लेखक- शुभम पांडेय गगन

लता आज भी उस दर्दनाक हादसे को सोच कर रोने लगती है. उसे लगता है कि सारा मंजर उस के सामने किसी फ़िल्म की भांति चल रहा है. अभी मुश्किल से सालभर भी न हुआ जब उस के हाथों में राजन के नाम की मेहंदी सजी थी और उस की मांग में राजन द्वारा भरा सिंदूर चमक रहा था. अब उस की सूनी मांग हर किसी को रोने को मजबूर कर देती है.लता की उम्र अभी 24 साल है और वह बेहद खूबसूरत व पढ़ीलिखी है.

उस की शादी 6 महीने पहले शहर के एक बड़े व्यापारी  के इकलौते पुत्र राजन से हुई. राजन सुंदर और सुशील लड़का था जो लता को बहुत प्यार भी करता था. उन के प्यार को शायद किसी की नज़र लग गई और राजन की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई. उस की मौत के बाद उस के घर वालों ने लता को बेसहारा कर के उस के मायके भेज दिया. तब से लता यहीं रहती है. उस के पिता शहर से बाहर रहते हैं. वह उन की अकेली बेटी है.

प्रकृति न जाने क्यों ऐसी तक़लीफ देती है जिस में मनुष्य न जी सकता, न मर सकता. लता के दुखों के पहाड़ ने उस की जिंदगी की सारी खुशियां को दबा दिया था. उस की यौवन से सजी बगिया आज वीरान हुई थी.  जिस उम्र में उस की सहेलियों ने अपने परिवार को बढ़ाने और पति के साथ अलगअलग जगहों पर घूमने के प्लान बना रहीं, उस उम्र में वह अकेली सिसकती है.

लता के घर की बगल में महेश का घर है. उन के घर में कई लोग किराए पर रहते हैं. उन में ही एक हैं सुशील, जो पेशे से एक अखबार में काम करते हैं. उन की उम्र 28 साल होगी. वे लंबे कद, सुंदर चेहरे व बढ़िया कदकाठी के मालिक हैं.

वे लता को उस की शादी के पहले से काफ़ी पसंद करते हैं. लेकिन कहने से डरते हैं. आज वे बालकनी में खड़े थे कि लता छत पर कपड़े डालने आई. उन्होंने उस को देखा. उस को देखते ही उन को अपने प्रेम की अनुभूति फिर से उमड़ पड़ी.

लता का सफेद बदन धूप में चमक रहा था. उस के लंबे कमर तक के बाल अपनी लटों में किसी को उलझाने के लिए पर्याप्त थे. उस का यौवन किसी भी को आकर्षित करने में महारथी था.

सुशील उस को देखता रहा. एक दिन उस को लता बाजार में मिली. उस ने कहा, “लता, मुझे तुम से कुछ बात करनी है.”

लता ने कहा, “बोलो सुशील.”

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दोनों एकदूसरे को अच्छे से जानते थे. कोई पहली बार नहीं था कि वह उस से बात कर रही थी. एक दोस्त के नज़रिए से दोनों अकसर बात किया करते थे.

सुशील ने कहा, “कहीं बैठ कर बातें करें.”

दोनों बगल के पार्क में चले गए.

लता ने कहा, “बोलो सुशील.”

सुशील ने कहा, “लता, सच कहूं, मुझ से तुम्हारा दुख देखा नहीं जाता. मैं शुरुआत के दिनों से ही तुम्हें बहुत पसंद करता हूं. मैं ने न जाने कितने सपनों में तुम्हें अपने पत्नी के रूप में स्वीकार किया. लेकिन मेरी इच्छा तुम्हें पाने की असफल रह गई.

“तुम अकेली  कब तक ऐसे दर्द को सहते रहोगी. तुम्हारी भी उम्र है और यह फासला बहुत बड़ा है जिसे अकेले काटना मुश्किल हो जाएगा. अगर तुम चाहो, मैं तुम्हारे साथ इस उम्र के सफर में चलना चाहता हूं.”

लता सारी बातें सुन कर चौंक गई, लेकिन अंदर ही अंदर उस के मन में कहीं न कहीं ये बातें बैठ भी गई थीं. उस के आंखों से अश्रु की धारा अनवरत गिरने लगी.

सुशील ने बड़े प्यार से उसे अपने रूमाल से पोंछा और कहा, “तुम सोचसमझ कर बताना, मैं इंतज़ार करूंगा तुम्हारे जवाब का.”

उस के बाद लता घर आई और उस ने इस विषय में काफ़ी सोचा. उस को उस की उम्र काटने की बातें घर कर गई थीं लेकिन उस के ह्रदय में अभी राजन का चेहरा बसा था.

लेकिन कहते हैं न, कि वक़्त बड़ा बलवान होता है जो दिल से लोगों को निकाल भी फेंकता और किसी अंजान को बसा भी देता है.

लता लगभग एक महीने न सुशील को दिखी न मिली. एक दिन उस के घर की घंटी बजी और जब उस ने दरवाजा खोला तो सामने सुशील खड़ा था.

उस ने कहा, “अंदर आने को नहीं कहोगी?”

लता ने उसे अंदर बुलाया और फिर चाय के लिए पूछा. लेकिन सुशील ने मना कर दिया.

सुशील ने उस को बैठाया और उस से फिर अपने सवाल का जवाब मांगा.

लता ने कहा, “सुशील, मुझे तुम्हारी बातों ने बहुत प्रभावित किया परंतु एक विधवा से शादी करना क्या तुम्हारे घर वाले स्वीकार करेंगे?”

सुशील ने कहा, “मानें या न मानें, मैं तुम से ही करूंगा.”

लता को न जाने क्यों उस पर विश्वास करने को दिल कर रहा था लेकिन वह यह भी जानती थी इस समाज में आज भी बहुत सी कुरीतियों और रूढ़िवादी सोचों का कब्जा है जो उस के मिलन में बाधा पैदा करेंगी.

क्या फर्क पड़ता है- भाग 2

लेकिन फिर भी उस ने सब से लड़ने का फैसला कर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने को सोच लिया और सुशील के प्रस्ताव को मान लिया.

धीरेधीरे दोनों का साथ घूमना, मिलना, घर आनाजाना भी शुरू हो गया. लता के घर में सिर्फ उस के पिताजी थे जो अकसर शहर से बाहर रहते थे. उन को लता ने सब बता दिया और वे भी बहुत खुश थे कि उन की बेटी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती है. एक पिता के लिए इस से खूबसूरत खबर क्या हो सकती थी.

एक दिन लता सुशील के घर गई. दरवाजा खुला था, वह सीधे अंदर गई. तभी किसी ने उस की कमर को पकड़ कर अपनी बांहों में भींच लिया. उस ने पलट कर देखा तो वह सुशील था.

उस ने कहा, “क्या कर रहे हो सुशील, छोड़ो मुझे?”

सुशील ने उस के कंधे पर चूमते हुए कहा, “अपनी जान को प्यार कर रहा हूं. क्या कोई गुनाह कर रहा?”

लता ने कहा, “तुम्हारी ही हूं. कुछ दिन रुक जाओ, फिर शादी के बाद करना प्यार. अभी छोड़ो.”

लेकिन सुशील उसे बेतहाशा कंधे, गले सब जगह चूमता रहा और अपनी बांहों में समेट रखा था. फिर लता ने भी छुड़ाने के असफ़ल प्रयास करना छोड़ उस की बाजुओं में खुद को समेट लिया.

सुशील की सशक्त बाजुओं में वह खुद समर्पित हो कर यौवन के प्रवाह के अधीन हो गई और दोनों काम के यज्ञ में आहुति बन गए.

दोनों का रिश्ता अब जिस्मानी हो चुका था. लता ने अपनी सीमा लांघ कर प्रेम में खुद को अशक्त कर लिया. सुशील ने भी उस के यौवन पर अपनी छाप छोड़ दी.

कुछ दिनों बाद सुशील अपने घर गया. लता ने 2 दिनॉ तक उस का फ़ोन बारबार मिलाया लेकिन कोई जवाब नहीं मिल रहा था.

न जाने क्यों उस के मन मे बुरेबुरे ही ख़याल आते रहे.  उस का मन अंदर ही अंदर किसी अनहोनी को ही सामने ला रहा था परंतु उसे यकीन था, समय हर बार ऐसे खेल नहीं खेल सकता.

3 दिनों बाद एक अलग नंबर से उस के फ़ोन पर घंटी बजी. उस ने तपाक से फ़ोन उठाया और बोली, “हेलो, कौन?”

उसे ज़रा भी देर नहीं लगी कि दूसरी तरफ सुशील था. लता ने धड़ाधड़ प्रश्नों की बौछार कर सुशील को बोलने के मौके का रास्ता अवरुद्ध कर दिया.

सुशील बोला, “लता, तुम सच में मुझ से प्यार करती हो.”

लता ने कहा, “पागल हो, अगर नहीं करती तो सारी सीमाएं तोड़ कर खुद को तुम में समर्पित न करती.”

सुशील ने कहा, ” लता, घर वाले मेरी कहीं और शादी करना चाहते हैं. वे तुम्हारे और मेरे रिश्ते के विरुद्ध हैं. हम दोनों चलो भाग कर शादी कर लें.”

लता स्तब्ध मौन थी. वह न हां बोल रही, न ही मना कर रही. उस को जिस बात का डर था आख़िर वही हो रहा था. उसे पता था कि यह समाज एक विधवा को अभी भी अछूत और कलंकित समझता है.

उस ने फ़ोन रख दिया और फूटफूट कर रोने लगी मानो सालों पहले बीता वही मंजर, जिसे वह भुला चुकी थी, फिर से आ गया हो.

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अगले दिन सुबह उस के दरवाजे पर दस्तक हुई और उस ने दरवाजा खोला. सामने सुशील खड़ा था. उस के कंधे पर एक बैग लटक रहा था. उस ने तुरंत उस का हाथ पकड़ लिया और कहा, “लता, चलो, हम अभी शादी करते हैं.”

लता ने कहा, “अभी…ऐसे? क्या हुआ?”

सुशील ने कहा, “अगर तुम्हें मुझ से प्रेम है तो सवाल न करो और चुपचाप मेरे साथ चलो.”

लता ने उस के साथ जाना उचित समझा. दोनों सीधे कोर्ट गए और वहां कोर्ट मैरिज कर ली.

आज से लता फ़िर सुहागिन हो गई. उस के चेहरे पर अलग सुंदरता आ गई मानो चांद को ढके हुए बादलों का एक हिस्सा अलग हो गया.

समाज की कुरीतियों और रूढ़िवादी सोच को मात दे कर दो प्रेमियों ने अपनी प्रेमकहानी को मुक्कमल कर दिया. सुशील ने लता को नई जिंदगी दी. उसे अपना नाम दिया और जीवनभर चलने के वादे को पूरा किया.

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