जानें पुरुषों में कम स्पर्म काउंट की वजह और उसका इलाज

भारत में यदि संतान के इच्छुक किसी दंपती को साल 2 साल में बच्चा नहीं होता, तो इस का जिम्मेदार केवल महिला को ठहराया जाता है, जबकि महिला को मां बनाने में नाकाम होना पुरुष की मर्दानगी पर सवाल होता है. पुरुष भी इस के लिए कम जिम्मेदार नहीं और दोनों ही स्थितियों के स्पष्ट शारीरिक कारण हैं. पर अब लोगों में जागरूकता बढ़ी है.

आज बच्चा पैदा करने में अपनी नाकामी की बात स्वीकार करने का साहस पुरुष भी दिखा रहे हैं. वे इस की जिम्मेदारी ले रहे हैं और इलाज के लिए आगे आ रहे हैं.

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बच्चा पैदा करने की अक्षमता के लगभग एकतिहाई मामलों की जड़ पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी है, जबकि अन्य एकतिहाई के लिए महिलाओं की प्रजनन को जिम्मेदार माना जाता है. बाकी मामलों के कारण अभी ज्ञात नहीं हैं.

कारण

पुरुषों की प्रजनन अक्षमता के मुख्य कारण हैं- शुक्राणुओं की संख्या में कमी, उन की गति में कमी और टेस्टोस्टेरौन की कमी. शुक्राणुओं की संख्या में कमी से फर्टिलाइजेशन (निशेचन) की संभावना में बहुत कमी आती है, जबकि उन की गति धीमी पड़ने से शुक्राणु तेजी से तैर कर एग (अंडाणु) तक पहुंच कर उसे फर्टिलाइज करने में नाकाम रहता है. टेस्टोस्टेरौन एक हारमोन है, जिस की शुक्राणु पैदा करने में बड़ी भूमिका होती है. समस्या के ये कारण बदलते रहते हैं और इन में 1 या अधिक की मौजूदगी से पुरुष की प्रजनन क्षमता छिन सकती है.

शुक्राणुओं की संख्या या गुणवत्ता में कमी के कई कारण हो सकते हैं जैसे आनुवंशिक कारण, टेस्टिक्युलर (अंडकोश) की समस्या, क्रोनिक प्रौस्टेट का संक्रमण, स्क्रोटम की नसों का फूला होना और अंडकोश का सही से नीचे नहीं आना.

शुक्राणु बनने में बाधक कुछ अन्य कारण हैं कुछ खास रसायनों, धातुओं व विषैले तत्त्वों का अधिक प्रकोप और कैंसर का इलाज, जिस में रेडिएशन या कीमोथेरैपी शामिल है.

कुछ आम जोखिम भी हैं जैसे तंबाकू का सेवन, शराब पीना, जिस से पुरुषों के लिंग में पर्याप्त उत्तेजना नहीं होती और शुक्राणुओं की संख्या घट जाती है.

मोटापा भी एक कारण है, जिस के परिणामस्वरूप शुक्राणुओं की संख्या और टेस्टोस्टेरौन का स्तर गिर जाता है. इन सब के अलावा व्यायाम न करना या कम करना भी एक बड़ा कारण है.

काम की जगह जैसे फैक्टरी में अत्यधिक तापमान होना भी इस समस्या को जन्म देता है. इस से अंडकोश का तापमान बढ़ जाता है और शुक्राणु बनने की प्रक्रिया बाधित होती है.

बहुत से पुरुषों को उन के नपुंसक होने का तब तक सच नहीं पता चलता जब तक दोनों पतिपत्नी संतान का सपना सच करने का प्रयास शुरू नहीं करते. ऐसे में पतिपत्नी को चाहिए कि स्वाभाविक रूप से गर्भधारण के लिए 1 साल का समय दें और उस के बाद चिकित्सक से सलाह लें. यदि पत्नी 35 वर्ष से अधिक की हो तो 6 माह के प्रयास के बाद ही उस की उर्वरता की जांच जरूरी है. पुरुषों की प्रजनन क्षमता की जांच में शामिल है वीर्य का विश्लेषण, खून जांच, अल्ट्रासाउंड और जेनेटिक टैस्ट. समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए चिकित्सक 1 या अधिक जांचें करवा सकते हैं.

इलाज

आज इलाज के कई विकल्प मौजूद हैं. इन में एक कृत्रिम निशेचन है, जिस में उपचारित शुक्राणु को सीधे गर्भाशय में डाल दिया जाता है. दूसरा, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) है, जिस में महिला का अंडाणु बाहर निकाल कर उसे एक लैब में पुरुष से प्राप्त शुक्राणु से निशेचित कर वापस गर्भाशय में डाल दिया जाता है. एक अन्य इलाज है इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (आईसीएसआई) जो शुक्राणुओं की संख्या नगण्य (या शून्य) या शुक्राणु के विकृत आकार में होने पर प्रभावी है. इस में केवल एक शुक्राणु को ले कर लैब के अंदर सीधे अंडाणु में डाल दिया जाता है ताकि भ्रूण बन जाए. इस का अर्थ यह है कि प्रचलित आईवीएफ से अलग इस में शुक्राणु को तैर कर अंडाणु तक जाने या अंडाणु की बाहरी परत को तोड़ कर अंदर घुसने की जरूरत नहीं रहती. परिणामस्वरूप निशेचन आसान हो जाता है. इन तकनीकों की मदद से नपुंसकता की समस्या होने के बावजूद पुरुष जैविक रूप से अपनी संतान का पिता बन सकता है.

कुछ मामलों में पतिपत्नी दोनों बच्चा पैदा करने में अक्षम होते हैं या उन में कुछ आनुवंशिक बीमारियों का पता चलता है, जो वे चाहते हैं कि उन की संतान तक नहीं पहुंचें. शुक्राणुओं की गुणवत्ता में अत्यधिक कमी के ऐसे मामलों में डोनर शुक्राणु का लाभ लिया जा सकता है. इस के अलावा, आज डोनर इंब्रायो का भी विकल्प है जो ऐसे दंपती दे सकते हैं, जिन्हें गर्भधारण में सफलता मिल गई है और उन के बचे निशेचित अंडाणु अब उन के किसी काम के नहीं हैं.

आज सैरोगेसी भी एक विकल्प है. इस में सैरोगेट महिला कृत्रिम रूप से निशेचित भ्रूण को स्वीकार कर संतान के इच्छुक दंपती के लिए गर्भधारण करती है.

भारत में अब अनुर्वरता के लिए विश्वस्तरीय उपचार केंद्र हैं. कुशल चिकित्सकों की मदद से हजारों नि:संतान दंपतियों के घर किलकारियों से गूंज रहे हैं. अनुर्वरता के उपचार के लिए आने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. इसलिए अब यह झुंझलाहट छोड़ें कि अनुर्वर कौन पति या पत्नी? बेहतर होगा, सीधे योग्य चिकित्सक से संपर्क कर अनुर्वरता के उपचार की आधुनिक तकनीकों का लाभ लें.

वीर्यपात में शुक्राणु नहीं होने पर इस समस्या को ऐजुस्पर्मिया कहते हैं. यह 2 प्रकार

की होती है:

औब्स्ट्रक्टिव ऐजुस्पर्मिया: टेस्टिस में शुक्राणु बनता तो है पर इसे ले जाने वाली नली के बंद रहने से यह वीर्य के साथ नहीं निकलता. ऐसे मरीज के टेस्टिस की सर्जरी कर शुक्राणु निकाल फिर आईवीएफ का उपचार किया जा सकता है.

नौनऔब्स्ट्रक्टिव ऐजुस्पर्मिया: टेस्टिस में शुक्राणु नहीं बनता है. चिकित्सा और आधुनिक उपचार से गर्भधारण हो सकता है पर इस की संभावना कम होती है.

पुरुष नपुंसकता के संभावित कारण

– हारमोन असंतुलन.

– संक्रमण जैसे कि ऐपिडिडिमिस या टेस्टिकल्स में सूजन अथवा यौन संबंध में कुछ संक्रमण.

– इम्यूनिटी की समस्याएं या बीमारियां.

– वीर्यपात की समस्याएं.

– सैलियक डिजीज जो ग्लूटेन के प्रति हाइपर सैंसिटिव है. ग्लूटेन फ्री आहार अपनाने से सुधार हो सकता है.

– वैरिकोसेले जो स्क्रोटम में नसों का बड़ा होना है. सर्जरी से सही हो सकता है.

– कैंसर और नौनमैलिग्नैंट ट्यूमर.

दवा से उपचार: टेस्टोस्टेरौन बदलने का उपचार, लंबे समय तक ऐनाबोलिक स्टेराइड का प्रयोग, कैंसर की दवाओं, ऐंटीफंगल दवाओं और अल्सर की दवाओं का प्रयोग.

गलत शीजवनशैली: मोटापा, पर्यावरण की विषाक्तता, औद्योगिक रसायन, हवा की गुणवत्ता में गिरावट, सिगरेट पीने, लंबे समय तक तनाव से पुरुषों में नपुंसकता की समस्या बढ़ती है.

नपुंसकता की जांच

– चिकित्सा का इतिहास: पारिवारिक इतिहास ताकि मरीज की चिकित्सा समस्या, पहले हुई सर्जरी और दवाइयों का रिकौर्ड रखा जा सके.

– शारीरिक परीक्षण: शारीरिक विषंगतियों की जांच.

– खून जांच: टेस्टोस्टेरौन और फौलिकल स्टिम्यूलेटिंग हारमोन (एफएसएच) के स्तर की जांच.

मानक वीर्य विश्लेषण: निम्नलिखित मूल्यांकन के लिए:

– गाढ़ापन वीर्य के प्राप्त नमूने में स्पर्माटाजोआ की संख्या.

– गतिशीलता: स्पर्माटाजोआ के चलने की गति

– संरचना: शुक्राणु की संरचनात्मक विकृति का आकलन.

यदि शुक्राणु बिलकुल नहीं हों तो वीर्य की अतिरिक्त जांच होती है, जिसे पैलेट ऐनालिसिस कहते हैं.

इन 6 टिप्स से बचे इरेक्टाइल डिसफंक्शन से

Lifestyle tips in Hindi: इरेक्टाइल डिसफंक्शन (Erectile disfunction) एक यौन समस्या (Sex Problem) है पर ना जाने क्यों लोग इसको अपने आत्मसम्मान (Self-Respect) से जोड़ कर इसका इलाज नहीं कराते और सभी से छुपा कर रखते है. इसके दौरान पुरुषों को इरेक्शन होने में परेशानी होती है. उम्र बढ़ने के साथ इस समस्या की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के कारण आपका यौन जीवन प्रभावित होता है और आपको अपने प्रेम संबंधों के दौरान शर्मिंदगी महसूस करनी पड़ सकती है. समय रहते अगर आप डाक्टर से सलाह ले तो आप जल्द इस समस्या से निजात पा सकते है. पर ऐसा बहुत कम देखा जाता हैं. बहुत से लोग इस समस्या को किसी के साथ साझा नहीं करते, यहां तक कि वो अपने पार्टनर के साथ इस बात को शेयर करने से कतराते हैं. इस कारण समस्या का समाधान और मुश्किल हो जाता है. इसलिए आज हम लेकर आए हैं वो कुछ बचाव जिससे आप इरेक्टाइल डिसफंक्शन को खुद से दूर रख सकते है.

1. एल्कोहल से रहें दूर

एल्कोहल का सेवन जहां आपकी सेक्सुअल डिजायर को बढ़ाता है वहीं आपकी परफौर्मेंस को कम कर देता है. इसलिए अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन ना करें. यह आपकी लव लाइफ के लिए खतरा हो सकती है.

2. धमनियों के स्वास्थ्य की करें चिंता

अगर आपको कोलेस्ट्रौल की समस्या है तो इस कारण भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या हो सकती है. कोलेस्ट्रौल बढ़ जाने के कारण आपकी धमनियां सिकुड़ने लगती हैं जिससे आपके जनानांग में रक्त का प्रवाह नहीं हो पाता और इरेक्शन होने में दिक्कत होती है. इसलिए कोलेस्ट्रौल को नियंत्रित रखें और धमनियों के स्वास्थ्य पर ध्यान दें.

3. धूम्रपान भी हो सकता है कारण

सिगरेट का सेवन भी आपका यौन जीवन बिगाड़ सकता है. सिगरेट में मौजूद निकोटीन आपकी रक्त धमनियों को सिकोड़ देता है जिससे आपको निजी अंगों में रक्त पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाता है और इसी कारण इरेक्शन नहीं होता है.

4. वजन को रखे कट्रोल में

शोध बताते हैं कि जो लोग मोटापे का शिकार होते हैं उन्हें इरेक्शन में अधिक दिक्कत होती है. इसलिए बेहतर है कि आप स्वस्थ वजन रखें. इसके लिए आप नियमित रुप से एक्सरसाइज करें, साथ ही आप सही आहार भी ले सकते हैं. इससे ना केवल आप इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या कम होगी बल्कि आपका संपूर्ण स्वास्थ्य बना रहता है.

5. साइकिल चलाना भी है खतरनाक

अधिक साइकिल चलाने से आपको प्यूबिक एरिया में अधिक दबाव पड़ता है जिसके कारण रक्त धमनियों और नसों में रक्त का प्रवाह ठीक प्रकार से नहीं होता है. इस कारण लिंग तक पर्याप्त मात्रा में रक्त नहीं पहुंचता और यही इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का कारण बनता है.

6. नियमित रूप से यौन संबंध बनाएं

अगर आप नियमित रूप से यौन संबध बनाते हैं तो इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या नहीं होती. इसलिए सप्ताह में एक बार यौन संबंध जरुर बनाएं. तो ये है वो 6 बाते जिसका आपको ध्याल रखना है और आप अगर इस समस्या से वाकई परेशान हो जो शर्माएं नहीं और डाक्टर की सलाह जरुर लें.

मर्दों की नसबंदी: खत्म नहीं हो रहा खौफ

सियासत में तानाशाही ताकत के साथ बढ़ती जाती है. यह किसी एक दल की बपौती नहीं होती है. साल 1975 में कांग्रेस सरकार के समय इमर्जैंसी में मर्दों की नसबंदी को ले कर संजय गांधी के खौफ को हिटलर की तानाशाही से भी बड़ा माना गया था. उस समय संजय गांधी केंद्र सरकार तो छोडि़ए, कांग्रेस दल में भी किसी तरह के पद पर नहीं थे. इस के बाद भी उन का आदेश सब से ऊपर था, क्योंकि वे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे जो थे.

उस के बाद इस मुहिम का डर मर्दों में इस कदर बैठा कि आज 44 साल के बाद भी सरकार मर्दों की नसबंदी कराने के अपने टारगेट से काफी पीछे है. आज भी देश की परिवार नियोजन योजना में मर्दों का योगदान औरतों के मुकाबले काफी कम है.

इमर्जैंसी में मर्दों की जबरदस्ती नसबंदी कराने से नाराज लोगों ने तब कांग्रेस सरकार को यह बताते हुए भी उस का तख्ता पलट कर दिखा दिया था कि सियासत में तानाशाही का जवाब देना जनता को आता है. तब लोगों ने मर्दों की नसबंदी को राजनीतिक मुद्दा बना दिया था.

वैसे, आज भी ज्यादातर मर्दों को यही लगता है कि नसबंदी कराने से उन की सैक्स ताकत घट जाएगी. ऐसे में वे नसबंदी से दूर रहते हैं.

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मर्दों की नसबंदी का जिक्र आते ही पिछली पीढ़ी के सामने साल 1975 की इमर्जैंसी की ज्यादती की घटनाएं आंखों के सामने घूम जाती हैं. आज की पीढ़ी ने भले ही उस दौर को न देखा हो, पर गांवगांव, घरघर में ऐसी कहानियां सुनने को मिलती हैं, जब गांव में मर्दों को पकड़ कर जबरदस्ती नसबंदी करा दी जाती थी. गांव के गांव घेर कर पुलिस नौजवानों तक को उठा लेती थी.

सरकारी मुलाजिमों के लिए तो यह काम सब से जरूरी हो गया था. उन की नौकरी पर संकट खड़ा हो गया था. इस दायरे में बड़ी तादाद में स्कूली टीचर भी आए थे. कई जगहों पर अपना कोटा पूरा करने के लिए गैरशादीशुदा और बेऔलाद लोगों को भी नसबंदी करानी पड़ी थी. कई गरीब इस के शिकार हुए थे.

इस से देश के आम जनमानस में उस समय की कांग्रेस सरकार के खिलाफ गुस्सा भड़का था और उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था.

मर्दों में नसबंदी का यह खौफ आज भी जस का तस कायम है. भारत में औरतों के मुकाबले बहुत कम मर्द नसबंदी कराते हैं. 70 के दशक में जब परिवार नियोजन कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी, तो भारत में आबादी पर रोक लगाने के लिए औरतों पर ही ध्यान दिया गया. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि औरतें इस के लिए आसानी से तैयार हो जाती थीं.

70 के दशक में भारत गरीबी के दौर से गुजर रहा था. गरीबी को खत्म करने के लिए हरित क्रांति जैसे कार्यक्रम चलाए गए थे, जिस से देश में ज्यादा से ज्यादा अनाज उगाया जा सके और देश खाने के मामले में आत्मनिर्भर रह सके.

इस के लिए दूसरा बेहद जरूरी कदम आबादी को काबू में रखने का भी था. इस की जरूरत हर जाति और धर्म में महसूस की जा रही थी.

संजय गांधी को लगा था कि इमर्जैंसी इस के लिए सब से बेहतर समय है. उन्होंने मुसलिम धर्म के लोगों को भी इस दायरे में लिया था, पर तब मुसलिमों को लगता था कि यह उन की आबादी को कम करने के लिए किया जा रहा है.

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संजय गांधी का दबदबा

साल 1975 में इमर्जैंसी के दौरान संजय गांधी ने आबादी पर काबू पाने से जुड़े कानून के सहारे अपने असर को पूरे देश में दिखाने का काम किया था. इस के लिए उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने नसबंदी को ले कर ‘उग्र’ अभियान शुरू किया था. उन्होंने उस समय टैलीग्राफ के जरीए अपना एक संदेश हर प्रदेश के सरकारी अफसरों को भेजा था कि ‘सब को सूचित कर दीजिए कि अगर महीने के टारगेट पूरे नहीं हुए तो न सिर्फ तनख्वाह रुक जाएगी बल्कि निलंबन और कड़ा जुर्माना भी देना होगा. सारी प्रशासनिक मशीनरी को इस काम में लगा दें और प्रगति की रिपोर्ट रोज वायरलैस से मु झे और मुख्यमंत्री के सचिव को भेजें.’

इस संदेश ने नौकरशाही में खौफ पैदा कर दिया था, जिस की वजह से नसबंदी कराने के लिए लोगों को तैयार करने के काम में पुलिस की मदद भी ली गई थी.

इस में सब से ज्यादा गरीब आदमी परेशान हुए थे. पुलिस ने पूरे गांव को घेर लिया और मर्दों को जबरन घरों से खींच कर उन की नसबंदी करा दी गई थी. साल के भीतर ही तकरीबन 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई थी. इस में गलत आपरेशनों से 2,000 लोगों की मौत भी हुई थी.

साल 1933 में जरमनी में भी ऐसा ही एक अभियान चलाया गया था. इस के लिए एक कानून बनाया गया था जिस के तहत किसी भी आनुवांशिक बीमारी से पीडि़त आदमी की नसबंदी का प्रावधान था. तब तक जरमनी नाजी पार्टी के कंट्रोल में आ गया था.

इस कानून के पीछे हिटलर की सोच यह थी कि आनुवांशिक बीमारियां अगली पीढ़ी में नहीं जाएंगी तो जरमन इनसान की सब से बेहतर नस्ल वाला देश बन जाएगा जो बीमारियों से दूर होगा. बताते हैं कि इस अभियान में तकरीबन 4 लाख लोगों की नसबंदी कर दी गई थी.

भारत में नसबंदी को ले कर संजय गांधी के अभियान का खौफ पूरे देश पर इस कदर छाया था कि वे हिटलर से भी आगे निकल गए. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि संजय गांधी कम से कम समय में एक प्रभावी नेता के रूप में पूरे देश में छा जाना चाहते थे. ऐसे में वे नसबंदी के बहाने तानाशाही को दिखाने लगे थे.

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साल 1975 में इमर्जैंसी लगने के बाद राजनीति में आए संजय गांधी को लगने लगा था कि गांधीनेहरू परिवार की विरासत वे ही संभालेंगे. कम से कम समय में एक प्रभावशाली नेता बनने की फिराक में वे इस कदम को उठाने के लिए तैयार हुए थे.

लेकिन संजय गांधी की हवाई हादसे में हुई मौत और कांग्रेस के चुनाव हारने के बाद उस के बाद आई जनता पार्टी सरकार ने नसबंदी के इस उग्र अभियान को दरकिनार कर दिया था और परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रचार और प्रोत्साहन के बल पर आगे बढ़ाने का काम किया था.

खत्म नहीं हो रहा खौफ

इमर्जैंसी के 44 साल के बाद भी मर्दों में नसबंदी का खौफ खत्म नहीं हो रहा है. आज सरकार मर्दों की नसबंदी पर 3,000 रुपए नकद प्रोत्साहन राशि दे रही है, जबकि औरतों की नसबंदी पर केवल 2,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है.

सरकारी अस्पतालों में नसबंदी के आंकड़े देखे जाएं तो यह अनुपात 10 औरतों पर एक मर्द का आता है. हैरान करने वाली बात यह है कि पतिपत्नी जब सरकारी अस्पताल आते हैं, तो पत्नी खुद कहती है, ‘डाक्टर साहब, इन को कामकाज करना होता है. खेतीकिसानी में बो झ उठाना पड़ता है. साइकिल चलानी पड़ती है. ऐसे में इन की जगह पर हम ही नसबंदी करा लेते हैं.’

जब पत्नी को सम झाने की कोशिश की जाती है, तो वह बताती है कि उस की सास भी यही चाहती है. असल में पत्नी पर पति का ही नहीं, बल्कि सास और दूसरे घर वालों के साथसाथ समाज तक का दबाव होता है.

आजमगढ़ जिले के रानी सराय ब्लौक के बेलाडीह गांव की रानी कन्नौजिया कहती हैं कि औरतों को यह भी लगता है कि नसबंदी न होने से बारबार बच्चा पैदा करने से उन को ही परेशानी होगी. ऐसे में वे आसानी से खुद ही नसबंदी करा कर परिवार नियोजन का काम कर लेती हैं.

कई गांवों में मर्दों की नसबंदी को अंधविश्वास से भी जोड़ दिया जाता है. कई बार मर्दों को यह बताया जाता है कि इस को कराने से किस तरह लोग प्रभावित होते हैं. ऐसे में डर के मारे वे नसबंदी नहीं कराते हैं. बहुत सारी कोशिशों के बाद भी मर्दों की नसबंदी अभी भी बहुत पिछड़ी हालत में है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2016-17 के दौरान 40 लाख नसबंदियां की गई थीं. इन में मर्दों की नसबंदी के मामले में यह आंकड़ा एक लाख से भी कम रहा.

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महफूज है मर्द नसबंदी

मक्कड़ मैडिकल सैंटर के सर्जन डाक्टर जीसी मक्कड़ कहते हैं कि मर्दों की नसबंदी ज्यादा आसान और सुरक्षित होती है. इस में समय भी कम लगता है. उन की नसबंदी भी औरतों की नसबंदी जितनी ही असरदार है. मर्दों की नसबंदी को ले कर गलतफहमियों को दूर करने की जरूरत होती है.

इस नसबंदी में मर्द के बच्चा पैदा करने वाले अंग व अंडकोष को नहीं काटा जाता और न ही नसबंदी से उन को कोई नुकसान होता है.

नसबंदी के बाद न तो अंग और अंडकोष सिकुड़ते हैं और न ही छोटे होते हैं. नसबंदी के चलते किसी भी तरह की जिस्मानी कमजोरी नहीं आती है. मर्द की मर्दानगी में कोई फर्क नहीं आता है. पतिपत्नी को जिस्मानी संबंधों में भी पहले जैसा ही मजा मिलता है.

मर्दों की नसबंदी बिना चीरे, बिना टांके के होती है. इस में सब से पहले अंडकोषों के ऊपर वाली खाल को एक सूई लगा कर सुन्न की गई खाल में एक खास चिमटी से एक बहुत बारीक सुराख करते हैं. ऐसा करने में न दर्द होता है और न ही खून निकलता है.

इस बारीक सुराख से उस नली को बाहर निकालते हैं जो अंडकोष से मर्दाना बीजों को पेशाब की नली तक पहुंचाती है. फिर इस नली को बीच से काट देते हैं. नली के कटे हुए दोनों छोरों को बांध कर उन का मुंह बंद कर देते हैं और अंडकोष वापस थैली के अंदर डाल देते हैं.

कम समय, आसान तरीका

नलियों को अंडकोष की थैली में वापस डालने के बाद सुराख पर डाक्टर टेप चिपका देते हैं. इस तरह खाल के लिए किए गए सुराख पर टांका लगाने की जरूरत भी नहीं पड़ती है. 3 दिन बाद वह सुराख खुद ही बंद हो जाता है. इस तरीके से नसबंदी करने में 5 से 10 मिनट का समय लगता है.

नसबंदी कराने के आधे घंटे बाद आदमी घर भी जा सकता है. 48 घंटे बाद वह सामान्य काम भी कर सकता है.

अगर नसबंदी के बाद 2 दिन तक लंगोट पहने रखें तो इस से अंडकोष को आराम मिलता है. 3 दिन सुराख पर टेप चिपकी रहनी चाहिए और जगह को गीला होने, मैल और खरोंच से बचाना चाहिए.

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नसबंदी कराने के अगले दिन आदमी नहा सकता है. इस जगह को गीला होने से बचा कर नहाएं. 3 दिन बाद अगर लगे कि सुराख बिलकुल ठीक हो गया है, तो टेप हटा कर उसे साबुन और पानी से धो लें.

किसी तरह की असुविधा से बचने के लिए नसबंदी के 7 दिन बाद ही साइकिल चलाएं. सुराख वाली जगह ठीक होने के बाद आदमी सैक्स संबंध भी बना सकता है.

सैक्स संबंधों में कमी नहीं

नसबंदी के बाद कम से कम 20 वीर्यपात या संभोगों तक आदमी कंडोम या उस की पत्नी दूसरे गर्भनिरोधक तरीके का इस्तेमाल जरूर करे. आपरेशन के 3 महीने बाद वीर्य की डाक्टरी जांच कराएं कि वह शुक्राणुरहित हो गया है या नहीं. वीर्य के शुक्राणुरहित पाए जाने के बाद सैक्स के लिए कंडोम या किसी दूसरे गर्भनिरोधक तरीके की जरूरत नहीं रहती है.

नसबंदी के बाद आदमी में किसी भी तरह की सैक्स समस्या नहीं आती है. वह पहले की ही तरह से सैक्स कर सकता है. आम लोगों को यह लगता है कि मर्दों की नसबंदी के बाद उन की सैक्स ताकत कम हो जाती है. यह बात पूरी तरह से गलत है.

नसबंदी करने से पहले यह देखा जाता है कि मर्द शादीशुदा हो. मर्द की उम्र 50 साल से कम और उस की पत्नी 45 साल से कम हो. पति या पत्नी दोनों में से किसी ने भी पहले नसबंदी न कराई हो या पिछली नसबंदी नाकाम हो गई हो. उस जोड़े का कम से कम एक जीवित बच्चा हो, उस की उम्र एक साल से ज्यादा हो. मर्द की दिमागी हालत ऐसी हो कि वह नसबंदी के नतीजों को सम झ सकता हो. उस ने नसबंदी कराने का फैसला अपनी इच्छा से और बगैर किसी दबाव के लिया हो.

नसबंदी कराने के लिए सरकारी अस्पताल से जानकारी ले सकते हैं. मर्दों की नसबंदी को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रोत्साहन के रूप में पैसे भी देती है.

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