झारखंड के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने युवा हेमंत सोेरेन से अगर किसी को बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं, तो वे नौजवान और छात्र हैं, जो भाजपा राज में रोजगार और तालीम के बाबत हिम्मत हार चुके थे. इन्हीं नौजवानों के वोटों की बदौलत झारखंड मुक्ति मोरचा यानी झामुमो और कांग्रेस गठबंधन को विधानसभा चुनाव में बहुमत मिला है.
15 जनवरी, 2020 को रांची में हेमंत सोरेन से उन के घर मिलने वालों का तांता लगा हुआ था, जिन में खासी तादाद नौजवानों की थी. इन में एक ग्रुप ‘आल इंडिया डैमोक्रैटिक स्टूडैंट और्गेनाइजेशन’ का भी था.
इस ग्रुप की अगुआई कर रहे नौजवान शुभम राज झा ने बताया कि 11वीं के इम्तिहान में मार्जिनल के नाम पर कई छात्रछात्राओं को फेल कर दिया गया है, जो सरासर ज्यादती वाली बात है.
शुभम राज झा के साथ आए दिनेश, सौरभ, जूलियस फुचिक, घनश्याम, उषा और पार्वती ने बताया कि उन्हें मुख्यमंत्री से काफी उम्मीदें हैं कि वे उन की ऐसी कई परेशानियों को दूर करेंगे.
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हेमंत सोरेन को तोहफे में देने के लिए ये छात्र कुछ किताबें साथ लाए थे, क्योंकि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ही उन्होंने कहा था कि उन्हें बुके नहीं, बल्कि बुक तोहफे में दी जाएं.
हेमंत सोरेन ने इन छात्रों की परेशानी संजीदगी से सुनी और तुरंत ही शिक्षा विभाग के अफसरों को फोन कर कार्यवाही करने के लिए कहा तो इन छात्रों के चेहरे खिल उठे कि अब एक साल बरबाद होने से बच जाएगा.
बातचीत में इन छात्रछात्राओं ने बताया कि उन्हें मुख्यमंत्री का किताबें व पत्रपत्रिकाएं पढ़ने और लाइब्रेरी खोलने का आइडिया काफी पसंद आया है और अब वे भी खाली समय में किताबें और पत्रपत्रिकाएं पढ़ेंगे.
नौजवानों पर खास तवज्जुह
मुख्यमंत्री बनते ही हेमंत सोरेन ने तालीम पर खास ध्यान देने की बात कही थी. यह बात किसी सुबूत की मुहताज नहीं कि झारखंड तालीम के मामले में काफी पिछड़ा है. कई स्कूल तो ऐसे हैं, जहां या तो टीचर नहीं जाते या फिर छात्र ही जाने से कतराते हैं, क्योंकि स्कूलों में पढ़ाई कम मस्ती ज्यादा होती है.
हालात तो ये हैं कि झारखंड के 80 फीसदी स्कूलों की हालत हर लिहाज से बदतर है. चुनाव के पहले एक सर्वे में यह बात उजागर हुई थी कि कई स्कूलों के कमरे तो इतने जर्जर हो चुके हैं कि छात्रों को पेड़ों के नीचे बैठ कर पढ़ाई करनी पड़ रही है. ज्यादातर स्कूलों में शौचालय नहीं हैं और पीने के पानी तक का इंतजाम नहीं है.
इस बदहाली के बाबत जब हेमंत सोरेन से पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि इस बदइंतजामी को वे एक साल में ठीक कर देंगे. पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल में स्कूलों और पढ़ाई की बुरी गत तो हुई है, जिसे जल्द ही दूर कर लिया जाएगा.
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इस के अलावा हेमंत सोरेन ने बताया कि नौजवानों को रोजगार मुहैया कराना हमारी प्राथमिकता है. इस बाबत भी कोई सम झौता नहीं किया जाएगा, क्योंकि एक वक्त में (जब झारखंड बिहार में था) तब यहां के छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में टौप किया करते थे.
हेमंत सोरेन की लाइब्रेरी बनाने की मंशा यही है कि नौजवानों में किताबें और पत्रिकाएं पढ़ने की आदत फिर से बढ़े और वे तालीम में अव्वल रहें. वे कहते हैं कि इस में सभी को अपने लैवल पर सहयोग करना चाहिए. इस से राह आसान हो जाएगी.
इस में कोई शक नहीं कि न पढ़ना पिछड़ेपन की एक बड़ी वजह है, जिस पर हेमंत सोरेन का ध्यान शिद्दत से गया है.
अब देखना दिलचस्प होगा कि अपने इस मकसद में वे कितने कामयाब हो पाते हैं, लेकिन यह भी सच है कि बुके की जगह बुक का उन का आइडिया न केवल झारखंड, बल्कि देशभर में पसंद किया जा रहा है.