लेखक-  शैलेंद्र कुमार ‘शैल’

जब सारे सुख त्याग कर किसी गुमनाम सी गली में मुंह छिपा कर जीने के लिए मजबूर हो जाएगा और लोग उसे भगोड़े की संज्ञा से नवाजेंगे.45 वर्षीय मोहम्मद मंसूर खान बेंगलुरु के शिवाजीनगर का रहने वाला था. उस ने सन 2006 में बेंगलुरु के शिवाजीनगर में 6 निदेशकों नासिर हुसैन, नाविद अहमद, निजामुद्दीन अजीमुद्दीन, अफसाना तबस्सुम, अफसर पाशा और अरशद खान के साथ मिल कर आई मोनेटरी एडवाइजरी के नाम से एक इसलामिक बैंक की नींव डाली थी.

इसलामिक बैंक की नींव डालने के पीछे उस का मकसद था कि इस बैंक में मुसलिम समाज का ही पैसा जमा हो.इस के लिए उस ने ऐसे लोगों को टारगेट कर के एक पोंजी स्कीम चलाई कि अगर वह उस की आईएमए कंपनी में पैसा निवेश करेंगे तो कंपनी उन्हें मूल धन के साथ हर महीने ढाई से 3 प्रतिशत और साल में 14 से 18 प्रतिशत का मुनाफा देगी.

वे खुद भी कंपनी के मालिक होंगे और उन की कंपनी में अच्छी हिस्सेदारी होगी, उस ने इस स्कीम को ब्याजमुक्त हलाल निवेश का नाम दिया था.

आज भी मुसलिम समाज में अधिकांश लोग ऐसे हैं जो ब्याज को हराम समझते हैं. जो लोग सूद को हराम समझते थे, उन्हें लगा कि एक तरह से वह कंपनी के हिस्सेदार हैं, मालिक हैं और हिस्सेदारी भी अच्छी भली है. लिहाजा कर्नाटक राज्य में रहने वाले सिर्फ मुसलिम समुदाय के तमाम लोगों ने अपनी बड़ीबड़ी रकम मोहम्मद मंसूर खान की आईएमए कंपनी में निवेश करनी शुरू कर दी.

समय आने पर कंपनी ने अपने निवेशकों को वादे के अनुसार मुनाफे के साथ पैसे लौटाए. इस से कंपनी के प्रति निवेशकों का भरोसा बढ़ गया और कंपनी में रकम जमा करने वालों की संख्या भी बढ़ गई. 4-5 साल के भीतर कंपनी में निवेशकों की संख्या करीब 40 हजार हो गई थी.

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आईएमए कंपनी में पैसे जमा होने के बाद मैनेजिंग डायरेक्टर मोहम्मद मंसूर खान और उस के निदेशकों ने कंपनी का विस्तार किया. इन लोगों ने इसलामिक बैंक के साथसाथ अच्छा मुनाफा कमाने के लिए कई और कंपनियों की बुनियाद डाल दी थी.

इन नई कंपनियों के नाम थे आई मोनेटरी एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड, आईएमएम दबाब सेंटर, आईएमए बिल्डर्स ऐंड डेलवपर्स, आईएमए बुलियन ऐंड ट्रेडिंग सर्विस लिमिटेड, आईएमए बुलियन ऐंड ट्रेडिंग एलएलपी, आईएमए इंस्टीट्यूट औफ एजुकेशन, आईएमए ओमन इनवायरमेंट बिजनैस माड्यूल, आईएमए डब्ल्यू ज्वैलरी और आईएमए काउंसलिंग चैरिटेबल सोसायटी. कंपनी का विस्तार होने के साथ साथ मोहम्मद मंसूर खान दोनों हाथों से धन बटोरने लगा.

वादे के मुताबिक कुछ सालों तक मंसूर खान निवेशकों को मासिक और वार्षिक मुनाफे देता रहा. धीरेधीरे यह रिटर्न गिर कर पहले 14 से 9 प्रतिशत पर आया, फिर 7 से 5 प्रतिशत तक आ गया. सन 2018 आतेआते रिटर्न सिर्फ 3 फीसदी ही रह गया.

इस साल फरवरी में जब रिटर्न घट कर 1 फीसदी रह गया तो निवेशकों के सब्र का बांध टूट गया. निवेशकों के दिमाग तब बिलकुल घूम गए जब मई, 2019 तक एक फीसदी रिटर्न भी खत्म हो गया.

निवेशकों को तगड़ा झटका मई, 2019 में तब लगा, जब उन्हें पता चला कि आईएमए का औफिस ही बंद हो गया है. निवेशकों ने जब इस मुद्दे पर बात की तो मंसूर खान ने निवेशकों को भरोसा दिलाया कि वे चिंता न करें, उन के रुपए सुरक्षित हैं.

मंसूर खान ने पहले तो कहा कि ईद के चलते औफिस बंद था, मगर जब लगातार विदड्रौल रिक्वेस्ट आने लगीं तो वह अंडरग्राउंड हो गया. मंसूर के अंडरग्राउंड होते ही निवेशकों में खलबली मच गई. अपने रुपयों को ले कर वे सड़क पर उतर आए.

तब और ज्यादा हैरानी हुई जब कंपनी पार्टनर और मंसूर खान के करीबी दोस्त खालिद अहमद ने 4 जून, 2019 को बेंगलुरु के कार्शियल स्ट्रीट थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया. उन्होंने आईएमए के एमडी मंसूर पर 4 करोड़ 80 लाख रुपए की ठगी का आरोप लगाया था. खालिद अहमद की शिकायत पर भादंसं की धारा 406, 420 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया. बात कर्नाटक के डीजीपी नीलमणि राजू तक पहुंची तो उन के कान खड़े हो गए. मामला अमानत में खयानत से जुड़ा हुआ था, उन्होंने इसे काफी गंभीरता से लिया और एएसपी (क्राइम) आलोक कुमार को मामले की जांच कर के रिपोर्ट देने को कहा.

6 जून, 2019 को आलोक कुमार ने एमडी मंसूर खान को पूछताछ के लिए औफिस बुलाया. मंसूर खान आ गया तो एएसपी कुमार ने उस से उस के बिजनैस पार्टनर खालिद अहमद द्वारा दर्ज कराए गए मुकदमे की बाबत एक घंटे तक पूछताछ की.

पूछताछ के बाद उन्होंने मंसूर खान से कंपनी की बैलेंस शीट और अन्य दस्तावेज पेश करने को कहा. इस पर मंसूर खान ने कंपनी की बैलेंस शीट और अन्य दस्तावेज पेश करने के लिए 9 जून तक का समय मांगा. एएसपी आलोक कुमार ने उसे 3 दिन की मोहलत दे दी.इसी बीच कहानी में एक नया मोड़ आ गया. 7 जून को मंसूर खान की एक औडियो क्लिप वायरल हुई. औडियो में खान ने कहा कि वह अधिकारियों की प्रताड़ना से आजिज आ कर आत्महत्या करने जा रहा है. उसे ढूंढने की कोशिश न की जाए. औडियो के वायरल होने के बाद उग्र लोगों ने आईएमए के औफिस पर हमला बोल दिया, लेकिन पुलिस ने किसी तरह स्थिति संभाल ली.

देश से भागने की तैयारी पहले से ही थी

पुलिस मंसूर खान के वायरल औडियो की सच्चाई जानने में जुटी हुई थी कि 8 जून को एक और चौंकाने वाली बात पता चली तो पुलिस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. पता चला कि मंसूर खान 8 जून की रात पौने 9 बजे की फ्लाइट से देश छोड़ कर दुबई चला गया.

छानबीन में जानकारी मिली कि उस ने प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से शाम के पौने 7 बजे इमिग्रेशन क्लियर करा लिया था और रात पौने 9 बजे उस ने दुबई की फ्लाइट पकड़ ली.

एयरपोर्ट के सीसीटीवी कैमरे की जांच करने पर पता चला कि शाम के समय मोहम्मद मंसूर खान अपनी कार खुद चला कर एयरपोर्ट पहुंचा था. अपनी कार उस ने एयरपोर्ट के बाहर खड़ी कर दी और पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए देश छोड़ कर फरार हो गया.

उस के देश छोड़ कर फरार होते ही निवेशकों में बेचैनी छा गई. निवेशक अपने पैसों को ले कर बुरी तरह परेशान थे. परेशानी स्वभाविक ही थी, क्योंकि निवेशक परेशान क्यों न हों? कंपनी में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाड़ के मुसलिम समाज के करीब 40 हजार निवेशकों ने कंपनी में पैसे जमा किए थे, जिस में 200 करोड़ रुपए तो सिर्फ मुसलिम महिलाओं द्वारा निवेश किए गए थे.

एमडी मोहम्मद मंसूर खान के फरार होते ही पुलिस सतर्क हो गई और अगले दिन यानी 9 जून को आईएमए के 6 अन्य डायरेक्टरों नासिर हुसैन, नाविद अहमद, निजामुद्दीन अजीमुद्दीन, अफसाना तबस्सुम, अफसर पाशा और अरशद खान को गिरफ्तार कर लिया. शिवाजीनगर स्थित मंसूर खान के आवास से उस की लग्जरी एसयूवी कार भी जब्त कर ली गई.

आईएमए के निदेशकों को पुलिस ने गिरफ्तार तो कर लिया लेकिन यह पता नहीं चल पा रहा था कि कंपनी ने लोगों को कितने का चूना लगाया है मोटे तौर पर 15 हजार करोड़ की ठगी का अनुमान लगाया जा रहा था. मंसूर खान के देश छोड़ कर फरार होते ही कर्नाटक सरकार की नींद टूटी.

सरकार ने मामले की जांच के लिए डीजीपी नीलमणि राजू को पत्र लिखा. मामले की जांच के लिए डीजीपी नीलमणि ने जांच के लिए 3 पुलिस टीमें बनाईं.

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एक टीम थाना स्तर से बनाई गई, जहां बड़े पैमाने पर निवेशकों ने थाने में कंपनी के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराए थे. दूसरी टीम 11 सदस्यों की एसआईटी का गठन कर बनाई गई. तीसरी जांच टीम प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की बनाई गई थी. गिरफ्तार सभी निदेशकों से पुलिस और अन्य जांच कमेटी ने अलगअलग पूछताछ की. पूछताछ के बाद कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

बेंगलुरु के शिवाजीनगर का रहने वाला मोहम्मद मंसूर खान एक पढ़ालिखा जहीन इंसान था. पढ़लिख कर वह अच्छी नौकरी करना चाहता था. इस के लिए उस ने कई जगह हाथपैर मारे, लेकिन तकदीर के मारे मंसूर खान को कहीं अच्छी नौकरी नहीं मिली. इस के बाद उस ने नौकरी के पीछे दौड़ना छोड़ दिया. वह सोचने लगा कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाए, जिस से 2 पैसे उसे भी मिलें और दूसरों के घर के भी चूल्हे जलते रहें.

शातिर दिमाग के मंसूर खान ने जल्द ही इस का भी उपाय ढूंढ लिया. उस ने एक ऐसा बैंक स्थापित करने की योजना बनाई जिस में सिर्फ मुसलिम समाज का ही पैसा निवेश हो और उन्हें ब्याज भी न देना पड़े. मंसूर खान ने योजना बनाई ही नहीं बल्कि सन 2006 में उसे धरातल पर भी उतार लिया. चूंकि इसलाम में ब्याज से मिली रकम को अनैतिक और इसलाम विरोधी माना जाता है. इस धारणा को तोड़ने के लिए मंसूर ने धर्म का कार्ड खेला और निवेशकों को बिजनैस पार्टनर का दरजा दिया.

साथ ही उन्हें भरोसा दिलाया कि 50 हजार के निवेश पर उन्हें मासिक ढाई से 3 प्रतिशत और वार्षिक 14 से 18 प्रतिशत रिटर्न दिया जाएगा. इस तरह वह मुसलमानों के बीच ‘ब्याज हराम है’ वाली धारणा तोड़ने में कामयाब रहा. अपनी स्कीम को आम मुसलमानों तक पहुंचाने के लिए उस ने स्थानीय मौलवियों और मुसलिम नेताओं को साथ लिया. सार्वजनिक तौर पर मंसूर खान और उस के कर्मचारी हमेशा साधारण कपड़ों में ही दिखते लंबी दाढ़ी रखते और औफिस में ही नमाज पढ़ते.

नियमित तौर पर ये लोग मदरसों और मसजिदों में दान दिया करते थे. निवेश करने वाले हर मुसलिम को कुरान भेंट की जाती थी. शुरुआत में निवेश के बदले रिटर्न आते और निवेशकों को बड़े चैक दिए जाते, जिस से उस की योजना का और ज्यादा प्रचार हुआ.

योजना के प्रचार और निवेशकों को मिले मुनाफे से मुसलिम समाज को भरोसा हो गया कि यह इसलामिक बैंक भरोसे का बैंक है. यहां जमापूंजी सुरक्षित है. मंसूर खान योजना को पोंजी स्कीम के तहत चला रहा था. पोंजी स्कीम क्या है, जरा इस पर भी एक नजर डालते हैं.

पोंजी स्कीम या धोखाधड़ी का यह सिलसिला हालफिलहाल से नहीं, बल्कि सालों से चलता आ रहा है. पोंजी स्कीम का जन्म इटली में जन्मे चार्ल्स पोंजी नाम के शख्स से हुआ है, जिस ने इटली, कनाडा और अमेरिका में अपने धोखेबाजी के धंधे की बुनियाद रखी थी. तब से ये निरंतर अग्रसर है.

पोंजी स्कीम किसी कंपनी द्वारा नियोजित होती है, जिन में लोगों को अपने पैसे उस योजना में निवेश करने होते हैं. उस के बाद उन्हें और भी लोगों को उस कंपनी से जोड़ना होता है, जिस के बदले उन्हें अतिरिक्त लाभ दिया जाता है.

पोंजी स्कीम में रिटर्न कई गुना ज्यादा और 100 फीसदी नो रिस्क के दावे पर मिलता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नए जुड़े मेंबर का पैसा पुराने जुड़े मेंबर के पास जाता है और यह सिलसिला चलता रहता है. जनता कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में धोखे का शिकार बनती रहती है.

रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने कर्नाटक सरकार को किया था सचेत मंसूर खान भले ही कारपोरेट जगत में  मंसूर खान की ठगी का बिजनैस जोरों पर चल रहा था. निवेशकों द्वारा जमा किए पैसों से मंसूर ने कंपनी का विस्तार किया और 7 अन्य नई कंपनियां बनाईं. जिन के नाम हम शुरू में बता चुके हैं. नित नई ऊंचाइयों को छू रहा था, मगर वह यह भूल रहा था कि उस की निगरानी कोई और भी कर रहा है. भारतीय रिजर्व बैंक ने सन 2015 की शुरुआत में और फिर 2018 में बेंगलुरु में सब से वांछित संदिग्ध आईएमए को धोखधड़ी के रूप में चिह्नित किया था.

इस के बाद रिजर्व बैंक ने इस ओर इशारा करते हुए कर्नाटक सरकार को अलर्ट किया था. आरबीआई ने सरकार को बताया था कि आईएमए निवेशकों से रुपए जमा करा कर सिर्फ पोंजी स्कीम के तहत योजना चला रही है.

आरबीआई के अलर्ट के बावजूद सरकार ने आईएमए के खिलाफ कोई ठोस काररवाई नहीं की. सरकार ने आरबीआई को दलील दी कि आईएमए कंपनी निवेशकों से रुपए डिपोजिट नहीं करा रहा. वह लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप कंपनी है यानी डिपोजिट लेने के बजाए आईएमए निवेशकों को साझेदारी दे रहा है.

सरकार की यह दलील सुन कर आरबीआई चुप हो गई थी. बताया जाता है कि पैसों के बल पर मंसूर खान ने कर्नाटक सरकार में अपनी पैठ अंदर तक बना ली थी. उस के गुनाह न तो सरकार को दिख रहे थे और न ही उस की गूंज सुनाई दे रही थी. 3 सालों तक ऐसे ही चलता रहा. सरकार कान में तेल डाल कर सो गई थी.

आरबीआई ने सन 2018 में कर्नाटक सरकार को एक बार फिर चेतावनी भेजी. इस बार भी सरकार को अलर्ट किया गया कि कंपनी निवेशकों से अवैध तरीके से पैसे डिपोजिट करा रही है और निवेशकों को उन के लाभांश देने में असफल है. आरबीआई के अलर्ट के बाद इस बार सरकार नींद से जागी.

सरकार ने राजस्व विभाग के असिस्टेंट कमिश्नर को इस की जांच के लिए नियुक्त किया. असिस्टेंट कमिश्नर ने जब जांच की तो उस में बड़ा झोल पाया यानी आरबीआई द्वारा दी गई सूचना सच साबित हुई.

असिस्टेंट कमिश्नर ने इस मामले को गंभीरता से ले कर कई कठोर फैसले लिए. उन्होंने 16 नवंबर, 2018 को आईएमए के खिलाफ एक पब्लिक नोटिस सार्वजनिक किया.

नोटिस में उल्लेख किया, ‘सरकार के संज्ञान में आया है कि मेसर्स आई मोनेटरी एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड और उस की सहयोगी कंपनियों ने अवैध रूप से जनता से पैसे वसूल किए हैं और उस धनराशि को अपने स्वयं के हित में लगाया है, जिस से भुगतान में चूक हुई है. जमाकर्ताओं के पैसे शीघ्र वापस करने के प्रबंध करें.’ इस के बाद उन्होंने धोखाधड़ी करने वाले सातों निदेशकों के नाम सूचीबद्ध किए. धीरेधीरे मंसूर खान के मंसूबे सामने आने लगे थे. उस ने कंपनी में जनता की निवेश रकम लौटाने का इरादा त्याग दिया था. दरअसल, इस के पीछे एक खास वजह सामने आई थी. केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद सरकार ने सन 2016 में अचानक नोटबंदी का फैसला लिया और रातोंरात पुराने नोट बंद कर दिए.

सरकार के इस निर्णय से कालाधन रखने वालों की कमर टूट गई. मंसूर भी इस का शिकार हुआ था. उसी साल सरकार ने जीएसटी भी लागू कर दिया था. जीएसटी की वजह से उस की पोंजी स्कीम भी चरमरा कर रह गई. उस के जनता से किए रिटर्न के वादे धराशाई हो गए तो निवेशकों के सब्र का बांध टूट गया.

बताते हैं कि बेंगलुरु के मैसूर रोड के ओल्ड गुड्डलाहल्ली के रहने वाले 55 वर्षीय अब्दुल पाशा ने कंपनी में 8 लाख रुपए का निवेश किया था. उन की 3 बेटियां और एक बेटा था. जुलाई, 2019 में उन की बेटी की शादी होनी थी. इस बीच आईएमए के द्वारा ठगी किए जाने की जानकारी मिलते ही उन के सीने में तेज दर्द उठा. दर्द की शिकायत मिलते ही घर वाले पाशा को इलाज के लिए अस्पताल ले गए. इलाज के दौरान उन की मौत हो गई.

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मंसूर के अंडरग्राउंड होते ही निवेशकों में खलबली मच गई. तब और ज्यादा हैरानी हुई जब कंपनी पार्टनर और मंसूर खान के करीबी दोस्त खालिद अहमद ने बेंगलुरु के कार्शियल स्ट्रीट थाने में शिकायत दर्ज कराई.

अरबों की चलअचल संपत्ति थी कंपनी के निदेशकों की

26 जून, 2019 को प्रवर्तन निदेशालय ने अनौपचारिक रूप से बेंगलुरु स्थित आईएमए ग्रुप औफ कंपनीज की 209 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त कर ली. इस अटैचमेंट में 197 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति, 105 बैंक खातों का पता चला, जिन में से 51 बैंक खातों से 98 लाख रुपए, एचडीएफसी बैंक से 11 करोड़ रुपए और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण जमा योजना में जमा राशि शामिल थी.

प्रवर्तन निदेशालय ने यह काररवाई 4 जून, 2019 को कार्शियल स्ट्रीट थाने में एमडी मोहम्मद मंसूर खान के खिलाफ दर्ज की गई भादंसं की धारा 406 और 420 के आधार पर की थी. बेंगलुरु पुलिस ने आईएमए ग्रुप औफ कंपनीज और इस के प्रबंध निदेशक मोहम्मद मंसूर खान के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था.

मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांच की काररवाई शुरू की. जांच के दौरान पता चला कि आरोपी मंसूर खान ने संस्थाओं में पोंजी योजनाओं के माध्यम से 40 हजार से अधिक मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों से कंपनी में रुपए जमा कराए.

पुलिस की जांच जैसेजैसे आगे बढ़ती गई, वैसेवैसे आईएमए का कच्चा चिट्ठा खुलता गया. जांच में पता चला कि जनता द्वारा किए गए निवेश पर वादा किए गए मासिक रिटर्न का भुगतान करने के लिए आईएमए समूह कोई व्यवसाय नहीं कर रहा था बल्कि मोहम्मद मंसूर खान एक पोंजी योजना चला रहा था. मंसूर खान के निर्देशों पर ही उस के सभी निदेशक काम कर रहे थे.

जांच में प्रवर्तन निदेशालय ने अब तक मोहम्मद मंसूर खान और उस की संस्थाओं के नाम पर आयोजित 20 अचल संपत्तियों की पहचान की है, जिन्हें ठगी के रूप में अर्जित किया गया है. कुल अचल संपत्तियों का मूल्यांकन सरकारी मूल्यांकनकर्ताओं द्वारा 197 करोड़ आंका गया. ईडी ने एक प्रैस विज्ञप्ति के जरिए ये बात सार्वजनिक की है.

बैंक को भी 600 करोड़ का चूना लगाने के चक्कर में था मंसूर

विभिन्न निजी बैंकों और आईएमए समूह की कंपनियों की सहकारी समितियों के साथ 105 बैंक खातों की जांचपड़ताल करने पर ईडी को पता चला कि मोहम्मद मंसूर खान को निवेश के रूप में लगभग 4 हजार करोड़ मिले थे. जनता की यह रकम आरोपी खान और उस के निदेशकों ने अपने विभिन्न खातों में डाल ली थी. यही नहीं, खान ने निदेशकों और अन्य सहयोगियों के नाम पर विभिन्न अचल और चल संपत्तियों को सार्वजनिक कर दिया ताकि जांच में यह पता न चल सके कि इन बेनामी संपत्तियों के असल मालिक कौन हैं?

जांच के दौरान कंपनी के जिन 105 बैंक खातों की जानकारी मिली, उन में जमा 12 करोड़ रुपए ईडी ने जब्त कर लिए. मंसूर खान ने निवेशकों के रुपयों में से लगभग 44 करोड़ रुपए की नकदी विभिन्न बैंक खातों में जमा की थी.

जब आयकर विभाग को इस की भनक लगी तो उस के कान खड़े हो गए. इस पर आयकर विभाग ने काररवाई की तो पता चला कि आईएमए समूह ने आयकर विभाग को 22 करोड़ रुपए का इनकम टैक्स चुकाया था. इस में से 11 करोड़ रुपए की शेष राशि एक बैंक में पड़ी थी, जिस की पहचान जांच में की गई.

197 करोड़ रुपए की 20 अचल संपत्तियां और लगभग 12 करोड़ रुपए की चलअचल संपत्ति अधिनियम के तहत ईडी ने जब्त कर ली. ईडी फरार आरोपी मोहम्मद मंसूर खान के खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस जारी करने की प्रक्रिया में है, जिस से भगोड़ा अपराधी अधिनियम को लागू करने की संभावनाएं तेज हो गईं.

जांच के दौरान एक और चौंकाने वाली बात पता चली. मोहम्मद मंसूर खान ने फरार होने से पहले आखिरी बार 600 करोड़ के भारीभरकम लोन लेने की कोशिश की थी. कर्नाटक सरकार के एक मंत्री ने उसे इस के लिए एनओसी लगभग दे भी दी थी, मगर एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की सतर्कता से यह प्लान फेल हो गया था.

जांच में पता चला कि मंसूर खान ने लोन के लिए एक बैंक का रुख किया था. बैंक को मंसूर खान के खिलाफ जारी धोखाधड़ी के नोटिस के बारे में जब पता चला तो उस ने उसे अनापत्ति प्रमाणपत्र लाने को कहा. मंसूर ने अपनी ऊंची पहुंच के चलते इस एनओसी का जुगाड़ भी कर लिया था.

एनओसी पर प्रमुख सचिव स्तर के आईएएस अधिकारी के दस्तखत होने बाकी थे. आईएएस अधिकारी को मंसूर खान की जालसाजी के बारे में पहले ही पता चल गया था. उन्होंने अपनी सूझबूझ का परिचय दिया और दस्तावेजों पर साइन करने से साफ इनकार कर दिया.

इस पर मंत्री ने उन पर काफी दबाव बनाया, मगर उन पर इस दबाव का कोई असर नहीं हुआ. अधिकारी की सूझबूझ के चलते 600 करोड़ का एक और चूना लगतेलगते बच गया था.

जांच के दौरान 4 हजार करोड़ रुपए की ठगी किए जाने का मामला सामने आया है. आगे की जांच की प्रक्रिया जारी है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने कहा है कि आईएमए के मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है. सरकार निवेशकों की स्थिति समझती है. इस मुद्दे पर गृहमंत्री एम.बी. पाटिल से भी बात की तो उन्होंने बताया कि यह मामला सेंट्रल क्राइम ब्रांच (सीसीबी) को सौंप दिया गया है. दोषियों पर काररवाई की जाएगी.

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कथा लिखे जाने तक ईडी मंसूर खान के खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस जारी करने की तैयारी में जुटी थी.

पुलिस के मुताबिक, मंसूर खान दुबई भागने से पहले अपने परिवार को पहले ही दुबई में शिफ्ट करा चुका था ताकि उस के देश छोड़ कर भागने पर पुलिस परिवार को परेशान न कर सके. देखना है कि क्या पुलिस ठग मंसूर खान को दुबई से भारत वापस ला पाती है या नहीं.

गिरफ्त में आया मंसूर खान

इसलाम में सूद को हराम माना जाता है, भले ही वह किसी भी माध्यम से आए. ज्यादातर मुसलमान इस बात को मानते भी हैं और अमल भी करते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि मुसलिम समुदाय ज्यादा आय का पक्षधर न हो. हर कोई चाहता है कि उस की नियमित आय के अतिरिक्त भी आय का कोई साधन हो. हराम माने जाने वाले सूद के पैसे को अपने तरीके से हलाल बता कर हैदराबाद की डाक्टर नौहेरा शेख ने देशविदेश के मुसलिम निवेशकों से 3000 करोड़ रुपए की ठगी की थी.

भले ही नौहेरा पकड़ी गई हो, लेकिन निवेशकों की खूनपसीने की कमाई का पैसा तो मिलने से रहा. इसी तरह इसलामिक बैंक (आई मोनेटरी एडवाइजरी) के नाम पर 4000 करोड़ रुपए की ठगी करने वाला मंसूर खान पल्ला झाड़ कर 8 जून, 2019 को दुबई भाग गया था. जाने से पहले उस ने एक वीडियो जारी कर के सुसाइड करने की धमकी भी दी थी. उस के खिलाफ जांच कर रही एसआईटी और ईडी ने लुकआउट सरकुलर भी जारी किया था.

एसआईटी ने दुबई में अपने सूत्रों से उस का पता लगा कर उस से कहा कि वह भारत लौट आए और खुद को कानून के हवाले कर दे. गनीमत है कि इस चेतावनी पर 19 जुलाई को वह भारत लौट आया. अब एसआईटी और ईडी उस से पूछताछ भी करेंगी और उस की धोखाधड़ी की जांच भी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

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