बच्चों की मासूमियत से खिलवाड़ करते परिजन

कम उम्र में बच्चे लाखों रुपए हासिल कर मातापिता की कमाई का जरिया बन रहे हैं. टीवी और विज्ञापनों की चकाचौंध अभिभावकों की लालसा को इस कदर बढ़ा रही है कि इस के लिए वे अपने बच्चों की मासूमियत और उन के बचपन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. घंटों मेकअप और कैमरे की बड़ीबड़ी गरम लाइट्स के बीच थकाऊ शूटिंग बच्चों को किस कदर त्रस्त करती होगी, इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. लेकिन, इन सब से बेखबर मातापिता अपने लाड़लों को इस दुनिया में धकेल रहे हैं. कुछ समय पहले कानपुर में भारी बरसात के बीच दोढाई हजार बच्चों के साथ उन के मातापिता 3 दिनों तक के चक्कर लगाते एक औडिटोरियम में आते रहे ताकि साबुन बनाने वाली कंपनी के विज्ञापन में उन बच्चे नजर आ जाएं. कंपनी को सिर्फ 5 बच्चे लेने थे. सभी बच्चे चौथी-पांचवीं के छात्र थे और ऐसा भी नहीं कि इन 4-5 दिनों के दौरान बच्चों के स्कूल बंद थे, या फिर बच्चों को मोटा मेहनताना मिलना था.

विज्ञापन में बच्चे का चेहरा नजर आ जाए, इस के लिए मांबाप इतने व्याकुल थे कि इन में से कई कामकाजी मातापिता ने 3 दिनों के लिए औफिस से छुट्टी ले रखी थी. वे ठीक उसी तरह काफीकुछ लुटाने को तैयार थे जैसे एक वक्त किसी स्कूल में दाखिला कराने के लिए मांबाप डोनेशन देने को तैयार रहते हैं.

30 लाख बच्चे कंपनियों में रजिस्टर्ड : महानगर और छोटे शहरों के मांबाप, जो अपने बच्चों को अत्याधुनिक स्कूलों में प्रवेश दिलाने के लिए हायतौबा करते हुए मुंहमांगा डोनेशन देने को तैयार रहते हैं अब वही अपने बच्चों का भविष्य स्कूलों की जगह विज्ञापन या मनोरंजन की दुनिया में रुपहले परदे पर चमक दिखाने से ले कर सड़क किनारे लगने वाले विज्ञापनबोर्ड पर अपने बच्चों को टांगने के लिए तैयार हैं.

आंकड़े बताते हैं कि हर नए उत्पाद के साथ औसतन देशभर में सौ बच्चे उस के विज्ञापन में लगते हैं. इस वक्त 2 सौ से ज्यादा कंपनियां विज्ञापनों के लिए देशभर में बच्चों को छांटने का काम इंटरनैट पर अपनी अलगअलग साइटों के जरिए कर रही हैं. इन 2 सौ कंपनियों ने 30 लाख बच्चों का पंजीकरण कर रखा है. वहीं, देश के अलगअलग हिस्सों में करीब 40 लाख से ज्यादा बच्चे टैलीविजन विज्ञापन से ले कर मनोरंजन की दुनिया में सीधी भागीदारी के लिए पढ़ाईलिखाई छोड़ कर भिड़े हुए हैं.

इन का बजट ढाई हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है. जबकि देश की सेना में देश का नागरिक शामिल हो, इस जज्बे को जगाने के लिए सरकार 10 करोड़ रुपए का विज्ञापन करने की सोच रही है. यानी, सेना में शामिल हों, यह बात भी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर मौडलिंग करने वाले युवा ही देश को बताएंगे.

सवाल सिर्फ पढ़ाई के बदले मौडलिंग करने की ललक का नहीं है, बल्कि जिस तरह शिक्षा को बाजार में बदला गया और निजी कालेजों में नएनए कोर्सों की पढ़ाई हो रही है, उस में छात्रों को न तो कोई भविष्य नजर आ रहा है और न ही शिक्षण संस्थान भी शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए कोई खास मशक्कत कर रहे हैं. वे अपनेअपने संस्थानों को खूबसूरत तसवीरों और विज्ञापनों के जरिए उन्हीं छात्रों के विज्ञापनों के जरिए चमका रहे हैं, जो पढ़ाई और परीक्षा छोड़ कर मौडलिंग कर रहे हैं.

मातापिता की महत्त्वाकांक्षा : चिंता की बात यह है कि बच्चों से ज्यादा उन के मातापिता के सिर पर चकाचौंध, लोकप्रियता व ग्लैमर का भूत सवार है. वे किसी भी तरह अपने बच्चों को इन माध्यमों का हिस्सा बनाना चाहते हैं. होड़ इतनी ज्यादा है कि सिर्फ कुछ सैकंडों के लिए विज्ञापनों में अपने लाड़लों का चेहरा दिख जाने के बदले में मातापिता कई घंटों तक बच्चों को खेलनेखाने से महरूम रख देते हैं. तो क्या बच्चों का भविष्य अब काम पाने और पहचान बना कर नौकरी करने में ही जा सिमटा है या फिर शिक्षा हासिल करना इस दौर में बेमानी हो चुका है या शिक्षा के तौरतरीके मौजूदा दौर के लिए फिट नहीं हैं?

मांबाप तो हर उस रास्ते पर बच्चों को ले जाने के लिए तैयार हैं जिस रास्ते पर पढ़ाईलिखाई माने नहीं रखती है. असल में यह सवाल इसलिए कहीं ज्यादा बड़ा है क्योंकि सिर्फ छोटेछोटे बच्चे नहीं, बल्कि 10वीं और 12वीं के बच्चे, जिन के लिए शिक्षा के मद्देनजर कैरियर का सब से अहम पड़ाव परीक्षा में अच्छे नंबर लाना होता है, वह भी विज्ञापन या मनोरंजन की दुनिया में कदम रखने का कोई मौका छोड़ने को तैयार नहीं होते.

डराने वाली बात यह है कि परीक्षा छोड़ी जा सकती है, लेकिन मौडलिंग नहीं. भोपाल में 12वीं के 8 छात्र परीक्षा छोड़ कंप्यूटर साइंस और बिजनैस मैनेजमैंट इंस्टिट्यूट की विज्ञापन फिल्म में 3 हफ्ते तक लगे रहे. यानी पढ़ाई के बदले पढ़ाई के संस्थान की गुणवत्ता बताने वाली विज्ञापन फिल्म के लिए परीक्षा छोड़ कर काम करने की ललक ज्यादा महत्त्व वाली हो चली है.

सही शिक्षा से दूर बच्चे : महज सपने नहीं, बल्कि स्कूली बच्चों के जीने के तरीके भी कैसे बदल रहे हैं, इस की झलक इस से भी मिल सकती है कि एक तरफ सीबीएसई की 10वीं व 12वीं की परीक्षाओं के लिए छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय सरकार से 3 करोड़ रुपए का बजट पास कराने के लिए जद्दोजेहद कर रहा है तो दूसरी तरफ स्कूली बच्चों की विज्ञापन फिल्म का हर बरस का बजट 2 सौ करोड़ रुपए से ज्यादा का हो चला है.

एक तरफ सरकार मौलिक अधिकार के तहत 14 बरस तक की उम्र के बच्चों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराने के मिशन में जुटी है, तो दूसरी तरफ 14 बरस तक की उम्र के बच्चों के जरिए टीवी, मनोरंजन और रुपहले परदे की दुनिया हर बरस एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा मुनाफा बना रही है. जबकि मुफ्त शिक्षा देने का सरकारी बजट इस मुनाफे का 10 फीसदी भी नहीं है. यानी वैसी पढ़ाई यों भी बेमतलब सी है, जो इंटरनैट या गूगल से मिलने वाली जानकारी से आगे जा नहीं पा रही है.

वहीं, जब गूगल हर सूचना उपलब्ध कराने का सब से बेहतरीन साधन बन चुका है और शिक्षा का मतलब भी सिर्फ सूचना के तौर पर जानकारी हासिल करना भर बन कर रह गया है तो फिर देश में पढ़ाई का मतलब अक्षर ज्ञान से आगे जाता कहां है. ऐसे में देश की नई पीढ़ी किधर जा रही है, यह सोचने के लिए इंटरनैट, गूगल या विज्ञापन की जरूरत नहीं है. बस, बच्चों के दिमाग को पढ़ लीजिए या उन के मातापिता के नजरिए को समझ लीजिए, जान जाइएगा.

उम्र 6 माह, कमाई 17 लाख : मुंबई की विज्ञापन एजेंसी द क्रिएटिव ऐंड मोटिवेशनल कौर्नर के चीफ विजुअलाइजर अक्षय मोहिते के अनुसार, विज्ञापन मातापिता के लिए तिजोरी भरने जैसा है. क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि 6 माह से ले कर डेढ़ साल तक के बच्चे, जो न तो बोल पाते हैं और न ही जिन्हें लाइट, साउंड, ऐक्शन का मतलब पता है, अपने मातापिता को लाखों कमा कर दे रहे हैं.

आजकल टीवी पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों में 65 फीसदी विज्ञापनों को शामिल किया जाता है. मोहिते बताते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डायपर बनाने वाली एक कंपनी ने महज 17 सैंकंड के विज्ञापन के लिए 6 माह के बच्चे को 17 लाख रुपए की फीस दी.

क्यों होती है ऐसी बेरहमी

लेखक-  डा. पुलकित शर्मा

हर किसी के मन में यह सोच घर कर चुकी है कि बच्चे अपने घरों में महफूज रहते हैं. चूंकि मांबाप उन के आदर्श होते हैं, इसलिए वे उन पर सब से ज्यादा यकीन करते हैं, पर यह भी कड़वी हकीकत है कि बहुत से मांबाप अपने बच्चों को निजी जायदाद समझ लेते हैं. वे मान लेते हैं कि बच्चा पैदा कर दिया है, तो वे किसी भी रूप में उस का इस्तेमाल कर सकते हैं.

हम कितनी ही खबरें सुनते हैं कि किसी मांबाप ने अपनी बेटी को किसी जानपहचान वाले या अजनबी को पैसों की खातिर बेच दिया. इतना ही नहीं, धर्म से जुड़े वाहियात अंधविश्वास के चलते बच्चों की बलि दे दी जाती है.

भारत के कुछ हिस्सों में तो जोगिनी या आदिवासी जैसी गलत प्रथाओं के नाम पर देवीदेवताओं को बच्चों को सौंप दिया जाता है. घर में बच्चों की पिटाई होना तो देश में जैसे एक आम बात हो गई है.

इस सिलसिले में मनोवैज्ञानिक डाक्टर पुलकित शर्मा ने बताया, ‘‘आजकल ऐसे केस बहुत आते हैं, जब मांबाप अपने बच्चों के बेवजह गुस्सा होने की बात कहते हैं. पर जब बच्चों से बात की जाती है, तो वे अकेले में अपने मांबाप पर भड़ास निकालते हैं.

ये भी पढ़ें- खेल: दिग्गज खिलाड़ी भी जूझते हैं तनाव से

‘‘वे बताते हैं कि किस तरह घर पर उन के साथ बहुत ज्यादा गलत बरताव होता है. वे पूरी खुंदक निकालते हैं, गालियां देने तक से भी नहीं चूकते हैं.

‘‘जहां तक किसी मां के बेरहम होने की बात है, तो बहुत बार वह पिता से ज्यादा गुस्सैल हो सकती है. ठाणे वाले केस में हीना शेख को अपने बच्चे या पति से कोई मतलब नहीं है. उसे किसी  भी कीमत पर अपनी जिंदगी सुख से भरी देखनी है.

‘‘पति से पैसों की डिमांड बढ़वाने के लिए उस ने बच्चे को पीटने का वीडियो तक बना डाला. इस से पता चलता है कि उसे अपने सुख से मतलब है.

‘‘इतना ही नहीं, लोगों में सहने की ताकत भी कम होती जा रही है. पहले मांबाप अपने बच्चों को मारते थे, तो उन में दया का भाव भी बहुत ज्यादा होता था. लेकिन अब नई पीढ़ी में यह दया भाव कम होता जा रहा है.

‘‘मां भी इस से अछूती नहीं है. बच्चे ने जरा सा कुछ गलत किया नहीं कि हाथ उठा दिया जाता है. फिर यह धीरेधीरे आदत बन जाती है.

‘‘इस का नतीजा बहुत बार भयंकर होता है. बच्चे ढीठ हो जाते हैं. वे अपने मांबाप से नफरत करने लगते हैं. कभीकभार तो जुर्म के रास्ते पर चल  देते हैं.

‘‘ऐसे हालात से बचने के लिए खुद पर काबू रखना बहुत जरूरी है. बच्चे  की गलती पर उन्हें समझाएं या जरूरत पड़ने पर डांट दें, पर उन पर हाथ उठाने से बचें.’’

दिल्ली यूनिवर्सिटी में हिंदी की लैक्चरर डाक्टर जया शर्मा ने इस मुद्दे की परतें खोलते हुए बताया, ‘‘इस समस्या के कई सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू हैं.

‘‘भौतिकवाद के बढ़ते पंजे ने लोगों को रुपएपैसे के लालच में इतना जकड़ लिया है कि पैसे के आगे सारे रिश्ते फीके लगने लगते हैं. फिर आप किसी के लिए इतना ज्यादा नफरत का भाव रखने लगते हैं कि मांबच्चे का रिश्ता भी तारतार होते देर नहीं लगती है.

‘‘कई बार घर में अपना दबदबा बनाने के लिए भी बच्चों के साथ मारपिटाई के किस्से होते रहते हैं. अगर औरत पढ़ीलिखी नहीं है तो उस में कमतर होने का भाव जाग जाता है. खूबसूरत न होना भी उस में कुंठा भर देती है.

‘‘अगर बच्चा पढ़ाई को ले कर ज्यादा जागरूक रहता है तो कई बार मां को वह बात भी सहन नहीं होती है. इस का नतीजा बच्चे की पिटाई होता है.

ये भी पढ़ें- बच्चों के साथ जोर जुल्म, मां भी कम जालिम नहीं!

‘‘जहां तक सौतेलेपन का बरताव है, तो इस समस्या को एक उदाहरण से समझते हैं. एक आईएएस अफसर की पहली पत्नी की बेटी को उन की वर्तमान पत्नी देखना तक पसंद नहीं करती है. वह लड़की अपनी नानी के घर रहती है. उस की नई मां अपने पति से भी उसे मिलने नहीं देती है.

‘‘नफरत का आलम यह है कि जब नई मां के बेटी हुई और उस का नामकरण था तो पति महोदय को यह सख्त हिदायत दे दी गई थी कि उस के नाम में इंगलिश का ‘एन’ अक्षर नहीं आना चाहिए, क्योंकि उस लड़की का नाम ‘एन’ से शुरू होता था.

‘‘यहां भी यह बात साबित होती है कि वह नई मां उस बच्ची को घर से इसलिए दूर रखना चाहती है, ताकि भविष्य में उस की पढ़ाईलिखाई, शादी के खर्चे वगैरह न उठाने पड़ें.’’

बाल विवाह आखिर क्यों?

आसपास की ढाणियों के बच्चे इकट्ठा हो कर सुबह स्कूल जाते थे और छुट्टी होने के बाद वापस अपनी अपनी ढाणी में आ जाते थे.

उस दिन रीना के घर मेहमान आए हुए थे. इस वजह से सुबह उस ने अपनी मां के काम में हाथ बंटाया, जिस से उसे कुछ देर हो गई. नतीजतन, आसपास की ढाणी के बच्चे स्कूल चले गए.

काम निबटा कर रीना भी तैयार हो कर स्कूल की तरफ दौड़ पड़ी. वह अभी स्कूल से तकरीबन एक किलोमीटर दूर थी कि पास की ढाणी का एक नौजवान विक्रम आता दिखा.

रीना स्कूल के लिए लेट हो गई थी. लिहाजा, वह भागती हुई जा रही थी. तभी विक्रम ने उसे पुकारा, ‘‘रीना, आज अकेले ही स्कूल जा रही हो. दूसरे बच्चे कहां हैं?’’

‘‘मैं लेट हो गई हूं. सब बच्चे पहले ही स्कूल चले गए हैं,’’ रीना ने हांफते हुए कहा.

यह सुन कर विक्रम के सिर पर शैतान सवार हो गया. उस ने इधरउधर निगाह डाली. दूर तक कोई नहीं दिख रहा था. चारों तरफ रेतीले टीले थे. बीच में आक, खेजड़ी, केर के पेड़ों के झुरमुट थे.

विक्रम ने रीना को आवाज दे कर रुकने का इशारा किया, ‘‘रीना, जरा रुकना. तुम अपने पापा को यह चिट्ठी दे देना,’’ वह अपनी जेब में हाथ डालते हुए उस के नजदीक आ गया.

रीना बोली, ‘‘जल्दी चिट्ठी दो. मैं स्कूल के लिए लेट हो रही हूं.’’

पास आ कर विक्रम ने उसे दबोच लिया. रीना डर के मारे थरथर कांप रही थी, फिर भी वह हिम्मत जुटा कर बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो… छोड़ो मुझे.’’

ये भी पढ़ें- बापू की 150वीं वर्षगांठ में खूब किए गए आयोजन, लेकिन क्या गांधी के सपनों का भारत बन पाया?

रीना ने छूटने की बहुत कोशिश की, मगर नाकाम रही.

रीना खूब रोईगिड़गिड़ाई, मगर उस दरिंदे ने रेप करने के बाद ही उसे छोड़ा.

विक्रम ने रीना को धमकी दी कि अगर किसी को बताया, तो वह उसे और उस के मांबाप को मार डालेगा.

13 साल की उम्र में रीना की इज्जत लूट ली गई. उस का दर्द के मारे बुरा हाल था. वह स्कूल जाने के बजाय घर लौट आई.

मां ने जब बेटी को वापस आते देखा तो पूछा, ‘‘क्या हुआ? तू स्कूल नहीं गई क्या? वापस कैसे आई?’’

रीना दर्द से कराहते हुए बोली, ‘‘मां, वह विक्रम है न ऊपर की ढाणी वाला. उस ने मेरे साथ खोटा काम किया है और धमकी दी है कि किसी को बताना नहीं. अगर बताया तो वह मुझे और मम्मीपापा को मार डालेगा.’’

यह सुन कर मां के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

उस समय रीना के पापा मेहमानों को गाड़ी में बिठाने बसस्टैंड गए हुए थे. जब वे लौटे और पत्नी से रीना के साथ हुए रेप के बारे में सुना तो वे सन्न रह गए. बाद में उन्होंने हिम्मत की और रीना के साथ थाने पहुंचे और रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने रीना की मैडिकल जांच कराई और दरिंदे विक्रम को धर दबोचा. विक्रम को उम्रकैद की सजा हुई.

रीना का कोई कुसूर नहीं था, मगर रेप होने के बाद वह बुझीबुझी सी घर में पड़ी रहती. उस ने स्कूल ही जाना छोड़ दिया. एक साल बाद रीना की शादी कर दी गई.

आज गांव, कसबे, शहर में मासूम बच्चियों से ले कर बूढ़ी औरतों तक से रेप की वारदातें बढ़ी हैं. इस से लोगों में दहशत बढ़ी है. जिन के घर बेटियां हैं, वे मांबाप हर समय अपनी बेटी के बारे में ही सोचते रहते हैं.

सोशल मीडिया ने अपने पैर हर घर तक पसार लिए हैं. हर रोज रेप की कोई न कोई वारदात की खबर आ ही जाती है, जिन्हें देखसुन कर गांवदेहात में लोग अपनी और अपनी बेटियों की इज्जत की खातिर उन का बाल विवाह करा कर छुटकारा पा लेना चाहते हैं.

ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब देश में रेप न होता हो. कुछ मामलों को छोड़ कर रेप की वारदातों को अंजाम देने वाले जानपहचान के, आसपड़ोस के या फिर रिश्तेदार ही होते हैं. ऐसे मे लाजिमी है कि हर शख्स को शक की निगाह से देखा जाने लगा है.

जैसलमेर, राजस्थान के गफूर भट्ठा इलाके में पिछले दिनों 2 नाबालिग बहनों की शादी चोरीछिपे की गई. बाल विवाह कराने वाले इन बेटियों के पिता अमराराम ने बताया, ‘‘हर रोज रेप हो रहे हैं. ऐसी खबरों से मेरी नींद हराम थी. मैं दिनभर यही सोचता रहता था कि कोई मेरी मासूम बेटियों के साथ रेप न कर दे.

‘‘बस, इसी वजह से मैं ने अपनी दोनों बेटियों का बाल विवाह कर दिया. अब मैं ने चैन की सांस ली है.

‘‘सरकार भले ही मुझे फांसी पर चढ़ा दे, पर मुझे अपनी और बेटियों की इज्जत का खयाल था, इसीलिए मैं ने 16 साल की कम्मो और साढ़े 14 साल की धापू का बाल विवाह करा दिया.’’

अमराराम की बीवी का कुछ यह कहना था, ‘‘बेटियां जब तक कुंआरी थीं, हर समय डर लगा रहता था कि उन के साथ कोई गलत काम न कर दे. हर रोज रेप हो रहे हैं. इस से बेटियों के मांबाप चिंतित रहते हैं. वे जल्द से जल्द बेटियों की शादी करा देना चाहते हैं, फिर चाहे बाल विवाह ही क्यों न कराना पड़े.’’

मोहनगढ़ के बीरबलराम इन दोनों की बात का समर्थन करते हुए कहता है, ‘‘मेरी 4 बेटियां हैं. मैं ने उन चारों की शादी 15 साल की होने से पहले ही करा दी. भले ही बाल विवाह हुआ, मगर मुझे अब चैन मिला है, वरना हर वक्त यही डर लगा रहता था कि कोई दरिंदा उन के साथ गलत काम न कर दे.’’

ये भी पढ़ें- चावल घोटाले की पकती खिचड़ी

बीरबलराम ने आगे बताया कि पहली बेटी के जन्म पर एक पंडितजी ने उस से कहा था, ‘बीरबलराम, बेटी को मासिक धर्म शुरू हो, उस से पहले ही ससुराल भेज देना. जिस घर में बेटी को मासिक धर्म आता है, वह घर पाप से भर जाता है.’

बीरबलराम की इस बात का समर्थन करते हुए चंदन सिंह भाटी कहता है, ‘‘15-16 साल की उम्र की कई किशोर लड़कियां अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गईं. ‘‘यह साबित करता है कि लड़कियां 16 साल की उम्र में ही जवान हो जाती हैं. उन का इस उम्र में रास्ता भटकना तय रहता है. मातापिता बेटी पर से निगाह हटाते हैं, तो बेटी के कदम बहक ही जाते हैं.’’

बेटी का बाल विवाह कराने वाले पोखरण के बाशिंदे रामलाल का कहना था कि बाल विवाह में खर्च बहुत ही कम आता है. वे इस की वजह बताते हैं कि नातेरिश्तेदारों के अलावा गांव के लोग थानाकचहरी के डर से शादी में शरीक नहीं होते कि कहीं बाल विवाह कराने वालों में उन का नाम भी नहीं आ जाए. बस, इस वजह से न दारू की महफिल सजती है और न ही मुरगे उड़ाए जाते हैं.

समाज में अपनी इज्जत बचाए रखने के लिए शादी करने वाले मातापिता साहूकार से कर्ज ले कर लोगों को शादी में दारू, अफीम व खाना खिलाते हैं, भले ही वह आदमी उम्रभर ब्याज पर लिए गए साहूकार के रुपए न भर पाए और हर रोज साहूकार से बेइज्जत होता रहे. इस खर्च से बचने के लिए ही लोग बाल विवाह करा रहे हैं.

कई समाज में तो पंडों ने यह अंधविश्वास भर रखा है कि बड़ेबुजुर्ग की मौत होने पर तेरहवीं के दिन भोज पर नन्हेमुन्नों की शादी करने से मरने वाले की आत्मा को शांति मिलती है, साथ ही बच्चों के मातापिता को पुण्य मिलता है.

ऐसा करने से पंडों को दोहरा मुनाफा मिलता है. मृत्युभोज पर उन्हें खूब सारा रुपया, घी, शक्कर, सोने के गहने व दूसरी चीजें दी जाती है, साथ ही मासूम बच्चों की शादियां कराने वाले मातापिता पंडित को खूब दानदक्षिणा देते हैं, क्योंकि उन के दिमाग में पंडों ने भर रखा है कि पंडित को दिया गया दान मृत आत्मा को मिलता है.

पंडों ने पहले अपढ़ लोगों को धर्म व पाप का डर दिखा कर खूब लूटा और अब उन्होंने पढ़ेलिखों को भी झांसे में ले लिया है.

आज के जमाने में भी लोग रूढि़वादी प्रथाओं को अपना कर ठग पंडों की जेबें भर रहे हैं. किसी बच्ची के साथ रेप होता है तो ठग पंडे अनपढ़ लोगों से कहते हैं कि यह बच्ची और उस के मातापिता के पापों का फल है.

लोग पंडों से यह क्यों नहीं पूछते हैं कि 13 साल की बच्ची ने ऐसा कौन सा पाप किया है, जिस की सजा उसे रेप के रूप में मिली है?

पंडे गांव, कसबों, शहरों में गरीब अनपढ़ लोगों के बीच यह भरम फैला देते हैं कि बेटियों को जवान होने से पहले यानी 14-15 साल की उम्र में ब्याह देना चाहिए. छोटी उम्र में बेटी की शादी कराने से मांबाप को पुण्य मिलता है. पुण्य कमाने व बेटियों को रेप से बचाने के लिए लोग बाल विवाह करा रहे हैं. उन्हें किसी सजा का डर नहीं है.

बाल विवाह पर मामूली खर्च आता है, यह भी बाल विवाह को बढ़ावा मिलने की एक अहम वजह है.

राजस्थान में बालिग लड़केलड़की की शादी तकरीबन 4 लाख से 5 लाख रुपए में निबटती है, जबकि बाल विवाह पर 15,000 से 20,000 रुपए का खर्च आता है. लोग पैसे बचाने के चक्कर में बेटियों को बालिका वधू बनाने में देर नहीं लगाते हैं.

जीवराज चौधरी की 3 बेटियां थीं. पहली बेटी जब बालिग हुई तब उस की शादी कराई. शादी में खर्च आया महज 5 लाख रुपए.

गरीब जीवराज ने कर्ज ले कर बेटी की शादी कराई. शादी में मिठाइयां बनवाईं, दारू और मांस का इंतजाम किया. नशेड़ी लोगों को अफीम व डोडा पोस्त परोसा गया. कुछ समय तक तो लोगों ने तारीफ की, पर आज उसे कोई नहीं पूछ रहा है.

जीवराज के पिता की मौत पर उस ने 13वीं की कड़ाही पर दोनों छोटी बेटियों का बाल विवाह करा दिया. मृत्युभोज के खर्च में ही 2 शादियां निबट गईं.

जीवराज चौधरी कहता है, ‘‘हमारे यहां पीढि़यों से मृत्युभोज पर बाल विवाह होते रहे हैं. पंडित कहते हैं कि मृत्युभोज के मौके पर छोटी बेटियों, पोतियों, नातिनों के ब्याह से पुण्य मिलता है. इस वजह से मैं ने भी अपनी बेटियों की शादी करा दी. बड़ी बेटी का ब्याह बालिग होने पर किया था. आज तक मेरे सिर पर वह कर्ज है. न जाने कब उतरेगा.’’

जीवराज के पास थोड़ी सी खेती की जमीन है, 20 बकरियां हैं और 2 गाएं भी हैं. इसी से उस के परिवार का पेट पलता है. बारिश होती?है तो खेत में बाजरा, मतीरा, मूंग, तिल की फसल हो जाती है. अच्छी बारिश होने पर सालभर का अनाज और गायबकरियों के लिए चारा हो जाता है.

ये भी पढ़ें- भूखे बच्चों की मां के आंसू बताते हैं कि बिहार में बहार

गायबकरी का दूध बेच कर घर का सामान खरीदा जाता है व बकरा बिकने पर पैसे मिलते हैं. वह भी गरीब के घर में ही खप जाता है. ऐसे में लाखों रुपया, जो अपनी झूठी शान के लिए शादियों में खर्च कर दिया जाता है, वह कैसे चुकता होगा? हर महीने की पहली तारीख को कर्ज देने वाले आ धमकते हैं.

सरकार को कुछ ऐसा करना होगा कि लोग बाल विवाह न करें. मगर लोग तो यह कह रहे हैं कि जब हैवान एक साल की मासूम बच्ची से रेप कर सकते हैं, तो 15 साल की बच्ची को कहां छोड़ेंगे.

राजस्थान में पिछले 6 महीने से बलात्कार की आंधी आई है, यह चिंता की बात है. न जाने कब राज्य सरकार की नींद खुलेगी.

सरकारों को रेप के बढ़ते ग्राफ पर ध्यान दे कर आरोपियों को सख्त सजा दिलानी चाहिए. फास्ट ट्रैक कोर्ट में ऐसे केस की जल्द से जल्द सुनवाई करा कर बलात्कारियों को फांसी के फंदे तक पहुंचाना होगा.

लोग बेटियों को ले कर चिंतित न हों, सरकार को ऐसा माहौल तैयार करना होगा, वरना लोग बेटियों को या तो औरत की कोख में मार देंगे या फिर पैदा होते ही मार डालेंगे.

नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की पिछले साल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान का भीलवाड़ा बाल विवाह में अव्वल है. इस सर्वे में 20 साल  से

40 साल की औरतों से उन की शादी के समय की उम्र पूछी गई. किसी औरत ने 8 साल बताई, तो किसी औरत ने 10 साल.

सर्वे में 57.2 फीसदी औरतों ने स्वीकार किया कि उन का बाल विवाह हुआ है. भविष्य में यह आंकड़ा और भी बढ़ने वाला है.

सरकार ने बाल विवाह निषेध कानून बना कर सजा या जुर्माने का प्रावधान कर रखा है. कभीकभार बाल विवाह कराने वाले पुलिस की गिरफ्त में आ भी जाते हैं, मगर इस से इस बुराई पर पूरी तरह पाबंदी लगाने में सरकार नाकाम रही है.

वैसे, जिन के बाल विवाह हुए हैं, वे बालिग होने पर आपसी सहमति से इसे कोर्ट से निरस्त भी करा सकते हैं.

जोधपुर शहर में सारथी ट्रस्ट की मैनेजिंग डायरैक्टर और मनोचिकित्सक कृति भारती पिछले कई सालों से बाल विवाह निरस्त कराने और बाल विवाह रुकवाने का काम कर रही हैं.

उन्होंने बताया, ‘‘मैं राजस्थान में अब तक 39 बाल विवाह निरस्त करा चुकी हूं. बाल विवाह के 10-12 मामले निरस्त कराने बाकी हैं. आज तक 1,200 बाल विवाह होने से रुकवाए हैं.’’

कृति भारती ने आगे बताया कि मध्य प्रदेश में सिर्फ 2 बाल विवाह निरस्त हुए हैं, वे भी मध्य प्रदेश सरकार ने कराए हैं, किसी संस्था ने नहीं कराए हैं.

कृति भारती ने कोर्ट के माध्यम से पहला बाल विवाह जोधपुर, राजस्थान में ही निरस्त कराया था. राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश के 2 बाल विवाह के अलावा किसी भी राज्य में एक भी बाल विवाह निरस्त नहीं हुआ है.

ये भी पढ़ें- 16 साल की इस लड़की ने दिया यूएन में भाषण, राष्ट्रपति

कृति भारती को तमाम तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. कई बार उन की जान तक लेने की कोशिश की गई है, मगर वे अपने संकल्प पर डटी हैं.

अगर कोई कृति भारती से बाल विवाह निरस्त कराने या बाल विवाह रुकवाने में मदद मांगता है, तो वे आधी रात को भी हमेशा मदद करने को तैयार रहती हैं. लेकिन जब तक पंडों का अंधविश्वास लोगों के मन में अंदर तक बैठा रहेगा, तब तक सरकार भले ही बाल विवाह बंद कराने का दावा करे, ये नहीं रुकने वाले हैं.

जरीन खान क्यों हुई भावुक?

हाल ही में शार्ट फिल्म ‘उड़ने दो’ का ट्रेलर मुंबई में लौन्च किया गया. इस मौके पर अभिनेत्री जरीन खान अतिथि के तौर पर आई थीं. इस दौरान उन्होंने फिल्म निर्माता ऊषा काकड़े से एक सवाल पूछा और उन्होंने यह जानने  कि कोशिश की, जो युवा माएं हैं या जो पहली बार मां बनी हैं, वे अपने बच्चे को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में किस तरह समझाएं.

short movie

इस प्रश्न का उत्तर देते हुए फिल्म निर्माता ऊषा काकड़े ने बताया कि उन्होंने अब तक इसके 3 लाख बच्चों के साथ सेशन किए हैं और उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. जब यह चल रहा होता है तो बच्चों से संबंधित कई प्रकार के प्रश्न पूछते हैं कि माता-पिता के हाथों स्नान करना चाहिए या नहीं.

इस पर उत्तर देते हुए वह उन्हें बताती हैं बच्चों से कि उनके स्पर्श की भावभंगिमा से आपको समझ में आ जाता है और अब आपको तय करना चाहिए और यही बात वह अन्य के बारे में भी बताती है. उनका उत्तर सुनकर जरीन भावुक हो गईं.

दरअसल ‘उड़ने दो’ एक शार्ट फिल्म है जिसमें फिल्म अभिनेत्री रेवती ने मुख्य भूमिका निभाई है. गौरतलब है कि इस शार्ट फिल्म के माध्यम से बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श से अवगत कराना है ताकि अगर उनके साथ कहीं पर भी कोई गलत काम हो रहा है तो वह तुरंत इसकी जानकारी उनके माता-पिता को दे सकें या औनलाइन शिकायत के जरिए भी कर सकते हैं. इस मौके पर मनीष मल्होत्रा, लारा दत्ता, पंकजा मुंडे और अमृता फडणवीस भी उपस्थित थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें