14 फरवरी, 2019. वैलेंटाइन डे. मतलब इश्क का दिन. जब पूरी दुनिया में प्यार में लिपटे गुलाब फिजाओं में तैर रहे थे, उसी दिन ‘धरती की जन्नत’ कहा जाने वाला खुशरंग कश्मीर लहू के लाल रंग में नहला दिया गया. वहीं के एक खूबसूरत नौजवान आदिल अहमद डार ने डर को ही अपना कफन बना कर जिहाद के नाम पर ऐसी बेवकूफी कर दी जिस ने उस के साथसाथ कई और घरों के चिराग समय से पहले ही बुझा दिए.
ये चिराग देहाती मिट्टी के बने थे और बहुत गरीब घरों की दहलीज से निकल कर देश की सरहद तक पहुंचे थे. इन्होंने अपनी इच्छा से देशसेवा को चुना था और कड़ी मेहनत से अपने बदन को इस कदर लोहा बनाया था कि दुश्मन की एकाध गोली भी उन का कुछ न बिगाड़ सके.
ये जवान सोशल मीडिया के नकली शूरवीर नहीं थे, बल्कि देश के उस बहुजन समाज की नुमाइंदगी करते थे जो खेतीकिसानी और मजदूरी करते हुए भी अपने दिल में देशप्रेम को सब से ऊपर रखता है.
वीरवार, 14 फरवरी, 2019 को ठंड में जकड़े जम्मूकश्मीर के पुलवामा जिले में एक फिदायीन हमले में सीआरपीएफ के ऐसे ही 40 से ज्यादा कर्मठ जवान शहीद हो गए. सरकारी अफसरों के मुताबिक, आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के एक आतंकवादी आदिल अहमद डार ने विस्फोटकों से लदी एक गाड़ी से सीआरपीएफ जवानों को ले जा रही एक बस को टक्कर मार दी, जिस से यह दिल दहलाने वाला कांड हुआ.
दरअसल, सैंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स के 2,500 से ज्यादा जवान 78 गाडि़यों के काफिले में जा रहे थे कि जम्मूकश्मीर हाईवे पर श्रीनगर से 30 किलोमीटर दूर अवंतिपोरा इलाके में लाटूमोड पर इस काफिले पर घात लगा कर हमला किया गया.
यह धमाका इतना जबरदस्त था कि बस के परखच्चे उड़ गए. उस में बैठे जवानों का क्या हुआ होगा, यह सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सीआरपीएफ के महानिदेशक आरआर भटनागर ने बाद में इस हमले के बारे में बताया, ‘‘यह एक विशाल काफिला था और तकरीबन 2,500 सैन्यकर्मी अलगअलग गाडि़यों में जा रहे थे. धमाका करने के बाद इस काफिले पर कुछ गोलियां भी चलाई गईं.’’
जानकारी के मुताबिक, यह काफिला जम्मू से सुबह के साढ़े 3 बजे चला था और माना जा रहा था कि इसे शाम होने तक श्रीनगर पहुंचना था. काफिले में घाटी लौट रहे सैन्यकर्मियों की तादाद ज्यादा थी, क्योंकि हाईवे पर पिछले 2-3 दिन से खराब मौसम और दूसरी कई प्रशासनिक वजहों से कोई आवाजाही नहीं हो रही थी.
सड़क पर रास्ते की जांच के लिए एक दल को तैनात किया गया था और काफिले में आतंक निरोधक बख्तरबंद गाडि़यां मौजूद थीं. इस हमले में निशाना बनी बस सीआरपीएफ की 76वीं बटालियन की थी और उस में 39 सैन्यकर्मी सवार थे.
जैसे ही यह खबर आग की तरह देशभर में फैली, सोशल मीडिया पर मानो भूचाल सा आ गया. हो भी क्यों न, पिछले कई सालों से कश्मीर पर हो रही बेवजह की राजनीति का खमियाजा मारे गए जवानों ने जो भुगता था.
बहुत से लोगों ने भारतीय सरकार से पाकिस्तान को सबक सिखाने की गुहार लगाई. किसी ने आतंकियों का सिर काट कर लाने की बात कही तो ज्यादातर लोगों ने इस वारदात का जिम्मेदार इसलाम धर्म को ही ठहरा दिया.
विपक्षी दलों ने इस घटना पर कोई ज्यादा राजनीति नहीं खेली. कांग्रेस ने सरकार को आड़े हाथ जरूर लिया कि मोदी राज में यह 5 साल में 17वां बड़ा आतंकी हमला है, पर साथ ही यह भी साफ कर दिया कि वह देश की सुरक्षा से जुड़े इस मसले पर पूरी तरह से सरकार के साथ है.
इस पूरे मामले को गौर से देखने पर यह सवाल उठता है कि हमारी सेना और खुफिया तंत्र से इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई कि एक सिरफिरा नौजवान 300 किलो विस्फोटक से भरी एक गाड़ी लाया और उसे जवानों से भरी बस से भिड़ा दिया?
सेना के एक सीनियर अफसर की मानें तो पहले जब सुरक्षा बलों का काफिला चलता था तो बीच में सिविल गाडि़यों को नहीं आने देते थे. लेकिन पिछले कुछ समय से घाटी में हालात थोड़े ठीक हुए थे इसलिए ऐसे काफिलों के आगेपीछे सिविल गाडि़यां चलने लगी थीं. यह लापरवाही ही कही जाएगी जो अब खतरनाक रूप में सामने आई है.
वैसे, आतंकियों ने जिस तरह से इस हमले को अंजाम दिया है, वैसा अकसर अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए किया जाता है. इस हमले में जैश ए मोहम्मद नाम के आतंकी संगठन के ‘अफजल गुरु स्क्वाड’ का नाम सामने आया है. इस दस्ते का नारा है ‘मारो और मर जाओ’. इस का फिदायीन दस्ता बड़ा घातक माना जाता है.
आदिल अहमद डार भी एक ऐसा ही फिदायीन था जो जन्नत के चक्कर में आग का गोला बन कर दूसरों पर कहर की आतिशी बारिश कर गया.
पुलवामा के ही काकपुरा के गुंडीबाग का रहने वाला यह नौजवान एक वीडियो में जो बोला वह जहर ही था जो उस के मन में भर दिया गया था. उस ने कहा, ‘जब तक यह वीडियो आप के सामने आएगा मैं जन्नत में पहुंच चुका हूंगा.’
अब यह ऐसी कौन सी जन्नत है जो धरती के स्वर्ग से भी प्यारी है? वहां गए जिहादियों को ऐसी कौन सी सहूलियतें मिलती हैं जो वे धरती पर पसरी कुदरत की बहार को भी फीका समझने लगते हैं?
सच तो यह है कि कश्मीर 2 देशों के बीच फंसी वही धरती है जहां सेना के साए के बावजूद आतंकवाद का दायरा बढ़ता जा रहा है. साल 1986 के चुनाव में वहां हुई धांधलियों के बाद चरमपंथियों ने अपने पैर पसारने शुरू किए थे.
शेख अब्दुल्ला की मौत के बाद वहां किसी ऊंचे कद के नेता की घोर कमी हो गई थी. जो लोकल नेता उभरे, वे कट्टर इसलामी सोच से भरे थे. उन्हें छिपेतौर पर पाकिस्तान की शह मिलती थी.
अपने थोड़े से फायदे और भारतीय खुफिया तंत्र के पूरी तरह फेल हो जाने का ही नतीजा था कि आने वाले चंद सालों में कश्मीर अपनों की ही लगाई आग में झुलसने लगा.
इस का सीधा असर कश्मीर की जनता पर पड़ा. वे लोग हर लिहाज से पिछड़ते चले गए. वे यह भी नहीं समझ पा रहे थे कि किस का पक्ष लें. उन का अपनी ही जन्नत से मोह भंग होने लगा. जो रहनुमा लगते थे वे आतंकी संगठन से ज्यादा कुछ नहीं निकले. भारतीय नेताओं ने भी जुमलेबाजी से ज्यादा कुछ नहीं दिया, इसलिए कश्मीर की जनता को भारतीय सेना अपनी दुश्मन लगी.
14 फरवरी को सीआरपीएफ पर हुआ हमला इसी की कड़ी था. सवाल उठता है कि आतंकियों ने यह जो इतना ज्यादा विस्फोटक इकट्ठा किया वह कहीं से तो आया होगा? अगर वह पाकिस्तान से नहीं लाया गया तो और भी खतरनाक बात है कि ऐसे सामान आसानी से आतंकियों को मिल जाते हैं. फिर तो 2-4 लोग कहीं योजना बनाएं, कोई गाड़ी चुराएं और बना दें किसी को भी मानव बम.
भारतीय खुफिया तंत्र की मानें तो पहले ये मानव बम पाकिस्तान से मंगाए जाते थे, पर अब कश्मीर के लोकल लड़के ही यह काम करने लगे हैं. जैश ए मोहम्मद में ही अब कश्मीरी लड़कों की भरती की जाने लगी है. अगर ये मरते हैं तो कश्मीर में इन के जनाजों में भीड़ जुटती है. सोशल मीडिया पर इन को शहीद बताया जाता है. अब इस ताजा हमले ने कश्मीर को और सुलगा दिया है.
पाकिस्तान पर निशाना
इस आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को कोसना शुरू कर दिया है और उसे सबक सिखाने के लिए दुनियाभर से अपने हक में माहौल बनाना शुरू कर दिया है. अपनी धरती से आतंकी गतिविधियों को चलाने की पाकिस्तान की चाल को उजागर करने के लिए भारत ने दुनिया के कई बड़े देशों से बात की है. लेकिन एक कड़वी हकीकत तो यह भी है कि पाकिस्तान खुद आतंकी हमलों की मार झेल रहा है. वहां के आतंकी संगठनों ने उस की नाक में दम कर रखा है.
वैसे भी पाकिस्तान के साथ सीधी लड़ाई या सर्जिकल स्ट्राइक करने से इस समस्या का हल नहीं होगा. युद्ध में तो सीधेसीधे दोनों देशों का बड़ा नुकसान होगा. दोनों देश कई साल पीछे चले जाएंगे. जब से चीन ने पाकिस्तान को माली मदद देना शुरू किया है, वह किसी कीमत पर नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान कमजोर हो.
चीन ने इस हमले की घोर निंदा तो की है, पर मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादियों की लिस्ट में डालने की भारत की अपील का समर्थन करने से मना कर दिया है.
इस सब के उलट हमें इस बात पर ज्यादा गंभीरता से विचार करना चाहिए कि भारत ने पिछले तकरीबन 30 साल से कश्मीर में इतनी भारी तादाद में सेना और दूसरे सुरक्षा बलों को तैनात किया हुआ है तो क्या उस से हम आतंकवाद पर कंट्रोल कर सके हैं?
अभी हाल ही में भाजपा और पीडीपी ने मिल कर वहां सरकार बनाई थी, लेकिन वे दोनों भी वहां के लोगों में नई उम्मीद जगाने में नाकाम रहीं. अगर भाजपा पीडीपी को उस के मनमुताबिक राज करने देने का मौका देती तो पता तो चल जाता कि वहां की जनता का मिजाज क्या है. अगर भाजपा की सरकार केंद्र में मुसलिम राष्ट्रपति दे सकती है तो क्या उसे अब किसी कश्मीरी मुसलिम चेहरे को कश्मीर का राज्यपाल नहीं बना देना चाहिए था? क्या जरूरत थी उत्तर प्रदेश के एक नेता पर मेहरबान होने की?
आंख के बदले आंख किसी समस्या का हल नहीं है. कश्मीर पर भी यह बात लागू होती है. हमें ठंडे दिमाग से यह सोचना होगा कि ऐसी क्या वजहें हैं जो कश्मीर के नौजवान हिंसा के इस रास्ते पर चल रहे हैं? क्या वहां की जनता हमेशा के लिए इसी तरह संगीनों के साए में जीती रहेगी? क्या वहां के मासूम बच्चे नहीं चाहते होंगे कि उन के कंधे पर भी किताबों से भरा बस्ता हो और वे बेखौफ हो कर स्कूल में पढ़ने जाएं.
अगर रेतीले राजस्थान के कोटा में ऐजूकेशन हब बन सकता है तो हरेभरे कश्मीर में क्यों नहीं?