरी डर गई थी बाप का गुस्सा  देख कर. रामआसरे के 2 घर छोड़ कर शकील चाचा का घर था. वहां भी जाना बंद करवा दिया था. शकील चाचा के घर में 2 जवान छोरी और एक जवान छोरा था.

शकील चाचा की पत्नी सायरा और रामआसरे के परिवार के अच्छे संबंध थे. आनाजाना था. बेड़ा गर्क हो आफताब का, जिस ने देश की हवा में जहर घोल दिया था.रामआसरे ने शाम को चाय की टपरी पर बैठना भी बंद कर दिया था शकील चाचा से बचने के लिए. शकील चाचा और रामआसरे के बच्चे साथसाथ खेलकूद कर जवान हुए थे.

रामआसरे को शकील चाचा के घर का जर्दा पुलाव और बिरयानी पसंद थी. जब शकील चाचा के घर से जर्दा पुलाव आता था, तो पूरा घर खुश हो कर खाता था. ऐसे ही होलीदीवाली की गुझिया की खुशबू शकील चाचा को पसंद थी. पूरा परिवार गुझिया पसंद करता था, पर कीड़े पड़ें आफताब को, जिस ने देश का माहौल खराब कर दिया.

रामआसरे ने घर में सख्त मना कर दिया था कि शकील चाचा की दुकान से कोई सामान नहीं आए. शकील चाचा की किराने की छोटी सी दुकान थी. जवान छोरे असलम को किसी गाड़ी के शोरूम में लगवा दिया था. वह सुबह 10 बजे चला जाता था और रात में 9 बजे तक घर आता था. 2 जवान छोरियों के साथ कजरी की दोस्ती थी. वह घर आतीजाती थी.

आफताब और श्रद्धा केस के बाद वह भी बंद करवा दिया था. एक अजीब सी दहशत थी रामआसरे के भीतर, जो गुस्से में कभी भी फट पड़ती थी.रामआसरे के मना करने के बाद भी परिवार के बच्चों में दोस्ती थी. क्या प्यार और इनसानियत के रिश्ते कभी टूट सकते हैं? लेकिन वे रामआसरे की भावनाओं का ध्यान रखते हुए उस के सामने नहीं मिलते थे.

शकील चाचा के छोरे असलम ने महल्ले में आए एक नए परिवार को भी दावत पर बुला लिया था. परिवार क्या था, बस मां और बेटे थे. बेटे का नाम शिवम था. पिता की कुछ साल पहले सड़क हादसे में मौत हो गई थी.उसी दावत में शिवम ने पहली बार कजरी को देखा तो देखता ही रह गया था. कजरी की सादगी उस के मन को भा गई थी.

असलम की बहनों के साथ कजरी कभी किसी काम से बाजार जाती थी, वहीं 1-2 बार उस की शिवम से ‘हायहैलो’ हो गई थी. इस से ज्यादा कुछ नहीं.शिवम सोच रहा था कि बात शुरू कैसे करे? उस ने सोचा कि वह असलम से बात करेगा, इसलिए उस ने असलम को मोबाइल पर अपनी बात बताई.

असलम बोला, ‘‘कुछ सोचते हैं. रामआसरे अंकल के सामने तो मिलने से रहे…’’अचानक असलम को आइडिया सूझा. उस ने शिवम को कहा, ‘‘तू एक काम कर कि रामआसरे अंकल की दुकान से सब्जी खरीदना शुरू कर दे. इस बहाने वे तुझे देखेंगे, फिर धीरेधीरे बात शुरू करना.’’

‘‘उस से क्या होगा?’’ शिवम ने पूछा.‘‘अरे यार, उन से बात तो शुरू हो जाएगी. कभीकभी कजरी खाना देने आती है, उसे देख भी लेना और मौका मिले तो बात भी कर लेना,’’ असलम ने कहा.‘‘यह आइडिया सही है,’’ शिवम खुश हुआ.उसी दिन शिवम सब्जी लेने पहुंच गया.

जानबूझ कर ज्यादा ही सब्जी खरीदी. सब्जी की तारीफ भी की.रामआसरे खुश हो गया और बोला, ‘‘बाबू साहब, सब्जी मंडी से ले कर आता हूं… ताजी हैं.’’शिवम ऐसे ही हर दूसरे दिन कुछ न कुछ सामान रामआसरे की दुकान पर लेने पहुंच जाता. आज शिवम लंच टाइम में गया, तो खुशी के मारे उछल पड़ा. वहां कजरी थी.‘‘कजरी तुम… बापू कहां गए हैं?’’

शिवम को देखते ही कजरी भी खुश हो गई. वह बोली, ‘‘बापू बैंक गए हैं. आप सब्जी लेने आए हो?’’‘‘सब्जी तो ठीक है… आज बड़े दिनों बाद मौका मिला है तुम से बात करने का. कहीं बाहर मिलो न, ढेर सारी बातें करनी हैं… अपना मोबाइल नंबर दो,’’ शिवम बोला.

‘‘मोबाइल नहीं है मेरे पास…’’ कजरी बोली, ‘‘पहले था, पर अब बापू टैंशन में रहते हैं मोबाइल और सोशल मीडिया को ले कर, इसलिए नहीं रखने देते.’’

‘‘ओह, फिर मुलाकात कैसे हो…’’ शिवम बोला.‘‘असलम से बात करना तुम, शायद वह कोई रास्ता बताए,’’ कजरी बोली.‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’

शिवम बोला और वह सब्जी खरीद कर वापस चला गया.रात को ही शिवम ने असलम को फोन पर आज की मुलाकात के बारे में बताया, फिर कजरी से बाहर मिलने के लिए मदद भी मांगी.

असलम बोला, ‘‘सोचता हूं कुछ.’’दूसरे दिन असलम ह्वाट्सएप ग्रुप पर मैसेज देख रहा था. ‘हैप्पी सावन’ के मैसेजों की भरमार थी.

अचानक उसे एक बात ध्यान आई कि 2 दिन बाद ही पीछे खाली मैदान में सावन का मेला लगता है, झूले और तमाम खानेपीने के स्टौल. कजरी को झूला झूलने का शौक है. वहीं मिलवा देगा उन दोनों को.2 दिन बाद हलकीहलकी फुहारें पड़ रही थीं.

कजरी शाहिदा और शमीम के साथ झूला झूलने वालों की कतार में खड़ी थी.सामने वाली चाय की टपरी में शिवम असलम के साथ चाय पी रहा था.

2 झूले खाली हुए ही थे. शाहिदा और शमीम आगे बढ़ी झूले में बैठने के लिए. कजरी भी बैठने की जिद करने लगी कि इतने में शिवम ने पीछे से उस के कंधे पर हाथ रख दिया.कजरी एकदम पलटी और बोली, ‘‘शिवम तुम…’’‘‘हां कजरी, चलो हम दोनों भुट्टा खाते हैं.’’

‘‘कजरी, तुम जाओ और शिवम से बात कर लो,’’ तभी असलम भी आ गया.कजरी शिवम के साथ भुट्टे के ठेले के पास चली गई.‘‘गरम भुट्टे का स्वाद नीबू और नमक के साथ बड़ा ही अच्छा लगता है… क्यों शिवम?’’‘‘बिलकुल कजरी,’’

शिवम बोला, ‘‘उतना ही नमकीन, जितना हमारा प्यार.’’

‘‘प्यार और नमकीन…?’’ कजरी हंसने लगी.

‘‘हां कजरी, जिंदगी में नमक से कभी दूर नहीं हो सकते. तुम मेरी जिंदगी का नमक हो.’

’‘‘अच्छा,’’ यह सुन कर कजरी हंस पड़ी.वे दोनों मेले में घूमते रहे और ढेर सारी बातों के बीच वक्त कब उड़ गया, पता ही नहीं चला.तभी असलम भी अपनी बहनों के साथ आ गया. उन के हाथों में भी भुट्टे थे.‘‘चलें शिवम?’’ असलम ने पूछा.‘‘ठीक है,’’

शिवम बोला.कजरी भी खुश थी इस मुलाकात से.‘‘शिवम, बापू से बात कब करोगे?’’‘‘जल्दी ही कुछ सोचते हैं,’’ शिवम बोला.असलम ने भी उन की हां में हां मिलाई.इस बात के कुछ दिन बाद असलम सुबहसुबह ही रामआसरे के घर पहुंच गया. रामआसरे घर के बाहर झाड़ू लगा रहा था. असलम जानता था कि वह सुबह घर के बरामदे की झाड़ू खुद ही लगाता है,

फिर पानी से छिड़काव करता है, तो मिट्टी की एक सौंधी सी खुशबू फैल जाती है.असलम को देखते ही रामआसरे का मूड खराब हो गया, ‘‘कहां सुबहसुबह आ टपका यह…’’‘‘नमस्ते अंकलजी,’’ असलम ने कहा.‘‘क्या हुआ? क्यों आए हो यहां?’’

रामआसरे पूछ बैठा.‘‘आप से बात करनी है, इसलिए चला आया. सुबह आप मिल जाओगे, नहीं तो सारा दिन आप को टाइम नहीं मिलेगा.’’‘‘कौन सी बात करनी है तुम्हें?’’ रामआसरे बोला.‘‘शादी की…’’ असलम इतना ही बोला था कि रामआसरे गुस्से में चिल्ला उठा, ‘‘अरी ओ शारदा, आ जा… जल्दी से देख तेरी बेटी के लक्षण…’’शारदा आवाज सुन कर दौड़ी चली आई, ‘‘क्या हुआ सुबहसुबह?’’

पर सामने असलम को देखा तो चुप हो गई.‘‘यह देखो शादी की बात करने आया है,’’ रामआसरे बोला.‘‘किस की शादी?’’ शारदा ने पूछा.‘‘कजरी की.’’असलम शांत था.‘‘अब भी बोलेगी कि तेरी लड़की कजरी ने कोई गुल नहीं खिलाया…’’ रामआसरे चिल्लाया.

‘‘अरे, पूरी बात तो सुनो कि यह क्या बोल रहा है…’’ शारदा ने कहा.‘‘अब बचा क्या है सुनने को… मैं तो बरबाद हो गया,’’ रामआसरे बोला.‘‘शांत रहो और पहले असलम की बात सुनो,’’ शारदा बोली.‘‘आंटीजी, एक लड़का है, जो कजरी से शादी करना चाहता है,’’

असलम ने अपनी बात पूरी की.‘मतलब, असलम खुद की शादी की बात नहीं करने आया…’ रामआसरे ने सोचा, फिर बोला, ‘‘तुम खुद की शादी की बात नहीं करने आए थे?’’‘‘मैं कब बोला आप को कि अपनी शादी की बात कर रहा हूं…’’‘‘अच्छाअच्छा… फिर?’’

रामआसरे उत्सुक हो गया.‘‘एक लड़का है शिवम, जो कजरी से शादी करना चाहता है. कजरी भी उसे जानती है,’’ असलम बोला.‘‘मतलब, इश्क वाला मामला है और तू बिचौलिया है. हद हो गई और हमें पता ही नहीं,’’ रामआसरे फिर गुस्साया.‘‘चुप रहो तुम…’’

शारदा बोली, ‘‘असलम, तुम आगे बोलो.’’‘‘आंटीजी, शायद आप उसे जानती होंगी…’’ असलम ने कहा.‘‘मैं कैसे जानूंगी?’’ शारदा हैरानी से बोली.‘‘मांबेटी दोनों एक…’’ रामआसरे बोला.‘‘अंकलजी, वे जो पैट्रोल पंप वाले साहब हैं न… शिवम, उन के पैट्रोल पंप पर काम करता है.’’

‘‘अच्छा… उस का कोई फोटो है?’’ शारदा बोली.‘‘हां आंटीजी,’’ कहते हुए असलम ने मोबाइल में फोटो दिखाया.शारदा ने जैसे ही फोटो देखा तो वह खुशी से चिल्ला पड़ी, ‘‘यह शिवम है…’’‘‘तू जानती है इसे?’’ रामआसरे ने बोलते हुए फोटो पर ध्यान से नजर दौड़ाई.

‘‘हां, कई बार देखा है. बंगले पर काम से आताजाता है. बड़ी पूजा में भी देखा था. नाम नहीं जानती थी,’’ शारदा के चेहरे से खुशी छलक पड़ रही थी.‘‘कजरी… ओ कजरी…’’ शारदा ने आवाज लगाई, पर कजरी कब से दरवाजे पर खड़ी थी और उन की बातें सुन रही थी.

‘‘कजरी, तू इस लड़के को जानती है?’’ रामआसरे ने पूछा.‘‘हां बापू, जानती हूं,’’ कजरी ने जवाब दिया.‘‘तू इसे पसंद करती है?’’ शारदा बोली.‘‘हां मां…’’ कहते हुए कजरी ने मां की पीठ में सिर छिपा लिया.रामआसरे खुश हो गया, फिर वह असलम से बोला,

‘‘बेटा, बाप हूं न… डर जाता हूं कि कहीं कुछ गलत न हो जाए…’’‘‘अंकलजी, कोई बात नहीं. माहौल ही ऐसा है.’’शारदा बोली, ‘‘साहब, लोगों के लिए मिठाई ले कर जाऊंगी आज.’’‘‘हम दोनों साथ चलेंगे,’’ रामआसरे बोला.‘‘और मेरी मिठाई अंकलजी?’’

असलम बोला.‘‘तेरी कोई मिठाई नहीं. मिठाई का डब्बा ले कर आ रहा हूं तेरे घर. शकील से बोलना कि जर्दा पुलाव खाए बहुत दिन हो गए हैं,’’ कह कर रामआसरे हंसने लगा. Hindi Family Story

Best Hindi Kahani: दागी कंगन – कालगर्ल मुन्नी की दास्तान

Best Hindi Kahani: ‘‘मुन्नी, तुम यहां पर कैसे?’’ ये शब्द कान में पड़ते ही मुन्नी ने अपनी गहरी काजल भरी निगाहों से उस शख्स को गौर से देखा और अचानक ही उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘निहाल भैया…’’

वह शख्स हामी भरते हुए बोला, ‘‘हां, मैं निहाल.’’

‘‘लेकिन भैया, आप यहां कैसे?’’

‘‘यही सवाल तो मैं तुम से पूछ रहा हूं कि मुन्नी तुम यहां कैसे?’’

अपनी आंखों में आए आंसुओं के सैलाब को रोकते हुए मुन्नी, जिस का असली नाम मेनका था, बोली, ‘‘जाने दीजिए भैया, क्या करेंगे आप जान कर. चलिए, मैं आप को किसी और लड़की से मिलवा देती हूं. मुझ से तो आप के लिए यह काम नहीं होगा.’’

‘‘नहीं मुन्नी, मैं हकीकत जाने बगैर यहां से नहीं जाऊंगा. आखिर तुम यहां आई कैसे? तुम्हें मालूम है कि तुम्हारा भाई राकेश और तुम्हारे मम्मीपापा कितने दुखी हैं?

‘‘वे सब तुम्हें ढूंढ़ढूंढ़ कर हार गए हैं. पुलिस में रिपोर्ट की, जगहजगह के अखबारों में तुम्हारी गुमशुदगी के बारे में खबर दी, लेकिन तुम्हारा कुछ पता ही नहीं चला.

‘‘और आज… जब इतने बरसों बाद तुम मिली, तो इन हालात में… एक कालगर्ल के रूप में.

‘‘मुन्नी, सचसच बताओ, तुम यहां कैसे पहुंची. हमें तो लगा कि तुम प्रकाश, वह तुम्हारा प्रेमी, के साथ भाग गई?थी.

‘‘कितनी पूछताछ की राकेश ने उस से तुम्हारे लिए, लेकिन वह तो कुछ दिनों के लिए खुद ही नदारद था.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं निहाल भैया, लेकिन अब सच जान कर भी क्या फायदा सब मेरी ही तो गलती है, सो सजा भुगत रही हूं.’’

‘‘नहीं मुन्नी, ऐसा मत कहो. तुम मुझे सच बताओ.’’

मुन्नी कहने लगी, ‘‘भैया, आप ने जो सुना था, सच ही था. मैं और प्रकाश एकदूसरे को प्यार करते थे. वह मेरे कालेज का दोस्त था. आप को याद होगा कि हम दोनों कालेज से एक फील्ड ट्रिप के लिए शहर से बाहर गए थे. वहीं पर हमारे मन में प्यार के अंकुर फूटे और धीरेधीरे हमारा प्यार परवान चढ़ गया था.

‘‘कालेज की पढ़ाई पूरी होतेहोते हमा घर में मेरी सगाई की बातें चलने लगी थीं. मैं ने पापामम्मी को जैसे ही प्रकाश के बारे में बताया, वे आगबबूला हो उठे. मुझे लगा कि कहीं वे लोग मेरी शादी जबरदस्ती किसी और से न करा दें. सो, मैं ने सारी बात प्रकाश को बताई.

‘‘प्रकाश ने मुझे भरोसा दिलाया और कहा, ‘मेनका, ऐसा कुछ नहीं होगा. मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें अपने से अलग नहीं होने दूंगा. बस, तुम मुझ पर?भरोसा रखो.’

‘‘मुझे उस पर पूरा भरोसा था. अब मैं घर में होने वाली हर बात उसे बताने लगी थी. और जैसे ही मुझे लगा कि पापामम्मी मेरी मरजी के खिलाफ शादी तय करने जा रहे हैं, मैं ने प्रकाश को सब बता दिया.

‘‘उसी शाम वह मुझ से मिला. मैं खूब रोई और बोली, ‘मुझे कहीं भगाकर ले चलो प्रकाश, वरना मैं किसी और की हो जाऊंगी और हम हमेशा के लए बिछड़ जाएंगे.’

‘‘प्रकाश ने कहा, ‘मैं अपने घर में बात करता हूं मेनका, तुम बिलकुल चिंता मत करो.’

‘‘अगले ही दिन प्रकाश मेरे लिए अपनी मम्मी के दिए कंगन ले कर आया और बड़े ही अपनेपन से बोला, ‘मेनका, यह मां का आशीर्वाद है हमारे लिए. वे तो तुम्हें बहू बनाने के लिए राजी हैं, पर पिताजी नहीं मान रहे?हैं. सो, हम दोनों घर से भाग जाते?हैं.’

‘‘मैं ने पूछा, ‘लेकिन, हम भाग कर जाएंगे कहां?’

‘‘वह बोला, ‘वैसे तो हमारे पास कोई ठिकाना नहीं है, लेकिन वाराणसी में मेरा एक दोस्त रहता है. मैं ने उस से बात की है. वह वहां नौकरी करता है. हम उसी के पास चलेंगे. वह अपनी ही कंपनी में मेरे लिए नौकरी का इंतजाम भी कर देगा.’

‘‘प्रकाश ने यह भी समझाया, ‘हम वहां रजिस्टर्ड शादी कर लेंगे और फिर अपने घर का इंतजाम भी वहीं कर लेंगे. शायद कुछ समय में हमारे मम्मीपापा भी इस शादी को रजामंदी दे दें.’

‘‘मुझे उस की बातों में सचाई नजर आई और मैं ने उस के साथ भाग जाने का फैसला कर लिया.

‘‘अगले ही दिन मैं घर से कुछ कपड़े व रुपए ले कर रेलवे स्टेशन पहुंच गई.

‘‘हम दोनों प्रकाश के दोस्त के घर पहुंचे और वहां 2 दिन में ही प्रकाश ने नौकरी शुरू कर दी.

‘‘5 दिन बाद उस का दोस्त मुझ से बोला, ‘भाभी, प्रकाश ने आप को बाहर कहीं बुलाया है. आप तैयार हो जाइए. मैं आप को वहां ले चलता हूं.’

‘‘एक बार तो मुझे लगा कि प्रकाश ने मुझे क्यों नहीं बताया, पर अगले ही पल मैं उस के दोस्त के साथ चली गई. मैं जहां पहुंची, वहां प्रकाश पहले से ही मौजूद था.

‘‘उस ने मुझे एक आंटी से मिलवाया और बोला, ‘जिस कंपनी में मैं काम करता हूं, ये उस की मालकिन हैं.’

‘‘वे आंटी भी मुझ से बड़े प्यार से मिलीं. कुछ देर बाद प्रकाश बोला, ‘मेनका, मैं कुछ देर के लिए बाहर हो कर आता हूं, तब तक तुम यहीं रहो.’

‘‘एक बार को मुझे घबराहट हुई, पर आंटी की प्यार भरी छुअन में मुझे मां का रूप नजर आया, सो मैं वहां रुक गई. उस के बाद मेरी जिंदगी में जैसे तूफान आ गया. मुझे एक ही रात में समझ आ गया कि प्रकाश मुझे थोड़े से रुपयों के लालच में उन आंटी के हाथों बेच गया था.

‘‘अब हर रात अलगअलग तरह के ग्राहक आने लगे. मैं ने आंटी के खूब हाथपैर जोड़े और रोरो कर कहा, ‘आंटी प्लीज मुझे जाने दीजिए, मैं भले घर की लड़की हूं. मेरे मम्मीपापा, भाई क्या सोचेंगे मेरे बारे में.’

‘‘लेकिन, आंटी ने मेरी एक न सुनी. पहले 2 लड़कों ने मेरा बलात्कार किया और मुझे कई दिन तक भूखा रखा गया. जब मैं मानी, तब खाना दिया गया और इलाज भी कराया गया. सब लड़कियों ने कहा कि इन की बात मान जाओ, क्योंकि बाहर तो अब कोई अपनाएगा ही नहीं. मैं रोज सजधज कर तैयार होने लगी.

‘‘लेकिन, मुझे बारबार अपने किए पर पछतावा होता. एक बार वहां से भागने की कोशिश भी की, पर पकड़ी गई. उस रात आंटी ने मेरी खूब पिटाई की और उन के दलाल भूखे भेडि़यों की तरह मेरे ऊपर टूट पड़े.

‘‘वहां की एक लड़की प्रिया ने मुझे समझाया, ‘मेनका, अब तुम्हारे पास इस नरक से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं?है. तुम्हारे साथ कितनी बार तो आंटी के आदमियों ने गैंगरेप किया, तुम्हें क्या हासिल हुआ? इस से तो ग्राहकों की भूख मिटाओगी, कम से कम पैसे तो मिलेंगे. समझौता करने में ही समझदारी है.’

‘‘उस समय मुझे प्रिया की बात ठीक ही लगी और मैं ने अपनेआप को आंटी को सौंप दिया. आंटी बहुत खुश हुईं और मुझे प्यार से रखने लगीं. बस, तब से मेरी ग्राहक को पटाने की ट्रेनिंग शुरू हुई.

‘मुझे दूसरी औरतों के साथ रात के समय सजधज कर भेज दिया जाता. सड़क के किनारे खड़ी हो कर दूसरी लड़कियां अपनी अदाओं से आतेजाते मर्दों को रिझातीं. मैं उन्हें देख कर दंग रह जाती. हर कोई मोटा मुरगा फंसाने की फिराक में रहती.’’

मेनका की बात सुन कर निहाल ने थोड़ा गुस्से में पूछा, ‘‘तुम जब बाहर निकली, तो रात के समय वहां से भाग क्यों नहीं गई?’’

‘‘कैसी बातें करते हैं भैया आप. इतना आसान होता, तो क्या मैं इस धंधे में टिकी रहती? आंटी के दलाल पूरी चौकसी रखते हैं हम पर.’’ मेनका की कहानी सुन कर निहाल की आंखों से आंसू बह निकले.

मेनका आगे बताने लगी, ‘‘दूसरी लड़कियों के साथ मैं भी धीरेधीरे ग्राहक पटाने की ट्रेनिंग ले चुकी थी. शुरू में तो ग्राहक पटाना भी बहुत बुरा लगता था. रात के समय सड़क पर घटिया हरकतें कर अपने अंग दिखा कर उन्हें पटाना पड़ता था.

‘‘उस पर भी लड़कियों में आपस में होड़ मची रहती थी. मैं किसी ग्राहक को जैसेतैसे पटाती, तो रास्ते से ही दूसरी लड़कियां कम पैसों में उसे खींच ले जातीं.

‘‘भैया, मैं नई थी. मुझ से ग्राहक पटते ही नहींथे, तो आंटी बहुत नाराज होतीं. सड़क पर ग्राहक ढूंढ़ने के लिए खड़ी होती, तो लोगों की लालची मुसकान देख कर मेरा दिल दहल जाता. जब कोई पास आ कर बात करता, तो डर के मारे दिल की धड़कनें बढ़ जातीं. कोईकोई तो मेरे पूरे बदन को छू कर भी देखता.

‘‘बस, इतना ही  और उस के लिए तुम्हारी देह का सौदा हर रात होता है,’’ निहाल ने कहा. उस की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे, जिन्हें रोकने की वह नाकाम कोशिश कर रहा था.

‘‘बहुत बुरा हाल था भैया. एक बार एक आदमी बहुत नशे में था. मुझे उस के मुंह से आती शराब की बदबू बरदाश्त नहीं हुई और मैं ने उस से अपना मुंह फेर लिया. वह मुझे गाली देते हुए बोला, ‘तू खुद क्या दूध की धुली है?’

‘‘और उस ने मुझे पूरे बदन पर सारी रात दांतों से काट डाला. मैं बहुत रोई, चीखीचिल्लाई, पर कोई मेरी मदद को न आया.

‘‘अगले दिन आंटी ने चमड़ी उधेड़ दी और बोली, ‘हर ग्राहक को नाराज कर देती है. तेरे प्रेमी को ऐसा क्या दिखा था तुझ में क्या सुख देती तू उस को इसीलिए शायद यहां सड़ने को पटक गया तुझे.’

‘‘यह सब सुन कर मुझे बहुत बुरा लगा. मैं ने सोच लिया कि अब काम करूंगी, तो ठीक से.’’

‘‘फिर तुम वाराणसी से मुंबई कैसे पहुंच गई मुन्नी?’’ निहाल ने पूछा.

‘‘वाराणसी छोटा सा शहर है. लोग पैसा कम देते हैं. ऊपर से कई तरह की छूत की बीमारियां हमें दे जाते हैं. जो पैसे मिलते, वे बीमारियों पर ही खर्च हो जाते.

‘‘एक बार मुंबई की कुछ लड़कियां हमें ट्रेनिंग देने आईं, तो मैं ने उन से कहा कि मुझे भी मुंबई ले चलिए. कम से कम बड़े शहर के लोग रकम तो अच्छी देंगे. मैं थोड़ी पढ़ीलिखी हूं और अंगरेजी भी बोलती हूं, इसलिए उन्हें मैं मुंबई के लायक लगी. सो, मुझे यहां भेज दिया. बस, तब से मैं ने इसे अपने कारोबार की तरह अपना लिया.

‘‘कई बार रेड पड़ी. थाने भी गई. शुरू में डरती थी, लेकिन अब मन को मजबूत कर लिया. अब कोई डर नहीं. जब तक जिंदगी है, इसी नरक में जीती रहूंगी. अब तो ग्राहक भी सोशल मीडिया और ह्वाट्सऐप पर मिल जाते हैं. कोडवर्ड होता है, जिस से हमारे दलाल बात करते हैं,’’ और वह ठहाका लगा कर हंस पड़ी. निहाल मेनका के चेहरे पर ढिठाई की हंसी पढ़ चुका था, फिर भी उस ने पूछा, ‘‘निकलना चाहती हो इस नरक से?’’

वह बोली, ‘‘कौन निकालेगा भैया… आप और उस के बाद कहां जाऊंगी? अपने मम्मीपापा के घर या आप के घर? कौन अपनाएगा मुझे?

‘‘निहाल भैया, अब तो मेरी अर्थी इन गंदी गलियों से ही उठेगी,’’ वह बोली और फिर जोर से ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

‘‘भैया, मेरी तो सारी बातें पूछ लीं, पर आप ने अपनी नहीं बताई कि आज आप यहां कैसे? आप की शादी हुई या नहीं? आप तो बहुत नेक इनसान हुआ करते थे, फिर यहां कैसे?’’ मेनका ने पूछा.

‘‘पूछो मत मुन्नी, मेरी पत्नी किसी और के साथ संबंध रखती है. मुझे तो जैसे नकार ही दिया है. 2 बच्चे भी हैं. मन तो उन के साथ लगा लेता हूं, पर तुम से कैसे कहूं? तन की भूख मिटाने यहां चला आता हूं कभीकभी.

‘‘मुझे नहीं मालूम था कि आज इस जगह तुम से मिलना होगा. सच पूछो तो समझ नहीं आ रहा है कि आज मैं तुम्हें गलत समझूं या सही.

‘‘तुम जैसी न जाने कितनी लड़कियां हम मर्दों को सुख देती हैं और हमारे घर टूटने से बचाती हैं. हम मर्द तो एक रात का सुख ले कर खुश हो जाते हैं. पर हमारे चलते मजबूरी की मारी लड़कियां अपनी जिंदगी को इस नरक में जीने के लिए मजबूर होती हैं और इन बंद गलियों में कीड़ेमकौड़े की जिंदगी जीती?हैं.

‘‘मुझे माफ करो मुन्नी, यह लो तुम्हारी एक रात की कीमत,’’ इतना कह कर निहाल ने मुन्नी की तरफ पैसे बढ़ा दिए.

मेनका ने कहा, ‘‘भैया, मेरा दर्द बांटने के लिए शुक्रिया, पर किसी को घर में न बताना कि मैं यहां हूं. मेरे मम्मीपापा और भाई मुझे गुमशुदा ही समझ कर जीते रहें तो अच्छा, वरना वे तो जीतेजी मर जाएंगे. और इस रात की कोई कीमत नहीं लूंगी आप से.

‘‘आज आप ने मेरा दर्द बांटा है, किसी दिन शायद मैं आप का दर्द बांट सकूं. अपनी बहन समझ कर आना चाहें तो फिर आ जाइए कभी.’’ सुबह होने को थी. निहाल चुपचाप वहां से उठ कर अपने घर आ गया. Best Hindi Kahani

Hindi Funny Story: शोरूम का उद्घाटन

Hindi Funny Story: प्यारेलालजी मेरे बड़े अच्छे दोस्त हैं. उन की एक नई जूते की दुकान का आज सुबह उद्घाटन है. पूरे शहर में ‘प्यारे बूट हाउस’ के एक दर्जन से ज्यादा शोरूम हैं. प्यारेलालजी ने जूतेचप्पलों में जो तरक्की की, वह शायद देश की नामी कंपनियों ने भी नहीं की होगी.

प्यारेलालजी के शोरूम में बड़ेबड़े कवि, मंत्री, विधायक, सांसद आने में गर्व महसूस करते हैं, लेकिन उन्होंने एक आम आदमी की पसंद का भी ध्यान रखा है, जैसे रबड़ की चप्पलें भी वहां मिल जाती हैं.

प्यारेलालजी किसी जमाने में बहुत अमीर नहीं थे, लेकिन अपने गरीब बापू की गरीबी पर मन ही मन दुखी
रहते थे.

आज तो नए शोरूम का उद्घाटन करने के लिए उन्होंने एक फिल्मी हीरोइन को बुलवाया था, जो आड़ीतिरछी हो कर हाथों में सैंडल लिए खड़ी थी. उस को देखने के लिए हजारों लोग जमा हो गए थे. उस ने जब हवा में चुंबन फेंके, तो हजारों ने धड़ाधड़ हवाई चप्पलें खरीद लीं.

मैं भी वहां मौजूद था, लेकिन मु झ पर उस ने एक नजर भी नहीं डाली और हम दिल में अपने आ रहे बुढ़ापे को कोसते रहे.

पूरे कार्यक्रम को होतेसमेटते हुए दोपहर बीत गई. हम प्यारेलालजी के साथ बैठे थे. वे कुछ ठंडागरम कहने गए, तो हम प्यारेलालजी की पुरानी यादों में खो गए.

अपने बापू की गरीबी से प्यारेलालजी बड़े दुखी थे. बापू मजदूरी करते थे. पैरों में कांटे गड़ते, धूप लगती, पत्थर चुभते, लेकिन कभी उफ नहीं की थी.

प्यारेलालजी के बापू का एक ही मकसद था कि उन का प्यारे पढ़ जाए, बढ़ जाए, जबकि प्यारेलाल की एक ही इच्छा थी, ‘पढ़लिख कर क्यों जिंदगी बरबाद करूं? ऐसा धंधा शुरू करूं, जिस से जिंदगी मजे से कटे.’

इस बीच प्यारेलालजी आ चुके थे. मु झे कहीं खोया देख वे कह उठे, ‘‘क्यों रे गप्पू, क्या सोच रहा है?’’

‘‘यार, तेरी जिंदगी के ऊंचे हो चुके ग्राफ के बारे में सोच रहा था.’’

‘‘ऐसा मैं ने क्या कर दिया?’’

‘‘आज से 30 साल पहले तेरे पास कुछ नहीं था, पर आज सबकुछ है. दुकानें, शोरूम, हीरोइन…’’

‘‘लेकिन बापू नहीं हैं,’’ उस ने दुखी लहजे में कहा.

‘‘वह तो सच है, पर आज आप हीरोइन के साथ बढि़या लग रहे थे,’’ मैं ने चुटकी ली.

‘‘पूरे 10 लाख रुपए लिए उस ने एक घंटे के लिए.’’

‘‘10 लाख…’’ मैं ने तकरीबन चीखते हुए पूछा.

‘‘हां यार, वसूल भी हो गए.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘पूरे 2 लाख रुपए की चप्पलें बिक गईं और 8 लाख रुपए का फोकट में इश्तिहार भी हो गया,’’ प्यारेलालजी ने बाजार को पकड़ते हुए कहा.

‘‘प्यारे, ये जूतेचप्पल का आइडिया बापू को तू ने कैसे दिया? आखिर इस के पीछे का राज क्या था? थोड़ा बता तो?’’

प्यारेलालजी ने आंख मारी, फिर कहने लगा, ‘‘कहीं तू नई दुकान तो नहीं खोल लेगा…’’

‘‘बिलकुल नहीं, लेकिन तू बता तो.’’

प्यारेलालजी ने दाएंबाएं देखा और कहना शुरू किया, ‘‘तू तो जानता था कि मैं बापू की गरीबी से परेशान था. मैं ने सोचा कि क्यों न ऐसा काम करूं, जिस से मैं अमीर भी हो जाऊं और पैसा भी न लगे.’’

‘‘तो फिर क्या हुआ?’’

‘‘होना क्या था. एक दिन दिमाग में एक आइडिया आया. एक जगह शादी हो रही थी, मैं वहां से एक दर्जन जूतेचप्पल चुरा लाया.’’

‘‘चोरी की…’’

‘‘तू सुन तो…’’

‘‘वहां लोगों ने खूब गालियां दीं. मेरा मन उदास हो गया.’’

‘‘फिर…’’

‘‘फिर क्या, मैं ने दूसरी जगह शादी का घर खोजा. वहां पर खाना खाने के पहले उतारे गए जूतेचप्पलों में से हर जोड़ी का एकएक जूताचप्पल ले आया.

‘‘जब खाने के बाद लोग बाहर निकले, तो उन्हें वह रिश्तेदारों की शरारत लगी. लिहाजा, वे एकएक जूतेचप्पल को वहीं छोड़ कर चले गए. मैं उन्हें भी उठा लाया. खालिस मुनाफा था…’’

‘‘फिर क्या किया?’’

‘‘मेरा हौसला बढ़ गया. मैं ने मंदिरमसजिदों, पार्टियों, शादियों वगैरह में जाना शुरू कर दिया और मौका देख कर हर जोड़ी का एकएक जूता या चप्पल उठा कर गायब हो जाता था.

‘‘जूतेचप्पल वाले आखिर में मेरे लिए दूसरा जूता या चप्पल और छोड़ जाते थे.

देखते ही देखते घर में जूतेचप्पलों का ढेर लग गया था. उन्हें साफ और पौलिश कर के सस्ते जूतेचप्पलों की दुकान की तर्ज पर मैं ने घर से ही जूतेचप्पल बेचने शुरू कर दिए.’’

‘‘फिर…’’

‘‘मेरी सब से ज्यादा मदद की मंत्रियों और कवियों ने.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि उन कवियों और नेताओं की मीटिंग में सब से ज्यादा जूतेचप्पल फेंके जाते थे, जो अपने काम में आने लगे. इस के अलावा बाबाओं ने भी बहुत सहयोग दिया.’’

‘‘क्या मतलब…?’’

‘‘उन की सभा के बाहर स्वयंसेवक बन कर जूतेचप्पल चुरा लो या फिर वहां भगदड़ मचने पर कईकई दर्जन जूतेचप्पल मुफ्त में मिल जाते हैं.

‘‘दोस्त, बस इन्हीं जूतेचप्पलों की बदौलत मैं ने जूतेचप्पल बेचने का धंधा शुरू किया.

‘‘हमारे पूरे इलाके में डेढ़ सौ प्रतिनिधि हैं, जो जूतेचप्पल इकट्ठा करने का काम करते हैं. एक दर्जन कारीगर जूतेचप्पल ठीक करने का काम करते हैं और आज पूरे शहर में कोई हम से होड़ नहीं कर सकता है,’’ प्यारेलालजी ने अकड़ से कहा.

‘‘बिलकुल नहीं यार, लेकिन अगले शोरूम के उद्घाटन में तुम जिस खास शख्स को बुलाओ, उस का एक फोटो मेरे साथ जरूर खिंचवा देना.’’

‘‘जरूर, पर एक वादे के साथ.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘यह अंदर की बात किसी से न कहना. अपने तक ही रखना, वरना कहीं जनता, मंत्री, श्रद्धालु और नमाजी जूते पहनना ही न छोड़ दें. मेरा धंधा चौपट हो जाएगा.’’

‘‘वचन देता हूं कि मैं यह बात किसी से नहीं कहूंगा,’’ यह कह कर मैं घर लौट आया.

चूंकि मैं ने यह वादा किसी से न कहने का किया था, लिख कर बताने का नहीं. सो, मैं ने यह बात आप को लिख कर बता दी. Hindi Funny Story

Family Story In Hindi: मैं हूं न – भाभी ने कैसे की ननद की मदद

Family Story In Hindi: लड़के वाले मेरी ननद को देख कर जा चुके थे. उन के चेहरों से हमेशा की तरह नकारात्मक प्रतिक्रिया ही देखने को मिली थी. कोई कमी नहीं थी उन में. पढ़ी लिखी, कमाऊ, अच्छी कदकाठी की. नैननक्श भी अच्छे ही कहे जाएंगे. रंग ही तो सांवला है. नकारात्मक उत्तर मिलने पर सब यही सोच कर संतोष कर लेते कि जब कुदरत चाहेगी तभी रिश्ता तय होगा. लेकिन दीदी बेचारी बुझ सी जाती थीं. उम्र भी तो कोई चीज होती है.

‘इस मई को दीदी पूरी 30 की हो चुकी हैं. ज्योंज्यों उम्र बढ़ेगी त्योंत्यों रिश्ता मिलना और कठिन हो जाएगा,’ सोचसोच कर मेरे सासससुर को रातरात भर नींद नहीं आती थी. लेकिन जिसतिस से भी तो संबंध नहीं जोड़ा जा सकता न. कम से कम मानसिक स्तर तो मिलना ही चाहिए. एक सांवले रंग के कारण उसे विवाह कर के कुएं में तो नहीं धकेल सकते, सोच कर सासससुर अपने मन को समझाते रहते.

मेरे पति रवि, दीदी से साल भर छोटे थे. लेकिन जब दीदी का रिश्ता किसी तरह भी होने में नहीं आ रहा था, तो मेरे सासससुर को बेटे रवि का विवाह करना पड़ा. था भी तो हमारा प्रेमविवाह. मेरे परिवार वाले भी मेरे विवाह को ले कर अपनेआप को असुरक्षित महसूस कर रहे थे. उन्होंने भी जोर दिया तो उन्हें मानना पड़ा. आखिर कब तक इंतजार करते.

मेरे पति रवि अपनी दीदी को बहुत प्यार करते थे. आखिर क्यों नहीं करते, थीं भी तो बहुत अच्छी, पढ़ीलिखी और इतनी ऊंची पोस्ट पर कि घर में सभी उन का बहुत सम्मान करते थे. रवि ने मुझे विवाह के तुरंत बाद ही समझा दिया था उन्हें कभी यह महसूस न होने दूं कि वे इस घर पर बोझ हैं. उन के सम्मान को कभी ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए, इसलिए कोई भी निर्णय लेते समय सब से पहले उन से सलाह ली जाती थी. वे भी हमारा बहुत खयाल रखती थीं. मैं अपनी मां की इकलौती बेटी थी, इसलिए उन को पा कर मुझे लगा जैसे मुझे बड़ी बहन मिल गई हैं.

एक बार रवि औफिस टूअर पर गए थे. रात काफी हो चुकी थी. सासससुर भी गहरी नींद में सो गए थे. लेकिन दीदी अभी औफिस से नहीं लौटी थीं. चिंता के कारण मुझे नींद नहीं आ रही थी. तभी कार के हौर्न की आवाज सुनाई दी. मैं ने खिड़की से झांक कर देखा, दीदी कार से उतर रही थीं. उन की बगल में कोई पुरुष बैठा था. कुछ अजीब सा लगा कि हमेशा तो औफिस की कैब उन्हें छोड़ने आती थी, आज कैब के स्थान पर कार में उन्हें कौन छोड़ने आया है.

मुझे जागता देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘सोई नहीं अभी तक?’’

‘‘आप का इंतजार कर रही थी. आप के घर लौटने से पहले मुझे नींद कैसे आ सकती है, मेरी अच्छी दीदी?’’ मैं ने उन के गले में बांहें डालते हुए उन के चेहरे पर खोजी नजर डालते हुए कहा, ‘‘आप के लिए खाना लगा दूं?’’

‘‘नहीं, आज औफिस में ही खा लिया था. अब तू जा कर सो.’’

‘‘गुड नाइट दीदी,’’ मैं ने कहा और सोने चली गई. लेकिन आंखों में नींद कहां?

दिमाग में विचार आने लगे कि कोई तो बात है. पिछले कुछ दिनों से दीदी कुछ परेशान और खोईखोई सी रहती हैं. औफिस की समस्या होती तो वे घर में अवश्य बतातीं. कुछ तो ऐसा है, जो अपने भाई, जो भाई कम और मित्र अधिक है से साझा नहीं करती और आज इतनी रात को देर से आना, वह भी किसी पुरुष के साथ, जरूर कुछ दाल में काला है. इसी पुरुष से विवाह करना चाहतीं तो पूरा परिवार जान कर बहुत खुश होता. सब उन के सुख के लिए, उन की पसंद के किसी भी पुरुष को स्वीकार करने में तनिक भी देर नहीं लगाएंगे, इतना तो मैं अपने विवाह के बाद जान गई हूं. लेकिन बात कुछ और ही है जिसे वे बता नहीं रही हैं, लेकिन मैं इस की तह में जा कर ही रहूंगी, मैं ने मन ही मन तय किया और फिर गहरी नींद की गोद में चली गई.

सुबह 6 बजे आंख खुली तो देखा दीदी औफिस के लिए तैयार हो रही थीं. मैं ने कहा, ‘‘क्या बात है दीदी, आज जल्दी…’’

मेरी बात पूरी होने हो पहले से वे बोलीं,  ‘‘हां, आज जरूरी मीटिंग है, इसलिए जल्दी जाना है. नाश्ता भी औफिस में कर लूंगी…देर हो रही है बाय…’’

मेरे कुछ बोलने से पहले ही वे तीर की तरह घर से निकल गईं. बाहर जा कर देखा वही गाड़ी थी. इस से पहले कि ड्राइवर को पहचानूं वह फुर्र से निकल गईं. अब तो मुझे पक्का यकीन हो गया कि अवश्य दीदी किसी गलत पुरुष के चंगुल में फंस गई हैं. हो न हो वह विवाहित है. मुझे कुछ जल्दी करना होगा, लेकिन घर में बिना किसी को बताए, वरना वे अपने को बहुत अपमानित महसूस करेंगी.

रात को वही व्यक्ति दीदी को छोड़ने आया. आज उस की शक्ल की थोड़ी सी झलक

देखने को मिली थी, क्योंकि मैं पहले से ही घात लगाए बैठी थी. सासससुर ने जब देर से आने का कारण पूछा तो बिना रुके अपने कमरे की ओर जाते हुए थके स्वर में बोलीं, ‘‘औफिस में मीटिंग थी, थक गई हूं, सोने जा रही हूं.’’

‘‘आजकल क्या हो गया है इस लड़की को, बिना खाए सो जाती है. छोड़ दे ऐसी नौकरी, हमें नहीं चाहिए. न खाने का ठिकाना न सोने का,’’ मां बड़बड़ाने लगीं, तो मैं ने उन्हें शांत कराया कि चिंता न करें. मैं उन का खाना उन के कमरे में पहुंचा दूंगी. वे निश्चिंत हो कर सो जाएं.

मैं खाना ले कर उन के कमरे में गई तो देखा वे फोन पर किसी से बातें कर रही थीं. मुझे देखते ही फोन काट दिया. मेरे अनुरोध करने पर उन्होंने थोड़ा सा खाया. खाना खाते हुए मैं ने पाया कि पहले के विपरीत वे अपनी आंखें चुराते हुए खाने को जैसे निगल रही थीं. कुछ भी पूछना उचित नहीं लगा. उन के बरतन उन के लाख मना करने पर भी उठा कर लौट आई.

2 दिन बाद रवि लौटने वाले थे. मैं अपनी सास से शौपिंग का बहाना कर के घर से सीधी दीदी के औफिस पहुंच गई. मुझे अचानक आया देख कर एक बार तो वे घबरा गईं कि ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि मुझे औफिस आना पड़ा.

मैं ने उन के चेहरे के भाव भांपते हुए कहा, ‘‘अरे दीदी, कोई खास बात नहीं. यहां मैं कुछ काम से आई थी. सोचा आप से मिलती चलूं. आजकल आप घर देर से आती हैं, इसलिए आप से मिलना ही कहां हो पाता है…चलो न दीदी आज औफिस से छुट्टि ले लो. घर चलते हैं.’’

‘‘नहीं बहुत काम है, बौस छुट्टी नहीं देगा…’’

‘‘पूछ कर तो देखो, शायद मिल जाए.’’

‘‘अच्छा कोशिश करती हूं,’’ कह उन्होंने जबरदस्ती मुसकराने की कोशिश की. फिर बौस के कमरे में चली गईं.

बौस के औफिस से निकलीं तो वह भी उन के साथ था, ‘‘अरे यह तो वही आदमी

है, जो दीदी को छोड़ने आता है,’’ मेरे मुंह से बेसाख्ता निकला. मैं ने चारों ओर नजर डाली. अच्छा हुआ आसपास कोई नहीं था. दीदी को इजाजत मिल गई थी. उन का बौस उन्हें बाहर तक छोड़ने आया. इस का मुझे कोई औचित्य नहीं लगा. मैं ने उन को कुरेदने के लिए कहा, ‘‘वाह दीदी, बड़ी शान है आप की. आप का बौस आप को बाहर तक छोड़ने आया. औफिस के सभी लोगों को आप से ईर्ष्या होती होगी.’’

दीदी फीकी सी हंसी हंस दीं, कुछ बोलीं नहीं. सास भी दीदी को जल्दी आया देख कर बहुत खुश हुईं.

रात को सभी गहरी नींद सो रहे थे कि अचानक दीदी के कमरे से उलटियां करने की आवाजें आने लगीं. मैं उन के कमरे की तरफ लपकी. वे कुरसी पर निढाल पड़ी थीं. मैं ने उन के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘क्या बात है दीदी? ऐसा तो हम ने कुछ खाया नहीं कि आप को नुकसान करे फिर बदहजमी कैसे हो गई आप को?’’

फिर अचानक मेरा माथा ठकना कि कहीं दीदी…मैं ने उन के दोनों कंधे हिलाते हुए कहा, ‘‘दीदी कहीं आप का बौस… सच बताओ दीदी…इसीलिए आप इतनी सुस्त…बताओ न दीदी, मुझ से कुछ मत छिपाइए. मैं किसी को नहीं बताऊंगी. मेरा विश्वास करो.’’

मेरा प्यार भरा स्पर्श पा कर और सांत्वना भरे शब्द सुन कर वे मुझ से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगीं और सकारात्मकता में सिर हिलाने लगीं. मैं सकते में आ गई कि कहीं ऐसी स्थिति न हो गई हो कि अबौर्शन भी न करवाया जा सके. मैं ने कहा, ‘‘दीदी, आप बिलकुल न घबराएं, मैं आप की पूरी मदद करूंगी. बस आप सारी बात मुझे सुना दीजिए…जरूर उस ने आप को धोखा दिया है.’’

दीदी ने धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘ये बौस नए नए ट्रांसफर हो कर मेरे औफिस में आए थे. आते ही उन्होंने मेरे में रुचि लेनी शुरू कर दी और एक दिन बोले कि उन की पत्नी की मृत्यु 2 साल पहले ही हुई है. घर उन को खाने को दौड़ता है, अकेलेपन से घबरा गए हैं, क्या मैं उन के जीवन के खालीपन को भरना चाहूंगी? मैं ने सोचा शादी तो मुझे करनी ही है, इसलिए मैं ने उन के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी. मैं ने उन से कहा कि वे मेरे मम्मी पापा से मिल लें. उन्होंने कहा कि ठीक हूं, वे जल्दी घर आएंगे. मैं बहुत खुश थी कि चलो मेरी शादी को ले कर घर में सब बहुत परेशान हैं, सब उन से मिल कर बहुत खुश होंगे. एक दिन उन्होंने मुझे अपने घर पर आमंत्रित किया कि शादी से पहले मैं उन का घर तो देख लूं, जिस में मुझे भविष्य में रहना है. मैं उन की बातों में आ गई और उन के साथ उन के घर चली

गई. वहां उन के चेहरे से उन का बनावटी मुखौटा उतर गया. उन्होंने मेरे साथ बलात्कार किया और धमकी दी कि यदि मैं ने किसी को बताया तो उन के कैमरे में मेरे ऐसे फोटो हैं, जिन्हें देख कर मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी. होश में आने के बाद जब मैं ने पूरे कमरे में नजर दौड़ाई तो मुझे पल भर की भी देर यह समझने में न लगी कि वह शादीशुदा है. उस समय उस की पत्नी कहीं गई होगी. मैं क्या करती, बदनामी के डर से मुंह बंद कर रखा था. मैं लुट गई, अब क्या करूं?’’ कह कर फिर फूटफूट कर रोने लगीं.

तब मैं ने उन को अपने से लिपटाते हुए कहा, ‘‘आप चिंता न करें दीदी. अब देखती हूं वह कैसे आप को ब्लैकमेल करता है. सब से पहले मेरी फ्रैंड डाक्टर के पास जा कर अबौर्शन की बात करते हैं. उस के बाद आप के बौस से निबटेंगे. आप की तो कोई गलती ही नहीं है.

आप डर रही थीं, इसी का फायदा तो वह उठा रहा था. अब आप निश्चिंत हो कर सो जाइए. मैं हूं न. आज मैं आप के कमरे में ही सोती हूं,’’ और फिर मैं ने मन ही मन सोचा कि अच्छा है, पति बाहर गए हैं और सासससुर का कमरा

दूर होने के कारण आवाज से उन की नींद नहीं खुली. थोड़ी ही देर में दोनों को गहरी नींद ने आ घेरा.

अगले दिन दोनों ननदभाभी किसी फ्रैंड के घर जाने का बहाना कर के डाक्टर

के पास जाने के लिए निकलीं. डाक्टर चैकअप कर बोलीं, ‘‘यदि 1 हफ्ता और निकल जाता तो अबौर्शन करवाना खतरनाक हो जाता. आप सही समय पर आ गई हैं.’’

मैं ने भावातिरेक में अपनी डाक्टर फ्रैंड को गले से लगा लिया.

वे बोलीं, ‘‘सरिता, तुम्हें पता है ऐसे कई केस रोज मेरे पास आते हैं. भोलीभाली लड़कियों को ये दरिंदे अपने जाल में फंसा लेते हैं और वे बदनामी के डर से सब सहती रहती हैं. लेकिन तुम तो स्कूल के जमाने से ही बड़ी हिम्मत वाली रही हो. याद है वह अमित जिस ने तुम्हें तंग करने की कोशिश की थी. तब तुम ने प्रिंसिपल से शिकायत कर के उसे स्कूल से निकलवा कर ही दम लिया था.’’

‘‘अरे विनीता, तुझे अभी तक याद है. सच, वे भी क्या दिन थे,’’ और फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

पारुल के चेहरे पर भी आज बहुत दिनों बाद मुसकराहट दिखाई दी थी. अबौर्शन हो गया.

घर आ कर मैं अपनी सास से बोली, ‘‘दीदी को फ्रैंड के घर में चक्कर आ गया था, इसलिए डाक्टर के पास हो कर आई हैं. उन्होंने बताया

है कि खून की कमी है, खाने का ध्यान रखें और 1 हफ्ते की बैडरैस्ट लें. चिंता की कोई बात नहीं है.’’

सास ने दुखी मन से कहा, ‘‘मैं तो कब से कह रही हूं, खाने का ध्यान रखा करो, लेकिन मेरी कोई सुने तब न.’’

1 हफ्ते में ही दीदी भलीचंगी हो गईं. उन्होंने मुझे गले लगाते हुए कहा, ‘‘तुम कितनी अच्छी हो भाभी. मुझे मुसीबत से छुटकारा दिला दिया. तुम ने मां से भी बढ़ कर मेरा ध्यान रखा. मुझे तुम पर बहुत गर्व है…ऐसी भाभी सब को मिले.’’

‘‘अरे दीदी, पिक्चर अभी बाकी है. अभी तो उस दरिंदे से निबटना है.’’

1 हफ्ते बाद हम योजनानुसार बौस की पत्नी से मिलने के लिए गए. उन को उन के पति का सारा कच्चाचिट्ठा बयान किया, तो वे हैरान होते हुए बोलीं, ‘‘इन्होंने यहां भी नाटक शुरू कर दिया…लखनऊ से तो किसी तरह ट्रांसफर करवा कर यहां आए हैं कि शायद शहर बदलने से ये कुछ सुधर जाएं, लेकिन कोई…’’ कहते हुए वे रोआंसी हो गईं.

हम उन की बात सुन कर अवाक रह गए. सोचने लगे कि इस से पहले न जाने

कितनी लड़कियों को उस ने बरबाद किया होगा. उस की पत्नी ने फिर कहना शुरू

किया, ‘‘अब मैं इन्हें माफ नहीं करूंगी. सजा दिलवा कर ही रहूंगी. चलो पुलिस

स्टेशन चलते हैं. इन को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप जैसी पत्नियां हों तो अपराध को बढ़ावा मिले ही नहीं. हमें आप पर गर्व है,’’ और फिर हम दोनों ननदभाभी उस की पत्नी के साथ पुलिस को ले कर बौस के पास उन के औफिस पहुंच गए.

पुलिस को और हम सब को देख कर वह हक्काबक्का रह गया. औफिस के सहकर्मी भी सकते में आ गए. उन में से एक लड़की भी आ कर हमारे साथ खड़ी हो गई. उस ने भी कहा कि उन्होंने उस के साथ भी दुर्व्यवहार किया है. पुलिस ने उन्हें अरैस्ट कर लिया. दीदी भावातिरेक में मेरे गले लग कर सिसकने लगीं. उन के आंसुओं ने सब कुछ कह डाला.

घर आ कर मैं ने सासससुर को कुछ नहीं बताया. पति से भी अबौर्शन वाली बात तो छिपा ली, मगर यह बता दिया कि वह दीदी को बहुत परेशान करता था.

सुनते ही उन्होंने मेरा माथा चूम लिया और बोले, ‘‘वाह, मुझे तुम पर गर्व है. तुम ने मेरी बहन को किसी के चंगुल में फंसने से बचा लिया. बीवी हो तो ऐसी.,’’

उन की बात सुन कर हम ननदभाभी दोनों एकदूसरे को देख मुसकरा दीं. Family Story In Hindi

Hindi Story: फोड़ा

Hindi Story, लेखक – पंकज त्रिवेदी

आंगन के चारों ओर दीवार थी. लोहे का दरवाजा खुलने की आवाज सुनाई दी. मनोज बिस्तर पर पड़ा जाग रहा था. जाड़े की बहुत घनी रात थी.

मनोज ने घड़ी में देखा. अभी तो रात के 10 बजे हैं. इस वक्त कौन होगा? ऐसा सोच कर मनोज बिस्तर से उठ गया. ठीक उसी समय बरामदे के दरवाजे पर धीरे से किसी ने दस्तक दी.

मनोज ने बत्ती जलाई. दरवाजा खोला. वह सामने खड़ी औरत का चेहरा ठीक से पहचान न पाया. घर के सामने खुला मैदान अंधकार ओढ़ कर सोया हुआ था. दूरदूर तक खेत ही खेत थे. माहौल में नमी के साथ जाड़े की फसल की खुशबू फैली हुई थी. झींगुर की आवाज के अलावा सबकुछ शांत था. मनोज को गांव के बाहर ग्राम पंचायत के पास एक सरकारी मकान मिला था.

उस औरत ने कुछ कदम आगे बढ़ कर बरामदे में पैर रखा.

‘‘अरे जीवली, तुम…?’’ मनोज ने हैरान हो कर पूछा.

जीवली की आंखों में आंसू थे. वह दरवाजे के पास ही बैठ गई.

‘‘जीवली, तुम इस समय क्यों आई? क्या हुआ?’’ मनोज ने पूछा.

जवाब देने के बदले जीवली को रोती हुई देख कर मनोज और ज्यादा हैरानी में पड़ गया.

‘‘कुछ बोलो तो सही… क्यों रो रही हो?’’ मनोज की आवाज में थोड़ी सख्ती आ गई.

जीवली ने कुछ बोले बिना ही दरवाजे को बंद कर दिया. मनोज को अचरज हुआ और मन में कहीं डर भी था. उसे कड़ाके की ठंड में भी पसीना आने लगा.

मनोज पिछले 2 साल से इस गांव में था. पूरा गांव उसे इज्जत की नजरों से देखता था. यह उस के पढ़ेलिखे और संस्कारी इनसान की पहचान थी. ग्रामसेवक के पद पर उस की उज्ज्वल छवि रही है. ऐसे समय जीवली उस के घर में आ कर दरवाजा बंद कर दे, तो पसीना निकल आएगा ही न. वह अभी भी रो रही थी.

मनोज ने हिम्मत कर के धीरे से पूछा, ‘‘जीवली, तुम क्यों रो रही हो? कुछ बात करोगी तो सम झ आएगा न? और यह दरवाजा तो खोल,’’ इतना कह कर मनोज दरवाजे की ओर मुड़ा.

उसी समय जीवली ने मनोज के पैर पकड़ लिए. मनोज रुक गया और फिर वहीं घुटनों के बल बैठ गया और बोला, ‘‘जीवली, अभी कितने बजे हैं उस का अंदाजा है तुम्हें? बाहर अंधेरा और यहां मैं अकेला हूं.

अगर किसी को पता चला न तो… जो भी काम हो जल्दी से बोल दो.’’

लालटेन के उजास में जीवली ने धीरे से चुनरी उतार दी और मनोज कुछ कदम पीछे चला गया. उसे लगा कि यह जीवली क्या करने लगी है? उसे धक्का मार कर बाहर निकालने की इच्छा हो गई, मगर वह ऐसा न कर पाया.

जीवली ने अंगिया की डोरी छोड़ दी. मनोज ने अपनी आंखें बंद कर लीं.

‘‘साहब, आप के पास मरहम है क्या? मैं यहां से जल गई हूं.’’

मनोज ने धीरे से आंखें खोलीं. जीवली के बाईं करवट पर बड़ा सा फोड़ा (फफोला) हो गया था. वह सच में जल गई थी.

मनोज को कुछ याद हो आया. उस दिन पहली ही बार जीवली पानी भरने आई थी. तब मनोज को यह सरकारी मकान मिले एक हफ्ता भी नहीं हुआ था. गांव में ज्यादा जानपहचान नहीं थी. दोपहर का समय था. खाना खा कर थोड़ा आराम कर के मनोज ने सोचा कि गांव ही घूम लिया जाए.

उस मकान के आंगन के कुएं में जीवली घड़े से बड़ी मटकी में पानी डालने के लिए नीचे झुकी, उसी समय मनोज का ध्यान उस तरफ गया. एक पल के लिए तो वह जड़ हो गया. इतनी उम्र में उस ने कई औरतें देखी थीं, मगर आज पहली बार उसे लगा कि चीथड़ों में लिपटा हुआ रत्न भी होता है.

जीवली ने तिरछी नजरों से मनोज की ओर देख लिया था. उस ने जल्दी से चुनरी ठीक से ओढ़ ली और मनोज की ओर मादक मुसकान फेंक दी, फिर धीरे से बोली, ‘‘साहब, लगन कब करना है?’’

फिर मनोज के जवाब का इंतजार किए बिना जीवली जल्दी से चली गई.

‘‘साहब, कौन सी सोच में पड़ गए? मरहम हो तो जल्दी से लगा दो न. कुछ देर में वह आएगा, तो फिर…’’

मनोज अपनी यादों से लौट आया. उस ने जल्दी से अंदर के कमरे में जा कर बरनोल ला कर फोड़े पर हलके हाथों से मरहम लगाना शुरू किया.

‘‘साहब, जल्दी लगा दो न, बहुत जलन हो रही है…’’ कह कर जीवली कराहने लगी.

मनोज का हाथ कांपने लगा. जलन के चलते बड़ा सा फोड़ा हो गया था.

उस की नजरों के सामने कुएं पर पानी भरती जीवली का ही सीन था, जिस के लिए वह बारबार तरसता था.

उसे लगा कि वह ठीक से मरहम लगा नहीं पाएगा.

उस समय जीवली ने खुद कलेजे को मजबूत कर के मनोज का हाथ पकड़ कर उंगली पर लगा मरहम फोड़े पर लगा दिया.

मनोज तो हैरान सा देखता ही रह गया. जीवली की आंखों में आंसू थे, फिर भी उस ने मनोज के सामने मुसकरा कर देखा. वैसे भी जो पीड़ा सह पाए, वही मुसकरा सकते हैं.

मनोज कुछ सम झ न पाया. उस ने पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे जल गई?’’

‘‘उस ने दाग दिया,’’ अंगिया की डोरी बांधते हुए जीवली ने कहा.

‘‘क्यों, ऐसा भी क्या हो गया था?’’

‘‘वह दारू पी कर आया और बोला मु झे जल्दी खाना दे. खातेखाते बोला कि कल तु झे अर्जुन के खेत में खाना देने जाना है, तैयार हो कर रहना.’’

‘‘उस ने तुम से ऐसा क्यों कहा?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘उस मुए ने कहा कि अर्जुन मु झे हमेशा शराब पिलाता है, इसलिए तु झे उसे राजी करना होगा… समझ गई न?’’

‘‘बहुत घटिया आदमी है वह तो,’’ मनोज ने कहा.

‘‘आप सुनो तो सही. मैं ने उस से कहा कि कोई कामधंधा करो तो गुलामी करनी न पड़े. अर्जुन जान गया है कि तुझे दारू के बगैर चलेगा नहीं, इसलिए मु झ पर नजर डाली. तू भी कितना हलकट है कि हां कह कर चला आया,’’ इतना बोलते हुए जीवली ने अपने आंसू पोंछे.

‘‘तो इस में तुम ने क्या गलत कहा,’’ मनोज ने कहा.

‘‘बस, उस का तौर ही ऐसा है. मैं ने झट से कह दिया तो उस ने चूल्हे में से जलती हुई लकड़ी उठा ली. मैं अपना हाथ आगे बढ़ाऊं, उस से पहले तो बाईं ओर करवट पर दे मारी… फिर कहता कि अपने रूप का बहुत घमंड है न तुझे?’’

‘‘मगर इसे इनसान कहें या…?’’ मनोज बोला, ‘‘बिलकुल जाहिल आदमी है.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते, कोई बात नहीं. वह तो जब भी दारू पी कर आता है, तब मारता है. मगर आज सुलगती लकड़ी हाथ आ गई,’’ जीवली बोली.

थोड़ी देर के बाद जीवली बाहर निकली. उस ने आसपास देखा. घना अंधेरा था.

मनोज ने धीरे से कहा, ‘‘तुम अकेली जा पाओगी कि छोड़ने आऊं?’’

‘‘नहींनहीं, मैं चली जाऊंगी.’’

‘‘वह जाहिल तुम्हें देख लेगा तो…?’’ मनोज को चिंता होने लगी.

‘‘वह तो खर्राटे मारता होगा. दारू पी कर आने के बाद कुछ देर हंगामा कर देता है. एक बार खटिया पकड़ ले, फिर खेल खल्लास,’’ जीवली ने कहा.

‘‘कुछ दिन और मरहम लगाना होगा… जीवली, सम झ रही हो न…’’ मनोज ने कहा.

‘‘साहब, मुए ने ऐसी जगह दाह लगाया है कि डाक्टर को दिखाने में भी लाज आती है,’’ जीवली ने कहा.

‘‘मेरे पास आते शर्म न आई?’’ मनोज के चेहरे पर शरारती मुसकान उभर आई.

‘‘शर्म लगे मगर क्या करूं मैं? उस दिन मैं पानी भर रही थी न, तब आप मेरे सामने कैसे टकटकी लगा कर देखते थे,’’ जीवली के ये शब्द सुनते ही मनोज झेंप गया.

‘‘मैं कल आऊंगी…’’ कहते हुए जीवली बाहर निकल गई.

अब तो जीवली का इंतजार करना मनोज को अच्छा लगता था. आज वह देर से आई. मनोज के लिए इंतजार का एकएक पल एक युग जितना लंबा लगने लगा था.

जीवली आ गई. मनोज का हाथ उस के फोड़े पर फिरता रहा.

‘‘साहब, एक बात कहूं?’’

हां, बोल…’’ मनोज ने कहा.

‘‘आप मुझे मरहम लगाते हैं, तो कुछ होता नहीं है?’’

‘‘जीवली, तुम तो शादीशुदा हो. यह तो महरम लगा कर दर्द मिटाने का काम है. तेरा घरवाला, वह जाहिल है न?’’ मनोज बोल रहा था, उस से उलट उस के मन में उथलपुथल हो रही थी.

‘‘साहब, उस मुए को तो दारू पी कर मारना ही आता है. घर की औरत पर हाथ उठाए उन में क्या होगा?’’ जीवली की बात से मनोज को अचरज हुआ.

‘‘क्यों?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘उस ने दाह दे कर मुझे फोड़ा दे दिया. छोड़ो न उस कलमुंहे का नाम…’’ फिर जीवली धीरे से बोली, ‘‘मगर आप कहें तो मैं रोज आती रहूंगी…’’ और फिर उस ने अपनी आंखें नचाईं.

‘‘ऐसा भी क्या है कि तुम उस से इतनी नाराज हो?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘साहब, उस की बात ही जाने दो न. उस दिन मु झे कहता था न कि अर्जुन के साथ रात बिताने जा. सच कहूं तो वह मरद में ही नहीं है,’’ इतना बोलते ही जीवली लाल हो गई.

‘‘क्या बात करती हो?’’ मनोज हैरान हो कर बोला.

‘‘साहब, क्या आप को कुछ नहीं होता?’’ जीवली ने पूछा.

‘‘जीवली, तुम्हारा रूप ही ऐसा है कि कोई भी आदमी पागल हो जाए. जल्दी से अपने घर जा,’’ मनोज को मानो अपनेआप पर अब भरोसा नहीं रहा था.

‘‘आप ने तो कभी ऐसा दिखने ही नहीं दिया…’’ कहते हुए जीवली ने मनोज के गले में हाथ डाल दिए.

जीवली के इस हमले के सामने मनोज पानीपानी हो गया. वह जमीन पर ही चारों खाने चित हो गया और
कुछ देर तक जीवली मस्ती करती रही.

फिर मनोज ने कहा, ‘‘तुम्हारा घरवाला मेरे पास आया था.’’

‘‘क्या…?’’ जीवली के पेट में डर की बिजली फैल गई.

‘‘हां, कल मेरे पास आ कर पैसे मांगे और कह कर गया कि साहब, जीवली आप के पास आती है, मैं जानता हूं. मु झे कोई फर्क नहीं पड़ता. मगर रोज कुछ चिल्लर का जोग करना पड़ेगा. हम दोनों की गाड़ी चलेगी.’’

मनोज ने बात कही तो जीवली के मन पर कोई असर न हुआ.

मनोज ने पूछा, ‘‘जीवली, तुम कुछ बोली नहीं?’’

‘‘मुझे पता है. मैं ने ही उसे कहा था, उस अर्जुन के पास जाने से तो…’’ इतना बोलते जीवली के मुंह पर मनोज ने अपना हाथ रख दिया और बांहों में जकड़ लिया.

ठीक उसी दिन फोड़े में से मवाद बाहर निकलने लगा था और जीवली का दर्द भी कम होने लगा था. आज वह बड़ी खुश थी. Hindi Story

Best Hindi Story: मैं ही अम्मी अब्बू भी मैं

Best Hindi Story: बासित ने आईने में अपनेआप को देखा. बालों में सफेदी आने लगी थी और आंखों के किनारे पर झुर्रियों की रेखाएं बढ़ती उम्र का अहसास करा रही थीं.

हालांकि, अभी बासित महज 39 साल का था, पर पैसा कमाने की धुन में वह ऐसा खोया कि अपनी सेहत का ध्यान नहीं रख पाया.

बासित ने 15 साल की उम्र में मुन्ने मियां की शार्गिदगी में मोटर मेकैनिक का काम सीखना शुरू किया था. दिमाग का तेज बासित जल्दी ही काफीकुछ सीखता चला गया.

मोटरसाइकिल की सर्विस करनी हो या जीपकार की कोई खराबी दूर करनी हो, बासित तुरंत ही मर्ज भांप कर उसे ठीक करने में लग जाता था, पर उस की मेहनत के बदले मुन्ने मियां उसे वाजिब पैसे नहीं देते थे, लिहाजा, बासित ने मुन्ने मियां के यहां काम छोड़ कर एक दूसरी दुकान अशरफ मोटर्स पर काम करना शुरू कर दिया.

बदले में दुकान के मालिक अशरफ मियां उसे काम सिखाने के साथसाथ 2,000 रुपए की पगार भी देते थे, जिस में से बासित 1,000 रुपए खर्चे करता और 1,000 रुपए की बचत करता था.

बासित के सिर से मांबाप का साया तभी उठ गया था, जब वह महज 13 साल का था. मांबाप दोनों एक सड़क हादसे में मारे गए थे.

बासित और आबिद 2 भाई ही बचे थे, जो अब भरी दुनिया में अकेले थे. आबिद को चाचू अपने साथ मुंबई ले गए, जबकि बासित ने यहीं रहना ठीक समझा.

बासित हर महीने बचत करता और अपने खर्चे में कटौती करता. उस के पास जब थोड़ी रकम जमा हो गई तो उस ने एक लकड़ी के खोखे में कुछ टूल्स के साथसाथ मोटर सर्विसिंग का सामान भी बिक्री के लिए रख लिया.

बासित का अच्छा बरताव, मेहनत और ग्राहक को संतोष कर पाने की अद्भुत ताकत रंग लाई थी और समय बीतने के साथ अब पैसों की आमद भी अच्छी होने लगी थी. जमा की गई रकम को बासित ने काम बढ़ाने में ही लगाया और धीरेधीरे वह शहर में एक आटोमोबाइल और स्पेयर पार्ट्स की दुकान का मालिक बन गया.

बासित की अच्छीखासी कमाई भी होने लगी थी, पर अम्मीअब्बू के न होने के चलते और पैसे कमाने की धुन में बासित को खुद की शादी का खयाल ही नहीं आया. ऐसा नहीं था कि उसे किसी साथी की जरूरत नहीं महसूस हुई, पर पैसे कमाने की धुन में वह शादी को दरकिनार करता गया, जिस का नतीजा यह हुआ कि 39 साल की उम्र में भी वह अभी अनब्याहा ही था.

मुंबई से चाचू और आबिद वीडियो काल पर हालचाल ले लेते और शादी कर लेने को कहते, पर बासित हर बार मुसकरा देता.

आज बासित अपनी दुकान पर आ कर कुरसी पर बैठा ही था कि उस के दोस्त रमेश और करीम आ गए, जो अकसर ही बासित से शादी करने को कहते थे. वे दोनों आज भी बासित से शादी कर लेने की बात
कहने लगे.

‘‘अरे, अब इस उम्र में हम से भला कौन शादी करेगा?’’ बासित के मुंह से अनायास ही निकल गया, तो इस बात को मानो करीम ने दोनों हाथों से लपक लिया.

करीम ने बासित को बताया कि लखनऊ से 70 किलोमीटर दूर हफीजपुर नाम के कसबे में रहमत नाम का एक दर्जी है, जिस की 4 बेटियां हैं और सब एक से बढ़ कर एक खूबसूरत भी हैं, पर रहमत दर्जी गरीब होने के चलते दहेज नहीं दे पा रहा है, लिहाजा उस की बेटियां अभी तक अनब्याही हैं.

‘‘अरे भाई, दहेज का क्या करना है? भला हमारे बासित के पास पैसों की क्या कमी है? चलो, हम लोग शादी का पैगाम ले कर चलते हैं,’’ रमेश खुश हो कर बोला.

बासित अपनी शादी की बात सुन कर इधरउधर देखने लगा और लड़कियों की तरह शरमा भी रहा था. रमेश और करीम सम झ गए थे कि बासित भी चाहता है कि उस की शादी करा दी जाए, इसलिए वे दोनों हफीजपुर जा कर रहमत दर्जी से मिले और निकाह की बात बताई.

रहमत दर्जी को तो जैसे मनमांगी मुराद मिल गई. उस की बड़ी बेटी सायरा 25 साल की थी, जबकि बासित की ज्यादा उम्र रहमत दर्जी के लिए थोड़ी चिंता का सबब तो थी, पर 4 बेटियों का बाप भला बासित जैसा अच्छा और पैसे वाला दामाद कहां से ला पाता, इसलिए रहमत ने सायरा की शादी बासित के साथ करने के लिए हामी भर दी.

बासित ने जब सायरा का फोटो देखा, तो उस की खूबसूरती देख कर दंग रह गया. सायरा के चेहरे का रंग एकदम साफ था. होंठों के ऊपर एक काला तिल सायरा की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था. नशीली और कजरारी आंखें उसे बला की खूबसूरत बनाती थीं.

बासित ने निकाह से पहले नया घर ले लिया था, जो लखनऊ के पौश इलाके गोमतीनगर में था. पूरे 4 कमरे थे इस में और घर के आगे एक छोटा सा लौन भी था, साथ ही गाड़ी पार्किंग की अच्छीखासी जगह भी थी.

निकाह के बाद सायरा इसी नए घर में आई थी. सायरा की खुशी का ठिकाना नहीं था. कहां तो दर्जी की बेटी… गरीबी में पलीबढ़ी, जहां पर पहनने को अच्छे कपड़े नहीं थे और पेटभर खाना भी नसीब नहीं होता था और कहां यह बासित का कोठीनुमा घर. अलमारी भर कर रंगबिंरगे कपड़े दिला दिए थे बासित ने. खाने को काजूबादाम के ढेरों पैकेट मेज पर सजे थे.

और रसोईघर तो देखो… खासे 2 कमरों के बराबर है… दराजों पर सुनहरे सनमाइका वाली नक्काशी है. और तो और रसोईघर में एक चिमनी भी लगी हुई है.

अब भला दालसब्जी के छौंक के बाद खांसी आने का झं झट ही नहीं.

सारा धुआं चिमनी से झर्र से बाहर और ज्यादा गरमी लगे तो बैडरूम में एसी औन कर लो.

बाथरूम में मौसम के हिसाब से गरम और ठंडा पानी नहाने के लिए और इन सब चीजों के बाद बासित जैसा शौहर मिला है, जो हर पसंदनापसंद का ध्यान रखता है. सायरा के सपनों को तो मानो पंख ही लग गए थे.

उस दिन इतवार था. बासित आज घर पर ही था. दोपहर बाद अमीनाबाद घूमने जाने का प्लान बना. सायरा ने बादामी रंग का सूट पहना, तो उस की खूबसूरती और भी दमक उठी.

बासित के साथ गाड़ी में बैठते समय कितना अच्छा महसूस हो रहा था. सायरा और बासित की कार महल्ले से बाहर निकली, तो महल्ले के मनचलों और खासकर चमन नाम के लड़के की नजरों में सायरा की खूबसूरती खटक गई.

चमन 28 साल का था जो बासित की दुकान पर ही काम करता था. उस ने दुकान के लोगों से सायरा के हुस्न के चर्चे पहले से ही सुन रखे थे, पर आज जब उस ने कार में बैठी सायरा को देख लिया, तो वह तो उस के हुस्न का दीवाना हो उठा.

चमन को यह बात बुरी लग रही थी कि इतनी खूबसूरत लड़की को तो उस की हमराह होना चाहिए, फिर यह 39 साल के बासित को कैसे मिल गई? सायरा की खूबसूरती पर मरमिटा था चमन और वह मन ही मन किसी योजना पर काम करने लगा था.

आज तो बासित पूरा अमीनाबाद ही खरीद देना चाह रहा था सायरा के लिए. बासित बस सायरा की नजरें पढ़ रहा था. बाजार में जिस सामान पर सायरा की नजरें जातीं, बासित वही चीज खरीद लेता. शौहर की मुहब्बत को देख कर मन ही मन फूली नहीं समा रही थी सायरा.

अगले दिन जब बासित अपनी दुकान पर चला गया, तब सायरा ने सोचा कि बासित उसे इतना प्यार करते हैं, उस पर इतना खर्च करते हैं, तो उस का भी तो फर्ज बनता है कि वह बासित के लिए कुछ करे, मसलन अपने कमाए हुए पैसों से बासित को कुछ तोहफे दे.

सायरा को याद आया कि जब वह अब्बू के पास मायके में थी, तब अम्मी ने उसे छोटे बच्चों के कपड़े सिलने का हुनर सिखाया था.

उसी दिन से सायरा ने आसपास के इलाके में खोज शुरू दी. कोई ऐसा दुकानदार या शोरूम वाला, जो उसे ऐसा कोई काम दे सके.

थोड़ीबहुत पूछताछ और गूगल की मदद के बाद सायरा एक ऐसे एजेंट को ढूंढ़ने में कामयाब हो गई, जो उसे बच्चों के कपड़े सिलने का काम देने पर राजी हो गया.

सायरा ने कपड़े लिए और अपने घर के एक छोटे कमरे में सिलाई मशीन रख ली और कपड़े सिलने का काम शुरू कर दिया.

इस कमरे में हमेशा ताला पड़ा रहता, क्योंकि सायरा नहीं चाहती थी कि बासित को उस के कपड़े सिलने के काम के बारे मे पता चले.

बासित को कभी पसंद नहीं आता कि पैसों की कोई कमी न होने के बावजूद सायरा कपड़े सिलने जैसा काम करे, इसलिए बासित के घर से जाने के बाद ही सायरा घर से बाहर जाती और और्डर लेकर वापस आ जाती. आनेजाने में सायरा को तकरीबन एक घंटे का समय लग जाता.

मनचला चमन, जो लगातार इस फिराक में था कि कैसे सायरा को हासिल किया जाए, उस ने अपने गुरगे बासित के घर के आसपास फैला रखे थे, जो सायरा के हर बार बाहर जाने पर नजर रखते थे.

चमन को अब अच्छा मौका मिल गया था. उस को यह पता चल गया था कि बासित के जाने के बाद सायरा कहीं जाती है. बस, फिर क्या था. उस ने मौका देख कर बासित के कान में फूंक दिया कि बासित की खूबसूरत बीवी का किसी गैर मर्द के साथ चक्कर चल रहा है और बासित की गैरहाजिरी में वह उस लड़के के साथ मजे करने जाती है.

‘‘यह क्या बकवास कर रहे हो चमन… होश में तो हो तुम…’’ बासित के भरोसे को बहुत गहरा झटका लग गया था.

शायद बासित गुस्से से मार ही बैठता चमन को, पर तुरंत ही चमन ने बासित से कहा कि उसे भरोसा नहीं है, तो आज शाम को 4 बजे अपने घर जा कर खुद देख ले.

बासित के लिए अपने पर काबू रख पाना मुश्किल हो रहा था, पर उस ने दिमाग को ठंडा रखते हुए हुए 4 बजने का इंतजार किया और 4 बजे अपने घर गया.

बासित यह देख कर चौंक गया था कि घर में सिर्फ उस का एक नौकर और नौकरानी ही हैं. पूछने पर पता चला कि सायरा कहीं बाहर गई है. बासित ने गुस्से में आ कर सायरा को फोन लगाया पर फोन नहीं उठा.

बासित का शक पक्का हो रहा था कि उस की बड़ी उम्र के चलते ही सायरा किसी गैर मर्द के प्यार में पड़ कर मजे कर रही है.

तकरीबन एक घंटे के इंतजार के बाद सायरा वापस आई, तो बासित को दरवाजे पर खड़ा देख कर ठिठक गई. बासित ने उसे घर के बाहर ही भलाबुरा कहना शुरू कर दिया. वह कुछ न कह पाई, चुपचाप अंदर आ गई.

2-3 दिन गुजर जाने के बाद भी बासित नौर्मल नहीं हुआ तो सायरा ने उसे धीमी आवाज में सम झाने की कोशिश भी की, पर बासित नहीं समझा.

बासित ने सायरा की बात तक नहीं सुनी, क्योंकि उस के दिमाग में शक की चिनगारी सुलग रही थी और इस चिनगारी को हवा देने का काम चमन लगातार कर रहा था.

चमन बासित के कान लगातार भरता रहता और बासित से कहता कि खूबसूरत औरतें नई उम्र के लड़कों को ज्यादा पसंद करती हैं. उस ने बासित के मन में अपनी बातों से सायरा के लिए इतनी नफरत पैदा कर दी कि एक दिन किसी बात पर बासित का मूड उखड़ गया और गुस्से में आ कर बासित ने सायरा के चालचलन पर सवाल उठाते हुए तलाक दे ही दिया.

गरीब घर से ताल्लुक रखने वाली सीधीसादी सायरा कोर्टकचहरी के चक्कर नहीं लगाना जानती थी. उस ने बासित को लाख सम झाने की कोशिश की, पर उस ने एक न सुनी.

हार कर बेचारी सायरा ने बासित के द्वारा तलाक दिए जाने को अपनी तकदीर मान लिया और जब शहर में अकेले जिंदगी काटना उस के लिए मुश्किल हो गया तो न चाहते हुए भी वह अपने मायके लौट आई.

चमन अपनी योजना के पहले हिस्से में तो पूरी तरह कामयाब हो चुका था यानी उस के द्वारा बासित के मन में इतनी नफरत भर दी गई थी कि आखिरकार बासित ने सायरा को तलाक दे ही दिया.

तलाक के बाद मायके में रहना किसी भी लड़की को अच्छा नहीं लगता और फिर अभी तो सायरा की 3 बहनों का निकाह भी होना बाकी था.

ऐसे में सायरा का घर आ कर बैठना किसी को नहीं सुहा रहा था. महल्ले वाले अलग बातें बना रहे थे और ये सब बातें सायरा को और भी दुखी कर रही थीं.

सायरा और बासित के तलाक के तकरीबन 7 महीने बाद चमन की योजना का दूसरा चरण शुरू हुआ.

चमन ने सायरा के अब्बू रहमत से मुलाकात की और सायरा से शादी करने की बात कही.

रहमत बहुत खुश हुए और उन्होंने इस बारे में घर के लोगों और सायरा से बात की. सभी ने सायरा को दोबारा निकाह कर लेने को कहा, पर सायरा शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन उस को यह भी लगा कि अब्बू के सीने पर अभी और बेटियों का बो झ है, ऐसे में एक तलाकशुदा लड़की का घर में रहना ठीक नहीं.

बारबार दोबारा शादी के लिए जोर दिए जाने के सवाल पर सायरा ने चमन से शादी के लिए हां कर दी और एक सादे समारोह में कुछ लोगों के बीच सायरा और चमन का निकाह करा दिया गया.

चमन इतनी खूबसूरत बीवी पा कर बहुत खुश था. उस के सारे ख्वाब मानो पूरे हो गए थे. वह लखनऊ से
150 किलोमीटर दूर अपने गांव मीठापुर में आ कर रहने लगा था.

चमन ने यहां अपना धंधा भी जमा लिया था और पुराने यारदोस्त भी उस से मिलनेज़ुलने लगे थे.

समय बीतने के साथ सायरा ने महसूस किया कि चमन किसी तरह का नशा करता है और प्यारमुहब्बत के पलों में अकसर ही वहशीपन की हरकतें करने लगता था.

चमन पोर्न मूवी देखने का शौकीन था. वह टीवी पर ब्लू फिल्म चला देता और सायरा को जबरदस्ती देखने पर मजबूर करता. और तो और कई बार चमन ने ब्लू फिल्म की हीरोइन जैसी हरकतें करने के लिए सायरा से कहा, पर सायरा ने ऐसा गंदा काम करने से मना किया तो चमन ने उस के साथ मारपीट की.

2 दिन के बाद फिर से चमन ने सायरा से पोर्नस्टार की तरह ही सैक्स करने को कहा और मजबूर सायरा ने ठीक वैसे ही करने की कोशिश भी की, पर वह कर न सकी. सायरा को उलटी आ गई थी.

चमन को सायरा से कोई प्यारमुहब्बत तो थी नहीं, बल्कि वह तो उस के हुस्न पर फिदा हो गया था और अब जब वह उस का शौहर था, तो सायरा के जिस्म पर अपना पूरा हक समझता था.

यहां तक कि जब सायरा के बच्चा होने वाला था और वह पूरे दिनों से थी, तब भी चमन सैक्स करना नहीं भूलता था.

समय आने पर सायरा ने एक खूबसूरत सी लड़की को जन्म दिया. लड़की जनने पर चमन के ताने और भी बढ़ गए, पर सायरा यह सोच कर चुप रही कि आज नहीं तो कल उस के शौहर को अक्ल आ ही जाएगी.

पर एक साल गुजरने के बाद भी चमन ने सायरा से जिस्मानी ताल्लुक तो खूब रखे, पर उस के मन की बातों को कभी भी इज्जत नहीं दे सका था.

एक दिन शाम को सायरा ने चमन को किसी लड़की से वीडियो काल करते हुए देख लिया. वह लड़की बिना कपड़ों के थी.

‘‘क्या मेरा शरीर तुम्हें खुश नहीं कर पाता, जो किसी बाहरी लड़की के साथ यह हरकत कर रहे हो,’’ कहते
हुए सायरा ने चमन के हाथ से मोबाइल छीन लिया.

सायरा के द्वारा मोबाइल छीनने की हरकत से चमन गुस्से में भर गया और उस ने सायरा के पीठ पर एक जोरदार लात मारी. बेचारी सायरा दर्द से दोहरी हो कर गिर गई, पर चमन का मन नहीं पसीजा.

उस दिन तो चमन ने सारी हदें पार कर दीं. उस ने सायरा के साथ जबरदस्ती करना चाहा, जबकि सायरा इस बात के लिए राजी न थी.

सायरा गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘मैं तुम्हारी बीवी हूं, कोई रखैल नहीं,’’ पर सायरा की इस बात का चमन पर कोई असर नहीं हुआ और उस ने सायरा को अपनी मजबूत टांगों के नीचे दबा कर मनमानी कर ही ली.

सायरा रोती रही पर चमन पर कोई असर नहीं हुआ और थोड़ी देर के बाद वह बेसुध हो कर सो गया.

चमन एक वहशी जानवर था, जिस ने बासित के मन में सायरा के लिए जहर भर कर उस की गृहस्थी को तोड़ दिया और अब सायरा से मजे करना चाहता था.

सायरा अभी तक तो सहन कर रही थी, पर अब उस का भरोसा शादी और मर्द की जाति से पूरी तरह उठ
चुका था.

सायरा की जिंदगी में पहले बासित आया, जिस ने बिना सायरा की बात सुने उसे तलाक दे दिया और दूसरा
मर्द चमन आया, जो सिर्फ उसे अपनी हवस मिटाने के लिए इस्तेमाल करना चाहता था.

सायरा ने अपनी बच्ची को साथ लिया और अपने साथ हुई मारपीट की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराई.

सायरा इतने पर ही नहीं रुकी, बल्कि ‘महिला अबला नहीं सबला’ नामक एनजीओ से गुहार लगाई कि उसे चमन नाम के जानवर से तलाक दिलाया जाए और उस की बच्ची के खर्चे के लिए हर्जाना भी दिलवाया जाए. चमन ने उस का जीना हराम कर रखा है.

सायरा के बदन पर चोटों के निशान और पड़ोसियों की गवाही और दूसरे सुबूत जब मिल गए और पुलिस चमन को गिरफ्तार करने गई, तो चमन के होश ठिकाने आ गए. वह सायरा से माफी मांगने लगा, पर सायरा टस से मस नहीं हुई.

चमन सलाखों के पीछे था और अब सायरा की जिंदगी में शौहर नाम की चीज के लिए कोई जगह नहीं थी. अब वह अपनी बच्ची को अकेले ही पालेगी और उसे सिखाएगी कि औरत को किसी भी मर्द का का जुल्म नहीं सहन करना चाहिए.

अपनी बेटी का माथा चूमते हुए सायरा बुदबुदा उठी, ‘‘मैं तेरी अम्मी भी, अब्बू भी मैं हूं तेरा.’’

यह कहते हुए सायरा के चेहरे पर एक अलग चमक थी. Best Hindi Story

News Story In Hindi: सोने की खतरनाक चमक

News Story In Hindi: आज विजय ने अनामिका के घर पर रुकने का प्लान बनाया था. दीवाली बीत चुकी थी. तब अनामिका अपने गांव गई थी. पूरे 15 दिन के बाद लौटी थी.

जिस इलाके में अनामिका रहती थी, वहां के ज्यादातर लोग बिहार से थे. उन में से बहुत से लोग दीवाली और छठ पूजा मनाने के लिए अपनेअपने घर जा चुके थे. अनामिका छठ पूजा से पहले ही लौट आई थी. उसी का प्लान था कि विजय उस के साथ रात बिताए.

अनामिका का वन रूम फ्लैट था. उस ने करीने से सब सजा रखा था. बिस्तर पर नई चादर बिछी थी और ‘एलैक्सा’ पर अरिजीत सिंह का एक रोमांटिक गाना ‘फिर भी तुम को चाहूंगा…’ बज रहा था.

अनामिका किचन में मैगी बना रही थी. उस ने ब्लैक कलर का झीना गाउन पहना हुआ था. विजय बनियान और शौर्ट्स में था. वह अनामिका की जुल्फों से खेल रहा था और उसे यहांवहां छेड़ रहा था.

‘‘विजय, मु झे मैगी बनाने दो न प्लीज,’’ अनामिका ने अपने बालों को ठीक करते हुए कहा.

‘‘पर मु झे तो मोमो खाने हैं,’’ विजय ने अनामिका को अपने आगोश में लेते हुए कहा.

‘‘मुझे सब पता है तुम्हारा ‘मोमो’ वाला इशारा किस तरफ है. जब देखो, दिमाग में हवस भरी रहती है,’’ अनामिका बोली.

‘‘तो फिर इस हवस को मिटाते हैं. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी,’’ विजय ने कहा.

‘‘यह बांसुरी वाला राग किसी और को सुनाना. आज जो शरारत तुम्हारी आंखों में दिख रही है, मुझे लगता नहीं कि तुम यहां सोने आए हो,’’ अनामिका ने गैस बंद करते हुए कहा.

अब वे दोनों बैडरूम में थे और मैगी खा रहे थे. इतने में विजय ने कहा, ‘‘यार, अब रहा नहीं जाता. सोचता हूं कि तुम्हें अपने ले ही आऊं.’’

‘‘तो मैं ने कब मना किया है. कर लेते हैं शादी,’’ अनामिका बोली.

‘‘पर हम ज्यादा महंगी शादी नहीं करेंगे,’’ विजय ने कुछ सोच कर कहा.

‘‘लेकिन मु झे सोने की अंगूठी तो दोगे न?’’ अनामिका ने हैरत से कहा.

‘‘अरे, सोने की अंगूठी खरीदना कौन सी बड़ी बात है. ऐसा करते हैं कि जल्दी ही सगाई कर लेते हैं. रिंग सैरेमनी में एकदूसरे को अंगूठी पहना देंगे,’’ विजय ने अनामिका को अपनी बांहों में भरते हुए कहा.

‘‘यह ठीक रहेगा. इसी संडे चलते हैं अंगूठी खरीदने,’’ अनामिका बोली.

‘‘पर उस से पहले आज की रात का तो मजा ले लें,’’ इतना कह कर विजय ने अनामिका को दबोच लिया.

अगले संडे विजय और अनामिका एक सुनार की दुकान पर थे. सुनार ने उन्हें अंगूठी के कई डिजाइन दिखाए. अनामिका को 22 कैरेट की 3 ग्राम से थोड़े ज्यादा की एक अंगूठी पसंद आई.

‘‘जी, आप की पसंद बहुत अच्छी है,’’ सुनार बोला.

‘‘कितने की है?’’ विजय ने सवाल किया.

‘‘जी, सिर्फ 50,000 रुपए की है,’’ सुनार बोला.

‘‘इतनी हलकी अंगूठी भी 50,000 रुपए की?’’ अनामिका के तो होश ही उड़ गए.

‘‘जी, आप को पता नहीं सोने के भाव आसमान छू रहे हैं. सोना पिछले एक साल में 79,000 प्रति 10 ग्राम से 1.31 लाख प्रति 10 ग्राम के लैवल पर आ चुका है. अक्तूबर, 2024 में 24 कैरेट सोने की कीमत 79,681 रुपए प्रति 10 ग्राम थी, जबकि अक्तूबर, 2025 तक सोने की कीमत बढ़ कर 1,14,314 रुपए प्रति 10 ग्राम हो गई थी,’’ सुनार ने कहा.

सोने के इतना ज्यादा दाम देख कर अनामिका का मूड खराब हो गया. उस ने इशारे से विजय को वहां से चलने को कहा.

अब वे दोनों एक कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे. अनामिका ने अपने मोबाइल पर देखा कि पिछले कुछ समय से लोगों में सोना खरीदने की दिलचस्पी ज्यादा ही थी.

‘‘विजय, एक बताओ कि यह सोना खरीद कर घर में या बैंक के लौकर में रखने से होता क्या है? लोगों को सोने से इतना लगाव क्यों है?’’ अनामिका ने सवाल किया.

‘‘देखो, और देशों का तो पता नहीं, पर भारत में सोने को ‘देवताओं की करेंसी’ कहा जाता है और लोगों का ऐसा विश्वास है कि यह ‘पीला धातुई धागा’ जिस के बदन पर होगा, वह कभी गरीब नहीं रहेगा, हमेशा सौभाग्यशाली बना रहेगा,’’ विजय ने कहा.

‘‘हाल ही में मैं बीबीसी की एक खबर खंगाल रहा था, तो उस में पता चला कि मौर्गन स्टैनली, जो एक अमेरिकी ग्लोबल फाइनैंशियल सर्विस कंपनी है, ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की जिस में कहा गया है कि जून, 2025 तक भारतीय परिवारों के पास 34,600 टन गोल्ड है, जिस की कीमत तकरीबन 3.8 ट्रिलियन डौलर है. यह वैल्युएशन भारत की जीडीपी का तकरीबन 88.8 फीसदी है.’’

यह सुन कर अनामिका की आंखें खुली की खुली रह गईं.

विजय ने आगे बताया, ‘‘मौर्गन स्टैनली की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अपना गोल्ड भंडार बढ़ाया है और साल 2024 में 75 टन सोना खरीदा. इस के साथ ही भारत का गोल्ड भंडार तकरीबन 880 टन पहुंच गया है जो कि भारत के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 14 फीसदी है.

‘‘यह तो रही बात भारत में गोल्ड के बढ़ते रुतबे की, लेकिन सोने की बढ़ती कीमतें देश की इकोनौमी पर भी असर डालती हैं और इस का सीधा असर पड़ता है करेंसी पर.

‘‘सोने की कीमतों में उतारचढ़ाव कई वजह से होता है. उन में से एक अहम वजह है गोल्ड का इंपोर्ट और ऐक्सपोर्ट. गोल्ड के इंपोर्ट में बढ़ोतरी का सीधा असर महंगाई के रूप में देखने को मिल सकता है.’’

‘‘मैं कुछ सम झी नहीं?’’ अनामिका धीरे से बोली.

‘‘मान लो देश में सोने की मांग बढ़ती है तो इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए विदेशों से सोना इंपोर्ट करना पड़ेगा और इस सोने की कीमत को चुकाने के लिए और करेंसी नोट छापने पड़ेंगे, जिस से रुपए की वैल्यू पर असर पड़ेगा. नतीजा, महंगाई बढ़ने का डर बना रहेगा,’’ विजय ने एक खबर का हवाला देते हुए कहा.

‘‘तो क्या ऐसा पहली बार हुआ कि जब सोने की कीमतों ने इतनी लंबी छलांग लगाई है?’’ अब अनामिका का ध्यान कौफी पीने में बिलकुल नहीं था.

‘‘ऐसा नहीं है. खबरों की मानें तो साल 1930 के आसपास और 1970-80 में गोल्ड ने ऐसा ही ‘बुल रन’ (तेजी) दिखाया था. साल 1978 और 1980 के बीच सोने की कीमतें दुनियाभर में 4 गुना हो गई थीं और सोना 200 डौलर प्रति ओंस से बढ़ कर तकरीबन 850 डौलर प्रति ओंस तक पहुंच गया था.

‘‘तब माहिरों ने कीमतों से इस उछाल की वजह दुनियाभर में बढ़ती महंगाई, ईरान में क्रांति और अफगानिस्तान पर सोवियत हमले से बनी अनिश्चितता को बताया था.

‘‘हालांकि, तब भारत में सोने का इंपोर्ट कानून के तहत कंट्रोल में था. इस के बावजूद आंकड़े बताते हैं कि भारत में 10 ग्राम सोने के दाम साल 1979 में 937 रुपए से बढ़ कर साल 1980 में 1,330 रुपए हो गए थे. मतलब, कीमतों में यह उछाल तकरीबन 45 फीसदी का था.

‘‘पर अब मु झे लगता है और खबरें भी इसी तरफ इशारा करती हैं कि हमारे देश में सोना खरीदने के ट्रैंड में भी बदलाव आया है. ज्वैलरी की बजाय कई लोग अब फिजिकल गोल्ड (जैसे सोने की ब्रिक्स या बिसकुट) में पैसा लगा रहे हैं. जहां देखो लोग धड़ल्ले से सोना खरीद रहे हैं. बड़े शहरों की तुलना में छोटे शहरों और कसबों में लोग सोना ज्यादा खरीद रहे हैं.’’

‘‘पर इस का कोई तो नुकसान भी होता होगा न?’’ अनामिका ने सवाल दागा.

‘‘जहां तक मु झे लगता है कि बढ़ती कीमतों के बावजूद अगर लोग सोना खरीद रहे हैं तो इस से उन की फाइनैंशियल सेविंग्स कम हो सकती हैं. बैंक में डिपौजिट घट सकते हैं. इस से बैंकिंग सिस्टम में पैसा घट सकता है और लोन देने लायक रकम कम हो सकती है.

‘‘कुलमिला कर इस का असर कौर्पोरेट या एग्रीकल्चर सैक्टर को दिए जाने वाले लोन पर पड़ सकता है
और फाइनैंशियल ग्रोथ पर असर पड़ सकता है.’’

‘‘तो क्या सोना खरीदने की इस आपाधापी में सोने की स्मगलिंग भी बढ़ सकती है?’’ अनामिका तो सवाल पर सवाल दागे जा रही थी.

‘‘हाल ही में देश में दीवाली की धूम रही है और फैस्टिव सीजन में सोने की चमक भी लगातार बढ़ी है. साल 2025 के जनवरी महीने से दीवाली तक सोने की कीमत में 67 फीसदी की बढ़ोतरी दिखी. इस से साफ जाहिर है कि जिस रफ्तार से सोने का भाव बढ़ रहा है, तो सोने की स्मगलिंग के मामलों में भी जोरदार इजाफा हो रहा है.

‘‘रौयटर्स की एक रिपोर्ट में अफसरों के हवाले से कहा गया है कि गैरकानूनी सोने की स्मगलिंग के मामलों में जबरदस्त बढ़ोतरी देखने को मिली है. सर्राफा व्यापारी भी इस बात को कुबूल कर रहे हैं कि लिमिटेड सप्लाई के चलते इस में इजाफा हो रहा है.

‘‘रिपोर्ट में बताया गया है कि धनतेरस और दीवाली से पहले ही सोने की घरेलू कीमतें रिकौर्ड हाई पर दिखीं और इस के साथ ही पूरे भारत में सोने की स्मगलिंग में तेजी से बढ़ोतरी हुई. त्योहारी सीजन में पारंपरिक रूप से सोने के जेवरों, सिक्कों और बार (छड़) की डिमांड बढ़ जाती है, लेकिन बढ़ती कीमतों और लिमिटेड सप्लाई ने स्मगलिंग को बढ़ावा देने का काम किया. इस स्मगलिंग के खेल में खूब पैसा बनाया जा रहा है.

‘‘एक रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा बाजार लैवल पर हर एक किलोग्राम सोने की स्मगलिंग से स्मगलर अंदाजन 11.5 लाख रुपए से ज्यादा का मुनाफा कमा रहे हैं. यह आंकड़ा जुलाई, 2024 में आयात शुल्क कटौती के बाद के मुनाफे से तकरीबन दोगुना है,’’ विजय ने बताया.

‘‘अच्छा, यह बताओ कि क्या इंटरनैशनल दबाव से भी सोने के भाव ऊपर नीचे हो सकते हैं?’’ अनामिका
ने पूछा.

‘‘देखा जाए तो इस समय पूरी दुनिया में अफरातफरी का माहौल बना हुआ है. कितने ही देश जंग की आग में झुलस रहे हैं या फिर जनता का विरोध झेल रहे हैं.

‘‘वैसे, इस साल फरवरी महीने के बाद से अमेरिका की तरफ टैरिफ नीति में बदलाव के बाद भारत में अनिश्चितता और बढ़ती गई, जिस से लोग शेयर बाजार की जगह सोने की तरफ शिफ्ट होने लगे, क्योंकि इसे सेफ इन्वैस्टमैंट माना जाता है.

‘‘भारत और चीन में सोने की खुदरा इन्वैस्टमैंट बढ़ गई है. इन दोनों देशों में सोने के लिए लोगों में ज्यादा चाहत है और दुनिया में सोने की सब से ज्यादा खपत इन्हीं दोनों देशों में होती है.

‘‘एक बात और भी कि भारत में इन दिनों बैंकों में जमा रकम पर काफी कम ब्याज मिल रहा है और इस से भी सोने में इन्वैस्टमैंट के प्रति लोगों का रु झान बढ़ा है. लोग सेविंग एकाउंट में जमा रखने से बेहतर सोने की खरीदारी को मान रहे हैं.

‘‘गोल्ड के ऐक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीए) के प्रति भी लोगों का आकर्षण तेजी से बढ़ रहा है. इस के जरीए कम रकम भी सोने पर लगाई जा सकती है और उस का फायदा सोने की दर के हिसाब से मिलता है.

‘‘देखा जाए तो आजकल अपनी इन्वैस्टमैंट के पोर्टफोलियो में सोना बहुत खास हिस्सा बन गया है. इन सब बातों के अलावा दुनिया के विभिन्न सैंट्रल बैंकों की तरफ से सोने की खरीदारी में तेजी से सोने की मांग बढ़ रही है.

‘‘यूक्रेन और रूस की लड़ाई के बाद से इस खरीदारी में तेजी आई है. अमेरिका, चीन, पोलैंड, भारत जैसे कई देश के सैंट्रल बैंक सोने की ज्यादा खरीदारी कर रहे हैं. मु झे लगता है कि इन्हीं वजहों से सोने की कीमतों में बढ़ोतरी चल रही है.’’

‘‘पर जब से अमेरिका में वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का विरोध शुरू हुआ है, तब से डौलर भी थोड़ा कमजोर सा होता दिख रहा है. क्या इस वजह से भी सोने पर कोई असर पड़ा है?’’ अनामिका ने पूछा.

‘‘ऐसा कहा जा सकता है. पिछले कुछ दिनों से डौलर में कमजोरी देखी जा रही है और जब भी डौलर कमजोर होगा, सोने के दाम बढ़ेंगे. अमेरिका में अभी काफी उथलपुथल है जिस से डौलर के कमजोर होने का डर है. ऐसे में सोने की मांग में तेजी जारी रह सकती है,’’ विजय बोला.

‘‘एक खास वजह यह भी तो है कि सोना धरती पर जितना है, उतना ही रहेगा. इस की प्रोडक्शन बढ़ाई नहीं जा सकती. सप्लाई कम और डिमांड ज्यादा. दाम तो बढ़ेंगे ही…’’ अनामिका ने अपनी बात रखी.

‘‘तुम ने बिलकुल सही कहा. मांग के मुताबिक कच्चे तेल और सोने जैसे आइटम का प्रोडक्शन नहीं बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि निश्चित जगहों पर सोने का खनन हो रहा है,’’ विजय बोला.

‘‘कुछ भी हो, हमारा आज का दिन बड़ा खराब गया. कहां तो हम एंगेजमैंट रिंग खरीदने निकले थे और कहां अब कौफी पर सोने के भाव की चर्चा कर रहे हैं,’’ अनामिका ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘सही कहा तुम ने. मूड का मट्ठा हो गया. एकदम खट्टे वाला,’’ विजय ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम भी न… हर बात में कौमेडी घुसेड़ देते हो. चलो, अब चलते हैं. सोना तो नहीं मिला, अब घर चल कर सोते हैं. अब तो बस यही सोना रह गया है हमारी जिंदगी में,’’ अनामिका ने चुटकी ली.

विजय हैरान सा अनामिका को देखता रह गया. News Story In Hindi

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