बिहार के बक्सर जिले के डीएम (जिलाधीश) मुकेश पांडे ने सुसाइड करने से पहले सुसाइड नोट का वीडियो बनाया था. सुसाइड के लिए पारिवारिक विवाद और तनातनी को जिम्मेदार ठहराया गया.
उन्होंने वीडियो में साफ कहा है कि उन की बीवी और मातापिता के बीच के तनाव भरे रिश्ते से उन का जीना दुश्वार हो गया था. 11 अगस्त, 2017 को गाजियाबाद स्टेशन से एक किलोमीटर दूर कोटगांव के पास रेलवे ट्रैक पर उन का कटा हुआ शव बरामद हुआ था.
4 अगस्त, 2017 को ही उन की पहली बार जिलाधीश के तौर पर बक्सर में पोस्टिंग हुई थी. 2 दिन की छुट्टी ले कर और बक्सर के डीडीसी को अपना चार्ज दे कर वे बनारस होते हुए हवाईजहाज से दिल्ली आ गए थे.
वे दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके के होटल लीला पैलेस के कमरा नंबर 742 में ठहरे थे. रात 10 बजे के बाद उन की लाश मिलने की खबर आई.
बिहार के सारण जिले के दरियापुर ब्लौक के सांझा गांव के मूल निवासी मुकेश पांडे पटना के मारुति शोरूम के मालिक राकेश कुमार सिंह के दामाद थे. रेलवे ट्रैक के पास भी एक सुसाइड नोट मिला था, जिस पर लिखा था, ‘आई एम सौरी. लव यू आल. प्लीज फौरगिव मी.’
रूस के मास्को में रहने वाले मुकेश पांडे के बड़े भाई राकेश पांडे भारतीय विदेश सेवा के अफसर हैं. उन्होंने कहा कि कभीकभार मुकेश से बातचीत होती थी. हालचाल पूछने पर वह हमेशा कहता था कि वह ठीक है. काम के बारे में भी वह बात करता था. उस ने कभी किसी पारिवारिक तनाव या परेशानी की बात नहीं बताई.
मुकेश के चाचा वशिष्ठ पांडे ने भी बताया कि उस ने कभी किसी तरह के तनाव का जिक्र नहीं किया.
मुकेश के ससुर का भी यही कहना है कि उन के दांपत्य जीवन में कोई तनाव नहीं था. वे रोज उन्हें फोन करते थे. घटना के दिन भी मुकेश ने उन से पूना जाने के बारे में बताया था.
मुकेश पांडे के पिता गुवाहाटी में रहते हैं और उन के चाचा भी गुवाहाटी के एक अखबार में पत्रकार हैं. मुकेश की मैट्रिक और हायर सैकेंडरी की पढ़ाई गुवाहाटी में ही हुई थी. 2 भाइयों में वे छोटे थे.
11 अगस्त, 2017 की शाम 6 बजे मुकेश पांडे ने घर वालों को वाट्सअप पर जानकारी दी कि वे दिल्ली में एक इमारत से कूद कर सुसाइड करने जा रहे हैं. घर वालों ने फौरन इस की सूचना दिल्ली पुलिस को दी. पुलिस ने उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश की, पर मुकेश के इमारत से कूदने का इरादा बदल देने की वजह से पुलिस उन का पता नहीं लगा सकी.
मुकेश पांडे के ससुर राकेश प्रसाद सिंह ने मुकेश की दिमागी हालत पर सवाल उठाते हुए कहा कि सुसाइड नोट को पढ़ कर लगता है कि उसकी दिमागी हालत ठीक नहीं थी. एसएमएस, वीडियो क्लिप, ह्वाट्सअप और 11 पेज का हाथ से लिखा सुसाइड नोट उन्हें मिला. लंबे समय तक इतने सुसाइड नोट कोई सामान्य आदमी कैसे लिख सकता है? क्या ये हरकतें अटपटी नहीं लगती हैं?
मुकेश की बीवी आयुषी ने भी किसी तरह के विवाद से इनकार करते हुए कहा है कि परिवार में किसी तरह की समस्या नहीं थी.
ससुर राकेश प्रसाद सिंह कहते हैं कि अगर मुकेश पांडे को किसी तरह की परेशानी थी, तो वह उन्हें बताते तो उसे दूर किया जा सकता था. मुकेश ने अच्छा नहीं किया. 2 परिवारों को बरबाद कर दिया. पता नहीं, उन्हें क्या परेशानी थी. रोज वे रात 10-11 बजे के बीच उन से फोन पर बातें करते थे. हालचाल लेते थे. पतिपत्नी के रिश्ते में कोई खटास नहीं थी. इस के बाद भी मुकेश के तनाव में रहने वाली बात किसी के पल्ले नहीं पड़ रही है.
जिस समय आयुषी को मुकेश की खुदकुशी करने की खबर मिली, उस समय वह डाक्टर के यहां थी. बच्चे की तबीयत खराब होने की वजह से वह काफी परेशान थी. मुकेश की सुसाइड की खबर सुन कर वह बदहवास सी हो गई.
रेलगाड़ी के सामने कूद कर जान देने से पहले मुकेश ने 2 बार खुदकुशी की कोशिश की, पर कामयाब नहीं हो सके. सीसीटीवी फुटेज के मुताबिक, वे सब से पहले पश्चिमी दिल्ली के जनकपुरी डिस्ट्रिक्ट सैंटर गए थे, पर वहां उन्हें मौका नहीं मिला. उस के बाद वह राजौरी गार्डन के वैस्टइन मौल पहुंचे. सुरक्षा गार्ड ने उन्हें बदहवास हालत में देख रोक दिया, तो वे वहां से निकल कर गाजियाबाद चले गए.
पुलिस की छानबीन में पता चला कि सीसीटीवी फुटेज में रिकौर्ड हुआ था कि शाम 5 बज कर 55 मिनट पर मुकेश राजौरी गार्डन मैट्रो स्टेशन की ओर जाते दिखाई दिए, पर मैट्रो स्टेशन पर लगे सीसीटीवी में वे नजर नहीं आए. इस से यह अंदाजा लगाया गया कि वे बस या टैक्सी से गाजियाबाद की ओर गए होंगे.
नवादा के डीएम और मुकेश के साथी कौशल कुमार बताते हैं कि 2012 के आईएएस बैच में कुल 180 लोग थे, जिस में 9 बिहार कैडर के थे. ट्रेनिंग के दौरान मुकेश हमेशा खुशमिजाज रहते थे. दूसरे साथियों को मोटिवेट करते रहते थे. हमेशा हंसने और हंसाने वाला इनसान इस तरह से दुखी हो कर के चला जाएगा, यह कभी सोचा भी नहीं था.
डीएम का पत्र
‘मेरा नाम मुकेश पांडे है. 2012 आईएएस बैच का अफसर हूं, बिहार कैडर का. मेरा घर गुवाहाटी, असम में पड़ता है. मेरे पिताजी का नाम सिद्धेश्वर पांडे है. मेरी माताजी का नाम गीता पांडे है. मेरे ससुर का नाम राकेश प्रसाद सिंह और सास का नाम पूनम सिंह है. मेरी वाइफ का नाम आयुषी शांडिल्य है.
‘इनकेस अगर यह मैसेज आप देख रहे हैं, तो मेरे सुसाइड और मेरी मौत के बाद का मैसेज है. मैं पहले से प्रीरिकौर्ड कर रहा हूं, बक्सर के सर्किट हाउस में. यहीं पर मैं ने डिसीजन लिया कि मैं दिल्ली जा कर अपने जीवन का अंत कर दूंगा.
‘यह डिसीजन मैं ने इसलिए लिया, क्योंकि मैं अपने जीवन से खुश नहीं हूं. मेरी वाइफ और मेरे मातापिता के बीच बहुत तनातनी है. हमेशा दोनों एकदूसरे से उलझते रहते हैं, जिस से मेरा जीना दुश्वार हो गया है. दोनों की गलती नहीं है. दोनों ही अत्यधिक प्यार करते हैं मुझ से. कभीकभी अति किसी चीज की एक आदमी को मजबूर कर देती है कि वह बहुत ही ऐक्स्ट्रीम स्टैप उठा ले. किसी भी चीज की अति होना अच्छी बात नहीं है.
‘मेरी वाइफ मुझ से बहुत प्यार करती है. मेरी एक छोटी बच्ची भी है. मेरे पास अब कोई औप्शन नहीं बचा है. और वैसे भी अब मैं जीवन से तंग आ गया हूं. मैं सिंपल और पीस लिविंग आदमी हूं. जब से मेरी शादी हुई है, तब से उन से बहुत उथल पुथल चल रही है. हमेशा हम लोग किसी न किसी बात को ले कर झगड़ते रहते हैं. दोनों की पर्सनैलिटी बिल्कुल अलग है. वे बहुत ही एग्रैसिव और ऐक्ट्रोवर्ट हैं. मेरा नेचर इंट्रोवर्ट है. किसी भी चीज में हमारा मेल नहीं खाता है. बावजूद हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं.
‘मैं अपनी मौत के लिए खुद को जिम्मेदार मानता हूं. मैं अपनी मरजी से सुसाइड कर रहा हूं. मेरे ऊपर किसी का दबाव नहीं है. यह मेरा अपना फैसला है. पहले सोचा था कि अध्यात्म की तरफ चला जाऊं. तप करूं. समाजसेवा करूं. बाद में सोचा कि यह सब बेकार है. मुझे पता है कि सुसाइड करने का फैसला कायराना और पलायन वादी सोच है, पर मेरे अंदर जीवन के लिए कोई फीलिंग बची ही नहीं है. कोई इच्छा नहीं रह गई है. जीवन से मन भर गया है.’