Hindi Story: नया खिलौना – जब खेल बना श्रुति का प्यार

Hindi Story: आज श्रुति की खुशी का ठिकाना न था. स्कूल से आते समय उस लड़के ने मुसकरा कर उसे फ्लाइंग किस जो दी थी. 16 साल की श्रुति के दिल की धड़कनें बेकाबू हो उठी थीं. वह पल ठहर सा गया था. वैसे उस लड़के के साथ श्रुति की नजरें काफी दिनों पहले ही चार हो चुकी थीं. आतेजाते वह उसे निहारा करता. श्रुति को भी ऊंचे और मजबूत कदकाठी का करीब 18 साल का वह लड़का पहली नजर में भा गया था. लड़का श्रुति के घर से कुछ दूर मेन रोड पर बाइक सर्विसिंग सैंटर में काम करता था.

श्रुति की एक सहेली उस लड़के को जानती थी. उसी सहेली ने बताया था कि जतिन नाम का एक लड़का अपने घर का इकलौता बेटा है और 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद कुछ घरेलू परेशानियों के कारण काम करने लग गया है.

घर में सब के होने के बावजूद श्रुति बारबार बरामदे में आ कर खड़ी हो जाती ताकि उस लड़के को एक नजर फिर से देख सके. श्रुति के दिल की यह हालत करीब 2 महीने से थी पर  आज इस प्रेम की गाड़ी को रफ्तार मिली जब उस लड़के ने उस से साफ तौर पर अपनी चाहत जाहिर की.

अब श्रुति का ध्यान पढ़ाई में जरा सा भी नहीं लग रहा था. उस की नजरों के आगे बारबार वही चेहरा घूम जाता. हाथ में मोबाइल थामे वह लगातार यही सोच रही थी कि उस लड़के का मोबाइल नंबर कैसे हासिल करे.

बहन की उलझन भाई ने तुरंत भांप ली. श्रुति को भी तो कोई राजदार चाहिए ही था. उस ने अपने मन की हर बात खुद से 2 साल छोटे भाई गुड्डू से कह दी. भाई ने भी अपना फर्ज अच्छी तरह निभाते हुए झट श्रुति का फोन नंबर एक कागज पर लिखा और उस लड़के के पास पहुंच गया.

‘यह क्या है?’ उस के सवाल पूछने पर गुड्डू ने बड़ी तेजी से जवाब दिया, ‘खुद समझ जाओ.’

कागज थमा कर वह घर चला आया और श्रुति मोबाइल हाथ में ले कर बड़ी बेचैनी से कौल का इंतजार करने लगी. मोबाइल की घंटी बजते ही वह दौड़ कर छत पर चली जाती ताकि अकेले में उस से बातें कर सके. मगर नंबर दिए हुए 3 घंटे बीत गए, पर उस लड़के की कोई कौल नहीं आई.

उदास सी श्रुति छत पर टहलती रही. उस की निगाहें लगातार उस लड़के पर टिकी थीं जो अपने काम में मशगूल था. थक कर वह किचन में मम्मी का हाथ बंटाने लगी कि मोबाइल पर छोटी सी रिंग हुई. श्रुति फोन के पास तक पहुंचती तब तक मोबाइल खामोश हो चुका था. गुस्से में  वह फोन पटकने ही वाली थी कि फिर उसी नंबर से कौल आई. पक्का वही होगा, सोचती हुई वह कूदती हुई छत पर पहुंच गई. अपनी बढ़ी धड़कनों पर काबू करते हुए हौले से ‘हैलो’ कहा तो उधर से ‘आई लव यू’ सुन कर उस का चेहरा एकदम से खिल उठा.

‘‘मैं भी आप को बहुत पसंद करती हूं. मुझे आप की हाइट बहुत अच्छी लगती है,’’ श्रुति ने चहक कर कहा.

‘‘बस हाइट और कुछ नहीं,’’ कह कर जतिन हंसने लगा. श्रुति शरमा गई फिर तुनक कर बोली, ‘‘फोन करने में इतनी देर क्यों लगाई?’’

‘‘अच्छा, इतना इंतजार था मेरी कौल का?’’ वह भी मजे ले कर बातें करने लगा.

श्रुति और जतिन देर तक बातें करते रहे. रात में श्रुति ने फिर से उसे कौल लगा दी. अब तो यह रोज की कहानी हो गई. श्रुति जब तक दिन में 10 बार उस से बातें नहीं कर लेती, उस का दिल नहीं भरता. एग्जाम आने वाले थे पर श्रुति का ध्यान पढ़ाई में कहां लग रहा था. वह तो खयालों की दुनिया में उड़ रही थी.

अकसर वह जतिन से मिलने जाती. जतिन श्रुति को चौकलेट्स और शृंगार का सामान ला कर देता तो वह फूली नहीं समाती. उस से बातें करते समय वह सबकुछ भूल जाती. ठीक उसी प्रकार जैसे बचपन में अपने खिलौने से खेलते हुए दुनिया भूल जाती थी.

उस लड़के का प्यार एक तरह से श्रुति के लिए खिलौने जैसा लुभावना था जिसे वह दुनिया से छिपा कर रखना चाहती थी. उसे डर था कि कहीं किसी को पता लग गया तो वह प्यार उस से छीन लिया जाएगा. पापा से वह खासतौर पर डरती थी. पापा ने एक बार गुस्से में उस का सब से पहला खिलौना तोड़ दिया था. तब से वह उन से खौफजदा रहने लगी थी. अपनी जिंदगी में जतिन की मौजूदगी की भनक तक नहीं लगने देना चाहती थी.

और फिर वही हुआ जिस का डर था. उस का 9वीं कक्षा का फाइनल रिजल्ट अच्छा नहीं आया. पापा ने रिजल्ट देखा तो बौखला गए. चिल्ला कर बोले, ‘‘बंद करो इस की पढ़ाईलिखाई. बहुत पढ़ लिया इस ने. अब शादी कर देंगे.’’

श्रुति सहम गई. कहीं यह खिलौना भी पापा छीन न लें. यह सोच कर रोने लगी. अब वह 10वीं कक्षा में आ गई थी. फाइनल एग्जाम में किसी भी तरह उसे अच्छे नंबर लाने थे. वह मन लगा कर पढ़ने लगी ताकि एग्जाम तक उस की परफौर्मैंस सुधर जाए. इधर जतिन भी दूसरी जौब करने लगा था. अब वह श्रुति को हर समय नजर नहीं आ सकता था. वह कभीकभार ही मिलने आ पाता. श्रुति भी उस से कम से कम बातें करती. एग्जाम में वह अच्छे नंबर ले कर पास हो गई. समय धीरेधीरे बीतता गया और अब श्रुति उस लड़के से बातचीत भी बंद कर चुकी थी. देखतेदेखते वह 12वीं की भी परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर गई. अच्छे अंकों से पास करने से उसे अच्छे कालेज में दाखिला भी मिल गया.

कालेज के पहले दिन वह बहुत अच्छे से तैयार हुई. कुछ दिनों पहले ही बालों में रिबौंडिंग भी करा चुकी थी. जींस और टीशर्ट के साथ डैनिम की जैकेट और खुले बालों में काफी स्मार्ट लग रही थी. उस ने खुद को मिरर में निहारा और इतराती हुई सहेली के साथ निकल पड़ी.

कालेज गेट के पास अचानक वह सामने से आते एक लड़के से टकरा गई. सौरी कहते हुए उस लड़के ने श्रुति के हाथ से गिरा हैंडबैग उसे थमाया और एकटक उसे निहारने लगा. श्रुति का दिल तेजी से धड़कने लगा. बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाला वह लड़का श्रुति को पहली नजर में भा गया था. वह दूर तक पलटपलट कर उस लड़के को देखती रही.

कालेज में पूरे दिन श्रुति की नजरें उसी लड़के को ढूंढ़ती रहीं. लंच में वह कैंटीन में दिखा तो श्रुति मुसकरा उठी. वह लड़का भी हैलो कहता हुआ उस के पास आ गया. दोनों ने देर तक बातें कीं और एकदूसरे का फोन नंबर भी ले लिया. घर जा कर भी उन के बीच बातें होती रहीं. कालेज के पहले दिन हुई दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई.

श्रुति के पास जब से आकाश नाम का यह नया खिलौना आया वह पुराना खिलौना यानी जतिन को भूल गई. अब कभी जतिन उसे फोन कर बात करने की कोशिश भी करता तो वह उसे इग्नोर कर देती, क्योंकि वह अपना सारा समय अब अपने बिलकुल नए और आकर्षक खिलौने यानी आकाश के साथ जो बिताना चाहती थी. Hindi Story

Best Hindi Kahani: हिम्मत – माधुरी का अनकहा राज

Best Hindi Kahani: काफी सोचने के बाद माधुरी ने अपने और अशोक के बारे में पति आकाश को सबकुछ बता देने का फैसला किया.

अशोक के रास्ते पर चलने से उसे बरबाद होने से कोई नहीं बचा सकता था. पति को सचाई बता देने से शायद वह उस की गलती माफ कर उसे स्वीकार कर सकता था.

माधुरी अपने मातापिता की एकलौती औलाद थी. उस के पिता एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे और किराए के मकान में रहते थे. उस की मां घरेलू थी.

माधुरी के पिता के पास कोई जायदाद नहीं थी. उन का एक ही सपना था कि उन की बेटी पढ़लिख कर बहुत बड़ी अफसर बने.

माधुरी भी अपने पिता का सपना पूरा करना चाहती थी. उस का सपना पूरा नहीं हुआ. जो कुछ भी हुआ, उस की कल्पना उस ने नहीं की थी.

स्कूल तक माधुरी ने खूब अच्छी तरह पढ़ाई की थी, मगर कालेज में जाते ही उस का मन पढ़ाई से हट गया था.

इस की वजह यह थी कि कालेज में जाते ही अशोक से उस की आंखें लड़ गईं. वह बड़ा ही हैंडसम और स्मार्ट लड़का था.

मौका देख कर एक दिन अशोक ने माधुरी को आई लव यू कह दिया, तो माधुरी भी अपनेआप को रोक न सकी. उस ने अपने दिल की बात कह दी, ‘‘मैं भी तुम्हें प्यार करती हूं.’’

इस के बाद वे दोनों बराबर अकेले में मिलनेजुलने लगे. 6 महीने बाद एक दिन अशोक माधुरी को अपने घर ले गया.

अशोक ने माधुरी को बताया था कि शहर में वह अकेले ही किराए के मकान में रहता है. उस का परिवार गांव में रहता है. उस के  पिता के पास धनदौलत की कोई कमी नहीं है. उस के पिता हर महीने उसे 20 हजार रुपए भेजते हैं.

माधुरी अशोक से बहुत प्रभावित थी. वह उस पर पूरा भरोसा भी करती थी, इसीलिए यह जानते हुए भी कि वह अकेला रहता है, वह उस के घर चली गई थी.

बंद कमरे में प्यारमुहब्बत की बातें करतेकरते अचानक अशोक ने माधुरी को अपनी बांहों में भर लिया.

माधुरी ने विरोध किया, तो अशोक ने उसे यह कह कर यकीन दिला दिया कि पढ़ाई पूरी होते ही वह उस से शादी कर लेगा.

फिर माधुरी ने अशोक का कोई विरोध नहीं किया और अपनेआप को उस के हवाले कर दिया, फिर तो यह सिलसिला चल निकला.

अशोक का वादा  झूठा था, इस का पता माधुरी को तब चला, जब वह पेट से हो गई.

माधुरी ने शादी करने के लिए अशोक से कहा, तो वह अपने वादे से मुकर गया. उसे बच्चा गिरवा लेने की सलाह दी.

माधुरी किसी भी हाल में बच्चा नहीं गिराना चाहती थी. वह तो अशोक से शादी कर के बच्चे को जन्म देना चाहती थी.

माधुरी ने धमकी भरे लहजे में अशोक से कहा, ‘‘तुम मु झ से शादी नहीं करोगे, तो मैं पुलिस की मदद लूंगी. पुलिस को बताऊं गी कि शादी का  झांसा दे कर तुम ने मेरी इज्जत से खिलवाड़ किया है.’’

‘‘अगर तुम ऐसा करोगी, तो मैं भी चुप नहीं रहूंगा. पुलिस को बताऊंगा कि तुम धंधेवाली हो. जिस्म बेच कर पैसा कमाना तुम्हारा पेशा है. मु झ से तुम ने 5 लाख रुपए मांगे थे. मैं ने रुपए देने से मना कर दिया, तो मु झे ब्लैकमेल करना चाहती हो.

‘‘मैं सबकुछ साबित भी कर दूंगा. तुम सुबूत देखना चाहती हो, तो देख लो,’’ कहने के बाद अशोक ने जेब से एक लिफाफा निकाला और माधुरी को दे दिया.

धड़कते दिल से माधुरी ने लिफाफा खोला, तो वह सन्न रह गई.

लिफाफे में 4 फोटो थे. पहले फोटो में वह अशोक के साथ हमबिस्तर थी और बाकी 3 फोटो में वह अलगअलग लड़कों के साथ थी. माधुरी हैरान हो कर फोटो देख रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अशोक उस के साथ ऐसा भी कर सकता है.

माधुरी को चुप देख कर अशोक ने ही कहा, ‘‘तुम यही सोच रही होगी कि फोटो में तुम मेरे अलावा दूसरे लड़कों के साथ कैसे हो, जबकि तुम मेरे सिवा कभी किसी मर्द के साथ सोई ही नहीं?

‘‘मैं जानता था कि दूसरी लड़कियों की तरह तुम भी आसानी से मेरी बात नहीं मानोगी, इसीलिए तुम्हें धंधेवाली साबित करना जरूरी था.

‘‘एक दिन मैं ने तुम्हारी चाय में बेहोशी की दवा मिला दी थी. तुम बेहोश हो गई, तो योजना के तहत बारीबारी से अपने 3 साथियों को सुलाया. उन के साथ फोटो खींचे और वीडियो फिल्म बनाई.

‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुन लो. फोटो और सीडी पाना चाहती हो, तो तुम्हें 3 लाख रुपए देने होंगे, नहीं तो तुम्हारे फोटो इंटरनैट पर डाल दूंगा. फिर तुम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाओगी.’’ माधुरी हैरान हो कर अशोक की बातें सुन रही थी.

अशोक बोले जा रहा था, ‘‘अगर तुम एकसाथ 3 लाख रुपए नहीं दे सकती, तो एक साल तक तुम्हें मेरे साथ धंधेवाली वाला काम करना होगा.

‘‘जिस मर्द को मैं तुम्हारे पास भेजा करूंगा, उसे तुम्हें खुश करना होगा. एक साल बाद फोटो और सीडी मैं तुम्हें लौटा दूंगा.’’

माधुरी सम झ गई कि वह अशोक के जाल में बुरी तरह फंस चुकी है. उस ने रोरो कर के उस से गुजारिश की कि वह उसे धंधेवाली बनने पर मजबूर न करे, मगर अशोक ने उस की एक न सुनी.

आखिरकार माधुरी ने सोचनेसम झने के लिए उस से एक हफ्ते का समय मांगा. 5 दिन बाद भी माधुरी को अशोक से छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं सू झा, तो उस ने खुदकुशी करने का फैसला कर लिया.

वह खुदकुशी करती, उस से पहले ही एक दिन अखबार में उस ने पढ़ा कि एक लड़की को ब्लैकमेल करने के आरोप में पुलिस ने अशोक को गिरफ्तार कर लिया है.

माधुरी ने राहत की सांस ली. अब वह पढ़ाई छोड़ कर जल्दी से शादी कर शहर से दूर चली जाना चाहती थी. इस के लिए एक दिन उस ने मां को बताया, ‘‘अब मेरा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है.’’

उस की मां सम झदार थी. अपने पति से बात की और उस के लिए लड़के की तलाश शुरू हो गई. जल्दी ही माधुरी के लिए अच्छा लड़का मिल गया. फिर उस की शादी आकाश से हो गई.

आकाश कोलकाता का रहने वाला था. वह एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर था. उस के मातापिता नहीं थे.

प्यार करने वाला पति पा कर माधुरी बहुत जल्दी अशोक को भूल गई. वैसे भी अशोक को 3 साल की सजा हुई थी. उस लड़की ने अदालत में अपना आरोप साबित कर दिया था.

माधुरी को यकीन था कि अशोक उस की जिंदगी में अब कभी नहीं आएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ.

3 साल बाद एक दिन अशोक ने उसे फोन किया और यह कह कर होटल में बुलाया कि अगर वह नहीं आएगी, तो उस के पति आकाश को उस की फोटो और सीडी दे देगा.

होटल के बंद कमरे में अशोक ने माधुरी के साथ कोई बदतमीजी तो नहीं की, लेकिन सीडी और फोटो लौटाने की 3 साल पहले वाली शर्त उसे याद दिला दी.

माधुरी रुपए देने में नाकाम थी. वह पति से रुपए मांगती, तो क्या कह कर मांगती.

माधुरी पति के साथ बेवफाई भी नहीं करना चाहती थी, इसलिए अंजाम की परवाह किए बिना उस ने अशोक को अपना फैसला सुना दिया, ‘‘न तो मैं तुम्हें रुपए दूंगी और न ही पति के साथ बेवफाई करूंगी. तुम्हें जो करना है कर लो.’’

अशोक जल्दबाजी में कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहता था, इसलिए उस ने माधुरी को फिर से सोचने के लिए 2 दिन का समय दिया.

होटल से घर आ कर माधुरी तब से यह लगातार सोचने लगी. अब उसे कौन सा रास्ता चुनना चाहिए. सबकुछ पति को बता देना चाहिए या अशोक की बात मान कर धंधेवाली बन जाना चाहिए? आखिर में माधुरी ने पति को सचाई बता देने का फैसला किया.

आकाश शाम 7 अजे घर आया, तो वह अपनेआप को रोक न सकी. वह आकाश से जा कर लिपट गई और रोने लगी.

आकाश ने बड़ी मुश्किल से उसे चुप कराया और पूछा, ‘‘क्या बात है? तुम जानती हो कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं, इसलिए तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकता.’’

माधुरी ने आकाश को अशोक के बारे में सब सचसच बता दिया. पति आकाश से माधुरी ने कुछ नहीं छिपाया.

आकाश बहुत सम झदार था. वह रिश्ते को तोड़ने में नहीं जोड़ने में यकीन रखता था. किसी को उस की गलती की सजा देन में नहीं, बल्कि माफ कर उसे सुधारने में यकीन करता था.

आकाश ने माधुरी को माफ कर दिया और उसे बांहों में भर कर कहा, ‘‘जो हुआ, उसे दुखद सपना समझ कर भूल जाओ. पुलिस में कई बड़े अफसरों से मेरी जानपहचान है. वे लोग अशोक का सही इंतजाम करेंगे. कोई जान नहीं पाएगा कि वह कहां चला गया. अब तुम किसी बात की चिंता मत करो.’’

माधुरी की आंखों से निकलती आंसुओं की गरम बूंदों ने आकाश के सीने को नम कर दिया. Best Hindi Kahani

Hindi Romantic Story: इश्क वाला लव – मिस रुशाली की तिरछी नजर का तीर

Hindi Romantic Story: जब से मिस रुशाली की प्यार भरी नजर मु झ पर पड़ी थी, तब से मानो मैं तो जी उठा था. हमारे दफ्तर के सारे मर्दों में मैं ही तो सिर्फ शादीशुदा था और उस पर एक बच्चे का बाप भी. ऐसे में मिस रुशाली पर मेरा जादू चलना किसी चमत्कार से कम न था. पर अब जब यह चमत्कार हो गया था, तब ऐसे में सभी को आहें भरते देख मैं खुद पर नाज कर बैठा था.

‘‘मैं ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उस विशाल पर मिस रुशाली फिदा होंगी. पता नहीं, उस हसीना को उस ढहते हुए बूढ़े बरगद के पेड़ में न जाने क्या नजर आया, जो उसे अपना दिल दे बैठी?’’ लंच करते वक्त रमेश आहें भरता हुआ सब से कह रहा था.

‘‘हां भाई, अब यह बेचारा दिल ही तो है. अब यह किसी गधे पर आ जाए, तो इस में उस कमसिन मासूम हसीना का क्या कुसूर?’’ राहुल के इस मजाक पर सभी खिलखिला कर हंस पड़े.

कैंटीन में घुसते वक्त जब मैं ने अपने साथियों की ये बातें सुनीं, तो मैं मन ही मन इतरा उठा और अपना लंच बौक्स उठा कर दोबारा अपनी सीट पर आ कर बैठ गया.

अपने दफ्तर के सारे आशिकों के जलते हुए दिलों से निकलती हुई आहें मेरे मन को ऐसा सुकून दे रही थीं कि मैं खुशी के चलते फिर कुछ खा न पाया.

तब मैं ने चपरासी से कौफी मंगाई और कौफी पी कर फिर से अपने काम में जुट गया. वैसे तो उस समय मैं लैपटौप पर काम कर रहा था, पर मेरा ध्यान तो मिस रुशाली के इर्दगिर्द ही घूम रहा था.

सलीके का पहनावा, तीखे नैननक्श, सुल झे हुए बाल और उस पर मदमस्त चाल. सच में मिस रुशाली एक ऐसा कंपलीट पैकेज है, जिस के लिए जितनी भी कीमत चुकाई जाए, कम है.

अब तो मिस रुशाली के सामने मुझे अपनी पत्नी प्रिया की शख्सीयत बौनी सी लगने लगी थी. वैसे, प्रिया में एक पत्नी के सारे गुण थे और मैं उसे प्यार भी करता था, पर मिस रुशाली से मिलने के बाद मुझे लगने लगा था कि कुछ तो ऐसा है मिस रुशाली में, जो प्रिया में नहीं है.

शायद, मु झे मिस रुशाली से इश्क वाला लव हुआ है, जो शायद उस लव से ज्यादा है, जो मैं अपनी पत्नी प्रिया से करता था, इसलिए तो मिस रुशाली मेरे मन में बसती जा रही थी.

इधर मेरा प्यार परवान चढ़ रहा था, तो उधर मिस रुशाली का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा था.

लौंग ड्राइव, पांचसितारा होटल में डिनर, महंगे उपहार पा कर मिस रुशाली मु झ पर फिदा हो गई थी. जब भी मैं उस की बड़ीबड़ी  झील सी आंखों में अपने प्रति उमड़ रहे प्यार को देखता, तब मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगता था.

अब तो सिर्फ इसी बात की इच्छा होती कि न जाने ऐसा वक्त कब आएगा, जब मिस रुशाली की प्यार भरी नजरें मु झ पर मेहरबान होंगी और उस प्यार भरी बारिश में मेरा मन भीग जाएगा.

बस, इसी कल्पना की चाह में मैं फिर से जी उठा था. ऐसा लगता था, मानो मैं उस मंजिल को पा गया हूं, जहां धरती और आसमान एक हो जाते हैं.

पर प्रिया मेरे अंदर आए इस बदलाव से कैसे अछूती रह पाती? अब उस की सवालिया नजरें मु झ पर उठने लगी थीं. पर मैं चुप था, क्योंकि मु झे एक सही मौके की तलाश जो थी.

रात को सोते वक्त जब कभी प्रिया मेरे नजदीक आने की कोशिश करती, तब मैं जानबू झ कर उस की अनदेखी कर देता था.

तब मैं तो मुंह फेर कर सो जाता और वह आंसू बहाती रहती. मु झे उस का रोना अखरता था, पर मैं क्या करता? मैं अपने दिल के हाथों मजबूर जो था.

बीतते समय के साथ मेरी मिस रुशाली को पाने की चाह बढ़ने लगी थी, क्योंकि मिस रुशाली की बड़ीबड़ी आंखों में मेरे प्रति प्यार का सागर तेजी से हिलोरें जो लेने लगा था.

अब मु झे लगने लगा था कि शायद सही वक्त आ गया है, जब मु झे प्रिया से तलाक ले कर मिस रुशाली को अपना बनाना होगा, तभी मेरी इस उमस भरी जिंदगी में खुशियों के फूल खिल पाएंगे.

अभी मैं सही मौके की तलाश में था कि अचानक मेरी किस्मत मु झ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गई. प्रिया के मामाजी के अचानक बीमार होने के चलते वह पूरे 3 दिन के लिए आगरा क्या गई, मु झे तो मानो दबा हुआ चिराग मिल गया.

‘सुनो, मैं आगरा जा रही हूं. तुम्हारा खाना कैसरोल में रखा है,’ प्रिया अपना सामान पैक करते हुए फोन पर मु झ से कह रही थी.

‘‘तुम जल्दी से निकलो. मेरे खाने

की चिंता मत करो, वरना तुम्हारी शाम वाली बस छूट जाएगी,’’ मैं खुशी के मारे हड़बड़ा रहा था.

‘हां जी, वह तो ठीक है. मैं ने श्यामा को बोल दिया है कि वह सुबहशाम आप का मनपसंद खाना बना दिया करेगी,’ प्रिया अभी भी मेरे लिए परेशान थी.

‘‘प्रिया, मैं तो चाह रहा था कि मैं दफ्तर से जल्दी निकल कर तुम्हें बसस्टैंड पर छोड़ आऊं, पर क्या करूं, इतना ज्यादा काम जो है,’’ मैं ने अपनी चालाकी दिखाते हुए कहा.

‘नहीं जी, आप अपना काम करो. मैं चली जाऊंगी,’ इतना कह कर प्रिया ने फोन रख दिया.

प्रिया का इस तरह अचानक चले जाना मु झे एक अनजानी सी खुशी दे गया. मैं बावला सा कभी सोचता कि यहां दफ्तर में ही मिस रुशाली को सबकुछ बता कर अपने घर ले जाऊं.

पर फिर बहुत सोचने के बाद मु झे यही लगा कि मैं अपने घर पहुंच कर फ्रैश होने के बाद ही मिस रुशाली से मिलने जाऊंगा.

जब वह अचानक मु झे देखेगी, तब मु झ पर चुंबनों की बरसात कर देगी और उस प्यारभरी बारिश में भीग कर हम दोनों दो जिस्म एक जान बन जाएंगे.

बस फिर क्या था. मैं तुरंत घर पहुंचा और अच्छी तरह तैयार हो कर मिस रुशाली के पास पहुंच गया.

दरवाजे की घंटी बजाने पर दरवाजा रुशाली ने नहीं, बल्कि एक मोटी सी औरत ने खोला.

‘‘मिस रुशाली…’’

‘‘वह ऊपर रहती है,’’ उस औरत ने बेरुखी से कहा.

फिर मैं ऊपर चढ़ गया. जब मैं रुशाली के कमरे में पहुंचा, तब मैं ने देखा कि वह किसी चालू फिल्मी गाने पर थिरक रही थी. कमरे में चारों तरफ कपड़े बिखरे पड़े थे और जूठे बरतन यहांवहां लुढ़के पड़े थे.

‘‘अरे तुम, अचानक…’’ मु झे अचानक सामने देख वह हड़बड़ा गई, ‘‘वह क्या है न, आज मेड नहीं आई.’’

रुशाली यहांवहां पड़ा सामान समेटने लगी. फिर उस ने सामने पड़ी कुरसी पर पड़ी धूल साफ की और मु झे बैठने का इशारा किया. फिर वह मेरे लिए पानी लेने चली गई.

रुशाली के जाने के बाद जब मैं ने कमरे में चारों तरफ नजर घुमाई, तो गर्द की जमी मोटी सी परत को पाया.

इतना गंदा कमरा देख मेरा जी मिचलाने लगा. अब धीरेधीरे मु झे अपनी प्रिया की कद्र सम झ आने लगी थी. वह तो सारा घर शीशे की तरह चमका कर रखती है, तब भी मैं उसे टोकता ही रहता हूं, पर यहां तो गंदगी का ऐसा आलम है कि पूछो मत.

‘‘कुछ खाओगे क्या?’’ पानी का गिलास देते हुए रुशाली मु झ से पूछ बैठी.

‘‘हां… भूख तो लगी है.’’

‘‘ये लो टोस्ट और चाय,’’ थोड़ी देर में रुशाली मु झे चाय की ट्रे थमाते हुए बोली.

डिनर में चाय देख कर मेरे सिर पर चढ़ा इश्क का रहासहा भूत भी उतर गया.

‘‘वह क्या  है न… मु झे तो बस यही बनाना आता है, क्योंकि सारा खाना तो मेरी आंटी ही बनाती हैं. पेईंग गैस्ट हूं मैं उन की,’’ रुशाली अपना पसीना पोंछते हुए बोली, तो मैं सम झ गया कि अब तक मैं जो कुछ भी रुशाली के लिए महसूस कर रहा था, वह सिर्फ एक छलावा था. मेरा उखड़ा मूड देख कर तुरंत रुशाली ने अपना अगला पासा फेंका.

वह तुरंत मेरे पास आई और बेशर्मी से अपना गाउन उतारने लगी.

‘‘क्या कर रही हो यह…’’ मैं गुस्से से तमतमा उठा.

‘‘अरे, शरमा क्यों रहे हो? जो करने आए थे, वह करे बिना ही वापस चले जाओगे क्या?’’ इतना कह कर वह मु झ से लिपटने लगी.

उसे इस तरह करते देख मैं हड़बड़ा गया. इस से पहले कि मैं खुद को संभाल पाता, उस ने मु झे यहांवहां चूमना शुरू कर दिया.

तभी अचानक मेरे गले में पड़ा लौकेट उस के हाथ में आ गया, जिस

में मेरी बीवी प्रिया और अंशुल का

फोटो था.

‘‘ओह, तो यह है तुम्हारी देहाती पत्नी… अरे, इसे तलाक दे दो और मेरे नाम अपना फ्लैट कर दो, फिर देखो कि मैं कैसे तुम्हें जन्नत का मजा दिलाती हूं?’’ इतना कह कर वह मु झ से लिपटने की कोशिश करने लगी.

‘‘प्यार बिना शर्त के होता है रुशाली,’’ मैं उस समय सिर्फ इतना ही कह पाया.

‘‘आजकल कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता, मिस्टर. हर चीज की कीमत होती है और हर किसी को वो कीमत चुकानी ही पड़ती है,’’ इतना कह कर रुशाली जोर से हंस पड़ी.

रुशाली के प्यार का यह घिनौना रूप देख मैं टूट सा गया और उसे धक्का दे कर बाहर आ गया.

हारी हुई नागिन की तरह रुशाली जोर से चीखते हुए बोली, ‘‘विशाल, मेरा डसा तो पानी भी नहीं मांगता, फिर तुम क्या चीज हो?’’

पर मैं तब तक अपनी कार में बैठ चुका था और मेरे इश्क वाले लव का भूत उतर चुका था. Hindi Romantic Story

Story In Hindi: क्या जादू कर दिया – चंपा बनी ‘चंपालाल’

Story In Hindi: चंपा अपने गांव के बसअड्डे पर बस से उतर कर गलियां पार कर के अपने घर की ओर जा रही थी. वह रोजाना सुबह कालेज जाती थी, फिर दोपहर तक वापस आ जाती थी.

चंपा इस गांव के बाशिंदे भवानीराम की बेटी थी. वे चंपा को कालेज पढ़ाना नहीं चाहते थे, मगर चंपा की इच्छा थी और उस के टीचरों के दबाव देने पर वे उसे पढ़ाने के लिए शहर भेजने को राजी हो गए.

जैसे ही चंपा का कालेज में दाखिला हुआ, उस की सहेलियों ने खुशियां मनाईं. वे सब चंपा को पढ़ाकू सम झती थीं और उसे चाहती भी खूब थीं.

जब चंपा गांव के हायर सैकेंडरी स्कूल में पढ़ती थी, तब पूरी जमात में उस का दबदबा था. अगर कोई लड़का ऊंची आवाज में बोल देता था, तब वह उसे ऐसी नसीहत देती थी कि वह चुप हो जाता था. इसी वजह से वह अपनी सहेलियों की चहेती बनी हुई थी.

गांव में भी चंपा की धाक थी. कोई भी बदमाश लड़का उस से कुछ नहीं कहता था. कहने वाले दबी जबान में कहते थे कि यह चंपा नहीं, बल्कि ‘चंपालाल’ है.

अभी चंपा गली का नुक्कड़ पार कर ही रही थी कि दिनेश, जो गांव का एक आवारा लड़का था और शहर के कालेज में पढ़ता था, न जाने कब से उस के पीछेपीछे आ रहा था.

दिनेश उस का रास्ता रोकते हुए बोला, ‘‘कहां जा रही हो चंपा?’’

‘‘अपने घर,’’ हंसते हुए चंपा बोली.

‘‘कभी हमारे घर भी चलो,’’ उस के जिस्म को घूरते हुए दिनेश बोला.

‘‘तुम्हारे घर क्यों भला?’’ चंपा ने हैरानी से पूछा.

‘‘मेरा कहना मानोगी, तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा,’’ दिनेश ने लालच देते हुए कहा.

चंपा जानती थी कि दिनेश गांव के रईस मांगीलाल का बिगड़ैल बेटा है. उसे पैसों का खूब घमंड है, इसलिए सारा दिन गांव में आवारागर्दी करता है. लड़कियों को छेड़ना उस की आदत है. उस की करतूत जगजाहिर है, मगर अपनी इज्जत के डर से कोई भी गांव का आदमी उस के मुंह नहीं लगता है.

चंपा को चुप देख कर दिनेश बोला, ‘‘क्या सोच रही हो चंपा? मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया?’’

चंपा ने देखा कि जिस मोड़ पर वे दोनों खड़े थे, उस के आसपास जितने भी मर्दऔरत अपने घरों में बैठ कर बातें कर रहे थे, उन्होंने अपने दरवाजेखिड़कियां बंद कर ली थीं. दिनेश का डर उन के भीतर बैठा हुआ था. ऐसा लग रहा था कि कर्फ्यू लगा हुआ है.

दिनेश जब भी शहर से गांव में आता था और वहां की गलियों में घूमता था, तो उस के डर से सन्नाटा छा जाता था.

आज चंपा का उस से पहली बार सामना हुआ था, इसलिए उस ने भीतर ही भीतर उस से सामना करने के लिए अपने को तैयार कर लिया था.

‘‘चंपा, तू क्या सोचने लगी?’’ उसे चुप देख कर दिनेश ने फिर कहा, ‘‘तू ने जवाब नहीं दिया?’’

‘‘मैं ने जवाब दे तो दिया, शायद तुम ने सुना नहीं. बहरे हो क्या?’’

‘‘क्या कहा, मैं बहरा हूं? शायद तू मु झे जानती नहीं है?’’

‘‘अरे, तु झे तो सारा गांव जानता है,’’ चंपा ने कहा.

‘‘तब फिर क्यों तू दादागीरी कर

रही है?’’

‘‘मैं एक लड़की हूं. मैं क्या दादागीरी करूंगी. गांव का दादा तो तू है,’’ चंपा उसी तरह से जवाब देते हुए बोली.

‘‘जैसा मैं ने सुना था, तू वैसी ही निकली. सुना है, कालेज में भी तू दादा बन कर रहती है?’’ दिनेश ने पूछा.

‘‘मैं ने पहले ही कहा, मैं क्या दादागीरी करूंगी. मगर अब लड़कियां इतनी कमजोर भी नहीं हैं कि हर कोई उन की कमजोरी का फायदा उठा सके,’’ कह कर चंपा ने अपने इरादे जाहिर कर दिए.

दिनेश कोई जवाब नहीं दे पाया. गली में पूरी तरह सन्नाटा था. मगर फिर भी लोग खिड़की खोल कर  झांकने की कोशिश कर रहे थे. उन के भीतर एक डर बैठा हुआ था कि आज चंपा दिनेश के सामने आ गई है.

दिनेश बोला, ‘‘बहुत अकड़ कर बात कर रही है. मैं तेरी यह अकड़ निकाल दूंगा. चल, मेरे साथ. बहुत जवानी का जोश है तु झ में,’’ कह कर दिनेश ने चंपा का हाथ पकड़ लिया.

चंपा गुस्से में चीखते हुए बोली, ‘‘छोड़ दे मेरा हाथ. मैं वैसी लड़की नहीं हूं, जैसा तू सम झ रहा है.’’

‘‘मैं एक बार जिस लड़की का हाथ पकड़ लेता हूं, फिर छोड़ता नहीं हूं,’’ दिनेश ने कहा.

‘‘ये फिल्मी डायलौग मत बोल. चुपचाप मेरा हाथ छोड़ दे.’’

‘‘यह तू नहीं, तेरी जवानी बोल रही है. चल मेरे साथ, जवानी का सारा जोश ठंडा कर देता हूं,’’ कह कर दिनेश उस को घसीट कर ले जाने लगा.

तब चंपा चिल्ला कर बोली, ‘‘मर्द है तो मर्द की तरह बात कर. यों कमरे में बंद कर के क्यों अपनी मर्दानगी दिखा रहा है. अगर तुझे अपनी मर्दानगी दिखानी है, तो यहीं दिखा. उतारूं कपड़े?’’ कहते हुए उस ने अपनी टीशर्ट उतार दी.

दिनेश थोड़ा ढीला पड़ गया. तब चंपा अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘क्या सोच रहा है, और उतारूं कपड़े? बुझा ले अपनी प्यास,’’ कहते हुए उस ने टीशर्ट घुमा कर दिनेश को दे मारी.

‘‘मगर एक बात याद रख, गांव की किसी लड़की पर बुरी नजर नहीं रखनी चाहिए. लड़की कमजोर नहीं है. छोड़

दे बुरी नजर. फिर हर औरत को कमजोर भी मत सम झ. इसलिए कहती हूं

कि पैसों का घमंड छोड़ दे. यह एक

दिन तु झे ले डूबेगा,’’ चंपा ने सम झाते हुए कहा.

सारा महल्ला देखता रह गया. लोग बाहर निकल आए. लड़की के हाथों पिटे दिनेश का मुंह छोटा हो गया.

इतना कह कर चंपा वहां से

चली गई.

दिनेश गुस्से से भरा वहीं खड़ा रह गया. आज एक लड़की से हार गया, जो उसे चुनौती दे गई. चुनौती भी ऐसी, जिसे वह पूरा नहीं कर सके. आज तक गांव वालों में से किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि कोई उस के खिलाफ बोले, उसे चुनौती दे, मगर आज चंपा ने इस कदर उस को चुनौती दे डाली. वह उस का विरोध नहीं कर सका.

दिनेश ने जब गली की तरफ देखा, तो सभी मर्दऔरत दरवाजा खोल कर उसे हैरत भरी नजरों से देख रहे थे. वह उन से नजरें नहीं मिला सका और चुपचाप अपनी हवेली की तरफ चल दिया.

सारे गली वाले मानो एक ही सवाल अपनेआप से पूछ रहे थे कि चंपा ने दिनेश पर ऐसा क्या जादू किया, जो नीची गरदन कर के चला गया? सभी एकदूसरे से आंखों ही आंखों में इशारा कर रहे थे, मगर कुछ समझ नहीं पा रहे थे. सभी के दिमाग में एक ही बात बैठ चुकी थी कि चंपा की अब खैर नहीं. उस ने दिनेश

से पंगा ले कर अपने ऊपर मुसीबत मोल ले ली है. वह गांव का बहुत बड़ा गुंडा है. पैसों के बल पर वह कुछ भी कर सकता है.

इस घटना से गांव में दहशत फैल गई. सभी गांव वाले खामोश हो गए.

अगले दिन चंपा कालेज पहुंची, तो हीरो बन गई थी. दिनेश की हिम्मत अब टूट चुकी थी.

चंपा कालेज नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए उस ने भी हालात से सम झौता कर लिया.

इस घटना के कुछ दिनों बाद दिनेश में बहुत बड़ा बदलाव दिखा. पहले वह हमेशा गुंडा बन कर रहा करता था, अपने को सब से बड़ा सम झता था.

आमतौर पर अब वह चंपा के साथ कैंटीन में चाय पीता दिखता. वह अपने दोस्तों से कहता, ‘‘यह रही टीशर्ट… मार चंपा.’’

यह सुन कर चंपा शर्म से लाल हो जाती.

दिनेश शरीफ हो चुका था. गांव की किसी लड़की या किसी बहू को अब वह बुरी नजर से नहीं देखता था. उस पर चंपा ने उस दिन ऐसा क्या जादू कर दिया, यह आज तक राज बना हुआ था. Story In Hindi

Story In Hindi: मजदूर की सच्ची मुहब्बत – डिग्गी का दर्द

Story In Hindi: सोन नदी पर पुल बन रहा था. सैकड़ों मजदूर और कई इंजीनियर लगे हुए थे. मजदूरों में मर्दऔरत दोनों थे. वे सब दूरदराज से आए थे, इसीलिए ठेकेदार ने उन के रहने के लिए साइट पर ही कच्चे मकान बनवा दिए थे.

मजदूरों में एक रोहित नाम का लड़का ठेकेदार का बहुत चहेता था. 6 फुट लंबा कद, गोराचिट्टा रंग, चौड़ा सीना, लंबे बालों वाले रोहित की पर्सनैलिटी गजब की थी. उस में कमी थी तो सिर्फ यही कि वह किसी की झूठी तारीफ नहीं कर पाता था, इसीलिए 25 साल की उम्र होने के बावजूद वह अकेला था.

एक दिन रोहित की नजर डिग्गी नाम की एक मजदूर लड़की पर पड़ी. डिग्गी का असली नाम क्या था, किसी को नहीं मालूम था, पर वहां ठेकेदार से ले कर इंजीनियर और मजदूर सभी उसे डिग्गी कह कर ही बुलाते थे.

20 साल की डिग्गी बहुत ही मेहनती लड़की थी. वह देखने में बहुत ही खूबसूरत थी, पर हालात की मारी वह बचपन में ही अनाथ हो गई थी और मजदूरी कर के अपना गुजारा करती थी.

डिग्गी चरित्र की बिलकुल साफ थी. बहुत से इंजीनियर और मजदूर उस की भरीपूरी देह देख कर उस पर फिदा हो गए थे. कुछ लोग तो पैसे का भी लालच देते थे, पर वह जिस्म का सौदा करने के बजाय मजदूरी करना ठीक समझी थी. उसे मालूम था कि जिस्म का सौदा कर के वह जवानी में तो ऐशोआराम की जिंदगी जी सकती है, पर उस सुख का अंत बहुत कष्टकारी होता है.

रोहित ने डिग्गी के बारे में सबकुछ पता लगा लिया था और उसे अच्छे से मालूम था कि डिग्गी को सिर्फ प्यार की ताकत से ही अपनाया जा सकता है.

रोहित ने अपने दिल की बात ठेकेदार को बता दी, जिस से ठेकेदार उसे उसी जगह रहने को बोलता जहां डिग्गी काम कर रही होती थी, ताकि वह ज्यादा से ज्यादा समय उस के साथ बिता सके और एक दिन उस के दिल में अपनी जगह बना ले.

डिग्गी का शरीर बहुत आकर्षक और कामवासना से भरपूर था, पर दिनभर मेहनत करने के बाद वह रात को गहरी नींद में सो जाती थी. अकेले रहते हुए भी तनहाई उस से कोसों दूर थी.

इधर रोहित के सिर पर प्यार का भूत सवार था, इसलिए वह दिनभर काम करता, शरीर उस का भी थका रहता था, पर रात की तनहाई उसे काट खाने को दौड़ती थी, क्योंकि उस ने अपनी आंखों में डिग्गी को पाने का ख्वाब जो सजा रखा था.

एक दिन रोहित ने डिग्गी की तरफ देखा, पर जब डिग्गी उस की ओर देखने लगी तो उस ने नजरें घुमा लीं. पर धीरेधीरे डिग्गी समझ गई कि रोहित उस से प्यार करता है, क्योंकि यह लड़कियों का स्वभाव होता है कि वे मर्द की पहली नजर देख कर ही भांप लेती हैं कि सामने वाला उस से क्या चाहता है.

रोहित का जमीर इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि वह सामने से अपने दिल की बात डिग्गी से कह दे, पर एक शाम को ठेकेदार ने डिग्गी से बोल दिया, ‘‘डिग्गी, रोहित तुझे बहुत पसंद करता है, लेकिन वह कुछ कह नहीं पाता है. तुम दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी जमेगी. क्या खयाल है तुम्हारा रोहित के बारे में?’’

इतना सुन कर डिग्गी शरमाते हुए वहां से चली गई. ठेकेदार समझ गया कि डिग्गी के दिल में भी रोहित के प्रति प्रेम है, नहीं तो वह उस की बातों का बुरा मान गई होती.

अब डिग्गी रोहित के चालचलन पर ध्यान देने लगी. सीधासादा लड़का किसी और मजदूर औरत से किसी तरह का लगाव नहीं रखता था, इसलिए डिग्गी मन ही मन उस से प्यार करने लगी. वह रोजाना सुबह उठ कर नहा लेती और साफसुथरे कपड़े पहनती. जिस दिन रोहित को नहीं देखती तो बेचैन हो जाती.

रोहित को भी एहसास हो चुका था कि डिग्गी के दिल में उस की ऐंट्री हो चुकी है. अब रोहित हर उस इनसान से झगड़ जाता था, जो डिग्गी के बारे में गलत बोलता था.

जाति से रोहित दलित था. वह ठेकेदार का चहेता और विश्वासपात्र मजदूर था. ठेकेदार ने उस के नाम से भी ठेकेदारी का लाइसैंस बनवा दिया था, ताकि जो टैंडर अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व्ड होता था, वह उस के हाथ से न जाने पाए.

ठेकेदार उस टैंडर को रोहित के नाम से ले लेता था. रोहित के खाते में पैसा आता और वह ईमानदारी से ठेकेदार को दे देता था. काम ठेकेदार अपने हिसाब से करवाता था, इसीलिए इंजीनियर और बाकी के मजदूर रोहित का कुछ नहीं बिगाड़ पाते थे.

एक दिन रोहित फावड़े से मिट्टी खोद रहा था कि अचानक फावड़ा उस के पैर में लग गया. चोट लगने से खून निकलने लगा. वहीं पर डिग्गी काम कर रही थी. वह तुरंत कपड़े से घाव को बांधने लगी और रोने लगी, ‘‘ध्यान कहां रहता है तुम्हारा, कितना खून निकल रहा है.’’

यह सुन कर बाकी मजदूर हैरान रह गए कि रोहित को चोट लगी है तो डिग्गी इतना परेशान क्यों हो गई? रोहित की आंखें भर आई थीं. वे दोनों सब के सामने एकदूसरे के गले लग गए.

रोहित से लिपट कर डिग्गी रोरो कर सुनाने लगी, ‘‘बरसों पहले मैं ने अपने मातापिता को खो दिया था, अब तुम मेरी जिंदगी में आए हो. अगर तुम्हें कुछ हो गया तो फिर मेरा जीने का कोई मकसद ही नहीं रहेगा.’’

ठेकेदार ने उस शाम दोनों को अपने केबिन में बुलाया और बोला, ‘‘तुम दोनों की शादी मैं करा दूंगा, फिलहाल एकसाथ रहो.’’

डिग्गी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस रात रोहित हिम्मत कर के डिग्गी के कमरे पर गया. डिग्गी से जितना हो पाया था, वह उतना सजसंवर कर बैठी थी.

रोहित को अपने कमरे पर देख कर डिग्गी शरमाते हुए बोली, ‘‘रोटीसब्जी बनाई है, खा लो.’’

रोहित बोला, ‘‘मुझे तुम्हारे प्यार की भूख है. मैं तुम से प्यार करने आया हूं.’’

डिग्गी शरमाते हुए बोली, ‘‘मैं आप को अपना सबकुछ मानती हूं. मेरे जिस्म के एकएक हिस्से पर सिर्फ तुम्हारा ही हक है. आप मुझे कभी छोड़ कर मत जाना, नहीं तो मै एक पल भी जिंदा नहीं रह पाऊंगी.’’

रोहित बोला, ‘‘हम दोनों को अब सिर्फ मौत ही जुदा कर सकती है.’’

इतना सुन कर डिग्गी रोहित से लिपट गई. दोनों ने एकदूसरे पर चुंबनों की बौछार कर दी. नदी के किनारे बने उस छोटे से कमरे में डिग्गी की सिसकारियों के साथ दोनों की कामवासना शांत हो गई.

उस दिन से डिग्गी रोहित का भी खाना बनाती थी. काम खत्म होने के बाद रोहित मार्केट से सब्जीराशन जैसा घर का सामान खरीद लाता था.

धीरेधीरे समय बीतता गया. 8वीं तक पढ़ा रोहित ठेकेदारी के सारे दांवपेंच

जान चुका था. अब डिग्गी मजदूरी नहीं करती थी. वह रोहित के साथ साइट पर रहती और औरत मजदूरों की देखरेख करती थी.

एक बार सड़क पुल का टैंडर रोहित के नाम से लिया गया. काम शुरू हो गया था कि अचानक उस के मालिक की सड़क हादसे में मौत हो गई. रोहित को बहुत दुख हुआ. उस के ऊपर पुल बनवाने की सारी जिम्मेदारी आ गई.

इस के पहले भी कई टैंडर रोहित के नाम से कंप्लीट हो चुके थे, जिस से सारे अफसर और इंजीनियर रोहित को ही जानते थे. उस ने भी अपनी सूझबूझ का परिचय दिया और उस पुल को अपने हिसाब से कंप्लीट करवाया, जिस में बहुत सारा पैसा बचा लिया. इस के बाद उस ने अपने लिए एक फ्लैट खरीदा

और डिग्गी को साइट पर ले जाना बंद कर दिया.

रोहित दूसरे ठेकेदारों की तुलना में ज्यादा कमीशन देता था. सारे नेताओं और अफसरों से उस की पहचान हो चुकी थी, इसलिए उसे टैंडर मिलते गए और वह एक कुशल ठेकेदार बन गया. इधर डिग्गी भी अपने रोहित की तरक्की देख कर बहुत खुश थी.

एक बार साइट पर रोहित की मुलाकात नीलू नाम की एक इंजीनियर से हुई. नीलू रोहित की पर्सनैलिटी और पैसा देख कर आकर्षित हो गई और 8वीं जमात तक पढ़ा रोहित नीलू की खूबसूरती और इंगलिश बोलने की कला देख कर उस पर फिदा हो गया.

रोहित टैंडर की दुनिया में राज करना चाहता था, इसलिए सोचा कि अगर नीलू जैसी पढ़ीलिखी लड़की उस के साथ रहेगी तो उस का सपना पूरा हो जाएगा.

रोहित डिग्गी को भूल कर नीलू के प्रेमजाल में फंस गया. दोनों एकदूसरे को डेट करने लगे. 2-2 दिन तक रोहित घर नहीं जाता था. डिग्गी के फोन करने पर साइट पर होने का बहाना बनाता, लेकिन हकीकत में वह नीलू के साथ होटल में गुलछर्रे उड़ा रहा होता था.

एक रात जब रोहित घर नहीं आया तो डिग्गी साइट पर गई. वहां मजदूरों से पता चला कि ठेकेदार साहब तो नीलू मैडम के साथ गाड़ी में बैठ कर शाम को ही चले गए थे.

डिग्गी को बहुत दुख हुआ. उस रात उसे नींद नहीं आई. सुबह होते ही वह साइट पर आई और रोहित से लिपट कर रोने लगी. वह बोली, ‘‘रोहित, मेरे साथ ऐसा मत करो. तुम्हारे अलावा इस दुनिया में कोई नहीं है मेरा.’’

इस बात पर रोहित ने उसे कुछ पैसे दे कर बोला, ‘‘घर जाओ, आज शाम को आऊंगा. नीलू को ले कर ज्यादा चिंता मत करना. उस के आने से मुझे फायदा ही हुआ है, नुकसान नहीं.’’

डिग्गी बोली, ‘‘अगर आज शाम को नहीं आओगे, तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा, सोच लेना.’’

इधर नीलू को जब पता चला कि साइट पर डिग्गी आई थी, तो वह रोहित से नाराजगी जाहिर करते हुए बोली, ‘‘उसे इतना सिर पर मत चढ़ाओ और आज शाम को घर जाने के लिए क्यों बोले हो? आज शाम हम ने फिल्म देखने का प्लान बनाया है न…’’

रोहित नीलू को खोना नहीं चाहता था, इसलिए वह रात को घर नहीं गया और नीलू के साथ फिल्म देखने चला गया. इस बात को डिग्गी ने दिल पर ले लिया. अब वह समझ गई थी कि रोहित उस की जिंदगी में कभी वापस नहीं आएगा, इसलिए जिद में आ कर उस ने पंखे से लटक कर फांसी लगा ली.

सुबह रोहित जब घर गया, तो डिग्गी को पंखे से लटकता देख कर उस का सिर चकरा गया. वह तुरंत जमीन पर गिर गया और चिल्लाचिल्ला कर रोने लगा.

डिग्गी इतना बड़ा कदम उठा लेगी, रोहित ने शायद सपने में भी नहीं सोचा था. डिग्गी सही बोलती थी कि उस के बिना उस का इस दुनिया में कोई नहीं है. सब से बड़ा दुख रोहित को तब हुआ, जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह पता चला कि डिग्गी 3 महीने के पेट से थी.

डिग्गी और उस के पेट में पल रहे बच्चे की मौत का जिम्मेदार रोहित था. झूठे प्यार के चक्कर में एक मजदूर से ठेकेदार बना रोहित अपना सच्चा प्यार और बसाबसाया घरपरिवार खो बैठा. Story In Hindi

Hindi Romantic Story: प्यार का धागा – कैसे धारावी की डौल बन गई डौली

Hindi Romantic Story: सांझ ढलते ही थिरकने लगते थे उस के कदम. मचने लगता था शोर, ‘डौली… डौली… डौली…’

उस के एकएक ठुमके पर बरसने लगते थे नोट. फिर गड़ जाती थीं सब की ललचाई नजरें उस के मचलते अंगों पर. लोग उसे चारों ओर घेर कर अपने अंदर का उबाल जाहिर करते थे.

…और 7 साल बाद वह फिर दिख गई. मेरी उम्मीद के बिलकुल उलट. सोचा था कि जब अगली बार मुलाकात होगी, तो वह जरूर मराठी धोती पहने होगी और बालों का जूड़ा बांध कर उन में लगा दिए होंगे चमेली के फूल या पहले की तरह जींसटीशर्ट में, मेरी राह ताकती, उतनी ही हसीन… उतनी ही कमसिन…

लेकिन आज नजारा बदला हुआ था. यह क्या… मेरे बचपन की डौल यहां आ कर डौली बन गई थी.

लकड़ी की मेज, जिस पर जरमन फूलदान में रंगबिरंगे डैने सजे हुए थे, से सटे हुए गद्देदार सोफे पर हम बैठे

हुए थे. अचानक मेरी नजरें उस पर ठहर गई थीं.

वह मेरी उम्र की थी. बचपन में मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे अपने साथ स्कूल ले कर जाती थी. उन दिनों मेरा परिवार एशिया की सब से बड़ी झोपड़पट्टी में शुमार धारावी इलाके में रहता था. हम ने वहां की तंग गलियों में बचपन बिताया था.

वह मराठी परिवार से थी और मैं राजस्थानी ब्राह्मण परिवार का. उस के पिता आटोरिकशा चलाते थे और उस की मां रेलवे स्टेशन पर अंकुरित अनाज बेचती थी.

हर शुक्रवार को उस के घर में मछली बनती थी, इसलिए मेरी माताजी मुझे उस दिन उस के घर नहीं जाने देती थीं.

बड़ीबड़ी गगनचुंबी इमारतों के बीच धारावी की झोपड़पट्टी में गुजरे लमहे आज भी मुझे याद आते हैं. उगते हुए सूरज की रोशनी पहले बड़ीबड़ी इमारतों में पहुंचती थी, फिर धारावी के बाशिंदों के पास.

धारावी की झोपड़पट्टी को ‘खोली’ के नाम से जाना जाता है. उन खोलियों की छतें टिन की चादरों से ढकी रहती हैं.

जब कभी वह मेरे घर आती, तो वापस अपने घर जाने का नाम ही नहीं लेती थी. वह अकसर मेरी माताजी के साथ रसोईघर में काम करने बैठ जाती थी.

काम भी क्या… छीलतेछीलते आधा किलो मटर तो वह खुद खा जाती थी. माताजी को वह मेरे लिए बहुत पसंद थी, इसलिए वे उस से बहुत स्नेह रखती थीं.

हम कल्याण के बिड़ला कालेज में थर्ड ईयर तक साथ पढे़ थे. हम ने लोकल ट्रेनों में खूब धक्के खाए थे. कभीकभार हम कालेज से बंक मार कर खंडाला तक घूम आते थे. हर शुक्रवार को सिनेमाघर जाना हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया था.

इसी बीच उस की मां की मौत हो गई. कुछ दिनों बाद उस के पिता उस के लिए एक नई मां ले आए थे.

ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद मैं और पढ़ाई करने के लिए दिल्ली चला गया था. कई दिनों तक उस के बगैर मेरा मन नहीं लगा था.

जैसेतैसे 7 साल निकल गए. एक दिन माताजी की चिट्ठी आई. उन्होंने बताया कि उस के घर वाले धारावी से मुंबई में कहीं और चले गए हैं.

7 साल बाद जब मैं लौट कर आया, तो अब उसे इतने बड़े महानगर में कहां ढूंढ़ता? मेरे पास उस का कोई पताठिकाना भी तो नहीं था. मेरे जाने के बाद उस ने माताजी के पास आना भी बंद कर दिया था.

जब वह थी… ऐसा लगता था कि शायद वह मेरे लिए ही बनी हो. और जिंदगी इस कदर खुशगवार थी कि उसे बयां करना मुमकिन नहीं.

मेरा उस से रोज ?ागड़ा होता था. गुस्से के मारे मैं कई दिनों तक उस से बात ही नहीं करता था, तो वह रोरो कर अपना बुरा हाल कर लेती थी. खानापीना छोड़ देती थी. फिर बीमार पड़ जाती थी और जब डाक्टरों के इलाज से ठीक हो कर लौटती थी, तब मुझ से कहती थी, ‘तुम कितने मतलबी हो. एक बार भी आ कर पूछा नहीं कि तुम कैसी हो?’

जब वह ऐसा कहती, तब मैं एक बार हंस भी देता था और आंखों से आंसू भी टपक पड़ते थे.

मैं उसे कई बार समझाता कि ऐसी बात मत किया कर, जिस से हमारे बीच लड़ाई हो और फिर तुम बीमार पड़ जाओ. लेकिन उस की आदत तो जंगल जलेबी की तरह थी, जो मुझे भी गोलमाल कर देती थी.

कुछ भी हो, पर मैं बहुत खुश था, सिवा पिताजी के जो हमेशा अपने ब्राह्मण होने का घमंड दिखाया करते थे.

एक दिन मेरे दोस्त नवीन ने मुझसे कहा, ‘‘यार पृथ्वी… अंधेरी वैस्ट में ‘रैडक्रौस’ नाम का बहुत शानदार बीयर बार है. वहां पर ‘डौली’ नाम की डांसर गजब का डांस करती है. तुम देखने चलोगे क्या? एकाध घूंट बीयर के भी मार लेना. मजा आ जाएगा.’’

बीयर बार के अंदर के हालात से मैं वाकिफ था. मेरा मन भी कच्चा हो रहा था कि अगर पुलिस ने रेड कर दी, तो पता नहीं क्या होगा… फिर भी मैं उस के साथ हो लिया.

रात गहराने के साथ बीयर बार में रोशनी की चमक बढ़ने लगी थी. नकली धुआं उड़ने लगा था. धमाधम तेज म्यूजिक बजने लगा था.

अब इंतजार था डौली के डांस का. अगला नजारा मुझे चौंकाने वाला था. मैं गया तो डौली का डांस देखने था, पर साथ ले आया चिंता की रेखाएं.

उसे देखते ही बार के माहौल में रूखापन दौड़ गया. इतने सालों बाद दिखी तो इस रूप में. उसे वहां देख

कर मेरे अंदर आग फूट रही थी. मेरे अंदर का उबाल तो इतना ज्यादा था कि आंखें लाल हो आई थीं.

आज वह मुझे अनजान सी आंखों से देख रही थी. इस से बड़ा दर्द मेरे लिए और क्या हो सकता था? उसे देखते ही, उस के साथ बिताई यादों के झरोखे खुल गए थे.

मु?ो याद हो आया कि जब तक उस की मां जिंदा थीं, तब तक सब ठीक था. उन के मर जाने के बाद सब धुंधला सा गया था.

उस की अल्हड़ हंसी पर आज ताले जड़े हुए थे. उस के होंठों पर दिखावे की मुसकान थी.

वह अपनेआप को इस कदर पेश कर रही थी, जैसे मुझे कुछ मालूम ही नहीं. वह रात को यहां डांसर का काम किया करती थी और रात की आखिरी लोकल ट्रेन से अपने घर चली जाती थी. उस का गाना खत्म होने तक बीयर की पूरी

2 बोतलें मेरे अंदर समा गई थीं.

मेरा सिर घूमने लगा था. मन तो हुआ उस पर हाथ उठाने का… पर एकाएक उस का बचपन का मासूम चेहरा मेरी आंखों के सामने तैर आया.

मेरा बीयर बार में मन नहीं लग रहा था. आंखों में यादों के आंसू बह रहे थे. मैं उठ कर बाहर चला गया. नवीन तो नशे में चूर हो कर वहीं लुढ़क गया था.

मैं ने रात के 2 बजे तक रेलवे स्टेशन पर उस के आने का इंतजार किया. वह आई, तो उस का हाथ पकड़ कर मैं ने पूछा, ‘‘यह सब क्या है?’’

‘‘तुम इतने दूर चले गए. पढ़ाई छूट गई. पापी पेट के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम तो करना ही था. मैं क्या करती?

‘‘सौतेली मां के ताने सुनने से तो बेहतर था… मैं यहां आ गई. फिर क्या अच्छा, क्या बुरा…’’ उस ने कहा.

‘‘एक बार माताजी से आ कर मिल तो सकती थीं तुम?’’

‘‘हां… तुम्हारे साथ जीने की चाहत मन में लिए मैं गई थी तुम्हारी देहरी पर… लेकिन तुम्हारे दर पर मुझे ठोकर खानी पड़ी.

‘‘इस के बाद मन में ही दफना दिए अनगिनत सपने. खुशियों का सैलाब, जो मन में उमड़ रहा था, तुम्हारे पिता ने शांत कर दिया और मैं बैरंग लौट आई.’’

‘‘तुम्हें एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया. कुछ और काम भी तो कर सकती थीं?’’ मैं ने कहा.

‘‘कहां जाती? जहां भी गई, सभी ने जिस्म की नुमाइश की मांग रखी. अब तुम ही बताओ, मैं क्या करती?’’

‘‘मैं जानता हूं कि तुम्हारा मन मैला नहीं है. कल से तुम यहां नहीं आओगी. किसी को कुछ कहनेसम?ाने की जरूरत नहीं है. हम दोनों कल ही दिल्ली चले जाएंगे.’’

‘‘अरे बाबू, क्यों मेरे लिए अपनी जिंदगी खराब कर रहे हो?’’

‘‘खबरदार जो आगे कुछ बोली. बस, कल मेरे घर आ जाना.’’

इतना कह कर मैं घर चला आया और वह अपने घर चली गई. रात सुबह होने के इंतजार में कटी. सुबह उठा, तो अखबार ने मेरे होश उड़ा दिए. एक खबर छपी थी, ‘रैडक्रौस बार की मशहूर डांसर डौली की नींद की ज्यादा गोलियां खाने से मौत.’

मेरा रोमरोम कांप उठा. मेरी खुशी का खजाना आज लुट गया और टूट गया प्यार का धागा.

‘‘शादी करने के लिए कहा था, मरने के लिए नहीं. मुझे इतना पराया सम?ा लिया, जो मुझे अकेला छोड़ कर चली गई? क्या मैं तुम्हारा बो?ा उठाने लायक नहीं था? तुम्हें लाल साड़ी में देखने

की मेरी इच्छा को तुम ने क्यों दफना दिया?’’ मैं चिल्लाया और अपने कानों पर हथेलियां रखते हुए मैं ने आंखें भींच लीं.

बाहर से उड़ कर कुछ टूटे हुए डैने मेरे पास आ कर गिर गए थे. हवा से अखबार के पन्ने भी इधरउधर उड़ने लगे थे. माहौल में फिर सन्नाटा था. रूखापन था. गम से भरी उगती हुई सुबह थी वह. Hindi Romantic Story

Best Hindi Kahani: दूसरी शादी – परवेज की बेबसी

Best Hindi Kahani: अफरोज के जाने के बाद परवेज की जिंदगी थम सी गई थी. बच्चे अकेले से हो गए थे. अपनों ने जो रंग दिखाया था, उस ने परवेज को झकझोर कर रख दिया था. बच्चों की आंखों में मां की तड़प, उन की बेबसी, उन की मासूमियत भरी आवाज और अपनों से मिले दर्द से वे सहम गए थे.

चाची का बच्चों की औकात से ज्यादा काम करवाना, उन के बच्चों का मारना, तंग करना, खाना न देना, उन को बारबार ‘तुम्हारी तो मां भी नहीं है’ कह कर मजाक उड़ाना, कहीं बाहर जाओ तो बच्चों का दिनभर चड्डी में ही टौयलैट किए हुए ही भूखेप्यासे रहना… बच्चों की ऐसी बुरी दशा और बेबसी देख कर परवेज पूरी तरह टूट चुका था.

कोरोना की दूसरी लहर ने देशभर में मौत का जो नंगा नाच नचाया था, उस से कोई शहर ही नहीं, बल्कि गांवमहल्ला और शायद कोई खानदान ऐसा बचा हो, जो इस की चपेट में न आया हो.

अफरोज के जाने के बाद परवेज अकेला अपने मासूम बच्चों के साथ गांव में रहता था. उस की बड़ी बेटी 8 साल की, उस से छोटी बेटी 5 साल की और उस से छोटा बेटा डेढ़ साल का था.

जो लोग कल तक परवेज की इज्जत करते थे, उस के बच्चों की देखभाल भी करते थे, आज अफरोज के जाने के बाद वे उन से आंखें चुराने लगे थे. लौकडाउन की वजह से परवेज का कामधंधा चौपट हो गया था. कहीं से कोई आमदनी का जरीया न था, ऊपर से इन बच्चों को छोड़ कर वह कहीं जा भी नहीं सकता था.

परवेज के बच्चे अपने चाचा के बच्चों के साथ खेलने की कोशिश करते, तो वे इन्हें मार कर भगा देते. उन की चाची मासूम बच्ची से घर का झाड़ूपोंछा करवाती थीं. जब वह थक जाती तो रोते हुए परवेज के पास आती और कहती कि चाची अपने बच्चों को तो खाना देती हैं, हमें नहीं देतीं.

एक दिन तो हद ही हो गई. परवेज किसी काम से बाहर गया था. लौटा तो देखा कि उस की छोटी बेटी और बेटा कमरे में बैठे रो रहे थे. परवेज ने उन से पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

बेटी ने बताया, ‘‘चाची मुझ से बड़ा कुकर धुलवा रही थीं. वह मुझ से नहीं उठ रहा था, तो मुझे डांटने लगीं. उन्होंने मुझे खाना नहीं दिया, तो कोई बात नहीं. कम से कम मेरे भाई को तो खाने को कुछ दे देतीं, वह सुबह से भूखा था.’’

यह सुनते ही परवेज का दिल रोने लगा, पर वह कर भी क्या सकता था. कुछ दिनों बाद उसे काम के सिलसिले में वापस मुंबई जाना था. घर पर पड़ेपड़े कई महीने गुजर गए थे.

जब परवेज ने अपनी बड़ी बेटी को बताया, तो वह बोली, ‘‘अब्बा, हम अकेले कैसे रहेंगे? हमें भी साथ ले चलो.’’ परवेज ने उसे समझाया, ‘‘मैं वहां पहुंच कर कुछ ही दिनों में तुम सब को भी ले जाऊंगा.’’

अचानक बेटी बोली, ‘‘आप नई अम्मी ले आओ. हमें भी अम्मी चाहिए. आप दूसरी शादी कर लो.’’

परवेज अफरोज को नहीं भुला पा रहा था और फिर नई मां बच्चों की सही ढंग से देखभाल कर पाएगी या नहीं, इस की कोई गारंटी नहीं थी. लेकिन बच्ची की जिद ने उसे मजबूर कर दिया और वह भी यही सोचने लगा कि कम से कम बच्चों को वक्त पर खाना तो मिलेगा और देखभाल करने वाला कोई तो होगा.

इस तरह परवेज दिल पर पत्थर रख कर मुंबई आ गया और कुछ ही दिन हुए थे कि उस का काम भी चल निकला और जल्द ही उस के लिए एक रिश्ता आ गया, जो उस के एक दोस्त ने बताया था.

उस ने परवेज को एक फोटो दिखाया और बोला, ‘‘यह हिना है. इस के 2 बच्चे हैं. शौहर का अभी एक साल पहले इंतकाल हुआ है. यह अभी अपनी मां के घर है. तुम हां बोलो, तो मैंबात चलाऊं?’’

परवेज ने हिना के मासूम बच्चों के बारे में सुन कर हां कर दी, क्योंकि वह भी अपने बच्चों की मां के न होने का दुख जानता था.

अगले दिन परवेज ने हिना, उस के मांबाप और दोनों बच्चों को अपने ही घर बातचीत करने के लिए बुला लिया. उन्होंने परवेज से काम और बच्चों के बारे मे पूछा, उस के बाद उन्होंने बताया कि हिना के दोनों बच्चों को बचपनसे ही डायबिटीज है. इन्हें इंसुलिन लगती है. अगर तुम्हें यह रिश्ता मंजूर हो तो बताओ.

परवेज ने उन मासूम बच्चों को देखा, जो महज 8 साल और 6 साल के थे. फिर मासूम से चेहरे वाली हिना पर नजर डाली जो अभी जवान ही थी, हां कर दी और अगले ही हफ्ते उन का निकाह हो गया.

निकाह के तीसरे ही दिन हिना ने परवेज को बच्चों को लाने के लिए गांव भेज दिया. कुछ ही दिनों में वह अपने बच्चों को मुंबई ले आया.

हिना जैसी मां पा कर परवेज के बच्चे भी खुश हो गए. हिना ने दिलोजान से बच्चों का खयाल रखना शुरू कर दिया. वह अपने हाथों से उन्हें खाना खिलाती, उन की देखभाल करती और उन्हें कभी मां की कमी महसूस न होने देती. परवेज ने भी उस के बच्चों का अच्छे प्राइवेट स्कूल में दाखिल करा दिया था.

एक दिन हिना ने परवेज को अपनी कहानी सुनाई कि उस के रोंगटे खड़े हो गए. उस ने बताया, ‘‘जब मेरे शौहर का इंतकाल हुआ, तो हम घूमने गुजरात गए थे. उन्हें पहले से ही डायबिटीज थी. वहां पर हम और उन के दोस्तों के परिवार घूमने गए थे कि अचानक इन की तबीयत खराब हो गई. दोस्तों ने इलाज कराने में कोई कमी न छोड़ी, फिर भी वे न बच पाए.

‘‘जब मेरी सास को पता चला, तो वे मुझे धक्का देते हुए बोलीं कि तू ने मेरे बेटे को मार दिया. मैं तो अपने होश में न थी, उन के ये अल्फाज सुन कर बेहोश हो गई. जब होश आया तो मेरा सबकुछ लुट चुका था. मेरा अपनी सुसराल में रहना दूभर हो चुका था.

‘‘मेरे बच्चे भी डायबिटीज के मरीज थे, जो सूख कर कांटा हो गए थे. जेठानी सारा काम मुझ से करवाती थीं. मेरे बच्चों को कभी खाना मिलता, कभी नहीं मिलता. सास ने जीना मुश्किल कर रखा था. आखिर में मुझे अपने मांबाप के घर जाना पड़ा.

‘‘वहां मुझे दो वक्त का खाना तो मिल रहा था, लेकिन शौहर की कमी ने झकझोर कर रख दिया था. अम्मीअब्बा को हमेशा यही बात सताती रहती थी कि बिना शौहर के मेरा और बच्चों का क्या होगा. मेरी भाभी भी बच्चों पर गुस्सा होती रहती थीं. उन्हें कभी किचन में नहीं घुसने दिया जाता था.’’

पर, अब हिना बहुत खुश थी. शादी के एक साल बाद परवेज के घर एक चांद सा बेटा हुआ. जो रिश्तेदार उन्हें दुत्कारते थे, आज खुशीखुशी मिलते हैं. हिना की सास भी मिलने आती रहती हैं. परवेज का भाईभाभी रोज फोन पर बच्चों से बात करते हैं और छुट्टियों में मुंबई आ जाते हैं.

आज परवेज का घरपरिवार खुशहाल है. उस का कामधंधा भी अच्छा चल रहा है. घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं है. बुरा वक्त कब निकल गया, पता ही नहीं चला. Best Hindi Kahani

Long Hindi Story: सुबह की किरण – दो सहेलियों का प्यार

Long Hindi Story: ‘‘आ ओ, तुम यहां बैठ जाओ,’’ समीर ने प्रीति को अपने बगल में खड़ा देखा तो अपनी सीट से उठते हुए कहा.

‘‘नहीं, तुम बैठो, मुझे अगले स्टैंड पर उतरना है.’’

‘‘तुम बैठो, तुम्हें खड़ा होने में तकलीफ हो रही है,’’ उस ने फिर आग्रह किया तो प्रीति उस की सीट पर बैठ गई.

बस में खचाखच भीड़ थी. तिल भर भी पैर रखने की जगह नहीं थी. प्रीति का एक पैर जन्मजात खराब था. इसलिए थोड़ा लंगड़ा कर चलती थी. नीलम ठीक उस के पीछे खड़ी थी. मुसकराती हुई बोली, ‘‘चलो तुम्हारी तकलीफ समझाने वाला कोई तो मिला.’’

अगले स्टैंड पर दोनों सहेलियां उतर गईं. समीर भी उन के पीछेपीछे उतरा.

‘‘तुम्हारी सहेली के साथ मैं ने अन्याय किया,’’ वह प्रीति को देखते हुए मुसकरा कर बोला, ‘‘लेकिन क्या करूं, सीट एक थी और तुम दो.’’

‘‘कोई बात नहीं, अगली बार तुम मुझे लिफ्ट दे देना,’’ नीलम भी मुसकराते हुए बोली तो समीर ने पूछा, ‘‘वैसे, तुम दोनों यहां कहां रहती हो?’’

‘‘बगल में ही, गौरव गर्ल्स होस्टल में,’’ नीलम ने बताया.

‘‘अच्छा है, अब तो हमारा इसी स्टैंड से कालेज आनाजाना होता रहेगा. मैं भी थोड़ी दूर पर ही रहता हूं. मेरे बाबूजी एक कंपनी में जौब करते हैं और यहीं उन्होंने एक अपार्टमैंट खरीदा हुआ है.’’ समीर, प्रीति और नीलम एक ही कालेज में थे. आज कालेज में उन का पहला दिन था.

प्रीति आगरा की रहने वाली थी और नीलम लखनऊ की. दोनों गौरव गर्ल्स होस्टल में एक रूम में रहती थीं. प्रीति के पिताजी एक अच्छे ओहदे वाली सर्विस में थे, किंतु असमय उन का देहांत हो गया था जिस के कारण उस की मां को अनुकंपा के आधार पर उसी औफिस में क्लर्क की नौकरी मिल गई थी.

प्रीति के बाबूजी बहुत पहले अपना गांव छोड़ कर आगरा में आ गए थे और यहीं उन्होंने एक छोटा सा मकान बना लिया था. गांव की जमीन और मकान उन्होंने बेच दिया था. प्रीति की मां चाहती थीं कि वह आईएएस की तैयारी करे ताकि एक ऊंची पोस्ट पर जा कर अपनी विकलांगता के दर्द को भुला सके, इसलिए उन्होंने उसे दिल्ली में एमए करने के लिए भेजा था. प्रीति को शुरू से ही साइकोलौजी में गहरी रुचि थी और बीए में भी उस का यह फेवरेट सब्जैक्ट था इसलिए उस ने इसी सब्जैक्ट से एमए करने का विचार किया. प्रीति को शुरू से ही कुछ सीखने और अधिकाधिक ज्ञानार्जन करने की इच्छा थी. वह साइकोलौजी में शोध कार्य करना चाहती थी और भविष्य में किसी कालेज में लैक्चरर बनने की ख्वाहिश पाले हुए थी.

नीलम एक बड़े बिजनैसमैन की बेटी थी. उस के पिताजी चाहते थे कि उन की बेटी दिल्ली के किसी कालेज से एमए कर ले और उस की सोसायटी मौडर्न हो जाए क्योंकि आजकल बिजनैसमैन के लड़के भी एक पढ़ीलिखी और मौडर्न लड़की को शादी के लिए प्रेफर करते थे. इसलिए उस ने दिल्ली के इसी कालेज में ऐडमिशन ले लिया था और ईजी सब्जैक्ट होने के कारण साइकोलौजी से एमए करना चाहती थी. समीर के पिताजी उसे आईएएस बनाना चाहते थे और समीर भी इस के लिए इच्छुक था, इसलिए वह भी साइकोलौजी से एमए करने के लिए कालेज में ऐडमिशन लिए हुए था.

प्रीति एक साधारण परिवार की थी और स्वभाव से भी बहुत ही सरल, इसलिए उस की वेशभूषा और पोशाकें भी साधारण थीं. पर वह सुंदर व स्मार्ट थी. उसे बनावशृंगार और मेकअप पसंद नहीं था किंतु दूसरी ओर नीलम सुंदर और छरहरे बदन की गोरी लड़की थी और अपने शरीर की सुंदरता पर उस का सब से ज्यादा ध्यान था. वह मेकअप करती और प्रतिदिन नईनई ड्रैस पहनती. कालेज में जहां प्रीति अपनी किताबों में उल?ा रहती वहीं नीलम अपनी सहेलियों के साथ गपें मारती और मस्ती करती.

एक दिन प्रीति लंच के समय कालेज की लाइब्रेरी में कुछ किताबों से कुछ नोट्स तैयार कर रही थी. तभी नीलम उस के पास आई और बोली, ‘‘अरे पढ़ाकू, यह लंच का समय है और तुम किताबों से माथापच्ची कर रही हो जैसे रिसर्च कर रही हो. चलो चल कर कैफेटेरिया में चाय पीते हैं.’’

‘‘तुम जाओ, मैं थोड़ी देर बाद आऊंगी,’’ प्रीति ने कहा तो नीलम चली गई.

तभी उस ने महसूस किया कि उस के पीछे कोई खड़ा है. उस ने पलट कर पीछे की ओर देखा तो समीर था.

बस में मिलने के बाद समीर आज पहली बार उस के पास आ कर खड़ा हुआ था. क्लास में कभीकभी उस की ओर देख लिया करता था, किंतु बात नहीं करता था.

‘‘प्रीति सभी लोग कैफेटेरिया में चाय पी रहे हैं और तुम यहां बैठ कर नोट्स बना रही हो? अभी तो परीक्षा होने में काफी देर है. चलो, चाय पीते हैं.’’

‘‘बाद में आऊंगी समीर, थोड़े से नोट्स बनाने बाकी हैं, पूरा कर लेती हूं.’’

‘‘अब बंद भी करो,’’ समीर ने उस की नोटबुक को समेटते हुए कहा.

‘‘अच्छा चलो,’’ प्रीति भी किताबों को नोटबुक के साथ हाथ में उठाते हुए उठ खड़ी हुई.

जब समीर और प्रीति कैफेटेरिया में पहुंचे तो वहां पहले से ही नीलम अपनी कुछ क्लासमेट्स के साथ बैठ कर चाय पी रही थी. अगलबगल और भी कई लड़केलड़कियां थीं.

‘‘आ गई पढ़ाकू,’’ सविता ने उस को देखते हुए चुटकी ली.

‘‘मैं ने कहा, तो मेरे साथ नहीं आई. अब समीर के एक बार कहने पर आ गई. हां भई, उस दिन बस में उठ कर अपनी सीट जो तुम्हें औफर की थी. अब उस का कुछ खयाल तो रखना ही पड़ेगा न.’’ नीलम की बात सुन कर उस की सहेलियां हंसने लगीं.

समीर कुछ झोंप सा गया. बात आईगई हो गई किंतु इस के बाद प्रीति और समीर अकसर आपस में मिलते. प्रीति को साइकोलौजी के कई टौपिक्स पर बहुत ही अच्छी पकड़ थी. उस ने साइकोलौजी में कई जानेमाने लेखकों की पुस्तकों का अध्ययन किया था. जब कभी क्लास में कोई लैक्चरर आता तो उस विषय के ऐसे गंभीर प्रश्नों को उठाती कि सभी उस की ओर ताकने लगते.

समीर को उस के पढ़ने में काफी मदद मिलती. समय के साथसाथ उन के बीच आपसी लगाव बढ़ रहा था. उन के बीच का गहराता संबंध कालेज में चर्चा का विषय था. कुछ साथी उस पर चुटकियां लेने से नहीं चूकते.

‘लंगड़ी ने समीर को अपने रूपजाल में फंसा लिया है,’ कोई कहता तो कोई उन दोनों की ओर इशारा करते हुए अपने मित्र के कान में कुछ फुसफुसाता, जिस का एक ही मतलब होता था कि उन दोनों के बीच कुछ पक रहा है. अब वह किसकिस को जवाब देता. इसलिए चुप रहता.

वैसे भी समीर अपने कैरियर के प्रति सीरियस था. उसे आईएएस की तैयारी करनी थी जिस में साइकोलौजी को मुख्य विषय रखना था. वह इस विषय के बारे में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त कर लेना चाहता था. उधर प्रीति को इसी विषय के किसी टौपिक पर रिसर्च करना था. इसलिए दोनों के अपनेअपने इंटरैस्ट थे. किंतु लगातार एकदूसरे के साथ संपर्क में रहने के कारण उन के अंदर प्रेम का भी अंकुरण होने लगा था जिस को दोनों महसूस तो करते किंतु इस की आपस में कभी चर्चा नहीं करते.

ऐसे ही कब 2 वर्ष गुजर गए उन्हें पता ही नहीं चला. दोनों ने एमए फर्स्ट डिवीजन से पास कर लिया. फिर समीर ने आईएएस की तैयारी के लिए दिल्ली में ही एक कोचिंग जौइन कर ली और प्रीति एक प्रोफैसर के अंडर पीएचडी करने लगी.

नीलम ने किसी तरह एमए किया और घर चली गई. उस के पिता ने उस की शादी एक बिजनैसमैन से कर दी. उस के निमंत्रण पर प्रीति उस की शादी में गई. उस ने समीर को भी निमंत्रण दिया था लेकिन किसी कारणवश समीर नहीं पहुंच पाया. नीलम ने प्रीति से वादा किया था कि भले ही वह उस से दूर है लेकिन जब कभी वह याद करेगी वह जरूर उस से मिलेगी. बिछुड़ते वक्त दोनों सहेलियां खूब रोईं.

इधर समीर और प्रीति के बीच दूरी बढ़ी तो लगाव भी कम होने लगा. उन के बीच कुछ महीनों तक तो फोन पर संपर्क होता रहा, फिर धीरेधीरे वह समाप्त हो गया. यही दुनियादारी है. कभी समीर जब तक उस से एक बार नहीं मिल लेता उसे चैन न मिलता, अब उसे उस की याद ही नहीं रही. प्रीति ने भी उस से बात करनी बंद कर दी.

जीवन किसी का भी हर वक्त एकजैसा कहां रहता है. यह कोई जानता भी तो नहीं कि कब किस के साथ क्या घट जाए. प्रीति अभी दिल्ली में ही थी कि एक दिन सुबह सुबह ही उसे खबर मिली कि उस की मां को हार्टअटैक आया है और वह अस्पताल में भरती है. सुनते ही वह आगरा के लिए भागी किंतु वहां पहुंचने पर मालूम हुआ कि उस की मां अब दुनिया में नहीं रहीं.

प्रीति पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. वह फफक कर रोने लगी. अब उस का एकमात्र सहारा मां भी उसे छोड़ गई थीं. अस्पताल में वह मां के शव को पकड़ कर रो रही थी. उस को सांत्वना देने वाला कोई नहीं था. उस की मां के औफिस वाले आए हुए थे. उन लोगों ने कहा, ‘‘बेटी, अब अपने को संभाल…यह समय रोने का नहीं है. उठो, अब मां का दाहसंस्कार करने की सोचो…अब आग भी तुम्हें ही देनी है.’’

इस दुखभरी घड़ी में अपनों की कितनी याद आती है. उस ने समीर को फोन लगाया लेकिन उस का फोन तो डैड था. शायद उस ने नंबर बदल लिया था. अंतिम बार जब उस से भेंट हुई थी तो कहा था, अब दूसरा सिम लेगा. हारथक कर उस ने नीलम को याद किया. नीलम से उस की शादी में अंतिम बार भेंट हुई थी. वैसे भी उस से कभीकभी बातें होती रहती थीं. उस के हस्बैंड की प्रयागराज में एक बड़ी कपड़े की दुकान थी. वह खुले विचारवाला युवक था, इसलिए नीलम को कहीं आनेजाने में रोक नहीं थी.

नीलम खबर सुनते ही आगरा के लिए अपनी गाड़ी से चल पड़ी. प्रीति के जिम्मे अभी काफी काम थे. अस्पताल का बिल चुकाना, मां का दाहसंस्कार क्रिया करना और अकेले पड़े घर को संभालना. एक युवती जिस को दुनियादारी का भी कोई ज्ञान न हो और जिस की जिंदगी मां पिता की छत्रछाया में बीती हो, व जिस को घर संभालने का कोई व्यावहारिक ज्ञान न हो, अचानक इस तरह की विपत्ति पड़ने पर क्या स्थिति हो सकती है, यह तो वही समझा सकती है जिस के सिर पर यह अचानक बोझ आ पड़ा हो.

इस स्थिति में पड़ोसी भी बहुत काम नहीं आते सिवा सांत्वना के कुछ शब्द बोल देने के. और जिस का कोई अपना न हो उस के लिए तो यह क्षण बड़े ही धैर्य रखने और आत्मबल बनाए रखने का होता है और वह भी तब जब कोई अपना बहुत ही करीबी उसे छोड़ कर चला गया हो. सब से बड़़ी दिक्कत यह थी कि उस के पास पैसे नहीं थे और मां के बैंक अकाउंट का उस के पास कोई लेखाजोखा न था. पिछले महीने मां ने उस के खाते में जो पैसा ट्रांसफर किया था वह अब तक खर्च हो चुका था.

नीलम से वह कुछ मांगना तो न चाहती थी किंतु उस के पास इस के सिवा कोई रास्ता भी नहीं बचा था, इसलिए उस ने उस से कुछ मदद करने के लिए कहा. नीलम ने चलते वक्त चैकबुक और अपना डैबिट कार्ड भी पास में रख लिया. नीलम ने गांव के अपने सहोदर चाचाजी को बुला लिया जिन्होंने प्रीतिकी मां के दाहसंस्कार करवाने में बहुत मदद की. नीलम ने अस्पताल के सारे बिल भर दिए और मां के दाहसंस्कार व पारंपरिक विधि में होने वाले दूसरे आवश्यक खर्च को वहन किया.

प्रीति दकियानूसी विचारों वाली युवती नहीं थी, इसलिए उस ने विद्युत शवदाह द्वारा अपनी मां का दाहसंस्कार किया और अन्य पारंपरिक क्रियाएं भी बहुत सादे ढंग से संपन्न कीं. जब तक प्रीति सारी क्रियाओं से निबट नहीं गई तब तक नीलम उस के साथ रही.

परिस्थितियां चाहे जितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों मनुष्य को उस से तो बाहर निकलना ही पड़ता है और प्रीति भी इस से निकल तो गई किंतु वह जिस खालीपन का एहसास कर रही थी उसे भरना बहुत ही मुश्किल था.

कुछ समय बाद नीलम प्रयागराज लौट गई और प्रीति अपने मकान को एक विश्वस्त आदमी को किराए पर दे कर अपना रिसर्च वाला काम पूरा करने के लिए दिल्ली लौट आई. उसे पता चला कि उस की मां ने अपने नाम से एक इंश्योरैंस भी कराया था जिस का अच्छाखासा पैसा नौमिनी होने के कारण उसे मिल गया.

मां के बैंक अकाउंट में भी काफी पैसे थे, इसलिए उस को अपने रिसर्च के काम में कोई दिक्कत न आई. उस ने नीलम का सारा पैसा लौटा दिया. समय बीतता गया और उस के साथसाथ प्रीति भी पहले से ज्यादा सम?ादार व परिपक्व होती गई. उसे आगरा के ही एक कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई.

इस दुनिया में कहां किसी को किसी से मतलब होता है. वह अकेली थी. समीर जो कभी उस के दिल के करीब आ चुका था उस से भी उस का संपर्क टूट गया था. नीलम अपने घर चली गई थी जिस से कभीकभी फोन पर बातचीत होती रहती थी.

लड़कियों की शादी में तो वैसे ही काफी दिक्कतें होती हैं और उस का तो एक पैर भी खराब था. और उस की शादी के बारे में सोचने वाला भी कोई नहीं था. जो लोग उस के संपर्क में आते थे, वे उस की सुंदरता से आकर्षित हो कर आते थे न कि उस का जीवनसाथी बनने के लिए. इसलिए ऐसे लोगों से वह हमेशा ही अपने को दूर रखती थी. अब तो उस की जिंदगी का एक ही मकसद था घर से कालेज जाना, वहां मनोयोग से छात्रों को पढ़ाना और शाम को घर लौट कर मनोविज्ञान की पुस्तकों का गहरा अध्ययन करना.

इधर, वह मनोविज्ञान पर एक किताब लिख रही थी जिस से उस का खालीपन कट जाता था. कालेज के उस के सहकर्मी पढ़ाने में कम कालेज की आपसी राजनीति में ज्यादा इंटरैस्ट लेते थे और उन की इन बेवजह की चर्चाओं से वह अपने को हमेशा ही दूर रखती थी, इसलिए उन लोगों से भी उस का ज्यादा संबंध नहीं था.

किंतु कालेज के प्रिंसिपल उस को बहुत सम्मान देते थे क्योंकि उन की निगाहों में उसे इतनी कम उम्र में काफी अच्छी जानकारी थी, इसलिए वे उस की हर संभव मदद भी करते थे. कालेज के छात्र भी उस की कक्षाओं को कभी भी नहीं छोड़ते थे क्योंकि उस से अच्छा लैक्चर देने वाला कालेज में कोई अन्य लैक्चरर नहीं था.

एक दिन सुबह उस ने अखबार में देखा कि समीर नाम का कोई आईएएस अधिकारी उस के शहर में जिला अधिकारी बन कर आया हुआ है.

समीर नाम ने ही उस के दिल में हलचल पैदा कर दी. वह सोचने लगी यह वही समीर तो नहीं जो कभी उस के दिल के बहुत करीब हुआ करता था और घंटों मनोविज्ञान के किसी टौपिक पर उस से चर्चा करता था. क्या समीर आईएएस बन गया?

यह प्रश्न उस के जेहन में कौंध रहा था और वह बहुत देर तक समीर के साथ बिताए गए उन पलों को याद कर रही थी जो 5 वर्ष बाद भी अभी तक वैसे ही तरोताजा थे जैसे यह बस कुछ पलों पहले की बात हो.

यही पता लगाने के लिए एक दिन वह उस के औफिस पहुंची तो पता लगा कि साहब अभी मीटिंग में व्यस्त हैं. दूसरे दिन समीर से मिलने के लिए उस के चैंबर में जाना चाहा तो, दरवाजे पर खड़े चपरासी ने उसे रोक दिया और उस से स्लिप मांगी. उस ने सोचा, पता नहीं वही समीर है या कोई और, इसलिए उस ने चैंबर में उस से मिलने का विचार त्याग दिया. वह सोचने लगी वैसे तो जिलाधिकारी आम आदमी के हितों के लिए जिला में पदस्थापित होता है और उस से मिलने के लिए कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र है लेकिन अफसरशाही ने आम आदमी से जिलाधिकारी को कितना दूर कर दिया है.

वैसे जिलाधिकारी से उस के द्वारा समयसमय पर लगाए जाने वाले जनता दरबार में भी आसानी से भेंट हो सकती थी किंतु उस के बारे में जानने की तीव्र जिज्ञासा इतनी थी कि वह बहुत समय तक इस के लिए इंतजार नहीं कर सकती थी. सो, जिलाधिकारी द्वारा राजस्व से संबंधित मुकदमों की सुनवाई के लिए किए जाने वाले कोर्ट के दौरान उस ने उसे देखने का मन बनाया.

उसे किसी ने बताया था कि उस दिन जिलाधिकारी न्यायालय में मुकदमे की सुनवाई करेंगे. जब वह उस के न्यायालय में पहुंची तो समीर मुकदमे की कोई फाइल देख रहा था. वह न्यायालय में खड़ी थी किंतु समीर ने उसे नहीं देखा और वह ?ाट न्यायालय के कमरे से बाहर आ गई. फिर अपने घर पहुंची. अब उस ने सोचा कि वह उस के आवास में जा कर मिलेगी. जब वह उस के आवास पहुंची तो फिर चपरासी ने स्लिप मांगी. उसे लगा, वह तो लड़की है, लोग जाने उस के बारे में क्याक्या सोचने लगें, इसलिए उस से बिना मिले ही वापस घर लौट आई.

समीर को जिला में पदस्थापित हुए 4 महीने से अधिक हो गए थे, किंतु उन दोनों की मुलाकात नहीं हुई थी. अब तक मनोविज्ञान पर प्रीति की लिखी पुस्तक ‘आने वाली पीढि़यां और मनोविज्ञान’ को छापने के लिए दिल्ली का पाठ्यपुस्तकों से संबंधित एक प्रकाशक तैयार हो गया था. पुस्तक की पांडुलिपि उस ने प्रकाशक को सौंप दी थी जो अब मुद्रण के लिए भेजी जा चुकी थी.

अगले महीने उस की प्रतियां तैयार हो कर आ जाने वाली थीं और पुस्तक का विमोचन उस के कालेज के हौल में होना तय हुआ था. प्रिंसिपल के आग्रह पर जिलाधिकारी समीर ने भी विमोचन समारोह में आना स्वीकार कर लिया था और उसी के हाथों उस की पुस्तक का विमोचन होना था.

काम की बहुत ज्यादा व्यस्तता के कारण समीर का ध्यान इस ओर नहीं गया था कि इस की लेखिका वही प्रीति है जो कभी दिल्ली में उस के साथ मनोविज्ञान में एमए कर रही थी. पिंसिपल साहब खुद इन्विटेशन ले कर गए थे और प्रीति ने उन से कभी समीर की चर्चा नहीं की थी.

प्रीति यह सोच कर काफी उत्सुक और रोमांचित थी कि उस की पुस्तक का विमोचन समीर के हाथों होगा और उसी के द्वारा वह सम्मानित की जाएगी. वह सोच रही थी कि वह क्षण कैसा होगा जब वह पहली बार इतने दिनों के बाद समीर के सामने जाएगी. आज वह दिन आ ही गया था.

रात में उसे नींद ठीक से नहीं आई थी. बारबार उसे समीर की बातें, उस के साथ घंटों मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर हुई चर्चाएं याद आ रही थीं. उस समय समीर उस से बारबार कहता था कि वह आईएएस बन कर समाज की सेवा करना चाहता है और अब उस की मनोकामना पूरी हो गईर् थी. उस ने जो सोचा था उसे वह मिल गया था.

क्या समीर की शादी हो गई है या अभी भी वह कुंआरा है, यह प्रश्न भी उस के मन में बारबार कौंध रहा था. वह सोच रही थी कि यदि समीर की शादी हो गई है तो उस की पत्नी कैसी होगी. यदि समीर ने उसे देख कर पुरानी बातों को कुरेदना शुरू किया तो उस की पत्नी की प्रतिक्रिया क्या होगी? कहीं वह उस के संबंधों को ले कर आशंकित तो न हो जाएगी.

उस के मन में पहली बार इतना उत्साह था. दिल में हलचल थी. वहीं, अंदर से समीर से मिलने का एक मधुर एहसास भी था. उस ने अपनी सब से अच्छी साड़ी निकाली और पहली बार अपना इतनी देर तक शृंगार किया. आज सच में वह काफी सुंदर लग रही थी.

पुस्तक विमोचन समारोह के लिए कालेज के हौल को काफी सजाया गया था. शहर के कई गणमान्य व्यक्तियों को भी बुलाया गया था. दूसरे कालेजों के शिक्षक और कई विद्वानों को भी आमंत्रित किया गया था. सब के खानेपीने का इंतजाम पुस्तक के प्रकाशक की ओर से था.

वह कालेज रिकशा से जाती थी, किंतु आज प्रिंसिपल ने उसे लाने के लिए अपनी गाड़ी ड्राइवर के साथ भेजी थी और कालेज के एक जूनियर लैक्चरर को भी साथ लगा दिया था.

जब वह कालेज के हौल में पहुंची तो अधिकतर मेहमान आ चुके थे. लाउडस्पीकर पर कोई पुराना संगीत काफी कम आवाज में बज रहा था. पुस्तक विमोचन की सारी आवश्यक तैयारियां कर ली गई थीं. अब जिलाधिकारी के आने की प्रतीक्षा थी.

तभी जिलाधिकारी समीर के आने का माइक पर अनाउंसमैंट हुआ. समीर के स्टेज पर पहुंचते ही सभी उपस्थित मेहमान उस के सम्मान में खड़े हो गए.  प्रिंसिपल ने समीर का स्टेज पर स्वागत किय??ा और उन्हें अपनी बगल में विशेष अतिथि के रूप में बैठाया. ठीक उस के बगल में प्रीति भी बैठी हुई थी. प्रीति ने समीर को देख कर हाथ जोड़े तो वह अप्रत्याशित रूप से उस को स्टेज पर देख कर विस्मित होते हुए बोला, ‘‘अरे तुम, प्रीति?…यहां?’’

‘‘क्या आप एकदूसरे को पहचानते हैं?’’ प्रिंसिपल ने पूछा.

‘‘हम दोनों ने एक ही साथ दिल्ली में एक ही कालेज से साइकोलौजी में एमए किया है.’’

‘‘लेकिन प्रीति ने यह कभी नहीं बताया,’’ प्रिंसिपल ने अब प्रीति की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘क्यों प्रीति, इतना बड़ा राज तुम छिपाए हुए हो. मुझे तो कम से कम बताया होता.’’

प्रीति प्रिंसिपल को क्या बताती कि उस ने कई बार समीर से मिलने की कोशिश की थी लेकिन कुछ संकोच, कुछ झिझक और परिस्थितियों ने उसे उस से नहीं मिलने दिया और चाह कर भी वह समीर से अपने संबंधों को अपने सहकर्मियों के साथ साझा न कर पाई.

‘‘समीर तुम से मिलने की मैं ने बहुत बार कोशिश की, लेकिन मिल नहीं पाई,’’ वह सकुचाते हुए धीरे से बोली.

‘‘अब यह बहानेबाजी न चलेगी प्रीति. फंक्शन के बाद मैं तुम्हारे घर पर आऊंगा. मां कैसी हैं?’’

सुनते ही प्रीति की आंखें नम होने लगीं और वह इस का कोई जवाब नहीं दे पाई तो प्रिंसिपल ने मामले की नाजुकता को समझाते हुए, बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा, ‘‘इत्मीनान से इस संबंध में बातें होंगी. अभी हम लोग पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम शुरू करते हैं.’’

पुस्तक का विमोचन करते हुए समीर ने प्रीति की सादगी, नम्रता और उस के कोमल भावों की विस्तृत चर्चा करते हुए अपने कालेज के दिनों की यादों को सब के साथ सा?ा करते हुए कहा कि प्रीति कालेज में एक ऐसी लड़की थी जिस से हमारे प्रोफैसर भी बहुत प्रभावित थे. प्रीति को साइकोलौजी पर जितनी पकड़ है उतनी बहुत कम लोगों को होती है. हमें गर्व है कि इस शहर में हमारे बीच प्रीति जैसी एक विदुषी हैं.’’

समीर की बातों से पूरा हौल तालियों से गड़गड़ाने लगा तब प्रीति ने महसूस किया कि समीर, जिस के बारे में उस ने सोचा था कि वह उसे भूल गया है, बिलकुल उस की थोथी समझा थी. उस के दिल में उस के प्रति अभी भी उतना ही लगाव और प्रेम है जितना कालेज के दिनों में हुआ करता था.

फंक्शन के बाद समीर ने उस से उस का फोन नंबर लिया और उस के घर की लोकेशन नोट करते हुए कहा कि इस रविवार को वह उस के साथ ही लंच करेगा. अपना विजिटिंग कार्ड उसे थमाते हुए उस ने रविवार को इंतजार करने के लिए कहा.

फंक्शन के बाद उस के सभी सहकर्मी उस को आंखें फाड़ कर देख रहे थे. समीर ने सभी लोगों के बीच जिस प्रकार प्रीति की प्रशंसा की थी और सम्मान दिया था उस का किसी को भी अनुमान नहीं था. प्रीति ने घर आ कर पूरे घर को साफ किया, ड्राइंगरूम में सोफे को करीने से लगाया और घर के बाहर पड़े हुए गमलों को ठीक से लगाया और उन में पानी दिया.

मां के गुजर जाने के बाद प्रीति अंदर से काफी टूट गई थी. घर में कोई नहीं था और उस का जीवन अकेलेपन के दौर से गुजर रहा था, इसलिए पूरा घर ही अस्तव्यस्त पड़ा हुआ था. किंतु समीर ने जब से कहा था कि रविवार को उस के घर आ कर उस के साथ लंच करेगा उस के शरीर में एक नया ही उत्साह पैदा हो गया था, मनमयूर नाचने लगा था और जीवन के प्रति एक नया नजरिया पैदा हो गया था.

रविवार को सुबह से ही प्रीति समीर के लिए लंच की तैयारी में लगी हुई थी. इस बीच फोन पर उस ने प्रयागराज से नीलम को भी बुला लिया था. वह पुस्तक विमोचन समारोह में कुछ जरूरी कामों में व्यस्त रहने के कारण नहीं आ पाई थी. नीलम भी समीर से मिलने के लिए उत्साहित थी. एक लंबे समय के बाद तीनों एकसाथ एक टेबल पर मिलने वाले थे.

समीर ने उसे फोन पर सूचना दी थी कि वह रविवार को 2 बजे के बाद आएगा, उसे एक जरूरी मीटिंग में शामिल होना है क्योंकि जिले में सोमवार को सीएम का दौरा होने वाला था. किंतु वह उस दिन 12 बजे ही आ गया.

‘‘सीएम साहब का दौरा रद्द हो गया तो मैं जल्दी आ गया,’’ आते ही वह बोला. उस का घर एक संकरी गली में था. उस की गाड़ी सड़क पर खड़ी थी. बौडीगार्ड साथ में था.

उसे अचानक आया देख प्रीति और नीलम दोनों उठ खड़ी हुईं.

नीलम को देख कर उस ने सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘अरे तुम कब आईं. तुम भी आगरा में ही रहती हो क्या?’’

‘‘नहीं, तुम्हारे बारे में प्रीति ने बताया तो मिलने आ गई,’’ नीलम मुसकराते हुए बोली.

‘‘अच्छा हुआ तुम आ गईं. मैं इस शहर में पिछले 4 महीने से हूं लेकिन प्रीति को मेरी कभी याद न आई.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है समीर, तुम से मिलने का मैं ने कई बार सोचा लेकिन मिलने की हिम्मत न हुई.’’ प्रीति ने कहा.

‘‘क्यों, मैं तुम्हारे लिए गैर कब से हो गया. यह क्यों नहीं कहतीं कि तुम मु?ा से मिलना ही नहीं चाहती थीं.’’ अब प्रीति उस से क्या कहती और कहती भी तो क्या उस की सफाई से समीर की उलाहना दूर हो जाती?

‘‘अच्छा, अब बता मां जी कहां हैं?’’

‘‘समीर, अब प्रीति की मां इस दुनिया में नहीं हैं,’’ नीलम ने बताया.

कुछ देर तक समीर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘सौरी प्रीति, मैं ने तुम्हारे दिल के दर्द को कुरेदा. अब घर में कौन रहता है?’’

‘‘इस के साथ अब कोई रहने वाला नहीं है समीर. यह नितांत अकेलापन का जीवन जीती है. अपनी दुनिया में खोई हुई. जिस तरह कालेज में किताबों में खोई रहती थी, अब भी किताबें ही इस की साथी हैं,’’ नीलम बोली.

समीर थोड़ी देर तक घर में इधरउधर देखते रहा. उस की मां और बाबूजी का फोटो सामने की दीवार पर टंगा हुआ था. उस ने सोचा उस का ध्यान अब तक उन फोटो पर क्यों नहीं गया जो वह प्रीति को बारबार मां की याद दिलाता रहा. उस ने हाथ जोड़ कर उस के मातापिता के फोटो के सामने जा कर उन्हें प्रणाम किया और प्रीति से बोला, ‘‘जिंदगी इसी का नाम है. यह कोई नहीं जानता कि किस की जिंदगी उस को किस तरह जीने के लिए मजबूर करेगी. तुम से बिछुड़ने के बाद मैं एक बौयज होस्टल में शिफ्ट कर गया जहां सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले लड़के रहते थे. घर में पढ़ने का माहौल नहीं था.

‘‘वहां एक दिन किसी ने मेरा स्मार्टफोन चुरा लिया. उस फोन में बहुत सारी इन्फौर्मेशन थीं, उसी में तुम्हारा फोन नंबर भी था. मैं ने तुम्हें खोजने का प्रयास किया किंतु तुम्हें ढूंढ़ नहीं पाया. फिर मेरी कोचिंग की क्लासेज चलने लगीं और परीक्षा की तैयारी में इतनी बुरी तरह उल?ा कि फिर तुम्हारी ओर ध्यान ही नहीं गया और इसी बीच मेरे बाबूजी का तबादला कंपनी वालों ने दूसरे शहर में कर दिया जहां वे मां के साथ शिफ्ट कर गए.

‘‘मैं इकलौती संतान था. घर में कोई रहने वाला नहीं था, इसलिए पिताजी ने 3 कमरों के इस अपार्टमैंट में एक कमरा निजी उपयोग के लिए रख कर 2 कमरे किराए पर दे दिए. लेकिन प्रीति तुम चाहतीं तो मेरे घर जा कर मेरे किराएदार से मेरा फोन नंबर मांग सकती थीं क्योंकि कभीकभी मैं वहां जाया करता था और किराएदार को मेरा फोन नंबर मालूम था. तुम तो मेरे घर आई थीं. मेरे मातापिता तुम्हें बहुत ही लाइक करते थे. मां तो हमेशा ही तुम्हारे सरल स्वभाव की प्रशंसा करती थीं और पिताजी अकसर कहा करते थे कि किसी भी व्यक्ति का गुण प्रधान होता है न कि उस का शरीर.

‘‘मेरे मांबाबूजी इसी हफ्ते यहां घूमने आने वाले हैं. मैं तुम्हें उन से मिलवाऊंगा.’’

‘‘हां समीर, मुझे भी उन से मिलने की बहुत इच्छा है. उन से मिले हुए काफी दिन हो गए हैं. उन के आने के बाद तुम मुझे फोन करना, मैं उन से मिलने जरूर आऊंगी. लेकिन तुम अपनी पत्नी को ले कर क्यों नहीं आए?’’

समीर ने हंसते हुए कहा, ‘‘अभी तुम्हारी जैसी कोई मिली नहीं.’’

‘‘क्यों मजाक करते हो समीर. मेरे जैसी कोई मिले भी नहीं. हैंडीकैप होना एक अभिशाप से कम नहीं है.’’

‘‘ऐसा न कहो प्रीति, आज भी मनोविज्ञान के क्षेत्र में तुम्हारा मुकाबला करने वाला इस शहर में कोई नहीं है.’’

यह तो प्रीति नहीं जानती थी कि समीर के साथ उस का क्या रिश्ता है किंतु अंदर ही अंदर यह जान कर कि वह अब तक कुंआरा है उस के मन के तार झांकृत हो उठे.

इस बीच समीर के मांबाबूजी के आने का वह बेसब्री से इंतजार करती रही और फिर कुछ ही दिनों बाद समीर ने उसे फोन कर बताया कि उस के मांबाबूजी आए हुए हैं और उस से मिलना चाहते हैं. आज रात का डिनर उन के साथ करोगी तो उसे खुशी होगी.

प्रीति तो इसी अवसर का इंतजार कर रही थी, इसलिए उस ने उस के निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया. उसे अंदर आने से कोई न रोके, इसलिए समीर ने उस को लाने के लिए अपनी प्राइवेट कार भेज दी थी.

प्रीति को लेने समीर अपने आवास के गेट तक स्वयं आया. जब वह उस के साथ ड्राइंगरूम में पहुंची तो उस के मांबाबूजी उस का इंतजार कर रहे थे. उस ने उन के पैर छुए. उन्होंने उसे अपनी बगल में बैठा लिया.

‘‘समीर तुम्हारी हमेशा चर्चा करता है. सुना मां भी नहीं रहीं. घर में अकेली हो. बेटी मैं समझा सकती हूं तुम्हारी तकलीफ को. लड़की वह भी अकेली,’’ समीर की मां बोलीं.

‘‘बेटी, अब आगे क्या करना है?’’ समीर के बाबूजी ने पूछा.

‘‘क्या करूंगी बाबूजी. दिन में कालेज में पढ़ाती हूं, रात में अध्ययन, कुछ लेखन.’’ उस ने नम्रता से कहा.

‘‘अभी क्या लिख रही हो?’’

‘‘अभी तो कुछ नहीं. इस पुस्तक का रिस्पौंस देख लेती हूं कैसा है, फिर आगे का प्लान बनाऊंगी.’’

‘‘यह पुस्तक ‘आनेवाली पीढि़यां और मनोविज्ञान’ मैं ने पढ़ी. समीर ने दी थी. यह सच है कि मनोविज्ञान के स्थापित सिद्धांत आने वाली पीढि़यों के संदर्भ में वैसे ही न रहेंगे.’’

‘‘बाबूजी, आप भी क्या न… आते ही पुस्तक की चर्चा में लग गए. घर और बाहर रातदिन यही तो यह करती है. आज तो हम एंजौय करें. वैसे प्रीति, मैं तुम से पूछना भूल गया था, सारे आइटम वेज ही रखे हैं. मांबाबूजी वैजिटेरियन हैं.’’

‘‘मैं भी वैजिटेरियन ही हूं.’’

खाना खाने के बाद जब प्रीति जाने को हुई तो मां ने उसे रोका.

‘‘बेटी, तुम्हारी शादी की कहीं बात चल रही है क्या?’’

प्रीति कुछ न बोल पाई. जवाब देती भी क्या. उस की शादी के लिए कौन बात करने वाला था.

‘‘सम?ा गई बेटी. अब तो तुम्हारे घर में तुम्हारे सिवा कोई है नहीं जिस से तुम्हारी शादी के बारे में बात की जाए. समीर तुम्हारी बहुत प्रशंसा करता है. आईएएस में उस के सिलैक्शन के बाद कई अमीर घराने के लोग अपनी बेटियों की शादी के लिए आए. वे सभी अपनी दौलत के बल पर समीर को खरीदना चाहते थे.

‘‘समीर का इस संबंध में स्पष्ट मत था कि शादी मन का मिलन होता है, सिर्फ शरीर का नहीं और जो लड़की अपने बाप की हैसियत के बल पर इस घर में आएगी वह कभी भी अपना दिल उसे न दे पाएगी. बेटी, अगर तुम्हें कोई आपत्ति न हो और समीर से तुम्हारा मन मिलता हो तो इस घर में तुम्हारी जैसी बहू पा कर हम प्रसन्न होंगे. समीर के पिताजी की भी यही इच्छा है. समीर भी यही चाहता है. अब सबकुछ तुम पर निर्भर करता है. तुम इत्मीनान से फैसला ले कर बताना. कोई जल्दी नहीं है, हम तुम्हारे जवाब का इंतजार करेंगे.’’

‘‘लेकिन मांजी, कहां समीर की पोस्ट और कहां मैं एक साधारण कालेज की लेक्चरार.’’

‘‘अब लज्जित न करो प्रीति,’’ समीर बोला, ‘‘मेरे और तुम्हारे संबंधों के बीच हमारी पोस्ट और हैसियत बीच में कहां से आ गई, इसी से बचने के लिए तो मैं ने

अब तक किसी शादी का प्र्रस्ताव स्वीकार नहीं किया.’’

प्रीति ने लज्जा से सिर झांका लिया.

उस ने समीर के मांबाबूजी के पैर छूते हुए कहा, ‘‘आप लोगों का आदेश मेरे लिए आज्ञा से कम नहीं.’’

फिर उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

समीर उसे छोड़ने उस के घर तक गया. जब वह लौटने लगा तो उस ने प्रीति को अपने गले से लगा लिया. और बोला, ‘‘प्रीति पतिपत्नी का रिश्ता बराबर का होता है, आज भी मैं वही समीर हूं जो कालेज के दिनों में हुआ करता था और आगे भी ऐसे ही रहूंगा.’’

समीर के गले लगी प्रीति को ऐसा लग रहा था मानो सारे जहां की खुशियां उसे मिल गई हैं. रात का सियाह अंधेरा अब समाप्त हो चुका था. सुबह की नई किरणें फूटने लगी थीं. Long Hindi Story

Hindi Love Story: प्यार की खातिर – मोहन और गीता की कहानी

Hindi Love Story: प्यार कभी भी और कहीं भी हो सकता है. प्यार एक ऐसा अहसास है, जो बिन कहे भी सबकुछ कह जाता है. जब किसी को प्यार होता है तो वह यह नहीं सोचता कि इस का अंजाम क्या होगा और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह इनसान किसी के प्यार में इतना खो जाता है कि बस प्यार के अलावा उसे कुछ दिखाई नहीं देता है. तभी तो कहते हैं कि प्यार अंधा होता है. सबकुछ लुटा कर बरबाद हो कर भी नहीं चेतता और गलती पर गलती करता चला जाता है.

मोहन हाईस्कूल में पढ़ने वाला एक 16 साल का लड़का था. वह एक लड़की गीता से बहुत प्यार करने लगा. वह उस के लिए कुछ भी कर सकता था, लेकिन परेशानी की बात यह थी कि वह उसे पा नहीं सकता था, क्योंकि मोहन के पापा गीता के पापा की कंपनी में एक मामूली सी नौकरी करते थे. मोहन बहुत ज्यादा गरीब घर से था, जबकि गीता बहुत ज्यादा अमीर थी. वह सरकारी स्कूल में पढ़ता था और गीता शहर के नामी स्कूल में पढ़ती थी.

लेकिन उन में प्यार होना था और प्यार हो गया. मोहन गीता से कहता, ‘‘तुम मुझ से कभी दूर मत जाना क्योंकि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह पाऊंगा.’’ ‘‘हां नहीं जाऊंगी, लेकिन मेरे घर वाले कभी हमें एक नहीं होने देंगे,’’ गीता ने कहा.

‘‘क्यों?’’ मोहन ने पूछा. ‘‘क्योंकि तुम सब जानते हो. हमारा समाज हमें कभी एक नहीं होने देगा,’’ गीता बोली.

‘‘हम इस दुनिया, समाज सब को छोड़ कर दूर चले जाएंगे,’’ मोहन ने कहा. ‘‘नहींनहीं, मैं यह कदम नहीं उठा सकती. मैं अपने परिवार को समाज के सामने शर्मिंदा होते नहीं देख सकती,’’ गीता ने अपने मन की बात कही.

‘‘ठीक है, तो तुम मेरा तब तक इंतजार करना, जब तक मैं इस लायक न हो जाऊं और तुम्हारे पापा के सामने जा कर उन से तुम्हारा हाथ मांग सकूं. बोलो मंजूर है?’’ मोहन ने कहा. गीता हंसी और बोली, ‘‘क्या होगा, अगर मैं तुम से शादी कर के एकसाथ न रह सकी? हम चाहें दूर रहें या पास, मेरे दिल में तुम्हारा प्यार कभी कम नहीं होगा. तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगे.’’

यह सुन कर मोहन दिल ही दिल में रो पड़ा और सोच में पड़ गया. ‘‘क्या तुम मुझे छोड़ कर किसी और से शादी कर लोगी? मुझे भूल जाओगी? मुझ से दूर चली जाओगी?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकती कि तुम्हें भूल जाऊं. मैं मरते दम तक तुम्हें नहीं भूल पाऊंगी,’’ गीता बोली. ‘‘फिर मेरा दिल दुखाने वाली बात क्यों करती हो? कह दो कि तुम मेरी हो कर ही रहोगी?’’ मोहन ने कहा.

समय अपनी रफ्तार से चल रहा था. मोहन दिनरात मेहनत कर के खुद को गीता के काबिल बनाने में लगा था, ताकि एक दिन उस के पिता के पास जा कर गीता का हाथ मांग सके. इधर गीता यह सोचने लगी, ‘मोहन मेरी अमीरी की खातिर मुझ से दूर जा रहा है. वह मुझे पा नहीं सकता इसलिए दूरी बना रहा है.’

इधर गीता के घर वाले उस के लिए लड़का देखने लगे और उधर मोहन जीजान से पढ़ाई में लगा हुआ था. उसे पता भी नहीं चला और गीता की शादी तय हो गई. जब यह बात मोहन को पता चली तो वह गीता की खुशी की खातिर चुप लगा गया, क्योंकि उस की शादी शहर के बहुत बड़े खानदान में हो रही थी. उस का होने वाला पति एक बड़ी कंपनी का मालिक था.

यह सब जानने और सुनने के बाद मोहन अपने प्यार की खुशी की खातिर उस से दूर जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन यह तो नामुमकिन था. वह किसी भी कीमत पर जीतेजी उस से दूर नहीं हो सकता था. सचाई जाने बगैर ही उस ने एक गलत कदम उठाने की सोच ली. गीता अंदर ही अंदर बहुत दुखी थी और परेशान थी क्योंकि वह भी तो मोहन को बहुत प्यार करती थी.

जिस दिन गीता की शादी थी उसी दिन मोहन ने एक सुसाइड नोट लिखा और फांसी लगा ली. ठीक उसी समय गीता ने भी एक सुसाइड नोट लिखा और जब सब लोग बरात का स्वागत करने में लगे थे उस ने खुद को फांसी लगा कर खत्म कर लिया.

प्यार की खातिर 2 परिवार दुख के समंदर में डूब गए. बस उन दोनों की जरा सी गलतफहमी की खातिर. हम मिटा देंगे खुद को प्यार की खातिर जी नहीं पाएंगे पलभर तुम से दूर रह कर. कर के सबकुछ समर्पित प्यार के लिए बिखरते हैं कितना हम टूटटूट कर. विश्वास बहुत बड़ी चीज होती है. हमें अपनों पर और खुद पर भरोसा करना चाहिए, ताकि जो उन दोनों के साथ हुआ वैसा किसी के साथ न हो. अगर प्यार करो तो निभाना भी चाहिए और बात कर के गलतफहमियों को मिटाना भी चाहिए, क्योंकि प्यार वह अहसास है जो हमें जीने की वजह देता है.

अगर इस दुनिया में प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं. प्यार अमीरीगरीबी, ऊंचनीच, धर्म, जातपांत कुछ भी नहीं देखता. अगर किसी को एक बार प्यार हो जाए तो वह उस की खुशी की खातिर अपनी जिंदगी की भी परवाह नहीं करता. प्यार तो कभी भी कहीं भी किसी से भी हो सकता है, पर सच्चा प्यार होना और मिलना बहुत मुश्किल होता है. खुद पर और अपने प्यार पर हमेशा भरोसा बनाए रखना चाहिए, क्योंकि इस फरेबी दुनिया में सच्चा प्यार बहुत मुश्किल से मिलता है. Hindi Love Story

Hindi Romantic Story: दिल की दहलीज पर

Hindi Romantic Story: ‘‘आहा,चूड़े माशाअल्लाह, क्या जंच रही हो,’’ नवविवाहिता मधुरा की कलाइयों पर सजे चूड़े देख दफ्तर के सहकर्मी, दोस्त आह्लादित थे. मधुरा का चेहरा शर्म से सुर्ख पड़ रहा था. शादी के 15 दिनों में ही उस का रूप सौंदर्य और निखर गया था. गुलाबी रंगत वाले चेहरे पर बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और लाल रंगे होंठ…

कुछ गहने अवश्य पहने थे मधुरा ने, लेकिन उस के सौंदर्य को किसी कृत्रिम आवरण की आवश्यकता न थी. नए प्यार का खुमार उस की खूबसूरती को चार चांद लगा चुका था.

‘‘और यार, कैसी चल रही है शादीशुदा जिंदगी कूल या हौट?’’ सहेलियां आंखें मटकामटका कर उसे छेड़ने लगीं. सच में मनचाहा जीवनसाथी पा मानों उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. मातापिता के चयन और निर्णय से उस का जीवन खिल उठा था.

‘‘वैसे क्या बढि़या टाइम चुना तुम ने अपनी शादी का. क्रिसमस के समय वैसे भी काम कम रहता है… सभी जैसे त्योहार को पूरी तरह ऐंजौय करने के मूड में होते हैं,’’ सहेलियां बोलीं.

‘‘इसीलिए तो इतनी आसानी से छुट्टी मिल गई 15 दिनों की,’’ मधुरा की हंसी के साथसाथ सभी सहकर्मियों की हंसी के ठहाकों से सारा दफ्तर गुंजायमान हो उठा.

तभी बौस आ गए. उन्हें देख सभी चुप हो अपनीअपनी सीट पर चले गए.

‘‘बधाई हो, मधुरा. वैलकम बैक,’’ कहते हुए उन्होंने मधुरा का दफ्तर में पुन: स्वागत किया.

सभी अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए.

‘‘मधुरा, शादी की छुट्टी से पहले जो तुम ने टर्न की प्रोजैक्ट किया था कैरी ऐंड संस कंपनी के साथ, उस का क्लोजर करना शेष है. तुम्हें तो पता हैं हमारी कंपनी के नियम… जो रिसोर्स कार्य आरंभ करता है वही कार्य को पूरी तरह समाप्त कर वित्तीय विभाग से उस का पूर्ण भुगतान करवा कर, फाइल क्लोज करता है. लेकिन बीच में ही तुम्हारे छुट्टी पर जाने के कारण उन का भुगतान अटका हुआ है. उस काम को जल्दी पूरा कर देना,’’ कह कर बौस ने फोन काट दिया.

मधुरा ने फाइल एक बार फिर से देखी. भुगतान के सिवा और कार्य शेष न था. फाइल पूरी करने हेतु उसे कैरी ऐंड संस कंपनी के प्रबंधक जितेन से एक बार फिर मिलना होगा और फिर वह जितेन के विचारों में खो गई.

शाम को घर लौट कर रात के भोजन की तैयारी कर मधुरा अपने कमरे में हृदय के दफ्तर से लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी. समय काटने के लिए उस ने अपनी डायरी उठा ली. पुराने पन्ने पलटने लगी. पुराने पन्ने उसे स्वत: ही पुरानी यादों में ले गए…

29 जुलाई

आज इंप्लोई मीटिंग में बौस ने मेरे काम की तारीफ की. कितनी खुशी हुई, मेरे परिश्रम का परिणाम दिखने लगा है. नए क्लाइंट कैरी ऐंड संस कंपनी का प्रोजैक्ट भी मुझे मिल गया. इस प्रोजैक्ट को मैं निर्धारित समयसीमा में पूरा कर अपने परफौर्मैंस अप्रेजल में पूरे अंक लाऊंगी.

30 जुलाई

क्या बढि़या दफ्तर है कैरी ऐंड संस कंपनी का. मुझे आज तक अपना दफ्तर कितना एवन लगता था, लेकिन आज उन का दफ्तर देख कर मेरे होश फाख्ता हो गए. इंटीरियर डिजाइनर का काम लाजवाब है. इतने बढि़या दफ्तर में अकसर आनाजाना लगा रहेगा. मजा आ जाएगा.

31 जुलाई

सारे विभाग बहुत अच्छी तरह नियंत्रित हैं और आपस में अच्छा समन्वय स्थापित है. कैरी ऐंड संस कंपनी का आईटी विभाग प्रशंसा के काबिल है. आज अपने काम की शुरुआत की मैं ने. लोगों से मिल ली. किंतु जिन के साथ मिल कर काम करना है यानी जितेन, उन से मिलना रह गया. कल उन से भी मिल लूंगी.

1 अगस्त

मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसे हीरो जैसा बंदा दफ्तर में टकराएगा मुझ से.

उफ, कितना खूबसूरत नौजवान है जितेन. लंबाचौड़ा, सुंदर… लगता है सीधे ‘मिल्स ऐंड बून्स’ के उपन्यासों से बाहर आया है… मेरे सपनों का राजकुमार.

6 अगस्त

आज पूरे हफ्ते भर बाद फिर से जितेन से मुलाकात हुई. वे इतना व्यस्त रहते हैं कि मुलाकात ही नहीं हो पाती. इतने ऊंचे पद पर हैं… अभी तक ठीक से बात भी नहीं हो पाई है. पता नहीं कब हम दोनों को बातचीत करने का मौका मिलेगा. अभी तो मैं जितेन को अपने कार्य के बारे में भी ढंग से नहीं बता पाई हूं.

16 अगस्त

जितना देखती हूं उतना ही दीवानी होती जा रही हूं मैं जितेन की. एक बार मेरी ओर देख भर ले वह… मेरी सांस गले में ही अटक जाती है. लगता है जो बोल रही हूं, जो काम कर रही हूं, सब भूल जाऊंगी. इतना स्वप्निल मैं ने स्वयं को कभी नहीं पाया पहले. यह क्या हो जाता है मुझे जितेन के समक्ष. लेकिन वह है कि मुझे समय

ही नहीं देता. बस 4-5 मिनट कुछ काम के बारे में पूछ कर चला जाता है. कब समझेगा वह मेरे दिल का हाल? क्या मेरी आंखों में कुछ नहीं दिखता उसे?

3 सितंबर

आज घर लौटते समय एफएम, पर ‘सत्ते पे सत्ता’ मूवी का गाना सुना, ‘प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया. कि दिल करे हाय, कोई तो बताए क्या होगा… गाड़ी चलाते समय पूरा गला खोल कर गाना गाने का मजा ही कुछ और है…’ फिर आज तो गाना भी मेरे दिल का हाल बयां कर रहा था. न जाने जितेन के साथ पल दो पल कब मिलेंगे और मैं अपने दिल का हाल कब कह पाऊंगी.

हृदय के कमरे में आने की आहट से मधुरा अतीत की स्मृतियों से वर्तमान में लौट आई.

‘‘कैसा रहा दफ्तर में शादी के बाद पहला दिन?’’ हृदय ने पूछा.

मधुरा को हृदय की यह बात भी बहुत भाती थी कि वह उस की हर गतिविधि, हर भावना, हर बात का खयाल रखता है. दोनों ने बातचीत की, खाना खाया और अगली सुबह के लिए अलार्म लगा कर सो गए.

अगले दिन मधुरा अपने क्लाइंट कैरी ऐंड संस कंपनी पहुंची. आज उस ने फाइल क्लोजर की पूरी तैयारी कर ली थी. फाइनल पेमैंट का चैक देने वह जितेन के कक्ष में पहुंची. उस के हाथों में चूड़े देख जितेन ने उसे बधाई दी, ‘‘मुझे आप की कंपनी से पता चला था कि आप अपनी शादी हेतु छुट्टियों पर गई हैं.’’

कार्य पूरा करने के बाद मधुरा ने अपने दफ्तर लौटने के लिए कैब बुला ली. सारे रास्ते उस के मनमस्तिष्क में जितेन घूमता रहा. किस औपचारिकता से बात कर रहा था आज… उसे याद हो आया वह समय जब जितेन और मधुरा की मित्रता भी हो गई थी और वह ‘सिर्फ अच्छे दोस्त’ की श्रेणी से कुछ आगे भी बढ़ चुके थे.

मधुरा तब कैरी ऐंड संस कंपनी जाने के बहाने खोजती रहती. जितेन भी हर शाम उसे उस के दफ्तर से पिक करता और दोनों कहीं कौफी पीते समय व्यतीत करते. दोनों को ही एकदूसरे का साथ बेहद भाता था. मधुरा के चेहरे की चमक बढ़ती रहती और जितेन कुछ गंभीर स्वभाव का होने के बावजूद उसे देख मुसकराता रहता. जितेन आए दिन मधुरा को तोहफे देता रहता. कभी ‘शैनेल’ का परफ्यूम तो कभी ‘हाई डिजाइन’ का हैंडबैग.

‘‘जितेन, क्यों इतने महंगे तोहफे लाते हो मेरे लिए? मैं हर बार घर और दफ्तर में झूठ बोल कर इन की कीमत नहीं छिपा सकती.’’

‘‘तो सच बता दिया करो न… मैं ने कब रोका है तुम्हें?’’

‘‘तुम तो जानते हो कि हमारी कंपनी में भरती के समय हर मुलाजिम से कौंफिडैंशियलिटी ऐग्रीमैंट भरवाया जाता है. चूंकि तुम एक क्लाइंट हो, मैं तुम्हें न तो डेट कर सकती हूं और न ही तुम से शादी. इतना ही नहीं मैं तुम्हारी कंपनी अगले 2 वर्षों तक भी जौइन नहीं कर सकती हूं… तुम से शादी के बाद मैं नौकरी से त्यागपत्र दे कहीं और नौकरी ढूंढ़ूंगी…’’

‘‘शादी के बाद? हैंग औन,’’ मधुरा की बात को बीच में ही काटते हुए जितेन ने कहा, ‘‘शादी तक कहां पहुंच गईं तुम? हम एक कपल हैं, बस, मैं अभी शादीवादी के बारे में सोच भी नहीं सकता… वैसे भी शादी तो मां अपने सर्कल की किसी लड़की से करवाना चाहेंगी… तुम समझ रही हो न?’’

मधुरा के माथे पर चिंता की लकीरें और चेहरे पर असमंजस के भाव पढ़ कर जितेन ने आगे कहा, ‘‘तुम इस समय का लुत्फ उठाओ न… ये महंगे तोहफे, ये बढि़या रेस्तरां, अथाह शौंपिंग… ये सब तुम्हें खुश करने के लिए ही तो हैं… कूल?’’

उस शाम मधुरा को पता चला कि सामाजिक स्तर का भेदभाव केवल कहानियों में नहीं, अपितु वास्तविक जीवन में भी है. उस ने सोचा न था कि उसे भी इस भेदभाव का सामना करना पड़ेगा. उस के बाद जब कभी जितेन टकराया, बस एक फीकी सी मुसकान मधुरा के पाले में आई. खैर, उस का भी मन नहीं हुआ कि जितेन से बात करे. उस का मन खट्टा हो चुका था.

फिर उस की मम्मी ने उसे रमा आंटी के बेटे से मिलवाया. अच्छा लगा था मधुरा को वह. खास कर उस का नाम-हृदय. शांत, सुशील और विनम्र. घरपरिवार तो देखाभाला था ही, रहता भी इसी शहर में था. चलो, ‘मिल्स ऐंड बून्स’ के हीरो को भी देख लिया और अब वास्तविकता के नायक को भी. पर क्या करें. जीवन तो वास्तविक है. इस में सपनों से अधिक वास्तविकता का पलड़ा भारी रहना स्वाभाविक है.

जब से मधुरा की मुलाकात हृदय से हुई थी तभी से कितने अच्छे और मिठास भरे मैसेज भेजने लगा था वह. हृदय ने उस का मन पिघला दिया था. जल्दी ही हामी भर दी उस ने इस रिश्ते के लिए. उस की मम्मी और आंटी कितनी खुश हुईं. उस का मन भी खुश था. मन की तहों ने जहां एक तरफ जितेन को छाना था वहीं दूसरी तरफ हृदय को भी टटोल कर देखा था. मधुरा जैसी रुचिर, लुभावनी और मेधावी लड़की आगे बढ़ चुकी थी.

हर अनुभव जीवन में कुछ सबक लाता है और कुछ यादें छोड़ जाता है. चलते रहने का नाम ही जीवन है. मधुरा अपने दफ्तर पहुंच चुकी थी. आज वह अपने परफौर्मैंस अप्रेजल में अपने पूरे किए प्रोजैक्ट को भरने वाली थी. Hindi Romantic Story

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