ऐसा कोई सगा नहीं : संतोषीलाल का परिवार क्यां फूला नहीं समाया

संतोषीलाल के घर पर आज उत्सव का सा माहौल था. हो भी क्यों न, एक साधारण परिवार की एकलौती लड़की को उन के समाज के जानेमाने और लगातार 4 बार विधानसभा चुनाव जीत कर इतिहास रचने वाले बबलूराम ने अपने एकलौते बेटे के लिए पसंद जो किया है. बबलूराम खुद चल कर शादी का प्रस्ताव लाए हैं.

इतने बड़े घर में संबंध होने की बात से संतोषीलाल का परिवार फूला नहीं समा रहा था.

चूंकि 2 साल पहले ही बबलूराम की पत्नी की मौत हो चुकी थी, इसलिए घर में सासननद नाम का कोई झंझट नहीं था. यह दूसरी बड़ी बात थी. यह भी तय ही था कि शादी के बाद उन की लड़की गोपी ही घर की सर्वेसर्वा रहेगी. ऐसे प्रस्ताव को नकारना बेवकूफी ही होगी.

बबलूराम पर कई हत्याओं के आरोप थे और विरोधी भी उन के करैक्टर पर उंगलियां उठाते रहते थे, पर संतोषीलाल ने अपने घर वालों का मुंह यह कह कर बंद कर दिया था, ‘‘देखो, राजनीति में विरोधियों का काम ही आरोप लगाना है. ऐसा कोई नेता नहीं, जिस पर आरोप न लगे हों. अभी कोर्ट में भी कुछ साबित नहीं हुआ है.

‘‘हो सकता है कि बबलूराम ने आगे बढ़ने के लिए कुछ गलत किया हो, पर हम शादी तो उन के एकलौते लड़के दीपक से कर रहे हैं, जिस का राजनीति से दूरदूर तक कोई वास्ता नहीं है. वह अपनी फैक्टरी चलाता है और उस का राजनीति में आने का अभी कोई इरादा भी नहीं है.

‘‘फैक्टरी से अच्छीखासी आमदनी हो जाती है. अगर कल को बबलूराम को सजा हो भी जाती है तो भी गोपी महफूज रहेगी.’’

गोपी 19 साल की एक खूबसूरत लड़की थी जो कालेज के आखिरी साल का इम्तिहान दे रही थी.

एक शादी समारोह में अच्छी तरह से सजीसंवरी गोपी बेहद ही आकर्षक लग रही थी, वहीं पर बबलूराम ने गोपी को देखा और अपने बेटे दीपक के लिए चुन लिया था.

दीपक की उम्र भी 24 साल है. बबलूराम ने अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा के बल पर उस के लिए एक फैक्टरी डलवा दी है जो अच्छीखासी चलती है. उस शादी में दीपक भी था और उसे भी गोपी बहुत अच्छी लगी थी.

बबलूराम ने दीपक की शादी को तड़कभड़क से दूर रखा था. परिवार के अलावा कुछ चुनिंदा लोगों को ही शादी में बुलाया गया था.

शादी होने के साथ ही आए हुए रिश्तेदार भी अपनेअपने घर को चले गए थे. अब घर में वे तीनों ही रह गए थे और कुछ घरेलू नौकर थे, जो समयसमय पर आते थे.

शुरूशुरू में तो गोपी को सब अच्छा लगा, पर जल्दी ही घर पर अकेलापन उसे खलने लगा.

एक दिन गोपी ने दीपक से कहा, ‘‘मैं घर में अकेले बोर हो जाती हूं. क्यों न मैं भी तुम्हारे साथ फैक्टरी चलूं?’’

‘‘अरे नहीं, कारखाने में कई मजदूर हैं और मजदूरों की सोच तो तुम्हें मालूम ही है. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे बारे में कोई अनापशनाप बोले…’’

दीपक उसे समझाने लगा, ‘‘और वैसे भी पिताजी के आनेजाने का समय तय नहीं है, इसलिए तुम घर पर ही रहो तो बेहतर रहेगा.’’

शादी के 2 साल पूरे होतेहोते गोपी ने एक बेटे को जन्म दे दिया, जिस का नाम राजन रखा गया.

अब गोपी का ज्यादातर समय राजन के साथ ही बीत जाता और उस के बोर होने की शिकायत दूर हो गई.

राजन अब 4 साल का हो गया था और प्रीनर्सरी स्कूल में जाने लगा था.

अब गोपी की पुरानी समस्या फिर से सिर उठाने लगी थी. एक दिन नाश्ते की टेबल पर जब तीनों बैठे थे, तभी गोपी ने दीपक से कहा, ‘‘मुझे भी फैक्टरी ले जाया करो. मैं यहां अकेली घर पर बोर हो जाती हूं.’’

‘‘देखो गोपी, यह मुमकिन नहीं है. मैं तरहतरह के लोगों से मिलता हूं. सभी लोगों से बात करने का लहजा भी अलग होता है. ऐसे में तुम्हारे वहां बैठने से मुझे भी परेशानी होगी और तुम भी सहज नहीं रह पाओगी,’’ दीपक गोपी को समझते हुए बोला.

‘‘तब तो पापाजी आप ही मुझे राजनीति में शामिल करवा लीजिए. इस बहाने कुछ समाजसेवा भी हो जाएगी और मेरा अकेलापन भी दूर हो जाएगा…’’ गोपी बबलूराम से अनुरोध करते हुए बोली, ‘‘वैसे भी आप सीएम के बाद दूसरे नंबर की पोजीशन पर हैं, इसीलिए आप के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है.’’

‘‘वह तो ठीक है गोपी, पर राजनीति कई तरह के बलिदान मांगती है. हो सकता है, राजनीति में आने के बाद तुम अपने परिवार… मेरा मतलब है कि दीपक व राजन को पूरा समय न दे पाओ. कभी सुबह जल्दी जाना तो रात में देर से घर आना पड़ सकता है. कई उलटेसीधे काम भी करने पड़ सकते हैं,’’ बबलूराम हंसते हुए बोले.

‘‘अरे पापाजी, घरपरिवार का तो आप को मालूम ही है. दीपक तो महीने में 15 दिन तो टूर पर रहते हैं और मैं घर पर अकेली.

‘‘राजन डे बोर्डिंग में जाता है तो शाम को ही घर आ पाता है. आप खुद भी ज्यादातर बाहर ही रहते हैं, इसलिए मेरे अकेले रहने को तो परिवार नहीं कह सकते न,’’ गोपी बोली.

‘‘पापा ठीक कह रहे हैं गोपी. राजनीति बहुत ज्यादा समर्पण मांगती है,’’ दीपक बोला.

‘‘आप तो रहने ही दो. न फैक्टरी जाने देते हो और न समाजसेवा के लिए राजनीति में. जब तक पापाजी मेरे साथ हैं, मुझे कोई डर नहीं,’’ गोपी बनावटी गुस्से से बोली.

‘‘ठीक है, अगले साल नगरनिगम के चुनाव हैं. हम कोशिश करेंगे कि इस में अच्छा पद पाने की, पर इस के लिए अभी से मेहनत करनी पड़ेगी,’’ बबलूराम बोले.

नाश्ता कर के सभी अपनेअपने कामों में लग गए.

उस शाम बबलूराम जल्दी घर आ गए. तकरीबन 15 मिनट बाद गोपी जब चाय देने के लिए कमरे में गई तो यह देख कर हैरान रह गई कि बबलूराम के कमरे में एक गुप्त अलमारी लगी हुई थी जिस में कई तरह की विदेशी शराब रखी हुई थी.

उसे कमरे में देख कर बबलूराम बोले, ‘‘यह राजनीति का पहला सबक है. एक नेता को अपने चेहरे पर कई चेहरे लगाने पड़ते हैं, इसलिए राजनीति में जो जैसा दिखता है, जैसा बोलता है, वैसा होता नहीं. समझ?’’

‘‘जी, पापाजी,’’ गोपी कुछ घबरा कर बोली.

‘‘अच्छा, ऐसा करो, इस हरे रंग की बोतल में से एक पैग बना कर मुझे दे दो. उस के बाद फ्रिज में से निकाल कर एक क्यूब बर्फ भी डाल दो और चली जाओ. जब दीपक आ जाए तो मुझ भी खाने पर बुला लेना. और हां, राजन आ गया क्या?’’ बबलूराम ने पूछा.

‘‘जी, आ गया वह,’’ कह कर गोपी ने पैग बना कर बबलूराम को दे दिया.

तकरीबन डेढ़ घंटे बाद दीपक फैक्टरी से आ गया और सभी खाने की टेबल पर इकट्ठा हो गए.

बबलूराम दीपक से बोले, ‘‘आज से गोपी की राजनीतिक तालीम शुरू हो गई है. आज मैं ने उसे समझाया है कि राजनीति में हर आदमी के एक से ज्यादा चेहरे होते हैं.’’

यह सुन कर सभी हंस दिए. खाना खाते समय दीपक ने बताया कि उसे परसों पूना निकलना पड़ेगा. फैक्टरी का कुछ काम है, इसलिए एक हफ्ते तक वहीं रुकना पड़ेगा.

तय कार्यक्रम के अनुसार दीपक सुबह जल्दी पूना के लिए निकल गया.

नाश्ता करते समय बबलूराम ने गोपी से कहा, ‘‘आज दोपहर 12 बजे तुम पार्टी दफ्तर आ जाना. मैं तुम्हें यहां का नगर अध्यक्ष बनवा दूंगा, ताकि चुनाव लड़ने में कोई दिक्कत नहीं आए.’’

गोपी समय पर पार्टी दफ्तर पहुंच गई, जहां पर बबलूराम ने उसे पार्टी की महिला मोरचे की अध्यक्ष अपने गुरगों के जरीए बनवा दिया. दिनभर जुलूस व रैली का कार्यक्रम चलता रहा. शाम को गोपी घर आ गई, पर बबलूराम पार्टी दफ्तर में ही रुक गए.

रात तकरीबन 9 बजे तक इंतजार करने के बाद गोपी ने खाना खा लिया. बबलूराम तकरीबन 11 बजे घर लौटे और गोपी की तरफ देख कर बोले, ‘‘अब तो तुम खुश हो न?’’

‘‘जी पापाजी, मैं बहुत खुश हूं. आप के लिए खाना लगा दूं क्या?’’ गोपी ने बडे़ ही अपनेपन से पूछा.

‘‘नहीं, मुझे भूख नहीं है. लेकिन मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है. तुम थोड़ी मालिश कर दोगी क्या?’’ बबलूराम ने गोपी से पूछा.

‘‘जी हां, क्यों नहीं,’’ गोपी बोली. ‘‘मैं चेंज कर के आती हूं,’’ गोपी ने गाउन पहन रखा था.

‘‘अरे, नहींनहीं, इस की क्या जरूरत है. 10 मिनट में तो मेरी मालिश हो ही जाएगी. फिर तुम क्यों परेशान होती हो. आ जाओ ऐसे ही,’’ बबलूराम ने कहा.

गोपी सकुचाते हुए बबलूराम के कमरे में चली गई.

बबलूराम अपने बैड पर लेट गए और गोपी हलके हाथ से उन की मालिश करने लगी.

धीरेधीरे बबलूराम का सिर गोपी की गोद में आ गया. गोपी समझ कि शायद बबलूराम को नींद लग गई है और ऐसा हो गया है, पर ऐसा नहीं था. यह सबकुछ जानबूझ कर हो रहा था.

धीरेधीरे बबलूराम ने गोपी को अपनी तरफ खींच लिया. गोपी कुछ समझ पाती, उस के पहले ही वह सब हो गया, जो नहीं होना चाहिए था.

सुबह राजन अपने स्कूल चला गया. गोपी अभी अपने कमरे में ही पड़ी हुई थी, तभी बबलूराम उस के कमरे में आए और बोले, ‘‘मैं ने तुम्हें समझाया था कि राजनीति में तुम्हें काफी बलिदान करना पड़ेगा और यह तुम्हारा बलिदान ही है.

‘‘यह भी याद रख लो, इस घटना का जिक्र दीपक या किसी और से किया तो उस आदमी का इस धरती पर वह आखिरी दिन होगा.

‘‘दीपक की मां को भी हम ने ही स्वर्ग में स्थान दिलवाया है, क्योंकि उसे सब पता चल चुका था.

‘‘इस के अलावा जो लोग हमारे विरोध में बोलते थे, उन को भी हम ने ही मुक्ति दिलवाई है. अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम कैसी जिंदगी चाहती हो. सुख से भरी हुई या एक मैली साड़ी वाली घरवाली की.’’

‘‘पर, यह गलत है. और गलत बात एक न एक दिन सामने आ ही जाती है,’’ गोपी रोते हुए बोली.

‘‘पता तो तब चलेगा न, जब हम दोनों में से कोई बताएगा.

‘‘रही बात गलत होने की, तो प्यार, जंग और राजनीति में सबकुछ जायज है. यही तो रहस्य नीति मतलब राजनीति है.

‘‘अगर तुम आगे बढ़ना चाहती हो तो दोपहर 12 बजे पार्टी दफ्तर पहुंच जाना. अपने सपनों को पूरा करने का सुनहरा मौका तुम्हारे सामने है,’’ बबलूराम समझने के अंदाज में धमका कर चले गए.

काफी देर तक रोनेधोने और काफी सोचनेसमझने के बाद गोपी दोपहर 12 बजे पार्टी दफ्तर पहुंच गई.

अगले साल होने वाले नगरनिगम के चुनाव में गोपी को अध्यक्ष पद का टिकट दे दिया गया और बबलूराम ने अपने गुरगों के प्रभाव से उसे अच्छे वोटों से जितवा भी दिया.

बबलूराम की सलाह पर दीपक ने कारखाने में एक मैनेजर रख दिया और वह खुद को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से जोड़ने के लिए दुबई चला गया.

अब दीपक 3-4 महीनों के बाद ही घर आ पाता है. राजन को भी दूर के पहाड़ी स्कूल में अच्छी तालीम के लिए भेज दिया गया है.

अब गोपी विधानसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. उस का प्रमोशन जारी है. अब वह अकसर प्रदेश अध्यक्ष की गाड़ी से देर रात में उतरती है तो बबलूराम उसे एक पैग बना कर पिला देते हैं, ताकि थकान दूर हो जाए.

मुझे यकीन है: गुलशन के ससुराल वाले क्या ताना देते थे ?

पढ़ीलिखी गुलशन की शादी मसजिद के मुअज्जिन हबीब अली के बेटे परवेज अली से धूमधाम से हुई. लड़का कपड़े का कारोबार करता था. घर में जमीनजायदाद सबकुछ था. गुलशन ब्याह कर आई तो पहली रात ही उसे अपने मर्द की असलियत का पता चल गया. बादल गरजे जरूर, पर ठीक से बरस नहीं पाए और जमीन पानी की बूंदों के लिए तरसती रह गई. वलीमा के बाद गुलशन ससुराल दिल में मायूसी का दर्द ले कर लौटी. खानदानी घर की पढ़ीलिखी लड़की होने के बावजूद सीधीसादी गुलशन को एक ऐसे आदमी को सौंप दिया गया, जो सिर्फ चारापानी का इंतजाम तो करता, पर उस का इस्तेमाल नहीं कर पाता था.

गुलशन को एक हफ्ते बाद हबीब अली ससुराल ले कर आए. उस ने सोचा कि अब शायद जिंदगी में बहार आए, पर उस के अरमान अब भी अधूरे ही रहे. मौका पा कर एक रात को गुलशन ने अपने शौहर परवेज को छेड़ा, ‘‘आप अपना इलाज किसी अच्छे डाक्टर से क्यों नहीं कराते?’’

‘‘तुम चुपचाप सो जाओ. बहस न करो. समझी?’’ परवेज ने कहा.

गुलशन चुपचाप दूसरी तरफ मुंह कर के अपने अरमानों को दबा कर सो गई. समय बीतता गया. ससुराल से मायके आनेजाने का काम चलता रहा. इस बात को दोनों समझ रहे थे, पर कहते किसी से कुछ नहीं थे. दोनों परिवार उन्हें देखदेख कर खुश होते कि उन के बीच आज तक तूतूमैंमैं नहीं हुई है. इसी बीच एक ऐसी घटना घटी, जिस ने गुलशन की जिंदगी बदल दी. मसजिद में एक मौलाना आ कर रुके. उन की बातचीत से मुअज्जिन हबीब अली को ऐसा नशा छाया कि वे उन के मुरीद हो गए. झाड़फूंक व गंडेतावीज दे कर मौलाना ने तमाम लोगों का मन जीत लिया था. वे हबीब अली के घर के एक कमरे में रहने लगे.

‘‘बेटी, तुम्हारी शादी के 2 साल हो गए, पर मुझे दादा बनने का सुख नहीं मिला. कहो तो मौलाना से तावीज डलवा दूं, ताकि इस घर को एक औलाद मिल जाए?’’ हबीब अली ने अपनी बहू गुलशन से कहा. गुलशन समझदार थी. वह ससुर से उन के बेटे की कमी बताने में हिचक रही थी. चूंकि घर में ससुर, बेटे, बहू के सिवा कोई नहीं रहता था, इसलिए वह बोली, ‘‘बाद में देखेंगे अब्बूजी, अभी मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’ हबीब अली ने कुछ नहीं कहा.

मुअज्जिन हबीब अली के घर में रहते मौलाना को 2 महीने बीत गए, पर उन्होंने गुलशन को देखा तक नहीं था. उन के लिए सुबहशाम का खाना खुद हबीब अली लाते थे. दिनभर मौलाना मसजिद में इबादत करते. झाड़फूंक के लिए आने वालों को ले कर वे घर आते, जो मसजिद के करीब था. हबीब अली अपने बेटे परवेज के साथ दुकान में रहते थे. वे सिर्फ नमाज के वक्त घर या मसजिद आते थे. मौलाना की कमाई खूब हो रही थी. इसी बहाने हबीब अली के कपड़ों की बिक्री भी बढ़ गई थी. वे जीजान से मौलाना को चाहते थे और उन की बात नहीं टालते थे. एक दिन दोपहर के वक्त मौलाना घर आए और दरवाजे पर दस्तक दी.

‘‘जी, कौन है?’’ गुलशन ने अंदर से ही पूछा.

‘‘मैं मौलाना… पानी चाहिए.’’

‘‘जी, अभी लाई.’’

गुलशन पानी ले कर जैसे ही दरवाजा खोल कर बाहर निकली, गुलशन के जवां हुस्न को देख कर मौलाना के होश उड़ गए. लाजवाब हुस्न, हिरनी सी आंखें, सफेद संगमरमर सा जिस्म… मौलाना गुलशन को एकटक देखते रहे. वे पानी लेना भूल गए.

‘‘जी पानी,’’ गुलशन ने कहा.

‘‘लाइए,’’ मौलाना ने मुसकराते हुए कहा.

पानी ले कर मौलाना अपने कमरे में लौट आए, पर दिल गुलशन के कदमों में दे कर. इधर गुलशन के दिल में पहली बार किसी पराए मर्द ने दस्तक दी थी. मौलाना अब कोई न कोई बहाना बना कर गुलशन को आवाज दे कर बुलाने लगे. इधर गुलशन भी राह ताकती कि कब मौलाना उसे आवाज दें. एक दिन पानी देने के बहाने गुलशन का हाथ मौलाना के हाथ से टकरा गया, उस के बाद जिस्म में सनसनी सी फैल गई. मुहब्बत ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया था. ऊपरी मन से मौलाना ने कहा, ‘‘सुनो मियां हबीब, मैं कब तक तुम्हारा खाना मुफ्त में खाऊंगा. कल से मेरी जिम्मेदारी सब्जी लाने की. आखिर जैसा वह तुम्हारा बेटा, वैसा मेरा भी बेटा हुआ. उस की बहू मेरी बहू हुई. सोच कर कल तक बताओ, नहीं तो मैं दूसरी जगह जा कर रहूंगा.’’

मुअज्जिन हबीब अली ने सोचा कि अगर मौलाना चले गए, तो इस का असर उन की कमाई पर होगा. जो ग्राहक दुकान पर आ रहे हैं, वे नहीं आएंगे. उन को जो इज्जत मौलाना की वजह से मिल रही है, वह नहीं मिलेगी. इस समय पूरा गांव मौलाना के अंधविश्वास की गिरफ्त में था और वे जबरदस्ती तावीज, गंडे, अंगरेजी दवाओं को पीस कर उस में राख मिला कर इलाज कर रहे थे. हड्डियों को चुपचाप हाथों में रख कर भूतप्रेत निकालने का काम कर रहे थे. बापबेटे दोनों ने मौलाना से घर छोड़ कर न जाने की गुजारिश की. अब मौलाना दिखाऊ ‘बेटाबेटी’ कह कर मुअज्जिन हबीब अली का दिल जीतने की कोशिश करने लगे. नमाज के बाद घर लौटते हुए हबीब अली ने मौलाना से कहा, ‘‘जनाब, आप इसे अपना ही घर समझिए. आप की जैसी मरजी हो वैसे रहें. आज से आप घर पर ही खाना खाएंगे, मुझे गैर न समझें.’’ मौलाना के दिल की मुराद पूरी हो गई. अब वे ज्यादा वक्त घर पर गुजारने लगे. बाहर के मरीजों को जल्दी से तावीज दे कर भेज देते. इस काम में अब गुलशन भी चुपकेचुपके हाथ बंटाने लगी थी.

तकरीबन 6 महीने का समय बीत चुका था. गुलशन और मौलाना के बीच मुहब्बत ने जड़ें जमा ली थीं. एक दिन मौलाना ने सोचा कि आज अच्छा मौका है, गुलशन की चाहत का इम्तिहान ले लिया जाए और वे बिस्तर पर पेट दर्द का बहाना बना कर लेट गए. ‘‘मेरा आज पेट दर्द कर रहा है. बहुत तकलीफ हो रही है. तुम जरा सा गरम पानी से सेंक दो,’’ गुलशन के सामने कराहते हुए मौलाना ने कहा.

‘‘जी,’’ कह कर वह पानी गरम करने चली गई. थोड़ी देर बाद वह नजदीक बैठ कर मौलाना का पेट सेंकने लगी. मौलाना कभीकभी उस का हाथ पकड़ कर अपने पेट पर घुमाने लगे.

थोड़ा सा झिझक कर गुलशन मौलाना के पेट पर हाथ फिराने लगी. तभी मौलाना ने जोश में गुलशन का चुंबन ले कर अपने पास लिटा लिया. मौलाना के हाथ अब उस के नाजुक जिस्म के उस हिस्से को सहला रहे थे, जहां पर इनसान अपना सबकुछ भूल जाता है. आज बरसों बाद गुलशन को जवानी का वह मजा मिल रहा था, जिस के सपने उस ने संजो रखे थे. सांसों के तूफान से 2 जिस्म भड़की आग को शांत करने में लगे थे. जब तूफान शांत हुआ, तो गुलशन उठ कर अपने कमरे में पहुंच गई.

‘‘अब्बू, मुझे यकीन है कि मौलाना के तावीज से जरूर कामयाबी मिलेगी,’’ गुलशन ने अपने ससुर हबीब अली से कहा.

‘‘हां बेटी, मुझे भी यकीन है.’’

अब हबीब अली काफी मालदार हो गए थे. दिन काफी हंसीखुशी से गुजर रहे थे. तभी वक्त ने ऐसी करवट बदली कि मुअज्जिन हबीब अली की जिंदगी में अंधेरा छा गया. एक दिन हबीब अली अचानक किसी जरूरी काम से घर आए. दरवाजे पर दस्तक देने के काफी देर बाद गुलशन ने आ कर दरवाजा खोला और पीछे हट गई. उस का चेहरा घबराहट से लाल हो गया था. बदन में कंपकंपी आ गई थी. हबीब अली ने अंदर जा कर देखा, तो गुलशन के बिस्तर पर मौलाना सोने का बहाना बना कर चुपचाप मुंह ढक कर लेटे थे. यह देख कर हबीब अली के हाथपैर फूल गए, पर वे चुपचाप दुकान लौट आए.

‘‘अब क्या होगा? मुझे डर लग रहा है,’’ कहते हुए गुलशन मौलाना के सीने से लिपट गई.

‘‘कुछ नहीं होगा. हम आज ही रात में घर छोड़ कर नई दुनिया बसाने निकल जाएंगे. मैं शहर से गाड़ी का इंतजाम कर के आता हूं. तुम तैयार हो न?’’ ‘‘मैं तैयार हूं. जैसा आप मुनासिब समझें.’’ मौलाना चुपचाप शहर चले गए. मौलाना को न पा कर हबीब अली ने समझा कि उन के डर की वजह से वह भाग गया है.

सुबह हबीब अली के बेटे परवेज ने बताया, ‘‘अब्बू, गुलशन भी घर पर नहीं है. मैं ने तमाम जगह खोज लिया, पर कहीं उस का पता नहीं है. वह बक्सा भी नहीं है, जिस में गहने रखे हैं.’’ हबीब अली घबरा कर अपनी जिंदगी की कमाई और बहू गुलशन को खोजने में लग गए. पर गुलशन उन की पहुंच से काफी दूर जा चुकी थी, मौलाना के साथ अपना नया घर बसान.

मुक्त : बेवफाई की राह पर सरोज

आज मंगलवार है और राज के आने का दिन भी. सरोज कल रात से ही अपनी आंखों में अनगिनत सपनों को संजोए सो नहीं पाई थी. राज के नाम से ही उस के जिस्म में एक अनछुई हलचल हिलोरें मार रही थी. वह अपनेआप को 18 बरस की उस कमसिन कली सा महसूस कर रही थी, जिसे पहली बार किसी लड़के ने छुआ हो.

सरोज ने आज बहुत ही जल्दी काम निबटा लिया था. विकास को भी टिफिन दे कर बहुत ही अच्छे मन से विदा किया था. विकास के साथ सरोज की शादी 10 साल पहले हुई थी. उन्होंने सरोज को 2 प्यारेप्यारे बच्चे उस उपहार के रूप में दिए थे, जिस का मोल वह कभी नहीं चुका सकती थी.

विकास बहुत ही सीधे स्वभाव के इनसान हैं. वे सरोज की हर बात में सिर्फ और सिर्फ अपनी रजामंदी ही देते हैं. कभी भी उन्होंने सरोज के फैसले पर अपने फैसले की मुहर नहीं लगाई है. सच कहें, तो सरोज अपने गरीबखाने की महारानी है.

इस सब के बावजूद बस एक यही बात सरोज को बेचैन कर देती है कि विकास को तो बच्चे हो जाने के बाद उस से दूर होने का बहाना मिल गया था. वह जब भी रात में उन के करीब जा कर अपनी इच्छा जाहिर करने की कोशिश करती, तो वे ‘आज नहीं’, ‘बच्चे उठ जाएंगे’, ‘फिर कभी’ कह कर सरोज को बड़ी ही सफाई से मना कर देते थे. वह भी अपने अंदर उठते ज्वारभाटे के तूफान को दबाते हुए आंखों में आंसुओं का सैलाब ले कर सोने का नाटक करती थी.

इसी तरह महीने, फिर साल बीतने लगे. सरोज उस मछली सा तड़पने लगी, जिस के पास समुद्र तो है, फिर भी वह प्यासी ही है. इसी प्यास को अपने गले में भर कर सरोज भी नौकरी करने लगी. समय अपनी रफ्तार से चलता रहा और वह और ज्यादा प्यास से तड़पने लगी.

राज सरोज के सीनियर थे और अपनी हर बात उस से शेयर करने लगे थे. वह भी जैसे उन के मोहपाश में बंध कर अपनी सीमाओं को पार कर उन के साथ चलते हुए सात घोड़े के रथ पर सवार आकाश में बिन पंख के उड़ने लगी थी.

धीरेधीरे राज और सरोज कब एक होने को उतावले हो गए, सच में पता ही नहीं चला और आखिरकार आज वह दिन भी आ गया, जब राज को अपने घर आने का न्योता देते हुए उस ने अपनी आंखों से रजामंदी भी दे दी थी.

आज सरोज ने छुट्टी ले ली थी और राज आधे दिन की छुट्टी ले कर उस के घर आ जाएंगे. बस उसी पल के इंतजार में वह न जाने कितनी बार खुद को आईने में निहारती रही. उसे आज एक अजीब सी सिहरन महसूस हो रही थी.

सरोज आज उस कुएं में खुद को विलीन करने जा रही थी, जिस के पनघट पर उस का कोई हक नहीं था. पर वह आज जी भर कर उस कुएं का पानी पीना चाहती थी. बस यही सोचते हुए वह एकएक पल गिन रही थी.

अचानक दरवाजे की घंटी ने सरोज का ध्यान हटा दिया. आज अपने बैडरूम से मेन दरवाजा खोलने तक का सफर उसे कई मीलों सा लग रहा था. उस के कदम शरीर का साथ नहीं दे रहे थे. वे उस के दिल में उठे उस तूफान को शांत करने में लगे थे, जो उस के और राज के बीच एक कमजोर से धागे को बांध कर उस से विश्वास की मजबूती की चाहत करने की सोच रहे थे.

बड़ी ही जद्दोजेहद से सरोज दरवाजे तक पहुंच पाई. आज पहली बार दरवाजे को खोलने में वह अपनी नजरों को नीचे किए हुए थी. वह पापपुण्य के बीच अपनी उस प्यास को महसूस कर रही थी, जिस की बेचैनी उसे जीने नहीं दे रही थी.

सरोज ने धड़कते दिल से दरवाजा खोला. देखा कि सामने विकास हाथ में गजरा लिए मुसकराते हुए खड़े थे.

‘‘क्या सरोज, इतनी देर से घंटी बजा रहा था. क्या कर रही थी?’’

सरोज कुछ बोल पाती, इस के पहले ही विकास ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस के बालों को गजरे से सजातेसजाते वे धीरे से कानों में फुसफुसाने लगे, ‘‘अच्छा हुआ, जो तुम ने आज छुट्टी कर ली. मैं कल से ही तुम्हें सरप्राइस देने की सोच चुका था. आज मैं पूरा दिन सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे मुताबिक जीना चाहता हूं और तुम्हारी सारी शिकायतें भी तो दूर करनी हैं.’’

सरोज सपनों की दुनिया से बाहर आ गई और अपने उस फैसले पर पछताने लगी, जो आज उस के और विकास के विश्वास को तोड़ते हुए उसे उस पलभर के सुख के बदले आत्मग्लानि के अंधे और सूखे कुएं में गिराने वाला था.

सरोज विकास की बांहों से खुद को मुक्त कर के उस अंधेरे को फोन करने जाने लगी, जो उसे अपने खुशहाल परिवार की रोशनी से दूर करने वाला था और वह अंधकार भी सरोज ने ही तो चुना था.

हाय हैंडसम: प्रेम की दिवानी गौरी का क्या हुआ

प्यार आजाद है, उम्र नहीं देखता. यह किसी भी उम्र में, किसी से भी हो सकता है.  कमसिन उम्र की गौरी दिल लगा बैठी थी अपनी उम्र से ढाईगुना बड़े व्यक्ति से. प्रेम में दीवानी गौरी का यह महज बचपना था या वाकई उस के प्यार में कोई अलग बात थी?

‘प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है, हर खुशी से हर गम से बेगाना होता है…’ मैं जब इस फिल्मी गाने को सुनता था तो मन में यही सोचता था, क्या वाकई प्यार दीवाना और मस्ताना होता है? लेकिन जब प्यार में दीवानीमस्तानी, हर खुशी हर गम से बेगानी एक लड़की से मुलाकात हुई तो यकीन हो गया, वास्तव में प्यार दीवाना और मस्ताना होता है.

4 साल पहले मैं फेसबुक खूब चलाता था. उसी दौरान मेरे मैसेंजर बौक्स में एक मैसेज आया, ‘हैलो…’

मैं ने मैसेज बौक्स के ऊपर नजर डाली, नाम था गौरी. इतनी देर में दूसरा मैसेज आ गया, ‘हैलो, आप कहां से हैं?’

मैं ने मैसेज में अपने शहर का नाम टाइप किया, साथ ही उस से पूछा, ‘आप कौन?’

‘जी, मेरा नाम गौरी है.’

‘ओके. कहां से हो?’ मैं ने मैसेज का जवाब दिया.

‘जी, मैं मुरादाबाद से हूं. क्या मैं आप से बात कर सकती हूं?’ उस ने अगला मैसेज किया.

‘बात तो आप कर ही रही हैं,’ मैं ने मजाकिया अंदाज में मैसेज किया.

‘जी, मेरा मतलब है, आप मु?ो अपना मोबाइल नंबर देंगे?’

‘मोबाइल नंबर क्यों?’

‘आप से बात करनी है.’

‘तुम करती क्या हो?’ मैं ने पूछा.

‘स्टडी, मैं इंटरमीडिएट के एग्जाम की तैयारी कर रही हूं.’

‘तुम इंटरमीडिएट में पढ़ती हो?’ मैं चौंका.

‘हां, लेकिन आप को हैरानी क्यों हो रही है?’

‘वो… बस, ऐसे ही. तुम मु?ा से क्या बात करोगी, मेरी उम्र मालूम है तुम्हें?’

‘जी, मैं ने आप की प्रोफाइल देखी है, आप की उम्र करीब 50 साल है.’

‘उम्र ही मेरी 50 साल नहीं है, मेरे 2 बच्चे भी हैं, वे भी तुम से बड़े.’

‘इस में आश्चर्य की क्या बात है. शादी के बाद बच्चे तो सभी के होते हैं. आप के भी हैं. एक बात बोलूं, आप बहुत हैंडसम हैं.’

‘फोटो में तो सभी हैंडसम दिखते हैं.’

‘सुनिए, मु?ो आप से प्यार हो गया है.’

‘क्या कहा तुम ने?’ मु?ो अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

‘आई लव यू… आई लव यू सो मच,’ उस ने फिर मैसेज किया.

‘तुम पागल तो नहीं हो?’

‘हां, मैं आप की प्रोफाइल फोटो देख कर पागल हो गई हूं.’

‘ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है. मेरी एक बात ध्यान से सुनो, बेटा.’

‘हाय… क्या कहा, बेटा… कितना अजीब इत्तफाक है, मेरे पापा भी मेरी मम्मी को प्यार से बेटा ही बुलाते हैं. आप के मुंह से बेटा शब्द सुन कर अच्छा लगा,’ उस ने रोमांटिक अंदाज में मैसेज भेजा.

‘तुम नादानी में कुछ भी बोले जा रही हो.’

‘मैं होशोहवास में बोल रही हूं.’

‘चलो, फिर से बेटा, अच्छा चलो, ऐसे ही बोलो आप.’

‘तुम चाहती क्या हो?’

‘इतनी जल्दी है आप को यह सुनने की?’

उस की बात से मैं ?ोंप गया था, फिर संभल कर मैं ने उस से कहा, ‘अगर तुम्हारे मम्मीपापा को तुम्हारे बारे में पता चला कि तुम किसी भी इंसान से ऐसी बातें करती हो तो उन पर क्या…’

‘सुनिए हैंडसम, अब मैं आप को हैंडसम ही बोला करूंगी और आप मु?ो बेटा,’ उस ने मेरी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘हां तो हैंडसम, मैं कह रही थी, मैं हर किसी से ऐसे नहीं बोलती हूं, आप से ऐसे बोलने का मन हुआ, तो बोल रही हूं. दूसरी बात, मेरे मम्मीपापा के मु?ो ले कर जो भी ड्रीम्स हैं उन्हें तो मैं हंड्रैड परसैंट पूरे करूंगी. पर ड्रीम्स से दिल का क्या लेनादेना. उसे तो इन सब चीजों से दूर रखिए. बेचारा मेरा नन्हामुन्ना, प्यारा सा एक ही तो दिल था उसे भी आप ने चुरा लिया.’

‘फालतू बातें मत करो.’

‘प्लीज हैंडसम, मु?ो अपना नंबर दो न, मु?ो आप से बहुत सारी बातें करनी हैं.’

‘नहीं, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और तुम भी अब मु?ो मैसेज मत करना.’

‘सुनिए, औफलाइन मत होना, प्लीज.’

‘चुप रहो, मु?ो तुम से कोई बात नहीं करनी है.’

‘ऐसा मत कहिए, प्लीज, अपना नंबर दे दो न.’

‘कहा न, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और न ही आज के बाद कोई मैसेज करूंगा,’ यह मैसेज भेजते हुए मैं ने फेसबुक लौगआउट कर दिया.

अगले दिन मैं औफिस टूअर पर कई दिनों के लिए दिल्ली चला गया. इस बीच मैं ने फेसबुक ओपन नहीं किया. दिल्ली से वापस आने के बाद रात को मैं ने लैपटौप पर फेसबुक लौगइन किया. मैसेज बौक्स में कई मैसेज मेरा इंतजार कर रहे थे. उन मैसेजेस में गौरी का मैसेज भी था. उस के मैसेज को देख कर मेरा दिल धक्क से हो गया. मन में सोचने लगा, यह लड़की जरूर सिरफिरी या पागल है. मैं तो इसे भूल गया था और यह? मैं ने उस के मैसेज पर क्लिक कर दिया. वही हंसतामुसकराता मासूम सा चेहरा सामने आ गया. मैसेज में लिखा था, ‘कहां हो हैंडसम, अपना नंबर दो न प्लीज.’ उस के मैसेज का मैं ने कोई रिप्लाई नहीं किया.

कई दिनों बाद मेरे मोबाइल पर एक अनजानी कौल आई. मैं ने कौल रिसीव की. दूसरी तरफ से खिलखिलाती हंसी सुनाई दी. उस के बाद आवाज आई, ‘हाय हैंडसम.’

उस आवाज को सुन कर मैं एकदम सकते में आ गया. दूसरी तरफ से फिर आवाज आई.

‘आप ने क्या सम?ा था, आप फेसबुक से दूर हो गए तो हम आप को अपने दिल से दूर कर देंगे. नहीं हैंडसम, ऐसा नहीं होगा. आप ने गौरी का दिल चुराया है. उस का चैन, उस की रातों की नींद चुराई है तो हम आप को कैसे भूल जाएंगे. हैंडसम, हम ने आप से सच्चा प्यार किया है. आप ने नंबर नहीं दिया तो क्या हुआ, आप फेसबुक से दूर हो गए तो क्या हुआ, हम तो आप से दूर नहीं हुए. हम ने आप का नंबर ढूंढ़ ही लिया. कोई बात नहीं, आप दुखी मत होइए. हम आप को परेशान भी नहीं करेंगे. क्या करें, हम आप पर मरमिटे हैं, इसलिए कभीकभार हम से बात कर लिया करो, ताकि हम जिंदा रह सकें.

क्या करें हैंडसम, हम तो दिल के हाथों मजबूर हो गए. दिल तो दिल ही है, कर बैठा आप से प्यार, तो कर बैठा. वैसे, आप हमारे ऊपर आंख मूंद कर भरोसा कर सकते हैं. हमें गर्व होता है अपनेआप पर जब हम सोचते हैं हमें प्यार भी हुआ तो एक मशहूर लेखक से. कभी तो हम भी उस की कहानी का हिस्सा बनेंगे. क्या हुआ… आप की खामोशी बता रही है, आप हमारी बेस्वादी बातों को सुन कर बोर हो रहे हैं. तभी तो कुछ बोल नहीं रहे हैं, हम ही बोले जा रहे हैं.’

‘क्या चाहती हो तुम?’ मैं ने ?ां?ालाते हुए कहा तो वह तपाक से बोली, ‘आप से मिलना चाहते हैं एक बार बस. एक बार हम से मिल लो, फिर आप जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे. हैंडसम प्लीज, न मत करना. हम जानते हैं आप बहुत सज्जन हैं. हम से बात करते हुए आप को ?ि?ाक होती है. पर हम सचमुच आप से प्यार करने लगे हैं.

आप हम से बिलकुल भी न घबराएं. हम न चालबाज हैं, न धोखेबाज. हमें आप से फोन रिचार्ज भी नहीं करवाना है, और न ही आप को ब्लैकमेल करना है. उम्र भी हमारी 20 साल है. आप को हम से कैसी भी कोई टैंशन नहीं मिलेगी. एक बार आप से मिलने की तमन्ना है. बस, वह पूरी कर दीजिए. हैंडसम, हम जानते हैं हमें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए.

‘हम यह भी नहीं चाहते कि हमारी गलती की सजा आप को मिले. आप हमारे बारे में कैसेकैसे अनुमान लगा रहे होंगे, हम कौन हैं, कहीं हम आप को गुमराह तो नहीं कर रहे हैं. हम लड़की हैं भी या नहीं, कहीं हम आप को किसी जाल में तो नहीं फांस रहे हैं. क्योंकि, आजकल ऐसा हो रहा है.

सोशलसाइट पर फेक आईडी बना कर लोग लोगों को ब्लैकमेल करते हैं, पर हम ऐसे नहीं हैं. हम सीधीसादी लड़की हैं. पैसे की भी हमारे पास कमी नहीं है. मम्मीपापा दोनों बिजनैस में हैं. हम उन की इकलौती, वह भी लाड़ली, संतान हैं. बहुत प्यार करते हैं मम्मीपापा हमें. पर क्या करें हम आप को प्यार करने लगे. आप का प्रोफाइल फोटो देख कर हमारा दिल हमारे काबू में नहीं रहा. आप के मन में हमें ले कर जो भी भ्रम हैं, वह हम मिल कर दूर कर लेंगे. हैंडसम, हमें इग्नोर मत करना वरना हमारा नन्हा सा, मासूम सा दिल टूट जाएगा.’

मैं ने उस से पीछा छुड़ाने की गरज से कह दिया, ‘अच्छा ठीक है. मैं अगले सप्ताह औफिस के काम से दिल्ली जाते वक्त तुम से मिल लूंगा.’ इतना सुनते ही वह खुशी से उछल पड़ी और बोली, ‘‘हैंडसम, आना जरूर, धोखा मत देना.’’

‘ठीक है, इस बीच तुम भी मु?ो फोन मत करना, मैं खुद तुम्हें फोन कर लूंगा.’

‘ठीक है, हमे मंजूर है, नहीं करेंगे हम आप को फोन.’

‘हां, मैं ने भी कह दिया तो जरूर आऊंगा.’

मैं ने गौरी से कह तो दिया लेकिन मेरे जेहन में उस की बातें उथलपुथल मचाने लगीं. कभी सोचता, मैं कहां फंस गया, कभी अपने मन में उस की काल्पनिक तसवीर बनाने लगता, वह ऐसी दिखती होगी, वह वैसी दिखती होगी. एक बार मन में आया, मैं घर में पत्नी को बता दूं. फिर सोचा, पत्नी ने मेरी बातों पर यकीन नहीं किया तो… फालतू में बात का बतंगड़ बन जाएगा. घर में हंगामा खड़ा हो जाएगा. नहीं, मैं पत्नी को नहीं बताऊंगा. मु?ो नहीं लगता कि वह लड़की गलत हो. वह भटक गई है, उस से मिल कर मु?ो उस को सम?ाना होगा, वरना उलटेसीधे हाथों में पड़ कर वह अपना जीवन बरबाद कर सकती है.

एक दिन जब मैं ने उस को फोन कर के बताया कि मैं कल सुबह 11 बजे तक उस के पास पहुंच जाऊंगा, मु?ो मिल जाना, तो वह खुशी से जैसे पागल हो गई. कई बार एक सांस में, ‘आई लव यू… आई लव यू सो मच…’ बोलती चली गई. मैं ने बिना किसी प्रतिक्रिया के फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

रात को औफिस के ड्राइवर का फोन आया, ‘सर, सुबह को कितने बजे गाड़ी ले कर आऊं?’

मैं ने सोचा, अगर ड्राइवर के साथ मैं गौरी से मिलूंगा तो ड्राइवर औफिस में सब को बता देगा और फिर यह बात घर तक भी पहुंच जाएगी. इसलिए मैं ने ड्राइवर से ?ाठ बोला. मैं ने कहा, ‘मैं तो मुरादाबाद में ही हूं. रात को यहीं रुकना पड़ेगा. ऐसा करो, तुम कल दोपहर को 12 बजे तक यहां आ जाना, हम यहीं से दिल्ली चलेंगे.’

‘ठीक है सर,’ कह कर ड्राइवर ने फोन काट दिया.

अगले दिन सुबह मैं बस में बैठ कर जा रहा था. मन किसी अनजाने भय से भयांकित था. सोच रहा था, पता नहीं क्या होगा? मेरे साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए. अगर ऐसा कुछ हो गया तो पत्नी और बच्चों को कैसे सम?ाऊंगा? मैं तो कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगा, मेरी इज्जत का ढिंढोरा बीच बाजार पिट जाएगा? एक मन कह रहा था, मैं गौरी से न मिलूं, तो एक मन कह रहा था, मिल लो, मिलने से स्थिति साफ हो जाएगी. यही सब सोचते हुए मैं मुरादाबाद पहुंच गया. कपूर कंपनी चौराहे पर बस रुकी. मैं बस से उतरा ही था, गौरी मेरे सामने आ कर बोली, ‘हाय हैंडसम.’ मैं उसे देख कर सकपका गया.

‘जनाब, पूरे 9 बजे से यहां खड़ी आप का इंतजार कर रही हूं,’ उस ने जताया.

मैं ने बस, उस से इतना ही कहा, ‘तुम ने मु?ो पहचान लिया?’

‘हां तो, इस में चौंकने की क्या बात है. बौडीशौडी तो बिलकुल फोटो जैसी है. बस, सिर के बाल ही तो थोड़े सफेद हुए हैं.’

मैं खामोश ही रहा.

‘हम चलें?’ उस ने सड़क किनारे खड़ी अपनी लाल रंग की बड़ी कार की तरफ इशारा कर के कहा.

‘हम कार से चलेंगे?’

‘हां कार भी हमारी, रैस्त्रां भी हमारा और लस्सी भी हमारी होगी, आप हमारे मेहमान जो हो.’

मैं उस की कार में बैठ गया. कार वही चला रही थी. हम मुरादाबाद से करीब 7 किलोमीटर दूर बिजनौर रोड पर एक रैस्टोरैंट में आ कर बैठ गए. उस ने 2 कुल्हड़ वाली लस्सी और 2 सैंडविच का और्डर दे दिया. वहां बैठे लोग मु?ो और उस को अजीब निगाहों से घूरने लगे. मु?ो अजीब लगा, तो मैं ने अपने हावभाव ऐसे कर लिए जैसे मैं उस का कोई रिश्तेदार हूं. वह बहुत उतावली हो रही थी. टेप रिकौर्डर की तरह पटरपटर बोले जा रही थी. वह क्या बोल रही थी, मैं कुछ सुन नहीं पा रहा था क्योंकि मेरा दिलोदिमाग उस की बातों में नहीं लग रहा था. मैं, बस, उसे देखे जा रहा था. फिर उस ने अपने दोनों हाथों की हथेलियों में अपने दोनों गालों को रोका और कुहनियों को मेज पर टिका कर हसरत से मु?ो ऐसे देखने लगी जैसे कोई अनोखी चीज देख रही हो. फिर मुसकराने लगी.

मैं ने कहा, ‘अरे, ऐसे क्यों देख रही हो मु?ो?’

वह उसी तरह मुसकराते हुए बोली, ‘एक बात बोलूं हैंडसम, मेरे दिल ने आप को चाह कर कोई गलती नहीं की. आप तो कल्पना से भी अधिक स्मार्ट और हैंडसम हैं. दिन में 10 बार देखते हैं आप की तसवीर को.’

‘अच्छा, ऐसा क्या है उस तसवीर में?’ मेरे कहते ही वह अपने महंगे मोबाइल फोन पर मेरा फेसबुक अकाउंट खोल कर मेरी डीपी को मु?ो दिखाते हुए बोली, ‘‘हमारी निगाहों से देखिए अपनी इस तसवीर को. कैसे अपने दोनों हाथों को ऊपर कर के मंदमंद मुसकरा रहे हैं. इसी मुसकराहट ने हमारी जान ले ली.’’

मैं कभी अपनी फोटो देख रहा था, तो कभी उस को.

‘आप की लस्सी गरम हो रही है, पीजिए इसे,’ उस ने अधिकार से कहा.

मैं ने लस्सी का कुल्हड़ उठाया और एक घूंट भर कर कहा, ‘गौरी, तुम ने कहा था तुम मु?ा से मिलना चाहती हो, तो मैं तुम से मिल लिया. तुम ने यह भी कहा था मिलने के बाद मैं जो कहूंगा, तुम उस को मानोगी?’

‘तो कहिए न, हम आप की बात सुनेंगे भी और मानेंगे भी,’ वह तपाक से बोली.

मैं ने कहा, ‘अब तुम न तो मु?ो कभी फोन करोगी और न ही फेसबुक पर मु?ो कोई मैसेज करोगी.’

‘आप से प्यार तो करूंगी या वह भी नहीं करूंगी. सुनिए हैंडसम, हम आप को अब न फोन करेंगे, न आप से फेसबुक पर चैट करेंगे लेकिन एक शर्त पर, एक बार, बस, एक बार आप हम से मुसकरा कर आई लव यू कह दीजिए.’

मैं ने मन में सोचा, यह लड़की बहुत जिद्दी है. ऐसे मानने वाली नहीं है. इस के लिए कुछनकुछ तो करना ही पड़ेगा. मैं ने कहा, ‘ठीक है, मैं तुम से सचमुच प्यार करने लगूंगा, तुम्हें आई लव यू भी बोलूंगा, लेकिन तब जब तुम अच्छे से अपनी पढ़ाई करोगी और फर्स्ट डिवीजन से अपनी इंटर की परीक्षा पास कर लोगी. उस से पहले, न तुम मु?ो फोन करोगी और न ही मु?ा से चैट करोगी.’

‘ओके हैंडसम, हमें आप की शर्त मंजूर है. अब हम खूब जम कर पढ़ाई करेंगे. हालांकि, यह सब करना हमारे लिए मुश्किल हो जाएगा क्योंकि जो शर्त आप ने हमारे सामने रखी है वह हमारे लिए किसी सजा से कम नहीं है. फिर भी हम इस सजा को आप की मोहब्बत का तोहफा सम?ा कर स्वीकार कर लेते हैं, पर आप हमें भूल मत जाना.’

मेरे ड्राइवर ने मु?ो फोन कर के कहा कि वह मुरादाबाद पहुंच गया है. ड्राइवर का फोन आते ही मैं ने गौरी से विदा ली. विदा लेते समय गौरी का चेहरा उतर गया. वह बहुत भावुक हो गई थी. उस की आंखों की चमक कम हो गई. वह एकदम छुईमुई सी दिखाई देने लगी. उस ने मुसकराने की कोशिश की, मगर उस के होंठ कांपने लगे. उस की आंखों में आंसू तैरने लगे. उस ने अपनी उंगली से आंख में लटके आंसू की उस बूंद को उठा लिया, जो टपक कर उस के गाल पर गिरने ही वाली थी.

मैं अपने ड्राइवर को गौरी के बारे में कुछ पता नहीं चलने देना चाहता था, इसलिए मैं गौरी से कुछ दूर चला गया. गौरी मु?ो अभी भी अपलक देख रही थी.

मैं कार में बैठ गया. ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ाई, तो गौरी ने अपना एक हाथ थोड़ा सा ऊपर उठा कर मु?ो बाय का इशारा किया. बदले में मैं ने कुछ नहीं किया. गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा मैं पीछे घूम कर काफी दूर तक गौरी को देखता रहा. वह भी मु?ो यों ही देखती रही और अपनी उंगलियों से अपनी आंखों के आंसू पोंछती रही.

गौरी से मिलने के बाद एक बात तो पूरी तरह साफ हो गई कि वह बहुत ही मासूम और भोली लड़की थी. उस के मन में मेरे लिए कोई छलकपट नहीं था. दिल की भी साफ थी. पता नहीं कैसे वह मेरी तरफ आकर्षित हो गई. कोई बात नहीं, अगर उस से यह भूल हो गई तो मु?ो उस की भूल को सुधारना होगा.

मैं ने मन में सोच लिया, मैं अपना मोबाइल नंबर बदल लूंगा और कुछ समय के लिए फेसबुक चलाना भी बंद कर दूंगा. उसी समय मु?ो याद आया, गौरी ने मु?ा से कहा था, अगर मु?ो जिंदा देखना चाहते हो तो मु?ो कभी फेसबुक से अलग मत करना.’ मैं ने मन में सोचा, अगर गौरी ने ऐसावैसा कुछ कर लिया तो? नहीं, वह ऐसावैसा कुछ नहीं करेगी. मु?ो थोड़ाबहुत बुराभला कहेगी और फिर नौर्मल हो जाएगी. इसी बहाने कमसेकम उस के दिलोदिमाग से प्यार का भूत तो उतर जाएगा. मैं ने ऐसा ही किया. दिल्ली से वापस आने के बाद अपना मोबाइल नंबर, जो गौरी के पास था बंद करवा कर दूसरा नंबर ले लिया और फेसबुक भी चलाना बंद कर दिया.

4 वर्षों बाद अब अचानक एक दिन मेरे व्हाटसऐप पर एक मैसेज आया, ‘‘हम तो आप को धोखेबाज, चालबाज और बेवफा भी नहीं कह सकते क्योंकि आप ने तो हमें कभी प्यार किया ही नहीं था. प्यार तो हम ने आप से किया था और वह भी बेइंतहा, हद से भी ज्यादा. हां, आप से यह जरूर पूछेंगे, आप ने ऐसा क्यों किया? आप का प्यार पाने के लिए हम ने रातदिन पढ़ाई कर के इंटर की परीक्षा में टौप किया, उस के बाद बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास कर ली. आप को नहीं मालूम, जब हम ने इंटर में टौप किया था तो हम कितने खुश थे. कितने ख्वाब देख डाले थे हम ने आप के लिए. हमें पूरा यकीन था आप अपना वादा निभाने के लिए हमारे पास जरूर आएंगे. हमें यह नहीं मालूम था आप ने हम से ?ाठ बोला था. हम ने सैकड़ों बार आप को फोन लगाया, आप ने अपना फोन नंबर बदल दिया. फेसबुक पर भी हमारा कोई मैसेज नहीं पढ़ा, क्यों? क्यों किया आप ने ऐसा? हमारी भावनाओं के साथ आप ने खिलवाड़ क्यों किया?

‘‘हैंडसम, आप अच्छे इंसान हैं, इस बात का अंदाजा हमें तभी हो गया था जब हम आप से मिले थे और आप ने हमारी बेपनाह खूबसूरती को नजरभर कर भी नहीं देखा था. न आप ने हमारी खूबसूरती की तारीफ की थी. उसी दिन हम सम?ा गए थे आप उन आदमियों में से नहीं हैं जो किसी भी लड़की को देख कर अपना आपा खो देते हैं. आप की शालीनता और गंभीरता के कायल तो हम आज भी हैं. लेकिन हमें आप से यह उम्मीद नहीं थी कि आप हम से इस तरह किनारा कर जाएंगे.’’

व्हाट्सऐप पर गौरी का लंबा मैसेज पढ़ कर मैं असमंजस में पड़ गया. समझ नहीं आ रहा था, मैं गौरी के मैसेज का क्या जवाब दूं? जवाब दूं भी या नहीं? सोचा, अगर जवाब दूंगा तो बात आगे बढ़ जाएगी और नहीं दिया तो वह अपना आपा खो बैठेगी. फिर मेरी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. फिर सोचा, मु?ो गौरी से बात कर के उसे सम?ा देना चाहिए.

मैं ने गौरी को मैसेज किया, ‘‘गौरी, तुम ने मेरे कहने से इंटर में टौप किया और फिर बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास किया, यह जान कर मु?ो बेहद खुशी हो रही है. रही बात तुम से बात न करने की, तो सुनो, दिल्ली से वापस आने के बाद मु?ो किन्हीं कारणों से अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. इसलिए कंपनी ने अपना सिम भी वापस ले लिया. उसी में तुम्हारा नंबर था. और फेसबुक मैं इसलिए नहीं देख पाया, क्योंकि मैं भी 4 सालों से काफी परेशान रहा, मेरी पत्नी एक्सपायर हो गई थीं.’’

‘‘ओह, सो सैड. यू नो हैंडसम, मेरी मम्मी भी नहीं रहीं. वे भी…’’ गौरी भावुक हो गई.

‘‘अरे, फिर तो बड़ी मुश्किल हो गई होगी?’’

‘‘हां, और पापा ने हमारी शादी कर दी,’’ उस ने कहा.

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां, जानते हो हैंडसम, हमारे हसबैंड बहुत अच्छे इंसान हैं. बिलकुल आप के जैसे. बड़े बिजनैसमैन हैं. बहुत प्यार करते हैं हम से. पर हम ने उन से कह दिया, हम अपने हैंडसम से प्यार करते हैं.’’

‘‘गौरी, यह तुम ने गलत किया, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं करना चाहिए? हम किसी को धोखे में नहीं रखना चाहते, इसीलिए हमारे मन में जो था, वह हम ने कह दिया.’’

‘‘एक बात कहूं गौरी, तुम मु?ो बहुत प्यार करती हो न?’’

‘‘यह भी कोई पूछने वाली बात है. हम तो आप को खुद से भी ज्यादा प्यार करते हैं.’’

‘‘तो सुनो, अपना यह प्यारव्यार वाला चक्कर छोड़ कर अपने हसबैंड से प्यार करो. उसी में अपनी दुनिया और अपनी खुशियों को बसाओ. तुम्हें उसी में सबकुछ मिल जाएगा.’’

‘‘लेकिन आप तो नहीं मिलोगे. हैंडसम, हम अपने हसबैंड से साफ कह चुके हैं कि जब तक हम अपने हैंडसम से नहीं मिल लेंगे तब तक हम किसी के नहीं हो पाएंगे और उन्होंने हमारी बात मान भी ली.’’

‘‘अपनी यह नादानी छोड़ दो. गौरी. ऐसा पागलपन अच्छा नहीं होता. गौरी, कागज की नाव में सवार हो कर भावनाओं का सफर तय नहीं हो सकता और अब तो तुम्हारी शादी भी हो गई है. अब तुम्हें तुम्हारी खुशियां तुम्हारे हस्बैंड में ही मिलेंगी, कहीं और नहीं.’’

‘‘हैंडसम, एक बार, बस, एक बार आप हमें अपने सीने से लगा कर आई लव यू बोल दो. यकीन करना, आप फिर जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे.’’

‘‘नहीं, यह नामुमकिन है, गौरी. तुम मु?ा से यह उम्मीद मत करो. मैं ऐसा कुछ नहीं कह पाऊंगा. तुम अच्छी तरह जानती हो, मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करता हूं. मैं अपने परिवार को धोखा नहीं दे सकता और तुम्हारे लिए तो बिलकुल भी नहीं, क्योंकि मैं ने तुम्हें कभी उस नजर से देखा ही नहीं.’’

‘‘ठीक है, जब हम आप के नहीं हो पाए तो किसी और के भी नहीं हो पाएंगे. हम अपनी गाड़ी को सड़क के डिवाइडर से लड़ा देंगे और मर जाएंगे. हम सच कह रहे हैं, हैंडसम. इसे हमारी धमकी मत सम?ा लेना. जब हमारा दिल ही टूट गया, तो हम जी कर क्या करेंगे.’’

गौरी की बात सुन कर मैं एकदम घबरा गया. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अगर मेरे मिलने और आई लव यू बोलने से तुम्हें खुशी मिल रही है तो मैं बोल दूंगा लेकिन उस के बाद तुम कोई और जिद  नहीं करोगी.’’

‘‘हां, हम वादा करते हैं, आप के मिलने और आई लव यू बोलने के बाद हम आप से फिर कभी कोई जिद नहीं करेंगे. लेकिन फोन पर नौर्मल बात तो कर ही सकते हैं?’’

‘‘हां, ठीक है, तुम जब चाहो, मु?ा से मिल सकती हो.’’

‘‘हैंडसम, आप को नहीं मालूम कि आज हम कितने खुश हैं. आप से मिलने और प्यार के तीन शब्द ‘आई लव यू’ सुनने के लिए हम कल ही आप के पास आ रहे हैं.’’

‘‘ओके, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

नौटंकीबाज पत्नी : नयना की नासमझी ने क्या कर दिया

मुंबई में रहने वाले कोंकण इलाके के ज्यादातर लोग अपने गांव में आम और कटहल खाने आते हैं. इतना ही नहीं, कोंकण ताजा मछलियों के लिए भी बहुत मशहूर है, इसलिए सागर को अपने लिए बागबगीचे पसंद करने और मांसमछली पका लेने वाली पत्नी चाहिए थी. वह चाहता था कि उस की पत्नी घर और खेतीबारी संभालते हुए गांव में रह कर उस के मातापिता की सेवा करे, क्योंकि सागर नौकरी में बिजी रहने के चलते ज्यादा दिनों तक गांव में नहीं ठहर सकता था. ऐसे में उसे ऐसी पत्नी चाहिए थी जो उस का घरबार बखूबी संभाल सके.

आखिरकार, सागर को वैसी ही लड़की पत्नी के रूप में मिल गई, जैसी उसे चाहिए थी. नयना थोड़ी मुंहफट थी, लेकिन खूबसूरत थी. उस ने शादी की पहली रात से ही नखरे और नाटक करना शुरू कर दिया. सुहागरात पर सागर से बहस करते हुए वह बोली, ‘‘तुम अपना स्टैमिना बढ़ाओ. जो सुख मुझे चाहिए, वह नहीं मिल पाया.’’

दरअसल, सागर एक आम आदमी की तरह सैक्स में लीन था, लेकिन वह बहुत जल्दी ही थक गया. इस बात पर नयना उस का जम कर मजाक उड़ाने लगी, लेकिन सागर ने उस की किसी बात को दिल पर नहीं लिया. उसे लगा, समय के साथसाथ पत्नी की यह नासमझ दूर हो जाएगी. छुट्टियां खत्म हो चुकी थीं और उसे मुंबई लौटना था.

नयना ने कहा, ‘‘मुझे इस रेगिस्तान में अकेली छोड़ कर क्यों जा रहे हो?’’

सच कहें तो नयना भी यही चाहती थी कि सागर गांव में न रहे, क्योंकि पति की नजर व दबाव में रहना उसे पसंद नहीं था और न ही उस के रहते वह पति के दोस्तों को अपने जाल में फंसा सकती थी. मायके में उसे बेरोकटोक घूमने की आदत थी, जिस वजह से गांव के लड़के उसे ‘मैना’ कह कर बुलाते थे.

मुंबई पहुंचने के बाद सागर जब भी नयना को फोन करता, उस का फोन बिजी रहता. उसे अकसर कालेज के दोस्तों के फोन आते थे.

लेकिन धीरेधीरे सागर को शक होने लगा कि कहीं नयना अपने बौयफ्रैंड से बात तो नहीं करती है? सागर की मां ने बताया कि नयना घर का कामधंधा छोड़ कर पूरे गांव में आवारा घूमती रहती है.

एक दिन अचानक सागर गांव पहुंच गया. बसस्टैंड पर उतरते ही सागर ने देखा कि नयना मैदान में खड़ी किसी लड़के से बात कर रही थी और कुछ देर बाद उसी की मोटरसाइकिल पर बैठ कर वह चली गई. देखने में वह लड़का कालेज में पढ़ने वाला किसी रईस घर की औलाद लग रहा था. नैना उस से ऐसे चिपक कर बैठी थी, जैसे उस की प्रेमिका हो.

घर पहुंचने के बाद सागर और नैना में जम कर कहासुनी हुई. नैना ने सीधे शब्दों में कह दिया, ‘‘बौयफ्रैंड बनाया है तो क्या हुआ? मुझे यहां अकेला छोड़ कर तुम वहां मुंबई में रहते हो. मैं कब तक यहां ऐसे ही तड़पती रहूंगी? क्या मेरी कोई ख्वाहिश नहीं है? अगर मैं ने अपनी इच्छा पूरी की तो इस में गलत क्या है? तुम खुद नौर्मल हो क्या?’’

‘‘मैं नौर्मल ही हूं. लेकिन तू हवस की भूखी है. फिर से उस मोटरसाइकिल वाले के साथ अगर गई तो घर से निकाल दूंगा,’’ सागर चिल्लाया.

‘‘तुम क्या मुंबई में बिना औरत के रहते हो? तुम्हारे पास भी तो कोई होगी न? ज्यादा बोलोगे तो सब को बता दूंगी कि तुम मुझे जिस्मानी सुख नहीं दे पाते हो, इसलिए मैं दूसरे के पास जाती हूं.’’

यह सुन कर सागर को जैसे बिजली का करंट लग गया. ‘इस नौटंकीबाज, बदतमीज, पराए मर्दों के साथ घूमने वाली औरत को अगर मैं ने यहां से भगा दिया तो यह मेरी झूठी बदनामी कर देगी… और अगर इसे मां के पास छोड़ता हूं तो यह किस के साथ घूम रही होगी, क्या कर रही होगी, यही सब सोच कर मेरा काम में मन नहीं लगेगा,’ यही सोच कर सागर को नींद नहीं आई. वह रातभर सोचता रहा, ‘क्या एक पल में झूठ बोलने, दूसरे पल में हंसने, जोरजोर से चिल्ला कर लोगों को जमा करने, तमाशा करने और धमकी देने वाली यह औरत मेरे ही पल्ले पड़नी थी?’

बहुत देर तक सोचने के बाद सागर के मन में एक विचार आया और बिना किसी वजह से धमकी देने वाली इस नौटंकीबाज पत्नी नयना को उस ने भी धमकी दी, ‘‘नयना, मैं तुझ से परेशान हो कर एक दिन खुदकुशी कर लूंगा और एक सुसाइड नोट लिख कर जाऊंगा कि तुम ने मुझ धोखा दे कर, डराधमका कर और झूठी बदनामी कर के आत्महत्या करने पर मजबूर किया है. किसी को धोखा देना गुनाह है. पुलिस तुझ से पूछताछ करेगी और तेरा असली चेहरा सब के सामने आएगा. तेरे जैसी बदतमीज के लिए जेल का पिंजरा ही ठीक रहेगा.’’

सागर के लिए यह औरत सिर पर टंगी हुई तलवार की तरह थी और उसे रास्ते पर लाने का यही एकमात्र उपाय था. खुदकुशी करने का सागर का यह विचार काम आ गया. यह सुन कर नयना घबरा गई.

‘‘ऐसा कुछ मत करो, मैं बरबाद हो जाऊंगी,’’ कह कर नयना रोने लगी.

इस के बाद सागर ने नयना को मुंबई ले जाने का फैसला किया. उस ने भी घबरा कर जाने के लिए हां कर दी. उस के दोस्त फोन न करें, इसलिए फोन नंबर भी बदल दिया.

अब वे दोनों मुंबई में साथ रहते हैं. नयना भी अपने बरताव में काफी सुधार ले आई है.

बेटी होने का दर्द : अनामिका की खुशी का क्या राज था

‘‘पापा… पापा… मेरा रिजल्ट आ गया है. देखिए, मैं ने अपनी क्लास में टौप किया है. पापा, मुझे प्रिंसिपल मैडम ने यह मैडल भी दिया है,’’ यह बताते हुए अनामिका खुशी से चहक रही थी. उस के पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे. मन में डाक्टर बनने का सपना लिए अनामिका 11वीं क्लास में साइंस स्ट्रीम चुनना चाहती थी.

अनामिका के पापा के बौस दूर खड़े अनामिका की यह सारी बातें सुन रहे थे. वे बिना सोचे समझे बीच में बोल पड़े, ‘‘अरे मिश्राजी, बेटी को डाक्टर बनाने का क्या फायदा… डाक्टर की डिगरी हासिल करने में बहुत मेहनत और काफी पैसा चाहिए. आप इतना पैसा कहां से लगाएंगे? आप की तनख्वाह भी इतनी नहीं है, फिर 2 बेटे भी हैं आप के. उन दोनों को पढ़ालिखा कर कुछ बनाइएगा.’’

अनामिका के पापा को अपने बौस की बात समझ में आ गई और उन्होंने अनामिका को आर्ट्स स्ट्रीम लेने का आदेश दे दिया.

अनामिका बहुत रोईगिड़गिड़ाई, पर पापा नहीं माने. टौपर का रिजल्ट हाथ में लिए चंचल चिडि़या सी अनामिका खुद को बिना पंखों की चिडि़या की तरह लाचार महसूस कर रही थी. उसे लग रहा था कि अच्छे समाज को बनाने में सहायक बेटियों की इतनी बुरी हालत… क्या बेटी होना इतना बड़ा गुनाह है?

इन्हीं सवालों के साथ आर्ट्स स्ट्रीम ले कर अनामिका पढ़ाई करने लगी. 12वीं क्लास पास होते ही मम्मी ने पापा से कहा, ‘‘सुनिए, अब अच्छा सा कोई लड़का देख कर अनामिका की शादी कर दीजिए, बहुत हुई पढ़ाईलिखाई.’’

इधर, डाक्टर न बन पाने की कसक दिल में लिए अनामिका मन ही मन आईएएस बनने का सपना सजा कर बैठी थी, पर मां की बात सुन कर एक बार फिर वह अपना सपना टूटने के डर से कराह उठी. जैसेतैसे पापा को मना कर बीए का फार्म भरवाया और फिर वह ग्रेजुएट हो गई.

इस के बाद अनामिका को यह कह कर उस की शादी करा दी गई  कि अब जो करना है, अपने घर जा कर करना.

अनामिका की शादी हुई, ससुराल पहुंची और ससुराल वालों के सामने उस ने आगे पढ़ाई की इच्छा जाहिर की, तो जवाब मिला कि और ज्यादा पढ़ना था तो अपने पिता के घर में पढ़ती रहती, शादी क्यों की? अब शादी हो गई है, तो घर का चूल्हाचौका संभालो.

मन मार कर अनामिका घर के कामों में बिजी रहने लगी. इसे बेटी की मजबूरी कहें या समाज की दोगली सोच?

एक मां ऐसी : अहराज की जिंदगी में आया तूफान

हर धर्म और हर धार्मिक किताब में मां को महान बताया गया है. मां के कदमों के नीचे जन्नत बताई जाती है और वह इतना बड़ा दिल रखती है कि अपनी औलाद के लिए बड़ी से बड़ी मुसीबत का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहती है.

पर हमारे समाज में कभीकभार ऐसी मां के बारे में भी सुनने को मिलता रहता है, जिस ने अपनी इच्छा के लिए अपनी ही औलाद को मार दिया या मरने के लिए छोड़ दिया. यह कहानी एक ऐसी ही मां की है, जिस ने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए खुद अपनी सगी बेटी के साथसाथ उस के मासूम बच्चों की जिंदगी भी अंधेरे से भर दी.

अहराज की शादी साल 2010 में सना नाम की एक लड़की से बिजनौर जिले के एक गांव में हुई थी. वह मुंबई में एक अच्छा कारोबारी था. उस ने अपनी मेहनत के बल पर काफी जायदाद बना रखी थी.  वक्त बहुत खुशगवार गुजर रहा था. शादी के 10 साल में उस के 4 बच्चे हो गए थे. शादी के 6 साल बाद अहराज की सास अपनी बेटी सना के पास मुंबई आ कर रहने लगी थीं.

अहराज को इस में कोई एतराज न था. उस ने सोचा कि वह खुद तो काम में बिजी रहता है, सास अगर साथ में रहेगी तो उस के बच्चों को भी नानी का प्यार मिलता रहेगा.  कुछ साल तो अहराज की सास सही रहीं, फिर उन्होंने अपनी बेटी सना को भड़काना शुरू कर दिया.

हुआ यों था कि अहराज के ससुर का एक दिन उस के पास फोन आया और उन्होंने पूछा, ‘सना की अम्मी कब तक वहां रहेंगी? मैं भी बीमार रहने लगा हूं.

मेहरबानी कर के तुम उन्हें घर भेज दो. कई महीनों से फोन करता रहा हूं, पर उधर से कोई जवाब नहीं मिलता, इसलिए मजबूर हो कर तुम्हारे पास फोन किया.’ अहराज ने अपने ससुर को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘मैं आज ही उन से बात करता हूं.’’ रात में घर पहुंच कर जब अहराज ने सना से इस बारे में बात की, तो उस ने कोई जवाब नहीं दिया. सुबह अहराज अपने काम पर चला गया.

जब वह दोपहर को घर आया और खाना मांगा तो उस की बीवी चुप रही और सास ने भी कोई जवाब नहीं दिया.  अहराज ने सना से बात की, तो उस ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘पहले अपनी प्रौपर्टी मेरे नाम करो.’’ अहराज सना के मुंह से यह सुन कर हक्काबक्का रह गया. उस ने उसे समझाने की काफी कोशिश की, पर वह नहीं मानी. अहराज ने अपनी सास को यह बात बताई तो वे सिर्फ इतना ही बोलीं, ‘‘वह ठीक कह रही है.’’ अहराज सोच में पड़ गया कि क्या किया जाए. वह परेशान रहने लगा.

उस ने सना को बहुत समझाया, ‘‘हमारे छोटेछोटे मासूम बच्चे हैं. क्यों ऐसा कर रही हो?’’ पर वह टस से मस न हुई और अपनी बात पर अड़ी रही. एक दिन मौका पा कर सना ने अहराज की तिजोरी से तकरीबन  30 लाख रुपए निकाल लिए. अब उस के अंदर का शैतान जाग चुका था.

उस पर मौडलिंग करने का भूत सवार हो  गया था. अहराज को जब इस का पता चला तो उस ने अपने पैसे के बारे में पूछा, पर सना ने कोई जवाब नहीं दिया. तकरीबन एक साल तक ऐसा ही चलता रहा. सना अपनी मनमानी करती रही. वह अपने मासूम बच्चों को छोड़ कर कईकई घंटे घर से गायब रहने लगी. जब अहराज  उस से कुछ पूछता तो वह उलटा ही जवाब देती.

अहराज ने इस बात का जिक्र  अपने साले और ससुर से किया और कहा कि सना की अम्मी को घर वापस बुला लो. उन्होंने पूरी बात सुन कर सना की अम्मी पर जोर दिया तो उन्होंने पहले तो आनाकानी की, पर जब उन के बेटे ने मुंबई आने की धमकी दी, तो उन्होंने अहराज से अपना ट्रेन का टिकट खरीदने के लिए कहा. अहराज ने अगले ही दिन उन का तत्काल में टिकट खरीदा और उन्हें बांद्रा स्टेशन छोड़ने चला गया.

जब वह वापस आया तो सना ने उस से बहुत लड़ाई की. जैसेतैसे 10 दिन गुजर गए. सना की अम्मी अपने घर नहीं पहुंचीं. सब लोग परेशान थे. सना सब से यही बोल रही थी कि अहराज ने उन्हें मार दिया है, पर अहराज बेखौफ हो कर बोला, ‘‘स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं. उन में चैक करो कि मैं उन्हें ट्रेन में बैठा कर वापस आया था या नहीं.’’ इस पर सना चुप हो गई.

अगले दिन अहराज के पास किसी लड़की का फोन आया, ‘तुम्हारी अम्मी ने रूम किराए पर लिया था. तुम्हारी बीवी भी आई थी. उस का नाम सना है. हम पक्का करना चाहते हैं कि ये तुम्हारी अम्मी ही हैं और ये देर रात तक गायब क्यों रहती हैं?’

अहराज समझ गया कि ये उस की सास हैं, जिन्हें सना ने अपनी सास बता कर रूम दिलाया होगा.  अहराज ने उस लड़की से पूछा, ‘‘मेरा फोन नंबर तुम्हें कहां से मिला?’’ वह लड़की बोली, ‘आधारकार्ड की फोटोकौपी से.’ ‘‘वह रूम कहां है और आप कहां से बोल रही हैं?’’ ‘‘मैं बांद्रा से बोल रही हूं.’’ अहराज ने यह बात सना को बता दी.

इस के बाद वह अहराज से लड़ने लगी और अपने चारों बच्चों को छोड़ कर चली गई. पहले तो अहराज ने सोचा कि सना थोड़ी देर में वापस आ जाएगी, पर उस की यह भूल थी. अगले दिन वह पुलिस स्टेशन गया और सारी बात बताई. काफी दिन के बाद पुलिस की सना से फोन पर बात हो पाई.

उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया. वह आई भी.  पुलिस ने उसे बहुत समझाया, पर वह नहीं मानी और बोली, ‘‘मैं ने अपने पति अहराज पर दहेज लेने और मारपीट करने का केस दायर कर दिया है.’’ वक्त गुजरता रहा.

इस घटना को  6 महीने हो गए. अहराज बच्चों को अपने गांव ले गया और कुछ महीने वहीं रहा. बच्चे छोटे थे और उन की पढ़ाई के साथसाथ उन का बचपन भी बिखर चुका था. इस तरह एक मां ऐसी भी निकली, जिस ने अपनी बेटी की जिंदगी तो बरबाद की ही, साथ ही उसे भी अपने जैसी गैरजिम्मेदार मां बना दिया.

बिगड़ैल बेटे को खुद सुधारें

लड़का चाहे कितना ही नकारा, निकम्मा और गैरजिम्मेदार क्यों न हो, उस की शादी एक सुशील और संस्कारी लड़की से करने की खोज शुरू हो जाती है, जो शादी के बाद उसे सुधार दे.

जरा सोचिए, जिस लड़के को 25-30 साल की उम्र तक उस के मातापिता नहीं सुधार पाए, उसे एक ऐसी लड़की कैसे सुधार सकती है, जो उसे जानती तक नहीं?

शादी सुधारगृह नहीं है आज भी हमारे समाज में अगर कोई लड़का गैरजिम्मेदार सोच का होता है, तो उस के लिए एक ही बात कही जाती है कि इस की शादी कर दो, सुधर जाएगा.

समाज का शादी को सुधारगृह के नजरिए से देखने के चलते एक लड़की को कई चुनौतियों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिस का बुरा नतीजा शादी का टूटना, कानूनी लड़ाई झगड़े के कदम के रूप में सामने आता है, जो बाद में पूरे परिवार के पछतावे की वजह बनता है.

आजकल जिस तरह से बेटियों का पालनपोषण किया जा रहा है, उन में कुछ भी गलत सहन करने की समझ नहीं है. वैसे भी यह कैसी सोच है कि अगर लड़का नशा करता है, कुछ काम नहीं करता है, तो उसे सुधारने के लिए उस की शादी करवा दो?

ओछी सोच की वजह

ऐसे लोग अपनी सोच और इस फैसले के नतीजे से अनजान होते हैं और आने वाली लड़की की जिंदगी के बारे में नहीं सोचते. क्या बहू बन कर आने वाली बेटी नहीं होती? जिस बिगड़े लड़के को सुधरना होता है, उस के लिए मांबाप, रिश्तेदार और पड़ोसियों के ताने बहुत होते हैं. उसे किसी अच्छीखासी लड़की के साथ शादी के बंधन में बांध कर उस के सुधरने की उम्मीद करना बेकार सोच और गलत फैसला है.

एक हकीकत

कीर्ति (बदला हुआ नाम) की शादी को एक साल हुआ है. पति राजीव के मातापिता जानते थे कि उन का बेटा बिगड़ा हुआ है. वह शादी से पहले भी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहा था और गलत संगत में था, फिर भी उस के मातापिता ने यह सोच कर कीर्ति से उस की  शादी करवा दी कि घरपरिवार की जिम्मेदारियां पड़ेंगीं, तो वह सुधर जाएगा. पत्नी सुधार देगी.

लेकिन जैसेजैसे कीर्ति के सामने राजीव की सचाई सामने आने लगी, कीर्ति ने राजीव और उस के परिवार को उन के गलत फैसले का मजा चखाने और अपनी आगे की जिंदगी सुधारने का फैसला किया. उस ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ सारे सुबूत इकट्ठा किए और कोर्ट में केस दायर कर दिया. अब पूरा परिवार जेल की हवा खा रहा है.

यह रखें ध्यान

‘शादी के बाद लड़का सुधर जाएगा’ यह जुमला कह कर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला ?ाड़ लेने वाले मांबाप के चलते लड़कियों की तकलीफें बढ़ जाती हैं. शादी के बाद ऐसी लड़कियों पर पैसे कमाने का दबाव बढ़ जाता है. बच्चे के जन्म के बाद तो समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं.

बेटा आप का है, तो उसे सुधारने की जिम्मेदारी भी आप की है. लड़के के मांबाप को बचपन से बेटे को सही आदतें और संस्कार सिखाने चाहिए. महिलाओं की इज्जत करना सिखाना चाहिए. जब तक आप का बेटा कमाता नहीं, तब तक उस की शादी न करें. पहले बेटे को इस लायक बनाएं कि वह शादी की जिम्मेदारी उठा सके, उस के बाद ही उस के रिश्ते की बात शुरू करें.

बहू से उम्मीद क्यों

यह क्या बात हुई कि बेटा आप का बिगड़ा हुआ है, लेकिन उस की शादी कर के आप एक ऐसी लड़की की जिंदगी खराब कर रहे हैं, जिस की कोई गलती नहीं है. वह कैसे उसे जिंदगीभर बरदाश्त करेगी? इसलिए बिगड़े बेटे को सुधारने की अपनी समस्या भूल कर भी आने वाली लड़की के सिर पर न डालें, इस का खमियाजा सास के साथ पूरे परिवार को भुगतना पड़ सकता है. पूरा परिवार फंस सकता है, जेल जा सकता है.

किसी भी लड़की को बिगड़ी औलाद को सुधारने की मशीन सम?ाना सरासर गलत है. लड़के के मांबाप को यह सोचना चाहिए कि अगर उस लड़की की जगह उन की खुद की बेटी होती, तो क्या वे ऐसे बिगड़े लड़के से उस की शादी करते?

हर लड़की के शादी को ले कर कुछ अरमान होते हैं. वह भी शादी के बाद अपनी जिंदगी खुशहाली से बिताना चाहती है, लेकिन जब किसी बिगड़ैल लड़के के साथ वह शादी के बंधन में बंध जाती है, तो उस के सारे सपने चकनाचूर हो जाते हैं. जब वह बदला लेने पर आती है, तो सब की जिंदगी दूभर हो जाती है.

अगर लड़के में कोई काबिलीयत नहीं है कि वह अपना घर चला सके, तो उस की शादी करने का खयाल भी न करें. अगर लड़की के मांबाप भी बिगड़ैल लड़कों से बेटी की शादी इस सोच के साथ करते हैं कि वह बाद में सुधर जाएगा, तो वे भी कम कुसूरवार नहीं होते हैं.

एक बहन की चिट्ठी शहीद भाई के नाम

हमारे प्रिय भैया,

आप मेरी चिट्ठी की बड़ी बेताबी से राह देखा करते हैं, यह मुझे मालूम है, क्योंकि लौटने पर आप ने खुद कहा था, ‘इस बार मेरे दोस्तों ने जब तक मुझ से पार्टी नहीं ले ली, मुझे तेरी राखी नहीं दी.’

उस नादान उम्र में भी मैं सोचा करती थी कि इस एक राखी ने भैया का कितना खर्च करवा दिया. पर, मैं जानती थी कि राखी बंधवाने की खुशी में आप कितने चहक उठते हैं.

जब आप यहां होते थे, तो राखियां और तोहफे भी आप ही ले आते थे. आप के चेहरे पर खिलखिलाती खुशी उस वक्त मेरी समझ से परे थी, पर आज उन्हीं पलों की याद में आंखों से आंसू निकल पड़ते हैं.

आप कुछ दिनों की छुट्टी लेकर आए थे. आप ने जिद की थी, ‘चल, तेरी राखी की नई ड्रैस ले लें.’

तब मैं ने कहा था, ‘भैया, आप लौट आइए, फिर दिलवा देना.’

आप को पुलिस कमांडो की पोस्ट के लिए अकोला का ट्रांसफर और्डर मिल चुका था. हम बहुत खुश थे कि बस कुछ ही दिनों में आप फिर से हमारे साथ होंगे.

भैया, आप का चुलबुला स्वभाव सारे घर को हिला देता था. आप के आने पर सारा घर खुशी से झूम उठता था. आप ने कई पुरस्कार जीते थे. आप की दमदार आवाज में वह रचना तो मेरे दिलोदिमाग में बस सी गई है, जिस पर तालियों की आवाज गूंज उठी थी, ‘तन समर्पित, मन समर्पित, जीवन का कणकण समर्पित, चाहता हूं देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूं…’

देश पर कुरबान होने की चाह कई बार आप के मुंह से निकल जाया करती थी और आप की वह चाह पूरी भी हुई.

हम उन 13 दिनों का इंतजार कर रहे थे, जब आप लौट कर आने वाले थे. यही सोच कर मैं ने आप को चिट्ठी भी नहीं लिखी कि आप आने वाले ही तो हैं. पूरे घर में आप का पलपल इंतजार हो रहा था. आप के लौट आने में सिर्फ 2-3 दिन बाकी थे.

उस दिन सुबहसुबह आप के छोटे भाई घर आए और अब्बू की गोद में सिर रख कर रोने लगे. हमें लगा कि आप के घर पर कुछ हुआ है, शायद आप की मां या बाबूजी… पर, उन की भर्राई आवाज निकली, ‘राजू अब इस दुनिया में नहीं रहा,’ कानों पर यकीन नहीं हो रहा था, पर वे रोतेरोते कहे जा रहे थे.

गढ़चिरोली के अहेरी में पुलिस चौकी के उद्घाटन के लिए जाते समय सुरंग लगा कर नक्सलवादियों ने आप के ग्रुप की 3 जीपों को उड़ा दिया था, जिन में शहीद हुए 7-8 जवानों में से एक आप भी थे.

भैया, मैं तो आप की धर्म बहन हूं, आप के दोस्त की बहन. जब इन 20-22 सालों में हम आप को नहीं भुला पाए, तो सोचिए कि आप के बिना आप के मांबाबूजी की क्या हालत रही होगी? फर्ज की सूली पर चढ़ कर आप की आरजू पूरी हो गई… लेकिन, आप के साथ जीने की हमारी आरजू का क्या?

भैया, हमें नाज है कि आप ने अपने वतन की खातिर अपनी जान कुरबान की. उन लोगों को कौन समझए, जो इस तरह किसी की जान से भी प्यारों को बिना किसी गुनाह के अपनों से दूर कर देते हैं? क्यों उन्हें एहसास नहीं होता कि किसी अपने के चले जाने के बाद उस के परिवार वालों की हालत क्या होती होगी?

सच कहती हूं भैया, याद आप की बहुत आती है. छलक पड़ते हैं आंखों से आंसू, जब कोई बात आप की याद आती है.

आप की बहन,

अर्जिन.

साली बनी घरवाली : क्या बहन का घर उजाड़ पाई आफरीन

आफरीन बहुत ही मजाकिया और चंचल लड़की थी. उस का जीजा अरमान जब भी अपनी बीवी राबिया के साथ ससुराल आता, तो आफरीन उन से ऐसेऐसे मजाक करती कि अरमान शर्म से पानीपानी हो जाता था.

राबिया की शादी 2 महीने पहले अरमान से हुई थी. अरमान एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करता था और अच्छाखासा कमा लेता था. साथ ही, अरमान देखने में भी लंबाचौड़ा और काफी हैंडसम था, जिसे पा कर राबिया बहुत खुश थी.

राबिया एक सीधीसादी घरेलू लड़की थी. वह अपने शौहर के साथ प्यार करने तक में हिचकिचाती थी और बहुत ही सादगी भरी जिंदगी गुजारती थी. नोएडा जैसे शहर में रहने के बावजूद उस का रहनसहन बिलकुल गंवारों वाला था.

अरमान राबिया को देख कर यह तो समझ गया था कि वह सीधीसादी और शौहर की प्रति वफादार है, क्योंकि रात को बिस्तर पर जब वह उस के साथ होती थी, तो काफी शरमाती थी.

लेकिन, राबिया जितनी सीधीसादी थी, उस की छोटी बहन आफरीन उतनी ही चंचल और हंसमुख थी, जो अपने जीजा अरमान से काफी घुलीमिली रहती थी और मस्तीमजाक करती रहती थी. यही वजह थी कि अरमान का ससुराल में काफी दिल लगता था.

आफरीन मौडर्न खयाल के साथसाथ रंगीनमिजाज लड़की थी, जो अकसर टाइट जींस और कसी हुई टीशर्ट पहनती थी, जिस में छाती झांकती थी. यह देख कर अरमान मन ही मन रोमांचित हो उठता था.

ऐसा नहीं था कि अरमान को साली आफरीन से डर लगता था, वह तो बस उस मौके की तलाश में था, जो उसे अकेले में मिलना चाहिए था.

एक रात की बात है. राबिया और अरमान कमरे में लेटे हुए थे कि तभी आफरीन वहां आ गई और अपने जीजा से बोली, ‘‘मुझे भी आप के पास सोना है. मैं भी तो आप की साली हूं और साली आधी घरवाली होती है.’’

यह सुन कर अरमान शरमा गया और कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाया, क्योंकि पास में ही उस की बीवी राबिया लेटी थी.

राबिया आफरीन से बोली, ‘‘यह कैसा मजाक कर रही है तू. अपने शौहर के पास जा कर सोना, जब तेरी शादी हो जाए.’’

आफरीन ने कहा, ‘‘क्या बाजी, तुम तो जानती ही हो कि साली आधी घरवाली होती है. तुम तो अकसर इन के पास सोती हो, आज मुझे भी सोने दो. मेरा भी तो कुछ हक है अपने जीजा के पास सोने का.’’

राबिया उठते हुए बोली, ‘‘तू बहुत बातें बनाने लगी है. अभी अम्मी को बताती हूं.’’

आफरीन कमरे से भागते हुए बोली, ‘‘अरे बाजी, मैं तो जीजाजी से मजाक कर रही थी. देखा, इन की कैसे सिट्टीपिट्टी गुम हो गई और मेरे सोने की बात सुन कर पसीनापसीना हो गए.’’

राबिया अरमान की तरफ देख कर हंसते हुए बोली, ‘‘आप तो वाकई आफरीन के छोटे से मजाक से घबरा कर एकदम पसीनापसीना हो गए.’’

अरमान ने कहा, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल, वह मजाक इस ढंग से करती है कि सामने वाले के होश ही उड़ जाते हैं. मै तो उस की बातें सुन कर घबरा गया था कि वह तुम्हारे सामने कैसी जिद कर रही है.’’

राबिया ने कहा, ‘‘ दरअसल, वह है ही बड़ी नटखट. हंसीमजाक करने में बड़ी माहिर है.’’

एक रात की बात है. ठंड का महीना था. सब लोग गहरी नींद में सोए थे. अरमान खुद बड़ी मुश्किल से कंपकंपाता हुआ बाहर निकला था. उस ने जैसे ही आफरीन के कमरे में झांक कर देखा, तो आहट पा कर आफरीन तेज आवाज में बोली, ‘‘कौन है?’’

अरमान ने कहा, ‘‘कोई नहीं, मैं हूं. पानी पीने के लिए उठा था मैं. तुम्हारे कमरे की लाइट जली देखी, तो अंदर झांकने लगा.’’

‘‘अरे जीजू, आप भी बस. इतना शरमाते हो. लगता है, आप भी मेरी दीदी की तरह शरमीले हो. आओ बैठो. मैं आप को ऐसी फिल्म दिखाऊंगी कि आप के होश उड़ जाएंगे.’’

अरमान ने कहा, ‘‘नहीं बाबा. बहुत ठंड है. मैं तो अपने कमरे में जा रहा हूं.’’

आफरीन ने कहा, ‘‘तो मैं कोई आप को जमीन पर थोड़े ही बैठने को कह रही हूं, जो आप को ठंड लग जाएगी. आओ, कंबल में आ जाओ. ऐसी गरमी दूंगी कि आप पसीनापसीना हो जाएंगे और याद करेंगे कि किस से पाला पड़ा है.’’

अरमान ने धीमे से कहा, ‘‘नहीं, अगर कोई आ गया तो क्या कहेगा. मुझे डर लगता है.’’

‘‘अरे जीजू, आप भी बड़े डरपोक हो. ऐसी ठंड में कौन अपने बिस्तर से बाहर निकलने की हिम्मत करेगा. और राबिया बाजी तो एक बार सो गईं, तो सीधे सवेरे ही उठेंगी.

‘‘आओ न यार, कभी साली का भी खयाल कर लिया करो. वैसे भी साली आधी घरवाली होती है.’’

अरमान ने कहा, ‘‘नहीं, मैं चलता हूं. तुम आराम करो या फिल्म देखो.’’

आफरीन अपने बिस्तर से उठते हुए बोली, ‘‘आप भी पता नहीं कौन सी सदी में जी रहे हो. यह जिंदगी मजे लेने के लिए है. यों शरमाने से काम नहीं चलने वाला.’’

इस से पहले कि अरमान वहां से जाता, आफरीन ने उसे खींच लिया और अपने पास बैठाते हुए बोली, ‘‘एक ऐसी फिल्म दिखाती हूं, जो शायद आप ने कभी न देखी हो.’’

आफरीन ने अपने मोबाइल पर एक इंगलिश फिल्म चला दी और बोली, ‘‘जीजू, जब तक आप यह सब नहीं देखेंगे, तब तक आप की जिंदगी रंगीन नहीं बन सकती. देखो, इस में कैसे जिंदगी के मजे लिए जाते हैं.’’

अरमान ने फिल्म में चल रहे पोर्न सीन को देख कर कहा, ‘‘तुम भी क्या बकवास देखती हो? तुम्हें शर्म नहीं आती…’’

आफरीन ने अदा दिखाते हुए कहा, ‘‘मेरे साथ रहोगे तो आप भी शर्म नहीं करोगे, बल्कि खुशगवार जिंदगी जिओगे.’’

इतनी देर में मोबाइल में चल रही फिल्म के सैक्सी सीन देख कर अरमान के बदन में मानो आग लगने लगी.

आफरीन ने मामला भांपते हुए कंबल के अंदर अरमान का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘क्या जीजू, कुछ गरमी आई या अभी तक ठंडे पड़े हो…’’

अरमान समझ चुका था कि आज की रात उस की जिंदगी की रंगीन रात बनने वाली है.

आफरीन अपने हाथों से अरमान के बदन में गरमी भर ही रही थी कि वह बेकाबू हो गया और उस ने आफरीन को भींच लिया.

आफरीन अरमान की इस हरकत से और ज्यादा रोमांटिक हो गई और अपनी टीशर्ट खुद ही उतारते हुए बोली, ‘‘आज की फिल्म हम खुद बनाएंगे,’’ कहते हुए उस ने मोबाइल एक तरफ रख दिया.

इस के बाद वे दोनों एकदूसरे के जिस्म को ऐसे चूम रहे थे, जैसा उन्होंने अभी कुछ देर पहले फिल्म में देखा था. दोनों एकदूसरे में समाने के लिए बेताब हो रहे थे. खूब मौजमस्ती के बाद दोनों संतुष्ट हो गए और एकदूसरे से अलग हो गए.

आफरीन बोली, ‘‘जीजू, आप ने तो कमाल ही कर दिया. मेरे रोमरोम को ऐसे भर दिया, जिस के लिए मैं कब से बेचैन थी. आप तो बड़े ही रोमांटिक निकले.’’

अरमान ने कहा, ‘‘तुम ने भी आज मुझे वह मजा दिया है, जो मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.’’

आफरीन बोली, ‘‘लगता है कि आप दीदी से खुश नहीं हैं. दरअसल, दीदी बहुत सीधीसादी हैं. उन्हें क्या पता कि जिंदगी कैसे जी जाती है. आप मेरा साथ दोगे, तो मैं आप को वे खुशियां दूंगी, जो आप ने कभी सोची भी नहीं होंगी.’’

अरमान ने कहा, ‘‘तुम ने सही कहा. तुम्हारी दीदी में सैक्स को ले कर कोई फीलिंग है ही नहीं, वह तो बस नौर्मल ढंग से सैक्स करती है और जल्दी सो जाती है. उस के साथ रह कर मेरी जिंदगी बोर हो गई है.’’

आफरीन बोली, ‘‘आप चिंता न करें. जो खुशियां दीदी नहीं दे पाईं, वे साली देगी.’’

अब दोनों को जब भी मौका मिलता, वे एकदूसरे से खूब मजे लेते. कभी अरमान अपनी सुसराल आ कर आफरीन के जिस्म को भोगता, तो कभी आफरीन अपनी दीदी राबिया के घर जा कर अरमान के साथ मजे लेती.

धीरेधीरे वे एकदूसरे से प्यार कर बैठे और अब मियांबीवी बन कर जिंदगी गुजारना चाहते थे.

लेकिन, राबिया उन के रास्ते का रोड़ा बनी हुई थी, क्योंकि जब तक वह रास्ते से नहीं हटती, तब तक दोनों कानूनन एक नहीं हो सकते थे.

आफरीन और अरमान ने एक प्लान बनाया, जिस के तहत अरमान ने धीरेधीरे राबिया से लड़ाई झगड़े शुरू कर दिए. वह बातबात पर उसे ताने देता और कभीकभी उस पर हाथ भी उठा देता.

अरमान की इस हरकत से राबिया परेशान हो उठी और उस ने अपने अम्मीअब्बा से अरमान से अलग होने की बात कही.

राबिया के अम्मीअब्बा ने उन दोनों को बैठा कर समझाने की काफी कोशिश की, पर अरमान इस जिद पर अड़ गया कि वह एक गंवार और सीधीसादी औरत के साथ जिंदगी नहीं गुजार सकता. यह खुद तो मैलीकुचैली रहती है, साथ ही इस के अंदर वे जज्बात नहीं, जो एक शौहर को चाहिए. उस के आने से पहले सो जाती है और जब अरमान उस से अपनी ख्वाहिश जाहिर करता है, तो शरमाती है.

राबिया के अम्मीअब्बा सम?ा गए कि राबिया बहुत ही कम रोमांटिक है और वह अपने शौहर को वह जिस्मानी सुख नहीं दे पाती, जिस की उसे जरूरत है. लिहाजा, उन्होंने राबिया और अरमान के अलग होने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई और दोनों खुशीखुशी एकदूसरे से अलग हो गए.

अरमान अब नोएडा के अपने घर में रह रहा था. उस की चाल कामयाब हो चुकी थी. उसे राबिया से आसानी से छुटकारा मिल गया था.

आफरीन भी नौकरी करने के बहाने नोएडा पहुंच गई. दोनों ने वहां निकाह कर लिया और निकाह होते ही अरमान की साली आफरीन उस की घरवाली बन गई. दोनों एकसाथ रह कर जिंदगी के मजे लेने लगे.

इस शादी से अरमान भी बहुत खुश था, तो आफरीन भी कम खुश न थी. उसे उस का मनपसंद जीवनसाथी मिल चुका था, जो उस के साथ उस की मरजी के मुताबिक सैक्स करता और उसे पूरा मजा देता.

अरमान को भी आफरीन के रूप में अब एक ऐसी जीवनसाथी मिली, जो बिस्तर पर भी और जिंदगीभर उस का पूरा साथ देती और उस की हर जरूरत पूरा करने को हर समय तैयार रहती.

कुछ महीने बाद राबिया और उस के घर वालों को भी यह पता चल गया कि आफरीन ने अरमान से निकाह कर लिया है और वह उस के साथ उस के घर पर रह रही है और वे दोनों बहुत खुश हैं.

राबिया अब यह सोचने पर मजबूर हो गई थी कि इन दोनों ने मिल कर उस के खिलाफ साजिश रची, ताकि वे आपस में एकसाथ मिल कर रह सकें. उसे अफसोस था तो बस इतना कि उसी की बहन ने उस के शौहर को अपने हुस्न के जाल में फंसा कर अपना कब्जा जमा लिया और साली से उस की घरवाली बन गई.

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