देश के नए संसद भवन के उद्घाटन के दरमियान प्राचीन रीति-रिवाजों के नाम पर जिस तरह कर्मकांड दुनिया और हमने देखे हैं उससे यह संदेश गया है कि आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की वैज्ञानिक सोच से इतर आज का भारत यह है जो हवन और कर्मकांड में विश्वास रखता है . क्योंकि इसके बगैर न तो देश की तरक्की हो सकती है और न ही समाज की. संभवत नरेंद्र दामोदरदास मोदी को यह विश्वास और आस्था है कि पंडित पुरोहितो के सामने समर्पण करने से देश दुनिया का सरताज बन सकता है और तथाकथित रूप से विश्व गुरु भी.

यह सब देखने के बाद कहा जा सकता है कि आज देश उस चौराहे पर खड़ा है जहां से एक बार फिर पोंगा पंथ और पुरातन पंथी विचारधारा को  सरकार और  सबसे ज्यादा प्रधानमन्त्री का प्रश्रय मिला है.

दरअसल, यह देश में  हिंदुओं की तुष्टिकरण के कारण और बहुलता के कारण यह सब किया जा रहा है. जो सीधे-सीधे संविधान और अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो जाने वाले लाखों लोगों का अवमान है. यह बताता है कि लोकतंत्र में सत्ता के लिए वोटों की राजनीति का भयावह चित्र कैसा हो सकता है. हमारे देश के संविधान में स्पष्ट रूप से अंकित है कि लोकतांत्रिक गणराज्य है. मगर आज हिंदुत्व वाली सोच कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र दामोदरदास मोदी संविधान की भावना से हटकर के वह सब कर रहे हैं जो इसके पहले 75 वर्षों में कभी भी नहीं हुआ. और मजे‌ बात की लोग कह रहे हैं कि नए भारत का आगाज हो गया है. यह हास्यास्पद है की ऐसा महसूस कराया जा रहा है मानो बीते 75 साल हमारे देश के लिए अंधकार के समान थे और नरेंद्र मोदी की सत्ता आने के बाद देश सही अर्थों में आजाद हुआ है विकास की ओर बढ़ रहा है और दुनिया का नेतृत्व करेगा. मगर यह सब बातें मीडिया का हो हल्ला है. सच्चाई यह है कि देश जिस तरह अपनी संविधान की सीमाओं से हटकर के पीछे की ओर जा रहा है उससे देश की छवि दुनियां में पूरी तरह से बदल रही है जो भविष्य के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती.

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