Story In Hindi: लाल कमल – उम्मीद की किरण बना आईएएस आनंद

Story In Hindi: आईएएस यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने के बाद आनंद अभी बेंगलुरु में एक ऊंचे प्रशासनिक पद पर काम कर रहा है.

महात्मा गांधी की पुकार पर साल 1942 के आंदोलन में स्कूल छोड़ कर देश की आजादी के लिए कूद पड़ने वाले करमना गांव के आदित्य गुरुजी के पोते आनंद को देश और समाज के प्रति सेवा करने की लगन विरासत में मिली है.

आनंद बचपन से ही अपने तेज दिमाग, बड़ेबुजुर्गों के प्रति आदर और हमउम्र व बच्चों के बीच मेलजोल के साथ पढ़नेलिखने व खेलनेकूदने में भाग लेने के चलते बहुत लोकप्रिय था.

गांवसमाज के हर तीजत्योहार, शादीब्याह, रीतिरिवाज में आनंद को उमंग के साथ हिस्सा लेने में बहुत खुशी होती थी. केवल छात्र जीवन में ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक सेवा में आने के बाद भी होलीदशहरा में वह गांव आने का मौका निकाल ही लेता था.

इस बार मार्च महीने में दफ्तर के कुछ काम से उसे पटना जाना था. पटना आने के बाद आनंद ने एक दिन गांव जाने का प्रोग्राम बनाया.

आनंद को गांव आ कर काफी अच्छा लगता है, पर अब यहां बहुतकुछ बदल गया है.

यह बात आज के बच्चे सोच भी नहीं सकते कि जहां पहले कभी कच्ची सड़क पर बैलगाड़ी और टमटम के अलावा कोई दूसरी सवारी नहीं हुआ करती थी, वहां अब पक्की रोड पर

बसें और आटोरिकशा 12 किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन तक जाने के लिए हर 15 मिनट पर तैयार मिल जाते हैं.

यहां तक कि पटना से निकलने वाले सभी अखबार अब इस गांव में आते हैं और हौकर इन्हें घरघर तक पहुंचा जाता है. साथ ही, टैलीविजन पर भी अब हर छोटीबड़ी खबर और मनोरंजन के तमाम कार्यक्रमों समेत नईपुरानी फिल्में भी देखने को मिल जाती हैं.

अब आनंद के बाबूजी तो रहे नहीं, पर चाचा और चाची रहते हैं. उसे देखते ही उन के चेहरे पर खुशी की चमक आंखों में नमी लिए पसर गई.

आनंद ने चाचा के पैर छुए. उन्होंने उस के सिर को दोनों हाथों में ले कर चूमते हुए ढेर सारा आशीर्वाद दिया.

चाची दोनों की बातें सुनते हुए अंदर से बाहर आ गई थीं. आनंद ने उन के भी पैर छुए.

चाची ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हम कह रहे थे कि आनंद हम को देखे बिना जा ही नहीं सकता.’’

‘‘कैसे हैं आप लोग?’’ आंखों में भर आए आंसुओं को रूमाल से पोंछते हुए आनंद ने पूछा.

‘‘तुम्हारे जैसे बेटे के रहते हमें क्या हो सकता है? हम भलेचंगे हैं. लो, कुछ चायनाश्ता कर के थोड़ा आराम कर लो, तब तक मैं खाना तैयार कर लेती हूं,’’ कह कर चाची अंदर चल पड़ीं.

‘‘बहुत परेशान न होइएगा चाची. सादा खाना ही ठीक रहेगा,’’ आनंद ने कहा और चायनाश्ता करते हुए चाचा से अपने खेतखलिहान के साथ ही साफ बागबगीचे, गांवसमाज की बातें करने लगा.

चाची के हाथ का बना खाना खाते हुए आनंद को बरबस ही बचपन की यादें ताजा हो आईं.

खाना खाने के बाद आनंद ने कुछ देर आराम किया. शाम को चाचा ने फागू को बुलाया. उन्होंने सरसों के सूखे डंठलों को खलिहान से मंगवा कर परिवार के सदस्यों की संख्या के हिसाब से एक ज्यादा होल्लरी यानी लुकाठी बनवाई.

होलिका दहन के लिए गांव की तय जगह पर लोग समय पर इकट्ठा हो गए थे. आनंद भी चाचा के जोर देने पर वहां पहुंच गया था.

वैसे, होली के इस मौके पर होने वाली हुल्लड़बाजी और नशे के असर से सहीगलत न समझ पाने वाले नौजवानों की हरकतों को आनंद बचपन से ही नापसंद करता रहा है.

आनंद को यह बात तो अच्छी लगती कि होलिका दहन में गांवमहल्ले की बहुत सी गंदगी, बेकार की चीजें, जो सही माने में बुराई की प्रतीक हैं, जला कर आबोहवा को कुछ हद तक साफ करने में मदद मिलती है. परंतु वह यह भी मानता है कि होलिका दहन के ढेर से उठती आग की लपटों से कभीकभार आसपास के हरेभरे पेड़ों और मकानों को पहुंचने वाले नुकसान से इस को मनाने के सही ढंग पर नए सिरे से सोचना चाहिए.

आनंद को देख कर गांव के बहुत से नौजवान लड़के उस के पास आ गए. उन सभी लड़कों ने अपने मातापिता से आनंद के बारे में पहले ही बहुतकुछ सुन रखा था. वे अपने बच्चों को आनंद जैसा बनने की सीख देते थे.

आनंद को भी उन से मिल कर बहुत अच्छा लगा.

आनंद ने उन नौजवानों से दोस्त की तरह कई बातें कीं, फिर होलिका दहन के बारे में भी अपने मन की बातें उन से साझा कीं. वे सभी आनंद जैसे एक बड़े ओहदे वाले शख्स की इतनी अपनेपन भरी बातों से बहुत ज्यादा प्रभावित थे.

एक लड़के सुंदर ने आगे आते हुए कहा, ‘‘आनंद अंकल, हम आप से वादा करते हैं कि आगे से सावधान रहेंगे और किसी भी दुर्घटना की नौबत नहीं आने देंगे.’’

सुधीर ने भी भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘अंकल, आज होली के नाम पर न तो कोई गंदे गाने गाएगा और न ही गंदी हरकत करेगा.’’

और सच में ही उस शाम के होलिका दहन को बड़ी सादगी से मनाया गया.

आनंद ने सभी को होली की मिठाई खिलाई. उस के बाद वह अपने चाचा के साथ घर लौट आया.

चैत्र पूर्णिमा की रात थी. दालान में चारपाई पर लेटे आनंद को चांदनी में नहाई रात काफी अच्छी लग रही थी. नींद की गहराई में धीरेधीरे उतरते हुए भी आनंद के कानों में होली के गीत सुनाई पड़ रहे थे.

अचानक ही तभी कुत्तों के भूंकने की आवाजों को बीच गांव के लोगों की घबराहट भरी आवाजों का शोर जोर पकड़ता हुआ सुनाई पड़ा.

‘‘मालिक, गोलीबंदूक के साथ बसहा गांव वाले फसल लगे खेतों की सीमा पर आ कर लड़नेमरने को तैयार खड़े हैं,’’ दीनू को अपने चाचा से यह कहते हुए सुन कर चौंकता हुआ आनंद झटके से उठ बैठा.

आनंद ने अपने मोबाइल फोन से कुछ संबंधित बड़े पुलिस अफसरों से बात करने की कोशिश की.

रास्ते में दीनू ने बताया कि आधी रात के बाद गांव के कुछ अंधविश्वासी लोग देवी मां के मंदिर में जमा हुए थे.

तांत्रिक इच्छा भगत ने पहले देवी मूर्ति की लाल उड़हुल के फूलों, रोली, अबीरगुलाल से पूजा की थी, उस के बाद एक तगड़ा काला कुत्ता भैरों के रूप में वहां लाया गया.

वहां जुटे लोगों ने खुद शराब पीने के साथसाथ उस कुत्ते को भी शराब पिलाई और फूलमाला से पूजा की गई.

नए साल में अपने गांव की खुशहाली और पुराने साल आई मुसीबतों को हमेशा के लिए भगाने के लिए उन्होंने करायल, अरंडी का तेल, पीली सरसों, लाल मिर्च, सिंदूर, चावल वगैरह को एक छोटे मिट्टी के बरतन में ढक कर भैरों कहे जाने वाले कुत्ते की गरदन में बांध दिया.

तांत्रिक इच्छा भगत ने मंदिर से एक जलता हुआ दीया उठा कर कुत्ते की गरदन में सामान समेत बंधे मिट्टी के बरतन में सावधानीपूर्वक रख दिया. फिर दीए की गरमी से परेशान कुत्ता भूंकता हुआ बसहा गांव की तरफ दौड़ पड़ा.

इच्छा भगत और कुछ लोग इस बात को पक्का करना चाहते थे कि वह कुत्ता वापस उन के अपने गांव में न लौटे.

उधर खेतों की रखवाली कर रहे बसहा गांव के कुछ किसानों ने दूसरे छोर पर आग की लपटों के साथ कुत्ते की गुर्राहट भरी आवाज सुनी. कुछ ही देर में पकने को तैयार गेहूं की फसल लपटों में झालसने लगी थी.

रखवाली कर रहे किसानों को पूरा माजरा समझाने में ज्यादा समय नहीं लगा. उन्होंने दौड़ कर तमाम गांव वालों को बुला लिया. ट्यूबवैल चला कर पानी से आग बुझाने के साथसाथ कुछ लोग गोलीबंदूक के साथ इस घटना के पीछे रहे करमना गांव को सबक सिखाने को ललकारने लगे थे. हवा में गोलियों की आवाजें गूंजने लगी थीं.

इस से पहले कि करमना गांव के कुछ अंधविश्वासी और नासमझ तत्त्वों की शरारत के कारण पड़ोसी गांव वालों की होली की खुशी खूनखराबे और मातम की भेंट चढ़ जाती, आनंद अपने साथ जिला मजिस्ट्रेट और एसपी की टीम मौके पर ले कर पहुंच गया. उस ने गुस्साए लोगों को समझाबुझा कर शांत किया.

अंधविश्वास में ‘भैरव टोटका’ करने वाले इच्छा भगत व दूसरे लोगों को पुलिस पकड़ कर वहां थोड़ी ही देर में पहुंच गई.

आनंद के कहने पर उन लोगों ने बसहा गांव के लोगों से अपने गलत अंधविश्वास के चलते किए गए काम के लिए माफी मांगी.

‘‘हम आप के पैर पकड़ते हैं भैया, हमें माफ कर दीजिए. हम शपथ लेते हैं कि आगे से नासमझ और अंधविश्वास से भरा कोई काम नहीं करेंगे.’’

तब तक आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की टीम भी वहां आ चुकी थी.

तेजी से किए गए बचाव काम से आग को ज्यादा फैलने के पहले ही बुझाने में कामयाबी मिल गई थी.

आनंद ने गांव वालों की ओर से हुई गलती के लिए माफी मांगते हुए कहा, ‘‘रघुवीर, मैं तुम्हारे जज्बात को अच्छी तरह समझ सकता हूं… अपनी जिस फसल को खूनपसीना बहा कर तुम ने तैयार किया है, उस के खेत में इस तरह जल जाने के चलते हुए दिल के घाव को भरना किसी के लिए मुमकिन नहीं है. फिर भी करमना गांव के लोगों की ओर से मैं खुद जिम्मेदारी लेता हूं कि तुम्हें जो भी नुकसान हुआ है, उसे हमारे द्वारा कल ही पूरा किया जाएगा.’’

अपने खेत की तैयार फसल के जलने से नाराज रघुवीर कुसूरवारों को सबक सिखाने पर आमादा था, पर अपने स्कूल के दिनों में सही बात से आगे बढ़़ने की प्रेरणा देने वाले आदित्य गुरुजी जैसे आनंद के रूप में अभी वहां आ खड़े हो गए थे, इसलिए वह अपने गुस्से पर काबू कर गया.

रघुवीर आनंद के पैरों पर झाकता हुआ बोला, ‘‘माफ करें सर. आप की हर बात मेरे सिरआंखों पर.’’

आनंद ने रघुवीर को गले लगाते हुए कहा, ‘‘उठो रघुवीर, अब बसहापुर गांव और करमना गांव आपस में

मिल कर एकदूसरे की मुसीबतों को मिटाते हुए खुशियां लाने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे. तुम बिलकुल चिंता मत करो.

‘‘इस बार गांव के स्कूल वाले मैदान में करमना और बसहा दोनों गांव मिल कर एकसाथ होली मनाएंगे.’’

वहां जमा दोनों गांवों के लोगों के चेहरे पर खुशी की लाली चमक उठी. ‘हांहां’ के साथ ‘होली है होली है’ की आवाजें चिडि़यों की चहचहाहट भरे माहौल में गूंज उठीं.

उसी समय गांव के पूर्वी आकाश में सूरज एक लाल कमल की तरह खिलता नजर आ रहा था. Story In Hindi

Family Story In Hindi: सौतेली मां – हामिद की दूसरी शादी

Family Story In Hindi: हामिद की शादी आज से 5 साल पहले पास के ही एक गांव में चांदनी नाम की लड़की से हुई थी. चांदनी सिर्फ नाम की ही चांदनी नहीं थी, बल्कि उस की खूबसूरती के चर्चे आसपास के गांवों में आएदिन सुनने को मिलते रहते थे. वह बला की खूबसूरत और गदराए बदन की मालकिन थी.

चांदनी की बड़ीबड़ी आंखें, सुर्ख होंठ, गुलाबी गाल, पतली कमर देख कर ऐसे लगता था जैसे आसमान की कोई अप्सरा उतर कर जमीन पर आ गई हो. यही वजह थी कि हामिद पहली ही नजर में चांदनी की खूबसूरती का दीवाना हो गया था और शादी के फौरन बाद उसे अपने साथ मुंबई ले आया था.

हामिद मुंबई में सेल्समैन था. उस की अच्छीखासी कमाई थी. चांदनी को हामिद के साथ किसी बात की कोई कमी न थी. हामिद चांदनी का ऐसा दीवाना था कि वह हर साल उस के लिए कोई न कोई सोने का जेवर बनवाता रहता था.

हामिद को चांदनी से 5 साल के अंदर 3 बच्चे पैदा हुए थे. सब से पहले बेटी और उस के बाद 2 बेटे. हामिद और चांदनी अपने बच्चों के साथ खुशीखुशी रह रहे थे. घर में किसी चीज की कोई कमी न थी. हर साल हामिद अपने बीवीबच्चों के साथ गांव आताजाता रहता था.

चांदनी एक गरीब परिवार की लड़की थी. चांदनी के घर में उस की बेवा मां, 2 छोटी बहनें और एक छोटा भाई था, जिन की गुजरबसर खेतों में काम कर के होती थी. चांदनी अपनी मां की पैसे से मदद करती रहती थी. उस की शादी को 15 साल कब गुजर गए, पता ही नहीं चला.

हामिद ने अपनी बीवी चांदनी के नाम उसी के गांव में 10 लाख रुपए का एक खेत खरीद लिया था. यही हामिद की सब से बड़ी भूल थी, जिस की वजह से चांदनी अपनी मनमानी करने लगी थी. हामिद मुंबई में ही रह रहा था. उसे यहां एक छोटी से खोली में रहते हुए काफी दिन बीत गए थे.

बच्चे बड़े हो रहे थे, इसलिए वह मुंबई में एक बड़ा घर खरीदना चाहता था. उस ने चांदनी से बात की कि गांव की जमीन बेच देते हैं और यहां घर खरीद लेते हैं. चांदनी तैयार हो गई, पर जब हामिद अपनी बीवी के साथ खेत बेचने गांव पहुंचा, तो चांदनी की मां ने चांदनी को भड़का दिया, ‘‘जमीन तेरे नाम है.

तू क्यों बेच रही है? अपने नाम की चीज मत बेच. तेरे बुरे वक्त में काम आएगी.’’ चांदनी अपनी मां के बहकावे में आ गई और हामिद से टालमटोल करने लगी. हामिद ने उसे समझाया, ‘‘इस खेत की कीमत भी अच्छी मिल रही है और हमें मुंबई में रहना है. वहां हमें बड़ा और सस्ता घर मिल रहा है.

ग्राहक तैयार है.’’ लेकिन चांदनी ने साफ मना कर दिया, ‘‘यह खेत मेरे नाम है और मैं इसे नहीं बेचूंगी.’’ हामिद ने चांदनी को बहुत समझाया, पर वह नहीं मानी. बातों ही बातों में झगड़ा होने लगा.

हामिद ने चांदनी के एक थप्पड़ मारते हुए कहा, ‘‘जब बेचना नहीं था तो मुंबई से क्यों आई? और मैं ने इसे तेरे नाम इसलिए खरीदा था कि औरत के नाम खरीदने से कम खर्चा होता है. अब हमें पैसे की जरूरत है, तो तुम मुझे धोखा दे रही हो.’’

हामिद का थप्पड़ मारना हुआ कि चांदनी की मां ने फौरन पुलिस को बुला लिया. पुलिस दोनों को थाने ले गई. दोनों की बात सुनी और उन्हें झगड़ा न करने की सलाह दी. पर अगले ही दिन चांदनी और उस की मां ने हामिद पर दहेज और खर्चे का दावा कर दिया और उस में हामिद की कमाई 80,000 रुपए महीना लिखवा दी.

उधर हामिद ने भी अपने वकील के जरीए चांदनी पर रुखसती और मानहानि का दावा कर दिया. हामिद के वकील ने चांदनी के मुताबिक बताए गए 80,000 रुपए महीने की कमाई के हिसाब से 14 साल की कमाई की चोरी का इलजाम चांदनी और उस की मां पर लगाया और कहा कि जब तुम ने बताया कि हामिद महीने के इतने सारे रुपए कमाता है, तो उस की 14 साल की कमाई कहां है? उस के नाम क्या है? तुम ने सब पैसा अपनी मां को दे दिया.

मामला बढ़ गया. मुकदमेबाजी शुरू हो गई. चांदनी अपनी मां के घर जा कर बैठ गई. उस ने बच्चों तक की सुध न ली. 7 महीने बरबाद करने के बाद हामिद अपने बच्चों को ले कर मुंबई वापस अपने काम पर लौट आया.

कुछ ही महीनों बाद हामिद की मुलाकात सोशल मीडिया पर शबनम से हो गई. दोनों की प्यार भरी बातें होने लगीं. हामिद ने शबनम को अपने और चांदनी के साथसाथ बच्चों के बारे में सब बता दिया. शबनम की उम्र महज 22 साल थी, जबकि हामिद की उम्र 45 साल थी, फिर भी दोनों के सिर पर प्यार का उफान चढ़ने लगा और एक दिन शबनम ने हामिद से कहा, ‘‘मुझे तुम से शादी करनी है.

मेरे मांबाप तो मानेंगे नहीं, अगर तुम मुझ से प्यार करते हो तो अपना पता और मुंबई आने का टिकट भेज दो. मैं मौका पा कर तुम्हारे पास आ जाऊंगी और हम शादी कर लेंगे.’’ हामिद को शबनम की यह बात जम गई और उस ने शबनम के लिए टिकट भेज दिया.

शबनम मौका देख कर मुंबई आ गई और वहां हामिद ने शबनम से कोर्टमैरिज कर ली. हामिद और शबनम दोनों खुशीखुशी रहने लगे. शबनम के आने से हामिद के बच्चे भी खुश रहने लगे. शबनम बच्चों का खयाल सगी मां से भी ज्यादा करती थी.

उन के खानेपीने का खूब खयाल रखती थी. खुद पढ़ीलिखी होने की वजह से शबनम बच्चों को खुद पढ़ाती थी. उस ने बच्चों के ऊपर इतनी मेहनत की कि वे तीनों अपनीअपनी क्लास में अव्वल आए. शादी के एक साल बाद शबनम को भी एक बेटा हुआ, जिसे पा कर हामिद और शबनम की खुशी का ठिकाना न रहा, लेकिन वक्त के साथसाथ शबनम का हामिद के बच्चों से प्यार कम होता गया.

अब वह हामिद के पहले बच्चों को नजरअंदाज करने लगी और बातबात पर उन्हें मारनेपीटने लगी. इस बात से बच्चे पूरी तरह सहम गए थे. वे शबनम से खौफ खाने लगे थे.

अब उन का पढ़ाई में भी दिल नहीं लगता था. शबनम ने हामिद से कहना शुरू कर दिया कि इन बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता. लड़की की पढ़ाई बंद करो. मैं भी दिनभर काम कर के थक जाती हूं. काम के बाद इस छोटे बच्चे को भी संभालना पड़ता है.

लड़की घर पर रहेगी, तो मेरे साथ घर के कामकाज में हाथ बंटाएगी. पहले तो हामिद ने मना किया, पर शबनम की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा और इस तरह हामिद की पहली बच्ची का भविष्य घर की चारदीवारी में कैद हो कर रह गया.

दिनभर घर का काम करने के बाद भी उस लड़की को पेट भर खाना नहीं मिलता था और छोटी सी उम्र में ही वह घर में बाल मजदूर की तरह जिंदगी बिताने के लिए मजबूर हो गई. अभी बड़ी बेटी का भविष्य अंधकारमय हुए 3 महीने ही हुए थे कि शबनम ने हामिद के बड़े बेटे की भी पढ़ाई बंद करने का मशवरा देते हुए कहा कि अब उसे अपने साथ काम पर लगाओ, ताकि तुम्हें भी कुछ आराम मिल जाए.

अगर उसे पढ़ना है तो रात वाले सरकारी स्कूल में दाखिला करा दो. अपने छोटे बेटे का भी उसी सरकारी स्कूल में दाखिला करा दो. इस से बच्चों की फीस बचेगी और किताबें व ड्रैस भी स्कूल से मुफ्त में मिल जाएंगी. हामिद को शबनम की यह बात बुरी लगी.

उस ने शबनम को समझाया, ‘‘वे तीनों मेरी औलाद हैं और मैं किस के लिए कमा रहा हूं. आज मैं जिंदा हूं तो अपनी औलाद के लिए. इन्हीं के लिए मैं मेहनत कर रहा हूं. बच्चे अगर मेरे पास न होते तो आज मैं भी न होता. ‘‘मर तो मैं उसी दिन गया था, जब चांदनी ने मुझे धोखा दिया था.

इन बच्चों की खातिर मैं ने जीने की हिम्मत की और तुम इन का ही भविष्य बरबाद करने पर तुली हो.’’ यह सुन कर शबनम खफा हो गई. हामिद को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. शबनम के रूठने से वह बेचैन हो उठा. शबनम न खाना बना रही थी, न किसी से बात कर रही थी.

बच्चों की हालत और शबनम का रूखापन हामिद को अंदर ही अंदर खाए जा रहा था. वह सोच रहा था कि अगर शबनम भी उसे छोड़ कर चली गई तो बच्चों का क्या होगा? उस ने यही फैसला लिया कि शबनम की बात मान ली जाए. हामिद ने अपने बड़े बेटे को अपने ही साथ काम पर लगा लिया और दोनों बेटों का रात के सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया.

उधर चांदनी भी मुंबई आ गई. उस ने यहां हामिद के खिलाफ फिर पुलिस में शिकायत दर्ज की. पुलिस ने हामिद और शबनम को पुलिस स्टेशन बुलाया और उस से पूछा, ‘‘अपनी पहली बीवी को छोड़ कर तुम इस के साथ क्यों रह रहे हो?’’ हामिद ने सब बातें बताईं.

पुलिस ने चांदनी को बोला, ‘‘तुम्हारा मामला कोर्ट में है. वहां से कोई और्डर मिलेगा तब आना.’’ हामिद और शबनम घर आ गए. अब शबनम हामिद से जिद करने लगी कि बच्चों को उन की मां चांदनी को दे दो, भले ही उन्हें यहां कोई घर किराए पर ले कर दे दो.

हामिद की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. शबनम बच्चों को अपने पास रखने से क्यों कतरा रही थी? शादी के एक साल तक तो उस ने इन बच्चों को अपने सगे बच्चों की तरह प्यार किया, आज जब इस के खुद का बेटा हो गया तो उन से नफरत करने लगी और जिद पर अड़ी हुई है कि इन बच्चों को इन की मां चांदनी को दे दो.

उधर चांदनी को पता नहीं इन बच्चों से क्या नफरत थी कि उस ने आज तक न तो इन्हें कोर्ट से मांगा और न ही कभी बच्चों से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की. ऐसी हालत में कैसे चांदनी से कहा जाए कि बच्चों को तुम अपने पास रख लो? समय बीतता गया.

बच्चों का भविष्य चौपट होता गया. उन के चेहरे की खुशी दब कर रह गई. उन्हें देख कर ऐसा लगता था, जैसे बच्चे हंसना ही भूल गए हों. हामिद चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था. वह फिर से उन के सिर से मां के साए को दूर नहीं करना चाहता था.

आज बच्चे भले ही परेशानी में थे, पर उन के पास मां तो थी. उन्हें जैसा भी खाना मिल रहा था, पर भूखे तो नहीं थे. हामिद कभी बच्चों के लिए बाहर से कुछ लाता तो शबनम बच्चों को नहीं देने देती थी. भले ही वे पेट भर कर नहीं खाते थे, पर थोड़ाबहुत तो उन्हें मिल ही जाता था.

शबनम का पूरा ध्यान अपनी कोख से जनमे बच्चे पर था. हामिद ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिन बच्चों के लिए वह शादी कर रहा है और उन के लिए नई मां ला रहा है, वह उन के साथ सौतेला बरताव रखेगी. आज उसे अहसास हो रहा था कि उस ने अपने से कम उम्र की कुंआरी लड़की से शादी कर के सब से बड़ी भूल की थी.

आज उस की वजह से ही बच्चे गुमसुम हो गए थे. सौतेली मां से बच्चों को जो दुख मिल रहा था, वह वाकई बरदाश्त के बाहर था, पर हामिद कर भी क्या सकता था. वह इस दुखभरी जिंदगी को जीने के लिए मजबूर था. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: मैले साब – कैसी थी हवलदार की मेहमाननवाजी

Hindi Family Story: हवलदार सिंह पुलिस में नहीं, बल्कि राजनीति में थे. वे अपने क्षेत्र के विधायक थे. गांव के लोग आदर से उन्हें ‘मैले साब’ बुलाते थे. इंगलिश का एमएलए बोलने में उन्हें थोड़ी मुश्किल आती थी. विधायकजी को भी इस उपनाम से एतराज नहीं था.

वोटरों के रुझान के मद्देनजर आम चुनाव के ठीक पहले ‘मैले साहब’ ने अपनी पार्टी से बगावत कर जनवादी मोरचा का दामन थाम लिया था. पूरे देश में जनवादी मोरचा के पक्ष में लहर चल रही थी.

चुनाव में अगड़ेपिछड़े दोनों का ठीकठाक सहयोग मिला और मैले साब की नैया पार लग गई. उन की विधायकी सलामत रही और पुरानी पार्टी के उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई. राजधानी में उन का पुराना बंगला उन के ही कब्जे में रह गया.

मैले साब के परिवार में उन की पत्नी और 2 बेटियां थीं. पिछली विधायकी में ही बेटियों की जिम्मेदारी से मुक्त हो चुके थे. बेटियां ससुराल में खुश थीं. पत्नी उन के साथ ही विधायक आवास में रहती थीं. वे अकसर बीमार रहती थीं. कोविड काल में संक्रमित हुईं और अस्पताल से लौट नहीं पाईं.

गांव के पुश्तैनी मकान की देखरेख रघु करता था. घर की साफसफाई, रसोई, खेतीबारी वही देखता था. बेटियां, दामाद और बच्चे विधायक आवास पर ही आना पसंद करते थे. रघु 25 साल का हट्टाकट्टा नौजवान था और अभी कुंआरा था.

‘‘जल्दी कोई अच्छी लड़की देख कर शादी कर लो… रसोई से फुरसत ले कर खेतीबारी पर मन लगाओ…’’ मैले साब को अपनी जायदाद की चिंता थी. खेती से होने वाली सालाना आमदनी से वे संतुष्ट नहीं थे.

‘‘मैना मौसी ने लड़की पसंद कर रखी है… महीनेभर की छुट्टी लगेगी…’’ रघु ने बताया. उस की मैना मौसी का गांव पास के दूसरे जिले में था. पिछले साल तक दोनों गांव एक ही जिले में आते थे.

‘‘रजनी के बच्चों की छुट्टियां हैं… गांव आने की बात है… मैं सलाह कर के महीनेभर की छुट्टी पक्की कर दूंगा…’’ मैले साहब ने भरोसा दिलाया. रजनी उन की बड़ी बेटी थी.

रघु जब 9 साल का था, तभी उस की मां कालाजार के चपेट में आ कर गुजर गई थी. मैना मौसी ने उसे अपने पास रखा था. पिछले चुनाव में रघु ने दोस्तों के साथ अपने गांव का पोलिंग बूथ का जिम्मा लिया था. इसी दौरान जानपहचान हुई और भरोसा कर मैले साब ने गांव की अपनी गृहस्थी रघु को सौंप दी.

शादी हफ्तेभर में निबट गई. मौसी ने नई बहू को अपने ही पास रखने की बात कही.

‘‘खेतीबारी का काम तो कुछ महीनों का होता है. फुरसत मिले, आ जाना. सीता पढ़ीलिखी और होशियार है. गांव के स्कूल में बच्चों को पढ़ाती है… हफ्तेभर की भी छुट्टी होगी तो तुम्हारे पास आ जाएगी,’’ मौसी ने रघु और सीता को पास बुला कर सुझाया. सीता अपने स्कूल की नौकरी से जुड़ी थी. उसे बच्चों से काफी लगाव था.

रघु लौट कर आया तो मैले साब घर पर ही थे. बेटीदामाद, नातीनातिन सब थे. घर में चहलपहल थी. रघु मेहमानों की खातिर में जुट गया. बच्चों ने रघु अंकल से दोस्ती कर ली.

बेटीदामाद और बच्चों को विदा कर मैले साब उदास हो गए थे. उन की बड़ी बेटी अपनी मां पर गई थी. मैले साब को पत्नी की बहुत याद आ रही थी.

‘‘ह्विस्की मिलेगी…’’ मैले साब ने रघु को बुलाया… डर था… प्रदेश में शराबबंदी लागू थी.

‘‘ह्विस्की का तो पता नहीं था… चोरीछिपे देशी बिकती है…’’ रघु बोला.

‘‘नींद लाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा… जुगाड़ लगाओ…’’ मैले साब ने कहा.

रघु ने अपने दोस्तों से बात की… मनोहर ने गिरधारी का नाम लिया… गिरधारी शराबी और गंजेड़ी था.

‘‘शराबबंदी की ऐसीतैसी… ह्विस्की और देशी सब मिलेगी… रोकड़ा मांगता… दारू और छोकरी होना… और जिंदगी में क्या रखा है… सरकार की…’’ गिरधारी ने सरकार को गंदी गाली दी.

रघु ह्विस्की और देशी दोनों ले आया.

रघु ने चखने में भुनी मछली और बकरे का गोश्त बनाया. चखना, दारू की बोतल और गिलास बैठक में सजा कर रख दिया.

मैले साब को शराब थोड़ी चढ़ी तो बड़बड़ाने लगे… रघु को पास बुलाया और पीने की जिद की.

नानुकर करते हुए रघु ने देशी की आधी बोतल गटक ली.

‘‘मेरे पास टाइम किधर है… देश की राजधानी में मिनिस्टर बनूंगा… इधर

पूरी हवेली तुम्हारे नाम कर दूंगा… परिवार के साथ यहीं रहो… फूलोफलो… खुश रहो…’’

नशे में धुत्त मैले साब जमीन पर ही पसर गए… कुछ ही देर में खर्राटे भरने लगे.

अगले हफ्ते मैले साब राजधानी चले गए. पार्टी के एमएलए की खरीदफरोख्त और पाला बदलने की खबर थी. महामहिम के पास हाजिरी लगानी थी.

दशहरे की छुट्टी आने वाली थी. सीता को रघु के साथ रहने का ज्यादा मौका नहीं मिला था. स्कूल की दूसरी टीचर छेड़ती थी.

सरोज अकसर तंग किया करती थी… वह पेट से थी… 5वां महीना चल रहा था.

‘‘सैयां बसे परदेस… रैना कैसे बीते पिया बिन…’’ सरोज उसे छेड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी. सीता का भी मन मचल रहा था.

रघु को सीता को साथ लाने में कोई परेशानी नहीं थी. धान की फसल की कटाई पूरी हो चुकी थी. सीता के साथ मैना मौसी भी आई थी. मैले साब का मकान हवेलीनुमा था. सीता को छोड़ कर मौसी दूसरे ही दिन वापस चली गई.

शादी के बाद पहली बार कुछ दिनों के लिए साथ रहने का मौका मिला था. पूरी आजादी थी. सीता रघु की मांसल बांहों और मर्दानगी पर फिदा हो चुकी थी. वह रघु की बांहों में चिपकी रहती थी. रघु के साथ खेतों में ट्रैक्टर पर मस्ती करती थी.

इस बीच अचानक मैले साब का इनोवा गाड़ी में आना हुआ. बड़ी गाड़ी में सूबे के बड़े मिनिस्टर आए थे.

रघु मेहमान की खातिरदारी में जुट गया. सीता को रसोई संभालनी पड़ी. मिनिस्टर के साथ कई बौडीगार्ड जीप से आए थे.

चखने और दारू की फरमाइश हुई. गिरधारी ने रम और ह्विस्की के लिए हरे नोटों की गड्डियां ऐंठी. इस धंधे से उस की काफी अच्छीखासी कमाई होती थी. छापामारी होने पर महकमे के अफसर को नजराना देना पड़ता था.

मिनिस्टर साहब देर रात तक पीते रहे. सरकार पलटने की साजिश नाकाम कर पाने की खुशी थी.

सीता ने खाना परोसा था. वह मेहमानों के पास जाने से हिचकिचा रही थी. मैले साब ने रघु को मजबूर किया, तो घूंघट निकाल कर खाना परोसने आई.

घूंघट में उस की सूरत तो छिप गई, पर गदराया बदन और मस्त जवानी ने मिनिस्टर साहब को पागल बना दिया था.

मिनिस्टर साहब बिस्तर में पड़ेपड़े करवटें बदल रहे थे. बेचैनी हो रही थी. सीता भी गई थी. रात रंगीन कर अपनी प्यास और सफर की थकान मिटाना चाहते थे.

देर रात मिनिस्टर साहब ने रघु को अपने कमरे में बुलाया और अपना घिनौना प्रस्ताव रखा.

‘‘बस, एक रात की बात है… मुझे तुम्हारी जोरू से जबरदस्ती नहीं करनी… इस में मजा नहीं आता… पूरी कीमत मिलेगी…’’ मिनिस्टर साहब ने अपने गले से सोने की मोटी चेन और हीरे की कीमती अंगूठी निकाली. मुंहमांगी रकम भी देने का लालच दे कर रघु को राजी करने की कोशिश की.

‘‘गरीब की आबरू से खिलवाड़ मत करो साहब… हम दोनों ने आप की सेवा की है… इस का तो खयाल करो…’’ रघु ने साफ इनकार कर दिया. वह बेहद गुस्से में था, पर लाचार था.

सूबे के मिनिस्टर के सामने उस की हैसियत ही क्या थी. अपनी जान की कीमत पर भी सीता की आबरू बचाने को तैयार था. सीता उस की पत्नी, उस की जीवनसंगिनी थी.

मैले साब गहरी नींद में थे. उन को घटनाक्रम की बिलकुल खबर नहीं थी. मिनिस्टर साहब और रघु के बीच की तनातनी से उन की नींद उचट गई.

रघु ने किस्सा बयान किया, तो उन्हें बेहद बुरा लगा. मैले साब को अपने मेहमान से ऐसी बेहूदगी की उम्मीद नहीं थी.

‘‘सीता मेरी बेटी है… मेरी तीसरी बेटी… मेरे पुश्तैनी मकान की वारिस…’’ मैले साब ने ऐलान किया.

सीता भावुक हो गई. उसे भरोसा हुआ… वह फफक पड़ी. मैले साब ने उसे गले से लगा लिया.

मिनिस्टर साहब का नशा काफूर हो चुका था. भोरअंधेरे उन्होंने ड्राइवर को बुलाया और अपनी इनोवा में चुपचाप निकल गए. वैसे, वे अपनी इस करतूत पर शर्मिंदा नहीं थे. हवलदार सिंह उर्फ मैले साब की मेहमाननवाजी पसंद नहीं आई थी. वे अगले चुनाव में सबक सिखाने की सोच रहे थे. Hindi Family Story

Hindi Kahani: रखैल – क्या बेवफा थी लक्षमण की पत्नी मीनाक्षी

Hindi Kahani: आज से तकरीबन 15 साल पहले मीनाक्षी की शादी लक्ष्मण के साथ हुई थी. उन दिनों लक्ष्मण एक फैक्टरी में काम करता था.

जब लक्ष्मण के फैक्टरी से घर आने का समय होता, तब मीनाक्षी बड़ी बेसब्री से दरवाजे पर उस का इंतजार करती थी.

कभीकभार इंतजार करतेकरते थोड़ी देर हो जाती, तब घर के भीतर घुसते ही मीनाक्षी लक्ष्मण की छाती पर मुक्का मारते हुए कहती थी, ‘‘इतनी देर क्यों हो गई?’’

तब लक्ष्मण चिढ़ा कर उसे कहता था, ‘‘आज वह मिल गई थी.’’ फिर वे दोनों खिलखिला कर हंस पड़ते थे.

धीरेधीरे समय पंख लगा कर उड़ता रहा. पहले बेटी, दूसरा बेटा, फिर तीसरा बेटा होने से मीनाक्षी परिवार में मसरूफ हो गई थी. परिवार बढ़ने की वजह से घर का खर्चा भी बढ़ गया था. तब लक्ष्मण चिड़ाचिड़ा सा रहने लगा था. 5 साल पहले एक घटना हो गई थी. जिस फैक्टरी में लक्ष्मण काम करता था, वह फैक्टरी घाटे में चलने की वजह से बंद कर दी गई.

लक्ष्मण भी बेरोजगार हो गया. वह कोई दूसरा काम तलाशने लगा, मगर शहर में फैक्टरी जैसा काम नहीं मिला.

घर में रखा पैसा भी धीरेधीरे खर्च होने लगा. घर में तंगी होने के चलते लक्ष्मण के गुस्से का पारा चढ़ने लगा.

आखिरकार एक दिन तंग आ कर मीनाक्षी ने कहा, ‘‘अब मैं भी आप के साथ मजदूरी करने चलूंगी…’’

‘‘तू औरत जात ठहरी, घर से बाहर काम करने जाएगी?’’ लक्ष्मण बोला.

‘‘इस में हर्ज क्या है? क्या आजकल औरतें मजदूरी करने नहीं जाती हैं? क्या औरतें दफ्तरों में काम नहीं करती हैं?’’ मीनाक्षी ने अपनी बात रखते हुए कहा, ‘‘इस बस्ती की दूसरी औरतें भी तो काम पर जाती हैं.’’

मीनाक्षी की बात सुन कर लक्ष्मण सोच में पड़ गया. मीनाक्षी ने जो कहा, सही कहा था. मगर जब औरत घर की दहलीज से बाहर निकलती है, तब वह पराए मर्दों से महफूज नहीं रह पाती है. बस्ती की कितनी ही औरतों के संबंध दूसरे मर्दों से थे.

लक्ष्मण को चुप देख कर मीनाक्षी बोली, ‘‘तो क्या सोचा है?’’

‘‘मेरी मीनाक्षी बाहर काम करने नहीं जाएगी,’’ लक्ष्मण ने कहा.

‘‘क्यों नहीं जा सकती है?’’

‘‘इसलिए कि यह मर्दों की दुनिया बड़ी खराब होती है.’’

‘‘खराब से मतलब?’’

‘‘मतलब…’’ कह कर लक्ष्मण के शब्द गले में ही अटक गए. वह आगे बोला, ‘‘मैं ने कहा न कि मेरी मीनाक्षी काम करने बाहर नहीं जाएगी.’’

‘‘देखिए, आप की भी नौकरी छूट गई. आप मजदूरी के लिए इधरउधर मारेमारे फिरते हो, ऐसे में घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है. जब हम दोनों काम करने जाएंगे, तब मजदूरी भी दोगुनी मिला करेगी.

‘‘मैं अकेली कहीं नहीं जाऊंगी, बल्कि आप के साथ चलूंगी,’’ कह कर मीनाक्षी लक्ष्मण का चेहरा देखने लगी.

शायद लक्ष्मण इस बात से सहमत हो गया था. लिहाजा, अब मीनाक्षी भी लक्ष्मण के साथ ठेकेदार के यहां काम करने लगी.

उस ठेकेदार का नाम मांगीलाल था. मीनाक्षी को देख कर वह उस पर लट््टू हो गया था. उसे जहां भी मकान का ठेका मिलता था, वह लक्ष्मण और मीनाक्षी को वहीं रखता था.

ठेकेदार मांगीलाल के पास मोटरसाइकिल थी, इसलिए वह कई बार मीनाक्षी को उस पर बैठा कर ले जाता था.

मीनाक्षी का ठेकेदार के इतना करीब रहना लक्ष्मण को पसंद नहीं था, मगर वह कुछ बोल नहीं पाता था.

एक दिन एक अधेड़ औरत ने मीनाक्षी से पूछा, ‘‘तुम ने ठेकेदार पर क्या जादू कर रखा है?’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ मीनाक्षी उस से जरा नाराज हो कर बोली.

‘‘मतलब यह है कि ठेकेदार तु झे इतना क्यों चाहता है?’’

‘‘मगर तुम यह क्यों पूछ रही हो?’’ मीनाक्षी बोली.

‘‘इसलिए कि ठेकेदार किसी औरत को घास नहीं डालता है. उस ने तु झे ही घास क्यों डाली?’’ वह अधेड़ औरत ऊपर से नीचे तक उसे देख कर बोली, ‘‘लगता है कि तेरी इस खूबसूरत अदा में जादू है, इसलिए वह तुम पर लट्टू हुआ है.’’

‘‘तुम्हारी सोच गलत है.’’

‘‘अरे, मैं ने ये बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं. मैं इन मर्दों को अच्छी तरह जानती हूं. तू उसे अपने साथ सुलाती होगी.’’

‘‘तुम्हें यह कहते हुए शर्म नहीं आती है,’’ मीनाक्षी बोली.

‘‘बुरा मत मानो बहन. मैं ने अच्छीअच्छी औरतों को पराए बिस्तर पर देखा है. तुम्हारे बीच कोई रिश्ता जरूर है,’’ आगे वह अधेड़ औरत कुछ न बोल सकी, क्योंकि ठेकेदार मांगीलाल वहां आ गया था.

‘‘क्या बात है मीनाक्षी, तुम सुस्त क्यों दिख रही हो?’’ मांगीलाल ने पूछा.

‘‘नहीं तो…’’ कह कर उस ने होंठों पर बनावटी मुसकान बिखेर दी.

ठेकेदार को भी उसे भांपते देर न लगी, इसलिए वह बोला, ‘‘तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि किसी ने कुछ कह दिया है.’’

‘‘मीनाक्षी को कुछ कहने की किस में हिम्मत है. अगर किसी ने कुछ कह भी दिया न, तो मैं उस की चमड़ी उधेड़ दूंगी,’’ उस औरत की ओर देख कर मीनाक्षी ने ताना कसा.

अब लोगों में कानाफूसी होने लगी थी कि मीनाक्षी ठेकेदार की रखैल है.

वैसे, शुरुआत के दिनों में ठेकेदार ने एक बार मीनाक्षी के बदन से खेलने की कोशिश की थी. उस दिन वह ठेकेदार के घर पर अकेली थी. ठेकेदार की पत्नी मायके गई थी.

उस दिन वह मीनाक्षी के कंधे पर हाथ रख कर बोला था, ‘‘मीनाक्षी, बहुत दिनों से इस पके फल को खाने की इच्छा थी. क्या आज मेरी इच्छा पूरी करोगी?’’

‘‘आप के सामने जो पका फल है, उस पर सिर्फ लक्ष्मण का ही हक है, आज के बाद कभी मेरे बदन से खेलने की कोशिश मत करना.’’

मीनाक्षी का गुस्से से भरा चेहरा देख कर ठेकेदार सहम गया था, इसलिए वह प्यार से बोला था, ‘‘तू तो बुरा मान गई मीनाक्षी.’’

‘‘बात ही ऐसी करता है तू,’’ मीनाक्षी आप से तू पर आ गई थी. फिर वह आगे बोली थी, ‘‘तेरे पास औरत है. तू उस से चाहे जिस तरह से खेल.’’

‘‘देख मीनाक्षी, मैं अब कभी तु झे बुरी नीयत से नहीं देखूंगा. मगर तू वचन दे कि मु झे छोड़ कर नहीं जाएगी.’

लेकिन जब से बाकी मजदूरों में उन दोनों के संबंध की अफवाह फैली, तो लक्ष्मण के मन में भी शक घर कर गया.

एक दिन लक्ष्मण का गुस्सा फट पड़ा और बोला, ‘‘मीनाक्षी, तू उस ठेकेदार के घर में जा कर क्यों नहीं बैठ जाती?’’

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’ मीनाक्षी ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं नहीं, सारी बस्ती वाले कह रहे हैं कि तुम उस की रखैल हो.’’

‘‘बस्ती वाले कुछ भी कह देंगे और तुम उसे सच मान लोगे?’’

‘‘जो बातें आंखों के सामने हो रही हों, उन्हें सच मानना ही पड़ेगा.’’

‘‘आखिर तुम्हारे भीतर भी शक का वही कीड़ा बैठ गया, जो बस्ती वालों के भीतर बैठा है.’’

‘‘मैं ने खुद तुम्हें कई बार ठेकेदार की मोटरसाइकिल पर चिपक कर बैठे देखा है,’’ लक्ष्मण ने जब यह बात कही, तब मीनाक्षी जवाब देते हुए बोली, ‘‘ठीक है, जब तुम मु झे ठेकेदार की रखैल मानते हो, तब मैं भी कबूल करती हूं कि मैं हूं उस की रखैल. अब बोलो क्या चाहते हो तुम?’’

‘‘मैं जानता हूं कि ठेकेदार तेरा यार है और अपने यार को कोई औरत कैसे छोड़ सकती है.’’

‘‘ठीक है, ठेकेदार मेरा यार है. मैं उस की रखैल हूं. तब तुम मु झे घर से निकाल क्यों नहीं देते?’’ जवाबी हमला करते हुए मीनाक्षी बोली.

‘‘हां…हां, तेरी भी यही इच्छा है, तो बैठ क्यों नहीं जाती उस के घर में जा कर?’’ यह कहते हुए लक्ष्मण की सांस फूल गई.

मीनाक्षी चिल्लाते हुए बोली, ‘‘हांहां बैठ जाऊंगी उस के घर में. ऐसे निखट्टू मर्द को पा कर मैं भी कहां सुखी थी. यह तो ठेकेदार मिल गया, जो खर्चा चल रहा था. अब रहना अकेले ही,’’ कह कर मीनाक्षी अपने कपड़े समेटने लगी.

थोड़ी देर में मीनाक्षी अपनी बेटी को ले कर  झोंपड़ी से बाहर निकल गई. दोनों बेटे उसे टुकुरटुकुर देखते रहे.मीनाक्षी ठेकेदार के घर पहुंच गई और उसे सारा किस्सा कह सुनाया. ठेकेदार ने उस के लिए अपने पड़ोस में ही किराए का एक मकान दिला दिया.

एक रात को किसी ने मीनाक्षी के घर का दरवाजा खटखटाया. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो देखा कि बाहर ठेकेदार मांगीलाल खड़ा था.

वह बोली, ‘‘मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूल सकती. आप ने मु झे रहने को मकान दिया, मेरा खर्चा उठाया. मैं आप के एहसान तले दब कर रह गई हूं.

‘‘याद है न, जिस दिन हमारी दोस्ती हुई थी, तब आप मेरे बदन से खेलना चाहते थे, लेकिन मैं ने मना कर दिया था. लेकिन आज लक्ष्मण ने मु झे आप की रखैल सम झ कर घर से निकाल दिया. अब यह शरीर आप का है.’’

ठेकेदार बोला, ‘‘नहीं मीनाक्षी, यह शरीर अब भी लक्ष्मण का ही है,’’ कह कर उस ने बाहर अंधेरे में खड़े लक्ष्मण को बुला लिया. लक्ष्मण किसी अपराधी की तरह सामने आया.

ठेकेदार बोला, ‘‘लक्ष्मण, संभालो अपनी मीनाक्षी को. अब भी तुम्हारी मीनाक्षी पाकसाफ है. दरवाजा बंद कर लेना,’’ कह कर ठेकेदार बाहर चला गया.

लक्ष्मण ने दरवाजा बंद कर लिया. उस की मीनाक्षी उस के सामने खड़ी थी. लक्ष्मण ने आगे बढ़ कर उसे अपनी बांहों में भर लिया. Hindi Kahani

Story In Hindi: अफसोस – बाबा के चंगुल में शादीशुदा सायरा

Story In Hindi: सायरा की शादी अब्दुल से  5 साल पहले हुई थी. अब्दुल की उम्र उस समय 30 साल थी और सायरा की उम्र सिर्फ 20 साल. अब्दुल देखने में सीधासादा, सांवले रंग का था, पर एक अच्छीखासी जायदाद का मालिक भी था. यही वजह थी कि सायरा और उस की मां ने अब्दुल को पसंद किया था.

शादी से पहले ही सायरा ने अब्दुल को अच्छी तरह देखभाल लिया था, जबकि सायरा के बाप और भाई इस शादी के खिलाफ थे. लेकिन सायरा और उस की मां की जिद के आगे उन की एक न चली और जल्द ही वे दोनों शादी के रिश्ते में बंध गए.सायरा जैसी बीवी पा कर अब्दुल की खुशी का ठिकाना न रहा. हो भी क्यों न… सायरा थी ही बला की खूबसूरत. उस के सुर्ख गुलाबी होंठ ऐसे लगते थे मानो गुलाब की पंखुड़ी खिलने के लिए बेताब हो.

जब सायरा हंसती थी तो उस सफेद दांत ऐसे लगते थे मानो मुंह से मोती बिखर रहे हों. लंबे, काले और घने बालों ने तो उस की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए थे. उस की पतली कमर और गदराए बदन का तो कहना ही क्या था.शादी को अभी 4 साल ही गुजरे थे कि उन के घर में 3 बच्चों की किलकारियां गूंज चुकी थीं. सायरा की मां भी अपनी बेटी के साथ मुंबई में रहने के लिए आ गई थी.अब्दुल की दुकान भी बढि़या चल रही थी. घर में किसी बात की कोई कमी न थी.

अभी भी अब्दुल सायरा के साथ किराए के घर में रह रहा था, क्योंकि मुंबई में घर खरीदना इतना आसान न था. पर अब्दुल की कमाई इतनी थी कि बच्चों की अच्छी परवरिश और अच्छा खानपान आसानी से हो रहा था.पर एक बात बड़ी अजीब थी.

अब्दुल को देख कर कभी सायरा की दोस्त तो कभी सायरा के रिश्तेदार उसे यह तंज कसते रहते थे कि ‘तुम ने अब्दुल में क्या देख कर शादी की… कहां वह सांवला और बदसूरत, इतनी बड़ी उम्र का और कहां तुम बिलकुल हीरोइन सी खूबसूरत’.शुरूशुरू में तो सायरा उन सब की बातों को नजरअंदाज करती रही, लेकिन बारबार सब से यही बातें सुनसुन कर उस के भी दिल में भी अब्दुल के लिए नफरत जागने लगी. अब वह अब्दुल से कटीकटी सी रहने लगी.

एक दिन सायरा की मां ने उसे मशवरा दिया कि अब्दुल अपने गांव की सारी जमीन बेच दे और यहां मुंबई में अपना बड़ा फ्लैट खरीद ले. सायरा ने जैसे ही यह बात अब्दुल के सामने रखी, वह तुरंत तैयार हो गया और गांव जा कर अपने अब्बा और भाइयों से अपने हिस्से को बेचने की बात कही.

अब्दुल के अब्बा और भाइयों ने उसे काफी समझाया, पर उस ने किसी की न सुनी और अपनी बात पर अटल रहा. जल्द ही उस के अब्बा को उस के आगे झुकना पड़ा और अपना बाग, खेत और उस के हिस्से की दुकान बेचनी पड़ी. इस जल्दबाजी के सौदे में अब्दुल के भाई को काफी नुकसान उठाना पड़ा.

अब्दुल ने वापस आ कर मुंबई में  2 कमरों का फ्लैट खरीद लिया. कुछ महीनों तक तो सबकुछ सही चला, पर अब सायरा के दोस्तों की तादाद बढ़ चुकी थी. सायरा की मां भी ब्यूटीपार्लर जा कर स्मार्ट बन कर रहने लगी. अब आएदिन घर पर कोई न कोई इन दोनों की दोस्त आती रहती थीं और अब्दुल को देख कर उस पर तंज कसती रहती थीं.

अब तो खुद सायरा और उस की मां भी अब्दुल का मजाक उड़ाने में पीछे नहीं रहती थीं. अब्दुल इतना ज्यादा बेवकूफ था कि उस ने सायरा को तो पूरी आजादी दे रखी थी और खुद दिनरात काम में इतना बिजी रहता था कि उसे अपने हुलिए को सुधारने का भी खयाल नहीं आता था.

यही वजह थी कि सायरा धीरेधीरे उस से दूर होती जा रही थी. वह चाहती थी कि अब्दुल उस के नाम घर कर दे, पर अब्दुल तैयार न हुआ. सायरा ने अब्दुल से बातचीत बंद कर दी.सायरा की मां और उस की दोस्तों ने सायरा को एक बाबा का पता बताया और कहा कि बाबा ऐसा तावीज देंगे कि अब्दुल तुम्हारी उंगलियों पर नाचेगा.

अगले दिन सायरा और उस की मां बाबा के पास पहुंच गईं और सारी बात बताई. बाबा उन की बातों को सुन कर समझ चुका था कि ये लालची लोग हैं, इन्हें लूटा जाए. बाबा ने कहा, ‘‘काम तो हो जाएगा, लेकिन इस में एक महीना लगेगा और तकरीबन 5 लाख रुपए का खर्च आएगा. धीरेधीरे अब्दुल के दिमाग को काबू में करना पड़ेगा, जिस से वह तुम्हारी हर बात मान ले. इस में 7 बकरों की कुरबानी देनी पड़ेगी.

‘‘कुछ तावीज अब्दुल के तकिए के नीचे सावधानी से रखने होंगे. उसे पता न चले. कुछ तावीज तुम्हें पहनने होंगे, जो जाफरान से बनाए जाएंगे. पहले 2 लाख रुपए एडवांस और 3 लाख रुपए एक हफ्ते बाद देने पड़ेंगे.’’सायरा और उस की मां तैयार हो गईं.

अगले दिन सायरा ने उस ढोंगी बाबा को पैसे दिए और बाबा ने उसे 3 तावीज अब्दुल के तकिए के भीतर रखने के लिए दे दिए और 7 तावीज सायरा को देते हुए बोला, ‘‘ये तावीज पानी में डाल कर एकएक कर के 7 दिन तक पी लेना और हां, जब तक काम पूरा न हो जाए, तुम अपने शौहर के पास बिलकुल मत सोना.’’अब सायरा और उस की मां को पूरा भरोसा हो गया था कि अब्दुल उन का कहना मानेगा और वह घर हमारे नाम कर देगा.सायरा ने अब्दुल से बात करना बंद कर दिया. अब्दुल जब भी सायरा से बात करने की कोशिश करता, तो वह एक ही जवाब देती कि ‘पहले यह घर मेरे नाम करो. जब तक तुम मेरी बात नहीं मानोगे, मेरे साथ बात मत करना और न ही मेरे पास आना’.

अब्दुल ने सायरा को समझाने की पूरी कोशिश की, ‘‘हमारे इस झगड़े में बच्चों पर गलत असर पड़ रहा है. मेहरबानी कर के यह झगड़ा बंद कर दो.’’पर सायरा उस की एक भी बात सुनने को तैयार न थी. इस झगड़े से अब्दुल का कारोबार भी दिन ब दिन बिखरता जा रहा था.अब्दुल ने सोचा, ‘क्यों न सायरा के नाम वसीयत कर दूं… वह भी खुश हो जाएगी…’ और उस ने अगले दिन सायरा से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे नाम वसीयत कर देता हूं. इस के बाद तो तुम खुश हो जाओगी न?’’

यह सुन कर सायरा बोली, ‘‘ठीक है, मैं कल वकील को बुला लेती हूं. तुम मेरे नाम वसीयत कर दो.’’अब्दुल यह सुन कर खुश हो गया कि अब झगड़ा खत्म हो जाएगा और उस ने मुहब्बत भरी नजरों से सायरा को देखा और अपनी बांहों में भर लिया.सायरा एक ही झटके में अब्दुल से अलग होते हुए बोली, ‘‘पहले वसीयत तो करो, उस के बाद मेरे पास आना.’’अब्दुल खुश था कि एक ही दिन की तो बात है. कल वह सायरा के नाम वसीयत कर देगा, तो फिर उस से ढेर सारा प्यार करेगा.

पर अब्दुल इस बात से अनजान था कि कल क्या ड्रामा होने वाला है. सायरा ने जब अपनी मां से इस बात का जिक्र किया, तो वह झट से बोली, ‘‘बाबाजी के तावीज का असर हो रहा है. इस बारे में पहले बाबाजी से बात करते हैं, उस के बाद कोई फैसला लेना. जब वह वसीयत के लिए तैयार हो गया है तो जल्द ही तुम्हारे नाम घर करने के लिए भी तैयार हो जाएगा, बस तुम थोड़ा सब्र करो.’’

उन्होंने जब बाबा से इस बारे में बात की, तो उन्होंने यही बोला, ‘‘एक हफ्ते में इतना असर हो गया है, तुम बाकी रकम ले कर मेरे पास आ जाओ. मैं तुम्हें कल और तावीज देता हूं. 7 बकरों की कुरबानी भी देनी है, फिर देखना कि तुम जैसा चाहोगी, वैसा ही होगा.’’अगले दिन सायरा ने अपनी बांहें अब्दुल के गले में डालते हुए कहा, ‘‘वकील कल आएगा जानू. तुम अभी काम पर जाओ.

रात में बात करते हैं.’’अब्दुल के जाते ही दोनों मांबेटी ने अब्दुल के रखे हुए पैसों में से बाकी के पैसे भी उठा लिए और उस ढोंगी बाबा के पास पहुंच गईं. बाबा ने उन से पैसे लिए और तावीज देते हुए कहा, ‘‘अभी 7 दिन का और  इंतजार करो. उसे अपने पास बिलकुल मत आने देना. इस बीच अगर वह तुम्हारा कहना मान ले, तो जल्दी उस काम को अंजाम दे देना, उस के बाद ही अपनेआप को छूने देना.’’

शाम को जब अब्दुल घर आया, तो मौका देख कर उस ने सायरा को अपनी बांहों में जकड़ लिया. सायरा झल्लाते हुए फौरन अलग हो गई. उस की आवाज सुन कर मां भी वहां आ गईं और अब्दुल को बुराभला कहते हुए बोलीं, ‘‘क्यों मेरी लड़की को परेशान करता रहता है? जब इस ने मना कर दिया है, तो क्यों इस के कमरे में आता है?’’

अब्दुल यह सब देख कर हैरान था, पर वह कुछ न बोल सका और चुपचाप अपने कमरे में चला गया.अगले दिन वकील आया, तो सायरा ने अब्दुल को फोन कर के घर बुला लिया. अब्दुल ने वकील से कहा, ‘‘मुझे अपनी बीवी सायरा के नाम वसीयत बनानी है कि मेरे मरने के बाद यह घर मेरी बीवी को मिले.’’इस पर सायरा और उस की मां बिफर गईं. सायरा बोली, ‘‘कोई वसीयत नहीं… क्या पता कि तुम बाद में बदल जाओ. घर मेरे नाम पर करो.’’अब्दुल इस बात के लिए तैयार नहीं हुआ.

अब्दुल ने सायरा को काफी समझाया. उस के हाथ जोड़े, पैर पकड़े. अपने मासूम बच्चों का वास्ता दिया, लेकिन सायरा अपनी जिद पर कायम रही और उस ने अब्दुल की एक न सुनी, क्योंकि उसे पूरा यकीन था कि बाबाजी उस का दिमाग जरूर बदलेंगे और यह घर उस का हो जाएगा.इसी बीच सायरा की मुलाकात अपने पहले आशिक से हो गई, जो शादी से पहले उस से प्यार करता था.

सायरा अपनी मां की मौजूदगी में ही उस से मिलने जाने लगी, क्योंकि वह आशिक उस की मां की दूर की बहन का बेटा था. उस की मां भी उसे पसंद करती थी, मगर गरीब होने की वजह से इन दोनों की शादी न हो पाई थी. अब्दुल इस बात से अनजान था. वह इसी उम्मीद में था कि एक न एक दिन सायरा को अपनी गलती का अहसास होगा.लेकिन अब्दुल का ऐसा सोचना गलत था. सायरा अपने उस आशिक के साथ खुश थी, जो उस का ही हमउम्र और खूबसूरत था.

अब तो सायरा अब्दुल की सूरत भी देखना पसंद नहीं करती थी. वह तो इस ताक में थी कि किसी तरह यह घर मिल जाए, फिर इसे बेच कर जिंदगी की नई शुरुआत करे.अब्दुल काफी हताश हो चुका था. आखिर वह दिन भी आ गया, जब अब्दुल ने अपना घर सायरा के नाम कर दिया.

घर नाम होते ही सायरा और उस की मां की खुशी का ठिकाना न रहा. अब तो सायरा का आशिक खुलेआम उस के घर पर आने लगा. अब्दुल कुछ बोलता तो मांबेटी उसे धमका देती थीं.अब्दुल अपना दिमागी संतुलन खो रहा था. वह तो सायरा की याद में गुम रहता, लेकिन सायरा उसे कोई भाव न देती. आखिर सायरा और उस की मां ने अब एक नया दांव चला.

उन्हें किसी भी कीमत पर अब्दुल से छुटकारा चाहिए था. जब आसपड़ोस के लोग सायरा को समझाते तो वह उन से बोलती कि अब्दुल नामर्द है. अब्दुल इन सब बातों से अनजान पागलों की तरह जिंदगी गुजार रहा था. उस की इस हालत के बारे में जब अब्दुल के भाइयों को पता चला, तो वे उसे लेने मुंबई आ गए. उन्होंने सायरा से बात की, तो वह तपाक से बोली, ‘‘मैं एक नामर्द के साथ जिंदगी नहीं गुजार सकती. मुझे इस से तलाक चाहिए.’’

अब्दुल ने जब यह सुना, तो वह दंग रह गया. कुछ ही दिनों में अब्दुल और सायरा का तलाक हो गया. अब्दुल के भाई उसे और उस के बच्चों को गांव ले गए. धीरेधीरे अब्दुल की तबीयत में सुधार आने लगा. अब उसे अपने बच्चों की फिक्र थी. वह उन के लिए कुछ करना चाहता था. एक दिन अब्दुल के पार्टनर का फोन आया और उस ने उस से वापस मुंबई आने को कहा. अब्दुल वापस मुंबई आ गया. उस के पार्टनर ने उस की दुकान और बचत उसे दी और काम संभालने को कहा.

इधर सायरा वह घर बेच कर कहीं और चली गई थी. उस का कुछ पता न था. वैसे, उड़तीउड़ती खबर अब्दुल को भी मिलती रहती थी. अब्दुल के दोस्तों ने मिल कर उस की दूसरी शादी एक बेवा औरत से करवा दी, जिस के 2 मासूम बच्चे थे और कुछ ही दिनों में अब्दुल अपने बच्चों को भी ले आया.अब्दुल ने कड़ी मेहनत की और एक छोटी सी खोली खरीद ली.

वह अपने बीवीबच्चों के साथ बेहतर जिंदगी गुजरने लगा और दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा.उधर सायरा के आशिक ने सब पैसे घूमनेफिरने में उड़ा दिए और जब सब पैसे खत्म हो गए तो वह सायरा और उस की मां को छोड़ कर चला गया, क्योंकि उस ने सायरा से शादी नहीं की थी. वह तो केवल दौलत के लालच में उस के साथ रह रहा था.

सायरा और उस की मां को अब खाने के भी लाले पड़ने लगे और मजबूर हो कर दोनों मांबेटी को दूसरों के घरों में साफसफाई का काम करना पड़ रहा था.फिर एक दिन अचानक एक ऐसी घटना घटी, जिस ने सायरा को अपाहिज बना दिया. उसे लकवा मार गया था.

सायरा अब बिस्तर पर पड़ी सोचती रहती है कि अगर वह उस ढोंगी बाबा और अपनी मां के चक्कर में न पड़ती तो यह हालत न होती.सायरा की मां ने एक दिन अब्दुल को फोन किया और सारी बातें बताईं. अब्दुल उन के बताए हुए पते पर सायरा से मिलने गया. वहां का नजारा देख कर अब्दुल का दिल रो पड़ा. सायरा सूख कर कांटा हो चुकी थी. वह एक जिंदा लाश बन कर पलंग पर पड़ी थी. उस की एक गलती ने हंसताखेलता परिवार बरबाद कर दिया था. Story In Hindi

Hindi News Story: क्रीमी लेयर पर सियासी जंग

Hindi News Story: एक तरफ अयोध्या के राम मंदिर में ध्वजारोहण हो रहा था, दूसरी तरफ दिल्ली और एनसीआर मास्क लगा कर जहरीली हवा से जूझ रहा था. दिसंबर का महीना आने वाला था और यह साल भी अपना वजूद खोने जा रहा था.

इस बीच अनामिका ने एक दिन विजय को फोन किया, ‘‘यार, कल सुबह तुम मेरे साथ बैंक चलना. एक छोटा सा काम है, फिर हम दोनों ट्रेड फेयर देखने चलेंगे. ज्यादा दिन नहीं बचे हैं.’’

‘‘बैंक तो मैं चल लूंगा, पर ट्रेड फेयर जाने के नाम पर मेरी टांगें कांपने लगती हैं. बहुत भीड़ होती है और खर्च होता है, सो अलग,’’ विजय बोला.

‘‘तुम न बड़े बोरिंग इनसान हो. अभी बोल दूं कि किसी होटल में एक रात बिताते हैं, तो तुम्हारी बांछें खिल जाएंगी. पर अगर मुझे कहीं घूमने जाना हो, तो तुम बहाने बनाने लगते हो. यह गलत बात है,’’ अनामिका ने रूठते हुए कहा.

‘‘अच्छा ठीक है, पहले बैंक का काम निबटाएंगे, फिर देखते हैं कि ट्रेड फेयर जाने का समय बचता भी है या नहीं,’’ विजय बोला.

अगले दिन विजय और अनामिका सुबह 10 बजे ही बैंक चले गए थे. बैंक सरकारी था. अनामिका को अपना केवाईसी अपडेट कराना था. चूंकि बैंक की वैबसाइट में दिक्कत थी, तो उन्हें थोड़ा समय लग रहा था.

वैसे, केवाईसी अपडेट के लिए आप को पहचान और पते के प्रमाण के लिए जिन दस्तावेज की जरूरत होती है, उन में पैनकार्ड और आधारकार्ड सब से खास हैं, साथ ही पासपोर्ट, वोटर आईडी कार्ड, या ड्राइविंग लाइसैंस जैसे दस्तावेज की जरूरत हो सकती है.

इस के अलावा, आप को एक हालिया पासपोर्ट साइज की तसवीर और हाल का उपयोगिता बिल (जैसे बिजली या गैस बिल) या बैंक स्टेटमैंट जैसे पते के प्रमाण की भी जरूरत हो सकती है.

बैंक में एक चपरासी और गार्ड के बीच किसी बात को ले कर बहस हो रही थी. वे दोनों कौन्ट्रैक्ट पर वहां लगे थे. चपरासी ऊंची जाति का था, जबकि गार्ड एससी तबके से था.

गार्ड ने चपरासी को कोई काम करने को कहा था, जबकि चपरासी उसे भाव नहीं दे रहा था. मुद्दा बस इतना था कि चपरासी को एक कागज पर मैनेजर के दस्तखत और मुहर लगवानी थी. चूंकि बैंक में भीड़ ज्यादा थी तो गार्ड अपनी सीट नहीं छोड़ सकता था.

इसी बात पर चौकीदार चिढ़ गया था. वह बोला, ‘‘अब इन्हें भी सीट पर ही काम चाहिए. रिजर्वेशन से सब हड़प रहे हैं और अब काम भी हम से ही कराना चाहते हैं. जिस दिन रिजर्वेशन हट गया न, तब देखना.

मुफ्त की मलाई नहीं मिलेगी, तो आटेदाल का भाव पता चल जाएगा.’’

‘‘तो इस में क्या गलत है. तुम लोगों ने सदियों से हमें दबाया है. हमें हमारा हक मिलना चाहिए,’’ गार्ड ने भी ऊंची आवाज में कहा.

‘‘चिंता मत करो. नई सरकार क्रीमी लेयर वाले मामले पर कुछ धमाका करने वाली है. बहुत फायदा उठा लिया तुम लोगों ने रिजर्वेशन का. थोड़े दिनों के बाद सब बराबर हो जाएंगे,’’ चपरासी ने भड़ास निकालते हुए कहा.

‘‘क्यों अफवाह फैला रहे हो. बात का बतंगड़ बनाना तो कोई तुम से सीखे. मैं लंच टाइम में अपना काम करा लूंगा,’’ इतना कह कर वह गार्ड मेन गेट के बाहर जा कर अपनी सीट पर बैठ गया.

तब तक अनामिका का काम हो चुका था. अभी 12 बज रहे थे. वह और विजय ट्रेड फेयर की तरफ चल दिए.

चूंकि 1-2 दिन में मेला खत्म होने वाला था, तो भीड़ ज्यादा थी. वे दोनों अंदर जा कर सब से पहले एक रैस्टोरैंट में गए. उन्हें चाय पीने की तलब थी.

इसी बीच अनामिका बोली, ‘‘उस चपरासी ने कितनी आसानी से कह दिया कि अब देश से रिजर्वेशन खत्म हो जाएगा. उसे क्या पता कि क्रीमी लेयर क्या होता है.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि क्रीमी लेयर बला क्या है?’’ विजय ने अनामिका को कुरेदते हुए पूछा.

यह सुन कर अनामिका बोली, ‘‘मैं ने बीबीसी के एक लेख में पढ़ा था और वहां इसे अच्छे से समझाया गया था कि ‘क्रीमी लेयर’ की सोच इंद्रा साहनी मामले (1992) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पेश की गई थी, जिसे मंडल आयोग मामले के रूप में भी जाना जाता है.

‘‘अदालत ने फैसला सुनाया कि ओबीसी में उन्नत वर्गों को आरक्षण के लाभ का दावा नहीं करना चाहिए, लेकिन इस वर्ग के वास्तव में जरूरतमंद लोगों को यह लाभ मिलना चाहिए.

‘‘इस के मुताबिक, 8 लाख से ज्यादा सालाना आमदनी वाले परिवारों को क्रीमी लेयर का हिस्सा माना जाता है. यह आमदनी सीमा सरकार की ओर से समयसमय पर बदली जाती है. इस के अलावा, ग्रुप ए और ग्रुप बी सेवाओं में ऊंचे पद के अफसरों के बच्चे भी क्रीमी लेयर में शामिल हैं.

‘‘डाक्टर, इंजीनियर और वकील जैसे अमीर पेशेवरों के बच्चों को भी क्रीमी लेयर का हिस्सा माना जाता है. इस के अलावा बड़े पैमाने पर खेतीबारी की जमीन के मालिक परिवारों को भी क्रीमी लेयर में शामिल किया गया है.

‘‘क्रीमी लेयर के सदस्य सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों समेत ओबीसी के लिए आरक्षित लाभों के लिए पात्र नहीं हैं.

‘‘वर्तमान में क्रीमी लेयर की सोच एससी और एसटी पर लागू नहीं होती है. एससी और एसटी के तकरीबन सभी लोगों को आरक्षण का लाभ मिलता है. लेकिन अब कोर्ट की इस ऐतिहासिक सिफारिश के बाद इस में बदलाव की संभावना है.’’

‘‘तो फिर अब इसे क्यों मुद्दा बनाया जा रहा है?’’ विजय ने पूछा.

‘‘मैं तुम्हें हाल की एक खबर बताती हूं. रिटायरमैंट से ठीक पहले चीफ जस्टिस बीआर गवई ने क्रीमी लेयर नौकरियों के कोटे को ले कर बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक है कि एससीएसटी समुदायों में सामाजिक और मालीतौर पर अमीर लोग जाति को हथियार बना कर नौकरियों में आरक्षण का बड़ा हिस्सा हथिया रहे हैं.

‘‘एक बड़े अखबार से बातचीत में चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि केंद्र और राज्यों को एससीएसटी समुदायों को उपवर्गीकृत करने का समय आ गया है, ताकि इन समुदायों में वे लोग जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े बने हुए हैं, सरकारी नौकरियों में कोटे के लाभ उठा सकें.

‘‘चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली 7 जजों की बैंच ने राज्यों को एससी समुदायों के भीतर जातियों को सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन व सरकारी नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व के आधार पर उपवर्गीकृत करने की इजाजत दी, यह पक्का करते हुए कि कोटे का बड़ा हिस्सा सब से पिछड़े लोगों को जाए.

‘‘इस बारे में चीफ जस्टिस ने कहा कि अपने ही समुदाय से आलोचना के बावजूद, वे दृढ़ता से महसूस करते हैं कि एससीएसटी समुदायों में क्रीमी लेयर को इन समुदायों में वंचितों के लिए जगह देनी चाहिए.’’

‘‘इस में गलत क्या है? जब क्रीमी लेयर वालों ने पहले ही आरक्षण का फायदा ले लिया है, तो उन की अगली पीढ़ी को खुद ही इस सब का फायदा नहीं लेना चाहिए, तभी तो गरीब एससीएसटी को आरक्षण का असली हक मिल पाएगा,’’ विजय ने कहा.

‘‘विजय, तुम मामले की गहराई नहीं समझ रहे हो. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त, 2024 को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण बारे में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि सरकार इन समुदायों के आरक्षण सीमा के भीतर अलग से वर्गीकरण कर सकती है.

‘‘तब चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की 7 जजों की बैंच के 6 जस्टिस ने एससीएसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण के पक्ष में फैसला सुनाया, जबकि एक जस्टिस ने इस का विरोध किया.

‘‘फैसला सुनाते समय यह सिफारिश भी की गई कि एससी और एसटी के लिए आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रावधान होना चाहिए और यह ओबीसी वर्ग पर लागू क्रीमी लेयर के प्रावधान से अलग होना चाहिए.

‘‘इस फैसले को ले कर कई पहलुओं की तरफ लोगों का ध्यान गया है कि क्या एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर देने की जरूरत है?’’

‘‘पर मैं इस फैसले को ऐतिहासिक मानता हूं. तुम इस तरह से यह बात समझो. अगर एक छात्र दिल्ली के किसी बड़े और नामचीन या किसी और बड़े शहर के बढि़या कालेज में पढ़ रहा है और एक छात्र गांवदेहात के किसी साधारण स्कूल या कालेज में पढ़ रहा है, तो इन दोनों छात्रों को एकसमान नहीं माना जा सकता है. अगर एक पीढ़ी आरक्षण का लाभ ले कर आगे बढ़ी है, तो अगली पीढ़ी को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए,’’ विजय ने अपना पक्ष रखा.

‘‘ओह, तो यह बात है. पर तुम इस मुद्दे को बड़ा हलके में ले रहे हो. ‘वंचित बहुजन अघाड़ी’ के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर ने इस फैसले का विरोध किया है. उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘सुप्रीम कोर्ट का फैसला एससी के तहत पिछड़ेपन को मापने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मानदंडों पर चुप है.

‘‘प्रकाश अंबेडकर ने आगे कहा कि आरक्षण से न केवल एससी, एसटी और ओबीसी को लाभ होता है, बल्कि सामान्य श्रेणियों को भी लाभ होता है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.

‘‘और तो और सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सुनाए फैसले के बारे में बौम्बे हाईकोर्ट के वकील संघराज रूपवते ने कहा कि सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों ने एक बार फिर अदालत की आड़ में वही किया है, जो वे चाहते थे. यह एक ऐसा फैसला है जो हमें जातिविहीन समाज से दूर ले जाता है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उपवर्गीकरण की अनुमति देना 6 जस्टिस की एक बड़ी गलती है.

‘‘वैसे भी एससी और ओबीसी के क्रीमी लेयर अलग होते हैं. इस बारे में ‘नैशनल कौन्फेडरेशन औफ दलित और्गनाइजेशन’ के अध्यक्ष अशोक कुमार भारती इस बारे में कहते हैं कि एससीएसटी सामाजिक, आर्थिक और ऐतिहासिक रूप से वंचित रहे हैं, इन्हें समाज से बाहर रहने के लिए मजबूर किया गया था. इन के खिलाफ अन्याय का भाव अब भी समाज में बरकरार है, जबकि ओबीसी के बारे में ऐसा नहीं है. उन के पास भूमि है, साधन हैं. हालांकि, शिक्षा के मामले में वे भी वंचित हैं.’’

‘‘तो तुम यह मानती हो कि यह सरकार की साजिश है?’’ विजय ने पूछा.

‘‘एक तरह से कह सकते हैं. जनरल कैटेगरी में जज का बच्चा जज बन सकता है, डाक्टर का बच्चा डाक्टर बन सकता है, इंजीनियर का बच्चा इंजीनियर बन सकता है, पर वंचितों में क्रीमी लेयर की फांस लगा कर उन्हें ऐसा करने से रोक दो कि आप की एक पीढ़ी ने आरक्षण का फायदा ले लिया है, अब अगली पीढ़ी को अपने दम पर यह मुकाम हासिल करना होगा.

‘‘यहां पर एक सामाजिक पहलू भी है. जिस एससीएसटी और ओबीसी के बच्चे अपने मांबाप की बड़ी सरकारी नौकरी की वजह से अब पढ़ाईलिखाई में बेहतर रिजल्ट दे रहे हैं, यह उन्हें मानसिक रूप से दबाने की भी कोशिश है.

‘‘लेकिन टीना डाबी जैसे होनहार जनरल कैटेगरी को टक्कर दे रहे हैं. वे आईएएस टौपर तो थीं ही, उन्हें कथिततौर पर 12वीं जमात के बोर्ड इम्तिहान में 93 फीसदी अंक मिले थे, जिस में राजनीति विज्ञान और इतिहास दोनों में 100 अंक शामिल हैं. सोशल मीडिया पर उन की मार्कशीट वायरल हुई थी,’’ अनामिका बोली.

‘‘मान ली तुम्हारी बात, पर सोशल मीडिया पर कही बात जरूरी नहीं कि सही हो,’’ विजय ने शक जाहिर किया.

‘‘उत्तर प्रदेश में सर्वोदय विद्यालय, मिर्जापुर की 25 छात्राओं में से 12 ने इस साल देश की सब से मुश्किल मैडिकल प्रवेश परीक्षा यानी नीट पास की थी. ये सभी छात्राएं एससी, एसटी और ओबीसी परिवारों से आती हैं.

‘‘तो हम यह नहीं कह सकते हैं कि इन तबकों के बच्चे होनहार नहीं हैं. वे अब पढ़ाईलिखाई की कीमत समझ रहे हैं. अगर उन्हें सही सीख मिले तो वे खुद को साबित करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ते हैं,’’ अनामिका बोले जा रही थी.

‘‘ठीक है, ठीक है, पहले तुम पानी पी लो. मान ली तुम्हारी बात. सरकार को एकदम से कोई कड़ा फैसला नहीं लेना चाहिए. चीफ जस्टिस बीआर गवई ने अपनी बात रखी है और उस पर बहस की जा सकती है.

‘‘देश में अभी जाति के नाम की समानता बनाने में समय लगेगा. यह कोई ऐसा फैसला नहीं है कि आज लागू हुआ और कल से देश में बदलाव की बयार बहने लगेगी. यहां बात किसी वंचित समुदाय के मालीतौर पर मजबूत होने की नहीं है, बल्कि उन्हें साथ खड़ा रहने की हिम्मत भी देनी होगी.

‘‘जिन बच्चों के मांबाप ने आरक्षण से खुद को ऊंचा उठाया है, उन बच्चों में थोड़ा आत्मविश्वास आया है, पर अभी दूर तक जाना है और सरकार को कोई भी फैसला लेने से पहले हर पहलू पर गौर करना होगा,’’

विजय ने अनामिका की बात को बैलेंस देते हुए कहा.

‘‘यही आज की जरूरत है. राजनीति और जातिवाद दोनों अलगअलग बातें हैं. अगर कोई सरकार ‘सब का साथ सब का विकास’ का नारा देने की पहल करती है, तो उसे वाकई सब को साथ ले कर चलना होगा, तभी देश में तरक्की दिखाई देगी,’’ अनामिका ने अपनी बात खत्म की.

इस के बाद विजय ने लंच का बिल दिया और वे दोनों उस रैस्टोरैंट से बाहर निकल गए. अभी मेला देखना जो बाकी था. Hindi News Story

Hindi Funny Story: गर्व से कहो हम भ्रष्ट हैं

Hindi Funny Story, लेखक – जे. शर्मा

बस कंडक्टर की रोचक बातों ने मेरा दिल जीत लिया था. मैं जब भी अपना 500 रुपए का कड़क नोट उस की तरफ बढ़ाता, वह बारबार मेरी अनदेखी करते हुए आगे निकल जाता और दूसरी सवारियों की टिकटें काटने लगता.

मेरा माथा ठनका कि आज कुछ न कुछ गलत हो कर रहेगा. यह 500 का नोट कई बार बहुत बड़ी मुसीबत में डाल देता है.

खैर, सब की टिकटें काटने के बाद वह बस कंडक्टर मुसकराता हुआ मेरे पास आ कर बैठते हुए बोला, ‘‘बाबूजी, मैं ने आप को पहले भी इस रूट पर देखा है. आप फूड सप्लाई महकमे में काम करते हैं न?’’

मैं ने सोचा कि शायद इस गलतफहमी में मैं टिकट लेने से बच जाऊंगा. लिहाजा, मैं ने हामी भर दी.

कंडक्टर ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘बाबूजी, हमारे चाचा के साले का लड़का भी आप के महकमे में है.

संपत दलाल… नाम सुना होगा आप ने… बहुत ऊंची पोस्ट पर है. राजधानी में एक बड़ी सी कोठी है उस की.

‘‘वैसे, एक बात है बाबूजी कि आप के महकमे में पैसा बहुत है. राइस मिल या फ्लोर मिल वालों को जरा सा इशारा कर दो, बोरी भर कर नोट आप के आंगन में फेंक जाएंगे. आप रातभर बैठे गिनते रहो, सुबह हो जाएगी…’’

वह थोड़ी सांस ले कर आगे बोला, ‘‘मेरा तो यही मानना है कि मुझे अगले जनम में फूड सप्लाई की नौकरी मिले, चाहे चपरासी ही क्यों न बनना पड़े…

‘‘और एक बात सुनो… हमारे पड़ोस में मोहनलाल की कोठी है. वह कस्टम महकमे में चपरासी है. क्या शान है उस की. गाड़ी है, घर में एयरकंडीशनर लगा है. वह हर समय मोबाइल फोन पर बातें करता रहता है और उस के घर के लोग काजूकिशमिश ऐसे चबाते हैं, जैसे मूंगफली के दाने चबा रहे हों. यह सब देख कर मेरे मन में लड्डू फूटने लगते हैं…’’

लेकिन कुछ देर बाद वह थोड़े उदास लहजे में बोला, ‘‘और एक हम सरकारी बसों के कंडक्टर हैं कि सारी उम्र रुपए 10 रुपए का टांका लगालगा कर ही बूढ़े हो जाते हैं. पता नहीं, हमारा अच्छा समय कब आएगा.

‘‘मैं ने 2 लाख रुपए की रिश्वत दे कर अपने छोटे बेटे को म्यूनिसिपल के दफ्तर में चपरासी लगवा दिया है, लेकिन वह ससुरा तो मुफ्त में लोगों के काम करवाता फिरता है. मैं उस से कहता हूं कि 2 लाख रुपए जमा करने में मेरी कमर टेढ़ी हो गई है, वे तो वसूल कर के ला.

‘‘मैं ने भी उसे बोल दिया है कि बेटा, जल्दी ही तेरी शादी कर के तुझे अलग कर दूंगा. जब तेरे बच्चे होंगे और खर्च बढ़ेगा, तब तू खुद ही हाथपैर मारेगा. सारे उसूल धरे के धरे रह जाएंगे.

‘‘अच्छा बाबूजी, आप से हुई बातें बहुत मजे की रहीं. रास्ता कट गया. आप वह 500 रुपए का नोट दिखा रहे थे न… लाओ, मैं आप का टिकट बना देता हूं.

‘‘आजकल टिकट चैकर भी बहुत दुखी करते हैं. महीना तो बंधा है, मगर फिर भी उन की नीयत खराब रहती है. सोचते हैं कि पता नहीं कंडक्टर कितनी लूट मचाते हैं.’’

मीठीमीठी बातें करता हुआ वह कंडक्टर 35 रुपए अपनी जेब में रख लेता है और टिकट नहीं बनाता.

बाकी रुपए वापस करते हुए वह कहता है कि आप जहां कहोगे, हम वहीं उतार देंगे.

मैं भी सोचता हूं कि चलो इसी बहाने मेरे ईरिकशा के 20 रुपए बच जाएंगे. Hindi Funny Story

Best Family Story: फर्ज

Best Family Story: उस ने बाइक एक ओर खड़ी की और सामने महाराज के होटल पर जा कर कोने में पड़ी बैंच पर बैठ गया. सुनील ने उस से नमस्ते की, लेकिन वह खामोश ही रहा.

‘‘सब अपने बाप का नौकर ही समझते हैं,’’ थोड़ी देर के बाद वह बड़बड़ाया. अनायास ही उस का स्वर कुछ तेज हो गया था.

‘‘क्या हुआ दीवानजी, क्या किसी से झगड़ा हो गया?’’ सुनील ने उस से पूछा.

‘‘झगड़ा क्या होगा. इस नए थाना प्रभारी की घरवाली तो ऐसा और्डर मारती है, जैसे मैं सिपाही नहीं इस के बाप का नौकर हूं.

‘‘अगर कुछ कहो तो बस… जिसे देखो वही हम जैसे छोटे लोगों पर ही रोब दिखाता है,’’ अंदर घुमड़ रहा गुस्सा अनायास ही उस के शब्दों को गंदा कर रहा था.

‘‘आज काफी गुस्से में लग रहे हैं दीवान चाचा,’’ उस ने देखा कि मुकेश उस की बैंच पर आ कर बैठ गया था वहीं और उस से पूछ रहा था.

मुकेश उसे ‘चाचा’ ही कहता है. मुकेश वैसे तो फलों का ठेला लगाता है, लेकिन असलियत में पहले वह एक चोर था, जो अकसर छोटीमोटी चोरियां किया करता था. उस पर चोरी के 1-2 मुकदमे भी दर्ज थे. लेकिन जब से उस ने मुकेश को समझाया था, तब से मुकेश चोरी का धंधा छोड़ कर फलों का ठेला लगाने लगा था.

मुकेश की एक बहन रजनी उसे ‘बाबूजी’ कहती है. वह अकसर गश्त करतेकरते मुकेश के घर चला जाता. मुकेश की बहन अकसर कह देती कि उन के होने से उन्हें लगता ही नहीं है कि वे लोग अनाथ हैं. उसे भी न जाने क्यों उन दोनों से लगाव सा हो गया था.

वह शहर के बहुत से लोगों को जानता है, जो कोतवाली में खर्चापानी देते रहते हैं. वैसे गैरकानूनी काम करने वाले सभी पुलिस को हफ्ता देते हैं.

उसे भी कई लोगों ने खर्चा देना चाहा, लेकिन उस ने साफतौर पर लेने से मना कर दिया. पहले चोरउचक्के, गिरहकट उस के नाम से कांपते थे, लेकिन इस के बावजूद उस ने कभी वरदी का रोब डाल कर कुछ ऐंठने की कोशिश नहीं की, बल्कि वह ऐसे लोगों को गिरफ्तार करता, लेकिन साहब लोगों की मेहरबानी से वे शाम तक ही बाहर आ जाते.

और तो और उस को जम कर फटकार भी लगाई गई कि उस ने उन को गिरफ्तार ही क्यों किया. तब से उस ने फर्ज को भूल कर ऐसी भूल दोबारा नहीं की. वह जानता था कि सोने का अंडा देने वाली मुरगी को कौन हलाल करना चाहेगा.

तभी सचिन उस के आगे 2 कप चाय और प्लेट में नमकीन रख गया. वह समझ गया कि अंदर आते समय मुकेश ने चाय के लिए बोल दिया होगा.

पहले तो उस का मन नहीं हुआ कि वह चाय पिए. अभी वह एक पैग लगा आया था. नाइट ड्यूटी थी, इसलिए कोई दिक्कत नहीं थी वरना वह अकसर रात में दारू पीता है, लेकिन फिर भी वह बिना कुछ बोले चाय का गिलास उठा कर चाय पीने लगा, जिस से उसे कुछ राहत महसूस हुई.

‘‘क्या हुआ दीवान चाचा, आज काफी गुस्से में लग रहे हैं?’’ मुकेश ने दोबारा उस से पूछा.

‘‘रिटायरमैंट के 2 साल रह गए हैं. सोचता हूं कि सुकून से कट जाएं, लेकिन ये सब… सुबह विवेक साहब की बीवी ने कुछ सामान लाने को कहा था और दारोगा ने एक आदमी को लाने के लिए भेज दिया था, जिस से सामान ला कर देने में कुछ देर हो गई, बस वह बिगड़ पड़ी जैसे मैं सिपाही नहीं, बल्कि उस का घरेलू नौकर हूं,’’ वह बोला.

‘‘आजकल संजय सिपाही तो बहुत लूट रहा है,’’ मुकेश बोला.

‘‘आजकल लूट कौन नहीं रहा है. मैं तो समझता था कि नए लड़केडिपार्टमैंट के मुंह पर लगी कालिख को साफ कर कुछ नया करेंगे, लेकिन ये तो और ज्यादा खाऊ निकले.

‘‘पहले तो कभीकभी कोई फंस जाता था, उसे ही हलाल किया जाता था, लेकिन ये नए लड़के तो शिकार की तलाश में ही घूमते रहते हैं,’’ वह गहरी सांस लेते हुए बोला.

चाय का गिलास खाली हो गया था. उस ने गिलास मेज पर रख दिया. तभी बाहर कुछ शोर सुनाई दिया.

शोर सुन कर उस का ध्यान होटल से बाहर गया. उस ने देखा कि सामने 2 लड़कों में किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था, जो गालीगलौज के बाद हाथापाई पर उतर आये थे, जिस से वहां काफी भीड़ जमा हो गई थी.

तभी वहां बाइक से सिपाही सुधीर और संजय आ गए. वह सम?ा गया कि किसी ने उन को फोन कर दिया है. बाइक से उतरते ही वे उन दोनों लड़कों को डांटडपट कर बाइक पर बिठा कर चौकी की ओर ले गए.

यह देख कर वह समझ गया कि अब दोनों से अच्छीखासी रकम वसूल कर सुलह करवा दी जाएगी.

‘‘दीवान चाचा, आज तो दोनों की मोटी कमाई हो जाएगी. दोनों पार्टी मोटी हैं,’’ मुसकराते हुए मुकेश ने उस से कहा.

मुकेश की बात सुन कर वह कुछ नहीं बोला.

आज इतने साल ड्यूटी के बीत गए थे, लेकिन उस ने वरदी पर रिश्वत जैसा दाग लगने नहीं दिया था और न ही वह कभी अपने फर्ज से पीछे हटा, जिस का उसे इनाम भी मिला था.

एसपी साहब ने उस की बेहतर कार्यशैली के चलते उसे स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सिपाही से दीवान बना दिया था, जिस से उस को लगा था कि चलो ईमानदारी से ड्यूटी करने का उसे कुछ तो फायदा मिला.

लेकिन यह खुशी भी उस के लिए कुछ दिन की ही थी.

उस दिन वह नाइट ड्यूटी कर के घर लौट रहा था, तभी रास्ते में उस ने अनुज को देखा जो नशीले पदार्थों की तस्करी किया करता था. वह काफी दिनों से उस की रडार पर था.

आज उस ने स्मैक बेचते रंगे हाथ अनुज को गिरफ्तार कर लिया. इस दौरान 2-4 हाथ भी उस ने उसे मार दिए और उसे थाने ले आया. उस ने यह भी नहीं सोचा कि वह साहब का खास आदमी है और फिर विवेक साहब ने उस को मिली पट्टियां उतरवा दीं और वह फिर दीवान से सिपाही बन गया था.

‘‘आराम नहीं है आप की नौकरी में,’’ मुकेश बोला.

‘‘आराम और वह भी इस नौकरी में… सत्तर खसम होते हैं इस नौकरी में, एसपी साहब आए या फिर आईजी डीआईजी सब की बस जेबें गरम होनी चाहिए… कहीं से ला कर दो इन को, पर इन का पेट पहले भरो, फिर कहा जाता है कि ईमानदारी से नौकरी करो, ड्यूटी पर फर्ज निभाओ…

‘‘कर तो रहा हूं ईमानदारी से… आधी तनख्वाह तो साहब लोगों को मुरगाबकरा खिलाने में चली जाती है और आधी से घर चलाओ.

‘‘2 बार सिपाही से दीवान बना, लेकिन इस विवेक सिंह ने वह भी छीन लिया, लेकिन फिर भी दीवान भानु प्रताप ही रहूंगा… देखता हूं कौन रोकेगा मुझे,’’ वह कुछ तेज स्वर में बोला.

‘‘दीवान चाचा, आप ने लगाई हुई है शायद. आप को चढ़ गई है. ऐसा कीजिए कि आप अब घर चले जाइए. मैं भी अपने ठेले पर जाता हूं. कहीं किसी ने आप की वीडियो वगैरह बना ली तो…’’ मुकेश घबरा कर इधरउधर देखते हुए बोला और तुरंत उठ कर होटल से बाहर चला गया.

उसे भी अपनी गलती का एहसास हो गया. वह भी जानता है कि आजकल वैसे भी लोग पुलिस को अपना दुश्मन ही समझते हैं.

पता नहीं कौन मौके का फायदा उठा ले और उस की इस तरह की बेवजह की बातें मोबाइल में रिकौर्ड कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दे और वह सफाई देता घूमता रहे.

आज कितने बरस हो गए पुलिस की नौकरी करते हुए, लेकिन आज भी हालात उस के जस के तस हैं. जितनी तनख्वाह मिलती है, उस से वह ढंग से परिवार भी नहीं चल पाता.

2 बेटियां हैं. एक की तो जैसेतैसे कर्ज ले कर शादी कर दी, लेकिन दूसरी कुंआरी घर में बैठी है. अभी तक उस के हाथ पीले नहीं कर पाया.

एक बेटा है वह भी ग्रेजुएशन करने के बाद बेरोजगारों की भीड़ में शामिल हो गया है. लड़की की शादी के बाद उस पर कर्ज भी काफी हो गया है. सभी सम?ाते हैं कि पुलिस में है, तो उस के पास बहुतकुछ होगा, लेकिन लोग यह नहीं समझते कि उस जैसे सिपाही कमाई नहीं कर पाते और हराम का पैसा लेना उस की फितरत में नहीं.

वैसे भी सभी को पता है कि हराम का पैसा जैसे आता है, वैसे ही चला जाता है. कभीकभी हालात ऐसे हो जाते हैं कि कुछ खानेपीने की इच्छा होती है, लेकिन मन मारना पड़ जाता है.

‘‘अरे भानु, तुम यहां बैठे हो और मैं तुम्हें कब से ढूंढ़ रहा हूं. तुम्हारा नंबर भी बंद बता रहा है,’’ तभी उस की तंद्रा भंग हुई. उस ने देखा कि सामने दीपक खड़ा हुआ था. वही उस से पूछ रहा था.

‘‘कहीं नहीं, नाइट ड्यूटी है बस इसीलिए चाय पीने चला आया था. शायद मोबाइल चार्ज नहीं किया था, इसीलिए स्विचऔफ हो गया होगा,’’ उस ने दीपक से कहा.

दीपक भी सिपाही की पोस्ट पर था, लेकिन उस का रहनसहन किसी अफसर से कम नहीं था. दीपक अलग से कमाता भी खूब था और साहब लोगों पर खर्च भी करता था, इसलिए साहब लोग उस से खुश भी रहते थे.

दीपक ने कई बार उसे समझाया था कि अलग से कुछ कमा लिया करो. कम से कम तनख्वाह तो बच जाएगी और घरपरिवार तो सही से चला सकोगे.

दीपक ने उसे कमाने के मौके भी दिए. एक बार वह दीपक के साथ चौकी पर बैठा हुआ था, तभी जमीनी विवाद का मामला आ गया.

दीपक ने 25,000 रुपए में मामला सैट कर दिया. उस ने मामले को निबटाने के लिए कहा और खुद एक बड़े मामले को निबटाने चला गया.

उस ने विवाद को बहुत ही सूझबूझ से निबटा दिया, लेकिन वह रुपए लेने की हिम्मत न कर सका. जब यह बात दीपक को पता चली, तो उस ने उसे बहुत सुना दिया था.

वह भी क्या करे, उस का जमीर यह कभी गवारा नहीं कर पाया कि वह किसी से हराम का पैसा ले.

‘‘कहां खो गए जनाब…’’ तभी एक बार फिर दीपक ने उस से कहा.

‘‘बस, ऐसे ही. और बताओ कैसे आना हुआ?’’ यादों के भंवर से वापस आ कर उस ने दीपक से पूछा.

‘‘मैं यह कह रहा था कि भतीजे को पुलिस में भरती क्यों नहीं करवा देते… फार्म वगैरह भरवा दो, भरती निकली है. मैं ने ऊपर साहब लोगों से 2 लाख में बात भी तय कर ली है. बस, यही तुम को बताना था,’’ दीपक ने उसे धीरे से बताया.

‘‘ठीक है, देखता हूं,’’ उस ने दीपक से कहा.

‘‘अच्छा, चलता हूं. ड्यूटी का टाइम है,’’ दीपक बोला और वहां से चला गया. वह भी उठ कर होटल से बाहर आ गया और कमरे की ओर चल दिया. सामने से निकल रहे आटोरिकशा को रोक कर उस में बैठ गया.

उसे पता बताने की जरूरत ही नहीं पड़ती, क्योंकि वह अकसर आटोरिकशा या फिर रिकशा से ही आताजाता है.

पता नहीं क्यों आज उसे एहसास हो रहा था कि अगर उस ने भी और लोगों की तरह रिश्वत ली होती तो वह
अपनी जिंदगी ऐशोआराम से जीता. वह जानता है कि उस ने जिंदगी जी नहीं बल्कि ढोई है.

ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद रोहन ने नौकरी के लिए बहुत हाथपैर मारे, इंटरव्यू भी दिए, लेकिन बिना रिश्वत के वह नौकरी न पा सका.

उस की इतनी हैसियत नहीं थी कि वह लाख 2 लाख का इंतजाम कर सके. छोटीमोटी नौकरी वह करना नहीं चाहता, जिस के चलते रोहन आवारागर्दी करने लगा और उस के नाम पर लोगों से वसूली करने लगा, जिस की वजह भी वह खुद को समझता है.

अब तो उसे घर से मतलब ही नहीं रह गया था. उसे फिक्र थी कि रिटायरमैंट करीब है और उस के बाद मामूली सी पैंशन मिलनी है, तब कैसे गुजारा हो पाएगा.

‘‘साहब, आप का घर आ गया,’’ तभी आटोरिकशा वाले की आवाज सुन कर वह यादों के भंवर से निकल कर धरातल पर आ गया.

उस ने 10 रुपए निकाल कर आटो रिकशा वाले को दे दिए. वह जानता है कि अगर वह रुपए नहीं देगा तो भी वह रुपए नहीं मांगेगा, लेकिन वह कभी किसी गरीब का हक नहीं मारता.

कमरे पर पहुंच कर उस ने मोबाइल निकाल कर चार्जिंग पर लगा दिया और उस का स्विच औन कर दिया. फिर वह सामने रखी कुरसी पर बैठ गया. उस ने अपनी आंखें बद कर लीं.

तभी किसी ने दरवाजे को खटखटाया. उस ने उठ कर दरवाजा खोला. सामने होमगार्ड विनोद था.

‘‘साहब ने आप को तुंरत बुलाया है. आप का मोबाइल बंद था, इसलिए साहब ने आप को लेने के लिए भेजा है,’’ विनोद ने उस से कहा.

किसी अनहोनी के डर से उस का दिल घबराने लगा. वह सम?ा गया कि मैडम ने ही साहब को बताया होगा.

सुबह उस ने मैडम से गुस्से में आ कर कह दिया था, ‘‘मेमसाहब, आप अपना सामान किसी और से मंगा लिया करें, मैं आप का कोई नौकर नहीं हूं.’’

वह जानता है कि विवेक साहब उसे किसी लफड़े में डाल कर लाइन हाजिर भी करवा सकते हैं. वह पछता रहा था कि बेकार में ही वह ताव खा गया. इतने साल कट गए थे, ये 2 साल भी काट लेता. घर के हालात, कुंआरी बेटी का बोझ और बेरोजगार बेटा सब उसे भयानक सपने की तरह डराने लगे थे. उस का दिल अनायास ही धड़कने लगा था.

वह कोतवाली पहुंचा. सामने ही विवेक साहब कुरसी पर बैठे हुए थे. उन्हें देख कर उस के माथे पर पसीना आ गया था. वह सोच रहा था कि वह साहब और मेमसाहब से माफी मांग लेगा कि गलती हो गई, ज्यादा होगा तो पैरों पर गिड़गिड़ा कर माफी मांग लेगा. कम से कम नौकरी तो बच जाएगी. अनायास ही वह सोच गया.

आज उसे ऐसा लग रहा था कि वह बेवजह ही दावा करता था कि अपराधी उस से डरते हैं, जबकि आज उस में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह गलत का विरोध कर सके.

‘‘जय हिंद सर,’’ उस ने साहब को देख कर एक जोरदार सैल्यूट किया.

‘‘क्यों भानु प्रताप, आजकल यह मुकेश कुछ नहीं दे रहा है?’’ उसे देख कर विवेक साहब बोले.

वह समझ गया कि यह सारा मामला पैसों का है.

‘‘साहब, वह मुकेश अब फलों का ठेला लगा रहा है. उस ने चोरी करनी छोड़ दी है,’’ उस ने बताया.

‘‘यह नौटंकी तो ये सब करते हैं.’’

‘‘नहीं सर, मुकेश ने सचममुच गलत धंधा छोड़ दिया है.’’

‘‘इसीलिए इस को 5 लाख रुपयों की लूट में धर दिया. कल सुबह खुलासा करना है. 2 को पकड़ लिया है, एक फरार है. अब इस को भी उठवाया है.

‘‘एक घंटे में मुठभेड़ भी दिखानी है और तुम भी साथ में रहोगे,’’ विवेक साहब उसे घूरते हुए बोले.

‘‘लेकिन सर…’’ वह बोला.

‘‘मुझे मालूम है कि आजकल तुम्हारी तुम्हारी मुकेश से कुछ ज्यादा ही छन रही है. क्यों रिटायरमैंट पर अपनी फजीहत कराने पर तुले हुए हो…’’ साहब कुछ तीखे स्वर में बोले.

डकैती और मुठभेड़ का नाम सुन कर वह समझ गया कि मुकेश के साथ नाइंसाफी हो रही है. न वह उस से चोरी छुड़वाता और न वह उस से इतना लगाव रखता, तो शायद आज मुकेश को यह दिन नहीं देखने पड़ते. वह भी क्या करे, ड्यूटी तो करनी ही थी.

‘‘जय हिंद साहब,’’ तभी किसी की आवाज पर वह चौंक गया. सामने सुधीर खड़ा था, जो साहब को ‘नमस्ते’ कह कर बता रहा था.

बाहर आ कर उस ने देखा कि मुकेश के हाथों में हथकड़ी थी और उसे जेल में बंद कर दिया गया था. अंदर 2 लोग और थे जो असलियत में लुटेरे थे.

कुछ ही देर में तीनों को गाड़ी में बिठा दिया गया. साहब आगे गाड़ी में बैठ गए और वह भी 3 सिपाहियों के साथ गाड़ी में बैठ गया.

मुकेश उसे देख रहा था, लेकिन उस की मुकेश से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी.

कुछ समय बाद गाड़ी रुकी. उस ने देखा कि वे लोग जंगल के किनारे आ गए थे. विवेक साहब ने मुकेश को गाड़ी से बाहर निकलवाया और एक पिस्टल उसे पकड़ा दी.

मुकेश बुरी तरह से डर कर कांप रहा था. वह डर कर भागा. साहब ने उसे इशारा किया और उस ने मुकेश के पैर पर निशाना साध कर फायर कर दिया.

एक धमाका हुआ और मुकेश वहीं गिर गया और वह भी ‘धम’ से वहीं बैठ गया. Best Family Story

Best Hindi Story: लालच

Best Hindi Story: रामपुर की फिजाओं में सरसों की बसंती महक घुली हुई थी. खेतों का पीला आवरण मानो धरती का सिंगार कर रहा था. गांव की चौपाल पर ठहाकों और बहसों का दौर हमेशा की तरह जारी था.

लेकिन इन सब के बीच पारुल एक अलग ही दुनिया में जी रही थी. रूप ऐसा कि जैसे कुदरत ने फुरसत में तराशा हो. गोरा रंग, अल्हड़ स्वभाव और आंखों में सुनहरे भविष्य की चमक. वह सपने बुनती थी कि एक छोटा सा घर हो, जीवनसाथी का अटूट साथ हो और खुशियों से भरी गृहस्थी हो.

जब पारुल की शादी विनोद से हुई, तब वह बहुत खुश थी. लाल जोड़े में लिपटी, हीरे सी दमकती पारुल उस दिन किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. विनोद का प्यार और उपहारों की बौछार ने पारुल को यह विश्वास दिला दिया कि बस यही असली जिंदगी है.

लेकिन, समय ने करवट ली और सुनहरे सपने कालिख में बदलने लगे. विनोद के बरताव में आया बदलाव धीमे जहर की तरह था. शराब का नशा, देर रात की वापसी, और फिर वह भयावह दौर जहां प्यार की जगह गालियों ने और इज्जत की जगह मारपीट ने ले ली.

पारुल का कोमल मन अब कांच की तरह दरक चुका था. उस की वह कुदरती मुसकान, जो कभी गांव की पहचान थी, अब दहशत में बदल गई थी.

फिर आई वह काली रात, जिस ने सबकुछ बदल दिया. पतिपत्नी के बीच हुआ झगड़ा. सुबह एक सन्नाटे में तबदील हो गया. ड्राइंगरूम के बीचोंबीच विनोद की लाश पड़ी थी. छाती में गोली थी और पास पड़ी पिस्तौल पर पारुल की उंगलियों के निशान थे. उस ने अपना जुर्म कबूल तो किया, लेकिन उस की पथराई आंखों में कैद ‘क्यों’ का जवाब कोई पढ़ नहीं सका.

अदालत, जमानत और गांव वालों की कानाफूसियों के बीच पारुल एक जीतीजागती लाश बन चुकी थी. इसी अंधकार में एक जुगनू की तरह आया करण. वह अदालत जाने वाली उस की कार का ड्राइवर था. सादगी की मूरत करण ने बिना किसी सवाल के पारुल को वह सहारा दिया, जिस की उसे सख्त दरकार थी.

पारुल को लगा कि जिंदगी उसे दूसरा मौका दे रही है. दोनों ने शादी कर ली. लेकिन शायद पारुल की किस्मत में सुख का यह अध्याय भी लिखा ही नहीं था. एक सड़क हादसे में करण की मौत ने उसे फिर उसी अकेलेपन में धकेल दिया.

इस बार पारुल टूटी नहीं, बल्कि पत्थर जैसी कठोर हो गई. उस का दुख अब एक ठंडी आग बन चुका था. करण के बड़े भाई संदीप के साथ उस के संबंध हमदर्दी से शुरू हो कर एक अलग मोड़ पर पहुंच गए थे.

समाज ने थूथू की, लेकिन पारुल को अब समाज की परवाह नहीं रह गई थी. उस के दिमाग में अब केवल एक ही जुनून सवार था… हक. करण के हिस्से की वह 9 बीघा जमीन, जिसे वह अपना हक मानती थी.

सास सुशीला का यह कहना कि ‘जब बेटा ही नहीं रहा, तो बहू का हक कैसा?’ पारुल के भीतर दबे ज्वालामुखी को भड़काने के लिए काफी था. बेइज्जती का यह घूंट उस ने पी तो लिया, लेकिन उस के जेहन में एक खौफनाक साजिश ने जन्म ले लिया.

लालच और बदले की आग में पारुल ने अपनी बहन कविता और उस के प्रेमी अनिकेत को मोहरा बनाया. एक प्लान की हुई डकैती की आड़ में सास सुशीला की हत्या करवा दी गई.

शुरुआत में पुलिस भ्रमित रही, लेकिन अपराध कभी छिपता नहीं. पारुल का अचानक गायब होना ही उस के गले का फंदा बन गया. जब वह पकड़ी गई, तो उस का बयान किसी भी संवेदनशील इनसान को झकझोरने के लिए काफी था, ‘‘जो चीजें मांगने से नहीं मिलतीं, उन्हें छीनना पड़ता है.’’

अदालत का वह सीन रोंगटे खड़े करने वाला था. संदीप, जो अब अपने परिवार और अपनी प्रेमिका दोनों को खो चुका था, सिर झुकाए बैठा था. बूढ़े ससुर हरिराम की आंखों में निराशा थी.

पारुल ने आखिर तक दांवपेंच लड़ाए, खुद को बेकुसूर साबित करने की कोशिश की, पर अनिकेत के साथ हुई उस की एक फोन रिकौर्डिंग ने उस की सारी दलीलों को ढहा दिया. कानून ने भावनाओं को दरकिनार कर सुबूतों पर मुहर लगाई. पारुल को उम्रकैद की सजा मिली.

सालों बाद, काल कोठरी के अंधेरे से पारुल की एक चिट्ठी बाहर आई. संदीप के नाम लिखे उस खत में सिर्फ 4 लाइनें थीं, जिस ने उस की जिंदगी के पूरे सार को निचोड़ कर रख दिया :

‘‘काश, विनोद वाली गोली उस रात मुझे ही लगी होती, तो शायद आज कोई न मरता… न प्यार, न विश्वास और न ही इनसान.’’

संदीप ने वह चिट्ठी दीए की लौ के हवाले कर दी. कागज जल कर राख हो गया और हवा में बिखर गया.

ठीक वैसे ही जैसे पारुल के सपने उस 9 बीघा जमीन की धूल में मिल गए थे.

सूरज ढलते ही बूढ़े हरिराम की उस हवेली में ऐसी मनहूसियत उतर आती है कि कोई परिंदा भी अब पर नहीं मारता. लोग उस ‘शापित’ हवेली के साए से खौफ खाते हैं.

अब यही चर्चा है कि जिस 9 बीघा खेत के लिए पारुल ने हंसताखेलता परिवार को दांव पर लगा दिया था, आज वह बंजर पड़ी है. दौलत तो मिल गई, पर उसे भोगने वाला अब कोई नहीं बचा. वहां अब केवल सन्नाटा है. एक ऐसा सन्नाटा जो चीखचीख कर लालच के अंत की गवाही देता है. Best Hindi Story

Hindi Family Story: मकसद

Hindi Family Story, लेखिका – डा. के. रानी

वन संरक्षक के पद पर काम करते हुए अविनाश को 5 साल हो गए थे. नौकरी के दौरान उन का ज्यादातर समय बहुत अच्छा बीता था. उन की पत्नी रूही ने अपने परिवार की खातिर कभी जौब करने के बारे में सोचा ही नहीं. वे घर पर रह कर बच्चों को पूरा समय देतीं और विभागीय कार्यक्रम के साथ समाजसेवा में बढ़चढ़ कर भाग लेतीं.

समय जैसे पंख लगा कर उड़ रहा था. अविनाश की दोनों बेटियां नताशा और न्यासा पढ़ने में बहुत अच्छी थीं. नताशा अभी ग्रेजुएशन कर रही थी. पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद न्यासा का रु?ान सिविल सेवा की ओर था. वह उस के लिए तैयारी भी कर रही थी, लेकिन उस की मेहनत कामयाब नहीं हो पा रही थी.

रूही ने बेटियों को बहुत अच्छे संस्कार दिए थे. खुद भी वे संस्कारवान थीं, लेकिन अविनाश का स्वभाव थोड़ा उग्र था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन शांति की कमी थी.

रूही को अविनाश की ऊपरी कमाई से एतराज था. वे दबे स्वर में इस का कई बार विरोध भी कर चुकी थीं, लेकिन अविनाश कुछ सुनने को तैयार नहीं थे.

‘‘घर में ये जितने ठाटबाट हैं न, ये केवल तनख्वाह से नहीं आते. इस के लिए और कुछ भी करना पड़ता है,’’ अविनाश बोले.

‘‘हमारे पास सबकुछ अविनाश. हमें इस की जरूरत क्या है?’’ रूही बोलीं.

‘‘यह तुम नहीं समझोगी. अच्छा होगा कि तुम इस मामले में दखल न दिया करो और चैन की जिंदगी बसर करो. मौज करो और बेटियों को भी कुछ सिखाओ. हर समय घर के अंदर किताबों में घुसी रहती हैं. न कामयाबी हासिल कर पा रही हैं और न ही अपने लिए कोई अच्छा वर,’’ अविनाश गुस्से से बोले.

अविनाश को अपने पद का अभिमान था. अपने से छोटे कर्मचारियों को वे कुछ न समझते थे और सब के सामने कई बार उन की बेइज्जती भी कर देते थे.

औफिस में घुसते ही अविनाश सब से पहले औफिस असिस्टैंट रामदीन पर बरसते… रोज कोई न कोई नया बहाना ले कर. कभी तुम ने औफिस की सफाई ठीक से नहीं की तो कभी सामान ठीक से नहीं रखा. उन के हर काम का समय बंधा हुआ था. वे उसी के हिसाब से दूसरों से भी काम की उम्मीद रखते थे.

रामदीन को यहां काम करते हुए पूरे 30 बरस हो गए थे. 2 साल बाद उन्हें रिटायर होना था. वे बहुत मेहनती थे और दिल लगा कर काम करते थे.

पर अविनाश को तो जैसे औफिस के हर कर्मचारी से शिकायत थी. आज भी औफिस आते ही उन्होंने सब से पहले घंटी बजा कर रामदीन को बुलाया और कहा, ‘‘बड़े बाबू को बुला कर लाओ.’’

रामदीन ने बड़े बाबू को सूचना दी और अपने काम पर लग गए. बड़े बाबू जरा देर में उठ कर बौस के कमरे की ओर बढ़ गए. उन से कुछ पूछने की बजाय उन्होंने फिर घंटी बजाई और बोले, ‘‘क्या तुम ने बड़े बाबू को सही समय पर सूचना नहीं दी थी रामदीन?’’

‘‘दे दी थी साहब,’’ रामदीन ने कहा.

‘‘तो फिर वर इतनी देर से क्यों आए? तुम से अब नौकरी नहीं हो पाती तो काम छोड़ दो. बहुत सारे बेरोजगार हैं, जो यह काम करने के लिए तैयार हैं,’’ अविनाश चिल्लाए.

बात को आगे न बढ़ाते हुए रामदीन बोले, ‘‘गलती हो गई. माफ कर दीजिए.’’

लेकिन अविनाश का गुस्सा अभी उतरा नहीं था. वे इसी बात को ले कर बड़ी देर तक नसीहतें देते रहे.

बड़े बाबू सबकुछ सुन रहे थे, लेकिन उन की हिम्मत कुछ कहने की न हो सकी.

‘‘सर, आप ने मुझे बुलाया था…’’ बड़े बाबू ने पूछा.

‘‘आप यहां से जाइए. इस समय मेरा मूड ठीक नहीं है,’’ कह कर अविनाश ने बड़े बाबू को वापस भेज दिया.

अविनाश को अपने सामने हर कोई बहुत तुच्छ नजर आता था. बड़ेछोटे के बीच की खाई उन्होंने कभी पाटनी नहीं चाही थी. रामदीन बौस की बात से बहुत आहत थे. सारा दिन वे अनमने ही रहे. घर आ कर भी वे उदास थे. वे सोच रहे थे, ‘अपना बेटा पलाश कुछ बन जाए, फिर आराम करूंगा. बहुत नौकरी कर ली है.’

रूही और अविनाश न्यासा के भविष्य को ले कर चिंतित थे. न्यासा मास्टर्स करने के बाद एक कोचिंग इंस्टिट्यूट से कोचिंग ले रही थी. उम्र बढ़ रही थी और अभी भी वह कंपीटिशन में कामयाबी हासिल नहीं कर सकी थी. अविनाश चाहते थे कि वह शादी कर ले.

अविनाश ने न्यासा को कई बार समझाया, ‘‘न्यासा, कंपीटिशन के साथसाथ और जगह भी ट्राई करती रहो. कभी किस्मत साथ दे जाती है और सबकुछ देखते ही देखते बदल जाता है.’’

‘‘पापा, आप भी कंपीटिशन से यहां पहुंचे हैं. मुझे भी छोटी नौकरी नहीं करनी. आप की तरह बड़ी नौकरी से काम की शुरुआत करनी है.’’

न्यासा की बात सुन कर अविनाश को अच्छा न लगा. वे जानते थे कि उन की बात पर न्यासा हमेशा तीखा जवाब देती है. उसे पापा का बरताव जरा भी अच्छा नहीं लगता था. पढ़ाई तो वह शादी के बाद भी जारी रख सकती थी.

अच्छी पोजीशन वाला लड़का देख कर अगर पहले उस की शादी कर दी जाए, तो ज्यादा ठीक रहता. अभी अविनाश बड़े पद पर थे. न्यासा के लिए रिश्ते भी बहुत आ रहे थे, लेकिन वह सब को मना कर रही थी.

अविनाश बोले, ‘‘रूही, तुम ही न्यासा को सम?ा दो. उस की उम्र बढ़ रही है. उसे कोई लड़का पसंद हो तो बता दे. उस की खुशी की खातिर हम सबकुछ करने को तैयार हैं. शादी भी समय की अच्छी होती है.’’

‘‘यह बात तुम मुझे नहीं न्यासा को कहो. वह पहले कुछ बन कर दिखाना चाहती है. शादी का क्या है, वह तो बाद में भी हो जाएगी,’’ रूही ने अपनी बात कही.

‘‘तुम्हारी इन बातों से उसे बढ़ावा मिल रहा है. आजकल शादी के बाद भी लड़कियां पढ़लिख कर बहुतकुछ बन रही हैं. वह बाद में भी अपनी पढ़ाई जारी रख सकती है.’’

‘‘तुम उसे ले कर परेशान मत हो. जल्दी ही उसे कामयाबी मिलेगी और उस का घर भी बस जाएगा,’’ रूही ने कहा.

सबकुछ जानते हुए भी रूही ने न्यासा का ही पक्ष लिया. नौकरी पर रहते हुए बेटियों की शादी करने का मजा ही कुछ और था. पदप्रतिष्ठा के साथ अच्छे रिश्तों की कमी नहीं थी. न्यासा ने अपनी ओर से किसी लड़के में कभी उत्सुकता नहीं दिखाई थी. अभी उस का सारा ध्यान पढ़ाई पर था. इसी वजह से वह शादी को तवज्जुह नहीं दे रही थी.

अविनाश की नौकरी का एक साल बाकी रह गया था. इस दौरान अगर न्यासा को कहीं कामयाबी मिल जाती, तो वे तुरंत उस के हाथ पीले कर देते. पर न्यासा को इस बात की चिंता नहीं थी. वह जानती थी कि अच्छे पद पर कामयाबी हासिल करने के बाद उसे जीवनसाथी ढूंढ़ने में कोई परेशानी नहीं होगी. वह अपने लैवल का लड़का देख कर उससे शादी कर सकती है. उस की कई लड़कों से अच्छी दोस्ती थी, लेकिन शादी को ले कर वह अभी सीरियस नहीं थी. दोनों ही अपनी जगह पर सही थे.

पीढ़ी का अंतर साफ दिखाई दे रहा है. इसी वजह से सोच में भी फर्क आया था, लेकिन मम्मीपापा की चिंता अपनी जगह पर वाजिब थी.

न्यासा ने इस बार सिविल सर्विसेज के लिए बहुत तैयारी की थी. उसे उम्मीद थी कि उस का सिलैक्शन हो जाएगा. वह बड़ी बेसब्री से रिजल्ट का इंतजार कर रही थी, लेकिन इस बार भी उसे नाकामी का मुंह देखना पड़ा. रिजल्ट देख कर उसे बहुत तगड़ा झटका लगा था.

अविनाश के लिए भी यह बड़ी परेशानी वाली बात थी. वे बोले, ‘‘रूही, अब बहुत हो गया. कब तक कंपीटिशन के चक्कर में न्यासा अपनी जवानी इस तरह बरबाद करती रहेगी.’’

‘‘यह समय ऐसी बातों का नहीं है. तुम्हें उसे दिलासा देनी चाहिए. ऊपर से तुम उसे ताना मार रहे हो,’’ रूही ने कहा.

‘‘मैं उसे सुना नहीं रहा हूं. तुम्हारे सामने हकीकत बयां कर रहा हूं. कंपीटिशन की तैयारी जिंदगी का मजा लेते हुए भी की जा सकती है. इस बार तो उस ने घर से बाहर निकलना तक छोड़ दिया था. उस की सारी उम्मीद है इसी पर टिकी थी, लेकिन हासिल क्या हुआ?’’

‘‘कोई बात नहीं है. कभीकभी ऐसा हो जाता है. तुम्हें इस समय उसे हिम्मत बंधानी चाहिए,’’ रूही बोलीं.

‘‘अब मेरा भी सब्र टूटा जा रहा है. यह बात तुम नहीं समझोगी,’’ अविनाश ने कहा.

‘‘तुम बड़ी पोस्ट पर हो. कोई अच्छा सा लड़का देख कर न्यासा की जिंदगी संवार दो,’’ रूही ने अपनी राय दी.

‘‘कोशिश करूंगा. इस ने तो आज तक कभी किसी लड़के का जिक्र तक नहीं किया. घर से बाहर निकले तब तो अपने लिए कोई जीवनसाथी ढूंढ़ेगी. पढ़ाई के पीछे उस ने अपने सारे सपने एक तरफ रख दिए. बस, एक ही धुन ले कर चल रही है,’’ अविनाश बोले तो रूही चुप हो गईं.

एक पिता होने के चलते अविनाश की चिंता वाजिब थी, लेकिन क्या करें? रूही न्यासा को ऐसे हालात में अकेला भी तो नहीं छोड़ सकती थीं. न्यासा का भी एक सपना है. अगर वह कुछ बनना चाहती है तो मम्मीपापा का फर्ज बनता है कि उसे हर तरीके से सपोर्ट करें.

थके मन से अविनाश औफिस पहुंचे थे, लेकिन वहां पर खुशी का माहौल देख कर वे चौंक गए. उन से कुछ पूछते न बना. सब रामदीन को बधाई दे रहे थे. उन की खुशी देखते ही बनती थी. उन्हें समझ नहीं आया कि ऐसी क्या बात हो गई है, जो औफिस असिस्टैंट रामदीन औफिस का हीरो बना हुआ है. उन्होंने घंटी बजाई. रामदीन तुरंत हाजिर हो गए.

‘‘बड़े बाबू को बुलाओ,’’ अविनाश ने कहा.

‘‘जी साहब,’’ कह कर रामदीन तुरंत कमरे से बाहर निकल गए. थोड़ी देर में बड़े बाबू अविनाश के सामने हाजिर थे.

तभी रामदीन मिठाई ले कर आ गए.

‘‘यह किस खुशी में है?’’ अविनाश ने पूछा.

‘‘सर, रामदीन का बेटा सिविल सर्विस में बहुत अच्छी पोजीशन ले कर कामयाब हो गया,’’ बड़े बाबू ने खुश हो कर कहा.

यह सुनते ही अविनाश का मुंह खुला का खुला रह गया. वे कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि एक औफिस असिस्टैंट का बेटा इतनी ऊंची जगह तक पहुंच सकता है.

उन्होंने मिठाई का एक टुकड़ा तोड़ा और ‘बधाई हो रामदीन’ कह कर अपनी बात खत्म कर दी. इस से आगे उन्होंने रामदीन से कुछ नहीं पूछा.

बड़े बाबू को काम समझा कर अविनाश ने उन्हें भी कमरे से विदा कर दिया था.

यह खबर अविनाश के लिए किसी धमाके से कम नहीं थी. आज तक उन्होंने रामदीन के बारे में कुछ भी जानना नहीं चाहा था. इस समय उन की दिलचस्पी रामदीन के बारे में जानने की थी, लेकिन कोई बताने वाला नहीं था. उन्हें समझ नहीं आ रहा था आखिर पूछें तो किस से?

अविनाश ने तुरंत आज का अखबार मंगवाया और उसे पलट कर देखने लगे. एक पेज पर रामदीन की परिवार के साथ तसवीर छपी थी. वे उसे ध्यान से देखने लगे. ‘कार्यालय सहायक का बेटा बनेगा डीएम’ हैडिंग देख कर वे एकसाथ सारी खबर पढ़ गए. तब जा कर उन्हें पता चला की रामदीन के परिवार में एक
बेटा और एक बेटी है. दोनों ही पढ़ने में होशियार हैं. उस के बेटे को दूसरी बार में यह कामयाबी हासिल हुई थी. हालांकि, वह रिजर्व्ड कैटेगरी का था लेकिन उस ने मैरिट में यह जगह अनरिजर्व्ड सूची में बनाई थी.

अविनाश का आज काम में मन नहीं लग रहा था. रहरह कर उन के सामने कभी रामदीन का तो कभी न्यासा का चेहरा घूम रहा था. उन्हें सम?ा नहीं आ रहा था कहां कमी रह गई जो छोटे पद पर काम करने वाले रिजर्व्ड कैटेगरी के रामदीन का बेटा पलाश इतनी बड़ी कामयाबी हासिल कर गया और सुविधाओं में पलीबढ़ी न्यासा चूक गई.

आज अविनाश औफिस से जल्दी घर चले आए थे. घर पर भी मायूसी छाई हुई थी. रूही चाय पीते हुए उन के सामने बैठी हुई थीं.

अविनाश बोले, ‘‘यही हाल रहा तो न्यासा डिप्रैशन में चली जाएगी. तुम उसे सम?ा कर शादी के लिए राजी कर लो. इस से उस की जिंदगी में खुशी लौट आएगी.’’

‘‘यह काम तुम भी तो कर सकते हो,’’ रूही बोलीं.

‘‘वह मेरी बात नहीं सुनती. हो सकता है तुम्हारी बात मान जाए. तुम्हें वह बहुत मानती है,’’ अविनाश ने कहा.

‘‘कोशिश कर के देखती हूं. मैं भी उस की खुशी चाहती हूं. कामयाबी हासिल करने के लिए हम ने उसे साधन दिए बाकी काम तो उसे ही करना है,’’ रूही बोलीं.

‘‘वह पढ़ने में अच्छी है और उसे ले कर गंभीर भी है. फिर भी पता नहीं क्यों यह नौबत आ गई,’’ अविनाश बोले.

‘‘मैं उसे शादी के लिए मना भी लूं, लेकिन उस के लिए कोई काबिल लड़का भी तो चाहिए,’’ रूही ने कहा.

‘‘जहां तक वह खुद नहीं पहुंच सकी उस पोजीशन पर उस का जीवनसाथी होगा, तो शायद वह अपनी इस कसक को भूल जाए,’’ अविनाश ने कहा.

‘‘तुम्हारे लिंक बहुत अच्छे हैं. कोशिश करोगे तो कोई अच्छा लड़का भी मिल जाएगा. अब हमें इस काम में देरी नहीं करनी चाहिए,’’ रूही बोलीं तो अविनाश चुप हो गए.

रात को डाइनिंग टेबल पर अविनाश की न्यासा से मुलाकात हो गई. वह अनमने मन से खाना खा रही थी. रूही उस की हालत को समझ रही थी. इस समय अविनाश कुछ कह कर उसे और दुखी कर सकते थे. रूही ने इशारे से उन्हें चुप रहने का संकेत किया.

अगले दिन औफिस में रामदीन का दमकता चेहरा देख कर अविनाश उन के सामने अपने को बहुत छोटा महसूस कर रहे थे. कल तक जिस आदमी की हैसियत उन के सामने कुछ नहीं थी, आज वह औफिस में सब का हीरो बना हुआ था.

कुछ देर बाद रामदीन अविनाश के सामने हाजिर हो गए. अपनी आवाज में मिठास घोलते हुए अविनाश बोले, ‘‘रामदीन, मैं तुम्हारी बेटे की कामयाबी पर बहुत खुश हूं. मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं उसे अपने घर डिनर पर बुलाऊं. साथ बैठ कर खाना खाएंगे तो ढेर सारी बातें ही हो जाएंगी.’’

‘‘अभी तो वह अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में बिजी है साहब. मैं पूछ कर बताता हूं,’’ रामदीन हाथ जोड़ कर बोले, तो अविनाश के चेहरे पर तनाव दिखाई देने लगा.

रामदीन की इस हरकत पर उन्हें बड़ा गुस्सा आ रहा था. हिम्मत तो देखो अपने बौस को डिनर के लिए टाल रहा था.

रामदीन ने अभी इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया. घर आ कर वे अपनी पत्नी रूपमती से बोले, ‘‘साहब ने हम सब को डिनर पर बुलाया है बेटे की खुशी के लिए.’’

‘‘यह इज्जत तुम्हें नहीं, बल्कि बेटे की उस कामयाबी को मिल रही है, जो उस ने अपनी मेहनत से हासिल की है. इस बारे में उस से बात कर लेना. वही आपको ठीक से समझ सकेगा,’’ रूपमती बोली.

अविनाश भी दिनभर बेटी के भविष्य को ले कर मंथन कर रहे थे. उन्हें लगा कि न्यासा न सही रामदीन का बेटा आज उस पोजीशन पर पहुंच गया था, जिसे वह हासिल करना चाहती थी. अगर वह उसे शादी के लिए मना लें तो उस की जिंदगी संवर जाएगी.

तसवीर में देखने पर पलाश लंबाचौड़ा और खूबसूरत जवान लग रहा था. रामदीन के मुकाबले उस की पर्सनैलिटी बहुत अच्छी थी.

घर आ कर अविनाश ने यह बात रूही से कह दी, ‘‘जानती हो मेरा मेरे औफिस असिस्टैंट रामदीन का बेटा सिविल सर्विसेज में अच्छी पोजीशन लाया है.’’

‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है,’’ रूही ने कहा.

‘‘मैं ने उसे घर पर डिनर का न्योता दिया है,’’ अविनाश बोले.

‘‘तुम यह आयोजन किसी होटल में भी कर सकते हो. अगर तुम्हें उस के बेटे की कामयाबी की इतनी खुशी हुई है तो,’’ रूही तमक कर बोलीं.

‘‘बात समझा करो. होटल और घर के माहौल में फर्क होता है. मैं चाहता हूं कि न्यासा उस से एक बार मिल ले,’’ अविनाश ने अपने मन की बात कही.

‘‘कहां तुम और कहां रामदीन? हमारे स्टेटस में कुछ तो मेल होना चाहिए.’’

‘‘ये सब बाद की बातें हैं रूही. एक बार न्यासा उसे पसंद कर ले, बस उस के बाद समझ लड़का हमारा हुआ. कौन सा हमें रामदीन को बारबार घर पर बुलाना है?’’ अविनाश बोले.

उन्होंने रूही से उस की जाति भी छिपा दी थी. उन्हें एक ही धुन सवार थी कि किसी तरह न्यासा का रिश्ता सिविल सर्विस पास करने वाले लड़के से हो जाए. इतने बड़े सरकारी अफसर की जाति कहां पूछी जाती है.
‘‘कब आ रहे हैं वे डिनर के लिए?’’ रूही ने पूछा.

‘‘अभी वह लड़का पलाश अपने दोस्तों के साथ जश्न मनाने में लगा हुआ है. तुम तो ऐसे लोगों को जानती ही हो. कई दिन तक उन के पैर धरती पर नहीं पड़ेंगे,’’ अविनाश बोले.

अविनाश को पूरी उम्मीद थी कि उन के कहने पर न्यासा रामदीन के बेटे पलाश से मिलने को तैयार हो जाएगी.

एक हफ्ता बीत गया था. रामदीन ने कोई जवाब नहीं दिया था. अविनाश का सब्र चूकने लगा था. वे बोले, ‘‘रामदीन, तुम ने घर पर बात की थी डिनर के लिए?’’

‘‘जी, कहा तो था, लेकिन बेटे को यह सब अच्छा नहीं लग रहा. कह रहा था कि सोच कर बताता हूं,’’ रामदीन बोले.

अविनाश को उस से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी. कोई और समय होता तो वे उसे उस की औकात दिखा देते, लेकिन इस समय उन्होंने चुप रहना ही ठीक सम?ा. तेवर दिखा कर बात बिगड़ भी सकती थी.

पलाश को यह समझते देर नहीं लगी थी कि क्यों अचानक अविनाश सर का उस के पापा के प्रति इतना अच्छा बरताव हो गया था.

रामदीन के बारबार कहने पर वह बोला, ‘‘पापा, उन के घर डिनर करने से पहले मैं एक बार कल ही उन से औफिस में मिल लेता हूं. अगर मुझे ठीक लगेगा तो मैं उन के घर आप सब के साथ डिनर पर चला जाऊंगा, लेकिन यह बात उन्हें पहले मत बताइएगा.’’

इस दौरान पलाश ने अविनाश के बारे में सारी जानकारी जुटा ली थी. उन का चरित्र और मकसद सब उस की समझ में आ गया था. अगर वे इतने ही बड़े दिल के होते तो उन के घर आ कर भी बधाई दे सकते थे. रामदीन इन सब बातों से अनजान थे.

अगले दिन पलाश अपने पापा के साथ ही औफिस के लिए चल पड़ा. उसे अपने बीच देख कर औफिस के बाकी लोग बहुत खुश थे. ज्यादातर तो उस के घर जा कर पहले ही बधाई दे आए थे.

‘‘आज कैसे आना हुआ पलाश?’’ बड़े बाबू ने पूछा.

‘‘पापा की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी. उन्हें छोड़ने चला आया,’’ बात बदल कर पलाश बोला.

यह बात अविनाश तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने खुद ही तुरंत पलाश को अपने केबिन में बुला लिया.

हैंडसम पलाश को अविनाश अपलक देखते ही रह गए. पलाश ने आगे बढ़ कर उन के पैर छुए तो उन्होंने उसे ढेर सारे आशीर्वाद के साथ गले लगा लिया और बोले, ‘‘तुम सोच भी नहीं सकते कि तुम्हारी इस कामयाबी पर मुझे कितनी खुशी हुई है.’’

‘‘यह मेरा सौभाग्य है सर.’’

‘‘कुछ दिन में तुम्हें ट्रेनिंग पर जाना होगा?’’

‘‘जी सर, अभी लैटर नहीं आया.’’

‘‘सिविल सर्विस का ठप्पा लगना अपनेआप में बहुत बड़ी बात होती है बेटा. लाखों अभ्यर्थियों में से लगभग हजार स्टूडैंट का ही सपना हर साल पूरा होता है.’’

‘‘आप इतने सीनियर औफिसर हैं. आप को इन सब बातों की पूरी जानकारी है. मेरा अनुभव आप के सामने कुछ भी नहीं है.’’

‘‘समय के साथ सबकुछ सीख जाओगे. मुझे पूरी उम्मीद है तुम एक बहुत काबिल अफसर बनोगे.’’

‘‘मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगा सर.’’

‘‘मुझे सर मत कहो, अंकल कह सकते हो. मैं तुम्हारे पापा की ही उम्र का हूं और अगले साल रिटायर होने वाला हूं. मैं चाहता हूं तुम एक दिन मेरे परिवार के साथ डिनर करो, जिस से हमारा आपसी मेलजोल बढ़ सके.’’

‘‘अंकल, मेरे पापा आप के सामने बैठ कर खाना खाने की जुर्रत नहीं कर सकते. मैं नहीं चाहता कि वे हीनभावना से ग्रस्त हो जाएं.’’

‘‘तुम्हारी सोच बहुत अच्छी है. अगर रामदीन नहीं आ सकते तो तुम ही आ जाओ मेरे घर डिनर पर.’’

‘‘यह नहीं हो सकता. आप का और मेरा संबंध पापा की वजह से है. मैं उन्हें दरकिनार कर शौर्टकट नहीं अपना सकता. एक साल बाद जब आप रिटायर हो जाएंगे, तब आप के और पापा के बीच में औफिस का यह रिश्ता खत्म हो जाएगा. तब मैं खुशीखुशी आप के घर डिनर के लिए आ जाऊंगा. मुझे उम्मीद है आप इस बात को अन्यथा नहीं लेंगे.’’

‘‘मुझे उस दिन का इंतजार रहेगा जब तुम अपनी ओर से हमारे घर आने के लिए उत्सुकता दिखाओगे.’’
‘‘इस के लिए थोड़ा सब्र करना होगा. तब तक मेरी ट्रेनिंग भी खत्म हो जाएगी और मुझे अच्छी पोस्टिंग भी मिल जाएगी. इस दौरान मुझे अपने साथ के प्रशिक्षुओं से मिलनेजुलने का अवसर मिलेगा. मैं ने सोच लिया है कि मैं उन में से किसी को अपना जीवनसाथी चुन लूंगा. हम साथ ही आप के घर डिनर पर आएंगे अंकल. बस, मुझे थोड़ा समय दे दीजिए,’’ पलाश बड़ी बेबाकी से मुसकरा कर बोला.

अविनाश को पलाश से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी. वे बोले, ‘‘तुम अपने जैसी पोजीशन वाली जीवनसाथी चुनने में उत्सुक हो?’’

‘‘जी अंकल, इस से विचारों का लैवल बराबर रहता है. वह भी अपने काम में बिजी रहेगी और मैं भी,’’

एक झटके में पलाश की बातों ने अविनाश की सारी उम्मीद पर पानी फेर दिया था.

कुछ देर और इधरउधर की बात कर पलाश वापस घर चला गया था. रामदीन के कुछ कहने से पहले ही पलाश बोला, ‘‘आप निश्चिंत रहें पापा. अब इस बात को वे कभी नहीं उठाएंगे.’’

‘‘ऐसा क्या हो गया?’’

‘‘कुछ नहीं. मैं चाहता हूं पापा कि अब आप यह नौकरी छोड़ दें.’’

‘‘मैं ने सालों ईमानदारी से काम किया है और तुम्हारी कामयाबी में उस का भी बड़ा हाथ है. अब समय बचा ही कितना है? मैं अपना कार्यकाल पूरा कर इज्जत के साथ रिटायर होना चाहता हूं,’’ रामदीन बोले.

‘‘जैसी आप की मरजी,’’ कह कर पलाश ने बात खत्म कर दी.

अगले दिन सुबह पलाश ने रामदीन को कुछ समझाया और सावधान के रहने की चेतावनी भी दी. अविनाश का बरताव रामदीन के साथ वैसा नहीं रह गया था, जैसा वे कुछ दिनों से दिखाने की कोशिश कर रहे थे.

पलाश की बातों ने अविनाश को बहुत आहत किया था. उन्होंने सोच लिया था कि वे बापबेटे को अच्छा खासा सबक सिखा कर रहेंगे. जरा सी कामयाबी मिलते ही इन के पर निकल आए हैं.

हफ्तेभर बाद एक दिन अविनाश ने बड़े बाबू से एक फाइल मंगाई और बोले, ‘‘तुम जानते हो यह फाइल कितनी जरूरी है. कल इस पर फैसला होना है. तुम ने इसे पढ़ लिया न?’’

‘‘जी सर, पढ़ लिया.’’

‘‘इसे यहीं रख दो. मैं फिर पढ़ूंगा.’’

बड़े बाबू फाइल छोड़ कर चले गए. सारा दिन सामान्य बीता. अगली सुबह जब रामदीन औफिस पहुंचे तो वहां पुलिस खड़ी थी.

‘‘क्या हुआ?’’ रामदीन ने घबरा कर पूछा.

‘‘औफिस से एक जरूरी फाइल चोरी हो गई है. सर का शक तुम पर है. तुम्हीं उस कमरे में आतेजाते हो, बाकी तो कोई नहीं जाता,’’ औफिस का एक मुलाजिम रूपेश बोला.

‘‘मेरा फाइल से क्या लेनादेना?’’ रामदीन बोले.

‘‘यह तो साहब ही जानें. उन्होंने ही पुलिस बुलाई है. तुम से पूछताछ होगी.’’

पुलिस के नाम से रामदीन डर गए. उन्होंने तुरंत पलाश को फोन कर सारी बात बता दी.

पुलिस अभी रामदीन से पूछताछ कर ही रही थी की पलाश आ गया. उस ने अपना परिचय दिया, तो पुलिस वालों ने भी उसे सलाम ठोंक दिया.

‘‘पापा से पूछने से पहले मैं आप को कुछ दिखाना चाहता हूं,’’ पलाश बोला.

पलाश ने अपना लैपटौप खोला और कल की रिकौर्डिंग उन्हें दिखा दी. बड़े बाबू भी बड़े ध्यान से यह सब देख रहे थे. लैपटौप पर सामने दिखाई दे रहा था कि अविनाश ने वह फाइल आलमारी से निकाल कर अपने ब्रीफकेस में रखी और कमरे से बाहर चले गए. अविनाश को सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि उन की यह कोशिश नाकाम हो जाएगी.

‘‘थैंक यू मिस्टर पलाश,’’ पुलिस इंस्पैक्टर बोला.

‘‘हो सकता है गलती से फाइल घर चली गई हो. मुझे ध्यान नहीं रहा,’’ अविनाश अपनी खीज मिटाते हुए बोले.

‘‘लेकिन आप को यह रिकौर्डिंग कहां मिली?’’

‘‘यह बात मुझ से अच्छी तरह आप जानते होंगे इंस्पैक्टर,’’ कह कर पलाश हंस दिया.

रामदीन को संतोष था कि बेटे की वजह से आज उन की इज्जत रह गई थी. अब उन्हें समझ आ गया कि उस दिन क्यों पलाश ने उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए कहा था? उन्हें अविनाश का मकसद पहले ही दिखाई देने लगा था, तभी वे रोज उन्हें औफिस आते हुए एक डिबिया थमा देते थे.

रामदीन के सामने आज एक बार फिर अविनाश को मुंह की खानी पड़ी. उन का चरित्र सब के सामने उजागर हो गया था.

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