हैपेटाइटिस : खतरनाक बीमारी पर कार्यवाही का वक्त आया

देश में हैपेटाइटिस बीमारी का खतरा लगातार बढ़ रहा है. दुनियाभर में तकरीबन साढ़े 25 करोड़ लोग हैपेटाइटिस बी और तकरीबन 5 करोड़ लोग हैपेटाइटिस सी से पीड़ित हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि हैपेटाइटिस बी और हैपेटाइटिस सी का खतरा लगातार बढ़ रहा है और इस से रोजाना दुनियाभर में तकरीबन 35,000 जानें जा रही हैं.

health इस बीमारी से लोगों को जागरूक करने के लिए 28 जुलाई को पूरी दुनिया में ‘हैपेटाइटिस दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. इस के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि अब हैपेटाइटिस के खिलाफ लड़ने का समय आ गया है और इस की थीम भी ‘कार्यवाही का वक्त आया’ रखी गई है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस सिलसिले में दक्षिण एशिया के देशों से हैपेटाइटिस बी और हैपेटाइटिस सी की रोकथाम के लिए टीकाकरण, बीमारी की पहचान और इलाज सभी को देने की कोशिशें तुरंत बढ़ाने को कहा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, रोकथाम और इलाज लायक होने के बाद भी पुराने संक्रमण तेजी से गंभीर बीमारियों समेत लिवर कैंसर सिरोसिस से म्यूट की वजह बन रहे हैं. मौजूदा समय में लिवर कैंसर दक्षिणपूर्व एशिया में कैंसर से होने वाली म्यूट की चौथी सब से बड़ी वजह है. मर्दों में कैंसर से होने वाली म्यूट की दूसरी सब से आम वजह भी यही है. यह तपेदिक से होने वाली म्यूट के बराबर है.

हमारे देश में वायरल हैपिटाइटिस को रोकने और इस का इलाज करने के लिए तकनीकी ज्ञान और उपकरण भी उपलब्ध हैं. हमें प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा स्तर पर समुदायों को सामान सेवाएं देने की कोशिशों में तेजी लाने की जरूरत है. समय पर जांच और इलाज से हैपेटाइटिस बी को सिरोसिस और कैंसर पैदा करने से रोका जा सकता है.

मरीज को हैपेटाइटिस की समस्या होने पर डायरिया, थकान, भूख न लगना, उलटी होना, पेट में दर्द होना, दिल घबराना, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द रहना, वजन अचानक कम होना, सिर दर्द रहना, चक्कर आना, पेशाब का रंग गहरा होना, मल का रंग पीला हो जाना, त्वचा, आंखों के सफेद भाग का रंग पीला पड़ जाना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.

इन से बचें

-दूषित रेजर या टूथब्रश का इस्तेमाल.

-दूषित सिरिंज का इस्तेमाल करना.

-दूषित रक्तदान, अंगदान या लंबे समय तक डायलिसिस द्वारा.

-दूषित सूई से टैटू बनवाना या एक्यूपंक्चर करवाना.

-असुरक्षित यौन संबंध बनाना.

ऐसे बचें हैपेटाइटिस से

-अपना टूथब्रश और रेजर किसी के साथ साझा न करें.

-शराब का सेवन करने से बचें.

-अगर टैटू बनवाएं तो एकदम नई सूई का इस्तेमाल करें.

-टौयलैट में जाने के बाद सफाई का ध्यान रखें.

-कभी इंजैक्शन लगवाने की जरूरत पड़े तो दूषित सिरिंज का इस्तेमाल न करें.

सही समय पर इलाज और देखभाल से यह बीमारी ठीक हो जाती है. इस बीमारी का पता शुरू में नहीं लग पाता है और इसी वजह से यह जानलेवा हो जाती है. अब इस की जांच की सुविधा सब जगह है.

हैपेटाइटिस सी जिस को काला पीलिया भी कहते हैं, एक संक्रामक बीमारी है, जो हैपेटाइटिस सी वायरस एचसीवी की वजह से होती है और यकृत पर बुरा असर डालती है.

इस बीमार में मरीज को तकरीबन 3 महीने तक दवाएं खानी पड़ती हैं, उस के बाद फिर जांच होती है. मरीज के सही होने पर दवाएं बंद कर दी जाती हैं, नहीं तो उन्हें अगले 3 महीने के लिए जारी रखा जाता है.

जानें Pregnancy में कैसी हो सेक्स पोजीशन, पढ़ें खबर

प्रेगनेंसी के दौरान महिलाएं काफी सतर्क हो जाती हैं. कहीं गर्भस्थ शिशु को कोई हानि न पहुंचे, इस कारण वे पति से शारीरिक तौर पर भी हर संभव दूरी बनाए रखने की कोशिश करती हैं, मगर डाक्टरों के अनुसार गर्भावस्था में सेक्स किया जा सकता है.

हां, अगर प्रेगनेंट महिला की हालत नाजुक हो या फिर कोई कौंप्लिकेशन हो, तो शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए. लेकिन पत्नी से ज्यादा दिनों तक दूर रहना पति के लिए नामुमकिन हो जाता है, जिस के चलते रिश्तों में अलगाव होने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में इस स्थिति को रोकने के लिए आइए जानते हैं कि गर्भावस्था में कैसे करें सेक्स:

गर्भावस्था के दौरान सेक्स के समय इन पोजीशंस के माध्यम से सुरक्षित सेक्स का आनंद भी लिया जा सकता है और इस से होने वाले बच्चे और मां को भी कोई तकलीफ न होगी.

पहली पोजीशन: पति और पत्नी एकदूसरे के सामने लेट जाएं. पत्नी अपना बायां पैर पति के शरीर पर रख दे. इस पोजीशन में सेक्स करने से गर्भ को झटके नहीं लगते.

दूसरी पोजीशन: पत्नी पीठ के बल टखने मोड़ कर अपनी टांगें पति के कंधों पर रखे, फिर सेक्स करें. इस से पेट पर कोई दबाव नहीं पड़ेगा.

तीसरी पोजीशन: पति कुरसी पर बैठे और पत्नी उस के ऊपर बैठ जाए. यह भी सेफ सेक्स में आता है.

कुछ व्यायामों के माध्यम से भी सेक्स किया जा सकता है, लेकिन इस के पहले डाक्टर से सलाह जरूर ले लें.

सावधानियां

  •  गर्भावस्था में सेक्स के दौरान पति को पत्नी का खास ध्यान रखना चाहिए. पति ज्यादा उत्तेजना में न आए और न ही पत्नी पर ज्यादा दबाव पड़े.
  •  गर्भावस्था में सेक्स करें, लेकिन किसी प्रकार का नया प्रयोग करने से बचें.
  •  सेक्स करते हुए ध्यान रहे कि पत्नी पर ज्यादा दबाव न पड़े.
  •  गर्भावस्था में प्रसव पीड़ा से पहले तक सेक्स किया जा सकता है, पर गर्भवती को इस से कोई तकलीफ  न हो तब.

गर्भावस्था में सेक्स के फायदे

प्रेगनेंसी के दौरान सेक्स मां और बच्चे दोनों की सेहत के लिए फायदेमंद होता है, आइए जानते हैं कैसे:

  •  गर्भावस्था में सेक्स करने से आप की पैल्विक मांसपेशियों में सिकुड़न बढ़ जाती है, जिस से वे प्रसव के लिए और मजबूत बनती हैं.
  •  प्रेगनेंसी के दौरान जल्दी पेशाब आना, हंसने या छींकने पर पानी निकलने आदि की समस्या आप के बच्चे के बड़े होने के कारण मूत्राशय पर पड़ने वाले दबाव की वजह से होती है. यह थोड़ा असुविधाजनक हो सकता है, लेकिन इस से आप की मांसपेशियां मजबूत होती हैं जो प्रसव के समय लाभ पहुंचाती हैं.
  •  सेक्स करने से महिला ज्यादा फिट रहती है. इस दौरान वह सिर्फ 30 मिनट में 50 कैलोरी कम कर सकती है जोकि उस की हैल्थ के लिए अच्छा है.
  •  गर्भावस्था में सेक्स करने से महिला की सहनशक्ति 78% बढ़ जाती है, जिस से प्रसव के समय उसे थोड़ा आराम महसूस होता है.
  • सेक्स के बाद रक्तचाप कम हो जाता है. अधिक रक्तचाप मां और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक होता है, इसलिए बेहतर है कि ऐसी स्थिति में डाक्टर से सलाह लें.
  • औक्सीटोसिन हारमोन संभोग के समय शरीर से मुक्त होता है, जो तनाव को कम करने में उपयोगी होता है, जिस कारण अच्छी नींद आती है.
  •  शोधकर्ताओं का मानना है कि गर्भावस्था में सेक्स प्रीक्लेंपसिया से बचाता है. यह ऐसी स्थिति है, जिस में अचानक रक्तचाप बढ़ जाता है. ऐसा शुक्राणु में पाए जाने वाले प्रोटीन के कारण होता है जो इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है.

जब डाक्टर को कुछ जटिलताएं नजर आती हैं, तब वे सेक्स न करने की सलाह देते हैं. जटिलताएं कई प्रकार की हो सकती हैं, जैसे:

  • अगर पहले कभी गर्भपात हुआ हो तो.
  •  पहले कभी समय से पूर्व बच्चा जन्मा हो तो.
  •  किसी प्रकार का गर्भपात का जोखिम होने पर.
  • योनि से अधिक रक्तस्राव होने या तरल पदार्थ बहने की स्थिति में.
  •  एक से अधिक बच्चे होने पर.

अगर आप चाहती हैं कि आप की प्रैगनैंसी खुशहाल और सुरक्षित हो तो टोनेटोटकों जैसे गर्भ रक्षा कवच, गर्भ रक्षा हेतु चमत्कारी टोटके, पुत्र प्राप्ति के नुसखे आदि के चक्करों में उलझने से बचें, क्योंकि इस दौरान टोनेटोटके नहीं, बल्कि पतिपत्नी के बीच प्यार और अच्छे संबंध ज्यादा जरूरी हैं. इस दौरान अपने और अपने होने वाले बच्चे का पूरा ध्यान रखें. डाक्टर की सलाह पर चलें और संपूर्ण आहार लें, ताकि आप के शरीर को सभी पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में मिल सकें, जो आप के होने वाले बच्चे के विकास के लिए जरूरी हैं.

जानें लड़कों से जुड़े अनोखे 7 सवाल और उन के जवाब

आम तौर पर देखा जाता हैं की हम स्वस्थ समस्या को नजर अंदाज करते हैं फिर चाहे शरीर में दर्द हो या फिर आम सर्दी जुखाम. पर इन समस्या को इतर रखते हुए यदि हम बात करें उन स्वस्थ समस्यों की जिसे शायद कुछ लोग बताने में  हिचकिचाते हो जैसे की प्राइवेट पार्ट से जुड़ी समस्या हो या अपनी सेक्स लाइफ से जड़ी. इन्ही समस्याओं से जुड़े कुछ प्रश्न अकसर हमारे दिमाग में होते हैं पर शर्म और डाक्टर मरीज के बारे में क्या सोचेंगे यह सोचकर हम अपने प्रश्न को मन में ही रखते हैं. हैरानी की बात यह है कि यह स्थिति पुरुष और महिला दोनों के साथ होती है. इसलिए आज हम आपको पुरुषों की कुछ ऐसी बातें बता रहे हैं जिन्हें वह डाक्टर से पूछने में शर्माते हैं. जब कि पुरुष को कोई समस्या होती है तो वह उससे संबंधित घुमा फिरकर डाक्टर से उसका हल जानने की कोशिश करता हैं. अगर आप भी ऐसा ही करते हैं तो ये आपके लिए बेहद खतरनाक हो सकता हैं.

तो कौन से है वो 7  सवाल जो हम डाक्टर से पूछने में हिचकिचाते हैं.

मैनबूब्स– गायनेकोमेस्‍टिया को “मैनबूब्स” कहते हैं, जो मोटापे की निशानी और टेस्टोस्टेरोन के कम अनुपात का लक्षण है.इस हालत के कारण अज्ञात है.लेकिन कभी-कभी यह लिवर या किडनी की बीमारी के कारण होता हैं.

प्राईवेट पार्ट की बिमारी–  अधिकांश पुरुष अपने शरीर में या प्राईवेट पार्ट में कुछ ऐसी कमियों को महसूस करते हैं जिन्हें डाक्टर्स को बता पाना मुश्किल होता है. इसका कारण गलत खान-पान, उच्‍च कोलेस्‍ट्रौल, धूम्रपान, शुगर, टेस्‍टोस्‍टेरोन और अत्‍यधिक नशीली दवाओं के सेवन से हो सकता है. हृदय रोग के लिए एक संकेत के रूप में इरेक्टाइल डिसफंक्शन की भूमिका काफी जोरदार हो सकती है.इसलिए शर्म न करें, उत्सुक बनें.आपकी सेहत आपके गौरव से ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण है.

क्यों होती हैं खुजली- दोनों तरफ देखकर और यह एहसास करके कि कोई नहीं देख रहा है आप अपने बट पर जल्‍दी से खुजली कर लेते हैं.सही नहीं है.अपनी खुजली के लिये डॉक्‍टर से बात करें.आप आहार असहिष्णुता, सफाई, बवासीन, सोरायसिस और वर्म्स जैये विभिन्‍न कारणों को बहुत अधिक खुजली के लिए दोष दे सकते हैं.

पुरुष पैटर्न गंजापन – पुरुषों में बालों के झड़ने की समस्या सबसे आम है, ये जेनेटिकल डिसऔरडर है. इससे आपको बालों के बहुत अधिक पतला होने और गंजेपन की समस्‍या हो सकती है. हालांकि गंजापन के लिए कोई इलाज नहीं है. लेकिन ओरल और टापिकल दवाएं बालों के झड़ने की गति को धीमा करने का वादा करती है.

मल त्‍याग – जब मल त्‍याग की बात आती है तो प्रत्‍येक व्‍यक्ति घबरा सा जाता है. इसकी सीमा अलग-अलग लोगों के लिए एक दिन में तीन बार से लेकर एक सप्‍ताह में तीन बार तक हो सकती हैं.लेकिन, अगर आप लगातार अधिक से अधिक तीन दिन बीत जाने के बाद मल त्याग न हो रहा है या मलत्‍याग पाने के लिए कोशिश में कठिनाई महसूस कर रहे है तो आप कब्ज से पीड़ित हो सकते है. ऐसे में आप जितनी जल्दी हो सके  डाक्टर से बात करें और सलाह ले.

किडनी  की समस्या- आमतौर पर किडनी और मूत्रमार्ग में संक्रमण, यूटीआई और किडनी में पथरी के कारण यूरीन से रक्त आने की संभावना होती है. इस अवस्‍था को रक्तमेह (मूत्र में रक्त कोशिकाओं की उपस्थिति) के रूप में जाना जाता है और आपके यूरीन को चमकदार लाल, गुलाबी या जंग जैसा भूरे रंग दे सकता है.

सांसों की बदबू-  सांसों से आती बदबू आपके व्यक्तिगत और व्यावसायिक संबंधों को बर्बाद कर सकती है.यह मुंह में बैक्टीरिया के पनपने का संकेत है.यह पोस्टनसल ड्रिप, रिफ्लक्स रोग और मसूड़े की सूजन के कारण हो सकता है.अपने डॉक्टर के साथ इस समस्या पर चर्चा करें और समस्या का समाधान निकालें.

तो ये हैं वो कुछ सवाल जो हम किसी से भी कहने में हिचकिचाते हैं पर यदि हम अपनी हिचकिचाट भूल जाए तो समस्या का हल मिल जाएगा और समस्या से निजाद भी.

एक महीने से रात में बारबार नींद खुल जाती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 48 वर्षीया गृहिणी हूं. पूरा दिन कामकाज में लगी रहती हूं. सोशली ऐक्टिव हूं. रात तक काफी थक जाती हूं. सोती हूं तो आंख सुबह ही खुलती है. लेकिन पिछले एक महीने से रात को बारबार नींद खुल जाती है. मेरे साथ कभी यह दिक्कत नहीं आई, इसलिए रात में नींद से जाग जाना बड़ा अजीब सा लगता है. मुझे क्या करना चाहिए कि गहरी नींद ले सकूं?

जवाब

अच्छी नींद के लिए जरूरी है कि आप टैंशन फ्री रहें. कोशिश करें कि सोने से पहले सारे तनाव भूल जाएं. सोने से पहले सिर और पैर के तलवों में तेल की मालिश करें. यह आप को रिलैक्स करने में मददगार होगा और आप तनावमुक्त हो गहरी नींद ले सकेंगी.

सोते समय हलके और बेहद आरामदायक कपड़े पहनें. चाहें तो कोई म्यूजिक सुनें. रात को अत्यधिक हैवी या मसालेदार खाने से बचें. सोने से पहले पौजिटिव रहें. दिनभर की चीजों को दिमाग में दोहराएं, अपनी गलत चीजों के लिए सौरी कहें और अच्छी बातों के लिए खुद को श्रेय दें. सारी बातों से मन हलका कर के सोएं, ताकि नींद में ये बातें आप का पीछा न करें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

युवाओं में बढ़ रहा हार्ट फेल्योर का रिस्क

भारत में इस समय तकरीबन 50.4 लाख हार्ट फेल्योर रोगी हैं और जिस तरह से इस के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है, उसे देख कर लगता है कि अब हार्ट फेल्योर युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रहा है. इस के बढ़ते मामलों की वजह लोगों में हार्ट फेल्योर के बारे में जानकारी की कमी है और लोग इसे  हार्ट अटैक से जोड़ कर देखते हैं.

कुछ ऐसा ही मामला मेरे पास आया था. विपिन सैनी जब अस्पताल में भर्ती हुए थे तो उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, पैरों और टखनों में सूजन थी, चक्कर आ रहे थे और जब भी खांस रहे थे तो बलगम हलके गुलाबी रंग का था. करीब डेढ़ साल पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था और इस के बाद ही पता चला कि विपिन हार्ट फेल्योर की समस्या से ग्रस्त हैं.

दरअसल, विपिन की प्रोफैशनल जिंदगी में बहुत तनाव था और लगातार काम करते रहना व अस्वस्थ खानपान के चलते उन में हार्ट फेल्योर के लक्षण दिखाई देने लगे थे.

हार्ट फेल्योर

हार्ट फेल्योर लंबी चलने वाली गंभीर बीमारी है. इस में हृदय इतना रक्तपंप नहीं कर पाता कि जिस से शरीर की जरूरतों को पूरा किया जा सके. इस से पता चलता है कि हृदय की मांसपेशियां पंपिंग करने के लिए जिम्मेदार होती हैं जो समय के साथ कमजोर हो जाती हैं या अकड़ जाती हैं. इस से दिल की पंपिंग पर प्रभाव पड़ता है और शरीर में रक्त (औक्सीजन व पोषक तत्त्वों से युक्त) की गति सीमित हो जाती है. इस वजह से रोगी को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है और उस के टखनों में सूजन आने लगती है. यह बीमारी हार्ट अटैक से बिलकुल अलग है.

लक्षण भी जानें

हार्ट फेल्योर होने के कई कारण होते हैं जिन में पहले हार्ट अटैक होना सब से महत्त्वपूर्ण कारक हो सकता है. विपिन के मामले में भी ऐसा ही हुआ था. हार्ट अटैक के बाद विपिन में हार्ट फेल्योर के लक्षण सामने आए थे. इस के अलावा दिल से जुड़ी बीमारियां, ब्लडप्रैशर, संक्रमण या शराब या ड्रग की वजह से हृदय की मांसपेशियों का क्षतिग्रस्त होना शामिल हो सकता है. दिल के क्षतिग्रस्त होने की वजह डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, मोटापा, किडनी की बीमारी और थायरायड में विकार हो सकते हैं. कई मामलों में हार्ट फेल्योर के एक या इस से ज्यादा कारण भी हो सकते हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े

दुनियाभर के आंकड़ों पर गौर करें तो यूरोप में 140.9 लाख लोग और अमेरिका में 50.7 लाख लोग हार्ट फेल्योर की समस्या से जूझ रहे हैं. भारत में हाल ही जर्नल औफ प्रैक्टिस औफ कार्डियोवैस्कुलर साइंसैज में प्रकाशित एम्स की स्टडी के अनुसार, हार्ट फेल्योर से अमेरिका व यूरोप में 4 -7 प्रतिशत के मुकाबले भारत में 30.8 फीसदी मृत्यु होती है. अगर संपूर्ण बीमारी का बोझ देखें तो पता चलता है कि दुनिया की आबादी में भारत आंकड़ों में 16 फीसदी है तो दुनिया के क्रोनोरी हार्ट डिसीज बोझ में यह 25 फीसदी है.

दुनियाभर के मुकाबले भारत में क्रोनोरी आर्टरी डिसीज (सीएडी) से युवा ज्यादा प्रभावित हैं. आमतौर पर सीएडी पुरुषों में अगर 55 साल से पहले और महिलाओं में 65 साल से पहले हो जाए तो उसे प्रीमैच्योर सीएडी कहा जाता है, लेकिन अगर यह बीमारी 40 साल से पहले हो तो माना जाता है कि यह युवाओं को अपनी चपेट में ले रही है.

क्या है फर्क

सब से महत्त्वपूर्ण हार्ट अटैक और हार्ट फेल्योर के अंतर को समझना है. हार्ट अटैक अचानक होता है और हृदय की मांसपेशियों को रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में ब्लौकेज होने से आकस्मिक हार्ट अटैक हो सकता है जबकि हार्ट फेल्योर लगातार बढ़ने वाली बीमारी है जिस में हृदय की मांसपेशियां समय के साथ कमजोर होती जाती हैं.

कैंसर, अल्जाइमर्स, सीओपीडी और ऐसी कई बीमारियों की तरह हार्ट फेल्योर भी लगातार बढ़ने वाली बीमारी है. इसलिए इस के लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और दिल की मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने से पहले इसे चेक कराना बहुत महत्त्वपूर्ण है. हार्ट फेल्योर में यह जानना बेहद जरूरी है कि क्षतिग्रस्त मांसपेशियों को दोबारा रिकवर नहीं किया जा सकता, इलाज की मदद से सिर्फ दिल व शरीर के दूसरे महत्त्वपूर्ण अंगों को अधिक खराब होने से बचाया जा सकता है.

हार्ट फेल्योर को लगातार अनदेखा करना बहुत रिस्की है क्योंकि जो लोग इस बीमारी की पहचान नहीं कर पाते या इलाज नहीं कराते, उन की अचानक मृत्यु होने का रिस्क बढ़ सकता है और वे बेहतर जिंदगी भी नहीं बिता पाते. बीमारी की काफी देर बाद पहचान होने के परिणाम काफी घातक होते हैं. इस वजह से एकतिहाई रोगियों की अस्पताल में भरती होने पर मृत्यु हो जाती है और एकचौथाई की पहचान होने के 3 महीनों में मृत्यु हो जाती है.

जीवनशैली है बड़ा कारण

लगातार शराब, धूम्रपान, ड्रग्स का सेवन, तनाव, कसरत न करने जैसी अस्वस्थ जीवनशैली हार्ट फेल्योर के कारण हो सकते हैं. इस से मोटापा, ब्लडप्रैशर बढ़ना, डायबिटीज जैसे रोग हो सकते हैं. ये बीमारियां दिल की मांसपेशियों को कमजोर करती हैं और इस से हृदय की कार्यक्षमता प्रभावित होती है.

अस्वस्थ जीवनशैली का उदाहरण हाल ही में एक मामले में देखने को मिला.

20 साल का लड़का सत्यम शर्मा जब परामर्श के लिया आया तो उसे बहुत थकान, सांस लेने में तकलीफ और बहुत ज्यादा पसीना निकलने की समस्या थी. जब जांच की गई तो उस में शुरुआती हार्ट फेल्योर के लक्षण नजर आए. इस उम्र में हार्ट फेल्योर के लक्षणों का कारण लगातार बहुत ज्यादा शराब पीना था.

हार्ट फेल्योर का इलाज

हार्ट फेल्योर की पहचान करना ज्यादा मुश्किल नहीं है. इस की पहचान मैडिकल हिस्ट्री की जांच कर के, लक्षणों की पहचान, शारीरिक जांच, रिस्क फैक्टर जैसे उच्च रक्तचाप, क्रोनोरी आर्टरी बीमारी या डायबिटीज होने और लैबोरेटरी टैस्ट से की जा सकती है. इकोकार्डियोग्राम, छाती का एक्सरे, कार्डियेक स्ट्रैस टैस्ट, हार्ट कैथेटराइजेशन और एमआरआई से इस समस्या की सही पहचान की जा सकती है.

पहचान न कर पाने या स्क्रीनिंग में दिक्कत होने के बावजूद हार्ट फेल्योर का इलाज आधुनिक तकनीकों से बेहतर तरीके से किया जा सकता है. इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए जीवनशैली में बदलाव करना बहुत जरूरी है.

इस के साथ कई थेरैपियों की मदद से हार्ट फेल्योर का उपचार किया जा सकता है. इस से लक्षणों को कम, जिंदगी की गुणवता में सुधार और मृत्युदर को कम किया जा सकता है.

इस के इलाज में बीटा ब्लौकर, एसीई इनहिबिटर जैसी दवाइयों, हाई बीपी या डायबिटीज जैसी बीमारियों का इलाज कर के, कार्डियेक उपकरण जैसे कार्डियेक रिस्नक्रोनाइजेशन थेरैपी (सीआरटी) व इंट्रा कार्डियेक डिफिबरालेटर (आईसीडी) और क्रोनोरी आर्टरी बीमारी के मामलों में सर्जरी व वौल्व के रिपेयर या रिप्लेसमैंट का सुझाव दिया जाता है.

नई उम्मीदें

हार्ट फेल्योर के इलाज के कई बेहतरीन विकल्प हैं. पिछले साल यूएस फूड व ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने नई दवाई इवाब्राडाइन को मंजूरी दी थी जो भारत में काफी समय से उपलब्ध है. इसी तरह  ड्रग की नई श्रेणी एंजियोटेनसिन-रिस्पेटरब्लौकर निपरिलसिन इंहिबिटर (एआरएनआई) है.

2 संयोजकों से बनी यह दवाई मौजूदा ब्लडप्रैशर को कम करने में मदद करती है और यह काफी प्रभावी साबित हुई थी. इस से 20 फीसदी तक मृत्यु में कमी और बारबार अस्पताल में भरती होने में कमी आई थी, जोकि फिलहाल मौजूद थेरैपियों के मुकाबले काफी फायदेमंद है.

(लेखक नई दिल्ली स्थित एम्स में कार्डियोलौजिस्ट हैं)

लेजर दिला रहा है चश्मे से छुटकारा…जानें कैसे

मायोपिया में आईबौल का आकार बढ़ जाता है जिस से रेटिना पर सामान्य फोकस पहुंचने में दिक्कत होती है जिसे चश्मे या लेंस के द्वारा ठीक किया जा सकता है.

आई बौल का आकार बढ़ने से फोकस सामान्य से थोड़ा पीछे शिफ्ट हो जाता है जिस से धुंधला दिखाई देने लगता है. आईबौल का आकार हम बदल नहीं सकते इसलिए लेज़र से कार्निया के उतकों को रिशेप कर के उस के कर्व को थोड़ा कम कर फोकस को शिफ्ट कर देते हैं.

लेसिक लेजर

आंखों की समस्याओं के लिए लेसिक लेजर एक उच्चतम और सफल तकनीक है. इस का पूरा नाम लेजर असिस्टेड इनसीटू केरेटोमिलीएसिस है जो मायोपिया के इलाज की एक बेहतरीन तकनीक है. इस तकनीक का प्रयोग दृष्ट‍ि दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है. यह उन लोगों के लिए बेहद प्रभावी है जो चश्मा या कॉन्टेक्ट लेंस लगाते हैं.

लेसिक लेज़र सर्जरी में फैक्टो लेज़र मशीन के द्वारा कार्निया की सब से उपरी परत जिसे फ्लैप कहते हैं को हटा दिया जाता है. अब इस के नीचे स्थित उतकों पर लेज़र चला कर उन के आकार को बदला जाता है ताकि वो रेटिना पर ठीक तरह से लाइट को फोकस कर सके. उतकों को ठीक करने के पश्चात कार्निया के फ्लैप को वापस उस के स्थान पर रख दिया जाता है और सर्जरी पूरी हो जाती है.

लेसिक लेज़र को विश्व की सब से आसान सर्जरी माना जाता है. केवल कुछ सेकंड्स तक एक लाइट को देखना होता है और ऑपरेशन के तुरंत बाद दिखाई देने लगता है. -1 से -8 नंबर तक के लिए यह बहुत उपयोगी है लेकिन उस से अधिक के लिए यह तकनीक इस्तेमाल नहीं की जाती है. +5 नंबर तक भी इस के अच्छे परिणाम मिल जाते हैं . इसे रिस्क फ्री सर्जरी माना जाता हैं.

लेसिक लेज़र की प्रक्रिया

लेसिक लेज़र 3 दिन का प्रोसेस है. पहले दिन डॉक्टर यह जांच करते हैं कि आप लेज़र सर्जरी के लिए फिट हैं या नहीं. दूसरे दिन सर्जरी की जाती है और तीसरे दिन फॉलोअप लिया जाता है. इस प्रक्रिया के लिए तीनों चरण ही महत्वपूर्ण हैं क्यों कि इन के बिना बेहतर परिणाम नहीं मिलते हैं.

प्री-लेज़र चेक-अप

लेज़र सर्जरी के पहले प्री-लेज़र चेक-अप किया जाता है. इस में दो से तीन घंटे का समय लग सकता है क्यों कि 6-8 टेस्ट किए जाते हैं. जिन में विज़न टेस्ट, ड्राय आईस. टोपोग्रॉफी, कार्नियल थिकनेस, कार्नियल मेपिंग, आई प्रेशर आदि सम्मिलित हैं. डायलेशन के लिए आई ड्रॉप डाली जाती है, जिस से दो-तीन घंटे तक आप को थोड़ा धुंधला दिखाई दे सकता है.

लेसिक सर्जरी के पहले एंटी-बायोटिक ड्रॉप दी जाती है जिसे सर्जरी के एक दिन पहले आप को दिन में छह बार डालना होता है.

लेज़र सर्जरी

जब आप को सर्जरी के लिए फिट घोषित कर दिया जाता है तभी अगले दिन लेज़र सर्जरी की जाती है. यह केवल 5-10 सेकंड का काम है, लेकिन आप को 1-2 घंटे लग सकते हैं क्यों कि ऑपरेशन के पहले और बाद में कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं. जब सर्जरी कराने के लिए जाएं तो नहा कर, सिर धो कर जाएं क्यों कि सर्जरी के पश्चात आप को सिर नहीं झुकाना है. कोई मेकअप, कॉस्मेटिक्स, और परफ्यूम न लगाएं. अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार को साथ ले कर जाएं क्यों कि सर्जरी के कुछ घंटो बाद तक धुंधला दिखाई दे सकता है.

सर्जरी के पश्चात ग्लेयर से बचने के लिए अपने साथ डार्क गॉगल जरूर ले कर जाएं.

फौलो-अप

तीसरे दिन फौलो-अप लिया जाता है. इस में डाक्टर आप का विज़न चेक करेगा ताकि पता लगाया जा सके कि सर्जरी कितनी सफल रही है. लेज़र सर्जरी के पश्चात पहला फौलो-अप बहुत जरूरी है.

कौन सी तकनीक है बेहतर

लेसिक लेज़र के लिए सात अलगअलग तकनीकें इस्तेमाल की जाती हैं. ब्लेडलेस लेसिक, स्माइल और कंटूरा विज़न को सब से अच्छा माना जाता है क्यों कि इन में परिणाम बहुत अच्छे मिलते हैं. लेकिन अगर आप का बज़ट कम है तब भी आप को एसबीके क्यु तो कराना ही चाहिए.

कौन करा सकता है लेसिक लेज़र

1 .जिन की उम्र 18 वर्ष से अधिक है क्यों कि इस उम्र तक आतेआते ग्रोथ हार्मोन्स का स्त्राव रूक जाता है और आईबौल्स का आकार नहीं बढ़ता है.

२. पिछले छह महीने से चश्मे के नंबर में बदलाव न आया हो.

3 .महिला गर्भवती न हो. न ही बच्चे को स्तनपान करा रही हो.

4 . चश्मे के अलावा आंखों से संबंधित कोई दूसरी समस्या न हो.

5 .आप कोई ऐसी दवाई न ले रहे हों जो इम्यून सिस्टम को प्रभावित करती है जैसे कार्टिकोस्टेरौइड या इम्यूनो सपरेसिव ड्रग्स.

साइड इफेक्ट्स

सामान्यता यह सुरक्षित सर्जरी है और इसके कोई साइड इफेक्ट्स नहीं हैं. लेकिन कईं लोगों में सर्जरी के पश्चात ये समस्याएं हो सकती हैं;

1. फोटोफोबिया (रोशनी को सहन न कर पाना).

2. आंखों से पानी आना.

3. आंखों में ड्रायनेस.

4. आंखों में लालपन.

5. आंखों में दर्द होना.

6. किसी भी इमेज के आसपास हैलोस दिखाई देना.

7. रात में गाड़ी चलाने में परेशानी आना.

8. विज़न में उतारचढ़ाव होना.

अधिकतर लोगों में यह समस्याएं अस्थायी होती हैं और 2-3 दिन में अपने आप ठीक हो जाते हैं. अगर 2-3 दिन बाद भी कोई समस्या हो तो डॉक्टर को दिखाएं. वैसे सर्जरी के पश्चात साइड इफेक्ट्स से बचने के लिए ल्युब्रिकेंटिंग ड्रौप दी जाती हैं, जिसे तीन महीने तक दिन में चार बार डालना होता है.

लेज़र कराने के बाद रखें सावधानी

1. पहले दो दिन ड्रायविंग न करें.

2. दिन में डार्क गौगल्स लगाएं.

3. शुरूआती 1-2 दिन घर के अंदर ही रहें.

4. पहले दिन ही आप कम्प्युटर पर काम कर सकते हैं, लेकिन अधिक देर तक न करें. 2 दिन में आप अपना सामान्य कार्य कर सकते हैं.

5. सर्जरी के पश्चात अगले दिन पहले फौलो-अप के लिए डॉक्टर के पास जरूर जाएं.

6. दो सप्ताह तक भारी काम जैसे जौगिंग, वेट लिफ्टिंग, स्विमिंग, जिमिंग आदि न करें,

7. दो सप्ताह तक कौस्मेटिक्स और मेकअप का इस्तेमाल न करें.

8. सर्जरी के पश्चात आपको ग्रीन शील्ड्स दी जाती हैं, जिन्हें आपको अगली दो रातों तक पहनना होता है.

कितना कारगर है लेसिक लेज़र

लेसिक लेज़र में रिस्क बहुत कम होता है. सर्जरी के पहले कईं जांचे करने के पश्चात जब आप को फिट घोषित किया जाता है तभी लेज़र सर्जरी की जाती है वर्ना आप को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. इस सर्जरी में कोई दर्द नहीं होता क्यों कि न तो कोई इंजेक्शन लगाया जाता है न ही ब्लेड का इस्तेमाल किया जाता है. चूंकि पूरी सर्जरी में कोई चीरा नहीं लगाया जाता इसलिए टांके लगाने और बैंडेज की जरूरत नहीं पड़ती है.

आई 7 चौधरी आई सेंटर के डॉ राहिल चौधरी से की गई बातचीत पर आधारित…

रात में देर से सोना, डाल सकता है स्पर्म पर असर

आज के इस मौर्डन टाइम में एक और जहां हमारे पास समय नही होता, वही ये कहना भी गलत नहीं होगा की फोन का ज्यादा यूज भी इसी बिजी समय में ही सबसे ज्यादा किया जा रहा है. रात में जागना और लेट सोना, फिर सुबह लेट से उठना अब आम बात होने लगी हैं. एक रिसर्च से पता चला है की जो लोग लेट सोते है वो या तो फोन पर किसी वेब सीरिज के मजे ले रहे होते है या फिर फोन पर चेट. ये दोनों चीजे ना सिर्फ आपकी आंखों के लिए बल्कि आपके स्वास्थ के लिए भी काफी हानीकारक है.

तो क्या आप देर रात तक टीवी, मोबाइल या फिर कोई फिल्म या वेब सीरीज देखने के शौकीन हैं?

यह सवाल आपको थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा लेकिन यह एक सामान्य सवाल है. क्योंकि बहुत से लोगों में आधी रात तक टीवी सीरियल, मूवी, फोन या फिर अन्य चीजों के कारण देर रात सोने की की आदत है. लेकिन क्या आपने कभी अपने स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के बारे में सोचा है?

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तो हम आपको बताते हैं कि सुबह 2 या 3 बजे सोना भी कभी—कभी आपके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. देर सोने का प्रभाव आपकी आंखों के नीचे काले घरे और डाइजेशन प्रोब्लम की समस्या हो सकती हैं.

स्पर्म की गुणवत्ता पर डाल सकता है असर

‘जल्दी सोने और जल्दी उठने’ का सुनहरा नियम हो सकता है, क्योंकि देर रात जगना पुरूषों में नपुंसकता के खतरे को बढ़ाता है. जो पुरुष जल्दी सोते हैं, यानी 10.30 बजे से पहले सोते हैं, उनमें अच्छी गुणवत्ता वाले शुक्राणु होने की संभावना अधिक होती है. यदि इसे अन्य पुरुषों की तुलना करें, जो कि 11.30 बजे के बाद सोते हैं, तो उनमें शुक्राणु यानि स्पर्म की गुणवत्ता बिगड़ जाती है. लेखक “हंस जैकब इंगर्सलेव” के अनुसार, अनिद्रा शुक्राणु के पतन का मूल कारण है. इसके अलावा इसके कई कारण हो सकते हैं जिनमें साइकोलौजिकल कारण भी शामिल हैं. अनिद्रा पुरुषों को अधिक तनाव महसूस करते हैं, जिससे उनकी पौरुष क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

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अगर यदि आप भी अगर रात में जागने के शौकिन है या नींद ना आने से परेशान हैं तो जल्द से जल्द डाक्टर से सलाह ले और अपनी समस्या उनको बताए.

कहीं आप भी तो नहीं गाइनीकौमस्टिया के शिकार?

फिट रहना किसे पसंद नही होता, और आज के समय में ये काफी जरूरी भी हो गया हैं. लड़के घंटो जिम में पसीना पहाते है ताकी उनकी बौडी में कसावट रहे. पर हाल ही में एक रिसर्च में पाया की लड़को में स्तनों के उभरने की समस्या काफी तेजी से बढती जा रही हैं. शर्म के मारे इसके शुरुआती समय में लड़के डाक्टर के पास जाने से हिचकिचाते है और बाद में समस्या ज्यादा बढ़ जाने पर डिप्रेशन के शिकार हो जाते है.

कई बार देखा गया है हमारे आस पास ही कई ऐसे होते है जिनके स्तन समान्य से ज्यादा बढ़े होते है. पर जानकारी ना होने के कारण वो इसको मोटापे से जोड़ लेते है और डाक्टर के पास नही जाते.

अगर आप भी ऐसी किसी समस्या से परेशान है तो आप शायद गाइनीकौमस्टिया से पीडि़त हैं. इस स्थिति में आपको किसी कौस्मेटिक सर्जन के पास जाना चाहिए. समय रहते अगर गाइनीकौमस्टिया की सर्जरी हो जाए तो इसका कोई नेगेटिव इंपेक्ट आपकी बौडी पर नही पढ़ेगा. एक अनुमान के मुताबिक 50 फीसदी पुरुष उम्र के किसी-न-किसी पड़ाव पर गाइनीकौमस्टिया (पुरुषों में स्तन टिश्यूज का बड़ा होना) से पीडि़त हो सकते हैं. यह समस्या शरीर में हार्मोनों के असंतुलन की वजह से होती है.

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कीहोल तकनीक

आधुनिक तकनीक की मदद से कीहोल तकनीक से छोटी सर्जरी की जा सकती है. इस सर्जरी के बाद निशान भी नहीं दिखायी देता. सर्जन अतिरिक्त फैट (वसा) और ग्लैंड्यूलर टिश्यू निकालकर फ्लैट, मजबूत और स्वस्थ सामान्य पुरुषों जैसी छाती बनाते हैं.

कौस्मेटिक सर्जन को ध्यान से चुनें

पुरुष स्तन सर्जरी को कौस्मेटिक सर्जरी के में रखा गया है. लेकिन अगर आप बेहतरीन परिणाम चाहते हैं, तो किसी ऐसे कौस्मेटिक सर्जन को चुनें, जिसने ट्रेनिंग की हो.

अवैध है ये सर्जरी

क्रायोलिपोलिसिस एक गैर-सर्जिकल विकल्प है जो छोटे गाइनीकौमस्टिया के लिए है. यह पुरुष स्तनों को कम करने में मददगार है और इसे बेहतर परिणाम के लिए दोहराया जा सकता है. पर सेहत के लिए हानिकारक होता है.

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तो अगर आप भी इस समस्या से परेशान है तो जल्द से जल्द डाक्टर से सलाह ले. हिचक और शर्म को  भूल जाइंए क्योंकि ये एक मेडिकल समस्या है जो पर या छुपकर बैठने से हल नही हो

बीमारी नहीं आत्मसम्मान की लड़ाई है विटिलिगो

राह चलते कई बार हमने अपने आस पास ऐसे लोगों को देखा होगा जिनकी सफेद धब्बे वाली स्किन होती है. कई लोगों का मानना होता है की मछली खाने के बाद दूध पीने से ये समस्या होती है. उन लोगों को देखते ही हम मन में कई ऐसी धारणाएं बना लेते है या फिर उनसे घृणा कर, दूर रहने की कोशिश करते है. हां ये पढ़ते समय आपको जरुर लगेगा की नहीं हम ऐसा नहीं करते पर भारत जैसे देश में जहां शरीर का रंग खूबसूरती से जोड़ा जाता है वहां इस तरह का भेदभाव होना कोई खास बात नहीं है.

25 जून को वर्ल्‍ड विटिलिगो डे (World Vitiligo Day)  पूरे दुनिया में मनाया जाता हैं. इस बीमारी के शारीरिक प्रभाव तो अमूमन सभी जानते है पर क्या इस बीमारी से परेशान लोगों की मानसिक स्थिति से आप वाकिफ हैं?

आपको जानकर हैरानी होगी की विटिलिगो वाले लोग आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान से संबंधित मुद्दों से काफी जूझते हैं, खासकर अगर उनकी स्थिति ज्यादा नजर आने वाली होती है तब लोगों में सामान्य संवेदना ना होने के कारण विटिलिगो के रोगियों को भावनात्मक रूप से काफी परेशानी होती है.

क्या है विटिलिगो

जिन्हें बिल्कुल भी जानकारी नहीं है, उनके लिए विटिलिगो एक त्वचा की  समस्या/बीमारी है जहां पीले सफेद पैच त्वचा पर आना शुरू हो जाते हैं. मेलेनिन(Melanin) की कमी की वजह से डिपिग्मेंटेशन होता है. विटिलिगो त्वचा के किसी भी हिस्से में हो सकता है, लेकिन आम तौर पर यह चेहरे, गर्दन, हाथों और त्वचा की क्रीज जहां बनती हैं, वहां होने की संभावना ज्यादा होती है. लेकिन विटिलिगो एक जानलेवा बीमारी नहीं है, फर्स्ट स्टेज में किसी व्यक्ति को सुनने की शक्ति में कमी होना, आंखों में जलन और सनबर्न स्किन का अनुभव हो सकता है.

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मनोवैज्ञानिक प्रभाव क्या है

विटिलिगो से पीड़ित लोगों को अक्सर अपने दोस्तों, परिवार और साथियों से भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता हैं. कुछ को तो स्कूल में ही छेड़ा और तंग किया जाता है, जो उन्हें गहराई से मनोवैज्ञानिक स्तर पर प्रभावित करता है.

विटिलिगो मरीजों के लिए क्या करें?

  • किसी भी मनोवैज्ञानिक स्थिति के लिए विटिलिगो वाले रोगियों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए. डिप्रेशन और चिंता के लक्षणों की नियमित जांच के साथ-साथ रोगी के जीवन की गुणवत्ता का आकलन सबसे महत्वपूर्ण है.
  • मरीजों को त्वचा विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक दोनों से मदद लेनी चाहिए.
  • चिकित्सा देखभाल के अलावा रोगियों के लिए सुरक्षित और सामाजिक रूप से स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करने के लिए विटिलिगो के लिए सार्वजनिक संवेदीकरण कार्यक्रम भी किए जाने चाहिए.

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बहुत हद तक ग्लोबल साईकोलोजी पहले ही विकसित होना शुरू हो गया है. लोगों में विटिलिगो के बारे में जागरूकता और लोगों के बीच बेहतर संवेदनशीलता बढ़ रही है. विटिलिगो से पीड़ित लोगों को अपना समर्थन देने के लिए विभिन्न फाउंडेशन और सपोर्ट ग्रुप आगे आ रहे हैं. हालांकि, भारत में जागरूकता की स्थिति अभी भी बहुत अच्छी नहीं है. अधिक जागरूकता वाले अभियान और सार्वजनिक संवेदीकरण कार्यक्रम के साथ, हम अधिक समावेशी भविष्य की आशा कर सकते हैं. विटिलिगो कोई छुआछूत की बीमारी नही है, इससे डरने या उन पीड़ितो से भागने की बजाएं उनका साथ दे और उनके आत्मसम्मान पर कोई आंच ना आने दे.

क्या कारण है कि कुछ पुरुष पिता नही बन पाते ?

पिता बनना सभी पुरुषों के लिए उन खास एहसास में से एक है जिसका इंतजार वो मेसबरी से करते है. पर जब कोई इस एहसास का अनुभव नही कर पाता तो उनपर क्या बीतती है इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता.बदलती जीवनशैली, खराब खान-पान और तनाव के कारण पुरुष कई समस्याओं का शिकार हो जाते हैं और उनका पिता बनने का सपना भी टूट जाता है. दरअसल पुरुषों के शरीर में इन कारणों से कुछ ऐसी चीजों की कमी हो जाती हैं, जिसके कारण उन्हें पिता बनने में कई प्रकार कि दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

इसलिए आज हम आपको पुरुषों के शरीर में होने वाली कुछ ऐसे चीजों की कमी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके कारण पुरुष पिता बनने में महरूम रह जाते हैं. आपको बता दें कि शरीर में इन तीन चीजों की कमी पुरुषों को पिता बनने से रोकती है.

टेस्टोस्टेरौन की कमी के चलते…

टेस्टोस्टेटरौन एक प्रकार का हार्मोन है, जो पुरुषों के टेस्टिकल्स में मौजूद होता है. इस हार्मोन के कारण ही पुरुषों में यौन इच्छा जागती है. इस हार्मोन का संबंध यौन क्रियाओं, रक्त संचार, मांसपेशियों की मजबूती, एकाग्रता और स्मृ्ति से भी जुड़ा होता है. पुरुषों में चिड़चिड़ापन या फिर जरा-जरा सी बातों पर गुस्सा आना टेस्टोस्टेरौन की कमी के कारण होता है. पुरुषों के पिता बनने में इन टेस्टोस्टेरोन हार्मोन्स की बेहद अहम भूमिका होती है. लेकिन इन हार्मोन्स की कमी के कारण पुरुष चाह कर भी पिता नहीं बन पाता. हालांकि डाक्टर से सलाह और अपने सेहत व खान-पान पर ध्यान देने से इन हार्मोन को बढ़ाया जा सकता है.

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एस्ट्रोजन की कमी भी हो सकती है कारण

एस्ट्रोजन, स्टेरोएड हार्मोन का एक समूह है, जो महिला व पुरुष दोनों में पाया जाता है लेकिन यह अधिकतर महिलाओं में पाया जाता है,  इसके कारण उनकी प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है. एस्ट्रजेन हार्मोन के कारण ही महिलाओं और पुरुषों में भिन्नताएं पाई जाती है. शरीर में एस्ट्रोजन की कमी के कारण पुरुषों के शुक्राणु कमजोर हो जाते हैं, जिसके कारण वह महिलाओं के एग को फर्टलाइज नहीं कर पाते. इस कारण से भी पुरुषों को पिता बनने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं इन हार्मोन की कमी से पुरुषों की सेहत पर भी खराब असर पड़ता है. एस्ट्रोजन हार्मोन्स को सामान्य रखने के लिए पौष्टिक आहार लेना बेहद जरूरी है.

कैल्शियम की कमी से बचे

पुरुषों के लिए शरीर में कैल्शियम की कमी होना ठीक नहीं है. अमेरिकन हेल्थ ऑफ मेडिसिन के एक अध्ययव के मुताबिक, कैल्शियम की कमी होने से पुरुषों के शुक्राणुओं की गुणवत्ता खराब हो जाती हैं, जिसके कारण उन्हें पिता बनने में परेशानी होती हैं. इसलिए अगर किसी पुरुष को पिता बनने में परेशानी हो रही हैं तो उसे कैल्शियम युक्त आहार का सेवन करना चाहिए और डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए. ऐसा करने से उनकी ये समस्या धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी.

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