Jharkhand : हेमंत सोरेन की पत्‍नी कल्‍पना को ससुरजी ने था चुना

हेमंत सोरेन एक बार फिर साल 2024 के झारखंड विधानसभा चुनाव मैदान में भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त दे कर मुख्यमंत्री बन गए हैं. उन्होंने अपनी गद्दी को बचाए रखा है.

पर आज हम हेमंत सोरेन की जिंदगी के उन रंगों की बात करेंगे, जब वे संघर्ष करते हुए मुख्यमंत्री तो बने ही, साथ ही उन्होंने पिता शिबू सोरेन के कहने पर ही शादी भी की थी.

दरअसल, जब शिबू सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने शादी के एक समारोह में कल्पना को देखा था और हेमंत के लिए उन्हें पसंद कर उन के पिता से अपने घर की बहू के रूप में मांग लिया था.

अब जब हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री रहते हुए जेल गए तो कल्पना सोरेन ने जीवनसाथी का फर्ज निभाते हुए झारखंड में मोरचा संभाला और जनता के बीच जा कर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाया. जब चुनाव के नतीजे आए, तो लोगों को समझ आया कि मेहनत कैसे रंग लाती है.

हाल ही में हेमंत सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है, पर कांग्रेस गठबंधन की उन की सरकार के सामने कई चुनौतियां भी हैं, जिन में राज्य की माली हालत को मजबूत करना, तालीम और सेहत से जुड़ी सेवाओं में सुधार करना और राज्य के अलगअलग क्षेत्रों में तरक्की को बढ़ावा देना शामिल है. लेकिन जिस तरह भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी राज्यों को अपने कब्जे में रखना चाहते हैं, कह सकते हैं कि हेमंत सोरेन की यह नई डगर आसान नहीं होगी.

हेमंत सोरेन का बचपन और पढ़ाईलिखाई

हेमंत सोरेन का जन्म 10 अगस्त, 1975 को झारखंड के रामगढ़ जिले के एक गांव नेमरा में हुआ था. उन के पिता शिबू सोरेन एक नेता और झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके थे, ने हेमंत को राजनीति में शामिल होने के लिए बढ़ावा दिया था.

हेमंत सोरेन का बचपन एक साधारण माहौल में बीता था. उन के पिता राजनीति से जुड़े थे, पर उन की मां एक साधारण गृहिणी थीं.

हेमंत सोरेनन की शुरुआती पढ़ाईलिखाई पटना हाईस्कूल, पटना से हुई थी, जहां उन्होंने इंटरमीडिएट का इम्तिहान पास किया था. इस के बाद उन्होंने बीआईटी मेसरा, रांची में मेकैनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया था, पर उन की इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई थी. चुनाव आयोग में दाखिल हलफनामे के मुताबिक उन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़ने की बात कही है.

हेमंत सोरेन का राजनीतिक कैरियर

हेमंत सोरेन ने अपने पिता शिबू सोरेन के साथ मिल कर झारखंड मुक्ति मोरचा पार्टी के लिए काम किया और जल्द ही पार्टी का एक प्रमुख चेहरे बन गए.

विरासत में राजनीति मिलने के बावजूद हेमंत सोरेन ने अपने राजनीतिक जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया है. उन्हें कई बार विपक्षी दलों के नेताओं के हमलों का सामना करना पड़ा है.

हेमंत सोरेन ने अपने शुरुआती दिनों में ही झारखंड के युवाओं के बीच अपनी पहचान बनाई. पिछले कुछ समय में जेल में रह कर उन्होंने ईडी और सीबीआई का सामना किया और कोर्ट से जमानत मिलने के बाद वे फिर मुख्यमंत्री बन गए. यही नहीं,साल 2024 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर उन्होंने चुनाव लड़ा और केंद्र में बैठी भाजपा की सत्ता को चुनौती देते हुए झारखंड में अपनी सरकार दोबारा बना ली.

इस से पहले हेमंत सोरेन ने 2 बार झारखंड के मुख्यमंत्री का पद संभाला है. पहली बार जुलाई, 2013 से दिसंबर, 2014 तक और दूसरी बार दिसंबर, 2019 से जनवरी, 2024 तक. उन्होंने अपने कार्यकाल में कई अहम फैसले लिए हैं, जिन में 1932 खतियान आधारित स्थानीयता नीति, ओबीसी आरक्षण व सरना कोड विधेयक पास करना शामिल है.

हेमंत सोरेन ने राज्य की तरक्की के लिए कई परियोजनाओं को शुरू किया है. इन परियोजनाओं में से एक राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सड़कों को बनाना है, जिस से राज्य के विभिन्न हिस्सों के बीच संपर्क में सुधार होगा.

इस के अलावा हेमंत सोरेन की सरकार ने राज्य की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने के लिए कई कदम उठाए हैं. इन में से एक राज्य के स्कूलों और अस्पतालों में आधुनिक सुविधाओं को शुरू करना है, जिस से राज्य के नागरिकों को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकें.

भविष्य में राज्य की आर्थिक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए हेमंत सोरेन की सरकार को कई कदम उठाने होंगे, जिन में राज्य के उद्योगों को बढ़ावा देना, राज्य के किसानों को समर्थन देना और राज्य के नागरिकों को रोजगार के अवसर प्रदान कराना है. इस के लिए हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री से एक लंबाचौड़ा पैकेज मांगा है.

हेमंत सोरेन और लोकतंत्र का बुझता दीया

झारखंड में एक चुने हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ जो कुछ हुआ है उससे लोकतंत्र का सर नीचा हुआ है . यह सीधा-सीधा लोकतंत्र का चीर हरण कहा जाना चाहिए, क्योंकि हेमंत सोरेन की पार्टी संविधान के बताएं रास्ते के अनुसार चुनाव में गई और अपनी सरकार बनाने में सफल हुए. मगर आज फिजाओं में जो सवाल है वह यह है कि हेमंत सोरेन आदि भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं को विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की आंख की किरकिरी बन गए हैं.

सत्ता का ऐसा दुरुपयोग आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला जब परिवर्तन निदेशालय को अपने विरोधी चेहरों को निपटने में लगा दिया गया है. भाजपा के चेहरे चाहते हैं कि झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार को किसी तरह तोड़ करके अपनी सरकार बना ले मगर यह अच्छा हुआ कि मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नीत गठबंधन सरकार ने सोमवार को झारखंड विधानसभा में विश्वास मत हासिल कर लिया.

यही नहीं अदालत की अनुमति के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कार्यवाही में हिस्सा लिया. विधानसभा से हेमंत सोरेन ने अपनी बात जो देश की जनता के सामने रखी है उसे ध्यान से सुना और समझना आवश्यक है अगर देश में लोकतंत्र को बचाना है तो हमें हेमंत सोरेन की बात को अमल में लाना होगा.

विश्वास मत प्रस्ताव पर अपने भाषण में हेमंत सोरेन ने आरोप लगाया -” केंद्र द्वारा साजिश रचे जाने के बाद राजभवन ने उनकी गिरफ्तारी में अहम भूमिका निभाई.” झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आरोप साबित करने की चुनौती देते हुए कहा -” अगर आरोप साबित हो गए तो वह राजनीति छोड़ देंगे.”इससे बड़ी बात कोई और क्या कह सकता है.

हेमंत है तो हिम्मत है     

जिस तरह दिल्ली में केजरीवाल सरकार को गिराने की कोशिश हो रही है जैसा छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार के साथ हुआ. यह सब लोकतांत्रिक देश में कतई उचित नहीं कहा जा सकता और एक तरह से लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाले चारों स्तंभ आज हिलते हुए दिखाई दे रहे हैं.  उल्लेखनीय है कि झारखंड राज्य की 81 सदस्यीय विधानसभा में 47 विधायकों ने विश्वास मत प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया, जबकि 29 विधायकों ने इसके खिलाफ मतदान किया. निर्दलीय विधायक सरयू राय ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. विधानसभा में मतदान के दौरान 77 विधायक उपस्थित थे.विश्वास मत हासिल करने के बाद, चंपई सोरेन ने कहा कि अगले दो-तीन दिनों में मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाएगा.

दरअसल प्रवर्तन निदेशालय ने

ने धनशोधन के एक मामले में  हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया था. इसके बाद झामुमो के विधायक दल के नेता चंपई सोरेन ने दो फरवरी को झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. सोरेन अभी ईडी की हिरासत में हैं. उन्हें विशेष पीएमएलए अदालत ने विश्वास मत में हिस्सा लेने की अनुमति दी थी .हेमंत सोरेन ने कहा, -“31 जनवरी का दिन भारत के इतिहास में एक काला अध्याय है. राजभवन के आदेश पर एक मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कर लिया गया. भाजपा झारखंड में किसी आदिवासी मुख्यमंत्री को पांच साल का कार्यकाल पूरा करते नहीं देखना

चाहती, उन्होंने अपनी विरोधी सरकारों में ऐसा नहीं होने दिया.” दरअसल, सच तो यह है कि केंद्र में सत्ता में बैठी हुई नरेंद्र मोदी की भाजपा के गैर आदिवासी नेता रघुवर दास के अलावा उसके या झामुमो के 10 अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों में से कोई भी राज्य में पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है. इस राज्य का गठन साल 2000 में हुआ था.

पूर्व मुख्यमंत्री ने विधानसभा में बड़े ही साहस के साथ  कहा, ‘हालांकि, मैं अब आंसू नहीं बहाऊंगा. मैं उचित समय पर सामंती ताकतों को मुंहतोड़ जवाब दूंगा.”‘ उन्होंने दावा किया -” आदिवासियों को अपना धर्म छोड़ने के लिए मजबूर किया जाएगा क्योंकि बीआर आंबेडकर को भी बौद्ध धर्म में परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया था.” उन्होंने आरोप लगाया -” भाजपा आदिवासियों को ‘अछूत’ समझती है.”  अद्भुत नजारा था जब पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन विधानसभा में पहुंचे तो सत्तारूढ़ झामुमो नीत गठबंधन के विधायकों ने ‘हेमंत सोरेन जिंदाबाद’ जैसे नारों के साथ उनका स्वागत किया.इससे पहले, चंपई सोरेन ने 81 सदस्यीय विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया. उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित झारखंड सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की है.’ चंपई ने कहा, -‘हेमंत है तो हिम्मत है.’ उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें गर्व है कि उनकी सरकार हेमंत सोरेन सरकार का ‘दूसरा भाग’ है.

नौजवानों की उम्मीदें हेमंत सोरेन से

झारखंड के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने युवा हेमंत सोेरेन से अगर किसी को बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं, तो वे नौजवान और छात्र हैं, जो भाजपा राज में रोजगार और तालीम के बाबत हिम्मत हार चुके थे. इन्हीं नौजवानों के वोटों की बदौलत  झारखंड मुक्ति मोरचा यानी  झामुमो और कांग्रेस गठबंधन को विधानसभा चुनाव में बहुमत मिला है.

15 जनवरी, 2020 को रांची में हेमंत सोरेन से उन के घर मिलने वालों का तांता लगा हुआ था, जिन में खासी तादाद नौजवानों की थी. इन में एक ग्रुप ‘आल इंडिया डैमोक्रैटिक स्टूडैंट और्गेनाइजेशन’ का भी था.

इस ग्रुप की अगुआई कर रहे नौजवान शुभम राज  झा ने बताया कि 11वीं के इम्तिहान में मार्जिनल के नाम पर कई छात्रछात्राओं को फेल कर दिया गया है, जो सरासर ज्यादती वाली बात है.

शुभम राज  झा के साथ आए दिनेश, सौरभ, जूलियस फुचिक, घनश्याम, उषा और पार्वती ने बताया कि उन्हें मुख्यमंत्री से काफी उम्मीदें हैं कि वे उन की ऐसी कई परेशानियों को दूर करेंगे.

ये भी पढ़ें- जाति की वकालत करता नागरिकता संशोधन कानून

हेमंत सोरेन को तोहफे में देने के लिए ये छात्र कुछ किताबें साथ लाए थे, क्योंकि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ही उन्होंने कहा था कि उन्हें बुके नहीं, बल्कि बुक तोहफे में दी जाएं.

हेमंत सोरेन ने इन छात्रों की परेशानी संजीदगी से सुनी और तुरंत ही शिक्षा विभाग के अफसरों को फोन कर कार्यवाही करने के लिए कहा तो इन छात्रों के चेहरे खिल उठे कि अब एक साल बरबाद होने से बच जाएगा.

बातचीत में इन छात्रछात्राओं ने बताया कि उन्हें मुख्यमंत्री का किताबें व पत्रपत्रिकाएं पढ़ने और लाइब्रेरी खोलने का आइडिया काफी पसंद आया है और अब वे भी खाली समय में किताबें और पत्रपत्रिकाएं पढ़ेंगे.

नौजवानों पर खास तवज्जुह

मुख्यमंत्री बनते ही हेमंत सोरेन ने तालीम पर खास ध्यान देने की बात कही थी. यह बात किसी सुबूत की मुहताज नहीं कि  झारखंड तालीम के मामले में काफी पिछड़ा है. कई स्कूल तो ऐसे हैं, जहां या तो टीचर नहीं जाते या फिर छात्र ही जाने से कतराते हैं, क्योंकि स्कूलों में पढ़ाई कम मस्ती ज्यादा होती है.

हालात तो ये हैं कि झारखंड के 80 फीसदी स्कूलों की हालत हर लिहाज से बदतर है. चुनाव के पहले एक सर्वे में यह बात उजागर हुई थी कि कई स्कूलों के कमरे तो इतने जर्जर हो चुके हैं कि छात्रों को पेड़ों के नीचे बैठ कर पढ़ाई करनी पड़ रही है. ज्यादातर स्कूलों में शौचालय नहीं हैं और पीने के पानी तक का इंतजाम नहीं है.

इस बदहाली के बाबत जब हेमंत सोरेन से पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि इस बदइंतजामी को वे एक साल में ठीक कर देंगे. पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल में स्कूलों और पढ़ाई की बुरी गत तो हुई है, जिसे जल्द ही दूर कर लिया जाएगा.

ये भी पढ़ें- शहीद सिपाही रतन लाल क्यों रखते थे अभिनंदन जैसी मूंछें

इस के अलावा हेमंत सोरेन ने बताया कि नौजवानों को रोजगार मुहैया कराना हमारी प्राथमिकता है. इस बाबत भी कोई सम झौता नहीं किया जाएगा, क्योंकि एक वक्त में (जब  झारखंड बिहार में था) तब यहां के छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में टौप किया करते थे.

हेमंत सोरेन की लाइब्रेरी बनाने की मंशा यही है कि नौजवानों में किताबें और पत्रिकाएं पढ़ने की आदत फिर से बढ़े और वे तालीम में अव्वल रहें. वे कहते हैं कि इस में सभी को अपने लैवल पर सहयोग करना चाहिए. इस से राह आसान हो जाएगी.

इस में कोई शक नहीं कि न पढ़ना पिछड़ेपन की एक बड़ी वजह है, जिस पर हेमंत सोरेन का ध्यान शिद्दत से गया है.

अब देखना दिलचस्प होगा कि अपने इस मकसद में वे कितने कामयाब हो पाते हैं, लेकिन यह भी सच है कि बुके की जगह बुक का उन का आइडिया न केवल  झारखंड, बल्कि देशभर में पसंद किया जा रहा है.

विधानसभा चुनाव 2019: सरकार में हेमंत, रघुवर बेघर

रघुवर दास ने नरेंद्र मोदी के चुनावी नारे ‘घरघर मोदी’ की नकल कर के  झारखंड विधानसभा चुनाव में ‘घरघर रघुवर’ का नारा दिया था, लेकिन  झारखंड की जनता ने उन्हें पूरी तरह से बेघर कर दिया. एक तरफ उन की मुख्यमंत्री की कुरसी गई तो वहीं दूसरी तरफ उन्होंने विधायकी भी गंवा दी. भाजपा के ही बागी नेता सरयू राय ने उन्हें जमशेदपुर पूर्व सीट पर पटकनी दे दी. उस सीट से रघुवर दास पिछले 24 सालों से लगातार जीत रहे थे.

रघुवर दास ने ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ शुरू कर जनता से 64 से ज्यादा सीटें जीतने का आशीर्वाद भी मांगा था, पर जनता ने उन पर अपना गुस्सा ही निकाला और उन्हें 25 सीटों पर ही समेट दिया.

वहीं विपक्ष किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति में कामयाब रहा. राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव समेत महागठबंधन के सभी नेताओं ने किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाए जाने की पुरजोर वकालत की थी. गौरतलब है कि रघुवर दास  झारखंड के पहले गैरआदिवासी मुख्यमंत्री बने थे.

झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन की ‘बदलाव यात्रा’ कामयाब रही और राज्य की जनता ने उन पर भरोसा करते हुए बदलाव की इबारत लिख डाली.

ये भी पढ़ें- पौलिटिकल राउंडअप : सरकारी सर्कुलर पर विवाद

हेमंत सोरेन रघुवर दास के ‘घरघर रघुवर’ के नारे का मजाक उड़ाते हुए कहते थे कि घरघर में चूहा होता है, चूहे को चूहेदानी में डाल कर वे छत्तीसगढ़ में छोड़ आएंगे.

गौरतलब है कि रघुवर दास मूल रूप से छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं. हेमंत सोरेन की इन बातों को जनता ने हकीकत में बदल दिया.

झारखंड का हाथ से फिसलना भाजपा के लिए बड़ा  झटका है. महाराष्ट्र को खोने और हरियाणा में हार के दर्द से भाजपा अभी उबर भी नहीं पाई थी कि  झारखंड भी उसे बड़ा जख्म दे गया.

भाजपा के ‘चाणक्य’ माने जाने वाले अमित शाह को अपनी रणनीति पर नए सिरे से सोचने की दरकार है. केंद्र में तो उन की रणनीति कामयाब रही, लेकिन राज्यों में उन की रणनीति फेल हो रही है या फिर वे जनता की नब्ज पकड़ने और लोकल मुद्दों को सम झने में पूरी तरह से नाकाम रहे हैं.

राम मंदिर, अनुच्छेद 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून जैसे नैशनल मुद्दों को राज्यों में भी भुनाने की सोच ने ही भाजपा को जोर का  झटका जोर से दिया है. वहीं दूसरी ओर  झामुमो, कांग्रेस और राजद ने  झारखंड के आदिवासियों की तरक्की और रघुवर सरकार की नाकामियों को उजागर कर जनता का दिल जीत लिया.

81 सीटों वाली  झारखंड विधानसभा में  झामुमो को 30, कांग्रेस को 16 और राजद को एक सीट मिली.  झामुमो को पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 11 सीटें और कांग्रेस को 10 सीटों की बढ़त मिली. राजद ने एक सीट खोई.

भाजपा को 25 सीटें हासिल हुईं और उसे 12 सीटों का नुकसान हुआ. बाबूलाल मरांडी को 3, आजसू को 2 और निर्दलीय को 4 सीटें मिली हैं. पिछले चुनाव के मुकाबले बाबूलाल मरांडी ने 5 और आजसू ने 3 सीटें गंवाईं.

काफी खींचतान के बाद बने  झामुमो, कांग्रेस और राजद के महागठबंधन को जनता का साथ मिला. इस गठबंधन ने समय रहते सीटों का बंटवारा कर लिया था, जबकि भाजपा अपनों में ही उल झी रही. बड़े नेता सरयू राय और राधाकृष्ण किशोर का टिकट काट कर पार्टी के अंदर ही बखेड़ा खड़ा कर लिया था.

पार्टी के कई बड़े नेता मानते हैं कि अमित शाह और रघुवर दास की अहंकारी सोच ने ही राज्य में भाजपा की लुटिया डुबो दी. कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों के दम पर चुनाव जीतने की सोच ही भाजपा का बेड़ा गर्क कर रही है.

ये भी पढ़ें- जेल से बाहर आने के बाद एस आर दारापुरी का बयान, “मुझे शारीरिक नहीं मानसिक प्रताड़ना मिली”

प्रदेश भाजपा द्वारा सरयू राय और संसदीय मामलों के बड़े जानकार राधाकृष्ण किशोर को दरकिनार कर भानुप्रताप शाही और ढुल्लू महतो जैसे विवादास्पद नेताओं को आगे करना बड़ी भूल रही. 11 सीटिंग विधायकों के टिकट काट कर भाजपा आलाकमान ने खुद ही अपनी कब्र खोद ली थी.

इस का नतीजा यह हुआ कि 33.37 फीसदी वोट हासिल करने के बाद भी भाजपा 25 सीटें ही जीत सकी, जबकि  झामुमो के खाते में 18.74 फीसदी ही वोट पड़े और उस ने 30 सीटें जीत लीं. पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा का वोट फीसदी तो बढ़ा, पर सीटें घट गईं. वहीं पिछले चुनाव में  झामुमो को 20.78 फीसदी वोट मिले थे, उस हिसाब से इस बार  झामुमो के वोट शेयर में गिरावट आई.

साल 1995 में पहली बार जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर रघुवर दास को 1,101 वोटों से जीत मिली थी. उस के बाद से वे लगातार इस सीट से जीतते रहे थे. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने विरोधी को 70 हजार वोटों से हराया था. इस बार उन के ही साथी और रणनीतिकार रहे सरयू राय ने उन के विजय रथ को रोक डाला.

यह चोला उतारे भाजपा

भाजपा को अपनी रणनीति के साथ ही प्रदेश अध्यक्षों और मुख्यमंत्रियों के रवैए पर सोचने की जरूरत है. धर्म, पाखंड, मंदिर जैसी काठ की हांड़ी से अब उसे किनारा कर जनता के मसलों पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है. 2 साल पहले 20 राज्यों में राजग की सरकार थी, जो अब सिमट कर 11 पर रह गई है. राजग ने पिछले 2 सालों में 7 राज्य गंवा दिए. सब से पहले 2017 में पंजाब उस के हाथ से निकल गया. उस के बाद 2018 में 3 राज्य से उस की सत्ता चली गई. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में राजग को सत्ता खोनी पड़ी. साल 2019 में महाराष्ट्र और  झारखंड से भी उस का दखल खत्म हो गया.

फिलहाल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, कर्नाटक, त्रिपुरा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा, असम, हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा या राजग की सरकारें हैं.

जनता का भरोसा नहीं टूटने दूंगा : हेमंत सोरेन

रघुवर दास के अहंकारी रवैए पर हेमंत सोरेन की सादगी भारी पड़ी. रघुवर दास और भाजपा आलाकमान केवल नैशनल मसलों के भरोसे चुनाव जीतने की बात करते रहे, वहीं हेमंत सोरेन जनता और आदिवासियों की सरकार बनने का ऐलान करते रहे.

हेमंत सोरेन दावा करते हैं कि उन की सरकार गरीबों, आदिवासियों और वंचित तबके के लिए खास काम करेगी. आदिवासियों को उन का हक दिलाना और राज्य की खनिज संपदा को दोहन से बचाना उन की प्राथमिकता है.  झारखंड की जनता ने उन के ऊपर जो भरोसा जताया है, उसे वे टूटने नहीं देंगे.

ये भी पढ़ें- दीपिका की “छपाक”… भूपेश बघेल वाया भाजपा-कांग्रेस!

40 साल के हेमंत सोरेन अपने पिता की अक्खड़ और उग्र सियासत के उलट शांत, हंसमुख और हमेशा मुसकराने वाले नेता हैं. वे हर किसी की बात को गौर से सुनते हैं और उस के बाद ही अपनी बात कहते हैं.

बीआईटी (मेसरा) से मेकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले इस युवा नेता ने साल 2003 में सियासत के अखाड़े में कदम रखा था और  झामुमो के  झारखंड छात्र मोरचा के अध्यक्ष के तौर पर राजनीति की एबीसीडी सीखना शुरू किया था. साल 2005 में अपने पिता की सीट दुमका से चुनावी राजनीति की शुरुआत की, पर मुंह की खानी पड़ी. साल 2009 में दुमका विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर पहली बार विधानसभा पहुंचे. उस के बाद अर्जुन मुंडा की सरकार में 11 सितंबर, 2010 को उपमुख्यमंत्री बने. 13 जुलाई को मुख्यमंत्री बने और 14 दिसंबर, 2014 तक उस कुरसी पर रहे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें