Crime Story: साइबर ट्रैप – मानवी का भरोसा क्या कायम रह पाया

Crime Story: ‘‘ओएमजी, कहां थे यार?’’

‘‘थोड़ा बिजी था, तुम सुनाओ, एनीथिंग न्यू? हाउ आर यू, कैसा चल रहा तुम्हारा काम?’’

‘‘के.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘ओके…शौर्ट फौर्म के.’’

‘‘हाहाहा…तुम और तुम्हारे शौर्ट फौर्म्स.’’

‘‘हाहाहा…को तुम एलओएल भी लिख सकते हो, मतलब, लाफिंग आउट लाउड.’’

‘‘हाहा, वही एलओएल.’’

‘‘पर एक पहेली अब तक नहीं सुलझी, अब टालो नहीं बता दो.’’

‘‘केपी.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘क्या पहेली…हाहाहा…’’

‘‘मतलब कुछ भी शौर्ट.’’

‘‘और क्या?’’

‘‘ओके, मुझे बहस नहीं करनी. अब पहेली बुझाना बंद करो और जल्दी से औनलाइन वाला नाम छोड़ कर अपना ‘रियल नेम’ बताओ?’’

‘‘द रौकस्टार.’’

‘‘उहुं, यह तो हो ही नहीं सकता. कुछ तो रियल बताओ, न चेहरा दिख रहा, न नाम रियल.’’

‘‘हाहाहा…तुम तो बस मेरे नाम के पीछे ही पड़ गई हो, अरे बाबा, यह तो बस फेसबुक के लिए है. जैसे तुम्हारा नाम ‘स्वीटी मनु’ वैसे मेरा नाम.’’

‘‘तो तुम्हारा असली नाम क्या है?’’

‘‘असलियत फिर कभी, बाय.’’

‘‘बाय, हमेशा ऐसे ही टाल जाते हो, कह देती हूं अगर अगली बार तुम ने अपना नाम नहीं बताया और अपना चेहरा नहीं दिखाया तो फिर सीधा ब्लौक कर दूंगी. याद रखना कोई मजाक नहीं.’’

‘‘एलओएल.’’

‘‘मजाक नहीं, बिलकुल सच.’’

‘‘चलचल देखेंगे.’’

‘‘ठीक है, फिर तो देख ही लेना.’’

हर रोज लड़की लड़के से उस का असली नाम और पहचान पूछती, लेकिन लड़का बात ही बदल देता. लड़की धमकी देती और लड़का हंस कर टाल देता. दरअसल, दोनों को ही पता था कि यह तो कोरी धमकी है, सच के धरातल से कोसों दूर दोनों एकदूसरे से बात किए बगैर रह नहीं पाते थे. कंप्यूटर की भाषा में चैटिंग उन की रोजमर्रा की जीवनचर्या का हिस्सा थी. दोनों के बीच दोस्ती की पहल लड़के की ओर से ही हुई थी. दोनों के सौ से अधिक म्यूचुअल फ्रैंड्स थे. लड़के ने लड़की की डीपी (प्रोफाइल फोटो) देखी और बस फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. लड़की ने भी इतने सारे म्यूचुअल फ्रैंड्स देख कर रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली. बस, बातचीत का सिलसिला चल निकला, कभी ऊटपटांग तो कभी गंभीर. दोनों एक ही शहर से थे, तो कई कौमन फ्रैंड्स भी निकल आए. एक दिन बातचीत करते हुए लड़की लड़के की पहचान पर अटक गई.

‘‘तुम ने अपना चेहरा क्यों छिपा रखा है यार, एकदम मिस्टीरियस मैन टाइप. बिलकुल अच्छा नहीं लगता, कभीकभी बिलकुल अजनबी सा लगता है.’’

‘‘एक बात बताऊं, मैं भीड़ में या सोशल साइट्स पर बहुत असहज महसूस करता हूं.’’

‘‘हम्म…क्यों? अगर ऐसा है तो सोशल साइट पर क्यों हो?’’

‘‘बिजनैस की वजह से यहां होना मजबूरी है.’’

‘‘ओके, ठीक है पर हम लोग इतने समय से एकदूसरे से बातें कर रहे हैं. हम दोनों के बीच राज जैसा तो कुछ होना नहीं चाहिए. मुझे तो अपना चेहरा दिखा ही सकते हो, प्लीज.’’

इस बार लड़का उस के आग्रह को टाल नहीं पाया. बिना नानुकुर के उस ने अपनी फोटो भेज दी.

‘‘ओएमजी. इस युग में भी इतनी घनी मूंछें, यहां आने के बाद तो सब की मूंछें सफाचट हो जाती हैं, एलओएल.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ तुम्हारा नाम स्वीटी है या मनु?’’

‘‘गेस करो.’’

‘‘उम्म्म…स्वीटी.’’

‘‘नहीं… मानवी नाम है मेरा. सहेलियां मनु कह कर बुलाती हैं. तुम्हारा नाम भी मनु ही है न?’’

‘‘नहीं….मानव नाम है, एलओएल. ओके, बाद में बातें करते हैं, मीटिंग का समय हो गया है.’’

‘‘ओके, बीओएल.’’

‘‘अब ये बीओएल का मतलब क्या हुआ?’’

‘‘बैस्ट औफ लक, बुद्धू.’’

‘‘ओके, बाय.’’

‘‘मतलब कुछ भी तो शौर्टकट.’’

‘‘हां…हाहाहा…बाय.’’

छोटे शहरों से युवक जब महानगरों का रुख करते हैं तो दोस्तों की संगत में सब से पहली कुर्बानी मूंछों की ही होती है. भले ही जवानी कब की गुजर गईर् हो, पर मूंछें छिलवा कर जवान दिखने की ख्वाहिश बनी रहती है. इस मामले में मानव थोड़ा अलग था. उसे अपनी मूंछें बेहद प्रिय थीं. बड़े शहर ने उस की मूंछों को नहीं छीना था. अपने सपनों को मूर्तरूप देने के लिए वह घर से पैसे लिए बिना महानगर भाग आया था. अपनी मेहनत और लगन से उस ने नौकरी तो पा ली, लेकिन मूंछें कटने नहीं दी. घनी मूंछें उस के चेहरे पर फबती थीं.

वास्तविक दुनिया में वह महिलाओं से दूर रहता था. उन से जल्दी घुलमिल नहीं पाया था, लेकिन आभासी दुनिया में महिलाओं से चैटिंग और फ्लर्टिंग करना उस की आदत थी. लफ्फाजी में उस से कोई नहीं जीत पाता था. उस की इसी काबिलीयत पर महिलाएं रीझ जाती थीं.

मानवी और मानव दोनों के नाम बिलकुल एक से थे, लेकिन दोनों एकदूसरे से एकदम अलग थे. जहां मानव किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेता, चाहे वह रिश्ते की ही क्यों न हो, वहीं मानवी के लिए छोटीछोटी चीजें भी महत्त्वपूर्ण हुआ करती थीं. वह टूट रहे रिश्तों को जोड़ने की कोशिश में लगी रहती. उस ने अपने मातापिता को अलग होते देखा था. वह अपनों के खोने का दर्द अच्छी तरह जानती थी.

उसे लगता था कि मर रहे रिश्ते में भी जान फूंकी जा सकती है, बशर्ते सच्चे दिल से इस के लिए कोशिश की जाए. मानवी और मानव की रुचि लगभग एक सी थीं. दोनों को ही पढ़ने और नाटक का शौक था. शेक्सपियर और उन का लिखा ड्रामा रोमियोजूलिएट दोनों के ही पसंदीदा थे. चैटिंग करते हुए वे घंटों रोमियोजूलिएट के संवाद बोलते हुए उन्हें जी रहे होते.

उन दोनों के कुछ चुनिंदा दोस्तों को इस की भनक लग चुकी थी. दोनों के कौमनफ्रैंड्स उन्हें रोमियोजूलिएट कह कर छेड़ने लगे थे.

मानव और मानवी दोनों हमउम्र थे. वे एक ही शहर के रहने वाले थे और महानगर में अपना भविष्य संवार रहे थे. मानवी भी उसी महानगर में नौकरी कर रही थी, जहां मानव की नौकरी थी. शुरुआत में हलकीफुलकी बातचीत से शुरू होने वाली चैटिंग धीरेधीरे 24 घंटे वाली चैटिंग में बदल गई थी. कभी स्माइली, कभी इमोजी, कभी साइन लैंग्वेज तो कभी हम्म… नजदीकियां बढ़ीं और बात वीडियो कौलिंग तक पहुंच गई.

दोनों साइबर लव की गिरफ्त में आ चुके थे. अब तक साक्षात मुलाकात यानी आमनासामना नहीं हुआ था, लेकिन प्यार परवान चढ़ चुका था. साइबर दुनिया में एकदूसरे की बातों का वैचारिक विरोध करते हुए एक समय ऐसा आया जब दोनों एकदूसरे के कट्टर समर्थक हो गए. पहली बार दोनों एक कौफी शौप पर मिले. मोबाइल पर दिनरात चाहे जितनी भी बातें कर लें पर इस पहली मुलाकात में मानव की नजरें लगातार झुकी रहीं. मानवी की तरफ उस ने नजर उठा कर भी नहीं देखा. यही नहीं, उस से बातें करते हुए मानव के हाथपांव कांप रहे थे, जो लड़का सोशल नैटवर्किंग साइट पर इतना बिंदास हो, उस का यह रूप देख कर मानवी की हंसी रुक नहीं रही थी और मानव अपनी झेंप मिटाने के लिए इधरउधर की बातें करने और जबरदस्ती चुटकुले सुनाने की कोशिश कर रहा था. बीतते समय के साथ मानवी का मानव पर भरोसा गहरा होता चला गया.

दुनिया से बेखबर दोनों ने उस महानगर में एकसाथ, एक ही फ्लैट में रहने का निर्णय ले लिया. अब वे दोनों एकदूसरे के पूरक और साझेदार बन गए थे. मानव कभी खुल कर नहीं हंसता था. और मानवी की खुशी अकसर मानव के होंठों पर छिपी मुसकान में फंस कर रह जाती. गरमी अपने चरम पर थी, पर इश्क के मौसम ने दोनों के एहसास ही बदल डाले थे. एक रोज जब गरमी के उबाऊ मौसम से ऊब कर सूखी सी दोपहर उबासी ले रही थी. पारा 40 डिगरी पहुंचने को था. गरमी से बचने के लिए लोग अपने घरों में दुबके पड़े थे. प्यासी चिडि़यां पानी की खोज में इधरउधर भटक रही थीं. उस रोज दोनों ही जल्दी घर चले आए थे. उस उबाऊ और तपती दोपहरी में सारे बंधन टूट गए. उमस और इश्क अपने उत्कर्ष पर था.

उस दिन घर, घर नहीं रहा पृथ्वी बन गया और मानवमानवी पूरी पृथ्वी पर अकेले, बिलकुल आदमहौआ की तरह. तृप्त मानव गहरी नींद सो गया, लेकिन मानवी की आंखों में नींद नहीं थी. मानवी के होंठों पर मुसकान तैर गई. देर तक उस सुखद एहसास को वह महसूस करती रही.

उस दिन मानवी को एक पूर्ण महिला होने का एहसास हुआ. उस का अंगअंग खिल चुका था, चेहरे पर कांति महसूस हो रही थी. चाल में अल्हड़पन की जगह लचक आ गई थी. उन दोनों के बीच कोई कमिटमैंट नहीं था, कोई सात फेरे और वचन नहीं…. न ही मांग में सिंदूर या मंगलसूत्र का बंधन, लेकिन एक भरोसा था. उसी भरोसे पर तो मानवी ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया.

मानवी की दुनिया अब मानव के इर्दगिर्द सिमटने लगी थी. उसे अब सोशल साइट्स पर महिलाओं के संग मानव की फ्लर्टिंग पसंद नहीं आती थी. इस पर मानवी अकसर अपना गुस्सा जाहिर भी कर देती और मानव खामोश रह जाता.

छोटे शहर की यह लघु प्रेमकथा धीरेधीरे बड़ी कहानी में बदलती जा रही थी. मानव की बुलेट की आवाज मानवी दूर से ही पहचान जाती. जब दोनों अपने शहर जाते तो ये बुलेट ही थी जो दोनों को मिलवा पाती. मानव की बुलेट धड़धड़ाती, मानवी की खिड़की पर आ जाती. एकदूसरे की एक झलक पाने के लिए बेताब दोनों के होंठों पर मुसकान थिरक उठती. दोनों आपस में अकसर वैसे ही बातें करने लगते जैसे की सचमुच के रोमियोजूलिएट हों. दोनों की लवलाइफ भी बुलेट की तरह ही तेज गति से भाग रही थी, अंतर सिर्फ इतना था कि बुलेट शोर मचाती है और यह बेहद खामोश थी. दिन बीत रहे थे. कुछ करीबी दोस्तों के सिवा उन दोनों के इस सहजीवन की खबर किसी को नहीं थी.

उन्हें एकसाथ रहते 2 साल हो गए थे. एक दिन मानवी के मोबाइल पर उन दोनों की एक अंतरंग तसवीर किसी अनजान नंबर से आई. यह देख मानवी के होश उड़ गए. वह इस बारे में बात करने के लिए मानव को ढूंढ़ने लगी, पर मानव उसे पूरे घर में कहीं नहीं मिला. उस का फोन भी स्विच औफ आ रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उन की यह तसवीर किस ने ली. इतनी अंतरंग तसवीर या तो वह खुद ले सकती थी या फिर मानव.

उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह तसवीर भेजने वाले तक पहुंची कैसे? उस ने तसवीर भेजने वाले नंबर पर फोन लगाया पर वह भी स्विच औफ था. उस के बाद मानवी ने एक कौमनफ्रैंड को फोन कर के सारी बातें उसे कह सुनाईं. उस ने थोड़ी ही देर में इस संबंध में बहुत सारी ऐसी सूचनाएं मानवी को दीं, जिस से उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. उस ने बताया कि उन दोनों की और भी ऐसी कई तसवीरें व वीडियोज मानव ने एक साइट पर अपलोड कर रखे हैं.

‘‘मानव ने?’’

‘‘हां, मानव ने.’’

मानवी को यह सुन कर अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. उसे लग रहा था कि शायद उन दोनों के रिश्ते को वह कौमनफ्रैंड तोड़ना चाहता है, इसलिए ऐसा कह रहा है, लेकिन फिर मानव का फोन स्विच औफ क्यों आ रहा है? ऐसा तो वह कभी नहीं करता है. अब मानवी को पूरी दुनिया अंधकारमय लगने लगी. उसे अपने उस दोस्त की बातों पर यकीन होेने लगा था. क्या इसलिए उस ने कभी खुल कर अपने प्यार का इजहार नहीं किया? वह फूटफूट कर रोने लगी. ‘‘मैं मान नहीं सकती, ही लव्स मी, ही लव्स मी यार,’’ मानवी ने चिल्लाते हुए कहा. सिसकियों की वजह से उस के शब्द अस्पष्ट थे. जब अंदर का तेजाब बह निकला तो वह पुलिस स्टेशन की ओर चल पड़ी. शिकायत दर्ज करवाने के दौरान उसे कई जरूरी गैरजरूरी सवालों से दोचार होना पड़ा. मानवी हर सवाल का जवाब बड़ी दृढ़ता से दे रही थी.

बात जब बिना ब्याह के सहजीवन की आई और महिला कौंस्टेबल उसे ही कटघरे में खड़ी करने लगी, तो उस के सब्र का बांध टूट गया. उस का दम घुटने लगा. वह वहां से उठी और घर के लिए चल पड़ी. उस दिन हर नजर उसे नश्तर की तरह चुभ रही थी, सब की हंसी व्यंग्यात्मक लग रही थी. उस दिन उसे सभी पुरुषों की आंखों में हवस की चमक दिख रही थी. मानवी शर्म से पानीपानी हुए जा रही थी. किसी से नजर मिलाने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. घर पहुंचने के साथ ही उस ने मानव पर चिल्लाना शुरू कर दिया. क्षोभ और शर्मिंदगी से वह पागल हुई जा रही थी. हर कमरे में जा कर वह मानव को ढूंढ़ रही थी, लेकिन मानव तो कहीं था नहीं. वह तो वहां से जा चुका था, हमेशा के लिए.

आभासी दुनिया से शुरू हुआ प्यार आभासी हो कर ही रह गया. उसे दुनिया के सामने नंगा कर मानव भाग चुका था. इस धोखे के लिए मानवी बिलकुल तैयार नहीं थी. उस ने संपूर्णता के साथ मानव को स्वीकार किया था. वह मानव के इस ओछेपन को स्वीकार नहींकर पा रही थी. 2 साल तक दोनों सहजीवन में रहे थे. मानवी उस की नसनस से वाकिफ थी, लेकिन ऐसे किसी धोखे की गंध से वह दूर रह गई. उसे आत्मग्लानि हो रही थी, दुख हो रहा था. वह दोबारा पुलिस के पास नहीं जाना चाहती थी. घर पर कुछ बता नहीं सकती थी.

मानव ने जो किया उस की माफी भी संभव नहीं थी. मानवी ने सोशल मीडिया के जरिए मानव को ट्रैक करना शुरू किया. जालसाजी करने वाला शख्स हमेशा अपने बचाव की तैयारी के साथ आगे बढ़ता है. मानव भी फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्वीटर सब की पुरानी आईडी को ब्लौक कर नई आईडी बना चुका था. लेकिन मानवी भी हार मानने वाली नहीं थी. एक पुरानी कड़ी से उस का नया प्रोफाइल मिल गया. मानवी ने अपना एक नकली प्रोफाइल बनाया और उस से दोस्ती कर ली. नकली प्रोफाइल के जरिए उस ने मानव को मजबूर कर दिया कि वह उस से मिले. एक बार फिर मानव आत्ममुग्ध हुआ जा रहा था. मिलने की बात सोच कर बारबार वह अपनी मूंछों पर ताव दे रहा था. उस की आंखों में वही शैतानी चमक थी और होंठों पर हंसी थिरक रही थी.

दोनों के मिलने का स्थान मानव के औफिस का टैरिस गार्डन तय हुआ. मानव बेसब्री से आभासी दुनिया की इस नई दोस्त का इंतजार कर रहा था. एकएक पल गुजारना उस के लिए मुश्किल हो रहा था.

थोड़े इंतजार के बाद मानवी उस के सामने थी. उसे देख कर मानव चौंक पड़ा. जब तक वह कुछ समझ पाता, कुछ बोलता, मानवी बिजली की तेजी से आई और तेजाब की पूरी शीशी उस के चेहरे पर उड़ेल दी. पहले ठंडक और फिर जलन व दर्द से वह छटपटाने लगा.

मानवी पर तो जैसे भूत सवार था. वह चिल्लाती जा रही थी, ‘‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की, अब मैं तुम्हें बरबाद करूंगी. इसी चेहरे से तुम सब को छलते हो न. अब यह चेहरा ही खत्म हो जाएगा.’’ मानव अवाक रह गया. उसे इस अंजाम की उम्मीद न थी. उस के सोचनेसमझने की शक्ति खत्म हो गई थी. मानवी चीख रही थी, ठहाके लगा रही थी. मानव का चेहरा धीरेधीरे वीभत्स हो रहा था. वह छटपुटा रहा था.

उस की इस हालत को देख कर मानवी को एहसास हुआ कि वह अब भी उस इंसान से प्यार करती है. उस की नफरत क्षणिक थी, लेकिन प्रेम स्थायी है. उस से उस की यह छटपटाहट बरदाश्त नहीं हो पा रही थी. देखते ही देखते मानवी ने भी उस ऊंची छत से छलांग लगा दी और इस तरह 2 जिंदगियां साइबर ट्रैप में फंस कर तबाह हो गईं.

Crime Story: तलाश एक कहानी की – क्या वृंदा ने मोहन को फंसाया

Crime Story: वृंदा की रचनाओं में एक कशिश थी जो उन्हें पढ़ने को मजबूर करती थी. कुरसी पर खाली बैठाबैठा बस सिगरेट के धुएं के छल्ले हवा में उड़ाए जा रहा था. कई दिनों से कोई अदद कहानी लिखने की सोच रहा था लेकिन किसी कहानी का कोई सिरा पकड़ में ही नहीं आ रहा था. कभी एक विषय ध्यान में आता, फिर दूसरा, तीसरा, चौथा. लेकिन अंजाम तक कोई नहीं पहुंच रहा था. यह लिखने की बीमारी भी ऐसी है कि बिना लिखे रहा भी तो नहीं जाता.

तभी मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर देखा तो अज्ञात नंबर.

‘‘हैलो.’’

‘‘जी हैलो, नमस्ते.’’

दूसरी ओर से आई आवाज किसी औरत की थी. मैं ने पूछा, ‘‘कौन मोहतरमा बोल रही हैं?’’

‘‘जी, मैं वृंदा कीरतपुर से. क्या मोहनजी से बात हो सकती है?’’

‘‘जी, बताइए. मोहन ही बोल रहा हूं.’’

‘‘जी, बात यह थी कि मैं भी कुछ कहानीकविताएं लिखती हूं. आप के दोस्त प्रीतम ने आप का नंबर दिया था. आप का मार्गदर्शन चाहती हूं.’’

‘‘क्या आप नवोदित लेखिका हैं?’’

‘‘हां जी, लेकिन लिखने की बहुत शौकीन हूं.’’

‘‘वृंदाजी,  आप ऐसा करें कि अभी आप लोकल के पत्रपत्रिकाओं में अपनी रचनाएं प्रकाशन के लिए भेजें. जब आत्मविश्वास बढ़ जाए तो राष्ट्रीय स्तर की पत्रपत्रिकाओं में अपनी रचनाएं भेजें. और हां, अच्छा साहित्य खूब पढ़ें.’’

यह कहते हुए वृंदा को मैं ने कुछ पत्रपत्रिकाओं के नामपते बता दिए.

उसे पत्रपत्रिकाओं में लिखने का तरीका भी बता दिया.

इस औपचारिक वार्त्तालाप के बाद मैं ने वृंदा का नंबर उस के नाम से सेव कर लिया. यह हमारा व्हाट्सऐप नंबर भी था. ‘माई स्टेटस’ पर उस की पोस्ट आने लगी.

कभीकभी मैं उस की पोस्ट देख और पढ़ लेता. इसी से पता चला कि वृंदा 2 बच्चों की मां है और किसी सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापिका है. वृंदा की पोस्ट में सुंदर, साहित्यिक कविताएं होतीं. मैं उन्हें पढ़ कर काफी प्रभावित होता. एक नवोदित रचनाकार इतनी सुंदर और ऐसी साहित्यिक रचनाएं लिखे तो गर्व होना स्वाभाविक था.

वृंदा की रचनाओं के विषय के अनुसार मैं ने उसे अमुकअमुक पत्रिकाओं में प्रकाशन के लिए प्रेषित करने की सलाह दी. कोई रचना मुझे ज्यादा ही पसंद आती तो मैं उस पर उसी के अनुरूप अपना कमैंट भी लिख भेजता.

धीरेधीरे वृंदा की रचनाएं रूमानियत के सांचे में ढलने लगीं. प्रेम के अलाव की तपिश में पकने लगीं. उन से इश्क का धुआं उठने लगा. मोहब्बत का माहौल बनने लगा. उन्हें पढ़ कर ऐसा एहसास होता कि वे दिल में उतर रही हैं. उन्हें पढ़ कर आनंद की अनुभूति तो होती, फिर भी मैं ऐसी रचनाओं पर अपने कमैंट देने से बचता.

एक दिन वृंदा ने अपनी कोई पुरस्कृत रचना मेरे व्हाट्सऐप पर प्रेषित की और उस पर मेरी टिप्पणी मांगी. रचना वाकई काबिलेतारीफ थी. मैं ने उस पर अपनी संतुलित टिप्पणी भेज दी.

इस के बाद मेरी रुचि वृंदा की रचनाओं में जाग्रत होने लगी. उस की रचनाओं में एक कशिश थी जो उन को पढ़ने को मजबूर करती थी. उन की रूमानियत दिल को छू लेती. उन को पढ़ कर कोई मुश्किल से ही अपनेआप को उन पर कमैंट देने से रोक सकता था. हर रचना ऐसी होती जैसे पढ़ने वाले के लिए ही लिखी गई हो. कई बार तो वृंदा की रचनाएं इतनी व्यक्तिगत होतीं कि उन्हें पढ़ कर लगता कि निश्चित ही वह किसी की मोहब्बत के सागर में गोते लगा रही है.

एक दिन मैं ने वृंदा को मैसेज भेजा, ‘‘वृंदा, इतनी भावना प्रधान रचनाएं कैसे लिख लेती हो?’’

जवाब तुरंत हाजिर था, ‘‘प्रेम.’’

इस ढाई आखर के ‘प्रेम’ के साथ 2 प्यारे इमोजी बने हुए थे. मैं अचंभित था कोई शादीशुदा महिला किसी अपरिचित व्यक्ति के सामने इतनी शीघ्रता से कैसे अपने प्रेम का प्रकटीकरण कर सकती है. मन में एकसाथ अनेक सवाल उठ खड़े हुए. कौन है वह खुशनसीब इंसान जिस के प्यार में वृंदा डूबी हुई है? क्या वह अपने परिवार में खुश नहीं जो उसे प्रेम की तलाश कहीं और करनी पड़ रही है? इस का पति भी तो इस की पोस्ट पढ़ता होगा? शायद नहीं. नहीं तो अब तक बवंडर हो गया होता. वृंदा की पोस्ट ही इतनी इश्किया थी.

अंत में जेहन में एक सवाल और उठा. यह वृंदा कहीं मुझ से तो… यह सोचते ही मेरे चेहरे पर मुसकान खिल उठी. आदमी की आदत है कि वह खयाली पुलाव पकापका कर खुश होता रहता है. इतनी खूबसूरत महिला को मुझ से इश्क हो जाए तो कहना ही क्या? तभी मुझे अपने परिवार का खयाल आया और मन में फूट रहे लड्डुओं में खटास उत्पन्न हो गई. लेकिन यह पहेली पहेली ही रही कि वृंदा किस पर फिदा है.

वृंदा के इश्किया मिजाज को देखते हुए अपना मन भी इश्किया हो उठा. अब मैं उस की पोस्ट पर कमैंट देते समय इश्किया शब्दों का प्रयोग करने लगा. इस कम्बख्त इश्क का मिजाज ही ऐसा होता है, न उम्र देखता है, न रंग देखता है. बस, सब को अपने रंग में रंग लेता है. बड़ेबड़े

रसूखदार, इज्जतदार इश्क के परवाने बन प्रेम की शमा में यों ही न भस्म हो बैठे.

हम भी इश्किया परवाने बन प्रेम की शमा पे परवाना बन जलने को बेचैन हो उठे.

हम ने भी शर्मलिहाज छोड़ वृंदा की पोस्टों पर एक से बढ़ कर एक इश्किया कमैंट दे मारे.

वृंदा समझ गई कि हम पर इश्क का भूत सवार हो रहा था. हमारा इश्किया भूत उतारने के मकसद से या फिर किसी और सिरफिरे को ठीक करने के लिए एक दिन उस ने एक चुटकुला पोस्ट किया, लड़का लड़की से- ‘क्या तुम्हारा कोई पुरुष मित्र है?’

लड़की- ‘हां, है.’

लड़का- ‘तुम इतनी खूबसूरत हो मोहतरमा कि तुम्हारे 2 पुरुष मित्र होने चाहिए.’

लड़की- ‘मेरे 3 पुरुष मित्र हैं और तुम्हें अपना पुरुष मित्र बना कर, मैं उन तीनों को धोखा देना नहीं चाहती.’

वृंदा ने उस चुटकुले के नीचे 3 हंसते हुए इमोजी भी बना रखे थे. मुझे लगा, यह मेरे लिए ही संकेत है और वृंदा के पहले से ही कुछ पुरुष मित्र हैं. मैं ने उस के इस चुटकुले पर कोई कमैंट तो नहीं लिखा लेकिन जैसे को तैसा जवाब देने की तर्ज पर 5 हंसते हुए इमोजी जवाब में भेज दिए.

किसी औरत के दिल को जलाने के लिए इस से बेहतर तरीका नहीं हो सकता. उस ने मेरे 5 इमोजी का अर्थ यह लगाया कि मेरी 5 महिला मित्र हैं. इस से आहत हो वृंदा ने अगले 2-3 दिनों तक कोई पोस्ट नहीं भेजी. लगता था वह सौतिया डाह से पीडि़त हो गई.

इस के बाद वृंदा की पोस्ट रूमानी होने के बजाय गमगीन और पलायनवादी हो गईं. वह अपनी पोस्ट के जरिए यह दर्शाने लगी कि वह दुनिया की सब से दुखी औरत है. घर में तो उसे एक क्षण का चैन नहीं, स्कूल में आ कर ही उसे कुछ राहत मिलती है. अब मैं उस की पोस्ट पढ़ तो लेता था लेकिन कमैंट देना बिलकुल बंद कर दिया क्योंकि जरूरी नहीं था कि उस की पोस्ट मेरे लिए थी.

एक दिन 10 बजे के आसपास वृंदा ने एक बड़ी ही दुखभरी पोस्ट प्रेषित की, ‘छोड़ जाऊंगी तेरे आसपास, मैं खुद को इस तरह, रोज तिनकेतिनके सा…’ यह ऐसी पोस्ट थी जिसे पढ़ कर किसी भी आशिक का दिल पिघल सकता था. लेकिन यहां तो आशिक का ही पता नहीं था. इसलिए मेरे लिए संवेदना प्रकट करने का कोई सवाल ही नहीं था. महबूबा महबूब के प्रेम से धोखा खा कर इतनी आहत नहीं होती है जितनी उस की उपेक्षा से.

वृंदा लगभग हर समय औनलाइन रहती थी लेकिन आज ‘माई स्टेटस’ पर अपनी यह दुखभरी पोस्ट 10 बजे के आसपास डाल कर औफलाइन हो गई. मैं यह सोच कर कि औफलाइन होने के अनेक कारण हो सकते हैं, अपने काम में व्यस्त हो गया.

एक बजे के आसपास किसी ने डोरबेल बजाई. मैं ने खिड़की से झांक कर देखा तो मेरे होश उड़ गए. नीचे दरवाजे के सामने 2 पुलिसवाले खड़े थे. आखिर मेरे घर पुलिस क्यों आई थी, मैं ने तो अपनी जानकारी में कोई अपराध नहीं किया था. फिर पुलिस का मेरे घर पर क्या काम.

यही सब सोचता हुआ  मैं दरवाजा खोलने पहुंचा. दरवाजा खोलते ही उन में से एक बोला,

‘‘क्या आप ही मोहन सिंह हैं?’’

‘‘जी हां, बताइए.’’

‘‘आप को एक तफतीश के लिए कीरतपुर थाने बुलाया गया है. इंस्पैक्टर साहब को आप से कुछ सवालात करने हैं.’’

‘‘लेकिन मामला क्या है?’’

‘‘यह सब तो इंस्पैक्टर साहब ही बताएंगे. हम से तो यह कहा है कि आप को थाने ले आएं. आप तैयार हो कर हमारे साथ चलें.’’

पुलिस के मेरे घर आने की खबर पूरे महल्ले में आग की तरह फैल गई. हर कोई यह जानने को उत्सुक था कि मैं ने कौन सा अपराध किया है. इस से पहले कि मेरे घर पर मजमा लगता, मैं ने अपने परिवार का ढाढ़स बंधाया और उन 2 पुलिसवालों के साथ थाने की ओर चल पड़ा.

थाने में इंस्पैक्टर के सामने मुझे पेश किया गया. उन्होंने मुझ से पूछताछ शुरू की.

‘‘आप लेखक हैं?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘क्याक्या लिखते हैं?’’

‘‘कहानी, कविता, व्यंग्य आदि.’’

‘‘और रूमानियतभरी बातें भी?’’ इंस्पैक्टर ने प्रश्नवाचक दृष्टि से मेरी ओर देखते हुए कहा.

‘‘जी, कहानी के हिसाब से.’’

‘‘और व्हाट्सऐप पर भी रूमानियत  का खूब तड़का लगाते हो,’’ इंस्पैक्टर ने कटाक्ष किया.

‘‘जी, मैं समझा नहीं.’’

‘‘अभी समझाता हूं. वैसे, आप बड़े सज्जन बनने की कोशिश कर रहे हैं. फिर यह क्या है?’’

यह कहते हुए इंस्पैक्टर ने वृंदा की पोस्ट और मेरे कमैंट्स की डिटेल मेरे सामने रख दी.

‘‘आप को पता है लेखक महोदय. आप के कमैंट्स के कारण वृंदा ने सुबह 11 बजे के आसपास जहर खा कर जान देने की कोशिश की. आप एक शादीशुदा महिला से प्रेम की पींग बढ़ा रहे थे. आप को शर्म आनी चाहिए अपनेआप पर. आप के खिलाफ वृंदा को आत्महत्या के लिए उकसाने का केस बनता है.’’

यह सुनते ही मेरी हालत पतली हो गई. फिर भी मैं ने हिम्मत जुटाते हुए पूछा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, ऐसे कैसे हो सकता है, मैं तो आज तक उस से मिला भी नहीं?’’

‘‘देखिए, अभी तो व्हाट्सऐप डिटेल देखने के बाद शक के आधार पर आप को यहां बुलवाया गया है. अभी वृंदा बेहोशी की हालत में है. उस के होश में आने पर उस के बयान के आधार पर ही यह निर्णय लिया जाएगा कि आप को छोड़ें या गिरफ्तार करें. आप के सम्मान के कारण आप को लौकअप में बंद नहीं कर रहा हूं किंतु वृंदा के बयान होने तक आप पुलिस की निगरानी में थाने में ही रहेंगे.’’

स्पष्ट था, मेरी इज्जत का जनाजा पूरी तरह से निकल चुका था. मैं जानता था कि मेरा परिवार कितनी तकलीफ में होगा. नातेरिश्तेदारों और महल्ले वालों को भी भनक लग चुकी थी कि किसी औरत से प्रेमप्रसंग के मामले में मुझे थाने में बैठा कर रखा गया है. विरोधियों की तो बांछें ही खिल गई थीं. उन के लिए तो मैं काला सियार था.

लगभग 3 बजे शाम को वृंदा बयान देने के काबिल हुई. इंस्पैक्टर ने खुद अस्पताल जा कर उस से जहर खाने का कारण पूछा. मेरी सांसें अटकी हुई थीं कि वृंदा न जाने क्या बयान दे. अगर उस ने मेरा नाम भी ले लिया तो समझो मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाना तय है. थाने में बैठेबैठे मेरा दिल कांप रहा था.

हवालात जाने का डर लगातार सता रहा था.

इंस्पैक्टर साहब वृंदा का बयान ले कर अस्पताल से थाने आए. मुझे देख कर मुसकराए और कहा, ‘‘मोहन बाबू, आप बच गए. हमें क्षमा करना जो आप को इतनी तकलीफ दी. वृंदा घरेलू कलह से तंग थी जिस के कारण उस ने जहर खा कर जान देने की कोशिश की. अब आप घर जा सकते हैं. पुलिस आप को तंग नहीं करेगी.’’

‘‘लेकिन इंस्पैक्टर साहब, मेरे सम्मान पर जो आंच आई है, उस का क्या?’’

‘‘इस के लिए मैं मोहन बाबू आप से फिर से क्षमा चाहता हूं. लेकिन शक के आधार पर पुलिस को कई बार ऐसी कार्यवाही करनी पड़ती है. आप इस पर एक अच्छी सी कहानी लिख सकते हैं जिस से औरों को सबक मिले कि महिलाओं की पोस्ट पर कमैंट करने में सावधानी बरतें.’’

यह कह कर इंस्पैक्टर साहब मुसकराए. बदले में मैं भी मुसकरा पड़ा. कहानी लिखने की मेरी तलाश पूरी हो चुकी थी.

Crime Story: अपराध – निलकंठ अपनी पत्नी को क्यों जान से मारना चाहता था

Crime Story: एंबुलैंस का सायरन बज रहा था. लोग घबरा कर इधरउधर भाग रहे थे. छुट्टी का दिन होने से अस्पताल का आपातकालीन सेवा विभाग ही खुला था, शोरशराबे से डाक्टर नीलकंठ की तंद्रा भंग हो गई.

घड़ी पर निगाह डाली, रात के 10 बज कर 20 मिनट हो रहे थे. उसे ऐलिस के लिए चिंता हो रही थी और उस पर क्रोध भी आ रहा था. 9 बजे वह उस के लिए कौफी बना कर लाती थी. वैसे, उस ने फोन पर बताया था कि वह 1-2 घंटे देर से आएगी.

‘‘सर,’’ वार्ड बौय ने आ कर कहा, ‘‘एक गंभीर केस है, औपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया है.’’

‘‘आदमी है या औरत?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा.

‘‘औरत है,’’ वार्ड बौय ने उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि आत्महत्या का मामला है.’’

‘‘पुलिस को बुलाना होगा,’’ नीलकंठ ने पूछा, ‘‘साथ में कौन है?’’

‘‘2-3 पड़ोसी हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ औपरेशन की तैयारी करने को कहो. मैं आ रहा हूं. और हां, सिस्टर ऐलिस आई हैं?’’

‘‘जी, अभीअभी आई हैं. उस घायल औरत के साथ ही ओटी में हैं,’’ वार्ड बौय ने जाते हुए कहा.

राहत की सांस लेते हुए नीलकंठ ने कहा, ‘‘तब तो ठीक है.’’

वह जल्दी से ओटी की ओर चल पड़ा. दरअसल, मन में ऐलिस से मिलने की जल्दी थी, घायल की ओर ध्यान कम ही था.

ऐलिस को देखते ही वह बोला, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी? मैं तो चिंता में पड़ गया था.’’

‘‘सर, जल्दी कीजिए,’’ ऐलिस ने उत्तर दिया, ‘‘मरीज की हालत बहुत खराब है. और…’’

‘‘और क्या?’’ नीलकंठ ने एप्रन पहनते हुए पूछा, ‘‘सारी तैयारी कर दी है न?’’

‘‘जी, सब तैयार है,’’ ऐलिस ने गंभीरता से कहा, ‘‘घायल औरत और कोई नहीं, आप की पत्नी सुरमा है.’’

‘‘सुरमा,’’ वह लगभग चीख उठा.

सुबह ही नीलकंठ का सुरमा से खूब झगड़ा हुआ था. झगड़े का कारण ऐलिस थी. नीलकंठ और ऐलिस का प्रणय प्रसंग उन के विवाहित जीवन में विष घोल रहा था. सुबह सुरमा बहुत अधिक तनाव में थी, क्योंकि नीलकंठ के कोट पर 2-4 सुनहरे बाल चमक रहे थे और रूमाल पर लिपस्टिक का रंग लगा था. सुरमा को पूरा विश्वास था कि ये दोनों चिह्न ऐलिस के ही हैं. कुछ कहने को रह ही क्या गया था? पूरी कहानी परदे पर चलती फिल्म की तरह साफ थी.

झुंझला कर क्रोध से पैर पटकता हुआ नीलकंठ बाहर निकल गया.

जातेजाते सुरमा के चीखते शब्द कानों में पड़े, ‘आज तुम मेरा मरा मुंह देखोगे.’

ऐसी धमकियां सुरमा कई बार दे

चुकी थी. एक बार नीलकंठ ने

उसे ताना भी दिया था, ‘जानेमन, जीना जितना आसान है, मरना उतना ही मुश्किल है. मरने के लिए बहुत बड़ा दिल और हिम्मत चाहिए.’

‘मर कर भी दिखा दूंगी,’ सुरमा ने तड़प कर कहा था, ‘तुम्हारी तरह नाटकबाज नहीं हूं.’

‘देख लूंगा, देख लूंगा,’ नीलकंठ ने विषैली मुसकराहट के साथ कहा था, ‘वह शुभ घड़ी आने तो दो.’

आखिर सुरमा ने अपनी धमकी को हकीकत में बदल दिया था. उन का घर 5वीं मंजिल पर था. वह बालकनी से नीचे कूद पड़ी थी. इतनी ऊंचाई से गिर कर बचना बहुत मुश्किल था. नीचे हरीहरी घास का लौन था. उस दिन घास की कटाई हो रही थी. सो, कटी घास के ढेर लगे थे. सुरमा उसी एक ढेर पर जा कर गिरी. उस समय मरी तो नहीं, पर चोट बहुत गहरी आई थी.

शोर मचते ही कुछ लोग जमा हो गए, उन्होंने सुरमा को पहचाना और यही ठीक समझा कि उसे नीलकंठ के पास उसी के अस्पताल में पहुंचा दिया जाए.

काफी खून बह चुका था. नब्ज बड़ी मुश्किल से पकड़ में आ रही थी. शरीर का रंग फीका पड़ रहा था. नीलकंठ के मन में कई प्रश्न उठ रहे थे, ‘सुरमा से पीछा छुड़ाने का बहुत अच्छा अवसर है. इस के साथ जीवन काटना बहुत दूभर हो रहा है. हमेशा की किटकिट से परेशान हो चुका हूं. एक डाक्टर को समझना हर औरत के वश की बात नहीं, कितना तनावपूर्ण जीवन होता है. अगर चंद पल किसी के साथ मन बहला लिया तो क्या हुआ? पत्नी को इतना तो समझना ही चाहिए कि हर पेशे का अपनाअपना अंदाज होता है.’

सहसा चलतेचलते नीलकंठ रुक गया.

‘‘क्या हुआ, सर?’’ ऐलिस ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं यह औपरेशन नहीं कर सकता,’’ नीलकंठ ने लड़खड़ाते स्वर में कहा, ‘‘कोई डाक्टर अपनी पत्नी या सगेसंबंधी का औपरेशन नहीं करता, क्योंकि वह उन से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. उस के हाथ कांपने लगते हैं.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’ ऐलिस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जल्दी से डाक्टर जतिन को बुला लो,’’ नीलकंठ ने वापस मुड़ते हुए कहा. वह सोच रहा था कि औपरेशन में जितनी देर लगेगी, उतनी जल्दी ही सुरमा इस दुनिया से दूर चली जाएगी.

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ ऐलिस ने तनिक ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘डाक्टर जतिन को आतेआते एक घंटा तो लगेगा ही. लेकिन इतना समय कहां है? मैं मानती हूं कि आप के लिए पत्नी को इस दशा में देखना बड़ा कठिन होगा और औपरेशन करना उस से भी अधिक मुश्किल, पर यह तो आपातस्थिति है.’’

‘‘नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘यह डाक्टरी नियमों के विरुद्ध होगा और यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो.’’

‘‘ठीक है, कम से कम आप कुछ देखभाल तो करें,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘मैं अभी डाक्टर जतिन को संदेश भेजती हूं.’’

डाक्टर नीलकंठ जब ओटी में घुसा तो आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, कितने ही उद्गार मन में उठते और फिर बादलों की तरह गायब हो जाते थे.

सामने सुरमा का खून से लथपथ शरीर पड़ा था, जिस से कभी उस ने प्यार किया था. वे क्षण कितने मधुर थे. इस समय सुरमा की आंखें बंद थीं, एकदम बेहोश और दीनदुनिया से बेखबर. इतना बड़ा कदम उठाने से पहले उस के मन में कितना तूफान उठा होगा? एक क्षण अपराधभावना से नीलकंठ का हृदय कांप उठा, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उस के शरीर को झंझोड़ रही हो.

नीलकंठ ने कांपते हाथों से सुरमा के बदन से खून साफ किया. उस का सिर फट गया था. वह कितने ही ऐसे घायल व्यक्ति देख चुका था, पर कभी मन इतना विचलित नहीं हुआ था. वह सोचने लगा, क्या सुरमा की जान बचा सकना उस के वश में है?

लेकिन डाक्टर जतिन के आने से पहले ही सुरमा मर चुकी थी. नीलकंठ सूनी आंखों से उसे देख रहा था, वह जड़वत खड़ा था.

जतिन ने शव की परीक्षा की और धीरे से नीलकंठ के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘मुझे दुख है, सुरमा अब इस दुनिया में नहीं है. ऐलिस, नीलकंठ को केबिन में ले जाओ, इसे कौफी की जरूरत है.’’

ऐलिस ने आहिस्ता से नीलकंठ का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए ओटी से बाहर ले गई. कमरे में ले जा कर उसे कुरसी पर बैठाया.

‘‘सर, मुझे दुख है,’’ ऐलिस ने आहत स्वर में कहा, ‘‘सुरमा के ऐसे अंत की मैं ने कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी. मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.’’

नीलकंठ ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारा कोई दोष नहीं, कुसूर मेरा है.’’

नीलकंठ आंखें बंद किए सोच रहा था, ‘शायद सुरमा को बचा पाना मेरे वश से बाहर था, पर कोशिश तो कर ही सकता था. लेकिन मैं टालता रहा, क्योंकि सुरमा से छुटकारा पाने का यह सुनहरा अवसर था. मैं कलह से मुक्ति पाना चाहता था. अब शायद ऐलिस मेरे और करीब आ जाएगी.’

ऐलिस सामने कौफी का प्याला लिए खड़ी थी. वह आकर्षक लग रही थी.

पुलिस सूचना पा कर आ गई थी. औपचारिक रूप से पूछताछ की गई. यह स्पष्ट था कि दुर्घटना के पीछे पतिपत्नी के बिगड़ते संबंध थे, परंतु नीलकंठ का इस दुर्घटना में कोईर् हाथ नहीं था. नैतिक जिम्मेदारी रही हो, पर कानूनी निगाह से वह निर्दोष था. पोस्टमार्टम के बाद शव नीलकंठ को सौंप दिया गया. दोनों ओर के रिश्तेदार सांत्वना देने और घर संभालने आ गए थे. दाहसंस्कार के बाद सब के चले जाने पर एक सूनापन सा छा गया.

नीलकंठ को सामान्य होने में सहायता दी तो केवल ऐलिस ने. अस्पताल में ड्यूटी के समय तो वह उस की देखभाल करती ही थी, पर समय पा कर अपनी छोटी बहन अनीषा के साथ उस के घर भी चली जाती थी. चाय, नाश्ता, भोजन, जैसा भी समय हो, अपने हाथों से बना कर देती थी. धीरेधीरे नीलकंठ के जीवन में शून्य का स्थान एक प्रश्न ने ले लिया.

कई महीनों के बाद नीलकंठ ने एक दिन ऐलिस से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जैसी पत्नी ही पाना चाहता था. तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिलीं. यह सोच कर कभीकभी आश्चर्य होता है.’’

‘‘सर,’’ ऐलिस बोली, ‘‘सर.’’

नीलकंठ ने टोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे ‘सर’ मत कहा करो. अब तो हम दोनों अच्छे दोस्त हैं. यह औपचारिकता मुझे अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘क्या करूं,’’ ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘सर, आदत सी पड़ गई है, वैसे कोशिश करूंगी.’’

‘‘तुम मुझे नील कहा करो,’’ उस ने ऐलिस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मुझे अच्छा लगेगा.’’

ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘कोशिश करूंगी, वैसे है जरा मुश्किल.’’

‘‘कोई मुश्किल नहीं,’’ नीलकंठ हंसा, ‘‘आखिर मैं भी तो तुम्हें ऐलिस कह कर बुलाता हूं.’’

‘‘आप की बात और है,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘आप किसी भी संबंध से मुझे मेरे नाम से पुकार सकते हैं.’’

‘‘तो फिर किस संबंध से तुम मेरा नाम ले कर मुझे बुलाओगी?’’ नीलकंठ के स्वर में शरारत थी.

‘‘पता नहीं,’’ ऐलिस ने निगाहें फेर लीं.

‘‘तुम जानती हो, मेरे मन में तुम्हारे लिए क्या भावना है,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरे सूने जीवन में बहार बन कर प्रवेश करो.’’

‘‘यह तो अभी मुमकिन नहीं,’’ ऐलिस ने छत की ओर देखा.

‘‘अभी नहीं तो कोई बात नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘पर वादा तो कर सकती हो?’’ नीलकंठ को विश्वास था कि ऐलिस इनकार नहीं करेगी, शक की कोई गुंजाइश नहीं थी.

‘‘यह कहना भी मुश्किल है,’’ ऐलिस ने मेज पर पड़े चम्मच से खेलते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ नीलकंठ ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘आखिर हम अच्छे दोस्त हैं?’’

‘‘बस, दोस्त ही बने रहें तो अच्छा है,’’ ऐलिस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘यही कि अगर शादी कर ली तो इस बात की क्या गारंटी है,’’ ऐलिस ने एकएक शब्द तोलते हुए कहा, ‘‘कि मेरा भी वही हश्र नहीं होगा, जो सुरमा का हुआ? आखिर दुर्घटना तो सभी के साथ घट सकती है?’’

यह सुनते ही नीलकंठ को मानो सांप सूंघ गया. उस ने कुछ कहना चाहा, पर जबान पर मानो ताला पड़ गया था. ऐलिस ने साथ देने से इनकार जो कर दिया था.

Crime Story: भेड़िए – आखिर संगिता के कपड़ों में खून क्यों लगा था?

Crime Story: बेला तकरीबन 9-10 साल की लड़की थी. हरदम खिलखिलाने वाली और नटखट, जो गांव से अम्मांबाबा के साथ शहर में अपनी बड़ी बहन की दवा लेने आई थी.

शहर की चकाचौंध, भीड़भाड़ और ऊंचेऊंचे मकान देख कर बेला दंग रह गई थी. सड़क पर तेजी से इधरउधर भागती गाड़ियां और उन का शोर कान फाड़ देने जैसा था. किसी के पास इतना समय नहीं था कि किसी से बात भी कर ले. ऐसा लग रहा था कि किसी के पास सांस लेने की भी फुरसत नहीं थी.

“इस से अच्छा तो गांव है जहां लोगों में अपनापन तो दिखाई देता है,” कह कर बेला ने अपना मुंह बिचकाया.

बेला चारों तरफ देख ही रही थी कि सामने गुब्बारे वाले को देख कर उस का बालमन गुब्बारा लेने के लिए मचल गया और वह अम्मां को बिना बताए गुब्बारे वाले के पास चली गई.

गुब्बारा ले कर जब बेला वापस मुड़ी तो उसे कहीं भी अम्मांबाबा दिखाई नहीं दिए. वह घबरा गई और उन्हें पुकारते हुए ढूंढ़ने लगी, लेकिन उसे अम्मांबाबा कहीं नहीं मिले.

बेला को रोना आ रहा था, लेकिन वह रोई नहीं, क्योंकि अगर वह रोएगी तो भी यहां उस की सुनने वाला कोई नहीं था. हां, गांव होता तो लोग उस के पास आ जाते और उसे घर पहुंचा देते.

काफी समय बीत चुका था, लेकिन अभी तक बेला के अम्मांबाबा नहीं मिले थे. हाथ में पकड़ा गुब्बारा भी जैसे उसे चिढ़ा रहा था कि बिना अम्मां को बताए मुझे लेने आ गई, अब मजा आ रहा है न…

जैसेजैसे सूरज डूब रहा था, वैसेवैसे मासूम बेला की दहशत बढ़ती जा रही थी, क्योंकि उस ने अकसर अम्मांबाबा को यही कहते सुना था कि शहर में सब इनसान के रूप में भेड़िए रहते हैं, जो मासूम लड़कियों को अपना शिकार बना लेते हैं.

यही वजह है कि बेला के अम्मांबाबा उसे जल्दी कहीं नहीं जाने देते. वह बस गांव में अपनी सहेली पिंकी, संगीता और फूलबानो के साथ खेलती और उन के साथ ही स्कूल जाती.

“अरे, यह लड़की इतनी रात को अकेली कहां घूम रही है? किसी गांव की लगती है,” कह कर कुछ लोग बेला की तरफ बढ़े.

उन लोगों की आवाज सुन कर बेला चौंक गई. उन्हें अपनी तरफ आते देख कर उसे लगा कि कहीं ये वही भेड़िए तो नहीं जो उसे नोच कर खा जाएंगे?

यह सोचते ही बेला फौरन वहां से भाग खड़ी हुई. वे लोग उसे आवाज ही लगाते रहे, पर वह सड़क पर भागती चली गई. वह तब तक नहीं रुकी जब तक पूरी तरह से थक नहीं गई.

बेला से अब एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा रहा था. वह वहीं एक खाली पड़े चबूतरे पर बैठ गई. उसे अब भूख भी बहुत तेज लगी थी, लेकिन यहां उसे कौन खाने को देता? अगर वह घर पर होती तो अम्मां उस के लिए गरमागरम दालभात ले आती.

बेला ने इधरउधर देखा. चारों ओर सन्नाटा फैल गया था. अब उसे बहुत डर लग रहा था और अपने बाबा की बहादुर लाडो की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी.

तभी सामने कुछ ही दूरी पर बेला को एक औरत खड़ी दिखाई दी, जो काफी संजीसवरी थी. उस के हाथों में एक पर्स भी था. उस ने सोचा कि क्यों न वह उस से मदद मांगे.

बेला उस औरत के पास जाने की सोच ही रही थी कि तभी उस औरत के पास एक बड़ी सी गाड़ी आ कर रुकी और वह उस में बैठ कर कहीं चली गई.

अब बेला किस से मदद मांगे? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह फिर उठी और एक ओर चल दी. सामने फिर कुछ लोग उस की ओर आते दिखे. वह और ज्यादा डर गई. वह फिर भागने को हुई और जैसे ही भागी तो थकान और भूख की वजह से चक्कर खा कर वहीं गिर गई. उसे गिरता देख कर वे लोग उस के पास आ गए और उठाने लगे.

“छोड़ दो मुझे… मुझे नोचनोच कर मत खाना. मैं अब कभी शहर नहीं आऊंगी. न ही अम्मांबाबा को बिना बताए गुब्बारा लेने जाऊंगी,” बेला बेतहाशा चीखती जा रही थी.

बेला की बातें सुन कर वे लोग समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर लड़की यह बोल क्या रही है? वे उस से कुछ पूछते तब तक वह बेहोश हो चुकी थी.

वे लोग मजदूर थे, जो काम खत्म करने के बाद अपने घर जा रहे थे. बेला को देख कर वे इतना तो समझ गए थे कि वह गांव से शहर अपने मांबाप के साथ किसी काम से आई थी.

“चलो, इसे घर ले चलते हैं. सुबह पता कर के इस के घर पहुंचा देंगे,” उन में से एक मजदूर बोला.

“हां राकेश, ले चलो. यह मासूम बच्ची बहुत भूखी और थकी हुई भी लग रही है,” उस मजदूर का साथी हां में हां मिलाते हुए बोला.

वे लोग बेला को उठा कर अपने साथ घर ले आए. जब बेला की आंख खुली तो वह एक बिस्तर पर लेटी हुई थी और एकदम सहीसलामत थी. किसी भेड़िए ने उसे नहीं नोचा था. वह बिस्तर पर बैठ गई.

तभी एक औरत एक थाली में दालभात ले कर आ गई और बोली, “लो खाना खा लो, फिर कल हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा देंगे,” कह कर वह औरत अपने हाथों से उसे दालभात खिलाने लगी.

बेला को लगा जैसे वह उस की अम्मां हो. वह चुपचाप खाना खाने लगी. खाना खातेखाते उसने उन लोगों को अपना, अम्मांबाबा का और अपने गांव का नाम बता दिया. खाना खा कर वह बातें करतेकरते सो गई.

सुबह जब बेला की आंख खुली तो दिन काफी चढ़ आया था. उस के सामने ही एक खाट पर उस के अम्मांबाबा बैठे हुए थे, जो उन लोगों को बारबार धन्यवाद दे रहे थे.

अम्मांबाबा को देख कर बेला खुशी से झूम उठी और उठ कर तुरंत अम्मां की गोद में बैठ गई. उस के यहां होने की खबर अम्मांबाबा को उन लोगों ने ही पहुंचाई थी, इसीलिए वे उसे लेने आ गए थे, जिस के बाद बेला अपने गांव चली आई.

जब बेला अपने घर पहुंची तो उस ने देखा कि उस की सहेली संगीता के घर बहुत भीड़ लगी हुई थी. सामने ही संगीता लेटी हुई थी. उस के कपड़ों पर जगहजगह खून लगा हुआ था. बेला को समझ नहीं आ रहा था कि संगीता को क्या हुआ है.

”अरे, बोटीबोटी नोच ली मेरी बेटी की भेडियों ने, तरस नहीं आया इस मासूम पर भी,” संगीता की मां चीखचीख कर बोलती जा रही थीं और रो भी रही थीं.

उन की बात सुन कर बेला समझ गई कि उस की सहेली को भी भेड़ियों ने पकड़ लिया है, लेकिन वह यह समझ नहीं पाई की शहर में तो वह खो गई थी, तो फिर गांव में उस की सहेली…

तभी पुलिस वाले 2 लड़कों को पकड़ कर मारते हुए वहां ले कर आए. उन में से एक पुलिस वाले ने कहा, “ये रहे भेड़िए.”

उन भेड़ियों को देख कर बेला हैरान रह गई और बोली, “ये तो अमित चाचू और राजन चाचू हैं…”

Crime Story: प्रेमजाल – क्या रमन ने नमिता का रेप किया था?

Crime Story: “पर तुम मुझे आज प्यार करने से क्यों रोक रही हो? आज तो हमारी सुहागरात है…” 45 साल के रमन ने अपनी नईनवेली बीवी तान्या से कहा.

तान्या सिर झुकाए बैठी रही तो एक बार फिर रमन ने अपने होंठों को उस की ओर बढ़ाया, तो वह पीछे हटते हुए बोली, “नहीं, यह सब अभी नहीं… मैं आप का साथ नहीं दे सकती.”

“पर क्यों?” रमन ने हैरान हो कर पूछा.

“दरअसल, मुझे अभी पीर बाबा की दरगाह पर चादर चढ़ानी है. उस से पहले मैं आप के साथ संबंध नहीं बना सकती.”

“अच्छा तो ठीक है… पर कम से कम गले तो लगा लो,” रमन ने अपनी बांहें फैलाते हुए कहा.

“जी नहीं, अभी कुछ भी नहीं,” कहते हुए तान्या हलके से शरमा गई.

रमन की पहली बीवी केतकी की मौत एक सड़क हादसे में हो गई थी और उस की 7 साल की बेटी रिंकी के सिर में काफी चोट आई थी. बेटी की जान तो बच गई, पर सिर पर चोट लगने से उस की आवाज जाती रही.

वैसे तो रमन अपनी बीवी की मौत के बाद इतना ज्यादा गमजदा हो गया था कि उसे कुछ भी होश नहीं था, पर आसपड़ोस और रिश्तेदारों ने उसे समझाया कि जो होना था हो चुका है, अब अपनेआप को संभालो. तुम्हें भले ही एक बीवी की जरूरत न हो, पर तुम्हारी बेटी को अभी भी एक मां की जरूरत है, इसलिए तुम्हें जल्द से जल्द शादी कर लेनी चाहिए.

बेटी को एक मां जरूरत है… यह बात रमन को अच्छी तरह समझ में आ गई थी, इसलिए उस ने मैट्रीमोनियल साइटों पर अपने लिए बीवी की खोज शुरू कर दी और जल्द ही उस की खोज पूरी भी हो गई जब उसे तान्या का फोन नंबर और दूसरी जानकारी एक मैट्रीमोनियल साइट पर मिली.

रमन ने तान्या से बात की और अपने बारे में बिना कुछ छिपाए सबकुछ बता दिया. तान्या ने भी रमन को अपने बारे में जो बताया वह यह था कि उस के मांबाप बचपन में ही गुजर गए थे. मामामामी ने ही उसे पालापोसा है और इस दुनिया में वह और उस का भाई मयूर ही हैं.

रमन ने तान्या के मामामामी से मिल कर रिश्ता पक्का करने की बात कही तो तान्या ने उसे बताया कि वे दोनों उस के छोटे भाई के साथ मलयेशिया घूमने गए हैं. हां, तान्या ने अपने भाई मयूर की बात रमन से वीडियो काल पर जरूर करा दी थी और तान्या की दास्तान सुन कर रमन को काफी अपनापन सा लगने लगा था.

कुछ दिनों के बाद तान्या ने भी शादी के लिए हां कर दी थी. रमन तान्या जैसी मौडर्न और खूबसूरत लड़की पा कर खुश था, क्योंकि तान्या रमन के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने वाली लड़की साबित हुई. उस ने जल्द ही रमन के बिजनैस में भी दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था और समयसमय पर बेबाकी से रमन को अपनी राय दिया करती, जिस पर रमन अमल भी करता था.

तान्या ने रमन की मदद करने के नाम पर उस के बैंक की डिटेल और खातों के बारे में जानकारी भी ले ली थी.

एक दिन तान्या ने रमन को बताया कि उस का भाई मयूर आने वाला है, इसलिए उसे मयूर को रिसीव करने बसस्टैंड जाना होगा.

तकरीबन 2 घंटे के बाद मयूर, तान्या और रमन एकसाथ बैठ कर चाय पी रहे थे. इस दौरान रमन की आंखें यह देख कर बारबार भर आ रही थीं कि अपने भाई मयूर के आने की खुशी और उस की खिदमत करने के बीच में भी तान्या उस की बेटी रिंकी का बराबर ध्यान रख रही थी.

रमन ने यह भी महसूस किया था कि तान्या और मयूर दोनों एकदूसरे की भावनाओं की काफी कद्र करते हैं और उन के मन में प्रेम और आदर का भाव भी है.

पहली पत्नी की मौत के बाद रमन ने औरत के शरीर का सुख नहीं जाना था और तान्या ने अब भी मन्नत के नाम पर रमन से शारीरिक दूरी बना रखी थी. अब यह दूरी मयूर के आ जाने से और भी ज्यादा बढ़ गई थी.

एक दिन जब रमन शाम को मयूर से मिलने उस के कमरे में गया तो रमन ने देखा कि मयूर मोबाइल फोन पर किसी लड़की से वीडियो काल कर रहा था. रमन को यह समझते देर नहीं लगी कि यह लड़की मयूर की गर्लफ्रैंड है.

रमन ने वहां से हट जाना ही उचित समझा, पर मयूर ने उसे हाथ पकड़ कर बिठा लिया.इतना ही नहीं, मयूर ने अपनी गर्लफ्रैंड से अपने जीजाजी की बात भी कराई.

वीडियो काल खत्म करने के बाद मयूर रमन से मुखातिब हुआ और पूछा, “जीजाजी, लड़की कैसी लगी?”

“बहुत सुंदर है,” रमन ने कहा.

“दरअसल, एक बात मैं दीदी से कहने में हिचक रहा हूं… मेरी गर्लफ्रैंड नमिता अभी नईनई दिल्ली में आई है और उस के पास रहने के लिए कोई अच्छी और महफूज जगह नहीं है… आप कहें तो मैं उसे यहीं ले आऊं…”

“अरे… हांहां… क्यों नहीं…” मयूर ने यह बात कुछ इस अंदाज में कही थी कि रमन उसे मना नहीं कर पाया और उस ने नमिता को घर लाने की इजाजत दे दी.

मयूर नमिता को घर ले आया था. 3 कमरों का यह मकान जहां कुछ दिनों पहले तक एक खामोशी छाई रहती थी वहां आज कितनी चहलपहल थी, यह देख कर रमन बहुत खुश था और यही खुशी उसे अपनी बेटी रिंकी के चेहरे पर भी दिखाई देती थी, जब वह नमिता के साथ खेलती थी.

नमिता, रिंकी और तान्या एक कमरे में सोते थे, जबकि मयूर और रमन दूसरे कमरे में.

घर के कामों में तो नमिता का जवाब नहीं था. वह तान्या से भी कुशल थी. चाहे रमन को शेविंग किट देनी हो या फिर गाड़ी की चाबी, हर समय नमिता ही तैयार रहती. रमन ने तान्या से कहा भी कि तुम से पहले मेरी आवाज तो नमिता सुन ही लेती है, इस पर तान्या सिर्फ मुसकरा कर रह गई.

रमन और नमिता के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं, ऐसा ही कुछ अहसास होने लगा था तान्या को.

“क्या बात है… आजकल नमिता तुम्हारे आसपास ही घूमती रहती है… कहीं कुछ दाल में काला तो नहीं है?” तान्या ने शरारती लहजे में पूछा.

“हां भई… क्यों नहीं… नमिता जैसी खूबसूरत जैसी लड़की से कौन नहीं इश्क करना चाहेगा,” बदले में रमन ने भी चुटकी ली और दोनों हंसने लगे.

एक दिन रमन औफिस में काम कर रहा था कि तान्या का फोन आया, ‘रिंकी की तबीयत अचानक खराब हो गई है, जल्दी से घर आ जाओ.’

रमन सारा कामकाज छोड़ कर जल्दी से घर पहुंचा तो उस ने देखा कि रिंकी तो आराम से नमिता के साथ बैठी खेल रही थी.

“पर मुझे तो तान्या ने फोन किया था कि रिंकी की तबीयत खराब है…” रमन ने नमिता से कहा.

“जी… और इसीलिए हम लोग रिंकी को ले कर डाक्टर को दिखा भी ले आए… एक इंजैक्शन लगा है… और तब से रिंकी को आराम भी हो गया है. दीदी और मयूर पास वाले मैडिकल स्टोर से दवा लाने गए हैं,” नमिता ने रमन को बताया, “आप थकेथके से लगते हैं… बैठिए, मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं,” यह कह कर नमिता चाय बनाने चली गई और रमन अपनी बेटी को खेलता देख कर खुश होता हुआ सोफे पर पसर गया.

नमिता चाय ले आई थी. चाय पीते ही रमन को नींद सी आने लगी और वह सोफे पर हो ढेर हो गया. वह कितनी देर सोया होगा, उसे कुछ होश नहीं था, पर जब उस की आंख खुली तो उस के शरीर के सभी कपड़े गायब थे और नमिता भी तकरीबन बिना कपड़ों के बैठी हुई रो रही थी. दूसरी तरफ मयूर बैठा हुआ था.

“यह सब क्या है नमिता?” पूछता हुआ परेशान था रमन.

“मेरी इज्जत लूटने के बाद यह सवाल करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती…” नमिता की आंखों में शोले उबल रहे थे.

“क्या मतलब है तुम्हारा?” रमन चीखा.

“मतलब साफ है जीजाजी, आप ने नमिता को अकेला पा कर उस की इज्जत लूट ली है और यह रहा इस का सुबूत,” यह कह कर मयूर ने अपना मोबाइल फोन रमन की आंखों के सामने घुमाया तो उसे देख कर रमन की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

मोबाइल फोन की तसवीरो में रमन नंगी हालत में नमिता पर छाया हुआ नजर आ रहा था. कुछ इसी तरह की और तसवीरें भी थीं, जिन से साफ हो रहा था कि नमिता का रेप रमन ने किया है.

“अब हम क्या करेंगे… किस को मुंह दिखाएंगे… मैं दीदी और रिंकी को बुला कर लाता हूं और ये तसवीरें सोशल मीडिया पर डाल देता हूं, ताकि आप की सचाई सब को पता चल सके,” गुस्से में भरा मयूर बाहर की ओर लपका, तो रमन ने मयूर को पकड़ लिया, “नहींनहीं, बाहर किसी को यह सब मत बताओ…”

पर मयूर तो गुस्से से उबाल रहा था. वह नमिता को इंसाफ दिलाने की बात करने लगा. रमन को अपनी बदनामी का डर सताने लगा था.

रमन का मन तो एक पिता का था, पर दिमाग एक बिजनैसमैन का था, इसलिए उस ने जल्दी ही मयूर से विनती की कि वह यह बात तान्या और रिंकी से न कहे और न ही तसवीरें सोशल मीडिया पर डाले.

मयूर तो इसी ताक में था. उस ने कहा कि नमिता को इस घटना से बहुत सदमा लगा है. उस का इलाज कराने के नाम पर उस ने फौरन ही 30 लाख रुपए की मांग कर दी.

“पर ये तो बहुत ज्यादा हैं?” रमन बोला.

“आप की इज्जत से ज्यादा तो नहीं…” मयूर ने कहा.

“पर वादा करो कि तसवीरें तुम तान्या को नहीं दिखाओगे…” रमन ने कहा.

“आप के सामने ही डिलीट कर देंगे और हम यहां से चले भी जाएंगे, पर पैसा मिलने के बाद,” मयूर बोला.

रमन तुरंत ही पैसों का इंतजाम करने में जुट गया और मयूर के खाते में पैसे ट्रांसफर करते ही उस से तसवीरों को डिलीट करने को कहा. मयूर ने भी उन तसवीरों को उसी के सामने डिलीट कर दिया.

हालांकि रमन के काफी पैसे इस डील में चले गए थे, फिर भी उसे चैन की सांस मिली कि कम से कम उस की बीवी और बेटी को इस कांड की भनक नहीं लगी थी.

मयूर और नमिता रमन के घर से जा चुके थे और घर की रौनक फिर से लौट आई थी. तान्या अब भी रिंकी का ध्यान रख रही थी, यह देख कर रमन को सुकून मिला था.

खाना खा कर रमन जल्दी ही सो गया था, पर रात में प्यास लगने के चलते अचानक उस की आंख खुली. रसोईघर में जाते समय उस के कानों में आवाज पड़ी. यह तान्या के हंसने की आवाज थी.

तान्या फोन पर बोल रही थी, “तुम चिंता मत करो नमिता, अभी तो सिर्फ तुम ने ही 30 लाख झटके हैं इस रमन नाम के बेवकूफ आदमी से, अभी देखो मैं भी ड्रामा फैला कर इसे और ठगती हूं. और फिर तेरे बदन की गरमी भी तो मुझे बहुत दिन से नहीं मिली है… जब तुझ से मिलूंगी तो सारी कसर निकाल लूंगी…”

ये बातें सुन कर रमन सन्न रह गया था. उसे समझते देर नहीं लगी कि वह भयंकर ठगी का शिकार हो गया है.

पर रमन के पास इन सब बातों के लिए कोई सुबूत नहीं था और अगर वह तान्या से कुछ कहता तो मामला बिगड़ सकता था, इसलिए वह मन ही मन उस से निबटने का प्लान बनाने लगा.

अगले दिन जब तान्या बाथरूम में नहाने के लिए घुसी, उसी समय रमन ने तान्या का लैपटौप खोला और उस की छानबीन करने लगा. लैपटौप को खंगालना आसान नहीं था, पर फिर भी रमन को काफी जानकारी मिल गई, जिस से यह पता चल गया कि तान्या, नमिता और मयूर का एक गैंग है, जो विधुर, बड़ी उम्र के पैसे वालों और कुंआरे लड़कों को मैट्रीमोनियल साइट पर खोज कर उन से मेलजोल बढ़ाते हैं और फिर मयूर, नमिता और तान्या ठीक उसी तरह से लोगों को भी ठगते हैं, जिस तरह से उन्होंने रमन को ठगा था.

लैपटौप पर नमिता और तान्या के कुछ ऐसे वीडियो थे, जिन से यह पता चलता था कि वे दोनों समलैंगिक हैं.

“तो इसीलिए तान्या को मेरे साथ सैक्स करने से परहेज था,” कहते हुए रमन का माथा ठनक गया था.

रमन ने इन सारी चीजों की जानकारी पुलिस को दे दी, जिस पर पुलिस ने अपनी तफतीश भी शुरू कर दी थी.

फिर अचानक एक दिन जैसे ज्वालामुखी फटने का नाटक शुरू कर दिया तान्या ने… उस ने मोबाइल फोन पर रमन और नमिता की वही तसवीरें रमन को दिखाईं और बोली, “आप जैसे मर्द, जो दूसरी लड़कियों को देख कर लार गिराते हैं, को मैं अच्छी तरह जानती हूं… रेप कर दिया आप ने इस बेचारी का, तभी तो मयूर और नमिता रातोंरात मुझ से बिना मिले ही चले गए.”

“क्या होगा अगर रिंकी को यह सब पता चल जाए तो? मुझे आज ही तुम से तलाक चाहिए,” तान्या की आवाज ऊंची होती जा रही थी.

“रिंकी को कुछ मत बताना, नहीं तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगी… मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा,” रमन ने गिड़गिड़ाने की ऐक्टिंग की.

“ठीक है. मैं अपने वकील से तुम्हारी बात कराती हूं. वह तुम्हें तलाक का सारा खर्चा बता देगा,” यह कह कर तान्या ने अपने वकील का नंबर डायल किया.

वकील ने रमन को समझाया कि अपनी बीवी को तलाक देने में उस का बहुत पैसा खर्च हो जाएगा, क्योंकि सारे सुबूत रमन के खिलाफ हैं और फिर गुजारा भत्ता भी देना होगा, इसलिए बेहतर है कि वह कोर्ट के बाहर ही तान्या से समझौता कर ले.

वकील की आवाज सुन कर रमन यह जान गया था कि फोन पर कोई वकील नहीं, बल्कि अपनी आवाज को बदल कर मयूर ही बोल रहा था.

रमन ने तान्या से कोर्ट के बाहर समझौता करने की बात कही तो तान्या ने पूरे 5 लाख रुपए ले कर मामला रफादफा करने की बात कर दी.

“ठीक है. तुम मुझे आजाद कर दो, मैं तुम्हें 5 लाख रुपए दे दूंगा… पर रिंकी को कुछ मत बताना,” रमन ने कहा.

रमन कमरे में आ कर सोने का नाटक करने लगा, पर नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. वह किसी भी तरह से इस गैंग का परदाफाश करना चाहता था, पर इस शातिर गैंग से कैसे पार पाना है, इसी के तानेबाने में रमन रातभर डूबा रहा.

अगली सुबह रमन ने तान्या को अपने साथ बाहर चलने को कहा और सीधा आर्य समाज मंदिर ले आया, जहां पर नमिता एक लड़के के साथ शादी रचाने जा रही थी. रमन ने तान्या का हाथ मजबूती से पकड़ा हुआ था, ताकि वह वहां से भाग न सके.

“अरे दोस्त, इस दुलहन से तुम किसी मैट्रोमोनियल साइट पर मिले होगे?” रमन ने दूल्हे से सीधा सवाल किया.

“पर आप कौन हैं और ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?” उस लड़के ने पूछा.

“मैं कौन हूं, यह खास बात नहीं है, बल्कि इस समय तुम्हारा यह जानना जरूरी है कि तुम इस समय एक ठग दुलहन के गैंग के शिकंजे में फंसने वाले हो…” कहते हुए रमन ने आपबीती सुनानी शुरू कर दी, “ये लड़कियां, जो असल में लैस्बियन हैं, इस मयूर नाम के लड़के के साथ मिल कर मैट्रीमोनियल साइट पर मौजूद मर्दों से शादी कर के उन्हें अपना शिकार बनाती हैं, पति पर रेप करने का आरोप लगाती हैं, उसे बेहोश कर के उस का फर्जी वीडियो बना कर ब्लैकमेल करती हैं…” रमन बोले जा रहा था, जबकि अपनी पोल खुलते देख कर मयूर, तान्या और नमिता ने वहां से भागने की कोशिश की.

रमन द्वारा बुलाए जाने के चलते वहां पहले से ही मौजूद पुलिस ने उन तीनों को गिरफ्तार कर लिया और कड़ाई से पूछताछ में उन्होंने अपना गुनाह भी कुबूल कर लिया.

इस घटना से रमन को इतना तगड़ा झटका लगा कि उस ने फिर से शादी न करने की कसम खाई और अपनी बेटी रिंकी का खुद ही ध्यान रखने का फैसला किया.

रमन ने अपने साथ हुई ठगी को सोशल मीडिया और लोकल अखबारों में भी छपवाया, ताकि लोग ठगी और ब्लैकमेलिंग के इस तरह के फर्जी प्रेमजाल से बच सकें.

Crime Story: परफेक्ट बैंक रौबरी

Crime Story: “क्या बात है रघुनंदन शर्माजी, बड़े परेशान नजर आ रहे हैं?” बैंक मैनेजर ओपी मेहरा ने कैशियर से पूछा.

“सर, वह हैड औफिस से जो मेल आया है, उसे देखा आप ने?” शर्माजी अपने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए बोले.

“नहीं, मैं दूसरे अकाउंट में बिजी था. जिस तरह से आप परेशान हैं, उसे देख कर तो लगता है कि निश्चित ही कोई गंभीर बात है,” मेहराजी मुसकराते हुए बोले.

“सर, उस में लिखा है कि 20 मार्च से हमारा एन्युअल आडिट चालू होगा,” शर्माजी के स्वर में कुछ घबराहट सी थी.

“तो उस में कौन सी नई बात है शर्माजी? आडिट तो हर साल ही होता है न?” मेहराजी के चेहरे पर हलकी सी मुसकान अभी भी कायम थी.

“मेहराजी, या तो आप सचमुच भूल गए हैं या फिर भूलने का नाटक कर रहे हैं. याद है आप ने और मैं ने पिछले साल इन्हीं दिनों में यहीं पर बैठ कर यह योजना बनाई थी कि आप के बेटे राज और मेरे बेटे सुनीति कुमार को बेहतर भविष्य बनाने के लिए विदेश भेज देना चाहिए.

“इसी सिलसिले में हम ने कई एजेंटों से बात भी की थी. आखिरकार पिछले साल जून में हम ने एक नामी एजेंट से बात कर सबकुछ पक्का भी कर लिया था. उस ने यह शर्त रखी थी कि अगर एक हफ्ते के भीतर दोनों बच्चों के लिए 15-15 लाख रुपए जमा करवा दें तो वह तुरंत उन के एडमिशन की कार्यवाही चालू कर देगा.

“उस ने हमें यह भी बताया था कि अगर हम तुरंत पैसा दे देते हैं तो वह वीजा समेत सारे कागजात तत्काल बनवा देगा और दोनों बच्चे अक्तूबर के महीने से भाषा प्रवीणता क्लासेस जौइन कर अगले साल से नियमित कोर्स जौइन कर पाएंगे.

“हम दोनों पर ही पहले से 2-2 विभागीय लोन चल रहे हैं, ऐसे में तुरंत तीसरा लोन मिलना मुमकिन नहीं होगा. तब आप ने सुझाया था कि अभी हम बैंक के कैश में से पैसा निकाल कर फीस भर देते हैं, भविष्य में जैसे ही ब्रांच के पास होम लोन, ह्वीकल लोन या बिजनैस लोन के लिए प्रपोजल आते हैं, तो हम उन में प्रोसैसिंग ऐंड डाक्यूमैंटेशन फीस के नाम पर लाख 2 लाख रुपए हर प्रपोजल में एडजस्ट करते रहेंगे.

“इस तरह बैंक को उस के पैसों का अच्छाखासा ब्याज मिल जाएगा और हमारा काम भी हो जाएगा. मेरे खयाल से 20-25 केस में सारा अमाउंट एडजस्ट हो जाएगा.

“पर कोरोना और लौकडाउन के चलते न तो हमें मनमुताबिक कस्टमर ही मिल पाए, न ही प्रतिबंधों के चलते हमारे बच्चे ही विदेश जा पाए. अगले 10 दिनों में इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करना नामुमकिन है,” यह सब कहते हुए शर्माजी का चेहरा लाल हो गया और सांसें भी तेज चलने लगीं.

“हां शर्माजी, मेरे दिमाग से तो यह बात एकदम से निकल ही गई थी. अब अगर आडिट हो गया तो हम बुरी तरह से फंस जाएंगे,” अब मेहराजी के चेहरे पर भी शिकन आने लगी थी.

“अगर आडिट पार्टी ने पकड़ लिया तो नौकरी तो जाएगी ही, साथ ही भविष्यनिधि में जो पैसा है उसे भी जब्त कर लिया जाएगा,” यह सब कहते समय शर्माजी के माथे पर दोबारा पसीने की बूंदें चमकने लगीं.

“कुछ तो करना ही पड़ेगा,” मेहराजी सोचते हुए बोले.

“जल्दी कीजिए मेहराजी, कहीं ऐसा न हो सोचतेसोचते ही सारा समय निकल जाए,” शर्माजी परेशान होते हुए बोले.

“अगर पुराना समय होता बैंक में आग ही लगवा देते और सब रिकौर्ड जलवा देते, मगर इस समय तो पलपल की रिपोर्ट कंप्यूटर के जरीए कई जगह पहुंच जाती है,” मेहराजी ने कहा.

“आज की बातें कीजिए सर. आज इस समस्या से कैसे छुटकारा पाया जाए…” शर्माजी के स्वर में घबराहट बरकरार थी.

“रात को आप भी सोचिए और मैं भी सोचता हूं. कोई न कोई हल जरूर ही निकल जाएगा,” मेहराजी उठे और अपना केबिन लौक करते हुए बोले.

“आज तो रातभर नींद ही नहीं आई. आंखों में आडिट पार्टी ही दिखाई देती रही,” जैसे ही अगले दिन मेहराजी केबिन का लौक खोल कर अंदर घुसे, तो शर्माजी भी पीछेपीछे आ गए और घबराते हुए स्वर में बोले.

“परेशान तो मैं भी रहा रातभर…” मेहराजी बोले, “कोई हल सूझा क्या?”

“अगर हल मिल जाता तो मैं इस तरह आप के पीछेपीछे नहीं आता,” शर्माजी को लगा शायद मेहराजी उन का मजाक उड़ा रहे हैं, फिर मौके की नजाकत को देखते हुए वे कुछ नरम स्वर में बोले, “आप के दिमाग में कोई आइडिया आया क्या?”

“हां, आया तो है, मगर रिस्क लेना होगा,” मेहराजी के गंभीर स्वर में चेतावनी थी.

“अजी साहब, नौकरी सलामत रहे तो कितना भी बड़ा रिस्क क्यों न हो ले लेंगे,” कुछ उम्मीद की किरण दिखाई दी तो शर्माजी के स्वर में जोश आ गया.

“मतलब आप भी मेरी तरह रिस्क लेने को तैयार हैं?” मेहराजी ने सवालिया निगाहों से शर्माजी की तरफ देखा.

“हां, हम लोग मरता क्या न करता वाली हालत में हैं. रिस्क तो लेना ही पड़ेगा. वैसे आप का हल है क्या?” शर्माजी ने उत्सुकता से पूछा.

“रौबरी, ब्रांच में रौबरी करानी होगी,” मेहराजी शांत और संयत स्वर में बोले.

“क्या… रौबरी?” शर्माजी एकदम कुरसी से ऐसे उछले जैसे बिजली का कोई करंट लग गया हो, “अरे साहब, ऐसे में तो हम और भी ज्यादा फंस जाएंगे. ऐसा करने से हमारा राज औरों को भी पता चल जाएगा और वे हमेशा हमें ब्लैकमेल करता रहेंगे, सो अलग,” शर्माजी की घबराहट अब और भी ज्यादा बढ़ गई थी.

“शर्माजी, आप की कमजोरी यही है कि आप बात को पूरी तरह सुने बिना ही उस पर राय देने लगते हैं. अरे भाई, पहले योजना तो सुन लीजिए. अगर कुछ कमी होगी, तो उसे भी हम फुलप्रूफ कर लेंगे,” मेहराजी बोले.

“अच्छाअच्छा, योजना बताइए,” शर्माजी अनमने मन से बोले. उन के हावभाव से साफ दिख रहा था कि वे इस तरह का हल कतई नहीं चाहते थे.

“मुझे एक बात बताइए शर्माजी, यह सब बखेड़ा, झूठसच हम लोगों ने किया किस के लिए, बताइएबताइए…” मेहराजी ने जोर दे कर पूछा.

“अपने बच्चों के लिए,” शर्माजी बुझे हुए स्वर में बोले.

“तो क्या उन बच्चों की जवाबदारी नहीं है कि वे हमें आज इस मुसीबत से बचाएं. वैसे भी इस वारदात को हम इस तरह से अंजाम देंगे कि कोई हम पर शक करेगा ही नहीं,” मेहराजी फुसफुसाते स्वर में बोले.

“मतलब लूट की इस करतूत को हमारे बच्चे अंजाम देंगे?’ शर्माजी बातों का मतलब समझते हुए बोले.

“सौ फीसदी सही. यही योजना है हमारी. और मैं ने इस बारे में अपने बेटे राज से भी बात कर ली है. राज तो मान गया है. आप भी अपने दोनों लड़कों सुनीति कुमार और सुकर्म कुमार से बात कर उन्हें समझाइए. अगर वे न समझें तो रात को मेरे पास ले कर आइए. उन के विदेश जाने की योजना तभी पूरी हो पाएगी, जब हम बाहर और उन के साथ होंगे. आप को उन्हें इसी हकीकत को समझाना होगा,” मेहराजी योजना का खुलासा करते हुए बोले.

“साहब, यह तो बहुत बड़ा रिस्क होगा. कोई दूसरा जुगाड़ नहीं हो सकता?” शर्माजी ने हताश स्वर में पूछा.

“लाइए अपने हिस्से के 15 लाख रुपए, मैं भी कहीं से मांगता हूं या अपनी बीवी के गहने गिरवी रखता हूं. मगर इतनी बड़ी रकम का इंजाम इतनी जल्दी भी नहीं होगा,” मेहराजी बोले.

“मगर जो पैसा हम ने यहां से निकाला था, वह तो हम विदेश भेजने वाले कंसलटैंट को दे चुके हैं. अगर उस से पैसा वापस मांगते हैं तो वह 50 परसैंट से भी कम वापस करेगा और बच्चों को विदेश भेजने का मिशन भी पूरा नहीं होगा,” मजबूर और निराश स्वर में शर्माजी ने कहा.

“इसीलिए तो मैं कहता हूं शर्माजी कि बचाव का सब से बढ़िया रास्ता है हमला. अगर कोई कोशिश ही नहीं की गई तो निश्चित रूप से पकड़े जाएंगे और उस सूरत में हम बच्चों को कभी भी बेहतर भविष्य नहीं दे पाएंगे. अभी बस थोड़ी सी हिम्मत करनी है, तभी आगे का भविष्य सुखद होगा,” मेहराजी अपने शब्दों में शहद सी मिठास घोलते हुए बोले, “और फिर बच्चे अकेले थोड़े ही हैं, हम भी तो हैं उन के पीछे.”

“बताइए क्या योजना है? जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो मूसली से क्या डरना,” मेहराजी की बातों से शर्माजी का हौसला कई गुना बढ़ गया था.

“यह हुई न मर्दों वाली बात. देखिए, इस समय हमारे इलाके में लौकडाउन चल रहा है. ग्राहकों की भीड़ वैसे भी नहीं है. ऊपर से हम 50 परसैंट स्टाफ के साथ ही काम कर रहे हैं. मतलब 6 की जगह पर सिर्फ 3 लोग.

“आप ब्रांच के एकलौते कैशियर और मैं मैनेजर… मतलब हम दोनों को तो रोज आना ही है. तीसरा स्टाफ वारदात वाले दिन ऐसा रखेंगे जो एकदम से नया और अनुभवहीन हो. मेरे विचार से जो नई मैडम आई हैं उन की बारी परसों है, इसलिए इस योजना को अंजाम परसों ही दिया जाएगा.

“अभी जो एकमात्र सिक्योरिटी गार्ड है, वह चाय बनाने और हम लोगों को पानी पिलाने का काम भी खुशीखुशी कर देता है. परसों भी जब सिक्योरिटी गार्ड शाम को 4 बजे चाय बनाने के लिए जाएगा, उसी समय इस वरदात को अंजाम दिया जाएगा. कुलमिला कर 10 से 15 मिनट में सब काम हो जाएगा.

“रही बात पुलिस की तो वह तो उसी आधार पर चलेगी जो हम बयान देंगे. 30 लाख तो हमारा हो ही जाएगा एकदम कानूनी तरीके से और लूट में जो पैसा मिलेगा, वह आधाआधा कर लेंगे. इसे कहते हैं हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा आए,” कहते हुए मेहराजी मुसकराने लगे.

“वाह, योजना तो शानदार लगती है. मुझे बिंदुवार समझाइए कि कबकब, क्याक्या करना है,” शर्माजी सहमति में सिर हिलाते हुए बोले.

“यह हुई न कुछ बात. वैसे भी लौकडाउन चल रहा है तो बाजार बंद है, सड़कें सुनसान हैं और इसी के चलते हमारा काम ज्यादा आसान है.

हम लोग रोजाना की तरह नियमित समय पर ही आएंगे. कस्टमर्स के लिए ट्रांजैक्शन दोपहर को 3 बजे बंद कर देंगे, मतलब ज्यादा से ज्यादा साढ़े 3 बजे तक ब्रांच में हम 4 ही लोग होंगे. आप, मैं, मैडम और सिक्योरिटी गार्ड.

“मैं शाम 4 बजे रोजाना की तरह सिक्योरिटी गार्ड को चाय बनाने के लिए बोलूंगा. जाहिर है कि इस समय मतलब 4 बजे ब्रांच का ऐंट्री गेट सूना रहेगा और आनेजाने वालों पर कोई रोकटोक नहीं रहेगी.

“ठीक इसी समय मैं अपने लड़के राज को फोन करूंगा और पूछूंगा कि शाम को खाने में क्या बन रहा है? असलियत में यह उन तीनों के लिए संकेत होगा कि वारदात को अंजाम देने के लिए रास्ता साफ है.

“यहां पर सोने पे सुहागा यह कि ब्रांच की यह बिल्डिंग अंडरकंस्ट्रक्शन है और बेसमैंट की पार्किंग में अभी तक न कोई गार्ड है, न कोई सीसीटीवी कैमरे ही लगे हैं. यहां पर वे तीनों मोटरसाइकिल से पहले ही पहुंच चुके होंगे.

“कोरोना हमारे लिए एक बार फिर वरदान बनेगा, क्योंकि सभी लोगों को इस से बचाव के लिए मास्क लगाना अनिवार्य है. इस से आधा चेहरा तो कवर हो ही जाता है, बाकी का भाग पार्किंग में आ कर रूमाल से कवर करना है.

“मेरे पास एक लाइसैंसी रिवाल्वर है और 2 गुप्तियां भी हैं, जो राज अपने साथ लेता आएगा और आप के लड़कों को दे देगा. इस के बाद मेरा इशारा मिलते ही वे तीनों ब्रांच में घुस जाएंगे और पूरी घटना को अपने अंजाम तक पहुंचा देंगे.

“चूंकि आप के दोनों बेटे एक ही मोटरसाइकिल पर आएंगे, इसलिए रुपयों से भरा बैग ले कर दोनों जाएंगे और बाद में हम पैसा आधाआधा बांट लेंगे.

“अभी जो कैश विड्रा का ट्रैंड चल रहा है, उस के अनुसार औसतन 2 लाख रुपए रोज की निकासी हो रही है. आज हमारे पास तकरीबन 18 लाख रुपए हैं. इस का मतलब उस दिन तकरीबन 14 लाख रुपयों की लूट होगी, जिसे हमें 44 लाख रुपए दिखाना है,” मेहराजी अच्छी तरह समझाते हुए बोले.

“यहां तक तो बिलकुल ठीक है, मगर इस पर ऐक्शन कैसे होगा?’ शर्माजी ने पूछा.

“मेरा इशारा पाते ही तीनों बच्चे ब्रांच में घुस जाएंगे और राज मेरे माथे पर रिवाल्वर रख कर आप तीनों को हाईजैक कर के एक केबिन में बंद कर देगा, फिर 2 लोग मुझे स्ट्रांगरूम में ले जाएंगे और पासवर्ड के जरीए उसे खुलवा कर सारा कैश अपने हवाले कर लेंगे.

“ऐसा ही कुछ वे लोग आप के साथ भी कर के कैश बौक्स भी लूट लेंगे. हमारे पास पूरा हिसाब होगा ही, इसलिए मौका मिलते ही मेरा हिस्सा मुझ तक पहुंचा देना,” मेहराजी बोले.

”बहुत खूब मेहराजी. एकदम परफैक्ट प्लानिंग है. इस से हमारे पिछले पाप तो धुल ही जाएंगे और खर्चे के लिए कुछ पैसे हाथ में भी आ जाएंगे,” शर्माजी तारीफ करते हुए बोले.

और तय दिन को योजना के मुताबिक बैंक लूट लिया गया. कुल लूट की रकम 46 लाख रुपए से ज्यादा दिखाई गई.

”बधाई हो मेहरा साहब, आप की परफैक्ट प्लानिंग काम कर गई और हमारा मिशन पूरा हुआ,” वारदात के 2 दिन बाद शर्माजी गर्मजोशी से मेहराजी से हाथ मिलाते हुए बोले.

”शर्माजी, जरा धीरे बोलिए, दीवारों के भी कान होते हैं,” मेहराजी विजयी भाव से मुसकराते हुए बोले.

“दीवारों के सिर्फ कान ही नहीं होते, बल्कि आंख, नाक, मुंह और हाथों में हथकड़ियां पहनाने के लिए हाथ सभी कुछ होते हैं,” पुलिस इंस्पैक्टर मेहराजी के केबिन में दाखिल होते हुए बोला.

“क्या मतलब?” मेहराजी अचकचाते हुए बोले.

“मतलब यह कि मेहराजी, प्रोफैशनल क्रिमिनल भी गलती कर देते हैं, फिर तो आप अभी नौसिखिया ही हैं,” इंस्पैक्टर बोला.

“गलती? कौन सी गलती?” मेहराजी ने हैरान होते हुए पूछा.

“बहुत ज्यादा आत्मविश्वास इनसान को गलतियां करने पर मजबूर कर देता है. आप के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ मिस्टर मेहरा. आप शुरू से ही यह मान कर चल रहे थे कि आप का प्लान फुलप्रूफ है और आप को कोई पकड़ नहीं सकता.

“हकीकत में यह प्लान था भी बहुत जोरदार और शुरू में तो हम पुलिस वाले भी गच्चा खा गए थे, लेकिन आप की जल्दबाजी और हद से ज्यादा आत्मविश्वास ने आप को एक नहीं, बल्कि 3-3 गलतियां करने के लिए मजबूर कर दिया.

“गलती नंबर एक यह कि आप ने अपने हैड औफिस को तुरंत सूचना देने के चक्कर में इस वारदात का ड्राफ्ट दोपहर को 12 बजे ही कंप्यूटर में तैयार कर लिया था. वह कहते हैं न कि मशीनों का दिल, दिमाग और जबान नहीं होता, इस वजह से वे न बोलते हुए भी सबकुछ बोल देती हैं. आप का यह ड्राफ्ट भी कंप्यूटर में दोपहर को 12 बजे ही सेव हो गया था.

“दूसरी गलती यह कि आप ने उम्मीद की थी कि ट्रांजैक्शन नियमित ट्रैंड के मुताबिक तकरीबन 2 लाख रुपए तक का ही होगा, मगर उस दिन ट्रांजैक्शन बहुत कम हुआ. आप ने अपने ड्राफ्ट में 44 लाख रुपयों की लूट की सूचना दी, जब असली अमाउंट 46 लाख रुपयों से ज्यादा का था. यहां पर पुलिस को दिए गए बयान और हैड औफिस को दी गई सूचना में फर्क पाया गया, जिस से हमारा शक बढ़ गया.

“तीसरी गलती यह कि जैसे ही प्रायोजित लुटेरे बैंक लूटने पहुंचे आप ने बिना किसी विरोध के अपने हाथ ऊपर कर दिए और लुटेरों के कहे बिना ही स्ट्रांगरूम की तरफ चले गए.

“ऐसा शायद बापबेटों के रिश्तों के चलते हुआ वरना तो लुटेरे आते ही सब से पहले मारपीट कर आतंक मचाते हैं, फिर वारदात को अंजाम देते हैं.

“गलती तो शर्माजी आप ने भी की. आप ने सोचा कि आप के बेटों की उम्र इतनी नहीं है कि वे इतनी बड़ी रकम को मोटरसाइकिल पर महफूज तरीके से ले जा सकेंगे और यही वजह रही कि वे लोग आए तो मोटरसाइकिल से, मगर गए आप की कार से.

“शायद आप भूल गए थे कि उस दिन सुबह जब बैंक आए थे, तो अपनी पानी की बोतल कार में ही भूल गए थे, जिसे लेने सिक्योरिटी गार्ड पार्किंग में गया था. उसी सिक्योरिटी गार्ड ने जब आप को मोटरसाइकिल से घर वापस जाते देखा तो इस की सूचना पुलिस को दे दी.

“इन्हीं सब चीजों के तार जोड़ने में 2 दिन का समय लगा और आप ने समझा कि आप की बैंक रौबरी परफैक्ट हो गई है. चलिए, आप लोगों के बेटे थाने में आप का इंतजार कर रहे है. उन्होंने अपना अपराध कुबूल कर लिया है,” इंस्पैक्टर ने तफसील से सबकुछ बताया.

Hindi Crime Story: विरासत – क्यों कठघरे में खड़ा था विनय

Hindi Crime Story: कई दिनों से एक बात मन में बारबार उठ रही है कि इनसान को शायद अपने कर्मों का फल इस जीवन में ही भोगना पड़ता है. यह बात नहीं है कि मैं टैलीविजन में आने वाले क्राइम और भक्तिप्रधान कार्यक्रमों से प्रभावित हो गया हूं. यह भी नहीं है कि धर्मग्रंथों का पाठ करने लगा हूं, न ही किसी बाबा का भक्त बना हूं. यह भी नहीं कि पश्चात्ताप की महत्ता नए सिरे में समझ आ गई हो.

दरअसल, बात यह है कि इन दिनों मेरी सुपुत्री राशि का मेलजोल अपने सहकर्मी रमन के साथ काफी बढ़ गया है. मेरी चिंता का विषय रमन का शादीशुदा होना है. राशि एक निजी बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत है. रमन सीनियर मैनेजर है. मेरी बेटी अपने काम में काफी होशियार है. परंतु रमन के साथ उस की नजदीकी मेरी घबराहट को डर में बदल रही थी. मेरी पत्नी शोभा बेटे के पास न्यू जर्सी गई थी. अब वहां फोन कर के दोनों को क्या बताता. स्थिति का सामना मुझे स्वयं ही करना था. आज मेरा अतीत मुझे अपने सामने खड़ा दिखाई दे रहा था…

मेरा मुजफ्फर नगर में नया नया तबादला हुआ था. परिवार दिल्ली में ही छोड़ दिया था.  वैसे भी शोभा उस समय गर्भवती थी. वरुण भी बहुत छोटा था और शोभा का अपना परिवार भी वहीं था. इसलिए मैं ने उन को यहां लाना उचित नहीं समझा था. वैसे भी 2 साल बाद मुझे दोबारा पोस्टिंग मिल ही जानी थी.

गांधी कालोनी में एक घर किराए पर ले लिया था मैं ने. वहां से मेरा बैंक भी पास पड़ता था. पड़ोस में भी एक नया परिवार आया था. एक औरत और तीसरी या चौथी में पढ़ने वाले 2 जुड़वां लड़के. मेरे बैंक में काम करने वाले रमेश बाबू उसी महल्ले में रहते थे. उन से ही पता चला था कि वह औरत विधवा है. हमारे बैंक में ही उस के पति काम करते थे. कुछ साल पहले बीमारी की वजह से उन का देहांत हो गया था. उन्हीं की जगह उस औरत को नौकरी मिली थी. पहले अपनी ससुराल में रहती थी, परंतु पिछले महीने ही उन के तानों से तंग आ कर यहां रहने आई थी.

‘‘बच कर रहना विनयजी, बड़ी चालू औरत है. हाथ भी नहीं रखने देती,’’ जातेजाते रमेश बाबू यह बताना नहीं भूले थे. शायद उन की कोशिश का परिणाम अच्छा नहीं रहा होगा. इसीलिए मुझे सावधान करना उन्होंने अपना परम कर्तव्य समझा.

सौजन्य हमें विरासत में मिला है और पड़ोसियों के प्रति स्नेह और सहयोग की भावना हमारी अपनी कमाई है. इन तीनों गुणों का हम पुरुषवर्ग पूरी ईमानदारी से जतन तब और भी करते हैं जब पड़ोस में एक सुंदर स्त्री रहती हो. इसलिए पहला मौका मिलते ही मैं ने उसे अपने सौजन्य से अभिभूत कर दिया.

औफिस से लौट कर मैं ने देखा वह सीढि़यों पर बैठ हुई थी.

‘‘आप यहां क्यों बैठी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी… सर… मेरी चाभी कहीं गिर कई है, बच्चे आने वाले हैं… समझ नहीं आ रहा क्या करूं?’’

‘‘आप परेशान न हों, आओ मेरे घर में आ जाओ.’’

‘‘जी…?’’

‘‘मेरा मतलब है आप अंदर चल कर बैठिए. तब तक मैं चाभी बनाने वाले को ले कर आता हूं.’’

‘‘जी, मैं यहीं इंतजार कर लूंगी.’’

‘‘जैसी आप की मरजी.’’

थोड़ी देर बाद रचनाजी के घर की चाभी बन गई और मैं उन के घर में बैठ कर चाय पी रहा था. आधे घंटे बाद उन के बच्चे भी आ गए. दोनों मेरे बेटे वरुण की ही उम्र के थे. पल भर में ही मैं ने उन का दिल जीत लिया.

जितना समय मैं ने शायद अपने बेटे को नहीं दिया था उस से कहीं ज्यादा मैं अखिल और निखिल को देने लगा था. उन के साथ क्रिकेट खेलना, पढ़ाई में उन की सहायता करना,

रविवार को उन्हें ले कर मंडी की चाट खाने का तो जैसे नियम बन गया था. रचनाजी अब रचना हो गई थीं. अब किसी भी फैसले में रचना के लिए मेरी अनुमति महत्त्वपूर्ण हो गई थी. इसीलिए मेरे समझाने पर उस ने अपने दोनों बेटों को स्कूल के बाकी बच्चों के साथ पिकनिक पर भेज दिया था.

सरकारी बैंक में काम हो न हो हड़ताल तो होती ही रहती है. हमारे बैंक में भी 2 दिन की हड़ताल थी, इसलिए उस दिन मैं घर पर ही था. अमूमन छुट्टी के दिन मैं रचना के घर ही खाना खाता था. परंतु उस रोज बात कुछ अलग थी. घर में दोनों बच्चे नहीं थे.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं रचना?’’

‘‘अरे विनयजी अब क्या आप को भी आने से पहले इजाजत लेनी पड़ेगी?’’

खाना खा कर दोनों टीवी देखने लगे. थोड़ी देर बाद मुझे लगा रचना कुछ असहज सी है.

‘‘क्या हुआ रचना, तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘कुछ नहीं, बस थोड़ा सिरदर्द है.’’

अपनी जगह से उठ कर मैं उस का सिर दबाने लगा. सिर दबातेदबाते मेरे हाथ उस के कंधे तक पहुंच गए. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. हम किसी और ही दुनिया में खोने लगे. थोड़ी देर बाद रचना ने मना करने के लिए मुंह खोला तो मैं ने आगे बढ़ कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

उस के बाद रचना ने आंखें नहीं खोलीं. मैं धीरेधीरे उस के करीब आता चला गया. कहीं कोई संकोच नहीं था दोनों के बीच जैसे हमारे शरीर सालों से मिलना चाहते हों. दिल ने दिल की आवाज सुन ली थी, शरीर ने शरीर की भाषा पहचान ली थी.

उस के कानों के पास जा कर मैं धीरे से फुसफुसाया, ‘‘प्लीज, आंखें न खोलना तुम… आज बंद आंखों में मैं समाया हूं…’’

न जाने कितनी देर हम दोनों एकदूसरे की बांहों में बंधे चुपचाप लेटे रहे दोनों के बीच की खामोशी को मैं ने ही तोड़ा, ‘‘मुझ से नाराज तो नहीं हो तुम?’’

‘‘नहीं, परंतु अपनेआप से हूं… आप शादीशुदा हैं और…’’

‘‘रचना, शोभा से मेरी शादी महज एक समझौता है जो हमारे परिवारों के बीच हुआ था. बस उसे ही निभा रहा हूं… प्रेम क्या होता है यह मैं ने तुम से मिलने के बाद ही जाना.’’

‘‘परंतु… विवाह…’’

‘‘रचना… क्या 7 फेरे प्रेम को जन्म दे सकते हैं? 7 फेरों के बाद पतिपत्नी के बीच सैक्स का होना तो तय है, परंतु प्रेम का नहीं. क्या तुम्हें पछतावा हो रहा है रचना?’’

‘‘प्रेम शक्ति देता है, कमजोर नहीं करता. हां, वासना पछतावा उत्पन्न करती है. जिस पुरुष से मैं ने विवाह किया, उसे केवल अपना शरीर दिया. परंतु मेरे दिल तक तो वह कभी पहुंच ही नहीं पाया. फिर जितने भी पुरुष मिले उन की गंदी नजरों ने उन्हें मेरे दिल तक आने ही नहीं दिया. परंतु आप ने मुझे एक शरीर से ज्यादा एक इनसान समझा. इसीलिए वह पुराना संस्कार, जिसे अपने खून में पाला था कि विवाहेतर संबंध नहीं बनाना, आज टूट गया. शायद आज मैं समाज के अनुसार चरित्रहीन हो गई.’’

फिर कई दिन बीत गए, हम दोनों के संबंध और प्रगाढ़ होते जा रहे थे. मौका मिलते ही हम काफी समय साथ बिताते. एकसाथ घूमनाफिरना, शौपिंग करना, फिल्म देखना और फिर घर आ कर अखिल और निखिल के सोने के बाद एकदूसरे की बांहों में खो जाना दिनचर्या में शामिल हो गया था. औफिस में भी दोनों के बीच आंखों ही आंखों में प्रेम की बातें होती रहती थीं.

बीचबीच में मैं अपने घर आ जाता और शोभा के लिए और दोनों बच्चों के लिए ढेर सारे उपहार भी ले जाता. राशि का भी जन्म हो चुका था. देखते ही देखते 2 साल बीत गए. अब शोभा मुझ पर तबादला करवा लेने का दबाव डालने लगी थी. इधर रचना भी हमारे रिश्ते का नाम तलाशने लगी थी. मैं अब इन दोनों औरतों को नहीं संभाल पा रहा था. 2 नावों की सवारी में डूबने का खतरा लगातार बना रहता है. अब समय आ गया था किसी एक नाव में उतर जाने का.

रचना से मुझे वह मिला जो मुझे शोभा से कभी नहीं मिल पाया था, परंतु यह भी सत्य था कि जो मुझे शोभा के साथ रहने में मिलता वह मुझे रचना के साथ कभी नहीं मिल पाता और वह था मेरे बच्चे और सामाजिक सम्मान. यह सब कुछ सोच कर मैं ने तबादले के लिए आवेदन कर दिया.

‘‘तुम दिल्ली जा रहे हो?’’

रचना को पता चल गया था, हालांकि मैं ने पूरी कोशिश की थी उस से यह बात छिपाने की. बोला, ‘‘हां. वह जाना तो था ही…’’

‘‘और मुझे बताने की जरूरत भी नहीं समझी…’’

‘‘देखो रचना मैं इस रिश्ते को खत्म करना चाहता हूं.’’

‘‘पर तुम तो कहते थे कि तुम मुझ से प्रेम करते हो?’’

‘‘हां करता था, परंतु अब…’’

‘‘अब नहीं करते?’’

‘‘तब मैं होश में नहीं था, अब हूं.’’

‘‘तुम कहते थे शोभा मान जाएगी… तुम मुझ से भी शादी करोगे… अब क्या हो गया?’’

‘‘तुम पागल हो गई हो क्या? एक पत्नी के रहते क्या मैं दूसरी शादी कर सकता हूं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी? क्या जो हमारे बीच था वह महज.’’

‘‘रचना… देखो मैं ने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की, जो भी हुआ उस में तुम्हारी भी मरजी शामिल थी.’’

‘‘तुम मुझे छोड़ने का निर्णय ले रहे हो… ठीक है मैं समझ सकती हूं… तुम्हारी पत्नी है, बच्चे हैं. दुख मुझे इस बात का है कि तुम ने मुझे एक बार भी बताना जरूरी नहीं समझा. अगर मुझे पता नहीं चलता तो तुम शायद मुझे बिना बताए ही चले जाते. क्या मेरे प्रेम को इतने सम्मान की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी?’’

‘‘तुम्हें मुझ से किसी तरह की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी.’’

‘‘मतलब तुम ने मेरा इस्तेमाल किया और अब मन भर जाने पर मुझे…’’

‘‘हां किया जाओ क्या कर लोगी… मैं ने मजा किया तो क्या तुम ने नहीं किया? पूरी कीमत चुकाई है मैं ने. बताऊं तुम्हें कितना खर्चा किया है मैं ने तुम्हारे ऊपर?’’

कितना नीचे गिर गया था मैं… कैसे बोल गया था मैं वह सब. यह मैं भी जानता था कि रचना ने कभी खुद पर या अपने बच्चों पर ज्यादा खर्च नहीं करने दिया था. उस के अकेलेपन को भरने का दिखावा करतेकरते मैं ने उसी का फायदा उठा लिया था.

‘‘मैं तुम्हें बताऊंगी कि मैं क्या कर सकती हूं… आज जो तुम ने मेरे साथ किया है वह किसी और लड़की के साथ न करो, इस के लिए तुम्हें सजा मिलनी जरूरी है… तुम जैसा इनसान कभी नहीं सुधरेगा… मुझे शर्म आ रही है कि मैं ने तुम से प्यार किया.’’

उस के बाद रचना ने मुझ पर रेप का केस कर दिया. केस की बात सुनते ही शोभा और मेरी ससुराल वाले और परिवार वाले सभी मुजफ्फर नगर आ गए. मैं ने रोरो कर शोभा से माफी मांगी.

‘‘अगर मैं किसी और पुरुष के साथ संबंध बना कर तुम से माफी की उम्मीद करती तो क्या तुम मुझे माफ कर देते विनय?’’

मैं एकदम चुप रहा. क्या जवाब देता.

‘‘चुप क्यों हो बोलो?’’

‘‘शायद नहीं.’’

‘‘शायद… हा… हा… हा… यकीनन तुम मुझे माफ नहीं करते. पुरुष जब बेवफाई करता है तो समाज स्त्री से उसे माफ कर आगे बढ़ने की उम्मीद करता है. परंतु जब यही गलती एक स्त्री से होती है, तो समाज उसे कईर् नाम दे डालता है. जिस स्त्री से मुझे नफरत होनी चाहिए थी. मुझे उस पर दया भी आ रही थी और गर्व भी हो रहा था, क्योंकि इस पुरुष दंभी समाज को चुनौती देने की कोशिश उस ने की थी.’’

‘‘तो तुम मुझे माफ नहीं…’’

‘‘मैं उस के जैसी साहसी नहीं हूं… लेकिन एक बात याद रखना तुम्हें माफ एक मां कर रही है एक पत्नी और एक स्त्री के अपराधी तुम हमेशा रहोगे.’’

शर्म से गरदन झुक गई थी मेरी.

पूरा महल्ला रचना पर थूथू कर रहा था. वैसे भी हमारा समाज कमजोर को हमेशा दबाता रहा है… फिर एक अकेली, जवान विधवा के चरित्र पर उंगली उठाना बहुत आसान था. उन सभी लोगों ने रचना के खिलाफ गवाही दी जिन के प्रस्ताव को उस ने कभी न कभी ठुकराया था.

अदालतमें रचना केस हार गई थी. जज ने उस पर मुझे बदनाम करने का इलजाम लगाया. अपने शरीर को स्वयं परपुरुष को सौंपने वाली स्त्री सही कैसे हो सकती थी और वह भी तब जब वह गरीब हो?

रचना के पास न शक्ति बची थी और न पैसे, जो वह केस हाई कोर्ट ले जाती. उस शहर में भी उस का कुछ नहीं बचा था. अपने बेटों को ले कर वह शहर छोड़ कर चली गई. जिस दिन वह जा रही थी मुझ से मिलने आई थी.

‘‘आज जो भी मेरे साथ हुआ है वह एक मृगतृष्णा के पीछे भागने की सजा है. मुझे तो मेरी मूर्खता की सजा मिल गई है और मैं जा रही हूं, परंतु तुम से एक ही प्रार्थना है कि अपने इस फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना.’’

चली गई थी वह. मैं भी अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गया था. मेरे और शोभा के बीच जो खालीपन आया था वह कभी नहीं भर पाया. सही कहा था उस ने एक पत्नी ने मुझे कभी माफ नहीं किया था. मैं भी कहां स्वयं को माफ कर पाया और न ही भुला पाया था रचना को.

किसी भी रिश्ते में मैं वफादारी नहीं निभा पाया था. और आज मेरा अतीत मेरे सामने खड़ा हो कर मुझ पर हंस रहा था. जो मैं ने आज से कई साल पहले एक स्त्री के साथ किया था वही मेरी बेटी के साथ होने जा रहा था.

नहीं मैं राशि के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा. उस से बात करूंगा, उसे समझाऊंगा. वह मेरी बेटी है समझ जाएगी. नहीं मानी तो उस रमन से मिलूंगा, उस के परिवार से मिलूंगा, परंतु मुझे पूरा यकीन था ऐसी नौबत नहीं आएगी… राशि समझदार है मेरी बात समझ जाएगी.

उस के कमरे के पास पहुंचा ही था तो देखा वह अपने किसी दोस्त से वीडियो चैट कर रही थी. उन की बातों में रमन का जिक्र सुन कर मैं वहीं ठिठक गया.

‘‘तेरे और रमन सर के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘वही जो इस उम्र में चलता है… हा… हा… हा…’’

‘‘तुझे शायद पता नहीं कि वे शादीशुदा हैं?’’

‘‘पता है.’’

‘‘फिर भी…’’

‘‘राशि, देख यार जो इनसान अपनी पत्नी के साथ वफादार नहीं है वह तेरे साथ क्या होगा? क्या पता कल तुझे छोड़ कर…’’

‘‘ही… ही… मुझे लड़के नहीं, मैं लड़कों को छोड़ती हूं.’’

‘‘तू समझ नहीं रही…’’

‘‘यार अब वह मुरगा खुद कटने को तैयार बैठा है तो फिर मेरी क्या गलती? उसे लगता है कि मैं उस के प्यार में डूब गई हूं, परंतु उसे यह नहीं पता कि वह सिर्फ मेरे लिए एक सीढ़ी है, जिस का इस्तेमाल कर के मुझे आगे बढ़ना है. जिस दिन उस ने मेरे और मेरे सपने के बीच आने की सोची उसी दिन उस पर रेप का केस ठोक दूंगी और तुझे तो पता है ऐसे केसेज में कोर्ट भी लड़की के पक्ष में फैसला सुनाता है,’’ और फिर हंसी का सम्मिलित स्वर सुनाई दिया.

सीने में तेज दर्द के साथ मैं वहीं गिर पड़ा. मेरे कानों में रचना की आवाज गूंज रही थी कि अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना… अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना, परंतु विरासत तो बंट चुकी थी.

Crime Story: अपनी शर्तों पर – जब खूनी खेल में बदली नव्या-परख की कहानी

Crime Story: नव्या लाइब्रेरी में बैठी नोट्स लिख रही थी तभी कब परख उस के पास आ कर बैठ गया उसे पता ही नहीं चला. ‘‘मुझ से इतनी बेरुखी क्यों नव्या, मैं सह नहीं पाऊंगा. वैसे कान खोल कर सुन लो, तुम मेरी नहीं हो सकीं तो और किसी की नहीं होने दूंगा. कितने दिनों से मैं तुम से मिलने का प्रयत्न कर रहा हूं पर तुम कन्नी काट कर निकल जाती हो,’’ वह बोला.

‘‘मेरा पीछा छोड़ दो परख, हमारी राहें और लक्ष्य अलग हैं,’’ नव्या ने उत्तर दिया. दोनों को बातें करता देख कर लाइब्रेरियन ने उन्हें बाहर जाने का इशारा करते हुए द्वार पर लगी चुप रहने का इशारा करने वाली तसवीर दिखाई.

‘‘देखो नव्या, मैं आज तुम्हें अंतिम चेतावनी देता हूं. तुम मुझे दूसरों की तरह समझने की भूल मत करना, नहीं तो बहुत पछताओगी. उपभोग करो और फेंक दो की नीति मेरे साथ नहीं चलेगी. पिछले 2 वर्षों में मैं ने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया? पानी की तरह पैसा बहाया मैं ने और इस चक्कर में मेरी पढ़ाई चौपट हो गई सो अलग,’’ परख ने धमकी ही दे डाली.

‘‘क्यों किया यह सब? मैं ने तो कभी नहीं कहा था कि अपनी पढ़ाई पर ध्यान मत दो. घूमनेफिरने का शौक तुम्हें भी कम नहीं है. मैं तो बस मित्रता के नाते तुम्हारा साथ दे रही थी.’’ ‘‘किस मित्रता की बात कर रही हो तुम? एक युवक और युवती के बीच मित्रता नहीं केवल प्यार होता है,’’ परख की आंखों से चिनगारियां निकल रही थीं. लाइब्रेरी से बाहर निकल कर दोनों कुछ देर वादविवाद करते हुए साथ चले. फिर नव्या ने परख से आगे निकलने का प्रयत्न करते हुए तेजी से कदम बढ़ाए. वह सचमुच डर गई थी. तभी परख ने जेब से छोटा सा चाकू निकाला और दीवानों की तरह नव्या पर वार करने लगा. नव्या बदहवास सी चीख रही थी. चीखपुकार सुन कर वहां भीड़ जमा हो गई. कुछ विद्यार्थियों ने कठिनाई से परख को नियंत्रित किया. फिर वे आननफानन नव्या को अस्पताल ले गए. कालेज में यह समाचार आग की तरह फैल गया. सब अपने ढंग से इस घटना की विवेचना कर रहे थे.

नव्या मित्रोंसंबंधियों से घिरी इस सदमे से निकलने का प्रयत्न कर रही थी. हालांकि उस के जख्म अधिक गहरे नहीं थे, पर उसे अस्पताल में भरती कर लिया गया था. नव्या की फ्रैंड निधि ने उस के स्थानीय अभिभावक मौसी और मौसा को फोन कर के सारी घटना की जानकारी दे दी, तो नव्या की मौसी नीला और उस के पति अरुण तुरंत आ पहुंचे. नव्या नीला के गले लग कर फूटफूट कर रोई व आंसुओं के बीच बारबार यह कहती रही, ‘‘मौसी, मुझे यहां से ले चलो. यह खूंख्वार लोगों की बस्ती है. परख मुझे जान से मार डालेगा.’’ नीला नव्या को सांत्वना दे कर धीरज बंधाती रही. पर नव्या हिचकियां ले कर रो रही थी. उसे सपने में भी आशा नहीं थी कि परख उस से ऐसा व्यवहार करेगा. अगले दिन ही नीला उसे अपने घर ले गई. सूचना मिलते ही नव्या के मातापिता आ पहुंचे. सारा घटनाक्रम सुन कर वे स्तब्ध रह गए.

‘‘नव्या, हम ने तो बड़े विश्वास से तुम को यहां पढ़ने के लिए भेजा था. पर तुम्हारे तो यहां पहुंचते ही पंख निकल आए. और नीला, तुम ने ही कहा था न कि छात्रावास में, वह भी देश की राजधानी में रह कर इस की प्रतिभा निखर आएगी पर हुआ इस का उलटा ही. पूरे परिवार की कितनी बदनामी हुई है यह सब जान कर. अब कौन इस से विवाह करेगा?’’ नव्या के पिता गिरिजा बाबू का दर्द उन की आंखों में छलक आया.

‘‘अब तो हम नव्या को अपने साथ ले जाएंगे. कोई और रास्ता तो बचा ही नहीं है,’’ नव्या की मां लीला ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘दीदी, जीजाजी, सच कहूं तो जैसे ही मुझे परख से संबंध के बारे में पता चला मैं ने नव्या को घर बुला कर समझाया था. इस ने वादा भी किया था कि यह अपनी पढ़ाई पर ध्यान देगी. पर इसी बीच यह घटना घट गई,’’ नीला ने स्पष्ट किया. ‘‘मैं ने तो उस दिन भी कहा था कि सारी सूचना आप लोगों को दे दें पर नव्या अपनी सहेली निधि को साथ ले कर आई और अपनी मौसी को समझा ही लिया कि वह आप दोनों को सूचित न करे,’’ तभी अरुण ने पूरे प्रकरण पर अपनी चुप्पी तोड़ी.

‘‘मैं ने भी कहां सोचा था कि बात इतनी बढ़ जाएगी. मैं ने तो नव्या को कई बार चेताया भी था कि इस तरह किसी के साथ अकेले घूमनाफिरना ठीक नहीं है पर नव्या ने अनसुना कर दिया,’’ निधि ने अपना बचाव किया. ‘‘ठीक है, मैं ही बुरी हूं और सब तो दूध के धुले हैं,’’ नव्या निधि की बात सुन कर चिहुंक उठी. ‘‘आप लोग व्यर्थ ही चिंतित हो जाओगी इसीलिए आप लोगों को सूचित नहीं किया था. मुझे लगा कि हम इस स्थिति को संभाल लेंगे. निधि ने भी नव्या की ओर से आश्वस्त किया था. पर कौन जानता था कि ऐसा हादसा हो जाएगा,’’ नीला समझाते हुए रोंआसी हो उठी.

अभी यह विचारविमर्श चल ही रहा था कि अरुण ने परख के मातापिता के आने की सूचना दी. ‘‘अब क्या लेने आए हैं? हमारी बेटी की तो जान पर बन आई. इन का यहां आने का साहस कैसे हुआ?’’ लीला बहुत क्रोध में थीं. अरुण और नीला ने उन्हें शांत करने का प्रयत्न किया. ‘‘हम तो उस अप्रिय घटना के प्रति अपना खेद प्रकट करने आए हैं. परख भी बहुत शर्मिंदा है. आप लोगों से माफी मांगनी चाहता है,’’ परख के पिता धीरज आते ही बोले.

‘‘क्या कहने आप के बेटे की शर्मिंदगी के. यहां तो जीवन का संकट उत्पन्न हो गया. बदनामी हुई सो अलग.’’ ‘‘मैं यही विनती ले कर आया हूं कि यदि हम मिलबैठ कर समझौता कर लें तो कोर्टकचहरी तक जाने की नौबत नहीं आएगी,’’ धीरज ने किसी प्रकार अपनी बात पूरी की.

‘‘चाहते क्या हैं आप?’’ अरुण ने प्रश्न किया.

‘‘यही कि नव्या परख के पक्ष में अपना बयान बदल दे. हम तो इलाज का पूरा खर्च उठाने को तैयार हैं,’’ धीरज ने एकएक शब्द पर जोर दे कर कहा.

‘‘ऐसा हो ही नहीं सकता. यह हमारी बेटी के सम्मान का प्रश्न है,’’ गिरिजा बाबू बहुत क्रोध में थे.

‘‘आप की बेटी हमारी भी बेटी जैसी है. मानता हूं इस में हमारा स्वार्थ है पर यह बात उछलेगी तो दोनों परिवारों की बदनामी होगी, बल्कि मेरे पास तो एक और सुझाव भी है. गलत मत समझिए. मैं तो मात्र सुझाव दे रहा हूं. मानना न मानना आप के हाथ में है,’’ परख के पिता शांत और संयत स्वर में बोले.

‘‘क्या सुझाव है आप का?’’

‘‘हम दोनों का विवाह तय कर देते हैं. सब के मुंह अपनेआप बंद हो जाएंगे.’’ ‘‘यह दबाव डालने का नया तरीका है क्या? बेटा हमला करता है और उस का पिता विवाह का प्रस्ताव ले कर आ जाता है. कान खोल कर सुन लीजिए, जान दे दूंगी पर इस दबाव में नहीं आऊंगी,’’ घायल अवस्था में भी नव्या उठ कर चली आई और पूरी शक्ति से चीख कर फूटफूट कर रोने लगी. नव्या को इस तरह बिलखता देख कर सभी स्तब्ध रह गए. किसी को कुछ नहीं सूझा तो बगलें झांकने लगे और परख के पिता हड़बड़ा कर उठ खड़े हुए.

‘‘आप लोग बच्ची को संभालिए हम फिर मिलेंगे,’’ परख के पिता अपनी पत्नी के साथ तेजी से बाहर निकल गए. ‘‘देखा आप ने? अभी भी ये लोग मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे. मेरा दोष क्या है? यही न कि लड़की होते हुए भी मैं ने घर से दूर आ कर पढ़ने का साहस किया. पर ये होते कौन हैं मेरे लिए ऐसी बातें कहने वाले?’’ नव्या का प्रलाप जारी था. गिरिजा बाबू अभी भी क्रोध में थे. जो कुछ हुआ उस के लिए वे नव्या को ही दोषी मान रहे थे और कोई कड़वी सी बात कहनी चाहते थे पर नव्या की दशा देख कर चुप रह गए. परख और उस के मातापिता अगले दिन फिर आ धमके. परख भी उन के साथ था. उस के लिए उन्होंने जमानत का प्रबंध कर लिया था.

‘‘ये लोग तो बड़े बेशर्म हैं. फिर चले आए,’’ गिरिजा बाबू उन्हें देखते ही भड़क उठे.

‘‘जीजाजी, यह समय क्रोध में आने का नहीं है. बातचीत करने में कोई हानि नहीं है.हमें तो केवल यह देखना है कि इस मुसीबत से बाहर कैसे निकला जाए,’’ नीला ने उन्हें शांत करना चाहा. ‘‘इतना निरीह तो मैं ने स्वयं को कभी अनुभव नहीं किया. सब नव्या के कारण. सोचा था परिवार का नाम ऊंचा करेगी पर इस ने तो हमें कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रखा,’’ गिरिजा बाबू परेशान हो उठे. ‘‘ऐसा नहीं कहते. वह बेचारी तो स्वयं संकट में है. चलिए बैठक में चलिए. वे लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं. इस मसले को बातचीत से ही सुलझाने का यत्न करिए,’’ नीला और लीला समवेत स्वर में बोलीं.

अरुण गिरिजा बाबू को ले कर बैठक में आ बैठे. परख ने दोनों का अभिवादन किया.

‘‘यही है परख,’’ अरुण ने गिरिजा बाबू से परिचय कराया.

‘‘ओह तो यही है सारी मुसीबत की जड़,’’ गिरिजा बाबू का स्वर बहुत तीखा था. ‘‘देखिए, ऐसी बातें आप को शोभा नहीं देतीं. इस तरह तो आप कड़वाहट को और बढ़ा रहे हैं. हम तो संयम से काम ले रहे हैं पर आप उसे हमारी कमजोरी समझने की भूल कदापि मत करिए,’’ धीरज ने भी उतने ही तीखे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘अच्छा, नहीं तो क्या करेंगे आप? हमें भी चाकू से मारेंगे? सच तो यह है कि आप की जगह यहां नहीं जेल में है.’’

‘‘कोई चाकूवाकू नहीं मारा. छोटा सा पैंसिल छीलने का ब्लेड था जिस से जरा सी खरोंच लगी है. आप लोगों ने बात का बतंगड़ बना दिया,’’ परख बड़े ठसके से बोला मानो उस ने नव्या पर कोई बड़ा उपकार किया हो.

‘‘देखा तुम ने अरुण? कितना बेशर्म है यह व्यक्ति. इसे अपनी करनी पर तनिक भी पश्चाताप नहीं है. ऊपर से हमें ही रोब दिखा रहा है,’’ गिरिजा बाबू आगबबूला हो उठे.

‘‘लो भला, मैं क्यों पश्चाताप करूं? मैं कहता हूं बुलाइए न अपनी बेटी को. अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा,’’ परख बोला.

‘‘लो आ गई मैं. कहो क्या कहना है? मुझे कितनी चोट लगी है इस का हिसाबकिताब हो चुका है. उस के लिए तुम्हारे प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है. बात निकली है तो अब दूर तलक जाएगी. अब जब कोर्टकचहरी के चक्कर लगाओगे तो सारी चतुराई धरी की धरी रह जाएगी.’’ ‘‘मैं ने तो कभी अपनी चतुराई का दावा नहीं किया. चतुर तो तुम हो. मुझे कितनी होशियारी से 2 साल मूर्ख बनाती रहीं. बड़े होटलों, रिजोर्ट में खानापीना, सिनेमा देखना और कपड़े धुलवाने से ले कर प्रोजैक्ट बनवाने तक का काम बड़ी होशियारी से करवाया.’’

‘‘तो क्या हुआ? तुम तो मेरे सच्चे मित्र होने का दावा करते थे. अब बिल चुकाने का रोना रोने लगे. भारतीय संस्कृति में ऐसा ही होता है. बिल सदा युवक ही चुकाते हैं, युवतियां नहीं.’’ ‘‘तुम्हारे मुंह से भारतीय संस्कृति की दुहाई सुन कर हंसी आती है. हमारी संस्कृति में तो लड़कियों को युवकों के साथ सैरसपाटा करनेकी अनुमति ही नहीं है. पर तुम तो भारतीय संस्कृति का उपयोग अपनी सुविधा के लिएकरने में विश्वास करती हो. युवक भी अपनापैसा उन्हीं पर खर्च करते हैं जिन से उन की मित्रता हो, हर ऐरेगैरे पर नहीं. वैसे भी तुम्हारे जैसी लड़की क्या जाने प्रेम, मित्रता जैसे शब्दों के अर्थ. तुम तो न जाने मेरे जैसे कितने युवकों को मूर्ख बना रही थीं. पर मैं उन लोगों में से नहीं हूं कि इस अपमान को चुप रह कर सह लूं,’’ परख भी क्रोध से बोला.

‘‘इसीलिए मुझे जान से मारने का इरादा था तुम्हारा? तो ठीक है अब ये सब बातें तुम अदालत में कहना,’’ नव्या ने धमकी दी.

‘‘देख लिया न आप ने? यह है आज की पीढ़ी. इन्हें हम ने यहां पढ़ने के लिए भेजा था. ये दोनों यहां मस्ती कर रहे थे. बड़ों के सामने भी कितनी बेशर्मी से बातें कर रहे हैं,’’ अब परख की मां रीता ने अपना मत प्रकट किया. ‘‘आप को बुरा लगा हो तो क्षमा कीजिए आंटी. पर मैं भी इक्कीसवीं सदी की लड़की हूं. अपने साथ हुए अत्याचार का बदला लेना मुझे भी आता है.’’ ‘‘अत्याचार तो मुझ पर हुआ है, मुझे कौन न्याय दिलाएगा? 2 वर्षों तक अपना पैसा और समय मैं ने इस लड़की पर लुटाया. अब यह कहती है कि हमारी राहें अलग हैं. इस के चक्कर में मेरी तो पढ़ाई भी चौपट हो गई,’’ परख के मन का दर्द उस के शब्दों में छलक आया.

‘‘अब समझ में आया कि एक युवक और युवती के बीच सच्ची मित्रता हो ही नहीं सकती. मैं जिसे अपना सच्चा मित्र समझती थी वह तो कुछ और ही समझ बैठा था,’’ नव्या अपनी ही बात पर अड़ी थी. ‘‘जब बड़े विचारविमर्श कर रहे हों तो छोटों का बीच में बोलना शोभा नहीं देता. अब केवल हम बोलेंगे और तुम दोनों केवल सुनोगे. दोष तुम दोनों का ही है. तुम्हारा इसलिए परख कि तुम अपनी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर प्रेम की पींगें बढ़ाने लगे और नव्या तुम्हें नईनई आजादी क्या मिली तुम तो सैरसपाटे में उलझ गईं. या तो तुम परख के इरादे को भांप नहीं पाईं या फिर जान कर भी अनजान बनने का नाटक करती रहीं. तुम तो सारी बातें अपनी मौसी से भी तब तक छिपाती रहीं जब तक तुम्हारी मौसी ने बलात सब कुछ उगलवा नहीं लिया,’’ अरुण के स्वर की कड़वाहट स्पष्ट थी.

‘‘इन सब बातों का अब कोई अर्थ नहीं है. परख की ओर से मैं आप को नव्या बेटी की सुरक्षा का विश्वास दिलाता हूं और चाहता हूं कि आप इस अध्याय को यहीं समाप्त कर दें,’’ धीरज ने आग्रह किया. ‘‘परख ने जो किया वह क्षमा के योग्य नहीं है. अत: इस बात को समाप्त करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. हम अपनी बेटी के सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं,’’ गिरिजा बाबू क्रोधित स्वर में बोले. धीरज गिरिजा बाबू और अरुण को कक्ष के एक कोने में ले गए. वहां कुछ देर के वादप्रतिवाद के बाद वे सहमत हो गए कि इस बात को समाप्त करने में ही दोनों परिवारों की भलाई है. नव्या ने सुना तो भड़क उठी, ‘‘कोई और परिवार होता तो परख को जीवन भर चक्की पिसवाता पर हमारे परिवार में मेरी औकात ही क्या है, लड़की हूं न,’’ नव्या ने रोने का उपक्रम किया.

‘‘अब रहने भी दो मुंह मत खुलवाओ. कोई दूसरा परिवार तुम से कैसा व्यवहार करता इस बारे में हम कुछ न कहें इसी में सब की भलाई है,’’ नीला ने अपनी नाराजगी दिखाई.

‘‘ठीक है, यदि सभी अपनी जिद पर अड़े हैं तो मेरी भी सुन लें. मैं कहीं नहीं जा रही. यहीं रह कर पढ़ाई करूंगी,’’ नव्या बड़ी शान से बोली. ‘‘अवश्य, तुम यहां रह कर पढ़ोगी अवश्य, पर अकेले नहीं. अपनी मां के साथ रहोगी उन की छत्रछाया में. अपनी मां के नियंत्रण में रहोगी हमारी शर्तों पर,’’ गिरिजा बाबू तीखे स्वर में बोलते हुए बाहर निकल गए, जिस से थोड़ी सी ताजा हवा में सांस ले सकें. बगीचे में पड़ी बैंच पर बैठ कर व दोनों हाथों में मुंह छिपा कर देर तक सिसकते रहे.

4 महीने के बाद उन्होंने सुना कि परख और नव्या फिर दोस्तों के बीच मिल रहे हैं. उन के दोस्तों ने उन के बीच सुलह करा दी. 6 महीने बाद दोनों ने फिर अपने मातापिता को बुलाया और इस बार दोनों ने शर्माते हुए कहा, ‘‘हम शादी करना चाहते हैं.’’ गिरिजा बाबू और अरुण दोनों एकदूसरे का मुंह ताक रहे थे और यह समझ में नहीं आ रहा था उन्हें कि क्या कहें, क्या न कहें.

Crime Story: जिस्म के सौदागर

Crime Story, लेखक- अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

इंटर में पढ़ने वाली प्रिया तो खूबसूरत थी ही, उस की 35 साल की मां चंपा भी कम हसीन नहीं थी. प्रिया का एक 8 साल का छोटा भाई भी था. पिता रामेश्वर के पास खेतीबारी तो कोई खास नहीं थी, पर प्राइवेट नौकरी की वजह से घर में किसी चीज की कमी नहीं थी.

रामेश्वर अपनी तनख्वाह में से ही घरखर्च के लिए पैसे भेजा करता था और बैंक में भी जमा कराता था. वह जानता था कि अगर आज पैसे नहीं बचाएगा, तो कल प्रिया की शादी कैसे होगी? उस की शादी में भी तो 5-7 लाख रुपए लग ही जाएंगे.

रामेश्वर के बाहर रहने की वजह से चंपा को बच्चों के साथ अकेले ही घर संभालना होता था, मतलब हाटबाजार के लिए भी चंपा को ही जाना पड़ता था, जबकि उस का गांव राज्य के कद्दावर मंत्री का गांव था, इसलिए वहां बिजली, सड़क जैसी सुविधाएं शहरों से कम नहीं थीं.

किसी चीज की कमी तो थी नहीं, इसलिए चंपा भी हमेशा शहरी औरत की तरह ही दिखती थी. उस के बच्चे भी गांव के अच्छे घरानों के बच्चों से कम नहीं दिखते थे.

चंपा के खूबसूरत होने और पति से दूर रहने की वजह से गांव के कई जिस्म के सौदागर उस पर गिद्ध की नजरें लगाए रहते थे. बगल के ही एक नौजवान राकेश के चंपा के यहां आनेजाने से दूसरे मर्द जलतेभुनते रहते थे. उन्हें लगता था कि रामेश्वर की गैरहाजिरी में राकेश जरूर चंपा का नाजायज फायदा उठाता होगा और इस वजह से वह उन के जाल में नहीं फंस रही है. चंपा भी उन लोगों की नीयत को अच्छी तरह समझने लगी थी, इसलिए वह हमेशा सावधान रहती थी.

पिछले कोरोना काल में जब कंपनी बंद हो गई, तो एकाध महीना तो रामेश्वर गुजरात में जैसेतैसे रहा था, पर जैसे ही सुविधाओं की कमी होने लगी, वैसे ही वह अपने गांव आ गया था.

रामेश्वर घर तो जरूर आ गया था, पर आते ही कोरोना का शिकार हो गया था और अस्पताल ले जाने में ही उस की मौत हो गई थी.

अब तो चंपा पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था, पर करती भी तो क्या? तनाव में ही किसी तरह जिंदगी बसर करती जा रही थी. उसे अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सताती जा रही थी. इस वजह से वह दिल से जुड़ी बीमारी का शिकार हो गई थी, जबकि डाक्टरों ने बताया भी था कि अगर वह बेवजह की चिंता करना छोड़ दे, तो उसे काफी राहत मिल सकती है.

इधर गांव के मनचले नौजवानों को लगने लगा था कि अब चंपा घर की समस्याओं से जूझती चली जाएगी. कटी हुई घास आखिर कितने दिनों तक काम आएगी, इसलिए चंपा अब उन के बुने जाल में आसानी से फंस सकती है.

तब तक प्रिया भी जवानी की दहलीज पर पहुंच चुकी थी. वह भी अपनी मां की तरह ही हसीन दिखती थी. अब लंपट लोगों की नजरें कभी मां से गिरतीं, तो बेटी पर अटक जातीं और बेटी से गिरतीं, तो मां पर अटक जातीं, पर उन की दाल गल नहीं पाती थी, जिस की वजह से उन्हें काफी खीज भी होती थी, फिर भी वे मौके की तलाश में रहते थे.

अगले साल जब फिर कोरोना की दूसरी लहर आई, तो चंपा उस से बच नहीं सकी, क्योंकि जब दोनों बच्चों को बुखार आया, तो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा था, जिस की वजह से चंपा को बारबार कभी डाक्टर, तो कभी मैडिकल स्टोर की दौड़ लगानी पड़ रही थी. उसे बस यही लग रहा था कि किसी तरह उस के बच्चे ठीक हो जाएं.

कुछ दिन के बाद बच्चे तो ठीक हो गए, पर चंपा की तबीयत बिगड़ गई. कुछ दिनों तक तो वह घर पर ही दवा खाती रही, पर बुखार में कोई सुधार नहीं हुआ.

एक दिन चंपा को देखने गांव का ही मृत्युंजय नामक नौजवान आया और पड़ोस के लोगों को जमा कर के बोला, “एक गांव का होने के नाते हम लोगों का भी तो कुछ फर्ज बनता है. आखिर गांवघर का आदमी होता किसलिए है? इन्हें ले चलिए. पटना के एक अच्छे अस्पताल में मेरी जानपहचान के कई लोग हैं. वहां का चार्ज तो बहुत ज्यादा है, पर मैं चलूंगा तो काफी कम पैसों में इलाज हो जाएगा.”

ऐसे हालात में चंपा की भी मजबूरी हो गई. भला जान किस को लिए प्यारी नहीं होती. वह मृत्युंजय के साथ चल दी, तो प्रिया भी साथ हो ली. मृत्युंजय मन ही मन काफी खुश हुआ.

मृत्युंजय ने चंपा को अस्पताल में भरती करवा दिया और वहीं रहने भी लगा, जबकि प्रिया को कहा गया कि यहां मरीज की देखभाल अस्पताल वाले ही करते हैं, इसलिए आप को वार्ड से बाहर ही रहना पड़ेगा. हां, चौबीस घंटे में एक बार थोड़ी देर के लिए मिल सकती हो.

प्रिया अस्पताल के बाहर रह रही थी, पर रोज सुबह अपनी मां से मिलने जाती थी. चंपा की हालत में थोड़ा सुधार भी होता जा रहा था. प्रिया को लगा 2-3 दिनों के अंदर ही उस की मां को अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी, पर अगले दिन जब प्रिया उस से मिलने गई, तो देखा कि मां के हाथपैर रस्सी से बंधे हुए थे.

मां ने बताया, “मेरे साथ 5 लोगों ने बारीबारी से जबरदस्ती की है.”

प्रिया ने अपनी मां के बयान का वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया. अस्पताल वाले सफाई देते रहे कि चंपा की दिमागी हालत अच्छी नहीं थी, इसलिए उस के हाथपैर बांध दिए थे.

चंपा ने प्रिया से कहा, “बेटी, मुझे इस अस्पताल से बाहर निकालो वरना ये भेड़िए मुझे नोंच खाएंगे. यहां तो जिस्म के सौदागर भरे पड़े हैं.”

प्रिया ने अपनी मां को दूसरे अस्पताल में ले जाने के लिए कहा, तो अस्पताल वालों ने जो बिल बनाया, उसे देख कर प्रिया के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

प्रिया ने मृत्युंजय को फोन लगाया, तो वह बोला, ‘मैं घर वापस आ गया हूं. मेरे जीजाजी की तबीयत खराब है. मैं दिल्ली जा रहा हूं…’ और उस ने फोन काट दिया.

प्रिया को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. सुबहसुबह अस्पताल से फोन आया कि चंपा की हालत ज्यादा बिगड़ गई थी, इसलिए उसे बचाया नहीं जा सका.

प्रिया की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. वह किसी तरह अपनी मां के बिस्तर के पास पहुंची. मां सचमुच मर चुकी थी. जब वह जोरजोर से रोने लगी, तो अस्पताल वालों ने उसे रोने से मना कर दिया.

वैसे तो अस्पताल में मरे मरीजों को उन के परिवार वालों को सुपुर्द कर दिया जाता था, पर चंपा की लाश को पहले से ही बाहर खड़ी एंबुलैंस में डाला गया और उस में प्रिया को बिठाया गया. पीछेपीछे पुलिस की गाड़ी थी.

चंपा की लाश को श्मशान घाट पहुंचाया गया और झटपट दाह संस्कार करवा दिया गया, ताकि प्रिया के पास कोई सुबूत न रहे.

हुस्न के जाल में फंसा कर युवती ने ऐंठ लिए लाखों रूपए

Lovecrime मध्य प्रदेश की बहुचर्चित हनी ट्रैप का मामला अभी शांत भी नहीं पङा कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक बड़े कारोबारी को अपने हुस्न के जाल में फांस कर लाखों रूपए की ठगी करने वाली एक युवती को पुलिस ने गिरफ्तार कर सनसनी फैला दी है.

पुलिस ने युवती के पास से लाखों रूपए कैश और एक महंगी लग्जरी कार बरामद की है.

ऐशोआराम की जिंदगी जीने की चाहत रखने वाली इस युवती ने रायपुर के एक बड़े हार्डवेयर कारोबारी से पहले तो फेसबुक पर दोस्ती की और बाद में शारीरिक संबंध बना कर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया.

खतरनाक इरादे

पुलिस के अनुसार ललिता (बदला हुआ नाम) ने छत्तीसगढ़ के बड़े हार्डवेयर कारोबारी, जो शादीशुदा था को अपने जाल फंसाने के लिए फेसबुक पर दोस्ती की, मोबाइल नंबर दिए और व्हाट्सऐप पर चैटिंग शुरू कर दी। युवती ने खुद को मैडिकल स्टूडैंट बताया और गाढ़ी दोस्ती कर ली जबकि युवती डैंटल कालेज की ड्रौप आउट स्टूडैंट थी.

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मैडिकल की पढाई छोङ जल्दी ही अमीर बनने और ऐशोआराम की जिंदगी जीने के लिए उस ने अपने बेपनाह खूबसूरती और हुस्न का जाल बिछाना शुरू कर दिया.

फिल्म देख कर इरादा बदला

मैडिकल की पढाई के दौरान युवती ने जब फिल्म ‘हेट स्टोरी’ देखी तो तभी उस ने अपने इरादों को खतरनाक बना लिया था.

उस ने कारोबारी आदमी से दोस्ती कर शारीरिक संबंध बनाए और हिडेन कैमरे से एमएमएस बना कर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया और और धीरेधीरे 1 करोङ 35 लाख से अधिक रूपए ऐंठ लिए.

कारोबारी पैसे देने के लिए जब भी मना करता आरोपी युवती पुलिस में जाने की धमकी देती. युवती के इस अपराध में उस के 3 और दोस्त भी साथ देते थे.

बरबाद हो गया कारोबारी

अचानक से इतने बङी रकम देने के बाद कारोबारी की हालत पतली हो गई और धंधा चौपट होने लगा. वह युवती के सामने कई बार गिङगिङाया, छोङ देने के लिए  हाथपैर जोङे पर इतना पैसा लेने के बावजूद भी युवती ने अपना इरादा बदला नहीं, उलटे 50 लाख रूपए की और मांग कर डाली.

तंग आ कर कारोबारी ने रायपुर के पंडारी थाने में पुलिस को सब सचसच बता दिया और खुद को बरबाद होने से बचाने की गुहार लगाई.

पुलिस ने बिछाया जाल

बदहाली में डूबे कारोबारी से युवती ने 50 लाख रूपए मांगे तो वह देने को तैयार हो गया। इस पेमेंट को देने के लिए उस ने युवती को रेलवे क्रासिंग पर बुलाया, जहां पहले से ही सादी वरदी में पुलिस वाले तैयार थे.

युवती के आते ही पुलिस ने रंगेहाथ पैसे लेते उसे धर दबोचा और न्यायालय में पेश किया, जहां न्यायालय ने उसे पुलिस रिमांड पर भेज दिया है.

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पुलिस अब युवती के इस अपराध में साथ देने वाले उन 3 कथित बौयफ्रैंड को भी ढूंढ़ रही है.

बुरी बला है अधिक लालच

सुनियोजित अपराध में कामयाब होने और लाखों रूपए ऐंठने के बाद युवती महंगी चीजों को खरीदने और महंगे होटलों में रहने का आदी हो गई थी.

वह पेशेवर अपराधी की तरह कारोबारी से पेश आने लगी थी. मगर एक बङी गलती उसे पुलिस के हत्थे चढ़ने से बचा न सकी. गलती थी हद से अधिक लालच और महिला शरीर का गलत इस्तेमाल.

वह जानती थी कि वह एक औरत है और भारतीय कानून और समाज पहले एक औरत की सुनते हैं. इसी का फायदा उठा कर उस ने उस कारोबारी से करोङ से अधिक रूपए वसूल लिए पर कहते हैं न कि ‘लालच बुरी बला है’ और इसी लालच की वजह से अब वह जेल की सलाखों के पीछे न जाने कब तक रहेगी.

आप भी सतर्क रहें

फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया पर ठगी के मामले बढते जा रहे हैं और इस में सब से अधिक हनी ट्रैप से सतर्क रहने की जरूरत है.

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इसलिए बेहतर तो यही है कि सोशल मीडिया पर न तो अधिक भरोसा करें और न ही किसी अनजान महिला/पुरूष से दोस्ती ही.

एक लाइक या एक क्लिक कब आप की जिंदगी को बदल कर आप को बदनाम और बदहाली की कगार पर ला खङा करेगा कुछ कहा नहीं जा सकता. एक छोटी सी गलती आप का भरापूरा परिवार और हंसतीखेलती जिंदगी को तबाह न कर पाए इस के लिए पहले से ही सावधान रहें, सतर्क रहें.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

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