चुनावी माहौल के बीच देश में जिस तरह से फर्जी देशभक्ति का रंग भरा गया है उस से भारतीय जनता पार्टी कठघरे में आ गई है. हाल ही में पुलवामा कांड के बाद की गई तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक से देश में जिस तरह से सेना के कामों को भुनाया गया है वह गंभीर चिंता की बात है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो कई कदम आगे निकल गए. गाजियाबाद में की गई एक चुनावी रैली में उन्होंने भारतीय सेना को ‘मोदी जी की सेना’ बता दिया था. तब उन्होंने कहा था कि ‘कांग्रेस के लोग आतंकवादियों को बिरयानी खिलाते हैं और ‘मोदीजी की सेना’ उन्हें सिर्फ गोली और गोला देती है. यह अंतर है.’

इस कथन पर बवाल मच गया. विरोधियों की तो छोड़िए खुद भाजपाई और कभी सेना जुड़े रहे जनरल वीके सिंह ने इस कथन पर एतराज किया. उन्होंने कहा कि ‘अगर कोई कहता है कि भारत की सेना ‘मोदी जी की सेना’ है तो वह गलत ही नहीं है देशद्रोही भी है.’

चुनाव आयोग ने भी योगी आदित्यनाथ को चेतावनी देने के अंदाज में कहा कि योगी आदित्यनाथ को सेना से जुड़े संदर्भों का राजनीतिक उद्देश्यों हेतु प्रयोग न करने और भविष्य में सचेत रहने की सलाह दी जाती है.

योगी आदित्यनाथ के इस बयान पर सैनिक भी नाराज दिखे. वे भाजपा द्वारा सेना के नाम पर वोट मांगने को किसी भी नजरिए से सही नहीं ठहरा रहे थे.

इस सिलसिले में सेना के वरिष्ठ लोगों जैसे जनरल एसएफ रोड्रिग्स, जनरल शंकर रॉय चौधरी और जनरल दीपक कपूर ने 11 अप्रैल 2019 को भारत के राष्ट्रपति और सेना के सर्वोच्च कमांडर राम नाथ कोविंद को एक चिट्ठी लिखी जिस में उन्होंने सेना को चुनाव के प्रचार में इस्तेमाल किए जाने पर आपत्ति जताई.

उन्होंने अपनी सेना को शांति के समय या युद्ध के दौर में दी गई सेवाओं का जिक्र किया और सेना के धर्मनिरपेक्ष होने का हवाला देते हुए कहा कि सेना का हर सैनिक, चाहे वह युद्धभूमि में हो या न हो, अपने फर्ज के प्रति ईमानदार होता है और भारत के संविधान को सर्वोच्च मानते हुए बिना किसी पक्षपात के अपने सीनियर के आदेश का पालन करता है. यही वजह है कि भारत के राष्ट्रपति को सेना का अध्यक्ष बनाया गया है.

आप इस बात से परिचित हैं कि सेना में किसी भी पद पर तैनात कोई भी व्यक्ति, चाहे वह पुरुष हो या महिला, किसी ऐसे विषय पर भी टिप्पणी नहीं करता है जो उस के हितों के कितना भी विपरीत क्यों न हो या हो सकता है.

लेकिन आज हम सब की दुखती रग पर उंगली रखी गई है तो सेना का अध्यक्ष होने के नाते हम आप को अवगत कराना चाहते हैं कि कुछ नेताओं ने सेना के किए गए कामों जैसे बौर्डर पार स्ट्राइक को सरकार की उपलब्धि बताते हुए भारतीय सेना को ‘मोदीजी की सेना’ बता डाला है. कई नेता और कार्यकर्ता तक सेना की वरदी में लोगों के बीच देखे गए हैं. इस के अलावा सेना को राजीतिक पार्टियों के पोस्टरों में भी इस्तेमाल किया गया है खासकर भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनदंन वर्थमान बहुत सी जगह नजर आए.

हमारे कुछ दूसरे सीनियर रिटायर्ड अफसरों ने भी इस सब के खिलाफ एतराज जताया है जिस की हम सराहना करते हैं. भारतीय जल सेना के एक भूतपूर्व चीफ ने भी इस सिलसिले में चुनाव आयोग को अपने विचार लिखे थे.  बाद में एक अधिसूचना भी जारी की गई थी जिस में सेना को ले कर कही गई ऐसी राजनीतिक टिप्पणियों, जिस में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का बयान भी शामिल था, पर सफाई मांगी गई थी. लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि इतना सब होने के बाद भी जमीनी स्तर पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है.

अभी चुनावी माहौल है लेकिन कई राजनीतिक दल और नेता आचार संहिता का पालन नहीं कर रहे हैं जिस से हमें यह अंदेशा है कि आने वाले दिनों में ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी होती जाएगी.

आप हमारी इस बात से पूरी तरह सहमत होंगे कि भारत के संविधान और देश के राष्ट्रपति के अधीन भारतीय सेना का इस तरह का गलत इस्तेमाल हर वर्दीधारी, चाहे वह पुरुष हो या महिला, की नैतिकता और उस की सेवाओं पर प्रतिकूल असर डालेगा. इस का देश की सुरक्षा और एकता पर भी सीधा असर पड़ सकता है इसलिए हमारा आप से निवेदन है कि आप यह सुनिश्चित करें कि सेना की धर्मनिरपेक्षता और राजनीतिक चरित्र बना रहे.

निवेदन है कि इस के लिए आप वे सब जरूरी कदम उठाएं जिस से सभी राजनीतिक दल अपने एजेंडा को साधने के लिए सेना का किसी भी तरह से इस्तेमाल न करने पाएं.
सेना के इन वरिष्ठ अफसरों ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयोग के सामने भी इसी चिट्ठी के माध्यम से अपनी बात रखी है.

लेकिन अगले ही दिन भाजपा के खिलाफ राष्ट्रपति को लिखी गई चिट्ठी पर सेना के पूर्व अफसर बंटे
दिखाई दिए. पूर्व आर्मी चीफ एसएफ रोड्रिग्स ने कहा, ‘मैं नहीं जानता कि यह सब क्या है. मैं अपनी पूरी जिंदगी राजनीति से दूर रहा हूं…’

एसएफ रोड्रिग्स का नाम वायरल हो रही चिट्ठी में पहले नंबर पर है. उन्होंने कहा कि यह फेक न्यूज़ का क्लासिक उदाहरण है. राष्ट्रपति भवन के सूत्रों ने भी ऐसी कोई चिट्ठी मिलने से इनकार किया है. वैसे, पूर्व आर्मी चीफ शंकर रौय चौधरी ने चिट्ठी लिखे जाने की बात स्वीकारी है.

अब चिट्ठी पर मचे बवाल से यह सवाल उठता है कि क्या पूर्व आर्मी चीफ किसी के दबाव में तो ऐसा नहीं बोल रहे हैं? अगर ऐसा है तो यह और भी ज्यादा चिंता की बात है.

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