भूपेश बघेल: साकी, प्याले में शराब डाल दे

छत्तीसगढ़ में शराबबंदी को अपना हथियार बनाकर 2018 के विधानसभा चुनाव में सत्ता की वैतरणी पार करने वाले भूपेश बघेल मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद शराबबंदी के मामले पर कैसे करवट बदल रहे हैं, यह सारा देश देख चुका है. अब जब कोरोना का संकट सर पर है, शराबबंदी को लेकर भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार के उछल कूद के नजारे देखकर सत्ता की उथली नीतियों पर आप और हम हंस  भी नहीं सकते. जहां 15 वर्ष तक सत्ता के बाहर जाकर कांग्रेस  की हालत पतली हो गई थी और  आदर्श बघारने लगी थी वहीं सत्ता सिंहासन  में बैठने के बाद वही कांग्रेस और उसके चेहरे शराबबंदी को लेकर  नित्य नए-नए तर्क दे रहे हैं.

कथनी और करनी में जो अंतर आया है वह राजनीति की असलियत को नंगे पन के साथ  उघाड़ कर सामने रख देता है. यहां हम आपको बताना चाहते हैं कोरोना वायरस महामारी के पश्चात लाक डाउन की स्थिति में भी छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार ने दोनों हाथों से शराब बेचा. शायद आपको विश्वास ना हो … मगर यह 100 फीसदी सही बात है. आप शायद कल्पना भी नहीं कर सकते कि 22 मार्च 2020 को जब प्रधानमंत्री के आह्वान पर संपूर्ण देश में लॉक डाउन था छत्तीसगढ़ में देसी और विदेशी शराब की दुकाने खुली हुई थी जिसकी बड़ी निंदा हुई. मगर सरकार ने इस पर कोई नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए दो शब्द कहने से भी गुरेज किया.

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मर रहे है  आम लोग…

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में संदिग्ध परिस्थितियों में दो लोगों की मौत हो गई. मौत शराब नहीं मिलने और  स्पिरिट पीने की वजह से हुई बताई जा रही है.दरअसल, लाॅकडाउन होने की वजह से शराब दुकानें  बंद है, फलत: कुछ  दोस्तों ने स्पिरिट पीकर अपनी लत दूर करने की कोशिश की, मगर  उन्हे अपनी  जिंदगी से हाथ धोना पड़ गया.यह  घटना रायपुर के गोलाबाजार थाना क्षेत्र में बाँसटाल की है. यहां रहने वाले तीन लोगों ने शराब की जगह स्पिरिट का सेवन कर लिया . इससे उनकी तबियत बिगड़ गई. फिर इनमें से दो लोग असगर खान (43 वर्ष) और दिनेश समुंदर (45 वर्ष) की मौत हो गई है. रायपुर के महापौर  एजाज ढेबर बताते हैं – जिस तरह कोरोना वायरस के मद्देनजर शराब की दुकानें बंद की गई है. यह उसका ही असर है. महापौर ने बताया  उनके पास यह खबर भी आई है कि एक युवक ने शराब ना मिलने की वजह से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली .

सरकार चाहती है प्याले छलका लो…

उपरोक्त दो युवकों की मौत की बिनाह पर भूपेश बघेल की सरकार यह पटकथा तैयार कर रही है कि कैसे शराब की दुकाने जल्द से जल्द छत्तीसगढ़ में खुल जाएं. दरअसल, यह माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में सरकार के हाथों में शराब दुकानें चल रही हैं जो  दुधारू गाय के समान है. इस बिजनेस से बेपनाह पैसा आता है. इसका सबसे ज्वलंत तथ्य यही है कि जब देशभर में 14 अप्रैल 2020 तक लाक डाउन है तब सरकार की तरफ से यह बात बारंबार सामने लायी गई है की आगामी 0 7 अप्रैल तक ही शराब दुकानें बंद हैं. यानी यह कहा जा सकता है कि जैसे ही हालत थोड़ी भी   सामान्य होंगे छत्तीसगढ़ की सरकार सबसे पहले देशी और विदेशी शराब की दुकानों पर खोल देगी. क्योंकि प्रतिदिन करोड़ों रुपए की इनकम सरकार को शराब से होती रही है. अब सच यही  है  की छत्तीसगढ़ की जनता, आम गरीब आदमी, भूखा मर जाए कोरोना  की चपेट में आकर  तिल तिल कर मर जाए, छत्तीसगढ़ की  सरकार को उससे कोई लेना देना नहीं है. लोकतंत्र के इस  संवैधानिक छत्रछाया में यह सब बेहद दर्दनाक और दुखद है.

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भाजपाई नीतीश को पटकनी देंगे पीके?

भारतीय जनता पार्टी को केंद्र में और जनता दल (यू) को बिहार में अपनी चुनावी योजनाओं से जीत दिलाने वाले प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने अपने पुराने दोनों क्लाइंट को धूल चटाने के लिए कमर कस ली है. उन्होंने बिहार की कुल 8,800 पंचायतों में पैठ बनाने की कवायद शुरू कर दी है. पंचायतों में अपनी पैठ बना कर वे बिहार विधानसभा पर नजरें टिका चुके हैं.

20 फरवरी, 2020 से ‘बात बिहार की’ नाम से नए कार्यक्रम की शुरुआत कर चुके पीके का दावा है कि 3 लाख नौजवान इस से जुड़ चुके हैं और 20 मार्च, 2020 तक 10 लाख और नौजवानों को जोड़ना है.

गौरतलब है कि इस साल के आखिर में बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. सवाल यह भी है कि क्या पीके नीतीश कुमार जैसे सियासी धुरंधर और भाजपा जैसी नैशनल पार्टी को चुनौती देने की ताकत रखते हैं, क्योंकि मार्केटिंग और राजनीति दोनों अलगअलग चीजें हैं.

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जनता दल (यू) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने 18 फरवरी, 2020 को पटना में प्रैस कौंफ्रैंस कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजग के खिलाफ हल्ला बोल दिया था. उन्होंने नीतीश कुमार को अपने पिता समान बताते हुए दावा किया कि उन दोनों का रिश्ता केवल राजनीति का नहीं रहा है. उस के तुरंत बाद उन्होंने नीतीश कुमार के साथ विचारों के मतभेद का खुलासा कर डाला.

पीके ने कहा कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव के समय से ही नीतीश कुमार और उन के बीच ‘आल इज वैल’ नहीं रहा.

नीतीश कुमार हमेशा कहते हैं कि वे गांधी, लोहिया और जेपी की विचारधारा को नहीं छोड़ सकते हैं, पर गांधी के साथसाथ गोडसे के विचारों को मानने वालों के साथ वे कैसे खड़े हैं? इसी से हमारे बीच मतभेद रहा.

पीके ने नीतीश कुमार के विकास के कामों को तथाकथित विकास करार दे डाला. भाजपा के साथ होते हुए भी आज तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की उन की सालों पुरानी मांग क्यों नहीं पूरी हुई?

बिहार में शिक्षा की हालत बेहद खराब है. प्रति परिवार बिजली की खपत में बिहार सब से पिछड़ा है. विकास के मामले में बिहार पिछले 15 सालों से 22वें नंबर पर क्यों है? अपनी बात कहने और मनवाने के लिए हरदम नीतीश कुमार पिछलग्गू बने रहते हैं.

पीके ने नीतीश कुमार को सियासी चुनौती दे दी है, लेकिन क्या उन में कूवत है कि वे नीतीश कुमार जैसे सियासी धुरंधर और सोशल इंजीनियरिंग के मास्टर के सामने टिक सकेंगे? पीके जहां मार्केटिंग और पब्लिसिटी के मास्टर हैं, वहीं नीतीश कुमार के पास तकरीबन 45 सालों का सियासी अनुभव है. वे विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री रहे हैं और भाजपा और राजद जैसे ताकतवर दलों को साधते रहे हैं.

साल 1974 के जेपी आंदोलन की उपज नीतीश कुमार साल 1985 में पहली बार विधायक बने थे. साल 1989 में वे पहली बार सांसद बने थे. उस के बाद साल 1991, साल 1996, साल 1998, साल 1999 और साल 2004 में वे लोकसभा चुनाव जीते थे. साल 1990 के अप्रैल से नवंबर महीने तक वे केंद्रीय कृषि मंत्री रहे.

19 मार्च, 1998 से ले कर 5 अगस्त, 1999 तक नीतीश कुमार केंद्रीय रेल मंत्री रहे. 13 अक्तूबर, 1999 से ले कर 22 नवंबर, 1999 तक वे भूतल परिवहन मंत्री रहे. 27 मई, 2000 से 20 मार्च, 2001 तक वे कृषि मंत्री रहे. 22 जुलाई, 2001 से ले कर साल 2004 तक वे रेल मंत्री रहे.

साल 2005 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने और उन्होंने न्याय के साथ विकास का नारा दिया. तब से अब तक वे लगातार बिहार के मुख्यमंत्री की कुरसी पर काबिज हैं.

साल के आखिर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कराने के लिए नीतीश कुमार ने सियासी दांवपेंच खेलना शुरू कर दिया है. नीतीश कुमार की सब से बड़ी ताकत उन की ईमानदार छवि है और फैसला लेने के मामले में वे पक्के माने जाते हैं.

पीके पर पलटवार करते हुए जद (यू) के राष्ट्रीय संगठन के महासचिव आरसीपी सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार को पिछलग्गू बनाने की औकात किसी के पास नहीं है. वे अपने काम के बूते देशभर में पहचान बन चुके हैं. हमें किसी ऐरेगैरे से सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है.

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जद (यू) के सीनियर नेता ललन सिंह ने पीके की तुलना टिटहरी से करते हुए कहा कि टिटहरी रात को पैर उठा कर सोती है, क्योंकि उसे लगता है कि उस ने अपने पैरों से आसमान को थाम रखा है. सुबह उठ कर वह इस बात का प्रचार भी करती है कि अगर वह पैर उठा कर नहीं सोती तो आसमान गिर पड़ता.

भाजपा नेता सुशील मोदी ने पीके पर तंज कसते हुए कहा कि इवैंट मैनेजमैंट करने वालों की कोई विचारधारा नहीं होती है. वे अपने क्लाइंट की विचारधारा और बोली को तुरंत अपना लेने में माहिर होते हैं.

पीके साल 2014 में नरेंद्र मोदी की जीत का सेहरा अपने सिर बांधने में बड़बोले बने रहे, तब भाजपा और मोदी उन्हें गोडसेवादी नहीं लगे? पिछले ढाई साल से पीके नीतीश कुमार के साथ मिल कर अपनी राजनीति चमकाने में लगे रहे और अब चुनाव आते ही नीतीश गोडसेवादी बन गए?

वहीं राजद के सीनियर नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि पीके के बयान से साफ हो गया है कि बिहार में विकास नहीं हुआ है. पीके ने साफ कहा है कि साल 2005 में जिस जगह पर बिहार खड़ा था, आज भी वहीं खड़ा है.

बिहार भाजपा के अध्यक्ष और सांसद संजय जायसवाल कहते हैं कि चुनावी साल में पीके जैसे कई लाउडस्पीकर बजेंगे. पैसे ले कर टेप बजाने वाले पीके वही बोलते हैं, जिस बात के लिए उन्हें भुगतान किया जा सकता है.

नीतीश कुमार के खिलाफ पीके की यह बयानबाजी उन की सियासत में ऐंट्री की कवायद है या जद (यू) से निकाले जाने की खुन्नस है, इसे पीके ने साफ नहीं किया. बिहार विधानसभा चुनाव में उन की भूमिका केवल रणनीतिकार की होगी या वे राज्य के धुरंधर नेताओं के साथ चुनावी अखाड़े में ताल ठोंक कर उतरेंगे, यह भी साफ नहीं किया.

पिछले विधानसभा चुनाव में पीके नीतीश कुमार के साथ बतौर रणनीतिकार जुड़े और बाद में सलाहकार भी बने. कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला और उस के बाद राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए.

महागठबंधन से नाता तोड़ लेने के बाद भाजपा के साथ जब नीतीश कुमार ने अपनी सरकार बनाई, तब भी पीके चुप क्यों रहे? जद (यू) में रहते हुए भी पश्चिम बंगाल और दिल्ली के चुनावों में किस विचारधारा के साथ रणनीतिकार बने रहे? अपने कारोबार और सियासत को साथसाथ चलाते रहे. गांधीवादी होते हुए भी भाजपा के रणनीतिकार बनना क्यों कबूल किया? इन सारे सवालों का जवाब पीके को आने वाले समय में देना होगा.

साल 1977 को बिहार के रोहतास जिले के कोनर गांव में जनमे प्रशांत किशोर उर्फ पीके के पिता श्रीकांत पांडे डाक्टर थे. पीके ने गांव में ही मिडिल क्लास तक की पढ़ाई की. 8 साल तक यूएनओ से जुड़े रहने के बाद साल 2014 के आम चुनाव में भाजपा के प्रचार मुहिम की रणनीति बना कर मशहूर हुए प्रशांत किशोर साल 2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा से जुड़े थे.

भाजपा के लिए साल 2014 के चुनाव में ‘चाय पर चर्चा’ उन का कामयाब और मशहूर कार्यक्रम साबित हुआ था. भाजपा की सोशल मीडिया मुहिम को उन्होंने ही डिजाइन किया था. उसी समय अनेक कालेजों और कंपनियों से 200 प्रोफैशनलों को चुन कर पीके ने सीएजी (सिटीजन फौर अकाउंटेबेल गवर्नैंस) नाम की कंपनी बनाई. साल 2015 में भाजपा से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी कंपनी सीएजी का नाम बदल कर आईपीएसी यानी इंडियन पौलिटिकल ऐक्शन कमेटी कर दिया था.

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साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में पीके जद (यू) के प्रचार मुहिम से जुड़े. जद (यू) और राजद के गठबंधन को भारी जीत दिलाने के इनाम में उन्हें नीतीश कुमार ने जद (यू) का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद दे दिया. पिछले साल एनआरसी के मसले पर जद (यू) की पार्टी लाइन से अलग राय रखने के बाद नीतीश कुमार के साथ उन के मतभेद शुरू हुए थे.

साल 2016 में पीके ने पंजाब में कांग्रेस की प्रचार मुहिम संभाली और कांग्रेस को भारी जीत मिली. इस से प्रशांत किशोर का रुतबा और कद दोनों बढ़ गए. साल 2017 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जीत दिलाने की चुनौती कबूल की, लेकिन उस में बुरी तरह नाकाम रहे.

साल 2019 में उन्होंने आंध्र प्रदेश में वाइएसआर कांग्रेस की प्रचार की नैया की पतवार संभाली और उस में कामयाबी मिली. साल 2020 में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ के प्रचार का दारोमदार लिया और केजरीवाल को दोबारा दिल्ली की सत्ता पर काबिज कराने में मददगार बने.

अब प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में द्रमुक को जिताने की कमान अपने कंधों पर ली है. लगता है कि भाजपा के लिए ‘चाय पर चर्चा’ राहुल गांधी के लिए ‘खाट पर चर्चा’ और नीतीश कुमार के लिए ‘बिहार में बहार हो नीतीशे कुमार हो’ जैसे नारे गढ़ने वाले पीके अब खुद राजनीतिक अखाड़े में कमर कस कर उतरने की तैयारी में हैं.

नीतीश का मास्टर स्ट्रोक

चुनावी साल में बिहार विधानसभा ने एनपीआर और एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पास कर नीतीश कुमार ने अपने विरोधियों को एक बार फिर चारों खाने चित कर दिया है. गौरतलब है कि देश में पहली बार भाजपा के सहयोग से यह प्रस्ताव पास किया गया. नीतीश कुमार ने अपने इस मास्टर स्ट्रोक से राजद समेत तमाम विरोधी दलों की बोलती बंद कर दी है, वहीं भाजपा को उस के ही दांव से बेबस कर दिया है.

विधानसभा में नीतीश कुमार ने साफ कहा है कि बिहार में एनआरसी लागू होने का सवाल ही नहीं है. एनपीआर साल 2010 के प्रावधान पर ही लागू होगा. मुझे भी नहीं पता है कि मेरी मां का जन्म कब हुआ था.

नीतीश कुमार के इस राजनीतिक पैतरे से बौखलाए राजद नेता तेजस्वी यादव ने अपनी खुन्नस निकालते हुए कहा कि नीतीशजी कब किधर चले जाएं, पता नहीं. उन का ऐसा ही इतिहास रहा है.

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तेजस्वी यादव के इस बयान के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें गार्जियन की तरह समझाते हुए कहा कि कुछ बातें बोलने का अधिकार केवल आप के पिता को है, आप को सोचसमझ कर बोलना चाहिए.

पौलिटिकल राउंडअप : भाजपाई बनीं वीरप्पन की बेटी

चेन्नई. कुख्यात चंदन और हाथी दांत तस्कर रहे वीरप्पन की बेटी विद्यारानी ने 22 फरवरी को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले ली. इस के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने भाजपा को निशाने पर लेना शुरू कर दिया, जबकि इस बारे में विद्यारानी का कहना है कि उन्हें उन के पिता से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रभावित हो कर वे भाजपा में शामिल हुई हैं.

बचपन से ही आईएएस बनने का सपना देखने वाली विद्यारानी अपने गांव और आसपास के इलाके में साफ पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के सुधार के लिए काम करना चाहती हैं.

विद्यारानी ने कहा, ‘मेरे पिता के रास्ते जरूर गलत थे, लेकिन उन्होंने हमेशा गरीबों के बारे में ही सोचा. मैं अब सही रास्ते पर चल कर सही काम करने की कोशिश कर रही हूं.’

आजम खान की गिरफ्तारी

लखनऊ. समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता और सांसद आजम खां और उन के परिवार को 26 फरवरी को जेल भेजे जाने के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आगबबूला होते हुए कहा कि यह बदले की भावना से किया गया है और सत्ता का गलत इस्तेमाल करना भाजपा की राजनीतिक आदत है.

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डिप्टी सैक्रेटरी के यहां पड़ा छापा

रायपुर. छत्तीसगढ़ के सीएमओ में डिप्टी सैक्रेटरी के पद पर तैनात सौम्य चौरसिया के घर पर 28 फरवरी को इनकम टैक्स डिपार्टमैंट ने छापा मारा तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे ‘राजनीतिक बदला’ बताया और केंद्र सरकार पर प्रदेश की बहुमत वाली सरकार को अस्थिर करने का आरोप भी लगाया.

इस से पहले रायपुर में पुलिस ने इनकम टैक्स महकमे के नो पार्किंग इलाके पर खड़ी गाडि़यों को जब्त कर लिया था. इनकम टैक्स महकमे ने 27 फरवरी को महापौर एजाज ढेबर समेत कई बड़े अफसरों के यहां छापे मारे थे.

राहुल गांधी को मिली राहत

रांची. कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी को लोकसभा चुनावों के समय ‘सभी मोदियों को चोर बताए’ जाने के बयान के मामले में निचली अदालत से जारी सम्मन पर झारखंड हाईकोर्ट ने 27 फरवरी को राहत देते हुए उन्हें निजीतौर पर पेशी से छूट दी.

रांची की निचली अदालत ने राहुल गांधी को मानहानि के एक मामले में सम्मन जारी करते हुए 28 फरवरी को खुद या अपने वकील के जरीए अदालत में हाजिर होने का निर्देश दिया था.

निचली अदालत में वकील प्रदीप मोदी ने राहुल गांधी पर 20 करोड़ रुपए की मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था, जिस में कहा गया कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान रांची के मोरहाबादी मैदान में कांग्रेस की सभा में राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी, नीरव मोदी, ललित मोदी का नाम लेने के साथ कहा था कि जिन के नाम के आगे मोदी है वे सभी चोर हैं.

मुसलिम रिजर्वेशन पर रार

मुंबई. पढ़ाईलिखाई में मुसलिमों को 5 फीसदी रिजर्वेशन देने को ले कर महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार में अलगअलग राय नजर आई. राकांपा के कोटे से एक मंत्री ने जहां मुसलिमों को 5 फीसदी रिजर्वेशन के लिए जल्द एक कानून लाने की बात कही, वहीं शिव सेना के मंत्री ने कहा कि इस संबंध में अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है.

इस से पहले 28 फरवरी को महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली गठबंधन सरकार ने कहा था कि वह मुसलिमों को स्कूलकालेजों में रिजर्वेशन देने के लिए कानून बनाएगी. इस के लिए कांग्रेस और राकांपा की तरफ से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर पहले से दबाव बनाया जा रहा था.

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कमलनाथ का केंद्र से सवाल

इंदौर. देशभर में अपने स्वादिष्ठ पोहे के लिए मशहूर इस शहर में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 28 फरवरी को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला करते हुए सवाल किया कि देश में आखिर ऐसी कौन सी आफत आ गई थी, जो केंद्र सरकार को संशोधित नागरिकता कानून बनाना पड़ा और सीएए में क्या है, वह बात छोडि़ए, लेकिन सवाल है कि क्या कोई युद्ध चल रहा है या देश में बड़ी संख्या में शरणार्थी आ रहे हैं जो केंद्र सरकार ने सीएए का चक्कर चला दिया? यह कानून बनाने की आखिर क्या जरूरत थी? इस कानून का आखिर क्या मकसद है?

कन्हैया को लपेटा

नई दिल्ली. दंगों में जल रही दिल्ली की आंच बढ़ाने के लिए जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी देशद्रोह केस में भाकपा नेता व जेएनयू स्टूडैंट यूनियन के अध्यक्ष रह चुके कन्हैया कुमार समेत 10 और लोगों के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने 28 फरवरी को मुकदमे की मंजूरी दे दी, जो शायद अमित शाह के दबाव में दी गई है. केजरीवाल हाल में पलटी मारते नजर आ रहे हैं.

सुशील मोदी के कड़े बोल

पटना. ज्योंज्यों बिहार के विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, त्योंत्यों वहां एकदूसरे की खिंचाई करने का माहौल बनने लगा है.

भारतीय जनता पार्टी और जनता दल की गठबंधन सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ‘बेरोजगारी हटाओ यात्रा’ निकाल रहे हैं. उसे ले कर भाजपाई नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार  मोदी ने कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया.

उन्होंने कहा है कि तेजस्वी यादव खुद इतने पढ़ेलिखे हैं नहीं कि कोई सम्मानजनक नौकरी पा सकें, लेकिन वे लाखों बिहारियों की नौकरी खतरे में डालने वाली मांग को जरूर तूल दे रहे हैं.

इस से पहले शनिवार, 29 फरवरी को तेजस्वी यादव ने अपने ट्वीट में लिखा था, ‘उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी कह रहे हैं कि बिहार के 7 करोड़ बेरोजगार युवाओं को नौकरी लेने अब चांद पर जाना होगा, क्योंकि नीतीशजी बिहार में नौकरी नहीं दे सकते…’

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ममता बनर्जी का दर्द

कोलकाता. देश में फैले दंगों पर मची राजनीति से दुखी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लोगों से समाज से जाति, पंथ और धर्म के आधार पर सभी तरह के विभाजन को उखाड़ने की अपील की.

ममता बनर्जी का यह बयान 1 मार्च को उस दिन आया, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोलकाता में सीएए के समर्थन में एक रैली की थी.

मिथिला की बेटी ने उड़ा दी है नीतीश कुमार की नींद

बिहार में आजकल सियासी रोटी गरम है और हर छोटे बड़े नेता तवे पर रोटी रख गरमगरम बयान देने में कसर नहीं छोड़ रहे.

अब बिहार सहित देश के कई जगहों पर एक खबर ने अनायास ही बिहार की राजनीति में सनसनी फैला दी है और यह सनसनी कोई और नहीं लंदन से पढलिख कर आई एक आधुनिक युवती पुष्पम प्रिया चौधरी ने फैलाई है.

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दरअसल, बिहार के कई अखबारों में छपे एक विज्ञापन ने सब को चौंका दिया है. विज्ञापन में पुष्पम प्रिया चौधरी नाम की एक महिला ने खुद को बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बताया है. विज्ञापन के जरीए इस महिला ने बताया है कि उस ने ‘प्लूरल्स’ नाम का एक राजनीतिक दल बनाया है और वह उस की अध्यक्ष हैं.

महिला दिवस पर पेश की दावेदारी

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर जहां पूरा विश्व महिला सशक्तिकरण पर जोर देने की बात कर रहा था, पुष्पम प्रिया चौधरी ने बिहार के अखबारों में विज्ञापन देते हुए मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश की. अपनी पार्टी का नाम उन्होंने प्लूरल्स  दिया है जबकि ‘जन गण सब का शासन’ पंच लाइन दी है.

पुष्पम प्रिया ने विज्ञापन में बताया कि उन्होंने विदेश में पढ़ाई की है और अब बिहार वापस आ कर प्रदेश को बदलना चाहती हैं.

कौन हैं पुष्पम

इंगलैंड के द इंस्टीट्यूट औफ डेवलपमैंट स्टडीज विश्वविद्यालय से एमए इन डेवलपमैंट स्टडीज और लंदन स्कूल औफ इकोनोमिक्स ऐंड पोलीटिकल साइंस से पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन में एमए किया है. वह दरभंगा की रहने वाली हैं और जेडीयू के पूर्व एमएलसी विनोद चौधरी की बेटी हैं. फिलहाल वे लंदन में ही रहती हैं.

जनता से अपील

पुष्पम प्रिया चौधरी ने विज्ञापन में बिहार की जनता को एक पत्र भी लिखा है, जिस में उन्होंने कहा है कि अगर वह बिहार की मुख्यमंत्री बनीं  तो 2025 तक बिहार को देश का सब से विकसित राज्य बना देंगी और 2030 तक इस का विकास यूरोपियन देशों जैसा होगा.

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पिता ने कहा नैतिक समर्थन है

पुष्पम प्रिया के पिता विनोद चौधरी चूंकि जेडीयू नेता हैं इसलिए मीडिया ने उन्हें घेर कर उन की राय जाननी चाही. पिता विनोद चौधरी ने कहा,”मेरी बेटी विदेश में पढ़ीलिखी  है. वह बालिग है और उस की और मेरी सोच में फर्क स्वाभाविक है. वह जो भी कर रही है सोचसमझ कर कर रही होगी. एक पिता होने के कारण मेरा आशीर्वाद सदैव उस के साथ है.”

क्या बदलने वाली है बिहार की राजनीति

बिहार की राजनीति यों तो दबंगई की रही है और अपने इसी दबंगई से कभी यहां की सत्ता पर राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव ने एकतरफा राज किया था. उन्हें करिश्माई नेता के तौर पर भी जाना जाता था. अपने चुटीली बोल और ठेठ गंवई अंदाज में बोलने वाले लालू फिलहाल चारा घोटाले में जेल में हैं पर उन की अनुपस्थिति में पत्नी राबङी देवी, बेटा तेजस्वी और तेजप्रताप राजनीति की बागडोर संभाले हुए हैं. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार में राजद का अपना वोट बैंक है, जो कभी भी निर्णायक साबित हो सकता है.

उधर बीजेपी से नाता जोङ कर सरकार चला रहे सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार के लिए आगामी चुनाव जीतना आसान नहीं होगा, क्योंकि अभी तक बिहार में जातिगत आधार पर वोट पङते हैं मगर बीजेपी सरकार द्वारा लागू कैब, बढती बेरोजगारी, बिगङते कानून व्यवस्था से बिहार की जनता हलकान है और इस बार बीजेपी+जेडीयू गंठबंधन वहां आसानी से सरकार बना लेगी, इस में संशय ही है.

प्रशांत किशोर का दांव

उधर कभी नीतीश के खास रहे प्रशांत  किशोर भी सुशासन बाबू को खूब चिढा रहे हैं. नीतीश का बीजेपी के समर्थन में बोलना प्रशांत किशोर को शुरू से ही खल रहा था. वे पार्टी में रहते हुए भी नीतीश कुमार की नीतियों का कई बार आलोचना कर चुके थे, सो नीतीश ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया.

राजनीति के जानकार बताते हैं कि प्रशांत नीतीश के लिए राह का रोङा बन सकते हैं.

जल्दी ही मशहूर हो गई हैं प्रिया

पुष्पम प्रिया चौधरी यों तो युवा चेहरा हैं और जल्दी लोकप्रिय भी हो गई हैं पर बिहार की राजनीति में अभी नई हैं. पर यह राजनीति है और कहते हैं कि राजनीति और क्रिकेट अनिश्चितताओं का होता है. ऐसे में दिल्ली की तरह वहां भी कोई नया समीकरण बन जाए क्या पता?

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यह तो वक्त ही बताएगा कि बिहार में किस की सरकार बनेगी पर मिथिला की इस बेटी ने सियासी तीसमारखाओं की नींद जरूर उङा दी है.

पौलिटिकल राउंडअप : मध्य प्रदेश में बड़ा घोटाला

भोपाल. साल 2009 में तब की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड इलाके के 13 जिलों में तरक्की के कामों के लिए 7 हजार, 266 करोड़ रुपए दिए थे. इन में से 3 हजार, 800 करोड़ रुपए केवल मध्य प्रदेश के लिए दिए गए थे. लेकिन यह पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया.

इस योजना से जुड़े दस्तावेजों को सच मानें तो 5 टन के पत्थर स्कूटर से ढोए गए थे. साथ ही, इलाके में 2 हफ्ते के अंदर 100 से ज्यादा बकरियों की मौत हो गई थी. सूत्रों के मुताबिक, पन्ना इलाके में जंगल महकमे ने मोटरसाइकिल, स्कूटर, कार और जीप को कागज पर जेसीबी के रूप में दर्ज किया था.

13 फरवरी की इस खबर के मुताबिक कांग्रेस सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू को सौंप दी है.

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अखिलेश के मन की बात

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी को आड़े हाथ लिया. उन्होंने कहा कि दिल्ली के लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के अहंकार के खिलाफ मतदान किया है, विकास के लिए मतदान किया है. भाजपा ने चुनाव को सांप्रदायिक बनाने की भरपूर कोशिश की थी और उस की यह नफरत वाली मुहिम बुरी तरह से प्रभावित हुई है.

अखिलेश यादव ने इस जीत के लिए आम आदमी पार्टी और उस के नेताओं को बधाई दी और उम्मीद जताई कि यह चुनाव देश की राजनीतिक कहानी को बदल देगा.

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

नई दिल्ली. देश की बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी को अपने एक अहम आदेश में राजनीतिक दलों से कहा कि वे उम्मीदवारों के आपराधिक रिकौर्ड को वैबसाइटों पर भी अपलोड करें. इस आदेश का पालन न करने पर अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पार्टियां उम्मीदवारों के आपराधिक रिकौर्ड को अखबारों, वैबसाइटों और सोशल साइटों पर प्रकाशित करें. इस के साथ ही सवाल किया कि आखिर राजनीतिक पार्टियों की ऐसी क्या मजबूरी है कि वह आपराधिक बैकग्राउंड वाले उम्मीदवार को टिकट देती हैं?

शराब को बताया ‘संजीवनी’

पटना. हिंदुस्तानी अवाम मोरचा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने 13 फरवरी को अपने एक बयान में कहा था, ‘‘थोड़ी शराब पीना काम करने वाले मजदूरों के लिए संजीवनी के बराबर होता है, जो दिनभर कमरतोड़ मेहनत कर अपने घर लौटते हैं.’’

इस बयान पर राज्य की नीतीश कुमार सरकार की ओर से भी तीखी बयानबाजी हुई, क्योंकि इसी सरकार ने राज्य में साल 2016 में शराब को बैन कर दिया था.

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कांग्रेस ने भी जीतनराम मांझी के बयान से नाराजगी जताई. याद रहे, राज्य में शराब को बैन किए जाने संबंधी कानून जब बनाया गया था, तब प्रदेश की नीतीश सरकार में कांग्रेस भी शामिल थी.

भाजपा भी जीतनराम मांझी को कोसने में पीछे नहीं रही. भाजपा नेता और राज्य सरकार में भूमि सुधार मंत्री राम नारायण मंडल ने कहा, ‘‘लोग शराब पर बैन लगाने से खुश हैं और यह हमेशा के लिए रहने वाला है.’’

 मंत्री ने दिया अपना खून

रांची. झारखंड सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता 13 फरवरी को राजेंद्र इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज का दौरा करने पहुंचे थे. वहां उन्हें पता चला कि अस्पताल में भरती एक बुजुर्ग औरत का इलाज ब्लड बैंक में खून की कमी होने के चलते नहीं हो पा रहा था. जब मंत्री ने उन बुजुर्ग औरत के पति से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि जब वे ब्लड बैंक गए तो उन से कहा गया कि खून लेने के बदले में खून देना पड़ेगा, मगर कोई भी खून देने के लिए तैयार नहीं हुआ.

यह सुन कर स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने खुद ही खून देने का फैसला किया और ब्लड बैंक पहुंच गए. इस के बाद उन्होंने वहां मौजूद लोगों से जरूरतमंदों को ब्लड डोनेट करने की अपील की.

झुग्गियों के आगे बनाई दीवार

अहमदाबाद. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 24 फरवरी की अहमदाबाद यात्रा से पहले देश में बवाल मच गया. विपक्षी दल कांग्रेस ने आरोप लगाया कि झुग्गीझोंपड़ी बस्ती को छिपाने के लिए भाजपा शासित अहमदाबाद नगरनिगम ने हवाईअड्डे के पास एक ऊंची दीवार बना दी.

कांग्रेस ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नजर से झुग्गी में रहने वाले लोगों की गरीबी छिपाने के लिए यह दीवार खड़ी की गई, जबकि कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए नगरनिगम के अफसरों ने 14 फरवरी को कहा कि 4 फुट ऊंची और 500 मीटर लंबी दीवार बनाने के काम को डोनाल्ड ट्रंप के गुजरात दौरे से बहुत पहले मंजूरी मिल चुकी थी.

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कांग्रेस ने भाजपा को घेरा

जम्मू. जम्मूकश्मीर कांग्रेस ने कश्मीर घाटी में मुख्यधारा के नेताओं पर उन सुरक्षा अधिनियम यानी पीएसए लगाने के लिए 15 फरवरी को प्रशासन पर आरोप लगाया कि भाजपा अपने विरोधियों पर दबाव डालने की रणनीति का इस्तेमाल कर रही है.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीए मीर ने विरोध प्रदर्शन के दौरान कहा, ‘‘यह केवल घाटी के बारे में नहीं है, भाजपा सरकार पूरे देश में अपनी नीतियों का विरोध करने वाले लोगों को फंसा रही है और पीएसए जैसे कानून का गलत इस्तेमाल कर रही है. इस कानून का पिछले 40 सालों में सब से ज्यादा गलत इस्तेमाल किया गया है.’’

जीए मीर पहले आईएएस रहे और आज के नेता शाह फैसल पर पीएसए लगाए जाने को ले कर पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे.

संविधान की दी दुहाई

हैदराबाद. उत्तर प्रदेश के वाराणसी से मध्य प्रदेश के इंदौर के बीच 16 फरवरी को शुरू हुई ‘काशीमहाकाल ऐक्सप्रैस’ ट्रेन में एक सीट को शिव के लिए आरक्षित करने और उसे मंदिर का रूप देने पर आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा और संविधान की प्रस्तावना की याद दिलाई.

असदुद्दीन ओवैसी ने अपने ट्वीट के जरीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह बताने की कोशिश की कि संविधान इस बात की घोषणा करता है कि भारत एक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र राष्ट्र है और रेलवे का यह कदम ‘संविधान की आत्मा’ कही जाने वाली प्रस्तावना के खिलाफ है.

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रसोई गैस : कीमत पर बवाल

कोलकाता. रसोई गैस सिलैंडर की कीमतों में हुई बढ़ोतरी के खिलाफ 14 फरवरी को मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी की महिला शाखा और युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने शहर में 2 जगहों पर प्रदर्शन किया, जिस के चलते उत्तरी और दक्षिणी कोलकाता में यातायात गड़बड़ा गया. तख्तियां और बैनर लिए इन लोगों ने दोपहर 3 बजे से तकरीबन आधे घंटे तक राजाबाजार में एपीसी रोड को जाम कर दिया था.

गौरतलब है कि 14.2 किलोग्राम रसोई गैस सिलैंडर की कीमत 714 रुपए से बढ़ा कर 858.50 रुपए कर दी गई है, जो जनवरी, 2014 से अब तक की सब से ज्यादा बढ़ोतरी है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 : आप का दम बाकी बेदम

सियासत में जो सत्ता पर काबिज होता है, वही सिकंदर कहलाता है. इन चुनावों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने इसे दोबारा सच साबित कर दिया. उन्हें दिल्ली की जनता ने अपना दिल ही नहीं दिया, बल्कि ‘झाड़ू’ को वोट भी भरभर कर दिए, 70 में से 62 सीटें.

किसी सत्तारूढ़ दल के लिए इस तरह से अपना तख्त बचाए रख पाना ढोलनगाड़े बजाने की इजाजत तो देता ही है, वह भी तब जब दिल्ली को किसी भी तरीके से जीतने के ख्वाब देखने वाली भारतीय जनता पार्टी के तमाम दिग्गज नेता यह साबित में करने लगे थे कि यह चुनाव राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोही सोच के बीच जंग है, यह चुनाव भारत और पाकिस्तान के हमदर्दों के बीच पहचान करने की लड़ाई है, यह चुनाव टुकड़ेटुकड़े गैंग को नेस्तनाबूद करने की आखिरी यलगार है.

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पर, दिल्ली की जनता ने पाकिस्तान की सरहदों को वहीं तक समेटे रखने में ही अपनी भलाई समझी और बिजली, पानी, सेहत और पढ़ाईलिखाई को तरजीह देते हुए 8 फरवरी, 2020 को आम आदमी पार्टी के चुनावी निशान ‘झाड़ू’ पर इतना प्यार लुटाया कि 11 फरवरी, 2020 को जब नतीजे आए, तो भाजपाई ‘कमल’ 8 पंखुडि़यों में सिमट कर मुरझा सा गया. कांग्रेस के ‘हाथ’ पर तो जो 0 पिछली बार चस्पां हुआ था, उस का रंग और भी गहरा हो गया.

केजरीवाल के माने

साल 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से तकरीबन 2 साल पहले जब देश की राजधानी के जंतरमंतर पर एक बूढ़े, लेकिन हिम्मती समाजसेवी अन्ना हजारे ने 5 अप्रैल, 2011 को देश की तमाम सरकारों को भ्रष्टाचार के मुद्दे और लोकपाल की नियुक्ति पर घेरा था, तब अरविंद केजरीवाल और उन के कुछ जुझारू दोस्तों ने दिल्ली की तब की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार को पानी पीपी कर कोसा था और दिल्ली की जनता को सपना दिखाया था कि अगर उसी के बीच से कोई ईमानदार आम आदमी सत्ता पर अपनी पकड़ बनाता है तो यकीनन वह उन को बेहतर सरकार दे सकता है. तब दिल्ली के तकरीबन हर बाशिंदे को ‘मैं आम आदमी’ कहने में गर्व महसूस हुआ था.

अरविंद केजरीवाल का तीर निशाने पर लगा था. साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में उन की पार्टी को उम्मीद से बढ़ कर 28 सीटें मिली थीं. भाजपा 32 सीटें जीत कर सब से बड़ी पार्टी बनी थी, जबकि कांग्रेस महज 7 सीटों पर सिमट कर रह गई थी.

इस के बाद अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के समर्थन से 28 दिसंबर, 2013 से 14 फरवरी, 2014 तक 49 दिनों के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे, पर विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा के लोकपाल बिल के विरोध में एक हो जाने पर और भ्रष्ट नेताओं पर लगाम कसने वाले इस लोकपाल बिल के गिर जाने के बाद उन्होंने नैतिक आधार पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.

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इस के बाद साल 2014 में देश में लोकसभा चुनाव हुए और भाजपा की अगुआई वाली सरकार देश में बनी. दिल्ली की सातों सीटें भाजपा को मिलीं. इसे नरेंद्र मोदी युग की शुरुआत माना गया और तब दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव को ले कर भाजपाई आश्वस्त थे कि अब तो दिल्ली भी उन की हुई, पर अरविंद केजरीवाल की अगुआई में फरवरी, 2015 के चुनावों में उन की आम आदमी पार्टी ने 70 में से रिकौर्ड 67 सीटें जीत कर भारी बहुमत हासिल किया और 14 फरवरी, 2015 को वे दोबारा दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए.

आप के पिछले 5 साल

अरविंद केजरीवाल ने पिछले 5 सालों में अपने किए गए कामों पर इस बार के चुनाव में जनता से वोट मांगे. उन्होंने तो इतना तक कह दिया था कि अगर उन्होंने काम नहीं कराया है, तो जनता उन्हें वोट न दे.

अरविंद केजरीवाल की यह साफगोई और ईमानदार छवि उन के द्वारा दिल्ली को मुफ्त में बिजली, पानी, मोहल्ला क्लिनिक, साफसुथरे सरकारी स्कूल और चिकित्सा सुविधाओं को जनता तक पहुंचाने के दम पर बनी थी. उन्होंने हर मौके पर दिल्ली पुलिस को आड़े हाथ लिया था और खुद को जनता का कवच बना दिया था.

मुफ्त बिजलीपानी का फार्मूला जनता को बहुत रास आया. 200 यूनिट बिजली मुफ्त मिलना जनता को यह बात सिखा गया कि अगर वह चौकस रहे तो तय कोटे में अपना काम भी चला सकती है और बिजली बचाने में अपना योगदान भी दे सकती है. अब उसे सरकारी खंभे में कांटा लगाने की जरूरत नहीं थी. मुफ्त पानी ने तो सोने पर सुहागे जैसा काम किया. बहुत से लोग टैंकर माफिया के चंगुल से निकल गए.

अरविंद केजरीवाल के दूसरे वजीर मनीष सिसोदिया ने एक कदम आगे बढ़ कर सरकारी स्कूलों के साथसाथ सरकारी अस्पतालों में कई ऐसे सुधार किए कि दिल्ली की जनता के जेहन में यह बात बैठ गई कि सरकार का मन हो तो वह अपनी अवाम का खयाल रख सकती है. इस के साथ ही आम आदमी पार्टी ने कच्ची कालोनियों को पक्का करने की अपनी मुहिम भी चलाए रखी.

चुनाव से ठीक पहले दिल्ली की सरकारी बसों में महिलाओं को मुफ्त में सफर करने का जो तोहफा इस सरकार ने दिया, वह गरीब जनता की जेब पर सीधा असर डाल गया. निचले तबके की औरतों और लड़कियों को इस से बहुत फायदा मिला.

भाजपा के दांव पड़े उलटे

एक के बाद एक कई राज्यों में अपनी सरकार गंवाने वाली और दिल्ली में मजबूत चेहरे और आपसी तालमेल से जूझ रही भारतीय जनता पार्टी के पास अरविंद केजरीवाल को घेरने के लिए कोई खास मुद्दे थे ही नहीं.

दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी अपनी ‘रिंकिया के पापा’ वाली इमेज से बाहर निकल ही नहीं पा रहे थे. दूसरे बड़े नेता भी अपने कार्यकर्ताओं से दूरी बनाए हुए थे.

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शायद सभी इस बात की राह देख रहे थे कि कब नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपनी जादुई छड़ी घुमाएंगे और दिल्ली में बिना कोई मेहनत किए सत्ता उन की झोली में आ गिरेगी.

लेकिन जब आलाकमान को ऐसा होता नहीं दिखा तो उस ने अपना वही पुराना हिंदूमुसलिम कार्ड खेला और सीएए के लागू होने पर भारत के मुसलिम समाज में छटपटाहट हुई, तो दिल्ली में धरने पर बैठे शाहीन बाग के लोगों को टुकड़ेटुकड़े गैंग से जोड़ने की तिकड़म भिड़ाई गई.

गृह मंत्री अमित शाह अपने रंग में दिखाई दिए और उन्होंने अरविंद केजरीवाल को शाहीन बाग का अगुआ बताते हुए आतंकवादी तक कह दिया, तो उन का एजेंडा सामने आ गया कि वे दिल्ली में वोटों का ध्रुवीकरण कर के सारे हिंदू वोट अपने पक्ष में कर लेना चाहते हैं.

इस के अलावा भाजपा के पास कोई भी ऐसा चेहरा नहीं था, जो मुख्यमंत्री पद का इतना तगड़ा दावेदार हो जो अरविंद केजरीवाल को टक्कर दे सके. यहां भी नरेंद्र मोदी का चेहरा दिखा कर राष्ट्रवाद के नाम पर जनता से वोट बटोरने की सोची गई थी जिसे जनता ने नकार दिया.

भाजपा ने उस समय अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी, जब उस ने जनता को अरविंद केजरीवाल की खामियां तो खूब गिनाईं, पर यह नहीं बताया कि अगर वह सत्ता में आई तो दिल्ली वालों की भलाई के क्याक्या काम करेगी. उस के लोकल नेता भी जनता के सामने नरेंद्र मोदी की ही बातें करते दिखे. कश्मीर, गाय, राम मंदिर, अर्बन नक्सली की हवाहवाई चिंघाड़ लगाते रहे.

सब से बड़ी बात तो यह कि भारतीय जनता पार्टी अरविंद केजरीवाल को घेरने में पूरी तरह नाकाम रही. उस के पास आम आदमी पार्टी द्वारा जनता को दी गई सुविधाओं का कोई जवाब नहीं था. न ही कोई ऐसा रोडमैप था, जो सत्ता में आने के लिए उस की राह बनता. यही वजह थी कि भाजपा के इतने तामझाम के बाद भी दिल्ली की जनता ने अपना विश्वास आम आदमी पार्टी में दिखाया और पूरे देश के लिए एक रोल मौडल पेश किया कि केंद्र सरकार की नाराजगी और सीमित सरकारी खजाने के बावजूद अगर कोई मुख्यमंत्री चाहे तो वह अपने राज्य के लोगों की भलाई के काम कर सकता है.

कांग्रेस गई गड्ढे में

लगता है, कांग्रेस यह मान कर चल रही है कि अब वह वहीं लड़ेगी जहां कम से कम नंबर 2 पर तो आ ही जाए. दिल्ली के इन चुनाव ने तो यही साबित किया है. साल 2015 के बाद अब साल 2020 में भी नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा. कभी दिल्ली और देश में अपनी धाक जमाने वाली इस पार्टी की जीरो इस बार भी नहीं टूटी, तो सवाल उठता है कि दिल्ली की जनता ने उसे पूरी तरह क्यों नकार दिया? वह क्यों एक नालायक छात्र की तरह पूरे चुनाव में इम्तिहान देने से बचती रही? क्यों नाम के लिए हिस्सा लिया और अपनी मिट्टी पलीद करा ली?

लगता है, कांग्रेस ने अपनी कमियों पर आंखें मूंदे रहने का मन बना लिया है. उस के पास कीमती 5 साल थे, जिन में वह जनता से जुड़ कर अपनी सियासी जमीन को दोबारा बंजर से उपजाऊ बना सकती थी.

याद रहे कि आम आदमी का आज का वोटर कल का कांग्रेसी प्रेमी था. ऐसे में सुभाष चोपड़ा को आगे कर देना कांग्रेस के लिए खुदकुशी कर देने जैसा था.

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इस पर कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी का यह कहना कि सब को मालूम था कि आम आदमी पार्टी फिर से सत्ता में आएगी, पार्टी के गिर चुके कंधों की तरफ इशारा करता है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी हार से ज्यादा इस बात पर खुश दिखे कि बड़ेबड़े दावे करने वाली भाजपा का ऐसा हश्र हुआ?

हो सकता है कि कांग्रेस चाहती हो कि किसी भी तरह भाजपा को दिल्ली की सत्ता से दूर रखा जाए. अगर वह चुनाव में दम दिखाती तो आम आदमी पार्टी के वोट बैंक में ही सेंध लगाती. इस से भाजपा ही मजबूत होती तो उस ने पहले से ही सोचीसमझी चाल के तहत दिल्ली की गद्दी अरविंद केजरीवाल को सौंप दी.

पर अगर ऐसा है, तो यह राहुल गांधी के सियासी सफर को और ज्यादा मुश्किल बना देगा, क्योंकि राजनीति में कब, कौन पलटी मार दे, कह नहीं सकते.

केजरीवाल की चुनौतियां

अगले 5 साल फिर केजरीवाल. इस जीत से आम आदमी पार्टी की कामयाबी का ग्राफ बहुत ज्यादा बढ़ा है, तो चुनौतियां भी कम नहीं हैं. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से जो 10 वादे किए हैं, उन्हें उन पर खरा उतरना होगा. मुफ्त की सुविधाओं और सरकारी खजाने के बीच भी तालमेल बनाना होगा. सब से बड़ी समस्या तो दिल्ली के सामने गंदगी की है.

आज जहां देखो, कचरा ही कचरा दिखाई देता है और अरविंद केजरीवाल दिल्ली को लंदन बनाने के ख्वाब देख रहे हैं. दिल्ली की कच्ची बस्तियों के हाल तो और भी बुरे हैं. नाले पर बस्ती है या बस्ती में से नाला है, इस का पता ही नहीं चलता है. बहुत से मोहल्ला क्लिनिक तक गंदगी का दूसरा नाम बन गए हैं.

आप वाले कह सकते हैं कि नगरनिगम पर भाजपा का कब्जा है, तो वह कैसे साफसफाई की मुहिम चलाए? लेकिन जनता तो आप पर ही विश्वास करती है न? सफाई मुहिम को जनता की मुहिम बना कर भी इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है और जब नगरनिगम के चुनाव हों, तो उन पर भी कब्जा जमाया जा सकता है.

इस के अलावा बेरोजगारी, माली मंदी और बढ़ती आबादी दिल्ली को बैकफुट पर ला रही है. अरविंद केजरीवाल ने जीतने के बाद दिल्ली को ‘आई लव यू’ कहा है, तो उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि जिस से प्यार करते हैं, उस का हर तरह से खयाल भी रखा जाता है. लिहाजा, वे दिल्ली में ही जमे रहें और पिछली बार की तरह अभी से देश की सियासत पर कब्जा जमाने के सपने न देखें, क्योंकि अभी इस लिहाज से आप के लिए भी दिल्ली दूर है.

आप की महिला उम्मीदवार भी कम नहीं

चुनाव से ऐन पहले दिल्ली की महिलाओं को डीटीसी बस में मुफ्त सफर कराने के ऐलान ने आम आदमी पार्टी को बहुत फायदा पहुंचाया. उसे दिल्ली की गद्दी पर तीसरी बार पहुंचाने में महिला वोटरों ने खूब योगदान दिया.

वैसे, इस बार के विधानसभा चुनाव में कुल 79 महिलाएं बतौर उम्मीदवार मैदान में थीं, लेकिन जलवा रहा आम आदमी पार्टी की 8 महिलाओं का. अरविंद केजरीवाल ने 9 महिला उम्मीदवारों को टिकट दी थी, जिन में से 8 ने जीत हासिल की.

कांग्रेस ने 10 महिला उम्मीदवारों पर दांव लगाया था, पर एक भी सीट नहीं हासिल हो पाई. ऐसा ही कुछकुछ भाजपा का भी हाल रहा. उस ने सब से कम 5 महिला उम्मीदवारों को टिकट दी थी, पर उन में से एक भी नहीं जीत पाई.

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सफाई वाले का बेटा भी विधायक बना इस चुनाव में 18 ऐसे चेहरे हैं, जो पहली बार विधानसभा में पहुंचे हैं. इन में से 16 विधायक तो आम आदमी पार्टी के ही हैं और 2 विधायक भाजपा के हैं. लेकिन सब से ज्यादा सुर्खियां बटोरीं आम आदमी पार्टी के कोंडली सीट से चुन कर आए कुलदीप कुमार ने. वे एक सामान्य परिवार से आते हैं. उन के पिता नगरनिगम में सफाईकर्मी हैं. वैसे, कुलदीप कुमार साल 2007 में पार्षद भी बने थे. वे 30 साल के हैं और इस बार सब से कम उम्र के विधायक बने हैं.

पौलिटिकल राउंडअप : विधानपरिषद को खत्म किया

अमरावती. हाल ही में आंध्र प्रदेश में 3 राजधानी का फार्मूला लाने वाले मुख्यमंत्री जगन  मोहन रेड्डी ने 27 जनवरी को विधानपरिषद को खत्म करने संबंधी प्रस्ताव को विधानसभा में पास कर दिया.

याद रहे कि जगन रेड्डी के ही पिता वाईएस रेड्डी ने साल 2007 में विधानपरिषद को बहाल कराया था, जबकि तेलुगु देशम पार्टी के संस्थापक एनटी रामाराव ने भी इस के 23 साल पहले साल 1985 में विधानपरिषद को खत्म कर दिया था.

वाईएसआर कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि 3 राजधानी वाले प्रस्ताव को रोकने के लिए विपक्षी दल टीडीपी विधानपरिषद में अपने बहुमत का गलत इस्तेमाल कर रही थी, जबकि विधानसभा में इस पर मुहर लग चुकी थी.

ममता ने भी नकारा

कोलकाता. देशभर में आग लगाने वाले नागरिकता संशोधन कानून को नकराते हुए केरल, पंजाब और राजस्थान ने अपनीअपनी विधानसभा में इस के विरोध में प्रस्ताव पास कर दिया था. इसी कड़ी में एक और नाम पश्चिम बंगाल का भी जुड़ गया और 27 जनवरी को संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल विधानसभा में भी प्रस्ताव पास हो गया.

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इस दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में कहा, ‘यह प्रदर्शन केवल अल्पसंख्यकों का नहीं, बल्कि सभी का है. इस आंदोलन का सामने से नेतृत्व करने के लिए मैं हिंदू भाइयों का धन्यवाद करती हूं. पश्चिम बंगाल में हम सीएए, एनआरसी, एनपीआर को लागू नहीं होने देंगे.’

उमर अब्दुल्ला को भेजा रेजर

चेन्नई. भारत के हैंडसम नेताओं में शुमार उमर अब्दुल्ला का श्रीनगर में हाल ज्यादा अच्छा नहीं है. कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटने के बाद वहां इंटरनैट सेवाएं बहाल नहीं थीं. अभी हाल ही में उन्हें दोबारा बहाल किया गया तो इस प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके उमर अब्दुल्ला का एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिस में उन की दाढ़ी बहुत ज्यादा बढ़ी हुई नजर आ रही थी.

इसी फोटो पर तंज कसते हुए मंगलवार, 28 जनवरी को तमिलनाडु भाजपा ने उमर अब्दुल्ला को शेविंग रेजर भेज दिया और साथ ही कांग्रेस को भी लपेटे में ले लिया कि उमर अब्दुल्ला को ऐसे देखना निराशाजनक है, जबकि उन के कई ‘भ्रष्ट’ दोस्त बाहर ऐंजौय कर रहे हैं.

मायावती का सवाल

लखनऊ. नागरिकता संशोधन कानून पर उस समय और ज्यादा बहस तीखी हो गई, जब पाकिस्तानी मूल के गायक अदनान सामी को केंद्र सरकार ने ‘पद्मश्री अवार्ड’ दे दिया.

इस से नाराज बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने 28 जनवरी को कहा कि अगर पाकिस्तानी मूल के किसी गायक को नागरिकता और सम्मान मिल सकता है, तो पाकिस्तानी मुसलिमों को भी नागरिकता संशोधन कानून के तहत देश में शरण मिलनी चाहिए.

मायावती ने केंद्र की मोदी सरकार को इस कानून पर दोबारा विचार करने की नसीहत भी दी.

प्रवेश वर्मा के बिगड़े बोल

नई दिल्ली. दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को किसी भी मुद्दे पर घेरने में नाकाम रही भाजपा ने उस के नेताओं पर ही देशद्रोही होने के आरोप लगा दिए.

29 जनवरी को भाजपाई नेता प्रवेश वर्मा ने एक चुनावी रैली में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ही नक्सली और आतंकी कह डाला.

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पश्चिमी दिल्ली से भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा ने शाहीन बाग के बाद अरविंद केजरीवाल को निशाने पर लेते हुए कहा, ‘जैसे आतंकी और नक्सली देश को नुकसान पहुंचाते हैं, सड़कों को तोड़ते हैं, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं, वही काम मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कर रहे हैं.’

उद्धव ने सराहा

मुंबई. महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री बनने के बाद भले ही उद्धव ठाकरे की शिव सेना और भाजपा अलगअलग राह पर चल पड़ी हैं, फिर भी उद्धव ठाकरे ने 29 जनवरी को एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री रह चुके देवेंद्र फडणवीस और भाजपाई नेता नितिन गडकरी की जम कर तारीफ की और उन दोनों को राज्य के विकास के लिए कदम उठाने का क्रेडिट दिया.

इस सिलसिले में उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘हम सरकार का हिस्सा थे. भले ही हम एक ट्रेन में नहीं थे, लेकिन आज हम एक ही स्टेशन पर आ खड़े हुए हैं. राजनीति में जब किसी काम के क्रेडिट की बात आती है, तो एक नेता तब तक नेता नहीं होता जब तक वह क्रेडिट न ले, लेकिन मैं नम्रता से कहना चाहता हूं कि हमें क्रेडिट नहीं, लोगों का आशीर्वाद चाहिए.’

दिखाया बाहर का रास्ता

पटना. कभी जनता दल (यूनाइटेड) को बिहार में सत्ता का स्वाद चखाने वाले प्रशांत किशोर को इस पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है. उन के साथ पवन वर्मा को भी चलता कर दिया है.

29 जनवरी को जद (यू) के प्रधान महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने अपने बयान में कहा कि पिछले कई महीनों से दल के अंदर पदाधिकारी रहते हुए प्रशांत किशोर ने कई विवादास्पद बयान दिए, जो दल के फैसले के खिलाफ थे. किशोर और ज्यादा नहीं गिरें, इस के लिए जरूरी है कि वे पार्टी से मुक्त हों.

इसी तरह केसी त्यागी ने पवन वर्मा के बारे में भी कहा कि पार्टी अध्यक्ष को चिट्ठी लिख कर उसे सार्वजनिक करना, उस में निजी बातों का जिक्र करना और उसे सार्वजनिक करना यह दिखाता है कि दल का अनुशासन उन्हें स्वीकार नहीं है.

बढ़ा बेरोजगारी भत्ता

भोपाल. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार ने बेरोजगारों को लुभाने के लिए नया काम शुरू किया है. राज्य के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने 29 जनवरी को संवाददाताओं को बताया, ‘राज्य के शहरी गरीब नौजवानों के लिए 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने के लिए ‘मुख्यमंत्री युवा स्वाभिमान योजना’ चलाई गई है. इस योजना में नौजवानों को ट्रेनिंग के साथ 4,000 रुपए मासिक मानदेय दिया जाता है. इसे बढ़ा कर अब 5,000 रुपए किया जा रहा है.’

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जेल से बाहर आते ही धरे गए

गांधीनगर. एक समय गुजरात में नई क्रांति के अगुआ माने गए हार्दिक पटेल ने पूरे देश को हिला दिया था. फिर वे राजनीति में आए और  कांग्रेस में शामिल हो गए. फिलहाल वे जेल में बंद थे और जमानत पर साबरमती जेल से बाहर आए थे, पर गुरुवार, 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया.

हार्दिक पटेल को साल 2017 के एक मामले में गांधीनगर जिला पुलिस ने गिरफ्तार किया.

पोस्टर वार के साथ चुनावी सरगर्मी

बिहार में मौसम के मिजाज के साथसाथ राजनीतिक चुनावी तापमान भी बढ़ने लगा है और राजनीतिक दलों द्वारा एकदूसरे पर पोस्टर वार जारी है.

साल 2020 में बिहार राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाला है. शहर से ले कर गंवई इलाकों तक में चुनाव की गरमाहट के साथसाथ इस बार किस की सरकार बनेगी यह चर्चा जोरों पर है.

सरकार का पोस्टर वार

सब से पहले जनता दल (यूनाइटेड) के प्रदेश कार्यालय के बाहर होर्डिंग लगाया गया, जिस में यह दिखाया गया, ‘क्या करें विचार ठीके तो हैं नीतीश कुमार’, वहीं एक और होर्डिंग पर लिखा था, ‘चलो नीतीश के साथ चलें’.

देशी अंदाज में पोस्टर के जरीए लोगों को सम झाने की कोशिश की गई कि जब नीतीश कुमार हैं ही, तो दूसरे के नाम पर विचार क्यों करना है.

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चुनावी साल का आगाज दूसरे इस पोस्टर के साथ हुआ. पटना की कई बड़ी सड़कों पर इस तरह के पोस्टर जनता दल (यू) की तरफ से लगाए गए हैं, जिस में ऊपर के हिस्से में लिखा है, ‘हिसाब दो- हिसाब लो’. बडे़ फ्लैक्स पर बने पोस्टर को 2 हिस्सों में बांटा गया है और फिर एक शीर्षक बनाया गया है, ‘पंद्रह साल बनाम पंद्रह साल’.

एक हिस्से में लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की तसवीर के साथ उन के कार्यालय की हालत दिखाई गई है, वहीं दूसरे हिस्से में नीतीश कुमार के साथ उन के कार्यकाल को दिखाया गया है. इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को ले कर जद (यू) ने भय और भरोसे को केंद्रित कर नारा गढ़ा है. भय के 15 साल और भरोसे के 15 साल. यह फ्लैक्स भी जद (यू) कार्यालय के बाहर लगाया गया है.

तसवीरों के साथ बनाए गए इस बडे़ आकार के पोस्टर में सड़क और बिजली की चर्चा की गई है. लालूराबड़ी वाले शासनकाल के हिस्से में यह दिखाया गया है, वहीं नीतीश कुमार के 15 साल का जो हिस्सा है, उस में दिखाया गया है चमचमाती सड़क, फ्लाईओवर, बिजली के टावर और रोशन इलाके. इस पोस्टर में साइकिल से स्कूल जाती लड़कियां और महिला सशक्तीकरण को दिखाया गया है.

लालूराबड़ी के हिस्से वाली तसवीर में लालू प्रसाद को भैंसों के साथ एक कार्टून के साथ जोड़ा गया है. कुछ हिंसक घटनाओं की तसवीरें भी दिखाई गई हैं.

राजद का जवाबी हमला 

राजद के विधायक रविंद्र सिंह का कहना है कि  जद (यू) ने अपने नारों से ही हकीकत को बयान कर दिया कि नीतीश कुमार ठीके हैं, न कि  ठीक हैं. नीतीश कुमार को उन की पार्टी भी मजबूरी का मुख्यमंत्री मान रही है.

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छात्र राजद नेता राहुल यादव का कहना है कि ‘ठीके हैं और ठीक हैं’ में बड़ा फर्क है. ठीके हैं का मतलब कामचलाऊ होता है. ऐसे में नीतीश कुमार की हालत को सम झ सकते हैं.

राजद ने पोस्टर जारी किया, जिस का नारा है, ‘क्यों न करें विचार, बिहार जो है बीमार’. राजद ने बिहार सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नाकामियों को उजागर किया है और अपने पोस्टर पर बिहार के नक्शे में चमकी बुखार, बाढ़, हत्या, सुखाड़, डकैती, अपहरण, लूट को दिखाते हुए बिहार की बुरी व्यवस्था को दिखाया है.

राजद ने जद (यू) का जवाब देते हुए अपने प्रदेश कार्यालय के बाहर पोस्टर लगाया, ‘ झूठ की टोकरी, घोटालों का धंधा’.

राजद ने राज्य के साथसाथ केंद्र सरकार को भी आडे़ हाथों लिया. देश में महंगाई, राफेल खरीद पर सवाल, नीरव मोदी, ललित मोदी, विजय माल्या को देश से भागने पर तंज कसा. केंद्र सरकार को जुमलों की टोकरी बताया, तो वहीं पोस्टर के एक हिस्से में बिहार सरकार पर निशाना साधते हुए सृजन घोटाला अपराध और कानून व्यवस्था के मसले को दिखाया गया है. हत्या, बलात्कार, लूट में बढ़ोतरी का आरोप है. महंगाई से जनता के परेशान होने का जिक्र है. रोजी, रोजगार, छात्रवृत्ति, हर घर नल का जल वगैरह योजनाओं पर सवाल उठाए हैं. राजद ने अपने पोस्टर में राज्य सरकार के ऐलानों को  झूठ की टोकरी कहा है.

लालू प्रसाद यादव ने नया नारा दिया, ‘दो हजार बीस, नीतीश फिनिश’. राजद का नया पोस्टर भी आया ‘दो हजार बीस, हटाओ नीतीश’.

पोस्टर वार अभी राज्य की राजधानी तक ही सिमटी है. यह संदेश पक्ष औैर विपक्ष दोनों की तरफ से गांव और कसबे में भी आ जाएगा. दोनों तरफ से अभी से ही शब्द अपनी मर्यादा खोने लगे हैं.

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भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा के कुछ यक्ष-प्रश्न

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अमेरिका यात्रा प्रदेश में चर्चा का और आलोचना का सबब बनी हुई है. छत्तीसगढ़ सरकार का तर्क है भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा से छत्तीसगढ़ की शान, मान मे वृद्धि हुई है. अमेरिका से छत्तीसगढ़ उद्योग धंधे, पैसे आएंगे. जबकि विपक्ष विशेषकर डॉ. रमन सिंह और धरमलाल कौशिक ने भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि एक तरफ छत्तीसगढ़ में किसान त्राहि-त्राहि कर रहे हैं, खून के आंसू बहा रहे हैं. सरकार धान का एक-एक दाना खरीदा नहीं पा रही है और मुख्यमंत्री अमेरिका जैसे समृद्ध देश में पिकनिक मना रहे है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा पर जिस तरह भाजपा हमलावर हुई है उससे कांग्रेस तिलमिला गई है और 15 वर्ष भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के विदेश यात्रा का ब्यौरा मांग रही है.कांग्रेस कहती है भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा सफल है भाजपा कहती है कि भूपेश बघेल  की यात्रा असफल है! और छत्तीसगढ़ की अस्मिता उड़ान पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली है. अब सवाल है कि यहां की आवाम अमेरिका यात्रा को लेकर क्या धारणा बनाती है या जिस तरह भाजपा के 15 वर्षों के कार्यकाल में डॉ रमन सिंह और उनका मंत्रिमंडल विदेश भ्रमण करता रहा,अधिकारी विदेश मे खरीददारी करते रहे वहीं सब कुछ कांग्रेस की सरकार में भी होगा? यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब शायद न कांग्रेस के पास है न भाजपा के पास.

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भूपेश बघेल की निवेशकों के साथ बैठक

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  ने पहले चरण में सैन फ्रांसिस्को में करीब 250 निवेशकों से संवाद किया. आधिकारिक  जानकारी के अनुसार, बघेल को अमेरिकी निवेशकों से छत्तीसगढ़ में उद्योग लगाने के लिए अनेक  प्रस्ताव मिले हैं. यात्रा के अगले पड़ाव के लिए मुख्यमंत्री और छत्तीसगढ़ की टीम बोस्टन गयी जहां बघेल इंस्टीट्यूट फॉर कम्पीटिटीवनेस में वहां के औद्योगिक प्रतिनिधियों को छत्तीसगढ़ में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया.

यात्रा के पहले पड़ाव में मुख्यमंत्री बघेल ने सैन फ्रांसिस्को के सिलिकन वैली और रेड वुड शोर्स में औद्योगिक प्रतिनिधियों और निवेशकों से सीधी चर्चा की.उन्होंने निवेशकों को बताया कि छत्तीसगढ़ ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के लिए भारत के शीर्ष राज्यों में शामिल है। उन्होंने भरोसा जताया कि छत्तीसगढ़ निवेश करने के लिए सबसे अच्छी जगह है, क्योंकि यह देश के मध्य में स्थित है और यहां बेहतर कनेक्टिविटी है.

उन्होंने कहा कि राज्य की नई औद्योगिक नीति निवेशकों के लिए काफी अनुकूल है।बघेल ने एक इंटरव्यू मे कहा, ”हमारा राज्य खनिज समृद्ध है और हमारे यहां खनिज आधारित कई उद्योग हैं। हम अमेरिका की कंपनियों और निवेशकों को आने तथा मुख्य क्षेत्रों में अवसर तलाशने का न्यौता देते हैं.”छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री  अमेरिका के कई शहरों की यात्रा पर रहे. वह इस दौरान विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर राज्य की, निवेशकों के अनुकूल और कारोबार सुगम नीतियों की जानकारी देते रहे .

भूपेश बघेल की दृष्टि 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि उनकी सरकार अगले कुछ साल राज्य के लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाने पर ध्यान देगी. राज्य सरकार गरीबी हटाने तथा खनिज, इस्पात एवं विद्युत जैसे मुख्य उद्योगों के साथ ही कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण, सूचना प्रौद्योगिकी, जैव इथेनॉल, इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र एवं परिधान, इंजीनियरिंग एवं रक्षा, उच्च शिक्षा, दवा, वाहन आदि जैसे क्षेत्रों के लिये भी प्रतिबद्ध है.

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मुख्यमंत्री के अनुसार, ” हमारा लक्ष्य लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाना है. यदि लोगों के पास खरीदने का पैसा नहीं हो तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम कितने उद्योग लगाते हैं.बघेल ने कहा कि इस संतुलन को बनाये रखने के लिये लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाना महत्वपूर्ण है, जो अंतत: उद्योगों और कंपनियों को फायदा  छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल का अमेरिका की कंपनियों को राज्य में निवेश का न्योता दिया .

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अमेरिका की कंपनियों को राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करने के लिये आमंत्रित किया. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार खनिज व इस्पात जैसे मुख्य क्षेत्रों के साथ ही छत्तीसगढ़ के सर्वांगीण विकास में ध्यान केंद्रित कर रही है.”

दिल्ली में राजनीति के सफल प्रयोग को बिहार में दोहारने के आसार, पीके ने किया इशारा

राजधानी दिल्ली में आप ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाई. सीएम केजरीवाल साल के पहले चुनाव में 70 में से 62 सीटों पर फतह हासिल कर विरोधियों को चारों खाने चित कर दिया. इसबार के दिल्ली चुनाव हर बार से बहुत अलग थे. आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव को बहुत ही होशियारी के साथ लड़ा और इसमें विजय भी पाई. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि दिल्ली जैसा प्रयोग बिहार में भी देखने को मिल सकता है. वैसे तो यूपी और बिहार की राजनीति दिल्ली की राजनीति से बहुत अलग है. यहां के मुद्दों,नेताओं,जनता सभी में काफी असमानताएं हैं फिर भी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की बातों से ऐसा लग रहा है कि वो भी बिहार की राजनीति में हाथ आजमाना चाहते हैं.

जेडीयू से निकाले गए नेता और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार के लिए बड़ी योजना का ऐलान कर दिया है. राजधानी पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत ने हालांकि किसी राजनीतिक दल बनाने का तो ऐलान नहीं किया लेकिन उन्होंने राज्य के लाखों युवकों को जोड़ने के लिए ‘बात बिहार की’ कार्यक्रम की घोषणा की. अपनी योजना की घोषणा करते हुए किशोर ने आज कहा कि वह बिहार को देश के अग्रणी राज्यों में शामिल होते हुए देखना चाहते हैं और इसके लिए वह मिशन पर निकलेंगे और युवाओं की फौज तैयार करेंगे. प्रशांत की इस तैयारी को राज्य में तीसरे मोर्चे के संकेत में रूप में भी देखा जा रहा है.

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प्रशांत ने सीधे तौर पर बिहार की राजनीति में एंट्री का ऐलान तो नहीं किया लेकिन ये संकेत तो जरूर दे दिया कि वह भविष्य में ऐसा जरूर कर सकते हैं. बिहार में इस साल नवंबर में चुनाव होने हैं. उससे पहले प्रशांत की ‘बात बिहार की’ कार्यक्रम के जरिए युवाओं को जोड़ने की मंशा को तीसरे मोर्चे की कवायद से जोड़कर देखा जा रहा है. प्रशांत ने कहा कि वह बिहार के युवाओं को राजनीति सिखाएंगे और उन्हें आगे करेंगे. उन्होंने कहा, ‘मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा लेकिन पंचायत स्तर से युवाओं को चुनकर उन्हें आगे बढ़ाया जाएगा.’ उन्होंने दावा किया बिहार में उनके पास सवा लाख सक्रिय सदस्य हैं.

किशोर ने कहा कि वह युवाओं के अपने से जोड़ने के लिए एक कार्यक्रम शुरू करने जा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘ 20 फरवरी से बात बिहार की नाम से एक कार्यक्रम शुरू करने जा रहा हूं. राज्य के 8,800 पंचायतों में से लड़कों की एक टीम बनाने जा रहा हूं. अभी तक हमारे साथ 2 लाख 93 हजार लड़के जुड़ चुके हैं. हमसे जुड़े लोगों में बीजेपी के भी लोग शामिल हैं. 20 मार्च तक हम राज्य के 10 लाख लड़कों को शामिल करने की योजना है.’ उन्होंने कहा कि बिहार के गांव-गांव से लड़कों को जोड़कर आगे बढ़ाने की रणनीति है. हमारी योजना है कि राज्य में 10 हजार अच्छे मुखिया जीतकर आएं.’

प्रशांत किशोर की राह यहां आसान नहीं होगी क्योंकि उनको शायद नहीं मालूम की अमित शाह की अगुआई में बीजेपी का संगठन हर बूथ पर पन्ना प्रमुख साल भर पहले बना चुका है. बिहार में बीजेपी के 90 लाख तो सिर्फ प्राथमिक सदस्य हैं. अगर बूथ लेवल तक पहुंच को काउंट करें तो संख्या कहीं अधिक हो जाएगी. इसलिए जिस बुनियाद का सपना संजोकर पीके बिहार की राजनीति के महारथियों से लोहा लेने उतरे हैं, उसके बारे में खुद भी आश्वस्त नहीं हैं.

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प्रशांत किशोर ने सामाजिक और आर्थिक सूचकांक गिनाए. हर मोर्चे पर नीतीश कुमार को फेल बताया. उनका कहना था, “लड़कियों को फ्री साइकल मिल गई लेकिन शिक्षा बर्बाद हो गई, बिजली पहुंच गई लेकिन प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ी. लालू के 15 साल के नाम पर राज करते रहे नीतीश लेकिन बेहतरी के लिए कुछ नहीं किया.” हालांकि प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के लिए पीके क्या करेंगे ये बताना भूल गए. उनकी प्राथमिक शिक्षा नीति क्या होगी ये भी बताना भूल गए. कुल मिलाकर पीके वही काम कर रहे थे जिसे तेजस्वी यादव ठीक से नहीं कर पा रहे हैं.

मोटे तौर पर ये कहा जा सकता है कि पीके ने सरकार की विफलताएं तो खूब गिनाई लेकिन वो बिहार की जनता के लिए क्या करेंगे इसका कोई ठोस रोडमैप वो नहीं बता पाए. पीके भी कुछ वैसा ही कर रहे हैं जैसा की कई सालों से तेजस्वी यादव करते आ रहे हैं. फिलहार तो प्रशांत किशोर की बातों से तो यही समझ आता है कि वो पंचायत स्तर से शुरूआत करके बिहार की राजनीति में बड़ा उलटफेर करने की सोच रहे हैं लेकिन यहां मुकाबला विश्व की सबसे बड़ी पार्टी से है तो पीके को खास रणनीति के साथ मैदान पर उतरलना पड़ेगा.

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