थोड़ा सा इंतजार : तनुश्री का दर्द

बरसों बाद अभय को उसी जगह खड़ा देख कर तनुश्री कोई गलती नहीं दोहराना चाहती थी. कई दिनों से तनुश्री अपने बेटे अभय को कुछ बेचैन सा देख रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि अपनी छोटी से छोटी बात मां को बताने वाला अभय अपनी परेशानी के बारे में कुछ बता क्यों नहीं रहा है. उसे खुद बेटे से पूछना कुछ ठीक नहीं लगा.

आजकल बच्चे कुछ अजीब मूड़ हो गए हैं, अधिक पूछताछ या दखलंदाजी से चिढ़ जाते हैं. वह चुप रही. तनुश्री को किचन संभालते हुए रात के 11 बज चुके थे. वह मुंहहाथ धोने के लिए बाथरूम में घुस गई. वापसी में मुंह पोंछतेपोंछते तनुश्री ने अभय के कमरे के सामने से गुजरते हुए अंदर झांक कर देखा तो वह किसी से फोन पर बात कर रहा था. वह एक पल को रुक कर फोन पर हो रहे वार्तालाप को सुनने लगी. ‘‘तुम अगर तैयार हो तो हम कोर्ट मैरिज कर सकते हैं…नहीं मानते न सही…नहीं, अभी मैं ने अपने मम्मीपापा से बात नहीं की…उन को अभी से बता कर क्या करूं? पहले तुम्हारे घर वाले तो मानें…रोना बंद करो. यार…उपाय सोचो…मेरे पास तो उपाय है, तुम्हें पहले ही बता चुका हूं…’’ तनुश्री यह सब सुनने के बाद दबेपांव अपने कमरे की ओर बढ़ गई. पूरी रात बिस्तर पर करवटें बदलते गुजरी.

अभय की बेचैनी का कारण उस की समझ में आ चुका था. इतिहास अपने आप को एक बार फिर दोहराना चाहता है, पर वह कोशिश जरूर करेगी कि ऐसा न हो, क्योंकि जो गलती उस ने की थी वह नहीं चाहती थी कि वही गलती उस के बच्चे करें. तनुश्री अतीत की यादों में डूब गई. सामने उस का पूरा जीवन था. कहने को भरापूरा सुखी जीवन. अफसर पति, जो उसे बेहद चाहते हैं. 2 बेटे, एक इंजीनियर, दूसरा डाक्टर. पर इन सब के बावजूद मन का एक कोना हमेशा खाली और सूनासूना सा रहा. क्यों? मांबाप का आशीर्वाद क्या सचमुच इतना जरूरी होता है? उस समय वह क्यों नहीं सोच पाई यह सब? प्रेमी को पति के रूप में पाने के लिए उस ने कितने ही रिश्ते खो दिए. प्रेम इतना क्षणभंगुर होता है कि उसे जीवन के आधार के रूप में लेना खुद को धोखा देने जैसा है. बच्चों को भी कितने रिश्तों से जीवन भर वंचित रहना पड़ा.

कैसा होता है नानानानी, मामामामी, मौसी का लाड़प्यार? वे कुछ भी तो नहीं जानते. उसी की राह पर चलने वाली उस की सहेली कमला और पति वेंकटेश ने भी यही कहा था, ‘प्रेम विवाह के बाद थोड़े दिनों तक तो सब नाराज रहते हैं लेकिन बाद में सब मान जाते हैं.’ और इस के बहुत से उदाहरण भी दिए थे, पर कोई माना? पिछले साल पिताजी के गुजरने पर उस ने इस दुख की घड़ी में सोचा कि मां से मिल आती हूं. वेंकटेश ने एक बार उसे समझाने की कोशिश की, ‘तनु, अपमानित होना चाहती हो तो जाओ. अगर उन्हें माफ करना होता तो अब तक कर चुके होते. 26 साल पहले अभय के जन्म के समय भी तुम कोशिश कर के देख चुकी हो.’ ‘पर अब तो बाबा नहीं हैं,’ तनुश्री ने कहा था.

‘पहले फोन कर लो तब जाना, मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं.’ तनुश्री ने फोन किया. किसी पुरुष की आवाज थी. उस ने कांपती आवाज में पूछा, ‘आप कौन बोल रहे हैं?’ ‘मैं तपन सरकार बोल रहा हूं और आप?’ तपन का नाम और उस की आवाज सुनते ही तनुश्री घबरा सी गई, ‘तपन… तपन, हमारे खोकोन, मेरे प्यारे भाई, तुम कैसे हो. मैं तुम्हारी बड़ी दीदी तनुश्री बोल रही हूं?’ कहतेकहते उस की आवाज भर्रा सी गई थी. ‘मेरी तनु दीदी तो बहुत साल पहले ही मर गई थीं,’ इतना कह कर तपन ने फोन पटक दिया था. वह तड़पती रही, रोती रही, फिर गंभीर रूप से बीमार पड़ गई. पति और बच्चों ने दिनरात उस की सेवा की. सामाजिक नियमों के खिलाफ फैसले लेने वालों को मुआवजा तो भुगतना ही पड़ता है. तनुश्री ने भी भुगता. शादी के बाद वेंकटेश के मांबाप भी बहुत दिनों तक उन दोनों से नाराज रहे. वेंकटेश की मां का रिश्ता अपने भाई के घर से एकदम टूट गया.

कारण, उन्होंने अपने बेटे के लिए अपने भाई की बेटी का रिश्ता तय कर रखा था. फिर धीरेधीरे वेंकटेश के मांबाप ने थोड़ाबहुत आना- जाना शुरू कर दिया. अपने इकलौते बेटे से आखिर कब तक वह दूर रहते पर तनुश्री से वे जीवन भर ख्ंिचेख्ंिचे ही रहे. जिस तरह तनुश्री ने प्रेमविवाह किया था उसी तरह उस की सहेली कमला ने भी प्रेमविवाह किया था. तनुश्री की कोर्ट मैरिज के 4 दिन पहले कमला और रमेश ने भी कोर्ट मैरिज कर ली थी. उन चारों ने जो कुछ सोचा था, नहीं हुआ. दिनों से महीने, महीनों से साल दर साल गुजरते गए. दोनों के मांबाप टस से मस नहीं हुए. उस तनाव में कमला चिड़चिड़ी हो गई. रमेश से उस के आएदिन झगड़े होने लगे. कई बार तनुश्री और वेंकटेश ने भी उन्हें समझाबुझा कर सामान्य किया था. रमेश पांडे परिवार का था और कमला अग्रवाल परिवार की. उस के पिताजी कपड़े के थोक व्यापारी थे. समाज और बाजार में उन की बहुत इज्जत थी. परिवार पुरातनपंथी था. उस हिसाब से कमला कुछ ज्यादा ही आजाद किस्म की थी.

एक दिन प्रेमांध कमला रायगढ़ से गाड़ी पकड़ कर चुपचाप नागपुर रमेश के पास पहुंच गई. रमेश की अभी नागपुर में नईनई नौकरी लगी थी. वह कमला को इस तरह वहां आया देख कर हैरान रह गया. रमेश बहुत समझदार लड़का था. वह ऐसा कोई कदम उठाना नहीं चाहता था, पर कमला घर से बाहर पांव निकाल कर एक भूल कर चुकी थी. अब अगर वह साथ न देता तो बेईमान कहलाता और कमला का जीवन बरबाद हो जाता. अनिच्छा से ही सही, रमेश को कमला से शादी करनी पड़ी. फिर जीवन भर कमला के मांबाप ने बेटी का मुंह नहीं देखा. इस के लिए भी कमला अपनी गलती न मान कर हमेशा रमेश को ही ताने मारती रहती. इन्हीं सब कारणों से दोनों के बीच दूरी बढ़ती जा रही थी. तनुश्री के बाबा की भी बहुत बड़ी फैक्टरी थी. वहां वेंकटेश आगे की पढ़ाई करते हुए काम सीख रहा था. भिलाई में जब कारखाना बनना शुरू हुआ, वेंकटेश ने भी नौकरी के लिए आवेदन कर दिया. नौकरी लगते ही दोनों ने भाग कर शादी कर ली और भिलाई चले आए. बस, उस के बाद वहां का दानापानी तनुश्री के भाग्य में नहीं रहा.

सालोंसाल मांबाप से मिलने की उम्मीद लगाए वह अवसाद से घिरती गई. जीवन जैसे एक मशीन बन कर रह गया. वह हमेशा कुछ न कर पाने की व्यथा के साथ जीती रही. शादी के बाद कुछ महीने इस उम्मीद में गुजरे कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा. जब अभय पेट में आया तो 9 महीने वह हर दूसरे दिन मां को पत्र लिखती रही. अभय के पैदा होने पर उस ने क्षमा मांगते हुए मां के पास आने की इजाजत मांगी. तनुश्री ने सोचा था कि बच्चे के मोह में उस के मांबाप उसे अवश्य माफ कर देंगे. कुछ ही दिन बाद उस के भेजे सारे पत्र ज्यों के त्यों बंद उस के पास वापस आ गए.

वेंकटेश अपने पुराने दोस्तों से वहां का हालचाल पूछ कर तनुश्री को बताता रहता. एकएक कर दोनों भाइयों और बहन की शादी हुई पर उसे किसी ने याद नहीं किया. बड़े भाई की नई फैक्टरी का उद्घाटन हुआ. बाबा ने वहीं हिंद मोटर कसबे में तीनों बच्चों को बंगले बनवा कर गिफ्ट किए, तब भी किसी को तनु याद नहीं आई. वह दूर भिलाई में बैठी हुई उन सारे सुखों को कल्पना में देखती रहती और सोचती कि क्या मिला इस प्यार से उसे? इस प्यार की उसे कितनी बड़ी कीमत अदा करनी पड़ी. एक वेंकटेश को पाने के लिए कितने प्यारे रिश्ते छूट गए. कितने ही सुखों से वह वंचित रह गई.

बाबा ने छोटी अपूर्वा की शादी कितने अच्छे परिवार में और कितने सुदर्शन लड़के के साथ की. बहन को भी लड़का दिखा कर उस की रजामंदी ली थी. कितनी सुखी है अपूर्वा…कितना प्यार करता है उस का पति…ऐसा ही कुछ उस के साथ भी हुआ होता. प्यार…प्यार तो शादी के बाद अपने आप हो जाता है. जब शादी की बात चलती है…एकदूसरे को देख कर, मिल कर अपनेआप वह आकर्षण पैदा हो जाता है जिसे प्यार कहते हैं. प्यार करने के बाद शादी की हो या शादी के बाद प्यार किया हो, एक समय बाद वह एक बंधाबंधाया रुटीन, नमक, तेल, लकड़ी का चक्कर ही तो बन कर रह जाता है. कच्ची उम्र में देखा गया फिल्मी प्यार कुछ ही दिनों बाद हकीकत की जमीन पर फिस्स हो जाता है पर अपने असाध्य से लगते प्रेम के अधूरेपन से हम उबर नहीं पाते. हर चीज दुहराई जाती है. संपूर्ण होने की संभावना ले कर पर सब असंपूर्ण, अतृप्त ही रह जाता है. अगले दिन सुबह तनुश्री उठी तो उस के चेहरे पर वह भाव था जिस में साफ झलकता है कि जैसे कोई फैसला सोच- समझ कर लिया गया है. तनुश्री ने उस लड़की से मिलने का फैसला कर लिया था. उसे अभय की इस शादी पर कोई एतराज नहीं था. उसे पता है कि अभय बहुत समझदार है. उस का चुनाव गलत नहीं होगा. अभय भी वेंकटेश की तरह परिपक्व समझ रखता है.

पर कहीं वह लड़की उस की तरह फिल्मों के रोमानी संसार में न उड़ रही हो. वह नहीं चाहती थी कि जो कुछ जीवन में उस ने खोया, उस की बहू भी जीवन भर उस तनाव में जीए. अभय ने मां से काव्या को मिलवा दिया. किसी निश्चय पर पहुंचने के लिए दिल और दिमाग का एकसाथ खड़े रहना जरूरी होता है. तनुश्री काव्या को देख सोच रही थी क्या यह चेहरा मेरा अपना है? किस क्षण से हमारे बदलने की शुरुआत होती है, हम कभी समझ नहीं पाते. तनुश्री ने अभय को आफिस जाने के लिए कह दिया. वह काव्या के साथ कुछ घंटे अकेले रहना चाहती थी. दिन भर दोनों साथसाथ रहीं.

काव्या के विचार तनुश्री से काफी मिलतेजुलते थे. तनु ने अपने जीवन के सारे पृष्ठ एकएक कर अपनी होने वाली बहू के समक्ष खोल दिए. कई बार दोनों की आंखें भी भर आईं. दोनों एकमत थीं, प्रेम के साथसाथ सारे रिश्तों को साथ ले कर चलना है. एक सप्ताह बाद उदास अभय मां के घुटनों पर सिर रखे बता रहा था, ‘‘काव्या के मांबाप इस शादी के खिलाफ हैं. मां, काव्या कहती है कि हमें उन के हां करने का इंतजार करना होगा. उस का कहना है कि वह कभी न कभी तो मान ही जाएंगे.’’ ‘‘हां, तुम दोनों का प्यार अगर सच्चा है तो आज नहीं तो कल उन्हें मानना ही होगा. इस से तुम दोनों को भी तो अपने प्रेम को परखने का मौका मिलेगा,’’ तनुश्री ने बेटे के बालों में उंगलियां फेरते हुए कहा, ‘‘मैं भी काव्या के मांबाप को समझाने का प्रयास करूंगी.’’ ‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आता, मैं क्या करूं, मां,’’ अभय ने पहलू बदलते हुए कहा. ‘‘बस, तू थोड़ा सा इंतजार कर,’’ तनुश्री बोली. ‘‘इंतजार…कब तक…’’ अभय बेचैनी से बोला.

‘‘सभी का आशीर्वाद पाने तक का इंतजार,’’ तनुश्री ने कहा. वह सोचने लगी कि आज के बच्चे बहुत समझदार हैं. वे इंतजार कर लेंगे. आपस में मिलबैठ कर एकदूसरे को समझाने और समझने का समय है उन के पास. हमारे पास वह समय ही तो नहीं था, न टेलीफोन और न मोबाइल ताकि एकदूसरे से लंबी बातचीत कर कोई हल निकाल सकते. आज बच्चे कोई भी कदम उठाने से पहले एकदूसरे से बात कर सकते हैं…एकदूसरे को समझा सकते हैं. समय बदल गया है तो सुविधा और सोच भी बदल गई है. जीवन कितना रहस्यमय होता है. कच्चे दिखने वाले तार भी जाने कहांकहां मजबूती से जुड़े रहते हैं, यह कौन जानता है. द्य

फरेबी चाहत…

लेखक- विजय सोनी

घटना 31 दिसंबर, 2018 की है. 31 दिसंबर होने के कारण इंदौर के शाजापुर क्षेत्र में आधी रात
के समय लोग शराब के नशे में डूब कर नए साल का स्वागत करने में जुटे थे. काशीनगर क्षेत्र के एक मकान से पतिपत्नी के झगड़े की तेज आवाज आ रही थी. वह आवाज सुन कर पड़ोसी डिस्टर्ब होने लगे तो एक पड़ोसी श्याम वर्मा ने कोतवाली में फोन कर झगड़े की सूचना दे दी.

जिस घर से झगड़े की तेज आवाज आ रही थी, वह मकान बलाई महासभा युवा ब्रिगेड के जिला अध्यक्ष और प्रौपर्टी डीलर रहे रमेशचंद्र उर्फ मोनू का था. उस की पत्नी मंजू भी भाजपा की सक्रिय कार्यकत्री थी.
नए साल में लड़ाईझगड़े की संभावना को देखते हुए पुलिस भी अलर्ट थी, इसलिए झगड़े की खबर सुनते ही कुछ ही देर में शाजापुर कोतवाली की मोबाइल वैन मौके पर पहुंच गई. लेकिन यह मामला पतिपत्नी के पारिवारिक झगडे़ का था तथा पतिपत्नी दोनों ही सम्मानित व जानेमाने लोग थे. इसलिए पुलिस दोनों को समझाबुझा कर थाने लौट गई.

करोड़ोें की खूबसूरती..

पुलिस के जाने के बाद पतिपत्नी ने दरवाजा बंद कर लिया, जिस के बाद मकान से झगड़े की आवाज आनी बंद हो गई. फिर पड़ोसी भी अपनेअपने घरों में चले गए. लेकिन 45 मिनट बाद मोनू लहूलुहान अपने घर से निकला और पड़ोस में रहने वाले एक परिचित को ले कर शाजापुर के जिला अस्पताल पहुंचा.
मोनू के पेट से खून बह रहा था. पूछने पर मोनू ने डाक्टर को बताया कि ज्यादा नशे में होने की वजह से वह गिर गया और चोट लग गई. डाक्टर ने रमेश उर्फ मोनू को अस्पताल में भरती कर लिया. परंतु सुबह रमेश उर्फ मोनू की हालत और बिगड़ जाने के कारण उसे इंदौर के एमवाईएच अस्पताल रेफर कर दिया. उस समय मोनू के पास इतना पैसा भी नहीं था कि उसे इलाज के लिए इंदौर ले जाया जा सके, इसलिए मोनू के दोस्तों ने आपस में चंदा जमा कर कुछ रकम जुटाई और वह मोनू को इंदौर ले गए.

कानून के टप्पेबाजी…

बलाई महासभा के युवा ब्रिगेड के बड़े नेता के घायल हो जाने की बात सुन कर समाज के लोग बड़ी संख्या में अस्पताल पहुंचने लगे. रमेश के परिवार वाले भी उस के जल्द ठीक होने की कामना करने लगे. परंतु होनी को कुछ और ही मंजूर था. 6 जनवरी की सुबह मोनू की मौत हो गई. रमेश की मौत से मामला एकदम बदल गया.
5 दिन से अस्पताल में मौजूद उस के पिता गंगाराम बेटे की मौत की खबर सुन कर टूट गए. वह रोते हुए बेटे की मौत का आरोप अपनी बहू मंजू पर लगाने लगे. उन का यह आरोप सुन कर अस्पताल के एमएस ने संयोगितागंज थाने में खबर कर दी. सूचना पा कर थाना पुलिस अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के रमेश का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

रेव पार्टी: डांस, ड्रग्स और सैक्स का तड़का

प्रारंभिक पूछताछ में रमेश के पिता गंगाराम व बुआ गीता बलाई ने पुलिस को बताया कि रमेश ने खुद उन्हें बताया था कि उसे उस की पत्नी मंजू ने चाकू मारा है. लेकिन समाज में बदनामी के डर से वह गिर कर चोट लगने की बात कहता रहा.
पुलिस ने उन से मंजू के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मंजू तो घटना के बाद से एक बार भी अपने पति को देखने अस्पताल नहीं आई. वह पति को देखने अस्पताल क्यों नहीं आई, यह बात पुलिस की समझ में नहीं आ रही थी. इस से पुलिस का मंजू पर शक गहरा गया.

मुन्ना बजरंगी हत्याकांड : जेल में सब हो सकता है

संयोगितागंज थाना पुलिस ने अपने यहां जीरो एफआईआर दर्ज कर के डायरी शाजापुर कोतवाली भेज दी. यहां रमेश की हत्या किए जाने की बात सामने आने पर बलाई समाज के लोगों में भारी आक्रोश फैल गया.
समाज के लोग बड़ी संख्या में एकत्र हो कर एसपी शैलेंद्र चौहान से मिले और रमेश की पत्नी मंजू को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. जिस पर एसपी ने बलाई समाज के लोगों को आश्वासन दिया कि जल्द ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. तब कहीं जा कर रमेश का अंतिम संस्कार किया गया.
रमेश की चिता की आग शांत होने के बाद आरोपी की गिरफ्तारी को ले कर लोगों में गुस्से की आग फिर भड़क उठी. चूंकि मंजू भी भाजपा नेत्री थी, इसलिए पुलिस भी जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती थी, जिस से मामला उलटा पड़ जाए.
कोतवाली इंसपेक्टर के.एल. दांगी बड़ी ही सावधानी से एकएक कदम बढ़ा रहे थे. वरिष्ठ अधिकारियों से मशविरा करने के बाद उन्होंने मृतक रमेश की पत्नी मंजू को हिरासत में ले लिया. जब उस से रमेश की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उस ने रमेश चंद्र की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

शाजापुर के मध्यमवर्गीय बलाई परिवार में जन्मे रमेशचंद्र उर्फ मोनू की मां का देहांत उस समय हो गया था, जब रमेश बाल्यावस्था में था. मां के बिना रमेश गलत संगत में पड़ गया, जिस से मिली पिता की डांट से नाराज हो कर वह सन 1995 में घर से भाग कर गुजरात के भावनगर चला गया और वहां के एक होटल में नौकरी करने लगा.

गैंगस्टरों का खूनी खेल

वहां उस की मुलाकात मुंबई के एक जैन व्यापारी से हुई. होटल का काम छोड़ कर वह जैन व्यापारी के साथ चला गया. उसी दौरान उस ने ड्राइविंग सीख ली और जैन व्यापारी की कार चलाने लगा. जैन व्यापारी उन दिनों श्वेतांबर जैन संत सुरेशजी महाराज के भक्त थे और अकसर उन की सेवा करने जाया करते थे. इस दौरान रमेश भी अपने सेठ के साथ रहता था.
संयोग से एक रोज सुरेशजी महाराज ने सेठ से उन के ड्राइवर रमेश को कुछ दिन अपने साथ रखने को ले लिया. सेठजी भला अपने गुरुजी की बात कैसे टाल सकते थे. लिहाजा उन्होंने रमेश को महाराज के हवाले कर दिया. सुरेशजी महाराज के संपर्क में आ कर रमेश ने जैन धर्म को नजदीक से जाना.

राजेश साहनी की खुदकुशी : एटीएस कैंपस में दफन है 

धर्म में उस की रुचि देख कर सुरेशजी महाराज ने उसे दीक्षा दी और उस का नाम तरुणजी महाराज रख दिया. इस तरह रमेश की योग्यता और संयम देख कर उसे स्थानक वासी की पदवी दी गई. जिस के बाद वह देश भर में घूमघूम कर धार्मिक प्रवचन देने लगा.
उस के पिता को जब पता चला कि बेटा संत हो गया है तो वह बहुत खुश हुए. धर्म के मामले में असाधारण योग्यता के चलते रमेश ने समाज में काफी सम्मानित स्थान हासिल कर लिया था.
लेकिन उस की लाइफ काफी एक्सीडेंटल निकली. अचानक ही मालूम नहीं उस के मन को क्या आया कि वह त्याग का मार्ग छोड़ कर वापस सांसारिक दुनिया में आ गया. वह अपने घर लौट आया. बेटे के वापस घर लौटने पर पिता खुश थे.

प्रेमिका और पत्नी के बीच मौत का खेल

शाजापुर आ कर रमेश ने प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया. वह ज्ञानी और धार्मिक प्रवृत्ति का था और सत्य के मार्ग पर चलने वाला भी, इसलिए लोग उस पर आसानी से भरोसा कर लेते थे. देखते ही देखते रमेश का बिजनैस चल निकला, जिस से कुछ ही समय में उस की गिनती समाज और शहर के संपन्न लोगों में होने लगी.
उसी दौरान शहर के एक थाने में पदस्थ सजातीय पुलिसकर्मी की नजर रमेश पर पड़ी. वह रमेश के साथ अपनी बेटी मंजू की शादी करना चाहता था. उस पुलिसकर्मी ने इस बारे में रमेश के पिता से बात की. लड़की सुंदर थी जो रमेश को भी पसंद थी. लिहाजा दोनों तरफ से बातचीत हो जाने के बाद रमेशचंद्र और मंजू की शादी हो गई.

दिल का मामला या कोई बड़ी साजिश

मंजू खूबसूरत तो थी ही, साथ ही पढ़ीलिखी और समझदार भी थी. उन की गृहस्थी हंसीखुशी से चलती रही. इसी बीच मंजू 2 बेटों की मां बन गई. जब रमेश ने बलाई समाज की राजनीति में दखल देना शुरू किया तो अपने दोनों बेटों के बड़े हो जाने के बाद मंजू भी भाजपा से जुड़ कर उभरती नेत्री के रूप में पहचानी जाने लगी.
लेकिन रमेश की जिंदगी ने फिर एक बार करवट ली. समाज की राजनीति में ज्यादा समय देने के कारण उस का अपना बिजनैस एक तरह से ठप हो गया, जिस पर उस ने पहले तो ध्यान नहीं दिया और जब ध्यान दिया तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

धीरेधीरे स्थिति बिगड़ती गई, जिस के चलते कभी समाज को शराब जैसी बुराई से दूर रहने का उपदेश देने वाला जैन स्थानक वासी रमेश खुद शराब की गिरफ्त में आ गया. जिस के चलते रमेश की पहचान एक शराबी के रूप में बन गई.
मंजू को यह कतई उम्मीद नहीं थी कि उस का पति शराबी भी हो सकता है. लेकिन अब तो यह बात सड़कों पर भी जाहिर हो चुकी थी. इसलिए खुद की सामाजिक पहचान कायम कर चुकी मंजू के लिए यह बात असहनीय थी. उस ने पति के शराब पीने का विरोध किया तो दोनों में आए दिन झगड़ा होने लगा, जिस की आवाज धीरेधीरे उन के घर के बाहर भी गूंजने लगी.
फिर एक बार यह आवाज बाहर आई तो यह रोज का क्रम बन गया. ऐसे में एक तरफ जहां मंजू का परिवार टूट रहा था तो वहीं दूसरी ओर पार्टी में उस की पकड़ मजबूत होती जा रही थी.
दोनों के अहं टकराने लगे, जिस से रमेश और भी ज्यादा शराब पीने लगा. राजनीति में सक्रिय होने के कारण मंजू देर रात तक घर से बाहर रहती थी. ऐसे में जब कभी रमेश शराब पी कर पत्नी के घर वापस आने से पहले लौट आता तो पत्नी के देर से वापस आने पर उस पर उलटेसीधे आरोप लगाकर उस से झगड़ना शुरू कर देता.

प्रेमिका से शादी के लिए मां बाप से खूनी दुश्मनी

अब मंजू को अपना राजनैतिक भविष्य स्वर्णिम दिखाई देने लगा था. उसे दूर तक जाने का रास्ता साफ दिख रहा था, इसलिए उस का वापस लौटना भी संभव नहीं था. पति के विरोध को दरकिनार कर वह राजनीति में और ज्यादा सक्रिय हो गई. हाल ही में संपन्न हुए प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मंजू ने पार्टी के हित में दिनरात मेहनत की.
जाहिर है राजनीति में शामिल कई महिलाओं के अच्छेबुरे किस्से अकसर चर्चा में बने रहते हैं, इसलिए रमेश भी पत्नी पर इसी तरह के आरोप लगाने लगा. वह उस के राजनीति में सक्रिय रहने पर ऐतराज करता था.
इस से दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि वे एक ही छत के नीचे अलगअलग कमरों में रहने लगे. इस से दिन में तो शांति रहती लेकिन रात को रमेश के शराब पी कर आने पर सारी शांति कलह में बदल जाती थी. दोनों में रोजरोज रात में अकसर विवाद होने लगा.

11 दूल्हों को लूटने वाली दुल्हन

31 दिसंबर, 2018 को रात 11 बजे के करीब रमेश ने शराब के नशे में आ कर घर का दरवाजा खटखटाया तो मंजू ने काफी देर बाद दरवाजा खोला. इस से रमेश को शक हो गया कि मंजू तो यह सोच कर बैठी होगी कि आज साल का आखिरी जश्न होने के कारण मैं रात भर घर वापस नहीं लौटूंगा, इसलिए उस ने किसी और के साथ पार्टी करने की योजना बना ली होगी. मंजू के देर से दरवाजा खोलने पर रमेश को शक हो गया कि मंजू के साथ घर में कोई और है.
दरवाजा खोलते ही वह पत्नी पर उलटेसीधे आरोप लगा कर मारपीट करने लगा. इस से विवाद इतना बढ़ गया कि उस का शोर पड़ोसियों के कानों तक पहुंच गया. उसी समय पड़ोसी श्याम वर्मा ने पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने आ कर दोनों का मामला सुलझा दिया और वापस लौट गई.
लेकिन पुलिस के जाने के बाद एक बार फिर दोनों में विवाद गहरा गया और इस दौरान मंजू ने मोनू की जेब में हमेशा रखा रहने वाला खटके वाला चाकू निकाल कर उस के पेट में घोंप दिया. चाकू काफी गहरा जा घुसा जिस से वह गंभीर रूप से घायल हो गया. लेकिन शराब के नशे में उसे घाव की गंभीरता का अहसास नहीं हुआ इसलिए वह अपने कमरे में जा कर लेट गया.

अल्लाह के नाम पर बेटी की कुर्बानी

कुछ देर बाद रमेश के पेट में दर्द बढ़ा तो पड़ोस में रहने वाले अपने परिचित के साथ वह अस्पताल गया, जहां से सुबह उसे इंदौर भेज दिया गया. लेकिन वहां भी इलाज के दौरान 6 जनवरी को उस की मौत हो गई.
थानाप्रभारी के.एल. दांगी ने मंजू से पूछताछ के बाद हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. इस के बाद उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गुड़गांव का क्लब डांसर मर्डर केस

इसे कर हाथ तापते हुए सर्दी से बचाव का जतन कर रहे थे.
खुशबू चौक के पास ही सड़क किनारे एक कार खड़ी थी. यह कार कुछ देर पहले ही वहां आई थी. कार में 2 युवक और 2 युवतियां सवार थीं. ये लोग कुछ देर तक कार में बैठे हुए आपस में बात करते रहे.
कुछ देर बाद कार से एक युवक बाहर निकला. उस ने इशारे से कार में सवार एक युवती को बाहर बुलाया. परेशान सी 24-25 साल की वह युवती कार से बाहर निकल आई तो युवक ने उस से कहा, ‘‘प्रियंका, अदालत में बयान बदल कर अपना केस वापस ले लो.’’

‘‘देखो संदीप, तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. मैं तुम्हें अब माफ नहीं कर सकती.’’ प्रियंका बोली. उस के सामने खड़ा युवक संदीप था.
प्रियंका की बात सुन कर संदीप को गुस्सा आ गया. वह प्रियंका का हाथ पकड़ कर झिंझोड़ते हुए बोला, ‘‘प्रियंका, तुम समझती क्यों नहीं हो. तुम्हारे केस की वजह से मेरी जिंदगी खराब हो रही है. मेरा परिवार टूट रहा है.’’
संदीप के तेवर देख कर प्रियंका भी गुस्से में बोली, ‘‘तुम ने यह बात मेरी जिंदगी बरबाद करने से पहले क्यों नहीं सोची थी.’’

नोटिस का जवाब खून से

फिर आंखें तरेर कर प्रियंका ने कहा, ‘‘संदीप, तुम लगातार मेरा शरीर नोचते रहे. तुम ने मुझे कुंवारी मां बना दिया, जिस से मैं आज समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रही. अब तुम मुझ पर केस वापस लेने का दबाव बना रहे हो. तुम भी कान खोल कर अच्छी तरह सुन लो, मैं केस हरगिज वापस नहीं लूंगी और तुम्हें तुम्हारे कारनामों की सजा दिलवा कर रहूंगी.’’

प्रियंका की बातें सुन कर संदीप का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस ने प्रियंका से कहा, ‘‘आखिरी बार सोच लो, यह तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा.’’
‘‘अब ठीक होने को बचा ही क्या है. तुम तो पहले ही मेरी जिंदगी खराब कर चुके हो.’’ तमतमाई प्रियंका ने कहा, ‘‘तुम और क्या कर सकते हो, ज्यादा से ज्यादा मेरी जान ले लोगे. इस से ज्यादा तुम कर भी नहीं सकते.’’
‘‘हां, अगर तुम नहीं मानी तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने अपनी जेब से पिस्टल निकाली और प्रियंका के ऊपर कई गोलियां दाग दीं. गोलियां प्रियंका की गरदन, पेट और हाथों में लगीं.
गोलियों की आवाज सुन कर कार में बैठी युवती और दूसरा युवक बाहर निकल आए. युवती ने प्रियंका को संभाला, उस के बदन से खून बह रहा था. वह आखिरी सांसें गिन रही थी.
आसपास अलाव ताप रहे और चाय की चुस्कियां ले रहे लोग गोलियों की आवाज सुन कर कार के पास आने लगे, तो संदीप ने प्रियंका के हाथ से उस का मोबाइल छीना और दूसरे युवक के साथ कार ले कर वहां से भाग गया.

बेटी ने दी बाप के कत्ल की सुपारी

कार से उतरी युवती ने उसी समय प्रियंका की बहन को फोन कर घटना की जानकारी दी. इस के बाद उस ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी. कुछ देर बाद ही पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने मौके पर मौजूद युवती से पूछताछ की.
युवती ने बताया कि वह प्रियंका की सहेली है. पुलिस सड़क पर तड़प रही प्रियंका को अस्पताल ले गई. अस्पताल में डाक्टरों ने प्रियंका को मृत घोषित कर दिया. उसे 5 गोलियां लगी थीं. पुलिस ने पोस्टमार्टम काररवाई के बाद प्रियंका का शव उस के परिजनों को सौंप दिया.
पुलिस ने प्रियंका की सहेली के बयान लिए. इस के बाद गुड़गांव के डीएलएफ फेज-1 पुलिस थाने में प्रियंका की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

प्रियंका और संदीप कौन थे. संदीप ने प्रियंका को इस तरह सरेआम चौराहे पर गोलियों से क्यों भून दिया. पुलिस ने इस की जांचपड़ताल शुरू की. प्रियंका के परिवारजनों और सहेली द्वारा पुलिस को दिए गए बयानों के आधार पर जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—
हरियाणा के करनाल शहर की रहने वाली प्रियंका कई साल पहले परिवार के साथ गुड़गांव आ गई थी. उस के पिता की सन 2004 में मौत हो गई थी. प्रियंका की करनाल में ही शादी हो गई थी, लेकिन कुछ दिनों बाद ही उस का तलाक हो गया था. तलाक होने पर प्रियंका अपनी मां के पास आ गई.
घर में कमाने वाला कोई नहीं था. 8 बहनों और एक भाई के परिवार में प्रियंका पांचवें नंबर की थी. परिवार का पेट पालने के लिए प्रियंका ने गुड़गांव में नौकरी तलाशनी शुरू की. वह जहां भी नौकरी मांगने जाती, लोग उस से डिग्री मांगते. डिग्री उस के पास थी नहीं.
प्रियंका के पास भले ही पढ़ाई की कोई डिग्री नहीं थी, लेकिन वह नाकनक्श से खूबसूरत थी. इस के साथ वह डांस में भी पारंगत थी. फिल्मी गानों पर जब वह अपनी कमर लचका कर ठुमके लगाती तो देखने वालों के दिलों में छुरियां सी चलने लगतीं. प्रियंका की खूबसूरती लोगों के दिलोदिमाग पर छा जाती थी.
काफी प्रयासों के बाद भी जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली, तो प्रियंका ने नाचगाने से ही रोजीरोटी कमाने की सोची. गुड़गांव में कई सारे पब और डांस क्लब हैं. इन क्लबों में रात को झिलमिलाती रंगीन रोशनी में डांस की महफिलें सजती हैं. प्रियंका ने कोशिश की तो उसे एक क्लब में डांसर की नौकरी मिल गई.

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नौकरी मिल गई तो प्रियंका के परिवार को भी घर खर्च के लिए एक सहारा मिल गया. प्रियंका अपनी नौकरी से संतुष्ट थी. वह रोजाना शाम को तय समय पर क्लब जाती. मेकअप करने के बाद डांस फ्लोर पर जाने के लिए रंगबिरंगी ड्रैस पहन कर तैयार होती. फिर महफिल सजने पर फिल्मी गानों की धुन पर फ्लोर पर डांस करती.
डांस क्लब और पब में सजने वाली महफिलें रात गहराने के साथ जवान होती जाती हैं. इन महफिलों में आने वाले ज्यादातर ग्राहक शराब के नशे में डांसर की अदाओं और मादकता को निहारते हैं और छूनाछेड़ना भी चाहते हैं.
प्रियंका की मादक अदाएं ग्राहकों को लुभाती थीं. उस की अदाओं पर कई रसिया नोट भी लुटाते थे. प्रियंका के ठुमके लगाने की अदा कई मनचलों और रसिक लोगों को इतनी पसंद आती थी कि वे उस के दीदार करने के लिए रोजाना क्लब में आते थे.
क्लब में आने वाले कई युवा महिला डांसरों को ललचाई नजरों से देखते थे. वे अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए ऐसी डांसरों को नोटों की झलक दिखा कर आमंत्रण देते थे. लेकिन प्रियंका ऐसी लड़की नहीं थी. वह ऐसे मनचलों को मुसकरा कर पीछे धकेल देती थी. करीब आधी रात बाद महफिल सिमटती तो प्रियंका क्लब से अपने घर जाती थी.

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प्रियंका जवान थी. क्लब में उस के डांस की मादक अदाओं पर सैकड़ों युवा मरते थे. इन में कई ऐसे नौजवान भी थे, जो उस से प्रेम निवेदन करते थे. हालांकि प्रियंका ने कभी ऐसे लोगों को तवज्जो नहीं दी.
आमतौर पर नाचगाने के पेशे को सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता. फिर प्रियंका तो क्लब में डांसर थी. अपनी मादक अदाएं दिखा कर डांस करना उस की मजबूरी थी. प्रियंका के इस पेशे से उस के परिवार वाले खुश नहीं थे. लेकिन वह क्या करती. परिवार का पेट तो पालना ही था. उस के पास कोई दूसरा हुनर होता तो शायद उसे क्लब में डांसर की नौकरी नहीं करनी पड़ती.
उसी डांस क्लब में संदीप भी काम करता था. वह वहां बाउंसर था. उस का काम ऐसे ग्राहकों को काबू करना था, जो क्लब में नशे की हालत में गलत हरकतें करते या डांसरों को परेशान करते थे. ऐसे ग्राहकों को संदीप क्लब से बाहर का रास्ता दिखा देता था.

एकदो बार ऐसा हुआ भी, जब किसी ग्राहक ने फ्लोर पर डांस कर रही प्रियंका पर अश्लील फब्तियां कस दीं या उस से छेड़छाड़ करने की कोशिश की तब संदीप ने प्रियंका को बचाया था. 1-2 बार मनचलों ने प्रियंका को आधी रात के समय क्लब से घर जाते वक्त रोकने की कोशिश की थी, तब भी संदीप ने उसे सुरक्षा दी थी.
ऐसे में प्रियंका उसे अपना हमदर्द मानने लगी. यह हमदर्दी कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला. संदीप मजबूत कदकाठी का हैंडसम जवान था. वह भी प्रियंका की डांस करने की अदाओं पर फिदा था.
संदीप फरीदाबाद के तिगांव का रहने वाला था और शादीशुदा था. संदीप ने हमदर्द बन कर प्रियंका से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. प्रियंका को संदीप से सहारा और सुरक्षा मिल रही थी. इस का कारण था कि डांसर के पेशे के कारण प्रियंका को अपने परिवार का पूरा प्यार नहीं मिल रहा था.
उसे संदीप की आंखों में प्यार का ज्वार नजर आया तो वह भी नजदीक आती चली गई. संदीप ने खुद के शादीशुदा होने की बात प्रियंका को नहीं बताई थी. प्रियंका उस पर भरोसा करने लगी. प्यार बढ़ने लगा तो संदीप ने प्रियंका को शादी करने का आश्वासन दिया.

बेवफाई रास न आई

प्रियंका को भी एक सहारे की जरूरत थी. पेशे के हिसाब से भी और शारीरिक जरूरत के हिसाब से भी. इसी प्यार और विश्वास के भरोसे प्रियंका कब उस के आगोश में समा गई, उसे याद नहीं. लिवइन पार्टनरशिप में रहते हुए संदीप समयसमय पर प्रियंका से संबंध बनाता रहा. इस का नतीजा यह हुआ कि प्रियंका गर्भवती हो गई.
गर्भ ठहरने पर प्रियंका ने संदीप पर जल्द शादी करने का दबाव डाला, लेकिन संदीप बारबार उसे टालता रहा. प्रियंका जब भी उस से शादी की बात करती, तो वह जल्दी ही अपने परिवार वालों को मनाने की बात कहता.
संदीप की बारबार की टालमटोल से प्रियंका को शक होने लगा. उसे जब पता चला कि वह शादीशुदा है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. यह पता चलने पर प्रियंका को बड़ा झटका लगा.
सच सामने आने पर प्रियंका ने संदीप से बात की. संदीप फिर उसे झांसा देता रहा. उस ने कहा कि वह पत्नी को तलाक दे कर जल्दी ही उस से शादी कर लेगा. कुछ दिन बीत गए. प्रियंका दुलहन बनने का इंतजार करती रही. इस बीच संदीप उस का शारीरिक शोषण करता रहा.

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बारबार वादा करने के बाद भी संदीप ने जब प्रियंका से शादी करने की कोई पहल नहीं की तो वह समझ गई कि संदीप केवल उस के बदन से खेलना चाहता है. उस से जब पूरी तरह भरोसा टूट गया तो प्रियंका ने सन 2017 में गुड़गांव के सेक्टर-50 स्थित महिला थाने में संदीप के खिलाफ दुष्कर्म का केस दर्ज करा दिया.
जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने संदीप को गिरफ्तार कर लिया. कई महीने जेल में रहने के बाद जुलाई 2018 में वह जमानत पर जेल से बाहर आ गया. इस बीच पुलिस ने संदीप के खिलाफ अदालत में चालान पेश कर दिया था.
वहीं इस दौरान प्रियंका ने एक बेटे को जन्म दिया. यह बच्चा अब करीब 9 महीने का है. प्रियंका ने बेटे की देखभाल के लिए एक नौकरानी लगा रखी थी.

संदीप ने जेल से बाहर आने के बाद प्रियंका से दोबारा दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया. दोनों की मुलाकात हुई. वह प्रियंका को क्लब की डांसर से बाहर निकाल कर अपने दिल की रानी बनाने और बच्चे को अपना कर पिता का नाम देने की बात कहने लगा. प्रियंका की गलती यह रही कि वह फिर से संदीप की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई.
इस का नतीजा यह हुआ कि संदीप उस के घर भी आने लगा. वह प्रियंका की मां और बहनों से भी मिलता रहता था. एकदो बार संदीप ने प्रियंका के घर वालों को भी यह विश्वास दिलाया कि उस से गलती हो गई थी, लेकिन अब वह जल्दी ही प्रियंका से शादी कर लेगा.
संदीप की बेवफाई से टूटने के बाद प्रियंका अकेली रह गई थी. संदीप के लगातार आनेजाने और मुलाकातें करने से उन का इश्क दोबारा परवान चढ़ने लगा. वह पुरानी बातों को भूल कर फिर से संदीप की बांहों में झूल गई. दोनों के बीच दोबारा आंतरिक संबंध कायम हो गए. दोनों फिर से साथ रहने लगे.
प्रियंका इस बात से अनजान थी कि संदीप के मन में क्या है. वह तो उसे अपना प्रेमी और जीवनसाथी मानने लगी थी, इसीलिए वह अपना सब कुछ उसे सौंपती रही.

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दूसरी ओर संदीप ने चाल चली. वह प्रियंका से दोबारा दोस्ती का हाथ आगे बढ़ा कर उस का उपयोग अदालत में करना चाहता था. चूंकि प्रियंका ने ही संदीप के खिलाफ दुष्कर्म का केस
पुलिस में दर्ज कराया था, इसलिए अदालत में उस के बयान ही सब से महत्त्वपूर्ण थे. संदीप प्रियंका से बयान बदलवा कर दुष्कर्म के केस से बरी होना चाहता था, इसीलिए वह प्रियंका और उस के परिवार वालों से बयान बदलने के लिए बारबार मिलता रहता था.

17 जनवरी की शाम को प्रियंका अपनी डांसर सहेली के साथ दिल्ली के हौजखास स्थित एक क्लब में गई थी. इस दौरान संदीप ने उसे फोन किया. संदीप ने उस से मिलने की इच्छा जताते हुए गुड़गांव आने को कहा. प्रियंका को फोन करने के बाद संदीप गुड़गांव में उस के घर गया. वहां वह प्रियंका की मां से मिला.
संदीप ने प्रियंका की मां को बताया कि 19 जनवरी को अदालत में दुष्कर्म मामले की पेशी है. उस ने प्रियंका की मां से कहा कि वह प्रियंका को अदालत में बयान बदलने के लिए समझाएं. प्रियंका की मां ने संदीप से कहा कि वह इस बारे में प्रियंका से बात करेगी और उसे समझा देगी. वैसे प्रियंका की मां भी संदीप के पक्ष में गवाही देने को राजी हो गई थी.

इधर संदीप के कहने पर प्रियंका अपनी सहेली के साथ दिल्ली से टैक्सी ले कर गुड़गांव आ गई. प्रियंका सहेली के साथ नाथूपुर स्थित अपने किराए के घर पहुंची तो वहां उसे संदीप मिल गया. संदीप के साथ उस का एक दोस्त भी था. उस दोस्त को प्रियंका नहीं जानती थी. संदीप और उस का दोस्त कार से वहां आए थे. उस समय तक आधी रात हो गई थी. संदीप कुछ देर प्रियंका से इधरउधर की बातें करता रहा.
रात करीब 2 बजे संदीप ने प्रियंका से कहा कि चलो, आसपास घूम कर आते हैं. प्रियंका को रात 2 बजे घूमने जाना कोई अटपटा नहीं लगा. क्योंकि वह रात की जिंदगी से खूब अच्छी तरह परिचित थी. वह खुद भी क्लब से आधी रात बाद ही घर आती थी. वह संदीप के साथ आधी रात बाद से तड़के तक कई बार घूम चुकी थी. इसलिए उस ने संदीप के घूमने चलने की बात कहने पर न तो कोई अचंभा किया और न ही कोई नाराजगी जताई.

प्रियंका के राजी होने पर संदीप ने उस की सहेली को भी साथ चलने को कहा. सहेली को साथ जाने से कोई ऐतराज नहीं था, इसलिए संदीप और उस के दोस्त के साथ प्रियंका और उस की सहेली कार से चल दिए.
वे चारों लोग रात को कार से गुड़गांव की सड़कों पर इधरउधर घूमते रहे. इस दौरान संदीप प्रियंका से दुष्कर्म केस के बारे में बात करता रहा. वह प्रियंका से अगले दिन अदालत की पेशी में बयान बदलने पर जोर दे रहा था. प्रियंका उस की बात सुन रही थी, लेकिन साफतौर पर उस ने उसे कोई जवाब नहीं दिया था.
इस बीच संदीप एक जगह रास्ते में रुका, वहां चारों ने मोमोज खाए. इस के बाद वे कार में सवार हो कर फिर घूमने लगे. कार में संदीप और प्रियंका के बीच अदालत में बयान देने को ले कर ही बातचीत चलती रही. बीचबीच में संदीप के दोस्त ने प्रियंका को समझा कर दबाव बनाने का प्रयास किया, लेकिन प्रियंका कोई फैसला नहीं ले पा रही थी. वह संदीप के लगातार दबाव बनाने से परेशान सी हो गई.

प्रियंका को परेशान देख कर संदीप ने एक बार कार फिर रोकी. इस बार चारों लोगों ने स्नैक्स खाए. कुछ देर बाद वे वहां से कार ले कर चल दिए और फिर सड़कों पर घूमने लगे. रास्ते में संदीप ने जब फिर वही बात दोहराई तो प्रियंका से उस की कहासुनी हो गई.
इस के कुछ देर बाद सुबह करीब 6-सवा 6 बजे वे लोग कार से गुड़गांव में फरीदाबाद रोड पर स्थित खुशबू चौक पर आ गए. खुशबू चौक पर संदीप ने दुष्कर्म केस की बात करते हुए प्रियंका से गालीगलौज की और उसे गोलियां मार दीं.
मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमों ने संदीप की तलाश में तिगांव गांव स्थित उस के घर और कई संभावित जगहों पर छापेमारी की, लेकिन उस का पता नहीं चला.
प्रियंका की हत्या के करीब 16-17 घंटे बाद उस की बहन को वाट्सऐप काल कर धमकाया गया. प्रियंका की बहन का आरोप है कि संदीप ने अपने दोस्त के जरिए उसे धमका कर हत्या के मामले में मुंह नहीं खोलने की नसीहत दी. प्रियंका के परिवार ने पुलिस को इस की जानकारी दी. इस के बाद भी धमकी भरे मैसेज भेजे गए.
कथा लिखे जाने तक संदीप पुलिस की पकड़ से बाहर था. पुलिस उस की और उस के दोस्त की तलाश में जुटी थी.

तांत्रिकों के जाल में दिल्ली

बहरहाल, प्रियंका की जान एक डांसर की तरह घूमते हुए ही चली गई. वह डांस कर के लोगों का मन बहलाती थी और संदीप उस के शरीर से खेल कर अपना मन बहलाता रहा. दुष्कर्म के केस से बरी होने के लिए संदीप ने अपने हाथ प्रियंका के खून से रंग लिए.
संदीप के अपराधों की सजा उसे कानून देगा, लेकिन विश्वास का कत्ल होने से 9 महीने के मासूम की जिंदगी भी संकट में पड़ गई है. इस मासूम को न तो मां का आंचल मिला और न ही बाप का दुलार. इस मासूम को तो बाप का नाम भी नहीं मिला. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. कथा में मृतका का नाम बदला हुआ है.

सुवर्णा गाड़ी में

उन की नन्ही सी बेटी सुवर्णा की मीठीमीठी बातों ने सुमन का मन हर लिया था.लेकिन सुवर्णा के साथ सुमन का स्नेह का बंधन अटूट रह पाया? पढि़ए मालविका देखणे की कहानी.

पूर्व कथा

टूर से घर वापस जाते हुए सुमन की ट्रेन में सरयूप्रमोद से जानपहचान होती है.

उन की गोद ली 5 साल की बेटी सुवर्णा सुमन के मन में रचबस गई. सुमन ने सरयू के मायके का फोन नंबर लिया और उसे अपने घर सपरिवार आने का निमंत्रण भी दिया. घर आने के बाद सुमन अपने पति विकास और बेटे सुदीप से सुवर्णा के विषय में ढेर सी बातें करती है. थोड़े दिन बाद सरयूप्रमोद सुवर्णा के साथ सुमन के घर आते हैं. सरयू सुमन को बताती है कि नानानानी की सुवर्णा लाडली बन गई है लेकिन दादादादी उसे देख खुश नहीं हुए. पराए खून को वह अपना नहीं पाए.

अकाल्पनिक

सुमन उसे धीरज से काम लेने की सलाह देती है. दोनों परिवार आपस में अच्छी तरह हिलमिल जाते हैं. सुवर्णा के कहने पर सरयू एक गीत गाती है जिसे सुन सब विभोर हो जाते हैं. अब आगे… अंतिम भाग गतांक से आगे… गाना सुन कर सुमन उस से बोली, ‘‘सरयू, तुम्हारी आवाज बहुत मीठी है.’’ ‘‘दीदी, सरयू पहले रेडियो के लिए गाती थी,’’ प्रमोद बोले, ‘‘लेकिन बीच में इस की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए गाना बंद कर दिया. अब सुवर्णा के आने के बाद इस ने फिर रियाज करना शुरू किया है.’’ ‘‘फिर सरयू, तुम को अपना रियाज जारी रखना चाहिए. क्या तुम अगले साल यहां रेडियो स्टेशन पर अपना कार्यक्रम पेश करना चाहोगी? इस कार्यक्रम में ‘नवोदित गायक’ शीर्षक से मासिक कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है, जिस में नवोदित गायक कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने का अवसर दिया जाता है.

इसी बहाने तुम फिर नागपुर आ सकोगी,’’ सुमन बोली. ‘‘अब तो आनाजाना जारी रहेगा, दीदी. अगर तुम लोग हमें भूलना चाहो तब भी हम तुम्हें भूलने नहीं देंगे,’’ सरयू और प्रमोद हंसते हुए बोले. ‘‘चेन्नई पहुंचने पर खत लिखना,’’ सुमन ने याद दिलाई. ‘‘दीदी, हम यहां से पहले पुणे जाएंगे. फिर वहां से टैक्सी ले कर चेन्नई जाएंगे. उस के बाद जरूर खत लिखेंगे. हमारे साथ अब मेरे मातापिता भी जाने वाले हैं. वे भी करीब 6 माह तक हमारे साथ रहेंगे,’’ सरयू ने अपना पूरा कार्यक्रम बता दिया.

‘‘अच्छा, बीचबीच में खत लिखते रहना. गाड़ी की पहचान समझ कर भूल मत जाना,’’ सुमन ने उसे प्यार से ताकीद की. ‘‘और मौसी, तुम भी मुझे भूलना नहीं.’’ सुवर्णा की यह हाजिरजवाबी सब को भा गई. सुमन ने सुवर्णा की पप्पी ली और फिर छाती से लगा कर बोलीं, ‘‘नहीं बिटिया रानी, मैं तुम्हें कैसे भूल सकती हूं.’’ इस बात को बीते पूरे 4 महीने हो चुके थे. सरयूप्रमोद का खत तो दूर कोई फोन भी नहीं आया था. सरयू के मातापिता भी उन के साथ 6 माह रहने वाले थे. इसलिए उन के घर फोन करने का कोई लाभ नहीं था. फिर भी सुमन ने दोचार बार फोन करने की कोशिश की.

दस्विदानिया

लेकिन किसी ने भी फोन नहीं उठाया. सरयू की ससुराल का फोन नंबर उन के पास नहीं था तो सुमन क्या करती, लेकिन उस की बातचीत में सुवर्णा का जिक्र जरूर आता. आखिर विकास और सुदीप बोले, ‘‘लगता है गाड़ी में मिली तुम्हारी सहेली आखिर तुम्हें भूल ही गई.’’ सुमन को भी अब ऐसा आभास होने लगा था. कुछ दिनों बाद सरयू के खत या फोन आने की प्रतीक्षा करना छोड़ कर सुमन अब रोजाना के अपने कामों में व्यस्त हो गई. उस दिन लेटरबाक्स में एक खत देख कर वह खुश हो गई.

शायद सरयू का खत होगा, लेकिन खत देखा तो वह सुभी का था. सुभी यानी सुभाषिनी, उस की बचपन की सहेली जिस ने उसे अपनी इकलौती बेटी की शादी में शामिल होने का बुलावा भेजा था. खत में लिखा था : ‘मैं खुद आ कर तुम्हें आमंत्रित करना चाहती थी लेकिन लगता कि यह संभव नहीं हो पाएगा. 8 जनवरी को शादी तय हो चुकी है. तुम्हें पूरे परिवार के साथ यहां आना है. और यहां तुम्हें 4-6 रोज रहना है. यह सोचसमझ कर तुम्हें आना होगा. रिजर्वेशन की टिकटें मैं यहीं से भेज रही हूं, इसलिए समय पर छुट्टी ले कर आना है, बाद में तुम्हारा कोई बहाना नहीं सुनूंगी.’ खत पढ़तेपढ़ते सुमन को ही हंसी आ गई.

देहमुक्ति

विकास ने खत पढ़ा तो कहने लगे, ‘‘यह आमंत्रण है या धमकी. नाम सुभाषिनी और खत में धमकियों की बरसात.’’ शादी में शरीक होना जरूरी था. इसलिए सुमन और विकास ने छुट्टी के लिए अर्जियां दे दीं और उन्हें छुट्टी मिल भी गई. वह समय पर पुणे पहुंच गई और शादी ठीक से हो गई. शादी के 2 दिन बाद सुभी के पास काफी समय था. सुमन से बातचीत करना और पुणे के दर्शनीय स्थलों का पर्यटन आदि उसे कराना था. सुमन के अनुरोध पर सब लोग दर्शनीय स्थल देखने गए तो सुमन को सरयू व सुवर्णा की फिर से याद आ गई, लेकिन वह किसी से कुछ नहीं बोली. उस दिन शाम को सुभी बोली, ‘‘सुमन, हमारी संस्था हर साल मकर संक्रांति के बाद एक दिन अवश्य बच्चों को तिलगुड़ खिलाने का आयोजन करती है. चूंकि इस बार हम शादी के कामों में व्यस्त रहे अत: बच्चों को कुछ खिला- पिला नहीं सके. वह अधूरा पड़ा कार्यक्रम हम कल पूरा करने वाले हैं. तुम घर में बैठीबैठी बोर होगी अत: मेरे साथ चल पड़ो.’’ ‘‘चलो, ऐसे काम में मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी,’’ अगले दिन सुमन समय पर तैयार हो गई. जातेजाते एक दुकान से आर्डर किए हुए तिलगुड़ के डब्बे गाड़ी में रखवा दिए और आगे बढ़ गई. ‘‘आयोजन कहां है?’’ सुमन ने पूछा.

हम हैं राही प्यार के

‘‘एक अनाथाश्रम में? अनाथ बच्चों को समाज के मिठास की कल्पना होनी चाहिए, इसलिए वरना उन के हिस्से में समाज की नफरत ही आती है.’’ ‘‘बहुत अच्छी बात है.’’ ‘‘हम यह आयोजन पिछले 4-5 साल से लगातार कर रहे हैं. खासतौर पर त्योहारों पर यानी दीवाली, गुढीपाडवा, संक्रांति आदि के मौके पर हम अनाथाश्रम में जाते हैं. इस से उन अनाथ बच्चों का दिल बदल जाता है.’’ वे अनाथाश्रम पहुंच चुकी थीं. सुमन और सुभाषिनी नीचे उतरीं. वहां की महिला कर्मचारी आगे आईं और सुभाषिनी ने अपने साथ लाए डब्बे उन्हें सौंप दिए. आश्रम की महिलाएं डब्बे उठा कर भीतर ले गईं. सुभी के महिला मंडल की बाकी महिलाएं भी वहां आई हुई थीं. वे सब कार्यक्रम के आयोजन को सफल बनाने में जुट गईं. सुमन एक कुरसी पर बैठ कर सब तरफ देखने लगी. आश्रम की महिला कर्मचारियों ने बच्चों को कतार में बिठाना शरू कर दिया. अलगअलग उम्र के मासूम बच्चे.

बिलकुल सामने 3 साल की उम्र के बच्चे और उन के पीछे उन से बड़ी उम्र के बच्चे कतार में बैठे थे. थोड़ी ही देर में कार्यक्रम शुरू हो गया. संस्था की महिलाएं एक के बाद एक आ कर अपनीअपनी बात कहती रहीं. उधर सुमन ने अपनी नजर सभी बच्चों पर डाली और मूक बच्ची पर उस की नजर मानो जम सी गई. अबतक तो यह बच्ची वहां नहीं थी फिर वहां कब आई. उस का चेहरा जानापहचाना क्यों लगता है. बच्ची के हाथ में एक गुडि़या थी और बच्ची भी लगातार उसी की ओर देख रही थी. सुमन ने धीमी आवाज में पड़ोस में बैठी आश्रम की एक महिला से पूछा, ‘‘वह आखिर में बैठी बच्ची कौन है?’’ उस महिला ने उस बच्ची को देखा और बोली, ‘‘वह है न, अभी यहां नईनई आई है, 3-4 महीने पहले.

वह किसी से बात नहीं करती. हमें लगा कि वह गूंगी है, लेकिन अब वह ‘क्या चाहिए, क्या नहीं’ इतनी ही बात करती है. वह दूसरे बच्चों से अलगथलग रहती है और कुछ बोलती भी नहीं.’’ ‘‘इतनी बड़ी बच्ची को यहां कौन छोड़ गया?’’ ‘‘यह भी एक कहानी है. उस के मातापिता एक सड़क दुर्घटना में चल बसे. अब वह बिलकुल अकेली है. आप इतनी दिलचस्पी से पूछ रही हैं इस बच्ची के बारे में, क्या बात है?’’ ‘‘हां, मेरा परिचित एक परिवार था, लेकिन वह चेन्नई का रहने वाला था,’’ सुमन ने बताया. ‘‘इस बच्ची की एक मजे की बात बताऊं. वह अभी बाहर आने के लिए तैयार न थी, लेकिन उस से कहा गया कि नागपुर की रहने वाली एक चाची आई हुई हैं तो बाहर आ कर पीछे बैठ गई. मैं भी देख रही हूं कि बच्ची आप की ओर टकटकी लगाए देख रही है.’’ ‘‘क्या उस बच्ची का नाम सुवर्णा है?’’ ‘‘हां.’’ सुमन यह जान कर भौचक्की रह गई. ‘‘इस के मातापिता तो दुर्घटना में चल बसे पर इस के नानानानी हैं.’’

तभी कार्यक्रम समाप्त हो गया और तिलगुड़ बांटने का काम शुरू हो गया. सुमन ने तिल की एक डली उठाई और सीधे सुवर्णा की ओर चल दी. सुवर्णा के पास पहुंचते ही उस ने आवाज दी, ‘‘सुवर्णा, पहचाना अपनी मौसी को. क्या भूल गई?’’ सुवर्णा ने अब सुमन को पहचान लिया था और वह दौड़ कर ‘सुमन मौसी’ कह कर उस की कमर से लिपट गई. सुमन ने उस मासूम को गले से लगा लिया और सुवर्णा जोरों से रोने लगी. यह देख कर आश्रम की संचालिका प्रेरणा ने सुमन को दफ्तर में आने का अनुरोध किया. सुवर्णा को गोद में उठा कर सुमन आगे बढ़ी तो सुभी भी उस के पीछे चलने लगी.

मूव औन माई फुट

प्रेरणा दीदी ने सब को बैठने के लिए कहा. इधरउधर की बातें न करते हुए वह सीधे मुद्दे की बात पर आ गई, ‘‘सुमन, आप सुवर्णा को जानती हैं, ऐसा मालूम होता है, और इस से भी बड़ी बात यह है कि आप को देख कर वह खुशी से खिल उठी है.’’ सुवर्णा से मुलाकात कैसे हुई और जानपहचान कैसे बढ़ी, यह बातें संक्षेप में बताने के बाद सुमन बोली, ‘‘इस के मातापिता दुर्घटना में चल बसे.

यह बात आप के यहां काम करने वाली एक महिला ने बताई, क्या यह सच है?’’ ‘‘हां, सिर्फ मातापिता ही नहीं, इस के नानानानी भी.’’ यह सुन कर सुमन को भारी आघात पहुंचा है. यह उस के चेहरे से साफ जाहिर हो रहा था. सुमन सरयू का खत न पा कर उस पर भूल जाने का आरोप लगा रही थी, इस पर उसे बहुत अफसोस हो रहा था. अब सुमन का ध्यान प्रेरणा की बातों पर गया. ‘‘पुणे से चेन्नई जाते समय एक टैक्सी दुर्घटनाग्रस्त हो गई. उस में सिर्फ यह बच्ची बच पाई. कुछ लोगों ने दुर्घटनाग्रस्त लोगों को अस्पताल पहुंचाया. तब तक रक्तस्राव ज्यादा होने से सब लोग मारे गए. उस में टैक्सी ड्राइवर भी शामिल था. डाक्टर की कोशिश से यह मासूम बच गई. उस दुर्घटना से बेचारी अनाथ हो गई. सुवर्णा को मानसिक रूप से काफी आघात लगा था, इसलिए वह हमेशा खामोश रहती थी, मानो मौन धारण कर लिया हो. अस्पताल से डिस्चार्ज होने पर उसे कहां रखा जाए, यह सवाल खड़ा हो गया था. पुलिस ने बड़े प्रयास के बाद इस के दादादादी का पता लगाया, लेकिन उन्होेंने इसे अपनाने से साफ इनकार कर दिया.

भोर की एक नई किरण

इसलिए पुलिस इसे सीधे यहां ले कर आई.’’ पे्ररणा के मुंह से यह सुन कर सुमन का दिल सन्न रह गया है, ‘‘और…’’ ‘‘और क्या?’’ ‘‘सुवर्णा गोद ली हुई थी अत: अब मांबाप के जाने पर इस दुनिया में इस का कोई नहीं, यह सोच कर इस को भारी सदमा पहुंचा है. ‘‘इस बच्ची को कैसे रिझाया जाए, उसे ठीक करना मेरे सामने एक टेढ़ा सवाल था. इसलिए अगर आप दोचार दिन यहां रह कर इसे मिलती रहें, तो इस की हालत में कुछ सुधार हो सकता है. इसलिए आप इतना उपकार हम पर जरूर कीजिए. वैसे अभी आप यहां रहने वाली हैं न?’’ प्रेरणा दीदी ने पूछा. ‘‘हां, दोचार दिन तो मैं हूं.’’ इतनी देर तक सुमन का हाथ अपने हाथ में पकड़ कर रखने वाली सुवर्णा अचानक बोल पड़ी, ‘‘तो मौसी तुम भी मुझे छोड़ कर चली जाओगी, मम्मीपापा गए, नानानानी भी गए, अब तुम भी जाओगी और मुझे भी भूल जाओगी,’’

कहतेकहते वह बेहोश हो गई और सुमन की जांघ पर आड़ी हो गई. प्रेरणा दीदी और सुभी ने झट से उठ कर सुवर्णा को गोद में उठा कर पड़ोस के सोफे पर लिटा दिया. प्रेरणा ने घंटी बजाई और कर्मचारी को आदेश दिया कि वह तुरंत डाक्टर ले आए. फिर सुमन और सुभी से उन्होंने कहा, ‘‘अब आप जा सकती हैं. कल आप जरूर आएं, तब तक मैं इसे मानसिक रूप से तैयार कर के रखूंगी. आज अचानक मौसी को देख कर इसे बहुत खुशी हुई थी, लेकिन विरह की कल्पना से इसे फिर गहरा आघात लगा है. इसलिए कल आप थोड़े समय के लिए यहां आएंगी तो यह बच्ची सदमे से उबर जाएगी.’’ सुभाषिनी और सुमन गाड़ी में बैठ कर निकल पड़ीं. थोड़ी देर वे खामोश रहीं. फिर सुभी बोली, ‘‘बड़ी प्यारी बिटिया है. तुम्हें देख कर तो वह बहुत खुश हो गई थी.’’ ‘‘हां.’’ ‘‘तुम्हारे जाने के बाद वह फिर मुरझा जाएगी यह सच है. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए.’’ सुमन काफी देर तक खामोश रही, फिर अचानक बोल पड़ी, ‘‘मेरे मन में एक बात आई है. अगर मैं सुवर्णा को अपने घर ले जाऊं तो?’’ ‘‘इरादा तो नेक है, लेकिन इस उम्र में क्या यह ठीक रहेगा?

डर : क्यों मंजू के मन में नफरत जाग गई

अगले कुछ सालों में सुदीप की शादी हो जाएगी. तुम भी अब 40-45 की हो गई हो.’’ ‘‘हां, लेकिन बच्ची बहुत होशियार और समझदार है.’’ ‘‘अगर तुम ऐसा सोचती हो तो अच्छी बात है. एक बच्ची का भला हो जाएगा, लेकिन यह सवाल अब तुम्हारा ही नहीं है. तुम्हें विकास और सुदीप की राय भी लेनी पडे़गी.’’ घर लौटने पर सुमन का चेहरा देख कर विकास बोला, ‘‘तुम्हारा चेहरा देख कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी अपने किसी प्रिय से मुलाकात हो गई है.’’ सुभी चौंक कर बोली, ‘‘आप को कैसे मालूम?’’ ‘‘मैं ने इस के साथ 25 साल गुजारे हैं तो इतनी बात तो मैं समझ सकता हूं.’’ ‘‘लेकिन असली सवाल तो आगे है.’’ ‘‘क्यों? क्या हुआ?’’ सुमन ने सुवर्णा से मिलने का सारा किस्सा बयान कर दिया और बोली, ‘‘वह अपनेआप को बहुत अकेली महसूस करती है, अत: इस हालत से उबरने में पता नहीं कितने दिन लग जाएंगे.’’

सुमन ने विकास की ओर देखा. विकास उस की भावनाओं को समझ रहा था. सवाल मुश्किल था. दूसरे दिन सुमन अनाथाश्रम जाने लगी तो विकास भी उन के साथ हो लिए. अपेक्षानुसार सुवर्णा दरवाजे पर खड़ी उन का इंतजार कर रही थी. गाड़ी में बैठी सुमन को देख कर वह दौड़ कर आई और विकास को देख कर बहुत खुश हो गई. दोनों के हाथों में हाथ डाल कर उन्हें आश्रम की संचालिका प्रेरणा दीदी के आफिस में ले गई. उन के आने की खबर मिलते ही प्रेरणा दीदी आईं. ‘‘आइए, बैठिए, सुवर्णा आप लोगों का ही इंतजार कर रही थी. सुबह से नहाधो कर वह दरवाजे पर ही बैठी है. उस ने खाना भी नहीं खाया. बोली, ‘अगर मौसी को मैं नहीं दिखाई दूंगी तो वह घबरा जाएंगी.’ ‘‘सुबह से 10 बार तो पूछ चुकी है कि क्या मौसी आएंगी? क्या मौसी मुझे भूल जाएंगी.’’ ‘‘शायद इस बच्ची को यही डर लग रहा था,’’ सुमन ने विकास की ओर देखा. विकास ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर धीरज बंधाया.

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फिर सुवर्णा को नजदीक बुला कर पूछा, ‘‘सुवर्णा, क्या तुम्हें यह मौसी अच्छी लगती है?’’ ‘‘हां.’’ ‘‘तो तुम इस मौसी के पास आ कर रहना चाहोगी?’’ ‘‘कितने दिन? 1-2-3…’’ सुवर्णा उंगलियां गिनने लगी. दोनों हाथों की उंगलियां खत्म होने पर बोली, ‘‘10 दिन.’’ ‘‘हां, 10 दिन, 10 साल या खूब बड़ी होने तक,’’ विकास उस मासूम बच्ची की ओर देखते हुए बोले. शायद सुवर्णा 10 साल समझ नहीं पाई. वह भ्रमित मुद्रा में बोली, ‘‘क्या मैं जब तक चाहूं रह सकती हूं?’’ ‘‘हां, तुम जब तक चाहो तब तक रह सकती हो,’’ विकास ने उसे आश्वस्त किया. उस की यह बात सुन कर प्रेरणा दीदी, सुमन और सुभाषिनी की आंखों से आंसू निकल पड़े और सुवर्णा… सुवर्णा विकास के गले में अपनी नन्ही बांहें डाल कर लिपट गई. द्य

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