वक्त का पहिया : क्या सेजल वाकई आवारा लड़की थी?

‘‘आज फिर कालेज में सेजल के साथ थी?’’ मां ने तीखी आवाज में निधि से पूछा.

‘‘ओ हो, मां, एक ही क्लास में तो हैं, बातचीत तो हो ही जाती है, अच्छी लड़की है.’’

‘‘बसबस,’’ मां ने वहीं टोक दिया, ‘‘मैं सब जानती हूं कितनी अच्छी है. कल भी एक लड़का उसे घर छोड़ने आया था, उस की मां भी उस लड़के से हंसहंस के बातें कर रही थी.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ निधि बोली.

‘‘अब तू हमें सिखाएगी सही क्या है?’’ मां गुस्से से बोलीं, ’’घर वालों ने इतनी छूट दे रखी है, एक दिन सिर पकड़ कर रोएंगे.’’

निधि चुपचाप अपने कमरे में चली गई. मां से बहस करने का मतलब था घर में छोटेमोटे तूफान का आना. पिताजी के आने का समय भी हो गया था. निधि ने चुप रहना ही ठीक समझा.

सेजल हमारी कालोनी में रहती है. स्मार्ट और कौन्फिडैंट.

‘‘मुझे तो अच्छी लगती है, पता नहीं मां उस के पीछे क्यों पड़ी रहती हैं,’’ निधि अपनी छोटी बहन निकिता से धीरेधीरे बात कर रही थी. परीक्षाएं सिर पर थीं. सब पढ़ाई में व्यस्त हो गए. कुछ दिनों के लिए सेजल का टौपिक भी बंद हुआ.

घरवालों द्वारा निधि के लिए लड़के की तलाश भी शुरू हो गई थी पर किसी न किसी वजह से बात बन नहीं पा रही थी. वक्त अपनी गति से चलता रहा, रिजल्ट का दिन भी आ गया. निधि 90 प्रतिशत लाई थी. घर में सब खुश थे. निधि के मातापिता सुबह की सैर करते हुए लोगों से बधाइयां बटोर रहे थे.

‘‘मैं ने कहा था न सेजल का ध्यान पढ़ाई में नहीं है, सिर्फ 70 प्रतिशत लाई है,’’ निधि की मां निधि के पापा को बता रही थीं. निधि के मन में आया कि कह दे ‘मां, 70 प्रतिशत भी अच्छे नंबर हैं’ पर फिर कुछ सोच कर चुप रही.

सेजल और निधि ने एक ही कालेज में एमए में दाखिला ले लिया और दोनों एक बार फिर साथ हो गईं. एक दिन निधि के पिता आलोकनाथ बोले, ‘‘बेटी का फाइनल हो जाए फिर इस की शादी करवा देंगे.’’

‘‘हां, क्यों नहीं, पर सोचनेभर से कुछ न होगा,’’ मां बोलीं.

‘‘कोशिश तो कर ही रहा हूं. अच्छे लड़कों को तो दहेज भी अच्छा चाहिए. कितने भी कानून बन जाएं पर यह दहेज का रिवाज कभी नहीं बदलेगा.’’

निधि फाइनल ईयर में आ गई थी. अब उस के मातापिता को चिंता होने लगी थी कि इस साल निकिता भी बीए में आ जाएगी और अब तो दोनों बराबर की लगने लगी हैं. इस सोचविचार के बीच ही दरवाजे की घंटी घनघना उठी.

दरवाजा खोला तो सामने सेजल की मां खड़ी थीं, बेटी के विवाह का निमंत्रण पत्र ले कर.

निधि की मां ने अनमने ढंग से बधाई दी और घर के भीतर आने को कहा, लेकिन जरा जल्दी में हूं कह कर वे बाहर से ही चली गईं. कार्ड ले कर निधि की मां अंदर आईं और पति को कार्ड दिखाते हुए बोलीं, ‘‘मैं तो कहती ही थी, लड़की के रंगढंग ठीक नहीं, पहले से ही लड़के के साथ घूमतीफिरती थी. लड़का भी घर आताजाता था.’’

‘‘कौन लड़का?’’ निधि के पिता ने पूछा.

‘‘अरे, वही रेहान, उसी से तो हो रही है शादी.’’

निधि भी कालेज से आ गई थी. बोली, ‘‘अच्छा है मां, जोड़ी खूब जंचेगी.’’ मां भुनभुनाती हुई रसोई की तरफ चल पड़ीं.

सेजल का विवाह हो गया. निधि ने आगे पढ़ाई जारी रखी. अब तो निकिता भी कालेज में आ गई थी. ‘निधि के पापा कुछ सोचिए,’ पत्नी आएदिन आलोकनाथजी को उलाहना देतीं.

‘‘चिंता मत करो निधि की मां, कल ही दीनानाथजी से बात हुई है. एक अच्छे घर का रिश्ता बता रहे हैं, आज ही उन से बात करता हूं.’’

लड़के वालों से मिल के उन के आने का दिन तय हुआ. निधि के मातापिता आज खुश नजर आ रहे थे. मेहमानों के स्वागत की तैयारियां चल रही थीं. दीनानाथजी ठीक समय पर लड़के और उस के मातापिता को ले कर पहुंच गए. दोनों परिवारों में अच्छे से बातचीत हुई, उन की कोई डिमांड भी नहीं थी. लड़का भी स्मार्ट था, सब खुश थे. जाते हुए लड़के की मां कहने लगीं, ‘‘हम घर जा कर आपस में विचारविमर्श कर फिर आप को बताते हैं.’’

‘‘ठीक है जी,’’ निधि के मातापिता ने हाथ जोड़ कर कहा. शाम से ही फोन का इंतजार होने लगा. रात करीब 8 बजे फोन की घंटी बजी. आलोकनाथजी ने लपक कर फोन उठाया. उधर से आवाज आई, ‘‘नमस्तेजी, आप की बेटी अच्छी है और समझदार भी लेकिन कौन्फिडैंट नहीं है, हमारा बेटा एक कौन्फिडैंट लड़की चाहता है, इसलिए हम माफी चाहते हैं.’’

आलोकनाथजी के हाथ से फोन का रिसीवर छूट गया.

‘‘क्या कहा जी?’’ पत्नी भागते हुए आईं और इस से पहले कि आलोकनाथजी कुछ बताते दरवाजे की घंटी बज उठी. निधि ने दरवाजा खोला. सामने सेजल की मां हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए खड़ी थीं और बोलीं, ’’मुंह मीठा कीजिए, सेजल के बेटा हुआ है.’’

अब सोचने की बारी निधि के मातापिता की थी. ‘वक्त के साथ हमें भी बदलना चाहिए था शायद.’ दोनों पतिपत्नी एकदूसरे को देखते हुए मन ही मन शायद यही समझा रहे थे. वैसे काफी वक्त हाथ से निकल गया था लेकिन कोशिश तो की जा सकती थी.

मांगलिक कन्या : शादी में रोड़ा बना अंधविश्वास

विवाह की 10वीं वर्षगांठ के निमंत्रणपत्र छप कर अभीअभी आए थे. कविता बड़े चाव से उन्हें उलटपलट कर देख रही थी. साथ ही सोच रही थी कि जल्दी से एक सूची तैयार कर ले और नाम, पते लिख कर इन्हें डाक में भेज दे. ज्यादा दिन तो बचे नहीं थे. कुछ निमंत्रणपत्र स्वयं बांटने जाना होगा, कुछ गौरव अकेले ही देने जाएंगे. हां, कुछ कार्ड ऐसे भी होंगे जिन्हें ले कर वह अके जाएगी.

सोचतेसोचते कविता को उन पंडितजी की याद आई जिन्होंने उस के विवाह के समय उस के ‘मांगलिक’ होने के कारण इस विवाह के असफल होने की आशंका प्रकट की थी. पंडितजी के संदेह के कारण दोनों परिवारों में उलझनें पैदा हो गई थीं. ताईजी ने तो अपने इन पंडितजी की बातों से प्रभावित हो कर कई पूजापाठ करवा डाले थे.

एकएक कर के कविता को अपने विवाह से संबंधित सभी छोटीबड़ी घटनाएं याद आने लगीं. कितना तनाव सहा था उस के परिवार वालों ने विवाह के 1 माह पूर्व. उस समय यदि गौरव ने आधुनिक एवं तर्कसंगत विचारों से अपने परिवार वालों को समझायाबुझाया न होता तो हो चुका था यह विवाह. कविता को जब गौरव, उस के मातापिता एवं ताईजी देखने आए थे तो सभी को दोनों की जोड़ी ऐसी जंची कि पहली बार में ही हां हो गई. गौरव के पिता नंदकिशोर का अपना व्यवसाय था. अच्छाखासा पैसा था. परिवार में गौरव के मातापिता, एक बहन और एक ताईजी थीं. कुछ वर्ष पूर्व ताऊजी की मृत्यु हो गई थी.

ताईजी बिलकुल अकेली हो गई थीं, उन की अपनी कोई संतान न थी. गौरव और उस की बहन गरिमा ही उन का सर्वस्व थे. गौरव तो वैसे ही उन की आंख का तारा था. बच्चे ताईजी को बड़ी मां कह कर पुकारते और उन्हें सचमुच में ही बड़ी मां का सम्मान भी देते. गौरव के मातापिता भी ताईजी को ही घर का मुखिया मानते थे. घर में छोटेबड़े सभी निर्णय उन की सम्मति से ही लिए जाते थे.

जैसा कि प्राय: होता है, लड़की पसंद आने के कुछ दिन पश्चात छोटीमोटी रस्म कर के रिश्ता पक्का कर दिया गया. इस बीच गौरव और कविता कभीकभार एकदूसरे से मिलने लगे. दोनों के मातापिता को इस में कोई आपत्ति भी न थी. वे स्वयं भी पढ़ेलिखे थे और स्वतंत्र विचारों के थे. बच्चों को ऊंची शिक्षा देने के साथसाथ अपना पूर्ण विश्वास भी उन्होंने बच्चों को दिया था. अत: गौरव का आनाजाना बड़े सहज रूप में स्वीकार कर लिया गया था. पंडितजी से शगुन और विवाह का मुहूर्त निकलवाने ताईजी ही गई थीं. पंडितजी ने कन्या और वर दोनों की जन्मपत्री की मांग की थी.

दूसरे दिन कविता के घर यह संदेशा भिजवाया गया कि कन्या की जन्मपत्री भिजवाई जाए ताकि वर की जन्मपत्री से मिला कर उस के अनुसार ही विवाह का मुहूर्त निकाला जाए. कविता के मातापिता को भला इस में क्या आपत्ति हो सकती थी, उन्होंने वैसा ही किया.

3 दिन पश्चात ताईजी स्वयं कविता के घर आईं. अपने भावी समधी से वे अनुरोध भरे स्वर में बोलीं, ‘‘कविता के पक्ष में ‘मंगलग्रह’ भारी है. इस के लिए हमारे पंडितजी का कहना है कि आप के घर में कविता द्वारा 3 दिन पूजा करवा ली जाए तो इस ग्रह का प्रकोप कम हो सकता है. आप को कष्ट तो होगा, लेकिन मैं समझती हूं कि हमें यह करवा ही लेना चाहिए.’’

कविता के मातापिता ने इस बात को अधिक तूल न देते हुए अपनी सहमति दे दी और 3 दिन के अनुष्ठान की सारी जिम्मेदारी सहर्ष स्वीकार कर ली. 2 दिन आराम से गुजर गए और कविता ने भी पूरी निष्ठा से इस अनुष्ठान में भाग लिया. तीसरे दिन प्रात: ही फोन की घंटी बजी और लगा कि कविता के पिता फोन पर बात करतेकरते थोड़े झुंझला से रहे हैं.

फोन रख कर उन्होंने बताया, ‘‘ताईजी के कोई स्वामीजी पधारे हैं. ताईजी ने उन को कविता और गौरव की जन्मकुंडली आदि दिखा कर उन की राय पूछी थी. स्वामीजी ने कहा है कि इस ग्रह को शांत करने के लिए 3 दिन नहीं, पूरे 1 सप्ताह तक पूजा करनी चाहिए और उस के उपरांत कन्या के हाथ से बड़ी मात्रा में 7 प्रकार के अन्न, अन्य वस्तुएं एवं नकद राशि का दान करवाना चाहिए. ताईजी ने हमें ऐसा ही करने का आदेश दिया है.’’

यह सब सुन कर कविता को अच्छा नहीं लगा. एक तो घर में वैसे ही विवाह के कारण काम बढ़ा हुआ था, जिस पर दिनरात पंडितों के पूजापाठ, उन के खानेपीने का प्रबंध और उन की देखभाल. वह बेहद परेशान हो उठी.  कविता जानती थी कि दानदक्षिणा की जो सूची बताई गई है उस में भी पिताजी का काफी खर्च होगा. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. लेकिन मां के चेहरे पर कोई परेशानी नहीं थी. उन्होंने ही जैसेतैसे पति और बेटी को समझाबुझा कर धीरज न खोने के लिए राजी किया. उन की व्यावहारिक बुद्धि यही कहती थी कि लड़की वालों को थोड़ाबहुत झुकना ही पड़ता है.

इस बीच गौरव भी अपनी और अपने मातापिता की ओर से कविता के घर वालों से उन्हें परेशान करने के लिए क्षमा मांगने आया. वह जानता था कि यह सब ढकोसला है, लेकिन ताईजी की भावनाओं और उन की ममता की कद्र करते हुए वह उन्हें दुखी नहीं करना चाहता था. इसलिए वह भी इस में सहयोग देने के लिए राजी हो गया था, वरना वह और उस के मातापिता किसी भी कारण से कविता के परिवार वालों को अनुचित कष्ट नहीं देना चाहते थे.

लेकिन अभी एक और प्रहार बाकी था. किसी ने यह भी बता दिया था कि इस अनुष्ठान के पश्चात कन्या का एक झूठमूठ का विवाह बकरे या भेड़ से करवाना जरूरी है क्योंकि मंगल की जो कुदृष्टि पूजा के बाद भी बच जाएगी, वह उसी पर पड़ेगी. उस के पश्चात कविता और गौरव का विवाह बड़ी धूमधाम से होगा और उन का वैवाहिक जीवन संपूर्ण रूप से निष्कंटक हो जाएगा.  ताईजी यह संदेश ले कर स्वयं आई थीं. उस समय कविता घर पर नहीं थी. जब वह आई और उस ने यह बेहूदा प्रस्ताव सुना तो बौखला उठी. उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे. पहली बार उस ने गौरव को अपनी ओर से इस में सम्मिलित करने का सोचा.

उस ने गौरव से मिल कर उसे सारी बात बताई. गौरव की भी वही प्रतिक्रिया हुई, जिस की कविता को आशा थी. वह सीधा घर गया और अपने परिवार वालों को अपना निर्णय सुना डाला, ‘‘यदि आप इन सब ढकोसलों को और बढ़ावा देंगे या मानेंगे तो मैं कविता तो क्या, किसी भी अन्य लड़की से विवाह नहीं करूंगा और जीवन भर अविवाहित रहूंगा. मैं आप को दुखी नहीं करना चाहता, आप की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता, नहीं तो मैं पूजा करने की बात पर ही आप को रोक देता. लेकिन अब तो हद ही हो गई है. आप लोगों को मैं ने अपना फैसला सुना दिया है. अब आगे आप की इच्छा.’’

ताईजी का रोरो कर बुरा हाल था. उन्हें तो यही चिंता खाए जा रही थी कि कविता के ‘मांगलिक’ होने से गौरव का अनिष्ट न हो, लेकिन गौरव उन की बात समझने की कोशिश ही नहीं कर रहा था. उस का कहना था, ‘‘यह झूठमूठ का विवाह कर लेने से कविता का क्या बिगड़ जाएगा?’’  उधर कविता को भी गौरव ने यही पट्टी पढ़ाई थी कि तुम पर कैसा भी दबाव डाला जाए, तुम टस से मस न होना, भले ही कितनी मिन्नतें करें, जबरदस्ती करें, किसी भी दशा में तुम अपना फैसला न बदलना. भला कहीं मनुष्यों के विवाह जानवरों से भी होते हैं. भले ही यह झूठमूठ का ही क्यों न हो.

कविता तो वैसे ही ताईजी के इस प्रस्ताव को सुन कर आपे से बाहर हो रही थी. उस पर गौरव ने उस की बात को सम्मान दे कर उस की हिम्मत को बढ़ाया था. साथ ही गौरव ने यह भी बता दिया था कि उस के मातापिता को कविता बहुत पसंद है और वे इन ढकोसलों में विश्वास नहीं करते. इसलिए ताईजी को समझाने में उस के मातापिता भी सहायता करेंगे. वैसे ताईजी को यह स्वीकार ही नहीं होगा कि गौरव जीवन भर अविवाहित रहे. वे तो न जाने कितने वर्षों से उस के विवाह के सपने देख रही थीं और उस की बहू के लिए उन्होंने अच्छे से अच्छे जेवर सहेज कर रखे हुए थे.

लेकिन पुरानी रूढि़यों में जकड़ी अशिक्षित ताईजी एक अनजान भय से ग्रस्त इन पाखंडों और लालची पंडितों की बातों में आ गई थीं. गौरव ने कविता को बता दिया था कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा और अगर फिर भी ताईजी ने स्वीकृति न दी तो दोनों के मातापिता की स्वीकृति तो है ही, वे चुपचाप शादी कर लेंगे.

कविता को गौरव की बातों ने बहुत बड़ा सहारा दिया था. पर क्या ताईजी ऐसे ही मान गई थीं? घर छोड़ जाने और आजीवन विवाह न करने की गौरव द्वारा दी गई धमकियों ने अपना रंग दिखाया और 4 महीने का समय नष्ट कर के अंत में कविता और गौरव का विवाह बड़ी धूमधाम से हो गया.

कविता एक भरपूर गृहस्थी के हर सुख से संपन्न थी. धनसंपत्ति, अच्छा पति, बढि़या स्कूलों में पढ़ते लाड़ले बच्चे और अपने सासससुर की वह दुलारी बहू थी. बस, उस के वैवाहिक जीवन का एक खलनायक था, ‘मंगल ग्रह’ जिस पर गौरव की सहायता एवं प्रोत्साहन से कविता ने विजय पाई थी. कभीकभी परिवार के सभी सदस्य मंगल ग्रह की पूजा और नकली विवाह की बातें याद करते हैं तो ताईजी सब से अधिक दिल खोल कर हंसतीं. काफी देर से अकेली बैठी कविता इन्हीं मधुर स्मृतियों में खोई हुई थी. फोन की घंटी ने उसे चौंका कर इन स्मृतियों से बाहर निकाला.

फोन पर बात करने के बाद उस ने अपना कार्यक्रम निश्चित किया और यही तय किया कि अपने सफल विवाह की 10वीं वर्षगांठ का सब से पहला निमंत्रणपत्र वह आज ही पंडितजी को देने स्वयं जाएगी, ऐसा निर्णय लेते ही उस के चेहरे पर एक शरारत भरी मुसकान उभर आई.

नौटंकीबाज पत्नी : नयना की नासमझी ने क्या कर दिया

मुंबई में रहने वाले कोंकण इलाके के ज्यादातर लोग अपने गांव में आम और कटहल खाने आते हैं. इतना ही नहीं, कोंकण ताजा मछलियों के लिए भी बहुत मशहूर है, इसलिए सागर को अपने लिए बागबगीचे पसंद करने और मांसमछली पका लेने वाली पत्नी चाहिए थी. वह चाहता था कि उस की पत्नी घर और खेतीबारी संभालते हुए गांव में रह कर उस के मातापिता की सेवा करे, क्योंकि सागर नौकरी में बिजी रहने के चलते ज्यादा दिनों तक गांव में नहीं ठहर सकता था. ऐसे में उसे ऐसी पत्नी चाहिए थी जो उस का घरबार बखूबी संभाल सके.

आखिरकार, सागर को वैसी ही लड़की पत्नी के रूप में मिल गई, जैसी उसे चाहिए थी. नयना थोड़ी मुंहफट थी, लेकिन खूबसूरत थी. उस ने शादी की पहली रात से ही नखरे और नाटक करना शुरू कर दिया. सुहागरात पर सागर से बहस करते हुए वह बोली, ‘‘तुम अपना स्टैमिना बढ़ाओ. जो सुख मुझे चाहिए, वह नहीं मिल पाया.’’

दरअसल, सागर एक आम आदमी की तरह सैक्स में लीन था, लेकिन वह बहुत जल्दी ही थक गया. इस बात पर नयना उस का जम कर मजाक उड़ाने लगी, लेकिन सागर ने उस की किसी बात को दिल पर नहीं लिया. उसे लगा, समय के साथसाथ पत्नी की यह नासमझ दूर हो जाएगी. छुट्टियां खत्म हो चुकी थीं और उसे मुंबई लौटना था.

नयना ने कहा, ‘‘मुझे इस रेगिस्तान में अकेली छोड़ कर क्यों जा रहे हो?’’

सच कहें तो नयना भी यही चाहती थी कि सागर गांव में न रहे, क्योंकि पति की नजर व दबाव में रहना उसे पसंद नहीं था और न ही उस के रहते वह पति के दोस्तों को अपने जाल में फंसा सकती थी. मायके में उसे बेरोकटोक घूमने की आदत थी, जिस वजह से गांव के लड़के उसे ‘मैना’ कह कर बुलाते थे.

मुंबई पहुंचने के बाद सागर जब भी नयना को फोन करता, उस का फोन बिजी रहता. उसे अकसर कालेज के दोस्तों के फोन आते थे.

लेकिन धीरेधीरे सागर को शक होने लगा कि कहीं नयना अपने बौयफ्रैंड से बात तो नहीं करती है? सागर की मां ने बताया कि नयना घर का कामधंधा छोड़ कर पूरे गांव में आवारा घूमती रहती है.

एक दिन अचानक सागर गांव पहुंच गया. बसस्टैंड पर उतरते ही सागर ने देखा कि नयना मैदान में खड़ी किसी लड़के से बात कर रही थी और कुछ देर बाद उसी की मोटरसाइकिल पर बैठ कर वह चली गई. देखने में वह लड़का कालेज में पढ़ने वाला किसी रईस घर की औलाद लग रहा था. नैना उस से ऐसे चिपक कर बैठी थी, जैसे उस की प्रेमिका हो.

घर पहुंचने के बाद सागर और नैना में जम कर कहासुनी हुई. नैना ने सीधे शब्दों में कह दिया, ‘‘बौयफ्रैंड बनाया है तो क्या हुआ? मुझे यहां अकेला छोड़ कर तुम वहां मुंबई में रहते हो. मैं कब तक यहां ऐसे ही तड़पती रहूंगी? क्या मेरी कोई ख्वाहिश नहीं है? अगर मैं ने अपनी इच्छा पूरी की तो इस में गलत क्या है? तुम खुद नौर्मल हो क्या?’’

‘‘मैं नौर्मल ही हूं. लेकिन तू हवस की भूखी है. फिर से उस मोटरसाइकिल वाले के साथ अगर गई तो घर से निकाल दूंगा,’’ सागर चिल्लाया.

‘‘तुम क्या मुंबई में बिना औरत के रहते हो? तुम्हारे पास भी तो कोई होगी न? ज्यादा बोलोगे तो सब को बता दूंगी कि तुम मुझे जिस्मानी सुख नहीं दे पाते हो, इसलिए मैं दूसरे के पास जाती हूं.’’

यह सुन कर सागर को जैसे बिजली का करंट लग गया. ‘इस नौटंकीबाज, बदतमीज, पराए मर्दों के साथ घूमने वाली औरत को अगर मैं ने यहां से भगा दिया तो यह मेरी झूठी बदनामी कर देगी… और अगर इसे मां के पास छोड़ता हूं तो यह किस के साथ घूम रही होगी, क्या कर रही होगी, यही सब सोच कर मेरा काम में मन नहीं लगेगा,’ यही सोच कर सागर को नींद नहीं आई. वह रातभर सोचता रहा, ‘क्या एक पल में झूठ बोलने, दूसरे पल में हंसने, जोरजोर से चिल्ला कर लोगों को जमा करने, तमाशा करने और धमकी देने वाली यह औरत मेरे ही पल्ले पड़नी थी?’

बहुत देर तक सोचने के बाद सागर के मन में एक विचार आया और बिना किसी वजह से धमकी देने वाली इस नौटंकीबाज पत्नी नयना को उस ने भी धमकी दी, ‘‘नयना, मैं तुझ से परेशान हो कर एक दिन खुदकुशी कर लूंगा और एक सुसाइड नोट लिख कर जाऊंगा कि तुम ने मुझ धोखा दे कर, डराधमका कर और झूठी बदनामी कर के आत्महत्या करने पर मजबूर किया है. किसी को धोखा देना गुनाह है. पुलिस तुझ से पूछताछ करेगी और तेरा असली चेहरा सब के सामने आएगा. तेरे जैसी बदतमीज के लिए जेल का पिंजरा ही ठीक रहेगा.’’

सागर के लिए यह औरत सिर पर टंगी हुई तलवार की तरह थी और उसे रास्ते पर लाने का यही एकमात्र उपाय था. खुदकुशी करने का सागर का यह विचार काम आ गया. यह सुन कर नयना घबरा गई.

‘‘ऐसा कुछ मत करो, मैं बरबाद हो जाऊंगी,’’ कह कर नयना रोने लगी.

इस के बाद सागर ने नयना को मुंबई ले जाने का फैसला किया. उस ने भी घबरा कर जाने के लिए हां कर दी. उस के दोस्त फोन न करें, इसलिए फोन नंबर भी बदल दिया.

अब वे दोनों मुंबई में साथ रहते हैं. नयना भी अपने बरताव में काफी सुधार ले आई है.

बेटी होने का दर्द : अनामिका की खुशी का क्या राज था

‘‘पापा… पापा… मेरा रिजल्ट आ गया है. देखिए, मैं ने अपनी क्लास में टौप किया है. पापा, मुझे प्रिंसिपल मैडम ने यह मैडल भी दिया है,’’ यह बताते हुए अनामिका खुशी से चहक रही थी. उस के पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे. मन में डाक्टर बनने का सपना लिए अनामिका 11वीं क्लास में साइंस स्ट्रीम चुनना चाहती थी.

अनामिका के पापा के बौस दूर खड़े अनामिका की यह सारी बातें सुन रहे थे. वे बिना सोचे समझे बीच में बोल पड़े, ‘‘अरे मिश्राजी, बेटी को डाक्टर बनाने का क्या फायदा… डाक्टर की डिगरी हासिल करने में बहुत मेहनत और काफी पैसा चाहिए. आप इतना पैसा कहां से लगाएंगे? आप की तनख्वाह भी इतनी नहीं है, फिर 2 बेटे भी हैं आप के. उन दोनों को पढ़ालिखा कर कुछ बनाइएगा.’’

अनामिका के पापा को अपने बौस की बात समझ में आ गई और उन्होंने अनामिका को आर्ट्स स्ट्रीम लेने का आदेश दे दिया.

अनामिका बहुत रोईगिड़गिड़ाई, पर पापा नहीं माने. टौपर का रिजल्ट हाथ में लिए चंचल चिडि़या सी अनामिका खुद को बिना पंखों की चिडि़या की तरह लाचार महसूस कर रही थी. उसे लग रहा था कि अच्छे समाज को बनाने में सहायक बेटियों की इतनी बुरी हालत… क्या बेटी होना इतना बड़ा गुनाह है?

इन्हीं सवालों के साथ आर्ट्स स्ट्रीम ले कर अनामिका पढ़ाई करने लगी. 12वीं क्लास पास होते ही मम्मी ने पापा से कहा, ‘‘सुनिए, अब अच्छा सा कोई लड़का देख कर अनामिका की शादी कर दीजिए, बहुत हुई पढ़ाईलिखाई.’’

इधर, डाक्टर न बन पाने की कसक दिल में लिए अनामिका मन ही मन आईएएस बनने का सपना सजा कर बैठी थी, पर मां की बात सुन कर एक बार फिर वह अपना सपना टूटने के डर से कराह उठी. जैसेतैसे पापा को मना कर बीए का फार्म भरवाया और फिर वह ग्रेजुएट हो गई.

इस के बाद अनामिका को यह कह कर उस की शादी करा दी गई  कि अब जो करना है, अपने घर जा कर करना.

अनामिका की शादी हुई, ससुराल पहुंची और ससुराल वालों के सामने उस ने आगे पढ़ाई की इच्छा जाहिर की, तो जवाब मिला कि और ज्यादा पढ़ना था तो अपने पिता के घर में पढ़ती रहती, शादी क्यों की? अब शादी हो गई है, तो घर का चूल्हाचौका संभालो.

मन मार कर अनामिका घर के कामों में बिजी रहने लगी. इसे बेटी की मजबूरी कहें या समाज की दोगली सोच?

कुरसी का करिश्मा : कैसे रानी बन गई कलावती

दीपू के साथ आज मालिक भी उस के घर पधारे थे. उस ने अंदर कदम रखते ही आवाज दी, ‘‘अजी सुनती हो?’’

‘‘आई…’’ अंदर से उस की पत्नी कलावती ने आवाज दी.

कुछ ही देर बाद कलावती दीपू के सामने खड़ी थी, पर पति के साथ किसी अनजान शख्स को देख कर उस ने घूंघट कर लिया.

‘‘कलावती, यह राजेश बाबू हैं… हमारे मालिक. आज मैं काम पर निकला, पर सिर में दर्द होने के चलते फतेहपुर चौक पर बैठ गया और चाय पीने लगा, पर मालिक हालचाल जानने व लेट होने के चलते इधर ही आ रहे थे.

‘‘मुझे चौक पर देखते ही पूछा, ‘क्या आज काम पर नहीं जाना.’

‘‘इन को सामने देख कर मैं ने कहा, ‘मेरे सिर में काफी दर्द है. आज नहीं जा पाऊंगा.’

‘‘इस पर मालिक ने कहा, ‘चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’

‘‘देखो, आज पहली बार मालिक हमारे घर आए हैं, कुछ चायपानी का इंतजाम करो.’’

कलावती थोड़ा सा घूंघट हटा कर बोली, ‘‘अभी करती हूं.’’

घूंघट के हटने से राजेश ने कलावती का चेहरा देख लिया, मानो उस पर आसमान ही गिर पड़ा. चांद सा दमकता चेहरा, जैसे कोई अप्सरा हो. लंबी कदकाठी, लंबे बाल, लंबी नाक और पतले होंठ. सांचे में ढला हुआ उस का गदराया बदन. राजेश बाबू को उस ने झकझोर दिया था.

इस बीच कलावती चाय ले आई और राजेश बाबू की तरफ बढ़ाती हुई बोली, ‘‘चाय लीजिए.’’

राजेश बाबू ने चाय का कप पकड़ तो लिया, पर उन की निगाहें कलावती के चेहरे से हट नहीं रही थीं. कलावती दीपू को भी चाय दे कर अंदर चली गई.

‘‘दीपू, तुम्हारी बीवी पढ़ीलिखी कितनी है?’’ राजेश बाबू ने पूछा.

‘‘10वीं जमात पास तो उस ने अपने मायके में ही कर ली थी, लेकिन यहां मैं ने 12वीं तक पढ़ाया है,’’ दीपू ने खुश होते हुए कहा.

‘‘दीपू, पंचायत का चुनाव नजदीक आ रहा है. सरकार ने तो हम लोगों के पर ही कुतर दिए हैं. औरतों को रिजर्वेशन दे कर हम ऊंची जाति वालों को चुनाव से दूर कर दिया है. अगर तुम मेरी बात मानो, तो अपनी पत्नी को उम्मीदवार बना दो.

‘‘मेरे खयाल से तो इस दलित गांव में तुम्हारी बीवी ही इंटर पास होगी?’’ राजेश बाबू ने दीपू को पटाने का जाल फेंका.

‘‘आप की बात सच है राजेश बाबू. दलित बस्ती में सिर्फ कलावती ही इंटर पास है, पर हमारी औकात कहां कि हम चुनाव लड़ सकें.’’

‘‘अरे, इस की चिंता तुम क्यों करते हो? मैं सारा खर्च उठाऊंगा. पर मेरी एक शर्त है कि तुम दोनों को हमेशा मेरी बातों पर चलना होगा,’’ राजेश बाबू ने जाल बुनना शुरू किया.

‘‘हम आप से बाहर ही कब थे राजेश बाबू? हम आप के नौकरचाकर हैं. आप जैसा चाहेंगे, वैसा ही हम करेंगे,’’ दीपू ने कहा.

‘‘तो ठीक है. हम कलावती के सारे कागजात तैयार करा लेंगे और हर हाल में चुनाव लड़वाएंगे,’’ इतना कह कर राजेश बाबू वहां से चले गए.

कुछ दिन तक चुनाव प्रचार जोरशोर से चला. राजेश बाबू ने इस चुनाव में पैसा और शराब पानी की तरह बहाया. इस तरह कलावती चुनाव जीतने में कामयाब हो गई.

कलावती व दीपू राजेश बाबू की कठपुतली बन कर हर दिन उन के यहां दरबारी करते. खासकर कलावती तो कोई भी काम उन से पूछे बिना नहीं करती थी.

एक दिन एकांत पा कर राजेश बाबू ने घर में कलावती के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कलावती, एक बात कहूं?’’

‘‘कहिए मालिक,’’ कलावती राजेश बाबू के हाथ को कंधे से हटाए बिना बोली.

‘‘जब मैं ने तुम्हें पहली बार देखा था, उसी दिन मेरे दिल में तुम्हारे लिए प्यार जाग गया था. तुम को पाने के लिए ही तो मैं ने तुम्हें इस मंजिल तक पहुंचाया है. आखिर उस अनपढ़ दीपू के हाथों

की कठपुतली बनने से बेहतर है कि तुम उसे छोड़ कर मेरी बन जाओ. मेरी जमीनजायदाद की मालकिन.’’

‘‘राजेश बाबू, मैं कैसे यकीन कर लूं कि आप मुझ से सच्चा प्यार करते हैं?’’ कलावती नैनों के बाण उन पर चलाते हुए बोली.

‘‘कल तुम मेरे साथ चलो. यह हवेली मैं तुम्हारे नाम कर दूंगा. 5 बीघा खेत व 5 लाख रुपए नकद तुम्हारे खाते में जमा कर दूंगा. बोलो, इस से ज्यादा भरोसा तुम्हें और क्या चाहिए.’’

‘‘बस… बस राजेश बाबू, अगर आप इतना कर सकते हैं, तो मैं हमेशा के लिए दीपू को छोड़ कर आप की हो जाऊंगी,’’ कलावती फीकी मुसकान के साथ बोली.

‘‘तो ठीक है,’’ राजेश ने उसे चूमते हुए कहा, ‘‘कल सवेरे तुम तैयार रहना.’’

दूसरे दिन कलावती तैयार हो कर आई. राजेश बाबू के साथ सारा दिन बिताया. राजेश बाबू ने अपने वादे के मुताबिक वह सब कर दिया, जो उन्होंने कहा था.

2 दिन बाद राजेश बाबू ने कलावती को अपने हवेली में बुलाया. वह पहुंच गई, तो राजेश बाबू ने उसे अपने आगोश में भरना चाहा, तभी कलावती अपने कपड़े कई जगह से फाड़ते हुए चीखी, ‘‘बचाओ… बचाओ…’’

कुछ पुलिस वाले दौड़ कर अंदर आ गए, तो कलावती राजेश बाबू से अलग होते हुए बोली, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, यह शैतान मेरी आबरू से खेलना चाह रहा था. देखिए, मुझे अपने घर बुला कर किस तरह बेइज्जत करने पर तुल गया. यह भी नहीं सोचा कि मैं इस पंचायत की मुखिया हूं.’’

इंस्पैक्टर ने आगे बढ़ कर राजेश बाबू को धरदबोचा और उस के हाथों में हथकड़ी डालते हुए कहा, ‘‘यह आप ने ठीक नहीं किया राजेश बाबू.’’

राजेश बाबू ने गुस्से में कलावती को घूरते हुए कहा, ‘‘धोखेबाज, मुझ से दगाबाजी करने की सजा तुम्हें जरूर मिलेगी. आज तू जिस कुरसी पर है, वह कुरसी मैं ने ही तुझे दिलाई है.’’

‘‘आप ने ठीक कहा राजेश बाबू. अब वह जमाना लद गया है, जब आप लोग छोटी जातियों को बहलाफुसला कर खिलवाड़ करते थे. अब हम इतने बेवकूफ नहीं रहे.

‘‘देखिए, इस कुरसी का करिश्मा, मुखिया तो मैं बन ही गई, साथ ही आप ने रातोंरात मुझे झोंपड़ी से उठा कर हवेली की रानी बना दिया. लेकिन अफसोस, रानी तो मैं बन गई, पर आप राजा नहीं बन सके. राजा तो मेरा दीपू ही होगा इस हवेली का.’’

राजेश बाबू अपने ही बुने जाल में उलझ गए.

कितने दूर कितने पास : एक हसंता खेलते परिवार की कहानी

सरकारी सेवा से मुक्त होने में बस, 2 महीने और थे. भविष्य की चिंता अभी से खाए जा रही थी. कैसे गुजारा होगा थोड़ी सी पेंशन में. सेवा से तो मुक्त हो गए परंतु कोई संसार से तो मुक्त नहीं हो गए. बुढ़ापा आ गया था. कोई न कोई बीमारी तो लगी ही रहती है. कहीं चारपाई पकड़नी पड़ गई तो क्या होगा, यह सोच कर ही दिल कांप उठता था. यही कामना थी कि जब संसार से उठें तो चलतेफिरते ही जाएं, खटिया रगड़ते हुए नहीं.

सब ने समझाया और हम ने भी अपने अनुभव से समझ लिया था कि पैसा पास हो तो सब से प्रेमभाव और सुखद संबंध बने रहते हैं. इस भावना ने हमें इतना जकड़ लिया था कि पैसा बचाने की खातिर हम ने अपने ऊपर काफी कंजूसी करनी शुरू कर दी. पैसे का सुख चाहे न भोग सकें परंतु मरते दम तक एक मोटी थैली हाथ में अवश्य होनी चाहिए. बेटी का विवाह हो चुका था.

वह पति और बच्चों के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रही थी. जैसेजैसे समय निकलता गया हमारा लगाव कुछ कम होता चला गया था. हमारे रिश्तों में मोह तो था परंतु आकर्षण में कमी आ गई थी. कारण यह था कि न अब हम उन्हें अधिक बुला सकते थे और न उन की आशा के अनुसार उन पर खर्च कर सकते थे. पुत्र ने अवसर पाते ही दिल्ली में अपना मकान बना लिया था. इस मकान पर मैं ने भी काफी खर्च किया था.

आशा थी कि अवकाश प्राप्त करने के बाद इसी मकान में आ कर पतिपत्नी रहेंगे. कम से कम रहने की जगह तो हम ने सुरक्षित कर ली थी. एक दिन पत्नी के सीने में दर्द उठा. घर में जितनी दवाइयां थीं सब का इस्तेमाल कर लिया परंतु कुछ आराम न हुआ.

सस्ते डाक्टरों से भी इलाज कराया और फिर बाद में पड़ोसियों की सलाह मान कर 1 रुपए की 3 पुडि़या देने वाले होमियोपैथी के डाक्टर की दवा भी ले आए. दर्द में कितनी कमी आई यह कहना तो बड़ा कठिन था परंतु पत्नी की बेचैनी बढ़ गई. एक ही बात कहती थी, ‘‘बेटी को बुला लो. देखने को बड़ा जी चाह रहा है. कुछ दिन रहेगी तो खानेपीने का सहारा भी हो जाएगा. बहू तो नौकरी करती है, वैसे भी न आ पाएगी.’’ ‘‘प्यारी बेटी,’’ मैं ने पत्र लिखा, ‘‘तुम्हारी मां की तबीयत बड़ी खराब चल रही है. चिंता की कोई बात नहीं. पर वह तुम्हें व बच्चों को देखना चाह रही है. हो सके तो तुम सब एक बार आ जाओ.

कुछ देखभाल भी हो जाएगी. वैसे अब 2 महीने बाद तो यह घर छोड़ कर दिल्ली जाना ही है. अच्छा है कि तुम अंतिम बार इस घर में आ कर हम लोगों से मिल लो. यह वही घर है जहां तुम ने जन्म लिया, बड़ी हुईं और बाजेगाजे के साथ विदा हुईं…’’ पत्र कुछ अधिक ही भावुक हो गया था.

मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं थी, पर कलम ही तो है. जब चलने लगती है तो रुकती नहीं. इस पत्र का कुछ ऐसा असर हुआ कि बेटी अपने दोनों बच्चों के साथ अगले सप्ताह ही आ गई. दामाद ने 10 दिन बाद आने के लिए कहा था. न जाने क्यों मांबेटी दोनों एकदूसरे के गले मिल कर खूब रोईं. भला रोने की बात क्या थी? यह तो खुशी का अवसर था. मैं अपने नातियों से गपें लगाने लगा.

रचना ने कहा, ‘‘बोलो, मां, तुम्हारे लिए क्या बनाऊं? तुम कितनी दुबली हो गई हो,’’ फिर मुझे संबोधित कर बोली, ‘‘पिताजी, बकरे के दोचार पाए रोज ले आया कीजिए. यखनी बना दिया करूंगी. बच्चों को भी बहुत पसंद है. रोज सूप पीते हैं. आप को भी पीना चाहिए,’’ फिर मेरी छाती को देखते हुए बोली, ‘‘क्या हो गया है पिताजी आप को?

सारी हड्डियां दिखाई दे रही हैं. ठहरिए, मैं आप को खिलापिला कर खूब मोटा कर के जाऊंगी. और हां, आधा किलो कलेजी- गुर्दा भी ले आइएगा. बच्चे बहुत शौक से खाते हैं.’’ मैं मुसकराने का प्रयत्न कर रहा था, ‘‘कुछ भी तो नहीं हुआ. अरे, इनसान क्या कभी बुड्ढा नहीं होता? कब तक मोटा- ताजा सांड बना रहूंगा? तू तो अपनी मां की चिंता कर.’’ ‘‘मां को तो देख लूंगी, पर आप भी खाने के कम चोर नहीं हैं. आप को क्या चिंता है? लो, मैं तो भूल ही गई. आप तो रोज इस समय एक कप कौफी पीते हैं. बैठिए, मैं अभी कौफी बना कर लाती हूं. बच्चो, तुम भी कौफी पियोगे न?’’

मैं एक असफल विरोध करता रह गया. रचना कहां सुनने वाली थी. दरअसल, मैं ने कौफी पीना अरसे से बंद कर दिया था. यह घर के खर्चे कम करने का एक प्रयास था. कौफी, चीनी और दूध, सब की एकसाथ बचत. पत्नी को पान खाने का शौक था. अब वह बंद कर के 10 पैसे की खैनी की पुडि़या मंगा लेती थी, जो 4 दिन चलती थी. हमें तो आखिर भविष्य को देखना था न. 

‘‘अरे, कौफी कहां है, मां?’’ रचना ने आवाज लगा कर पूछा, ‘‘यहां तो दूध भी दिखाई नहीं दे रहा है? लो, फ्रिज भी बंद पड़ा है. क्या खराब हो गया?’’ मां ने दबे स्वर में कहा, ‘‘अब फ्रिज का क्या काम है? कुछ रखने को तो है नहीं. बेकार में बिजली का खर्चा.’’ ‘‘पिताजी, ऐसे नहीं चलेगा,’’ रचना ने झुंझला कर कहा, ‘‘यह कोई रहने का तरीका है? क्या इसीलिए आप ने जिंदगी भर कमाया है?

अरे ठाट से रहिए. मैं भी तो सिर उठा कर कह सकूं कि मेरे पिताजी कितनी शान से रहते हैं. ए बिट्टू, जा, नीचे वाली दुकान से दौड़ कर कौफी तो ले आ. हां, पास ही जो मिट्ठन हलवाई की दुकान है, उस से 1 किलो दूध भी ले आना. नानाजी का नाम ले देना, समझा? भाग जल्दी से, मैं पानी रख रही हूं.’’ किट्टू बोला, ‘‘मां, मैं भी जाऊं. फाइव स्टार चाकलेट खानी है.’’ ‘‘जा, तू भी जा, शांति तो हो घर में,’’ रचना ने हंस कर कहा, ‘‘चाकलेट खाने की तो ऐसी आदत पड़ गई है कि बस, पूछो मत. इन की तो नौकरी भी ऐसी है कि मुफ्त देने वालों की कमी नहीं है.’’

मैं मन ही मन गणित बिठा रहा था. 5 रुपए की चाकलेट, 6 रुपए का दूध, 15 रुपए की कौफी, 16 रुपए की आधा किलो कलेजी, ढाई रुपए के 2 पाए…’’ कौफी पी ही रहा था कि रचना का क्रुद्ध स्वर कानों में पड़ा, ‘‘मां, तुम ने घर को क्या कबाड़ बना रखा है. न दालें हैं न सब्जी है, न मसाले हैं. आप लोग खाते क्या हैं? बीमार नहीं होंगे तो क्या होंगे? छि:, मैं भाभी को लिख दूंगी. आप की खूब शिकायत करूंगी. दिल्ली में अगर आप को इस हालत में देखा तो समझ लेना कि भाभी से तो लड़ाई करूंगी ही, आप से भी कभी मिलने नहीं आऊंगी.’

रचना जल्दी से सामान की सूची बनाने लगी. मेरी पत्नी का खाना बनाने को मन नहीं करता था. उसे अपनी बीमारी की चिंता अधिक सताती थी. पासपड़ोस की औरतें भी उलटीसीधी सीख दे जाया करती थीं. मैं ने भी समझौता कर लिया था. जो एक समय बन जाता था वही दोनों समय खा लेते थे.

आखिर इनसान जिंदा रहने के लिए ही तो खाता है. अब इस उम्र में चटोरापन किस काम का. यह बात अलग थी कि हमारा खर्च आधा रह गया था. बैंक में पैसे भी बढ़ रहे थे और सूद भी. पत्नी ने धीरे से कहा, ‘‘यह तो पराया समझ कर घर लुटा रही है. सामान तुम ही लाना और मुझे यखनीवखनी कुछ नहीं चाहिए. कलेजी भी कम लाना. अगर बच्चों को खिलाना है तो सीधी तरह से कह देती.

लगता है मुझे ही रसोई में लगना पड़ेगा. हमें आगे का देखना है कि अभी का?’’ फिर सिर पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘अभी तो दामाद को भी आना है. उन्हें तो सारा दिन खानेपीने के सिवा कुछ सूझता ही नहीं.’’ ‘‘तुम ने ही तो कहा था बुलाने को.’’ ‘‘कहा था तो क्या तुम मना नहीं कर सकते थे. ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि जो मैं ने कहा वह पत्थर की लकीर हो गई,’’ पत्नी ने उलाहना दिया. ‘‘अब तो भुगतना ही पड़ेगा. अब देर हो गई. कल सुबह बैंक से पैसे निकालने जाना पड़ेगा,’’ मैं ने दुखी हो कर कहा. इतने में रचना आ गई, ‘‘मां, देसी घी कहां है? दाल किस में छौंकूंगी? रोटी पर क्या लगेगा?’’ मां ने ठंडे दिल से कहा, ‘‘डाक्टर ने देसी घी खाने को मना किया है न.

चरबी वाली चीजें बंद हैं. तेरे लिए आधा किलो मंगवा दूंगी.’’ मैं ने खोखली हंसी से कहा, ‘‘कोलेस्टेराल बढ़ जाता है न, और रक्तचाप भी.’’ ‘‘भाड़ में गए ऐसे डाक्टर. हड्डी- पसली निकल रही है, सूख कर कांटा हो रहे हैं और कोलेस्टेराल की बात कर रहे हैं. आप अभी 5 किलोग्राम वाले डब्बे का आर्डर कर आइए. मेरे सामने आ जाना चाहिए,’’ रचना ने धमकी दी. मेरे और पत्नी के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी, ‘कितना खर्च हो जाएगा इन के रहते. सेवा से अवकाश लेने वाला हूं. कम खर्च में काम चलाना होगा. बेटे के ऊपर भी तो बोझ बन कर नहीं रहना है.’

सुबह ही सुबह रचना दूध वाले से झगड़ा कर रही थी, ‘‘क्यों, पहलवान, मैं क्या चली गई, तुम ने तो दूध देना ही बंद कर दिया.’’ ‘‘बिटिया, हम क्यों दूध बंद करेंगे? मांजी ने ही कहा कि बस, आधा किलो दे जाया करो. चाय के लिए बहुत है. क्या इसी घर में हम ने 4-4 किलो दूध नहीं दिया है?’’ ‘‘देखो, जब तक मैं हूं, 3 किलो दूध रोज चाहिए. बच्चे दोनों समय दूध लेते हैं. जब मैं चली जाऊं तो 2 किलो देना, मां मना करें या पिताजी.

यह मेरा हुक्म है, समझे?’’ ‘‘समझा, बिटिया, हम भी तो कहें, क्यों मांजी और बाबूजी कमजोर हो रहे हैं. यही तो खानेपीने की उम्र है. अभी दूध नहीं पिएंगे तो कब पिएंगे?’’ 18 रुपए का दूध रोज. मैं मन ही मन सोच रहा था कि पत्नी इशारे से दूध वाले को कुछ कहने का असफल प्रयत्न कर रही थी. ‘‘अंडे भी नहीं हैं. न मक्खन न डबल रोटी,’’ रचना चिल्ला रही थी, ‘‘आप लोग बीमार नहीं पड़ेंगे तो क्या होगा.

बिट्टू, जा दौड़ कर नीचे से एक दर्जन अंडे ले आ और 500 ग्राम वाली मक्खन की टिकिया, नानाजी का नाम ले देना.’’ ‘‘मां, मैं भी जाऊं,’’ किट्टू बोला, ‘‘टाफी लाऊंगा. तुम्हारे लिए भी ले आऊं न?’’ ‘‘जा बाबा, जा, सिर मत खा,’’ रचना ने हंसते हुए कहा. हाथ दबा कर खर्च करने के चक्कर में बहुत मना करने पर भी पत्नी ने रसोई का काम संभाल लिया.

जब दामाद आए तब तो किसी को फुरसत ही कहां. रोज बाजार कुछ न कुछ खरीदने जाना और नहीं तो यों ही घूमने के लिए. रिश्तेदार भी कई थे. कोई मिलने आया तो किसी के यहां मिलने गए. परिणाम यह हुआ कि पत्नी के लिए रसोई लक्ष्मण रेखा बन गई. दामाद की सारी फरमाइशें रचना मां को पहुंचा देती थी, ‘‘सास के हाथ के कबाब तो बस, लाजवाब होते हैं.

उफ, पिछली दफा जो कीमापनीर खाया था, आज तक याद है. मुर्गमुसल्लम तो जो मां के हाथ का खाया था अशोक होटल में भी क्या बनेगा.’’ जब तक रचना पति और बच्चों के साथ वापस गई, मेरी पत्नी के सीने का दर्द वापस आ गया था, लेकिन दर्द के बारे में सोचने की फुरसत कहां थी. घर छोड़ कर दिल्ली जाने में 1 महीना रह गया था. कुछ सामान बेचा तो कुछ सहेजा. एक दिन 20-25 बक्सों का कारवां ले कर जब दिल्ली पहुंचे तो चमचमाते मुंह से पुत्र ने स्वागत किया और बहू ने सिर पर औपचारिक रूप से साड़ी का पल्ला खींचते हुए सादर पैर छू कर हमारा आशीर्वाद प्राप्त किया.

पोता दादी से चिपक गया तो नन्ही पोती मेरी गोदी में चढ़ गई. सुबह जल्दी उठने की आदत थी. पुत्र का स्वर कानों में पड़ा, ‘‘सुनो, दूध 1 किलो ज्यादा लेना. मां और पिताजी सुबह नाश्ते में दूध लेते हैं.’’ बहू ने उत्तर दिया, ‘‘दूध का बिल बढ़ जाएगा. इतने पैसे कहां से आएंगे? और फिर अकेला दूध थोड़े ही है. अंडे भी आएंगे. मक्खन भी ज्यादा लगेगा…’’ पुत्र ने झुंझला कर कहा, ‘‘ओहो, वह हिसाबकिताब बाद में करना. मांबाप हमारे पास रहने आए हैं. उन्हें ठीक तरह से रखना हमारा कर्तव्य है.’’ ‘‘तो मैं कोई रोक रही हूं? यही तो कह रही हूं कि खर्च बढ़ेगा तो कुछ पैसों का बंदोबस्त भी करना पड़ेगा. बंधीबंधाई तनख्वाह के अलावा है क्या?’’ ‘‘देखो, समय से सब बंदोबस्त हो जाएगा. अभी तो तुम रोज दूध और अंडों का नाश्ता बना देना.’’ ‘‘ठीक है, बच्चों का दूध आधा कर दूंगी. एक समय ही पी लेंगे. अंडे रोज न बना कर 2-3 दिन में एक बार बना दूंगी.’’

‘‘अब जो ठीक समझो, करो,’’ बेटे ने कहा, ‘‘सेना के एक कप्तान से मैं ने दोस्ती की है. एक दिन बुला कर उसे दावत देनी है.’’ ‘‘वह किस खुशी में?’’ ‘‘अरे, जानती तो हो, आर्मी कैंटीन में सामान सस्ता मिलता है, एक दिन दावत देंगे तो साल भर सामान लाते रहेंगे.’’ ‘‘ठीक तो है, रंजना के यहां तो ढेर लगा है. जब पूछो, कहां से लिया है तो बस, इतरा कर कहती है कि मेजर साहब ने दिलवा दिया है.’’

जब नाश्ता करने बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘अरे, यह दूध मेरे लिए क्यों रख दिया. अब कोई हमारी उम्र दूध पीने की है. लो, बेटा, तुम पी लो,’’ मैं ने अपना आधा प्याला पोते के आधे प्याले में डाल दिया. पत्नी ने कहा, ‘‘यह अंडा तो मुझे अब हजम नहीं होता. बहू, इन बच्चों को ही दे दिया करो. बाबा, डबल रोटी में इतना मक्खन लगा दिया…मैं तो बस, नाम मात्र का लेती हूं.’’ बहू ने कहा, ‘‘मांजी, ऐसे कैसे होगा? बच्चे तो रोज ही खाते हैं. आप जब तक हमारे पास हैं अच्छी तरह खाइए. लीजिए, आप ने भी दूध छोड़ दिया.’’ ‘‘मेरी सोना को दे दो. बच्चों को तो खूब दूध पीना चाहिए.’’

‘‘हां, बेटा, मैं तो भूल ही गया था. तुम्हारी मां के सीने में दर्द रहता है. काफी दवा की पर जाता ही नहीं. अच्छा होता किसी डाक्टर को दिखा देते. है कोई अच्छा डाक्टर तुम्हारी जानपहचान का?’’ बेटे ने सोच कर उत्तर दिया, ‘‘मेरी जानपहचान का तो कोई है नहीं पर दफ्तर में पता करूंगा. हो सकता है एक्सरे कराना पड़े.’’ बहू ने तुरंत कहा, ‘‘अरे, कहां डाक्टर के चक्कर में पड़ोगे, यहां कोने में सड़क के उस पार घोड़े की नाल बनाने वाला एक लोहार है. बड़ी तारीफ है उस की. उस के पास एक खास दवा है. बड़े से बड़े दर्द ठीक कर दिए हैं उस ने. अरे, तुम्हें तो मालूम है, वही, जिस ने चमनलाल का बरसों पुराना दर्द ठीक किया था.’’

‘‘हां,’’ बेटे ने याद करते हुए कहा, ‘‘ठीक तो है. वह पैसे भी नहीं लेता. बस, कबूतरों को दाना खिलाने का शौक है. सो वही कहता है कि पैसों की जगह आप आधा किलो दाना डाल दो, वही काफी है.’’ मैं ने गहरी सांस ली. पत्नी साड़ी के कोने से मेज पर पड़ा डबल रोटी का टुकड़ा साफ कर रही थी. मेरी मुट्ठी भिंच गईं. मुझे लगा मेरी मुट्ठी में इस समय अनगिनत रुपए हैं.

सोचने की बात सिर्फ यह थी कि इन्हें आज खत्म करूं या कल, परसों या कभी नहीं. बेटा दफ्तर जा रहा था. ‘‘सुनो,’’ उस ने बहू से कहा, ‘‘जरा कुछ रुपए दे दो. लौटते हुए गोश्त लेता आऊंगा, और रबड़ी भी. पिताजी को बहुत पसंद है न.’’ बहू ने झिड़क कर कहा, ‘‘अरे, पिताजी कोई भागे जा रहे हैं जो आज ही रबड़ी लानी है? रहा गोश्त, सो पाव आध पाव से तो काम चलेगा नहीं.

कम से कम 1 किलो लाना पड़ेगा. मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं. अब खाना ही है तो अगले महीने खाना.’’ ‘‘ठीक है,’’ कह कर बेटा चला गया. मुझे एक बार फिर लगा कि मेरी मुट्ठी में बहुत से पैसे हैं. मैं ने मुट्ठी कस रखी है. प्रतीक्षा है सिर्फ इस बात की कि कब अपनी मुट्ठी ढीली करूं. पत्नी ने कराहा. शायद सीने में फिर दर्द उठा था.

एक मां ऐसी : अहराज की जिंदगी में आया तूफान

हर धर्म और हर धार्मिक किताब में मां को महान बताया गया है. मां के कदमों के नीचे जन्नत बताई जाती है और वह इतना बड़ा दिल रखती है कि अपनी औलाद के लिए बड़ी से बड़ी मुसीबत का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहती है.

पर हमारे समाज में कभीकभार ऐसी मां के बारे में भी सुनने को मिलता रहता है, जिस ने अपनी इच्छा के लिए अपनी ही औलाद को मार दिया या मरने के लिए छोड़ दिया. यह कहानी एक ऐसी ही मां की है, जिस ने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए खुद अपनी सगी बेटी के साथसाथ उस के मासूम बच्चों की जिंदगी भी अंधेरे से भर दी.

अहराज की शादी साल 2010 में सना नाम की एक लड़की से बिजनौर जिले के एक गांव में हुई थी. वह मुंबई में एक अच्छा कारोबारी था. उस ने अपनी मेहनत के बल पर काफी जायदाद बना रखी थी.  वक्त बहुत खुशगवार गुजर रहा था. शादी के 10 साल में उस के 4 बच्चे हो गए थे. शादी के 6 साल बाद अहराज की सास अपनी बेटी सना के पास मुंबई आ कर रहने लगी थीं.

अहराज को इस में कोई एतराज न था. उस ने सोचा कि वह खुद तो काम में बिजी रहता है, सास अगर साथ में रहेगी तो उस के बच्चों को भी नानी का प्यार मिलता रहेगा.  कुछ साल तो अहराज की सास सही रहीं, फिर उन्होंने अपनी बेटी सना को भड़काना शुरू कर दिया.

हुआ यों था कि अहराज के ससुर का एक दिन उस के पास फोन आया और उन्होंने पूछा, ‘सना की अम्मी कब तक वहां रहेंगी? मैं भी बीमार रहने लगा हूं.

मेहरबानी कर के तुम उन्हें घर भेज दो. कई महीनों से फोन करता रहा हूं, पर उधर से कोई जवाब नहीं मिलता, इसलिए मजबूर हो कर तुम्हारे पास फोन किया.’ अहराज ने अपने ससुर को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘मैं आज ही उन से बात करता हूं.’’ रात में घर पहुंच कर जब अहराज ने सना से इस बारे में बात की, तो उस ने कोई जवाब नहीं दिया. सुबह अहराज अपने काम पर चला गया.

जब वह दोपहर को घर आया और खाना मांगा तो उस की बीवी चुप रही और सास ने भी कोई जवाब नहीं दिया.  अहराज ने सना से बात की, तो उस ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘पहले अपनी प्रौपर्टी मेरे नाम करो.’’ अहराज सना के मुंह से यह सुन कर हक्काबक्का रह गया. उस ने उसे समझाने की काफी कोशिश की, पर वह नहीं मानी. अहराज ने अपनी सास को यह बात बताई तो वे सिर्फ इतना ही बोलीं, ‘‘वह ठीक कह रही है.’’ अहराज सोच में पड़ गया कि क्या किया जाए. वह परेशान रहने लगा.

उस ने सना को बहुत समझाया, ‘‘हमारे छोटेछोटे मासूम बच्चे हैं. क्यों ऐसा कर रही हो?’’ पर वह टस से मस न हुई और अपनी बात पर अड़ी रही. एक दिन मौका पा कर सना ने अहराज की तिजोरी से तकरीबन  30 लाख रुपए निकाल लिए. अब उस के अंदर का शैतान जाग चुका था.

उस पर मौडलिंग करने का भूत सवार हो  गया था. अहराज को जब इस का पता चला तो उस ने अपने पैसे के बारे में पूछा, पर सना ने कोई जवाब नहीं दिया. तकरीबन एक साल तक ऐसा ही चलता रहा. सना अपनी मनमानी करती रही. वह अपने मासूम बच्चों को छोड़ कर कईकई घंटे घर से गायब रहने लगी. जब अहराज  उस से कुछ पूछता तो वह उलटा ही जवाब देती.

अहराज ने इस बात का जिक्र  अपने साले और ससुर से किया और कहा कि सना की अम्मी को घर वापस बुला लो. उन्होंने पूरी बात सुन कर सना की अम्मी पर जोर दिया तो उन्होंने पहले तो आनाकानी की, पर जब उन के बेटे ने मुंबई आने की धमकी दी, तो उन्होंने अहराज से अपना ट्रेन का टिकट खरीदने के लिए कहा. अहराज ने अगले ही दिन उन का तत्काल में टिकट खरीदा और उन्हें बांद्रा स्टेशन छोड़ने चला गया.

जब वह वापस आया तो सना ने उस से बहुत लड़ाई की. जैसेतैसे 10 दिन गुजर गए. सना की अम्मी अपने घर नहीं पहुंचीं. सब लोग परेशान थे. सना सब से यही बोल रही थी कि अहराज ने उन्हें मार दिया है, पर अहराज बेखौफ हो कर बोला, ‘‘स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं. उन में चैक करो कि मैं उन्हें ट्रेन में बैठा कर वापस आया था या नहीं.’’ इस पर सना चुप हो गई.

अगले दिन अहराज के पास किसी लड़की का फोन आया, ‘तुम्हारी अम्मी ने रूम किराए पर लिया था. तुम्हारी बीवी भी आई थी. उस का नाम सना है. हम पक्का करना चाहते हैं कि ये तुम्हारी अम्मी ही हैं और ये देर रात तक गायब क्यों रहती हैं?’

अहराज समझ गया कि ये उस की सास हैं, जिन्हें सना ने अपनी सास बता कर रूम दिलाया होगा.  अहराज ने उस लड़की से पूछा, ‘‘मेरा फोन नंबर तुम्हें कहां से मिला?’’ वह लड़की बोली, ‘आधारकार्ड की फोटोकौपी से.’ ‘‘वह रूम कहां है और आप कहां से बोल रही हैं?’’ ‘‘मैं बांद्रा से बोल रही हूं.’’ अहराज ने यह बात सना को बता दी.

इस के बाद वह अहराज से लड़ने लगी और अपने चारों बच्चों को छोड़ कर चली गई. पहले तो अहराज ने सोचा कि सना थोड़ी देर में वापस आ जाएगी, पर उस की यह भूल थी. अगले दिन वह पुलिस स्टेशन गया और सारी बात बताई. काफी दिन के बाद पुलिस की सना से फोन पर बात हो पाई.

उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया. वह आई भी.  पुलिस ने उसे बहुत समझाया, पर वह नहीं मानी और बोली, ‘‘मैं ने अपने पति अहराज पर दहेज लेने और मारपीट करने का केस दायर कर दिया है.’’ वक्त गुजरता रहा.

इस घटना को  6 महीने हो गए. अहराज बच्चों को अपने गांव ले गया और कुछ महीने वहीं रहा. बच्चे छोटे थे और उन की पढ़ाई के साथसाथ उन का बचपन भी बिखर चुका था. इस तरह एक मां ऐसी भी निकली, जिस ने अपनी बेटी की जिंदगी तो बरबाद की ही, साथ ही उसे भी अपने जैसी गैरजिम्मेदार मां बना दिया.

बिगड़ैल बेटे को खुद सुधारें

लड़का चाहे कितना ही नकारा, निकम्मा और गैरजिम्मेदार क्यों न हो, उस की शादी एक सुशील और संस्कारी लड़की से करने की खोज शुरू हो जाती है, जो शादी के बाद उसे सुधार दे.

जरा सोचिए, जिस लड़के को 25-30 साल की उम्र तक उस के मातापिता नहीं सुधार पाए, उसे एक ऐसी लड़की कैसे सुधार सकती है, जो उसे जानती तक नहीं?

शादी सुधारगृह नहीं है आज भी हमारे समाज में अगर कोई लड़का गैरजिम्मेदार सोच का होता है, तो उस के लिए एक ही बात कही जाती है कि इस की शादी कर दो, सुधर जाएगा.

समाज का शादी को सुधारगृह के नजरिए से देखने के चलते एक लड़की को कई चुनौतियों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिस का बुरा नतीजा शादी का टूटना, कानूनी लड़ाई झगड़े के कदम के रूप में सामने आता है, जो बाद में पूरे परिवार के पछतावे की वजह बनता है.

आजकल जिस तरह से बेटियों का पालनपोषण किया जा रहा है, उन में कुछ भी गलत सहन करने की समझ नहीं है. वैसे भी यह कैसी सोच है कि अगर लड़का नशा करता है, कुछ काम नहीं करता है, तो उसे सुधारने के लिए उस की शादी करवा दो?

ओछी सोच की वजह

ऐसे लोग अपनी सोच और इस फैसले के नतीजे से अनजान होते हैं और आने वाली लड़की की जिंदगी के बारे में नहीं सोचते. क्या बहू बन कर आने वाली बेटी नहीं होती? जिस बिगड़े लड़के को सुधरना होता है, उस के लिए मांबाप, रिश्तेदार और पड़ोसियों के ताने बहुत होते हैं. उसे किसी अच्छीखासी लड़की के साथ शादी के बंधन में बांध कर उस के सुधरने की उम्मीद करना बेकार सोच और गलत फैसला है.

एक हकीकत

कीर्ति (बदला हुआ नाम) की शादी को एक साल हुआ है. पति राजीव के मातापिता जानते थे कि उन का बेटा बिगड़ा हुआ है. वह शादी से पहले भी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहा था और गलत संगत में था, फिर भी उस के मातापिता ने यह सोच कर कीर्ति से उस की  शादी करवा दी कि घरपरिवार की जिम्मेदारियां पड़ेंगीं, तो वह सुधर जाएगा. पत्नी सुधार देगी.

लेकिन जैसेजैसे कीर्ति के सामने राजीव की सचाई सामने आने लगी, कीर्ति ने राजीव और उस के परिवार को उन के गलत फैसले का मजा चखाने और अपनी आगे की जिंदगी सुधारने का फैसला किया. उस ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ सारे सुबूत इकट्ठा किए और कोर्ट में केस दायर कर दिया. अब पूरा परिवार जेल की हवा खा रहा है.

यह रखें ध्यान

‘शादी के बाद लड़का सुधर जाएगा’ यह जुमला कह कर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला ?ाड़ लेने वाले मांबाप के चलते लड़कियों की तकलीफें बढ़ जाती हैं. शादी के बाद ऐसी लड़कियों पर पैसे कमाने का दबाव बढ़ जाता है. बच्चे के जन्म के बाद तो समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं.

बेटा आप का है, तो उसे सुधारने की जिम्मेदारी भी आप की है. लड़के के मांबाप को बचपन से बेटे को सही आदतें और संस्कार सिखाने चाहिए. महिलाओं की इज्जत करना सिखाना चाहिए. जब तक आप का बेटा कमाता नहीं, तब तक उस की शादी न करें. पहले बेटे को इस लायक बनाएं कि वह शादी की जिम्मेदारी उठा सके, उस के बाद ही उस के रिश्ते की बात शुरू करें.

बहू से उम्मीद क्यों

यह क्या बात हुई कि बेटा आप का बिगड़ा हुआ है, लेकिन उस की शादी कर के आप एक ऐसी लड़की की जिंदगी खराब कर रहे हैं, जिस की कोई गलती नहीं है. वह कैसे उसे जिंदगीभर बरदाश्त करेगी? इसलिए बिगड़े बेटे को सुधारने की अपनी समस्या भूल कर भी आने वाली लड़की के सिर पर न डालें, इस का खमियाजा सास के साथ पूरे परिवार को भुगतना पड़ सकता है. पूरा परिवार फंस सकता है, जेल जा सकता है.

किसी भी लड़की को बिगड़ी औलाद को सुधारने की मशीन सम?ाना सरासर गलत है. लड़के के मांबाप को यह सोचना चाहिए कि अगर उस लड़की की जगह उन की खुद की बेटी होती, तो क्या वे ऐसे बिगड़े लड़के से उस की शादी करते?

हर लड़की के शादी को ले कर कुछ अरमान होते हैं. वह भी शादी के बाद अपनी जिंदगी खुशहाली से बिताना चाहती है, लेकिन जब किसी बिगड़ैल लड़के के साथ वह शादी के बंधन में बंध जाती है, तो उस के सारे सपने चकनाचूर हो जाते हैं. जब वह बदला लेने पर आती है, तो सब की जिंदगी दूभर हो जाती है.

अगर लड़के में कोई काबिलीयत नहीं है कि वह अपना घर चला सके, तो उस की शादी करने का खयाल भी न करें. अगर लड़की के मांबाप भी बिगड़ैल लड़कों से बेटी की शादी इस सोच के साथ करते हैं कि वह बाद में सुधर जाएगा, तो वे भी कम कुसूरवार नहीं होते हैं.

एक बहन की चिट्ठी शहीद भाई के नाम

हमारे प्रिय भैया,

आप मेरी चिट्ठी की बड़ी बेताबी से राह देखा करते हैं, यह मुझे मालूम है, क्योंकि लौटने पर आप ने खुद कहा था, ‘इस बार मेरे दोस्तों ने जब तक मुझ से पार्टी नहीं ले ली, मुझे तेरी राखी नहीं दी.’

उस नादान उम्र में भी मैं सोचा करती थी कि इस एक राखी ने भैया का कितना खर्च करवा दिया. पर, मैं जानती थी कि राखी बंधवाने की खुशी में आप कितने चहक उठते हैं.

जब आप यहां होते थे, तो राखियां और तोहफे भी आप ही ले आते थे. आप के चेहरे पर खिलखिलाती खुशी उस वक्त मेरी समझ से परे थी, पर आज उन्हीं पलों की याद में आंखों से आंसू निकल पड़ते हैं.

आप कुछ दिनों की छुट्टी लेकर आए थे. आप ने जिद की थी, ‘चल, तेरी राखी की नई ड्रैस ले लें.’

तब मैं ने कहा था, ‘भैया, आप लौट आइए, फिर दिलवा देना.’

आप को पुलिस कमांडो की पोस्ट के लिए अकोला का ट्रांसफर और्डर मिल चुका था. हम बहुत खुश थे कि बस कुछ ही दिनों में आप फिर से हमारे साथ होंगे.

भैया, आप का चुलबुला स्वभाव सारे घर को हिला देता था. आप के आने पर सारा घर खुशी से झूम उठता था. आप ने कई पुरस्कार जीते थे. आप की दमदार आवाज में वह रचना तो मेरे दिलोदिमाग में बस सी गई है, जिस पर तालियों की आवाज गूंज उठी थी, ‘तन समर्पित, मन समर्पित, जीवन का कणकण समर्पित, चाहता हूं देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूं…’

देश पर कुरबान होने की चाह कई बार आप के मुंह से निकल जाया करती थी और आप की वह चाह पूरी भी हुई.

हम उन 13 दिनों का इंतजार कर रहे थे, जब आप लौट कर आने वाले थे. यही सोच कर मैं ने आप को चिट्ठी भी नहीं लिखी कि आप आने वाले ही तो हैं. पूरे घर में आप का पलपल इंतजार हो रहा था. आप के लौट आने में सिर्फ 2-3 दिन बाकी थे.

उस दिन सुबहसुबह आप के छोटे भाई घर आए और अब्बू की गोद में सिर रख कर रोने लगे. हमें लगा कि आप के घर पर कुछ हुआ है, शायद आप की मां या बाबूजी… पर, उन की भर्राई आवाज निकली, ‘राजू अब इस दुनिया में नहीं रहा,’ कानों पर यकीन नहीं हो रहा था, पर वे रोतेरोते कहे जा रहे थे.

गढ़चिरोली के अहेरी में पुलिस चौकी के उद्घाटन के लिए जाते समय सुरंग लगा कर नक्सलवादियों ने आप के ग्रुप की 3 जीपों को उड़ा दिया था, जिन में शहीद हुए 7-8 जवानों में से एक आप भी थे.

भैया, मैं तो आप की धर्म बहन हूं, आप के दोस्त की बहन. जब इन 20-22 सालों में हम आप को नहीं भुला पाए, तो सोचिए कि आप के बिना आप के मांबाबूजी की क्या हालत रही होगी? फर्ज की सूली पर चढ़ कर आप की आरजू पूरी हो गई… लेकिन, आप के साथ जीने की हमारी आरजू का क्या?

भैया, हमें नाज है कि आप ने अपने वतन की खातिर अपनी जान कुरबान की. उन लोगों को कौन समझए, जो इस तरह किसी की जान से भी प्यारों को बिना किसी गुनाह के अपनों से दूर कर देते हैं? क्यों उन्हें एहसास नहीं होता कि किसी अपने के चले जाने के बाद उस के परिवार वालों की हालत क्या होती होगी?

सच कहती हूं भैया, याद आप की बहुत आती है. छलक पड़ते हैं आंखों से आंसू, जब कोई बात आप की याद आती है.

आप की बहन,

अर्जिन.

साली बनी घरवाली : क्या बहन का घर उजाड़ पाई आफरीन

आफरीन बहुत ही मजाकिया और चंचल लड़की थी. उस का जीजा अरमान जब भी अपनी बीवी राबिया के साथ ससुराल आता, तो आफरीन उन से ऐसेऐसे मजाक करती कि अरमान शर्म से पानीपानी हो जाता था.

राबिया की शादी 2 महीने पहले अरमान से हुई थी. अरमान एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करता था और अच्छाखासा कमा लेता था. साथ ही, अरमान देखने में भी लंबाचौड़ा और काफी हैंडसम था, जिसे पा कर राबिया बहुत खुश थी.

राबिया एक सीधीसादी घरेलू लड़की थी. वह अपने शौहर के साथ प्यार करने तक में हिचकिचाती थी और बहुत ही सादगी भरी जिंदगी गुजारती थी. नोएडा जैसे शहर में रहने के बावजूद उस का रहनसहन बिलकुल गंवारों वाला था.

अरमान राबिया को देख कर यह तो समझ गया था कि वह सीधीसादी और शौहर की प्रति वफादार है, क्योंकि रात को बिस्तर पर जब वह उस के साथ होती थी, तो काफी शरमाती थी.

लेकिन, राबिया जितनी सीधीसादी थी, उस की छोटी बहन आफरीन उतनी ही चंचल और हंसमुख थी, जो अपने जीजा अरमान से काफी घुलीमिली रहती थी और मस्तीमजाक करती रहती थी. यही वजह थी कि अरमान का ससुराल में काफी दिल लगता था.

आफरीन मौडर्न खयाल के साथसाथ रंगीनमिजाज लड़की थी, जो अकसर टाइट जींस और कसी हुई टीशर्ट पहनती थी, जिस में छाती झांकती थी. यह देख कर अरमान मन ही मन रोमांचित हो उठता था.

ऐसा नहीं था कि अरमान को साली आफरीन से डर लगता था, वह तो बस उस मौके की तलाश में था, जो उसे अकेले में मिलना चाहिए था.

एक रात की बात है. राबिया और अरमान कमरे में लेटे हुए थे कि तभी आफरीन वहां आ गई और अपने जीजा से बोली, ‘‘मुझे भी आप के पास सोना है. मैं भी तो आप की साली हूं और साली आधी घरवाली होती है.’’

यह सुन कर अरमान शरमा गया और कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाया, क्योंकि पास में ही उस की बीवी राबिया लेटी थी.

राबिया आफरीन से बोली, ‘‘यह कैसा मजाक कर रही है तू. अपने शौहर के पास जा कर सोना, जब तेरी शादी हो जाए.’’

आफरीन ने कहा, ‘‘क्या बाजी, तुम तो जानती ही हो कि साली आधी घरवाली होती है. तुम तो अकसर इन के पास सोती हो, आज मुझे भी सोने दो. मेरा भी तो कुछ हक है अपने जीजा के पास सोने का.’’

राबिया उठते हुए बोली, ‘‘तू बहुत बातें बनाने लगी है. अभी अम्मी को बताती हूं.’’

आफरीन कमरे से भागते हुए बोली, ‘‘अरे बाजी, मैं तो जीजाजी से मजाक कर रही थी. देखा, इन की कैसे सिट्टीपिट्टी गुम हो गई और मेरे सोने की बात सुन कर पसीनापसीना हो गए.’’

राबिया अरमान की तरफ देख कर हंसते हुए बोली, ‘‘आप तो वाकई आफरीन के छोटे से मजाक से घबरा कर एकदम पसीनापसीना हो गए.’’

अरमान ने कहा, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल, वह मजाक इस ढंग से करती है कि सामने वाले के होश ही उड़ जाते हैं. मै तो उस की बातें सुन कर घबरा गया था कि वह तुम्हारे सामने कैसी जिद कर रही है.’’

राबिया ने कहा, ‘‘ दरअसल, वह है ही बड़ी नटखट. हंसीमजाक करने में बड़ी माहिर है.’’

एक रात की बात है. ठंड का महीना था. सब लोग गहरी नींद में सोए थे. अरमान खुद बड़ी मुश्किल से कंपकंपाता हुआ बाहर निकला था. उस ने जैसे ही आफरीन के कमरे में झांक कर देखा, तो आहट पा कर आफरीन तेज आवाज में बोली, ‘‘कौन है?’’

अरमान ने कहा, ‘‘कोई नहीं, मैं हूं. पानी पीने के लिए उठा था मैं. तुम्हारे कमरे की लाइट जली देखी, तो अंदर झांकने लगा.’’

‘‘अरे जीजू, आप भी बस. इतना शरमाते हो. लगता है, आप भी मेरी दीदी की तरह शरमीले हो. आओ बैठो. मैं आप को ऐसी फिल्म दिखाऊंगी कि आप के होश उड़ जाएंगे.’’

अरमान ने कहा, ‘‘नहीं बाबा. बहुत ठंड है. मैं तो अपने कमरे में जा रहा हूं.’’

आफरीन ने कहा, ‘‘तो मैं कोई आप को जमीन पर थोड़े ही बैठने को कह रही हूं, जो आप को ठंड लग जाएगी. आओ, कंबल में आ जाओ. ऐसी गरमी दूंगी कि आप पसीनापसीना हो जाएंगे और याद करेंगे कि किस से पाला पड़ा है.’’

अरमान ने धीमे से कहा, ‘‘नहीं, अगर कोई आ गया तो क्या कहेगा. मुझे डर लगता है.’’

‘‘अरे जीजू, आप भी बड़े डरपोक हो. ऐसी ठंड में कौन अपने बिस्तर से बाहर निकलने की हिम्मत करेगा. और राबिया बाजी तो एक बार सो गईं, तो सीधे सवेरे ही उठेंगी.

‘‘आओ न यार, कभी साली का भी खयाल कर लिया करो. वैसे भी साली आधी घरवाली होती है.’’

अरमान ने कहा, ‘‘नहीं, मैं चलता हूं. तुम आराम करो या फिल्म देखो.’’

आफरीन अपने बिस्तर से उठते हुए बोली, ‘‘आप भी पता नहीं कौन सी सदी में जी रहे हो. यह जिंदगी मजे लेने के लिए है. यों शरमाने से काम नहीं चलने वाला.’’

इस से पहले कि अरमान वहां से जाता, आफरीन ने उसे खींच लिया और अपने पास बैठाते हुए बोली, ‘‘एक ऐसी फिल्म दिखाती हूं, जो शायद आप ने कभी न देखी हो.’’

आफरीन ने अपने मोबाइल पर एक इंगलिश फिल्म चला दी और बोली, ‘‘जीजू, जब तक आप यह सब नहीं देखेंगे, तब तक आप की जिंदगी रंगीन नहीं बन सकती. देखो, इस में कैसे जिंदगी के मजे लिए जाते हैं.’’

अरमान ने फिल्म में चल रहे पोर्न सीन को देख कर कहा, ‘‘तुम भी क्या बकवास देखती हो? तुम्हें शर्म नहीं आती…’’

आफरीन ने अदा दिखाते हुए कहा, ‘‘मेरे साथ रहोगे तो आप भी शर्म नहीं करोगे, बल्कि खुशगवार जिंदगी जिओगे.’’

इतनी देर में मोबाइल में चल रही फिल्म के सैक्सी सीन देख कर अरमान के बदन में मानो आग लगने लगी.

आफरीन ने मामला भांपते हुए कंबल के अंदर अरमान का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘क्या जीजू, कुछ गरमी आई या अभी तक ठंडे पड़े हो…’’

अरमान समझ चुका था कि आज की रात उस की जिंदगी की रंगीन रात बनने वाली है.

आफरीन अपने हाथों से अरमान के बदन में गरमी भर ही रही थी कि वह बेकाबू हो गया और उस ने आफरीन को भींच लिया.

आफरीन अरमान की इस हरकत से और ज्यादा रोमांटिक हो गई और अपनी टीशर्ट खुद ही उतारते हुए बोली, ‘‘आज की फिल्म हम खुद बनाएंगे,’’ कहते हुए उस ने मोबाइल एक तरफ रख दिया.

इस के बाद वे दोनों एकदूसरे के जिस्म को ऐसे चूम रहे थे, जैसा उन्होंने अभी कुछ देर पहले फिल्म में देखा था. दोनों एकदूसरे में समाने के लिए बेताब हो रहे थे. खूब मौजमस्ती के बाद दोनों संतुष्ट हो गए और एकदूसरे से अलग हो गए.

आफरीन बोली, ‘‘जीजू, आप ने तो कमाल ही कर दिया. मेरे रोमरोम को ऐसे भर दिया, जिस के लिए मैं कब से बेचैन थी. आप तो बड़े ही रोमांटिक निकले.’’

अरमान ने कहा, ‘‘तुम ने भी आज मुझे वह मजा दिया है, जो मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.’’

आफरीन बोली, ‘‘लगता है कि आप दीदी से खुश नहीं हैं. दरअसल, दीदी बहुत सीधीसादी हैं. उन्हें क्या पता कि जिंदगी कैसे जी जाती है. आप मेरा साथ दोगे, तो मैं आप को वे खुशियां दूंगी, जो आप ने कभी सोची भी नहीं होंगी.’’

अरमान ने कहा, ‘‘तुम ने सही कहा. तुम्हारी दीदी में सैक्स को ले कर कोई फीलिंग है ही नहीं, वह तो बस नौर्मल ढंग से सैक्स करती है और जल्दी सो जाती है. उस के साथ रह कर मेरी जिंदगी बोर हो गई है.’’

आफरीन बोली, ‘‘आप चिंता न करें. जो खुशियां दीदी नहीं दे पाईं, वे साली देगी.’’

अब दोनों को जब भी मौका मिलता, वे एकदूसरे से खूब मजे लेते. कभी अरमान अपनी सुसराल आ कर आफरीन के जिस्म को भोगता, तो कभी आफरीन अपनी दीदी राबिया के घर जा कर अरमान के साथ मजे लेती.

धीरेधीरे वे एकदूसरे से प्यार कर बैठे और अब मियांबीवी बन कर जिंदगी गुजारना चाहते थे.

लेकिन, राबिया उन के रास्ते का रोड़ा बनी हुई थी, क्योंकि जब तक वह रास्ते से नहीं हटती, तब तक दोनों कानूनन एक नहीं हो सकते थे.

आफरीन और अरमान ने एक प्लान बनाया, जिस के तहत अरमान ने धीरेधीरे राबिया से लड़ाई झगड़े शुरू कर दिए. वह बातबात पर उसे ताने देता और कभीकभी उस पर हाथ भी उठा देता.

अरमान की इस हरकत से राबिया परेशान हो उठी और उस ने अपने अम्मीअब्बा से अरमान से अलग होने की बात कही.

राबिया के अम्मीअब्बा ने उन दोनों को बैठा कर समझाने की काफी कोशिश की, पर अरमान इस जिद पर अड़ गया कि वह एक गंवार और सीधीसादी औरत के साथ जिंदगी नहीं गुजार सकता. यह खुद तो मैलीकुचैली रहती है, साथ ही इस के अंदर वे जज्बात नहीं, जो एक शौहर को चाहिए. उस के आने से पहले सो जाती है और जब अरमान उस से अपनी ख्वाहिश जाहिर करता है, तो शरमाती है.

राबिया के अम्मीअब्बा सम?ा गए कि राबिया बहुत ही कम रोमांटिक है और वह अपने शौहर को वह जिस्मानी सुख नहीं दे पाती, जिस की उसे जरूरत है. लिहाजा, उन्होंने राबिया और अरमान के अलग होने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई और दोनों खुशीखुशी एकदूसरे से अलग हो गए.

अरमान अब नोएडा के अपने घर में रह रहा था. उस की चाल कामयाब हो चुकी थी. उसे राबिया से आसानी से छुटकारा मिल गया था.

आफरीन भी नौकरी करने के बहाने नोएडा पहुंच गई. दोनों ने वहां निकाह कर लिया और निकाह होते ही अरमान की साली आफरीन उस की घरवाली बन गई. दोनों एकसाथ रह कर जिंदगी के मजे लेने लगे.

इस शादी से अरमान भी बहुत खुश था, तो आफरीन भी कम खुश न थी. उसे उस का मनपसंद जीवनसाथी मिल चुका था, जो उस के साथ उस की मरजी के मुताबिक सैक्स करता और उसे पूरा मजा देता.

अरमान को भी आफरीन के रूप में अब एक ऐसी जीवनसाथी मिली, जो बिस्तर पर भी और जिंदगीभर उस का पूरा साथ देती और उस की हर जरूरत पूरा करने को हर समय तैयार रहती.

कुछ महीने बाद राबिया और उस के घर वालों को भी यह पता चल गया कि आफरीन ने अरमान से निकाह कर लिया है और वह उस के साथ उस के घर पर रह रही है और वे दोनों बहुत खुश हैं.

राबिया अब यह सोचने पर मजबूर हो गई थी कि इन दोनों ने मिल कर उस के खिलाफ साजिश रची, ताकि वे आपस में एकसाथ मिल कर रह सकें. उसे अफसोस था तो बस इतना कि उसी की बहन ने उस के शौहर को अपने हुस्न के जाल में फंसा कर अपना कब्जा जमा लिया और साली से उस की घरवाली बन गई.

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