आरती को शिकायत है कि शादी के 8 सालों के भीतर ही उस की वैवाहिक जिंदगी का सारा चार्म खत्म हो गया है. उस के पति अनुराग को अब शायद उस में कोई दिलचस्पी ही नहीं रह गई है. वह देर रात औफिस से आता है, खाना खाता है और सोने चला जाता है. आरती ने अपनी शादीशुदा जिंदगी में रोमांस पैदा करने के लिए सारे जतन कर के देख लिए. पति को रिझाने के लिए वह शाम से ही बनावशृंगार में जुट जाती. पति की पसंद का भोजन बनाती है. बैडरूम को सुसज्जित करती है. खुद भी सुगंध में डूबी रहती है, तो हलकी सुगंध वाले रूम फ्रैशनर से पूरा घर भी महकाए रखती है. मगर पति की नजदीकियां पाने की उस की सारी कोशिशें बेकार चली जाती हैं.
अनुराग थकाहारा सा दफ्तर से आता है और एक उड़ती सी नजर आरती पर डाल कर अपने काम में व्यस्त हो जाता है. थोड़ी देर अपने 5 साल के बेटे राहुल से खेलता है और फिर खाना खा कर सोने चला जाता है. अब तो आरती को शक होने लगा है कि शायद उस के वैवाहिक जीवन में कोई दूसरी औरत आग लगा रही है. अनुराग का यह व्यवहार उस से अब बरदाश्त नहीं हो रहा है. प्यार और सैक्स के अभाव में दोनों के बीच दूरियां बढ़ गई हैं. कितने दिन हो जाते हैं अनुराग उसे हाथ भी नहीं लगाता. एक कमरे में एक ही बिस्तर पर दोनों अजनबियों की तरह पड़े रहते हैं.
यह समस्या सिर्फ आरती और अनुराग की नहीं, बल्कि हर 10 में से 3 कपल की है. पत्नी समझ ही नहीं पाती कि उस का पति उस से बेरुखी क्यों दिखा रहा है? वह उस से कटाकटा सा क्यों रहने लगा है? वह यह शक भी पाल बैठती है कि हो सकता है इन का कोई ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चल रहा है. यह सोच पत्नियों को और ज्यादा तनाव से भर देती है. कुछ पत्नियां सोचती हैं कि शायद उन का रंगरूप पहले की तरह मोहक नहीं रहा. वे सजतीसंवरती हैं कि पति को लुभा सकें. तरहतरह के व्यंजन बनाती हैं कि पति का प्यार पा सकें, मगर पति का दिल फिर भी नहीं पसीजता.
दरअसल, पत्नी के प्रति पति की बेरुखी का कारण हमेशा वह नहीं होता जो पत्नियां सोचसोच कर परेशान होती रहती हैं, बल्कि प्रौब्लम कुछ और होती है. पति की बेरुखी का कारण उन में पौरुष हारमोन की कमी हो सकती है, जिस के चलते पति शारीरिक संबंधों से दूरी बनाने लगते हैं, क्योंकि उन्हें यह डर होता है कि बिस्तर पर वे पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाएंगे. उन पर नामर्दगी का आरोप लगेगा. वे पत्नी की नजरों में गिर जाएंगे. अगर पत्नी को पता चल गया कि वे उसे संतुष्ट करने में अक्षम हैं तो वह किसी दूसरे पुरुष का साथ ढूंढ़ेगी और चोरीछिपे अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने लगेगी. ये तमाम डर पुरुष मन पर हावी हो जाते हैं और पति खामोशी ओढ़ कर पत्नी से दूरी बना लेता है और पत्नी को उस की उधेड़बुन में फंसे रहने देता है. अब पत्नी से कैसे कहे कि वह उसे बिस्तर पर संतुष्टि देने लायक नहीं रहा.
खामोशी है खतरनाक
जीवनसाथी को अपनी कमी को न बता पाने की विवशता अपराधबोध भी पैदा करती है, फिर भी आशंका और बदनामी के भय से मुंह सिले रहते हैं और दांपत्य में दूरियां और गलतफहमियां पैदा होने देते हैं.
पति द्वारा अपनी शारीरिक समस्या पर खामोशी ओढ़े रहना दंपतियों के बीच न सिर्फ दूरी बढ़ा रहा है, बल्कि कहींकहीं तो नौबत तलाक तक जा पहुंची है. पौरुष की कमी की वजह से पुरुष न सिर्फ सैक्स से दूर हो रहे हैं, बल्कि नामर्दगी के डर से उत्पन्न तनाव के कारण कई प्रकार की बीमारियां भी उन में पनप रही हैं.
हाल ही में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल की एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि 60% मर्द जवानी में ही अपनी मर्दानगी खोने के कगार पर हैं. देश में 40 साल की उम्र तक पहुंचने वाला हर तीसरा पुरुष सैक्सुअल हारमोन की कमी से जूझ रहा है यानी हर तीसरा व्यक्ति टेस्टोस्टेरौन डैफिसिएंसी सिंड्रोम यानी टीडीएस से पीडि़त है. अस्पताल के 745 लोगों पर किए शोध में इस बात के खुलासे से मैडिकल जगत में हलचल मची हुई है.
डाक्टरों का मानना है कि यह परेशानी लगातार बढ़ रही है. अस्पताल ने टीडीएस का पता लगाने के लिए पहले बिना जांच किए सिर्फ लक्षण के आधार पर इस का पता लगाया. इस के लिए शोध में शामिल युवाओं से 10 सवाल पूछे गए. डाक्टर ने बताया कि सैक्स के प्रति रुचि यानी कामेच्छा, क्षमता यानी स्टैमिना और स्ट्रैंथ में कमी जैसे 3 लक्षणों के आधार पर 48.18% लोगों में टेस्टोस्टेरौन हारमोन कम पाया गया. लेकिन जब इन सभी का बायोकैमिकल टैस्ट किया गया तो आंकड़ा बढ़ कर 60.17% हो गया.
टीडीएस का खतरा
सर गंगाराम अस्पताल के यूरोलौजी विभाग के चेयरमैन डाक्टर सुधीर चड्ढा कहते हैं कि इस स्टडी से यह साफ हो रहा है कि हमारी आबादी में हर तीसरा इंसान सैक्स हारमोन की कमी से पीडि़त है. लोग डायबिटीज, हाइपरटैंशन, विटामिन डी की कमी, हार्ट डिजीज जैसे बीमारियों से पीडि़त होते हैं तो उन में टीडीएस यानी टेस्टोस्टेरौन की कमी का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.
टेस्टोस्टेरौन हारमोन पुरुषों में यौन क्षमता बनाए रखने वाला महत्त्वपूर्ण हारमोन है. किसी पुरुष में इस की कमी से सैक्स से जुड़ी परेशानियां पैदा होने लगती हैं. 40 साल की उम्र के बाद टेस्टोस्टेरौन में हर साल 0.4 से 2.6 फीसदी की कमी होने लगती है. भारत में 40 साल से अधिक उम्र का हर तीसरा व्यक्ति सैक्सुअल हारमोन की कमी से जूझ रहा है, जिस के चलते पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने से बचने के कारण उन के वैवाहिक जीवन में असंतुष्टि, शक, कड़वाहट, तनाव और दूरियां बढ़ रही हैं. 40 साल से अधिक उम्र के वे लोग जो डायबिटीज, हार्ट डिजीज, बीपी, विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं, उन्हें हर साल टीडीएस की जांच जरूर करवानी चाहिए. सैक्स संबंधों में अरुचि का मुख्य कारण तो यह है ही, तनाव, बीपी और हाइपरटैंशन का भी जनक है.
स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों को डायबिटीज नहीं थी, उन में टीडीएस का स्तर 52.8% था और डायबिटीज वालों में यह 71.03% था. इसी प्रकार हाई बीपी के मरीजों में टीडीएस का खतरा 72.89% पाया गया और नौनबीपी वालों में यह केवल 54.86% था. कोरोनरी हार्ट डिजीज के 32 मरीज भी इस स्टडी में शामिल हुए थे. इन में से 27 यानी 84.30% में टीडीएस की बीमारी थी. डाक्टरों के मुताबिक, ऐसे लोग जिन की उम्र ज्यादा है और वे डायबिटीज, हार्ट डिजीज, बीपी, विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं उन्हें हर साल टीडीएस की जांच करानी चाहिए.
क्या है टेस्टोस्टेरौन हारमोन
टेस्टोस्टेरौन हारमोन को पिट्यूटरी ग्रंथि और हाइपोथेलेमस नियंत्रित करते हैं. इस का स्रावण अंडकोष में होता है. सैक्स और शुक्राणुओं की संख्या के लिए यह हारमोन जिम्मेदार है. टेस्टोस्टेरौन हारमोन पुरुष में मर्दानगी के लक्षणों को पैदा करने वाला मुख्य कारक है. सरल भाषा में कहें तो युवावस्था में यह एक लड़के को मर्द बनाता है, जैसे चेहरे पर दाढ़ीमूंछ आना, सीने पर बाल आना, आवाज में भारीपन आना, जननांग का विकसित होना, शरीर का सुडौल होना, ताकतवर मांसपेशियां बनना सब इस हारमोन के कारण ही होता है. शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए यह हारमोन पुरुषों के लिए जरूरी है. यह उम्र बढ़ने के साथ कम होने लगता है.
एक अनुमान के मुताबिक 30 से 40 की उम्र के बाद इस में हर साल 2 फीसदी की गिरावट आने लगती है. इस में क्रमिक गिरावट सेहत से जुड़ी कोई समस्या नहीं है, लेकिन जब कुछ खास बीमारियों, इलाज या चोटों के कारण यह सामान्य से कम हो जाता है, परेशानी तब शुरू होती है. अंडकोष में चोट, उस की सर्जरी, क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम और आनुवंशिकी गड़बड़ी से पिट्यूटरी ग्रंथि और हाइपोथैलेमस प्रभावित होता है, जिस से हाइपोगोनैडिज्म के हालात पैदा होते हैं.
इन्फैक्शन, लिवर और किडनी में बीमारी, शराब की लत, कीमोथेरैपी या रैडिएशन थेरैपी के कारण भी टेस्टोस्टेरौन हारमोन में कमी आती है. टेस्टोस्टेरौन की कमी वैवाहिक जीवन में कलह का कारण बनती है. इस हारमोन की कमी के चलते पति चाह कर भी पत्नी को शारीरिक सुख नहीं दे पाता.
सोशल टैबू ने जकड़ रखा है भारत में सामाजिक बंधन और शर्मिंदगी की वजह से पुरुष न तो अपनी इस कमी को उजागर करते हैं और न ही इस के इलाज के लिए डाक्टर के पास जाते हैं. इस के विपरीत वे ताकत की दवाएं, झाड़फूंक, योगा या आयुर्वेद जैसी चीजों का सहारा लेने लगते हैं, जो उन की परेशानी को और ज्यादा बढ़ा देते हैं. टेस्टोस्टेरौन की कमी एक प्रकार की बीमारी है, जिस का इलाज ऐलोपैथी में संभव है. औरतों की तरह पुरुषों में भी सैक्स हारमोन रीप्लेसमैंट संभव है. बस जरूरत है सोशल टैबू को भूल कर डाक्टर के पास जाने की.
पत्नी को विश्वास में लें
आप की जीवनसाथी को आप के जीवन पर पूरा अधिकार है. उस से अपनी बीमारी, अपनी कमी, अपनी गलतियां न छिपाएं. उसे विश्वास में लें. उसे बताएं कि आप किस तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं. यदि आप ठीक तरीके से अपनी समस्या पत्नी को बताएंगे तो न सिर्फ आप का वैवाहिक जीवन तबाह होने से बचेगा, बल्कि आप के बीच बौंडिंग भी बढ़ेगी. इस के साथ ही जीवनसाथी का साथ और विश्वास पा कर आप में डाक्टर के पास जाने और इलाज करवाने की हिम्मत भी पैदा होगी.