इन 12 लक्षणों से रहें सतर्क, हो सकता है HIV

भारत की बात करें तो यहां एड्स के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. यहां सबसे ज्‍यादा एचआईवी एड्स के केस (13107) महाराष्‍ट्र में दर्ज हुए हैं. वहीं दूसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश है.

अगर पिछले वर्षों से तुलना करें तो संख्‍या लगातार बढ़ रही है. 2009-10 में 246,627 केस पूरे देश में आये, जबकि 2010-11 में यह संख्‍या बढ़कर 320,114 रही.

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सही तरीके से देखभाल न करने की दशा में यह बीमारी बढ़कर एड्स का रूप धारण कर लेती है. एक सर्वे के अनुसार, एच आई वी के शुरूआती स्‍टेज में इसका पता नहीं चल पाता है और व्‍यक्ति को इलाज करवाने में देर हो जाती है. इसीलिए आपको एच आई वी के शुरूआती 12 लक्षणों के बारे में पता होना जरूरी है.

बार-बार बुखार आना: हर दो तीन दिन में बुखार महसूस होना और कई बार तेजी से बुखार आना, एच आई वी का सबसे पहला लक्षण होता है.

थकान होना: पिछले कुछ दिनों से पहले से ज्‍यादा थकान होना या हर समय थकावट महसूस करना एच आई वी का शुरूआती लक्षण होता है.

मांसपेशियों में खिचावं: आपने किसी प्रकार का भी भारी काम नहीं किया या फिर आप शारीरिक मेहनत का कोई काम नहीं करते , फिर भी मांसपेशियों में हमेशा तनाव और अकड़न रहती है. यह भी एच आई वी का लक्षण होता है.

जोड़ों में दर्द व सूजन: ढ़लती उम्र से पहले ही अगर आपके जोड़ों में दर्द और सूजन हो जाती है तो आपको एच आई वी टेस्‍ट करवाने की जरूरत है.

गला पकना: अक्‍सर कम पानी पीने की वजह से गला पकने की शिकायत होती है लेकिन अगर आप पानी पर्याप्‍त मात्रा में पीते हैं और फिर भी आपके गले में भयंकर खराश और पकन महसूस हो, तो यह लक्षण अच्‍छा नहीं.

सिर में दर्द: सिर में हर समय हल्‍का – हल्‍का दर्द रहना, सुबह के समय दर्द में आराम और दिन के बढ़ने के साथ दर्द में भी बढ़ोत्‍तरी एच आई वी का सबसे बड़ा लक्षण है.

धीरे-धीरे वजन का कम होना: एच आई वी में मरीज का वजन एकदम से नहीं घटता है. हर दिन धीरे – धीरे बॉडी के सिस्‍टम पर प्रभाव पड़ता है और वजन में कमी होती है. अगर पिछले दो महीनों में बिना प्रयास के आपके वजन में गिरावट आई है तो चेक करवा लें.

स्‍कीन पर रेशैज होना: शरीर में हल्‍के लाल रंग के चक्‍त्‍ते पड़ना या रेशैज होना भी एच आई वी का लक्षण है.

बिना वजह के तनाव होना: आपके पास कोई प्रॉब्‍लम नहीं है लेकिन फिर भी आपको तनाव हो जाता है, बात-बात पर रोना आ जाता है तो नि:संदेह आपको एच आई वी की जांच करवाना जरूरी है.

मतली आना: हर समय मतली आना या फिर खाना खाने के तुरंत बाद उल्‍टी होना भी शरीर में एच आई वी के वायरस का होना इंडीकेट करते हैं.

हमेशा जुकाम रहना: मौसम आपके बेहद अनुकूल है लेकिन उस हालत में भी नाक बहती रहती है. हर समय छींक आती है और रूमाल का साथ हमेशा चाहिए होता है.

ड्राई कफ: आपको भयंकर खांसी नहीं हुई थी लेकिन हमेशा कफ आता रहता है. कफ में कोई ब्‍लड़ नहीं आता. मुंह का जायका खराब रहता है. अगर आपको इनमें से अधिकाशत: लक्षण अपने शरीर में लगते हैं तो आप एच आई वी टेस्‍ट जरूर करवाएं.

वजन कम करने के लिए डाइट में नींबू का ऐसे करें इस्तेमाल

नींबू  आपके हेल्द के लिए काफी फायदेमंद है. अगर आप वजन कम करना चाहते हैं तो इसके लिए भी नींबू बहुत ज्यादा लाभदायक है. यह बौडी में कौलेस्ट्राल के स्तर को भी कम करता है. तो चलिए जानते हैं, आप अपने डाइट में नींबू का कैसे इस्तेमाल करें कि आपका वजन झट से कम हो जाए.

  1. नींबू में एंटीऔक्सिडेंट पाया जाता है. जिससे यह आपके बौडी के विकारों पर कई प्रभाव डालता है. अच्छी त्वचा और अच्छे पाचन के लिए गुनगुने पानी में नींबू का रस सुबह-सुबह डाल कर पी सकते हैं.

2. अगर आप नौनवेज के शौकिन हैं तो  चिकन को लिए टेस्टी बनाने के लिए  रेसिपी में नींबू के रस का जरूर इस्तेमाल करें. यह फिटनेस फ्रीक लोगों के लिए फायदेमंद है और इसमें निश्चित रूप से कम कैलोरी होती है.

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3. नींबू की चाय वजन घटाने के लिए फायदेमंद है. एक कप चाय में 2-3 नींबू की बूंदें डालकर पीने से ये आपके बौडी को टोन करेगा.

4.सैलेड में नींबू का रस का इस्तेमाल अवश्य करें. अपने सलाद में पर्याप्त मात्रा में नींबू का रस निचोड़ें. यह न केवल आपको एक स्वादिष्ट और चटपटा स्वाद देता है, बल्कि वजन घटाने में भी तेजी से मदद करता है.

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कैंसर से लड़ने के लिए विशेष आहार की जरूरत

Writer- मीनू वालिया

कैंसर ऐसा रोग है जिस का नाम सुनते ही मरीज के हाथपांव फूल जाते हैं और उसे अपनी मौत सामने खड़ी दिखाई देने लगती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि लाइफस्टाइल में बदलाव करने से कैंसर को रोका जा सकता है. कैंसर के 5 फीसदी मामलों का सीधा संबंध खानपान से होता है. दैनिक जीवन में खानपान में बदलाव कर के कैंसर से बचा जा सकता है. आइए जानते हैं कैंसर से लड़ने के लिए आहार के विशेष टिप्स.

अधिक फलों से युक्त आहार का सेवन करने से पेट और फेफड़ों के कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है.

कैरोटिनौएड्स, जैसे गाजर आदि सब्जियों का सेवन करने से फेफड़े, मुह, गले और गरदन के कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है.

स्टौर्चरहित सब्जियों, जैसे ब्रोकली, पालक और फलियों का सेवन करने से पेट और गले  (इसोफेजियल) के कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है.

संतरे, बैरी, मटर, शिमलामिर्च, गहरी हरी पत्तेदार सब्जियों तथा विटामिन सी से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करने से आप अपनेआप को गले का कैंसर होने से बचा सकते हैं.

लाइकोपिन युक्त फलों व सब्जियों, जैसे टमाटर, अमरूद और तरबूज का सेवन करने से प्रोस्टैट कैंसर होने की आशंका को कम किया जा सकता है.

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फाइबर का सेवन

अधिक मात्रा में फाइबरयुक्त आहार का सेवन करने से आप अपनेआप को कोलोरैक्टल कैंसर तथा पाचनतंत्र के अन्य हिस्सों, जैसे पेट, मुख और गरदन के कैंसर से बचा सकते हैं.

फाइबर का पर्याप्त मात्रा में सेवन आप को कब्ज से भी बचाता है. फाइबर फलों, सब्जियों और पूर्ण अनाज में पाया जाता है. आमतौर पर भोजन जितना ज्यादा प्राकृतिक और अनप्रोसैस्ड होगा, उतना ही उस में फाइबर की मात्रा अधिक होगी. मांस, डेयरी उत्पादों, चीनी या सफेद भोजन, जैसे ब्रैड, सफेद चावल और पैस्ट्री में फाइबर बिलकुल नहीं होता है.

सफेद चावल के बजाय भूरे चावल यानी ब्राउन राइस का इस्तेमाल करें.

सफेद ब्रैड के बजाय होलग्रेन संपूर्ण अनाज की ब्रैड या मल्टीग्रेन ब्रैड का इस्तेमाल करें.

पेस्ट्री के बजाय ब्राउन मफिन खाएं.

आलू के चिप्स या सूखे मेवों के बजाय पौपकौर्न बेहतर और स्वास्थ्यप्रद पोषक स्नैक है.

सैंडविच, पकौड़ा या बर्गर में मीट के बजाय बींस का इस्तेमाल करें.

पानी का जादू

फाइबर पानी को अवशोषित करता है, इसलिए आप अपने आहार में जितना ज्यादा फाइबर का सेवन करते हैं, उतना ज्यादा आप को पानी पीना चाहिए. पानी कैंसर से लड़ने के लिए महत्त्वपूर्ण है.

यह आप की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है, शरीर में से व्यर्थ और विषैले पदार्थों को निकालता है, और आप के सभी अंगों तक पोषक पदार्थों को पहुंचाता है.

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मांस का सेवन कम

अधिक मांस से युक्त आहार आप के लिए अच्छा नहीं है, खासकर तब जबकि आप की जीवनशैली गतिहीन है. इस के अलावा लाल मांस के सेवन से आंत का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है. आप जानवरों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन को कम कर के और आहार के पोषक विकल्प चुन कर कैंसर होने की आशंका को काफी हद तक कम कर सकते हैं.

आप के आहार में मांस की कुल मात्रा आप की कुल कैलोरीज की

15 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए. 10 फीसदी बेहतर है.

लाल मांस का सेवन कभीकभी करें. लाल मांस में संतृप्त वसा की पर्याप्त मात्रा होती है, इसलिए इस के सेवन से बचना आप के स्वास्थ्य के लिए अच्छा विकल्प होगा.

हर आहार में मांस की मात्रा कम करें. यह मात्रा आप के हाथ की हथेली के बराबर होनी चाहिए.

मांस का सेवन मुख्य भोजन के रूप में न करें, आप भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए कम मात्रा में इस का सेवन कर सकते हैं.

अपने भोजन में पौधों से मिलने वाले प्रोटीन स्रोतों, जैसे बींस आदि का इस्तेमाल करें.

लीनर मीट, जैसे चिकन, फिश और टर्की को प्राथमिकता देनी चाहिए.

प्रोसैस्ड मांस, जैसे हौट डौग, या रेडी टू ईट मांस उत्पादों के सेवन से बचें.

अगर हो सके तो और्गेनिक मांस का सेवन करें. और्गेनिक जानवरों को जीएमओ से रहित और्गेनिक भोजन ही दिया जाना चाहिए. उन्हें एंटीबायोटिक, हार्मोन या अन्य उपउत्पाद नहीं दिए जाने चाहिए.

वसा का सेवन सोचसमझ कर

अधिक वसा से युक्त आहार का सेवन करने से न केवल कैंसर बल्कि कई प्रकार के कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है. इस से कौलैस्ट्रौल बढ़ने का भी खतरा होता है. वसा का सेवन पूरी तरह से बंद कर देना इस का समाधान नहीं है. वास्तव में कुछ प्रकार की वसा आप को कैंसर और कोलैस्ट्रौल से बचाती हैं. वसा का चुनाव सोचसमझ कर करें और बहुत ज्यादा मात्रा में न करें.

हेल्थ: 21वीं सदी का बड़ा मुद्दा है बढ़ता बांझपन

चाहे तनाव हो, मोटापा हो, वायु प्रदूषण हो या देर से शादी होना, कुछ भी वजह हो, पिछले तकरीबन 50 सालों में मर्दों के शुक्राणुओं की तादाद में 50 फीसदी तक की कमी पाई गई है. इस में बेऔलाद जोड़ों के लिए स्पर्म डोनेशन का एक नया रास्ता तैयार हुआ है.

‘चाहिए 6 फुट लंबा, गोरा, गुड लुकिंग, अच्छे परिवार से, अच्छा पढ़ालिखा, आईआईटी/एमबीए, विदेशी यूनिवर्सिटी में पढ़ा, सेहतमंद व आकर्षक होना चाहिए…’

आप को यह एक शादी का इश्तिहार लगा होगा, लेकिन यह इस से हट कर स्पर्म डोनर यानी शुक्राणु दान करने वाले की खोज के लिए है. बेऔलाद जोड़े इस सूटेबल स्पर्म के लिए कुछ भी कीमत देने को तैयार रहते हैं.

‘‘अस्पताल में आने वाले तकरीबन  40 फीसदी जोड़ों की स्पर्म डोनर से ऐसी ही मांग होती है, जबकि कुछ की कुछ खास मांगें भी होती हैं जैसे स्पर्म लंबे आदमी का होना चाहिए, क्योंकि वह जोड़ा चाहता है कि उस के बच्चे की लंबाई अमिताभ बच्चन जैसी होनी चाहिए.

‘‘कुछ जोड़े आईआईटी पास का स्पर्म चाहते हैं, क्योंकि वे अपने परिवार में एक आइंस्टाइन चाहते हैं, जबकि नवजात के गुण उस के मातापिता के मिलेजुले रूप से होते हैं, जो बाद में विकसित होते हैं,’’ यह कहना है डाक्टर अमिता शाह का, जो एक नामचीन आईवीएफ विशेषज्ञ हैं और कोलंबिया एशिया अस्पताल में प्रैक्टिस करती हैं.

ज्यादातर लोगों के दिमाग में यह घुसा हुआ है कि स्पर्म दान करना बहुत ही शर्मनाक बात है, लेकिन अब लोग धीरेधीरे इसे स्वीकार कर रहे हैं. बड़े कारोबारी, जो अपनी लक्जरी कार में स्पर्म दान के लिए आते हैं, के अलावा स्कूल व कालेज जाने वाले लड़के भी क्लिनिकों के हस्तमैथुन कमरे में अपनी मर्दानगी आजमाने आते हैं.

इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल साइंस के नियमों के तहत स्पर्म दान करने वाले की उम्र 21 साल से 45 साल की उम्र के बीच की होनी चाहिए, इस के बावजूद बहुत से टीनेजर भी स्पर्म दान करते हैं. यहां केवल पैसा ही आकर्षण का केंद्र नहीं है, बल्कि स्कूली लड़के एक क्लिनिक के दान कक्ष में अपना सैक्स का जोश शांत करने के लिए भी जाते हैं, क्योंकि ज्यादातर फर्टिलिटी क्लिनिकों का लुक काफी जबरदस्त होता है.

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नोएडा के मैक्स सैंटर ने तो मौडल क्लाडिया शिफर की मादक तसवीर लगाई हुई है, जिस से स्पर्म दान बढ़े. और भी बहुत से लोकल क्लिनिक हैं, जिन्होंने दान कक्ष को अच्छे से सजाया हुआ है. उदाहरण के तौर पर मयूर विहार, दिल्ली का ठकराल क्लिनिक है, जिस की दीवारों पर खूबसूरत महिलाओं की उत्तेजक तसवीरें लगी हैं और वे अपनी हथेलियों से अपने उभार दबा रही हैं. एक बार दान कक्ष में जाने के बाद आप खुद को नहीं रोक सकते.

ऐसा दान कक्ष छोटा व आरामदायक होता है. एक क्लिनिक के कमरे की दीवार पर लगे शीशे में नीली, गुलाबी बिकिनी पहने, चीनी मिट्टी से बनी मौडल मूर्तियां रखी थीं. इस के चारों तरफ की तसवीरों में भी औरतें नाममात्र के कपड़ों में थीं. कमरे के एक तरफ फोम के गद्दे वाला आरामदायक बिस्तर लगा था.

इस के पास की एक मेज पर एक विदेशी मैगजीन का ताजा अंक रखा हुआ था, बिकिनी विशेषांक था. दान करने वाले को जोश में लाने के लिए टैलीविजन व डीवीडी भी थीं, जिन पर उत्तेजक वीडियो देखी जा सकती थीं.

मैक्स सैंटर के एक मुलाजिम ने बताया कि आमतौर पर एक डोनर कक्ष में 5-15 मिनट का समय लेता है, पर हमेशा ऐसा नहीं होता कि एक परफैक्ट हैल्दी स्पर्म डोनर का वीर्य लिया ही जाए, क्योंकि अच्छी क्वालिटी के मानकों पर खरा उतरने के बाद ही उस के वीर्य को स्वीकार किया जाता है.

अभी हाल ही में एक औनलाइन इश्तिहार में चेन्नई के एक जोड़े ने साफतौर पर एक आईआईटी पास व खूबसूरत नौजवान के स्पर्म की मांग की थी, जिस के लिए वे लोग 50,000 रुपए प्रति मिलीलिटर तक देने को तैयार थे. उन की इस मांग ने इसे बहस का मुद्दा बना दिया है कि क्या सच में स्पर्म से नवजात का व्यवसाय और सामाजिक जिंदगी में जगह तय हो जाती है?

माहिरों का कहना है कि ऐसा बिलकुल नहीं है. ऐसा अनुरोध करना केवल हास्यास्पद है. लेकिन जोड़े ऐसा करते हैं, क्योंकि वे एक बेहतर वंशावली चाहते हैं.

कौंवैंट स्कूल से पढ़े दानदाताओं की सब से ज्यादा मांग है, क्योंकि आम सोच होती है कि दानकर्ता अच्छे समाज से है और वह वीर्य दान केवल पैसा कमाने के लिए नहीं करेगा.

मुंबई के डाक्टर अनीरधा मालपानी का कहना है कि यह केवल एक भरम है कि ऐसे दाताओं को सामान्य से ज्यादा मिलता है. कुछ क्लिनिकों व अस्पतालों का आरोप है कि हमारे 1,500-2,000 रुपए के भुगतान के अलावा भी जोड़े निजी तौर पर भी भुगतान करते हैं. कुछ जोड़े अपनी पेशकश औनलाइन पेश कर देते हैं.

मौलाना आजाद मैडिकल कालेज के छात्र रह चुके बालकृष्ण अय्यर ने बताया, ‘‘मैं ने छात्र जीवन में ही अपने स्पर्म दान किए थे. मैं हमेशा दूसरों की मदद करना चाहता था. मैं ने नागपुर के एक जोड़े को अपने स्पर्म दान किए थे. वे सरकारी महकमे में ऊंचे पद पर थे.

‘‘वे लोगों की नजरों में नहीं आना चाहते थे. मैं ने उन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. उन्होंने मेरा हवाई यात्रा का खर्चा भी उठाया और शहर के अच्छे थ्रीस्टार होटल का भी सारा खर्चा उठाया, क्योंकि इस सब में मु?ो एक हफ्ता लग गया था.

‘‘मु?ो स्पर्म दान करने के बदले 35,000 रुपए भी मिले थे. आज वह जोड़ा आगरा में 2 बच्चों के साथ रहता है. मु?ो खुशी है कि मेरा स्पर्म किसी के काम आया.’’

इस सामाजिक काम को करने के लिए बालकृष्ण अय्यर जैसे कई लोग हैं, जिन्होंने ऐसा इंटरनैट के जरीए किया है. वैसे तो स्पर्म दाताओं में 56 फीसदी शहरी होते हैं, पर अब गांवदेहात से भी ऐसे लोग आगे बढ़ने लगे हैं.

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लेकिन यह माध्यम कितना सुरक्षित है, इस पर सवालिया निशान लगा है. नकली सीमन एक बड़ा जुआ है, जिस के बारे में जोड़ों को ठीक से जागरूक होना चाहिए. इस के बारे में जोड़ों को जानकारी देने के लिए बहुत से पेशेवर संस्थान भी हैं. वे जोड़ों को सेहतमंद स्पर्म मुहैया कराते हैं व खतरा घटाते हैं.

लेकिन अभी भी 10 फीसदी बेऔलाद जोड़े ऐसे हैं, जो क्लिनिक में आने से शरमाते हैं. वे पारिवारिक डाक्टर के पास जाना पसंद करते हैं, जो प्रक्रिया को सुपरवाइज करता है. इस तरह के केसों में डाक्टरी जांच अधूरी होती है, जिस से डर बना रहता है.

डाक्टर कहते हैं कि यह अच्छी बात नहीं है, क्योंकि ज्यादातर जोड़े पढ़ेलिखे हैं और इस के लिए वे बहुतकुछ देते हैं. पर पिछले दशक से अब तक स्पर्म दाताओं के नजरिए में बहुत से बदलाव आ गए हैं, फिर भी लोगों की सोच में बहुत सी भ्रांतियां हैं.

2 दशक पहले जब हम ने मुंबई में पहला स्पर्म बैंक शुरू किया था, तो हम से पूछा जाता था कि हम सार्वजनिक रूप से इस शब्द का इस्तेमाल कैसे करेंगे. उस समय डोनर पाना भी मुश्किल था, क्योंकि 25 साल पहले मर्दों का कहना था कि वे सड़क पर अपने जैसों को घूमता नहीं देखना चाहते, पर आज हमारे क्लिनिक में रोजाना 8-9 डोनर खुद आते रहते हैं.

भारत की जानीमानी डाक्टर अंजलि मालपानी कहती हैं कि यह अलग बात है कि इन दानदाताओं में से 70 फीसदी को रिजैक्ट कर दिया जाता है, क्योंकि नियम बहुत सख्त हैं. हर हफ्ते क्लिनिक 500 शीशी सेहतमंद स्पर्म इकट्ठा करता है. हमें मुलुंड, नवी मुंबई व पश्चिमी उपनगर से भी काफी तादाद में नौजवान विद्यार्थी मिलते हैं, जो मामूली पैसों पर उपलब्ध हैं, लेकिन हम आईसीएमआर के शुक्रगुजार हैं कि उस ने डोनर के लिए निश्चित उम्र व मानक तय कर दिए हैं.

दिल्ली के डाक्टर अनूप गुप्ता मानते हैं कि हर फर्टिलिटी क्लिनिक में  रोजाना स्पर्म डोनेशन के लिए 10-15 फोन आते हैं.

दक्षिण दिल्ली की थापर डायग्नोस्टिक लैब के डायरैक्टर सुनील थापर कहते हैं कि उन्हें स्कूली बच्चों से लगातार ईमेल रिक्वैस्ट मिलती रहती हैं. वे लिखते हैं कि स्पर्म दान के लिए वे पूरी तरह फिट हैं. पैसे के अलावा सैक्स के जोश के चलते भी वे अपना स्पर्म दान करना चाहते हैं.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के नियमों के तहत डोनर की उम्र कम से कम 21 साल होनी चाहिए, लेकिन अकसर नियमों का पालन नहीं होता, जबकि नियमों के उल्लंघन पर फर्टिलिटी क्लिनिक का लाइसैंस रद्द होना व संचालकों को जेल भेजा जाना चाहिए.

डाक्टर अंजलि मालपानी का कहना है कि जब हम ने मुंबई में पहला स्पर्म बैंक खोला, तो एक मिलीलिटर वीर्य  में आसानी से 40-60 मिलियन स्पर्म मिल जाते थे, लेकिन अब ये घट कर तकरीबन 45 फीसदी हो गया है.

प्रजनन प्रणाली के भारतीय गाइडलाइंस के सहायक डाक्टर पीएम भार्गव कहते हैं कि स्पर्म (शुक्राणुओं) के घटने को साल 1990 के बीच में पश्चिम में नोटिस किया गया. कुछ भारतीय डाक्टर भी मानते हैं कि भारतीय मर्दों में भी शुक्राणुओं की संख्या लगातार घट रही है.

पश्चिमी अध्ययन बताते हैं कि हर साल शुक्राणुओं की तादाद 2 फीसदी की दर से घट रही है. इस हिसाब से अगले 40-50 सालों में कोई भी मर्द उपजाऊ नहीं रहेगा.

हिंदी फिल्म ‘विकी डोनर’ के कलाकार आयुष्मान खुराना का कहना है कि जब आप स्पर्मदाताओं जैसे गंभीर मुद्दों पर फिल्म बनाते हैं, तो इस विषय की खोज करनी होती है.

यह बहुत ही नोबल काम था. अगर रक्तदान जीवन देता है, तो स्पर्मदान जीवन की आज्ञा देता है. शहरी मर्दों  में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम हो गई है, जिस से स्पर्मदान आज की जरूरत है.

इसी फिल्म में आईवीएफ विशेषज्ञ की भूमिका निभाने वाले अन्नू कपूर का कहना है कि एक आम भारतीय सैक्स के बारे में बात क्यों नहीं करना चाहता? निजी तौर पर मु?ो यह सम?ा नहीं आता कि भारत में लोग सैक्स और हस्तमैथुन को ले कर इतना हल्लागुल्ला क्यों करते हैं? यह एक सामान्य चीज है, जो जीवन देती है. मेरे लिए सैक्स पवित्र है. हम इसी से जनमे हैं.                    द्य

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