लेखक-अपर्णा यादव

अगस्त के पहले सप्ताह में मैं कश्मीर के लिए रवाना हो गया. मुझे आज भी याद है कि जम्मू से बस पकड़ कर जब मैं कश्मीर पहुंचा तो वहां जोरदार बारिश हो रही थी. मुझे लेने आई कार में बैठ कर जब मैं प्रयोगशाला पहुंचा तो वहां गेट पर भीगते गोरखा संतरी ने दरवाजा खोला था. मेरे रहने के लिए वहीं पास के एक पुराने बंगले में इंतजाम किया गया था. मैं यात्रा से थका था, अत: जल्दी ही खाना खा कर सो गया.

अगले दिन सुबह उठ कर मैं ने पहले उस जगह का जायजा लिया. एक सेवादार ने बताया कि इस पूरी प्रयोगशाला में 5 लोग हैं. वह स्वयं रामसिंह, नेपाली संतरी रामकाजी थापा, खानसामा बिलाल अहमद, प्रयोगशाला में सहायक राजेंद्र और शाहबानो, जो साफसफाई एवं कपड़े धोने में मदद करती थी.

कंपनी का जड़ीबूटियों का अपना बगीचा था. मैं ने काम शुरू करने से पहले एक बार पूरे बगीचे का जायजा लेने का निश्चय किया. तैयार हो कर मैं ने राजेंद्र को साथ लिया और बगीचे की ओर चल पड़ा.

‘‘चलो, कंपनी को याद तो आया कि उस की कश्मीर में भी एक प्रयोगशाला है,’’ राजेंद्र हाथ ऊपर करते हुए बोला.

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो तुम?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, 4 साल में यहां आने वाले आप पहले वैज्ञानिक हैं, वरना हम लोग ही यहां रहते हैं,’’ एक गाइड की तरह जानकारी देते हुए राजेंद्र बोला.

हम जिस पगडंडी पर चल रहे थे उस के दोनों ओर छोटीछोटी झाडि़यां थीं. बंगले से बागान की दूरी लगभग 400 गज की थी. बगीचे में पहुंच कर हम टहलने लगे. दोनों ही अपनेअपने खयालों में खोए थे कि अचानक राजेंद्र की बुदबुदाने की आवाज सुन कर मेरा ध्यान उस की ओर गया. उस ने अपने हाथ में गले का तावीज पकड़ा हुआ था और आसमान की ओर देख कर कुछ बुदबुदा रहा था. उस की इस हरकत से मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ पर कुछ सोच कर मैं चुप रहा. थोड़ी देर में वह सामान्य हुआ तो मेरी ओर देख कर बोला, ‘‘चलें, सर.’’

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‘‘तुम क्या कर रहे थे?’’ मैं नेपूछा.

‘‘चूंकि सर आप को कुछ समय यहीं रहना है, इसलिए आप को भी चौकन्ना कर देता हूं,’’ उस ने धीरे से रहस्य-मयी आवाज में कहा.

मैं ने हैरत भरे स्वर में पूछा, ‘‘चौकन्ना? किस चीज से?’’

‘‘वह बागान के बीचोंबीच जो कब्र है, एक अभिशप्त व्यक्ति की है,’’ राजेंद्र की उंगली की दिशा में मैं ने देखा कि वह एक मिट्टी और पत्थर का बना चबूतरा है और उस के इर्दगिर्द घास जमी है. राजेंद्र फिर बोला, ‘‘सर, रात में तो इस बगीचे के आसपास भी मत फटकिएगा, खतरा हो सकता है. दिन में भी जब इस के पास से गुजरें तो इसे याद कर सम्मान दीजिए, नहीं तो मुसीबत में फंस जाएंगे.’’

अब तक मुझे गुस्सा आ चुका था. बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से पर काबू रखते हुए मैं ने राजेंद्र से कहा, ‘‘विज्ञान पढ़े व्यक्ति के मुंह से ऐसी बातें सुन कर आश्चर्य होता है. यह बातें वाहियात हैं और मुझे इन में विश्वास नहीं बल्कि मुझे इन बातों पर विश्वास करने वालों से भी सख्त चिढ़ होती है.’’

‘‘आप नए हैं, सर,’’ राजेंद्र पूरे विश्वास से बोला, ‘‘आप को शायद किसी ने नहीं बताया कि यहां इस बगीचे में 2 वैज्ञानिकों की रहस्यमय तरीके से मौत हो चुकी है. इसलिए पिछले 4 साल से यहां कोई आने को तैयार नहीं था. वे दोनों वैज्ञानिक भी इन बातों पर विश्वास नहीं करते थे. आप को कुछ मालूम नहीं था, इसलिए आप को यहां भेज दिया गया.’’

मैं ने और कुछ बोलना उचित नहीं समझा. बात वहीं समाप्त हो गई और हम अपनेअपने विचारों में खोए चुपचाप वापस बंगले पर आ गए.

सोमवार से अपने प्रयोग करने की तैयारी में व्यस्त हो कर मैं इस बात को लगभग भूल सा गया. रविवार को मैं शहर कुछ जरूरत का सामान लाने गया था. वापस आतेआते शाम हो गई.

रात को सेवादार रामसिंह खाना लगाने लगा तो मुझे कब्र वाली बात याद आई. मैं ने एकाएक उस से पूछा, ‘‘रामसिंह, तुम बगीचे की कब्र के बारे में क्या जानते हो?’’

रामसिंह एकदम सकपका गया. दाल का डोंगा उस के हाथ से छूटतेछूटते बचा. दीवार पर टंगी किसी तसवीर को देखते हुए वह बोला, ‘‘तो आप ने इस बारे में सुन ही लिया. हुंह मैं तो कभी उधर गया नहीं.’’

‘‘उन 2 वैज्ञानिकों की मौत के बारे में तुम क्या जानते हो?’’

मेरी आंखों में देखते हुए रामसिंह बोला, ‘‘सुना था कि बगीचे के बीचोंबीच कब्र के पास उन की लाशें मिली थीं. शरीर से पूरा खून चूस लिया गया था. कहीं कोई निशान नहीं थे.’’

‘‘पोस्टमार्टम में क्या रिपोर्ट आई?’’

‘‘किसी ने इस की जरूरत नहीं समझी. पुलिस ने हम सभी के बयान ले कर फाइल बंद कर दी.’’

खाना खा कर मैं सोने के लिए चला गया. मुझे नींद नहीं आ रही थी. मेरा वैज्ञानिक वाला उत्सुक मन इस राज को खोलना चाहता था. मुझे जाने क्यों ऐसा महसूस हुआ कि यहां रहते हुए मुझे कुछ खतरा हो सकता है. किसी शक्ति से नहीं बल्कि किसी व्यक्ति से.

मेरा कमरा बंगले की पहली मंजिल पर था. नीचे आगे की ओर बहुत बड़ा दालान था, जिस में फूलों के पेड़पौधे थे. पीछे की तरफ रसोईघर और सेवादारों के कमरे थे. नीचे एक बड़ा ड्राइंगरूम और एक बार था. मौसम अच्छा था. अत: कमरे से मैं बाहर आ गया. चांदनी रात थी इसलिए बत्ती जलाने की आवश्यकता मुझे नहीं लगी.

मेरी नजर सामने गेट पर गई. वहां से किसी के फुसफुसाने की आवाज आई, फिर कुछ हरकत हुई. ध्यान से देखने पर लगा कि थापा किसी से बात कर रहा है. तुरंत ही मैं ने देखा कि रामसिंह पत्थर के बने रास्ते पर चलता हुआ पीछे की तरफ चला गया.

रात के अंधेरे में हिलतेडुलते लोगों को देख कर उत्सुकता जागी तो पीछे छज्जे पर चला आया और देखा, रामसिंह ने एक दरवाजा खटखटाया. कोई बाहर आया. देखने में मुझे राजेंद्र जैसा लगा. रामसिंह जोरजोर से कुछ बोल रहा था. हवा के झोंके के साथ उड़ते हुए कुछ शब्द मेरे कानों से टकराए, ‘मना कर… कमीना.’

उस के बाद मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ा. थोड़ी देर बाद रामसिंह अपने कमरे में चला गया. सारी बत्तियां बंद हो गईं और एक अजीब सी शांति छा गई. मैं कुछ निष्कर्ष नहीं निकाल पाया. अगले दिन बाकी सब से बातचीत कर पता करने का निश्चय कर मैं सो गया.

सुबह जल्दी तैयार हो कर मैं ने राजेंद्र को साथ लिया और जड़ीबूटियां जमा करने के लिए बगीचे की ओर चल पड़ा. रात की घटना के बारे में कौतूहल होते हुए भी मैं ने उस से कुछ नहीं पूछा. हम दोनों काफी देर से चुप थे. चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने पूछा, ‘‘यहां आसपास कोई गांव नहीं है?’’

राजेंद्र ने धीरे से कहा, ‘‘यहां से सब से समीप गांव 5 मील दूर है.’’

आज वह काफी गुमसुम सा था. फिर भी कब्र के नजदीक पहुंचने पर वह अपनी तावीज वाली काररवाई करना नहीं भूला.

जल्दी से सर्वेक्षण कर मैं ने राजेंद्र को निर्देश दिए कि किस जड़ीबूटी की टहनी, किस के पत्ते, जड़ या फूल तोड़ने हैं और बगीचे के एक कोने में उसे काम करता छोड़ मैं कब्र की ओर निकल पड़ा.

मैं कब्र के समीप पहुंचा. आसपास देखा. कब्र टूटीफूटी थी. उस के चारों ओर गहरी घास थी पर कब्र का ऊपरी हिस्सा बिलकुल साफ था. बड़े रास्ते से कब्र की तरफ आने वाला रास्ता भी ताजा इस्तेमाल किया लगता था. कब्र के पास से घास में एक पतली रेखा पास के एक बड़े बरगद के पेड़ तक जा रही थी मानो 1-2 बार कब्र से चल कर कोई पेड़ तक गया हो. मुझे यह सबकुछ ठीक नहीं लग रहा था. कुछ न कुछ जरूर गड़बड़ था जो मेरे दिमाग में नहीं आ रहा था.

तभी कंधे पर बैग रखे राजेंद्र मुझे आता हुआ दिखाई दिया. पास आने पर वह धीरे से बोला, ‘‘आप मेरी बात नहीं मान रहे हैं. आप मुसीबत में फंसने वाले हैं.’’

उस की बात को अनसुनी कर मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि यहां कोई आताजाता है?’’ साथ ही मैं ने घास में रास्ते की तरफ इशारा किया.

रहस्यमयी सी आवाज में राजेंद्र बोला, ‘‘यकीनन, मैं ने आप को पहले भी बताया था कि इधर कौन रहता है. वही घूमताफिरता है.’’

मैं ने उस से और कुछ पूछने की आवश्यकता नहीं समझी. वापस प्रयोग- शाला में जा कर काम निबटाया. दोपहर के 2 बज गए थे. राजेंद्र को भेज कर मैं ने खाना खाया फिर आराम करने कमरे की तरफ चल दिया.

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आरामकुरसी पर बैठ कर मैं गाना सुनने लगा. सहसा मेरे दिमाग में आया कि शनिवार को जब मैं बगीचे में गया था तो कब्र के ऊपर घास थी. इस का मतलब इस बीच किसी ने वह घास साफ की है. इस विचार ने मुझे इतना परेशान नहीं किया जितना कि इस बात ने कि जिस ने यह किया तो क्यों किया? बगीचे में बाहर का कोई आदमी आ नहीं सकता था. आबादी भी यहां से काफी दूर थी. हो न हो, इन्हीं 5 लोगों में से कोई है पर कौन और क्यों? इसी उधेड़बुन में मेरी आंख लग गई. आंख खुली तो शाम के 5 बज चुके थे.

चाय पी कर मैं ने बिलाल अहमद, शाहबानो और थापा से कब्र के बारे में पूछताछ की. उन्होंने भी रामसिंह वाली बात दोहराई. मैं ने एक खास बात देखी कि शाहबानो बला की खूबसूरत युवती थी. अपने यौवन को ढांपने की कोई खास कोशिश उस ने नहीं की थी. एक और खास बात यह थी कि मुझे सभी लोग थापा से कटेकटे से लगे. खैर, उन को भेज कर मैं ने राजेंद्र को बुला लिया.

‘‘क्या कलपरसों इन में से कोई बगीचे में गया था?’’ मैं ने राजेंद्र के आते ही पूछा.

‘‘नहीं, सर,’’ तुरंत उस ने जवाब दिया. मुझे सोचते देख वह फिर से बोला, ‘‘शायद आप उस कब्र की घास के बारे में पूछना चाहते हैं. मैं आप को पहले ही बता चुका हूं कि वहां रात को वह अभिशप्त आत्मा घूमती है. यह उस का काम है.’’

भूतप्रेत के अस्तित्व पर बहस करने का मेरा मन नहीं था इसलिए मैं ने राजेंद्र को भेज दिया पर मेरे दिमाग में यह बात बैठ गई कि उस ने बिना पूछे ही कब्र की घास के बारे में बताया था.

अगले रोज हम थोड़ी देर से बगीचे की ओर रवाना हुए. राजेंद्र आवश्यकता से अधिक तेज चल रहा था और बगीचे तक पहुंचतेपहुंचते वह मुझ से करीब 200 गज आगे हो गया था.

बगीचे में घुसते ही मुझे राजेंद्र की भयंकर चीख सुनाई दी. वह चिल्लाया, ‘‘सर, यहां, इधर आइए.’’

मैं दौड़ते हुए उस के पास पहुंचा. कब्र के सामने रास्ते पर कोई व्यक्ति पड़ा था और राजेंद्र उस पर झुका हुआ था. पास जा कर देखा तो मैं चौंक गया. गिरा हुआ व्यक्ति बिलाल अहमद था. उस की आंखें बाहर निकली हुई थीं. शरीर पूरा चिपक गया था मानो सारा खून चूस लिया गया हो.

इस घटना से मुझे गहरा झटका लगा. पुलिस की काररवाई खत्म होतेहोते शाम हो गई थी. सब का बयान यही था कि बिलाल सैर के लिए बगीचे में जाना चाहता था. सब ने उसे रोका भी था पर वह नहीं माना.

मैं ने फोन कर के कंपनी में बता दिया था. पुलिस दारोगा से एफ.आई.आर. की एक प्रति ले ली थी. साथ ही बता दिया था कि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आने पर मुझे दिखा दें.

इतना होने पर पुलिस दल लाश के साथ वापस लौट गया. मैं ने रामसिंह को चाय के लिए कहा और आरामकुरसी पर बैठ कर सारी घटना पर विचार करने लगा. ऐसा लग रहा था मानो दिमाग की गति रुक गई हो. रामसिंह चाय ले कर आया तो मुझे एकाएक विचार कौंधा.

‘‘सुबह नाश्ता किस ने बनाया था?’’

‘‘शाहबानो ने.’’ मैं ने तुरंत शाहबानो को बुला भेजा. इस पूरी घटना में मुझे एक बात बिलकुल नहीं हजम हो रही थी-बिलाल का रात में बगीचे में सैर के लिए जाना. कहीं कुछ गड़बड़ जरूर थी.

शाहबानो आई तो देखा उस के चेहरे पर गम या चिंता का कोई निशान नहीं था.

‘‘क्या आज नाश्ता तुम ने बनाया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, जनाब. वह तो रात कह कर गए थे कि सुबह देर से उठेंगे,’’ शाहबानो बोली. उस की आंखें मेरी आंखों में मेरे मन में उस के लिए उठने वाले भावों को ढूंढ़ रही थीं.

‘‘वह से मतलब?’’ मैं ने पूछा.

‘‘बिलाल अहमद, मेरे होने वाले शौहर. 3 साल से रिश्ता तय था.’’

उस के इस जवाब ने मुझे चौंका दिया. मैं इस बात से पूरी तरह अनजान था. किसी ने बताने की जरूरत भी नहीं समझी थी.

‘‘3 साल से निकाह क्यों नहीं हुआ?’’ अपने को संभालते हुए मैं ने पूछा.

‘‘मेरा ही मन नहीं था,’’ आंखें मटकाते हुए और इशारों से खुला आमंत्रण देते हुए उस ने कहा, ‘‘जब जरूरत वैसे ही पूरी हो जाए तो उस से बंध कर रहने से क्या फायदा.’’

शाहबानो चली गई थी. एक बात साफ थी कि बिलाल अहमद से उसे कोई लगाव नहीं था. मुझे यकीन हो चला था कि कहीं न कहीं इस सब में वह एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है. दिन भर की थकान से मैं जल्दी खाना खा कर सो गया.

दरवाजे को जोरजोर से खटखटाने की आवाज सुन कर मेरी नींद खुली. आवाज से पता चला कि राजेंद्र है. घड़ी देखी तो सुबह के 8 बजे थे. दरवाजा खोला तो सामने राजेंद्र खड़ा था. वह डरा हुआ लग रहा था.

‘‘सर, रामसिंह रात से गायब है,’’ घबराए स्वर में राजेंद्र बोला.

कुछ अनहोनी की आशंका से मेरा दिल धक् से रह गया. मैं ने फटाफट कपड़े पहने और राजेंद्र को साथ ले कर बगीचे की तरफ चल पड़ा. मुझे जैसी आशंका थी रामसिंह की लाश बिलकुल उसी अवस्था में उसी जगह पड़ी मिली जहां कल बिलाल अहमद की लाश पड़ी थी.

‘‘सर, मैं कह रहा हूं आप भी वापस चले जाइए वरना मुसीबत में फंस जाएंगे,’’ लगभग चेतावनी वाले स्वर में राजेंद्र ने कहा. मैं ने उस की बात को नजरअंदाज कर दिया.

बंगले पर पहुंच कर मैं ने एक बार फिर कंपनी में फोन किया. थोड़ी देर में पुलिस पहुंच गई. आज मैं ने राजेंद्र को उन के साथ बगीचे तक भेज दिया. शाहबानो चाय ले कर आई. वह कुछ हद तक खुश नजर आ रही थी. अब तक मैं निश्चय कर चुका था कि मैं इस सब के बारे में सचाई जान कर ही रहूंगा. दोपहर तक पुलिस अपनी काररवाई कर वापस चली गई. दारोगा ने पूछने पर बताया कि बिलाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट कल सुबह तक आ जाएगी.

हर पहलू पर विचार करने के बाद मेरा पूरा शक राजेंद्र पर गया. शाहबानो मुझे एक महत्त्वपूर्ण और कमजोर कड़ी लगी. मैं ने एक योजना बनाई और उस पर अमल के लिए तैयार हो गया. यद्यपि इस में मुझे बहुत खतरा था पर मेरा निश्चय दृढ़ था.

मैं ने शाहबानो को बुलाया. इधरउधर की बातों के बीच मैं ने उस से प्रणय निवेदन किया तो वह फौरन मान गई. मेरी योजना थी कि प्रणय के अंतरंग क्षणों में उस से इस बारे में पूछूंगा.

पर मैं उस समय चौंका जब वह बोली, ‘‘रात 10 बजे बगीचे के बीचोंबीच मिलना. यहां कोई देख सकता है.’’

मैं ने उस से वादा किया तो वह चली गई. मैं ने सोचा कि जब शाहबानो को पता था कि उस जगह पर 2 दिन में 2 मौतें हो चुकी हैं तो उस ने मुझे वहां क्यों बुलाया. मुझे यकीन हो गया कि मैं मंजिल के काफी करीब हूं. इस में संभावित खतरे का मुझे एहसास भी था.

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मैं ने ठंडे दिमाग से जब पूरी कहानी को सोचा तो एक धुंधली तसवीर मेरे जेहन में बन गई और मैं ने अपने स्तर पर योजना की पूरी तैयारी कर ली.

ठीक 9 बजे मैं कमरे से बगीचे की ओर निकला. मेरी जेब में रिवाल्वर था. चांदनी रात थी. 20 गज तक साफ दिखता था. मैं धीरेधीरे बगीचे की ओर चला. बगीचे में पहुंच कर जैसे ही मैं बीच वाले हिस्से की तरफ बढ़ा मेरा दिल हर कदम के साथ और जोर से धड़कने लगा.

अचानक मेरे पैर में तीखी चुभन हुई. नीचे एक झाड़ी की टहनी थी. मैं ने उसे उठा कर ध्यान से देखा तो मेरे चेहरे पर मुसकान फैल गई. मैं ने उसे रास्ते के किनारे पर रख दिया. जेब से निकाल कर एक गोली खाई और थोड़ा आगे चल कर लड़खड़ाने का नाटक करने लगा. तभी मुझे शाहबानो नजर आई. वह हंस रही थी. मैं उस के पास पहुंचतेपहुंचते उस की बांहों में गिर गया और अपनी आंखें बंद कर लीं.

मुझे शाहबानो की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘आप भी सो जाइए, जनाब.’’

‘‘शाबाश, मेरी जान. असली कांटा गया,’’ राजेंद्र कब्र के पास वाले पेड़ की ओट से निकलते हुए बोला, ‘‘चलो, तार लगाते हैं.’’

मुझे लगा कि किसी तार को पैर के तलवे पर टेप किया जा रहा है.

‘‘चलो, आन कर के आओ,’’ बानो बोली.

समय आ गया था. मैं तुरंत उठ बैठा और राजेंद्र को पीछे से दबोच कर रिवाल्वर उस की कनपटी पर लगा दी. थापा ने झाड़ी में से कूद कर शाहबानो को काबू में कर लिया. राजेंद्र ने भागने का प्रयास करना चाहा पर रिवाल्वर का जवाब उस के पास नहीं था. दोनों को थापा की मदद से बंगले में ला कर उन्हें दिया और पुलिस को फोन कर दिया.

थोड़ी देर में सब साफ हो गया. सारी कहानी लगभग वैसी ही निकली जैसी कि मुझे आशंका थी. राजेंद्र की नजर कंपनी की इस बड़ी जमीन पर थी. उस ने अपनी योजना में बाकी चारों सेवादारों का हिस्सा तय कर उन्हें भी शामिल कर लिया था.

राजेंद्र ने सब से पहले बगीचे में मौजूद कब्र का फायदा उठाया और अभिशप्त आत्मा की एक मनगढ़ंत कहानी रची. उस का इरादा था कि कंपनी का कोई वैज्ञानिक वहां काम न कर पाए ताकि कंपनी निराश हो कर वह जमीन कौडि़यों के भाव बेचे और वह खरीद ले या समय के साथ इस पर कब्जा कर ले. उस ने यहां आने वाले कंपनी के हर आदमी को मारने की योजना बनाई क्योंकि उस की सोच यह थी कि सिर्फ डराने से शक हो सकता है. यदि मार दिया जाए तो ज्यादा कहानियां भी नहीं बनानी पड़ेंगी और खौफ भी ज्यादा पैदा होगा.

इस कारनामे को अंजाम देने के लिए राजेंद्र ने अपनी वनस्पतिशास्त्र की जानकारी काम में ली. हत्या के लिए बानो को मोहरा बनाया जाता. वह अपने जवानी के जाल में फंसा कर व्यक्ति को बगीचे में बुलाती. एक विशेष प्रकार की झाड़ी, जिस के कांटे जूतों में भी घुस सकते थे, की टहनियां रास्ते में डाल दी जातीं. उस के कांटे से पौधे का जहर शरीर में पहुंच जाता और व्यक्ति बेहोश हो जाता था. बरगद के पेड़ के पीछे जमीन में गड़ी बैटरियों से हलका करंट व्यक्ति को लगातार दिया जाता. इस से 2-3 घंटे में पूरा खून सूख जाता. करंट हलका होने से त्वचा न तो काली पड़ती थी न झुलसती थी.

पहले दिन बगीचे में टहलते हुए मैं ने जहरीली झाडि़यां देखी थीं. इस प्रकार की झाडि़यों से बचने के लिए मैं जब भी बगीचे में जाता तो विषरोधक गोलियां ले कर जाता था.

राजेंद्र के लिए समस्या तब शुरू हुई जब उस में और शाहबानों में प्रेम हो गया जबकि शाहबानो का रिश्ता बिलाल अहमद से तय हो चुका था. वह बारबार दोनों के बीच में आने लगा और झगड़ने लगा.

राजेंद्र ने मेरे आने के पहले दिन बिलाल को मारने की योजना बनाई ताकि मैं भी डर से भाग जाऊं. पर इस बार थापा ने साथ देने से इनकार किया. अब तक शायद उस का जमीर जाग उठा था. इसी के चलते मेरे आने के पहले दिन रामसिंह और थापा में झड़प हुई थी. ऐन मौके पर थापा के पलटने से इस काम को रविवार को अंजाम दिया गया. बिलाल की मौत के बाद रामसिंह ने अपना हिस्सा बढ़ाने की मांग की. अगली रात राजेंद्र ने उस की भी हत्या कर दी. बिलाल और रामसिंह दोनों बानो के बुलाने पर वासना के आवेश में बगीचे में गए थे.

मेरे आने के बाद राजेंद्र ने 4 साल से खराब पड़े तार और बैटरियों को बिलाल को मारने के लिए ठीक किया था, इसलिए कब्र मुझे साफ दिखाई दी थी. थापा पर मुझे यकीन था. शाम को ही मैं ने उसे योजना में शामिल कर लिया था. वह अंधेरा होते ही बगीचे में जा कर बैठ गया था.

राजेंद्र और शाहबानो को मैं ने पुलिस के हवाले कर दिया. कंपनी को सब बताने के बावजूद मुझे वापस बुला लिया गया. कुछ समय बाद मुझे पता चला कि गवाही और सुबूत के अभाव में दोनों बरी हो गए.     द्य

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