मानसी का मन बेहद उदास था. एक तो छुट्टी दूसरे चांदनी का ननिहाल चले जाना और अब चांदनी के बिना अकेलापन उसे काट खाने को दौड़ रहा था. मानसी का मन कई तरह की दुश्चिंताओं से भर जाता. सयानी होती बेटी वह भी बिन बाप की. कहीं कुछ ऊंचनीच हो गया तो. चांदनी की गैरमौजूदगी उस की बेचैनी बढ़ा देती. कल ही तो गई थी चांदनी. तब से अब तक मानसी ने 10 बार फोन कर के उस का हाल लिया होगा. चांदनी क्या कर रही है? अकेले कहीं मत निकलना. समय पर खापी लेना. रात देर तक टीवी मत देखना. फोन पर नसीहत सुनतेसुनते मानसी की मां आजिज आ जाती.

‘‘सुनो मानसी, तुम्हें इतना ही डर है तो ले जाओ अपनी बेटी को. हम क्या गैर हैं?’’ मानसी को अपराधबोध होता. मां के ही घर तो गई है. बिलावजह तिल का ताड़ बना रही है. तभी उस की नजर सुबह के अखबार पर पड़ी. भारत में तलाक की बढ़ती संख्या चिंताजनक…एक जज की इस टिप्पणी ने उस की उदासी और बढ़ा दी. सचमुच घर एक स्त्री से बनता है. एक स्त्री बड़े जतन से एकएक तिनका जोड़ कर नीड़ का निर्माण करती है. ऐसे में नियति उसे जब तहसनहस करती है तो कितनी अधिक पीड़ा पहुंचती है, इस का सहज अनुमान लगा पाना बहुत मुश्किल होता है. आज वह भी तो उसी स्थिति से गुजर रही है. तलाक अपनेआप में भूचाल से कम नहीं होता. वह एक पूरी व्यवस्था को नष्ट कर देता है पर क्या नई व्यवस्था बना पाना इतना आसान होता है. नहीं…जज की टिप्पणी निश्चय ही प्रासंगिक थी.

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पर मानसी भी क्या करती. उस के पास कोई दूसरा रास्ता न था. पति घर का स्तंभ होता है और जब वह अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो जाए तो अकेली औरत के लिए घर जोड़े रखना सहज नहीं होता. मानसी उस दुखद अतीत से जुड़ गई जिसे वह 10 साल पहले पीछे छोड़ आई थी. उस का अतीत उस के सामने साकार होने लगा और वह विचारसागर में डूब गई. उस की सहकर्मी अचला ने उस दिन पहली बार मानसी की आंखों में गम का सागर लहराते देखा. हमेशा खिला रहने वाला मानसी का चेहरा मुरझाया हुआ था. कभी सास तो कभी पति को ले कर हजार झंझावातों के बीच अचला ने उसे कभी हारते हुए नहीं देखा था. पर आज वह कुछ अलग लगी. ‘मानसी, सब ठीक तो है न?’ लंच के वक्त उस की सहेली अचला ने उसे कुरेदा. मानसी की सूनी आंखें शून्य में टिकी रहीं. फिर आंसुओं से लबरेज हो गईं.

‘मनोहर की नशे की लत बढ़ती ही जा रही है. कल रात उस ने मेरी कलाई मोड़ी…’ इतना बतातेबताते मानसी का कंठ रुंध गया. ‘गाल पर यह नीला निशान कैसा…’ अचला को कुतूहल हुआ. ‘उसी की देन है. जैकेट उतार कर मेरे चेहरे पर दे मारी. जिप से लग गई.’ इतना जालिम है मानसी का पति मनोहर, यह अचला ने सपने में भी नहीं सोचा था.  मानसी ने मनोहर से प्रेम विवाह किया था. दोनों का घर आसपास था इसलिए अकसर उन दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. एक रोज मनोहर मानसी के घर आया तो मानसी की मां पूछ बैठीं, ‘कौन सी क्लास में पढ़ते हो?’ ‘बी.ए. फाइनल,’ मनोहर ने जवाब दिया था. ‘आगे क्या इरादा है?’ ‘ठेकेदारी करूंगा.’ मनोहर के इस जवाब पर मानसी हंस दी थी. ‘हंस क्यों रही हो? मुझे ढेरों पैसे कमाने हैं,’ मनोहर सहजता से बोला. उधर मनोहर ने सचमुच ठेकेदारी का काम शुरू कर दिया था. इधर मानसी भी एक स्कूल में पढ़ाने लगी.

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24 साल की मानसी के लिए अनेक रिश्ते देखने के बाद भी जब कोई लायक लड़का न मिला तो उस के पिता कुछ निराश हो गए. मानसी की जिंदगी में उसी दौरान एक लड़का राज आया. राज भी उसी के साथ स्कूल में पढ़ाता था. दोनों में अंतरंगता बढ़ी लेकिन एक रोज राज बिना बताए चेन्नई नौकरी करने चला गया. उस का यों अचानक चले जाना मानसी के लिए गहरा आघात था. उस ने स्कूल छोड़ दिया. मां ने वजह पूछी तो टाल गई. अब वह सोतेजागते राज के खयालों में डूबी रहती.

करवटें बदलते अनायास आंखें छलछला आतीं. ऐसे ही उदासी भरे माहौल में एक दिन मनोहर का उस के घर आना हुआ. डूबते हुए को तिनके का सहारा. मानसी उस से दिल लगा बैठी. यद्यपि दोनों के व्यक्तित्व में जमीनआसमान का अंतर था पर किसी ने खूब कहा है कि खूबसूरत स्त्री के पास दिल होता है दिमाग नहीं, तभी तो प्यार में धोखा खाती है. मनोहर से मानसी को तत्काल राहत तो मिली पर दीर्घकालीन नहीं.

मांबाप ने प्रतिरोध किया. हड़बड़ी में शादी का फैसला लेना उन्हें तनिक भी अच्छा न लगा. पर इकलौती बेटी की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा. मानसी की सास भी इस विवाह से नाखुश थीं इसलिए थोड़े ही दिनों बाद उन्होंने रंग दिखाने शुरू कर दिए. मानसी का जीना मुश्किल हो गया. वह अपना गुस्सा मनोहर पर उतारती. एक रोज तंग आ कर मानसी ने अलग रहने की ठानी. मनोहर पहले तो तैयार न हुआ पर मानसी के लिए अलग घर ले कर रहने लगा.

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यहीं मानसी ने एक बच्ची चांदनी को जन्म दिया. बच्ची का साल पूरा होतेहोते मनोहर को अपने काम में घाटा शुरू हो गया. हालात यहां तक पहुंच गए कि मकान का किराया तक देने के पैसे न थे. हार कर उन्हें अपने मांबाप के पास आना पड़ा. मानसी ने दोबारा नौकरी शुरू कर दी. मनोहर ने लगातार घाटे के चलते काम को बिलकुल बंद कर दिया. अब वह ज्यादातर घर पर ही रहता. ठेकेदारी के दौरान पीने की लत के चलते मनोहर ने मानसी के सारे गहने बेच डाले.

यहां तक कि अपने हाथ की अंगूठी भी शराब के हवाले कर दी. एक दिन मानसी की नजर उस की उंगलियों पर गई तो वह आपे से बाहर हो गई, ‘तुम ने शादी की सौगात भी बेच डाली. मम्मी ने कितने अरमान से तुम्हें दी थीं.’ मनोहर ने बहाने बनाने की कोशिश की पर मानसी के आगे उस की एक न चली. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा. तभी मानसी की सास की आवाज आई, ‘शोर क्यों हो रहा है?’ ‘आप के घर में चोर घुस आया है.’

वह जीने से चढ़ कर ऊपर आईं. ‘कहां है चोर?’ उन्होंने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं. मानसी ने मनोहर की ओर इशारा किया, ‘पूछिए इन से… अंगूठी कहां गई.’ सास समझ गईं. वह कुछ नहीं बोलीं. उलटे मानसी को ही भलाबुरा कहने लगीं कि अपने से छोटे घर की लड़की लाने का यही नतीजा होता है. मानसी को यह बात लग गई. वह रोंआसी हो गई. आफिस जाने को देर हो रही थी इसलिए जल्दीजल्दी तैयार हो कर इस माहौल से वह निकल जाना चाहती थी.

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शाम को मानसी घर आई तो जी भारी था. आते ही बिस्तर पर निढाल पड़ गई. अपने भविष्य और अतीत के बारे में सोचने लगी. क्या सोचा था क्या हो गया. ससुर कभीकभार मानसी का पक्ष ले लेते थे पर सास तो जैसे उस के पीछे पड़ गई थीं. एक दिन मनोहर कुछ ज्यादा ही पी कर आया था. गुस्से में पिता ने उसे थप्पड़ मार दिया. ‘कुछ भी कर लीजिए आप, मैं  पीना  नहीं  छोड़ूंगा. मुझे अपनी जिंदगी की कोई परवा नहीं. आप से पहले मैं मरूंगा. फिर नाचना मानसी को ले कर इस घर में अकेले.’

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

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