विपक्ष की ऐतिहासिक एकता : सत्ता डरी हुई क्यो है

पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आह्वान पर राहुल गांधी, ममता बनर्जी, लालू यादव, शरद पवार और अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं की “विपक्षी एकता” को देखकर भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकार के माथे पर साफ-साफ पसीना देखा जा सकता है. लोक तंत्र में सत्ता के विरुद्ध विपक्ष का एक होना एक सामान्य बात है. अब लोकसभा चुनाव में ज्यादा समय नहीं है ऐसे में अगर विपक्ष एक हो रहा है तो यह भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी सरकार के लिए स्वाभाविक रूप से चिंता का विषय है. क्योंकि जब तक विपक्ष में एकता नहीं है भारतीय जनता पार्टी सत्ता में बनी रहेगी यह सच विपक्ष के सामने भी और सत्ता में बैठी भाजपा के नेताओं को भी पता है. यही कारण है कि जब पटना में विपक्ष के लगभग सारे राजनीतिक दलों में एक सुर में भारतीय जनता पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनाव में उखाड़ फेंकने का ऐलान किया तो भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता तिलमिला गए उनके बयानों से दिखाई देता है कि उन्हें अपनी कुर्सी हिलती हुई दिखाई दे रही है . दरअसल ,भारतीय जनता पार्टी और आज की केंद्र सरकार का एजेंडा जगजाहिर हो चुका है. बड़े-बड़े नेता यह ऐलान कर चुके हैं कि हम तो 50 सालों तक सत्ता पर काबिज रहेंगे, यह बोल कर के इन भाजपा के नेताओं और सत्ता में बैठे चेहरों ने बता दिया है कि उनकी आस्था लोकतंत्र में नहीं है और सत्ता उन्हें कितनी प्यारी है. और उनकी मंशा क्या है यही कारण है कि आज एक वर्ग द्वारा लोकतंत्र को खतरे में माना जा रहा है. क्योंकि सत्ता में बैठे हुए अगर यह कहने लगे कि हम तो उसी छोड़ेंगे ही नहीं इसका मतलब यह है कि असंवैधानिक तरीके से सत्ता पर काबिज रहने के लिए आप कुछ भी कर सकते हैं. यही कारण है कि विपक्ष आरोप लगा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियां कुछ इस तरह की है जिससे चंद लोगों को लाभ है अदानी और अंबानी इसके बड़े उदाहरण हमारे सामने हैं. अब हालात यह है कि विपक्षी दलों के एकजुट होने की कोशिश की आलोचना करते हुए पटना की बैठक को ‘स्वार्थ का गठबंधन’, ‘नाटक’ और ‘तस्वीर खिंचवाने का अवसर बताकर भारतीय जनता पार्टी के नेता अपना बचाव कर रहे हैं.

भाजपा की बैचेनी जगजाहिर

बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों की ओर से साल 2024 के लोकसभा चुनाव में साथ मिलकर लड़ने की घोषणा के तत्काल बाद दिल्ली मे पार्टी मुख्यालय केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी मोर्चा संभाला और कहा ” जो राजनीतिक दल कभी एक दूसरे को आंखों नहीं सुहाते थे, वे भारत को आर्थिक प्रगति से वंचित करने के संकल्प से एकत्रित हुए हैं.”
अपने चिर परिचित अंदाज में स्मृति ईरानी ने कहा, ‘कहा जाता है कि भेड़िये शिकार के लिए झुंड में आते हैं और यह राजनीतिक झुंड पटना में मिला. उनका ‘शिकार’ भारत का भविष्य है.’
महत्वपूर्ण बात या की पटना में विपक्षी एकता चल रही थी और केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह जम्मू मे थे उनसे भी नहीं रहा गया और बोल पड़े ” विपक्षी एकता लगभग असंभव है. उन्होंने कहा, ‘आज पटना में एक फोटो सेशन चल रहा है। सारे विपक्ष के नेता संदेश देना चाहते हैं कि हम भाजपा और मोदी को चुनौती देंगे मैं सारे विपक्ष के नेताओं को यह कहना चाहता हूं कि कितने भी हाथ मिला लो, आपकी एकता कभी संभव नहीं है और हो भी गई … कितने भी इकट्ठा हो जाइए और जनता के सामने आ जाइए…. 2024 में 300 से ज्यादा सीटों के साथ मोदी का प्रधानमंत्री बनना तय है.’
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा उड़ीसा कालाहांडी में थे, उन्होंने वहीं से कहा “आज जब सभी विपक्षी दल पटना में गलबहियां कर रहे हैं तो उन्हें आश्चर्य होता है कि कांग्रेस विरोध के साथ अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने वाले नेताओं की स्थिति क्या से क्या हो गई है. उन्होंने कहा, ‘यही लालू प्रसाद यादव पूरे 22 महीने जेल में रहे. कांग्रेस की इंदिरा … राहुल की दादी ने उन्हें जेल में डाला था. यही नीतीश कुमार पूरे 20 महीने जेल की सलाखों के पीछे रहे.”
सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर भी चुप नही बैठे उन्होने विपक्षी दलों की बैठक को एक ‘तमाशा’ करार दिया. अब आप स्वयं देखें और विवेचना करें कि राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जो एकता कर रहे हैं वह कितना देश हित में है और भारतीय जनता पार्टी पर जो सत्ता का मद चढ़ा हुआ है उससे देश को किस तरह हानि हो रही है

गरीब मजदूरों की पेंशन योजना

2019 में नरेंद्र मोदी ने बड़ी शानशौकत से प्रधानमंत्री श्रम योगी मान धन पेंशन योजना गरीब मजदूरों के लिए शुरू की थी कि गरीबों को भी पेंशन मिलेगी और उन का बुढ़ापा आराम से कटेगा. कहने को तो यह सरकारी योजना थी पर असल में सिर्फ ढोल सरकारी था, बाकी हर माह श्रमिकों को किस्तें भरने थीं.

इस का प्रीरियम के माह भरना होता है और जितना मजदूर देगा उतना सरकार भी जोड़ेगी. 60 साल की उम्र के बाद मरने तक 3000 रुपए मिलने का वादा किया है.

जैसा इस देश में ङ्क्षहदू धर्म के गुलावे पर होता है, प्रधानमंत्री के बुलावे पर 4 करोड़ लोगों ने इस पेंशन स्क्रीम में भाग भी ले लिया पर 6 महीने में एक चौथाई ने जो जमा किया था वह निकाल लिया और आगे भरना बंद कर दिया. सरकार की गरीब औरतों के लिए उज्जवला गैस योजना की तरह यह भी टायटाय फिस्स योजना है क्योंकि सरकार की नीयत ही साफ नहीं थी.

धर्म के घोड़े पर चढ़ कर आई और धर्म की गाड़ी में चल रही यह सरकार सोचती है कि जैसे मागेश्वर धाम या निर्मल बाबा के झूठे वादों पर लोगों का कल्याण हो जाएगा वैसे ही यह मंदिर, घाट, स्टेचू, कौरीडोर और इस तरह की डटपटांग वादों वाली योजनाओं से कल्याण करा देगी.

रामचरित मानस पढ़ लीजिए. उसे मानने पर भला सिर्फ ब्राह्मïणों का होता है. आम मजदूर, तेली, केवट, शूद्र, सवर्णों की औरतें सब तो मार ही खाती है. यही सरकार की नीतियों से होता है. फायदा सिर्फ सरकार में बैठे हर ब्राह्मïणनुमा अफसर और बाबूका होता है, आम आदमी तो टोकरे भर चढ़ावा चढ़ाने के बाद चुटकी भर प्रसाद पाता है.

यह पेंशन योजना भी ऐसी है और ऐसी सैंकड़ों योजनाएं भाजपा की केंद्र व राज्य सरकारों ने पिछले सालों में जगहजगह चालू की हैं जिन में लोगों ने उम्मीदों से पैसा लगाया पर मिला कुछ नहीं. शौचालय योजना की बात तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूल कर भी कभी दोहराते नहीं हैं पर गांधी परिवार को हर भाषण में कोसने से बाज नहीं आते. पिछले 70 सालों में देश में कुछ नहीं हुआ. जो हुआ इस तरह की पेंशन, उज्जवला, शौचालय योजनाओं से हुआ जिन में गरीबों के पहले लाइन में लग कर भाग लिया फिर उसी तरह भाग खड़े हुए जैसे संतोषी माता के दरबारों से निकल आए.

नतीजा यह है कि  देश में गरीबी बढ़ रही है. सरकार के पैसों पर चल रही इकोनोमिक एडवाइजरी काउंसिल ने ही कहा कि देश में गरीबी उस से कहीं ज्यादा है जितना की दावा किया जाता है. शमिका रौय और मुदित कपूर की एक रिपोर्ट को जो सरकार की पोल खोलती है सरकार ने 272 के बीचे छिपाने का फैसला लिया है.

देश में मंदिर बढ़ रहे हैं, अवारा गाएं बढ़ रही है पर आम मजदूर गरीब हो रहा है.

पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव नतीजे : भारतीय जनता पार्टी के ‘मिशन 24’ पर गाज

अब से कुछ साल पहले तक ऐसा माना जाता था कि पंचायत चुनाव गांव की सरहद तक सीमित रहते हैं, पर अब ऐसा नहीं है. आज की तारीख में हर बड़ा सियासी दल पूरी ताकत से इन चुनाव में अपना दमखम दिखाता है और अगर लोकसभा चुनाव नजदीक हों तो पंचायत चुनाव नतीजों की अहमियत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है.

इस बात को पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनाव से समझते हैं, जहां ममता बनर्जी को मिली बंपर जीत से पूरी तृणमूल कांग्रेस की बांछें खिली हुई हैं और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले बिखरे विपक्ष में थोड़ी उम्मीद जगी है कि केंद्र की ‘डबल इंजन’ सरकार की चूलें हिल सकती हैं, बशर्ते आपसी मतभेद भूल कर भारतीय जनता पार्टी के झूले में झूलते राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का डट कर सामना किया जाए.

पश्चिम बंगाल में 8 जुलाई, 2023 को एक चरण में ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद की कुल 73,887 सीटों के लिए चुनाव हुए. नतीजों में तृणमूल कांग्रेस सब पर भारी पड़ी. उस ने भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और वामपंथी दलों को रगड़ कर रख दिया.

ममता बनर्जी का जलवा बरकरार

कोई कुछ भी कहे, पर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को टक्कर देना फिलहाल बड़ा मुश्किल दिख रहा है. इस की सब से बड़ी वजह ममता बनर्जी के शासनकाल में पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए चलाई गई कल्‍याणकारी योजनाएं हैं, जिन का फायदा आम लोगों तक पहुंच रहा है.

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, गांवदेहात के इलाकों में ‘लक्ष्मी भंडार’ जैसी महिला सशक्तीकरण योजना ने महिला वोटरों को पार्टी से बांधे रखने में अहम रोल निभाया है. इस योजना के तहत सरकार सामान्य श्रेणी के परिवारों को 500 रुपए हर महीने और एससीएसटी श्रेणी के परिवारों को 1,000 रुपए हर महीने देती है.

इस के अलावा राज्य के लोगों को ममता बनर्जी के जुझारू तेवर पसंद आते हैं. वे सादगी से भरी जिंदगी जीती हैं और जनता की नब्ज पकड़ने में माहिर हैं. उन्होंने ‘मां, माटी, मानुष’ का जबरदस्त नारा द‍िया था और इसी के दम पर पश्चिम बंगाल में साल 2011 का विधानसभा चुनाव जीता था.

शिक्षकों की भरती और मवेशी व कोयला तस्करी रैकेट जैसे कई भ्रष्टाचार घोटालों के इलजाम लगने के बावजूद वोटरों ने तृणमूल कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा. याद रहे कि भ्रष्टाचार के इन मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा एक प्रमुख कैबिनेट मंत्री, विधायकों, युवा नेताओं और सरकार के करीबी बड़े सरकारी अफसरों की गिरफ्तारी हुई थी.

भाजपा के साथ हुआ ‘खेला’

भारतीय जनता पार्टी को पंचायत चुनाव में भले ही पहले से ज्यादा सीटें मिली हों, पर नतीजे मनमुताबिक नहीं रहे. वहां पर राज्य भाजपा में टूट होती भी दिखी. पंचायत चुनाव से ठीक पहले भाजपा को बड़ा झटका देते हुए पार्टी विधायक सुमन कांजीलाल सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे. अलीपुरद्वार निर्वाचन क्षेत्र की नुमाइंदगी करने वाले सुमन कांजीलाल को तृणमूल कांग्रेस पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कोलकाता में एक समारोह में टीएमसी का झंडा सौंपा था.

पिछले कुछ समय से उत्तर बंगाल में मजबूत होती जा रही भाजपा को इस पंचायत चुनाव में झटका लगा. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर बंगाल में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया था, जबकि इस बार के पंचायत चुनाव में उसे मनचाहे नतीजे नहीं मिले. कुछ जगहों पर अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद यह पार्टी उत्तर बंगाल में अच्छा रिजल्ट नहीं दे पाई.

साल 2019 के लोकसभा और साल 2021 के विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन को पैमाना मानें तो भारतीय जनता पार्टी को इस बार सीटों की तादाद में काफी बढ़ोतरी की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. पूर्व मेदिनीपुर, कूचबिहार, उत्तर 24 परगना के मतुआ बहुल इलाकों और पूर्व मेदिनीपुर में नंदीग्राम छोड़ कर हर जगह उस के प्रदर्शन में काफी गिरावट आई.

दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र की एकमात्र लोकसभा सीट पर भाजपा का लंबे समय से कब्जा रहा है, लेकिन इलाके में स्थानीय भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोरचा ने भाजपा की अगुआई वाले गठबंधन को काफी पीछे छोड़ दिया. भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोरचा के अध्यक्ष अनित थापा ने कहा, “यह जीत लोगों की जीत है. उन्होंने हमें काम करने का मौका दिया है और हम इसे पूरा करेंगे.”

भारतीय जनता पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाए थे और सोचा था कि जनता इसे मुद्दा बना कर भाजपा के हक में वोट डालेगी, पर यहां भी उस की दाल नहीं गली. प्रदेश में भारीभरकम 81 फीसदी के आसपास वोट पड़े, जो तृणमूल कांग्रेस की झोली भर गए.

भाजपा जानती है कि पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेश में सत्ता की चाबी गांवदेहात के वोटरों के हाथ में है और फिलहाल यह वोटर ममता बनर्जी के पक्ष में खड़ा है. यहीं से उस की चिंता बढ़नी शुरू हो जाती है, क्योंकि अब ममता बनर्जी और ज्यादा मजबूत हो गई हैं और देशभर में विपक्ष को एकसाथ करने में खासा रोल निभा सकती हैं. यह बात भाजपा के ‘मिशन 24’ के लिए खतरे की घंटी है.

भाजपा लगाएंगी सभी ट्रको में एयरकंडीशनर!

राहुल गांधी से भाजपा कितनी डरती है, यह उन की भारत और अमेरिका में ट्रकों में सफर के वीडियो रीलीज होने के बाद सरकार का ट्रक केबिन को एयरकंडीशंड करने के फैसले से साफ है. नीतिन गडकरी ने आदेश दिया है कि 2025 से सभी ट्रकों में ड्राइवर केबिन में एयरकंडिशनर लगाना जरूरी होगा.

यह लक्जरी नहीं है. ट्रक ड्राइवरों को वैसे गर्मी, बरसात और सर्दी सभी की अच्छी आदत होती है क्योंकि वे मूलत: किसानों के बेटे होते हैं जो हर मौसम में खुले में काम करते हैं. यह तो ट्रकों को एक्सीडेंटों से बचाने का तरीका है. ट्रक ड्राइवर आदतन गर्मी के कारण बदन का पसीना पोंछते रहते हैं और एक हाथ स्टेयङ्क्षरग पर रहता है चाहे स्पीड 80-90 किलोमीटर हो. यह एक्सीडेंट का समय होता है.

12-14 घंटे लगातार ड्राइङ्क्षवग में जो थकान होती है वह एयरकंडीशंड केबिन होने पर जरूर कम हो जाएगी. ट्रक आमतौर पर खुद शोर करते है और ऊपर से यदि खिडक़ी खुली हो तो उन का ध्यान दूसरे बाहर के शोर जाएगा ही एयरकंडीशंड केबिन थोड़े से एक्स्ट्रा दाम में जो बचत करेगा वह कहीं ज्यादा फायदेमंद होगी.

ट्रकों को सुविधाजनक न बनाने के पीछे बड़ी वजह है कि हमारे पौलिसी बनाने वाले उन्हें सूई समझ कर गुलाम का गुलाम समझते हैं. ट्रक इंडस्टी में भी यही लोग भरे हैं और ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री में भी.

ट्रकों में अगर एयरकंडीशंड केबिन की वजह से थोड़े से एक्सीडेंट भी कम होंगे तो आम ऊंची जातियों के लोगों को भी फायदा होगा क्योंकि जिन गाडिय़ों से एक्सीडेंट होते हैं वे तो ऊंची जातियों वाले चला रहे होते हैं या उन में ऊंची जातियों के लोग सवार होते हैं. उन्हें अगर गरीब ड्राइवरों की फिक्र न हो तो अपनी फिक्र के लिए तो वे यह सुविधा दें.

जिस दिन अखबार में ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर का यह आदेश छपा था उसी दिन दिल्ली के पास रात 4 बजे एक गाड़ी की सडक़ के बीच खड़ी एक शराब ट्रक से एक्सीडेंट से टक्कर में एक भद्र जन की मौत की खबर छपी है.

आज की तकनीकी ङ्क्षजदगी इस तरह ऊंचीनीची, अमीरगरीब से गुमशुम हो गई है कि सिर्फ इसीलिए कोई सुविधा गरीबों को देने से इंकार नहीं किया जा सकता. देश जो बिखराबिखरा रहता है, पुल टूटते रहते हैं, रेलों के एक्सीडेंट होते रहते हैं, बुलडोजर चला कर कच्चे कमान ढहाए जाते रहते है, बाढ़, तूफान में मरते रहते हैं तो चलिए कि हम साजिश के तौर पर अपने गरीबों को जीने का सलीका ही सिखाते, हमारे यहां उन्हें इस्तेमाल करने की संस्कृति है, इसी का ढोल बजाया जाता है.

ट्रक ड्राइवर अगर कष्ट भोगते हैं तो भोगें. यह उन के पिछले जन्मों के पापों का फल है जिसे वे इस जन्म में भोग रहे हैं. यह सोच ट्रक उत्पादकों और ट्रांसपोर्ट कंपनियों के मालिकों के मन से नहीं निकलती. मोदी जी ने राहुल गांधी के ट्रक सवारों से सबक तो सीखा पर यह फैसला है दिखावटी ही. होगा कुछ नहीं.

संसद में कर्मकांड और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी

देश के नए संसद भवन के उद्घाटन के दरमियान प्राचीन रीति-रिवाजों के नाम पर जिस तरह कर्मकांड दुनिया और हमने देखे हैं उससे यह संदेश गया है कि आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की वैज्ञानिक सोच से इतर आज का भारत यह है जो हवन और कर्मकांड में विश्वास रखता है . क्योंकि इसके बगैर न तो देश की तरक्की हो सकती है और न ही समाज की. संभवत नरेंद्र दामोदरदास मोदी को यह विश्वास और आस्था है कि पंडित पुरोहितो के सामने समर्पण करने से देश दुनिया का सरताज बन सकता है और तथाकथित रूप से विश्व गुरु भी.

यह सब देखने के बाद कहा जा सकता है कि आज देश उस चौराहे पर खड़ा है जहां से एक बार फिर पोंगा पंथ और पुरातन पंथी विचारधारा को  सरकार और  सबसे ज्यादा प्रधानमन्त्री का प्रश्रय मिला है.

दरअसल, यह देश में  हिंदुओं की तुष्टिकरण के कारण और बहुलता के कारण यह सब किया जा रहा है. जो सीधे-सीधे संविधान और अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो जाने वाले लाखों लोगों का अवमान है. यह बताता है कि लोकतंत्र में सत्ता के लिए वोटों की राजनीति का भयावह चित्र कैसा हो सकता है. हमारे देश के संविधान में स्पष्ट रूप से अंकित है कि लोकतांत्रिक गणराज्य है. मगर आज हिंदुत्व वाली सोच कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र दामोदरदास मोदी संविधान की भावना से हटकर के वह सब कर रहे हैं जो इसके पहले 75 वर्षों में कभी भी नहीं हुआ. और मजे‌ बात की लोग कह रहे हैं कि नए भारत का आगाज हो गया है. यह हास्यास्पद है की ऐसा महसूस कराया जा रहा है मानो बीते 75 साल हमारे देश के लिए अंधकार के समान थे और नरेंद्र मोदी की सत्ता आने के बाद देश सही अर्थों में आजाद हुआ है विकास की ओर बढ़ रहा है और दुनिया का नेतृत्व करेगा. मगर यह सब बातें मीडिया का हो हल्ला है. सच्चाई यह है कि देश जिस तरह अपनी संविधान की सीमाओं से हटकर के पीछे की ओर जा रहा है उससे देश की छवि दुनियां में पूरी तरह से बदल रही है जो भविष्य के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती.

नेहरू और नरेन्द्र मोदी

तथ्य यह  है कि प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष को सम्मान नहीं देते और उनके कार्य व्यवहार से महसूस होता है मानो विपक्ष को समाप्त कर देना चाहते हैं.  नरेंद्र मोदी बारंबार विपक्ष को नजरअंदाज कर और हंसी उड़ाते दिखाई देते हैं. अगर ऐसा नहीं है तो जब संसद के निर्माण का विचार नरेंद्र मोदी सरकार को आया तो उन्होंने विपक्ष से मिल बैठकर विचार विमर्श क्यों नहीं किया. जब उद्घाटन का समय आया तब उन्होंने विपक्ष के साथ विचार-विमर्श क्यों नहीं किया. देश सत्ता और विपक्ष के माध्यम से ही चलता है.  मगर नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सोच  है कि विपक्ष को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए. यही कारण है कि नई संसद के उद्घाटन के दरमियान कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार कर दिया. मगर उन्हें मनाने के लिए सकारात्मक   पहल नरेंद्र मोदी सरकार ने नहीं की. बल्कि  हुआ यह कि सरकार के चर्चित चेहरों द्वारा चाहे वह राजनाथ सिंह को या फिर स्मृति ईरानी द्वारा विपक्ष का मजाक बनाया गया और उन पर प्रश्नचिन्ह उठाए गए. इस संदर्भ में शरद पवार ने जो कहा है वह सौ फीसदी दी सच है.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार के मुताबिक,- “नए संसद भवन के बनाने से मैं खुश नहीं हूं. मैंने सुबह कार्यक्रम देखा है, अच्छा है मैं वहां नहीं गया. नई संसद मे जो कार्यक्रम हुआ उससे हम देश को पीछे ले जा रहे हैं.”

शरद पवार देश वरिष्ठ राजनेता है अगर उन्होंने उद्घाटन समारोह पर यह टिप्पणी की है तो यह देश की दुनिया की आवाज ही कही जा सकती है. उनके मुताबिक -“उद्घाटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  की विभिन्न रस्मों से यह प्रदर्शित हुआ  की देश को दशकों पीछे ले जाया जा रहा है , देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वैज्ञानिक सोच रखने वाले समाज की परिकल्पना की थी, लेकिन नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में जो कुछ हुआ वह इसके ठीक उलट है.”

सचमुच यह दुखद है और जिसका टेलीकास्ट दुनियाभर में हुआ है सारी दुनिया जानती है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां सभी जाति समुदाय के लोग प्रेम और सद्भाव के साथ रहते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के एक कार्यक्रम से मानो सब कुछ मिट्टी पलीद हो गया.

संसद भवन का उद्घाटन के दौरान वहां हवन किया गया तथा लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट राजदंड (सेंगोल) स्थापित किया गया. यह साला ढकोसला दुनिया ने देखा है और इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है. जिसका दूरगामी असर भारत की राजनीति पर भविष्य पर पड़ने वाला है.

दरअसल,प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा आधुनिक भारत की अवधारणा की बात करने और नई दिल्ली में नए संसद भवन में की गई विभिन्न रस्मों में बहुत बड़ा अंतर है. जो सिर्फ हिंदुत्व की स्थापना और हिंदू तुष्टीकरण के कारण किया गया है. यह पूरी तरह संविधान की भावना के विपरीत है. वस्तुत: यह लोग ऐसे हैं कि अगर आज हिंदुओं की जगह कोई दूसरा जाति समुदाय बहुसंख्यक हो जाए तो यह लोग उनके पैरों में भी लोटने लगेंगे.

नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर देश के सभी छोटे बड़े नेताओं बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे हैं ,ऐसे समय में शरद पवार का बयान अत्यंत महत्वपूर्ण है नए संसद भवन के उद्घाटन के संपूर्ण कार्यक्रम पर उनका यह कहना कि विज्ञान पर समझौता नहीं किया जा सकता. नेहरू ने वैज्ञानिक सोच वाले समाज का निर्माण करने की ओर निरंतर प्रयास किया. लेकिन आज नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में जो कुछ हुआ, वह उससे ठीक उलट है जिसकी नेहरू ने परिकल्पना की थी.

भाजपा, नरेंद्र मोदी और हनुमान..!

जनता पार्टी के स्थापना दिवस पर नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने मास्टर भाजपा को हनुमान सदृश्य बताया. भारतीय राजनीति में इन दिनों भाजपा जिस तरह हिंदुत्व को लेकर के पल पल ध्रुवीकरण में लगी हुई है वह सीधे-सीधे संविधान के विरुद्ध है नैतिकता के विरुद्ध है आने वाले भारत के लिए अनेक तरह के संकट लेकर आने वाला है. अगर नरेंद्र मोदी हनुमान जयंती पर भाजपा को राम से जोड़ देते हैं तो रामनवमी पर श्रीराम से इसी तरह हर एक हिंदुत्ववादी त्यौहार पर कुछ ऐसी बात करते हैं कि हिंदूवादी मतदाता भारतीय जनता पार्टी को गले लगा ले और आंख बंद करके उन्हें वोट देने लगे. यह एक जनतंत्र के लिए खतरनाक स्थिति है मगर सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठ कर के नेताओं को साथ में रखने का नाम भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का है.

हमारे देश की राजनीति का सौंदर्य यही है कि हमने दो दल की जगह अनेक दलों को तरजीह दी है मगर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आने के बाद बाकी सभी दलों को नेस्तनाबूद कर देना चाहती है. अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बात तो छोड़ दें भाजपा तो कांग्रेस को भी निगल जाना चाहती है.

दरअसल, हमारा देश लोकतांत्रिक है, इस सब के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद जिस तरह विपक्ष चाहे वह कांग्रेस हो या आप हो या समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी या अन्य छोटे बड़े राजनीतिक दल उन्हे नेस्तनाबूद करने की कोशिश की जा रही है, नेताओं को प्रताड़ित करने की चेष्टा जारी है उससे साफ संकेत मिलता है कि जैसा कि उद्धव ठाकरे ने कहा 2024 का लोकसभा चुनाव अगर नरेंद्र दामोदरदास मोदी के नेतृत्व में भाजपा अगरचे ऐन केन  जीत जाती है तो विपक्ष के लिए अंतिम चुनाव होगा. अगर हम देखते हैं तो कांग्रेस पार्टी की देश से सिमटते हुए अब कांग्रेस चुनिंदा राज्यों में ही राज कर रही है, ऐसे में छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के  संरक्षण में कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन पर भी  केंद्र सरकार ने ग्रहण लगाने की पुरजोर कोशिश की. यह चिंतन का विषय है कि भाजपा नेतृत्व को क्यों पीड़ा हो रही है. लोकतंत्र और देश ऐसे ही चलता आया है. यह भी सच है कि व्यवहार और हकीकत में अंतर होता  है . मगर जिस तरह अधिवेशन से पूर्व केंद्र की विधि यानी प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस के नेताओं पर गाज गिराई वह देश भर में चर्चा का विषय बन गया. जहां कांग्रेस रक्षात्मक है वही भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार आक्रमण होती जा रही है. इससे यह संकेत मिलता है कि कहीं न कहीं तो अधिवेशन से भय है. वस्तुत: भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी को यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर कांग्रेस भी आपके जैसा व्यवहार करती तो भारतीय जनता पार्टी क्या पैदा हो पाती…? क्या भाजपा आज जिस मुकाम पर पहुंची है कभी पहुंच सकती थी. लोकशाही और तानाशाही में अंतर भाजपा के बड़े नेताओं को मालूम होना चाहिए और  एक देशहित और स्वस्थ स्पर्धा के रूप में अपनी भूमिका को निभाना चाहिए.

भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व ऐसे ही कुछ मुद्दों पर देश की आवाम को बरगलाने का लगातार प्रयास कर रही है ठीक है देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं मगर आजादी के बाद देश को आगे बढ़ाने का जिम्मा जिन लोगों के हाथों में था उन्होंने यह निश्चय किया कि चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम या सिख ईसाई सभी इस देश के नागरिक हैं और सबका विकास समरसता के साथ देश में होना चाहिए .

मगर,आज देश में जो हो रहा है वह सारा देश देख रहा है. कांग्रेस जिसकी जड़ें बहुत मजबूत हैं उसे अगर नेस्तनाबूद करने की ख्वाहिश‌ अगर भाजपा पाल रही है तो यह तो मुंगेरीलाल के ख्वाब ही कहे जाएंगे, क्योंकि कांग्रेस एक राजनीतिक दल ही नहीं एक विचारधारा भी है, छत्तीसगढ़  में ईडी की कार्रवाई के बाद आवेश ने भी मोर्चा संभाल लिया और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा -छत्तीसगढ़ में पार्टी के कई नेताओं के खिलाफ है प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई को लेकर प्रधानमंत्री पर सीधा निशाना साधा. उन्होंने कहा कि कठपुतली एजेंसियों का डर दिखाकर देश की आवाज को दबाया नहीं जा सकता.

 हिंदू देवी देवता और भाजपा

जब भी कोई हिंदू त्यौहार आता है भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी  देश की बहुसंख्यक वोटरों को लुभाने के लिए कुछ ना कुछ कर जाते हैं. इस दफा संयोग से 6 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी का स्थापना दिवस था उसके साथ ही हनुमान जी की जयंती भी ऐसे में आप (नरेंद्र मोदी) भला कहां मौन रहने वाले थे . हनुमान जयंती के बारे में जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान हनुमान और भाजपा के बीच समानताएं बताने लगे और कहा -” पार्टी निःस्वार्थ सेवा के आदर्शों में विश्वास करती है.” उन्होंने कहा -” आत्म संदेह को खत्म करने के बाद भगवान हनुमान की तरह ही भारत अपनी क्षमता का एहसास कर रहा है.” मोदी ने कहा- “अगर हम भगवान हनुमान का पूरा जीवन देखें तो उनमें ‘कर सकने वाला’ की प्रवृत्ति थी जिसकी वजह से उन्हें बड़ी सफलताएं हासिल हुईं.”दरअसल यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं है अगर  कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल भी यही करने लगेंगे तो देश रसातल को चला जाएगा

नरेंद्र दामोदरदास मोदी और आवाम की खुशियां

अब जब आम चुनाव में तकरीबन एक वर्ष बचा रह गया है प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की केंद्र की सरकार की अगर हम भारत के आम लोगों की खुशियों के तारतम्य में विवेचना करें तो पाते हैं कि आम आदमी का जीवन पहले से ज्यादा दुश्वार  हो गया है. उसके चेहरे की खुशियां विलुप्त होती जा रही हैं. नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद सर्वप्रथम संसद के चौबारे पर मस्तक झुका करके देश की संसद के प्रति आस्था व्यक्त की थी इसका मतलब यह था कि देश की आवाम की खुशियों के लिए वह सतत प्रयास करेंगे और इसलिए श्रद्धानवत हैं. मगर इन 9 वर्षों में देश की आवाम और खास तौर पर आम आदमी के चेहरे की खुशियां विलुप्त होती चली गई है. आग्रह है कि आप जहां कहीं भी रहते हों, आप चौराहे पर निकलिए लोगों से मिलिए लोगों को देखिए आपको इस बात की सच्चाई की तस्दीक हो जाएगी.

अगर हम आज संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट का अवलोकन करें तो पाते हैं कि 2023 की रिपोर्ट में भारत देश दुनिया के देशों में 125 में नंबर पर है जो यह बताता है कि देश का आम आदमी खुशियों से कितना  महरूम है. अगर देश का आम आदमी खुश नहीं है तो इसका मतलब यह है कि देश की सरकार अपने दायित्व को नहीं निभा पा रही है. अरबों खरबों  की अर्जित टेक्स और विकास की बड़ी बड़ी बातें करने के बाद अगर आम आदमी को खुशियां नहीं है तो फिर देश की केंद्र सरकार पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक हो जाता है.

 खुशियां ढूंढता आम आदमी   

दरअसल,  संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में फिनलैंड ने लगातार छठी बार दुनिया का सबसे खुशहाल देश का दर्जा हासिल कर लिया किया है. यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान नेटवर्क ने  जारी की है. व‌र्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में 137 देशों को आय, स्वास्थ्य और जीवन के प्रमुख निर्णय लेने की स्वतंत्रता की भावना सहित कई मानदंडों के आधार पर रैंक किया गया है. 137 देशों की लिस्ट में भारत को 125वें स्थान पर रखा गया है.

2022 में भारत की रैंक 136 लें नंबर पर थी. दूसरी तरफ भारत अभी भी अपने पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, चीन, बांग्लादेश आदि से नीचे है दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती तकलीफों और दिक्कतों के बीच भारत की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती देश को आजादी दिलाने वाले वीर शहीदों ने शायद यह कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि आजादी के बाद भी देश का आम आदमी एक स्वतंत्र मनुष्य के रूप में एक अच्छे जीवन से महरूम रहेगा. आम आदमी के लिए मुश्किलें बढ़ती चली जा रही हैं सत्ता में बैठे हुए लोग की सुविधाएं बढ़ती चली जा रही हैं यह जबले कहां जा रहा है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित अखबारों में सुर्खियां है कि विधानसभा में विधेयक पारित कर के पूर्व विधायकों की पेंशन को 35000 से बढ़ाकर के 58000 रूपए  लगभग कर दिया गया है. देश की चाहे कोई भी विधायिका और संसद हो आम लोगों के खुशियों को बढ़ाने का काम नहीं बल्कि बड़े लोगों की सुविधाओं के लिए अब काम करने लगी है यही कारण है कि आम आदमी का जीवन मुश्किल तो मुश्किल चुनौतियों से घिरा हुआ है जिसका अक्स वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में भी दिखाई दे रहा है.

 हजारों करोड़ों रुपए का घोटाला

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बीके शुक्ला के मुताबिक देश में आज आम आदमी आर्थिक स्थिति दयनीय हो चली है, देश के बड़े आदमी , उद्योगपति जिस तरह सत्ता के संरक्षण में हजारों करोड़ों रुपए का घोटाला कर रहे हैं उसका भुगतान ही आम आदमी कर रहा है.

दरअसल, वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स को तैयार करने में संयुक्त राष्ट छह प्रमुख कारकों का उपयोग करता है. इसमें  स्वस्थ जीवन की अनुमानित उम्र, सामाजिक सहयोग, स्वतंत्रता, विश्वास और उदारता शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि हैप्पीनेस इंडेक्स तैयार करने में औसत जीवन मूल्यांकन के लिए की फैक्टर माना गया है. इसमें फोविड-19 के तीन वर्ष (2020-2022) का औसत भी शामिल है. इस साल रिपोर्ट तैयार करने में इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि कोविड- 19 ने जन कल्याण को कैसे प्रभावित किया है. लोगों के बीच परोपकार बड़ा है या घटा है लोगों के बीच विश्वास, परोपकार और सामाजिक संबंधों को भी प्रमुख पैमानों के तौर पर इस्तेमाल किया गया है.

उल्लेखनीय है कि एक साल ज्यादा समय से जंग लड़ रहा यूक्रेन और गंभीर आर्थिक संकट में फंसा पाकिस्तान रिपोर्ट के मुताबिक भारत से ज्यादा खुशहाल हैं. गैलप लुंड पोल जैसे स्रोतों के आंकड़ों के आधार पर बनी रिपोर्ट में नॉर्डिक देशों को शीर्ष स्थानों में सूचीबद्ध किया गया है. रिपोर्ट में फिनलैंड को लगातार छठी बार दुनिया का सबसे खुशहाल देश माना गया है. कुल मिलाकर के देश की आवाम को और सरकारों को मिलजुल कर के सकारात्मक दिशा में काम करना चाहिए.

धर्म के अंधे दलित-पिछड़े भाजपा की जीत की गारंटी

रोहित

यह दोहा 14वीं ईसवी में उत्तर प्रदेश के काशी (बनारस) में जनमे संत रविदास का है. वही रविदास, जो अपने तमाम कथनों में धर्म की जगह कर्म पर विश्वास करते थे और पाखंड के खिलाफ थे. आज की भाषा में अगर उन्हें धार्मिक कट्टरवाद और पोंगापंथ के खिलाफ एक मिसाल माना जाए तो गलत नहीं होगा.

इस दोहे में भी रविदास साफ शब्दों में कहते हैं कि न मुझे मंदिर से कोई मतलब है, न मसजिद से, क्योंकि दोनों में ईश्वर का वास नहीं है.

रविदास निचली जाति से संबंध रखते थे और जूते सिलने का काम करते थे. उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी, जहां शोषण, अन्याय और गैरबराबरी पर आधारित समाज नहीं होगा, कोई दोयम दर्जे का नागरिक नहीं होगा और न ही वहां कोई छूतअछूत होगा. अपने इस समाज को उन्होंने बेगमपुरा नाम दिया, जहां कोई गम न हो.

समयसमय पर संत रविदास जैसे महापुरुष धर्म पर आधारित सत्ता और पाखंड को चुनौती देते रहे और उन से प्रेरणा लेने वाली दबीशोषित जनता इन पाखंडों के खिलाफ खड़ी होती रही.

जैसे अपनेअपने समय में बुद्ध, कबीर और रविदास ने ब्राह्मणवाद को चुनौती दी, ऐसे ही आधुनिक काल में अय्यंकाली, अंबेडकर और कांशीराम जैसों ने भेदभाव की सोच को इस तरह खारिज किया, जिस से दलितपिछड़ों की आवाज सुनी और बोली जाने लगी.

इतने सालों की कोशिशों और टकरावों के बाद एक ऐसा समय भी आया, जब भले ही दलितपिछड़ों की हालत में बड़ा बदलाव न आया हो, पर देश की राजनीति से ले कर सत्ता तक इन जातियों के प्रतिनिधि संसद, विधानसभा में तो पहुंचे ही, साथ ही सरकार बनाने में भी कामयाब रहे, लेकिन आज हालात वापस पलटते दिखाई दे रहे हैं.

आज रविदास के बेगमपुरा जाने वाले रास्ते में ब्राह्मणवाद की गहरी खाई खुद गई है और इस खाई को खोदने वाले जितने सवर्ण रहे हैं, उस से कई ज्यादा खुद दलितपिछड़े हो गए हैं.

सवर्णों की बेबाकी की चर्चा तो हमेशा की जाती है, लेकिन आज जरूरत इस बात की है कि दलितपिछड़ों की चुप्पी और भगवाधारियों पर मूक समर्थन की चर्चा की जाए, क्योंकि आज हालात ये हैं कि दलितपिछड़ों की राजनीति और उस के मुद्दे धार्मिक उन्माद के शोर में दब चुके हैं और इस की वजह भी वे खुद ही हैं.

5 राज्यों के चुनाव

10 मार्च, 2022 को 5 राज्यों के चुनावी नतीजे सामने आए. इन 5 राज्यों में से 4 राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भगवाधारी भारतीय जनता पार्टी ने अपनी मजबूत वापसी की, वहीं पंजाब में कुल 117 सीटों में से

92 सीटें जीत कर आम आदमी पार्टी ने राज्य के पहले दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया.

उत्तर प्रदेश में जहां एक तरफ भाजपा गठबंधन को 403 सीटों में से 273 सीटें, उत्तराखंड में 70 सीटों में से 47 सीटें, मणिपुर में 60 सीटों में से 32 सीटें और गोवा में 40 सीटों में से 20 सीटें मिलीं, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष इन चुनावों में पूरी तरह से धराशायी हो गया.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने अपने लैवल पर थोड़ीबहुत लड़ाई जरूर लड़ी, पर जिस तरह के कयास भारतीय जनता पार्टी को हराने के लगाए जा रहे थे, वे सब धूल में मिल गए.

उत्तर प्रदेश के अलावा भाजपा न सिर्फ दूसरे 3 राज्यों में सरकार बनाने में कामयाब रही, बल्कि उत्तर प्रदेश में तो उस का वोट फीसदी गिरने की जगह बढ़ गया और यह सब इसलिए मुमकिन हो पाया कि दलितपिछड़ों के एक बड़े तबके ने भाजपा को वोट दिए.

दलितपिछड़ा वोटर कहां

पहली बार ऐसा हुआ है कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा और उस का कोर वोटर इस अनुपात में किसी दूसरी पार्टी में शिफ्ट हुआ.

चुनाव में बुरी तरह हार का मुंह देखने के बाद बसपा मुखिया मायावती ने मीडिया के सामने कहा, ‘‘संतोष की बात यह है कि खासकर मेरी बिरादरी का वोट चट्टान की तरह मेरे साथ खड़ा रहा. मुसलिम समाज अगर दलित के साथ मिलता तो परिणाम चमत्कारिक होते.’’

यह तो वही बात हुई कि खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे. मायावती मुसलिमों और सपा पर हार का ठीकरा फोड़ने की जगह अगर इस बात को समझने पर जोर देतीं कि उन का कोर दलित वोटर भाजपा की तरफ कैसे खिसक गया तो शायद उन की जीरो होती राजनीति में यह आगे के लिए एक बेहतर कदम साबित होता. पर अपनी हार का सही विश्लेषण करने की जगह उन की टीकाटिप्पणी यही साबित कर रही है कि वे अभी तक यह नहीं समझ पाई हैं कि जिस तरह से बसपा और मायावती ने भाजपा जैसी हिंदूवादी पार्टी के साथ मेलजोल बढ़ाया है और जो अभी भी जारी है, उसी का  नतीजा है कि उस के अपने वोटरों ने भी भाजपा के धर्म के इर्दगिर्द जुड़े मुद्दों और पाखंडों से संबंध बना लिए हैं.

इसी का खमियाजा है कि बसपा को इस विधानसभा चुनाव में महज 12.8 फीसदी ही वोट मिले, जो पिछली बार के 22.9 फीसदी से 10 फीसदी कम हैं. जाहिर है कि ये वोट पूरी तरह से भाजपा के साथ गए. यह दिखाता है कि सवर्णपिछड़ा तबके के वोटों का जितना नुकसान सपा ने भाजपा का किया, उस से ज्यादा वोटों की भरपाई भाजपा ने बसपा के दलित वोटों को पाखंड के जाल में फंसा कर कर ली.

यह सब इसलिए हुआ कि जिस सियासी जमीन पर कभी कांशीराम ने दलित हितों के लिए बहुजन समाज पार्टी की बुनियाद रखी थी, मायावती ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा जैसी दलितों की वैचारिक दुश्मन संस्थाओं के साथ अपने रिश्तों को बढ़ा कर उस बुनियाद को खोखला करने का काम ही किया, जिस का सीधा नतीजा यह है कि वे दलित, जिन्हें सवर्णों के बनाए पाखंडों को चुनौती देनी थी, वे भी उन पाखंडों में रमते चले गए.

यहां तक कि भगवा भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए जहां बसपा को ताकत लगानी चाहिए थी, उसी बसपा ने 122 सीटों पर ऐसे उम्मीदवार खड़े किए, जिन का सीधा टकराव सपा के उम्मीदवारों से ही था. इन में से 91 मुसलिम बहुल और 15 यादव बहुल सीटें थीं. ये ऐसी सीटें थीं, जिन में सपा की जीत की ज्यादा उम्मीद थी, पर इन 122 सीटों में से 68 सीटें भाजपा गठबंधन ने जीतीं.

साफ है कि उत्तर प्रदेश में एक नया और बड़ा तबका भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में आया है. इसी तरह समाजवादी पार्टी को पिछड़ों के एक हिस्से ने भाजपा से अलग हो कर वोट जरूर दिया, पर यह इतना नहीं था कि भाजपा को चोट पहुंचा सके.

बसपा के वोट फीसद और सीटों के रुझान को देखें, तो यह पता चलता है कि भाजपा को पड़े और बढ़े वोट दलितों के ही बसपा से शिफ्ट हुए, जो आगे की राजनीति (लोकसभा चुनाव) में भाजपा के लिए वरदान और दलितपिछड़ों व अल्पसंख्यकों के लिए चिंता का सबब बनेंगे.

पोंगापंथ में फंसे दलितपिछड़े

5 राज्यों के चुनाव खासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव से सीधेसीधे समझ आता है कि दलितपिछड़ों का एक बड़ा तबका भाजपा और संघ के पोंगापंथ में फंस चुका है. वह खुद नहीं समझ पा रहा है कि जिस पार्टी का समर्थन कर रहा है, वह न सिर्फ उस की वैचारिक दुश्मन है, क्योंकि संघ और भाजपा ब्राह्मणवादी संस्कृति से प्रभावित रहे हैं, बल्कि जिस हिंदुत्व के लिए वह भाजपा को समर्थन दे रहा है, उस हिंदुत्व की बुनियाद ही दलितपिछड़ों के शोषण पर टिकी हुई है, जो आज नहीं तो कल सामने आने वाला ही है.

यह बहुत हद तक सामने आने भी लगा है, क्योंकि रामराज्य से खुद को जोड़ रहा दलित समाज सरकारी संपत्तियों के बिकने पर अपने आरक्षण की चढ़ती भेंट को नहीं देख पा रहा है. वह यह नहीं समझ पा रहा है कि मंदिर का मुद्दा उस के किसी काम का नहीं है, यह मुद्दा तो बस उसे पाखंड में शामिल करने को ले कर है, ताकि उस के दिमाग में यह बात फिट कर दी जाए कि सारी इच्छाएं, कष्ट सब मोहमाया है, इनसान तो मरने के लिए जन्म लेता है, आत्मा अजरअमर है, इस जन्म में पिछले जन्म का पापपुण्य भोगना पड़ता है, इसलिए जो भूख और तकलीफ है, वह सब पुराने जन्म के कर्मों का फल है, इसलिए ज्यादा इच्छाएं मत पालो, सरकार से सवाल मत पूछो. बस कर्म करो, फल की चिंता मत करो.

जाहिर है कि भाजपा दलितबहुजनों का इस्तेमाल बस अपने एजेंडे के लिए ही करेगी, बाकी इस के आगे अगर हाथ फैलाए तो रोहित वेमुला हत्याकांड, ऊना, सहारनपुर और हाथरस कांड के उदाहरण भी सब के सामने हैं. रविदास, कबीर, नानक, बुद्ध, अंबेडकर, कांशीराम क्या कह गए, यह भले ही दलितों को पता न चले, पर इन के मंदिर और मूर्तियां बना कर उन्हें ही भगवान बना दो, सब सही हो जाएगा.

भाजपा ने अपना पूरा चुनाव हिंदुत्व और कठोर राजकाज के मुद्दे पर लड़ा. ये दोनों मुद्दे ही किसी लोकतंत्र और संविधान के लिए घातक हैं. ऐसे में आने वाले समय में हिंदुत्व की गतिविधियां तेज होंगी, जो खुद दलितपिछड़े समाज के लिए घातक होंगी. आज दलितपिछड़े ऐसे रामराज्य का सपना देख रहे हैं, जिस में नुकसान उन्हीं का होना है.

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