क्या आप भी ज्यादा पसीना आने के कारण रहते हैं परेशान, तो जरूर अपनाएं ये उपाय

अगर हवा न चल रही हो और काम करतेकरते माथे से टपटप पसीना बहता जा रहा हो, तो झंझलाहट पैदा होना एक आम सी बात है. इन दिनों की उमस, बेचैनी और चिलचिलाती गरमी वाले मौसम में सब से ज्यादा चिड़चिड़ापन और गुस्सा पसीने के चलते भी आता है. लू के गरम थपेडे़ हों या 40 डिगरी से ऊपर तापमान, ये सब पसीना आने की वजह ही तो हैं.

दिक्कत तब होती है, जब पसीना भी टपक रहा है और शरीर से बदबू भी आने लगती है. दरअसल, होता यह है कि शरीर में मौजूद बैक्टीरिया हाइड्रोजन सल्फाइड बनाने लगते हैं, जिस से बदबू पैदा होती है.

कई बार जब कोई मरीज अपने इलाज के दौरान कुछ खास तरह की तेज दवा लेते हैं, तो भी उन को पसीना और उस से बहुत तेज बदबू आने लगती है.

कुछ लोग हर समय तनाव में रहते हैं. ऐसे लोगों के माथे पर हमेशा ही पसीना रहता है. यह पसीना चेहरे पर चिपक जाता है, दाग बना देता है और कई बार तो पसीना सूखने पर कपड़ों पर सफेद और पीले दाग दिखने लगते हैं. ऐसा पसीने के रंग से नहीं, बल्कि उस में मौजूद नमक के चलते होता है.

ज्यादा और बारबार पसीना आने की वजह से लोग संकोच से भी बेहाल हो जाते हैं. इस की वजह यह है कि कुछ लोगों के पसीने में ज्यादा बदबू होती है, जिस की वजह से कहीं समूह में या परिचित और दोस्तों के बीच उन्हें मन ही मन शर्मिंदा होना पड़ता है.

कुछ लोग तो इस पसीने की वजह

से सफेद, हलका गुलाबी या आसमानी रंग का कपड़ा पहनने को तरस जाते हैं. वजह यही है कि उन की त्वचा से जो पसीना बहता है, वह भद्दे दाग छोड़ देता है. पसीना तो तेज गरमी या मेहनत के बाद आता ही है, पर किसी हवादार या ठंडी जगह पर बदबूदार पसीना आ रहा है, तो तुरंत सावधान हो जाना चाहिए.

अगर किसी के आहार में तीखे मसाले इस्तेमाल हो रहे हैं और उन को अलकोहल की आदत भी है, तो पसीना आता है. साथ ही, सिगरेटबीड़ी वगैरह की लत, नाश्तालंच वगैरह में कोलैस्ट्राल और नमक की मात्रा ज्यादा लेते हैं, तो पसीना आना लाजिमी है.

मेनोपौज या किसी कैमिकल के इस्तेमाल से शरीर में हार्मोनल बदलाव होना भी पसीना पैदा करने वाली वजह है.

जरूरत से ज्यादा चौकलेट और चायकौफी का सेवन करना भी पसीना पैदा करता है. पेट से होने की वजह से भी बारबार पसीना आता है.

ये हैं उपाय

ज्यादा पसीना आने पर दिन में 2 बार नहाने की आदत डालें. अगर पानी की समस्या है, तो टैलकम या एंटीफंगल पाउडर इस्तेमाल करें या कैलामाइन लोशन लगाएं. ये तुरंत अपना असर दिखाते हैं. आजकल तो पुदीना और नीम का इत्र भी बहुत आसानी से मिल जाते हैं, जो पसीने की इस समस्या को दूर कर सकते हैं.

फिटकरी तो हर घर में मिल जाती है और यह भी बहुत फायदा देती है. दिन में 2 बार फिटकरी को हलका गीला कर शरीर के पसीने वाली जगह पर लगा लें. इस से पसीना आना कम हो जाता है. फिटकरी से एक और फायदा यह भी है कि इस के इस्तेमाल से बैक्टीरिया भी कम पनपेंगे.

जरूरी मात्रा में पानी पिएं. कम पानी पीने से भी डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है और यह कमी भी पसीना पैदा करती है. अगर पैरों में बारबार चिपचिपा पसीना आता है, तो यह आगे जा कर खुजली की समस्या पैदा कर सकता है. जुराब और जूते सही और आरामदायक हों. त्वचा विशेषज्ञ की सलाह से ही चप्पल, जूते, जुराब वगैरह पहनें.

जहां तक हो सके, नमक के पानी से पैर धोएं. यह बहुत आसान है. एक टब में कुनकुना पानी भरें और उस में 5 से 7 चम्मच नमक डाल कर पैरों को उस में आधा घंटे तक डुबो कर रखें.

पानी से पैर निकालने के बाद उन्हें पोंछें नहीं, बल्कि अपनेआप सूखने दें, फिर जुराब पहनें.

दरअसल, नमक का पानी त्वचा को सूखा बनाता है, साथ ही पसीना आने से भी रोकता है. गरमी में बाहर जाने से पहले पसीना आने वाली जगहों पर बर्फ रगड़ने से भी पसीना कम आता है.

शरीर के जिस हिस्से पर ज्यादा पसीना आता है, उस पर आलू के टुकड़े काट कर मलने से पसीना आना कम हो जाता है.

चेहरे पर अगर ज्यादा पसीना आता है, तो टमाटर या खीरे के रस को चेहरे पर लगाने से पसीने से राहत मिलती है. कुछ लोग ज्यादा पसीना आने के डर से चाय ज्यादा पीते हैं, जिस की वजह से पसीने में ज्यादा बदबू आती है. पसीने की बदबू से नजात पाने के लिए ज्यादा चाय नहीं पीनी चाहिए.

पसीने वाली जगहों के लगातार गीला रहने से बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, जिस की वजह से बदबू आने लगती है, इसलिए वहां की साफसफाई का खास ध्यान रखना चाहिए.

नीबू एक लाभदायक उपाय है और यह हमारे शरीर से पसीने की समस्या और बदबू दोनों को दूर करने में काफी असरदार होता है. नीबू हमारी त्वचा के पीएच मान को कंट्रोल करता है. शरीर के जिन हिस्सों में हम नीबू के रस का इस्तेमाल करते हैं, वहां पर जीवाणु जल्दी पनप नहीं पाते हैं.

नीबू को रुई के सहारे अपने शरीर खासकर अंडरआर्म पर लगाएं या उस जगह पर नीबू के एक टुकड़े को हलकेहलके रगड़ें. इस से पसीने की बदबू आप से कोसों दूर रहेगी.

अगर आप को जरूरत से ज्यादा पसीना आता है, तो अपने आहार में चटपटी और मसालेदार चीजों का सेवन कम कर दें. हार्मोनल बदलाव और पेट से होने के दौरान भी ज्यादा पसीना आता है, तो तुरंत डाक्टर से मिलें. टमाटर का जूस, ग्रीन टी व गेहूं के ज्वार का सेवन करें. ये चीजें ज्यादा पसीना आने में राहत देती हैं.

गरमी में पानी खूब पिएं. इस से पसीने में बदबू आने की समस्या नहीं होगी. फास्ट फूड और डब्बाबंद चीजों को अपनी आहार सूची से निकाल दें. गरमी में सूती कपड़े ही पहनें, ताकि वे पसीने को आसानी से सोख सकें.

बनावटी और ब्रांड वाले कोल्ड ड्रिंक की जगह दही, छाछ, लस्सी, शिकंजी, कैरी पना, खीरे का रस, लौकी का रस  वगैरह पीने की आदत डालना बहुत ही अच्छा है. इस से आप का लिवर और किडनी भी साफ रहेंगे. ऐसी चीजों का सेवन ज्यादा करें, जिन में रेशा ज्यादा मात्रा में हो.

यहां ठेले पर बिकते हैं मुंह में पानी लाने वाले जायके

क्या खाने के असली स्वाद अमीरों की जिंदगी को ही निहाल करते हैं? बिलकुल भी नहीं. सच कहें तो ठेले पर बिकने वाले रोल्स का कहना ही क्या. अगर वे रोल्स नौनवैज हों तो मजा ही आ जाए. मैदे की गरमागरम रोटी के बीच भरे लच्छेदार प्याज, हरा धनिया, हरी मिर्च, टोमैटो कैचप और हरी चटनी के बीच मटन या चिकेन के पीस जब मुंह में आते हैं तो उस के आगे बड़ेबड़े होटलों के शाही पकवान भी फीके मालूम पड़ते हैं.

भारत की राजधानी नई दिल्ली के किसी बाजार में चले जाइए, आप को 1-2 ठेले तो रोल्स के मिल ही जाएंगे. मैट्रो स्टेशनों के नीचे तो इन की खूब बिक्री होती है. करोलबाग इलाके में जहां आईएएस बनाने के कोचिंग इंस्टीटूट्स की भरमार है, उन के नीचे रोल्स के ठेलों पर लंबी लाइन लगी दिखती है, जिन पर पढ़ाकू बच्चों की ऐसी भीड़ टूटती है कि पूछो मत. सुबह से दोपहर तक एक सब्जैक्ट की कोचिंग की, फिर बाहर निकले, रोल खाया और अगले सब्जैक्ट की कोचिंग के लिए फिर इंस्टीट्यूट में घुस गए. जो बच्चे दूसरे शहरों या गांवदेहात से आ कर यहां कोचिंग कर रहे हैं, वे रात को अपने पीजी में पहुंच कर खाना नहीं बनाते, बल्कि ठेले से 2-3 टेस्टी रोल बंधवा लेते हैं और वही खा कर पढ़ाई में लगे रहते हैं.

दिल्ली के राजौरी गार्डन, लाजपत नगर, सरोजिनी नगर, तिलक नगर के बाजार में खरीदारी के लिए गए हों और भूख लगने पर रोल नहीं खाया तो खरीदारी अधूरी लगती है.

ऐसा नहीं है कि स्ट्रीट फूड का यह जबरदस्त बिकने वाला आइटम सिर्फ नौनवैज खाने वालों के लिए ही है, बल्कि ये तो वैजिटेरियन खाने वालों के लिए भी ऐसा उम्दा रोल्स बनाते हैं कि दिल करता है बनाने वाले के हाथ चूम लें.

मैदे की रोटी के बीच टोमेटो कैचप और हरी चटनी के साथ गरमागरम चटपटी चाऊमीन लिपटी हो तो फिर खाने वाला जब तक उस को पूरा का पूरा चट नहीं कर लेता, नजर उठा कर नहीं देखता है. गरमागरम मलाई सोयाचाप रोल और पनीर रोल के तो कहने ही क्या. नाम सुनते ही मुंह से लार टपकने लगती है. फिर जवान बच्चे तो ऐसी ही चीजों के शौकीन होते हैं. उन से कहां टिफिन में भरी ठंडी रोटीसब्जी खाई जाती है. ऐसे में अगर 60 से 90 रुपए तक में रोल खाने को मिल जाए, तो पूरा खाना हो जाता है.

दिल्ली के मोती नगर बाजार में एक रोल वाला कई तरह के रोल्स बनाता है. नौनवैज रोल के लिए वह 90 से 120 रुपए चार्ज करता है, जबकि वेज के लिए 60 से 80 रुपए. उस के पास रोल्स की बड़ी वैराइटी हैं. सिंगल और डबल मैदा रोटी परांठे में एग रोल… एक अंडे का या ज्यादा अंडों का, चटपटा चाऊमीन रोल, सोया चाप रोल… मलाई वाला, पनीर रोल विद ओनियनकैप्सिकम, चिकेन टिक्का रोल विद प्याजकैप्सिकम, चिकेन सीक कबाब रोल विद ओनियनकैप्सिकम, मटन सीक कबाब रोल विद ओनियन ऐंड चटनी, मटन टिक्का रोल विद ओनियनकैप्सिकम ऐंड चटनी, चिकेन मटन टुकड़ा रोल साथ में हरी चटनी और सौस.

आप को ज्यादा भूख लगी हो तो परांठे डबल करवा लीजिए वरना सिंगल रोल भी काफी हैवी होता है. दिल्ली में जो लोग शाम 6-7 बजे तक औफिस में रहते हैं, वे अकसर औफिस से निकल कर मैट्रो के नीचे से रोल पैक करवाते दिखते हैं और फिर मैट्रो के सफर के दौरान मोबाइल पर रील्स देखते हुए रोल्स का मजा उठाते हुए घर पहुंचते हैं.

दिल्लीमुंबई जैसे बड़े शहरों में बहुतेरे नौजवान लड़केलड़कियां काम की तलाश में छोटे शहरों से आते हैं और यहां किराए के कमरों में या पेईंग गैस्ट के रूप में किसी के घर में रहते हैं. दिल्ली बड़ा शहर है, काम की जगहें दूर हैं तो आने जाने में भी बड़ा समय लगता है. घर पर खाना बनाओ, उस को पैक करो और अपने साथ औफिस लाओ, इस में झमेला बहुत है. ऐसे में नौजवानों की बहुत बड़ी तादाद दोपहर और रात के भोजन के लिए स्ट्रीट फूड पर निर्भर है, इसलिए ठेले वालों की आमदनी भी खूब होती है.

रोल्स बनाने वाले ठेलों की आमदनी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन ठेलों पर कोई एक आदमी काम नहीं करता, बल्कि 3 से 4 लोग काम करते हैं. ये ठेला खड़ा करने के लिए नगरनिगम को भी पैसे देते हैं और पुलिस को भी. इन के पास सोया चाप, चिकनमटन टिक्के और सीक कबाब बनेबनाए आते हैं, मैदे की रोटियां भी हलकी सिंकी हुई बनी बनाई पैकेट्स में आती हैं. सारा सामान सुबह ही इन को सप्लाई कर दिया जाता है.

ऐसे में रोल बनाने के धंधे में ठेले वालों से ले कर कई लोग शामिल होते हैं. खाने वालों की भी कमी नहीं है, इसलिए धंधा खूब मुनाफे का है. बस, हाथों में जरा फुरती चाहिए, क्योंकि ठेले के सामने अपने रोल के इंतजार में खड़े लोग अपना रोल पाने के लिए बेकरार दिखते हैं.

लखनऊ में भी रोल का बढ़ रहा चलन

रोल्स के ठेले लखनऊ में भी हैं. खासकर हजरतगंज, अलीगंज, गोमतीनगर, आलमबाग और 1090 के पास चटोरी गली में रोल्स मिलने लगे हैं. ज्यादातर कोचिंग पढ़ने वाले इन के खरीदार होते हैं. इस की वजह यह होती है कि इन को ले कर खातेखाते वे सड़क पर चलते रहते हैं.

इंजीनरिंग की तैयारी कर रहे दीपक कुमार का कहना है कि इस को पकड़ के खाना आसान होता है. खाने में समय नहीं बरबाद होता. हाथ नहीं गंदे होते और कम कीमत में भूख मिट जाती है.

भोपाल में भी रोल्स के दीवाने

भोपाल के एमपी नगर जैसे दर्जनभर अमीर इलाकों मे रोल्स के ठेलों पर छात्रों का हुजूम उमड़ने लगा है. कोई दर्जनभर हौकर्स कौर्नर पर रोल्स के ठेले अपना अलग आकर्षण रखते हैं. 6 नंबर हौकर्स कौर्नर की एक विक्रेता बताती हैं कि न केवल नौजवान, बल्कि फैमिली वाले भी आमतौर पर वीकैंड पर बतौर चेंज रोल्स ट्राई करने  आते हैं. यही उन का डिनर होता है जो किसी भी होटल के डिनर से काफी सस्ता पड़ता है. नए भोपाल में वैज, तो पुराने भोपाल मे नौनवेज रोल की मांग ज्यादा रहती है.

रांची में भी रोल्स और स्ट्रीट फूड के दीवाने हैं युवा

रांची के शहीद चौक के पास ऐसे ठेले वालों की भरमार होती है. जैवियर कालेज के छात्र हों या आसपास कोचिंग सैंटर से लौटते छात्र, शहीद चौक पर आ कर ठेले वालों से चाट गोलगप्पे या रोल्स खाने का मजा जरूर लेते हैं. कम कीमत में चटपटे स्वाद के आगे बड़े रैस्टोरैंट का खाना भी फीका लगता है. न और्डर करने के बाद ज्यादा इंतजार करना होता है और न ज्यादा जेब ढीली करनी होती है. दोस्तों के साथ यहां भीड़ में खाने का मजा ही अलग होता है. अपर बाजार और फिरायलाल चौक के आसपास भी ऐसे ठेले काफी देखने को मिलते हैं.

क्या पौर्न फिल्म देखना आप के शरीर को कमजोर कर सकता है?

आमतौर पर जब पॉर्न के बारे में बातचीत को चर्चा में लाया जाता है , तो इसे या तो जल्दी से निपटा दिया जाता है या फिर इसके बारे में बात ही नहीं की जाती. ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारी सामाजिक कंडीशन ही ऐसी है जहां लोग पॉर्न देखना तो पसंद करतें है लेकिन उसके बारे में  या उससे होने वाले नुकसानों के बारे में बात करना नहीं चाहते. आज इंटरनेट पर इतनी पॉर्न वेबसाइट्स उपलब्ध हैं जिसको आप जितना चाहें उतना पॉर्न देख सकते है.

साउथ एशियन कंट्री में पॉर्न की बात करना यानी एक तरह का पाप करने जैसा है. सबसे ज्यादा भारत और पाकिस्तान में. या सही मायने में कहे कि यह एक तरह की हिपोक्रेसी है . इन दोनों देशों में लोग सबसे ज्यादा पॉर्न देखते है लेकिन बात करते हुए इसे पाप मानते है.

हालांकि भारत सरकार ने अधिकांश पॉर्न साइट्स पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन उन तक पहुंचना कोई मुश्किल बात नहीं. इस बात को ध्यान में रखे कि सेक्स और पॉर्न दोनो ही बहुत अगल हैं एक दूसरे से जैसे: पॉर्न एग्रेसिव सेक्स को दर्शाता है , और सेक्स फिजिकल प्लेजर है जो कि एक स्वाभाविक बात है .

यदि आप अधिक पॉर्न देखते है तो  क्या आप जानते है पॉर्न देखने के कितने नुकसान हो सकते है? कोई भी चीज यदि ज्यादा हद तक की जाये तो वह हानिकारक ही होती है. पॉर्न की लत भी उसी तरह है जो पीछा आसानी से नहीं छोड़ती है . पर आप यह जानने के बाद अपने आप पीछे हट जाएंगे कि पॉर्न से कैसे होता है नुकसान.

अत्यधिक पॉर्न पहुंच सकता है नुकसान :

* रियलिटी से दूर होना :

इंटरनेट पॉर्न की कहानियां घटिया स्टोरी लाइन पर निर्धारित है जो एक पिज्जा डिलीवरी बॉय से ले कर एस्ट्रोनॉट तक ही सीमित है . जैसे ही पॉर्न अनिवार्य रूप से रिग्रेसिव सोसायटी में सेक्स एजुकेशन का एक मात्र स्त्रोत बन जाता है , दर्शक अनियंत्रित रूप से इन हाफ– बेक्ड  स्टोरीलाइन को वास्तविक जीवन का एक हिस्सा समझ लेते है. जिससे लोगों में  कंसेंट  की  गलत समझ  पैदा होती है, और समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

* आत्मसम्मान में कमी ना :

अक्सर पॉर्न वीडियो में जो लोग होते है वे कई वर्षो से इस काम को कर रहे होते है , वे अनुभवी हैं और जानते हैं की कैमरे के सामने खुद को कैसे संभालना है. एक युवा दर्शक जो ऐसे पॉर्न नियमित रूप से देखता है , वह खुद की परफॉर्मेंस और फिजिक को उनसे तुलना  करके धीरे धीरे खुद से ही नाराज हो जाते है जो उन्हे अंततः आत्मसम्मान की कमी की ओर ले जाता है.

* सेक्स के दौरान मजा ना :

इंटरनेट पॉर्न के कंटेंट को एक प्रोफेशनल टीम इस तरह दर्शती है जो लोगो को एक अलग तरह का प्लेजर देता है . उसे इस कदर प्रदर्शित करते है जो दर्शकों प्रसन्न करता है. एक मेकअप आर्टिस्ट से लेकर साउंड एडिटर तक पूरी टीम उस वीडियो को इतनी ग्लॉसी बनाती है की दर्शक सोचते है की यही हकीकत है . जबकि वास्तविकता कुछ और ही होती है . इससे आप स्वयं , अपने पार्टनर , और अपने फिजिकल इंटिमेसी से निराश हो जाते हैं.

* रिश्ते टूटने का डर :

एक रेगुलर पॉर्न दर्शक के लिए  पॉर्न वीडियो के कुछ कार्य ,  सेक्स का आदर्श बन जाते है जबकि उनके पार्टनर के सेक्स के प्रति कुछ  अलग विचार रहते है. इससे रिश्ता में दरार पड़ जाती है और शारीरिक परेशानी भी पैदा होती है .

* आदत बन जाना :

एक स्टडी के अनुसार पॉर्न की लत और ड्रग की लत को एक समान माना गया है क्योंकि दोनों एक समान तरीके से मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाते हैं. इंटरनेट पर पॉर्न की आदत लगने की संभावना सबसे ज्यादा पाई गई  है.

इंटरनेट वेबसाइट इस तरह पॉर्न को दर्शाते है की यह दर्शकों की आदत ही बन जाती है. लोग ऐसे विडियोज को पसंद करते हैं और खुद को इन सब में इन्वॉल्व कर लेते हैं . चिंता की बात यह है की पॉर्न लोगों पे इस तरह हावी हो जाता है की लोग खुद की इच्छाओं को भूल जाते  हैं, अपने विचारों को बदल देते हैं, जो उन्हे खुद भी कभी महसूस नहीं होता.

मानसून में रखें अपना ख्याल, करें इन 6 टिप्स को फॉलो

इन दिनों मानसून का आगाज हो चुका है ऐसे में अच्छे मौसम के साथ कई बिमारियां भी साथ-साथ आती है. तो ऐसे में जरुरी है कि आप खुद को फिट रखें, जिनके लिए आपको कुछ टिप्स फॉलो करने होंगे. बता दें, कि बारिश के मौसम में संक्रमण फैलना का ज्यादा डर रहता है तो ऐसे में जरुरी है कि आप अपने फिटनेस को लेकर सतर्कता बरतें, और इन बातों को फॉलो करें.

  1. उबालकर पानी पिएं – एक्सपर्ट की सलाह है कि इस मौसम में लोगों को हमेशा उबालकर ही पानी पीना चाहिए. ऐसा करने से पानी में मौजूद बैक्टीरिया और रोगाणु नष्ट हो जाते हैं. इसके अलावा रोजाना सुबह गुनगुने पानी में नींबू डालकर पीने से शरीर से हानिकारक विषाणु शरीर से बाहर आते हैं.

2. कम खाएं नमक- मॉनसून के वक्त हमें खाने में नमक कम या स्वादानुसार ही रखना चाहिए. शरीर में नमक सोडियम की मात्रा को बढ़ाने का काम करता है जो आगे चलकर हाई ब्लड प्रेशर का कारण भी बन सकता है. हाइपरटेंशन, कार्डियोवस्क्यूलर डिसीज और डायबिटीज के रोगियों को भी खाने में नमक हिसाब से लेना चाहिए.

3. सीजनल फलों का करें सेवन-  इस मौसम में सिर्फ सीजनल फलों का ही सेवन करना चाहिए. बारिश के मौसम में आप जामुन, पपीता, बेर, सेब, अनार, आड़ू और नाशपाती जैसे फलों को खा सकते हैं. इन फलों से मिलने वाला न्यूट्रीशन शरीर को इंफेक्शन, एलर्जी और सामान्य रोगों से दूर रखता है.

4. भरपूर नींद लें-  मॉनसून में हमें इम्यूनिटी को बूस्ट करने वाला फूड खाना चाहिए. इसमें आपको कद्दू, ड्राय फ्रूट्स, वेजिटेबल सूप, चुकंदर और टोफु जैसी चीजें खानी चाहिए. इसके अलावा रोजाना 7-8 घंटे की पर्याप्त नींद लेनी चाहिए.

5. स्ट्रीट फूड से बचें- बारिश के मौसम में स्ट्रीट फूड खाने का काफी मन करता है लेकिन अगर आपको सेहत प्यारी है तो बाहर के खाने से बचना चाहिए. स्ट्रीट फूड को बनाते वक्त हाइजीन का उतना ध्यान नहीं रखा जाता. ऐसे में कई बार रखा हुआ या तला भुना खाने से पेट में दिक्कत हो सकती है.

6. कच्चा खाने से परहेज- मॉनसून में आपको कच्चा खाना खाने से बचना चाहिए. इस मौसम में मेटाबोलिज्म काफी धीरे काम करता है. जिसकी वजह से खाना देर से पचता है. बारिश में बाहर का जूस और सलाद खाने से बचें. ज्यादा देर से कटे हुए फल भी ना खाएं.

बीमारियों से दूर रहने के 5 टिप्स

इंसान के लिए सब से कीमती होती है उस की सेहत. पर आज के भागदौड़ भरे जमाने में खराब लाइफ स्टाइल के चलते हम बीमार रहने लगे हैं. ये बीमारियां शहरों और गांवदेहात के लोगों को अपनी चपेट में ले रही हैं. इन बीमारियों से दूर रहने के लिए हमें अपना ध्यान रखना बहुत जरूरी है. अगर अपनी रोजाना की जिंदगी में हम कुछ बातों का खयाल रखें, तो एक सेहतमंद जिंदगी जी सकते हैं. तो आइए जानें न्यूट्रीशनिस्ट, डाइटीशियन और फिटनैस ऐक्सपर्ट मनीषा चोपड़ा से अपने शरीर की बीमारियों को दूर रखने के कुछ टिप्स :

1. मौसमी सब्जियों और फलों का सेवन

वैसे तो कई सब्जियां और फल पूरे साल मौजूद रहते हैं, लेकिन सिर्फ उन्हीं को खाना जरूरी है, जो चल रहे मौसम के लिहाज से सही हों. सेहत से भरपूर और ताजा भोजन हासिल करने की कोशिश करें. आप इस मौसम  के लिहाज से टमाटर, बैरी, आम, तरबूज, खरबूजा, आलूबुखारा, नारंगी जैसे फलों और सब्जियों पर ध्यान दे सकते हैं.

2. सही मात्रा में पानी पीएं

पानी पीना और इस मानसून के सीजन में शरीर में नमी बनाए रखना बेहद जरूरी है. पक्का करें कि खुद को ताजगी महसूस कराने की कोशिश में हर दिन कम से कम 8 से 10 गिलास पानी पीएं. अगर मुमकिन हो, तो कम ठंडा पानी पीएं, क्योंकि ज्यादा ठंडा पानी पीने से सेहत से जुड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

3. नियमित रूप से कसरत करें

कसरत हमारे शरीर के लिए बेहद जरूरी है. यह हमें अनेक बीमारियों से बचाए रखती है, इसलिए अपने शरीर को बीमारियों से दूर करने के लिए नियमित रूप से कसरत करना बहुत जरूरी है.

4. ताजा फलों का जूस पीएं

बहुत से ऐसे लोग हैं, जो ज्यादा प्यास लगना महसूस करते हैं और अकसर अपनी प्यास बुझाने के लिए कोल्ड ड्रिंक पीना पसंद करते हैं, लेकिन ऐसे ठंडे पेय आप के शरीर को फायदे के बजाय नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए कोल्ड ड्रिंक के बजाय ताजा फलों के जूस का इस्तेमाल करें. ये कोल्ड ड्रिंक के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद होते हैं और इन से आप की सेहत और ज्यादा फिट रह सकती है.

5. शरीर की सफाई रखें

सेहतमंद शरीर के लिए साफसफाई जरूरी है. यह ध्यान रखें कि आप जो भोजन या पीने की चीज ले रहे हैं, वह साफ और ताजा हो. आप का शरीर घर या रैस्टौरैंट में गंदे बरतनों की वजह से बैक्टीरियल इंफैक्शन का शिकार हो सकता है, इसलिए खाने से पहले और खाने के बाद अपने हाथों को अच्छी तरह से धोएं. अपने चेहरे को भी समयसमय पर धोते रहें.

क्या करें जब बहकने लगें उन की निगाहें

नई शादी, ढेरों उमंगें. राजेश और नीता ने हनीमून के लिए नैनीताल जाने का प्रोग्राम बनाया. नैनीताल पहुंचते ही नीता चहक उठी, ‘‘अब हम जी भर कर घूमेंगे और प्यार करेंगे.’’

नीता की बात का राजेश ने भी पूरा समर्थन किया, ‘‘हां, यहां तो अपने ही दिन हैं और अपनी ही रातें. खो जाएंगे एकदूजे में हम और तुम, तुम और हम.’’

जब तक वे दोनों होटल के कमरे में रहते, तब तक तो सब ठीक रहता. पर जब भी वे कहीं घूमने जाते, तो नीता हमेशा पाती कि उस से बातें करते समय राजेश का ध्यान आसपास घूमती अन्य स्त्रियों पर चला जाता है. नईनवेली होने के कारण वह राजेश से कुछ न कह पाई.

मर्दों की आदत

हनीमून से लौट कर जब नीता ने अपनी भाभी को यह बात बताई तो वे हंस दीं, ‘‘अरी बन्नो, इतनी सी बात को ले कर पूरे हनीमून में परेशान रहीं तुम. पराई औरतों को ताकना तो मर्दों की आदत होती है.’’

‘‘एकदम ठीक कहा भाभी आप ने,’’ सरिता ने समर्थन किया, ‘‘यदि पुरुषों के पास मेनका को भी बैठा दो, तो भी वे इधरउधर ताकनेझांकने से बाज नहीं आएंगे.’’

इस पर तेजतर्रार रश्मि ने एक मजेदार वाकेआ सुनाया, ‘‘मैं तो अपने पति पर हमेशा निगरानी रखती हूं, फिर भी वे मौका पा कर आंखें सेंक ही लेते हैं.

विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण

सभी पत्नियों ने इस बात को एकमत से स्वीकार किया कि उन के पति उन की उपस्थिति में भी अन्य महिलाओं को घूरने से नहीं चूकते.

सामने खूबसूरत बीवी बैठी है, पर पति महोदय हैं कि बीवी से बातें करतेकरते बीचबीच में आसपास बैठी लड़कियों पर भी दृष्टिपात कर ही डालते हैं. आखिर पुरुष ऐसा क्यों करते हैं?  इस विषय में जब कुछ पुरुषों से ही पूछा कि क्या यह सच है कि अधिकांश पुरुषों की नजरें चंचल होती हैं तो सब ने यह स्वीकार किया कुछ अलगअलग ढंग से.

‘‘पत्नियां तो जरा सी बात का बतंगड़ बना देती हैं. अब आप ही बताइए एक नजर किसी और महिला पर डालने में क्या कोई बुराई है? हमारे देखने से वह दूसरी महिला हमारी तो नहीं बन सकती है न?’’

‘‘अजी, क्या बताएं सुंदर चेहरे पर तो निगाहें अपनेआप ही चली जाती हैं. कुदरत ने हर खूबसूरत चीज बनाई ही देखने के लिए है.’’

संदेह न पालें

‘‘बीवी तो यही चाहती है कि उस का पति चौबीसों घंटे बस उसी को ताकता रहे. पति की नजरें किसी और औरत पर पड़ी नहीं कि बीवी न जाने क्याक्या ऊलजलूल सोचने लगती है. हम पतियों की तो मुसीबत ही मुसीबत है. मैं तो किसी बुढि़या को भी देखूं तो पत्नी घूरने लगती है. संदेह तो पत्नियों के मन में होता है, हमारे मन में ऐसीवैसी कोई बात नहीं होती है.’’

देखा आप ने, कितनी सहजता से पुरुषों ने अपनी बात कह दी. पर पत्नी यदि अपने पति को अन्य महिला की ओर देखते या उस की प्रशंसा करते सुनती है तो उस के मन में न जाने कैसेकैसे विचार पनपने लगते हैं. उस के मन में असुरक्षा की भावना भी उत्पन्न होने लगती है. वह सोचती है कि उस में अब पहले जैसा आकर्षण नहीं रहा. उस के पति उसे पहले जैसा प्यार नहीं करते, तभी तो उस के सामने रहते हुए भी अन्य स्त्रियों पर उन की निगाहें टिक जाती हैं.

प्यार दें प्यार लें

जब 2 प्राणी विवाह के बंधन में बंधते हैं, तो दोनों यही चाहते हैं कि एकदूसरे के प्रति पूरी तरह समर्पित रहें. दोनों अपना पूरा प्यार, पूरा ध्यान तथा समय एकदूसरे को ही दें. पर कभीकभी पति पत्नी से बेहद प्यार करते हुए भी किसी अन्य सुंदर स्त्री को देख कर उस की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाता. इस का मतलब यह तो नहीं कि वह अपनी पत्नी से प्यार नहीं करता.

किसी की तारीफ करना कोई बुरी बात तो नहीं. इसलिए आप के पति यदि आप के सामने किसी अन्य महिला की प्रशंसा करें तो आप मुंह फुला कर अपनी तुच्छ मानसिकता का परिचय न दें, बल्कि उसे सहज रूप से लें और हो सके तो आप भी उस महिला की तारीफ में चंद शब्द कह दें.

यदि आप सोचती हैं कि आप अपने पति के प्रति बहुत अधिक भावुक हैं या उन के किसी अन्य महिला की ओर देखने से अपना अधिकार छिनता हुआ महसूस करती हैं तो पहले अपने मन की इस असुरक्षा की भावना का भी परीक्षण करें. क्या आप को अपनी सुंदरता, बुद्धिमत्ता या योग्यता में कहीं कुछ कमी नजर आती है? आप अपने व्यक्तित्व को, अपने गुणों को निखारने की कोशिश करें. आप पति को पूरा प्यार देंगी, तो वे आप से दूर नहीं जाएंगे.

पति की इस आदत को गंभीरता से ले कर राई का पहाड़ न बनाएं. आप के पति लाख इधरउधर देखें, पर अधिकार तो उन पर सिर्फ आप का ही है.

सिक्स पैक बौडी युवाओं की पहली पसंद

सिक्स पैक दिखने में जितने आकर्षक होते हैं, बनाने में उतनी ही मेहनत लगती है. अगर आप सिक्स पैक और आकर्षक बौडी की चाहत रखते हैं तो इसे पढ़ लें एक बार. सिक्स पैक एब्स आजकल के युवाओं की पहली पसंद है. दुनिया में शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जो खूबसूरत आकर्षक बौडी न चाहता हो. लड़कियों को जहां जैकलीन, कैटरीना और दीपिका जैसी फिगर की चाहत होती है, वहीं लड़कों को जौन अब्राहम, ऋतिक रोशन या टाइगर श्रौफ जैसे सिक्स पैक बौडी की चाहत होती है.

पर यह तभी मिल सकती है जब युवाओं में सिक्स पैक एब्स के लिए डैडिकेशन, विलपावर, धैर्य, साहस, समय और डाइट का संतुलन हो. इन के बिना सिक्स पैक एब्स बनाना नामुमकिन है. इस संदर्भ में जिम ट्रेनर पवन मान का कहना है कि सिक्स पैक एब्स बनाने के लिए डैडिकेशन, विलपावर, धैर्य, साहस और समुचित व्यायाम व खानपान पर नियंत्रण करने की बहुत सख्त जरूरत है. पेश हैं कुछ जरूरी टिप्स जो सिक्स पैक बौडी बनाने में कारगर साबित होते हैं. डाइट सिक्स पैक एब्स के लिए संतुलित डाइट बहुत जरूरी है. आप की डाइट में ऐसे खाद्य पदार्थ शामिल होने चाहिए जिन में फैट कम हो व कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन समुचित मात्रा में हो.

कार्बोहाइड्रेट जहां बौडी को एनर्जी देता है वहीं प्रोटीन मसल टिशूज को मजबूत बनाता है. कार्बोहाइड्रेट 3 प्रकार के होते हैं- सिंपल, कौंप्लैक्स व सौलिड. इन तीनों प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स का संतुलित इस्तेमाल सिक्स पैक एब्स पाने के लिए बहुत जरूरी है. ऐक्सरसाइज सिक्स पैक का सीधा संबंध ऐक्सरसाइज से है. इसलिए सिक्स पैक बनाने के लिए रोज व्यायाम करना बहुत जरूरी है. रोज आधेपौने घंटे व्यायाम करने से शरीर में जमी अतिरिक्त कैलोरी कम होती है. लगातार मोटिवेशन और मेहनत द्वारा सिक्स पैक बनाए जा सकते हैं. रैगुलर ऐक्सरसाइज स्वस्थ शरीर के साथसाथ शरीर की बनावट को भी सुडौल बनाती है. व्यायाम तनाव को दूर भी करता है.

अध्ययनों से पता चला है कि नियमित व्यायाम उच्च रक्तचाप, मोटापा, आघात, दिल की बीमारियों की रोकथाम में भी मददगार है. विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सप्ताह में कम से कम 4 दिन 30-40 मिनट की एरोबिक्स एक्टिविटी करना बहुत लाभकारी होता है. संगीत की ताल के साथ ऐक्सरसाइज करना तन और मन दोनों को स्वस्थ रखता है. हार्ड वर्कआउट भी सिक्स पैक एब्स बनाने में काफी सहायक होता है. फैट घटाने के लिए डाइट कम करने के बजाय वर्कआउट करना सही विकल्प है. इस के अलावा साइक्लिंग, जौगिंग, नियमित वाक और स्विमिंग अच्छी एरोबिक ऐक्सरसाइज हैं.

यों कहिए कि मसल्स बढ़ाने और कैलोरी बर्न करने का यही नैचुरल तरीका है. आजकल युवाओं पर सिक्स पैक एब्स का जनून इस कदर छाया है कि वे अपनी आकर्षक बौडी बनाने के लिए आतुर हैं. इस आतुरता को कैसे अंजाम देना चाहते हैं, ये युवा. आइए, जानते हैं. उन्हीं की जबानी. एक मल्टीनैशनल कंपनी में बतौर मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव के पद पर कार्यरत 25 वर्षीय प्रमोद कुमार का कहना है, ‘‘मैं चाहता हूं कि अच्छी फिटनैस के साथसाथ मेरी बौडी व लुक भी काफी आकर्षक लगे.

इस के लिए मेरे शरीर का सुगठित होना बहुत जरूरी है. मैं अपने लुक व बौडी को ले कर काफी गंभीर हूं. अपनी बौडी और लुक को अपने मनमाफिक बनाने के लिए रोजाना सुबह जिम में जा कर वर्कआउट करूंगा.’’ 35 वर्षीय सौफ्टवेयर इंजीनियर पंकज कुमार का कहना है, ‘‘मैं समय से पहले बूढ़ा नहीं होना चाहता. मैं फिट रहना चाहता हूं. इसलिए मैं सुबह 5 बजे सैर पर निकल जाता हूं. पार्क में एक घंटे ऐक्सरसाइज करता हूं. औफिस में सीढि़यों का इस्तेमाल ज्यादा करता हूं. मैं अपने शरीर में इन वर्कआउट करने से फुरती महसूस करता हूं.

मैं लोगों को यही कहना चाहूंगा कि फिट रहने के लिए हमेशा सैर करें. व्यायाम के लिए समय निकालें. फैट कम करने के लिए दवाइयों का कतई इस्तेमाल न करें.’’ युवा अपनी सेहत और शरीर के प्रति जागरूक हो गए हैं. वे अपने को फिट रखने के लिए जिम व ऐक्सरसाइज की सहायता लेने लगे हैं. कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि जिम व ऐक्सरसाइज करने में केवल सेहत ही नहीं, एक आकर्षक लुक भी मिलता है. साथ ही, जिम कई तरह की बीमारियों से भी हमें दूर रखते हैं.

जागरूकता: मैं कुंआरी हूं

संवाददाता

क्या यह पता चल सकता है कि कोई लड़की कुंआरी है या नहीं?

पहली रात को खून नहीं निकलता तो क्या लड़की ने सैक्स किया है?

क्या खेलकूद से भी कुंआरेपन की झिल्ली फट जाती है?

ऐसा क्या करें कि कुंआरेपन की झिल्ली सुहागरात तक बची रहे?

पहली बार सैक्स करने में दर्द नहीं तो क्या लड़की कुंआरी नहीं है?

क्या एक बार खोया हुआ कुंआरापन फिर से पाया जा सकता है?

क्या ज्यादा सैक्स करने से औरत के अंग में ढीलापन आ जाता है?

कोई लड़की अपने कुंआरेपन को कैसे साबित कर सकती है?

लड़के के जोर लगाने से क्या लड़की की सुहागरात का पता चलता है?

द्य क्या ज्यादा हस्तमैथुनकरने से कुंआरेपन की झिल्ली फट सकती है?

तकरीबन 42 फीसदी लड़कियों को ही पहले सैक्स के दौरान खून आता है,

इसलिए यह कहना समझदारी नहीं है कि जिन्हें खून नहीं आया है वे कुंआरी भी नहीं हैं.

ऐसे कई सवाल हैं, जो बड़े होने की दहलीज पर खड़े लड़केलड़कियों के मन में कौंधते रहते हैं, पर उन्हें इन का सही जवाब नहीं मिल पाता. इस की एक वजह तो जरूरी सैक्स ऐजूकेशन का न होना है. चूंकि कुंआरेपन का पहलू बड़े तौर पर लड़कियों से ही जुड़ा रहता है, इसलिए लड़कियां ही इस मामले में ज्यादा परेशान रहती हैं. कई लड़कियां तो प्यार, सैक्स और शादी को ठीक से एंजौय नहीं कर पाती हैं.

एक सर्वे से पता चला था कि भारतीय लड़कियां 17 साल की औसत उम्र में अपना कुंआरापन खो रही हैं, जबकि भारतीय लड़की की शादी की औसत उम्र इस से ज्यादा होती है.

एक और सैक्स सर्वे के मुताबिक, शादी से पहले सैक्स कर चुके मर्दों की तादाद औरतों के मुकाबले 3 गुना है. इस के बावजूद 77 फीसदी मर्द कुंआरी दुलहन ही चाहते हैं. इन का कहना है कि अगर इन्हें पता चले कि उन की होने वाली पार्टनर या पत्नी ने पहले सैक्स किया हुआ है, तो वे उस से संबंध ही नहीं बनाएंगे. यही नहीं, शादी से पहले प्यार करने वाले भी चाहते हैं कि लड़की का किसी से पहले सैक्स न हुआ हो.

गायनोकोलौजिस्ट की राय

हाइमन रैस्टोरेशन या रीवर्जिनेशन एक कौस्मैटिक सर्जरी है, जो फटी झिल्ली को रिपेयर करने के लिए की जाती है. टांकों द्वारा फटी झिल्ली को पुरानी जैसा बनाया जाता है. हाइमनोप्लास्टी के बढ़ते चलन के पीछे शादी से पहले सैक्स की बढ़ती सोच है. यह लड़कियों की शादीशुदा जिंदगी पर असर डाल सकती है. हाइमन केवल सैक्स से ही नहीं, बल्कि खेल जैसे घुड़सवारी या मुश्किल शारीरिक कसरत या फिर नाचने से भी फट सकती है.

यह ओपीडी प्रोसीजर है, जो लोकल एनैस्थिसिया दे कर किया जाता है और इस में तकरीबन डेढ़ घंटे का वक्त लगता है. अगर इसे माहिर डाक्टर द्वारा कराया जाए, तो साइड इफैक्ट जैसे आपरेशन के बाद दर्द, असामान्य रूप से खून बहना, असामान्य वैजाइनल डिस्चार्ज, जलन या इंफैक्शन या अंसतोषजनक नतीजे बहुत कम देखने को मिलते हैं. लड़की 2-3 दिन में सामान्य हो कर काम पर लौट सकती है. पूरी तरह से ठीक होने में 6-7 हफ्ते लगते हैं. आपरेशन के 2-3 हफ्तों तक बैठने और भारी कसरत के प्रति सावधानी बरतें. इस के बाद पहली बार सैक्स करने पर दर्द और खून निकलता है.

हाइमनोप्लास्टी सर्जरी को सुहागरात में लड़की कुंआरी है और खून नहीं निकला, इस के लिए कराई जाती है. इस सर्जरी में वैजाइना से ही टिशू ले कर कृत्रिम हाइमन झिल्ली बनाई जाती है. इस का खर्च तकरीबन 70-80 हजार रुपए आता है. यह सर्जरी एक बार के लिए ही होती है.

लेबियाप्लास्टी यानी डिजाइनर अंग आपरेशन के जरीए जननांग के अंदरूनी हिस्से को कम कर दिया जाता है. हीनभावना के चलते लड़कियां लेबियाप्लास्टी कराती हैं. इस में प्यूबिक एरिया की ऐक्स्ट्रा चरबी को लिपोसक्शन के जरीए कम या फिर सर्जरी से ड्रिम कर देते हैं. इस सर्जरी में भी दिन में ही डिस्चार्ज मिल जाता है और इस का खर्च तकरीबन 50-60 से एक लाख रुपए तक आता है.

वैजाइनोप्लास्टी या कहें वैजाइना टाइटनिंग. यह बाकी 2 सर्जरी से बड़ी सर्जरी है. इस के लिए एक दिन रुकना पड़ सकता है. वैजाइना का ढीला हो जाना और उसे सर्जरी द्वारा टाइट व कसावट लाने के लिए यह सर्जरी की जाती है. इस का खर्च 50-60 हजार रुपए ही है. इस में भी 3 हफ्ते तक सैक्स संबंध मना होते हैं. डिलीवरी के बाद महिला के अंग का ढीला पड़ जाना सामान्य बात है. इसे लैक्स पैरिनियम कहते हैं. वैजाइना से ऐक्स्ट्रा लाइनिंग को हटा कर व चारों ओर के मुलायम टिशू और मांसपेशियों में कसावट ला कर वैजाइना का ढीलापन दूर किया जा सकता है.

आम सवाल

मैं कैसे पता करूं कि मेरी गर्लफ्रैंड या होने वाली बीवी कुंआरी है?

इस तरह के आम सवाल डाक्टरों और कौस्मैटिक सर्जनों के मेल बौक्स में ज्यादा पूछे गए हैं. इस का जवाब है कि इसे जानने का कोई रास्ता नहीं है.

डाक्टरों के मुताबिक,कुंआरापन कोई बड़ा मसला नहीं है, मगर मर्दों की यह पुरानी शिकायत रही है कि पहली रात को खून नहीं निकला. ऐसा सभी के साथ होना जरूरी नहीं है. इस का मतलब यह नहीं है कि वह लड़की कुंआरी नहीं है. किसी लड़की की अंदरूनी झिल्ली स्कूल के दिनों में ही फट जाती है, तो किसी की सुहागरात पर भी नहीं फटती.

एक सच

एक गायनोकोलौजिस्ट के मुताबिक, लड़की के प्राइवेट पार्ट में मौजूद झिल्ली के फटने से खून निकलना कुंआरेपन का सुबूत नहीं है. सच बात यह भी है कि कुछ लड़कियों में झिल्ली जन्म से नहीं होती, लेकिन कुछ लड़कियों की यह परत बेहद लचीली होती है और सैक्स के दौरान भी नहीं फटती है. इतना ही नहीं, कई लड़कियों को इस परत के बारे में भी पता नहीं चल पाता है. झिल्ली को सैक्स किए बिना दूसरी चीजों से नुकसान पहुंच सकता है.

ऐसे पता चले कुंआरापन

लड़की या तो खुद स्वीकार कर ले या वह शादी से पहले पेट से हो चुकी हो. बता दें कि एक झिल्ली कभी भी कुंआरेपन का सुबूत नहीं हो सकती, क्योंकि आजकल तो रीवर्जिनिटी के जरीए सर्जन आसानी से झिल्ली की तरह के टिशू बना लेते हैं.

अगर चौइस दी जाए, तो शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने वाले नौजवान ज्यादातर मामलों में अपने लिए भी कुंआरा पार्टनर ही चाहते हैं. ऐसा लड़के और लड़कियां दोनों के केस में

देखने को मिलता है. लड़कों को लड़कियों के मुकाबले इस मामले में अपनी इच्छा जाहिर करने का ज्यादा मौका मिलता है, इसलिए यह माना जाता है कि कुंआरेपन को ले कर मर्द ज्यादा चिंतित रहते हैं.

सर्जरी कराने या न कराने पर कोई ऐसा दर्द नहीं होता, जो झेला न जा सके. ज्यादातर औरतों को सुहागरात की वजह से भी सैक्स के दौरान होने वाला दर्द बढ़ जाता है.

हमारे समाज में लड़कियों को ऐसे सपने दिखाए जाते हैं कि तकरीबन हर लड़की कुंआरेपन के बारे में सोचते हुए ही बड़ी होती है. आसपास के हालात कैसे भी हों, हर लड़की शादी के बाद सुहागरात को सजनेसंवरने और दुनिया की सब से खास शादी करना चाहती है.

जिंदगी की परेशानियों, हालात से इस दिन का कुछ लेनादेना नहीं रह गया है. यही वजह है कि लड़कियों पर इतने फालतू के दबाव बना दिए गए हैं कि उस से प्यार, लिवइन व शादी तक अनछुई, अनदेखी होने की उम्मीद की जाती है.

लड़की के पार्टनर की सब से बड़ी ख्वाहिश यह होती है कि लड़की कुंआरी हो यानी उस के किसी के साथ शारीरिक संबंध न रहे हों. इस बात को शादी से पहले तो लड़का इशारों में खुले तौर पर लड़की से पूछ ही लेता है. प्यार करने वाले भी पूछे बिना नहीं रहते. लड़की के चालचलन के बारे में पूरी जांचपड़ताल कर ली जाती है.

लड़का सुहागरात के दिन लड़की का कुंआरापन भंग करने के सपने देखता है. आजकल भी कई जगहों पर दूल्हे के घर वाले अगले दिन चादर पर दुलहन का कुंआरापन भंग होने की निशानी यानी खून के धब्बे खोजते हैं. जब ‘कुंआरेपन की झिल्ली’ साइकिल चलाने, दौड़ने, तैरने जैसे सामान्य कामों में ही फट सकती है, तो लड़कियों के पास ही रास्ता बचता है रीवर्जिनिटी पाने का. एक डाक्टरी संस्थान के सर्वे से पता चला है कि लड़कियां रीवर्जिनिटी इसलिए करवाती हैं, ताकि उन की शादीशुदा जिंदगी शांति से बीते.

छोटा मर्दाना अंग, चिंता की कोई बात नहीं

ऐसे तमाम लोग हैं, जो अपने अंग के आकार को ले कर तहतरह की चिंताएं और डर मन में पाले रहते हैं. कुछ लोग तो अपने अंग के आकार को ले कर हीनभावना का शिकार हो जाते हैं. यही वजह है कि लोगों द्वारा मन के समाधान के लिए सैक्सोलौजिस्ट से सब से ज्यादा पूछा जाने वाला यह सामान्य सवाल है. कभीकभी तो पिता अपने लिए ही  नही, अपने बेटे के लिए भी डाक्टर से पूछता है.

अपने अंग के आकार को ले कर चिंतित ज्यादातर लोग सैक्सोलौजिस्ट से किसी दूसरी समस्या के बहाने से मिलना पसंद करते हैं. इस बारे में चिंता करने वाले ज्यादातर लोग 20 से 40 साल की उम्र के बीच के होते हैं. छोटे अंग को ले कर चिंता होना तो वाजिब है, पर यह कोई समस्या नहीं है.

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सामान्य व असामान्य आकार

जिस तरह हर आदमी की नाक, आंखें और सिर का आकार अलग अलग होता है, उसी तरह हर आदमी के अंग की लंबाई, मोटाई और तनाव के समय उस का आकार अलग अलग होता है. किसी भी आदमी के आत्मविश्वास के लिए अंग का आकार बहुत अहमियत रखता है. ज्यादातर मर्द अपने अंग के छोटे आकार को ले कर चिंतित रहते हैं.

तकरीबन 45 फीसदी मर्द चाहते हैं कि उन का अंग बड़ा हो, जबकि एक सर्वे से पता चला है कि मर्दों से संबंध बनाने वाली 85 फीसदी औरतें अपने पार्टनर के अंग के आकार और उस से मिलने वाले शारीरिक सुख से संतुष्ट होती हैं.

तमाम लोगों को अंग के तनाव के बाद उस के आकार यानी लंबाई को ले कर चिंता सताती है, तो कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें बिना तनाव वाले अंग के आकार को देख कर चिंता होती है.

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अब सवाल यह उठता है कि अंग का सामान्य आकार क्या है? अंग छोटा है या बड़ा, यह कैसे तय किया जाए?

औरत के अंग की लंबाई तकरीबन 15 सैंटीमीटर होती है, जिस में बाहर के भाग में तकरीबन 5 सैंटीमीटर ही कोई चीज महसूस करने की ग्रंथियां होती हैं, जबकि अंदर के बाकी 10 सैंटीमीटर भाग में तकरीबन कुछ महसूस नहीं होता है, इसलिए बिना तनाव वाले मर्दाना अंग के आकार को ले कर चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उस का इस्तेमाल महज पेशाब करने के लिए ही होता है.

पूरी तरह तनाव वाला अंग ही सैक्स करने के लिए इस्तेमाल होता है. इस तरह अंग की मोटाई कोई अहमियत नहीं रखती. औरत का अंग छोटी सी उंगली से ले कर बच्चे के सिर जितना चौड़ा हो सकता है. वह अपने अंदर प्रवेश किए मर्दाना अंग की मोटाई और आकार के मुताबिक खुद में बदलाव कर लेता है.

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मर्दाना अंग का नाप जानने के लिए सब से सही तरीका एसपीएल यानी स्ट्रैच्ड पेनिस लैंथ के रूप में जाना जाता है. जिस मर्द का एसपीएल जितना लंबा उस का अंग उतना लंबा माना जाता है.

ज्यादातर जवान मर्दों के अंग की लंबाई 5.24 इंच होती है. अंग की लंबाई के बारे में ज्यादातर सर्वे में यही लंबाई बताई गई है, तो फिर बड़ा अंग किसे कहा जाएगा? महज 0.6 फीसदी मर्दों का एसपीएल 6.8 इंच या इस से ज्यादा होता है, जबकि ज्यादा लंबा अंग होने पर चिंता करने की जरूरत नहीं है.

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