राजीव सेन-चारु असोपा ने 4 साल बाद लिया तलाक, कहा- प्यार यू हीं बना रहेगा

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ से फेम हुई जोड़ी चारु असोपा और राजीव सेन का तलाक हो गया है 8 जून को दोनों की तलाक की आखिरी सुनवाई हुई. जिसके बाद दोनों का तलाक हो गया है. 4 साल की शादी को दोनों ने आखिर अब खत्म कर दी है. इस बात की जानकारी खुद राजीव सेन ने इंस्टाग्राम अकाउंट पर दी है. अपनी और चारु की फोटो इंस्टाग्राम पर एक साथ पोस्ट की और कैप्शन भी दिया. और बताया किवे जियाना के माता-पिता के तौर पर आगे भी साथ रहेंगे.

 

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आपको बता दें, कि चारू असोपा संग तलाक के बाद राजीव सेन ने इंस्टाग्राम पर स्टोरी पोस्ट की. उन्होंने चारू असोपा संग फोटो शेयर कर लिखा, “यहां कोई भी अलविदा नहीं. बस दो लोग जो एक-दूसरे के साथ नहीं रह पाए. प्यार यूं ही बना रहेगा. हम अपनी बेटी के मां-बाप बनकर जियेंगे.” बता दें कि चारू असोपा और राजीव सेन के तलाक की सुनवाई साल के शुरुआत से ही चल रही थी.

 

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राजीव सेन ने अपने और चारू असोपा के तलाक का अपडेट देते हुए कहा, “हमारा तलाक हो गया है.” जहां राजीव सेन ने मीडिया के सामने अपनी बात रखी. वहीं तलाक के बाद अभी तक चारू असोपा का कोई बयान सामने नहीं आया है. यहां तक कि उन्होंने सोशल मीडिया पर भी कोई पोस्ट शेयर नहीं की है. बता दें कि चारू असोपा और राजीव सेन की शादी में बीते कई वक्त से खटपट चल रही है. कई बार दोनों ने अपनी बेटी की वजह से साथ आने का भी फैसला किया था, लेकिन बात नहीं बन पाई. बीते साल चारू और राजीव ने एक-दूजे पर संगीन आरोप भी लगाए थे. राजीव ने बताया था कि चारू ने अपनी पहली शादी उनसे छुपाई. जबकी चारू का कहना था कि राजीव ने उनपर हाथ उठाया है

तलाक के बाद परेशान लोगों की दास्तान

भरतपुर, राजस्थान के रहने वाले ओमी पटवारी अपनी पटवारी की नौकरी के समय में ही जयपुर में रहने लगे थे. जब उन का एकलौता बेटा अजय शादी के लायक हुआ, तो उन के साले की पत्नी रतन देवी ने उन्हें सीकर में रहने वाले महावीर राम की बड़ी बेटी मोना दिखाई. महावीर राम रोज कमा कर खाने वाले गरीब आदमी थे, लेकिन उन की बेटी मोना उन्हें पसंद आ गई. ओमी पटवारी ने बगैर दहेज लिए ही उन की बेटी से शादी कर दी थी. मोना ने शादी के कुछ दिन बाद ही ससुराल में अपनी मनमानी शुरू कर दी. मोना और उस के पिता महावीर राम ने ओमी पटवारी और उन के परिवार के लोगों की इस भलमनसाहत को उन की कमजोरी समझ लिया.

महावीर राम ने भी ओमी पटवारी के सामने अपनी मनमानी शर्तें रखनी शुरू कर दीं. जब उन्होंने इन की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया, तो महावीर राम ने उन पर दहेज के लिए अपनी बेटी को परेशान करने का मामला पुलिस में दर्ज कराने की धमकी देना शुरू कर दिया.

महावीर राम की ये बातें जब उन के छोटे भाइयों और रिश्तेदारों ने सुनीं, तो उन्होंने उन्हें खूब समझाया कि ओमी पटवारी जैसे सज्जन रिश्तेदार के साथ ऐसा सुलूक न करें.

लेकिन महावीर राम ने उन की इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया. उन्होंने ओमी पटवारी से मुंहमांगा पैसा ले कर आपसी रजामंदी के आधार पर उन के बेटे से अपनी बेटी का तलाक करा दिया.

तलाक लेने के बाद महावीर राम अपने रिश्तेदारों और समाज में ऐसे बदनाम हुए कि न तो उन की उस तलाकशुदा बेटी का कहीं कोई रिश्ता हो पाया है और न ही उन के छोटे बेटे और बेटी का रिश्ता हो पाया, जबकि उन के तीनों छोटे भाइयों के सभी बच्चों की शादी हो चुकी है.

जब महावीर राम अपने तीनों छोटे भाइयों के बच्चों की शादी के बाद उन के बच्चों को मांबाप बनते हुए देखते हैं, तो अपनी बेटी मोना के तलाक की भूल पर दुखी होने लगते हैं. इस दुख से वे बीमार रहने लगे हैं.

वे अब सभी लोगों से यही कहने लगे हैं कि शादी के बाद बेटी को उस की ससुराल में दुख मिले या सुख, उसे ससुराल में ही रह कर अपनी शादीशुदा जिंदगी बितानी चाहिए.

तलाक लेने के बाद बेटी की जिंदगी बरबाद हो जाती है, फिर कहीं पर आसानी से उस की शादी नहीं हो पाती है. लोग उस पर तरहतरह के आरोप लगाने लगते हैं, जिस के चलते उस के छोटे भाईबहनों की भी शादी नहीं हो पाती है.

आगरा, उत्तर प्रदेश की 23 साला फिल्म हीरोइन जैसी भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाली शालिनी की शादी 2 साल पहले जयपुर के प्रताप नगर हाउसिंग बोर्ड में रहने वाले एक खातेपीते घर के बेटे प्रदीप से हुई थी.

शादी के कुछ दिन बाद ही आगरा से शालिनी के बौयफ्रैंड भी उस की ससुराल में उस से मिलने आने लगे थे. ससुराल के लोग जब उन के बारे में शालिनी से पूछते, तो वह उन के बारे में उन से यही कहती थी कि वे रिश्ते के भाई हैं.

शालिनी के इस जवाब को सुन कर ससुराल वालों को उन के आने पर कोई एतराज नहीं होता था, लेकिन एक दिन जब शालिनी की 20 साला ननद नेहा ने शालिनी के कमरे की खिड़कियों के परदे में से उसे अपने एक तथाकथित भाई के साथ बिस्तर पर नाजायज संबंध बनाते देखा, तो उस ने चुपके से यह सब अपनी मां प्रतिभा को भी दिखा दिया.

कई घंटों के बाद जब शालिनी का वह रिश्तेदार भाई वहां से गया, तो उस की सास प्रतिभा ने उसे खूब फटकारा. अपनी सास की इस फटकार पर शर्मिंदा होने के बजाय वह उन से बोली, ‘‘यह सब तो आजकल चलता रहता है. आप की बेटी भी तो अपने बौयफ्रैंड के साथ इस तरह की मौजमस्ती करती होगी?’’

अपनी बहू की इस बात को सुन कर सास प्रतिभा ने उस से कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा. शाम को जब प्रदीप घर आया, तो उन्होंने अपनी बहू की इन बातों को उसे बताया, तो उस ने शालिनी की खूब पिटाई की.

अपने पति से मार खाने के बाद शालिनी उसी दिन उन से नाराज हो कर अपने मायके आगरा चली गई. वहां जा कर शालिनी ने अपने मांबाप को बताया कि उस का पति उस से देह धंधा कराना चाहता है. इस बारे में जब वह अपने सासससुर से कहती है, तब वे लोग भी उसे अपने बेटे की बात मानने को कहते हैं.

अपनी बेटी के इस आरोप को सच मान कर शालिनी के मांबाप ने उस की ससुराल के लोगों को दहेज के लिए उन की बेटी को परेशान करने व उसे देह धंधा करवाने को मजबूर करने का आरोप लगा कर उन के खिलाफ केस करने की धमकी दी, तो उन्होंने उन्हें उन की बेटी की करनी के बारे में बताया. लेकिन वे लोग अपनी बेटी को गलत मानने को तैयार नहीं हुए. तब प्रदीप ने उन्हें मुंहमांगा पैसा दे कर शालिनी से तलाक लेने में ही अपनी भलाई समझी.

तलाक के बाद शालिनी अपने दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने लगी. वह उन के साथ होटलों में भी जाने लगी. एक बार जब वह पुलिस के छापे में पकड़ी गई, तब उस के घर वाले जान पाए थे कि उस की ससुराल वाले उस पर जो आरोप लगा रहे थे, वे सही थे, लेकिन उन्होंने उस समय उन्हें गलत समझ कर उन पर ही आरोप लगा कर उस का तलाक करा दिया.

जेल से लौटने के बाद शालिनी को उस के घर वालों ने भी अपने पास रखने से इनकार कर दिया. अब शालिनी अपने उन दोस्तों से भी परेशान हो चुकी है, क्योंकि वे उस के साथ मौजमस्ती तो करना चाहते हैं, मगर कोई उसे बीवी नहीं बनाना चाहता.

लड़कियों को शादी के बाद ससुराल वालों को मानसम्मान दे कर अपनी जिंदगी बितानी चाहिए. जराजरा सी बातों पर नाराज हो कर तलाक की कार्यवाही कर के अपने पति से अलग होने से उन की भी बदनामी होती है.

मसला: तलाक इतना मुश्किल क्यों है कि…

12 जून, 2019. मध्य प्रदेश के मंदसौर की बात है. इस रात जीवागंज इलाके का बाशिंदा चंद्रशेखर अपनी अलग रह रही बीवी मंजू के पास गया और उस के साथ मारपीट की.

पुलिस में की गई अपनी रिपोर्ट में मंजू ने बताया कि शौहर ने यह मारपीट तलाक चाहने के एवज में की थी. पुलिस ने चंद्रशेखर के खिलाफ मारपीट का मामला दर्ज कर उसे जेल भेज दिया.

* दूसरा मामला फरीदाबाद, हरियाणा का है. 12 जून, 2019 की ही रात को पुलिस को एक औरत झाडि़यों में घायल हालत में मिली थी.

पुलिस ने जब मामले की जांच की तो पता चला कि तृषा नाम की इस औरत पर जानलेवा हमला उस के ही शौहर एनआईटी 3 में रहने वाले राजन अदलखा ने किया था.

राजन ने पुलिस को बताया कि तृषा से उस का तलाक का मुकदमा अदालत में डेढ़ साल से चल रहा है. इस के लिए उसे बारबार अदालत के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं, जिसे ले कर उस के मन में रंजिश आ गई थी, इसलिए बहस हो जाने के बाद उस ने बीवी पर पत्थर व चाकू से हमला किया.

* तीसरा मामला हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले का है. 1 जून, 2019 को आरती शर्मा ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उस का शौहर आएदिन उसे तलाक के लिए मारतापीटता रहता था. उस ने तलाक देने से मना किया तो शौहर ने उस के मुंह में फिनाइल उड़ेल दी.

* चौथा मामला 17 जून, 2019 का है. बिहार के भागलपुर जिले के कसबे नवगछिया में स्वीटी जायसवाल के हाथ की नस उस के शौहर और ससुराल वालों ने इसलिए काट दी कि वह तलाकनामा पर दस्तखत नहीं कर रही थी.

इस बाबत पति व ससुराल वाले कई दिनों से उसे तंग कर रहे थे. पुलिस ने स्वीटी के पति सुमित जायसवाल और दूसरे आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

दूसरा पहलू

ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब ऐसी खबर नजरों के सामने से हो कर न गुजरती हो, जिस में शौहर ने बीवी पर तलाक के लिए या तो हमला किया, या फिर उस की हत्या ही कर दी हो.

विलाशक पहली नजर में यह शौहरों की बेरहमी ही मानी जाएगी, लेकिन ऐसे मामले और फसाद, जो तेजी से बढ़ रहे हैं, को एक दूसरी नजर से भी देखने की जरूरत है, जिन के चलते औरतों पर जिस्मानी और दिमागी जुल्म ढाए जाते हैं.

यह वजह है तलाक, जो आसानी से नहीं हो जाता. यहां बताए मामलों से 2 बातें उजागर होती हैं कि शौहर तलाक चाहते थे, लेकिन उन्हें अहसास था कि यह शादी की तरह आसान नहीं, जो 2-4 दिन में हो जाए. इस के लिए सालोंसाल अदालत के चक्कर काटने पड़ते हैं. इस कार्यवाही में पैसा भी खूब खर्च होता है, साथ ही साथ परेशानियां, बदनामी भी झेलनी पड़ती हैं और तलाक के मुकदमे के दौरान दूसरी शादी भी नहीं की जा सकती.

दूसरी अहम बात यह उजागर होती है कि तीनों ही मामलों में पिसी और पिटी बीवी ही है, लेकिन शौहरों को भी जेल की हवा खानी पड़ी है, जिन का तलाक का मकसद पूरा नहीं हुआ.

यह मकसद अगर आसानी से पूरा होने लगे, तो जाहिर है कि लाखों बीवियां जुल्मोसितम से बच जाएंगी और लाखों शौहर मुजरिम बनने से बच जाएंगे.

अगर शौहरों को नहीं, बल्कि बीवियों को भी यह गारंटी मिल जाए कि तलाक की अदालती और कानूनी कार्यवाही में दिक्कतें नहीं आएंगी और पेशियों पर पेशियां नहीं लगेंगी, तो विलाशक मियांबीवी बड़ी तादाद में अदालत का रुख करेंगे और तलाक के बाद आजादी और खुशहाली से जिंदगी गुजार सकेंगे.

लकीर का फकीर कानून

तलाक के बढ़ते मामलों पर हर कोई चिंता जताता रहता है. इन में नेता, समाजसेवी और धर्म के ठेकेदारों के साथसाथ मीडिया भी शामिल है. ये लोग नहीं चाहते कि तलाक आसानी से हो. इस के पीछे इन की दलीलें बेहद बासी और बेकार हैं कि यह 2 जिंदगियों का सवाल है. इन लोगों का ध्यान अपनी खुदगर्जी के चलते इस तरफ नहीं जाता कि तलाक न होने पर बीवी यानी औरत ज्यादा सताई जाती है, क्योंकि वह माली और सामाजिक तौर पर शौहर की मुहताज होती है.

औरत को इतना काबिल और मजबूत बनाने की बात कोई नहीं करता कि वह तलाक के बाद अपने पैरों पर खड़ी रह कर सिर उठा कर जी सके.

यह सोचने वाले भी कम ही हैं कि तलाक की कानूनी कार्यवाही इतनी मुश्किल नहीं होनी चाहिए कि लोग मारपीट, खुदकुशी और हिंसा पर उतारू हो आएं. तलाक के कानून चूंकि धर्म की बिना पर बनते और बिगड़ते हैं. इस से साफ होता है कि धर्म के दुकानदार नहीं चाहते कि तलाक फटाफट हो.

भोपाल के एक नामी वकील की मानें, तो अगर तलाक शादी की तरह 2-4 दिन में होने लगे, तो 50 फीसदी बीवी सस्ते राशन की दुकान की तरह अदालतों में लाइन लगाए नजर आएंगी.

बात गलत कहीं से नहीं है, क्योंकि अदालती लेटलतीफी और मुश्किल कानूनों के चलते मियांबीवी एक छत के नीचे घुटन भरी जिंदगी जी लेते हैं, लेकिन इंसाफ मांगने अदालत की चौखट पर नहीं जाते, क्योंकि उन्हें मालूम है कि वहां जब तक इंसाफ होगा, तब तक वे बूढ़े भी हो सकते हैं.

लाखों मामले देख यह न कहने की कोई वजह नहीं रह जाती कि तलाक में देरी की वजह से मियांबीवी एकदूसरे की जान के दुश्मन बन रहे हैं और कानून टस से मस होने को तैयार नहीं. कानून की धाराओं में बदलाव की पहल न तो संसद करती है और न ही अदालतें करती हैं, तो तय यह भी है कि हिंसा के ये मामले बढ़ते रहेंगे और आज नहीं तो कल कानून बनाने वाले और उन पर अमल करने वालों के माथे पर चिंता की लकीरें पड़ेंगी, लेकिन तब तक करोड़ों मियांबीवी या तो घुटघुट कर जीने को मजबूर होंगे और बीवियां यों ही पिटती रहेंगी.

यहां मंशा कतई शौहरों की वकालत करने की नहीं, बल्कि एक नजर उन वजहों पर भी डालने की है, जिन के चलते वे बीवी से मारपीट कर खुद जेल जा कर जिंदगी बरबाद करना पसंद करते हैं, लेकिन तलाक के लिए अदालत जाने से कतराते हैं, तो बारी कानून से जुड़े लोगों की है कि वे इन हादसों की तह में जा कर कोई हल निकालें, जिस में तलाकशुदा औरतों को भी कोई राहत हो.

नेताओं, मंत्रियों, वकीलों, पत्रकारों और जजों को अब सोचना यह चाहिए कि तलाक के कानून की कार्यवाही इतनी मुश्किल क्यों है कि उस का कहर भी ज्यादातर बीवियों पर टूट रहा है. इस संजीदा मसले पर इन लोगों की खामोशी औरतों के हक में ज्यादती नहीं तो और क्या है?

किस काम का हिंदू विवाह कानून

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में प्रवीण व नीलम का विवाह 1998 में हुआ जब नीलम 18 साल की थी. दोनों को एक बेटी भी हुई. फिर दोनों के बीच मतभेद खड़े हो गए और वे अलगअलग रहने लगे. तब 2009 में पति ने तलाक का मुकदमा पारिवारिक अदालत में डाला. होना तो यह चाहिए था कि पत्नी की जो भी वजहें रही हों, पति और पत्नी को जबरन ढोए जा रहे संबंधों से कानूनी मुक्ति दिला दी जानी चाहिए थी पर पारिवारिक अदालत ने ऐप्लिकेशन रद्द कर दी.

चूंकि साथ रहना संभव न था, इसलिए पति ने जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया. जिला अदालत ने 3 साल इंतजार करा कर 2012 में तलाक मंजूर करने से इनकार कर दिया. नीलम अब 32 साल की हो चुकी थी.

प्रवीण उच्च न्यायालय पहुंचा. उच्च न्यायालय ने मई, 2013 में तलाक नामंजूर कर दिया, जबकि मामला शुरू हुए 15 साल गुजर चुके थे. दोनों जवानी भूल चुके थे.

प्रवीण अब सुप्रीम कोर्ट आया. समझौता वार्त्ता के दौरान प्रवीण ने क्व10 लाख पत्नी को देने की पेशकश की और क्व3 लाख का फिक्स्ड डिपौजिट करने का प्रस्ताव रखा, पर यह करतेकराते सुप्रीम कोर्ट में 6 साल लग गए.

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इस दौरान दोनों पक्षों ने कई मुकदमे शुरू कर दिए. 2009 में गुजारेभत्ते के लिए क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के अंतर्गत जिला अदालत इटावा में एक मुकदमा दायर किया गया. 2009 में ही घरेलू हिंसा का एक और मुकदमा नीलम ने इटावा में दायर किया. एक दहेज के बारे में 2002 में केस दायर किया गया था. एक मामला इटावा में ही इंडियन पीनल कोड की धारा 406 में अमानत में खयानत यानी ब्रीच औफ ट्रस्ट पर दायर किया गया था.

यहां तक कि पति के खिलाफ डकैती तक का मामला दायर किया गया था कि वह 5 जनों के साथ घर लूटने आया था.

आंतरिक विवाद जो भी हों विवाह के मामले में इतनी मुकदमेबाजी आज आम हो गई है और इस में पिसती औरत ही है.

18 साल की लड़की, जिस की शादी 1998 में हुई हो, न जाने कितने सपने ले कर ससुराल आई होगी पर जो भी मतभेद हों, वे अगर हल नहीं होते तो अलग हो कर चाहे तलाकशुदा का तमगा लगाए घूमना पड़े पर 20 साल अदालतों के चक्कर तो नहीं लगाने पड़ने चाहिए.

लाखों की वकीलों की फीस के बदले क्व13 लाख मिले पर क्या ये काफी हैं? क्या यह जवानी की अल्हड़ता फिर आएगी जब बेटी खुद शादी के लायक हो रही है?

यह हिंदू विवाह कानून किस काम का जो औरतों को 20-30 साल इंतजार कराए और बिना तलाक के रखे? यह आतंक तीन तलाक से कम नहीं है, लेकिन हिंदू धर्माधीश इसे सिर पर पगड़ी और माथे पर तिलक मान कर चल रहे हैं.

औरतें उन के पैरों की जूतियां हैं, जो चरणामृत पीती हैं. विवाह तो धर्म के दुकानदारों के हिसाब से संस्कार है. कुंडलियां मिला कर होने वाला विवाह जिस में लड़की की रजामंदी नहीं ली जाती पहले सुधार मांगती है. मुसलिम औरतें कम से कम दासी नहीं हैं, यह निर्णय तो यही कहता है.

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सामाजिक दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन धार्मिक कथाएं किस तरह दिमाग खराब करती हैं और किस तरह औरतों के अत्याचारों के लिए जिम्मेदार हैं, यह रामायण और महाभारत से साफ है. हजारों औरतों को देशभर में अपने पाकसाफ होने के सुबूत में हाथपैर जलाने पड़ते हैं. पति अगर आरोप लगा दे कि पत्नी की किसी से आशनाई चल रही है तो राम और सीता के प्रसंग का लाभ उठा कर घरवाले ही नहीं, बल्कि पूरा समाज औरत को अग्नि परीक्षा सी देने को मजबूर करता है, जिस में स्वाभाविक है वह दोषी पाई जाती है और सदा के लिए बदनाम हो जाती है.

इसी तरह युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी को जुए में हारने की कहानी इतनी बार कही जाती है कि आम लोगों में इसे सही मान कर अपनी पत्नी को दांव पर लगाने का हक सा मिल गया है. रामसीता के प्रदेश उत्तर प्रदेश में जौनपुर में एक पति ने एक बार नहीं 2 बार अपनी पत्नी को जुए में दांव पर लगा दिया और हार गया.

जाफराबाद में पुलिस स्टेशन में जुलाई 2019 में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार एक नशेड़ी व जुआरी पति ने 2 दोस्तों के साथ जुआ खेलते हुए सबकुछ हार कर अपनी पत्नी को ही दांव पर लगा दिया. शायद उस के मन में बैठा होगा कि हारने पर कोई कृष्ण उस की पत्नी को भी बचा ही लेगा. अफसोस वह हार गया और दोनों दोस्तों ने उस की पत्नी का रेप किया, पति की इच्छा के हिसाब से.

नाराज पत्नी के पास घर छोड़ने के अलावा कोई चारा न था, क्योंकि पति ने तो धर्मनिष्ठ काम किया था, जो शायद स्वयं पत्नी की निगाह में अपराध न था. उस ने पहली बार न पुलिस में शिकायत की, न तलाक मांगा. वह घर छोड़ गई तो पति माफी मांगता पहुंचा. बेचारी हिंदू औरत उसे लौटना पड़ा, समाज का दबाव जो था. पति ने तो धर्म की मुहर लगा काम ही किया था न.

पति के सिर पर तो धर्म का भूत सवार था कि पत्नी उस की मिल्कीयत है, हाथ की घड़ी, पैरों के जूतों की तरह. उस ने उसे फिर धर्मराज युधिष्ठिर बन कर दांव पर लगा दिया. इस बार द्रौपदी नाराज हो गई. कोई कृष्ण नहीं आया बचाने के लिए तो पुलिस स्टेशन पहुंची.

अभियुक्तों को पकड़ लिया पर आगे होगा क्या? कुछ नहीं. औरत को झख मार कर लौटना पड़ेगा.

रामायण, महाभारत का नाम ले कर तो कहानियां रातदिन इतनी बार दोहराईर् जाती हैं कि औरतों को अपना पूरा जीवन सेवा और हुक्म मानने के लिए तैयार रहना पड़ता है. जब तलाक मांगो तब अदालतें भी नहीं देतीं. उन के दिमाग में भी बैठा है कि पति के बिना पत्नी कमजोर, असहाय है. इस सामाजिक दुर्दशा के लिए भाजपा सरकार तो कुछ न करेगी. औरतों को खुद ही आगे आना होगा पर वे आएंगी तो तब न जब उन्हें पूजापाठ, व्रतों, संतों की सेवा, तीर्थयात्राओं, जलाभिषेकों, मूर्तिपूजाओं से फुरसत मिले.

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बिजली मुफ्त औरतें मुक्त

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का 2 बत्ती, 1 टीवी, 1 पंखा, 1 फ्रिज, 1 कूलर, 1 कंप्यूटर के लायक 200 यूनिट तक की बिजली मुफ्त करने का फैसला चतुराईभरा है. 200 यूनिट तक का बिल अब माफ कर दिया गया है. शहर के

45 लाख उपभोक्ताओं को इस से लाभ होगा और बिजली का बिल भुगतान न होने के कारण बिजली इंस्पैक्टरों की धौंस का सामना नहीं करना पड़ेगा.

सरकारी आंकड़ों के हिसाब से वैसे भी 33% घरों में 200 यूनिट से कम बिजली खर्च होती है. अब तक लोग 200 यूनिट के क्व600-700 देते थे. इस से पहले खर्च क्व1,200 था जिस की खपत ज्यादा है, वे पक्की बात है कि अब कम बत्ती का इस्तेमाल कर के 200 यूनिट के नीचे रहना चाहेंगे. सब से बड़ी बात यह है जब बत्ती मुफ्त मिल रही है तो घर के सामने खुले तारों पर कांटा डाल कर बत्ती जलाने की आदत भी खत्म हो जाएगी.

इस पर खर्च क्व1,400 करोड़ तक आ सकता है पर 60,000 करोड़ के बजट में यह कोई खास नहीं. खासतौर पर तब जब सरकार को कम बिल भेजने पड़ेंगे. एक बिल छापने, भेजने, पैसा वसूल करने में ही 50 से 100 रुपए लग जाना मामूली बात है. बिजली दफ्तर जा कर बिल जमा कराने में शहरी गरीब जनता को न जाने कितना खर्च करना पड़ता है.

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जब सरकार जगहजगह वाईफाई फ्री कर ही रही है कि लोग मोबाइलों का इस्तेमाल कर के हर समय सरकार के फंदे में रहें तो गरीबों को यह छूट देना गलत नहीं है. गरीब औरतों के लिए यह वरदान है कि अब उन की बिजली कटेगी नहीं और वे न रातभर खुले में सोने को मजबूर होंगी और न उन के बच्चे रातभर पढ़ने से रह जाएंगे.

सरकारें बहुत पैसा वैसे भी जनहित के कामों के लिए खर्च करती हैं. हर शहर में पार्क बनते हैं पर पार्क में जाने के लिए पैसे नहीं लिए जाते. सड़कें, गलियां बनती हैं जिन पर चलने की फीस नहीं ली जाती. सस्ते सरकारी स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय हैं जहां बहुत कम पैसों में पढ़ाई होती है. बहुत अस्पतालों में तामझाम का पैसा न ले कर इलाज होता है.

जो लोग इसे टैक्सपेयर की जेब पर डाका मान रहे हैं यह भूल रहे हैं कि उन के अपने कर्मचारी अब ज्यादा सुरक्षित, सुखी और प्रोडक्टिव हो जाएंगे, क्योंकि वे अंधेरे के खौफ में न रहेंगे.

जनहित काम केवल कांवड़ यात्रा का नहीं होता, पटेल की मूर्ति का नहीं होता, मन की बात का जबरन प्रसारण नहीं होता, बिजलीपानी भी जरूरी है. साफ हवा की तरह गरीब औरतों के लिए थोड़ी सी बिजली मुफ्त हो तो एतराज नहीं. यह उन्हें कटने के खौफ से मुक्त रखेगा.

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