लेखक-शंकर जालान
मूल रूप से गुजरात के अहमदाबाद व राजकोट के बीच जोटिया गांव के इस ‘गुजराती’ समुदाय का मानना है कि लड़की को चौथी जमात तक पढ़ा लिया, उसे जोड़घटाव व गुणाभाग आ गया, बस उस की पढ़ाई पूरी हो गई. मूल रूप से पुराने कपड़ों के बदले स्टील और प्लास्टिक के बरतन व दूसरा सामान दे कर उस से होने वाली मामूली आमदनी पर ये लोग किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही कर पाते हैं.
सिंधी बागान बस्ती की रहने वाली
25 साला बंदनी गुजराती ने बताया कि इस बस्ती में ‘गुजराती’ समुदाय के तकरीबन 30 परिवार रहते हैं, लेकिन किसी घर की लड़की ने 5वीं जमात की दहलीज पर पैर नहीं रखा है.
बेटियों यानी लड़कियों को पढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से कई तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, इस के बावजूद भी आप लोग लड़कियों को चौथी जमात से आगे क्यों नहीं पढ़ाते हैं? इस सवाल के जवाब में इस बस्ती की सब से बुजुर्ग 55 साला विद्या गुजराती नामक औरत ने बताया कि दिनरात मेहनत कर के किसी तरह घरपरिवार का गुजारा होता है. औसतन 6 से 8 हजार रुपए महीने की कमाई में उन के लिए लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना मुमकिन नहीं है.
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23 साला चुन्नी गुजराती ने बताया कि उस के समुदाय में लड़कों का काम घर पर रहना और घर की देखरेख करना है, जबकि लड़कियों का काम गलीगली, दरवाजेदरवाजे जा कर पुराने कपड़ों की एवज में ग्राहकों को उन की जरूरत के मुताबिक स्टील व प्लास्टिक के बरतन व दूसरा सामान देना होता है.
पुराने कपड़ों का क्या करते हैं? इस सवाल के जवाब में 26 साला जैली गुजराती व 20 साला राजा गुजराती ने बताया कि पुराने कपड़ों को बेचते हैं. पुराने कपड़ों का यह बाजार चितरंजन एवेन्यू में गिरीश पार्क से ले कर बिडन स्ट्रीट तक रोजाना देर रात तक लगता है.
शिमला माठ के रहने वाले 30 साला पंकज गुजराती की बात मानें तो इन दिनों ‘गुजराती’ समुदाय की कुछ लड़कियां पढ़ना चाहती हैं, लेकिन कोई सही सलाह देने वाला नहीं है. चुनाव के समय हर पार्टी के नेता यहां आ कर उन के विकास के बाबत भरोसा दे जाते हैं, लेकिन चुनाव के बाद उन की सुध लेने वाला कोई नहीं होता है.
इस बाबत स्थानीय पार्षद और विधायक स्मिता बक्सी का कहना है कि वे अपने लैवल पर पूरी कोशिश करती हैं कि हर बच्चा चाहे वह लड़की हो या लड़का स्कूल जाए लेकिन अगर किसी लड़की के मातापिता ऐसा नहीं चाहते हैं, तो इस में वे क्या कर सकते हैं.
दूसरी ओर, कोलकाता नगरनिगम के शिक्षा विभाग के मेयर परिषद के सदस्य अभिजीत मुखर्जी का कहना है कि विभाग की सारी कोशिशों के बावजूद कुछ मातापिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते. सर्वशिक्षा अभियान के तहत नगरनिगम द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों को अपग्रेड कर 8वीं जमात तक किया गया है. कामकाजी औरतें अपनी बेटियों को अकेले छोड़ने से डरती हैं, इसलिए वे उन्हें अपने साथ ले कर काम पर निकलती हैं.
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ऐसी ही गरीब कामकाजी औरतों को ध्यान में रख कर डे बोर्डिंग स्कूल तैयार किया जा रहा है, जहां पर लड़कियां महफूज भी रह सकें और पढ़ भी सकें. द्य