2019 में नरेंद्र मोदी ने बड़ी शानशौकत से प्रधानमंत्री श्रम योगी मान धन पेंशन योजना गरीब मजदूरों के लिए शुरू की थी कि गरीबों को भी पेंशन मिलेगी और उन का बुढ़ापा आराम से कटेगा. कहने को तो यह सरकारी योजना थी पर असल में सिर्फ ढोल सरकारी था, बाकी हर माह श्रमिकों को किस्तें भरने थीं.
इस का प्रीरियम के माह भरना होता है और जितना मजदूर देगा उतना सरकार भी जोड़ेगी. 60 साल की उम्र के बाद मरने तक 3000 रुपए मिलने का वादा किया है.
जैसा इस देश में ङ्क्षहदू धर्म के गुलावे पर होता है, प्रधानमंत्री के बुलावे पर 4 करोड़ लोगों ने इस पेंशन स्क्रीम में भाग भी ले लिया पर 6 महीने में एक चौथाई ने जो जमा किया था वह निकाल लिया और आगे भरना बंद कर दिया. सरकार की गरीब औरतों के लिए उज्जवला गैस योजना की तरह यह भी टायटाय फिस्स योजना है क्योंकि सरकार की नीयत ही साफ नहीं थी.
धर्म के घोड़े पर चढ़ कर आई और धर्म की गाड़ी में चल रही यह सरकार सोचती है कि जैसे मागेश्वर धाम या निर्मल बाबा के झूठे वादों पर लोगों का कल्याण हो जाएगा वैसे ही यह मंदिर, घाट, स्टेचू, कौरीडोर और इस तरह की डटपटांग वादों वाली योजनाओं से कल्याण करा देगी.
रामचरित मानस पढ़ लीजिए. उसे मानने पर भला सिर्फ ब्राह्मïणों का होता है. आम मजदूर, तेली, केवट, शूद्र, सवर्णों की औरतें सब तो मार ही खाती है. यही सरकार की नीतियों से होता है. फायदा सिर्फ सरकार में बैठे हर ब्राह्मïणनुमा अफसर और बाबूका होता है, आम आदमी तो टोकरे भर चढ़ावा चढ़ाने के बाद चुटकी भर प्रसाद पाता है.