लोकसभा चुनाव के पांचवे चरण में पहुंचते-पहुंचते यह साफ है कि चुनावी लड़ाई बेहद कठिन है. अपने नेताओं को दरकिनार करने के बाद फिल्म, टीवी और खेल के मैदान से नामचीन चेहरे लाने के बाद भी भाजपा 75 प्लस सीटे लाने की हालत में नहीं दिख रही है. उत्तर प्रदेश से भाजपा को जो चुनौती मिल रही है उस कमी को पूरा करने वाला देश का कोई दूसरा प्रदेश नहीं है. पहले उम्मीद की जा रही थी भाजपा कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी को चुनाव जीतने नहीं देगी.

अमेठी और रायबरेली दोनो संसदीय सीट पर भाजपा के प्रत्याशी किसी तरह की बड़ी चुनौती नहीं खड़ी कर पा रहे है. रायबरेली के लालगंज के पास सरेनी कस्बे में बातचीत में वहां के रहने वालों ने कहा कि सोनिया गांधी जिस तरह की राजनीति करती हैं और जितनी सहनशील हैं वो आज के नेताओं की बस की बात नहीं है.

मोदी जी की सेना कहने पर सैनिक हुए खफा

सवर्ण जातियों के प्रभाव वाला यह क्षेत्र विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ था. पर लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस के साथ खड़ा है. यहां राष्ट्रवाद कोई मुददा नहीं है. सवर्ण जातियां ठाकुर और ब्राह्मण की आपसी गुटबाजी से दूर केवल कांग्रेस को वोट देने जा रही है. किसी के मन में इस बात का भी कोई मलाल नहीं है कि सोनिया और प्रियंका यहां वोट मांगने क्यो नहीं आ रहीं? कमोवेश यहीं हालत अमेठी लोकसभा सीट की है. राहुल गांधी और स्मृति ईरानी के बीच केवल

वोट के अंतर को देखना भर रह गया है. 2014 में मोदी के मैजिक के समय भाजपा यहां 2 सीटें जीत नहीं पाई थी. 2014 के मुकाबले भाजपा 2019 की राह कठिन है. भाजपा को लग रहा था कि त्रिकोणीय लड़ाई होने का लाभ पार्टी को मिलेगा. पर यह लाभ होता नहीं दिख रहा है.

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